________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
जैनतीर्थ
डॉ. गुलाबचन्द्र जैन
भारत के प्रत्येक धर्म में तीर्थों की मान्यता है। ये तीर्थ पवित्रता, आत्म-शान्ति और कल्याण के धाम माने जाते हैं। श्रद्धा-भाव से इनकी यात्रा करने से पुण्य का संचय तो होता ही है, परम्परा से ये मोक्ष-प्राप्ति के साधन भी हैं। ___ जैन-शास्त्रों में तीर्थ का प्रयोग अनेक अर्थों में हुआ है। आचार्य जिनसेन कृत 'आदिपुराण' में उल्लेख है- जो अपार संसार से पार कराये, वह तीर्थ है : 'संसाराब्धेरपारस्य तरणे तीर्थमिष्यते' और ऐसा तीर्थ जिनेन्द्र भगवान का चरित्र है अर्थात् जिनेन्द्र की कथा का आख्यान तीर्थ है। ‘युक्त्यनुशासन' में आचार्य समन्तभद्र तीर्थ को मात्र तीर्थ न मानकर उसे 'सर्वोदय तीर्थ' कहते हैं। उनके अनुसार, सभी प्रकार की आपदाओं (आधि-व्याधियों) का अन्त करने वाला तथा सबके लिए कल्याणकारी होने से यह सर्वोदय तीर्थ कहलाता है- 'सर्वापदामन्तकरं निरन्तं सर्वोदयं तीर्थमिदं तवैव।' किन्हीं आचार्यों ने इसे 'क्षेत्रमंगल' भी कहा है।
तीर्थों की संरचना
सामान्यतः जिन स्थानों पर तीर्थंकरों के गर्भ, जन्म, महाभिनिष्क्रमण (दीक्षा), केवलज्ञान और निर्वाणकल्याणक में से कोई एक या अनेक कल्याणक हुए हों, या- फिर किसी वीतरागी तपस्वी मुनिराज को केवलज्ञान या निर्वाण प्राप्त हुआ हो, वह स्थान उनउन महर्षियों के संसर्ग से पावन और पूज्य बन जाता है। कहने का तात्पर्य यह है कि जो भूमिखंड तीर्थंकर, महापुरुष या मुनिराज के पावन संसर्ग में आया, विचरण काल में वे जहाँ रहे या धर्मोपदेश दिया, वह स्थान पूज्य बन गया-तीर्थ बन गया। संक्षेप में कहा जा सकता है कि तीर्थंकरों और वीतरागी महर्षियों ने आत्म-संयम, ध्यान और तपश्चरण से अपने जन्म-जरा-मरण से मुक्ति की साधना की, साथ ही अनादिकाल से सांसारिक दुःखों को भोगते आ रहे, अज्ञानी या मिथ्या मार्ग पर चले आ रहे प्राणियों को सम्यक् मार्ग बतलाया, वे महापुरुष संसार के प्राणियों के अकारण बन्धु या उपकारक बन गये। उनके प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट करने और स्थान विशेष पर घटित पुण्यकारी घटनाओं को
जैनतीर्थ :: 93
For Private And Personal Use Only