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अभिनन्दन, सुमति और अनन्तनाथ के गर्भ एवं जन्मकल्याणक अयोध्या में हुए। ऋषभदेव को छोड़कर उक्त चारों तीर्थंकरों के दीक्षा और केवलज्ञान कल्याणक अयोध्या के निकट ही सहेतुक वन में मनाये गये। इसी प्रकार भगवान सम्भवनाथ के गर्भ, जन्म, दीक्षा और केवलज्ञान श्रावस्ती में; पद्मप्रभ के गर्भ-जन्म-कल्याणक कौशाम्बी में, पार्श्व और सुपार्श्वनाथ के गर्भ, जन्म एवं दीक्षा तथा सुपार्श्वनाथ का केवलज्ञान कल्याणक वाराणसी में हुए। हस्तिनापुर, चन्द्रपुरी, काकन्दी, भद्दिलपुर, चम्पापुरी, सिंहपुरी, कम्पिला, रतनपुरी, मिथिलापुरी, अहिच्छत्र, शौरीपुर, राजगृही आदि भी कल्याणकक्षेत्र हैं। भगवान महावीर के गर्भ-जन्म-दीक्षा-कल्याणक वैशाली के कुंडग्राम में तथा केवलज्ञान कल्याणक जृम्भिकग्राम में हुए। इसी प्रकर तीर्थंकर विमलनाथ के गर्भ, जन्म, तप व ज्ञान रूप चार कल्याणक कम्पिला नगरी में हुए। __ अतिशयक्षेत्र : ये ऐसे स्थान हैं, जहाँ किसी टीले, खेत या ज़मीन से घटनात्मक रूप से किसी मूर्तिविशेष या मूर्तियों के प्राप्त होने पर या फिर मूर्ति के निर्माण में चमत्कारिक घटना घटने से उनकी स्थापना के लिए कालान्तर में वेदी या मन्दिर का निर्माण कर दिया गया हो, और फिर कालान्तर में वह जनसाधारण के आकर्षण का केन्द्र बन गया हो या फिर जिस मूर्ति-विशेष के दर्शन से कुछ चामत्कारिक घटनाओं के घटने से ऐसे स्थलों को अतिशय क्षेत्र माना गया। जनसाधारण द्वारा ऐसे स्थानों को आत्मिक शान्ति के साथ-साथ ऐहिक कामना की पूर्ति की मान्यता मिल जाती है। उत्तर प्रदेश में देवगढ़, मथुरा, श्रावस्ती, अहिच्छत्र, प्रयाग, पफोसा, कम्पिल, राजस्थान में श्री महावीरजी, तिजारा, चाँदखेड़ी, पद्मपुरा आदि का विशेष महत्त्व है। महाराष्ट्र एवं दक्षिण के प्रायः सभी क्षेत्रों की गणना ऐसे ही तीर्थों में की जाती है। तपस्वी एवं ऋद्धिधारी मुनियों की तपोभूमियों में यदा-कदा ऐसे चमत्कार देखने को मिलते रहे हैं । सम्पूर्ण भारत में उक्त क्षेत्रों की स्थापना सातवीं-आठवीं ईसवी से प्राचीन नहीं है। वर्तमान में इनकी संख्या अपेक्षाकृत अधिक है, लगभग तीन सौ। समय के साथ यह संख्या बढ़ती ही जा रही है। ये क्षेत्र देश के प्रायः हर भाग में फैले हुए हैं।
कलाक्षेत्र : देश के कुछेक भागों में ऐसे भी क्षेत्र हैं, जो सिद्धक्षेत्र या कल्याणकक्षेत्र अथवा अतिशयक्षेत्र न होते हुए भी जैन कला, पुरातत्त्व एवं इतिहास की दृष्टि से इतने महत्त्वपूर्ण हैं कि उन्हें हम तीर्थक्षेत्र जैसा ही वैशिष्ट्य देते हैं। ये कलाक्षेत्र जैनों की बड़ी धरोहर हैं। इनके द्वारा हम जैनधर्म के अनुयायी शासकों का इतिहास, उनके वैभव से तो परिचित होते ही हैं, जैनधर्म के विकास और तत्कालीन समाज में उसकी प्रतिष्ठा का भी हम भली-भाँति ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं। विस्तारभय से यहाँ हम उनकी संक्षिप्त नामावली ही दे पा रहे हैं। देवगढ़, ग्वालियर का क़िला, खजुराहो, खंडगिरि-उदयगिरि, अजयगढ़, ग्यारसपुर, कारीतलाई, पतियानदाई, उदयपुर, बिजौलिया, चित्तौड़गढ़ का कीर्तिस्तम्भ, चाँदवड़ के गुफा मन्दिर, धाराशिव की गुफाएँ, ऐलोरा की गुफाएँ, गोम्मटेश्वर
जैनतीर्थ :: 95
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