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ही एक दीवार खड़ी कर के उक्त मूर्ति के लिए तिखाल (वेदी) बना दिया। तब से उसे सातिशय प्रतिमा कहा जाता है । भक्तजन यहाँ आकर तिखालवाले बाबा का दर्शन कर अपनी मनोकामनाएँ पूरी करते हैं ।
अहिच्छत्र के चारों ओर परिसर में आज भी कई भग्नावशेष बिखरे पड़े हैं। इनमें दो टीले उल्लेखनीय हैं। नाम हैं- ऐचुली और ऐंचुआ। ऐंचुआ टीले पर एक विशाल उच्च चौकी पर भूरे बलुई पाषाण का सात फुट ऊँचा स्तम्भ है । लगता है, यह मानस्तम्भ रहा होगा, जिसके ऊपर का कुछ हिस्सा टूटकर गिर गया है। टीले के इस पाषाण - स्तम्भ को 'भीम की लाट ' भी कहा जाने लगा है। किंवदन्ती यह भी है कि प्राचीन काल में यहाँ कोई सहस्रकूट चैत्यालय रहा होगा। कारण कि यहाँ खुदाई में अनेक जैन मूर्तियाँ उपलब्ध हुई हैं।
मन्दिर के बाहर उत्तर की ओर आचार्य पात्रकेसरी के चरण-चिह्न निर्मित हैं ।
वैशाली
वैशाली (कुंडग्राम) भगवान महावीर की जन्मस्थली है । आजकल यह स्थान वषाढ़ गाँव के नाम से जाना जाता है। वैशाली कुंडपुर की इस भूमि को चारों ओर से सीमाचिह्न लगाकर कमलपुष्प के एक विशाल शिला-पट्ट पर महावीर स्मारक का निर्माण कराया गया है, जिस पर प्राकृत और हिन्दी में प्रशस्ति अंकित है । भगवान महावीर के जन्मस्थली का संकेत करने वाली यह प्रशस्ति है । वर्तमान में वैशाली में महावीर की जन्मस्थली पर एक भव्य मन्दिर के निर्माण की योजना है। बिहार-झारखंड प्रदेश के अन्य तीर्थ मिथिलापुरी, चम्पापुरी, मन्दारगिरि, राजगृही, गुणावा, पाटलिपुत्र, भद्रिकापुरी, उदयगिरि, खंडगिरि आदि अनेक प्रसिद्ध जैन तीर्थ-स्थल हैं 1
अतिशय क्षेत्र
अतिशय क्षेत्र के मामले में मध्यप्रदेश पुरातत्त्व की दृष्टि से भी समृद्ध है। प्रायः सभी क्षेत्रों में ग्यारहवीं-बारहवीं शताब्दी तक प्राप्त होनेवाली सामग्री - मन्दिर, मूर्तियाँ, अभिलेख, स्तम्भ आदि सम्मिलित हैं। क्षेत्रों की सूची लम्बी है। कुछ - एक के नाम हैं - बजरंगगढ़, थूवौन, चन्देरी, सिहौनिया, पनागर, पटनागंज, अहार, पपौरा, कुंडलपुर, मक्सी, बीनाबारहा, मड़ियाजी ।
बजरंगगढ़ क्षेत्र गुना से सात कि.मी. दक्षिण में है । यहाँ का विशेष अतिशय तीर्थंकर शान्तिनाथ, कुंथुनाथ और अरहनाथ की कायोत्सर्ग मुद्रा में अवस्थित भव्य मूर्तियाँ हैं। ये सन् 1236 की हैं। अद्भुत है इन मूर्तियों का कला - कौशल और शिल्पविधान। इस त्रिमूर्ति में मूलनायक शान्तिनाथ की साढ़े चौदह फुट ऊँची तथा दायें-बायें कुंथुनाथ और
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जैनतीर्थ :: 107