Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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॥५॥
पद्म || का विलास देखे हैं नील कमल तो सरोवरनी के नेत्र भए और भ्रमर भौहें भए जहां पौढ़े और सांठोंकी।
विस्तीर्ण वाड़ी हैं वह पवन के हालने से शब्द करे हैं ऐसा सुन्दर बानरद्वीप है उसके मध्यमें किहकुन्दा नामा पर्वत है वह पर्वत. रत्न और स्वर्ण की शिला के समूह से शोभायमान है जैसा यह त्रिकूटाचल मनोज्ञ है तैसाही तिहकुन्द पर्वत मनोज्ञ है अपने शिखरों से दिशारूपी कान्ताको स्पर्श करे हैं आनन्द मन्त्री के ऐसे वचन सुनकर राजा कीर्तिधवल बहुत आनन्द रूप भए बानरद्वीप श्रीकण्ठ को दिया तब चैत्र के प्रथम दिन श्रीकण्ठ परिवार सहित बानरद्वीप में गये मार्ग में पृथिवीकी शोभा देखते चले जाय, वह पृथिवी नीलमणिकी ज्योति से आकाश समान शोभे है और महा ग्राहों के समूह से संयुक्त समुद्र
को देख आश्चर्यको प्राप्त भए वानरद्वीप जाय पहुंचे बानरद्वीप मानों दूसरा स्वर्गही है अपने नीझरनों | के शब्द से मानों राजा श्रीकण्ठ को बुलावेही है नी झरनेके छांटे आकाशको उछले हैं सो मानो राजा के श्रानेपर अति हर्षको प्राप्तभये आनन्दकर हंसे हैं नाना प्रकार की मणियों से उपजा जो कान्ति का सुन्दर समूह उससे मानो तोरण के समूह ऊंचे चढ़ रहे हैं राजा बानरद्वीप में उतरे और सर्व ओर चौगिरद अपनी नील कमल समान दृष्टि सर्वत्र विस्तारी छुहारे प्रांवले कैथ अगर चन्दन पीपरली सहीजणां
और कदम्ब आंबचा रोली केला दाडिम सुपारी इलायची लवंग बौलश्री और सर्व जाति के मेवों से युक्त नाना प्रकारके वृक्षों से दीप शोभायमान देखा ऐसी मनोहर भूमि देखी जिसके देखतेहये और ठौर दृष्टिन जाय जहांवृक्ष सरल और विस्तीर्ण ऊपर छत्रसेबनरहे हैं सघन सुन्दर पल्लव और शाखा फूलनके समूहसे शोभे हैं ओर महा रसीले स्वादिष्ट मिष्ट फलों से नम्रीभत होयरहे हैं और वृक्ष अति ऊंचे भी नहीं अति नीचेभी
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