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कासलीवाल जी के सन्दर्भ में 'जैन सन्देश' राष्ट्रीय अंक (जनवरी, 1947) लिखता है - ' आप डॉक्टरी की सर्वोच्च डिग्री पास करने के बाद सरकार द्वारा फौज को डॉक्टरी सहायता देने के लिए विशेष पद पर भेजे गये थे । किन्तु स्वतन्त्रता का दीवाना कब तक इस प्रकार गुलाम फौजों की चिकित्सा करता रह सकता था। आजाद हिन्द फौज के निर्माण होते ही आप सरकारी नौकरी छोड़कर उसमें जा मिले और नेता जी सुभाषचन्द बोस के साथ उनके एक विश्वस्त सहयोगी के रूप में भारत की मुक्ति के लिए अनवरत प्रयत्न करते रहे। आप आजाद हिन्द फौज सरकार के मन्त्रिमंडल के एक सदस्य, डायरेक्टर ऑफ मेडीकल्स तथा नेताजी के पर्सनल डॉक्टर की हैसियत से सम्मानपूर्ण और दायित्वपूर्ण पदों पर रहे।' दिल्ली के लाल किले में अन्यों के साथ इन पर भी मुकदमा चला था।
आजादी के बाद कासलीवाल जी आगरा मेडीकल कॉलेज के प्राचार्य, जयपुर मेडीकल कॉलेज के संस्थापक प्राचार्य, अन्तर्राष्ट्रीय चिकित्सा विज्ञान अकादमी के अध्यक्ष, अ. भा. कांग्रेस कमेटी के सदस्य आदि अनेक पदों पर रहे। चिकित्सा शास्त्र से सम्बन्धित अनेक पुस्तकें तथा अनेक लेख देश - विदेश की पत्रिकाओं में आपके प्रकाशित हुए हैं। अनेक देशों की यात्रा भी इन्होंने की थी । प्रसिद्ध तीर्थ श्री महावीर जी के ये वर्षों तक अध्यक्ष / मन्त्री रहे ।
विदेशों में रहने वाले अनेक प्रवासी भारतीय जो आजाद हिन्द फौज में शामिल नहीं हो सके थे, उन्होंने धनादि देकर आजाद हिन्द फौज की सहायता की थी। ऐसे व्यक्तियों में बर्मा में व्यापार के लिए गये एक प्रख्यात जैन उद्योगपति श्री चतुर्भुज सुन्दर जी दोशी के युवा छोटे भाई श्री मणिलाल दोशी का नाम अग्रगण्य है । मणिलाल जी नेता के चरणों में अपना सर्वस्व समर्पण कर आजाद हिन्द फौज में शामिल हो गये । वे फौज में एक दायित्वपूर्ण विभाग के मन्त्री रहे। जब बर्मा जापान के अधिकार से निकलकर पुनः अँग्रेजों के अधिकार में आया तो बर्मा सरकार ने इन्हें गिरफ्तार करके रंगून जेल में डाल दिया। आजाद हिन्द फौज के तमाम कैदी रिहा हो जाने के बाद भी बर्मा की अडियल सरकार ने दोशी जी को रिहा नहीं किया, फलतः श्री शरच्चन्द्र बोस के नेतृत्व में एक जोरदार आन्दोलन हुआ और भारत से उनकी पैरवी करने के लिए प्रसिद्ध वकील श्री के. एम. मुंशी और मि. के. एफ. नरीमन गये । अन्त में बर्मा सरकार ने दोशी जी को रिहा किया।
9 जुलाई, 1943 को नेताजी ने एक विशाल जनसभा में महिलाओं को भी आजादी की लड़ाई में भाग लेने के लिए आमन्त्रित किया, फलतः 'रानी झाँसी रेजीमेंट' की स्थापना हुई। अक्टूबर, 1943 में सिंगापुर में महिला कैम्प लगा, फिर मलाया व बर्मा के अन्य भागों में भी कैम्प लगे। इनमें महिलाओं को चिकित्सा, नर्सिंग, ड्रिल, नक्शे
स्वतन्त्रता आन्दोलन में जैनों का योगदान :: 129
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