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नाम आता है, किन्तु प्राच्य श्रमण भारती (मुजफ्फरनगर उ.प्र.) से प्रकाशित पुस्तक भारत संविधान विषयक जैन अवधारणाएँ , लेखक-श्री कपूरचन्द जैन के अध्ययन से तीन और सदस्यों का नाम प्रकाशित होते हैं, वे हैं श्री रतनलाल मालवीय, श्री बलवन्तसिंह मेहता एवं श्री भवानी अर्जुन खीमजी। ___ पाँच जैन धर्मानुयायी सभासदों में एक श्री रतनलाल मालवीय, सागर (म. प्र.) के मूल निवासी थे। भारत के स्वतन्त्रता संग्राम में उन्होंने बढ़-चढ़ कर भाग लिया। देश की बहु-आयामी सेवाओं में निरन्तर लीन श्री मालवीय छत्तीसगढ़ एवं वरार राज्य के प्रतिनिधि के रूप में संविधान-सभा में सदस्य बनाये गए।लोकसभा वेबसाइट पर संविधान-निर्मात्रीसभा की डिवेट्स के अन्तर्गत वाल्यूम ग्यारह से आपकी भागीदारी का सम्पूर्ण लेखा-जोखा प्राप्त होता है। इन्होंने छत्तीसगढ़ प्रदेश के अन्य राज्यों के साथ 1947 में भारत में विलय होने की चर्चा के साथ सभाध्यक्ष के समक्ष धारा 371 की पुरजोर वकालत की। इस धारा के तहत प्रगति एवं विकास से परे पिछड़े राज्यों को केन्द्र सरकार द्वारा आगामी दस वर्षों तक सहयोग एवं सम्बल दिये जाने का प्रावधान था। इसके अतिरिक्त उन्होंने यह भी प्रस्ताव रखा कि केन्द्र सरकार विलय हुए राज्यों पर निगरानी अवश्य रखे। यदि किसी कारणवश धारा 371 का पालन ना किया जा सके, तो राष्ट्रपति स्वयं भारत में विलीन हुए राज्यों के क्रिया-कलापों पर दृष्टि रखे। उन्होंने छत्तीसगढ़ में उस समय की जनसंख्या के पचास प्रतिशत आदिवासियों के बारे में भी जानकारी दी एवं इनके कल्याण हेतु राष्ट्रपति की जिम्मेदारी बनती है, इस तथ्य को प्रकाशित किया।
श्री मालवीय ने पिछड़े हुए राज्यों की प्रगति के लिए केन्द्रीय मन्त्रिमण्डल में इन राज्यों के उचित प्रतिनिधित्व की पुरजोर वकालत की एवं छत्तीसगढ़ प्रदेश के लिए केन्द्र में एक मन्त्री अवश्य हो, यह माँग उठाई।
तत्कालीन विन्ध्य प्रदेश के बारे में उन्होंने अत्यन्त महत्त्वपूर्ण पक्ष प्रस्तुत किया कि क्षेत्रफल एवं जनसंख्या दोनों की दृष्टि से विन्ध्य प्रदेश इतना छोटा है कि अकेले राज्य के रूप में प्रगति नहीं कर सकता, अतः उसका विलय होना आवश्यक है। साथ ही, उन्होंने यह भी कहा कि विन्ध्य प्रदेश का विलय दो राज्यों में न करके एवं ऐसे अन्य जितने छोटेछोटे राज्य हैं, उन-सब का विलय उत्तर प्रदेश में किया जाना चाहिए तथा अन्य राज्यों को छत्तीसगढ़ में मिला देना चाहिए।
मेरठ (उ. प्र.) में जनमे तथा सहारनपुर (उ. प्र.) में वकालत से जुड़े रहे श्री अजित प्रसाद जैन ने संविधान निर्माण में महती भूमिका निभायी। प्रतीत होता है कि उनके समान विविध विषयों को अत्यन्त कुशलता एवं बेवाकी से शायद ही किसी अन्य सदस्य ने प्रकाशित किया होगा। तत्कालीन यूनाइटेड प्रोविंसेस (United Provinces) वर्तमान में उत्तरप्रदेश एवं उत्तराखण्ड राज्य के प्रतिनिधि के रूप में सन् 1946 से अपनी सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित की। वाल्यूम 1 से वाल्यूम 11 (ग्यारह) तक अनेक मुद्दों पर उनका
140 :: जैनधर्म परिचय
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