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कालमिपेसपछाणघणानं श्यवितेविणहियवश्वारिया नणससिमुहयाणपठहरिष सिरिहिरि दिहिदवाललिखकर बरकंतिकिविलायवर विएवढचारुचवतिमउपाएणणगुणणतिर
यछायावादाहरणेलियन सरणादनिहलपपश्यिावखडललथापिमवगनियउ देविदेशति मरुदेवानतिरना।
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5षद्दाम
मैं अतिशय सेवा का प्रदर्शन करूं।" यह विचारकर उसने शीघ्र अपने मन में पीन पयोधरोंवाली छह घत्ता-मनुष्यलोक में जाकर नाभिराजा के भोगों का भोग करनेवाले घर में मरुदेवी की उस देह का चन्द्रमुखियों का ध्यान किया। सुन्दर हाथोंवाली, श्रेष्ठ श्री, ह्री, धृति, उत्तम कान्ति, कीर्ति और लक्ष्मी देवियाँ शोधन करो जिसमें पापों के नाश करनेवाले जिनदेव का गर्भ-निवास होगा॥१॥ सुन्दर बोलती हुईं प्रणय और नय से नमन करती हुईं, नीलकमल के समान दीर्घ नेत्रोंवाली वे इन्द्र के घर पहुँचीं। बेलफल की लता के समान शरीरवाली उनसे देवेन्द्र ने शीघ्र कहा
तब करधनियों से रमणीय देवस्त्रियाँ चल पड़ी। स्वर्गालय से निर्गमन करनेवाली, मद से मन्थर महागज के समान चलनेवाली, त्रैलोक्य के लक्ष्मीपतियों के मन का दमन करनेवाली,
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