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बनारस में मात्र एक रुपये के दान से उन्होंने 1905 में स्याद्वाद महाविद्यालय की स्थापना की, जिसके वे संस्थापक और प्रथम विद्यार्थी थे।
इस प्रकार हम देखते हैं कि आजाद हिन्द फौज में भी जैन समाज के लोगों ने महनीय योगदान दिया था, यहाँ तक कि महिलाएँ भी अग्रणी रही थीं। क्षु. गणेश प्रसाद 'वर्णी' जैसे सन्तों ने भी इस कार्य में योगदान दिया था। यह अत्यन्त गौरव का विषय है।
भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम में जैन पत्रकारिता का योगदान
आधुनिक युग में पत्रकारिता का विशिष्ट महत्त्व है। पत्रकारिता के तेजी से होते विकास के कारण आज विश्व एक परिवार सा लगता है। भारत में पत्रकारिता की
औपचारिक शुरूआत हुए लगभग दो शताब्दियाँ हो गयी हैं। पत्रकारिता की इस विकासयात्रा में धार्मिक तथा सामाजिक पत्रकारिता की विशेष भूमिका रही है। इस पत्रकारिता का लक्ष्य मुख्य रूप से अपने धर्म व दर्शन का सार्वजनिक प्रचार-प्रसार करते हुए सांस्कृतिक चेतना जागृत करना रहा है। धार्मिक, सामाजिक पत्रकारिता ने व्यावसायिक प्रतिस्पर्धा से दूर रहते हुए सदा सामाजिक, राजनैतिक, धार्मिक, साहित्यिक तथा सांस्कृतिक चेतना के विकास के साथ-साथ जन-कल्याण और विश्व-बन्धुत्व की भावना का प्रचारप्रसार किया है। इस क्षेत्र में जैन पत्रकारिता की अपनी विशिष्ट पहचान और भूमिका
है।
कोई भी संस्कृति/धर्म/दर्शन राजनैतिक पराधीनता की अवस्था में फल-फूल नहीं सकता, इसीलिए जैन समाज ने कन्धे से कन्धा मिलाकर स्वतन्त्रता आन्दोलन में भाग लिया और देश की आजादी का मार्ग प्रशस्त किया। जैन पत्र-पत्रिकाएँ भी इस दिशा में पीछे नहीं रहीं। परतन्त्रता के जमाने में भी जैन पत्र-पत्रिकाएँ निर्भय होकर स्वतन्त्रता का समर्थन करती रहीं। विश्वशान्ति, स्वतन्त्रता और राष्ट्रीय भावना के जागरण में जैन पत्रिकाएँ सदैव अपना दायित्व निभाती रहीं। स्वदेशी की भावना को प्रचारित करने के लिए तो उसने विज्ञापन तक प्रकाशित किये। - जैन पत्र-पत्रिकाएँ पूर्व से पश्चिम और उत्तर से दक्षिण, सर्वत्र प्रकाशित होती रहीं
और लगभग 8-10 भाषाओं में इनका प्रकाशन होता आ रहा है। मणिपुर में हिन्दी पत्रकारिता का श्रीगणेश द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान युद्ध की खबरों के लिए एक जैन पुजारी ने किया था। हिन्दी के प्रथम वैयाकरण और जीवट पत्रकार आचार्य किशोरी दास वाजपेयी का स्वातन्त्र्य समर में भाग लेने के कारण जो गोपनीय सम्मान हुआ था वह एक जैन, श्री उग्रसेन जैन के घर पर हुआ था।
स्वतन्त्रता आन्दोलन में जैनों का योगदान :: 133
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