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है । यह कर्नाटक के हासन जिले में बैंगलोर से एक सौ चालीस कि.मी. दूर स्थित है । प्राचीन समय में यह जैन साधुओं (श्रमणों) की तपोभूमि रही है। ऐसा कहा जाता है कि अन्तिम श्रुतकेवली भद्रबाहु के साथ सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य ने दिगम्बर अवस्था धारण कर यहाँ एक पहाड़ी पर तपस्या की थी । यहाँ भद्रबाहु के चरण - चिह्न स्थापित हैं। साथ ही सम्राट चन्द्रगुप्त की स्मृति में एक जिन-मन्दिर (चन्द्रगुप्त वसदि) और चित्रावली भी है। इस पहाड़ का नाम ही चन्द्रगिरि पड़ गया है । यहाँ इस पहाड़ पर और इस नगर के आसपास इतिहास के साक्षी लगभग पाँच सौ शिलालेख हैं । इसी पर्वत पर और भी कई प्राचीन वसदियाँ हैं, जिनमें शान्तिनाथ बसदि, शासन बसदि, चन्द्रप्रभ बसदि, सवतिगन्धवारण बसदि और चामुंडराय बसदि प्रमुख हैं । पर्वत के उत्तर द्वार से नीचे उतरने पर जिननाथपुर के मन्दिर के दर्शन होते हैं । यह होयसल चित्रकारी का अद्भुत नमूना है।
दूसरा पर्वत विन्ध्यगिरि है। इन दोनों के बीच कल्याणी सरोवर है। विन्ध्यगिरि, जहाँ पर बाहुबली की उत्तुंग मूर्ति है, पर जाने के लिए पाँच सौ सीढ़ियाँ बनी हुई हैं। बाहुबली के अतिरिक्त इस पर्वत पर ब्रह्मदेव मन्दिर, चेन्नण्ण वसदि, ओदेगल वसदि आदि अनेक मन्दिर हैं। ऊपर पहुँचने पर एक समतल घेरे में गोम्मटेश्वर बाहुबली की मनोज्ञ मूर्ति है । पास ही द्वार पर गुल्लिका अज्जी की मूर्ति है । लोकश्रुति है कि बाहुबली मूर्ति की प्रतिष्ठा के अवसर पर मूर्ति निर्माता चामुंडराय ने हर्षित होकर जब अभिषेक किया तो दुग्ध की धारा सत्तावन फुट उत्तुंग इस मूर्ति की कमर के नीचे नहीं जा रही थी । कारण था, चामुंडराय का अपनी इस निर्मिति पर उत्पन्न अहं भाव । गुल्लिकाअज्जी ने उनका अहंकार दूर कर विनय - पाठ पढ़ाया था । यह अज्जी और कोई नहीं, क्षेत्र की देवी कूशमांडिनी ही थी, जो गरीब वृद्धा भक्तिन बनकर आई थी और अभिषेक सम्पन्न किया था ।
क्षेत्र पर गाँव में कई दर्शनीय बसदियाँ हैं । इनमें भंडारी बसदि नाम से सबसे बड़ा मन्दिर है । इसके अतिरिक्त अक्कन बसदि, मंगायि बसदि, सिद्धान्त बसदि आदि अनेक जिनालय हैं । यहीं भट्टारक चारुकीर्ति स्वामी का निवास-स्थान जैन मठ है।
1981 में बाहुबली सहस्राब्दी महामस्तिकाभिषेक से अब तक इस क्षेत्र का बहुत विकास हुआ है। अनेक धर्मशालाएँ और विश्रामगृह के अतिरिक्त क्षेत्र की ओर से संचालित प्राकृत विद्या संस्थान एवं इंजीनियरिंग कॉलेज भी है ।
तमिलनाडु में भी अद्भुत पुरावैभव के दर्शन होते हैं । वहाँ सारे प्रदेश में जिनमन्दिर, मूर्तियाँ, शिलालेख, गुहामन्दिर और उनमें उत्कीर्ण जैन मूर्तियाँ, चट्टानों में उत्कीर्ण मूर्तियाँ, अष्टधातु मूर्तियाँ, चूने की विशाल तीर्थंकर मूर्तियाँ, सरस्वती मूर्तियाँ, कलापूर्ण मानस्तम्भ, विशाल गोपुर, रथ तथा दीपमालिकाएँ - सभी कुछ वहाँ के धार्मिक और सांस्कृतिक वैभव को दर्शाते हैं। पिछले दिनों यहाँ के अनेक जैन मन्दिरों का जीर्णोद्धार हुआ है।
यहाँ के प्रमुख क्षेत्र - कांचीपुरम ( कांजीवरम ), चितंबूर ( सित्तामूर), जिनपुरम, पोन्नूर तिरुमलई, स्तवनिधि, आरपक्कम, करन्दै, जिनकांची, सालुक्कई, वेलकम, उपवेलूर,
114 :: जैनधर्म परिचय
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