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संविधान पर जैन धर्मावलम्बियों का प्रभाव
डॉ. (श्रीमती) प्रभाकिरण जैन
22 नवम्बर, सन् 1949 दिन मंगलवार-संविधान निर्मात्री सभा के सदस्यों में से एक श्री अजित प्रसाद जैन ने सभाध्यक्ष डॉ. भीमराव अम्बेडकर को सम्बोधित करते हुए कहा कि जीवन में यह केवल एक बार होता है, जब कोई देश स्वयं का सविधान बनाता है। हम सभी जिन्होंने संविधान का प्रारूप तैयार करने में हिस्सा लिया है, स्वयं को इस सर्वाधिक अहम् कारण से गौरवान्वित अनुभव करते हैं। भारत के इतिहास में महान् साम्राज्यों एवं महान् सम्राटों का समय बारम्बार आया, किन्तु जनता द्वारा जनता के लिए संविधान कभी नहीं बना। श्री जैन का यह वक्तव्य संविधान निर्माण में लगभग तीन सौ सदस्यों से निर्मित संविधान निर्मात्री सभा की अहम्- भूमिका एवं सक्रिय-भागीदारी को सुनिश्चित करता
है।
____ भारतीयों द्वारा भारत का संविधान बनाये जाने की माँग सर्वप्रथम राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने सन् 1922 में की थी। अनेक परिवर्तनों एवं कोशिशों के पश्चात् अन्ततः 9 सितम्बर, सन् 1946 को संविधान-निर्मात्री-सभा की रचना हुई। डॉ. राजेन्द्र प्रसाद इसके अध्यक्ष चुने गए तथा डॉ. भीमराव अम्बेडकर प्रारूप-समिति के अध्यक्ष चुने गए। यह सभा 3 वर्ष तक कार्यरत रही। इसके सदस्यों में राजनैतिक दलों के नेता, उद्योगपति, शिक्षाविद्, कानूनविद्, लेखक, पत्रकार एवं देशी राज्यों तथा प्रदेशों के प्रतिनिधि शामिल थे।
जैन धर्मावलम्बी सदैव से सम्मानित पदों को विविध सम्मानित क्षेत्रों में सुशोभित करते रहे हैं, इसीलिए यह ज्ञात होने पर कि संविधान निर्माण में भी जैन-धर्मावलम्बियों ने निर्मात्री-सभा के सदस्य रूप में भरपूर योगदान दिया है, किंचित् भी आश्चर्य नहीं, हाँ, एक कमी अवश्य खलती रही कि संविधान निर्माण में वास्तव में कितने जैन मतावलम्बी रहे, यह संख्या सुनिश्चित नहीं हो सकी; क्योंकि अपने नाम के आगे "जैन" लिखना शायद सदैव से परम्परा में नहीं रहा है। यही कारण है कि राजनैतिक, सामाजिक, आर्थिक एवं अन्य क्षेत्रों में कब, कितने जैन मतावलम्बियों ने योगदान दिया है, इसका वास्तविक आकलन कभी नहीं हो सका है। लोकसभा की वेबसाइट पर संविधान-निर्मात्री-सभा के सदस्यों में जैन' शब्द के आधार पर श्री अजित प्रसाद जैन एवं श्री कुसुमकान्त जैन का
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