________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
इन दोनों बातों को एक साथ स्वीकार नहीं करता। अनेकान्तवादी दृष्टिकोण वाले
व्यक्ति इस बात को जानते हुए भी उस दवा का सदुपयोग करते हैं। • किसी वस्तु के स्वरूप का निर्णय उसके स्वभाव और उसकी अवस्था विशेष पर निर्भर करता है। जैसे घड़ा स्वभाव की अपेक्षा मिट्टी है और अवस्था की अपेक्षा
घड़ा। • परिवर्तन या रूपान्तरण उन सभी वस्तुओं का मूलभूत लक्षण है, जो सत्य हैं। • स्थायी समानता की पृष्ठभूमि के बिना परिवर्तन को नहीं समझ सकते। जैसे
(1) मेरा गाँव पहले से बहुत बदल गया है। (समय वही है)
(2) मेरा गाँव इस शहर से बहुत बदला हुआ है। (स्थान वही है) • अनुभव के लिए समानता और क्रमागत परिवर्तन आवश्यक होते हैं। अनेकान्तवाद
भिन्न-भिन्न पहलुओं को एक करके देखता है। • परिवर्तित अवस्थाओं की श्रृंखला सम्बद्ध आकार का रूप होता है। प्रक्रिया की
प्रारम्भिक और बाद वाली अवस्थाएँ समानता में होने वाले परिवर्तन हैं, क्योंकि उनसे एक प्रक्रिया का निर्माण होता है। इस प्रकार अवस्थाओं का अनुक्रम एक इकाई के रूप में जोड़ दिया जाता है, जिसे हम लक्षणों की स्थायी समानता में परिवर्तन कहते हैं। • जैन सत्य की गतिशील प्रकृति पर विश्वास कहते हैं । वेदान्त परिवर्तन को आभासी
मानकर इन तीनों लक्षणों को नजरअन्दाज कर देते हैं। • Real का होना सीधा-सादा नहीं है। Continuence और Variation समान सत्य
• एकता और विभिन्नता पूर्ण तारतम्य के साथ होती है। • सत्य को परिवर्तन की पर्याय में देखा जाए तो यह अस्तित्व में आता है और जाता
है।
• विरोधाभास आभासी है, क्योंकि इससे सन्तोषजनक अनुभव और विचार पैदा होता
• पदार्थ और पर्याय समानरूप से समान और भिन्न माने जा सकते हैं। इसमें पूर्ण
स्वीकार या पूर्ण अस्वीकार जैसी कोई बात ही नहीं है। जैसे मिट्टी और घडा। • बौद्ध समानता को जैनों की तरह नहीं मानते। वेदान्त भिन्नता को नहीं मानता,
जबकि अनेकान्त दोनों की सत्यता को स्वीकार करता है व दोनों को सत्य का
अनुभव द्वारा प्रमाणित गुण मानता है। • 'है' या 'नहीं है', एक ही शब्द द्वारा एक ही समय में व्यक्त नहीं किया जा
सकता। इसलिए इसे अवाच्य भी कहा गया है।
176 :: जैनधर्म परिचय
For Private And Personal Use Only