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8. मामा। ____8. रिवाज– रिवाज कई प्रकार के होते हैं। साधारण व विशेष अर्थात् जातीय कौटुम्बिक और स्थानीय किन्तु जैन कानून के अनुसार रिवाज प्राचीन, निश्चित, व्यावहारिक और उचित होने चाहिए, सदाचार के प्रतिकूल सरकारी कानून के विरोध और सामाजिक नीति के विरोधी रिवाज उचित नहीं माने गये हैं।
9. उपसंहार- यह प्रश्न उठ सकता है कि पृथक से जैन कानून बनाने की क्या आवश्यकता है?... अभी हाल में ही सिक्ख विवाह कानून देखने में आया था और हमें हमारे शास्त्रों में जो रीति-नीति दी गयी है, उसके अनुसार अपने कानून का निर्माण करना चाहिए। स्व. बैरिस्टर चम्पतराय जैन ने वर्ष 1925 में ब्रिटिश हुकूमत की इच्छा को देखते हुये शास्त्रों का अध्ययन किया और उसके आधार पर जैन कानून की रचना की। हमारे शास्त्रों में जो कानून दिये गये हैं, उनमें कुछ ऐसे विशेष प्रसंग हैं, जो अन्य कानूनों में नहीं मिलते हैं, जैसे महिला को स्वयं परिपूर्ण उत्तराधिकार प्राप्त करना, इसके अतिरिक्त यदि पुत्र-धर्म, विरोधी आचरण करता हो या दुराचरण करता हों तो उसे परिवार से निकालकर उसका पुत्रत्व समाप्त कर अयोग्य घोषित कर देने का प्रावधान है। इसी प्रकार यदि दत्तक पुत्र भी दुराचरण का दोषी पाया जाये तो उसे भी निकाला जा सकता है। बैरिस्टर श्री चम्पतराय जी ने 1925 में यह आकांक्षा व्यक्त की थी कि जैन लोगों में जो कानून के ज्ञाता हैं, अंग्रेजी भाषा के ज्ञाता हों, एक समिति बनाकर योग्य विद्वानों और पंडितों के बीच में उन शास्त्रों का मन्थन करना चाहिए, जिनमें यह नीति दी गयी है और फिर उसके आधार पर अपना एक पूर्व जैन कानून जिसमें विभिन्न धाराएँ, उप-धाराएँ इन सभी विषयों से सम्बन्धित हैं, समाविष्ट करते हुए तैयार करना चाहिए; किन्तु 90 वर्ष व्यतीत हो जाने के उपरान्त भी अब तक इस दिशा में कोई ठोस कार्य नहीं हो सका है। आवश्यकता इस बात की है कि कोई राष्ट्रीय संस्था इस मामले में पहल करे, ताकि यह कार्य सफल हो सके।
कानून :: 151
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