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स्वतन्त्रता-प्रेमियों ने भारतीय स्वतन्त्रता-संग्राम में प्रचुरता से भाग लिया था।
1942 का भारत छोड़ो आन्दोलन बम्बई से ही प्रारम्भ हुआ था। 1930 में दांडी यात्रा के समय मध्य प्रदेश में जंगल सत्याग्रह प्रारम्भ हुआ था क्योंकि अनेक लोग दांडी यात्रा में नहीं जा सके थे। इसी प्रकार झंडा सत्याग्रह, जागीर प्रथा विरोध, महुआ आन्दोलन आदि आन्दोलन भी इस प्रदेश में चले थे। मध्य प्रदेश के कुछ जिलों में जैन सम्प्रदाय के लोग बहुतायत से निवास करते हैं, इनमें जबलपुर, सागर, दमोह, ग्वालियर, टीकमगढ़, छतरपुर, विदिशा, खंडवा, इन्दौर, रीवां, दतिया आदि के नाम विशेष उल्लेखनीय हैं। 1939 में जबलपुर (त्रिपुरी) में कांग्रेस का 52वाँ अधिवेशन हुआ। आस-पास के क्षेत्रों से हजारों की संख्या में उत्साही और देशभक्त नवयुवकों ने इसमें भाग लिया था। इस अधिवेशन में अनेक जैन बन्धुओं ने भाग लिया था और स्वयंसेवक का कार्य किया था। ____ 1857 में ग्वालियर के सिंधिया परिवार के खजाने 'गंगाजली' के खजांची श्री अमरचन्द बांठिया ने महारानी लक्ष्मीबाई को प्रभूत धन दिया था। कुछ दिन बाद ही उन्हें 22 जून 1858 को सर्राफा बाजार के नीम के पेड़ पर फाँसी पर लटका दिया था। एक गम्भीर चेतावनी के रूप में उनका शव तीन दिन तक लटका रहा था। मंडला के उदयचन्द जैन, गढ़ाकोटा के साबूलाल बैसाखिया ने 1942 के आन्दोलन में शहादत देकर आजादी का मार्ग प्रशस्त किया था। सागर जिले से लगभग 100 जैन व्यक्ति जेल गये थे। इसी प्रकार जबलपुर के जैन जेलयात्रियों की संख्या भी अर्द्धशतक से ऊपर है, इस सन्दर्भ में जैन सन्देश लिखता है-'मध्यप्रान्त की जैन समाज सदा ही राष्ट्रीय स्वतन्त्रता के आन्दोलन में महत्त्वपूर्ण भाग लेती रही है। उसने राष्ट्रीय प्रवृत्तियों को जन-मन-धन सभी से पूरा प्रोत्साहन दिया है और स्वयं भी सक्रिय भाग लिया है। अकेले इसी प्रान्त से इस अत्यन्त महत्त्वपूर्ण अल्पसंख्यक समाज के 500 से अधिक जैन सन् 42 के आन्दोलन में जेल गये और जो जेल नहीं गये, उन्होंने भी इस आन्दोलन को बाहर रह कर ही पूरा सहयोग दिया। इस सहयोग के फलस्वरूप कितनों को सरकार की नजरों में चढ़ना पड़ा और आर्थिक हानि सहनी पड़ी, यह आँकड़ों में बताना असम्भव है। इस आन्दोलन की तरह पिछले आन्दोलनों में भी जैनों का शानदार भाग रहा है। कांग्रेस के अधिकारी अच्छी तरह जानते हैं कि त्रिपुरी कांग्रेस में सेवा और धन दोनों ही रूप से जैनों का सबसे अधिक भाग रहा। इस प्रान्त में एक विशेषता यह भी रही है कि जैन केवल पिछली पंक्ति में ही नहीं रहे, बल्कि उन्होंने प्रान्त की राजनीति पर अपना पर्याप्त प्रभाव डाला है। अनेकों मंडल, शहर, जिला कांग्रेस कमेटियों के पदाधिकारी जैन हैं। सेठ पूनमचन्दजी रांका तो वर्षों से प्रान्तीय कांग्रेस कमेटी के सभापति एवं प्रान्तपति हैं। वीर युवक उदयचन्द और साबूलाल के बलिदानों से तो इस प्रान्त
124 :: जैनधर्म परिचय
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