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जैन शहीदों ने अपना बलिदान देकर आजादी के मार्ग को प्रशस्त किया तो अनेकों ने जेल की दारुण यातनाएँ सहीं। अनेक माताओं की गोदें सूनी हो गयीं तो अनेक बहिनों के माथे का सिन्दूर पुंछ गया। ऐसे लोगों का भी बहत योगदान रहा जिन्होंने बाहर से आन्दोलन को सशक्त बनाया, जेल गये व्यक्तियों के परिवारों के भरण-पोषण की व्यवस्था की।
भारत के संविधान निर्माण और आजाद हिन्द फौज में भी जैनों ने महती भूमिका निभायी थी। जैन पत्र-पत्रिकाओं ने भी इस आन्दोलन में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया था। कुछ पत्रों ने अपने आजादी सम्बन्धी विशेषांक निकाले तो कुछ ने स्वदेशी भावना सम्बन्धी विज्ञापन भी प्रकाशित किये थे। अनेक पत्रों में प्रकाशित लेखों के कारण उनकी जमानतें जब्त हो गयी थीं। स्वदेशी का प्रचार करने के लिए जैन बन्धुओं ने अपने मन्दिरों में स्वदेशी, हाथ से कती धोती/साड़ी पहनकर ही पूजा-अर्चना करने का प्रचार किया था और मन्दिरों में धोती/साड़ी की व्यवस्था भी की थी।
स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद स्वतन्त्रता आन्दोलन तथा शहीदों/सेनानियों पर बहुत कुछ लिखा गया। स्वतन्त्रता संग्राम में विभिन्न जातियों के योगदान पर पृथक्-पृथक् पुस्तकें भी लिखी गयीं, परन्तु सम्पूर्ण भारतवर्ष के जैन समाज के योगदान पर कोई पुस्तक नहीं लिखी गयी। जैन समाज में इतिहास-लेखन के प्रति उदासीनता ही रही है। जैन आचार्यों, सम्राटों, सेनानायकों, कोषाध्यक्षों, मन्त्रियों, साहित्यकारों और कवियों तक का प्रामाणिक इतिहास हमारे पास नहीं है।
जैन समाज के इतने वृहद् योगदान को एक लेख में समाहित करना सागर को गागर में भरने जैसा है। फिर भी जैसा सम्भव है प्रयास कर रहे हैं। इस आलेख में प्रदेशबार कुछ महत्त्वपूर्ण सेनानियों के योगदान की चर्चा कर सकेंगे। ___ महात्मा गाँधी जब विलायत जाने लगे और उनकी माता ने मांसाहार, मदिरापान आदि के भय से भेजने से इनकार कर दिया तब एक जैन साधु वेचरजी स्वामी ने गाँधी जी को मदिरापान आदि न करने की प्रतिज्ञा दिलायी थी। इसी प्रकार गाँधी जी के जीवन पर गहरा प्रभाव डालने वाले जो तीन पुरुष थे, उनमें रायचन्द भाई प्रमुख थे। धार्मिक, शंकाओं का समाधान गाँधी जी रायचन्द्र भाई से ही प्राप्त करते थे।
स्वतन्त्रता संग्राम में शहादत प्राप्त करने वाले प्रमुख जैन
भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम में 1857 का समर निर्णायक था। इस समर में विदेशी सत्ता को उखाड़ फेंकने व विदेशी शासकों को देश से खदेड़ने के लिए छावनियाँ नष्ट की गयीं। जेलखाने तोड़े गये, सैकड़ों छोटे-बड़े खूनी संघर्ष हुए, भयंकर रक्तपात हुआ, अनगिनत सैनिकों का संहार हुआ, अनेक. माताओं की गोदें सूनी हो गयीं, अबलाओं
स्वतन्त्रता आन्दोलन में जैनों का योगदान :: 117
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