________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
दसवीं सदी का भी यात्रा-सम्बन्धी एक ऐतिहासिक उदाहरण मिलता है, जिसमें उल्लेख है गंगवंशी राजा राचमल्ल (दसवीं सदी) के सेनापति चामुण्डराय अपनी माता काललदेवी तथा धर्मपत्नी आदित्यादेवी की मनोकामना को पूर्ण करने हेतु भ. बाहुबली के दर्शनार्थ पोदनपुर (वर्तमान में पेशावर, पाकिस्तान) की धर्मयात्रा की तैयारी करते हैं। भले ही, बाद में उनकी वह यात्रा एक विशेष सार्थक कारण से स्थगित हो गई थी।
6. मनोरंजन-यात्राएँ- ये वे यात्राएँ हैं, जो विशिष्ट-पर्वो या अवसरों पर कुछ सीमित दिवसों के लिए की जाती थीं। इस प्रकार की यात्रा को पर्यटन-यात्रा भी कहा जा सकता है। अंग्रेजी में इसे पिकनिक भी कहा जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य मनोरंजन होता है। जैन-साहित्य में उपलब्ध वन-विहार, जल-विहार, उद्यान-विहार आदि को इसी श्रेणी की यात्राओं में सम्मिलित किया जा सकता है।
7. तीर्थ-यात्रा-साहित्य- भारतीय एकता एवं अखण्डता के प्रतीक माने जाने वाले प्राचीन जैन-तीर्थों का स्मरण करते हुए आद्य जैनाचार्य कुन्दकुन्द (ई.पू. 108-12 = 96 वर्ष) ने परम्परा-प्राप्त 24 जैन-तीर्थों तथा समीपस्थ पर्वतों एवं नदियों का अपने निर्वाणकाण्ड (प्राकृत) के माध्यम से श्रद्धापूर्वक स्मरण किया है।
जिसकी प्रथम एवं अन्तिम गाथा हैअट्ठावयम्मि उसहो चंपाए वासुपुज्ज-जिणणाहो। उज्जते णेमि-जिणो पावाए णिव्वुदो महावीरो।।1।। सेसाणं तु रिसीणं णिव्वाणं जम्मि-जम्मि ठाणम्मि। ते हं वंदे सव्वे दुक्खक्खय-कारणट्ठाए। 21 ।। जिनका पद्यानुवाद निम्न प्रकार किया गया है:अष्टापद आदीश्वर स्वामि, वासुपूज्य चम्पापुर नामि। नेमिनाथ स्वामी गिरनार, पावापुरि स्वामी महावीर।। तीन लोक के तीरथ जहाँ नित प्रति वन्दन कीजै तहाँ।
मन-वच-काय सहित सिर नाय, वन्दन करहिं भविक गुण गाय।। तात्पर्य यह कि अष्टापद (कैलाश-पर्वत) एवं गिरनार-पर्वत को छोड़कर अवशिष्ट 22 तीर्थकरों की निर्वाण-भूमि बिहार-झारखण्ड में होने के कारण उसका कण-कण जैनधर्मानुयायियों के लिए पवित्र तीर्थ-भूमि की मान्यता युगों-युगों से चली आ रही है। यहाँ तक कि तीर्थंकरों तथा साधक तपस्वियों के इस प्रदेश में विहार होते रहने के कारण उस प्रदेश का नाम भी "बिहार" के नाम से नामित हो गया होगा, ऐसा प्रतीत होता है।
जैन यात्रा-साहित्य :: 89
For Private And Personal Use Only