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का मस्तक बहुत ही ऊँचा हो गया है। कुल मिलाकर इस प्रान्त ने राष्ट्रीय यज्ञ में जो आहुतियाँ दी हैं, वे स्वतन्त्र भारत के इतिहास में आदर के साथ स्मरण की जाएँगी।'
महाराष्ट्र के वर्धा, परभणी, औरंगाबाद, सांगली, सोलापुर तथा कर्नाटक के बेलगाम, मूलबिद्रे, हासन, आन्ध्र प्रदेश के हैदराबाद आदि में पर्याप्त मात्रा में जैन बन्धु निवास करते हैं। इनके उपनामों के कारण इनको जैन रूप में पहचानने में कठिनाई सामने आयी। यहाँ के जैनों ने प्राणपण से राष्ट्रीय आन्दोलन में भाग लिया था। अमर शहीद मोतीचन्द शाह को 1915 में आरा के महन्त की हत्या के आरोप में फाँसी पर लटका दिया गया था। इसी प्रकार अमर शहीद अण्णापत्रावले, भूपाल अणस्करे, वीर सातप्पा टोपण्णावर आदि ने अपना बलिदान दिया था। रणरागिणी राजमती पाटिल क्रान्तिकारी महिला थीं, वे गोवा से चोरी-छिपे हथियार लाकर क्रान्तिकारी साथियों को देती थी दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, बिहार, बंगाल एवं उड़ीसा के प्रमुख जैन : दिल्ली भारतवर्ष की राजधानी होने से भारतीय राजनीति का केन्द्र-बिन्दु रही है। इसका पुराना नाम इन्द्रप्रस्थ था। इसी प्रकार पंजाब का पुराना नाम पंचनद था। वर्तमान पाकिस्तान में पंजाब का कुछ हिस्सा आता है, जिसमें गुजराँवाला, स्यालकोट आदि नगर प्रसिद्ध हैं। हरियाणा पहले पंजाब में ही था, पुनर्गठन के बाद इसे अलग प्रदेश बनाया गया। इसी प्रकार हिमाचल भी पुनर्गठन के बाद अलग प्रदेश बना।
बिहार, बंगाल और उड़ीसा भी भारतीय राजनीति के प्रमुख केन्द्र रहे हैं। जैन इतिहास की दृष्टि से बिहार और उड़ीसा में राजनीतिक संघर्ष चलता रहा है। मगध का सम्राट् जब उड़ीसा से 'कलिंग जिन' की मूर्ति उठाकर ले आया था, तब सम्राट खारवेल मगध पर चढ़ाई कर उस ‘कलिंग जिन' की मूर्ति को वापिस उड़ीसा ले गया था। खंडगिरि-उदयगिरि के प्रसिद्ध शिलालेख में इस घटना का उल्लेख खारवेल ने किया है। बंगाल में प्रवासी जैनों का बाहुल्य है, ये प्रायः राजस्थान से उद्योग-व्यापार के सिलसिले में यहाँ आये और यहीं बस गये।
दिल्ली में पर्याप्त मात्रा में जैन समुदाय के लोग निवास करते हैं। यहाँ उद्योग के साथ राजकीय सेवा में रत अनेक महानुभाव भी रहते हैं। चाँदनी चौक के आसपास का स्थान, जिसमें दरियागंज, दरीबाकलाँ आदि आते हैं, जैन-बहुल क्षेत्र हैं। सुप्रसिद्ध लाल मन्दिर यहीं लालकिले के सामने बना है। दिल्ली में उ.प्र., हरियाणा, राजस्थान आदि से आये प्रवासी जैनों की भी अच्छी संख्या है। दिल्ली के जैन स्वतन्त्रता सेनानियों में कुछ ऐसे हैं जो दिल्ली के मूल निवासी हैं और कुछ ऐसे हैं जिन्होंने किसी अन्य प्रदेश में स्वतन्त्रता संग्राम में भाग लिया, बाद में दिल्ली आकर बस गये। दिल्ली के जेल यात्रियों पर श्री फूलचन्द जैन ने एक वृहद् ग्रन्थ लिखा है। सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री जैनेन्द्र कुमार जैन भी जेल यात्री रहे हैं। क्रान्तिकारी विमल प्रसाद जैन
स्वतन्त्रता आन्दोलन में जैनों का योगदान :: 125
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