________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
जो-जो भी जानकारियाँ मिली थीं, उनकी सुन्दर चर्चा की है। ऐसे तीर्थों में उन्होंने सोनागिर, पपौरा, द्रोणगिरि, रेशंदीगिरि, कुण्डलपुर, सिद्धवरकूट, रामटेक, मेढगिरि, कारंजा, अन्तरिक्ष-पार्श्वनाथ, नेमिगिरि, बेगमगंज (हैद्राबाद) के जैन मन्दिर, चन्द्रघाट, कुलपाक, विलगुरुनगर (श्रवणवेलगोल) के गोम्मटस्वामी, ऐनापुरनगर, हरीवेट, तलघाटी, धर्मस्थल, मूलबिद्री, कारकल, वरंगा, समुद्रतीरमन्दिर, हुम्मच, कलिकुण्ड-पार्श्वनाथ, पुनी (पूना) मांगीतुंगी, तरंजा (तारंगा), गिरनार, नगरतार, केशरिया-ऋषभदेव, चूलगिरि, कुन्थलगिरि, झालरियापाटन (झालरापाटन), उज्जैन, ग्वालियर, जयपुर, सांगानेर, आमेर, धा (?), राजगढ, दिल्ली, हतनापुर (हस्तिनापुर) एवं मथुरा के नामोल्लेख कर उनका विवरण प्रस्तुत किया है।
उक्त भट्टारक सुरेन्द्रकीर्ति ने अपनी तीर्थ-यात्रा के प्रसंग में जिन-जिन तीर्थों में वे गये थे, उनमें से अधिकांश की पारस्परिक दरियाँ, किस-किस मन्दिर में किस-किस वर्ण की कितनी-कितनी मूर्तियाँ हैं तथा वहाँ के पर्वतीय-विवरण एवं मन्दिरों तक पहुँचने के लिए बनी हुई सीढ़ियों की संख्या भी बतलाई है।
उसी पाण्डुलिपि में जैनबिद्री-मूडबिद्री की रत्नमयी मूर्तियों का विवरण, धर्मस्थल की समृद्धि एवं वहाँ के राजा हेगड़े का सादर उल्लेख आदि और वरंगा, हुँमचा, कारकल आदि की कला-समृद्धि, अतिशयता और सौन्दर्य की चर्चा भी की है। इस प्रकार आँखों देखा विवरण प्रामाणिक एवं इतिहास की दृष्टि से अत्यन्त महत्वपूर्ण है। ऐसा यात्राविवरण अन्यत्र दुर्लभ है। यह पाण्डुलिपि अद्यावधि अप्रकाशित है। उसकी प्रतिलिपि इन पंक्तियों के लेखक के पास सुरक्षित है।
जैन तीर्थ-यात्रा-प्रसंगों में वैसे-तो और भी लिखा जा सकता है, किन्तु स्थानाभाव के कारण यहाँ सम्भव नहीं। संक्षेप में यही कहा जा सकता है कि प्राच्यकालीन संस्कृति का प्रमुख केन्द्र-पाटलिपुत्र (-सेठ सुदर्शन की शूली-स्थली तथा मोक्ष-प्राप्ति-स्थलीकमलदह-(कमलहृद)-गुलजारबाग, आचार्य समन्तभद्र की शास्त्रार्थ-स्थली, श्रुतकेवली आचार्य भद्रबाहु की साधना-स्थली, मगधाधिपति सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य की राजधानी और महामति चाणक्य का निवास-स्थल , मेगास्थनीज, फाहियान, ह्वेनत्सांग, इत्सिंग तथा इतिहासकार Murrrcy आदि द्वारा मुक्त -कण्ठ से प्रशंसित पाटलिपुत्र नगर-तीर्थ, निर्ग्रन्थों एवं आजीविकों की साधना-हेतु सम्राट अशोक द्वारा निर्मापित गोरथगिरि की (वर्तमानकालीन गया की समीपवर्ती बराबरकी पहाड़ी पर स्थित) गुफाएँ
तीर्थंकर-महावीर की जन्मभूमि तथा विश्व के इतिहास में सर्वप्रथम गणतन्त्रीय शासन-प्रणाली की जन्मदात्री वैशाली
पूर्व से पश्चिम एवं पश्चिम से पूर्व की ओर विहार करने वाले शलाका-महापुरुषों एवं जैनाचार्यों के गमनागमन-मार्ग तथा विश्राम-स्थली-आरामनगर (अर्थात् बगीचों का नगर-वर्तमानकालीन आरा-नगर)
जैन यात्रा-साहित्य :: 91
For Private And Personal Use Only