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रणि जमघम्सविडवसलवधरणि यदिष्यनिहायाधमलासंपनश्यचिंतिउसाला पलहानम दिलाजम्मफलहक्कुलिदिहोसइजिण धवलायन मिरुससुसमापयर्दिण्ड विष्यअंजलिहलासंपाइनुएवलि असव अमरविलासिणिसाशकविच लयतिलयदेविहकरइंकवियादया। अग्नश्चरर कविपश्वरयणाहरण क विलिणकलमेणवरण कविनवामर
षड्दयामरुदे
वीस्वस्तूपागल मकरसहाकविषारंसविणाउयवसाकवि
এদিকহ। परिरकरणिसियासिकरा कविवारिपरिहा यदंडधरी अखाणकाविकिषिकहशदिनकपडलकाविवशकविवारचारविणएनवश्क २२
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धर्मरूपी वृक्ष के जन्म को धारण करनेवाली! आपकी जय हो, तम्हें देख लेने पर पापमल नष्ट हो जाता है
और सोचा हुआ फल प्राप्त हो जाता है। तुमने महिला-जन्म का फल प्राप्त कर लिया। तुम्हारी कोख से जिनश्रेष्ठ का जन्म होगा।"
पत्ता-अत्यन्त सरस नृत्य करता हुआ, हाथों की अंजली बनाकर पैरों में पड़ता हुआ, अमर-विलासिनी- समूह वहाँ पहुँचता है और सेवा करना चाहता है॥३॥
कोई देवी के ललाट पर तिलक करती है, कोई दर्पण आगे रखती है, कोई श्रेष्ठ रलाभरण अर्पित करती है, कोई केशर से चरण का लेप करती है, कोई मधुर स्वर में गाती-नाचती है। कोई दूसरा विनोद प्रारम्भ करती है, पैनी छुरीवाली कोई परिरक्षा करती है। कोई दण्ड लेकर द्वार पर स्थित है। कोई कोई आख्यान कहती है, कोई दिये गये क्रीड़ाशुक को धारण करती है। कोई बार-बार विनय से नमन करती है।
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