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थिरुप्परुथिकुण्डम हैं।
करन्दै ___ इस क्षेत्र की प्रसिद्धि 'मुनिगिरि' या 'अकलंकदेव बस्ती' के नाम से भी है। अकलंकदेव स्वामी का समाधिस्थल भी यहीं पर है। कहा जाता है कि अकलंकदेव के साथ शास्त्रार्थ में बौद्धों की पराजय यहीं पर हुई थी। यहाँ एक परकोटे के भीतर छहः मन्दिर हैं। इस क्षेत्र पर अठारह शिलालेख भी मिलते हैं। एक जैन तीर्थ है पोन्नूर तिरुमलई। यह आचार्य कुन्दकुन्द की तपोस्थली 'नीलगिरि' के नाम से जानी जाती है। कुन्दकुन्द स्वामी के चरणचिह्न भी बने हुए हैं। पास ही एक सुन्दर गुफा है। आरपक्कम में तीर्थंकर आदिनाथ का हजार वर्ष पुराना मन्दिर है, जो तमिलनाडु के कुलदेवता के रूप में जाना जाता है। दीप-मालिका, धातु की बड़ी-बड़ी प्रतिमाएँ, अष्टप्रातिहार्य और पंचमेरु दर्शनीय हैं। यहीं पास में एक स्थान है वेन्कुड्रम। यहाँ काले और सफेद पाषाण की लगभग दो हजार वर्ष पुरानी मूर्तियाँ हैं। वेलुक्कम में आदिनाथ का एक विशाल मन्दिर है। यहाँ पर स्थित स्वर्णरथ के कारण इस क्षेत्र की प्रसिद्धि है। इस अद्भुत रथ के निर्माण में चार सौ किलो ताँबा और डेढ़ किलो सोना लगा है।
तमिलनाडु का सबसे अधिक ख्यात तीर्थस्थल है, तो वह है मेलसित्तामूर। यह जैन काँचीमठ के नाम से भी जाना जाता है। परकोटे के भीतर 68 खम्बों वाला एक विशाल मन्दिर है। जिसमें सभी तीर्थंकरों के अतिरिक्त यक्ष-यक्षिणी तथा अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियाँ उत्र्कीण हैं। चूने की एक सफेद रंग की मूर्ति विशेष दर्शनीय है।
एक क्षेत्र अरहंतगिरि नवीन तीर्थ के रूप में विकसित हो रहा है। पार्श्वनाथ मन्दिर के अलावा यहाँ पंचदेवियों- ज्वालामालिनी, कुष्मांडिनी, पद्मावती, वराहदेवी और चक्रेश्वरी का मन्दिर अपनी विशेषता लिये हुए है।
तीर्थ क्षेत्रों पर जीर्णोद्धार, नव-निर्माण, विकास और विस्तार दिन-प्रतिदिन हो रहे हैं। जैन समाज इस कार्य में तन-मन-धन से सहयोग कर रही है। दरअसल इस पुनीत कार्य में प्रेरणास्रोत हैं हमारे मुनिराज। वे विहार करते हुए जिस क्षेत्र पर पहुँचते हैं वहाँ बहुत कुछ नव-निर्माण हो जाता है। नये-नये भव्य मन्दिर, विशाल धर्मशालाएँ, सभा-भवन जगह-जगह बन चुके हैं, बनते जा रहे हैं। बीसवीं शती में ये निर्माण बहुत बड़ी मात्रा में बहुत तेजी से हुए हैं।
जैनतीर्थ :: 115
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