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उधियादिमिण्यमणदमणिय कुंडलचिंचश्यकवालियठा मयणेवाणकलियट जतिजो यंतिमकसियाउ अलिसबिहवंयरकसिमनातपुतेउजायचवख घालतविचित्रवरखरठण यसनलंगिविहिरसपियाड मिळाममहेटणिरमणियनणिरुसहवराणवारियाणसमरिदा
वारिस्यठाधना एयन्यमानसुखमा धविणिकामिणिवेसाझ्यउपरेणासतिसरण सिरिमरुपविदपासा परमेसरिसुखरल। यथुवा कोमलसुणालबहलावादास
इसणारिधिनायुविदिवियागार मनिलयासळगावयवसलकाणमा फणि
पुरणरमणमुसुमूणिया दाराबंदियपार मरुदेव्याराणीचा वैषटू देवयासमा
यजा अश्लसिमदियारसपदिाचाय गमन
बोजयजयाजागुरुजपणि जयघायलवि ललियदारमणि जयकम्पकाणणाणला
तथा विरक्तों में कामदेव की हलचल उत्पन्न करती हुई, कुण्डलों से शोभित कपोलोवाली वे ऐसी लगती थीं मानो कामदेव ने अपनी तीरपंक्ति सँभाल ली हो। अपने शरीर के तेज से आकाश को आलोकित करती सुरवर लोक से च्युत कोमल मृणाल की तरह कोमल भुजावाली परमेश्वरी आर्यसुता को देवकुमारियों हुई. विचित्र वस्त्रों से आन्दोलित होती हुई, नय और सप्तभंगी की विधि से बोलती हुईं, मिथ्यात्व और मद ने इस प्रकार देखा मानो (उसकी रचना में) विधाता का विज्ञान समाप्त हो गया हो। सर्वांग और अवयवों के कारणों का निरसन करती हुई, इन्द्रादि देवों में अनुरक्त रहनेवाली वे मानो दानवारि (इन्द्रादि देवों) में से सुलक्षण; नाग, सुर और नरों के मन को उत्तेजित करनेवाली, चारणों के द्वारा बन्दनीय चरण-युगलोंबाली लीन रहनेवाली भ्रमरियाँ थीं जो दानवारि (मदजल) में रत रहती हैं।
उसकी अत्यन्त सुन्दर स्तोत्रों से देवियों ने स्तुति की- "हे विश्वगुरु को जन्म देनेवाली माँ! तुम्हारी जय घत्ता-ये और दूसरी कन्याएँ मनुष्यनियों का रूप धारणकर अत्यन्त भक्तिभाव के साथ श्री मरुदेवी के हो, स्तनतल पर हिलते हार मणिवाली तुम्हारी जय हो, कर्मरूपी कानन के लिए आग लगानेवाली लकड़ी पास आयीं ॥२॥
के समान आपकी जय हो,
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