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मस्वयर्यवाणयाक्लनियकारिणणनकारयायाधतासामपश्सयलमाणसशंजहिंश्चा विसुविससिठसियसम्पायंचसोणाहिणिजोलरहेणविहासिड
रथाममहापुरापतिसहिमहापरिसगुणालकारामहाकश मुक्तविश्रणामहासबहरहाएम सिएमहाकनामा नमरावतणनामडजोपरि सामना सनिवार
या वलिजामृतदधीचिश्वसर्च स्व र्णितामुपगते खासदत्यनन्यगतिकरयागराणासरतमा वसतिविकास हिंजाममणोजरंजइलोजानिवखुनाहिन रिडमंडियसविमाण कालयमाण चिंतश्तामसद्धिाराएवमटियामाणियोका रपमरुगविहगणियहाळहिमासहिहोसश्यामक्षिण शासनकर SEARS मुचुत्रापविण सायनसमन्नणुसंसरमि गझारायसाहासङकरमिलाउजकजुमडवणाद
जहाँ न महाव्रत थे और न अणुव्रत। और न बुरा करनेवाली शिल्पजीवी प्रजा थी।
पत्ता-समस्त मनुष्य सामान्य थे, वहाँ एक भी आदमी विशेष नहीं था। श्वेतपुष्प के समान दाँतोंवाला वह नाभिराजा था, जो भरत (क्षेत्र, भरत भव्य मन्त्री) से विभूषित था ॥२१॥
सन्धि ३ जब उस अयोध्या में नाभिराजा निश्चल और सुन्दर राज्य का भोग कर रहे थे तब अपने विमान से मण्डित इन्द्र काल के प्रमाण का (तीसरे काल के अन्त का) चिन्तन करता है।
इस प्रकार महाकवि पुष्पदन्त द्वारा विरचित और महाभव्य भरत द्वारा अनुमत (त्रिषष्टि महापुरुष गुणालंकारवाले महापुराण के अन्तर्गत ) महाकाव्य में अयोध्यानगरी-वर्णन
नाम का दूसरा परिच्छेद समाप्त हुआ॥२॥
"इस राजा की मानिनी रानी मरुदेवी के उदर से छह माह में परम जिन (गर्भ में) होंगे। भोग के बिना कर्म का नाश नहीं होता। मैं सम्यक्त्व को समग्रता दिखाता हूँ, शीघ्र ही गर्भाशय का शोधन कराता हूँ। लो मेरा यही काम है कि
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