________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www. kobatirth.org
भगवान ने एक हजार राजाओं के साथ योग-निरोध किया और अन्त में चार अघातिया कर्मों का अन्त कर निर्मल मालाओं के धारक देवों से पूजित हो, अनन्तसुख के स्थानभूत मोक्षपद को प्राप्त किया।' न केवल ऋषभदेव, बल्कि मुनिराज भरत, बाहुबलि, वृषभसेन गणधर आदि भी इसी पर्वत से मुक्त हुए । द्वितीय तीर्थंकर अजितनाथ के पितामह त्रिदशंजय ने भी मुनिदीक्षा धारण कर तपश्चरण करते हुए मुक्ति पायी । इनके अतिरिक्त राजा भगीरथ, नागकुमार, हरिषेण चक्रवर्ती के पुत्र हरिवाहन आदि अनेक महापुरुषों ने भी कैलासगिरि में दीक्षा ली और वहीं से निर्वाण प्राप्त किया ।
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
'हरिषेण कथाकोष' में ऐसा भी उल्लेख है कि भरत चक्रवर्ती ने कैलास के रम्य शिखर पर पंक्तिबद्ध 72 जिनालयों में अनेक वर्ण की रत्न- -प्रतिमाएँ प्रतिष्ठित करायी थीं। बाद में उन मन्दिरों के चारों ओर राजा सगर के पुत्रों ने पिता की आज्ञानुसार गंगा नदी से परिखा बनवायी थी । 'पद्मपुराण' (सर्ग 9) में इस प्रसंग में लंकाधिपति दशानन की एक घटना का बहुत रोचक वर्णन है। लंकानरेश का विमान कैलास शिखर के ऊपर से जाते हुए एक स्थल पर एकाएक रुक गया। कारण पूछने पर उनके अमात्य ने बताया कि इस पर्वत पर एक महातपस्वी प्रतिमायोग धारण किये हुए विराजमान हैं। ऐसे समय यह विमान इस मार्ग से उनका अतिक्रमण नहीं कर सकता। फिर क्या था, विमान से उतरकर लंकानरेश उनके दर्शन को पहुँचा। पास आते ही उन्हें देखकर वह पहचान गया कि यह तो मेरा महाशत्रु बाली है। उसके साथ अपने घोर संघर्ष का स्मरण कर क्रोधावेश में बोला, 'हे दुर्बुद्धि ! तू बड़ा तप कर रहा है कि अभिमान में आकर मेरा विमान रोक लिया। मैं तेरे इस अहंकार को अभी नष्ट किये दे रहा हूँ ।' कहकर, विद्याबल से अपनी दोनों भुजाओं को फैलाकर कैलास को उखाड़ने के लिए ज्यों ही उद्यत हुआ, कि तभी मुनिराज बाली ने अवधिज्ञान से दशानन के इस दुष्ट अभिप्राय को जान लिया । पर्वत के विचलित होने से भरत चक्रवर्ती द्वारा निर्मित मन्दिर नष्ट हो जाएँगे - ऐसा सोचकर उन्होंने ज्यों ही अपने पैर
अँगूठे से पर्वत को दबाया तो दशानन दबकर बुरी तरह रिरियाने लगा और विनयपूर्वक मुनिराज की स्तुति कर क्षमायाचना करने लगा। कहा जाता है, लंकाधिपति दशानन का तभी से 'रावण' नाम पड़ गया । कालान्तर में महामुनि बाली ने घोर तपश्चरण करते हुए इसी पर्वत से मोक्षपद प्राप्त किया।
98 :: जैनधर्म परिचय
कैलास या अष्टापद कहने पर हिमालय में भागीरथी, अलकनन्दा और गंगा के तटवर्ती ऋषिकेश, बद्रीनाथ, केदारनाथ आदि क्षेत्रों का परिसर भी आ जाता है । कैलास जाने के लिए पूर्वोत्तर टनकपुर स्टेशन से बस द्वारा पिथौरागढ़ (जिला अलमोड़ा) पहुँचकर, वहाँ से पैदल यात्रा द्वारा लीपू दर्रा पार करके जाया जा सकता है। जौहर मार्ग या फिर नीती घाटी मार्ग से भी वहाँ पहुँचा जा सकता है I
For Private And Personal Use Only