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___ 'दिगम्बर जैन' (मासिक) भी राष्ट्रीय समाचारों को विस्तार से छापता था। अनेक बार इस पत्र ने स्वाधीनता से सम्बन्धित विज्ञापन तक छापे थे। पत्र के श्रावण, वि.सं. 1978 (1921 ई.) में समाचार छपा कि पिठोरिया (सागर) में हरिश्चन्द्र जैन को स्वराज्य कार्य में योग देने के लिए छह माह की सजा हुई है। इसी तरह पौष, वि. सं. 1988 (1931 ई.) के अंक में 'जेल जा चुके हैं' शीर्षक से समाचार छपा है कि-'सरकारी वर्तमान आर्डीनंस के कारण अनेक जैन भाई भी जेल जा चुके हैं, उसमें से कुछ नाम यह हैं-छोटालाल घेला भाई गाँधी, अंकलेश्वर, शान्तिलाल हरजीवनदास सोलीसिटर आमोद...।' पत्र के वीर सं. 2444 (1917 ई.) के अंक 1-2,6,8-9 तथा 2445 (1918 ई.) अंक 1, 3, 13 तथा 2446 (1919 ई.) अंक 1 में अर्जुन लाल सेठी की निरपराध गिरफ्तारी और उन्हें छोड़े जाने की माँग के समाचार विस्तार से छपे हैं। 1918 ई0 के अंक 1 में महात्मा भगवानदीन की गिरफ्तारी का समाचार छपा है। वीर सं. 2450 (1923 ई.) के अंक 1-2 में श्री हजारी लाल जैन, सागर की प्रथम पृष्ठ पर प्रकाशित लम्बी कविता का अन्तिम छन्द पठनीय है।
'त्यागो स्वदेश सुख हेतु सभी विदेशी। धारो निजात्म बल हेतु अभी स्वदेशी।। देगी स्वराज्य हमको नियमेन खादी।
सम्पूर्ण मात्र जग के...आदी।।७।।' ___ इसी अंक के पृष्ठ 56 पर प्रकाशित छैकोडी लाल जैन, गोटीटोरिया की 'विदेशी वस्त्रों की विदा' कविता भी देशप्रेम से ओत-प्रोत है। कविता की प्रथम दो पंक्तियाँ हैं
'टलो यहाँ से विदेशी वस्त्रो, न अब तुम्हारी है चाह हमको।
तुम्हीं से भारत हुआ है गारत, किया है तुमने तबाह हमको।।' जैन समाज की विशिष्ट महिला पत्रिका 'जैन महिलादर्श' (सम्प्रति, लखनऊ से प्रकाशित) 1924 से निरन्तर प्रकाशित होती आ रही है। अगस्त, 1946 के अंक का विषय था 'स्त्रियाँ राजनैतिक क्रान्ति में भाग लें या नहीं?' इस विषय पर अनेक महिलाओं के लेख इस पत्रिका में छपे थे। और भी अनेक अंकों में सामग्री छापी गयी।
इस प्रकार हम देखते हैं कि भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के सभी आन्दोलनों, 1857 का प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम, 1930-32 का सविनय अवज्ञा आन्दोलन, 1942 का भारत छोड़ो आन्दोलन में सभी प्रदेशों के जैन समाज के लोगों ने भाग लिया। अपनी धर्मनिष्ठा और ईमानदारी से उन्होंने अपना अलग ही स्थान बनाया है। मध्यभारत के मुख्यमन्त्री
स्वतन्त्रता आन्दोलन में जैनों का योगदान :: 137
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