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दमोह (म.प्र.) के चौधरी भैयालाल, उज्जैन (म.प्र.) के चौथमल भंडारी, महाराष्ट्र के भूपाल पंडित, भारमल तथा हरिश्चन्द्र दगडोबा जैन शहीद हो गये थे। 1930 में सिलोंड़ी (जबलपुर) म.प्र. के कंधीलाल मटरूलाल जैन जंगल सत्याग्रह में शहीद हो गये थे। इन शहीदों के प्रति जैन समाज ही नहीं पूरा राष्ट्र नतमस्तक है। स्वतन्त्रता संग्राम में जेल यात्रा करने वाली प्रमुख जैन महिलाएँ
स्त्री और पुरुष सृष्टि रूपी रथ के दो पहिये हैं। एक के बिना दूसरा अधूरा है। विश्व के अधिकांश देशों में पुरुष प्रधान समाज रहा है। इसके अनेक कारणों में एक कारण प्राकृतिक भी है। नारी स्वभाव से कोमल और भावना प्रधान रही है, फिर भी समय आने पर वह राष्ट्र, परिवार, समाज के लिए अपना सब कुछ अर्पण करने में पीछे नहीं रही है। ___ भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम में नारियों ने भी अपना जौहर दिखाया और अपने बलिदानों से इस देश की आजादी का मार्ग प्रशस्त किया। भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम का सुगठित आरम्भ 1857 की क्रान्ति से माना जाता है। इस आन्दोलन का नेतृत्व एक महिला रानी लक्ष्मीबाई ने किया था। अंग्रेजों के विरुद्ध उनकी लड़ाई इतनी सशक्त थी कि सम्भवतः पहली बार अंग्रेज चौंक गये थे। रानी लक्ष्मीबाई की गाथा जनजन में व्याप्त है। बच्चे-बच्चे यह गाते मिल जायेंगे-'खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।' ___ बेगम हजरत महल, बेगम जीनत महल, अवन्तिका बाई लोधी, एनी बेसेंट, कस्तूरबा गाँधी, सरला देवी साराभाई, मृदुलाबेन साराभाई, सुभद्रा कुमारी चौहान, राजकुमारी अमृत कौर, कमला देवी चट्टोपाध्याय, भगिनी निवेदिता, शोभा रानी डे, मातंगिनी हाजरा, अरुणा आसफ अली, सुचेता कृपलानी, लक्ष्मी स्वामीनाथन आदि वे महिलाएँ हैं, जिन्होंने संघर्ष का बिगुल बजाया, अनेक कष्ट सहे पर झुकी नहीं, ऐसी ही महिलाओं के योगदान से आज हम स्वतन्त्रता के वातावरण में साँस ले रहे हैं। इन्हीं महिलाओं के बलिदान और संघर्षों पर हमारी स्वतन्त्रता का भव्य प्रासाद खड़ा है।
भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन की चर्चा में महिलाओं के योगदान को प्रायः विस्मृत कर दिया जाता है। यह सही है कि सीधे संघर्ष में उतरने वाली महिलाओं की संख्या कम है, किन्तु यह भी उतना ही सत्य है कि यदि महिलाओं का योगदान न होता तो सम्भवतः आजादी की यह लड़ाई हम नहीं जीत पाते। पुरुष के जेल जाने पर या अन्य प्रकार से ऐसे आन्दोलनों में सक्रिय रहने पर महिलाओं को भीषण संकट के दौर से गुजरना पड़ता है। एक तरफ परिवार और बच्चों की चिन्ता तो दूसरी तरफ पति की, फिर भी
120 :: जैनधर्म परिचय
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