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मानव शक्ति सीमित है। यदि ऐसा न होता तो वह भवन भौतिक जगत की स्थायी सत्ता बन जाता। उसी प्रकार भौतिक सत्ताओं में परमाणु प्रकृति के नियमानुसार जुड़ते और अलग होते रहते हैं। पदार्थ की संरचनाएँ स्थायी रहती हैं। इस प्रकार यह स्पष्ट हो जाता है कि अनन्त रूपान्तरणों के बाद भी विश्व सनातन रहता है।
अनेकान्त के आलोक में आणविक भौतिकी और जैन दृष्टि
आणविक भौतिकी और जैन दर्शन के बीच समानता एवं प्रतिकूल विचारों के एकीकरण का सिद्धान्त है। दर्शन में एक और अनेक की समस्या तथा अविनश्वरता
और परिवर्तनशीलता की समस्या उतनी ही प्राचीन है जितनी कि दर्शन । आधुनिक विज्ञान में हाल ही में हुए उपआणविक आविष्कारों ने ऐसी धारणाओं को जो आज तक एक दूसरे के विपरीत और परस्पर विरोधी-सी लगती थीं, एकीकृत कर दिया है।
प्राचीन जैन दार्शनिक परस्पर विरोधी धारणाओं की सापेक्षिकता और ध्रुवीय सम्बन्धों से परिचित थे। प्रतिकूलता अमूर्त अवधारणा है जो विचार के क्षेत्र में आती है और इस प्रकार सापेक्ष है।
यह ज्ञान कि जो है वही परिवर्तित हो सकता है, ही अनेकान्तवाद के सिद्धान्त का मूल है। इसी प्रकार बड़ा और छोटा, भारी और हल्का, ठंडा और गर्म, ठोस और कोमल एक दूसरे के ध्रुवीय विपरीत हैं। अनेकान्तवाद के सिद्धान्त के द्वारा ही आणविक एवं उपआणविक स्तर पर भौतिक पदार्थ के द्वैत और विरोधाभासी पक्ष को ठीक से समझा जा सकता है।
मध्यकाल में कई जैन विद्वान हुए हैं जो पूर्णतया साहित्य और अध्यात्म में रुचि रखते थे। हालाँकि उन्होंने गणित, तर्कशास्त्र और शायद खगोल विज्ञान में योगदान दिया था, पर वैज्ञानिक ज्ञान में उनका योग नगण्य था। इसी बीच आधुनिक वैज्ञानिकी पश्चिम में पूर्णतया स्वतन्त्र रूप से स्थापित हो चुकी थी और चेतना के अस्तित्व को नकारते हए भौतिक उपयोग में लायी जाने लगी थी। इस तरह पश्चिम के आधुनिक विज्ञान
और पूर्व के पारम्परिक ज्ञान के बीच तुलना का आधार ही हटा दिया गया था। आश्चर्य है कि विख्यात भौतिक शास्त्री (उदाहरणतया डेविड बोझ और जैफ्री च्यू) इस बात को जान गये हैं कि ब्रह्मांड के आवश्यक तत्त्व चेतन को भविष्य के भौतिक तथ्यों के सिद्धान्त में सम्मिलित करना पड़ेगा।
एक प्रसिद्ध भौतिक शास्त्री, वर्नर हीजेनबर्ग लिखते हैं- "शायद यह सच है कि मानवीय विचार के इतिहास में सबसे अधिक सफल विकास अक्सर वहाँ होता है जहाँ दो भिन्न विचार पद्धतियाँ मिलती हैं और उनकी जड़ें सभ्यता के भिन्न कालों में, भिन्न परिवेशों में या भिन्न धार्मिक परम्पराओं में होती हैं। अत: यदि वे मिलती
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