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एवं अन्यदर्शनों में नाम, संख्या, लक्षण, परिभाषा एवं प्रयोग-व्यवहार की दृष्टि से तुलनात्मक अध्ययन कर सकते हैं। अत: जैनाभिमत द्रव्यमीमांसा का अन्य भारतीय दर्शनों में विवेचित द्रव्यमीमांसा के साथ तुलनात्मक अध्ययन संक्षेपतः यहाँ प्रस्तुत है
भेद या प्रकार की दृष्टि से जैनदर्शन द्रव्यों के छह भेद मानता हैं, जबकि बौद्ध दर्शन 75 भेद तक मानता है। मीमांसा दर्शन में ये भेद 6 हैं, जबकि सांख्य दर्शन में 25 प्रकार के पदार्थ माने गये हैं। वैशेषिक दर्शन 7 पदार्थ मानता है, तो वेदान्त दर्शन या-तो अद्वैत-ब्रह्म मानता है या ब्रह्म के साथ लोक की भी सत्ता मानता है। चार्वाक दर्शन में 4 प्रकार के महाभूत माने गये हैं। ___ द्रव्यों की संख्या की दृष्टि से जीवों को जैन अनन्त मानते हैं, सांख्य अनेक मानते हैं और वेदान्ती एक अद्वितीय सत्ता मानते हैं, जबकि बौद्ध और चार्वाक जीव या आत्मा की सत्ता ही नहीं मानते। पुद्गल द्रव्य को जैन अनन्तानन्त मानते हैं, जबकि इस वर्गीकरण के रूप में अन्य किसी दर्शन में कोई विवरण प्राप्त नहीं होता। इसी प्रकार धर्म और अधर्म द्रव्य जैनदर्शन में एक-एक माने गये हैं, परन्तु अन्य किसी दर्शन में इनकी कोई सत्ता ही नहीं है। आकाश द्रव्य को जैन दर्शन में अखण्ड रूप में एक और उपचारतः लोकाकाश और अलोकाकाश के भेद से दो माना गया है। जबकि अन्य किसी दर्शन में जैन परिभाषा के अनुसार आकाश-द्रव्य का स्वरूप प्राप्त नहीं होता। कुछ दर्शन शब्द-गुण वाले द्रव्य को आकाश कहते हैं, जबकि जैनदर्शन शब्द को पुद्गल द्रव्य की पर्याय कहता है। कालद्रव्य को जैनदर्शन लोकाकाश-प्रमाण असंख्यात मानता है, किन्तु ऐसे कालद्रव्य की अन्य किसी दर्शन में विवेचना प्राप्त नहीं होती है। __लक्षण की दृष्टि से जैनदर्शन जीव का लक्षण चेतना या उपयोग मानता है। सांख्य भी चेतना या साक्षीभाव को जीव का लक्षण मानता है। जबकि बौद्ध और चार्वाक अनात्मवादी होने से इस विषय में मौन हैं। पुद्गल द्रव्य के लक्षण में जैनदर्शन जहाँ प्रत्येक पुद्गल द्रव्य को स्पर्श, रस, गंध और वर्ण वाला मानता है, वहीं वैशेषिक इन्हीं स्पर्शादि गुणों को अलग-अलग पुदगलों में मानता है। उदासीन गति हेतुत्व और उदासीन स्थिति हेतुत्व धर्म और अधर्म द्रव्यों के लक्षणों को मात्र जैनदर्शन में ही स्थान प्राप्त है, अन्य किसी दर्शन में इस विषय में चर्चा तक नहीं है। इसी प्रकार अवगाहनहेतु लक्षण वाले आकाश द्रव्य और वर्तना हेतु लक्षण वाले काल द्रव्य की भी अन्य दर्शनों में कहीं कोई उल्लेखनीय चर्चा नहीं मिलती। __ प्रदेशसंख्या की दृष्टि से अस्तिकाय विवेचन में जो विवरण छहों द्रव्यों के बारे में दिया गया है। वह भी अन्य किसी दर्शन में उपलब्ध नहीं है।
द्रव्यों के वर्गीकरण की दृष्टि से जैनदर्शन में जीव द्रव्य के संसारी और मुक्त ये दो मूलभेद माने गये हैं, जबकि संसारी जीवों से त्रस और स्थावर ये दो भेद बताकर
172 :: जैनधर्म परिचय
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