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नहीं होता। पुद्गलों के वर्गीकरण का एक अन्य प्रकार वर्गणा' कहा जाता है। सजातीय पुद्गल परमाणुओं के समूह को वर्गणा कहा गया है। जैनदर्शन में 23 प्रकार की 'वर्गणा' बताई गयी हैं, किन्तु उनके प्रमुखतः व्यवहृत होने वाले प्रकार आठ निम्न हैं1. औदारिक-शरीर-वर्गणा- स्थूल औदारिक शरीर के रूप में परिणत होने
वाले पुद्गल समूह को 'औदारिक-शरीर-वर्गणा' कहा गया है। 2. वैक्रियक-शरीर-वर्गणा- वैक्रियक शरीर के रूप में परिणत होने वाले
पुद्गल समूह को वैक्रियक-शरीर-वर्गणा कहा गया है। 3. आहारक-शरीर-वर्गणा- आहारक शरीर के रूप में परिणत होने वाले
पुद्गल समूह को 'आहारक-शरीर-वर्गणा' कहा गया है। 4. श्वासोच्छ्वास-वर्गणा- श्वास और निःश्वास के रूप में परिणत होने वाले
पुद्गलों को 'श्वासोच्छ्वास-वर्गणा' कहा गया है।
इन चारों को सामान्यतः 'आहार-वर्गणा' के अन्तर्गत बताया जाता है। 5. तैजस-वर्गणा- तैजस् शरीर के रूप में परिणत होने वाले पुद्गलों को तैजस्
शरीर-वर्गणा' कहा गया है। 6. भाषा-वर्गणा- भाषा के रूप में परिणत होने वाले पुद्गलों को भाषा-वर्गणा
कहा गया है। 7. मनोवर्गणा- द्रव्यमन के रूप में परिणत होने वाले पुद्गलों को मनोवर्गणा
कहा गया है। 8. कार्माण वर्गणा- कर्म शरीर के रूप में परिणत होने वाले पुद्गलों को
कार्माण- वर्गणा कहा गया है। 3.एवं 4. धर्म और अधर्म द्रव्य- इनके कोई भेद नहीं है। ये दोनों द्रव्य लोकाकाश में व्याप्त एक और अखण्ड हैं।
5. आकाश द्रव्य- तात्त्विक रूप से इसका भी कोई भेद नहीं है। जीवादि अन्य पाँच द्रव्यों का अवस्थान जितने आकाश क्षेत्र में होता है, उसे 'लोकाकाश' और अवशिष्ट शुद्ध आकाश द्रव्य को अलोकाकाश कहने रूप यह भेद उपचार-कथन है।
6. काल द्रव्य- काल द्रव्य के भी वस्तु-गत रूप में कोई भेद नहीं है; किन्तु जो 'वर्तना-लक्षण' है। उसे निश्चय काल द्रव्य तथा जो 'परिणाम-आदि लक्षण' वाला है उसे व्यवहार-काल-द्रव्य,- ऐसा भेद-कथन काल-द्रव्य के विषय में पाया जाता है। व्यवहार काल-द्रव्य समय, सेकेण्ड, मिनट, घण्टा, दिन, सप्ताह, वर्ष, युग आदि रूप माना गया है। समय व्यवहार-काल की सूक्ष्मतम इकाई है। जैनदर्शनानुसार एक पुद्गल परमाणु के आकाश के एक प्रदेश से दूसरे प्रदेश तक जाने में जो काल लगता है, उसे समय कहा गया है। भूतकाल, वर्तमान, भविष्यकाल-जैसे भेद भी व्यवहारकाल में ही परिगणित होते हैं।
तत्त्व-मीमांसा :: 159
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