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करने की अपेक्षा युद्ध क्षेत्र में जाकर लड़ने को अधिक आतुर रहती थीं। वे सब प्रसन्न थीं, इस आशा को लेकर कि उनके द्वारा भारत स्वतन्त्र होगा।" आजाद हिन्द फौज को अपनी एक चादर देने वाले क्षु. गणेशप्रसाद 'वर्णी'
जैन जगत के गाँधी नाम से विख्यात तथा अनेक विद्यालयों की स्थापना करने वाले क्ष. गणेशप्रसाद 'वर्णी' ने अपनी एक चादर आजाद हिन्द फौज को दान दे दी थी। आजाद हिन्द फौज के जाँबाज सैनिकों को बन्दी बनाया जा चुका था। उन पर लाल किले में राजद्रोह का मुकदमा चल रहा था। देश भर में असाधारण उत्तेजना, गुस्से और जोश की एक लहर दौड़ गयी थी, परिणामस्वरूप अनेक स्थानों पर विद्रोह हुए। मुकदमे के लिए काफी धन की आवश्यकता थी, अत: जगह-जगह धन एकत्रित करने के लिए सभाएं हो रही थीं।
मध्य प्रदेश (तत्कालीन विन्ध्य प्रदेश) की संस्कारधानी जबलपुर में प्रसिद्ध साहित्यकार एवं राजनीतिज्ञ पं. द्वारका प्रसाद मिश्र की अध्यक्षता में 'आजाद हिन्द फौज' की सहायतार्थ एक सभा का आयोजन किया गया। इसी सभा में चादरधारी एक साधक भी बैठा था। सभी अपना क्रम आने पर बोलते जा रहे थे और कुछ राशि देते जा रहे थे। अन्त में इस साधक की भी बारी आयी। मात्र दो चादर परिग्रह रखने वाला देता भी तो क्या? पर देश की आजादी की उत्कट लालसा उसे लगी थी, साधक ने अपना भाषण पूर्ण किया और कहा-मेरे पास देने को कुछ द्रव्य तो है नहीं, केवल दो चादरें हैं, इनमें से एक चादर मुकदमे की पैरवी के लिए देता हूँ और मन से परमात्मा का स्मरण करते हुए विश्वास करता हूँ कि सैनिक अवश्य ही कारागार से मुक्त होंगे। इस सन्दर्भ में जैन सन्देश लिखता है कि-घटना नवम्बर सन् 45 की है। कड़ाके की ठंड पड़ रही थी। इस कड़ी ठंड में एक आम जैन सभा जबलपुर नगर में हो रही थी। सभापति थे मध्य प्रान्तीय सरकार के गृहसदस्य पं. द्वारकाप्रसाद मिश्र। विशाल जन समूह उपस्थित था। इस सभा में कई विद्वानों के भाषणों के पश्चात् एक प्रस्ताव आजाद हिन्द फौजियों की रक्षार्थ आया। इस प्रस्ताव को सुनते ही, संसार से विरागी
और परिग्रह त्यागी वर्णी जी का हृदय द्रवीभूत हो गया। उन्होंने उठकर लोगों से आजाद हिन्द फौजियों' की रक्षा के लिए सहायता देने का अनुरोध करते हुए कहा, "भईया! मेरे पास सिर्फ दो चादर हैं। उनमें से मैं एक चादर देता हूँ। यह जितने में बिके सो बेच लो। मैं तो उन आजाद हिन्द फौजियों की रक्षा के लिए अपना हृदय और यह चादर, दोनों अर्पण करता हूँ।" ।
वर्णी जी के त्याग और आजाद हिन्द फौजियों के प्रति सहानुभूति की प्रतीक इस चादर ने प्रत्येक व्यक्ति के ऊपर, जो उस सभा में उपस्थित था, एक अनोखा प्रभाव
स्वतन्त्रता आन्दोलन में जैनों का योगदान :: 131
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