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करता है। विश्व की नित्य-सह-अनित्य प्रकृति को समझने के लिए जैनदर्शन में वर्णित कारणत्व के सिद्धान्त को समझना होगा। जैनदर्शन के अनुसार प्रत्येक परिणाम के दो कारण होते हैं
1. उपादान कारण, 2. निमित्त कारण
स्वतः परिणाम के रूप में परिणत हो जाने वाला कारण उपादान कारण है और जो परिणाम उत्पन्न करने में साधन के रूप में कार्य करता है वह निमित्त कारण कहलाता है। प्रत्येक पदार्थ प्रतिपल रूपान्तरित हो रहा है। इस प्रक्रिया में पूर्ववर्ती और अनुवर्ती में एक क्रम बना रहता है। प्रारम्भिक पर्याय या अवस्था भौतिक कारण है और बाद वाली अवस्था या पर्याय परिणाम है। इस प्रकार कारण और परिणाम एक ही अवस्था के दो रूप हैं। पुनश्च, रूपान्तरण के भी दो पहलू होते हैं-सृजन और विनाश। जब परिणाम उत्पन्न होता है तो भौतिक कारण समाप्त हो जाता है। तथ्य यह है कि भौतिक कारण ही अपना रूप त्यागकर परिणाम का रूप धारण कर लेता है। इसलिए यहाँ कारण और परिणाम की समानता का सिद्धान्त लागू होता है। इस प्रकार 'सत्' से 'सत्' उत्पन्न होता है 'असत्' नहीं।
रूपान्तरण दो प्रकार का होता है
1. वह रूपान्तरण जो समय और प्रकृति के द्वारा होता है, स्वतः या प्राकृतिक रूपान्तरण कहलाता है। इसके लिए किसी बाह्य कारण की आवश्यकता नहीं होती है।
2. किसी बाह्य अभिकरण द्वारा होने वाले रूपान्तरण को बाह्य रूपान्तरण कहते हैं। यह प्राकृतिक या स्वत: नहीं होता है। ___चूँकि विश्व पदार्थों का संकलन मात्र है। इसलिए इसकी नित्यता व अनित्यता को इसके संरचक पदार्थों की नित्यता व अनित्यता के माध्यम से समझा जा सकता है। ये छह पदार्थ कैसे, कब व किसके द्वारा बने, यह जानने के लिए सभी पदार्थों के अस्तित्व को अनादि मानना होगा। अर्थात् जो सृष्टि की उत्पत्ति पर विश्वास करते हैं, उसके लिए तो यह प्रश्न हमेशा रहेगा, किन्तु इसे अनादि मानने वालों के लिए यह प्रश्न उचित नहीं है।
विश्व के छह पदार्थों में होने वाले रूपान्तरण विश्व के सनातन होने को सिद्ध करते हैं। इन छह पदार्थों में से चार-धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय और काल में केवल स्वतः रूपान्तरण होता है। इन्हीं रूपान्तरणों के कारण उनका अस्तित्व अनन्त समय के लिए होता है।
विश्व की समस्त लीलाएँ केवल दो ही पदार्थों-पुद्गलास्तिकाय और जीवास्तिकाय के रूपान्तरण के कारण होती हैं। आत्माएँ दो प्रकार की होती हैं- 1. मुक्त और 2. संसारी । मुक्त आत्माओं में केवल स्वतः या प्राकृतिक रूपान्तरण होता है। संसारी आत्माओं में प्राकृतिक व निमित्त रूपान्तरण होता है, क्योंकि आत्माएँ कर्म पुद्गलों से बँधी हुई
अनेकान्त :: 179
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