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अनेक लोगों ने ऐसे परिवारों को राशन-पानी पहुँचाया था। अहमदाबाद के श्री अम्बालाल साराभाई ने ब्रिटिश सरकार से मिले 'केसरे हिन्द' सम्मान को लौटाकर तहलका मचा दिया था।
आजाद हिन्द फौज और जैन
भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम में नेता जी सुभाषचन्द्र बोस और उनकी आजाद हिन्द फौज का महनीय योगदान है किन्तु उनके योगदान का सही मूल्यांकन नहीं हो सका है। आचार्य दीपंकर ने ठीक ही लिखा है-'जिस महान् स्वतन्त्रता सेनानी और हुतात्मा का भारत के शासक वर्गों ने अभी तक सही-सही मूल्यांकन नहीं किया है, वह हैं नेता जी सुभाषचन्द्र बोस । उनका अत्यधिक गतिशील व्यक्तित्व, मातृभूमि के प्रति सम्पूर्ण समर्पण, समाज को उद्वेलित करने की असाधारण क्षमता और अपनी सम्पूर्ण शक्तियों को स्वाधीनता संघर्ष में झोंक डालने का दीवानापन ऐसे अद्भुत गुण थे जिन्होंने करोड़ों भारतीयों को अपनी ओर आकृष्ट कर लिया था और अपना उपासक बना लिया था।'
नेता जी सुभाषचन्द्र बोस और उनकी आजाद हिन्द फौज को जैन समाज के लोगों ने भरपूर सहयोग दिया था। 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन से ब्रिटिश हुकूमत डर गयी थी और उसे लगने लगा था कि हमें भारत छोड़ना पड़ेगा, किन्तु फिर भी किसी तरह वह लड़खड़ाते पैर जमाने की कोशिश कर रही थी। इधर आजाद हिन्द फौज की क्रान्तिकारी गतिविधियों से भी वह पूरी तरह घबरा गयी। इन सबकी परिणति 1947 में देश की आजादी के रूप में हुई। ___1942 के आन्दोलन के समय भारत में क्रान्तिकारियों को जिस तरह की क्रूर सजाएँ दी जा रही थीं, उन्हें देखते हुए कई क्रान्तिकारी जापान, चीन, मलाया, बर्मा आदि देशों की ओर चले गये थे, और वहीं से अपनी क्रान्तिकारी गतिविधियों का संचालन कर रहे थे। प्रसिद्ध क्रान्तिकारी रास बिहारी बोस ने जापान में शरण ली थी। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान जब जापान ने मित्र राष्ट्रों के विरुद्ध युद्ध की घोषणा की तब टोकियो में एक सम्मेलन में रास बिहारी बोस की अध्यक्षता में एक कमेटी बनाई गयी और निर्णय लिया गया कि बर्मा, मलाया, थाईलैंड आदि देशों में भी भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन चलाया जाये।
जापानी फौजें जब मलाया की ओर बढ़ीं और सिंगापुर में अंग्रेज हार गये तब विजेता जापानी मेजर फूजीवारा ने भारतीय फौजों को सम्बोधित करते हुए कहा था कि'जापान भारत के विरुद्ध नहीं है, अतः भारतीय सैनिक हमारे युद्ध बन्दी नहीं।' तब कैप्टन मोहन सिंह और ज्ञानी प्रीतम सिंह भारतीय फौजों के कमांडर बना दिए गये और उन्होंने जापान की सहायता से भारत को आजाद कराने का प्रयत्न प्रारम्भ कर दिया।
स्वतन्त्रता आन्दोलन में जैनों का योगदान :: 127
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