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अंधार - अंभो
अंधार सक [ अन्धकार ] अन्धकार-युक्त करना । कर्म. 'मेहच्छन्ने सूरे अंधारिज न कि भुवर' (कु ३८७) । अंधारयवि [अन्धकारित] अंधकार वाला (सुपा ५४, सुर ३, २३० ) ।
अंधा
[अन्धय् ] अंधा करना । अंधा
वेइ (विक्र ८४) ।
अवि [न्धित ] श्रध बना हुआ (सम्मत्त १२१)।
अंधि
स्त्री [अधिका] द्यूत- विशेष (दे २,
अंधिआ स्त्री [आंन्धका] चतुरिन्द्रिय जंतु की एक जाति (उत्त ३६,१४७) ।
अंधिलग वि [अन्ध] अन्धा, जन्मान्ध (परह २,५ ) ।
अंधिलय देखो अंधिलग; (पिंड ५७२) । अंधदि (शौ) वि [अन्धीकृत ] अंध किया हुआ (स्वप्न ४९ ) ।
अंधु ! [अन्धु] कूप, कुँआ (प्रामाः दे ०१, १८) । अंबेल्लग देखो अंधिल्लग ( पिण्ड ) । अं [कम्प] कंपन (से. ५, ३२) । अंत्र पुं [अम्ब] एक जात के परमाधार्मिक देव, जो नरक के जोवों को दुख देते हैं (सम २८ ) |
१) ।
[आ] १ ग्राम का पेड । २ न. श्राम, आम्र-फल (हे १, ८४) । गया स्त्री [दे] श्रम की ग्रांठी, गुठली ( निच् १५) । ' चोयग न [दे] १ आम का रुंछा (नित १५) । २ ग्राम की छाल (श्रावा २,७,२) । 'डगल न [दे] आम का टुकड़ा (निचु १५ ) 'डाग न [दे] श्राम का छोटा टुकड़ा (प्राचा २,७,२) । पेसिया स्त्री [पेशिका ] श्रम का लम्बा टुकड़ा (निचू १५ ) । भित्त न [दे] श्रम का टुकड़ा ( निचू १५) । सालग न [दे] ग्राम की खाल ( नित्र १५) । ° सालवण [शावन] चैत्य-विशेष ( राय ) ।
[ [ अम् ] १ तक, मट्ठा (जं ३ ) । २ खट्टा रस । ३ खट्टी चीज (विसे) । ४ वि. निष्ठुर वचन बोलनेवाला (बृह १) ।
वि [आम्ल ] १ खट्टी वस्तु । २ मट्टे से संस्कृत चीज (जं ३ ) । अंधवि [a] लाल, रक्तवर्णवाला (से ३, ३४) ।
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पाइअसहमण्णवो
.११
अंग देखो अंब = प्राम्र (अणु) 'ट्ठिया स्त्री | अंबाड सक [तिरस् + कृ] उपालंभ देना, [स्थि] ग्राम की गुठली (श्रणु) । तिरस्कार करना 'तम्रो हक्कारिय अंबाडिया भरणा य' (महा) ।
अं [अम्बष्ठ ] १ देश-विशेष (पउम १८, ६५) । २ जिसका पिता ब्राह्मण और माता वैश्य हो वह (सूत्र १, ६) । अंबड पुं [अम्बड ] १ एक परिव्राजक, जो महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेकर मोक्ष जायगा ( प ) । २ भगवान् महावीर का एक श्रावक, जो श्रागामी चौबीसी में २२ वाँ तीर्थंकर होगा (312) 1
[] कठिन ( १,१६) । अंबधाई स्त्री [अम्बाधात्रा ]धाई माता (सुपा २६८) ।
मसी स्त्री [] कठिन और वासी कनिक (दे १,३७ ) ।
अंबय देखो अंब (सुपा ३३४) । [ [ अम्बर ] एक देव - विमान (देवेन्द्र १४४) ।
अंबर [अम्बर ] १ प्रकाश (पाच भग २, २) । २ वस्त्र, कपड़ा ( पात्र निचू १ ) । 'तिलय पुं [°तिलक] पर्वत - विशेष (श्राव ) । 'वत्थ न [वस्त्र] स्वच्छ वस्त्र ( कप ) । अंबरस पुंन [अम्बरस ] आकाश, गगन (भग २०, २-पत्र ७७५) । अंबर
न [ अम्बरीष ] १ भट्टी, भाड़ (भग ३, ६) । २ कोक (जीव )। ३ पुं. नारकजीवों को दुःख देनेवाले एक प्रकार के परमाधार्मिक देव ( पव १८० ) ।
अंधरिति पुं [अम्बऋषि ] १ ऊपर का तीसरा
अथ देखो (सम २८ ) । २ उज्जयिनी नगरी का निवासी एक ब्राह्मण (भाव) । अंबरीस देखो अंबरिस । अंबरीसि देखो अंबरिसि । अंबसमिआ अवसान आ} देखो अंबमसी ।
स्त्री [अम्बडी ] एक देवी ( महानि
।
२) । अंबा स्त्री [अम्बा] १ माता, मां (स्वप्न २२४) २ भगवान् नेमिनाथ की शासनदेवी (संति १० ) । ३ वल्लो - विशेष ( परण १ ) । [ ] खरडना, लेप करना; 'चमढेति खरण्टेति अंबाडेति त्ति वृत्तं भवति' ( निचू ४) ।
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अंबाडग
अवाय
पुं [आम्रातक] १ मामला का ( पण १; पउम ४२, ६) । २ न. आमला का फल ( अनु ६) । अंबाडयवि [तिरस्कृत ] १ तिरस्कृत (महा.) २ उपलब्ध (स ५१२) । अंबिआ स्त्री [अम्बिका ] १ भगवान् नेमिनाथ की शासनदेवी ( ती १०)। २ पांचवें वासुदेव की माता (पउम २०, १८४) । समय [समय ] गिरनार पर्वत पर का एक तीर्थ स्थान ( ती ४) ।
अंबर न [आ] श्रम का फल (दे १, १५) अंबिल पुं [आम्ल ] १ खट्टा रस (सम ४१ ) । २ वि. खटाई वाली चीज, खट्टी वस्तु (घोष ३४० ) । ३ नामकर्म - विशेष (कम्म १,४१) । बलिया स्त्री [अम्लिका] १ इम
( उप १०३१ टी ) । २ इमली का फल ( श्रा २० ) ।
अंबुन [अम्बु ] पानी, जल (पा) । अ, ज न [ज] कमल, पद्म ( ५५ कुमा)
[नाथ ] समुद्र ( वव ६) । ह [ह] कमल (पा) । वह पुं [वह ] मेघ, वारिस ( गडड ) । वाद पुं [वाह ] मेघ, वारिस ( गउड)। अंबु पिसा अंबु []
व पशु- विशेष, शरभ (दे १, ११) । अंबेट्टि
अंबे
[] राहु (गा ८०४ ) ।
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स्त्री [दे] एक प्रकार का जुआ, मुष्टि- द्यूत (दे १, ७)
बेस [दे] द्वार-फलक, दरवाजे का (दे १, ८) ।
अंबची स्त्री [] फूलों को बिननेवाली स्त्री (दे १, ९; नाट) ।
अंभ पुं [ अम्भस् ] पानी, जल ( श्रा १२) । अंभु ( प ) [ अश्मन् ] पत्थर, पाषाण ( षड् ) ।
अंभो [ अम्भस् ] पानी, जल अन [ज] कमल (दे ७, ३८ ) । इणी स्त्री ["जिनी] कमलिनी, पद्मिनी ( मै ६१ ) । निहि पुं [निधि] समुद्र (श्रा १२ ) ।
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