Book Title: Siribhuyansundarikaha
Author(s): Sinhsuri, Shilchandrasuri
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Prakrit Text Society Series No. 39 सिरिविजयसीहायरियविरड्या सिरिभुयणसुंदरीकहा (कथा खण्ड) संपादक: विजयशीलचन्द्रसूरि पं. दलसुख मालवणिया प्राकृत ग्रन्थ परिषद् अमदावाद वि.सं. २०५६ ई. २००० 20 AUCEMमावस्या Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Prakrit Text Society Series No. 39 (प्राकृत ग्रंथ परिषद् श्रेणी, क्रमांक ३९) सिरिविजयसीहायरियविरइया सिरिभुयणसुंदरीकहा (कथा खण्ड) सम्पादक : विजयशीलचन्द्रसूरिः पं. दलसुख मालवणिया प्राकृत ग्रन्थ परिषद् अमदावाद वि.सं. २०५६ ई. २००० Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीभुवनसुन्दरीकथा-प्राकृत पद्यबद्ध कथाग्रन्थ कर्ता : विजयसिंहसूरि सम्पादक : विजयशीलचन्द्रसूरि प्रकाशक तथा प्राप्तिस्थान : पं. दलसुख मालवणिया प्राकृत ग्रन्थ परिषद् (Prakrit Text Society) C/o. आ. श्रीविजयनेमिसूरि जैन स्वाध्याय मन्दिर १२, भगतबाग, जैननगर, नवा शारदामंदिर रोड, आणंदजी कल्याणजी पेढीनी बाजुमां, अमदावाद-३८०००७ प्रथम आवृत्ति : ५०० ई. २००० वि.सं. २०५६ मूल्य : रु. २५०-०० प्राप्तिस्थान : सरस्वती पुस्तक भण्डार ११२, हाथीखाना, रतनपोळ, अमदावाद-३८०००१ मुद्रक : क्रिश्ना प्रिन्टरी हरजीभाई नाथालाल पटेल ९६६, नारणपुरा जूना गाम, अमदावाद-३८००१३ . फोन : ७४९४३९३ Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जिन्होंने अनेक प्राकृत ग्रन्थों की रचना की जिन्होंने मुझे प्राकृत पढने की प्रेरणा दी, उन परमपूजनीय सिद्धान्तमहोदधि प्राकृत विशारद आचार्य भगवंत श्रीविजयकस्तूरसूरीश्वरजी को उनकी जन्मशताब्दी के उपलक्ष्य में समर्पित Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ General Editor's Foreword We are grateful to Acharya Vijayshilchandrasūriji for making available for publication to the Prakrit Text Society the important, voluminous Prakrit narrative work Bhuyaņasundari-kahā written by Vijayasimhasūri in the tenth century A.C. and edited carefully by the Acharya on the basis of two manuscripts. Lovers of Prakrit kathā literature, we hope, will find it interesting and appreciate it Nagindas J. Shah H. C. Bhayani Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सम्पादकीय नाइल्ल (नागेन्द्र) कुलीन तप-संयम-शीलरत श्री समुद्रसूरिके स्वहस्तदीक्षित शिष्य आचार्य श्री विजयसिंहसूरि द्वारा विरचित, प्राकृत भाषामय एवं पद्यात्मक, 'श्री भुवनसुन्दरी कथा' का सम्पादन व प्रकाशन करते हुए अत्यधिक आनन्द का अनुभव हो रहा है। इस ग्रंथ की रचना का वर्ष ग्रन्थ में कहीं भी निर्दिष्ट नहीं है । फिर भी विद्वानोंने बृहट्टिप्पनिका के आधार पर इसका रचना-वर्ष सं. ९७५ होने का निर्देश दिया है । डॉ. मधुसूदन ढांकी के अनुसार यह वर्ष विक्रम संवत् का न होकर शक संवत् हो यह अधिक संभवित है । क्यों कि कर्ताने इस ग्रन्थ की प्रस्तावना में 'धनपाल'. कवि का स्मरण (गाथा ११) किया है, और धनपाल का सत्ता समय वि.सं. की १०वीं-११वीं शती माना गया है । अत: धनपाल के बाद में ही यह ग्रन्थकार हुए होने चाहिए, और अतएव ९७५ को विक्रम वर्ष न मान कर शक वर्ष (ई. १०५३) मान लिया जाय, तो सभी सुसंगत हो सकता है। इस ग्रन्थ का रचना-स्थल सोमेश्वरनगर (प्रभास पत्तन) है, ऐसा प्रशस्ति से सिद्ध है । गाथा-प्रमाण ८९४४ है; प्रशस्ति अलग । यह कथा व कथानायिका भुवनसुन्दरी-दोनों का निर्देश या उल्लेख, जहाँ तक मेरी जानकारी है वहाँ तक, पूर्वकालीन कोई साहित्य में प्राप्य नहीं है । जैन आचार्यों की परंपरा रही है कि जिस बात या पात्र को शास्त्रों का या पूर्वाचायों का समर्थन मिला-मिलता हो, उसीको विषय बनाकर वे चरित्र या कथा लिखेंगे । जबकि प्रस्तुत रचना के बारे में ऐसा हुआ नहीं लगता है । अब होगा ऐसा कि कोई व्यक्ति ग्रंथकार पर आक्षेप करेगा कि 'आप तो अपनी मनगढंत-निराधार या कल्पित-कथा बना रहे हैं । ऐसे संभवित आक्षेप को शायद लक्ष्य में रखकर ही ग्रंथकारने निम्नलिखित गाथाएं लिख दी लगती है : Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तप्परिवालणमाहप्प-गलियनीसेसकम्मनिलयाण । पुबपुरिसाण चरियं जणइ विवेयं कहिज्जंतं ॥२७॥ परियप्पियचरियगयं दुविहं पि हु उवसमेइ जह जीवे । ता अविकलकज्जपसाहणेण इह दोवि गरुयाइं ॥२८॥ तं नत्थि संविहाणं संसारे एत्थ जं न संभवइ । इय वयणाओ सव्वं चरियं चिय कप्पियं नत्थि ॥२९॥ यह निवेदन बडा मार्मिक-गूढार्थक मालूम होता है । इस भुवनसुन्दरी कथा को आधार बना कर, आगमिक श्रीचारित्रप्रभसूरिशिष्य श्रीजयतिलकसूरिने ‘हरिविक्रमचरित्र' नामक, संस्कृत श्लोकबद्ध व द्वादश सर्गात्मक ग्रन्थ की रचना की प्रतीत होती है । यद्यपि कर्ताने कहीं भी विजयसिंहाचार्य का या उनकी भुवनसुन्दरी कथा का उल्लेख नहि किया, फिर भी उस ग्रंथ का विषयानुक्रम देखते ही पता चलता है कि यह प्राकृत कथा का ही संक्षिप्त व सरल संस्कृत रूपांतर है । इसमें ४७५२ पद्य है । यह प्रकाशित भी है। प्रस्तुत सम्पादन मुख्यतया खम्भात-स्थित श्रीशान्तिनाथ ताडपत्रीय जैन ज्ञानभंडारसत्क ताडपत्रीय प्रति के आधार पर तैयार किया गया है । उक्त प्रति के २७१ पत्र है, व सम्भवत: बारहवें शतक में लिखी गई है, मुनि पुण्यविजयजीने इस प्रति को तेरहवें शतक के पूर्वार्ध में लिखे जाने की संभावना व्यक्त की है। प्रति के अन्तिम पृष्ठ में इस प्रति की संवत् १३६५ में साधु नयपाल की पत्नी रयणादेवी द्वारा खरीद किया जानेका स्पष्ट उल्लेख मिलता है । अत: १३६५ से पूर्व तो यह प्रति लिखी ही गई है। दूसरी कागद की प्रति अमदावाद के श्रीलालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्यामन्दिर के संग्रह की मिली है । जो अनुमानत: सोलहवें शतक की लगती है। उसके प्रान्त भाग में लेखक, समय, स्थल वगैरह का कोई निर्देश नहीं है । फिर वह अशुद्धि प्रचुर भी है । बराबर जांच करने से लगा कि यह प्रति, उक्त ताडपत्र-पोथी की ही नकल है । तथापि ताडपत्र Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पोथी में दो-चार ठेकाने त्रुटित पत्रवाले आये, वहां पाठ पूर्ति इसी प्रति के आधार पर का गई है। उक्त दोनों प्रतियों का उपयोग करने की सम्मति देने के लिए उपर्युक्त दोनों संस्थाओं के कार्यवाहकों के प्रति मैं कृतज्ञता व्यक्त करता हूँ। ग्रन्थ की प्रतिलिपि करने में मुनि कल्याणकीर्तिविजयजीने काफी सहायता दी है। इस कथा का संक्षिप्त हिन्दी सार व परिशिष्ट दूसरे खण्ड में दिये हैं । जिज्ञासुओं को वह देख लेनेका अनुरोध है । ग्रन्थ का सम्पादन गुरुकृपा से यथामति किया गया है | कहीं कोई क्षति भी रह गई हो, इसका पूरा सम्भव है । मुद्रणमें भी दृष्टिदोष से या प्रेसदोष से कुछ क्षतियां हो गयी है । जितनी क्षतियां, छप जाने के बाद नजर में आई, उसका एक शुद्धिपत्र ग्रन्थ के अन्त में दिया जाता है । कृपया उसका उपयोग करें। इस ग्रन्थ का प्रकाशन सुविख्यात संस्था 'प्राकृत ग्रन्थ परिषद्' के नाम से हो ऐसी मेरी भावना थी। इसमें अनुमति देने के लिए मैं उक्त संस्था के पदाधिकारी गण का व विशेषत: डॉ. हरिवल्लभ भायाणी का ऋणी Dhoo क्रिष्ना प्रिन्टरी, अमदावाद के श्री हरजीभाई पटेल को उत्तम मुद्रण कर देने के लिए धन्यवाद । भाद्रपद शुदि ११, सं. २०५६ -विजयशीलचन्द्रसूरि भावनगर Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आर्थिक सहयोग वलसाड जैन संघ के श्राविका-गणने इस ग्रन्थ के प्रकाशनार्थ अपने ज्ञानद्रव्य का सदुपयोग किया है,. एतदर्थ उनको खूब खूब धन्यवाद । Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥झा अर्ह नमः ॥ नएँ नमः ॥ श्रीशङ्केश्वरपार्श्वनाथाय नमोनमः ।। __नमो नमः श्रीगुरुनेमिसूरये ॥ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ ॥ नमः सर्वज्ञाय ॥ पढमं चिय पढमजिणस्स नमह नहमणिमऊहरमणीयं । अंकुरियमोक्खपायव-बीयनिहाणं व पयकमलं ।।१।। सो जयइ वद्धमाणो घणोव्व इह जस्स वयणवारिभरो । नियभासाय रसेण व तरूण जीवाण परिणमइ ।।२।। अइनिम्मलाए नमिमो अवसेसजिणावलीए पयकमले । जीए मुत्तावलीए व एक्को च्चिय सुत्तसारत्थो ॥३॥ पणमह पणमंतमहा-कइंदसंकंतनयणपडिबिंबं । कयनीलुप्पलपूयं व भारईचरणनहनिवहं ॥४॥ जाओ जाण पसाएण मज्झ मूयस्स वयणविन्नासो । . ताण अणंतगुणाणं गुरूण पणमामि पयकमलं ॥५॥ ते कइणो हिययमहोयहिम्मि सुमहत्थरयणरमणीया । उल्लसइ जाण वाणी उयरुयरि तरंगमालव्व ।।६।। सुकइत्तणावलेवं वहति कह ते न जाण उभयंपि । वयणम्मि वसा वाणी न मणम्मि सयथनिप्फत्ती ॥७॥ पयपूरणमेत्तेणं अदिट्ठपरमत्थवत्थू(त्थु)नाणेणं । कव्वेण कुवुरिसेण व कइकुलमज्झे परं हासो ||८|| Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ पढमकइचकवट्टीण नमह सिरिइंदभूइपमुहाण । सुयसायरम्मि जाणं इयरकई तणमिव तरंति ।।९।। सिरिपालित्तय कइबप्पट्टि हरिभद्दसूरिप्प(प)मुहाण । किं. भणिमो जाणज्जवि न गुणेहिं समो जए सुकई ॥१०॥ वा(भा?)से विरयम्मि जए कालंतरिए य कालदासम्मि । धणवालो सुकइत्तण-भारुव्वहणम्मि जइ धवलो ।।११।। सच्छंदपयपयारो निरभिप्पायप्पहासणपरो य । सुकइत्तणगहगहिओ बुहाण हासं गमिस्सामि ।।१२।। ते कत्थ महाकइणो रविणोव्व जए पयासियपयत्था । कत्तो खज्जोया इव मारिसकइणो पयइतुच्छा ।।१३।। जइ वेवं तहवि ससत्ति-सरिससत्तोवयारहियएण । । अहमुज्जुत्तो न उणो सुकइत्तगुणाहिमाणेण ।।१४।। उसहाइएहिं जइ किर अणुवमविरिएण साहिउ मोक्खो । ता संपइ इयरजणो मा तत्थ समुज्जमं कुणउ ? ।।१५।। संतेसु वि पुव्बकइंद-विविहधम्मोवएससत्थेसु । जहसत्ति मारिसो वि हु उवयारं कुणइ, किमजुत्तं ? ||१६।। निययसहावसरिच्छं भुयणं परिणमइ सज्जण-खलाण । सिय-असियसहावाणं पक्खाण व सेय-किण्हाण ।।१७।। परमत्थसज्जणाणं इयराण वि होति न हु उवाहीओ । धवलिज्जइ केण ससी कसणिज्जइ केण राहू वि ।।१८।। जे जाणिऊण दोसं सलं च समुद्धरंति ते सुयणा । जे उण गुणमवि दोसं भणति ते दुज्जणा निययं ।।१९।। Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ - अम्हारिसेसु तम्हा धम्मुवसत्थमुज्जमंतेसु । अजाणंतु य सुयणा इयरे वि य होंतु मज्झत्था ||२०|| पुरिसेणं बुद्धिमया लद्धूण सुमाणसत्तमइदुलहं । अप्पहियं कायव्वं तं च न धम्माउ परमत्थि ॥२१॥ धम्मो संसारमहा - समुद्दपडियाण जाणवत्तं व्व । धम्मो च्चिय होइ सुमाणुसत्त- सुर-सिद्धिसुहमूलं ॥ २२ ॥ जइ वि हु दाणाईओ चउव्विहो मोक्खसाहओ धम्मो । भणिओ जिणेहिं तहवि हु मज्झ रुई नाणदाणम्मि ||२३|| अमुणियपरमत्थाणं मिच्छत्तमहंधयारमूढाण । जो देइ नाणदाणं तेण न किं तिहुयणं दिन्नं ? ||२४|| जम्मंधस्स व जह विमल चक्खुदाणेण होइ उवयारो । जीवाण वि जाण तहा निम्मलनाणप्पयाणेण ॥ २५ ॥ तंपि हु नाणपयाणं जहत्थजिणधम्मतत्तवित्थारो । संमत्त-नाण- दंसण-चरणाणुगओ कहेयव्वो ||२६|| तप्परिवालणमाहप्प-गलियनीसेसकम्मनियलाण । पुव्वपुरिसाण चरियं जणइ विवेयं कहिज्जंतं ॥२७॥ परियप्पियचरियगयं दुविहं पि हु उवसमेइ जइ जीवे । ता अविकलकज्जपसाहणेण इह दोवि गरुयाइं ||२८|| तं नत्थि संविहाणं संसारे एत्थ जं न संभवइ । इय वयणाओ सव्वं चरियं चिय कप्पियं नत्थि ||२९|| न परोवयारओ इह अन्नो धम्मो जयम्मि संभवइ । उवयारो वि न विज्जइ सद्धम्मुवएसओ अवरो ||३०|| Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इय भाविऊण सम्मं धम्मुवएसप्पयाणसुविसुद्धं । सिरिभुयणसुंदरीए चरियाणुगयं कहं सुणह ॥ ३१॥ इह दाहिणद्धभारह - मज्झिमखंडस्स मंडणं अत्थि । उवहसियसुरनिवासा अउज्झ नामा महानयरी ||३२|| सुविभत्ततिय- चउक्का सुपवंचियचच्चरा विचित्तपहा । सुविसालविपणिमग्गा फलिहुज्जलसालपरिकलिया ||३३|| पायालोयरगंभीर-भीमपरिहाइ परिगया सहइ । अमराउरिव्व रम्मा जलम्मि संकंतपडिबिंबा ||३४|| निम्मलमणिमयपासाय- सिहरपसरतकिरि (र) णहत्थेहिं | जा पेल्लइव्व दूरं जोइसचकं अकिंचिकरं ||३५ ॥ विमलमणिभासियाए उदयत्थमणाइं जत्थ रविणो वि । कमलाण वियास- निमीलणेहिं नज्जंति लोएहिं ||३६|| जत्थ य सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ पुव्वाभासित्त-परोवयार - दक्खिन्न - सच्चकरुणहो । सुकयन्नुत्तण-सद्धम्मकम्मजुत्तो परिसवग्गो ॥३७॥ रूवविणिज्जियसुरसुंदरीओ मणहरसुवेसलडहाओ । सोहग्गसंगयाओ सुसीलकलियाओ नारीओ ||३८|| जा चक्कवट्टिमुत्तिव्व सुत्थिया तह अदिट्ठपरचक्का | सज्जणगोव्वि सया गुणुज्जला दोसरहिया य ||३९|| जा समवसरणभूमिव्व भुवणअच्चब्भुया सुरकया य । कमलोवासा नल (लि) णिव्व बहुगुणा पत्तकलिया य ॥४०॥ २. प्रदोषः ॥ १. अत्थ ला. ।। Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ एक्को च्चिय परदोसो अह तत्थ पुरीए गुणसमिद्धाए । जं होइ सव्वकालं परदुक्खे दुक्खिओ लोओ ।।४१।। तत्थत्थि पसत्थगुणो दरियारिकरिंदकेसरिकिसोरो । आजलहिमहीनाहो राया अजियविकूमो नाम ॥४२।। जस्स पयावानलडज्झमाणहिययाण वेरिनारीण । . परिसूसंतोट्ठउडा तेणुण्हा होति नीसासा ||४३।। विफु(प्फु)रइ कसिणकरवालभासुरो जस्स समरमज्झम्मि । हढकड्डियारिजयसिरि-वेणीदंडोव्व(व) भुयदंडो ॥४४।। तुलियमहीहरभुयदंड-महियगुरुसमरसायरेणं व । हरिणेव्व जेण नियए लच्छी वच्छत्थले ठविया ॥४५॥ विणिवाइयवेरिसुया जस्स पयासंति भीमभुयविरियं । भडखंभचित्तकविकयचरित्तपमुहेहिं हेऊहिं ॥४६।। जम्मि वसुहाहिनाहे वसुहं नयविक्कमेहिं पालंते । होइ पउसो रयणीपढमो जामो न गुणिलोओ ॥४७।। निच्चत्थमणं रविणो दोसुदओ जइ ससिस्स न जणस्स । परवसणसणेणं संतोसो जइ नियत्थेणं ।।४८।। हुंतेण जेण जो किर उप्पज्जइ सो न तस्स नासेण । पावइ तत्थ पसिद्धिं अहुणासदं पमोत्तूण ।।४९।। तस्स महानरवइणो रविवंससमुब्भवस्स गुणकलिया । नामेणं कमलसिरी कुलुब्भवा अत्थि पियभज्जा ॥५०॥ तस्सायत्तं से जीवियंपि इय तप्पउत्तवावारा । ववहरइ जा असेसं दप्पणपडिबिंबछायव्व ॥५१॥ Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ सइ-गोरि-रई तीए हीणुवमा सक्क-हर-अणंगाण । परदारिय-कावालिय-अकम्मकारीण जा भज्जा ।।५२।। मुख-नयन-कण्ठ कुचयुग-रोमावलि-नाभि-जघन-जानाम् । तच्चरणयोर्यथाक्रम-मुपमानं विद्धि कमलादीन् ॥५३।। नदीपक्षे पुनः कमलोत्पलादिभिरुपलक्षिता सरिदिति ।। कमलुप्पल-कंबु-रहंग-दुव्व-आवत्त-पुलिणरभाहिं ।। कुम्मेहिं जा विरायइ निवस्स कीलाचलसरिव्व ॥५४।। अन्नोन्नपेम्मरसपरवसाण चेयन्नविणिमएणं व्व । समसुहदुहत्तरूवं लक्खिज्जइ ताण फुडमेव ॥५५।। अवरंतेउरजुवईसु न तस्स जह तीए हिययसंतोसो । न तहा अवरतिहीसुं जह सोहइ पुन्निमाए ससी ।।५६।। [रू]व-कला-गुण-जोव्वण-रज्जंग-विलास-भूसण-सिरीओ । सुहयंति तस्स हियए अणुकूलकलत्तलाहेण ॥५७।। एवं च पुन्नपयरिस-संपाइयसयलसुहसमूहस्स । वच्चंति तस्स दियहा सुरज्जसुहमणुहवंतस्स ।।५८।। अह कमलसिरीसुहगब्भसंभवो अत्थि तस्स पियपुत्तो । हरिविकूमोत्ति नामं पच्चक्खो पुन्नरासिव्व ॥५९।। अणवडिओ पयाणं पीडायारी य अणभिगम्मो य ।। पडिहयगुरु-बुहतेओ कह तेण समो रवी होइ ।।६०।। सूरहयतेयपसरो सुहेक्वपक्खो य खंडणासहिओ । संभावियदोसुदओ कह णु ससंको समो तेण ।।६१।। वसुहाबाहिरभूओ महिओ बद्धो य जलमओ उयही । १. दुर्वा ।। २. रंमाहिं ला. ।। Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ अवहरियकरितुरंगमलच्छी न हु तेण तुलगुणो ॥६२॥ अपरोवयारिकणगो कुलमहिहरबाहिरो पयइथद्धो । कणयगिरी वि समाणो गुणेहिं न हु तस्स कुमरस्स ॥६३॥ इय निज्जियसयलुवमाण-विमलगुणगरुयलद्धजसपसरो । भुयणच्छेरयभूओ देवकुमारोव्व नररूवो ॥६४॥ अणुदियहमणन्नमणो पवित्तपिउचरणकमलकयसेवो । बहुविबुहसहाणुगओ आणंदियगुरुयणो वीरो ॥६५॥ सुकई कलासु कुसलो गंथत्थवियारलद्धमाहप्पो । सुयणो परोवयारी वाई सुकयन्नुओ रसिओ ॥६६॥ अह तस्स जहासुहमिच्छियत्थसंपत्तिसुहियहिययस्स । वच्चंति सव्वदियहा परोवयारं करंतस्स ॥६७॥ अह नरवइणा परभाविऊण सव्वत्थ तस्स सामत्थं । सुपसत्थतिहि-मुहुत्ते अहिसितो जोवरज्जम्मि ॥६८ । अत्थि य तस्साजियविकूमस्स सिरिवरसीहसामंतो । पियमित्त-मंति-सुसहाय-बीयहिययं व नरवइणो ॥६९।। तस्सत्थि सुओ नामं रणवीरो वैरिरायदुद्धरिसो । हरिविकुमस्य आबालभावसहवडिओ मित्तो ॥७०॥ अन्ने वि राय-सामंत-मंति-ववहरय-इब्भ-बहुपुत्ता । विविहगुणा गुणिरायं हरिविकूममेव सेवंति ॥७१॥ अन्नम्मि दिणे पच्चूस एव कयसयलगोसकरणीओ । उवविट्ठो महरिहआसणम्मि बहुसेवयसमेओ ॥७२॥ नीसेसमित्तमंडल-पणिवइयसलक्खणंककमकमलो । । विहियजहारिहपडिवत्ति-दिनकप्पूरतंबोलो ॥७३॥ Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पसरंतपुराणमहाकविंदकयकव्वगुणवियारेण । नीसेससहाविबुहाण हिययतोसं जणेमाणो ॥ ७४ जावच्छ ताव तहिं सेवावसरं निउत्तपुरिसेहिं । विन्नत्तो संभंतो जणयसमीवं तओ चलिओ ॥ ७५ ॥ आरूढो सुहयरवरकरेणुखंधंमि सहियरणवीरो । सर, ओसर, संभालहि, भणतपाइकपरियरिओ ॥७६|| अग्गे 'धाणुक - णुमग्गकुंत फारक फारपरिवारो । तदंसणूसुयाणेयनयरिजणजणियसंतोसो ॥ ७७ ।। पत्तो संभंतनमंतधंत-सेवयपयासियप्पणओ । निवमंदिरं कुमारो पडिहार अभुट्ठिओ अहसा ॥७८॥ पडिहारपदरिसियमग्गलग्गरणवीरबाहु आलग्गो । 'जय देव ! कुणसु दिट्ठिप्पसाय' मिइ निसुयहलबोलो ॥ ७९ ॥ अह विविहमहामहिवाल- मौडमणिकिरिणजालजडिलम्मि । अत्थाणम्मि पविट्ठो पहिट्ठनिवदूरसच्चविओ ॥ ८० ॥ अइचंडदंडिहक्कासंखुद्धनरेंददिन्नपिमग्गो । सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ पिउभत्तिभरनिरंतर चलणग्गनिविट्ठनियदिट्ठी ॥ ८१ ॥ वसुहाविलुलियसियहारकिरणविच्छुरियपिहुलवच्छ्यलो । पिउणोव्व पयजुएसुं हिययविसुद्धिं पयासंतो ॥८२॥ पडिओ पाएस तओ पुव्विं परिकप्पियम्मि पिउवयणा । उवविट्ठो महरिह- आसणम्मि हरिविकुमकुमारो ||८३ ॥ सुयनिव्विसेसहिययं नरवइणा जणियगरुयसम्माणो । कुमरस्स पिट्टभागे उवविट्ठो तयणु रणवीरो ॥ ८४ ॥ १. धणु० ला ॥ २. पडिहा अ० ला ॥। ३. मउड ॥ Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ आपुच्छिओ य पिउणा सरीरसुहकुसलमवणउ(ओ)कुमरो । 'तुम्ह पसाएण सया कुसलं'ति पयंपइ विणीओ ।।८५।। तक्कालोच्चि(चि)यनाणा-विणोयखण-रज्जकज्जकयचित्ता । अच्छंति ते जहासुह-मत्थाणत्था जयसमत्था ।।८६।। तत्थत्थि महामंती नरवइपुज्जो महोयही नाम । अइगरुयजराभरजज्जरंगपरिनीसहावयवो ॥८७।। अइपंडुररोमसमूहकलियवच्छत्थलो य जो सहइ । हिययट्ठियनिम्मलगुरु-विवेयससिकिरणकलिओव्व ।।८८।। जरपंडुरभमुहापम्हमंडियं सहइ तस्स नयणजुयं । . सुहुमत्थदंसिमंतिसु आवज्जियजयवडायं व्व ॥८९॥ नरवइकज्जेसु सया अणुबंधो तस्स न निययदेहेऽवि । इय सिढिलिओव्व कोवा सणियं सिढिलेहिं अंगेहिं ।।९०।। सो दद्रूण कुमारं सव्वंगावयवसोहियं भणइ । स(सु)विणीयं पि हु सविसेस-विणयपडिगाहणत्थं व ।।९१॥ हरिविकुम ! वच्छ ! भणामि किंपि मा अन्नहा वियप्पेसुं । तुह पिउणो वि हु सिक्खाकज्जे मह चेव अहिगारो ॥९२॥ जइ वि हु पुव्वज्जियपुन्नरासिसंपाइया गुणे(णा) तुज्झ । तह वि अइनेहनिब्भर-हियओ सिक्खेमि किंपि तुमं ॥९३।। गुणबहुमाणं परिवज्जिऊण जो रूवगव्वमुव्वहइ । अविवेइत्तणभीयव्व तस्स दूरे गुणा होति ।।९४।। खलइ गई चलइ मणं जयमवि अजहत्थमेव परिणमइ । जोव्वणतिमिरुच्छाइयनयणस्स व एत्थ पुरिसस्स ॥९५।। Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ सयलकलासंपत्तो अमयमओ विमलगुणमहग्घविओ । पढमउदयम्मि पावइ रायं पुरिसो नवससिव्व ।।९६।। लद्धा खणेण विहडइ लच्छी चिरविहडिया वि संघडइ । सरए पवणपणोल्लिय-जलहरछायव्व चलरूवा ।।९७।। अइगरुअमहीहरविसमदुग्गभूभागगोविया लच्छी । न विणा विक्कम-साहस-मेसा सीहिव्व सुहसज्झा ॥९८।। दिट्ठा खणेण विहडइ रणंगणे सायरम्मि नावव्व । अन्नायवराहक्खडयताडिया कयपयत्ता वि ॥९९।। एसा अणत्थसयसाहियावि बहुअणत्थसंजणणी । अइजत्तपालणीया मंतीहिं महाभुयंगिव्व ॥१००।। उज्जलगुणकलियं पि हु मइलेइ सिरी नरं न संदेहो । वायालिव्व खणेणं दूरं वुड्डिंगया जइ वि ॥१०१।। जह न च्छ(छ)लिज्जसि लच्छीए वच्छ ! तह कहवि वीर ! ववहरसु । उवहुत्तवारुणीओ अवस्स मोहिज्जए पुरिसो ॥१०२।। जह न कसाया पसरंति हरिणनयणाओ जह य न हरंति । न वसे कुणंति विसया अप्पाणं तह परिहवसु ॥१०३।। इंदियचोरा तह कुणसु तुज्झ न हरंति जह विवेयवणं । तत्थेव यवणबुद्धी अणवरयं वीर ! कायव्वा ।।१०४।। इय भणिऊणं विरओ महोयही जाव ताव कुमरो वि । तव्वयणायन्नणअमयभरियहियओव्व संजाओ ।।१०५।। मंतिस्स भाविऊ पसन्नगंभीरवयणविन्नासं । हरिविकूमो वि मंतिं भणइ तओ सविणयं एयं ।।१०६।। १. इन्द्रियाण्येव यवनाः-म्लेच्छा इति बुद्धिः ।। Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ नियगरुयत्तणसरिसं सिक्खविओ सव्वमवितहं ताय !! उज्जलयरोव्व विहिओ तुम्हेहिं मइप्पईवो मे ।।१०७।। एत्थंतरम्भि राया विसज्जियासेसमंति-सामंतो । अत्थाणाओ हरिविकुमेण सह उडिओ सहसा ॥१०८।। पत्तो निययावासं कयमज्जण-भोयणाइवावारो । मणहरविणोयरम्मं अइवाहइ वासरं कुमरो ।।१०९।। अत्थंगयम्मि सूरे संझासमयम्मि विहियकायव्वो । वच्चइ पुणो वि पासं अत्थाणत्थस्स नरवइणो ।।११०।। तत्थ वियक्खण-मणहर-विणोयसयगमियजामिणिपओसो । उट्ठइ अत्थाणाओ विसज्जिओ एइ नियगेहं ।।१११।। तत्थागओ कमेणं विसज्जियासेसमित्तपरिवारो । कयसमुचियकरणीओ वच्चइ पासायसिहरम्मि ।।११२॥ नवभूमियपासायग्गसिहरसेज्जाहरम्मि सेज्जाए । कोमलतूलिसणाहाए ठाइ हरिविकुमकुमारो ॥११३।। अह अड्डरत्तसमए पसुत्तनीसेसनयरिलोयम्मि । 'मूईहुए व भुयणे पसंतपहलोयसंचारे ।।११४।। निसिसंचरंतघणघूयमुक्कप्पुक्कारघोरबहुघोसं । नणु घोरइव्व भुअणं निब्भरनिदाए पासुत्तं ।।११५।। जे रायपहा दियहे आसि अ गम्मतलोयसंकिन्ना । ते च्वेय निसीहे पाउणंति वियडत्तणं निययं ।।११६।। सुव्वइ नरिंदभवणे अन्नोन्नालावभरियदिसिविवरो । पडिभग्गदुट्ठपसरो पाहरियभडाण ताररवो ||११७।। १. मूकीभूते ।। Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ हिंडंति जत्थ बाहिं समंतओ भीसणट्टहासेण । रक्खस-पिसाय-वेयाल-साइणी-भूयसंघाया ।।११८॥ एवंविहंमि घोरे संपत्ते अड्डरत्तसमयम्मि । सेज्जाए सुहनिसन्नो कुमरो दरमउलियच्छिजुओ ।।११९।। आइन्नइ वीणा-वेणुमीसी(सि)यं पवणवसपयद्वंतं । सवणिंदियरमणीयं अइमहुरं गीयझंकारं ॥१२०।। सविसेसवंसकलरव-गीयंतर-मणहरंतरारम्मं । आयड्डइव्व हिययं सुरगेयगुणेहिं कुमरस्स ।।१२१।। तो अउरुव्वसुगीया-यन्नणअक्खित्तमाणसो कुमरो । चिंतइ विसेसवड्ढंत-कोउहल्लो नियमणम्मि ॥१२२।। अहह ! महच्छरियमिणं सवणिंदियहारि असुयपुव्वं च । गेयं न मच्चलोए पायं एवंविहं अत्थि ।।१२३।। एत्थ बहूण वि गायण-गायणिलोयाण सुव्वए सद्दो । सो वीणाइ-उवस्सुइ-भिन्नो वि हु होइ एगोव्व ॥१२४।। अच्छउ ता इयरजणो मएवि नेयारिसं सुयं गेयं । नरलोयसुप(प्प)सिद्धा जस्स घरे गायणा संति ।।१२५।। ता निच्छियं न एयं मणुयाणं संभवेज्ज वरगीयं । अउरुव्वं च अवस्सं दट्ठव्वं होइ बुद्धिमया ।।१२६।। अउरुव्वदसणेणं अस्सुयपुव्वस्स हंत सवणेण । पावंतु कयत्थत्तं अज्जं मह नयण-सवणाइं ॥१२७।। जं अज्ज मंतिणा सिक्खिओम्हि न हरंति जह विधेयवणं । इंदियचोरा तं पि हु इमेण गेएण अंतरियं ॥१२८।। Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ ता होउ किंपि जं होइ सव्वहा परमकोउहल्लेण । गेयस्स मूलसुद्धी-करणनिमित्तं जइस्सामि ।।१२९।। तो उट्ठइ सेज्जाओ गाढीकयकेसनिवसणो वीरो । कडियडनिबद्धधुरिओ वच्छत्थललंबिवरहारो ।।१३०।। करकलियमंडलग्गो विणिग्गओ निहुयकयपयक्खेवो । गेयाणुसारिचित्तो अलक्खिओ जामइल्लेहिं ॥१३१॥ ओयरियो रायपहे दिवो सो पुव्वनिग्गएणेव । वीरचरियाविहारत्थ-मुज्जएणं नरिंदेणं ।।१३२।। दठूण महाराओ कुमरं उ(ओ)लक्खिऊण निउणयरं । चिंतइ किमत्थमेसो विणिग्गओ अज्ज बाहिम्मि? ॥१३३।। ता लट्ठयं व जायं किं काही वच्चिही कहिं एसो? । सत्तावटुंभोच्चिय केरिसरूवो इमस्स भवे ? ||१३४।। एयस्सणुमग्गेणं वच्चिस्समलक्खिओ अणेणाहं । जाणिस्सं सव्वमहं अज्ज सरूवं नियसुयस्स ।।१३५॥ परिभाविऊण एयं रायाऽजियविकूमो नियसुयस्स । लग्गो अणुमग्गेणं संपत्ता दोवि पायारे ॥१३६॥ एत्तरे कुमारो सविम्हिरं पेच्छिरस्स जणयस्स । उड(ड)इ उड़े गयणे विज्जुखित्तेण करणेण ॥१३७।। तो तं गयणविलग्गं पायारमगाहखाइयासहियं । अहिलंधिऊण पडिओ अउज्झनयरीए बाहिम्मि ।।१३८॥ तेण य करणकमेणं जणओ वि पुरीए निवडिओ बाहिं । ते दोवि अणुकमेणं तुरियपयं गंतुमारद्धा ।।१३९।। Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ अइसयकोऊहलतुरिय-हिययपसरंतवियडपयखेवो । पत्तो खणेण कुमरो रम्मुज्जाणं तहिं एगं ||१४०।। तस्स य मज्झपएसे उच्चत्तणनिहयरविरहपयारं । धुव्वंतधय-वडाया-मंडियबहुसिहरसंघायं ।।१४१॥ निययपहावेण व वियडरयण-मणिसघणकिरणनिवहेण । पावं पि व ओसारइ दूरं निसि तिमिरसंघायं ॥१४२।। पेरंतसंठिएहिं अच्चंतं नीलतरुयरगणेहिं । दूरमलद्धपवेसं पावेहिं व भव्वलोयस्स ।।१४३।। अवसायसंदिरेहिं भवणफुरंतुद्धविविहकिरणेहिं । ससुरधणूहिं नमिज्जइ मेहकुमारेहिं व दुमेहिं ।।१४४॥ जं नियडतरुगणेणं मणिगणसंकंतकुसुमसंघायं । वेलवइ महुयरकुलं सव्वत्तो चूयससुयंबं ।।१४५।। आवासो व सिरीए अलंघदुग्गं व धम्मरायस्स । उप्पत्तिं व निरंतर-सुद्धज्झवसायबीयाण ||१४६।। तोडइ कुतित्थसंग विहडावइ कम्मनियलसंघायं । जं उच्छायइ लोए मिच्छत्तमहातमं घोरं ।।१४७।। एवंविहं कुमारो दूरं वियसंतनयणतामरसो । सकावयारनामं पेच्छइ जिणमंदिरं रम्मं ।।१४८।। दठूण हरिसनिब्भर-विसट्टरोमंचकंचुइज्जंतो । चिंतइ सविम्हयं बहु-वियप्पपज्जाउलो कुमरो ।।१४९।। अहह ! गीएककोउय-रसेण इह आगओ म्हि किर बाहिं । नवरं बहुकोऊहल-परंपरा मज्झ संपडिया ॥१५०॥ Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ पढमं ताव भवंतर-विद्धंसियपावकसिणसंघायं । दिलै जिणिंदभवणं मणि-कंचण-रयणनिम्मवियं ।।१५१।। तत्थ वि अउव्वरूवा एए विज्जाहरव्व देवव्व । दिट्टा अदिट्ठपुव्वा सेवंता देवपयकमलं ॥१५२।। नियमाहप्पाओ च्चिय अविकलसिझंतवंछियसुहत्था । तो केण कारणेणं एए सेवंति जिणनाहं ? ||१५३।। इयरो वि हु न पयट्टइ निकज्जारंभजायववसाओ । किं पुण एए देवा जे सम्मन्नाणसंपन्ना ।।१५४।। ता अणुमाणवसेणं जाणे अच्चब्भुयं फलं किंपि । जं देवाण वि दुलहं तं जिणनाहाओ वंछंति ॥१५५॥ ता सव्वहा वि एयं देवासुर-खयरपूइयं देवं । अइदुल्लहफलदायग-मणन्नहियओ नमसामि ।।१५६।। इयमाइ चिंतिऊणं वियडपयक्खे व दलियमही(हि)वीढो । थरहरियधरणिभयवस-सुरासुरुप्पाइयासंको ॥१५७।। जोइज्जंतो सुरसुंदरीहिं दूरं पसारियच्छीहिं । अउरुव्वसुरकुमारमकयबहुविहमयणचेट्ठाहिं ।।१५८।। उव्वेल्लइ सुदिढं पि हु मणोहरं कावि केसपब्भारं । दरदीसमाणगुरुतर-पओहरुस्सेहरमणीया ।१५९।। अन्नोन्नं संघट्टण-वसपसरियझणझणारवकरालं । रि(रि)खोलइ सवियारा पओट्ठवलयावलिं कावि ॥१६०।। संठवइ सुट्ठियं पि हु सुरंगणा कावि भूसणकलावं । हरिविकूमाणुरायं अप्पम्मि दिढं समीहंती ।।१६१।। Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ इय हरिविकुमदंसण-अणुरायपरव्वसाण नारीण । नियदइयनिरावेक्खा सोहंति वियारसंरंभा ॥१६२ ।। पत्तो गब्भहरंतर-मंडवदारं पहिट्ठमुहकमलो । पेच्छइ पसंतरूवं पडिमं सिरिउसहनाहस्स ।।।१६३।। मोहंधयारसूरो कम्ममहाकाणणेकपरसुव्व ।। तिहुयणभवणपईवो तियसासुर-खइरपणिवइओ ।।१६४।। जो धम्मचकवट्टी असेसजयजीवबंधवो भयवं । पयडियसुरसिवमग्गो दिट्ठो कुमरेण पढमजिणो ।।१६५।। सुपसंतरूवदंसण-विम्हयपसरंतनयणतामरसो । असरिसभत्तिसमुग्गय- पहरिसरोमंचियसरीरो ॥१६६॥ सियमोत्ताहलथूलंसुबिंदुदंतुरियनयणपम्हउडो । वसुहामिलंतसिरजाणु-करयलो थुणिउमाढत्तो ॥१६७।। “पणमामि विसमसंसारसायरुत्तरणजाणवत्तं व । नीसेसदोसरहियं असेसगुणसंगयं उसहं ।।१६८॥ तुह दंसणमेत्तेण वि उत्तरइ नराण पावपब्भारो । कहमन्नहा मह पहु ! हवंति हलुयाइं अंगाई? ||१६९।। पइ दिढे हरिसवसुल्लसंतनयणंसुसलिलसित्तम्मि । पुलयच्छलेण अंगे अंकुरिओ मज्झ पुण्णदुमो ।।१७०।। मयणमहागहगहियंमि नाह ! भुवणम्मि विरसववहारे । हरि-हर-विरिचिमझे तद्दोसहरो तुमं चेव ।।१७१।। ते वंचिया वराया अकयत्थं ताण नयणनिम्माणं । नीसेसभुवणमज्झे दट्ठव्व ! न जेहिं दिट्ठो सि ॥१७२।। Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरी 3 ॥ जाणामि जाओ विवेयरयणं पि अज्ज मे जायं । मह विणियत्ता अन्नदेवेच्छा ||१७३॥ दिट्ठे तुम इय पयसंतसहावसुहयसुद्धस्स निव्वियारस्स । चइऊणमा नमो नमो उसभसामिस्स” ॥१७४॥ इय थाऊण जारो कयत्थमप्पाणयं च मन्नतो । सललिपयसं रो समागओ सुरगणसमीवे ॥ १७५ ॥ अण (णि ?) मिसनयण-निमेसाइएहिं कयदेवनिच्छओ वीरो । संभास तियसगणं विणयपगब्भं पसंसेइ || १७६ || भो भो देवा ! तुब्भे सकयत्था जे जिणिदचंदाण | अणवरयं पयसेवाए सासयं पुन्नमज्जिणह ॥ १७७॥ तं विन्नाणं सो रिद्धिसंचओ ते गुणा कला सावि । परमेसराण कज्जे जिणाण जे जंति उवओगं ॥१७८॥ इय सो नियवयणेहिं सावट्ठेभेहिं सप्पगब्भेहिं । सुरपरिसमभिभवंतो अमाणुसेणं व तेएण ॥ १७९ ॥ मयणोव्व सल्लयंतो नियनयणनिवायनिसियबाणेहिं । हिययाई सुंदरीणं भणिओ तियसेहिं सप्पणयं ॥ १८० ॥ हरिविकुम ! तुह सागय - मुवविस चिरकप्पियास एत्थ । मणिमत्तवारणे जं सव्वस्सब्भागओ पुज्जो ॥। १८१ ॥ सीहोव्व दिन्नफालो उवविट्ठो मणिमयासणे कुमरो । सोहइ पुरंदरे इव सविसेसं सुरसहाणुगओ ॥१८२॥ अह अजियविक्कमो विय-असेससच्चवियपुत्तववहरणो । चिंतइ मणम्मि असरिस-मणवट्ठियविम्हयाणंदो ||१८३ || १७ Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ अहह ! महावट्ठेभं पेच्छह सोवसमवयणविन्नासं । पढमाभासित्तं चिय गुणाणुरायं च पुत्तस्स || १८४|| रूवेण पयावेण य विसट्टसिंगार - लडहवेसेण । निज्जिणइ तियसलोयं का गणणा मणुयलोयम्मि ! || १८५ || ता एत्थेव य बाहिं इमस्स मणिमत्तवारणस्साहं । एयसरीरे कुसलं चिंतंतो अच्छइस्सामि ॥१८६ ॥ इय चिंतिऊण राया खग्गसहाओ सुरक्कमण- नयणो । अणुरत्तसेवओ इव थक्को सुयरक्खणक्खणिओ ||१८७ || अह वित्ते पेच्छणए सुराण 'कमलद्धसमयहिहिं । पारद्धं पेच्छणयं खयरेहिं पुरो जिनिंदस्स ॥१८८॥ ( अपभ्रंश) अविय - त्रहत्रहंतदुंदुहिदुदुंदमद्दलद्रंगिनगिनपडह टकृनकिट्टकृनकरडच्छफलच्छलतालेण । दिदर्देदटिविलंतत्रसियउल्लसियसुरासुरु व घट्टा सघणु उसह समहत्थु सवित्थरु || १८९ ।। द्रफिनफफिनफडकयहुडुक्कपुडपाडपरिट्ठिओ । भृंगिनभि भृंगिनभि डक्कसुकुडुप्पकडप्पिउ । थु किट थु किट थुत्थुकिट थगिथिरपहपाडघण । छज्जइ जिण ! पेच्छणउं तुब्भ आणंदियतिहुयण ॥ १९०॥ इय तय-वितयविमीसे घण-सुसिराओज्जसहगंभीरे । विज्जाहरामराणं मण- नयणाणंदसंजणणे ॥१९१॥ नच्चिरवरविज्जाहरिपयनेउरजायझणझणरवेण । १. क्रमलब्धसमयहृष्टैः ॥ Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ भणिरेव्व खोजघणपाडखंडजाईओ फुडवियर्ड (?) ||१९२।। करणंगहारवसती सहंगवेक्खेवखुडियआहरणे । इय वढंते मणहर-पेच्छणयमहाभरे तत्थ ।।१९३।। तो सयलगायणेहिं वरवंससमप्पिउच्चठाणेहिं । एसा महुरसरेणं वरदुपई गाइया तेहिं ।।१९४।। “सरभससुरनिकायसंतानककुसुमसमूहसोभितं । निरवधिगुरुगंभीरभववारिविनिपतितजंतुतारकं । मदनमहेभकुंभनिर्भेदनपडुतरकेसिरिक्रियं । प्रथमजिनस्य नमत चरणाम्बुजमभिनवपल्लवारुणं ||१९५।।" तं सोऊण कुमारो अणुवमगुणवीयरायभत्तीए । वरगीयगुणक्खित्तो नियहारं देइ खयराण ||१९६।। अवि य- दिवसयरकरनिहित्तो नक्खत्तगणोव्व उज्जलाभोओ । जो खीरसायरो इव आवासो सयलरयणाण ||१९७।। गयणनईपवहो इव अगोयरो अन्नमहिहरिंदाण । सोहइ सहावरम्मो वंचणपासोव्व लच्छीए ॥१९८॥ जलहिमहणुग्गयाए सुरासुराणंपि पत्थणिज्जो जो । . दीहरनयणकडक्ख-क्खेवसमूहो इव सिरीए ॥१९९॥ भूसियअसेसभुयणत्तणेण पयडियजहत्थनियनामो । सो भुयणभूसणो खेयराण दिन्नो महाहारो ॥२००। अच्चब्भुयचायगुणल्हसंतसविसेसविम्हयरसेहिं । देवाईहिं सनिहुयं अन्नोन्नं भणिउमाढत्तं ॥२०१।। . पेच्छह अच्छरियकरं इमस्स सव्वंपि चेट्ठियसरुवं । सम्मं भाविज्जंतं न कस्स आणंदए हिययं ? ॥२०२।। Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २० रूवममाणुससरिसं तंपि असामन्नललियलायन्नं । लडहवियड्डो वेसो इस्सरियं विजियसुरलोयं ॥ २०३ ॥ असमो गुणाणुराओ गुणन्नुया कावि एत्थ अउरुव्वा । असमा य चायसत्ती एमाइ अनंतगुणनिलओ || २०३ || जाई अकारणं चिय असरिसमाहप्प-तेयवंताण | तिणसंभवो वि अग्गी न डहइ किं तरुसमुग्धायं ॥ २०५ ॥ तेयस्सिनो वि अम्हे तियसा वि इमस्स मणुयजाइस्स । कुमरस्स पुरो सव्वे संजाया रोरसारिच्छा ॥ २०६॥ एत्यंतरे सुरेणं सोहम्मनिवासिणा हरिसमेण । हरिविकुमो पभणिओ अनंततेयाहिहाणेण ॥ २०७ ॥ हरिविकुम ! ओहामिय-तिलोय ! अच्चब्भुएण रूवेण । वरचक्कवट्टिलक्खण-निवहेहिं य निययनाणेण ॥ २०८॥ मुणिओ सि नरिंद ! तुमं न होसि सामन्नमाणुसायारो । तुह दंसणेण इहि मन्नामि कयत्थमप्पाणं ||२०१॥ सफलीहूया जत्ता पत्तं नयणेहिं अणिमिसत्तफलं । तु खणगोट्ठीए चिय मन्नामि पवित्तमप्पाणं ||२१० || नणु सहामि एहि नरिंद ! तुह दंसणेण निब्भंतं । जं किर “वसुहा एसा बहुरयणा” इय पसिद्धिं पि ॥ २११ ॥ ता जइ न कज्जपीडा उवरोहं जइ न मन्नसि मणम्मि । ता उसहसामिपुरओ गच्छामो दोवि कज्जवसा ।।२१२।। हरिविकुमेण भणियं जं तुब्मे भणह तं चिय करेमि । इय दोवि देव - कुमरा गया समीवं जिणंदस्स ॥ २१३॥ १. इन्द्रसामानिकेन ॥ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . २१ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ तो भणियं देवेणं कस्स न सगुणेसु आयरो होइ । ता कुणसु मज्झ वयणं अलंघणीया जओ देवा ।।२१४।। पुव्वभवुप्पन्नो च्चिय पणओ मणुयाण कुणइ संबंधं । अहवा सुहकम्मुदओ तइयं पुण कारणं नत्थि ॥२१५।। जइ वि तुह गुणगणावज्जियव्व नरनाह ! सेवया अम्हे । उवइससु तहवि नरवर ! जं विसमं किंपि कायव्वं ॥२१६।। इय सोउं सुरवयणं 'हाह'त्ति करेहिं पिहियकन्नेण । हरिविकुमेण भणियं किमणुचियं देव ! आएसं ॥२१७।। देवा तुब्भे पूयारिहा य अम्हेहिं तुम्ह आएसो । कायव्वो संपज्जइ सव्वमह तुह पसाएणं ।।२१८।। देवो भणइ अमोहं देवाणं दंसणं इय पवाओ । मा होउ असच्चो नरवरिंद ! तेणग्गहो मज्झ ॥२१९॥ हरिविकुमेण भणियं एवंविहदेवयापणामेण । संपन्नधम्मचिंतामणिस्स तुह दंसणममोहं ।।२२०॥ देवो भणइ अजाणिय-पत्थणरूवस्स पत्थणा निंदा । अम्हं तब्भंगे पुण अइगरुओ होइ मणखेओ ॥२२१॥ ता अकयवियारेणं मह वयणं सव्वहा वि कायव्वं । जइ अन्नहा वि कत्थसि ता तुह तित्थयरपयआणा ।।२२२।। उसहस्स पहावेणं वज्जो व्व कुमार ! अक्खयसरीरो । होहित्ति सत्तवाराओ फंसिओ अणंततेएणं ।।२२३।। जल-जलण-महाउह-दुद्रुसत्त-संगाम-वाहि-उग्घाया । सुर-असुर-मणुय-विज्जाहराओ तुह नत्थि भयसंका ।।२२४।। Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ भणियं कुमरेण तुहा - णुहावओ किंपि होइ तं होउ । मन्नामो तुह सुरवर ! महापसायं सिरेणम्हे ||२२५|| तो पुच्छिऊण कुमरं सहसा अदं( इं )सणीहू ( हु ) या देवा । कुमा (म) रोच्चिय एकुंगो थक्को जिणभवणमज्झमि ॥ २२६ ॥ तो गंधव्वपुरं पिव भवस्सरूवं व इंदजालं व । तं खदिट्ठे न दणं चिंतई कुमरो ॥ २२७॥ अहह सुराणं जह रूव- रिद्धिमाई गुणा असामन्ना । सोजनं पि हु ताणं नूणमसाहारणं होइ ॥ २२८॥ इह पयइसज्जणाणं हिययाइं न अहिलसंति उवयारं । अणुकूलयमणुवित्तिं चाटुकयं वयणविन्नासं ॥ २२९॥ पयईए निरवेक्खा पच्चुवयारम्मि हुति सप्पुरिसा । कप्पदु (हु) मव्व दुत्थिय - जणदिन्नमणिच्छियफलोहा ॥ २३० ॥ इयमाइ बहु कुमारो देवाणुगयं मणम्मि चिंतेउं । सहसत्ति खिवइ दिट्ठि पडिमाए उसहसामिस्स ॥२३१॥ चिंतइ य वंचिओ हं अदंसणेणं जिणस्स चिरकालं । नहि पुन्नवज्जियाणं जिणिदमुहदंसणं होई ॥२३२॥ इय सुद्धज्झवसाओ काऊण पणाममुसहसामिस्स । जिणभवणाओ कुमरो नीहरिओ गंतुमारद्धो ॥ २३३॥ तो अजियविकुमो विय लग्गो अणुमग्गओ कुमारस्स । चिंतइ देवेण समं अणेण किं मंतियं अंतो ? || २३४ || अच्छउ किं तेण महं एसो गुणपयरिसेक्कआवासो । देवेहिं मि (? पि) जो एवं मन्निज्जइ तस्स को सरिसो ? || २३५ || Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ एक्को च्चिय परमगुणो पुत्तस्स न जाणिओ मए कहवि । नामस्स जो अभिधे[ओ] किंरूवो विक्कमो होही ? ॥२३६।। पेच्छामि ता सयं चिय कोवुब्भडभिउडिभीसणं वयणं । केरिसमिव संजायइ इमस्स ता तं परिक्खेमि ॥२३७।। ता वियडपयब्भरक्खेवदलियवसुहेण रायराएण । सहसत्ति हक्किओ सो सरउद्दरवं च सो भणिओ ।।२३८।। रे कस्स तुमं ? को वा ? कस्स बलेणं च भमसि एगागी । घोरंधयारभीसणरयणीए तकरायारो ? ॥२३९।। तं सोऊण कुम(मा)रो चिंतइ रणरहसजायरोमंचो । सगुणव्व मज्झ जाया अकालचरिया वि अज्जेसा ॥२४०।। दीसंति वीरपुरिसा सगव्ववयणाई ताण सुव्वंति । सेरोलावसुहेणं अप्पा वि हु लहइ परितोसं ॥२४१।। निव्वडइ पोरुसं पि य अच्छरियसयाई एत्थ दीसंति । तम्हा रयणिविहारो उचिओ इव मज्झ पडिहाइ ।।२४२।। इय चिंतिऊण तेणं अखुद्धहियएण सोवहासमिणं । हरिविकुमेण वयणं भणियं हेलाए नरनाहो ॥२४३।। जं भणियं 'कस्स तुमं ?' तं तुह वयणं असंगयं जम्हा । सव्वेसिं इह पढमं सत्ता नियजणणि-जणयाण ॥२४४॥ पच्चक्खो पुरिसो हं न होमि वघो(ग्घो) न रक्खसो वीर ! । पच्चक्खे वि पमाणे 'को सि तुमं' जंपसि अलीयं ।।२४५।। 'भमसि य कस्स बलेणं ?' जं भणियं तंपि तुज्झ साहेमि । पढमं रयणीए बलं बीयं पि इमं निसामेसु ||२४६।। १. सरौद्ररवं ॥ २. स्वैरालापसुखेन ॥ Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४ इह दुब्बलाण जायइ बलं नरिंदो असेसवसुहाग इय एत्थ अजियविक्कम-बलेण वि तओ परिभमः || २४७ ।। सोउं वयणं राया सोल्लुंठं तस्स चिंतइ मणम्मि अहह अखोब्भो हियए वयणाइ वि ललियवक्काई ॥ २४८ ॥ ता कोवयामि इहि साहिक्खेवं तओ भणइ राया । किं भन्नइ जाणिज्जसि तुमं पहाणो नरिंदगिहे ॥ २४९ ॥ निल्लज्ज ! किन्न लज्जसि निययाणं चेव पंचभूयाणं । जंपतो मह पुरओ नरनाहबलं असद्धेयं ॥२५०|| हरिविकुमेण भणियं न मए अप्पा पहाणभावेण । भणिओ किं तु महायस ! पयासिओ दुब्बलत्तेण ॥२५१ ।। किं जेत्तियाओ राया पयाओ पालेइ एत्थ वसुहाए । जाणेइ तत्तियाओ पच्चेयं नाम - थामेहिं ? ॥२५२ ॥ जा जस्स होइ सत्ती सो तं सव्वायरेण पयडेइ । दुव्वयणभासणे च्चिय तुह सत्ती न उण अन्नस्स ॥ २५३॥ राया चिंतइ पेच्छह अइगरुयपरक्कमे वि खंतिगुणो । निब्भच्छिओ वि एसो तहावि कोवं न उंव्व ॥ २५४ ॥ ता तह भणामि संपइ नीसंदिद्धं करेइ जह कोवं । इय भाविऊण राया सन्निट्ठूरं (सनिठुरं ) भणिउमादत्तो ॥ २५५ ॥ रे रे ! किं मह पुरओ कावुरिस ! पयंपसे असंबद्धं ? | धरिओसि मए रक्खउ जइ बलिओ तुज्झ नरनाही || २५६ ॥ कुमरो भणइ धरिज्जसु सुदिढं मा कहवि तुह विच्छु ( छु ) ट्टेही । राया भणइ लहिस्सं तुह उवहासाण पज्जंतं ॥ २५७ ॥ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ ! 1 Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ अन्नं सो तुह राया पायारभरंतरे परं अत्थि । नयरीए पुणो बाहिं अहमेव नराहिवो एत्थ ।।२५८।। कुमरो चिंतइ को उण एस दुरायारचेट्ठिओ पावो । तायं अहिक्खिवंतो पयासए पोरुसं निययं ॥२५९।। ता होउ जो व सो वा एसो अच्चाहियं पयासंतो । होइ न उवेक्षणीओ अवहीलंतो महारायं ।।२६०।। कुमरेण तओ भणियं अहो महावीर ! सच्वयं एयं । राया सि तुमं पायं कहं अनहा(कहमन्नह) भाससे एवं ।।२६१।। ता जइ सच्चं एयं ता पयडसु अज्ज निययरायत्तं । एसो तुह सिक्खत्थं रणज्जुइं (?) कडसु किवाणं ॥२६२ ।। रायाह न खग्गेणं दुवे वि जुज्झाम मल्लजुज्झेणं । कुमरो भणइ तुहेच्छा जह जुज्झसि तहय जुज्झम्मि(जुज्झामो) ॥२६३॥ मुक्काई किवाणाइं संजत्तियकेस-निवसणा दोवि । अन्नोन्नाभिमुहेणं परिट्ठिया मल्लजुज्झत्थं ॥२६४।। एत्यंतरे कुमारो गयणयले दूरमुड्डिओ सहसा । अप्फालियभुयदंडो दडत्ति धरणीयले पडिओ ॥२६५।। दढयरभुयदंडअयंडताडणुत्तसियसयलजियलोयं । नीसहपयभरालयं थरहरइ महीयलं सहसा ।।२६६।। हरिविकूमकमतलविसमताडणाजायबिउणभारं व । चंप्पि(पि)यफणासहस्सो कहकहवि फणी धरं वहइ ।।२६७।। निवडतदुमसहस्सं पड़तपासायसयदुरालोयं । नरवइणो भयजणणं कुमारपरिवग्गियं जायं ॥२६८।। Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ तत्थत्थि खेत्तवालो खंडकवालोत्ति नयरिसुपसिद्धो । खडहडियसिरह(सिहर)भायं देवउलं निवडियं तस्स ॥२६९।। पासायवडणयपयडियकोवो सो तक्खणेण पलओव्व । भुयणस्स वि भयजणओ धाओ हरिविकुमाभिमुहं ।।२७०।। जा अभिट्टइ पिउणो पउणीकयसव्वपरियराबंधो । ता हक्कंतो सहसा समागओ ताण पासम्मि ॥२७१।। अवि य-निम्मंसदीहदेहो विसमनसाजालजडिलियावयवो । घणवेल्लिजालनद्धो संसुक्को तालरुक्खोव्व ॥२७२ ।। अइकसिणदेहमंसल-मसिमसिणपहाहिं गयणधरणियलं । लिंपतो इव दिट्ठो करालमुहजालदुपे(प्पे)च्छो ॥२७३।। दढदीहअट्ठिसंठाणमेत्तजंघोरुदंडजुयभीमो । । कडिवग्घचम्मनिवसण-महाहिकयपट्टियाबंधो ॥२७४।। निम्मंसउयर-कुहरंतरालझुलंतअंतहारलओ । हिययट्ठिपंजरंतरनिन्नुन्नयभायभयजणओ ॥२७५।। अइदीहकंधराकीलकोडिनिम्मंसठियकरोडिव्व । निच्छोल्लियगल्लपलट्ठिमेत्तमुहभायदुपे(प्पे)च्छो ॥२७६।। गुरुकूवसलिलसंकेतरविसमायारकविलभीमच्छो । कन्नंतरालझुलंत-पुरिससिरकुंडलाहरणो ॥२७७।। दरकुडिलकडारुव्वुद्धकेसअहकायकसिणमसिवन्नो । जालासयपज्जलिओ तलघणनूमोव्व हव्ववहो ॥२७८।। अइरोसवसनिकरिसिय-दसणुब्भडकडयडारवकरालो । करकलियअद्विखंडुग्गकत्तियानिहसणसयण्हो ॥२७९।। Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सेरिभुयणसुंदरीकहा ॥ तं दद्रूण कुमारो अइकसिणकरालकायबीभच्छं । उप्पन्नकोऊ(उ)हल्लो पभणइ नरनाहमुद्दिसिउं ।।२८०।। किं एयं मह साहसु सत्तं का होज्ज जीवजोणी वा । किं तिरियजाइओ को वि कीडओ एस संभविही? ।।२८१।। रयणीए कीडयाई बाहिं नीणंति इय किर पसिद्धी । किं वा कोइ मणुस्सो अउच्चदीवंतरुप्पन्नो ? ॥२८२।। ता कहसु सुहड ! मज्द इइगरुयं कोउयं, भणइ राया । किं उच्छुक्को एसेव तुज्दा कहिही नियसरूवं ।।२८३।। तो किडिकिडंतजंघट्ठिवियडपयक्खेवपयडियामरिसो । कक्कससदं कुमरं सनिट भणइ खेत्तवई ।।२८४।। रे रे दुट्ठ नराहम ! दुविय ! दुव्वियड्ढ ! अविणीय ! । किमहं तए न नाओ खंडवालोत्ति खेत्तवई ? ।।२८५।। इह नियडे देवउले वत्थव्वा इह पुरीए सुपसिद्धो । मं अभिभविउं पयडसि परकम अत्तणो पाव ! ? ॥२८६।। तव्वयणायन्नणजायनिच्छओ भणइ रायपुत्तो वि । मा खेत्तवाल ! एवं जंपसु अविणिच्छियं कज्जं ।।२८७।। जइ मण-वइ-कायाणं एगेण वि तुज्झ परिभवो विहिओ । ता तुममेव पमाणं देवो खु तुमं विमलनाणो ।।२८८।। तो भणइ खेत्तपालो दुन्नयमस सयं करेऊण । एण्हि मह भयभीओ अलियं पडिउत्तरं देसि? ॥२८९।। एण्हि चिय वीसरियं पयभरकंपंतदलियमहिवीढं । पाडियदिढसिलबंधं पासायनिवाडणं मज्झ ? ॥२९०॥ Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ कुमरो भणइ न बुज्झसि एवं भणिओ वि सामवयणेहिं । ता भण किं तुह कीरइ ? तुह अहिलसियं करिस्सामि ॥२९१॥ तो भणइ खेत्तवालो पोरुसगव्वुत्तुणो परिब्भमसि । ता तं तुह निम्मूलं रणम्मि दप्पं हणिस्सामि ॥२९२।। तो कुमरेणक्खित्ता दुवे वि नरनाह-खेत्तवाला ते । एह समं चिय ढुक्कह एगो वि हु दोवि निहणिस्सं ॥२९३।। तो खेत्तवई जंपइ मए समं भिडसु ताव रे धिट्ट | पच्छा एएण समं जं रुच्चइ तं करेज्जासु ॥२९४॥ कुमरेण तओ भणियं वीर ! तुम ताव अच्छ मज्झत्थो । जिणिऊण खेत्तवालं तए वि सह जुज्झइस्सामि ।।२९५।। तो अप्फोडियभुयदंडघायनिरघायबहिरियदियंतो । अभिट्टइ हरिविकुम-कुमरो किर खेत्तवालस्स ।।२९६।। रणरहसपुलइयतणू कुमरो दुईसणो य खेत्तवई । जुगवं समोत्थरंता रसव्व नं वीर-बीभत्सा(च्छा) ।।२९७।। अभिट्टइ विच्छुट्टइ ओहट्टइ लोट्टइ(ई)य खणमेत्तं । पहरइ नीहरइ खणं कुमरो रक्खेण अक्खित्तो ॥२९८।। अइनिठुरकुमरपहार-ताडिओ उव्वमेइ रुहिरोहं । तव्वेलुव्वेविरदेहदंडपरिनीसहो रक्खो ||२९९।। आसासिऊण य खणं जा कुमरो तस्स पहरइ खणद्धं । बहुवेयालाण तउ समंतओ सेन्नमोत्थरियं ॥३००।। दठूण रणरसुव्बूढबहलरोमंचकंचुउच्छइओ । सेन्नं पसरइ पसरंतहिययसंतोससुहिओ व्व ॥३०१॥ Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ कह अवणिज्जइ एगेण मज्झ रक्खेण रणरसबुभुक्खा । निव्वडियपोरुसं सेन्नमेव मह पहरइ न जाव || ३०२ || इय चिंतिऊण कुमरो पहरइ पहरंतसव्ववेयाले । दढसंवड्डियरणरस-मच्छरसंजायउच्छाहो ||३०३॥ एक्को वि अणेगाणं रणंगणे अगणियन्नसामत्थो । पीडं जणेइ कत्तिय - मासे जरओव्व सत्ताणं ॥ ३०४ || एक्को तलहत्थपहार - ताडियो पडइ पाडियसहस्सो । पडणपरंपरचमढणभीयं पिव भज्जए सेन्नं ॥ ३०५ ॥ पहरंतभुयादंडं अवरुंडिय संठिए य वेयाले । अच्छोडिऊण पाडइ कीडयनियरेव्व अकिलेसं ||३०६ || तो चिंतेइ कुमारो न किंपि एएहिं बहुतरेहिं पि । गहिऊण तओ चलणे उच्चल्लइ खेत्तवालं पि ॥ ३०७|| तो भाविऊण गयणे तेणं चिय पहरणेण नीसेसं । जा ताडिउं पयट्टो वेयालबलं विरसमाणं ॥ ३०८ ॥ ता अप्पाणं पेच्छइ पुरओ नरनाहमेव एकल्लं । तं पुण वेयालबलं न याणियं कत्थवि गयं ति ॥ ३०९ ॥ तं कत्थ गयं सेनं खंडकवालो वि कत्थ वि पलाणो । अहवा मायाबहुलो वेयालजणो सया होई ॥३१०॥ एत्थंतरम्मि हसिऊण सहरिसं अल्लियंतभुयदंडो । वसुहाहिवस्स सहसा अभि ( ब्भि) ट्टइ जा किर कुमारो ||३११|| ता नरवइणा भणिओ मा मं बीभच्छ ! च्छ्विसु अच्छेप्प ! । वस - मंस - रुहिरलित्तो वेयालसरीरसंगेण ॥३१२॥ २९ 7 Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३० सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ इह नाइदूरदेसे सरोवरं अत्थि विमलजलभरियं । ण्हाऊण तत्थ तुरियं आगच्छसु तयणु जुज्झामो ॥३१३।। एवं करेमि तुरियं खग्गं घेत्तूण निग्गओ कुमरो । चिंतेइ महाराओ अवलोइयपुत्तसामत्थो ॥३१४।। लद्धा पुत्तपरिक्खा एयस्स वि. जत्थ खेत्तवालस्स । सेन्नसहियस्स एवं का गणणा तस्स अम्हेहिं ? ॥३१५।। सिद्धं सज्झं संपइ हरिविकुमभुयबलं च पडिवन्नं । एयस्स रणे मल्लो पुरंदरो जइ परं होइ ।।३१६।। सव(व्व)त्थ जयं वंछंति सपु(प्पु)रिसा जीवियव्वचाए वि । पुत्ताओ च्चिय सोहइ पराजओ इह परं एगो ॥३१७।। जइ कहवि समागच्छइ तुरियं ण्हाऊण रणरससयण्हो । ता नत्थि तओ मोक्खो अदिन्नसमरस्स मह निययं ॥३१८॥ इय चिंतिऊण राया तुरियगई जाइ तप्पएसाओ । ल्हुक्कइ चंडीभवणा पडिमापुट्ठीए सुयभीओ ।।३१९।। कुमरो वि सरवरे ण्हाऊण रणभूमिमागओ तुरियं । पेच्छइ न महारायं अह चिंतइ कत्थ सो सुहडो ? ॥३२०।। कहमेत्थ सो न दीसइ ? तायमहिक्खिविय कत्थवि पलाणो । अहवा मं पडिवालइ इह कत्थवि सुन्नदेवउले ॥३२१।। तो देवउल-विहारासम-मढाईसु सव्वठणेसु । परिभमइ गवेसंतो वाहरइ य गरुयसद्देण ॥३२२॥ भो भो पयंडविक्कम ! वीराहिव ! निसिविहारदुल्ललिय ! । भडचूडामणि ! अहयं समागओ किं न तुममेसि ? ॥३२३॥ Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ भीरुं व अक्क(क्ख)मं वा जुज्झाकुसलं व सत्तिहीणं वा । मं गणिऊण अवन्नाए तेण दूरं परिच्चयसि ? ।।३२४।। अपरिक्खियम्मि पुरिसे अदिट्ठरणविक्कमम्मि न हु जुत्ता । काउमवन्ना, तम्हा आगच्छसु मं परिक्खेसु ॥३२५।। इच्चाइ बहुपयारं कुमरो पुक्कारिऊण सव्वत्थ । तं चेव चंडियाभवण-मागओ चंडियं भणइ ।।३२६।। भयवइ ! अहमेत्थ पहे गच्छंतो मग्गिओ रणं जेण । सो निउणं पि गविट्ठो तहावि न मए इहं दिट्ठो ।।३२७।। ता सव्वहा वि तं मह दावसु मह जणयदिन्नदुव्वयणं । कह णु उवेक्खामि अहं एवं कयदुन्नयं वेरिं ॥३२८।। जइ तं न मज्झ दंससि ता तुरियं चंडि ! मह पडिच्छेसु । पवरुत्तमंगमेयं अहवा तं दंस सुहडं मे ॥३२९।। एत्थंतरम्मि राया विणिच्छियं तस्स तव्विहं सोउं । सुयमरणब्भउब्भंतो चिंताजलहिम्मि सो पडिओ ॥३३०॥ कह पेच्छ पाडिओ हं सुएण अइविसमसंकडे कज्जे । संदेहतुलाए ट्ठियं मह जीयं पुत्तजीयं च ॥३३१॥ गरुया रोसिज्जंता अप्पं व परं व संसए नेति । ता किं करेमि संपइ मए अणत्थो सयं विहिओ ॥३३२।। पज्जालिज्जइ अग्गी सुहेण अह सो उ पसरिओ दूरं । कहमिव ओल्हाविज्जइ गरुएहि वि बहुपयत्तेहिं ? ॥३३३।। जाणंतस्स वि कम्मा-णुभावसंजणियबुद्धिपसरस्स । संपडइ तमिह कज्जं तत्थ न पसरंति बुद्धीओ ॥३३४।। Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ इयमाइ बहुं राया जा चिंतइ तत्थ ताव कुमरो वि । नियसिरछेयनिमित्तं आयड्डइ निसियकरवालं ॥३३५।। तत्थुप्पन्नमईए राया संजायमणअवटुंभो । चंडीए पिट्ठभाए चंडीववए'ओ भणइ ।।३३६।। मा कुणसु पुत्त ! साहस-मसमं विरमेसु ताव मरणाओ । तुज्झ महासत्तेणं आकिट्ठा चंडिया अहयं ।।३३७।। कह तं दरिसेमि नरं जो तुज्झ भएण पुत्तय ! पलाणो ? । लग्गति पलंताणं पुट्ठिम्मि न जं महावीरा ।।३३८।। हरिविकुमेण भणियं जइ एवं ता कहं इमं भणइ । बाहिम्मि अहं राया पायारब्भंतरे इयरो ? ||३३९।। तो चंडियाए भणियं ढुक्कुह(?) साहिप्पए तुह निगब्भो । एमेव कोउगेणं मए तुमं विप्पलद्धोसि ।।३४०।। तं सोऊण कुमारो जंपइ ता देवि ! देहि आएसं । गच्छिस्सं मज्झ गुरू मं अविणीयं कलिस्संति ॥३४१।। इय भणिऊण कुमारो विणिग्गओ तयणुमग्गओ राया । दरवियसियमुहकमलो दुवे वि पत्ता सगेहेसु ॥३४२।। पडिसिद्धदुट्ठहिययं अंतोउवसंतसयलवावारं । मुणिमाणसं व भवणं विसइ कुमारो सुधम्मोव्व ॥३४३।। अइकोमलं विसालं अच्चुज्जलममलकुसुमरयसुरहिं । हंसोव्व गंगपुलिणं कुमरो पल्लंकमल्लियइ ||३४४।। अइनिच्चियप[य?]रूवं निरुद्धथिरकाय-करणवावारं । असमसुहिं व समाहिं कुणइ कुमारो खणं निदं ॥३४५।। Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ अह वंससरसुमीसिय-सुगीयरसपूर-भरियसवणजुओ । बहुबंदिविंदकलयल-सद्देण य जग्गिओ कुमरो ॥३४६।। वियसियवयणसरोरुह-पयट्टघणसुरहिपरिमलूसासो । कुमरो पच्चूसो इव रयणिविरामम्मि पडिहाइ ।।३४७।। सिरघडियपाणिसंपुङ-मिलतसरलंगुलीनहमऊहं । पढमं 'उसहस्स नमो' भणिउं परिहरइ पलंकं ॥३४८।। कयसयलगोसकिच्चो मिलंतरणवीरपमुहबहुमित्तो । वच्चइ जणयसमीवं सेवासुहलंपडो तुरियं ॥३४९॥ हियपट्ठियरयणिविहारवइयरारूढगरुयमाहप्पं । दिट्ठो नराहिवइणा इव चित्ते चिंतियं तेण ॥३५०॥ जे पुव्वपुन्नपब्भार-पत्तअइसइयगुणगणसमिद्धा । ते वि सुरा गयगव्वा एएण कया नियगुणेहिं ॥३५१।। सा भत्ती तम्मि सुरा-सुरिंदमणिमौड(मउड) घिट्टचरणम्मि । एयस्स परमदेवे जा थोत्तगया मए निसुया ॥३५२।। उववूहिया अणेणं सावटुंभेण जेण सव्वसुरा । अद्दिट्ठसुरसहेणं कह तं पागब्भमब्भसियं ! ॥३५३।। सो गीयगुणाहिगमो रसन्नुया सा वि जा असामन्ना । चा(ओ)वि भुवनभूसण-हारपयाणेण अइगरुओ ॥३५४।। बालो होऊण अहं एद्दहमेत्तं पवडिओ न उणो । केण वि रणम्मि सहिया मह हक्का एत्थ भुयणम्मि ॥३५५।। एएण पुणो तणमिव कलिऊणं ताव ताव उवहसिओ । मज्झंपि जाव हियए विलक्खिमा कावि संजाया ।।३५६।। Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४ जम्मि हणंतंमि रणे मुट्ठिपहारेहिं रक्खसभडोहं । तालफलाई तरूण व पडंति दंतट्ठिखंडाई ||३५७ || चंडीए पसाएणं सरणागयवच्छलाए छुट्टो हं । इहरा नियदुन्नयसरिस-मेव फलमणुहवेंतो म्हि || ३५८ || इय केत्तियं व भन्नउ एक्क्क्कमिमस्स अणुवमं चरियं । चिंतिज्जंतं सहसा कस्स न हिययं चमक्केइ ! ।।३५९।। अवि य-जं एरिसाण जणयत्तणेण अम्हारिसा वि जायंति । सो कम्म- धम्मजोगो अहवा वि घुणक्खरो नाओ || ३६० ।। एवंविहाण जम्मो जणणी जणयाण पयडणनिमित्तं । ससि-सूराणं उदओ रयणि-दिणाणं व भुयणम्मि || ३६१ || इय तणयगरुयगुणगण- चिंतावसविवसमाणसो राया । पुरओ द्वियंपि कुमरं न पेच्छए तग्गुणक्खित्तो ॥ ३६२॥ जा सावहाणहियओ अवलोयइ ताव आगओ कुमरो । दिट्ठो नराहिवइणा दिट्ठिपसायं विमग्गंतो || ३६३॥ पणमइ पणामचलमौलि (मउलि) मालईद्दामचच्चिए चलणे । पिउभत्तिभरेण निए सिरम्मि संदाणयतोव्व ॥ ३६४ ॥ उवविससुत्ति पलत्ते पसायमाभासिऊण उवविट्ठो । रणवीरपमुहबहुमित्त-मंतिपुत्तेहिं परियरिओ || ३६५ ।। सविणय-सप्पणय-समहुर- सरस- सोवसम - ससमयसयत्थं । खणरज्ज - कज्जहियओ मंतेइ समं सुमंतीहिं ॥ ३६६ ॥ खणकव्व-कहासत्तो खणभरहरहस्सरसियमइपसरो । खणवीरकहा ओव्वूढबहलपुलयंकुरसरीरो ॥ ३६७।। सिरिभुयणसुंदरीकहा || Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ खणमेत्तमहामइविबुहतत्तसंदेहकहियसिद्धंतो । खणलोयदाणविणिउत्तपुरिसकयतुरियआवासो ॥३६८।। खणदेसविसयकंटय-विसोहणो सावहाणमणकिरिओ । खणपरविसयनिवेसिय-नरवइसंपेसियपसाओ ।।३६९।। इय पिउवयणअणुट्ठिय-वावारपरंपराविणोएण । सव्वत्थ सावहाणो जा अच्छइ तत्थ अत्थाणे ||३७०।। ता नरवइणा भणियं किमेस नयरीए दीसए लोओ । सविसेसुज्जलभूसण-नेवत्थो बाहिरे जंतो ? ॥३७१।। अह साहइ वरमंती महोयही परमसम्मदिट्ठी जो । इह देव ! जणो वच्चइ वंदणवडियाए सूरिस्स ।।३७२।। जिन्नुज्जाणे बाहिं नरवर ! बहुसमणसंघपरियरिओ । रयणायरोत्ति नाम समागओ एत्थ आयरिओ ॥३७३।। अइदुक्करतव-चरणेहिं सुसियदेहो वि ललियलायन्नो । कन्नन्तखलियलोयण-जुयलो वि अदिइहलोओ ॥३७४।। पढमवयत्थो वि सया जो पंचमहव्वयाइं उव्वहइ । अहिगयसामन्नो वि हु नीसामन्नत्तणं पत्तो ।।३७५।। हद्धी हवं मह जेण जुवइवम्गो असमंजसे दुविओ । इय वेरग्गाइसया मयणोव्व जइत्तमावन्नो ॥३७६।। बहुभवपरंपरासंगयाण जीवाण को परो एत्थ । इय परदुक्खेहिं सया दुहिओ भुयणस्स बंधुव्व ॥३७७।। रविकोडिअसझं पि हु परहिययगयं जणाण बहुभेयं । जो मोहमहातिमिरं अउव्वभाणुव्व अवणेइ ॥३७८।। Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ अच्चुज्जला वि अणुरायकारिणो दुल्लहा वि हु अणंता । जे केइ मोक्खहेऊ ते तम्मि गुणा परिवसंति ॥३७९।। इय जस्स परं न य किंपि अत्थि सव्वं पि तस्स मज्झगयं । सो रयणरायहाणी सयंभुरमणो समुद्दोव्व ॥३८०।। चउनाणजुओ सोहइ जिणहरसक्कावयारसन्निहिए । अइफासुए विसाले जिन्नुज्जाणे ट्ठिओ सूरी ॥३८१।। तेणागयमेत्तेणं अक्खित्तो इव गुणेहिं पुरिलोओ । कन्ने वयणे कंटे(ठे) हियए संदाणिऊण दिढं ।।३८२।। ता पुत्तजुओ राया सुणिऊण समुज्जले गुणे तस्स । विम्हयकोऊहलभत्तिनिब्भरंगो गओ तत्थ ॥३८३।। जा राया उज्जाणे पविसइ ता पढममेव मुणिवग्गो । तारायणोव्व गयणे दिवो सव्वत्थ विक्खिरिओ ॥३८४।। जा जाइ पुरो ता दिणयरोव्व दुद्धरिसतेयदिप्पंतो । नीसेससहाजणघडियपाणिकुमुओ मुणी दिवो ॥३८५।। तइंसणे निवस्स वि उल्लसियपमोयबाहसलिलम्मि । सा असरिसजणदसण-कयमलव्व पक्खालिया दिट्ठी ।।३८६।। तो सरहसवसुहातल-निहित्तसिर-जाणु-करयलजुएण । बहुभत्तिनिब्भरेणं कओ पणामो मुणिंदस्स ॥३८७।। तेण वि उन्नमियकरेण सायरं थिरनिहित्तनयणेण । अहिणंदिओ नरिंदो सुधम्मलाहेण गुणनिहिणा ॥३८८॥ नमिऊण साहुवग्गं उवविट्ठो तस्स पायमूलम्मि । संभासिउं नरिंदं धम्मं अह कहिउमाढत्तो ॥३८९॥ Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 36 सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ "जीवो अणाइनिहणो घडत-विहडंतकम्मसंबद्धो । गयणविभाउव्व सया अन्नोन्नघणेहिं संजुत्तो ।।३९०।। एयस्स कम्मजोगो अणाइसंताणभवपवाहिकओ । चंदस्स केण कहिओ कलंकसंकामणादि य सो ॥३९१।। सामग्गियावसेणं कम्मग्गिअभिदुओ गइवसेण । पित्तलरसोव्व जीवो परिणमइ अणेगरूवेहिं ॥३९२।। दप्पणसरिसे जीवे तक्कम(म्म?)निउत्तपुरिसविणिउत्ते । तन्नत्थि जं न भुयणे संकमइ नराइयं रूवं ॥३९३।। तं किंपि कम्मवसओ सो जीवो दुट्ठपावमज्जिणइ । जेण घणदुक्खपउरे उप्पज्जइ घोरनरयम्मि ॥३९४।। अइदुब्बले अणाहे भयभीए सरणवज्जिए दीणे । जो हणइ निरवराहे जीवे सो जाइ नरयम्मि ।।३९५।। जं परदुक्खुप्पायग-मच्चंतमसुद्धहिययवावारं । तमसच्चं भासंतो पडइ नरो घोरनरयम्मि ॥३९६॥ जे दोसा जीववहे हरिए वि हु परधणम्मि ते दोसा । तं निग्घिणो कुणंतो सुनिच्छियं जाइ नरयम्मि ॥३९७।। जो परनारिपसंगं हियएण वि अहिलसेइ बहुपावं । सो आयसं जलंतं जुवई अवरुंडए नरए ॥३९८।। जे पावसमारंभा हियएण परिग्गहीयभुयणयला । बाढमसंतुट्ठमणा ते पुरिसा जंति नरएसु ।।३९९।। जो निसि निसायरुच्छिट्ठमसइ अन्नायनर-पसुविसेसो । सो अविवेई पुरिसो नरयम्मि महातमे पडइ ॥४००॥ Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८ . सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ जो मंसमसइ पावो चडप्फडंतस्स करुणजीवस्स । सो तिलमेत्तसुहत्थी मेरुसमं दुक्खमज्जिणइ ॥४०१।। मुच्छियमइचेयन्नं तक्खणमुझंतइंदियविवेयं । अजहत्थवत्थुनाणं पडइ पियंतो सुरं नरए ।।४०२।। जे विसयविसविमूढा कोहाइकसायकलुसियप्पाणो । सव्वत्थ अविरयमणा ते मणुया जंति नरएसु ।।४०३।। जे मिच्छत्तमहागहवसेण अजहत्थवत्थुउवएसा । मोहंति मुद्धजीवे ते पावा जंति नरएसु ।।४०४।। इच्चाइमहादोसा अनियत्तदुरंतरोद्दझाणपरा । दुक्कम्मगलत्थहया पडंति घोरे महानरए ।।४०५।। तत्थ य सहति दुक्खं सुतिक्खकरवत्तफालणं विसमं । कुंभीपायं संडासतोडणं खयरकुट्टणयं ।।४०६।। असिपत्तवणपवेसं सुतत्ततउपायणं दिसिक्खिवि(व)णं । वस-रुहिर-पूय-दुत्तरवेयरणीतरणमइघोरं ॥४०७।। इय नाणाविहबहुदुक्ख-तावतवियाण नरयपडियाण । अच्छिनिमीलणमेत्तं पि नत्थि सोक्खं हयजियाण ||४०८।। तत्तो ट्ठिइक्खएणं उव्वट्टाणं तु होइ उप्पत्ती । एगिदियाइसु तओ विगि(ग)लिंदियमाइसु जियाणं ।।४०९॥ पंचिंदियतिरिएसुं सीहोरगमाइएसु कूरेसु । तत्तो वि पुणो नरए नरयाओ पुणो तिरियवग्गे ॥४१०।। १. अत्र प्रतिमध्ये “गुरुकम्मवसगयाण तिरिक्खजोणीसु जिवाण" इति पाठः दृश्यते, तत्र च] इति चिह्नं दत्त्वा प्रतिनिम्नप्रदेशे (मार्जिन मध्ये) ९ गाथाया उत्तरार्धः त्वरितगत्या लिखितो दृश्यते ॥ Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ इय एवमाइबहुविह परियत्तणपरिगयस्स जीवस्स । जइ कहवि तुडिवसेणं मणुयत्तं होइ संसारे ||४११ || जह गयणे बप्पीहो मेहविमुकुंबुबिंदु मग्गंतो । कहकहवि लहइ एवं जीवो वि हु माणुस जम्मं ||४१२ || जह एक्कुवारफलिओ पुणो न रंभातरू फलं लहइ । इय मणुयत्तभवाओ पुण मणुयत्तं न जीवो वि ।।४१३ || सुविणयरज्जाओ जहा भट्ठो पुरिसो न तं पुणो लहइ । एवं मणुयत्ताओ चुक्को जीवो वि मणुयत्तं ॥४१४॥ इय जोणिलक्खदुत्तर - संसारमहासमुद्दपडियस्स । जीवस्स नेह सुलहं मणुयत्तं कम्मवसगस्स ।।४१५।। पुरिसेणं बुद्धिमया लद्धूण सुचंचलं मणुयजम्मं । एयरस फलं गेज्झं विसुद्धधम्माणुसारेण ||४१६॥ लद्धं पि कम्मपरिणइ-वसैंण हारंति तं महामूढा । रयणं व जयकारा तुच्छधणासाए मणुयत्तं ॥४१७।। राग-द्दोसविमूढा अविवेयवसा अनायपरमत्था । ते अब्भसंति दोसे पडंति ते जेहिं नरएसु || ४१८ || एयं मज्झ कुटुंबं मए विणा असरणयं अणाहं च । इय वामोहियहियओ तस्स कए कुणइ पावाई ||४१९ ।। एवं न मुणइ किं मह सकज्जनिरएक्कज्ज ( ज ) म्मबंधूहिं । बहुभवसुसहायमहं सुधम्मबंधुं गवेसामि ॥४२०॥ अन्ने पुण रागंधा पुरं विसं भोगसुहपरायत्ता । दूरे धम्मारणं सुधम्मकहगं उवहसंति ॥ ४२१॥ ३९ Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ धम्मविणिओयरहियं केइ पुणो अज्जिऊण बहु अत्थं । अह जंति अप्पण च्चिय अत्थो वा अन्नओ जाइ ॥४२२॥ इय एवमाइ सव्वं परमत्थविवेयवज्जिया पुरिसा । सयणित्थि-धणाईयं तमेव मन्नंति परमत्थं ॥४२३।। खेल्लंति जहा डिंभा पुत्तलय-घरुल्लयाइमोहेण । तह मुझंति विमूढा अतत्त-तत्ताणुबंधेण ॥४२४।। इय नाणाविहवामोहमोहिया वंचिऊण अप्पाणं । इहलोयसुहासत्ता हारंति मुहा मणुयजम्मं ॥४२५॥ अप्पाणं भो ! चिंतह लोयस्स कए किमेत्थ मुझेह ? । पज्जलियघरवसेणं नियदेहं मा उवक्खेह ।।४२६॥ तं किंपि सुवुरिसेणं कायव्वं जेण अकयविक्खेवं । भज्जइ गमागमो जोणिलक्खविसमम्मि संसारे ॥४२७।। जह दीहपहपरिस्सम-खीणो उव्विज्जए परिब्भमिउं । इच्छइ बहुसुहअविचल-ठाणम्मि अवट्टिई कोइ ॥४२८॥ तह दीहमहाभवमग्ग-भव(म)णक्खिन्नेण एत्थ बुद्धिमया । सासयसुहम्मि मोक्खे कायव्वो सव्वहा वासो" ||४२९॥ इय जाव सजलजलहर-गहीरसरसरिसमहुरनिग्घोसो । सिरिरयणायरसूरी धम्मकहं कहइ परिसाए ॥४३०॥ ताव सविसेसपसरिय-हरिसवसुब्बूढबहलरोमंचा । जाया घणसमयंकुरकलियव्व मही महापरिसा ॥४३१॥ एत्थंतरम्मि राया आणंदवसुल्लसंतरोमंचो । .. सिरि कलियकरयलंजलि-बंधो विनविउमाढत्तो ॥४३२।। Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ " तुह निम्मलमुहससिदंसणेण मह नाह ! सायरस्सेव । पक्खित्तो दूरेणं लहरीहिं व पावसेवालो ||४३३॥ तुम्हारिसाण नूणं संसारसरूवमणुहवपसिद्धं । वन्नंताण न अलियं निव्वाणसुहं परोक्खं पि ॥४३४॥ जह य महामोहहया पयडंपि न सच्चवंति भवरूवं । निव्वाणपहं पि तहा पच्चक्खं नोवलक्खंति || ४३५ || ता करुणायर ! साहसु गिहत्थभावोचियं परमधम्मं । जेणाहमणन्नमणो सम्मत्तं संपवज्जामि ||४३६|| तो तव्वयणविरामे भयवं भवजलहिजाणवत्तं व । सासयसिवतरुमूलं धम्ममिमं कहइ संखित्तं ॥४३७॥ " धम्मो नरिंद ! पढमो जईण, सो दसविहो समक्खाओ । खंताईओ, बीओ गिहीण, सो बारसविभेओ || ४३८ || पंच य अणुव्वयाइं गुणव्वयाइं च हुंति तिन्नेव | सिक्खावयाइं चउरो गिहिधम्मो बारसविभेओ ।। ४३९ || एयस्स दुभेयस्सवि सम्मत्तं मूलकारणं होइ । जह अंकुररस बीयं जह य सरीरस्स जीवो वि सव्वकिरियाजुओ वि हु नीसम (म्म ) तो न सोह धम्मो । संपुन्नसरीरो वि हु नयणविहीणो जहा पुरिसो || ४४१ || तं सम्मत्तं दुविहं निसग्गतो होइ अहिगमाओ वि । जं कम्मखओवसमा संपंज्जइ तं निसग्गकयं ||४४२ || जं पुण नाणाहिगमा अहिगमसम्मं च तं विणिद्दिनं । तत्तत्थसद्दहाणं सम्मत्तसरूवमिह होइ || ४४३ ॥ ||४४० || ४१ Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२ जीवाजीवासवसंवरे य तह निज्जरा य बंधो य । मोक्खो इमाइ सत्त वि तत्ताइं जिणेण भणियाई || ४४४ || उवओगलक्खणा जे ते जीवा जिणवरेहिं पन्नत्ता । चित्तं चेयण - सन्ना - विन्नाणाई य उवओगो || ४४५ || विवरीया य अजीवा पावदुवाराइ आसवो होइ । तेसिं च जो निरोहो जिणेहिं सो संवरो भणिओ ||४४६ ॥ तव-संजमाइएहिं कम्मावगमो हु निज्जरा भणिया । मिच्छारकारणेहिं कम्मादाणं तु सो बंधो ||४४७ || गुरुकम्मट्ठविमुको जीवो पयईए उद्धगइगमणो । जत्थच्छइ सो मोक्खो सासयसोक्खो जिणक्खाओ ||४४८ ॥ एयाणं तत्ताणं सद्दहणं सम्मदंसणं होई । तं उवसमाइएहिं लक्खिज्जइ इह उवाएहिं ।।४४९ ।। पयईय व कम्माणं वियाणिउं वा विवागमसुहं पि । अवरा वि न कुप्पइ उवसमओ सव्वकालं पि ॥ ४५० || नरविबुहेसरसोक्खं दुक्खं चिय भावओ उ मन्त्रंतो । संवेग्ग ( ग ) ओ न मोक्खं मोत्तूणं किंपि पत्थेइ ||४५१ || नारय- तिरिय - नरामर - भवेसु निव्वेदओ वसइ दुक्खं । अकयपरलोयमग्गो ममत्तविसवेयरहिओ वि ||४५२ || ठूण पाणिनिवहं भीमे भवसागरम्मि दुक्खत्तं । अविसेसओ अणुकंपं दुहावि सामत्थओ कुणइ ||४५३ || मन्नइ " तमेव सच्चं नीसंकं जं जिणेहिं पन्नत्तं" । सुहपरिणामो सव्वं संकाइविसोत्ति [ या ] रहिओ ।।४५४ ॥ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ . Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ एवंविहरपरिणामो सम्मदि (हि) ट्ठी जिणेहिं पन्नत्तो । एसो उ भवसमुद्दं लंघइ थेवेण कालेणं ॥ ४५५॥ सम (म्म) त्तमला नेया संका कंखा तहेव विचिगिंच्छा । परपासंडिपसंसा ताणं चिय संथवाई य ||४५६ || संसयकरणं संका कंखा अन्नोन्नदंसणा (ण) ग्गाहो । संतम्मि वि विचिगिंछा सिज्झेज्ज न मे अयं अत्थो ||४५७ ॥ परपासंडिपसंसा सोगयमाईण वन्नणा जा उ । तेहि सह परिचओ जो स संथवो होइ नायव्वो || ४५८ || अन्ने वि य अइयारा आईसद्देण सूइया एत्थ । साहम्मिअणणुवूहण-अथिरीकरणाइया नेया || ४५९॥ इय सम्मत्तं नरवर ! पडिवज्जसु सव्वहा असढचित्तो । सिद्धे इमम्मि इयरे धम्मारंभा पसीयंति ॥ ४६०|| नियहिययसत्तिसरिसं तुच्छं पि नरिंद ! तुह अणुट्ठाणं । सव्वं जायइ सहलं सम्मत्तविसुद्धचित्तस्स || ४६१ ॥ कम्मारन्नदवगिंग सिवतरुबीयं च होइ सम्मत्तं । भवचारगाओं पुरिसं मोयावइ नत्थि संदेहो ||४६२ || पडिवन्ने सम्मत्ते पडिवज्जसु देसविरइरूवाई | थूलगपाणवहाइ- अणुव्वयाई अणुक्कमसो ||४६३ ॥ तिन्नि य गुणव्वयाइं दिसिवयमाईणि निरइयाराणि । सिक्खावयाइं चउरो पडिवज्जसु सम्मभावेण ||४६४ || एवं बारसभेयं गिहिधम्मं नरवरिंद ! सेवंतो । पाविहसि परं मोक्खं अइरा इह नत्थि संदेहो" ।। ४६५ ।। ४३ Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ इय सोउं नरनाहो धम्मं सम्मत्तसोहियं ससुओ । गिण्हइ गुरूसगासे सम्मं रंकोव्व रयणनिहिं ॥४६६।। ते वंदिऊण सूरिं पविसंति पुरीए दोवि पिउ-पुत्ता । सेवंता जिणधम्मं चिट्ठति जहासुहं तत्थ ॥४६७।। अह अन्नदिणे राया अत्थाणत्थो महोयहिसमेओ । जावच्छइ हरिविकुम-कुमारउच्छंगकयचलणो ||४६८।। ताव पणामाणंतर-सिरनिबिडघडंतसंपुडकरग्गो । विन्नवइ महारायं पडिहारो सविणयं एयं ॥४६९।। इह देव ! वैरिसीहेण पेसिओ दूरदंडयत्ताओ । दारम्मि लेहवाहो चिट्ठइ, को तत्थ आएसो ? ॥४७०।। तो भूसन्नाणुमउ(ओ) पडिहारपवेसिउ पवणनामो । दिट्ठो नराहिवइणा तक्खणमेत्तागओ तुरिओ ।।४७१।। पहखेयखिन्नदेहो आजाणुवलग्गधूलिधूसरिओ । समसेयबिंदुवहभालकलियरविकिरि(र)णसंतावो ॥४७२॥ अणवरयगमणसीउण्हवायपरिसुसियमंस-रुहिरतणू । चलणग्गमहावत्तो वाउविमाणे व्व आरूढो ॥४७३।। वामंगखंधलंबिरपोत्तयपक्खित्तदक्खिणकरग्गो । लेहक्खेव-पणामे किमेत्थ पढमं ति चिंतंतो ।।४७४।। पवणो पणमइ देवत्ति दंडिभणिएसु सावहाणेसु । पक्खित्ता नरवइणा लेहे पुण तम्मि नियदिट्ठी ॥४७५॥ तो तन्निउत्तपुरिसेण सिढिलिए तम्मि भुज्जलेहम्मि । अणुमन्निएण य तओ पवाइयं तत्थिमं कज्जं ॥४७६॥ Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ “सत्थि सिरिसंजुयाए अउज्झनयरीए असममाहप्पं । सिरिअजियविकुमपहुं हरिविकुमकुमरसंजुत्तं ।।४७७।। सिरिविजयमहाकडया सेणाहिववैरसीहनरनाहो । नमिऊण विणयगब्भं विन्नवइ कयंजलीबंधो ।।४७८।। असमत्थो वि समत्थो पहुपरमपयावपोसिओ होइ । रविकतो किं न डहइ रवितेयगुणेण भुयणं पि? ॥४७९।। जा आसि महीहरकोडिसंकडा तुह पयावभमणत्थं । . (पूर्वमिन्द्रेण पर्वतपक्षच्छेदे कृते च्छिन्नपक्षा अयथाक्रमं भूमिपतिताः गिरय पृउ(?)नाम्ना राज्ञा धनुरकोट्या उत्साहिता इति लौकिकी प्रसिद्धिः ।।) पहुणाव्व सचावेणं कया धरित्ती मए वियडा ।।४८०॥ कइयावि सकोवेणं कयावि ससिसीयलेण अ कयावि । सम्माणदाणविहिणा दइयव्व पसाहिया पुहई ॥४८१॥ जे तुह निम्मलनहकिरणदीहसरियासहस्सदुल्लंघे । पयपंजरे निलीणा नरवइणो ते परं सुहिया ॥४८२।। जे तुम्ह पायवीढं तरंडमिव सव्वहा न मेल्लंति । ते मह करवालजले नरिंद ! रिउणो न मज्जंति ।।४८३।। जे वणवासे पासंडधारिणो जे समुद्दपरतीरे । मोत्तूण ते नराहिव ! अन्ने निहया मए रिउणो ।।४८४॥ जं पुरिसयार-ससरीर-बुद्धि-संपत्तिसज्झमिह किंपि । तं साहियं असेसं अपोरिसं तं मह असज्झं ॥४८५।। इय नीसेसमहीयलनिक्कंटीकरणवासणाए अहं । द्रविडनरिंदस्सुवरिं तव्विसयं पत्थिओ जाव ॥४८६।। Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ ता सोवि असहमाणो अम्ह बलं सयलनियबलसमेओ । कंचिनयरीओ तुरियं विसमयरं दुग्गमणुसरिओ ॥४८७।। तत्थेव द्रविडविसयंतवासि-अइविसममलयगिरिनियडं । । नामेण अलंघपुरं मणोरहाणं पि हु अगम्मं ॥४८८।। चउदिसि बारसजोयण-निज्जलमइनिबिडविडविघणगुम्मं । गुम्मततिक्खकंटयपरंपरानिहयसंचारं ॥४८९।। जइ खंडिज्जइ पल्लवमेत्तं पि हु तस्स बाहिरवणस्स । ता वाणवंतरो कोवि देव ! पीडेइ तुह सेन्नं ॥४९०।। न विणय-पणाम-पूया-धूय-क्खय-कुसुम-गंध-दीवेहिं । उवयरिओ वि हु तूसइ जम्मंतरवेरिओव्व सुरो ॥४९१।। ता देव ! वाणमंतरबलेण वणदुग्गगुरुबलेणं च । बहुभंडारपरिग्गहबलेण सव्वेण सो बलिओ ।।४९२।। देवाणुहावओ सव्व वत्थु-संपत्तिसुत्थिओ सययं । जं जं हियए चिंतइ तं तं सव्वं पि संपडइ ॥४९३।। अम्हं न बुद्धि-पोरिस-विसेसववसायगोयरो देव ! । न य सामाइचउव्विहनीई वि हु तत्थ मे फुरइ ।।४९४।। ता सो महाबलो नाम खत्तिओ सुरबलेण बलवंतो । तप्पडियारो तुरियं कायव्वो केणइ नएण" ।।४९५।। इय सव्वं लेहत्थं सोऊणं राइणा तओ पवणो । सम्माणिऊण बहुयं आवासं पेसिओ य गओ ।।४९६।। सहसत्ति तओ दिट्ठी नराहिवइणो महोयहिम्मि गया । तेणावि निवो भणिओ अइगरुयं देव ! तं कज्जं ॥४९७।। Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ जुत्तं चिय विनवियं सेणाहिववैरसीहराएण । पहवामि पोरुसे जं देवायत्ते न उण कज्जे ॥४९८॥ इह पुरिसयारसज्झे कज्जे मंतीण पसरए मंतो । देवायत्ते उण ताण देव ! विहडंति बुद्धीओ ।।४९९॥ कज्जे ससत्तिसरिसे लहइ सलाहं नरो पयट्टतो । नियसत्तिअसज्झे उण मरणमकित्तिं च पावेइ ।।५००।। नियबलसज्झे वेरिम्मि विक्कमो फलइ देव नन्नत्थ । सीहस्स व घणवंद्रे उट्ठाणं होइ मरणाय ।।५०१।। ता देव ! जाव न सुरो अवयारं कुणइ किंपि तुह सेन्ने । ता एत्थ वैरसीहो आणिज्जउ नियसमीवम्मि ॥५०२॥ तो नरवइणा भणियं सच्चमिणं जंपियं तए मंति ! । एसो च्चिय मह हियए विप्फुरिओ अविहडो मंतो ।।५०३।। एत्यंतरे कुमारो पसन्न-गंभीर-महुरवयणेहिं । विन्नवइ महारायं मंतिं च पभासइ पहिठ्ठो ।।५०४।। “अनिउत्तेहिं न जुज्जइ गरुयाण पुरो सिसूहिं वोत्तुं पि । जणयंति सिरे सूलं 'अट्ठवियमहत्तरा जम्हा ।।५०५॥ तहवि नियचावलेणं तुह पायासंपि मा पभणिस्सं(?) । जं बालाओ गेज्झं सुहासियं बुद्धिमंतेहिं ।।५०६।। मा ताय ! मज्झ रूससु पियं भणंतस्स कडुयवयणेहिं । अविमंसियकज्जरया पुरिसा पावंति हलुयत्तं ।।५०७।। पुट्विं परिक्खिऊणं अहि-कंटगविरहियम्मि सुहमग्गे । मुक्को वि ठवइ पायं कयगम्मागम्मसंकप्पो ॥५०८॥ १. अस्थापितमहत्तराः ॥ Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ किं पुण नरिंद ! नियबुद्धिविभवअवगणियसुरगुरुविवेया । तुम्हारिसा न कज्जे कुणंति गुण-दोसपवियारं ? ||५०९।। इह देव ! संधि-विग्गह-जाणासणदुविहसंसया छ गुणा । जहजोग्गं कीरंता देंति सिरिं न उण विवरीया ॥५१०।। ता देव ! संधिजोग्गे रिउम्मि तुह विग्गहो गुरुयनीई । नीइविउत्तो राया पयाव-विहवक्खयं कुणइ ॥५.११॥ नियमंत-सत्तिपरिवज्जियाण सीहस्स कोवणं राय ! । संसयतुलाए हावइ नराण जीयं न संदेहो ।।५१२।। गरुओ न विग्गहिज्जइ अनायतत्तेहिं अहव विग्गहिओ । ता न चइज्जइ, चत्तो होइ अणत्थाय नियमेण ।।५१३।। दुयविहलारंभाणं उयरुयरिं जाण हुंति आरंभा । भीयव्व वैरिलच्छी ताण नरिंदाण संकमइ ।।५१४।। साहस-मंतधणाणं सिज्झइ कज्जं नरिंद ! गरुयं पि । देवा वि तस्स भिच्चा जस्सत्थि ससाहसो मंतो ।।५१५।। साहसरहियाण इहं दूरे परमंडलाण पच्चासा । नियमंडलं पि ताणं ओट्ठभइ राय ! वैरि(री)हिं ॥५१६॥ सो कह न परिभविज्जइ जो वैरिसु उवसमं पयासेइ । पसमो जईण भूसा न उणो विजिगीसुरायाण ।।५१७।। गब्भट्ठिओ विलिज्जउ सो पुरिसो बुद्धि-साहसविहूणो । जस्स न कोवपसाया जायंति जहाणुरूवेण ।।५१८।। नित्तेयम्मि नरिंदे च्छारेव्व न को पयं परिठ्ठवइ । जीवंतो वि मओ च्चिय जो न कुणइ विक्कम अहिए ॥५१९।। Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सरिभुयणसुंदरीकहा ॥ ता देह ममाएसं ससुरं सपरिग्गहं सदुग्गं च । जइ तं न जिणेमि रणे महाबलं ता न तुह पुत्तो ||५२०।। तुह आएसपयट्टो लहुओ वि अहं गुरु(रू) भविस्सामि । गरुएहिं ठविओ खलु देवत्तं लभइ उवलो वि ॥५२१।। तुह पायरेणुसंगा(ग?) मणुहावओ जोग्गया वि मह होही । 'असुयधपि हु सुत्तं चडइ सिरे कुसुमसंगेण" ।।५२२।। इय भणियम्मि कुमारे सावटुंभं च जुत्तिसारं च । चिंतइ राया रयणी-सच्चवियं पुत्तवुत्तंतं ॥५२३।। को संदेहो जं भणइ एस तं कुणइ तारिसं चेव । तेलोक्के वि असझं न किंपि एयस्स मन्नामि ॥५२४।। इह पढमजोव्वण च्चिय आरूढपयाव-विक्कमो राया । सूरो व्व दुरभिगम्मो उच्छायइ इयरतेयाइं ।।५२५।। जइ कहवि नाय(ऍ)सिस्सं ता चित्तमिमस्स विहडी(डि)ही निययं । कह घडइ विहडियं पुण हिययं नणु फलिहखंडं व ? ।।५२६।। अणुकूलचेट्ठिएहिं उवयारसएहिं जायइ सिणेहो । भिज्जइ पुण एक्केणवि अवयाराभासमेत्तेण ||५२७।। तो नरवइणा भणिओ महोयही “संगयं भणइ पुत्तो । जइ तुह संमयमेयं ता कीरउ निच्छउ(ओ) कज्जे" ||५२८।। तो कन्ने ठाऊणं राया मंतिस्स कहइ नीसेसं । वीरचरियागएणं जं दिटुं पुत्तववहरणं ।।५२९॥ अह मुणियकुमरविक्कममणपसरियहरिसवड्ढिउच्छाहा । ते दोवि राय-मंती 'तहत्ति मन्नति तव्वयणं ।।५३०।। १. असुगंधं ॥ Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ ता सो पसत्थदियहे बहुसेन्नभरेण भरियमही(हि)वीढो । पिउ-माइकयपणामो लद्धासीसो समुच्चलिओ ॥५३१।। बलभारसमक्वंता चलतुरयखुरग्गतिक्खघायहया । धाहाविउव्व धरणी वच्चइ सग्गं रयमिसेण ॥५३२।। बहुयत्तणेण सेन्नं संच्छन्नासेसमहियलपएसं । भुयणं पिव संचलियं कुमारसेवाणुराएण ।।५३३।। सूरो वि अंतरिज्जइ सेन्नसमुत्थाए जस्स धूलीए । सेन्नं तु पुण न जाणे किं काही तस्स चउरंगं ॥५३४।। चलियम्मि जम्मि पढमं तुरयखुरुक्खणियधरणिरयपडलं । पसरइ दिसासु पच्छा अकंतमहीयलं सेन्नं ।।५३५।। चलिओत्ति जम्मि निसुए अण(णु)हूयभयाण वेरिविलयाण । पवसंति तक्खण च्चिय विलाससिंगारवावारा ।।५३६।। एवं च सो नरिंदो अणवरयपयाणएहिं मलयगिरि । पत्तो मिलंतरिवुबल-संगलियसमग्गलबलोहो ॥५३७।। तत्थेक्कसमपएसे सुलहिंधण-तण-जलाइउवहारे । आवासिओ ससेन्नो आसं(स)न्नसमुद्दतीरम्मि ॥५३८॥ जत्थुच्चतालतरुसंडमंडली सहइ पवणकयकंपा । बहुबलनिवेसदसण-विम्हयरसधुणियसीसव्व ।।५३९।। सिरधरियमहाफललुंबिभारदरनमियनालिएरीओ । बहुदियसागयनरवइ-विणयं व नियं पयासेंति ।।५४०।। दढनागवल्लिपरिरंभ-निब्भरा कमुयतरुवणालीओ । हरिविकूमदंसणजायहरिसपसरं व दावंति ।।५४१।। Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ एला- लवंग- कंकोल - सुरहिसिरखंडमंडियद्धंता । रमयंति व्व नरिंदं समुद्दगिरितीरपेरंता || ५४२ ॥ जहठाणनिवेसियसिविरलोय - गिरिगरुयगुड्डरगहीरं । परंतपरिट्ठियकायमाण गुणलयणिरमणीयं ॥ ५४३॥ अइगरुयपडीमंडव-संछन्ननहंतरालरविकिरणं । जणपडिसेहपरायण-पडिहारसहस्ससंकिन्नं ॥५४४ ॥ मणहरणनिवेससहस्सुल्लसंतसुद्धतवसहिसंगीयं । सव (व्व ) त्थ परिट्ठावियद्वाणंतरवंट्ठनट्ठजणं ॥ ५४५ ॥ इय पिहुलमहीयलसनिविट्ठसेणाविलोयणसयहो । आवास संपत्तो कुमरो जणजयजयरवेण ||५४६|| कयकयलोयचिंतो संपेसियसयलनरवइपसाओ । तद्देस-कालसमुचिय-कयकज्जो अच्छइ सुहेण ॥ ५४७ || कण्हाण - भोयणविही सुहसेज्जाए अवरण्हसमयम्मि । जा अच्छइ ताव रवी अत्थेरिसिरं समल्लीणो ॥ ५४८|| सोहइ संमीलियकमल-रोहभयभाणुमग्गलग्गेहिं । आवंदुरकिरणमिसा मयरंदेहिं व्व वरुणदिसा ||५४९|| तक्कालुमी (म्मी) लियमउलमालइगंधलुद्धभसलेहिं । उच्छाइयं व गयणं निरंतरं तिमिरखंडेहिं ॥५५० ॥ संझाजिणच्चणुज्जय-विज्जाहरपरमभत्तिपक्खित्तो । कुसुमनियरो व्व गयणे सोहइ नक्खत्तनिउरंबो ||५५१ ॥ एवंविहंमि समए कुमरो हरिविकुमो महत्थाणे । उवविट्ठो आरत्तिय पमुहकयासेसउवयारो ॥५५२॥ १. अस्तगिरिशिरसि || ५१ Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२ उभयंसपासमणहर-विलासिणीपाणिकमलकलिएहिं । विंजिज्जंतो ससहर - करपंडुरचारुचमरेहिं ॥५५३॥ पणमंतमहासामंतविंद- सम्मदरखुडियमणिरयणं । समुचियनियठाणट्ठिय-नरवालसहस्ससंकिन्नो ।। ५५४।। उद्घट्ठियनरसयकलिय-दीवियाकिरणजणियउज्जोयं । सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ पडिहारसद्दवित्तत्थ-पत्थिवत्थिमियवावारं ।। ५५५ ।। फारफारपरिवेढ - गूढजणवारियं नरपवेसं । पविसंतविलासिणिचलण- नेउरारावरमणीयं ॥ ५५६ ॥ पयडियपयाववरकव्वपाढअक्खित्तबंदिजणनिवहं । थिरवंसमीससरमुल्लसंतवरगीयगंभीरं ॥ ५५७ ॥ इय नियसरीरदिप्पंतकंतिनिवहेहिं सयलमत्थाणं । राया भासतो इव सीहासणसंट्ठिओ सहइ ।। ५५८ ।। तत्थच्छिऊण य खणं नाणाविहकयविणोयवासंग | संमाण - दाणपुव्वं विसज्जियासेससामंतो ॥ ५५९॥ उट्ठइ अत्थाणाओ पुरओ धावंतदीवियानियरो | कयकोलाहलबहुदंडिमंडली सुहडपरिवारो ॥५६०॥ ठाणट्ठाणपरिट्ठिय-ट्ठाणंतरनिबिडसुहडकयरक्खं । कीडयत्तस्स वि जत्थ नत्थि जंतुस्स अवयासी ||५६१ || पिहियासेसदुवारं दुवारपडिलग्गजोहपरिहारं । अइविसमवज्जपंजर-संजुत्तं वंककयदारं ॥ ५६२॥ इय विहियपओसविही पविसइ सेज्जाहरं सुपल्लंकं । रमणीयवेसमणहर-परिवाराहिट्ठियं कुमरो ॥ ५६३॥ Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ कोमलतूलीसुहफंस-लद्धनिद्दाभरस्स कुमरस्स । वोलीणे रयणिभरे जं जायं तस्स तं सुणह || ५६४ || अंदोलियरयणायर-वणराईसुगंधकुसुमगंधेण । परिमंदमारुएणं फंसिज्जंतो सुसीएण || ५६५ ॥ नाणाविहविहयविहायसमयसुयअसुयपुव्वसद्देहिं । सद्दूलसद्दवित(त्त)त्थहत्थिसुंकाररावेहिं ॥५६६ ॥ सहसत्ति सीहभयसंपलाणहरि-हरिणदडवडरवेण । तरुतरलदलग्गगलंतसिसिर अवसायफंसेण ॥ ५६७॥ पडिबुद्धो ज्झत्ति समुल्लसंतमणविम्हओ अह कुमारो । अप्पाणमेव पेच्छइ अरन्नपरिसंट्ठियं एकं ॥ ५६८।। अइकोमलयरपल्लव-पल्लंकपरिट्ठिओ विचिंतेइ । स (सु) विणंतरं नु अहविंदजालमह किं नु पच्चक्खं ? || ५६९ ॥ सुसमाहियहिययविवेइएण पच्चक्खवणसरूवेण । कयनिच्छओ सुवीरो चिंतइ हरिविकुमो एवं ||५७० ।। अह [ह]च्छरियमिणं अदिट्ठमसुयं असद्दहेयं च । वन्निज्जंतं पि न कस्स कुणइ हासाउलं हिययं ! ।। ५७१ ।। ता अवहरिओ केणइ, सुरेण असुरेण खयरेणं च । कह अन्नहा जिओ इव विओइओ निययलोयाओ || ५७२ ॥ तं वासभवणमसरिस - सुहडसहस्सोवगूढमइविसमं । बालकयधुलिखेल्लण- घरं व सहसच्चिय पणट्टं ॥ ५७३ || करितुरय-नर- महारह- सेन्नसमूहो वि संपयं चेव । चउरंगफलहयाओ व देसंतरसंट्ठिओ जाओ ||५७४ || ५३ Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ अहवा न जुज्जइ च्चिय आवइआवत्तनिवडियाणं पि । वीराण किलीबत्तं आलंबिय सोइउं एवं ॥५७५।। नयमग्गसंठियस्स वि देववसा विविहकयपयत्तस्स । कस्स न जायइ भुयणे विसमदसाखुंटपक्खुलणं ॥५७६।। आवइवडियस्स जहा लक्खिज्जइ धीरिमा सुपुरिसस्स । संपयसुहियस्स तहा न लक्खिया केणइ कहं पि ।।५७७।। एवं जाव नरिंदो चिंतइ हिययम्मि बहुविहवियप्पे । ता कुमरस्सावत्थं दटुं व समुग्गओ सूरो ॥५७८।। केणेवं ववहरियं उत्तमपुरिसावहारदुक्कम(म्म) । विक्खिरइ रवी कोधं समग्गलं सोणकिरि(र)णमिसा ॥५७९।। रन्नत्थलीए थलकमलिणीओ वियसंतकमलवयणेहिं । मइरारसारुणा दिणयरस्स किरणे पियंति व्व ॥५८०।। वियसंतकमलकोसा उढें नीहरइ भमररिच्छोली । सोहइ नलिणिविमुक्का गंडूसियतिमिरधारव्व ।।५८१।। परिभावियनिन्नुन्नय-वसुहायलकलियसयलतरुनियरा । पयइपसन्नालोया से जाया काणणुदेसा ।।५८२।। एम्हि किमेत्थ कज्जं वियरामि वणम्मि चिंतइ कुमारो । पेच्छामि जहिच्छं वणसिरीए सोहं अविक्खलिओ ।।५८३।। निच्चसुहे खणदुक्खं रमेइ पुरिसं रसंतराणुहवा । लिंबव्व महुरभोई वंच्छइ सीयं व्व अग्गिहओ ।।५८४॥ इय चिंतिऊण हियए समुट्ठिओ वियडपायनिक्खेवं । नाणाविहदुमदंसण-सकोउओ भमिउमाढत्तो ।।५८५।। Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ कत्थइ हरिविससियकुंभिकुंभमोत्ताहलाई दह्ण । केसरिसरसपएसुं परिलग्गइ विक्कमेक्करसो ।।५८६।। करिकरडकंडुकंडूयणेण कडयडियवियडविडविरवं । आयन्निऊण धावइ करिकीलाकोऊ(उ)हल्लेण ।।५८७।। हरिणीण सरसपसइप्पमाणनयणाणि कत्थइ नियंतो । सुयरइ तिभायपसरिय-विलासिणीपेच्छियव्वाण ॥५८८।। कत्थइ पवणपहल्लिरवल्लीभमरग्गकुसुमकयपूओ । अणुसरइ पुरीपरिभमण-सुंदरीनयणबाणाण ।।५८९।। इय विविहवणविणोयालोयणविम्हरियपुव्वववहारो । अउरुव्वपएसंतर-दंसणबहुकोउओ भमइ ॥५९०।। जा थोवंतरभूमिं वच्चइ हरिविकुमो तहिं रन्ने । ता दिट्ठिवहे पडिओ गिरिगरुओ तस्स वणहत्थी ।।५९१।। नियजम्मभूमिपेम्माणुबंधहणुयंतदिन्ननियवेगो । जो नीलतमालदलालिसामलो अंजणगिरिव्व ||५९२।। सुरवइकुलिसक्खयपक्खरो स(सु)संघडियवियडचउचरणो । खलहलगलंतदाणंबुनिज्झरो जंगमो सेलो ॥५९३।। . नीहरिओ वामपएसविसमगिरिकंदराउ वेगेण । धावंतो अणुमग्गं वरजुयइदुग्ग(ग)स्स रोसेणं ॥५९४।। भयवेविरंगकुससूईभिन्नचरणग्गखलियवेगाण । मच्चुव्व ताण हत्थी जुयईण स स(सं)निहिं पत्तो ॥५९५।। तो दीहरघोर महोरगाणुकारेण सोंडदंडेण । .. सहसत्ति ताण एगा धा(ध)रिया तुरिएण वरजुवई ॥५९६।। Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ दिट्ठा सा तेण गइंदगरुयकरगोयरा नरिंदेण । उव्वेल्लमाणकोमलबाहुमुणाला कमलिणिव्व ।।५९७।। विलुलंतकेसपासा भयतरलनिहित्तसयलदिसिनयणा । नियरक्खमपेच्छंती सुयरियमरणंतकरणीया ।।५९८।। हा माय माय! गहिया रक्खसु करिरक्खसाओ मं तुरियं । चिंतियमन्नं तुमए विहिणा अन्नं समाढत्तं ! ।।५९९।। वणदेवयाउ ! रक्खह मारिज्जंतिं तुमंपि कुलदेवि ! । विविहमणोरहभरिया अकयत्था पाविया मरणं ॥६००।। तं दटुं कुमरेणं करुणारसपरवसंतकरणेण । अहिधाविऊण पुरओ 'सधीरमक्कोसिओ हत्थी ।।६०१॥ हा दुट्ठ ! करिंदाहम ! कुजाइ ! भयभीयजुयइगहणेण । . निक्किव ! निययस्स वि किं न लज्जिओ थूलकायस्स ? ||६०२।। तं तुह विरियं तं तुज्झ गज्जियं थूलिमा वि तुह एसा । उवओगं जुवइवहे गच्छिस्सइ न उण सीहम्मि ॥६०३।। अइदुब्बलाण निग्घिण ! सरणविहीणाण निरवराहाण । एयाण मारणेणं जहत्थनामासि मायंगो ॥६०४।। सावटुंभत्तणवीरसदपडिसद्दभरियनहविवरं । सुणिऊण रायहक्कं तस्साहिमुहं पलोएइ ।।६०५॥ तो तं नारिं धरिउं सरोसरत्तच्छिजुयलदुप्पेच्छो । धावइ रायाहिमुहं तव्वयणकोविओ हत्थी ।।६०६।। तेदु(?ड)वियकन्नजुयलो रोसारुणनिवनिहित्तनयणजुओ । दीहपसारियहत्थो रायाणुवहेण सो लग्गो ॥६०७।। १. सधैर्यम् ।। Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ राया वि तस्स पुरओ ईसीसि वं ( व ) लंतकंधरो धाइ । तस्स करग्गनिवेसिय-नियपाणिविदिन्नपच्चासो ||६०८ || कमजणियनिवसमग्गलगइवसपसरतकोवबहुवेगो । एसेस पाविओ इय मईए तुरियं समोत्थरइ ||६०९ || तो जाणिऊण अइवेगमुक्कं कायं नरिंदचंदेण । हत्थि दक्खत्तणओ वलिओ तव्वामपासेण ||६१०|| जा परियत्तइ हत्थी वामंगं ताव दक्खिणं भायं । पत्तो ज्झत्ति नरिंदो हकुंतो कक्कुससरेण ||६११॥ सोऊण रायसद्दं दक्खिणहुत्तं तओ करी चलिओ । परियत्तंतस्स तओ करिणो सा बालिया पडिया || ६१२ ॥ दट्ठूण निराबाहं निच्छूढं बालियं भणइ कुमरो । नाससु वेगा बाले ! जाव करी मह निहित्तमणो ||६१३|| तो भइ बालिया सा मज्झ कए तिणसमाणदेहाए । कलिकप्परुक्ख ! नाससु मा अप्पाणं अहन्नाए । ६१४ || अह निरवइणा हत्थी पच्छिमभायम्मि ताडिओ रोसा । वलिऊण निवपहेणं अणुलग्गो वारणो सहसा ||६१५|| अहिधावंतेण तओ पच्छाहुत्तं दिसं नरिंदेण । सा परिहरिया बाला जोयणमेत्ताए भूमी ||६१६।। सममागयं निएउं नरनाहो करिवरंव (ब? ) रिल्लेणं । वेंट्टलियं काऊणं तस्स पुरो क्खिवइ अक्खेवं ॥ ६१७ || अह सो वि वणकरिंदो नरिंदबुद्धीए अग्गदंतेहिं । परिणमइ जाव रोसा दसणग्गनिघिट्टमही (हि) वीढो ||६१८ || ५७ Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ वीरत्तणेण दक्खत्तणेण दंतेसु नसियपयजुयलो । कुंभत्थलमारूढो कुमरो तो अग्गभाएण ।।६१९।। जा उडइ करिनाहो सधीरपरिधुणियकंधरो तुरियं । ता उडि(ड्डि)ऊण दूरं पहओ कुंभम्मि कुमरेण ॥६२०।। अइनिठुरचरणपहारताडिओ विरसमारसंतो य । मुह-करविणितरुहिरो नीहरिओ तप्पएसाओ ॥६२१।। नाऊण समकिलंतं निप्फंदं गलियरोसदीणमुहं । वणहत्थि चइऊणं अन्नपहेणं गओ राया ॥६२२।। एत्थंतरम्मि सूरो अइउन्नयनहसिरम्मि आरूढो । तक्खेउब्भवतावाओ लोयदुसहो व्व संजाओ ॥६२३।। बहुभूमिधाविएणं कढोररविकिरणदुसहतावेण । तण्हापरिसुसियमुहो उदयं अनि(नि)सिउमाढत्तो ।।६२४॥ जा थोवंतरभूमि वच्चइ राया तिसासमक्तो । ता नाइदूरदेसे निसुणइ वीणाज्झणकारं ।।६२५॥ आणिं(ण)दियसवणिंदियसम(व)णंतरमणविइन्नसंतोसो । मणसंतोसासाइयसरीरसुहसंगयं गीयं ।।६२६।। सुणिऊण परमपहरिसवसपसरियपुलयकलियदेहस्स । हरिविकुमस्स जाओ मणम्मि एयारिसवियप्पो ॥६२७।। निम्माणुसे अरन्ने कत्तो एवंविहं महुरगेयं । ता होही एत्थ फुडं तहाविहं किंपि सुरभवणं ॥६२८॥ इय चिंतिऊण राया तुरियपयक्खेवलंघिअद्धाणो । जा जाइ थोवदूरं ता पेच्छइ विविहतरुसंडं ॥६२९।। Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ पुन्नाग-नाग-चंपय-पूयप्फलि-फलियकयलि-फणसघणं । सघणदल-नागवल्ली-लवंगि-कक्कोलिकमणीयं ।।६३०।। खज्जूर-जरढफलरस-दक्खा-सहयारफलभरसमिद्धं । कपू(प्पू)रतरुनिरंतर-सुयंधकालायरुदुमोहं ।।६३१।। इय विविहसरसदुमवण-मवणिवई तक्खणं निएऊण । अइसयकोऊहलकलियमाणसो तत्थ संपत्तो ।।६३२।। जा पविसइ दुमसंडं सकोऊ(उ)ओ ताव तत्थ नरनाहो । पेच्छड् फलिहमयं सो अच्छसिलं देउलं एक्वं ॥६३३।। थंभियमिव सरयब्भं चंदविमाणं व सावपब्भटुं । घणसारतरुसमुब्भवकप्पूरदलेहिं घडियं व्व ॥६३४।। अइसच्छफलिहभित्तित्तणेण सव्वं पि बाहिरठिएहिं । अंतट्ठियं पि दीसइ बहिट्ठियं मज्झसंठेहिं ।।६३५।। न लहइ जत्थ निवासं सिहरम्मि तरूण कुसुमरयनिवहो । चंदुग्गमससहरकंतसलिलपक्खालिओ संतो ।।६३६।। तो ससहरचरणक्खेवपत्तवियडंगणो पुरो नियइ । राया फलिहनिबद्धं अइसच्छजलं महाबिंबं ॥६३७॥ चउदारग्गनिवेसियगोयरपडिबिंबमिसपयासेहिं । भवणवइविमाणेहिं व जिणसेवाआगएहिं जुयं ||६३८।। अच्चुज्जलफलिहसिलासोवाणपरंपराहिं संजुत्तं । निन्नन्नयबहुविहकय-विभागलहरीहिं व गहीरं ॥६३९॥ वियसियसियपंकेरुह-महुमत्तरुणुज्झुणंतभमरगणं । . गायतं पिव पुरओ जिणस्स बहुएहिं व मुहेहिं ।।६४०।। Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६o सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ इय तत्थ महावावीजलम्मि हरिविकूमो कयसिणाणो । संताव-समपमुक्को संपत्तो तक्खणं चेय(व) ।।६४१॥ अह तं भवणमउव्वं दट्टेणं हरिसपुलइओ राया । पविसइ मज्झे तुरियं करकलियविसट्टकंदोट्टो ॥६४२।। जा नियइ मंडवत्थो गब्भहरं ताव तत्थ जिणपडिमं । । वरपाडिहेरपरिगयमइसयरूवं पलोएइ ।।६४३।। दठूण फलिहनिम्मलमणिघडियं तं मणोहरच्छायं । जिणदेहकंतिपडिहयमोहतमोहो व्व पूएइ ।।६४४॥ संपूइऊण य जिणं पुरओ उवविसइ जायमणसुद्धी । सिरघडियपाणिसंपुडमह सुमहत्थं थुई कुणइ ।।६४५।। “तुह नमिमो पयइपसंतरूवसंसियअदोसभावस्स । निदोसभावसंगयगुणसुरयणरोहणगिरिस्स ॥६४६।। उल्लसिओ तुह मुहचंददसणा मणमहोयही मज्झ । कहमन्नहऽच्छिसरिया फुरंति हरिसंसुसलिलमिसा ।।६४७।। तुह कन्नपालिकलियं भूसेवलममलनयणतामरसं । कंतिजलं वयणसरं संतावं हरइ दिटुं पि ॥६४८॥ तुह दसणेण मुणिवइ ! होहिंति न जे विसेसपुलयंगा । ताण अजोगत्तणओ दंसणमवि तुज्झ अइदुलहं ।।६४९।। दिट्ठो सि जेहिं पुट्विं जिणेस ! नयणाइं ताई जायाइं । पहरिसबाहपवाह-च्छलेण परिगलियपावाइं" ।।६५०॥ इय चंदप्पहनाहं असमपहापुंजपरिगयं राया । थोऊण थंभमूले उवविठ्ठो निहियजिणदिट्ठी ॥६५१।। Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सेरिभुयणसुंदरीकहा ॥ एत्थंतरम्मि एगा पढमुब्भिज्जंतजोवणारंभा । बाला वीणावायणविणिउत्तकरंगुली दिट्ठा ॥६५२॥ बीयं पुण वरनारिं गब्भहरजिणच्चणेक्ककयचित्तं । नीसेसभुवणसमहियरूवाइसयं पुलोएइ ॥६५३।। थणकलसोवरि गंधुदय-भरियखणधरियकलसउत्रिविडी (?) । ण्हवइ जिणं ण्हवणुट्ठिय-जलकणकब्बुरियअलयग्गा ॥६५४।। पिहियकरंसुयवयणा मुहगंधघडंतभमरभीयव्व । परिफुसइ कोमलंचलकरेण जिणणाहतणुसलिलं ॥६५५।। पडिबिंबिया विरायइ अइविमले वीयरायवच्छयले । जोग्गत्ति कयपसाए जिणेण हियए निहित्ति व्व ॥६५६।। मयणाहिमसिणघणसार-सुरहिसिरिखंडकयसमालहणा । पंचप्पयारसुकुसुम-दामेहिं करेइ जिणपूयं ॥६५७।। आपायतलविलंबिर-सिरमालंतरतिरिच्छमालाहिं । सोहइ ससिप्पहजिणो खीरसमुद्दो व्व लहरीहिं ॥६५८।। सुसुयंधकुसुमपरिमल-मिलंतबहुभसलवारणुज्जुत्ता । निब्भच्छा व्व बहुभव-समज्जियं कसिणमलपडलं ॥६५९।। बहुकालायरुदलगंधगब्भिणं उक्खिवेइ वरधूयं । आरत्तियाइ सव्वं करेइ जिणमंगलीयं सा ॥६६०।। पयडियहिययविसुद्धिं जहत्थजिणनाहगुणमहग्घवियं । काऊण थुई पुरओ जिणस्स वाएइ अह वीणं ।।६६१।। पढमं तारसरक्कमसंचलणसमुल्लसंतधीरसरं ।। तंतीवसवलियंगुलि-थरहरियसुथूलथणवढे ॥६६२॥ Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ अइसुस्सरगीयरसाणुरत्तसंगलियहरिणविंद्रहिं । संमीलियच्छिवत्तं सुब्बइ एगिदिएहिं व ॥६६३।। इय नाणाविहसरकरण-जाइ-लय-गाम-मुच्छणाणुगयं । काऊण सरसगीयं अह गायइ पुण इमं दुययं ॥६६४।। "अतिसुकुमारसोणसरलांगुलिपंचकवक्त्रभीषणो नखमणिकिरणजालघनकेसरविसरविशेषभासुरः । भवगुरुवनविहारिदुरितोद्भटकरटिविपाटनक्षमो दिस(श)तु स वांछितानि चन्द्रप्रभचरणमृगाधिपः सताम्" ||६६५।। इय गाइऊण दुयई पुणो पुणो कयमणप्पणीहाणो(णा) । चरणकमलेसु निवडइ चंदप्पहपरमदेवस्स ।।६६६।। जिणण्हाण-पूयणाइसु विणिवेसियतग्गएक्कमण-करणा । मोत्तुं जिणवावारं अन्नत्थ अचेयणव्व फुडं ।।६६७।। बहुभत्तिब्भरपरवसहियया ग्रहाणाइगीयपज्जंतं । काऊण जा पलोयइ ता पेच्छइ पिट्टओ रायं ॥६६८।। दठूण सा नरिंदं तह पहरिसपूरभरियसव्वंगा । जाया जह सेयमिसा नीहरिओ सो अमायंतो ॥६६९।। अह भमरभरोणयपउमपत्तसंपत्तसयलसोहेहिं । पेच्छइ तिरिच्छवलियद्धकंदरद्धंतनयणेहिं ॥६७०।। जो कत्थवि नब्भसिओ अण(णु)हूओ वि हु कहंपि जो नेय । सो तीए तया जाओ कोवि अउव्वो मणवियारो ॥६७१।। सविलासपेच्छियच्छं पडिनयणनिवायपडिहयप्पसरं । हरिविकुमस्स दुसहं तिस्सा अवलोइयं जायं ॥६७२।। Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ दिढेहिं वि दीहर-भल्लिभासुरुल्लेहिं तीए नयणेहिं ।। तह सु(सू)रो वि मारो जह हयहियओ खणं जाओ ।।६७३॥ सा लज्जासाहीणा नरिंदमाभासियं(उं) अपारंती । गहिऊण करे बालं दुइयं सा विसइ गब्भहरं ।।६७४।। सहि ! पडउ मज्झ दुक्खं लज्जावसवेविरा न सक्केमि । संभासिउं पि दूरे एयस्स विसेसकरणीयं ॥६७५।। सो एस महासत्तो जेणाहं दुद्रुवारणग्गहिया । मोयाविया सजीयं तणं व गणिऊण करुणाए ||६७६।। ता जाहि तुम बाहिं आसण-संभासणाइववहारं । कुणसु असेसं पच्छा तंबोल-विलेवणाइ(ई)यं ।।६७७।। इय भणिए सा बाला गहिऊण वरासणं नरिंदस्स । घणसामलमरगयमत्तवारणे ट्वइ सप्पणयं ॥६७८॥ इह उवविसह पसायं करेह मा अम्ह सामिणीए इहं । अवराहं गेण्हह देव ! कज्जसज्जेक्कहिययाए ॥६७९।। तो भणइ महाराओ न होति गुरु-देवकज्जनिरयाण । अवराहा संता वि हु दूरं दूरेण नासंति ॥६८०।। इह चेव देवदंसण-पवित्तवसुहायलम्मि अच्छिस्सं । गुरु-देवाणं पुरओ न होइ पडिवत्तिपत्थावो ॥६८१।। तीए परमग्गहेणं उवरोहपरव्वसो नराहिवई । सीहो व्व उठ्ठिऊणं उवविट्ठो आसणवरम्मि ||६८२।। वरफलिहघडियतलिया-निहित्तकप्पूरमीसतंबोलं । सा बालिया पयच्छइ नरवइणो सुसियतालुस्स ||६८३।। Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ एयं विलित्तजिणतणु-उव्वरियं देव!सयलदुहहरणं । अंतो-बाहिरसंताव-पावसमणं समालहणं ।।६८४।। सुविलित्तसयलगत्तो उवओइयतव्विइन्नतंबोलो । अणुव्व(व)त्तणाए ताणं नरवालो कुणइ संतोसं ॥६८५।। तयणंतरं च राया दरहसियविणिंतदसणकिरणोहो । उद्दिसिय लहुयबालं परिहासं काउमाढत्तो ॥६८६।। किं देससमायारो अहवा अम्हे वि अणरिहा एत्थ?। जं तुम्ह सामिणीए संभासणमेत्तकं न कयं ॥६८७।। तो भणइ बालिया सा न याणिमो देव केणइ गुणेण । परिवेविरंगलट्ठी सहसा संतोसमुव्वहइ (?) ॥६८८।। परिव्व(व)त्तियव्व अन्ना पडिमव्व सुमंतजणियविप्फुरणा । आयवपुलट्ठपत्ता लयव्व घणसंगसुसिणिद्धा ।।६८९।। परितरलतारउज्जल-विप्फुरियलोयणेहिं क(क)हइ व्व । पुव्वावत्थविरुद्धं अदिठ्ठपुव्वं मणवियारं ॥६९०॥ ता देव्व(व)च्चणसमए विम्हरियसरीररक्खमंताए । संकंतो कोवि महा-पयंडगुरुखेत्तवालो सो ॥६९१।। तो भणइ नरवरिंदो उवसामो तस्स होही(हिइ) कहं ति । अह भणइ पुणो बाला नरवइणो उत्तरं एयं ॥६९२।। एगम्मि पसत्थदिणे तस्स पयंडस्स खेत्तवालस्स । जाव न नियंगभोगो दिनो(नो) ता नत्थि उवसामो ॥६९३।। सहि!एहिं(हि) तुह सरूवं पयासिमो नरवइस्स इय भणिरी । घेत्तूण अणिच्छंति(ती) उववेसइ सा तयंतियए ॥६९४।। Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ उवविट्ठा निवपुरओ पिट्टट्ठियबालियाए मुहसमुहं । कारिमकोवुब्भडभिउडि-भासुरं अह पलोयंती ॥६९५।। तो नियइ नराहिवई आपायतलुत्तिमंगमइनिउणं । तिस्सा तंसट्ठियआणणाए अइसुंदरं रूवं ॥६९६।। अच्छिक्के परमाणुसुहा(?) पसहमीसिऊण जा विहिणा । निम्मविया सव्वायर-नियसिप्पपयासणत्थं व ॥६९७।। मुहमच्छरं वहंतो दलिओव्व पएहिं जीए हरिणको । सरलंगुलीसु दीसइ नहत्थला खंडखंडकओ ।।६९८।। दटुं ब्व रमणकरिणा जिस्सा जंघोरु-करजुयसमिद्धिं । इय मच्छरेण नूणं गहिया वणवारणेण तया ।।६९९।। वणकरिणो निबिडकरग्गहेण निप्पीलियं व्व अइतणुयं । मझं मज्झट्ठियरोमराइंमि सदाणलेहं व ॥७००।। सोहइ सहावमणहर-गंभीरावत्तसुंदरा नाही । नीसेसभुयणवेहय-सिंगाररसस्स कूविव्व ॥७०१।। तिवलीमिसेण रेहति तिन्नि रेहव्व विहिनिहित्ताओ । तेलोक्के वि न रूवं अओ परं इय विवेएण ।।७०२।। पीणथणाणं उवरिं सोहइ वयणं सहावरमणीयं । कंचणकलसजुओवरि एकं व पिहाणपंकरुहं ।।७०३।। बाहू कप्पलयाओ व कहंति नरकप्पसाहिपरिरंभं । जीए करपल्लवेसुं दीसइ नहकुसुमसंदोहो ॥७०४।। वयणमिमीए विरायइ कसिणुज्जलकलियकुंतलकलावं । ससिमंडलं व उवरिं घडतअइकसिणघणवडलं ॥७०५।। Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ नयणनईसु य जिस्सा वाहो इव पविसिऊण पंचसरो । मज्जइ मोत्तूण तडे भूजुवलमिसा वणलयं व ॥७०६।। वयणस्स अलंकारव्व तीए दीसंति सुंदरा दसणा । सुसिलिट्ठकंतिसमया सुसमाहियतेयगुणकलिया ॥७०७।। जीसे सहावसुंदर-मुहम्मि अहरो निसग्गसोणपहो । कमलट्ठिओव्व सोहइ रत्तुप्पलपत्तसंघाओ ।।७०८।। सोहंति जीए सवणा नयणनइपवहपडिहयप्पसरा । भूडंडग्गठियां इव मयणमहावाहपासव्व ॥७०९।। इय जं जं चिय दीसइ सरीरगयमेत्थ अवयवसरूवं । कप्पलयाए व सव्वं तं तं मणनिव्वुइं कुणइ ।।७१०।। सव्वंगेसु वि अइमहुर-सरस-रमणीयगुणमहग्घविया । उवभोगसुहासायण-मणोहरा इक्खुलट्ठिव्व ॥७११।। उत्तमकुलप्पसूई तत्थवि रूवं च तं पि गुणकलियं । आमरणंतो नेहो जुवईण सुदुल्लहं मिलियं ।।७१२।। ता जुवइरयणमेयं संभवइ न जत्थ तत्थ इय रूवं । कहमिव वणम्मि निवसइ सपच्चवायम्मि, अच्छरियं ।।७१३।। एत्थंतरम्मि एगा समागया तत्थ मज्झिमवयत्था । तावसवेसा जुवई परिवियडकमंडलुकरग्गा ।।७१४।। अइमसिणवकुलंसुय-नियंसणा वक्कलंगपंगुरणा । विविहतवसुसियदेहा पच्चक्खा तावससिरिव्व ॥७१५।। पयपयनिविठ्ठदिट्ठी बहुतावसनिवहसिक्खणसयोहा । अहिधावमाणवणयर-पयडियपडिवालणपसाया ।।७१६।। Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ सुविसुद्धसीलसाला अविकलकल्लाणकुलहरमुयारं । अखी (क्खी) णखमाखेत्तं आगारं गुरुगुणगणस्स ॥ ७१७|| उवसमविलासवसही चडुलिंदियचोरबंधणहडिव्व । करुणापवाहवहणी मणमक्कडबंधरज्जुव्व ॥ ७१८ ।। आगंतूण य पंगण-पएसभायम्मि जिणवरगिहस्स । पक्खालइ चलणजुयं जयणाए कमंडलुजलेण ॥७१९ ॥ अह जिणहरदारठियं तं दठ्ठे ताओ दोवि बालाओ । ओसरिउ (उं) तुरयपयं गब्भहरं अह पविट्ठाओ ||७२०|| तो भणिऊण निसीहिं पविसर अभिं ( ब्भि) तरं ससंभंता । कयपंचगप ( प्प) णामा थुणइ जिणं परमभत्तीए ||७२१|| "मोहान्धकारवस (श) वर्त्तिनि जीवलोके दूरप्रलीनपरमार्थपथप्रचारे । तत्त्वप्रकाशनतया परमोपकारी चन्द्रप्रभो जयति चन्द्रमरीचिगौरः ॥ ७२२॥ यस्मिन्नुदेति हृदि कल्पितमात्र एव विज्ञानवारिधिरधीनसमस्तसम्पत् । तत्र प्रसा (शा) न्तमुनिमानसराजहंसे चन्द्रप्रभे प्रतिदिनं मम भक्तिरस्तु ” ॥ ७२३॥ जा थोऊण नियच्छइ ता पेच्छइ पिट्ठओ ससंभंता । सविणयपणामकरणत्थ - मुज्जयं सा महीनाहं ॥ ७२४|| नरवय (इ) णा वि ससंभम-पणामवसलुलियकेसपासेणं । बहुभत्तिभरनिरंतर - पुलइयदेहेण पणिवइया ॥ ७२५ ।। ६७ Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ 'नीसेससुहसमिद्धो भवसुत्ति विसेसजायहरिसाए । आसासिओ य तीए सागयवयणं च पुण पुट्ठो ।।७२६।। गब्भहराओ सहसा निगं(ग्गं)तूणं च दोहिं बालाहिं । आसणपयाणपुव्वं पणमिया तावसी ताहिं ।।७२७।। पढमगहियासणाए नरवालो तीए अणुमओ पच्छा । उवविठ्ठो सप्पणयं कयंजली आसणवरम्मि ।।७२८।। अह भणइ तावसी सा असेसभुवणोक्यारिणो तुम्ह । कुसलं तु सव्वकालं अविकलकल्लाणभागिस्स ।।७२९।। तुम्हारिसाण जम्मो परोवयाराय होइ धन्नाण । कप्पतरूणं न निए कज्जे संकप्पणारंभो ।।७३०॥ परउवयारेक्करयाण जाण दुक्खं सुहं व परिणमइ । ते कत्थइ य मई मह तुमए पुण सा वि पम्हसिया ।।७३१।। भुयणेसरो वि संपइ एक्कंगो सहसि जयसिरिसहाओ । दुद्धरिसतेयरासी असेसपरिवारकलिओव्व ।।७३२।। भूसिज्जइ भुयणविहूसणेहिं पुरिसो गुणेहिं भुवणम्मि । नीसामन्नत्तणओ गुणा वि संभूसिया तुमए ||७३३।। उवयरणं पिव अप्पा परकज्जपसाहणेक्कओ जेहिं । सो पावइ गरुयत्तं तुमं व एयं महच्छरियं ।।७३४।। एवं सा बहुरूवं जह जह सब्भूयगुणगणं थुणइ । नरवालो वि हु तह तह अहिययरं लज्जिओ होइ ।।७३५।। अक्खिविऊण य वयणं तिस्सा हरिविकुमो समुल्लवइ । भयवइ ! के मज्झ गुणा ? अहं च को ? का मम पसंसा ? ||७३६।। Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ दोसेसु जा निव्वि(वि)त्ती न सो गुणो मह मणम्मि पडिहाइ । दोसाभावो जो किर उकुरिसो सो गुणो होइ ।।७३७।। सो कह लहइ गुणित्तं जस्सुवरिं फुरइ अन्नगुणरिद्धी । तम्हा सो चेय गुणी भुयणे वि न समहिओ जस्स ॥७३८।। इय निग्गुणे वि मारिस-जणम्मि जा तुह गुणित्तपडिवत्ती । सा पक्खवायबुद्धी अहवा नियसरिसविन्नाणं ।।७३९॥ सव्वं पि गुणमयं चिय पडिहाइ जयं विसुद्धहिययाण । मलिणहिययाण तं चिय सगुणं पि हु निग्गुणं होइ ।।७४०।। इय जावन्नोन्नविसेस-वयणविन्नासरंजियमणाई । चिटुंति खणं, राया ता भणिओ भयवईए पुणो ।।७४१।। इह नाइदूरदेसे तवोवणं अम्ह तत्थ वच्चामो । समयंतरम्मि पुणरवि विसेसगोष्टिं करीहामो ।।७४२।। तुम्ह वयणं पमाणं एवं होउत्ति राइणा भणिए । पुणरवि पभणइ राया वच्चह अहमागमिस्सामि ।।७४३।। तावसकुमारजुयलं मोत्तुं नरनाहसन्निहाणम्मि । घेत्तूण बालियाओ तवोवणं तावसी पत्ता ||७४४।। रायावि तदुवरोहा तावसजुयलेण परिवुडो चलिओ । खणमेत्तेण नियच्छइ तवोवणं तावसाइन्नं ।।७४५।। जत्थग्गिहोमसंरंभ-सरभसुद्दामवियणपवणेण । संधुकिज्जइ मज्झण्ह-होमसालासु हव्ववहो ।।७४६।। गोमयविलित्तपंगण-पएसकुसुमोवयारनिरयाओ । दीसंति कुमारीओ गुरुसुस्सूसं करतीओ ॥७४७।। Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ०० सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ वणविणियत्ताण जहिं समिहा-कुस-कुसुम-फलभरनयाण । तावसमुणीण समुहं अहिधावइ कुलवहूसत्थो ।७४८॥ उद्घट्ठियदंडीनिहियपट्टिया खेत्तबलिपलोहेण । निवडियकायब्भ(ज्झ)डप्पण-कयचित्तो धाइ मज्जारो ।।७४९।। मज्झणसमय-संझावंदण-करकलियकुसबुभुक्खाए । जत्थ मुणीण समाहिं हरंति हरिणा न हरिणच्छी ॥७५०।। वानरकरग्गपरिकलिय-करयला अंधतावसा जत्थ । देवच्चणाइआवासएसु सणियं पयर्टेति ॥७५१ ।। इय नाणाविहवइयर-संकिन्नतवोवणं नियच्छंतो । पत्तो तस्सासन्ने परिट्ठियं वडतलं एक्वं ॥७५२ ।। एकेण तओ भणियं तावसमुणिणा नरिंद ! खणमेत्तं । वीसमह खीरघणदुम-छायाए कहेमि जा पुरओ ॥७५३ ।। गंतूण तेण मुणिणा कुलवइणो पयपणामपुव्वं च । कहियं जहा नरिंदो नग्गोहदुमं समणुपत्तो ।।७५४।। तव्वयणायन्नणचलियसयलतावससहस्सपरिवारो । सो ‘बब्भु' नामधेयो हरिविकमसंमुहं चलिओ ।।७५५।। सा पुव्वतावसी वि हु बहुतावसकुलवहूहिं परियरिया । दहि-दुव्वंकुर-गोसेयणाईकयअग्घवत्ताहिं ।।७५६।। गंतुं नरिंदपासे कयं च गुरुणावि सयलमग्घाइ । बहु वंदु(छंद?)घोसमंगल-गेयरवावूरियदियंतं ॥७५७।। चउचरणमुणीसरमहुरमंतकमपाढदिन्नआसीसो । तावसवहूण विहिणा अणुहूयसुमंगलायारो ।।७५८॥ Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ चलिओ चलंतमुणिवइ-पटुवयणनिवेइयग्गसममग्गो । पत्तो कुलवइउडवग्गसंठियं मंडवं गरुयं ॥७५९।। पुव्वोवविठ्ठकुलवइ-समीववरविट्ठरे अणुन्नाओ । नमिऊण कुलवई(इं) अह नरेसरो आसणम्मि ठिओ ।।७६०॥ तयणंतरं च सयलो-वविठ्ठतावसजणम्मि कुलवइणा । संभासिओ नरिंदो सरीरसुहकुसलवयणेहिं ।।७६१।। । तेणा वि समोणयसिरनिहित्तकरमउलिकयपणामेण । अज्जं चिय मह कुसलं तुम्ह पसाएण इय भणियं ।।७६२।। परमत्थि किंपि भयवं ! भणियव्वं सव्वहा मह पसायं । काऊण सुणह एयं विन्नत्तिं अकयमणकोवा ।।७६३।। गुरुणा समणुनाओ भणइ नरिंदो मुणिंद ! मह अज्ज । पढमं चंदप्पहदेव-दंसणे वियलियं पावं ॥७६४।। तयणंतरं च भयवइ-पणामसंपत्तपुण्णअणुहावा । तुह दंसणं मुणीसर ! संजायं पावपडिहणणं ॥७६५।। पच्छा नीसेसमुणिंद-विंदमुहकमलदसणेण महं । भयभीयं पिव पावं सहसा असणीहूयं ॥७६६।। इय एवमाइबहुविह-सुहकारणकलियपुन्नरासिस्स । एयं चिय मह हियए अणुचियमिव कुणइ संतावं ॥७६७।। नीसेसभुवणपुज्जा तुब्भे मह एत्तियं जया कुणह । गौरवमगौरवपए तुब्भेहिं तया अहं ठविओ ||७६८।। जो पूयाणं पूया-अइक्कमो होइ सो तया तस्स । चिरसंचियमवि पुन्नं पहणइ आगामुयं दूरे ।।७६९।। Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ अम्हे कत्थ कुसीला ? तुम्हे पुण कत्थ सीलजलनिहिणो?। मह कहह कत्थ पुज्जो दुस्सीलो सीलवंताण?।।७७०।। विणयारिहेसु साहसु जुत्ता लुहुडुक्खुडाडु(?) गिहत्थाण । न उणो जइ न (जईण?) उचिया गिहत्थलोयम्मि कइयावि ॥७७१।। एत्तिमयेत्तेणं चिय लहइ विसुद्धिं गिही असच्चरिओ । जं कुणइ चरणसेवं सच्चरियमुणीण अणवरयं ॥७७२।। उत्तमगुणाण सेवा गिहत्थलोयस्स कामधेणुव्व । विन्नाणफला इहइं परलोए सग्गसिवहेऊ ।।७७३।। नीसेसदुक्खविगमो मणसंतोसो विसुद्धबुद्धी य । नाणाहिगमो तत्तत्थ-भावणा साहुसंगगुणा ।।७७४।। मुणिचंददसणेणं गिहत्थलोयस्स चंदकंतस्स । पज्झरइ अदिलृ पि हु अंतट्ठियं पावमुदयं व ।।७७५।। उचियायरणेहिं मणागमेत्तियं अणुचियं समायरियं । तुब्भेहिं मज्झ जं अणु-चियस्स कयमुचियकरणीयं ।।७७६।। इय भणिऊणं विरए नरेसरे सव्वतावसमुणीहिं । ससिरकं(क्कं)पं विम्हयवसेण दिन्ना नहच्छोडी ।।७७७॥ सयलभुवणाहिवत्तं उद्धत्तविवज्जियं न संभवइ । अह तं पि होइ कहमवि न उणो गुरु-देवपयभत्ती ॥७७८॥ एयम्मि पुणो सव्वे परोप्पराबाहविरहिया सुगुणा । किरि(र)णा हरिणंकस्स व अमयमया कं न सुहयंति ॥७७९।। इय चिंतिऊण निउणं कुलवइणा गरुयपयडियप्पणयं । भणिउमुवक्किमियमिणं अणाउलं नरवइस्स पुरो ।।७८०।। Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७३ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ नरनाह! निययगरुयत्तणस्स अणुसरिसमभिहियं तुमए । गुरु-देवनयाण जओ नराण गरुयत्तणं होइ ||७८१॥ परमिह न अम्ह दोसो दोसो तुह चेव एस सव्वो वि । जेण असाहारणगुण-गणेक्कंठाणं कओ अप्पा ||७८२ ।। पूइज्जति गुणा खलु पुरिसेसु परिट्ठिया गुणिजणेहिं । गुणबहुमाणो वि कहं पयडिज्जइ इहरहा ताण ।।७८३॥ सामन्ने वि हु अब्भागयम्मि गौरवमवस्स कायव्वं । किं पुण नीसामन्ने तुमम्मि नरनाह ! न हु जुत्तं ? ||७८४।। राय त्ति गुरुगुणि त्ति य जयोवयारि त्ति सव्वगरुओ त्ति । अत्ति(ति)हि त्ति सव्वविहिणा नरिंद ! पुज्जो तुमं चेव।।७८५।। कमपरिवालियवसुहा-सुहसाहियसयलधम्मकम्माण । सव्वासमाण राया गुरुव्व परिपूणिज्जो त्ति ।।७८६॥ इय भणिए कुलवइणा सहस त्ति नरेसरेण पुण भणियं । जुत्तमजुत्तं व इहं कज्जं गुरु(र)वो वियाणंति ।।७८७।। एक्केण तओ सहसा तावसथेरेण कुलवई भणिओ । पेसिज्जउ नरनाहो वीसमउ सुहेण आवासं ॥७८८।। एवं ति तओ गुरुणा हियए परिभाविऊण पुण भणियं । वच्छे चंदसिरि ! सयं कुणसु नरिंदस्स करणीयं ।।७८९।। तयणंतरं च भावन्नु-बडुयसमुदायसंजुओ राया । आवासं कुलवइणा सप्पणयं पेसिओ य गओ ।।७९०॥ पत्तो चउकृथिरचच्चि(वत्थि)यम्मि घणपुप्फपयरपवरम्मि । परियप्पियसेज्जसुहासणम्मि एवम्मि उडवय(उडय)म्मि ॥७९१॥ Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ अह तत्थ सुहनिसन्नो संपाइयसयण-भोयणाइविही । वीसमइ सुहं सहरिसकयगोट्ठी तावसीए समं ॥७९२।। एत्थावसरे सहसा आयढियदीहकिरणरासिव्व । ओहट्टियगयणवसा ल्हसिओ व्व रवी गओ अत्थं ।।७९३।। अत्थैरिअहिरणीए जलियायसगोलयस्स व रविस्स ।। तमघणहयस्स पसरइ फुलिंगनियरो व्व उडुनिवहो ।।९९४।। मह पुत्तस्स न ससिणो जोण्हा विप्फुरइ जाव एस नहे । इय कलिऊणं सहसा गिलिओव्व रवी समुद्देण ।।९९५।। अरुणप्पहाहिरामा संझासमयम्मि सहइ वरुणदिसा । रयणायररयणुब्भव-सोणपहापुंजछुरियव्व ।।७९६।। पसरियपयावपसरे भुयणुवयारिम्मि उवगए मित्ते । चक्काएहिं व सदुक्खं रुत्तं व सरोवरगएहिं ।।७९७।। तयणंतरं तवोवण-संज्झापसरंतहोमधूममिसा । वित्थरइ पिहियवसुहा-नहवित्थारो तिमिरनियरो ॥७९८।। एत्यंतरम्मि काणण-विणियत्तियसुरहिरिंभियरवेण । उच्छुक्कथणंधयवच्छ-वावडो होइ मुणिनिवहो ।।७९९।। जत्थ मुणिकन्नयाओ गइवसपगलंतकमलसलिलेणं । सित्तं तरालमग्गा तरुसेयवेहीओ विरमंति ।।८००।। अणवरयसमग्गलसंगलंतवणहरिणरुद्धवित्थारा । दीसंति तावसाणं उडवगणभूमिपेरंता ।।८०१॥ जत्थ नईसु निव्वुड्डण-निरुद्धनीसास-सवण-मुणिकुमरा । करकलियकुसुद्धभुया जवंति आकंठजलमज्झे ।।८०२।। Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ सरितीरतावसाणं पक्खित्तकुसुमक्खयघ(ग्घ)सलिलाण । तरलियपुच्छपरिच्छड-मीणउलं कुणइ दरहासं ।।८०३।। इय नाणाविहनियनिय-वावारपरायणम्मि मुणिनिवहे । राया बडुगण-तावसि-परिवारो जिणहरम्मि गओ ।।८०४।। जा जाइ पुरो ता तेहिं दोहिं बालाहिं पुव्वविहिणा य । कयसयलपूयकम्मं जिणनाहं नियइ नरवालो ।।८०५।। तो पणमिऊण परमेसरस्स पाए तिरिच्छवलियच्छं । पेच्छइ लडहंगनिवेस-सुंदरं पुव्ववरतरुणिं ।।८०६।। अह चिंतइ नरनाहो किमेस जिणपणमणपसाओ ? । किं वा जम्मंतरसुकय-कम्मफलपरिणई मज्झ ? ||८०७।। जमिमीए समुच्छुय-मणपसायपरिपेसियच्छिविच्छोहा । दूयव्व मज्झ हिययं नंदति अभिद्दवंति खणं ।।८०८।। दसणमेत्ते वि जया अउव्वसुहसंगयं मणं कुणइ । उवभुत्ता पुण एसा तं किं जं न समहियं काही ? ||८०९।। अहवा- न सुहाण अत्थि अंतो इमीए मह दंसणेण परिकहियं । उवभुत्तबहुसुहो वि हु जेण अउव्वं सुहं पत्तो ।।८१०॥ संते वि धरावलयम्मि मणहरे लडहरूवजुवइजणे । सा नत्थि तत्थ का वि हु अणुहरइ इमीए जा नारी ।।८११।। तो तावसी वि सव्वं पूयाइ जहक्कमं करेऊण । सह बालियाहिं पउणा नरिंदपासं समणुपत्ता ॥८१२।। जाइज्जइ वि तीए संलत्ते बडुयवंद(?द्र)परिवारो । पत्तो समत्तसंझा-विहिकम्मे आसमपयम्मि ॥८१३॥ Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ गंतूण गुरुसमीवं कयप्पणामेहिं रायपमुहेहिं । दिन्नासणेहिं सविणय-मुवविटुं हिट्ठहियएहिं ॥८१४।। पुट्ठो कुलवइणा वि हु ‘राया! कुसलं?' ति, तुह पसाएण । मह कुसलं ति मुणीसर !, नरवइणा कुलवई भणिओ ।।८१५।। अह सजलजलहरोरालिगहिरमहुरक्खराए वाणीए । उद्दिसिऊण नरिंदं कुलवइणा भणिउमाढत्तं ।।८१६।। भुयणाहिवस्स नरवइ भुयणुवयारेकुदिन्नहिययस्स । परदुहदुहियस्स न किंपि अत्थि जं ते अकहणीयं ।।८१७।। कह तम्मि समप्पिज्जइ दुहभारो जो न होइ समहियओ? । दोलादंडो व्व न जो उभयस्स वि कुणइ समदुक्खं ॥८१८॥ . कहियम्मि निययदुक्खे जइ वि दुही होइ सज्जणो तहवि । कहियव्वं जेण दुवे तदुवसमविहीए लग्गति ।।८१९।। तम्हा तुह कहियव्वं जओ महादुक्खजलहिपडियाण । अम्हाण पुन्नघडिओ नरिंद ! तं जाणवत्तं व ॥८२०॥ जं दिटुं जं च सुयं जं नियनाणप्पहावओ नायं । तं चंदसिरीचरियं कहेमि अच्छरियसंजणणं ।।८२१।। इह अत्थि भरहवासे नासिकं नाम पुरवरं रम्मं । नीसेसनयरगुणगण-विहूसियं ऊसियपडायं ।।८२२।। अइगहिरमहाफरिहा-जलबिंबियभुयणवियडपायारं । पायालपुरं नरलोय-दंसणत्थं व नीहरइ ।।८२३।। जं बहुपासायसयग्ग-भूमियाकयगवक्खलक्खेहिं । नियइ व्व कोउहल्ला नियसोहं विमलनयणेहिं ।।८२४।। Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ सुरपासायनिरंतर - सिहरसियधवलधयपडायाहिं । रविरहहयाण वियरइ, नहसरियालहरिसंमोहं ॥ ८२५ || गोयावरी वि जस्स य पवणवसुवे (व्वे)ल्लवीइसिहरेहिं । उव्वत्तमीणनयणा अब्भुट्टियनियइसोहं व ॥ ८२६॥ किं वन्निज्जइकिर तस्स जत्थ लोओ तिकालसंझासु । सिरिचंदप्पहदंसण- पक्खालियकलिमलो वसइ ||८२७ ।। तं पालइ परमपुरं नरनाहो निहयसयलपडिवक्खो । नामेण विचित्तजसो जसभरियदियंतराभोओ ॥ ८२८|| चउसायर-चउरेहा-समलंकियपुहइमंडलगयाण । वैरीण नरिंदेणं अवणीओ जेण दप्पजरो ॥८२९॥ आयासनिहित्तपया अणुरूवसया रिऊ अविस्संता । रविरहतुरयव्व भया जस्स पलायंति वणगहणे ॥। ८३० || जम्मि चलंतम्मि मही तुरयखुरक्खायधूलिवडलमिसा । काउं व अप्पसरिसे रिउणो समयं समुच्चलइ ||८३१|| जस्स पयावानलपसरमाण-घणधूमकलुसियाई व । पगलंति गलियकज्जल-मच्छीणि महारिवुवहूण ||८३२ || इय जस्स जसपयावा समयं जोण्हायवव्व ससि - रविणो । पसरंति एक्कओ च्चिय किं भन्नइ तस्स नरवईणो ||८३३ || तस्सत्थि विजियतेलोक जुवइरूवा पिया नरिंदस्स । नामेण विजयवई भज्जा नीसेसगुणगरुया || ८३४ || लावन्नसलिलसरिया पसइपमाणच्छिपत्तलइयव्व । सुपओहरनहवीही रमणसिलासेलभूमिव्व ||८३५|| ७७ Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७८ जीए मुहस्स ससिस्स य न अंतरं किंतु एत्तियं भिन्नं । संकुइय (यं) कमलसंड ससिणा नो तीए वयण ||८३६|| पीणुत्तुंगपओहर-पणोल्लिया जीए दोवि बाहुलया । मूलम्मि निबद्धफला फणसलयाओव्व सोहंति ॥ ८३७ || गुरुवित्धारा सोहइ जीए नियंबत्थली मणभिरामा । जत्थ सया कयवासो मयणमउ निवसइ सुहेण ॥ ८३८|| जिस्सोरुजंघियाओ सुकुमारतलग्गचरणकमलाओ । तलसंट्ठियकुम्मघडंत-रंभखंभव्व सोहंति ||८३९।। आपायमूलसियथूल-मोत्तियाहरणकिरणकब्बुरिया । जा आणदियभुवणा सरीरिणी मयणकित्तिव्व ॥८४० ॥ कह सव्वंगालोयण- सोक्खं पावंति पेच्छ अच्छीणि । एकुंगचंगिमाए वि बद्धाई व जाइ न चलति ॥ ८४१ ॥ इय सो सलाहणिज्जं तियसाण वि दुल्लहं विसयसोक्खं । तीए समं भुंजंतो गमेइ कालं सुरवइव्व ॥ ८४२ ।। पुव्वकुलकमजणिओ विचित्तजसरायसंगलद्धगुणो । सविवेयनिच्छियमई जिणधम्मे तीए अणुराओ ||८४३ || अह अन्नया कयाइं चंदप्पहदेवदंसणनिमित्तं । कुंतीविहारवसहिं विजयवई पत्थिया पव्वे ||८४४ || चउपुरिसवोज्झकंचण - जंपाणपरिट्टिया सह सहीहिं । बहुसेवयसयसंतय-निवारियासेसपहलोया ॥ ८४५ ।। वारविलासिणिकरकलिय-चडुलचमरावलीविलासिल्ला । पिट्ठपरिट्ठियगायण- गीयरसायन्नणसयण्हा ||८४६ || सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ 4 Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७९ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ किंकरकरग्गसंट्ठिय-महरिहपूओवगरणपडलेहिं । ‘सर ओसर'त्ति जंपिर-पडिहारेहिं व्व परियरिया ॥८४७।। जा जाइ पुरो तुरियं ता पेच्छइ जिणहरं परमरम्मं । गोउरदारपरिट्ठिय-बहुमालायारसंकिन्नं ।।८४८।। नीणंत-विसंताणं संघट्टघडंतथोरथणयाण । जुयईण हारलइया-गलंतमोत्ताहलाइन्नं ।।८४९।। जालंतरविवरवसा बहुविहमिव जत्थ धूवघणवडलं । जिणदसणखंडियभव्वलोयपावं व नीहरइ ॥८५०।। अंतोपविट्ठसावय-जिणवंदणजाय-अफुडघोसमिसा । हुंकारिऊण दूरा खिवइव्व कुतित्थगहमोहं ॥८५१।। सहयारसोणपल्लव-तोरणसोहंतसुंदरदुवारं । नहूं नियइ व्व पुणो कोवारुणलोयणेहिं तमं ।।८५२।। पुफ(प्फ)पगरच्छलेणं वणस्सइजोणिवासभीएहिं । लुढमाणेहिं व पुरओ जिणस्स कुसुमेहिं सोहंतं ||८५३।। पुरओ अखंडदीवय-परंपरापयडमंडवपएसं । बहुजोइगणेहिं व जं सेविज्जंतं फुरंतेहिं ।।८५४॥ एवंविहम्मि जिणवर-हरम्मि पविसिय पसंतवावारा । पूयइ चंदप्पहपाय-पंकयं परमभत्तीए ।।८५५।। कयकुसुमपत्तपूओ मणिभूसणसोणकिरणकब्बुरिओ । घणकुसुमदुमंतरिओ सहइ जिणो अहिणवससिव्व ॥८५६।। निग्गंथस्स वि परमेसरस्स पासे सुपरिनिहित्ताई । वत्थाई तीए बहुगुण-सुभत्तिपडलाइ व सहति ||८५७।। Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . ८० सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ एक्केण चिय सुगुणेण लहइ मलिणो वि उत्तमासंगं । पेच्छह जिणतणुफंसो कालायरुणा कहं पत्तो ? ||८५८।। इय एवमाइ बहुविह-महरिहपूयाइ पूइऊण जिणं । पथुणइ हरिसुग्गयपुलयपडलपरिकरियसव्वंगा ।।८५९।। "तुह नाह ! पयपणामु-लसंतसंतोससुहियहिययाए । मह परिणयं जमेसा तुह सेवा सयलसुहहेऊ !।८६०॥ न पडंति ते दुरुत्तर-संसारमहोयहिम्मि बहुदुक्खे । संपडइ जाणवत्तं व जाण पयपंकयं तुज्झ ।।८६१।। तुज्झ नमोत्ति पलत्ते पलाइ दूरेण देव ! दुरियभरो । जवियम्मि सिद्धमंते भूयवियारा न नासंति ? ।।८६२।। इय तित्थेसर ! नीसेस-भुयणपरमत्थबंधव ! नमो ते । मोत्तूण तुमं जम्म-तरेवि मा होउ अन्नमई" ।।८६३।। एवं बहुप्पयारं थोऊण जिणं पराए भत्तीए । . धरणिनिहिउत्तिमंगा पुणो पुणो पणमइ जिणस्स ।।८६४॥ पडिहारदरिसियपहा विविहसहापरिगयस्स सूरिस्स । निम्मलमइस्स पासं गंतूणं पणमइ पहिट्ठा ।।८६५।। गुरुणावि सायरेणं आसासिय धम्मलाहदाणेण । 'उवविससु'त्ति सपणयं भणिया उवविसइ चरणंते ॥८६६।। अह भणइ गुरू गंभीर-महुरनिघो(ग्घो)सपूरियदियंतो । उद्दिसिउं विजयवई ललियपयं एरिसं वयणं ।।८६७।। “धन्ना सि तुमं वच्छे ! जा सम्मं जिणवरिंदपयकमलं । अवहत्थियन्नकज्जा पूएसि पराए भत्तीए ।।८६८।। Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ इहइं दुरियविणासो परलोए परममोक्खसंपत्ती । परमेसराण पूया जिणाण तं किं न जं कुणइ ? ||८६९।। गुणरयणरायहाणी दूरोसारियअसेसमलपडला । इयरजणे दुद्धरिसा जिणपूया जलहिवेलव्व ॥८७०।। नीसेसभुयणपरिगय-पयत्थसंपाडणेकदुल्ललिया । संपडइ सपुन्नाणं जिणपूया कप्पवल्लिव्व ।।८७१।। पसमइ पिसाय-साइणि-गह-रक्खस-भूयपभिइभयनिवहं । पूया जिणेसराणं अइसयविज्जव्व उवउत्ता ॥८७२।। अप्पा न केवलं चिय जिणपूयं पेच्छिऊण अन्नो वि । अणुमोयंतो मणसा सुज्झइ इह नत्थि संदेहो ॥८७३॥ उच्छाहो मणसुद्धी पवित्तिया सव्वगत्तलहुयत्तं । मइपसरो सुहभावो दुरियविणासो य जसकित्ती ॥८७४।। इस्सरियं सोहग्गं जणाणुराओ कुबुद्धिनासो य। जिणपूयानिरयाणं अणुहवसिद्धा गुणा एए ॥८७५॥ परलोए पुण पूया हिययनिहित्ता वि कुणइ कम्मखयं । पुफा(प्फा)इएहिं किं पुण बहुमाणकया सहत्थेणं ! ॥८७६॥ वरगंध-वास-कुसुमाई(इ)एहिं नेविज्ज-धूव-दीवेहिं । फल-जलपत्तेहिं तहा जिणपूया अट्ठहा होइ ॥८७७॥ घणसार-हरिणनाही-सुयंधवर-वासखेवपूयमिसा । जिणपवणसंगमेण व पावरयं दूरमुढे(टे)इ ॥८७८॥ बहुकुसुमसोहियंगो विणिम्मिओ सुरतरुव्व जेहिं जिणो । ताण मणचिंतिएहिं विविहेहिं फलेहिं सो फलिही ॥८७९।। Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ नहकिरि(र)णजले जिणपयसरोवरे अक्खए खिवंताणं । आकर(रि)सियव्व ताणं मीणिव्व सिरी समल्लियइ ।।८८०।। अइनिम्मलाई मलिणा जिणंगसंगेण धूवधूमसिहा । कज्जाइं कुणइ इहयिं भवियाणं गवललेहव्व ।।८८१।। जो देइ दीवयं जिणवरस्स पुरओ पराए भत्तीए । तेणेव तस्स डज्झइ पावपयंगो न संदेहो ॥८८२।। खणतित्तिएण लब्भइ नेवेज्जेणं जमख(क्ख)या तित्ती । तं सासयस्विसुहतित्त-तित्थनाहस्स माहप्पं ।।८८३।। एकं पि फलं पुरओ जो ठवइ जिणस्स परमभत्तीए । तस्स फलंति अवस्सं नरस्स सयलाओ वि दिसाओ ।।८८४।। जलभरियपत्तमेत्तो संसारमहोयही फुडं तस्स । जो ठवइ जिणस्स पुरो सीयलजलपूरियं पत्तं ।।८८५।। इय जिणनाहपयच्चण-सच्चरियविसुद्धपावपंकाण । धन्नाण जंति दियहा तकज्जनिहित्तचित्ताण ।।८८६।। जिणपूया मुणिं(णि)दाणं एत्तियमेत्तं गिहीण सच्चरियं । एएसु वि जइ भट्ठो ता भट्ठो सव्वकज्जेसु ।।८८७।। उभयंपि जहासत्तीए कीरमाणं करेइ कम्मखयं । पावेइ पयर्टीतो विथक्कपहिओ वि नयठाणं ।।८८८।। तित्थेसराण अइभत्ति-कप्पियं कह वि पत्तखंडं पि । संसारजलहिपडियाण पोयपत्तं व तं होइ ।।८८९।। इय सव्वपयत्तेणं अविकलसामग्गियं च लभ्रूण । जण-मुणिकज्जेसु सया तदि(द्दि?)ट्ठफला समुज्जमसु ।।८९०।। Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ खत्तियकुलम्मि जम्मो जिणधम्मे अविचला य तुह भत्ती । निरवज्जा रज्जसिरी पुव्वज्जियधम्मफलमेयं ॥८९१॥ एयवयणावसाणे विजयवई सिरि निहित्तकरकमला । भणइ गुरुं सविसेसं तुम्हाएसं करिस्सामि ।।८९२।। परमेगमजाणंती पुच्छामि अहं कहेह मह एयं । जइ पुट्विं कयधम्मा कहं न मे पुत्तसंपत्ती ? ||८९३॥ मोत्तुं जिणदसण-पूयणं च गुरुचरणकमलसेवं च । सुयविरहियाए अन्नं सव्वं पि दुहावहं मज्झ ॥८९४।। चित्तसमाहाणे सइ रज्जाइपरिग्गहो सुहं जणइ । उम्मत्तयरज्जं पिव तमन्नहा कुणइ जणहासं ||८९५।। असरिसजणेण दिन्नं दुव्वयणं पि हु तहा न मे तवइ । निरवच्चयाए जणिओ वंझासदो जहा निसुओ ||८९६।। अह भणइ गुरू वच्छे ! दुक्खं सवियप्पकप्पियं तुज्झ । न उणो परमत्थवियारणासु निरवच्चया दुक्खं ।।८९७।। जाव न तुह होइ सुओ पसरइ मोहो न ताव हिययम्मि । जायम्मि सुए मोहा ममत्ति भावो परे(रो?) होइ ।।८९८॥ को तुह परमत्थगुणो उप्पज्जइ तेण किर प्पसूएण । मोत्तुं बाहिरववहार-संगयं लोयवामोहं ।।८९९।। सहलिज्जइ सुयजम्मो एत्तियमेत्तेण जं तओ एत्थ । अणवच्छिन्नं पसरइ पुत्त-पपुत्ताइसंताणं ।।९००। अह भणइ पुणो देवी भयवं ! इह मिच्छ(च्छा)दिट्ठिणो केवि। परलोयसुहो पुत्तो कहमेवं नाह ! पडिवन्ना ? ॥९०१।। Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ पुत्तो जाओ जम्हा तायइ नरयाओ तेण पुत्तो त्ति । तव्विरहियाण विफलो इहलोगो तह य परलोगो ।।९०२।। अह भणइ पुणो सूरी सुंदरि ! एवं वि मोहमूढाण । वयणं जुत्तिविरुद्धं जह होइ तहा निसामेसु ॥९०३। सव्वन्नुणा पणीयं पमाणमिह जुत्तिसंगयं वयणं । मूढाण पुणो भण केत्तियाई वयणाई सुव्वंतु? ||९०४।। जीवो अणाइनिहणो पत्तेयमणाइकम्मसंजुत्तो । . के के न तस्स जाया पिय-माइ-सुयाइणो भावा? ||९०५।। जो च्चेय सुओ संपइ तस्स पिया दुकयकम्मवसवत्ती । वच्चइ नरयमसरणो न परित्ताणं कुणइ पुत्तो ॥९०६॥ पिंडपयाणाईहिं वि न तस्स उव्वट्टणं तओ होइ । जाव न भुत्तमसेसं नरयाउं पुव्वभवबद्धं ॥९०७।। वच्चउ पहास-कनखल-पयाग-भिगु-सुकृतित्थ-गंगासु । होइ न पियरुद्धरणं जाव न कम्मं समणुहूयं ।।९०८।। उभयखुरी तिलधेणू संडविवाहाइसयलकिरियाओ । धणलुद्धविप्पयारण-मेयं न उणो तदुवयारो ॥९०९।।। अह कहवि सुकयकम्मो-दएण सग्गं पयाइ जइ जणओ । तत्थ वि न पुत्तजणिओ उवयारो तस्स संपडइ ॥९१०॥ मणइच्छियसंपज्जंतसयलसोक्खस्स तियसलोयम्मि । कह अहिलसइ सुएणं निंदियमसणाई(इ)यं दिन्नं?।।९११।। तम्हा जं जेण कयं सुहमसुहं तविहेण चित्तेण । सो लहह तं तहच्चिय अकारणं पुत्तवामोहो ।।९१२।। Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ जइ पुत्तो च्चिय पालइ परलोए ता न जुत्तमिह काउं ।। देवच्चण-तव-संजम-सुपत्तदाणाइ किरियाओ ।।९१३॥ पुव्वभवेसु वि बहवे आसि सुआ किंत(किंतु?)एत्थ लोयस्स । तहवि न जा पइदियहं भुत्तं तित्ती न ता वा(या?)ण(?) ।।९१४।। ता सव्वे चिय एए सकामधम्मा अदिट्ठपरमत्था । एक्को च्चिय मोक्खफलो जिणधम्मो एत्थ संसारे ॥९१५।। ता तत्थ धम्मसीले परमत्थमई करेसु मा पुत्ते । ववहारसुहनिमित्तं सो वि तुहं होही(हिइ) अवस्सं ॥९१६।। जम्हा तुहंगगयलक्खणाई नो वभिचरंति सुयभावं । सोऊण अवितहं मह वयणं धीरवसु अप्पाणं ॥९१७॥ कुणसु सविसेसभत्तिं चंदप्पहनाहचरणकमलेसु । पूयारिहेसु साहुसु पूर्य पि करेहि भत्तीए ॥९१८।। पसमइ वाहिवियारं सवत्तिदोसं च भूयदोसं च । तित्थयर-साहुपूया कीरंती निययसत्तीए ।९१९।। अन्नं पि तुज्झ सुंदरि ! साहिप्पइ सप्पहावगुणकलिया । नामेण वारवासिणि-कोहंडी अत्थि इह देवी ॥९२०।। तं सम्ममणन्नमणो आराहंतो नरो व्व नारि व्व । पावइ हिययब्भहियं समीहियं नत्थि संदेहो ।।९२१।। पयइउवरोहसीला सा देवी तुज्झविहियसेवाए । देइ समीहियसिद्धिं भवियाण पुणो विसेसेण ॥९२२॥ तं सूरिसमाएसं तह त्ति पडिवज्जिऊण विजयवई । सविणयकयप्पणामा तद्दिन्नमणा गया गेहं ।।९२३।। Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८६ गंतूण सा असेसं गुरूवइटुं कहेइ नरवइणो । तेणावि तहा भणियं न ( न ) अन्नहा गुरुसमाइट्ठ ।।९२४।। कुणसु पिए ! जिणभवणे अट्ठाहियमाइपूयसक्कारं । देहि जहिच्छं मुणि- साहुणीसु वत्थाइयं दाणं ।। ९२५ ।। अंबादेवीए तहा साहमि (म्मि) यवच्छलाए अणुदियहं । महरिहपूया विहिणा करेसु भत्तीए पयसेवं ।। ९२६ ।। इयरो वि जणो तूसइ एकग्गमणेण सेविओ संतो । किं पुण नो दिन्नसुहा दक्खिन्नमहोयही देवी ? ||९२७ ।। इय लद्धपियाएसा विसेससंजायपहरिसा देवी । नियचित्त-वित्तसरिसं जिणपूयं काउमाढत्ता ॥ ९२८ ॥ जिण-मुणिपूयापयरिस - विसेसपुन्नुज्जलाए देवीए । दूरेणं चिय नट्ठो दुट्ठो इव पावपब्भारो ।। ९२९।। पंचामय-गंधोदय-विसिदव्वेहिं सा जिणं ण्हवइ । उस्सरइ पुणो तिस्सा कम्ममलो तं महच्छरियं ! || ९३० ॥ घणसारमिस्स-वरचंदणेण तित्थेसरं समालहइ । ओहरइ पुणो तिस्सा पुराकओ दक्खसंतावो ।। ९३१ ।। सियसुरहिकुसुमपरिमल-मिलंतबहुभमरदामपूयासु । पेच्छइ सुहासुहाणं तव्वेलं मल्लजुज्झं व ॥९३२॥ विजयवईनिद्धयं पावं पावत्तणस्स भीयं व्व । जाइ जिणं चिय सरणं वेविरधूमावलिमिसेण ||९३३ || इय नाणाविहपूया-मणहरपेच्छणय-नट्ट-गीएहिं । अणुदियहसमाराहण- विसुद्ध हिययाए जंति दिणा || ९३४ || सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ पंचमि-दसमितिहीसु य विसेसतवसंजुया य कोहंडि(डिं) । आराहइ एक्कमणा पुव्वुत्तविसेसपूयाहिं ॥९३५।। अन्नम्मि दिणे सियपंचमीए कयजागराए देवीए । निसि पच्छिमम्मि जामे अंबाए सा इमं भणिया ॥९३६॥ दढसम्मत्तगुणेणं जिण-गुरुपयपूयणेण तुह पुत्ति! । रंजियचित्ता अहयं तुट्ठ म्हि वरं वरेसु त्ति ।।९३७॥ कारणमिह जिणभत्ती जिणभत्ताणुग्गहम्मि मह बुद्धी । जिणभत्तिवज्जियाणं मह भत्ताणं पि नो सिद्धी ।।९३८।। जं चिंतिउं न तीरइ अच्छउ वोत्तुं तयं पि पत्थेहि । संपाडेमि अवस्सं वच्छे ! तेलोकरज्जंपि ॥९३९।। भासुरसरीरभूसण-पहापरिक्खेवरंजियदियंता । रायपत्तीए देवी पच्चक्खं तत्थ सच्चविया ।।९४०।। दठूण ससंभंता कुणइ पणामं पुणो इमं भणइ । कुलनहयलहरिणकं देहि सुयं देवि ! धूयं च ॥९४१।। उभयं पि तुज्झ होही असंसयं जिण-गुरुप्पंसाएण । इय भणिऊणं देवी तिरोहिया विज्जुलइय व्व ॥९४२।। विजयवई वि य असरिस-संतोसविसेसजायघणपुलया । काऊण जिण-गुरूणं पूय-पणामं गया भवणं ॥९४३।। नियभत्तुणो वि सव्वं जहट्ठियं साहियं च तेणावि । भणियं देवि ! असेसं जिण-गुरुपूयाफलं एयं ॥९४४।। ता देवि ! अविसंता तद्दिट्ठफला करेसु भत्तीए । पूयाइसु सविसेसं समुज्जमं सग्ग-सिवहेउं ॥९४५।। Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ एवं तिवग्गसुहसंगयाए बुहजणपसंसणिज्जाए । सफलीकयजियलोया दियहा देवीए वच्चंति ।।९४६।। अह अन्नदिणे देवी रयणिविरामम्मि सुविणयं नियइ । संपुन्नससिं वयणे पविसंतं कुसुममालं च ॥९४७।। तयणंतरं पबुद्धा पहरिसवसपसरमाणघणपुलइया(पुलया)। विजयवई नरवइणो सविम्हया कहइ जहदिटुं ।।९४८।। अह सो असेससत्थत्थ-पारगो भणइ देवि! सुहसुविणो। ससिदंसणेण पुत्तो होही मालाए पुण दुहिया ।।९४९।। तं नरवइणो वयणं तहत्ति पडिवज्जिऊण देवीए । वत्थंचलेण सहसा तुरियं बद्धो सउणगंट्ठी ।।९५०॥ अह तम्मि चेव दिवसे पुव्वज्जियपुन्नरासिपरियरियं । संकंठं कुच्छीए सुय-धूयाजुयलयं तिस्सा ।।९५१।। गब्भाण(णु)हावओ च्चिय आवंडुसरीरसुंदरा सहइ । गब्भट्ठियपुत्तपयट्ट सेयजसकिरणच्छुरिय व्व ॥९५२॥ अंगीकयभुयणुद्धरण-सत्तिअइगरुयसुयसमुव्वहणा । अब्भुट्ठइ नरनाहं कहकहवि भरालससरीरा ॥९५३।। रेहइ लुढंतहार-पीणुच्चपओहराण जुयलं से । बहुथन्नभारपसरिय-उड्डाहो विविहधारं व्व ॥९५४।। पडिभग्गतिवलिवलयं मज्झे दरदीसमाणरोमलयं ।। सहइ व्व तीए उयरं चक्खूभया दिन्नमसिरेहं ।।९५५।। इय पयडियपुन्नविसेस-विविहडोहलयसूइयविभूई । परिवडिओ सुहेणं गब्भो नरनाहदइयाए ॥९५६।। Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ अह तीए दसममासे पसत्थतिहि-वार-रिक्ख-लग्गम्मि । विजयवइए सलक्खण-सुय-धूयाजुयलयं जायं ॥९५७।। तक्खणमेत्तं देवी सुय-धूयाजुयलपरिगया सहइ । संझासंगयससहर-विहूसिया पुन्निमनिसिव्व ।।९५८।। परिमियजणप्पवेसं दुवारकयपुन्नकुंभ-बहुरक्खं । हल्लफलमाइजणणं संजायं सूइयागेहं ।।९५९।। निक्कंपपईवसिहा-पहापरिक्खेवपसरियालोयं । सुयजम्मजायपहरिस-परवसमिव हसइ सुइभवणं ।।९६०॥ वद्धाविउ(ओ)नरिंदो अवरोप्परपरिगयाहिं चेडीहिं । सुय-धूयाजम्मेणं देइ तओ ताण बहुदाणं ॥९६१।। तयणंतरं च राया वद्धावणयं करेइ हरिसवसा । आणंदियपौरजणं बहुतककुयदिन्नधणनिवहं ॥९६२॥ करणंगहारमणहर-विलासिणीयणपयट्टनवनटें । विविहसि(?वि?)डिंगविलोट्टिय-खोट्टीकलयकलयलगहीरं ।।९६३।। इय एवमाइबहुविह-पेच्छणयविणोयरंजियमणस्स । समइक्तो मासो अदेयच्छत्तस्स नरवइणो ।।९६४।। अह सोहणम्मि दियहे कयपूयापयरिसो जिणिंदस्स । सम्माणियसयलजणो करेइ नामाई दोण्हं पि ॥९६५।। चंदप्पहपयपूया-पसायलद्धो त्ति तेण चंदजसो । पुत्तस्स कयं नामं चंदसिरी नाम धूयाए ।।९६६।। बहुधाइपरिवुडाणं बहुरक्खाकंडकलियकंठणं । बहुलोयरक्खियाणं वच्चंति दिणाणि ताण सुहं ।।९६७।। Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९० सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ एवं कमेण दोण्ह वि पइसमयपवड्डमाणदेहाण । विन्नाण-कलागहणे समओ समुवडिओ ताण ।।९६८।। अह सोहणम्मि दियहे दोवि समं विहियउचियपडिवत्तिं । जुगवं समप्पियाई सयलकलाकुसलविबुहाण ॥९६९।। पुव्वभवब्भत्थाई व पयइपसन्नम्मि हिययआयरिसे । पडिबिंबिय व्व ताणं संकंता सयलसत्थत्था ।।९७०।। दिवस-निसाजुयलं पिव ल« रवि-ससहरव्व तं उभयं । विन्नाण-कलाइगुणो अहिययरं विप्फुरंति व्व ।।९७१।। नीसेसकलापयरिस-विसेसविन्नाणगुणमहग्घवियं । उभयपि विबुहमज्झे निदरिसणं जायमच्चत्थं ॥९७२।। अइसयविन्नाण-कला-गुणब्भवा ताण भुवणमज्झम्मि । पसरइ अपरिक्खलिया ससहरकरपंडुरा कित्ती ॥९७३।। तं किंपि ताण रूवं जस्स न सुरलोयमज्झयारम्मि । अणुहरइ सुरो कुमरं कुमरीए पुणो तियसनारी ॥९७४।। पइदियसविसेसमुल्लसंतसव्वंगरूवरेहाण । चित्तगयपुत्तलाण व उब्भिन्नो जोवणारंभो ॥९७५।। दठूण जमुभयं चिय विलासपरिपेसियच्छिविच्छोहा । जुयइ-जुयाणा सहसा जायंति पिसायगहियव्व ।।९७६।। सिढिलियसीलाहरणं विमुक्कलज्जंसुयं कयमणेहिं । आसंघियवयणीयं रूवाइं(इ)गुणेहिं भुयणं पि ॥९७७।। एवं च ताण दोण्ह वि कुलक्कमेणं च पुव्वपुन्नेहिं । जिणधम्मे बहुभत्ती संजाया लहुयकम्माण ॥९७८॥ Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ अणवरयमणन्नमणाई दो वि चंदप्पहस्स पयकमलं । पूयंति संथुणंति य सुणंति जिणदेसियं धम्मं ।।९७९।। अह अन्नया पहाए निव्वत्तियसयलगोसकरणीओ । अत्थाणे उवविट्ठो विचित्तजसनरवई जाव ।।९८०।। ता सहस च्चिय गयणे गुरुवेयवियंभमाणपवणवसा । अइउद्धधय-वडायं अवयरमाणं धरणिवढे ।।९८१।। पवणपहल्लिरघंटा-गरुयटणक्कारबहिरियदियंतं । करकलियचारुचमरं ससिहरविज्जाहरिसणाहं ।।९८२।। अइवेयवसनिवेसिय-चलनयणुव(व्व)त्तकंधराबंधं । उम्मुहनयरमहाजण-सच्चवियं कोऊ(उ)हल्लेण ||९८३।। सुव्वंतवेणु-वीणा-मीसियपसरंतगेयझं(झ)कारं । सहस त्ति पुरो दिलै नरवइणा वरविमाणजुयं ।९८४।। नीहरइ हार-कुंडल-किरीड-कडयंगाई(इ)आहरणा । दिव्वंसुयनेव्व(व)त्था विज्जाहरकुमरसंघाडी ।।९८५।। आगंतूण य खयरा पडिहारअहिट्ठिए दुवारम्मि । जाणावह नरवइणो अम्हागमणं पि(ति) पभणंति ।।९८६।। नरवइणा अणुन्नाया पडिहारपवेसिया य ते खयरा । दिन्नासणा सहेलं कयववहारा उवविसंति ।।९८७।। पणइजणवच्छलेणं विचित्तजसराइणा सपरिओसं । . परिपुच्छिया असेसं कुसलोदंताइ ते खयरा ॥९८८।। तेहिं पि तुम्ह दंसण-पहावओ अज्ज अम्ह कुसलं ति । भणियं मणागमोणय-वयणेहिं नरेसरस्स पुरो ॥९८९।। Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९२ अह नरवय (इ) णा भणियं विज्जाबलसिद्धसव्वकज्जाण । किं काहामो अम्हे तहावि भण किं करेमि ? त्ति । । ९९०॥ विज्जाहरेहिं भणियं नरवाल ! तए अणन्नहियण । सोयव्वो सव्वो वि हु जहवित्तो वइयरो अम्ह ।।९९१।। इह दाहिणड्डूभारह - सीमासंभावणाए सुपसिद्धो । अत्थि गिरी वेयो असेसविज्जाहरनिवासो ॥ ९९२ ॥ ततत्थि (तत्थत्थि) उत्तरेयर-सेढीसु जहक्कमं वरपुराणि । पंना (पन्ना) सा तह सट्ठी तेसु पहाणे पुरे दोन्नि ।। ९९३ ॥ सिरिगयणसेहरपुरं रहनेउरचक्कुवालनामं च । तेसु दुवे रायाणो चित्तगई चित्तवेगो य ।।९९४।। भाणुमई तेयमई ताण मणोवल्लहा उ दो भज्जा । ताणम्हे दोन्नि सुया नामेण असोय-सेहरया ।। ९९५ ।। अन्नदिणे अट्ठावय- सिहरग्गपरिट्ठियाण जत्तासु । चवीस जणाणम्हे दुवे वि सपरिग्गहा चलिया ||९९६ ।। पत्ता संपत्तसुरिंद- पारदपूयसक्कारं । नीसंक्कसक्कसरहस- पारंभियगीय - पेच्छणयं ।। ९९७॥ निव्वत्तियम्मि सुरवइ-पेच्छणये परिगयम्मि सुरसंघे । जिणपुरओ अम्हेहिं वि पारद्धं तत्थ पेच्छणयं ॥ ९९८ ॥ उभएसि पि परिग्गह- लोएहिं कयं जिणस्स पेच्छणयं । अम्हेहिं दोहिं वि तउ पारद्धं भगवओ गीयं ।। ९९९ ।। अह गाइउं पयत्तो पढमं अहमेव विविहकरणेहिं । एलेकतालिटिंकी कुंव ( च ? ) णयनिबद्धसूडेहिं ( ? ) ||१००० || सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९३ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ सेहरकुमरेण तओ मह गीयविसेसियं कयं गीयं । निसुएण जेण दूरं गीयमओ मज्झ वि पणट्ठो ॥१००१।। विरए इमम्मि पुणरवि जिओ म्हि एएण इय मईए मए । तग्गीयविसेसगुणं जिणपुरओ गाइयं गीयं ।।१००२।। इय अन्नोन्नविवट्टिय(ड्डिय) गुणमच्छरजायछलविवायाण । दोहिं पि अम्ह जाओ अइगरुओ कलयलो तत्थ ॥१००३।। तयणंतरं च भणिओ सेहरकुमरो मए जहा एत्थ । किं कलयलेण जामो समहियगुण-सन्निहाणम्मि ।।१००४।। तो सेहरेण भणिओ न मच्चलोयम्मि समहिओ को वि । इह अत्थि जो अव(जोऽव)णेही मह तुज्झ वि गुणविसंवायं ।।१००५।। एत्थंतरम्मि एगो तव्वेलमुवागओ सुरो तत्थ । तेणम्हे पडिभणिया नरलोयं कीस निंदेह ? ||१००६।। इह अज्जवि नरलोए गुणिणो ते संति जाण गुणगरुओ । चरणरओ वि न सक्का वोढुं विज्जाहर-सुरा वि ॥१००७।। तं सोऊण दुवेहिं वि पुरओ ठाऊण तस्स तियसस्स । भणियं कहेहि को सो गुणाहिओ मच्चलोयम्मि ? ||१००८।। तियसेण तओ भणियं नासिकपुरे विचित्तजसराया । विजयवई से भज्जा अत्थि सुओ तीए दुहिया य ॥१००९।। चंदजसो चंदसिरी नामाइं कमेण ताण इय होति । न हु ताण गुणब्भहिओ पुरिसो जुयइ व्व भुयणम्मि ।।१०१०।। ता दोण्हं पि हु निययं गुणजणिओ एस जो अहंकारो ।। तुम्हं तीसे सो वि हु फिट्टिहइ न एत्थ संदेहो ॥१०११।। Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ तं तियसवयणमम्हे सोऊण इहागया तुह समीवं । ता पत्थिवम(व!अ)म्हाणं दरिसेसु सुयं च धूयं च ।।१०१२॥ इय भणिऊण असोओ तुण्हिको जा खणंतरं होइ । ता ज्झत्ति ताण सवणे संपत्तो दिव्वगेयझुणी ।।१०१३।। सोऊण महुरमंथर-थिर सुस्सरविसेसरमणीयं । हुफिंय-तरलिय-कुरुलिय-गुरु-गमयविभागगंभीरं ॥१०१४॥ संमीलियनयणजुया निच्चेट्ठा चित्तभित्तिलिहिय व्व । घणविम्हयं वहंता दोण्हि वि ते भणिउमाढत्ता ।।१०१५।। नूणं गयणंगणगोयराण गंधव्व-किन्नरगणाण । गीयमिणं न य एवं खेयर-मणुएसु संभवइ ।।१०१६।। ईसि(सी)सि विहसिऊणं विचित्तजसनरवई पुणो भणइ । उवरिमभूमीए गया चंदसिरी गीयमब्भसइ ॥१०१७।। जइ एसो अब्भासो नरिंद ! ता पयरिसो क्खु को होही!। इय भणिओ पुण खेयर-कुमरेहिं नरेसरो वयणं ।।१०१८।। दरिसेसु नरिंद ! नियं दुहियं तं अम्ह जेण पेच्छामो । सवणा न केवलं चिय सकयत्थीहोंतु नयणा वि ।।१०१९।। अह नरवइणा तुरियं पडिहारं पेसिऊण चंदसिरी । सद्दाविया सहरिसं समागया परियणसमेया ।।१०२०।। सव्वावयवसमुज्जल-मुत्ताहलभूसणंसुधवलंगी । खीरोव(य)हिनीहरिया सिरि व्व पुरिसोत्तिमासाए ॥१०२१।। मागहविलयाविरइय-उद्दाममहाथुईहिं थुवं(व्वं)ता । सहियायणसंभासण-वसपसरियतरलतारच्छी ।।१०२२।। Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ नेउरसद्दाकरिसिय-चलणंतवलंतहंससोहिल्ला । लीलाकमलग्गकरा देविव्व सरस्सई पयडा ।१०२३।। संगोयंती सणियं उवरिल्लवरंचलेण सव्वंगं । मा होउ भुयणखोहो मं दटु इय मईए व्व ।।१०२४।। पूइज्जती सहरिस-विसेसविसयंत(वियसंत)नयणकमलेहिं । समकालनिवडिएहिं जणस्स पच्चूससंज्झ व्व ॥१०२५।। संजीवियं व्व सहसा असोय-सेहरयनयणमीणेहिं । कुट्ठाणताविएहिं व चंदसिरीसरिनिवाएण ।।१०२६।। अह ताण रूव-जोव्वण-विज्जा-विन्नाण-गुण-अहंकारा । चंदसिरिदसणेणं निमीलिया कमलसंडव्व ॥१०२७।। पेच्छंताणं तिस्सा अच्चब्भुयमुत्तरोत्तरसरूवं । दोण्हं पि न तव्विसया हिययवियप्पा समप्पंति ॥१०२८।। तिस्सा रूवनिरूवण-पवरसहिययाण ताण दोण्हं पि । किं कज्जा ? कत्थ व ? के अम्हे ? एयं पि वीसरियं ।।१०२९।। तयणंतरंब-पिउणो पणामपुव्वं पकप्पिए पुट्विं । सा नरवइआसन्ने उवविठ्ठा आसणवरम्मि ।१०३०।। दट्टणं चंदसिरिं एवं ते चिंतिउं समाढत्ता । किं निफ(निप्फ)लेण इमिणा कज्जं किर गुणविवाएण ? ॥१०३१॥ गुणगरुयजणस्स पुरो लज्जिज्जइ निग्गुणेहिं वोत्तुं पि । लज्जायरेण किं पुण वियारअखमेण वाएण ॥१०३२।। सो सयलगुणनिहाणं सफलो तिस्सेव एस संसारो । जो ‘पिय' सदं लहिही इमीए तेलोक्कसाराए ॥१०३३।। Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ तयणंतरं असोओ चित्ते चिंतेइ जाव सेहरओ । इह चिट्ठइ ताव न मे निव्विग्घं होइ चंदसिरी ॥१०३४।। ता कह वंचेमि इमं विज्जा-सारीरबलसमब्भि(ब्भ)हियं । सेहरयं समरंगण-लद्धजयं सयलजयसुहडं ||१०३५।। एत्थंतरम्मि सहसा गयणाओ विणिंतरुहिरपब्भारं । दट्ठोट्ठभिउडिभीमं अत्थाणे निवडियं सीसं ।।१०३६।। घोलंतकन्नकुंडल-किरीडमणिसोणकिरि(र)णविच्छू(च्छु)रियं । पडिवक्खकोवहुयवह-कवलियमिव वहइ अप्पाणं ।।१०३७।। तलगयमउडनिवेसं उद्धट्ठियवयणभासुरं सहइ । छिन्नं पि हु रोसवसा नियइ व्व नहम्मि पडिवक्खं ॥१०३८॥ तं सेहरेण सहसा हाहत्ति पजंपिरेण सच्चवियं । निउणयरनिहियनयणं ससंकमिव पभणियं एयं ।।१०३९।। नहसेहरस्स एवं सीसमहो ! केण पावकम्मेण । मह लहुयभाउणो इह निवाडियं धरणिवट्ठम्मि ? ॥१०४०॥ तयणंतरं च तस्स य मणदइया पणइणी विणयलच्छी । नामेण समोइन्ना गंडंतलुलंतघणकेसा ॥१०४१॥ हा अज्जउत्त ! गयणे वच्चंताणम्ह चंडवेगेण । तुह समुहमागएणं भण कीस निवाडियं सीसं ? ||१०४२॥ अह सेहरो रुयंती(ति) भाउज्जायं नियच्छिउं तयणु । दढजायपच्चओ सो कोवारुणलोयणो भणइ ।।१०४३।। मा रुयसु तुमं सुंदरि ! मग्गं मह कहसु जेण सो नट्ठो । इय सेहरेण भणिया रुयमाणी सा इमं भणइ ।।१०४४।। Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सेरिभुयणसुंदरीकहा ॥ हंतूण मज्झ दइयं उत्तरहुत्तं च सो गओ पावो । इ[इ]भणिए सेहरओ उप्पइओ गयणमग्गम्मि ॥१०४५।। भज्जा वि तस्स सीसं घेत्तूण विमुक्ककरुणआक्कंदा । तस्साणुमग्गलग्गा उप्पइया गयणमग्गम्मि ॥१०४६॥ सव्वेहिं(हि)वि तं दटुं नरिंदमाइ(ई)हिं वइयरमउव्वं । अणुसोइया सदुक्खं विणयवई तीए भत्ता वि ॥१०४७।। एत्थंतरम्मि पुरओ चंदसिरी संतियं असोयस्स । दठूण वरविमाणं कोऊहलतरलिया भणइ ।।१०४८।। ताय ! किमेयं पुरओ मणिमयसिहरुच्छलंतकिरणेहिं । दिणयरमयूहसमुहं किरइ व्व समच्छरं रोसं ॥१०४९।। ईसीसि विहसिऊणं चंदसिरी राइणा इमं भणिया । पुत्त(त्ति)य ! विमाणमेयं एयस्स असोयखयरस्स ।।१०५०।। हियइच्छियं पएसं पुत्त(त्ति)य ! पावंति एयमारूढा । अइसयपहावविज्जा-देवीण गुणाणुभावेण ॥१०५१॥ एत्थंतरम्मि भणिया चंदसिरी सहरिसं असोएण । जइ तुज्झ कोऊ(उ)हल्लं ता सुंदरि ! गेण्हसु विमाणं ॥१०५२॥ तयणंतरं सलज्जं ओणयवयणाए तीए सो भणिओ । अम्हाण निरुवओगं विमाणमेयं महाभाग ! ॥१०५३।। तुम्हारिसाण सुंदर ! सैरविहारीण एयमुवउत्तं । कुलबालियाण न उणो सासो वि परव्वसो ताण ॥१०५४॥ किं पलविएण ? सुंदरि ! दिन्नमिणं तुज्झ गयणभमणत्थं । इय भणिऊण असोउ(ओ) सहसा अद(६)सणीहूओ ॥१०५५।। ___ Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ तं तस्स उदारासय-ववहरणं पेच्छिऊण खयरस्स । नरवइपमुहाण मणे संजाओ गुरुचमक्कारो ॥१०५६।। तो नरवइणा भणिया चंदसिरी पुत्त(त्ति)! गेण्हसु विमाणं । तुह पुन्नफलं एयं उवट्ठियं किं वियारेण ? ।।१०५७।। एवं ति पभणिऊणं चंदसिरी राइणा अणुन्नाया । नमिऊण गया जणणी-पासम्मि सहीहिं परियरिया ।।१०५८।। तयणंतरं नरिंदो नमंतसामंतमौलिमालाहिं । कयचरणकमलपूओ विजयवईए गउ(ओ) पासं ।।१०५९।। तत्थ वि असोय-सेहर-विज्जाहरवइयराणुवाएण । जावच्छइ खणमेत्तं पियाए ता सो इमं भणिओ ।।१०६०।। नरनाह ! नियपरिग्गह-पउरजणेणं च परिगया धूया । वच्चउ पहायसमए कीलुज्जाणं विमाणेणं ।।१०६१।। तो नरवइणा भणियं किं कोइ पिए!महोच्छवविसेसो । पच्चूसे जत्ता वा विसेसओ कस्स वि सुरस्स ? ||१०६२।। अहव विमाणारोहण-कोऊहलपरव्वसाए धूयाए । अब्भत्थिया सि सुंदरि ! तेण तए अहमिमं भणिओ ? ||१०६३।। तो भणइ रायपत्ती न घडइ पुव्वुत्तकारणवियप्पो । नरनाह ! अत्थि गरुयं अन्नं चिय कारणं किं पि ।।१०६४।। ता कहसु त्ति पभणिए नरिंदचंदेण भणइ विजयवई । तुच्छे वि रयणलाहे महोच्छवो होइ कायव्वो ॥१०६५।। किं पुण असेसभुयणं-तरालपरिभव(म)णपवणवेगस्स । अइसयविज्जादेवी-समहिट्ठियगुरुपहावस्स ॥१०६६।। Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ एयस्स देव ! लाहे विमाणरयणस्स सो न कायव्वो?। जस्साणुहावओ किर मह धूया खेयरी होही ।।१०६७।। अन्नं च होइ पयडो निकारणवच्छले असोयम्मि । असरिसगुणबहुमाणो एयनिमित्तुच्छवमिसेण ।।१०६८।। इय नाह ! सबुद्धिवियप्पिएण परिभावियं मए एयं । परमत्थनिच्छएणं तुम्हाएसो पमाणं मे ||१०६९।। तो नरवइणा भणियं साहु पिए ! साहु संगयं भणियं । परमत्थो च्चिय एसो किं कीरउ देहि आएसं ।।१०७०।। तो पिययमाए भणियं पडिहारमुहेण नयरमज्झम्मि । उज्जाणे पयडिज्जउ चंदसिरीकीलणविणोओ ||१०७१।। एवं ति तत्थ भणिउं नरवइणा कारियं असेसं पि । तव्वावारपरस्स य तस्स दिणो ज्झत्ति वोलीणो ||१०७२।। पच्चूसे चंदसिरी कीलुज्जाणं विमाणमारूढा । जाहीयइ(?) नयरजणो हरिसेण समुच्छुओ जाओ ॥१०७३।। अइसयकोऊहलहियय-तरलिमाविनडियाण लोयाण । कहकह वि अइक्ता रयणी संवच्छरसयं व ।।१०७४।। 'रयणीए महातमभूइपडलपिहिओ किसाणुपिंडो व्व । संझाए कुलवहूए व पयडिज्जइ दिणयरो गोसे ।।१०७५।। एत्थंतरम्मि उइए सहस्सकिरणम्मि पयडियपयावे । उववणगमणपओयण-तुरियपओ भमइ पुरलोओ ।१०७६।। उच्छक्कदासि-दासं सविसेसपसाहणुज्जयजुवाणं । सज्जिज्जमाणकरि-तुरय-संदणं राउलं जायं ॥१०७७।। १. इयं गाथा सायं प्रातःसन्ध्ययोर्वनको द्रष्टव्यः ॥ (टि. खंता. प्रतौ.) Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०० सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ अह विहियगोसकिच्चो राया सामंत-मंतिपरियरिओ । उच्छववावारनिरूवणेण पज्जाउलो जाओ ।।१०७८।। संमुहनिहित्तलोयण-निओयवग्गस्स दिन्नआएसो । जहजोग्गपुरपरिग्गह-बहुविहसंपेसियपसाओ ।।१०७९।। अणुरूवनिरूवियहरि-करिंदसंदोह-संदणसमूहो । सरहसविलासिणीयण-विइन्नदिव्वंसुयाहरणो ॥१०८०।। अवरोहचेडियायण-कन्नंतकहिज्जमाणनियकज्जो । तदि(द्दि?)नहिययनरवइ-पसंत्त विन्न त्तुय(पसंत चित्तब्भुय) समूहो ।।८१॥ इय नीसेसंतेउर-नियपरियणपौरपेसणसयण्हो । जावच्छइ नरनाहो ता चंदसिरी तहिं पत्ता ||१०८२।। मयणाहिमीसघणसार-सुरहिसिर(रि)खंडकयसमाहलणा । फंसाणुमेयसुनियत्थ-दिव्ववरवत्थजुयलिल्ला ।।१०८३।। पच्चंगघणपरिट्ठिय-सुसोह-सुमहग्घमणिमयाहरणा । उभयंतवरविलासिणि-करकलियचलंतसियचमरा ।।१०८४।। तो पिउपणामपुव्वं पुव्वपरिट्ठवियविट्ठरे तयणु । उवविठ्ठा चंदसिरी सिरि व्व सोहासमुदएण ।।१०८५।। परियणियमेत्तं चिय पुरओ पसरंतकिरणवित्थारं । परिसंट्ठियं सहेलं विमाणरयणं नरवइस्स ।।१०८६।। पुत्ति!मह गोत्तनहयल-बीयंदुकल व्व जणसमूहेण । वंदिज्जती गयणे गच्छ तुमं वरविमाणेण ।।१०८७।। एयाओ जणणीओ सविलासविलासिणीओ एयाओ । एसो वि मंति-सामंत-पभिइ सयलो परियणो वि ॥१०८८॥ Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०१ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ एसो वि पुत्ति ! तुह गुण-गणाणुरायरसिउ असेसपुरलोओ । संचलिओ सह तुमए सविसेसपसाहणो तुरियं ।।१०८९॥ इय भणिया चंदसिरी पिउणा कयसयलमंगलविहाणा । लद्धाएसा सणियं विमाणसमुहं तओ चलिया ।।१०९०।। एत्थावसरे पसरइ पडुपडहमउंद-मद(द्द)लगहीरो । पडिसद्दखुहियनहयल-वित्थारो बार'(?धीर?)तूररवो ॥१०९१।। चलिओ चलंतपरिवियड-करडिसंघडियघणघडानिवडो । परितरलतुरयसंदण-संमद्दनिरुद्धजणपसरो ।।१०९२।। . संवग्गियवग्गावस-निरुद्धगुरुवेयबहुतुरंगबलो । धाणुक्क-कुंत-फारक्क-फारपाइक्ककयतुमुलो ||१०९३।। पडुरवपडिहारसमुल्लसंतहक्काण्हासंतघणलोओ । नीहरइ निरंतररुद्धनयरमग्गो बलसमूहो ।।१०९४।। एत्थावसरे नीसेस-लोयलोयणविलासवसहि व्व । . आरूढा चंदसिरी सविलासं वरविमाणम्मि ।।१०९५।। अह तत्थ मणिविमाणे भित्तित्थलसंकमंतपडिबिंबा । एक्का वि सा विरायइ बहुसरिससहीहिं सहिय व्व ।।१०९६।। अह तीए हिययभूया विलासलच्छी य चमरधारिदुगं । तंबोलवाहिणी तह इयमेत्तो परियणो चडिओ ।।१०९७।। संचलइ अचालियतणु-विभायमविकंपसीसकुसुमोहं । लोयाणुरोहओ बहु-जवं पि मंदं मणिविमाणं ॥१०९८॥ परिमंदमारुयंदोल-माणसिहरग्गधवलधयनिवहं । चंदसिरिसंगमुल्लसिय-हरिसपसरं व्व नच्चेइ ।।१०९९ ।। १. वीरतूर० ला. ॥ Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०२ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ अरुणमहामणिघणकिरण-नियरवित्थाररंजियदियंतं । मज्झट्ठियचंदसिरि-अणुरत्तमसोयहिययं व ॥११००॥ अह तत्थ नायरजणो विमाणनिक्खित्तनयण-मणपसरो । सुवियक्खणो वि जाओ उद्धमुहो पामरजणो व्व ।।११०१।। इय तं विमाणरयणं अणुच्चनहगमणलद्धसोहग्गं । सव्वजणसमुदएणं सहागयं सुंदरुज्जाणे ॥११०२।। जं सहइ सरसघणसोणपल्लवुल्लसियविविहतरुरायं । चंदसिरीदुल्लहदसणाणुरायं व पयतं ।।११०३।। नाणाविहवियसियसेय-कुसुमदलगंधलुद्धभमरउलं । विउरुव्वियनयणेहिं च नियइ व्व सुरुव्वचंदसिरिं ॥११०४।। वियसंतसरसतरुनियरमंजरीजालजडिलियाधययं(?) । चंदसिरीसंगमसंभवंत-पुलयं व जं सहइ ||११०५।। पवणुद्धयपुप्फपराय-पडलपरिपिंजरंतरदियंतं । जं किरइ रायधूया-महंमि पिट्ठाय चुन्नं व।।११०६।। इय तम्मि विविहतरुसंड-मंडलीपुव्वसंठियजणम्मि । उज्जाणे पविसइ खुडिय-फुल्लपयरच्चिए बाला ।।११०७।। अह पेच्छइ नाणाविह-वइयरपेच्छणय-रास-हासघणं । उज्जाणं चंदसिरी नहसंठियवरविमाणठिया ।।११०८।। तो चंदसिरी भणिया विलासलच्छीए पेच्छ सहि ! एत्थ । साहीणपिययमजणो कह कीलइ तरुणजुयइजणो ।।११०९।। घणकत्थूरीकसिणंगरायपरिवत्तियंगसब्भावो । वेलवइ अन्नपुरिस-त्तणेण इह कोइ नियदइयं ।।१११०।। Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०३ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ अन्नत्थ सहियणपुरो पेच्छ लयंतरियतरुणपुरिसेहिं । सुव्वइ नियनिसिकलहो पयडिज्जंतो पिययमाहिं ।।११११।। मोग्गर-पहार-मालइकुंडल-सयवत्तसेहराइकयं । पुप्फाहरणं कत्थइ कोइ नरो कुणइ दइयाए ।।१११२।। अन्नत्थ कोइ तरुणो परोप्परुन्नमियचिबुयघडियमुहं । दइयागंडूसकयं पियइ महुं पेच्छ रागंधो ॥१११३।। इह भणइ कावि दइयं पउट्ठपुलइएण लक्खिओ मुंच । किं नाह ! निप्फलेणं छलनयणपिहाणकोटेण(?) ।।१११४।। आयासइ सेयजलोल्लिएसु दइयाथणेसु अप्पाणं । इह कोइ पुण लिहंतो कत्थूरियपत्तभंगविहिं ।।१११५।। एवं तुज्झ महोच्छव-च्छलेण घणपत्तदुमलयंतरिओ । इह पेम्मपराहीणो कीलइ बहुमिहुणसंघाओ ।।१११६॥ इय जाव विविहवइयर-निरंतरं नियइ सा वरुज्जाणं । पत्तावसरं भणिया विलासलच्छीए ता एवं ॥१११७।। तुह सहि! साहावियबुद्धिपसरविन्नायवत्थुतत्ताए । अम्हारिसोवएसो परिहासो होइ ता होउ ।।१११८।। तुह चेव पुन्नपरिणइ-पणामियासेसगुणसमुग्घायं । मणुयत्तणं तिणीकय-सुरविलयं सहइ भुयणं पि ।।१११९।। संसारजुन्नरन्नं निप्फलमच्छायमासयविहीणं । कप्पलइया व तुमए विहूसयं भुयणसाराए ।।११२०।। न गुणेहिं विणा रूवं रेहइ हरिणच्छि! जइ वि सविसेसं । उभयं पि न सलहिज्जइ जं न जणइ जणचमक्कारं ।।११२१।। तुह पुण सव्वंगविसेस-चंगिमानिरुवमाणमिह रूवं । Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०४ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ सुमितरदिट्ठाए जइ तुज्झ परं समं होइ ।।११२२ ।। पियसहि! ते तुज्झ गुणा कह वन्नओ ( उ ) मारिसो जणो तुच्छो । जे तियस - खेयण वि हणंति गुणगव्वमाहप्पं ||११२३ ॥ इय तं सव्वं तुह सहि! मन्नामि न हिययवल्लहविहीणं । जं चित्त लिहियनारी- सरिसं संभोगसुहविमुहं ॥ ११२४ || किं निष्फलेहिं सुंदरि ! गुणेहिं अणुरत्तबहुजणेहिं पि । पइसमयं न निबज्झइ गुणन्नुओ जेहिं नियदइओ ||११२५ ।। एयं चिय मह दुक्खं जं तुह लायन्नगुणमहग्घवियं । रन्नलयाकुसुमं पिव विफलं सहि! जोवणं जाइ ।।११२६ ।। जम्मो वि तस्स विफलो न जस्स गिहिणो हवंति जहसमयं । धम्मत्थ-काम-मोक्खा, परोप्पराबाहपरिहीणा ||११२७ ॥ ता सहि! कुणसु पसायं अहिरमसु जहासुहं सह पिएन । पावउ को वि चिरज्जिय- तवोफलं तुज्झ लाहेण ||११२८|| सहि! किं न पेच्छसि इओ एयाउ समं समाणहियएहिं । कीलंति पिययमेहिं कयचाडुसएहिं तरुणीओ ।। ११२९ ।। एयाण तिहुयणं पि हु दुहियं पडिहाइ निययसोक्खेण । तम्हा सव्वसुहाणं होइ निहाणं पिओ एको ||११३०|| किं तेण नवर! कज्जं रज्जेण वि पियपसंगरहिएण । रोरत्तं पि हु रज्जं अणुकूलपियाणुराएण ||११३१।। तम्हा रायकुमारो विज्जाहरदारओ व्व अन्नो व्व । जो तुज्झ हिययदइओ तं कहसु अवस्स आणेमि ॥ ११३२॥ इय भणिए ससिणेहं विलासलच्छीए भणइ चंदसिरी ! सहि ! सव्वं पि कहिस्सं परिसविसुद्धीए हिययगयं ||११३३ । Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ एत्थावसरे दोहिं वि उज्जाणे जाव पेसिया दिट्ठी । समुहमवलोयंती विजयवई ताव सच्चविया ||११३४ ।। जा अवयरणमणाओ अहो निरिक्खंति ता विमाणंति (पि) । सहस त्ति समोइन्नं विजयवईसन्निहाणम्मि ||११३५ || नीहरइ तओ बाला रणंतमणिमेहला विमाणाओ । पणमइ पणामघोलिर- हारलया निययजणणीण (ए) ।।११३६ ॥ अह भइ रायमहिसी चंदसिरि ! इमाओ तुह वयंसीउ । एसो वि परियणो तुह अहं पि अंतेउरसमेया ।।११३७ ।। एसो वि लडहवेसो सविलासविलासिणीयणो पुत्त (त्ति) ! | अणुकड्ढयं व अंधो अणुसरइ तुमं समग्गो वि ।।११३८ ।। तुह पुत्त ! पुण असेसं वीसरियं वरविमाणचडियाए । भूगोयरेहिं अहवा का गणणा खेयरगणस्स ? ||११३९ ॥ इय भणिऊणं देवी वयणं परिहासपेसलं धूयं । उज्जाणकीलणत्थं अणुमन्नइ परियणसमेयं ॥ ११४० || परिपेसियपाडुयजण-परिओसपहरिसं जायं ( ? ) । बहुखज्जपेज्जदिज्जंत-भोज्जसंतुट्टमिह भुवणं ॥ ११४१॥ एत्थंतरम्मि पसरिय- हरिसवसुल्लसियकलयलगभीरं । उद्दामसद्दमद्दल-मउंद-पडुपडहघणरावं ॥ ११४२ ।। उव्वल्लिरबाहुलयं रसणामणिकिरिणकिंकिणिकलावं । झणझणिरचरणनेउर-रवबहिरियदसदिसिविभायं ||११४३ || वरवेणु-वल्लईमीस-पेसलुल्लसियगमयगीयरवं । पारद्धं पेच्छणयं पेच्छयजणजणियअच्छरियं ॥ ११४४ ॥ अन्नत्थ जुन्नमइरा रसपाणमयारुणच्छिवत्ताणं । १०५ Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०६ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ वल्लीण व विलयाणं विलासपरिवेल्लियं सहइ ।।११४५।। कत्थइ विच्छिन्ननियंबबिंबसंबाहतुट्टमणिद्दा(दा)मं । करतालवसविसंठुल-घडंतमणिकंकणरविल्लं ।।११४६।। आबद्धनिबिडमंडलि-विलासिणीव(ध)रियधुवयवरगीयं । लडहंगचलणपरिभवण-मणहरं रासयं देति ।।११४७॥ अन्नत्थ सरसकुंकुम-मयणाहिविमीसचंदणरसड्ढे । तरुणीउ कणयसिंगे गहिऊण करंति सिंचणयं ॥११४८।। तक्कालबहलकुंकुम-रसारुणो सहइ तरुणसंघाओ । कीलाणुरायसायर-सव्वंगनिमग्गगत्तो व्व ।।११४९॥ इय नाणाविहमणहर-विणोयसयजायदेहखेयाए । तो चंदसिरीए सयं विलासलच्छी इमं भणिया ।।११५०।। सहि!एहि परमरम्मं नाणाविहदुमसमूहसंकिन्न । दरिसेहि मज्झ सव्वं पुरोट्ठिया मणहरुज्जाणं ॥११५१।। तो चंदसिरी परिमिय-परियणपरिवारिया सह सहीहिं । घणवल्लिलयागहणं उज्जाणं भमिउमाढत्ता ।।११५२।। आयड्डियसाहावस-सरलियभुयवल्लि एयइ थणवढा(?) । उच्चिणइ का वि कुसुमे घणकुसुमतरूण वरतरुणी ।।११५३।। उन्नामियग्गकमवस-विलुत्ततिवलीकओद्ध(उद्ध?) भुयजुयलं । पडिहयथणपरिहाणं अवयंसइ का वि तरुकुसुमं ।।११५४।। कक्खीकयहेलयं उवरिलयाहुत्तखित्तकरकमलं । आकुंचिएक्कभुयमियर-सरलमल्लियइ तरुमग्गा ।।११५५।। पवणुवे(व्वे)ल्लिरकंकेल्लि-पल्लवे समनिहित्तकरनिवहो । अवरोप्परकरपीडण-सविलक्खो सहइ तरुणियणो ॥११५६।। Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०७ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ उक्खंटइ तिक्खनहग्ग-कोडिसंपीडियंगुली का वि । नियनहमऊहनिवहं घणवियसियकुसुमसंकाए ।।११५७।। अवहरियसुरहिपरिमल-कुसुमबहु जायमच्छरेहिं व । भमरेहिं अभिद्दविया अच्छोडइ करयलं का वि ||११५८।। इय विविहसहीपरियण-परिवारा तत्थ मणहरुज्जाणे । कीलइ विसेसलीला-विलासपरिपेसलं बाला ।।११५९।। अह सव्वो सहिवग्गो परिग्गहो अप्पणप्पणपहेण । पुप्फावचयनिमित्तं चिक्खित्तो कत्थइ कहंपि ॥११६०।। तो चंदसिरी एगा विलासलच्छीसमन्निया कमसो । परिभममाणा एगं संपत्ता निव(बि)डतरुगहणं ।।११६१।। अह तत्थ निबिडतरुगहण-गब्भपरिसंठियं मणभिरामं । सिरिचक्केसरिदेवी-भवणं सा नियइ अपमाणं ।।११६२।। तं पेच्छिऊण रम्मं चंदसिरी भणइ सहि ! न मे पुट्विं । दिट्ठमिणं सुरभवणं तो भणइ विलासलच्छी वि ।।११६३।। सहि ! जइया किर एवं उज्जाणवणं निवेसियं एत्थ । तइयच्चिय पासाओ निवेसिओ एत्थ नरवइणा ॥११६४।। एयस्स गब्भगेहे पइट्ठिया सयलसत्तसुहजणणी । सिरिचकेसरिदेवी ता एहि नमंसिमो एयं ।।११६५।। तयणंतरं च दोन्नि वि काऊण निसीहियं पहिट्ठाओ । संपूइऊण देविं काउसग्गेण पणमंति ।।११६६।। तो जाव विलाससिरी तं भवणं सव्वओ पलोएइ । ता ज्झत्ति भित्तिलिहिया चंदसिरी तीए सच्चविया ॥११६७।। अह पहरिसवियसिरदीहरच्छिवत्ता विलासलच्छी वि । Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०८ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ अणुविद्धरूवदंसण-उप्पाइयमणचमक्कारा ।।११६८॥ भणइ सहि ! एहि पेच्छसु पच्चक्खं ढुक्कुहे(?) नियं रूवं । पुट्विं न पत्तियायसि जहत्थभणिराण अम्हाण ||११६९।। सहि ! दोन्नि पयावइणो इह भुयणे मह मणम्मि निवसंति । घडिया सि जेण एवं एवं चिय जेण लिहिया सि ॥११७०।। ता एवमहं जाणे न एस करलेहणीण वावारो । तुह रूवबिंबयस्स व अमयरसदस्स पडिबिंबं ॥११७१।। अहवा मयणरसड्ढे नियहियए ठावियासि तं जेण । तत्तो व्व विरहरूयवह-उव(व्व)ट्ठा(?) एत्थ संकंता ।।११७२।। आगंतूण समीवं चंदसिरी जा निएइ निउणयरं । ता तत्थ तं तहत्थिय विलासलच्छीए जह भणियं ।।११७३।। अहह ! महच्छरियमिणं रेहाविन्नासवससमुब्भूवं(यं) । लडहत्तणमंगाणं कहं नु आराहियं तेण ? ॥११७४।। अह तं पि होइ कहमवि अब्भासवसेण कहमिमो होइ । पच्चंगचंगिमागुण - संबद्धा सव्वतणुसोहा ? ॥११७५।। जो उण इमीए भावो सो नणु कहमेत्थ तेण सच्चविओ । जस्स वसा अंगाइं निहित्तजीवाइं व फुरंति ? ||११७६।। जो मज्झ पुरा हुतो विचित्तकमचित्तकम्मगुरुगव्यो । एएण सो पणट्ठो दिटेण वि भित्तिचित्तेण ।।११७७।। ता केण इमं लिहियं लिहियं वा केण वा वि कज्जेण ? । सहि ! साहसु मह सव्वं अइसयबुद्धी तुमं जेण ।।११७८।। एयवयणावसाणे विलासलच्छीए भणिउमाढत्तं । सहि ! जेण इमं लिहियं सो कोइ न होइ सामन्नो ॥११७९।। Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०९ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ तुह केण वि रुव्व(रूव-)विलास-जोव्वणाइसयहरियहियएण । अणुरायपरवसेणं विरहविणोउ(ओ) कओ एस ॥११८०॥ सो उण सुणेहि सुंदरि ! तुज्झ समो समहिओव्व संभविही । लोयपसिद्धी वि इमा “सरिसा सरिसेसु रच्चंति" ||११८१।। उत्तमकुल-जाई(इ)जुओ विसेसगुणसंगओ य गरुयओ(गरुओ)य । जइ मह मई पमाणं ता तुह हिययम्मि सो वसिही ।।११८२।। नियजोग्गयाणुरूवा मणोरहा होति जेण गरुयाण । जा इच्छा नरवइणो सा कह रंकस्स संभवइ ? ।।११८३।। एवंति पभणिऊणं रायसुया भणइ सहि ! सुहासणए । एत्थेव उवविसामो खणमेत्तं मत्तवारणए ।।११८४।। एवं हवउत्ति तओ भणिऊण ट्ठियाओ तत्थ समयं पि । वीसंभपणयगब्भं विलासलच्छी पुणो भणइ ।।११८५।। सहि ! पडिवन्नं तुमए परिसविसुद्धीए तुह कहिस्सामि । ता साहसु तं संपइ विमाणचडियाए जं भणियं ॥११८६।। हिययभंतरपसरंत-सासथरहरियथूलथणवठ्ठा । किंपि परिभाविऊणं हियए अह भणइ चंदसिरी ॥११८७।। तं किंपि होइ कज्जं कहिज्जमाणं पि जं कुलीणेहिं । अप्पाणस्स वि लज्जं जणेइ दूरे च्चिय परस्स ।।११८८।। एकत्तो तुज्झ भयं अन्नत्तो मह मणम्मि सहि ! लज्जा । इय लज्जा-भयमीसा पसरंति वियप्पकल्लोला ।।११८९॥ जइ चेवं तहवि विलास-लच्छि ! नियहिययनिव्विसेसाए । तुह कहिए का लज्जा ? ता सुणसु भणामि हिययगयं ।।११९०।। Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११० सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ अहमन्नदिणे चंदप्पहस्स अभिवंदिऊण पयकमलं । नियभवणमागया तो उवविठ्ठा उवरिमगवक्खे ॥११९१।। सहियायणो वि सव्वो विसज्जिओ नियनियं गउ हाणं । मह परियणो वि कोइ वि कहिँपि संपेसिओ य गओ ।।११९२।। तो धम्म-कम्मजोगा अहमेगा संट्ठिया गवक्खम्मि । तंबोलवाहिणीए कुरंगिनामाए परियरिया ।।११९३।। तो हं रायंगणसंचरंत-जणनिवहखित्तनयणजुया । नाणाविणोयवइयर-अक्खित्ता जाव चिट्ठामि ।।११९४।। ता सहसा पविसंतो विसेसवेसुज्जलो मए दिह्रो । नाणाउहवग्गकरो पुरओ पाइक्कसंमद्दो ।।११५।। तयणंतरं च पच्छा करेणुपल्लाणियाए उवविट्ठो । सिरधरियधवलछत्तो उभयंसपडंतसियचमरो ।।११९६।। पसइपमाणच्छिजुओ विसालवच्छत्थलो पलंबभुओ । अइतणुमज्झवएसो थोरोरू सुजंघसंहाणो ।।११९७।। मणिकंकणकलियकरो पलंबवरकन्नकुंडलाहरणो । घोलंततारहारो नियत्थदेवंगसियवत्थो ॥११९८।। किं बहुणा पियसहि ! पलविएण ? नीसेसभुयणमज्झम्मि । तप्पडिरूवो पुरिसो सो च्चिय जइ होइ, न हु अन्नो ॥११९९।। दिट्टेण तस्स मह सहि ! पणासिओ पुरिसदेसरेणुभरो । वाहारियबंधनिबद्ध - केसभारेण च असेसो ।।१२००।। पसरंतसरललोयण-बाणेहिं व जज्जरीकयं हिययं । तवे(व्वे)लं विय (चिय?) गलिया गुरूवएसा जओ मज्झ ।।१२०१।। Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ तस्स मुहचंदनिब्भर-दसणसंमीली(लि)ओव्व संकुइओ । माणसनिबद्धमूलो विवेयकमलायरो मज्झ ॥१२०२।। लव्रण तस्स मणहर-विसालवच्छत्थलं मणकुरंगो । सहि ! हारवल्लिनद्धो व्व मज्झन्नन्नत्थ संभरइ ।।१२०३।। कोमलकरंगुली नह-मऊहपडलच्छलेण पयडेइ । भुयदंडबलसमुत्थं विमलजसं करयलत्थं वा ।।१२०४।। वच्छत्थलाहि जस्स य कसिणुज्जलरोममंजरी सहइ । मह मणहरमज्झपएस-खुत्तनयणंजणछडव्व ।।१२०५।। मन्ने अइगहिरो च्चिय नाहिद्रहो तस्स जत्थ मह हिययं । निव्वोलं व्वि(च्चि)य नीयं तेण न अन्नत्थ अहिरमइ ।।१२०६।। हेट्ठाहुत्तजहक्कम-परितणुपरिणाहिऊरु-जंघजुओ । जत्थच्छइ मज्झ मइ(ई) खंभनिबद्धा करेणुव्व ॥१२०७।। अच्चुन्नयसरलंगुलि-सुसोहियं सहइ तस्स चरणजुयं । पीणुन्नयथणविसमे वीसंतं कह णु मह हियए ॥१२०८।। जो च्चिय निव्वन्निज्जइ पियसहि ! तस्संगसंगयावयवो । सो च्चिय अमयमओ वि हु मं मुच्छड तं महच्छरियं ।।१२०९।। जो निम्वियप्परूवो पुट्विं सुपसन्नहिययवावारो । परियत्तिओ व्व सो मह अप्पा अन्नारिसो जाओ ॥१२१०।। पुचकहासु वि न सुया जे पुव्वमहाकईहिं वि न दिट्ठा । तबंसणेण ते मह मयणवियारा समल्लीणा ।।१२११।। मोत्तूण तं कुमारं जइ हिययं फुरइ अन्नपुरिसम्मि । ता एस च्चिय पियसहि ! सासणदेवी पमाणं मे ।।१२१२।। Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ ठाणंतरं न वच्चइ कल्लोलवसा समुल्लसंतं पि । नायरगुणसंबद्धं मज्झ मणं जाणवत्तं व ॥१२१३।। इय सहि ! तएकचित्ता तएकसरणा तएकवावारा । तक्खणमेत्तैणं चिय सुहएण अहं कया तेण ।।१२१४।। पच्छावसरे तेण वि जत्थाहं तत्थ पेसिया दिट्ठी । पुणर(रु?)त्तवलियकंठं न याणिमो केण कज्जेण ।।१२१५।। एत्थंतरम्मि पियसहि ! कुमरं चिट्ठामि जा निरिक्खंती । ता तेण अयंडे च्चिय उढे दिट्ठी परिद्वविया ।।१२१६।। सरलत्तणभग्गतिरेह-कंधरं लद्धकुंडलुल्लासं । . तरलियभालग्गविलग्ग-मूलयं सहइ मुहमुहूं ॥१२१७।। एत्थावसरे असिधेणु-पाणिणा तेण तक्खणा दिन्नं । सीहेण व अइवेगा विज्जुक्खित्तं महाकरणं ।।१२१८।। आकुंचिय सव्वंगं निबद्धकरमुट्ठिलद्धबहुथामं । आवेसवसनिपीडिय-अहरोढुं तेण उप्पइयं ।।१२१९।। अह तं समुप्पयंतं दळूणं मह मणम्मि संजाओ । विम्हयविसायगब्भो हियए विज्जाहरवियप्पो ।।१२२०।। उच्छलिओ तव्वेलं नरिंदभवणंगणम्मि जणसद्दो । अहह ! महच्छरियमिणं कहमुप्पइओ त्ति इय दूरं ? ||१२२१।। सो परियणो असेसो साणुभावेण तेण रविणेव्व । सहसत्ति विप्पउत्तो मिलाणमुहपंकओ जाओ ।।१२२२ ।। घर-पह-पुर-सुरमंदिर-रायंगण-हट्ट-टिट्ट(?) चउहट्टे । नयरम्मि खेय-विम्हय-विमिस्सहियओ जणो जाओ ||१२२३।। Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ तक्खणमेत्तेणं चिय तं नयरं मणहरं पि मह जायं । निज्जीवमिव कडेवर-मसरिससंतावसोयकरं ||१२२४ ॥ हा ! किं दिट्ठो सि महाणुभाव ! दिट्ठो सि जइ कहं नट्टो ? | ता नूणं संतावाय मज्झ इह तुज्झ आगमणं ।। १२२५ ।। जइ हरियं मह हिययं तुमए ता हरसु किंपि न भणामि । कहसु कह तन्निवासा पडिया मह दुक्खरिंच्छोली ? ।।१२२६ ।। वच्चसु इच्छियदेसं पुज्जंतु मणोरहा तुह ममा वि । इह जम्मे च्चिय न परं सरणं जम्मंतरे वि तुमं ||१२२७॥ कोहंडि ! देवि चक्किणि ! जालिणि ! महक्कालि ! कालि ! पन्नत्ति ! | मह पत्थणाइ कुसलं तस्स सरीरम्मि कायव्वं ॥। १२२८ ॥ दुक्खं न मए दिट्ठ निसुयाइं न दुक्खियाण वयणाई । तहवि सहि ! निग्गया मे के वि अउव्व च्चिय विलावा ||१२२९।। अह जणपरंपराए ताएण वि एस वइयरो निसुओ । अन्नेसणत्थमुवरिम-पासायतलम्मि तो चडिओ ||१२३०|| सुइसुंढ(?) पलोइरपरियण- परिवारिएण ताएण | अवलोइओ न दिट्ठो रायसुओ गयणमग्गम्मि ॥१२३१ ॥ मा कहवि देवजोया निवडइ धरणीयलं [[म] इय मइए । दस जोयणाई चउदिसि निरिक्खिओ आसवारेहिं ॥१२३२।। तो मज्झण्हे ताओ समहियमत्तंडकिरिणसंतत्तो । अलं (ल) हंतो तस्सुद्धिं जणोवरोहेण उत्तरिओ ||१२३३ || अह भवणमज्झभाए ताओ सिंघासणम्मि उवविट्ठो । नीसेसमंतिवग्गं तो वोत्तुं एवमादत्तो ||१२३४|| ११३ Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११४ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ हे मंतिणो ! निरु (रू) वह अवहरिओ किं नु केणवि सुरेण । विज्जाहरेण अहवा अन्त्रेण व दुट्ठहियएण ? ।।१२३५ ।। अह मंतीहि वि नियनिय बुद्धिपहावेण जं जहा दिट्ठ । तं तह तायस्स पुरो सव्वेहिं जहकम्मं (कुमं ) कहियं ||१२३६ ॥ तो सयलमंतिमंडल-मंडलभूएण तायपुज्जेण । पन्नायरेण भणियं किमसंबद्धं पजंपेह ? ।।१२३७।। जइ मह मइ (ई) पमाणं जइ सो वि हु 'वीर' सद्दमुव्वहइ । ता तं अक्खयदेहं लद्धजयं पेक्खह खणेण ।।१२३८।। एत्थंतरम्मि सहसा नरिंदभवणंगणम्मि उच्छलिओ । परिच्छुट्टपट्टहत्थी-वइयरकयकलयलो तत्थ ॥१२३९॥ अवरोप्परपरपीडण-पडतजण करिनिहित्तभयनयणं । हल्लोहलिहुयलोयं संजायं तक्खणे नयरं ॥। १२४० ।। पक्खुहियखोणिवालं गहियाउहजोहजूहपरियरियं । संजायं रायउलं संभंतभमंतसामंतं ।।१२४१।। अह नीसेसं नयरं कलयलसद्देण हत्थिभयभीयं । पायार-तरु-वरंडय-पासायसिरेसु आरूढं ।।१२४२।। ताओ वि तक्खणच्चिय उवरिमपासायवलयभूमीए । आरूढो पज्जाउलहियउ (ओ) बहुलोयपरिवारो ।। १२४३ || रे ! धाह धाह गिण्हह तुरियं ओडवह करिणिसंघायं । परिकार-आसवारेहिं वेढियं कुणह करिरायं ।। १२४४ ।। इय जाव सहि ! निरूवई ताओ नियपरियणं करिनिमित्तं । ता सहसच्चिय दिट्ठो निवाडयंतो जणं हत्थी || १२४५ ।। - Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ चउचलणायससंकल-वलयमिसा कुंडलीकयतहिं । सेविज्जंतो भूभंग-भीयभुयगेहिं व बहूहिं ॥१२४६ || चलणंतपिहुलनहमंडलेहिं निद्दलियलोयसंघाओ । तक्कालखुत्तजणवय-कवालखंडेहिं व घणेहिं ॥१२४७॥ गुरुकायभारभयवस-सेसविमुक्कं व मेइणीवीढं । धावइ विहडावंतो संठाविय पयपएसेसु ।।१२४८ ।। निज्जियधरागइंदो गयणे एरावणं पि जेउं व । तड्डवियकन्नपेहुण-जुयलो अहिलसइ उड्डेउं ||१२४९ ।। सहिही मह वेयभरं नवत्ति पढमं परिक्खणत्थं व । ताडंतो रोसवसेण महियलं थोरहत्थेण ॥१२५० ॥ कडयडरवेण मोडिय - बहुविडविपडतविविहजणरुसिओ । उवरिमभूमीसंठिय-वाडियबहुखंभनिज्जूहो ||१२५१॥ इय सो महाकरिंदो अकुंदनिरंतरम्मि रायउलं । उपरिक्खलिओ पसरइ असुहविवाओ व्व लोयस्स || १२५२ | एद्दहमेत्ते व अनंत-सुहडसंघट्टसंकडिल्लम्म । निवपरी (रि) यणे न दीसइ को वि भडो जो तमल्लिइ ॥१२५३ ॥ एत्थंतरम्म पियसहि ! निसुणेसु विलासलच्छी (च्छि ) ! एकमणा । नीसेसनयरनरवइ - पयडं जं जायमच्छरियं ।। १२५४ ।। वरविज्जाहरपरिथुव्वमाणनाणापयारगुणनिवहो । पासायाइपरिट्ठिय-पुरहरसियलोयसच्चविओ ।।१२५५ ।। पवणपणच्चिरभुयसिहर - निहियवत्थंचलेण सोहंतो । तक्खणनिहयमहारिवु-विढत्तसियजयवडाओ व्व ॥ १२५६ ॥ ११५ Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११६ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ वामेयरकोमलकरयलग्ग-आसंघिएक्कखयरंसो । अइचवलदीहलोयण-पहाहिं नयरं व धवलंतो ।।१२५७।। अवमन्निय गुरुगयभय-भरेहिं पहरिसपयट्टपुलएहिं । सो नहयलाउ एंतो लोएहिं पलोइओ कुमरो ।।१२५८॥ कुमरालोयणपहरिस-वसकलयलकुवियकरडिकुंभयडे । ठविऊण पायकमलं उवविट्ठो कंठदेसम्मि ।।१२५९।। सहसा आरूढे च्चिय सीहकिसोरे व तक्खणं कुमरे । निफंदावयवतणू गयगव्वो गयवरो जाउ(ओ) ॥१२६०।। एत्थंतरम्मि दिट्ठो ताएण सपरियणेण गयखंधे । बहुपहरिसपरिपूरिय-हियएण य संथुओ एवं ॥१२६१।। पन्नायर ! सच्चमिणं “तत्थ गुणा जत्थ आगिई होइ” । एयम्मि निव्वियप्पं वयणमिणं घडइ कुमरम्मि ॥१२६२।। नीसेसदोसभरिए संसारे ठाणमलहमाणेहिं । मन्ने सव्वगुणेहिं वि निहोसो एस आयरिओ ।।१२६३॥ जाणे गुणाणुरत्तं हयदोसमिमं गुणेहिं लद्रूण । आसयवसहिडेहिं बंधूहिं व दूरमुल्लसियं ।।१२६४।। आसंघियदोसुदयं चंदस्स वि चेट्ठियं न सलहामो । निन्नासियदोसुदयं सूरस्स परं जए फुरियं ॥१२६५।। इय एवमाइ बहुविह- तग्गयगुणसंकहापसत्तमणो । पनायरेण ताओ पडिभणिओ देव ! एवमिणं ॥१२६६।। तो हा हा भणिरेणं पुणरवि ताएण जंपियं एयं । एयं मणागमणुच्चि(चि)यमायरियं जं गए चडिओ ॥१२६७।। Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ पयईए विसमसीलं कढोररविकिरणजायबहुकोवं । मारियबहुपरिकारं निरंकुसं कह वसे काही ? ॥१२६८।। इय जा चिंतइ ताओ ता तुरियं निउणबुद्धिणा तेण । तक्खणमेत्तेणं च्चिय वसीकओ वारणो विसमो ॥१२६९।। उग्घुट्ठजयजयरवं असेसजणदिन्नविविहआसीसं । पसरंतनयरराउल-जणनिवहं राउलं जायं ।।१२७०।। अह कुमरोवरि सहसा मुक्का विज्जाहरेहिं गयणाओ । रुंदंतमहुरमहुयर- वरमुहलियकुसुमवरवुट्ठी ।।१२७१।। तह कहवि तेण तइया सो हत्थी दुव्विणीयपयई वि । . भद्दत्तणम्मि ठविओ जह बालाणं पि सुहगेज्झो ।।१२७२।। नियपरियणविज्जाहर-परियरिओ हत्थिखंभठाणम्मि । गंतूण ठवइ हत्थिं करिणिगओ एइ रायउलं ॥१२७३।। तो भवणंतसुहासण-परिसंठियतायचरणकमलेसु । पणमइ भूतलविलुलिय-चलकुंडलहारसियदामो ||१२७४।। 'उवविससु'त्ति सपणयं भणिओ ताएण पुवठवियम्मि । सो विट्ठरे बइठ्ठो ‘महापसाओ'त्ति भणिऊण ॥१२७५।। विज्जाहरलोयस्स वि जहारुहं आसणाइपडिवत्तिं । काऊण पुणो ताओ सप्पणयं भणइ रायसुयं ।।१२७६।। किं एयमसद्धेयं अदिट्ठपुव्वं असंभवसरूवं । तुह चरियं गरुयाण वि जं जणइ मणे चमक्कारं ! ||१२७७॥ ता कहसु असमकोउय-तरलियहिययाण निययवुत्तंतं । अम्हाण जेण जायइ संतोसरसाहियं हिययं ।।१२७८।। Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११८ इय भणिओ नरवइणा खणमेत्तमहोमुहं करेऊण । लज्जासमहीणमणो रायसुओ भणिउमाढत्तो ॥ १२७९ ॥ इह केत्तियाइं अम्हारिसाण अइतरलहिययजणियाई । आयन्निहसि नरेसर ! असमंजसबालचरियाई ॥१२८० ॥ आणाभंगेण कयं मा मह संघडउ दुव्विणीयत्तं । ता चंदसेहर ! तुमं जहवित्तं कहसु नरवइणो || १२८१ ॥ तो भणइ चंदसेहर - खयरिंदो देव ! लज्जए एस । एयामईए अहं कहेमि जं अज्ज संपन्नं ॥१२८२॥ इह दाहिणसेढीए लच्छिनिवासे पुरम्मि वत्थव्वो । नामेण कमलकेऊ विज्जाहरदारओ अत्थि ||१२८३ || सो पयईए सुरुवो जुयईजणवल्लहो पियालावो । मायावी विसयामिस-लुद्धो जणनिंदियायरणो ।। १२८४ ।। गामायर-पुर-पट्टण-निवेसरमणीयभूमिवलयम्मि । सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ सो जत्थ जत्थ पेच्छइ तरुणियणं तत्थ अवहरइ || १२८५ ॥ हरिऊण नेइ दूरं एगंते तत्थ भुंजए पसहं । असीलसंजुया विहु न च्छुट्टए तस्स मणइट्ठा ॥१२८६ ॥ इय एवं तेण कयं असमंजसकारिणा धरावलयं । वरनारिरयणहरणेण दुत्थियं पावकम्मेण ॥ १२८७ ।। बहुविज्जाबलवंतो पयंडभुयडंडखंडियविवक्खो । खोणीयलम्म वियरइ केणावि अगंजियपहावो ||१२८८ || अह तेण अन्नदियहे महुरानयरीए चारणमुणिंदो । गयणाओ ओयरंतो दिट्ठो सुरनिम्मियसमीवे ॥ १२८९ ॥ Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ तो तेण अवहिन्ना(ना)णी बहुदुन्नयकरणभीयहियएण । पुट्ठो साहसु भयवं ! मह मरणं कस्स हत्थेण ? ||१२९०॥ तो मुणिवरेण भणिउ(ओ) तुह मरणं भूमिगोयराहिंतो. । पुण भणइ कमलकेऊ सेवडय ! असंगयं भणियं ।।१२९१ ।। इह अइसयप्पहावा होति जर खेयरा सुरा असुरां । ताणं वि अहमसज्झो का गणणा भूमिभा(?चा)रेहिं ।।१२९२।। अवमन्नियमुणिवयणो उप्पइओ नहयलं कमलकेऊ । तो कामरूवदेसे अत्थि पुराजोइसी नयरी ।।१२९३॥ तत्थत्थि परमइब्भो अत्थवई नाम सावओ तस्स । भज्जत्थि पउमदेवी अइसयरूवा सुसीला य ।।१२९४।। अत्थवई(इं) मोत्तूणं महासई सा न अन्नमहिलसइ । तीए हिययम्मि अन्ने पुरिसा जुयईसमा होति ।।१२९५।। अह सो काममहागह-अभिभूओ परव्वसो व्व हियएण । अत्थवइभारियाए अणुरत्तो पउमदेवीए ॥१२९६।। तो सो कयसिंगारो विसेसवरभूसणेहिं कयसोहो । ठाऊण तीए पुरओ अप्पसरूवं पयासेइ ।।१२९७।। तं दठूण सरूवं सा चिंतइ नियमणाम्मि 'को एस' । भाउव्व सिणेहजुओ अवलोवइ निद्धनयणेहिं ? ||१२९८।। कलिऊण कमलकेऊ अवियारं तीए सरलमणपसरं । एसा ममं न इच्छइ इय चित्ते आउलो जाओ ॥१२९९।। हा ! किं मह रूवेणं, सोहग्गेणं च लडहवेसेण ? । एयाए अभिभूओ तणं व मन्नामि अप्पाणं ॥१३००।। Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२० सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ सा का वि नत्थि नारी भुयणम्मि कुलग्गया वि मं दटुं । जा तव्वेलं न मुयइ कुल-जाइ-सइत्तगुणगव्वं ॥१३०१।। एयाए पुणो सेवडयवयणबहुगणियसीलसोहाए । अहमणुरत्तो वाम-त्तणेण चइओ असउणो व्व ॥१३०२।। ता अहमिमं सरूवं पीणुन्नयगुरुपओहरं रमं(रम्म) । सुविसालनियंबतडं तणुमज्झं चंदपहसोहं ॥१३०३।। जइ भुंजामि न एण्हि ता विफलो होइ मज्झ नीसेसो । सोहग्ग-रूव-जोव्वण-लावन्नसमुब्भवो गव्वो ॥१३०४।। इय एवं जा चिंतइ नियहियए खेयरो कमलकेऊ । ता ज्झत्ति पउमदेवी तुरियं केणावि कज्जेण ॥१३०५।। गयणग्गलग्गनवभूमि-भवणसिहरम्मि सा समारूढा । एगागिणी त्ति काउं अवहरिया तेण पावेण ।।१३०६।। जा नियइ ता न भवणं गयणं च्चिय सव्वओ निरालंबं । पासट्ठियं पि पेच्छइ तं खयरं कामगहगहियं ।।१३०७।। सा भणइ वच्छ ! बंधव ! किमेवमायरियमसुहफलहेउं । मह कहसु किंनिमित्तं ताउ य भवणाओ अवहरिया ? ||१३०८।। तो सो रोसवसेणं भिउडीभंगेण भीमभालयलो । अग्गकेसेसु धरिउं महासई(इं) हणइ मुट्ठीहिं ।।१३०९॥ एएणं चिय पावे ! पाविहसि महावई(इं) सइत्तेण । अन्नायहिययकज्जा जं भणसि अणिट्ठसद्देहिं ।।१३१०।। वच्छो भन्नइ पुत्तो अहं पि तुह सव्वहाणुरत्तमणो । ता कहसु कत्थ भन्नइ भत्तारो वच्छसद्देण ? ||१३११।। Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ तो भणइ पउमदेवी वच्छो च्चिय वव्च्छ ! नन्नहा होसि । तिलमेत्तखंडखंडेहिं खंडिया तहवि नेच्छामि ॥१३१२|| लद्धं अईव दुलहं मणुयत्तं तंपि जाइ - कुलसुद्धं । जिणधम्मम्मि पबोहो विसुद्धसम्मत्तलाहो य ॥१३१३ ।। निसुयं पवयणसारं तब्भणियायरणपालणजलेण । पक्खालिओ असेसो पावमलो जम्मजम्मकओ || १३१४॥ तम्हा एयस्स कए असमंजसचेट्ठियस्स तुच्छस्स । परिणइविरसस्स कहं सव्वमिणं वच्छ ! मेलेमि ? || १३१५।। ता मा कुणसु अयाणुय ! तुमं पि नियगोत्तफंसणं जेण । मरणंते वि न जायइ गरुयाण विरुद्धमायरणं ॥ १३१६|| इय एवमा बहुविह- अणुणयवयणेहिं सीलरक्खटुं । जा भणइ कमलकेउं पउमसिरी ताव सो भणइ || १३१७॥ आ पावे ! बहु पलवसि ममं पि सिक्खवसि तुज्झ पंडिच्चं । जाणामि अज्ज जइ मह हत्थाओ तुमं विछुट्टसि ॥१३१८ | एत्तो उवरिं जइ मह वयणं न करेसि ता अहं तुज्झ । करकलियखग्गधाराए अज्ज सीसं लुणिस्सामि ॥१३१९॥ नाऊण पउमदेवी तस्स मणं सरइ जिण - नमोकारं । सागारं पि हु गेहइ पच्चक्खाणं नियमणम्मि ॥१३२० ॥ नरनाह ! एत्थ समए इह तुज्झ पुरम्मि परमबंधु व्व । दट्ठूण इमं कुमरं करेणुयारूढमविसंकं ॥ १३२१।। हा कुमर कुमरसोंडीर ! वीर ! मं रक्ख सव्वा रक्ख । मोत्तूण तुमं बंधव ! नन्नो रक्खाखमो मज्झ || १३२२|| १२१ Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२२ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ सा मरणभउव्विग्गा एवं जा भणइ गरुयसद्देण । ता देव ! कमलकेऊ कुमरोवरि संठिओ भइ || १३२३|| एएण तुमं पावे ! भूमीभारे[] अहमकुमरेण । अप्पाणं रक्खावसि वियक्खणत्तं गयं तुज्झ ।।१३२४|| मह कोवानलजालावलीए पडिकूलिमाए निययाए । अप्पा न केवलं च्चिय एसो वि तहिं पि पक्खित्तो ॥ १३२५॥ तयणंतरं नराहिव ! बहुकोवो कड्डिऊण करवालं । रे कुमराहम ! रक्खसु तुह सरणगयं इमं नारिं ।।१३२६ ।। एत्थंतरम्मि कुमरो अप्पोवरि नियडनहपएसम्म । निसुणइ तस्सालावं तं नियइ सुतिक्खखग्गकरं ||१३२७ ।। तो पउमएविपलवियबंधवपडिवत्तिजायबहुकरुणो । सो कमलकेउदुव्वयण-सवणसंजाय आमरिसो ॥१३२८ ।। आयड्डिय असिधेणू बहुसत्तं तोलिऊण सो कुमरो । सव्वंगनिहियथामो उप्पइओ उड्डकरणेण ।।१३२९ ।। तो उड्डिऊण कुमरो आरूद्दो ( ढो) कमलकेउपिट्ठम्मि । तग्गहियकेसपासो उक्खयछुरिओं इमं भणइ ॥ १३३०|| रे ! मुयसु मज्झ बहिणि रक्खेमि तुमं अहं न मारेमि । एसा विसुद्धसीला निययघरं जाउ अकलंका ।।१३३१|| जह " नो भज्जइ लउडी न मरइ ससओ" इमेण नाएण | दोन्हं पि होउ रक्खा मा संदेहम्मि खिव उभयं ॥१३३२।। अह सो निरुत्तरो च्चिय मन्नइ कुमरं तणं व नियहियए । कुमरो वि मणे चिंतइ मायावी होइ खयरजणो ॥ १३३३ ॥ Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ १२३ अन्नोन्नावेढियचरणजंघियासरलिओरुकयथामो । जा अच्छइ रायसुओ चक्केण व तेण ता भमियं ।।१३३४।। जह जह सो मायावी गयणे विज्जाहरो परिभ(ब्भ)मइ । कुमरो वि तह तह च्चिय बोक्कखंधेण पीडेइ ।।१३३५।। अइनिबिडबंधपीडण-वियणावसजायकोवफुरिओट्ठो । पक्खिवइ निययबाहुं कुमरोरुजुयंतरालम्मि ।।१३३६।। दढभुयदंडावीडण-विहडावियकुमरठोक्करो खयरो । उप्पइय नहे दूरं उच्छल्लिय खिवइ कुमरं पि ।।१३३७।। एत्थंतरे पडतं निहणिस्सं इय मईए खयरेण । धरियं करे करालं करवालं तक्खणच्चेय ।।१३३८।। तो गयणे सहसच्चिय उच्छलिओ गयणगोयरभडाण । हा ह त्ति संपलावो कुमारपरिपडणभयजणिओ ॥१३३९।। हा निक्कारणवच्छल ! मह कज्जे तुज्झ एत्तियं जायं । मुक्ककं(कं)दाए(इ) इमं संलवियं पउमदेवीए ।।१३४०।। गयणाओ पडतेणं सो दुट्ठो कड्डिण केसेसु । कुमरेण पुणो कंठे संजमिओ ऊरुबंधेण ।।१३४१॥ पडिरुद्धसासपसरो सो पावो तस्स चारणमुणिस्स । वयणं धरेइ हियए पीडिज्जंतो दढं कंटे ॥१३४२।। नरनाह ! एत्थ समए विमुक्कमुहनासविवररुहिरोहो । उव्वमइ पउमदेवी-संभोगसुहाणुरायं व ।।१३४३।। आयट्टि(ड्डि)ऊण छुरियं कुमरेण वि विरसमारसंतस्स । सीसं 'टस'त्ति छिन्नं तस्स महापावकम्मस्स ||१३४४।। Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२४ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ एत्यंतरे नराहिव ! जयसद्दुम्मीसिओ सुरवहूण । अइमहुरगीयमंगल - सद्दो सहसा समुच्छलिओ ।। १३४५ ।। अम्हेहिं तओ पोरुस-गुणपयरिसजायपक्खवाएहिं । पुव्वं तिरोहिएहिं पयडेहिं पडिच्छिओ कुमरो ||१३४६ || भणिओ य सबहुमाणं कुमरो अम्हेहिं हरियहियएहिं । तन्निकारिमविक्कम-दीणपरित्ताणमाईहिं ॥१३४७॥ कह पयडिज्जइ पुरओ परक्कमो मारिसेहिं सो तुज्झ । जो सिद्ध-सुरगणाणं हिययाओ खणं न ओसरइ ।।१३४८ ।। भुयणस्स कमलकेऊ केउव्व उवट्टिओ विणासाय । सो संपइ तुह भुयदंड - केउणा कह खयं नीओ ! || १३४९ ॥ साहंति असज्झं पि हु तुमं व्व जे होंति साहससहाया । नियसत्ततुलातुलियं जाण तिलोयं पि तिणतुल्लं ॥१३५० ॥ को पडिवज्जइ पयडं पि तुज्झ भुयविक्कमं असामन्नं । नियजोग्गयाए जम्हा सज्झासज्झं जणो मुणइ ।।१३५१ || नियजीयसंसएणं परोवयारम्मि जे पयट्टंति । सुइगोयराण ताणं पच्चक्खो मह तुमं एक्को ।।१३५२ ।। इह दुट्ठनिग्गहेणं सुसाहुपरिपालणेण रायत्तं । तं तुज्झ परं छज्जइ जहत्थनामस्स नरनाह ! || १३५३ ॥ इय एवमा बहुविह- सब्भूयगुणथुईओ खयराण । निसुयाओ कुमारेण दुव्वयणपरंपराओ व्व ॥१३५४॥ एत्थंतरम्मि भणिया कुमरेण सिणेहनिब्भर (रं) भइणीं (णी ) । मह कहसु जमिह किच्चं संपइ सीलुज्जले ! कज्जं ॥१३५५॥ Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ १२५ तो भणइ पउमएवी अहमेव परं न रक्खिया तुमए । खलखयररक्खसाओ बंधव ! परिरक्खियं भुवणं ।।१३५६।। तं सामी तं बंधू तं जणणी तं पिया गुरू तं सि । तं पाणदायगो मह कुमार ! तं किन्न जं न होसि (?) ||१३५७॥ नीसेसभुयणपालण-अच्चब्भुयन्नायपुन्नपब्भारो । आचंदक्कं नंदसु संपत्तसमीहिओ सययं ।।१३५८।। एण्हं पि कामरूवे पुरिं पुराजोइसिं अविग्घेण । पावेमि मह पई विय पत्तियइ तहा तुमं कुणसु ॥१३५९।। एत्थावसरे भणियं नरिंद ! मह भाउणा सुवेगेण । मह कहसु देव ! कज्जं जं सझं मारिसजणस्स ||१३६०।। अम्हे निक्कारिमपोरुसाइगुणवित्थरेण तुह बद्धा । आजम्मकम्मकारा भिच्चा ता देहि आएसं ॥१३६१।। तो तं सुवेगवयणं पडिपूरंतेण पुण मए कुमरो । वीसंभट्ठा(ठ)णमेसो इमीए सह जाउ इय भणिओ ||१३६२।। जा तुम्ह देव ! भइणी सा जणणी होइ निच्छियमिमस्स । ता निव्विसंकहियओ पेससु मा कुणसु संदेहं ॥१३६३॥ कुमरेण तओ भणिया अत्थवइपिया पसन्नवयणेहिं । गच्छसु सुवेयसहिया नियगेहं भइणि ! नीसंका ।।१३६४।। तो भणइ पउमएवी तुम्हाएसा घरम्मि वच्चंती । न करेमि मणे संकं विसेसओ सह सुवेगेण ॥१३६५।। तह तुमए वत्तव्वो अत्थवई पउमएविकज्जम्मि । जह नीसंको जायइ सुवेयमिय भणइ कुमरो वि ॥१३६६॥ Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२६ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ अह पेसिऊण भइणिं कुमरो विय अप्पणा इहं पत्तो । अम्हेहिं समं, सेसं अओ परं तुम्ह पच्चक्खं ।।१३६७।। एत्थावसरे नरनाह-नियडनीसेसवीरपुरिसेहिं । खित्ता कुमारसमुहं पहरिसवसवियसिया दिट्ठी ॥१३६८।। पुणरुत्तं वारविलासिणीहिं पहरिसवसट्टपुलयाहिं । मुक्का अलक्खरूवा कुमरे तरलच्छिविच्छोहा ।।१३६९।। तो नरवइणा भणियं जं अच्छरियं जणेइ गरुयाण । एयस्स पुणो तं च्चिय नियचरियं जणइ गुरुलज्ज ।।१३७०।। संपइ तिणमोडणनीसहा वि गरुयत्तणं पयासेंति । एवंविहा उण पुणो संतंपि हु निण्हवंति तयं ।।१३७१।। करुणा तप्पडियारो अप्पविणासे वि विक्कमो नयवं । कोसल्लं दक्खत्तं सत्तुजओ उवसमाइ(ई)या ॥१३७२।। जे केइ एत्थ भुयणे गुणाणुबंधा गुणा बुहाणं पि । ते सव्वे ठाणंतर-मलहंता एत्थ लीण व्व ॥१३७३।। अम्हारिसाण तुम्हारिसेसु सिक्खा-सहावगरुएसु । निव्विसया आयासं संकोयइ को समत्थो व्वि (?वि) ।।१३७४।। जो विक्कमेण गयणे असज्झविज्जाहरं पि निज्जिणइ । कुमरस्स तस्स हासो मन्नो करिकीडसंजमणं ! ॥१३७५।। ता तुज्झ जाव न समइ विज्जाहरसंगरुब्भवो खेओ । तक्खणमेत्तेणं चिय पुण जाओ वारणायासो ।।१३७६।। वीसमसु ता सुहेणं गच्छसु आवासमिइ नरिंदेण । भणिया कुमार-खयरा समं गया पुव्वआवासं ।।१३७७।। Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२७ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ एवं च मज्झ सव्वं जं कहियं खेयरेण तायस्स । तं कुमरचेट्ठियं बंधुलाए कहियं विसिट्टाए ।।१३७८।। ता सो रायकुमारो पियसहि ! आरंभ(रब्भ) ते दिणं मज्झ । हिययाओ कीलिओ इव कामसरोहेहिं नो सरइ ।।१३७९।। मह वइयरं पि न मुणइ सो सुहउ(ओ) मह मणम्मि पुण दुक्खं । तं किं पि जेण सव्वं उव्वेवयरं विमाणाइ ॥१३८०॥ का तव्विसया चिंता ? अणुराई मह न होइ, मा होउ । पेच्छेमि तहवि तं चिय को तिसिओ चयइ अमयरसं ? ॥१३८१।। निवसंति तारिसाणं गरुयाण मणम्मि गरुयजुयईओ । पाउसलच्छि चिय गुरु-पओहरं महइ नहमग्गो ।।१३८२।। ता जइ मणम्मि तुह फुरइ को वि सहि ! तारिसो सुहउवाओ । ता लक्खसु मह विसए पडिकूलो किमणुकूलो सो ? ||१३८३।। तो चंदसिरीवयणं विलासलच्छी भणेइ सोऊण ।। सहि ! रुट्ठ म्हि तुहोवरि गोवसि जं मज्झ नियहिययं ।।१३८४।। एयारिसाइं पियसहि ! नियसरिसजणम्मि संविहत्ताई । न जणंति तहा दुक्खं कज्जाई हलुइयाइं व ||१३८५।। गरुयारंभं गरुयाणुरायविसयं च कह तए धरियं । हिययम्मि तए? अहवा, अइगरुयं माणसं तुज्झ ॥१३८६।। एत्तियदियहेहिं अज्ज साहियं तहवि किं पि न हु नटुं । अप्पसमाणम्मि जणे अणुराओ तुज्झ सहि ! जाओ ॥१३८७।। जो सहि ! तुमए कहिओ कुमारववहरणवइयरो एण्हि । सो मज्झ वि पच्चक्खो संजाओ लोयवाएण ।।१३४४।। Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२८ सिरिभुषणसुंदरीकहा ॥ परमेयमहं पियसहि ! जाणामि न जमिह तुज्झ अणुराओ । अम्हाण पुणो हियए अन्नं चिय किंपि संठाइ ।।१३८९।। तो भणइ रायधूया जं तुह हिययम्मि तं पि मह कहसु । पभणइ विलासलच्छी कहिएण वि किं अणितुण ? निसुणसु तहावि पियसहि ! असोयविज्जाहरस्स तुह उयरिं । अणुरायं द→णं विमाणदाणाणुमाणेण ।।१३९१।। जाओ मणे वियप्पो मह किर होही तहा तुह तहिं पि । अहिलासो जेण न सो वि होइ सामन्नपुरिससमो ||१३९२।। विज्जाहरकुलजाओ अच्चुत्तमरायवंससंभूओ । सयलकलाकुलभवणं चाई जिणवयणभावन्नू ।।१३९३।। एत्थंतरम्मि तिस्सा वयणं अक्खिविय भणइ चंदसिरी । अप्पत्थुयाए पियसहि ! किं एत्थ असोयचिंताए ? ।।१३९४।। एक्कम्मि तम्मि दिट्ठी अणुसंधाणं च तम्मि एक्कम्मि । धाणुक्क-कुलवहूणं जत्थ मणं पसरइ सुलक्खे ॥१३९५।। जम्मि निविटुं हिययं सुहं च्च दुक्खं च्च तस्स आयत्तं । नावारूढो हि जणो न कयाइ सयंवसो होइ ॥१३९६।। जे सहि ! गुणा असोयस्स ते गुण च्चिय न मच्छरो मज्झ । अणुरायकारणं चिय ते मज्झ परं न संपत्ता ।।१३९७।। सहि! भिन्नरुई लोओ, इह कस्स वि को वि होइ मणइट्ठो । भोयणरसोव्व लोए कडुयंबिल-महुरभेएण ||१३९८।। इय ताओ जाव एवं परोप्परालावतग्गयमणाओ । चिट्ठति ताव एगो समागओ बंभणो तत्थ ।।१३९९।। जा । Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ मज्झिमवयपरिणामो महरिहपूओवगरणपडलकरो । तक्कालण्हाणपगलंत-दीहवालग्गजलबिंदू || १४००॥ सुनियत्थसेयवत्थो निम्मलजन्नोववीयकयखंधो । अब्भक्खतो पुरओ धरायलं पाणिसलिलेण || १४०१ || काऊण सो निसीहिं पविसइ अब्भितरम्मि उवउत्तो । मोत्तूण पडलयं पुण पमज्जए चक्किणीभवणं ॥। १४०२ ।। कुणइ सं ( स ) मज्जणकम्मो (म्मं ) कुणइ तओ पुप्फपगरमइसुरहिं । आबद्धवयणवत्थो पूयइ चक्केसरि देविं ||१४०३॥ पढमं ण्हाण-विलेवण - पूयण-धूयक्खयाइबहुभेयं । आरत्तियपज्जंतं काऊणं परमभत्तीए || १४०४ ॥ थोऊण तओ देविं पुरओ ठाऊण रायधूयाण । उच्चारिऊण मंतं 'सत्थि'त्ति पजंपर हिट्टो || १४०५ || 'उवविससु' त्ति सपणयं भणिओ उवविसइ रायधूयाए । • कोसि तुमं ? कत्थच्छसि ? देवि पि किमत्थमच्चेसि ? || १४०६॥ इय एवमाइ पुट्ठो विलासलच्छीए भणइ सो विप्पो । अहमेत्थ नयरवासी भट्टो गोवद्धणो नाम || १४०७ || इह अत्थि वीरराया कुमरो सिरिवीरसेणनामोत्ति । गयणंगणंमि जेणं वियारिओ कमलकेउरिऊ ||१४०८ ॥ तस्सत्थि परममित्तो हिययसमो बंभदत्तनामोत्ति । तस्साए सेण अहं पइदियहं देविमच्चेमि ॥। १४०९ ॥ सोऊण इमं वयणं पहरिसवसवियसियच्छिविच्छोहा । आणंदपुलइयतणू चंदसिरी तक्खणं जाया ।।१४१०|| १२९ Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३० जो पुव्विमवन्नालहुयहिययसंभावणाए परिकलिओ । सोच्चेय तीइ विप्पो मेरुसमो कुमरनामेण ॥ १४११ || तंबोलदाणपुव्वं विलासलच्छीए सो पुणो पुट्ठो । सो कस्स सुओ ? कम्हा समागओ ? किंगुणो कुमरो ? || १४१२ ॥ इय एवमाइ सव्वं साहसु चरियं सकीयकुमा (म) रस्स । पणिय (इ) विप्पो निसुणह तद्दे ( दे ) कुचित्ताओ पहुचरियं ॥ १४१३॥ उप्पज्जंति पयाणं पुन्नेहिं जयम्मि केइ सपु ( प्पु ) रिसा । मेहव्व जेहिं भुयणं पल्हायइ निहयसंतावं ।।१४१४।। सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ इह भारहम्मि वासे चंपानामेण अत्थि वरनयरी | तत्थत्थि जियविवक्खो राया सिरिसूरसेणो त्ति || १४१५ || जो वैरिनरिंदकरिदं केसरी अइपयंडभुयदंडो । रिउकित्तिवल्लिवित्थर-निकुट्टण (णा)कड्डिी(ढि)णपरसुव्व ॥ १४१६|| जेण समरंगणेसुं दूरं विद्दवियवैरिवग्गेण । नियखग्गे संकंतो सरोसमिव जोइओ अप्पा ||१४१७ || जस्स जणे पयडिज्जइ बंदीकयविविहवेर (रि) नारीहिं । दुव्विसहगुरुपयावानलस्स विसमं परिप्फुरणं ॥ १४१८ || तस्सत्थि पुव्वजम्मा - णुसंगसंबद्धनिब्भरसिणेहा । सिंगारवईनामं भज्जा गुण - संवसंपन्ना ॥१४१९।। सयलंतेउरपमुहा रूवोहामियसुरंगणारूवा । गुण-सीलवराभरणा उत्तमकुलजाइसंपन्ना || १४२०|| रज्जं विहवं रूयं सामित्तं गुरुगुणा य सोहग्गं । राया मन्नइ सफलं अणुकूलकलत्तलाहेण || १४२१।। Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३१ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ सो तीए समं भुंजइ सलाहणिज्जाइं सयललोयस्स । इंदोव्व देवलोए सुहाई संतोससाराई ।।१४२२।। एकं चिय तस्स सुहं न अत्थि नीसेससुहसमिद्धस्स । जं पच्चूसे नियपुत्त-वयणअवलोयणुब्भूयं ।।१४२३।। अह अन्नदिणे राया भणिओ मंतीहिं हियनिउत्तेहिं । सव्वेहिं वि मिलिऊणं परिणामसुहावहं वयणं ।।१४२४।। इह देव ! महीवइणो सुसावहाणा वि इयरकज्जेसु । अवगयपरमत्था वि हु मुझंति पुणो सकज्जेसु ।।१४२५।। भोयण-सयण-विहूसण-गमणा-गमणाइ-सयलकिरियाओ । कहकहवि गयंदा इव चोइज्जंताणुसेवंति ।।१४२६।। एवंविहाण ताणं पयइपमाईण सव्वकज्जेसु । नीसेसकज्जकारित्तणेण किर मंतिणो हुंति ।।१४२७।। जं होइ मंतिसझं तं मंतियणो अवस्स साहेइ । जं पुण तुम्हायत्तं तं तुमए देव ! कायव्वं ॥१४२८।। उच्छाइया विवक्खा एगच्छत्ता कया वसुमई य । ठविया पयाओ सुत्थे सूरो वि जिओ पयावेण ।।१४२९।। इय एवमाइ सव्वं विप्फुरियं तुज्झ अतुलसत्तिस्स । सुविणयरज्जसमाणं मन्नाओ पुत्तपरिहीणं ।।१४३०॥ पुत्तो हि नाम नरवर ! गुणवंतो होइ सव्वसुहमूलं । पुत्तफलेणं फलिओ पुरिसो सलहिज्जइ दुमोव्व ॥१४३१॥ एसा तुह रायसिरी एसो वि य परियणो असामन्नो । एयं च धरावलयं को धरिही तुज्झ वि वरोक्खे ॥१४३२।। Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ भवतरुवरुब्भवाणं पत्ताण व राय ! सव्वसत्ताणं । होही अवस्सपडणं दुप्पडियारं सुराणं पि ॥१४३३।। ता देव ! मरणधम्मीण एत्थ पाणीण मज्झगा तुब्भे । तं तु कहं जाणिज्जइ किं कल्ले अहव अज्जेव ? ||१४३४।। सूरोत्ति नियं नामं तुमए च्चिय पयडियं सचेट्टाए । निज्जियसुरासुराओ नच्चीहसे जमिह मच्चूओ ||१४३५।। ता तह किंपि अणुट्ठसु बुद्धीए परकुमेण देहेण । जह भुवणतिलयभूओ पुत्तो संपज्जए तुज्झ ॥१४३६।। इहरा उण नीसेसं नियबुद्धिपरक्कमज्जियं एयं ।। रज्जाईयमवस्सं विलुप्पिही वैरिवग्गेण ।।१४३७।। सोऊण मंतिवयणं परिणामहियं नरेसरो भणइ । को तुब्भे मोत्तूणं सव्वंगं मज्झ हियकारी ? ।।१४३८।। अणुकूलभासिणो जे तेहिं नरिंदाण होति गूढरिऊ । वयणकढोरा हियकारिणो य तुम्हारिसा विरला ।।१४३९।। ता तुम्ह वयणमेयं न अन्नहा होइ, अवितहं मंति ! । समए [प]बोहिओ हं मज्झ वि एवं मणे फुरियं ।।१४४०।। मयमंडणं व एयं अंधारे य नच्चियं व्व पडिहाइ । पुत्तं विणा असेसं रज्जं मायंदजालं व ॥१४४१।। निम्मूलो इव रुक्खो सुसियसिरासलिलसंगहो कूवो । पुत्तरहिउव्व वंसो एए न चिराउया होंति ॥१४४२।। पुत्तेण पवित्तिज्जइ पिया य माया य तह कुलं ज्जा(जा)ई । पुत्तपरिवज्जियाणं संतं पि हु सव्वमत्थमइ ।।१४४३।। Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ अइगरुयरिउकुलाई वि(?)विच्छिन्नाई जहा ममाहिंतो । तह किं मज्झ कुलस्स वि वोच्छेओ संपयं होही ? ||१४४४।। सूरसेणाओ वंसो वोच्छिन्नो दूसहं इमं वयणं । असमत्थो हं सोउं पुत्तत्थं ता जइस्सामि ।।१४४५।। इय भणिऊणं राया पसायदाणेण सुत्थिउं(यं) काउं । मंतियणं पुण पेसइ नियनियगेहेसु नीसेसं ।।१४४६।। एत्थंतरम्मि सूरो सूरस्स पयावसहमाणोव्व । बुहुइ अवरदिसोयहि-जलम्मि संतत्तसव्वंगो ।।१४४७।। सूरपयावानलकढकढंतजलनिहिविलीणरविणो व्व । संज्झामिसेण दूरब्भुयंतराओ व्व वित्थरइ ।।१४४८।। सूरोच्चिय जयइ जए अल्लियइ ससंकिओ रिऊ जस्स । अंतरियजयं पि तमं ससंकमिव जाइ वरुणदिसिं ।।१४४९ ।। कह सूरसेणभुत्ता अहिलसइ खगपि पेच्छ वरुणदिसा ? । इय इयरदिसिवहूहिं कयाइं कलुसाइं वयणाई ।।१४५०।। कसिणंधयारसलिले अदिट्ठपारे सुताररयणम्मि । तमजलहिम्मि व सयलं मज्जइ भुयणं दुरुत्तारे ।।१४५१॥ एवंविहम्मि समए राया कयसयलसंज्झकरणीओ । उवविसइ महत्थाणे बहुविहसामंतसंकिन्ने ।।१४५२।। तत्थच्छिऊण बहुगीय-वाय-पेच्छणय-नाडयाईहिं । विविहविणोएहिं तओ विसज्जए सेवयं लोयं ॥१४५३॥ वच्चइ सेज्जाहरयं विसज्जियासेसपाडुयसमूहो । ओल्लरइ महत्थरणे सुयचिंताद्धासियसरीरो ॥१४५४।। Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३४ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ इय जा सुयलाहत्थं उवायसयजायचित्तसंकप्पो । तत्थच्छइ ता पेच्छइ जालगवक्खेण उज्जोयं ॥ १४५५ ।। तं दट्ठूण वियप्पइ किं पुव्वदिसाए एरिसुज्जोओ ? । किं नु पहाया रयणी ? अहवा चंदुग्गमो होज्ज ? || १४५६ ॥ एहि चेव निसन्नो सेज्जाए निसाए पढमदोपहरा । अज्ज य किण्ह चउद्दि (द्द ?) सि-दियहो कह ससहरुग्गमणं ? || १४५७।। ता किंपि महच्छरियं संभविही एत्थ जामि सयमेव । उज्जोयस्स सरूवं तत्थ गओ संपहारिस्सं ||१४५८ ॥ इय चिंतिऊण राया संवग्गियकेस- निवसण-च्छुरिओ । करसंठियकरवालो विणिग्गओ रायभवणाओ || १४५९ ॥ विविहंगरक्ख-पडियार- जामइल्लाइ सयलपरिवारं । सो वंचिऊण तुरियं विणिग्गओ चंपनयरीओ || १४६० ।। उज्जोयवसेण गओ भवणं सिरिवासुपुज्जनाहस्स । तत्थ नियच्छइ पुरओ नाणाविहदेवसंघायं ||१४६१ ।। वसुपुज्जदंसणत्थं समागओ सयलदेवपरियरिओ । सोहम्मपुराहिवई नाणाविहवरविमाणेहिं ||१४६२|| तो चिंतइ नरनाहो मन्ने एयाण चेव देवाण । विप्फुरइ एस तेओ बहुरवितेयाण अब्भहिओ || १४६३ || ता पेच्छ सुंदरमिणं संजायं जमिह आगओ अहयं । वसुपुज्जदंसणेणं सव्वं मह सुंदरं होही ||१४६४।। इय चिंतिऊण राया जा वच्चइ तुरियकयपयक्खेवो । ता माणुसो त्ति कलिउं खलिओ तियसेहिं दारम्मि || १४६५ ।। Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ तो नरवइणा भणियं मुंचह पेच्छामि वासुपुज्जजिणं । नर-तिरिय-सुरा-सुर-खेयराण साहारणा भयवं ।।१४६६।। दारवालेण भणियं अच्छ खणं जाव जाइ तियसिंदो । सट्ठाणगए सक्के पच्छा वंदेज्ज वसुपुज्जं ॥१४६७॥ तो भणइ सूरसेणो जइ सको ता विसेसओ जामि । ठूण वासुपुज्जं पच्छा सकं पि पेच्छामि ।।१४६८।। देवेहिं तओ भणियं दीसइ पुन्नेहिं सुरवई राया । पुन्नविहीणाण कहं सुरिंदमुहदंसणं होइ ? ।।१४६९।। तो नरवइणा भणियं मए वि सह ज्झंखिउं समारद्धं ? । वसुपुज्जदसणं किन्न होइ पुन्नुब्भवनिमित्तं ? ||१४७०।। वसुपुज्जपायवंदण-समज्जियाणंतपुन्नपन्भारो ।। अपवग्गं पि हु पेच्छइ किमंग पुण तियसनाहं न ? ॥१४७१।। इय एवमाइ विविहं समुल्लवंतो नरवई तेहिं । खलिओ कहवि न पावइ पवेसमंतोजिणहरस्स ॥१४७२।। तो देवअवन्नावयणसवणसंजायअसरिसुक्करिसो । . आयं चिर(?) च्छिवंतो पुण राया भणिउमाढत्तो ॥१४७३।। तुब्भेहिं किलीबेहिं अहं खलिज्जामि निद्विवेईहिं । मज्जाय(या) चिय गरुयाण होइ पडिरुंभणसमत्था ॥१४७४।। इय भणिऊण नरिंदो खग्गं आयड्डिऊ(ण) पुण भणइ । खलउ जो तुम्ह मज्झे खलणसमत्थो सुरो असुरो ।।१४७५।। देवेहिं पुणो भणियं किं माणुस ! जंपसे असंबद्धं ? । ते हुंति कहं गरुया जे न ससत्तिं वियाणंति ? ||१४७६।। For-Private & Personal Use Only Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ राया भणइ न सत्ती कारणमिह होइ गरुयभावस्स । हिययावटुंभकरं सत्तं चिय गरुयए पुरिसं ।।१४७७।। जलबिंदुणा वि सित्तो उण्हायइ सुह(हु)महुयवहफुलिंगो । सो किं न होइ पलयस्स कारणं सयलभुयणम्मि ? ||१४७८।। जिप्पइ न जिप्पइ च्चिय एयं पुन्नाण होइ आयत्तं ।। अवमाणखंडणे सुउरिसाण पाणा तिणसमाणा ॥१४७९।। तो अन्नसुरवरेहिं पडिहारसुरा बहुं अहिद्दविया । किं एत्तियं पि न सुणह एसो क्खु महीवई गरुओ ? ॥१४८०।। तो तं सुराण वयणं अवगणिऊणं च दारपालेहिं । नरवइणा सह जुद्धं पारद्धं अहिनिव(वि)तुहिं ॥१४८१ ।। मज्झत्थसुरेहिं तओ अंतो गंतूण तियसणाहस्स । पडिहार-सूरसेणाण वइयरो साहिओ सव्वो ।।१४८२।। तो सुरवइणा भणियं को वि असामन्नमाणुसायारो । जो नियपरक्कमेण वि देवाणं संमुहो होइ ! ।।१४८३।। अहवा किमेत्थ चित्तं ! तेयस्स अकारणं भवे जाई । अन्नोन्नघसणेण(ण) कट्ठाई वि किं न पज्ज(ज)लंति ? ||१४८४।। ता तुरियं हक्कारह नरेसरं परमविक्कममहग्धं । रणरसियदंसणेणं मज्झ वि उक्कंठियं हिययं ॥१४८५।। तो आएसाणंतर-मणंतधावंतसुरसमूहेहिं । राया सगौरवं चिय नीओ तियसिंदपासम्मि ।।१४८६॥ तो पणमिऊण पढमं परमेसरवासुपुज्जपयकमलं । पुण नमइ सुरवरस्स वि नरनाहो सविणयं भणइ ॥१४८७।। Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ सयलस्स तिहुयणस्स वि नाहो तुममेव जीवलोयम्मि । तह वि तुहाएसेण मज्झिमलोयाहिवो अहयं ।। १४८८ ।। कह 'माणुसो' त्ति भणिउं सुरिंद ! तुह दुदारपालेहिं । खलिओ म्हि खलेहिं अहं, तणं व परितुलिउमाढत्तो ? ।। १४८९ ॥ तव्वयणायन्नणजायहरिसवियसंतदससयच्छिउडो । १३७ सुरनाहो नरनाहस्स संमुहं भणिउमाढत्तो ।।१४९० || जा माणुसाण सत्ती सा कह तियसाहिवाण वि नरिंदा ? | विरइं कुणइ मणुस्सो सक्को उण तत्थ वि असक्को ।।१४९१।। अम्हेहिं वि राय ! पुरा मणुयत्तं पाविऊण अइदुलहं । पालियजिणवयणेहिं इंदत्तं पावियं एहि ।। १४९२ ।। डहिऊण कम्मरासि मणुओ पावेइ सासयं सोक्खं । सुसमत्थस्स वि देवस्स कह णु एवंविहा सत्ती ? || १४९३ ॥ अम्हे विराय ! मणुयाण पणमिमो नाण- दंसणधराणं । चारित्तपवित्ताणं जिणंदलिंगं पवन्नाण ।। १४९४ ।। ता सव्वा न एए विवेइणो होंति दारपडिहारा । एवंविहाण उवरिं कोवो वि न होइ कायव्वो ।। १४९५ ॥ तो भणइ नरवरिंदो सुरिंद ! तुह दंसणामयरसेण । वयणामयसवणेण य विज्झाओ मज्झ कोवग्गी ।। १४९६ ।। तो सुरवइणा भणियं तुह राय ! निसग्गविकमगुणेण । विणयगरुयत्तणेण य तुट्ठो म्हि वरं वरेसु त्ति || १४९७ || तो राइणा वि भणियं जं बहुपुन्नाणुभावओ होइ । तं तिहुयणे दुर्लभं जायं तुह दंसणं मज्झ ।। १४९८ ।। Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३८ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ एएणं चिय तियसाहिराय ! तुह दंसणेण संपन्ना । सव्वे वि दुल्लहवरा करट्ठिया संपयं मज्झ ।।१४९९।। पुण सुरवइणा भणियं किं इमिणा ? भणसु जं मणे फुरइ । होइ अमोहं जम्हा देवाणं दंसणं राय! ॥१५००।। तो नरवइणा भणियं जइ एसो देव ! तुम्ह अणुबंधो । तो तुज्झ पसाएणं पुत्तो मम अणुवमो होउ ॥१५०१।। तो सुरवइणा भणियं विनायं ओहिणा मए राय ! । तुह अच्चुयकप्पाओ चइऊण सुरो सुओ होही ।।१५०२।। इय भणिऊणं सक्को नमिऊणं वासुपुज्जजिणनाहं । नीसेससुरसमेओ सहसा असणीहूओ ।।१५०३।। नरनाहो वि पविट्ठो पणामपुव्वं जिणिंदचंदस्स । केण वि अलक्खिओ च्चिय नियरायउलम्मि संपत्तो ।।१५०४।। सेज्जाए खणं सुत्तो खणमेत्तेणं च ववगया रयणी । चिंतव्व महीवइणो अंधारियसयलजियलोया ॥१५०५।। उइओ य पयासंतो भुयणयलं तमरिउं च नासंतो । नरवइमणोरहो इव सूरो अंतरियतेयस्सी ॥१५०६।। दरवलियं पिव परिसोसियं व विद्धंसियं व पीयं व । सूरस्स करेहिं जए दूरं निब्भच्छियं च तमं ॥१५०७।। एत्थंतरम्भि राया निद्दाविरमम्मि जग्गिओ सहसा । कयसयलगोसकिच्चो अत्थाणे हाइ संतुट्ठो ।।१५०८।। सव्वे वि मंतिणो अह समागया ताण कहइ नरनाहो । निसि तियसनाहदसण-सुयप्पयाणाइवुत्तंतं ।।१५०९।। Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ १३९ सव्वेहिं तओ मंतीहिं पभणियं तुज्झ चेव परमेयं । सिज्झइ जं किर सुरराय-दसणं पुत्तलाहो य ।।१५१०॥ उद्यइ अत्थाणाओ विसज्जियासेसमंति-सामंतो । कयभोयणाइकिरिओ गमइ दिणं बुहविणोएहिं ।।१५११।। तो अत्थमिए सूरे अत्थाणे हाइ उचियवेलाए । पट्ठवइ सेवयजणं पच्छा सेज्जाहरे जाइ ।।१५१२॥ सिंगारवईसहिओ सेज्जाए तहिं नु वज्जए राया । तद्दिय(व)सं व्हायाए संभोयं कुणइ सह तीए ||१५१३।। . तो इंददत्तदेवो च्चविऊणं अच्चुयाउ कप्पाओ । पुत्तत्तेणुप्पन्नो सिंगारवईए कुच्छिम्मि ॥१५१४।। निसिपच्छिमम्मि जामे सुहसुत्ता सुविणयं नियइ देवी । सेविज्जंतं पेच्छइ नियगब्भं वीरपुरिसेहिं ।।१५१५।। तं पासिऊण देवी जहाविहं कहइ निययदइयस्स । राया वि तमासासइ सुयजम्मब्भुदयकहणेण ।।१५१६।। पइदियहपवड्दिरगरुय-गब्भपब्भारनीसहसरीरा । तग्गुणभारकं (क्कं)तव्व उच्छहइ नो पयं दाउं ॥१५१७।। गब्भारंभपवुढे थणभार सामचुच्चुयं वहइ । वीरस्स व पाणत्थं जउमुद्दामुद्दियं देवी ॥१५१८॥ अंतोगब्भसमुब्भव-उज्जलतेयप्फुरंतपरिवेसा । सक्केण व रक्खिज्जइ कुंडलियसचावचक्केण ।।१५१९।। सुरलोयअमयपाणोवतित्तगब्भाणुहावओ देवी । नो वंछा आहारं कहमवि परिणामबीभच्छं ।।१५२०।। Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४० सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ संजाया डोहलया अच्चब्भुयभावसूयगा तीए । एक्कीकयचउसायर-जलेण ण्हाय(ण) करेमि त्ति ।।१५२१।। संनिहियदप्पणे उज्झिऊण तिक्खग्गखग्गपट्टेसु । अवलोयइ मुहकमलं विसिठ्ठगब्भाणुहारे(वे)ण ।।१५२२।। परिहरियमहुरगीयाए तीए सोक्खं जणंति सवणेसु । कढिणारोवियकोयंड-कढ(ड)णुप्पत्तटंकारा ||१५२३।। सुहडनराण वि पायं निसुया वि हु जे जणंति उत्तासं । सीहेहिं तेहिं सह पंजरगएहिं सा कीलिउं महइ ।।१५२४।। वढ्तम्मि पवड्डय-भुवणाणंदम्मि वीरगब्भम्मि । पडिवक्खमंदिरेसु उप्पाया दीसिउं लग्गा ॥१५२५।। अनिमित्ताई अयंडे चलंति सीहासणाई वेरीण । दिढबद्धा वि सिराओ पडंति वियडा महामउडा ॥१५२६।। रायगिहोवरि बंधइ आवासं कोसिओ विवक्खाण । अइविरसमारसंती वैरिपुरं विसइ भल्लुंकी ॥१५२७।। इयमाइ बहुप्पाए द→णं ताण वैरिरायाण । सासंकाण पयट्टा मंता सह मंतिलोयम्मि ॥१५२८।। एत्थंतरम्मि देवी सिंगारवई पवुड्डगुरुगब्भा । सव्वंगनीसहंगी जाया वावारअसमत्था ।।१५२९॥ दाऊण उभयहत्थे जाणुसु आसंदियाओ उठेइ । मणिभित्तिपडिप्फलिए अप्पम्मि वि महइ आलंबं ।।१५३०।। अणवरयं जणकीरंत-विविहकल्लाणसयसमिद्धाए । सिरदुव्वक्खयक्खेवो वि दुव्वहो कह न आभरणा ||१५३१।। Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४१ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ अह सुपसत्थे दियहे पसत्थलग्गम्मि सोहणमुहुत्ते । देवी सुहंसुहेणं सुयं पसूया महातेयं ।।१५३२।। एत्थंतरम्मि सहसा पसरंताणंदगरुयसंमद्दो । अंतेउरनारीणं समुट्ठिओ कलयलो तत्थ ।।१५३३।। तो हिययनिव्विसेसा सिंगारवईए धाविदिकरिया । वच्चइ नरिंदपासे कल्लाणसिरि त्ति नामेण ||१५३४।। नरनाह ! रिद्धिया वद्धसे त्ति देवीए पुत्तजम्मेण । राया वि निसुयमेत्ते वत्थाहरणाई से देइ ।।१५३५।। तो तम्मि चेव समए समागओ जोइसत्थपारगओ । अइरिदियदिन्नाएस-सहसनियपयडियपहावो ।।१५३६।। तीयाणागयसंपय-पयडत्थहत्थसुणियगंथत्थो । नामेण सिद्धचंदो दिन्नासीसो भणइ एवं ।।१५३७।। देव ! सुणिज्जइ एवं पुराणसत्थेसु सगुणनिदोसो(से?) । एवंविहम्मि लग्गे सुभूमिचक्की पुरा जाओ ।।१५३८।। पढमं तुच्छकिलेसं पुरओ परिणामसुंदरं एयं । लग्गं साहइ कज्जं जम्मि सुओ तुज्झ उप्पन्नो ||१५३९।। एत्यंतरम्मि सहसा अणाहया चेव तार-गंभीरा । वज्जति दुंदुहीओ संखा वि य अकयमुहनाया ।।१५४०।। पहयपडुपडह-मद्दल-मउंद-घण-तूरपडिरवमिसेण । दिसिवालेहिं वि मन्ने जम्ममहे कलयलो विहिओ ।।१५४१।। मुत्तोव्व पुनरासी संतुदयकरो पुरोहिओ पत्तो । कुलवुड्डाओ वि समयं पमोयगब्भाओ पविसंति ।।१५४२।। Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४२ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ बहलमलपंककलुसा मुक्का चिरबंधणेहिं खीणंगा । मुणिणो व्व गुत्तिपुरिसा निव्वुइसोक्खं अणुहवंति ।।१५४३॥ परिहरियरज्जनीई(इं?) निद्दोसंतेउरप्पवेसं च । दूरोसारियनीसेस-दारपडिहारसंरोहं ॥१५४४।। समसामि-दासवग्गं समवुड्ड-सिसुं च समगुरु-लहुं च । समसिट्ठा-सिट्ठजणं सममत्ता-मत्तवग्गं च ।।१५४५।। समकुलवहु-वेसजणं समपरियर-नयरपउरलोयं च । जायं वद्धावणयं नरिंदसुयजम्मदिवसम्मि ||१५४६।। कत्थवि गौरवियमहा-अमच्चनच्चणपवड्ढियाणंदं । उम्मत्तथेरदासी-नट्टपयटुंतजणहासं ॥१५४७।। मइरापाणपरव्वसवेसापरिरंभमाणजरपुरिसं । नरवालअंखिसन्ना-नच्चाविज्जंतमंतियणं ॥१५४८।। उब्भडघडदासीजण-पेलणरूसंतबहुपरि(री)वायं । विडवयणतो रचिज्जंत-कुट्टणीजणियजणहासं ||१५४९।। इय सव्वलोयलोयण-मणपरमाणंदकारच्चं तत्थ । वित्तं वद्धावणयं नरिंदगेहे महिड्डीए ॥१५५०।। विरइज्जति पहेसु कणयद्दिसमा सुवन्नरासीओ । उक्कुरुडिज्जंति तिएसु तहय मणिरयणरासीओ ॥१५५१।। दिव्वाइं भूसणाई सिंगाडपहेसु पुंजइज्जति । तह चच्चरेसु मुच्चंति विविहवत्थाण संघाया ।।१५५२।। तो(जो) जेणत्थी सो तं गहेउ सयमेव नत्थि से दोसो । इय चंपानयरीए घोसिज्जइ रायपुरिसेहिं ।।१५५३।। Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ इय सुयजम्मपवट्टिय-महोच्छवुप्पन्नपहरिसो राया । जा अच्छइ ताव तहिं जं जायं तं निसामेह ॥१५५४।। गब्भत्थे च्चिय वीरा-हिवम्मि जे आसि वेरिराय(या)ण । नयरेसु महुप्पाया असरिससंजणियसंतासा ||१५५५।। सो पुव्व-दक्खिणावर-उत्तरराएहिं जाणिओ सव्वो । नियनियसिद्धाएसेहिं साहिओ कुमरवुत्तंतो ॥१५५६।। जह सूरसेणरायस्स कयपसाएण देवराएण । सग्गाओ चुओ देवो दिन्नो पुत्तो समुप्पन्नो ॥१५५७।। सो जइ कहवि लहेसइ अप्पाणं कम्मघम्मजोएण । तो तेण तुम्ह वंसाण मूलच्छेओ करेयव्वो ॥१५५८।। एयनिमित्ता सव्वे उप्पाया तुम्ह नयर-भवणेसु । सो बालो तुम्हाणं उवडिओ धूमकेउव्व ।।१५५९।। इय नेमित्तियवयणाई तेहिं सोऊण सव्वराईहिं । अन्नोन्नविरुद्धेहिं वि एक्कचओ(?) काउमारद्धो ॥१५६०॥ जावज्ज वि गब्भत्थो जाओ वा पावए न अप्पाणं । ताव तहिं गंतूणं जणयसमेयं वहामो तं ।।१५६१।। इय मंतिऊण सव्वे दु(दू)यमुहेहिं वि जाव वीसासा । नियनियअणंतसेणा-संमद्देहिं व संचलिया ॥१५६२।। एयं च पणिहिपुरिसेहिं तस्स सिरिसूरसेणरायस्स । पडिवक्खनरिंदाणं ववहरणं साहियं सव्वं ॥१५६३।। अणवरयपयाणएहिं धत्ता चंपं महापुरि सव्वे । संरोहं काऊण मुक्काई सकीयसेन्नाई ।।१५६४।। Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ तो सूरसेणराया नवभूमियभवणसिहरमारूढो । पेच्छेइ नयणअपाविय-पेरंतं वैरिबलनिवहं ।।१५६५।। तो तइयच्चिय दियसे राया दठूण पुत्तमुहकमलं । पुण तस्स नाम करणं करेइ रणरंगरसलुद्धो ॥१५६६।। सुविणयअणुहूयासेसवीरसेवो किरासि गब्भत्थो । जाओ वि तइयदिवसे पवेढिओ वीरसेणाए ॥१५६७।। ता वीरसेणनामो होउ सुओ अज्ज अक्खलियपयावो । गब्भत्थेण वि किर जेण दुत्थिया हुंति पडिवक्खा ।।१५६८।। तो निव्वत्तियकज्जो रक्खं काऊण पुत्त-पत्तीण । ताडावइ रणमेरिं सत्तुसंतासजणणिं तो ।।१५६९।। भेरिरवायन्नणसमररसुव्बूढहरिसरोमंचा । निग्गच्छंति पुरीओ सपरियणा सूरसेण-भडा ||१५७०।। करिनिबिडघणघडा-संदणोहघणतुरय-घट्टभडभीमं । निग्गच्छइ नयरीओ सेन्नं सिरिसूरसेणस्स ॥१५७१।। कयकल्लाणसहस्सो राया जयवारणं समारूढो । निग्गच्छइ नयरीओ पवेढिओ नियबलोहेण ॥१५७२।। परसेन्नं पि हु द→णं सूरसेणं पुरीउ नीणतं । चिरदिट्ठभउब्भंतं संनद्धं सव्वओ सव्वं ॥१५७३।। पच्छागएहिं भणिओ असेसमंतीहिं सूरसेणो वि । अरिसेन्नं अइबहुयं उच्छुक्को किं विनीहरिओ ? ||१५७४।। दुग्गट्ठिया नरिंदा जिणंति च्छलदिन्नगुरुअवक्खंदा । गरुयं पि सत्तुसेन्नं अइलहुयबला वि बुद्धिजुया ।।१५७५।। Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ 11 तुह देव ! को न याणइ परक्कुमं जं सुरिंदपच्चक्खं ? । एयाण पुणो बहुसो सिरिम्मि भग्गं तए खग्गं ।। १५७६ ।। ता सव्वपयारेणं कुमरो च्चिय देव ! रक्खणीओ ते । कुमरावयारकज्जे एयाण वि एस पारंभो ॥१५७७ || जइ अच्छसि कज्जवसा चंपामज्झम्मि कुमररक्खट्ठे । ता एत्तिएण किं तुह परक्कमो अन्नहा होही ? ।।१५७८ ।। तो भणइ सूरसेणो मा एवं भणह, देवया तस्स । काहंति देहरक्खं उवउत्ता वीरसेणस्स ।। १५७९ ।। किं अलियं चिय संकह ? विग्घं चिय नत्थि वीरसेणस्स । मज्झवि न एत्थ मरणं जाणामि निमित्त - सउणेहिं ॥१५८० ॥ संबोहिऊण राया मंतियणं एरिसेहिं वयणेहिं । तो रचियअग्गिबाणो अब्भिट्टो सत्तुसेन्नस्स ।। १५८१ ।। एत्थंतरम्मि गयणे किंनर - सुर-असुर-सिद्ध-गंधव्वा । विज्जाहरा य विविहा विज्जाहरिविंदपरियरिया ||१५८२ ॥ पेच्छंति महासमरं सविम्हओब्भंतनयणतामरसा । वियडे वि गयणमग्गे ओवासं कहवि न लहंता ||१५८३ ॥ नीसेसधरावलएसु केइ जे अत्थि वेरिनरवइणो । मित्ता व अमित्ता वि य सव्वे चिय तत्थ ते मिलिया ।। १५८४ ।। मित्तावि सत् संघड-पडिया सत्तुत्तणं पयासंति । सव्वेसिं रायाणं मिलिया कि सोलस सहस्सा ||१५८५ ।। ताणं च सेन्नसंरवा पायं अक्खोहणीओ बत्तीसं । सव्वेसिं मिलियाणं इय माणं सत्तुसेन्नाणं ।। १५८६ ।। १४५ Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ सूरस्स सेन्नमाणं हवंति अक्खोहणीओ अद्वेव । रायाणं च सहस्सा अट्ठ महामउडबद्धाणं ।।१५८७।। ओच्छाइयं असेसं वियर्ड पि हु सूरसेणघणसेन्नं । अरिसेन्नेहि घणेहिं व नहंगणे ओत्थरंतेहिं ।।१५८८।। एत्थंतरे सुराणं जाओ कोलाहलो नहयलम्मि । किं पारद्धो एसो जयपलओ भूमिपालेहिं ? ॥१५८९।। सयलसुरासुर-गंधव्व-सिद्ध-विज्जाहरेहिं मिलिऊण । उभयबलेसु वि दूओ पट्टविओ उभयरायाण ।।१५९०।। पढमं समागओ सूरसेण-पासम्मि भणइ सुरदूओ । किं एस समारद्धो अणंतपाणिख(क्ख)ओ समरे ? ||१६९१।। जेहिं चित्र सह वेरं ते च्चिय जुझंतु नायगा कमसो । जिप्पइ ताण जएणं हारिज्जइ ताण हारीए ॥१५९२।। तो भणइ सूरसेणो सम्मयमेयं ममावि सुरदूय ! । किंतु इमे बुज्झावसु समागया दुट्ठरायाणो ॥१५९३।। तो दूओ इयरेसिं रायाणं जाइ सन्निहाणम्मि । बुज्झाविऊण कमसो पहाणजुज्झे पयट्टेइ ।।१५९४।। एत्थंतरम्मि सहसा सुरेहिं विज्जाहरेहिं मिलिऊण । वूहविभागट्टि(ठि)याइं दूरं खे(खि)त्ताई सेन्नाई ।।१५९५।। तो ओत्थरिओ सूरो दुकरो वि हु जायकरसहस्सो व्व । अन्नोन्नं तोलतो आउहनिवहं करग्गेण ॥१५९६।। उब्भियधयासहस्सं संहावियछत्तचामराडोवं । । बहुपहरणसंकिन्नं दिढसारहिणा समाउत्तं ।।१५९७।। १. व्यूह ।। Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिभुयणसुंदरीकहा ॥ सुसमत्थ-जियस्सम-अट्ठतुरयजुत्तं महारहं सुदिनं । आरुहइ सूरसेणो निज्जियसत्ताससूररहं ॥ १५९८।। तो पुव्वदेसराया बलवंतो गरुयविक्कमपयावो । हरिसेणो नामेणं उवट्टिओ सूरसेणस्स || १५९९ ।। जंपइ सगव्ववयणं एत्तो नरनाह ! देसु मह दिट्ठि । किं अलियधीरिमाए मज्झ अवन्नं पयासेसि ? || १६०० || नणु मट्टियामओ वि हु, पुरिसो परपरिभवग्गिडज्झतो । डहइ परं न हु भंती किमंग ! पुण मारिसी लोओ ? || १६०१ ॥ तो भणइ सूरसेणो सच्चमिणं, को न मन्नए एयं ? | नावन्नेउं पुरिसो भडेहिं किर होउ जो सो वि ।।१६०२ ॥ किंतु ठियाओ कालेण जाओ तुम्हारिसे अवन्नाओ । वयणेहिं न ताव तुहो- सरति नियफुरणहीणस्स || १६०३ || नियफुरणं चिय हरिसेणराय ! गरुयत्तणं पयासेइ । सूरो समुग्गमंतो अप्पाणं कहइ कस्सावि ? ।।१६०४ ।। तो हरिसेणो सिरिसूरसेण-वयणेण कोविओ संतो । आरोयइ कोदंडं संघेई मग्गणे पंच || १६०५।। पच्चारिऊण हरिणा मुक्का सूरो वि तस्स बिउणेहिं । अद्धेहिं च्छिंदइ सरे अद्धेहिं य छत्त-धयचिंधे || १६०६ || तो हरिसेणो वि परिफुरंतरोसारुणच्छिसयवत्तो । पक्खिवइ संधिऊणं वीस सरे सूरसेणस्स || १६०७।। दक्खत्तेणं सूरो बिउणेहिं सरेहिं खंडइ सरोहं । हरिणो सारहि -तुरया मउडं धणुयं च पाडेइ || १६०८ || १४७ Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४८ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ तो संधिऊण करणं हरिसेणो जाव एइ सूररहं । ' ता अद्धपहे अद्धिंदु-खंडिओ पडइ धरणीए ॥१६०९॥ पडिए हरिसेणनरा-हिवम्मि तो सूरसेणलोएहिं । निहओ निहओ त्ति समं कलयलसद्दो समुग्घुट्ठो ॥१६१०॥ कलयलसद्दवियंभिय-अमरिसवसविप्फुरंतअहरोहो । उठेइ अहिनिविट्ठो द्रविडनरिंदो दुराधरिसो ॥१६११।। नामेण अमरतेओ जलहरगंभीरधीरसद्देण । हक्कुंतो सूरबलं वयणमिणं भणिउमाढत्तो ।।१६१२।। किं एत्थ कोल्हुयाण व तुम्हाणं कलयलेण किर होइ ? । किं ओहटे चुलुए सायरसलिलाई सूसंति ? ।।१६१३।। तो भणइ सूरसेणो कुणसु करे अमरतेय ! कोयंडं । एयाण कलयलेणं किं कज्जं निप्फलेणम्ह ? ||१६१४।। नरनाह! घडसहस्सं झंपिज्जइ कहवि केणवि नएण । न उणो उच्छिखलजण-मुहाण इह ज्झंपणं अत्थि ।।१६१५।। तो भणइ अमरतेओ एवमिणं किंतु हाहि मह समुहो । जेण तुह सूरनरवर ! नियसामत्थं पयासेमि ।।१६१६।। तो भणइ सूरसेणो कइयावि परम्मुहो रणे नाहं । पयडसु नियसामत्थं किं बहुणा एत्थ भणिएण ? ||१६१७॥ सहसारोवियधणुगुण-पकडणुल्लसियघोरघोसेण । एक्कमुट्ठीए मुक्का तीस सरा अमरतेएण ॥१६१८॥ सूरेण वैरिबाणा तावंतसरेहिं खंडिया तुरियं । जा न कुणइ संधाणं ता पुण सूरेण दह मुक्का ।।१६१९।। Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४९ सेरिभुयणसुंदरीकहा ॥ एगेण धणुं च्छिन्नं च्छिन्नं(?चिंधं?) एगेण मौडमेगेण । एगेण हओ सूओ छएहिं पुणो छत्त-रह-तुरया ।।१६२०।। तो अमरतेयराया. आरूढो दक्खयाए अन्नरहं । तह जुज्झिउमारद्धो पुणो वि सह सूरसेणेण ॥१६२१॥ मुणिऊण अमरतेओ दुद्धरिसधणुद्धरं निवं सूरं । तो कुणइ करे निसियं कुंतं दंडं व जमराओ ॥१६२२।। तं भामिऊणं घल्लइ सूरो वि य गरुयमोग्गरत्थेण । अद्धवहे च्चिय कुंतं सयखंडं कुणइ अमरस्स ।।१६२३॥ तो खिवइ अमरतेओ करेण उब्भामिऊण लोहमयं । दसभारसहस्सकयं कणाउहं सूरसेणस्स ॥१६२४॥ तं गयणे द~णं सुदुन्निवारं जणस्स. मच्चुव्व । घुट्ठो सुरासुरेहिं हाहासद्दो सदुक्खेहिं ।।१६२५।। तं एतं (एतं?) द→णं सूरो सूरोव्व गयणमुप्पइओ । कणयं करेण कि(गि?)ण्हइ पुण मेल्लइ अमरतेयस्स ।।१६२६।। तो तेण अमरतेओ सरहो संचुन्निओ तहा तत्थ । जह राय-रहवराणं धूली वि न तेण सच्चविया ।।१६२७।। एत्यंतरम्मि गयणे सुरेहिं असुरेहिं खेयरेहिं च । दिन्नो साहुक्कारो सविम्हयं सूरसेणस्स ।।१६२८।। तो ओत्थरिओ सहसा उब्भडभिउडीए भीमभालयलो । नामेण डमरसीहो पच्छिमवसुहाहिवो राया ।।१६२९।। जो निव्वडियपरक्कम-भुयबलनिद्दलियगरुयपडिवक्खो । नामेण जस्स दूरं नासंति रणंगणे रिउणो ।।१६३०।। Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५० सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ नीसेसाउहकुसलो जुद्ध-निजुद्धेसु तत्तविन्नाया । रणदक्खो करणविऊ च्छलघाई वंचियपहारो ॥१६३१।। सो सावहाणलोयण-सुर-किन्नर-खेयरेहिं सच्चविओ । संतज्जंतो सूरं उवडिओ भणिउमाढत्तो ।।१६३२।। सूरोत्ति नाममेत्तेण उत्तुणो कीस भमसि रणमज्झे ? । मा मारावसु अप्पं एयाण सुराण वयणेण ।।१६३३।। एयाण कोऊ(उ)हल्लं तुज्झ पुणो दोन्नि संसए टुंति । रज्जं च नियसरीरं मा चयसु इमाई निक(क्क?)ज्जं ।।१६३४।। जे तुमए किर निहया समरे हरिसेण-अमररायाणो । सो वि मए तुह खमिओ अवराहो कयपसाएण ।।१६३५।। ता रक्ख पयत्तेणं अप्पाणं जीवियं च रज्जं च । अप्पसुयं दुज्जायं दुट्ठवियारं म्ह नरनाह ! ।।१६३६।। सो तुज्झ तुह कुलस्स य देसस्स पुरस्स विहवरज्जस्स । पुत्तमिसेणं जाओ जं(ज)मोव्व सव्वंकसो राय ! ॥१६३७॥ एत्तरम्मि सूरो अप्पसुपुत्तं ति वयणसवणेण । दट्ठोठ्ठभिउडीभीमो पडिवक्खं भणिउमाढत्तो ||१६३८।। रे डमरसीह ! तुह नत्थि कोइ दोसो इमं भणंतस्स । दोसो इमस्स अस्सच्च-भासिणो तुज्झ वयणस्स ।।१६३९।। जं चेव दोसदुटुं निग्गहणिज्जं तमेव रायाण । रक्खेज्ज पयत्तेणं निहणिस्सं तुह मुहं एयं ।।१६४०।। इय भणिऊ णं सूरो विज्जक्खित्तेण उड्डिओ दूरं । तं वामपयपहारेण हणइ सत्तुं मुहपएसे ॥१६४१।। Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५१ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ हंतूण जाव तं जाइ नियरहं ताव डमरसीहेण । धरिओ पायंमि पसारिउद्धभुयडंडजुयलेण ॥१६४२।। धरिओ धरिओ त्ति नहम्मि तक्खणच्चेय कलयलो जाओ । दुज्जणराएहिं पुणो सहत्थतालेहिं व उवहसियं ।।१६४३।। एत्थंतरम्मि सूरो अमूढलक्खो तमियरपाएण । हंतूणं वत्थयले, पाडइ उव्वमिररुहिरोहं ॥१६४४।। उम्मुक्कवामपाओ वच्चइ नियरहं पुणो सूरो । जा कुणइ करे चावं ता सहसा उट्ठिओ डमरो ।।१६४५।। उत्तरइ रोसरज्जंतनयणजुयलो प्फुरंतअहरोहो । उक्खिवइ रहं सहयं ससूरसेणं ससूयं च ।।१६४६।। उच्चल्लिऊण गयणे भामइ जा ताव सूरसेणो वि । दाऊ ण महाफालं ससारही जाइ तस्स रहं ।।१६४७।। ओसारिय चिरसारहिट्ठाणे अह सूरसारही ट्ठाइ । उद्धं भमाडिऊ णं अप्फालइ रहवरं डमरो ॥१६४८।। जा जाइ सकीयरहं ता नियइ ससारहिं रहे सूरं । चिंतइ मए न एसो निवाडिओ किं सह रहेण ? ।।१६४९।। मुट्ठीपहयं गयणं अलियं तुसखंडणं मए विहियं । कट्ठाई चिय संचुन्नियाई न उणो महासत्तू ।।१६५०।। अहवा किमेत्थ नटुं ? इय भमिउं रोसतंबिरनिडालो । निहणंतस्स वि सूरस्स चडइ सरहं महासुहडो ॥१६५१।। उद्दालिऊ ण सिरिसूरसेण-हत्थाओ सव्वसत्थाई । बलिचंडाए(?) नरिंदं धरइ भुयादंडजुयलेसु ॥१६५२।। Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५२ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ धरिओ च्चिय उभयभुएसु सूरसेणो सकीयचरणेण । तं वच्छयले ताडइ पुणो वि मुहनिंतरुहिरोहं ॥१६५३।। तो सूरसेणदिढपाय-पह(हा)रवियणापरव्वसो सहसा । मुच्छानिमीलियच्छो रहोवरिं पडइ लुलियंगो ||१६५४।। तो सूरो निक्कारिम-तप्पोरुसरंजिओ सयं कुणइ । वत्थंचलेण पवणं सिसिरजलेणं च सिंचइ य ।।१६५५।। भणइ समासत्थं तं इहेव सरहे ट्ठिओ पुणो जुझं । अहयं पुण अन्नरहं पज्जुत्तं आरुहिस्सामि ।।१६५६।। तो गरुयत्तणपिसुणं ववहरणं पेच्छिऊण सूरस्स । पुण भणइ डमरसीहो अहिमाणधणो महासुहडो ।।१६५७।। हे सूरसेण ! दिन्ना कन्नच्चिय घेप्पए न जयलच्छी । तुह सेवियमग्गेणं हढेण सरहं गमिस्सामि ॥१६५८।। ता होज्ज सावहाणो मा भणिहसि जं न साहियं मज्झ । इय भणिऊ णं सूरो पक्खित्तो तेण गयणम्मि ।।१६५९।। तो लहु संधाणविसंधेएहिं अटुंदु-सरसमूहेहिं । दो खंडिस्सइ सूरं निवडतं जाव किर डमरो ।।१६६०।। ता सूरेण वि गयणे दूरं खेत्तेण एकखयराओ । हढहरियफरकिबाणेण आहओ डमरसीहो वि ।।१६६१।। पडियम्मि डमरसीहे गरुयाइं वि ताइं सत्तुसेन्नाई । घणवंद्राई सुपयंडपवणफट्टाई नट्ठाई ।।१६६२।। एत्थंतरम्मि सहसा संधीरंतो असेससेन्नाई । अइगरुयबलपरक्कम-माहप्पसमुत्तुणो सुहडो ॥१६६३।। - Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ नीसेसकुलमहीहर-परिवाडिविराइओभयपएसो । मेरुव्व पलयकाले संचलिओ भुयणभयहेऊ ।।१६६४।। अइगरुयनियपरक्कम-तिणलहुपरिकलियसयलजयसुहडो । भुयणेक्कमहावीरो अप्पडिहयपयडियपय(या)वो ॥१६६५।। निस्सीमउत्तरावहनिक्किंतियबहुतुरुकूबलनिवहो । नरसीहो नामेणं समागओ समरभूमीए ।।१६६६।। सो पुव्व-दक्खिणावर-निहयनरिंदाण सव्वसेन्नेहिं । नियसामिमारणुप्पन्नगरुयरोसेहिं परियरिओ ||१६६७।। विरइयचक्कव्वूहो ‘विसमो सतु' त्ति च्छड्डियववत्थो । समकालमोत्थरंतो अभि(भि)ट्टो सूरसेणस्स ।।१६६८।। तं एतं दतॄणं रणरसपसरंतपुलयपरिकलिओ । पडिपेल्लिऊ ण सरहं नरसीहं जा पडिच्छेइ ॥१६६९।। ता तेहिं पुव्वसंकेयसेन्नदिन्नावयासमग्गेण । गंतूण तुंबमज्झे हक्कइ नरसीहरायाणं ||१६७०।। जह जह अंतो पविसइ तह तह सेन्नेहिं निबिडबंधेहिं । वेढिज्जइ नरनाहो मेहेहिं व दिणयरो गयणे ।।१६७१।। तो समकालं नीसेस-दिसिवहुल्लसियकलयलरउदं । लंघियखत्तायारं हम्मइ सूरो बलोहेहिं ।।१६७२।। सरब्भ-सर-सत्ति-सच्च(?)ल-तिसूल-पासासि-पट्टिस-घणेहिं । चावल्ल-सेल्ल-भल्लय-भल्लीहिं निरुद्धदिसियक्कं ।।१६७३ ।। खग्गु-ग्गकुंगि-मोग्गर-मसुंढि-मग्गण-फुलिंगपज्ज(ज)लंतं । घणकुंत-चक्क-कत्तरि-कणय-सयावत्तदुब्भारं ||१६७४।। Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ इय एवमाइबहुविह-आउहनिवहेहिं सुहडमुक्केहिं । सो सूरसेणराया समकालं हंतुमारद्धो ।।१६७५।। एत्थंतरम्मि गयणे असमंजससमरजायखेएहिं । मुक्को हाहाकारो विज्जाहर-सुरसमूहेहिं ।।१६७६।। समयं पहरंताण वि ताण असेसाण परबलभडाण । अखुहियसत्तो सूरो नरसीहसमीवमणुपत्तो ||१६७७।। जह जह निवडइ देहे परबलसुहडाण आउहसमूहं(हो) । तह तह समहियसंजायरोसतंबिरच्छो पुरो धाइ ।।१६७८।। अणवस्यधणुविणिग्गय-बाणासणिनिहयसत्तुसंघट्टो । अरिवाहिणिं गसंतो जमो व्व सूरो समोत्थरइ ।।१९७९ ।। तो नरसीहो जंपइ रे रे ! मह सेन्निया ! समोत्थरह । मारह सूरं तुरियं जाव न मह संमुहं एइ ।।१६८०।। एत्थंतरे निरंतर-संघट(ट्ट)घडंतगयघडानिबिडं ।। सरहो ससारहि च्चिय आढत्तो चमढिउं सूरो ।।१६८१।। निहयम्मि सारहिम्मि य खंडाखंडीकयम्मि य रहम्मि । विरहो वि सूरसेणो सीहोव्व करीसु विप्फुरइ ।।१६८२ ।। एत्थंतरम्मि गयणे जाओ देवाण एरिसो मंतो । अवहरिऊ ण नरिंदं रक्खेमो वैरिमज्झाओ ||१६८३।। इय चिंतिऊ ण सव्वेहिं तत्थ देवेहिं खेयरेहिं च । जुझंतो अवहरिओ सूरनरिंदो हढेण तहिं ॥१६८४।। तो वीररसपरव्वस-चित्तो ताणेव देव-खयराण । पहरंतो अइदक्खो सव्वेहिं वि भणिउमाढत्तो ॥१६८५॥ Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ हे सूरसेण ! मा पहर अम्ह गुणजायपक्खवायाण । असमंजससमराओ अवहरिओ राय ! अम्हेहिं ।।१६८६।। तो पच्चागयचेयन्नजायसत्थो पलोयए सूरो । अप्पाणं गयणयले देवा-सुर-खयरपरियरियं ।।१६८७।। सूरेण सुरा भणिया अवहरिओ किंनिमित्तमहमेत्थ ? । जीवंतो कह पेच्छामि नियसुयं वैरिहम्मंतं ? ॥१६८८।। मज्झ मयस्स उ जं होइ किंपि तं होउ नत्थि मणखेओ । ता अज्जवि में मुंचह निहणिस्सं वैरिसंघटुं ।।१६८९।। देवाइएहिं भणियं सच्चमिणं भणइ सूरनरनाहो । नियपुत्तरक्खणटुं एयस्स इमो रणारंभो ।।१६९०।। एयाण वि रायाणं पुत्तवहत्थं च एस पारंभो । ता सव्वहा वि रक्खह सूरसुयं सूरभज्जं च ।।१६७१।। एत्थंतरम्मि सहसा सिंगारवई सवीरसेणा य । विज्जाहरेहिं नीया सूरनरिंदस्स पासम्मि ॥१६९२।। तो सूरसेणसूडियइयरदिसारायजायनिकं(क्कं)टें । नरसीहं चिय मन्नंति साभिभावेण सेन्नाई ।।१६९३।। तो सूरसेणसेन्नं निहयं नाऊण संगरे सूरं । पुत्तं पि अपेच्छंत अनायगं दीणमणसं च ॥१६९४।। किंकायव्वविमूढं चंपं विसिऊण परबलअसझं । तह कयवेढं अच्छइ नरसीहनरिंदसेन्नेण ।।१६९५।। कालक्कमेण अंतो खीणे धण-धन्न-जवससंभारे । संबोहिऊण पविसइ पहाणलोयं पि नरसीहो ।।१६९६।। Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ सो च्चिय असेसवसुहायलम्मि चंपाए रायहाणीए । नरनाहो संजाओ नरसीहो सूरविवरोक्खे ॥१६९७।। एवं च ताव एवं पत्तो सूरो वि तेहिं देवेहिं । सकलत्तो य सपुत्तो अवहरिओ गयणमज्झम्मि ॥१६९८।। चिंतंति कत्थ एयं पुव्वट्टिईसमहियप्पहावम्मि । रज्जम्मि निरूवेमो निक्कारिमविक्कमगुणटुं ? ||१६९९।। तो मच्चलोयवइयर-कहणनिउत्तेहिं पणिहिदेवेहिं । सोहम्मतियसणाहस्स साहिओ सूरवुत्तंतो ।।१७००। तेणावि ओहिणा जाणिऊण इंदेण एवमाइ8 । धाईसंडे दीवे भारहवासे अउज्झाए ||१७०१।। नामेण विमलचंदो उप्पन्नो तत्थ चक्कवट्टित्ति । सो य अपुत्तो संपइ कालगओ देवजोएण ।।१७०२।। तस्स रज्जम्मि एयं नरनाहं सूरसेणमउलबलं । ट्ठावेह पयत्तेणं नेऊणं तत्थ दीवम्मि ॥१७०३।। इय तं सक्काएसं लभ्रूणं सुरवरा पहिट्ठमणा । जा नेति धाइसंडे सूरं भज्जा-सुयसमेयं ।।१७०४।। ता गयणे देवीए परियत्तंतीए तीए थणवढें । तो कहवि देवजोगा निच्छूढो निवडिओ पुत्तो ||१७०५।। 'पडिओ पडिओ'त्ति ‘धस'त्ति दो वि मुच्छानिम्मी(मी)लियच्छीणि । देवाण धरंताण वि पडियाइं महीयले सहसा ||१७०६॥ सिसिरोवयारसंपत्तचेयणाइं च ताई जायाई । आसासिऊण देवा गवेसिउं तं समालग्गा ॥१७०७॥ Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५७ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ पडिपव्वयं पडिगुहं पडिनिज्झरणं च पइगिरिणइं च ।। पडिरुक्खं पडिवणमवि अन्निसिओ सो न दिट्ठो य ।।१७०८।। तो नरवइणा भणियं किमहं रज्जेण साहइस्सामि ? । एत्थेव रन्नमज्झे पाणच्चायं करिस्सामि ।।१७०९॥ तो सरलद्दुम-सुरदारु-अगरुचंदणसुयंधकठे ढे)हिं । विरयइ चियं नरिंदो पुण ण्हायइ सेलसरियाए ।।१७१०।। जा सकलत्तो ण्हाऊण तत्थ पुण प(जा?)इ चीहं(इ)समीवम्मि । ता गयणे जंतेणं चारणमुणिणा इमं भणियं ।।१७११।। “जीवंतस्स नरेसर ! होही तुह संगमो नियसुएण । मा अप्पघायगत्तण-पावेणं लिंप अप्पाणं ।।१७१२॥ जं परिणामे विरसं जं च न पच्चक्खदिट्ठफलसिद्धिं । जं आगमे विरुद्धं सेवंति न तं बुहा कज्जं" ।।१७१३।। इय चारणमुणिवयणं सोउं सिरिसूरसेणणरणाहो । उज्जीविओव्व सहसा पणट्ठदुक्खोव्व संजाओ ।।१७१४।। विरमइ मरणाओ तओ नीओ देवेहिं धाइसंडम्मि । ओज्झाए पुरवरीए पयट्ठिओ चक्कवट्टिपए ।।१७१५।। पालइ जहासुहेणं पयाओ सेवेइ रज्जकज्जाइं । सुयविप्पओयदुहिओ विसयसुयं(हं) नेय अहिलसइ ।।१७१६।। रज्जं रज्जसिरिं चिय माहप्पं विक्कमं पयावं च । सूरो तणं व मन्नइ सुयविरहे जीवियव्वं च ।।१७१७।। ज्झूरइ अहिमाणधणो हियए ज्झिज्जइ य नियसरीरेण । बाहिरअलक्खभावो चिंतइ नाणाविहवियप्पे ।।१७१८।। Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५८ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ अइतुच्छं चिय रज्जं इंदत्तं पि हु न देइ मह सोक्खं । जं वैरिपराहवदुत्थियस्स सुयविरहदुहियस्स ।।१७१९ ।। दारिद्दं चिय सोहइ अहिमाणधणाण नवर परदेसे । रज्जं तु अदीसंतं सत्तु - मित्तेहिं तावेइ ॥१७२०॥ दूरीकयनियसेसस्स मज्झ सुयविरहियस्स दीणस्स । सत्तुपराभवियस्स य रज्जमिणं गोत्तिबंधो व्व ।। १७२१ ।। निहओ नरसीहेणं सूरो त्ति जयम्मि जो हुओ अजसो । तं मज्झ वीरसेणो पुत्तो च्चिय जइ परिप्फुरइ ।। १७२२ ।। दिट्ठा एगभवम्मि दोन्नि भवा नवर सूरसेणेण । राया जंबूद्दीवे पुण जाओ धाइसंडम्मि ।।१७२३।। एयाइं ताइं विसरिसहयविहिणो विलसियाइं विरसाई । तीरंति जाई मणे वि चिंतिउं निउणबुद्धीहिं ।।१७२४॥ जं न कयाइ वि सुव्वइ साहिप्पंतं व जणइ जं अलियं । हेलाए विही तं चिय अकज्जनिरओ कुणइ कज्जं ॥ १७२५ ।। विहिपरवसाण पुरिसाण एत्थ सव्वंपि होइ विवरीयं । पच्चक्खं मह जायं अप्पाणुहवेण नीसेसं ।।१७२६॥ चिंतिज्जंतो वि मणे उत्तासं जणइ जो नरिंदाण । सो वि मह विकमो इह रणम्मि विहिणा कओ विहलो ।।१७२७ | एगागी जेण रणे तणं व मन्नामि सत्तुसंघायं । तं पि मह साहसं विहिवसेण हासं जणे जायं ॥ १७२८।। पयडो जो वैरिवहेण सव्वदेवाण खेयराणं च । सो ववसाओ विहिणा विसायभावेण मह जणिओ ।।१७२९॥ Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५९ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ सो अवटुंभो मह अग्गिणेव्व कट्ठाई बहुरिउबलाई । आसंघियाई जेणं सो विहुओ निप्फुरो एत्थ ।।१७३०॥ इय जेहिं चिय पुरिसो विक्कममाईहिं माणमुद्धरइ । ताणि चिय माणभंसकारणं मह पवन्नाई ।।१७३१।। इय एवमाइ बहुविह-वियप्पसंकप्पदुत्थिओ राया । अच्छइ परदेसागम-सुयविरहदुहेहिं संतत्तो ।।१७३२।। देवी वि पुत्तनिवडणसमहियसंजायसोयसंहारा । कुररिव्व करुणसद्दा रोयंती चिट्ठइ दुहेण ।।१७३३।। दोहिं पि ताण चारण-मुणिवयणालंबणेकजीयाण । सिरिवीरसेणदसण-पच्चासाए दिणा जंति ।।१७३४।। एत्तो य वीरसेणो परिवत्तीए तीए थणवटुं । सिंगारवईहत्थाओ निवडिओ देवजोएण ।।१७३५।। भवियव्वयानिओएण नियइ दट्ट(ढ)रज्जकरिसिओ वीरो । वणदेवयाहिं गहिओ अद्धवहे चेव निवडतो ||१७३६।। गहिऊण विडयगिरियडविउरुब्वियतुंगभवणसिहरम्मि । मेल्लंति पयत्तेणं कोमलतूलीमयत्थुरणे ।।१७३७।। तो अण(णि)मिसनयणाओ विम्हयरसजायगरुयहरिसाओ । जोयंति वीरसेणं सव्वंगावयवरमणीयं ।।१७३८।। स(सु)कुमारपाणिपायं पसत्थबहुलक्खणंकियसरीरं । अणुवमरूवविणिज्जिय-ससुरासुरमणुयलोयं च ||१७३९।। दठूण तं तहाविह-सुपसत्थपवित्तलक्खणसरीरं । जंपंति देवयाओ परोप्परं जायहरिसाओ ॥१७४०।। Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६० सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ सहि ! पेच्छ एत्थ अज्ज वि जयम्मि दीसंति पुरिसरयणाई | दिट्ठेहिं जेहिं दूरं देवाण वि णासए गव्वो ।।१७४१ ।। जेण हरी गुरुगव्वो अप्पडिहयवीरिएण वज्जेण । तं चिय इमस्स दीसइ चरणतलेसुं परिलुलंतं ।।१७४२ ।। कुलमहिहरसिरतिलओ पयसंट्ठियमीण-कमल-संखउलो । पउमो दहोव्व एसो सोहइ संपन्न सिरितिलओ || १७४३ || अंगाई चिय साहंति जस्स सुपसत्थलक्खणधराई । उत्तमकुलसंभूइं तिसमुद्दमही वईतं ( इत्तं ) च ॥ १७४४ ।। ता एस कोइ अइगरुय-वंससंभूयभूमिपालस्स । होही पुत्तो रिउणा अवहरिओ, तेण इह खित्तो ।।१७४५ ।। तो ताहिं वि नाणेणं सम्मं विन्नायसव्वभावाहिं । अइगरुयपयत्तेणं आढत्तो पालिउं वीरो || १७४६ || मणचिंतियसंपज्जंतसुलहनीसेसवत्थुजाईण । देवीणं तं न भुयणे जं किर संपज्जइ न ताण || १७४७॥ अंतोगरुयपवडुंत-पुन्नवित्थारियंगसोहव्व । अणवरयं वढतो कुमारभावं च सो पत्तो || १७४८ || अह तत्थ ताहिं सुयनिव्विसेसबुद्धीहिं गरुयरिद्धी । चूलोवणयणमाईणि सव्वकज्जाई विहियाई || १७४९ ॥ तो अवहिणा वियाणिय-विन्नाणागमकलारहस्साहिं । देवीहिं कओ कुमारो विन्नाण- कलाकुसलबुद्धी ||१७५० || गयणे किंकररहियं तेण चलंतेण चलइ सियच्छत्तं । उभयंसेसु सयं चिय पडंति सियचामरुग्घाया ।।१७५१ ।। टि. १. चूला - शिखा, उपनयनं इत्यादीनि ॥ Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ परियडइ गिरियडेसुं गिरिनइपुलिणेसु काणणवणेसु । वणसरवरेसु वीरो उज्जाण-वणेसु रम्मेसु ।।१७५२।। अन्नायकुलववत्थो अमुणियपिउ-माइ-सयणसंबंधो । देवकुमारो व्व मणोहरागिई पयइदुद्धरिसो ।।१७५३॥ अह अन्नया भवं(म)तो संपत्तो गिरनईए पुलिणम्मि । पेच्छइ तावसलोयं देवच्चण-ण्हाण-जवनिरयं ।।१७५४।। सो तेहिं तावसेहिं सविम्हउब्भंतनयणवत्तेहिं । दिट्ठो अदिट्ठपुव्वो परोप्परं कयवियप्पेहिं ॥१७५५।। किं एस कोइ विज्जाहरिंदपुत्तो व्व भमइ भयरहिओ । नमि-विनमिवंसजाओ पंचसिहासोहियसिरग्गो ? ॥१७५६।। अहवा वि भूमिगोयर-नरिंदपुत्तो व्व एस संभविही । कारणवसेण केणवि समागओ एत्थ रन्नम्मि ॥१७५७।। पेच्छइ अदिट्ठपुव्वं माहप्पमिमस्स रायपुत्तस्स । जं च्छत्तमणालंबं पडंति चमरा य निरवेक्खा ॥१७५८॥ एसो य परियणो से अमाणुसायारसरिसववहरणो । ता किं देवकुमारो कहनहा देवपरिवारो ? ॥१७५९।। इय एवमाइबहुविह-वियप्प-संकप्पसंकुलमईण । तावसमुणीण पासं समागओ वीरसेणो वि ।।१७६०॥ तो परियणेण भणियं देव ! इमे तावसा, कुण पणामं । तो सव्वतावसाणं जहक्कम पणमइ कुमारो ।।१७६१।। तो तावसेहिं जुगवं सायरवयणहिं उन्नयकरहिं । अहिणंदिओ कुमारो अवितहआसीसदाणेण ॥१७६२।। 12 : Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६२ य ? | सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ पुट्ठो कुसलोदतं कुमरो वि य ताण कहइ नियकुसलं । पुच्छइ कत्थ पएसे भयवं ! तुम्हासमो एत्थ ? ।।१७६३ । तो तावसेहिं कहिओ एत्तो जजमाण ! नाइदूरम्मि । अम्हाण आसमपओ तत्थच्छइ कुलवई अम्ह || १७६४|| तो तावसजणपयडिय - मग्गेणं जाइ आसमपयम्मि । पणमइ गंतूण तओ कुलवइणो परमविणएण || १७६५ ।। कुलवइणा वि ससंभम सप्पणय- सगौरवेहिं वयणेहिं । आनंदिओ कुमारी जहत्थआसीसदाणेण ॥१७६६ ।। दिन्नासणोवविट्ठो परिपुट्ठो कुसलवट्टमाणं वि । सो भइ तुह पसाएण कुसलमेवम्ह सयकालं ।।१७६७।। असरिससरीर-सोहग्ग-रूव-लावन्नलडहसव्वंगो । दिट्ठो तावस- तावसि जणेहिं संजणियअच्छरिओ ।।१७६८। तं अच्चब्भुयभुवणेक्क-भूसणब्भूयभव्वयाकलियं । दठूण पुलइयंगो अह चिंतइ कुलवई एवं ।।१७६९ ।। दंसणमेत्तेणं मह इमस्स विप्फुरइ दाहिणं चक्खुं । रोमंचिज्जइ अंगं नीणइ अच्छीसु बाहोहो ।।१७७० ।। ता किं कारणमिह संभवेज्ज ? न य पुव्वपरिचओ ताव । याणि य पायं अवितहाणि मह तणुनिमित्ताणि ॥१७७१ ॥ तो कुलवइणा भणियं पुत्तोव्व पिओ सिणिद्धबंधुव्व । निक्कारिमो व्व मित्तो आणंदसि कुमर ! दिट्ठो वि ।।१७७२ ।। ता कहसु को तुमं ? कत्थ वससि ? के तुज्झ जणणि-जणया Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ १६३ किं च कुलं ? किं नामं ? असेसनियवइयरं मज्झ || १७७३ || तो भणइ वीरसेणो नाहं परमत्थओ वियाणामि । मह जणणीओ असेसं भयवं ! जाणंति परमत्थं ॥१७७४ ।। तो भइ कुलवई पुण तुह काओ कुमर ! एत्थ जणणीओ ? । कुमरपरिग्गहमज्झे (ज्झा ? ) ता भणियं एगदेवेण ।।१७७५ ।। भयवं ! किं तुह देवाण वइयरेणं वियाणिएणावि ? । न कयाइ वि देवाणं अंतोसुद्धी करेयव्वा ||१७७६ || तो कुमरेण भणियं भयवं ! तुह मज्झदंसणुब्भूओ । जो पसरइ आणंदो तत्थ इमं कारणं होही ।।१७७७ ।। जम्मंतरसंगयगरुयपेम्मसंभारभावियमईणं । दिट्ठमि भवंतरसज्ज ( ज ? ) णम्मि आणंदए हिययं ||१७७८ ॥ अहवा जइणो तुभे मेत्ती सव्वेसु तुम्ह सत्तेसु । नियपयईए वियंभइ सव्वत्थ वि सकरुणं चित्तं ।।१७७९ ।। एवं साहारणमाणसाण समसत्तु - मित्तचित्ताण । मह विसए कह जायं साहसु करुणापरं हिययं ? ।।१७८० ।। ता कहह नियसरूवं जइ उचियं होइ कहणजग्गा वा । अम्हे, ता काऊणं पसायमइकोउयपराण || १७८१ ।। तो अब्भंतरपसरंतमन्नुभरभरियगलसिराजालो । गुरुदुक्खं पयडंतो सगग्गयं कुलवई भणइ ।।१७८२ ।। किं पुत्त ! तुह कहिज्जइ लज्जिज्जइ जं सयं कहतेहिं । निम्मज्जायस कज्जावहं च चरियं मह निसंसं || १७८३ || जइ विहु लज्जावणयं जइ वि हु जणनिंदणीयमच्चत्थं । Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६४ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ तुमए अलंघवयणेण पुच्छियं तहवि साहिस्सं ।।१७८४।। . इह पुत्त ! चंपनयरी सूरसेणो त्ति आसि नरनाहो । तस्स घरे हं मंती बिहप्फई नाम किर आसि ॥१७८५।। सो मह वयणं पिउणो व्व सासणं नो कयाइ लंघेइ । सो अपुत्तो पुत्तत्थं विन्नत्तो किर मए बहुयं ।।१७८६।। तो तेण तं तहच्चिय मह वयणं मन्निऊण तियसिंदो । उवरुद्धो तुट्टेणं तेण वि पुत्तो वि से दिन्नो ।।१७८७।। जाओ कालकमेणं तइयदिणे तम्मि जायमेत्तम्मि । नीसेसदिसाराएहिं वेढिया चंपवरनयरी ।।१७८८।। सिरिवीरसेणनामं काउं पुत्तस्स कुणइ संगामं । विजिए वि हु संगामे अक्खत्तेणं हओ सूरो ।।१७८९।। तो सूरेण सयं चिय निक्वंटीकयधरायलुच्छंगे । नरसीहो संजाओ राया चंपाए नयरीए ॥१७९०॥ निहयम्मि सूरसेणे पुत्तं परिगेण्हिमोत्ति बुद्धीए । जा जोएमो ता सो वि नत्थि जणणी य से नत्थि ।।१७९१।। एत्थंतरम्मि अम्हे कुमार ! अइदीणमाणसा सव्वे । किंकायव्वविमूढा धरिया नरसीहराएण ।।१७९२।। धरिऊण केइ संवग्गिया पुणो केइ मारिया मौला । । अन्ने उण केइ पुणो निच्छूढा देसविसयाओ ।।१७९३।। तो तेण अहं पावो धरिओ सयलत्त-पुत्तपरिवारो । अइसयबुद्धित्ति वियाणिऊण वज्झो समाइट्ठो ॥१७९४।। तो उत्तुंगमहागिरि-सिहरग्गे विसमसंकडतडम्मि । Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ पुरिसेहिं लोढिऊणं पक्खित्तो च्छिन्नटंकम्मि ।।१७९५।। तो कम्म-धम्मजोया आउयसेसत्तणेण लग्गोहं । निवडतो गिरितडतरु-साहग्गे देवजोएण ॥१७९६।। तो सणियं उत्तरिओ भयभीओ तत्थ गिरिनिगुंजम्मि । गमिऊण सव्वदिवसं विणिग्गओ निसि पओसम्मि ॥१७९७।। तो पुत्तसिणेहेणं पुणो वि चंपं समागओ तत्थ । दिट्ठो कहवि न पुत्तो बहुरक्खणरक्खिओ जम्हा ।।१७९८।। तो तम्मि चेव एगम्मि जुन्नदेवउलउवरिमतलम्मि । संगहियसंबलो तत्थ संठिओ गममि सव्वदिणं ।।१७९९।। रयणीए पुणो तम्हा उत्तरिऊणं भमामि चंपाए । काऊण पुत्तसुद्धिं देवउलं जामि पच्चूसे ||१८००।। एवमहं अणुदियहं कलत्त-पुत्ताण मोयणनिमित्तं । चिंतेमि बहुउपाए न . य मोउं ताई सक्केमि ।।१८०१॥ एवं च अन्नदियहे आरूढो देउलम्मि जा तत्थ । ता पहरमेत्तदियसे समागओ तलवरो रोद्दो ।।१८०२।। सो मत्तवारणोवरि उवविठ्ठो जाव अच्छइ खणद्धं । ता तस्स गया दिट्ठी देउलथंभंतरालम्मि ॥१८०३।। दिट्ठा य तेण घयगुल-मीसियबहुमडंयाण खंडाइं । उव्वहमाणा ओल्ली उत्तरंती पिवीलीण ||१८०४।। दठूण तेण हियए विमंसियं कत्थ मंडया उवरि । जेणेयाओ एवं उवरिमभायाओ इह एंति ॥१८०५।। ता नूण किंपि होही कारणमिह ता निएमि उवरितलं । Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६६ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ इय चिंतिऊण तुरियं आइट्ठा तेण नियपुरिसा ।।१८०६।। रे रे ! तुरियं तुरियं इहइं आरुहह देउलस्सुवरि । किं कोवि एत्थ अच्छइ नो वा ? मह कहह नाऊण ।।१८०७।। तो तव्वयणाणंतर-मारूढा तत्थ दारुणा पुरिसा । दिट्ठो हं तेहिं तओ बद्धो कयपच्छिमभुएहिं ।।१८०८।। 'लद्धो लद्धोत्ति तओ तेहिं कओ कलयलो मणुस्सेहिं । खित्तो 'दड'त्ति धरणीए दूरभायाओ पावेहिं ।।१८०९।। नीओ नरिंदपासं तेण वि कुविएण पभणियं एवं । कह पव्वयाओ खित्तो वि एस पुण जीविओ पावो ? ।।१८१०।। तो नरवइणा भणियं तुरियं रे दंडवासिय ! समप्प । . चंडालमणुस्साण निग्घिणचित्ताण पयईए ॥१८११।। तो तेहिं रायवयणं तहेव संपाडियं तलारेहिं । ताण अहं दुट्ठाणं समप्पिओ चोरपुरिसोव्व ॥१८१२।। भणियं च तेहिं “एसो मंती सिरिसूरसेणरायस्स । एयम्मि जीवमाणे न मुओ सूरोत्ति जाणेह ।।१८१३।। ता सव्वहा पयत्तेण एस जह कोवि न मुणइ जणेसु । तह मारह जह एसो न रक्खणीओ महासत्तू" ||१८१४।। ते एवं भणिऊणं वलिऊण गया पुरीए इयरेहिं । चंडालेहिं य अहयं नीओ किर वज्झठाणम्मि ।।१८१५।। तो तेहि कड्डिऊणं. निसियासिं पभणिओ अहं “मंति ! । सुमरसु अभिट्ठदेवं कुद्धो तुह रायनरसीहो" ||१८१६।। एत्थंतरम्मि एगेण डुंबपुरिसेण जायकरुणेण । Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ १६७ ओलक्खिऊण भणियं “रे ! अप्पह अम्ह नरमेयं ।।१८१७॥ देवीए मए पुट्विं पुरिस-बली सूइओ तओ एयं । चामुंडापयमूले नेऊणं मारइस्सामि" ।।१८१८।। पडिवन्नं तेहिं पि य गहिओ हं तेण डुंबपुरिसेण । इयरे य पडिनियत्ता नीओ हं तेण चंडीए ।।१८१९।। काऊण मह पणामं मुक्को हं तेण पभणियं एयं । “जह अम्ह कुलच्छेओ न होइ तह तं करेज्जासु" ।।१८२०।। तो हं तेण विमुक्को नीहरिओ धाविओ निसं सव्वं । चइऊण वसिमदेसं समागओ एत्थ रन्नम्मि ।।१८२१।। पत्तो य तावसासम-मेयं दिवो य कुलवई एत्थ । तेणावि पभणिओ हं “किं सोयं वहसि वरमंति ! ? ।।१८२२।। दुक्खाइं अधम्माओ हवंति सोक्खाइं तह य धम्माओ । जइ सच्चं दुहभीओ सुहमिच्छसि कुणसु ता धम्मं" ।।१८२३।। तव्वयणं सोऊणं मए वि परिभावियं सचित्तम्मि । जं भणियं कुलवइणा तं सच्चं नत्थि संदेहो ॥१८२४।। नियसाम्वि(मि)मरणदुक्खं पुत्त-कलत्ताइविरहदुक्खं च । एयाई चिरुवज्जिय-अधम्मओ मज्झ जायाइं ॥१८२५।। एमाइ भाविऊणं निम्विन्नो तस्स चेव कुलवइणो । पासम्मि मए गहिया तावसदिक्खा विरत्तेण ।।१८२६।। विनायतावसोचियमग्गो जोगोत्ति तेण कुलवइणा । दुविओ म्हि कुलवइत्ते सो वि य पंचत्तमावन्नो ॥१८२७।। ता तुज्झ मए एयं सरूवमावेइयं नियं पुत्त! ।" Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६८ . सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ इय एवं भणिऊणं कुलवइणा मोणमायरियं ।।१८२८।। एत्थंतरम्मि सहसा जय जय सद्दुल्लसंतपडिरावो । सुरकिंकरकरपहओ उच्छलिओ विविहतूररवो ।।१८२९।। वरवंस-वल्लईमीस-मास(?नास?)लुल्ललियगीयसद्देण । आणंदिओ कुमारो तावसलोओ य नीसेसो ॥१८३०।। तो कुमरसमीवागयसुरेहिं भणियं कयप्पणामेहिं । “तुम्हाहवणनिमित्तं कुमार ! देवीहिं पट्टविया” ||१८३१॥ तो कुमरेणं भणियं “अंबाओ कत्थ ?” जंपए देवो । “उप्पन्नकेवलस्स य मुणिंदपासम्मि चिट्ठति ।।१८३२॥ अन्ने वि तत्थ देवा समागया कप्पवासिमाईया । सव्वे वि तस्स मुणिणो केवलिमहिमं अणुटुंति" ।।१८३३।। तो भणियं कुमरेणं “भयवं ! तुब्भे वि एह वच्चामो । पेच्छामो तं साहुं केवलवरनाणसंपन्नं” ॥१८३४।। तो कुलवइणा भणियं “करेम्ह एवं” ति उट्ठिया सव्वे । पत्ता केवलिपासं नमंति परमाए भत्तीए ॥१८३५।। वणदेवयाहिं भणियं “पुत्त ! इमो परमदेवयारूवो । सव्वन्नू सव्वगुरू सव्वढिओ सव्वउवयारी ॥१८३६।। ता पणमसु पुण एयं पुरओ गंतूण परमभत्तीए । जेण तुह अज्जदिवसाओ चेव पुन्नुब्भवो होइ" ॥१८३७।। “एवं करेमि” भणिऊण उढिओ जाइ साहुपासम्मि । वसुहालुलंतचूलो पणमइ रोमंचकंचुइओ ।।१८३८।। मुणिणा वि सायरेणं सगोरवं उन्नयग्गहत्थेणं । Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६९ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ “उवविससु"त्ति पभणिओ विसुद्धवसुहाए उवविट्ठो ।।१८३९।। तो तत्थ मुणिवरेणं केवलनाणोवलद्धतत्तेण । कहिओ दयापहाणो धम्मो सव्वन्नुपन्नत्तो ॥१८४०।। तो कुलवई धरंतो पणामवसविहडियं जडाजूडं । लद्धावसरो पुच्छइ मुणिनाहं पंजलिकरग्गो ।।१८४१ ।। "भयवं ! इमस्स नीसेसं वइयरं कहह मह कुमारस्स । को एस ? कस्स पुत्तो ? कहमिह रन्नम्मि परिवसइ ?" ||१८४२।। तो केवलिणा भणियं “कुलवइ ! अइसुंदरं तए पुढे । आयन्नसु एगमणो वइयरमेयस्स कुमरस्स" ।।१८४३ ।। तो भयवया असेसं सम्मं नाऊण केवलबलेण । जहवित्तो परिकहिओ वुत्तंतो कुमरपडणंतो ॥१८४४।। तो कुलवइस्स एयं सोऊणं वइयरं कुमारस्स । कालंतरिओ वि पुण नवीहुओ सोयपब्भारो ॥१८४५।। तब्वेलं चिय परिसागएण अब्भुट्ठिऊण कुलवइणा । आलिंगिओ कुमारो सिरम्मि परिचुंबिओ तह य ।।१८४६ ।। नियउच्छंगे ठवई पुणो पुणो उल्लसंतसंतोसो । आलिंगइ परिचुंबइ अवलोयइ तह विसूरई य ।।१८४७।। वणदेवयाहिं पुढे “इमस्स किं होइ कुलवई भयवं !? । तो भयवया वि कहिओ वुत्तंतो कुलवइस्सावि ॥१८४८।। पच्चक्खनिसुयनियचरियजायदढपच्चएण कुलवइणा । वसुहालुलंतजडभारभासुरं पणमिओ साहू ।।१८४९।। “सव्वन्नू होसि तुमं सुनिच्छियं मह चरित्तकहणेण । Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ नाणं हि जओ मुणिवर ! पच्चयसारं जए भणियं ।।१८५०।। ता भयवं ! जह एयं पच्चक्खं पयडियं तए मज्झ । तह नाह ! कहसु संपइ परलोयसुहं परमधम्मं ।।१८५१।। तो कहइ केवली कुलवइस्स पुव्वावरेण अविरुद्धं । धम्मं सिवतरुमूलं कल्लाणपरंपरानिलयं ।।१८५२।। “सो धम्मो कायव्वो जो किर सव्वन्नुणा समक्खाओ । नहि अइरिदियनाणं सव्वन्नुविवज्जियं होइ ॥१८५३।। सासयसिवसुहहेऊ धम्मो च्चिय होइ नत्थि संदेहो । सो उण सव्वन्नुविणिच्छिओ परं होइ आदेसो(ओ) ।।१८५४।। गयरागदोसमोहो निदड्डकम्मिंधणो धुयकिलेसो । केवलनाणालोओ इय जीवो होइ सव्वन्नू ।।१८५५।। सो साहेइ जहत्थं पिउ व्व वेसो व्व नत्थि से को वि । संसारच्छेयकरं परलोयसुहावहं धम्मं ।।१८५६।। जह उइए दिणनाहे वियसंति असेसकमलसंडाई । एवं सहावभणिरे जिणंमि बुझंति भुयणाई ।।१८५७।। तं सव्वन्नुपणीयं सिवसुहसंपत्तिकरणमुवयारं । अवितहमभव्वदुलहं धम्ममिणं निसुण ! साहेमि ।।१८५८।। खंत्ती य मद्दवज्जव-मुत्ती तव-संजमे य बोधव्वे । सच्चं सोयं आकिंचणं च बंभं च जइधम्मो ||१८५९।। कारण-अकारणेहिं य कुद्धे दुव्वयणभासए भणिरे । उवसंतमणेण परे जइणा खंती करेयव्वा ।।१८६०॥ धम्मो दयापहाणो दया वि कह होइ खंतिरहियस्स ? । Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ दयधम्मरक्खटुं तम्हा खंती करेयव्व ॥१८६१॥ माणस्स विघायकरं तं भन्नइ मद्दवं अगव्वत्तं । विणयस्स मूलजोणिं तं जइणा अवस्स कायव्वं ॥१८६२ ॥ माया कुडिलसहावो तप्पडिवक्खं च अज्जवं नेयं । रिजुभावो हि मुणिंदो विसुद्धधम्मं समज्जिणइ ||१८६३ || सयण-धण-विसय-उवगरण - देहमाईसु निम्ममत्तं जं । सा मुत्ती मंतव्वा अप्पडिबंधत्तणसरूवा ॥ १८६४ ।। होइ तवो पुण दुविहो बाहिर - अब्भितरो य तह कमसो । एक्केको च्छन्भेओ बारसभेओ तवो मिलिओ ।।१८६५ ।। " अणसणमूणोयरिया वित्तीसंखेवओ रसच्चाओ । कायकिलेसो संलीणया य बज्झो तवो होइ || १८६६ || पायच्छित्तं विणओ वेयावच्चं तहेव सज्जाओ । ज्झाणं उसग्गो वि य अब्भितरओ तवो होइ ||१८६७ ॥ पंचासवा विरमणं पंचेंदियनिग्गहो कसायजओ । दंडत्तयस्स विरई य संजमो सत्तरसविभेओ ।।१८६८ ।। अविसंवायगवयणं काय-मणो-वयणसुद्धिसंजुत्तं । एयं चउप्पयारं मुणिणा सच्चं भणेयव्वं ||१८६९ || सोयं च होइ दुविहं दव्वसोयं च भावसोयं च । दव्वमुवगरणमाई तग्गयसोयं करेयव्वं ॥ १८७० ॥ इह वत्थ-पत्त-कंबल-सेज्जा - संथारमाइदव्वेसु । जं उग्गमाइसुद्धं दव्वसोयं तयं भणियं ॥। १८७१ ॥ भावसोयं च भणियं कसायदोसेहिं वज्जियं चित्तं । १७१ Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७२ परमत्थसोयमेयं पण्णत्तं वीयरागेहिं ॥। १८७२ ॥ कीरइ कायगयस्स हि मलस्स पक्खालणं सुहेणेव । अइचिक्कणमललित्तं दुप्पक्खालं भवे च्चि ( चि) त्तं ॥ १८७३ ॥ संतेसु असंतेसु य वत्थुसु मुच्छा परिग्गहो भणिओ । तत्थ निरीहत्तमई आकिंचिन्नं विणिद्दिनं ।।१८७४ || दिव्यत्थिपरिच्चाओ तिविहं तिविहेण होइ नवभेयं । ओरालियविरई वि य नवभेया सा विनिधिट्ठा || १८७५ || इय अट्ठारसभेयं बंभं सव्वन्नुणा समक्खायं । तं पालतो विहिणा साहू कम्मक्खयं कुणइ ||१८७६ || इय एसो दसओ धम्मो सव्वण्णुणा समुद्दिट्ठो । एयं पालंताणं मोक्खसुहं करयले वसइ ।।१८७७।। जह धाणुको धणुगुणनिवेसियं एगभावमणचक्खू | लक्खम्मि ठवइ बाणं जइ वि हु सो दूरववहाणे ||१८७८ ।। तह एयधम्मसुहगुण-पणोलिओ जइवि दूरववहाणो । मोक्खलक्खम्मि पविसइ जीवो सुपयत्तजोगेण ॥ १८७९ ।। इय एस मए कहिओ परलोयसुहावहो नियदोसो । जइधम्मो सपवंचो जुत्ती -नय- हेउपरिसुद्धो” ।।१८८० ।। तं केवलिपन्नत्तं धम्मं सोऊण कुलवइप्पमुहा । जंपंति तावसा ते सम्मं संजायवेरग्गा ||१८८१ ।। “जइ एवं ता मुणिवर ! अरन्नरडियं व बहिरमंतोव्व । मयमंडणं व जायं अफलं चिय अम्ह अणुट्ठाणं” ||१८८२ ।। तो सव्वे पडिबुद्धा लोयं काऊण तोड़ियजडोहा । सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७३ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ पडिवज्जति जिणेसरदिक्खं संजायवेरग्गा ॥१८८३।। कुमरो वि सूरवइयर-निसुणणसंजायगरुयआमरिसो । केवलिधम्मुवएसं न सुणइ आएयबुद्धीए ॥१८८४॥ अंतोहुत्तवियंभिय-निब्भररिउरोसरत्तनयणजुओ । दीहुण्हमुक्कनीसासनीसहंगो किलम्मेइ ॥१८८५।। तो देवयाहिं दठूण तस्स बालस्स चेट्ठियं विसमं । पुट्ठो पुणो वि भयवं वीरसेणस्स संबंधं ॥१८८६।। “किं देव ! अम्ह पुत्तो नियवैरिविणिग्गहम्मि सुसमत्थो । जणणि-जणएहिं य सम्म(म) दंसणमेयस्स वा होही ?' ||१८८७।। तो केवलिणा भणियं “होही रिउनिग्गहे पयंडबलो । भरहद्धपहू होही आणेही जणणि-जणया य ॥१८८८।। होहिंति पच्चवाया बहवे एयस्स वीरसेणस्स । पुण्णाणुभावओ च्चिय सव्वे वि य ते टलिस्संति" ॥१८८९।। तो गरुयामरिसविसेसपसरिओद्दामभीमहुंकारो । नीहरइ परिसमज्झाओ नमियमुणिनाहपयकमलो ॥१८९०॥ गंतूण तओ सगिहं आपुच्छइ देवयाओ सव्वाओ । “तुम्हाणुमइए अहं नियाहिमाणं पइ जइस्से” ।।१९९१॥ ताहि वि जोगोत्ति वियाणिऊण अवणीयचूलिओ वीरो । देवीहिं अणुन्नाओ कयप्पणामो वि नीहरइ ॥१८९२।। निगं(ग्गं)तूण य तुरियं दक्खिणदिसिस(सं)मुहं स संचलिओ । पुन्नाहिट्ठियनियविक्कमेक्कपरिवारिओ वीरो ॥१८९३।। एकंगो असहाओ लक्खिज्जइ बहुसहायकलिओव्व । Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -१७४ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ वच्चइ अरन्नमज्झे सदूल-करिंद-हरिपोरे(पउरे) ||१८९४।। सुकुमारसरीरो वि हु सत्तावÉभसंजुओ वीरो । तण्हा-छुहा-पहस्समदुहेहिं न य जिप्पइ महप्पा ॥१८९५।। अणवरयपयाणेहिं वच्चंतो अजल-पत्त-फल-पुर्फ(प्फं) । संपत्तो कंतारं घणकंटय-विडविसंकिन्नं ॥१८९६।। सो तत्थ सत्तरत्तं पाणेसणविरहिओ महासत्तो । परिसुसियतालुजीहोट्ठनिठुरंगो वणे जाइ ।।१८९७।। अह अण्णदिणे मज्झण्ह-समयपरिसंठियम्मि दिवसयरे । तण्हाए पीडियतणू कंठागयजीविओ जाओ ।।१८९८।। अणवरयदीहरद्धाण-समखित्तसिन्नसव्वंगो । पयमेगंपि न दाउं सो सकइ सत्तवंतो वि ।।१८९९।। कंतारदुल्लहासणपवड्डिउद्दामबहुबुभुक्खत्तो । बहुदिवसपीयजलजायगुरुतिसासुसियअमयकलो ॥१९००।। उवरिं निठुररविकिरण-तावपज्जलियजलणखित्तोव्व । अंतो गरुयपरिस्सम-च्छुहा-तिसा-दाहसंतत्तो ।।१९०१।। रविकिरणफंससविसेसतत्तवसुहावुलुट्ठपयकमलो । संमीलियदीहच्छो पडिओ धरणीए निच्चेटो ।।१९०२।। एत्थंतरम्मि सहसा विज्जाहरराइणा घणबलेण । दिट्ठो सविम्हयच्छेण वीरसेणो तहिं पडिओ ।।१९०३।। दूराओ तं दटुं निज्जियतेलोकरूयरुइरंगं । संजायकोउओ सो समागओ तस्स पासम्मि ॥१९०४।। दटुं तहासरूवं “हा हा ! निच्चेट्टमिव निरक्खेमि ।” टि. १. ०शुषित-अमृतकलः ।। Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ इय चिंतावसपरवसचित्तो परियप्पइ मणम्मि ॥१९०५।। तो तेण परामुट्ठो उम्मूलियदीहनयणवित्थारो । अवलोइउं पयत्तो तं खयरं जायचेयन्नो ।।१९०६।। खयरेण चिंतियं पुण “जीवइ एसोत्ति पीडिओ नवरं । दूरपरपहपरिस्सम-च्छुहा-पिवासाहि(इ)पीडाहिं ।।१९०७।। ता एयं तुरियं चिय नेमि महंतं जलासयं किंपि । नेऊण तत्थ पच्छा व[व]गयपीडं करिस्सामि" ॥१९०८।। तो घणबलेण तुरियं अवहरिओ पाविओ य गिरिसरियं । निच्चेद्रुतणू सलिलेण सिंचिओ लहइ चेयन्नं ॥१९०९।। संपत्तचेयणो सो पेच्छइ विज्जाहरं समीवत्थं । “जीवाविओम्हि तुमए आणीओ जमिह नइतीरं" ।।१९१०।। तो पविसइ गरुयनइदहम्मि अइसिसिरसरससलिलम्मि । चिरकालविहियजलकेलिजायसोक्खो समुत्तरइ ॥१९११।। विज्जाहरेण तेण य संपाडियमहुंरभोयणरसेण । जाओ सुसत्थचित्तो अह एयं भणिउमाढत्तो ।।१९१२।। तुम्हारिसाण खेयर ! परोवयारेकुदिन्नचित्ताण । मन्ने सयले च्चिय तिहुयणम्मि उवमा न संपडइ ॥१९१३॥ दीसंति भोगभूमिसु कप्पतरू जे जणे असामन्ना । सव्वोवयारिणो खेयरिंद ! तुम्हारिसा विरला ।।१९१४।। निप्पत्ते निकु(क्कु)सुमे निवाणिए निफ(प्फ)ले अरन्नम्मि । पडियस्स मज्झ पुन्नोदएण तं आगओ एत्थ ॥१९१५।। जइ कह व तत्थ न तुम हुतो विज्जाहरिंद! रनम्मि । Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७६ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ ता मह एसा वेला मुयस्स हुंती न संदेहो ।।१९१६।। तो भणइ(ई) खयरिंदो सव्वं संपडइ पुन्नपुरिसाण । पुन्नाणुहावसंपज्जमाणनीसेसवत्थूण ।।१९१७॥ असणं बुभुक्खियस्स य पाणं तिसियस्स पुन्नपुरिसस्स । जाणं च पहपरिस्समदुहियस्स कुओ वि संपडइ ॥१९१८।। तुह कुमर ! अंगभूया अव्वभिचारी य लक्खणसमूहा । कल्लाणकारिणो बंधव व्व दुक्खाई नासंति ||१९१९।। कह तस्स होइ दुक्खं दुग्गमकंतारनिवडियस्सावि । जस्स निहाणाई व लक्खणाई अंगेसु निवसंति ॥१९२०।। आयन्नसु तुज्झ निरंतरंगभागेसु परिनिविट्ठाई । सुपसत्थलक्खणाई सामुद्दयसत्थकहियाई ।।१९२१।। अस्सेयकोमलतले कमलोदराभे लीणंगुलीरुइरतंबनहेसु पण्ही । उण्हे सिराविरहिए य निगूढगुप्फे कुम्मुन्नए य चरणे वसुहाहिवस्स ।।१९२२।। परिविरलसण्हरोमाहिं वट्टजंघाहिं हुंति नरनाहा । करिकरसमाणऊरू मंसलसमजाणुणो पुरिसा ।।१९२३।। रोमेगेगं कूवए पत्थिवाणं दो दो नेए बंभणाणं बुहेहिं । ते नायव्वे दुत्थियाणं बहूणि रोमा एवं पूइया निंदिया य ।।१९२४।। तुच्छे होइ धणी अवच्चरहिओ जो त्थूललिंगो नरो वामं वंकगए सुयत्थरहिओ अन्नत्थ पुत्तेसरो । दारिद्दी अइलंबलिंगकहिओ लिंगे सिरासंगए तुच्छावच्च-धणो हवेज्ज सुहिओ गंठिम्मि थूले नरो ।।१९२५।। Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७७ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ कुसुमसमसुक्कगंधा विन्नेया पत्थिवा न संदेहो । महुगंधा य धणड्डा मच्छदुगंधा य बहुदुक्खा ॥१९२६।। तणुसुक्को बहुधूओ बहुसुक्को बहुसुओ नरो होइ । बहुसुरओ दीहाऊ इयरो तुच्छाउओ होइ ||१९२७।। निस्सोअइ थूलफिओ मंडूयफिओ य होइ धणवंतो । सिंहकडी नरनाहो करहकडी य [स]दारिदो ।।१९२८।। जे विसमकुच्छिपुरिसा ते किर मायाविणो विणिहिट्ठा । सप्पोदरा दरिद्दा हवंति बहुभक्खगा तह य ।।१९३०।। परिमंडलुन्नएणं गंभीरेणं च सुत्थिया होति । तुच्छ-अदिस्स-अणुन्नयनाहीवलएण पुण दुहिया ||१९३१।। विसमबलिणो मणुस्सा अगम्मगामी य हुंति पावा य । समबलिणो पुण सुहिणो परदारपरम्मुहा होति ।।१९३२।। पासेहिं मउयमंसलपयक्खिणावत्तरोमजुत्तेहिं । हुंति नरामरवइणो विवरीएहिं च बहुदुक्खा ।।१९३३॥ आपीयउवचिएहिं मज्झनिमग्गेहिं हुंति नरनाहा । दीहेहिं चुच्चुएहिं विसमेहिं य हुंति धणहीणा ॥१९३४।। हिययं समुन्नयं मंसलं च पिहुलं च होइ रायाण । विसमहियया दरिद्दा सत्थनिवाएहिं य मरंति ॥१९३५।। कंबुग्गीवा(वो) राया महिसग्गीवो य होइ रणसुहडो । लंबग्गीवो य नरो बहुभक्खी होइ पयईए ॥१९३६॥ पिट्टमभग्गमरोमं पुहईनाहाण होइ विन्नेयं । अस्सेयणपीणुनयसुयंधकक्खा य. धन्नाण ।।१९३७।। टि. १. "करहकडी होइ य दरिदो" एवमत्र स्यात् ।। 13 Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७८ विउले अव्वच्छिन्ने सुसिलिट्टे अंसए नरिंदस्स । निम्मंसरोमनिचिए विसमे उण इयरलोयस्स || १९३८ ।। करिकरसरिसे वट्टे आजाणुपलंबिरे य पीणे य । रायाणं चिय बाहू इयराणं रोमसे हस्से ।।१९३९ ।। गूढमणिबंधसुदिढा सम्मं सुसिलट्ठसंधिसंजुत्ता । हत्था नरनाहाणं विवरीया होंति इयराण ।।१९४० । हत्थंगुलिणो सरला चिराउसाणं हवंति स ( स ) कुमारा । सहा मेहावीणं थूला परक्कम्मकारीण ।।१९४१ ।। हुति नहा दरसोणा अपुप्फिया अवणयग्गभागा य । रायाणं इयरेसिं विवरीया होंति विन्नेया ।। १९४२ ।। अइकिसदीहं चिबुयं अधणाणं मंसलं च सुपमाणं । रायाणं विन्नेयं अणुब्भडं संगयावयवं । १९४३।। अहरेहिं अवलेहिं बिंबाकारेहिं हुंति रायाणो । फुडिय-विवन्न- विखंडिय - रुंक्खेहिं य हुंति धणहीणा निद्धा पमाणदीहा तिक्खग्गा हुंति सुंदरा दसणा । जीहा रत्ता दीहा लण्हा सरिसा य रायाण || १९४५ ॥ सोमं समुज्जलं अमलिणं च चंदोवमं नरिंदाणं । विवरीयमधन्नाणं होइ मुहं लक्खणविहीणं ।। १९४६ ।। निम्मंस- आयएहिं या रोमस - विउलेहिं हुंति कन्नेहिं । रायाणो ससिरेहिं ह्रस्सेहिं य हुंति पावनरा ।।१९४७ ।। संपन्न - समसल-कूचरहियगंडेहिं नरवई हुंति । सरला य सहविवरा समुन्नया नासिया धन्ना ।।१९४८ ।। सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ ।।१९४४ ।। Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७९ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ पउमदलदीहरेहिं रत्तंतेहिं च हुंति रायाणो । नयणेहिं पिंगलेहिं मज्जारसमेहिं कूरमणा ॥१९४९।। अद्धिंदुसमनिडाला रायाणो हुंति सयलमहिवलए । धणहीणा विनेया पुरिसा जे विसमभालयला ।।१९५०।। च्छत्तागारसिरा जे रायाणो हुंति नत्थि संदेहो । आकुंचिय-धण-निद्धा अप्फुडिया सुंदरा केसा ॥१९५१। एयं संखेवेणं सामुद्दयसत्थलक्खणाणुगयं । कहियं कुमार ! तुह कोउएण, अन्नपि निसुणेसु ।।१९५२।। तिन्नि गहीराणि सया विउलाइ य हुंति तिन्नि वत्ताई । चत्तारि य रहस्साई पंच य सुहुमाइं दीहाइं ॥१९५३।। छच्चुन्नयाई सत्त य आरत्ताई च संपयमिमस्स । गाहादुम्मस्स (दुगस्स?, जुम्मस्स?) कमसो विवरणमेयं निसामेह ||१९५४।। नाभी-सर-सत्ताई य गंभीराइं च तिन्नि धन्नाई । वयणं उरं निडालं तिन्नि य विउलाई संसंति ।।१९५५।। पिढें लिंगं जंघं गीवा चत्तारि होति हूस्साइं । केस-दसणंगुली-पव्व-नहं तथा पंच सुहुमाणि ॥१९५६।। हणु-नयण-थणंतर-बाहू-नासिया होति पंच दीहाई । रायाणं चिय बहुसो न उणो सामन्नपुरिसाण ।।१९५७।। हिययं कक्खा-नह-नासिया य वयणं च कंधराबंधो । इय हुँति उन्नयाई कुमर ! पसत्थाई छच्चेव ॥१९८।। नयणंत-पाय-कर-जीह-नहा-हरोठ्ठा तालू य हुंति सुहया इह सत्त रत्ता । टि. १. नेत्तंत० इति स्यात्, तर्हि छन्दोहानिर्न स्यात् ।। Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८० एयाणि जस्स नरनाह ! हवंति अंगे सल्लक्खणाणि पुरिसस्स स चक्कवट्टी || १९५९ ॥ असयं छन्नउई चउरासीइ (ई) य अंगुलपमाणं । उत्तम - मज्झिम- हीणाण देहपमाणं मणुस्साण ।।१९६० ॥ ता सव्वलक्खणधरो न होसि सामन्नमाणसो वीर ! ।” इय भणिए पुण वीरो वयणमिणं भणिउमाढत्तो ।।१९६१ ।। “ उच्छुक्कोहं गुरुकज्जवावडत्तेण तत्थ वच्चिस्सं । चंपनयरीए खेयर ! अणुमन्नसु भुयणकप्पतरु !” ।।१९६२ ॥ विज्जाहरेण कुमरो कह कहवि य पयत्थणासयमहग्घं । अणुमन्निओ दुहेणं विणिग्गओ गंतुमारो ।।१९६३॥ अणवरयपयाणेहिं पत्तो चंपाए वीरसेणो वि । पविसइ पुरीए मज्झे विम्हइयजणेहिं दीसंतो ।।१९६४ ।। अवसेरिवसविसंठुल-हिययाहिं य ताहिं वणयरीसुरीहिं । कुमरस्स रक्खणट्ठे दोन्नि सुरा पेसिया तत्थ ।। १९६५ ।। तो चंपं पविसंतो अहिट्टिओ तेहिं वीरसेणो वि । सव्वंगं कयरक्खो राया जह अंगरक्खेहिं ॥१९६६ ॥ मंथरगईए वीरो वच्चइ चउहट्टमज्झयारम्मि । कहगेण पढिज्जंतं गाहाजुयलं सुणइ तत्थ ।।१९६७ ॥ " कज्जत्थिणा नरेणं कालविलंबो अवस्स सोढव्वो । कालम्मि निजुज्जंतो परकुमो फलइ नाकाले ।।१९६८ ।। कज्जं फलं व सरिसं जायइ नियकालपरिणईपडियं । तमकाले घेप्पंतं दुहावहं होइ विरसं च” ।।१९६९ ।। टि. १. पत्थणासय ० ( ? ) || सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ १८१ सोऊण इमं कुमरो परिभावइ नियमणम्मि थिरचित्तो । कालंतरेण होही पुरओ मह कज्जसंसिद्धी ।।१९७०॥ सव्वबलाणं बलियं सउणबलं चेव एत्थ भुयणम्मि । एसो य वयणसउणो न अन्नहा मन्नणीओ मे ||१९७१।। तो होउ एवमेयं बालक्कीलाए ताव अच्छिस्सं । मह कुलकमागयाए चंपाए अहं दिणे कइवि" ।।१९७२ ।। चिंतंतो जा एवं अच्छइ तत्थेव हट्टमज्झम्मि । ता एगो सामंतो पविसइ संज्झाए रायगिहं ।।१९७३।। कोयंड-कुंत-फारक्क एक्क(चक्क?)पायिक्कलोयपरियरिओ । बंदीहिं य थुवंतो अइतुरियकरेणुयारूढो ।।१९७४॥ गच्छंतस्स य वीरो सीहकिसोरो व्व दूरकयफालो । आरुहइ करिणिपुष्टुिं उवविसइ य तस्स पासम्मि ॥१९७५।। 'को एस' ? त्ति ससंकं तप्परियणविहियकलयलरवेण । अच्छुद्धमणो वीरो मंभीसइ तंपि सामंतं ।।१९७६।। सामंतेणं भणियं 'को सि तुमं ? किंनिमित्तमिह चडिओ ? ।' वीरेणं सो भणिओ ‘किं काहिसि मज्झ तत्तीए ? ।' ||१९७७।। सामंतेणं भणियं 'उत्तरसु, न जामि तुज्झ वीसासं' । उत्तरइ वीरसेणो पुच्छम्मि करेणुयं धरइ ||१९७८।। न चलइ पयं पि करिणी जाव तओ ताव तस्स भिच्चेहिं । आढत्तो सो हंतुं वीरो सर-सत्ति-सल्लेहिं ।।१९७९।। तो ताण दक्खयाए सामंतभडाण वीरसेणेण । गहियाइं आउहाई मोडेऊणं पक्खि(खि)त्ताइं ।।१९८०।। Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८२ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ मुक्को सो सामंतो गओ य नरसीहरायपासम्म । साहइ सामलवइणो नीसेसं कुमरवुत्ततं ।।१९८१।। तो नरसीहो जंपइ 'को होइ ? कस्स संतिओ अहवा । बालो अबालचरिओ नियविक्कमगव्विओ वीरो ।।१९८२॥ तो सव्वेहिं वि भणियं 'देव ! न जाणिज्जइ (ई) कुमारस्स । अंतोसुद्धी नवरं होही अच्चब्भुओ कोइ' ।।१९८३।। अह अन्नदिणे राया नरसीहो भवणियाए नीहरइ । बहुसेन्नसंपरिवुडो वियडुब्भडवेंडदहलक्खो ॥। १९८४ ।। उत्तमजच्चतुरंगम-साहणपन्नासलक्खपरियरिओ । विविहरहोहनिहंसण-पडिरवपडिरुद्धदिसिनिचहो ।।१९८५ ।। नाणापहरणपाइकुकोडिसंकडियवियडमहिवीढो । वारुयकरिणीपल्लाणियाए सुहसंठिओ राया ॥। १९८६।। वियडायवत्तकलिओ बहुचमरधरीहिं भूसियदुपासो । जय जय सहसमुब्भड - बहुभट्टभडेहिं थुव्वंतो ।।१९८७ ।। पत्तो रायपणं चउहट्टं सयलनयरनारीहिं । जोइज्जतो पायार-भवण-तरु- देउलट्ठियाहिं ।।१९८८ ।। पुरओ वज्जिर अणवज्जविविहआउज्जसयसहस्सेहिं । ओसारियदुजणो तयणंतरआसवारेहिं ।। १९८९ ।। तत्तो य दंगिएहिं खिलिहिलेहिं च घोरसद्देहिं । अंतोपडिहारेहिं विविहेहि य अंगरक्खेहिं ।।१९९०॥ एवंविहियपयत्तो नरसीहो जाव एइ चउहट्टे । नरसीहनाममाला ता पढिया बंदिणा तत्थ ।।१९९१।। Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८३ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ “जय तैलोक्कमहाभडभंजण ! रायाहिराय ! नरसीह ! । तिव्वपयावदवानल-पज्जालियवेरिवणगहण ! ।।१९९२।। अइनिम्मलजलपूरिय-खग्गद्रहबुड्डसयलरिउनिवह ! । तिव्वपयाबुब्भडसूरसेणपरिकवलणविडप्प !" ||१९९३।। तं सोऊण कुमारो पिउपरिभवसूयगं बिरुदखंडं । पज्जलियरोसहुयवह-समहिट्ठियमाणसो जाओ ।।१९९४।। भिउडीसंकडियनिडालवट्ठसंठवियच्छिविच्छोहो । निद्दयनिट्ठाहरभासुरमुहकुहरदुप्पेच्छो ।।१९९५।। वैरिवियंभियअमरिस-वसेण अच्छोडिऊण वसुहाए । करवीडयं नियंसणमवि निवसइ दिढयरं वीरो १९९६।। आमलयथूलमोत्तिय-हारं पि य बंभसुत्तए कुमरो । भूमीनिहसियहत्थो पुण मेल्लइ सीहनायं पि ॥१९९७।। गुरुसीहसद्दवितत्थहत्थिमुसिमूरिउब्भडभडोहं । नरसीहरायसेन्नं जायं असमंजसं सहसा ।।१९९८।। सप्फालियभुयदंडो तो पविसइ सेन्नमज्झयारम्मि । विहडावियइयरबलो पुण ढुक्को वारणबलाण ।।१९९९।। घेत्तूण करयलेणं रहमेगं तेण गयघडाडोवं । ओसारिऊण वीरो पत्तो नरसीहकरिणिं पि ॥२०००। तो उड्डिऊण दूरं सीहकिसोरोव्व वारुयं चडइ । निद्दलिऊणं मौडं नरसीहं धरइ केसेसु ॥२००१।। वामेण करयलेणं ओडांवइ मत्थयं नरिंदस्स । जंघंतरालभाए खिवइ सिरं तस्स अक्खुद्धो |२००२।। Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८४ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ जंघाओट्ठद्धसिरो पच्छाकयरायबाहुदंडो य । पुण वेवइ नरसीहो निठुरबंधेण चोरं(रो) व ॥२००३।। तो उज्झिऊण दक्खिणभुयदंड भणइ वीरसद्देण । "रे रे ! निसुणह सव्वे सामंता मौडबद्धा य ॥२००४।। एसेस मए बद्धो पुत्तेणं तस्स सूरसेणस्स । जो सूरसेणकवलणराहुं अप्पाणयं भणइ ॥२००५।। अक्खित्ता सव्वे वि य जो सुहडो एत्तियाण मज्झम्मि । सो च्छोडावउ सामिं मा भणिहह जं न किर कहियं" ||२००६।। एत्थतरम्मि सव्वे सामंता मौडबद्धरायाणो । मंडलिया बहुसुहडा परोप्परं भणिउमाढत्ता ।।२००७।। “सो एस वीरसेणो पुत्तो सिरिसूरसेणरायस्स । कुलदेवयाइ सुमिणे जो कहिओ अज्ज देवस्स ॥२००८॥ वटुंति वीसवरिसाइं तस्स जायस्स सूरपुत्तस्स । एसो वि वीसवरिसप्पमाणदेहोव्व पडिहाइ ॥२००९।। सो एस निच्छियं न उण अत्थि अन्नस्स एरिसा सत्ती । नेमित्तियाण वयणं संवइही जं पुरा भणियं ॥२०१०।। किं कुणिमो किं भणिमो किं हणिमो किं ववसिमो एत्थ ? | दैवोव्व अदिट्ठोच्चिय जो ढुक्को अम्ह सामिस्स ॥२०११।। अन्नोन्नमीसियाणं दोण्हवि एयाण वारुयाउवरिं । को रक्खिज्जइ मारिज्जए व्व अम्हेहिं रुटेहिं ?" ।।२०१२।। एत्थंतरम्मि सहसा सोउं नरसीहबंधणं तत्थ । उम्मुकदीहबाहं विलवंतं करुणसद्देहिं ।।२०१३।। Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ १८५ विलुलंतकेसपासं भयपरवसथरहरंतथणवटुं । तुटुंतवियडहारं अणुचियकयचरणचंकमणं ।।२०१४।। सिरिकणयरेहपमुहं अंतेउरमागयं जहिं राया । दठूण तहावत्थं दइयं पुण भणिउमाढत्तं ॥२०१५॥ “भो कुमर ! कुमरविक्कम ! कुणसु पसायं पसीय रक्खेसु । मा मारसु नरसीहं अवयारपरं पि वैरिं पि ॥२०१६।। तुम्हारिसेसु जइ रायपुत्त ! अब्भत्थणाओ न फलंति । ता कहसु भुयणमेयं सुदुत्थियं कह णु नित्थरिही ? ||२०१७।। निब्बंधवाण तं चेव बंधवो अम्ह पत्थमाणाण । भत्तारभिक्खदाणेण देव ! कारुन्नयं कुणसु" ।।२०१८।। तो ताण सकरुणालावसुणणसंजायहिययकारुन्नो । सो भणइ कणयरेहं 'सच्चमिणं बंधवो तुम्ह ।।२०१९।। ता एस कणयरेहे ! पत्थावे एत्थ ताव मुक्को मे । भइणीण तुम्ह वयणेण जइवि बहुदोसदुट्ठप्पा ।।२०२०।। . किंतु न वीसरइ महं जं खुअखत्तेण मज्झ जणयस्स । अवयरियं तं समयंतरम्मि कायव्वमेव मए ॥२०२१।। देव(व्व)वसेणं सीहस्स कहवि हरिणाण जं खु अवयरियं । तं तस्स भइणि ! वीसरइ कह णु जा सयगुणं न कयं" ।।२०२२।। इय भणिऊण(ण) मुक्को पुणो वि पच्चारिओ कुमारेण । “रे नरसीह ! निसम्मसु मह वयणं सावहाणमणो ॥२०२३।। जइ अज्जपभिइ निसुणेमि ‘सूरकवलणविडप्प' मिइ । वयणं तो जं होही कालंतरम्मि तं अज्ज तुह काहं" ।।२०२४।। Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८६ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ वेविरवारविलासिणीण हत्थाओ लेइ चमराई । घेत्तृण तस्स च्छत्तं उत्तरिओ रायकरिणीओ ॥२०२५।। तो तव्विहगरुयपहावदसणुप्पन्नकुमरपच्चासा । सूरनरेसरलोया अल्लीणा वीरसेणस्स ।।२०२६॥ 'जय सूरसेणसुय ! वीरसेण ! जय गरुयलद्धमाहप्प ! । अरिजलणदड्डनियवंसमूलपल्लुयणजलवाह ! ॥२०२७।। जय सूरुग्गमउदइ(गि)रिसरिस ! जय वैरिकाणणकुढार ! । नियपरियणकमलायरआणंदवियासदिणनाह ! ।।२०२८।। तिसिएहिं अमयपूरो च्छुहिएहिं व निद्धमहुरमसणं व । पोओव्व तुमं आवइसमुद्दपडिएहिं लदो सि ।।२०२९।। ता देव ! तुज्झ जणयस्स एस सव्वो वि पुव्वपरिवारो । निप्पच्चासो दीणो पहुं विणा एयमल्लीणो ।।२०३०॥ जह य ससप्पं तरंडं अवरुंडइ कोवि अन्नमलहंतो । अइगरुआवइजलनिहिगएहिं तह एस अम्हेहिं ॥२०३१॥ इय एवं जंपंता आससिया सायरं कुमारेण । “मा भाह न तुम्ह मणागमत्थि इह चित्तगयदोसो ॥२०३२॥ ता पडिवन्ना सव्वे अच्छइ मह संनिहम्मि संतुट्ठा । सुणओ वि नियपरिग्गहमज्झगओ अम्ह गोरविओ ।" ।।२०३३।। । एवं नियपरियणपरिगएण सिरधरियधवलछत्तेण । सियचामरवीजिज्जंतेण तेण पुट्ठो निओ लोओ ॥२०३४।। “कत्थच्छइ इह धरिओ गोत्तीए बिहप्फइस्स पियपुत्तो । नामेण बंधुयत्तो ? मोयामो जेण तं धरियं" ।।२०३५।। Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ 1 पुरओ ट्ठिएहिं तेहिं वि सो वि पएसो पयासिओ तस्स । गंतूण जणणिसहिओ सो वि मोयाविओ मित्तो ||२०३६|| तो कइवयनियपरियणपरियरिओ निग्गओ य नयरीओ । अणवरयपयाणेहिं नासिक्कपुरं समणुपत्तो || २०३७॥ जोएइ तत्थ ता तं नासिकं सव्वओ बलोहेहिं । आवेढं काऊणं परिवेढियं वैरिराएहिं ॥२०३८|| पुच्छइ य वीरसेणो “कस्स पुरं ? कस्स वा इमं सेन्नं ? । केण य किर कज्जेणं पवेढियं वैरिसेन्नेहिं ?" || २०३९।। एगेण तओ कहियं नरेण 'एयं विचित्तजसनयरं । सेन्नाई य एयाई नरसीहनरिंदतणयाइं ||२०४०|| ता एस विचित्तजसो परमो बंधुव्व सूरसेणस्स । नो मन्नइ नरसीहं असेसवसुहाहिवं रायं ॥। २०४१ ।। एएण कारणेणं हढेण परिवेढियं पुरं तस्स । बारसवरिसाई इमस्स वेढियस्सावि वट्टंति || २०४२ ॥ परिखीणसव्वलोयं अंतोदुब्भिक्खपीडियं नयरं । पक्खीणिधण-धण-धन्न - जवस - जलमाइववहारं ||२०४३ ॥ अज्जं व अहव कल्ले नयरं भज्जिही नत्थि संदेहो । इय एसो तुह कहिओ नीसेसो नयरवुत्तंतो' ||२०४४ ॥ सोऊण इमं वयणं वीरो अइविसमरोसरत्तच्छो । पट्ठवइ बंधुयत्तं विचित्तजसरायपासम्म ||२०४५ || सिक्खवइ "भणसु रायं होसु थिरो मा मणे भयं कुणसु । मा जंपसु दीणाई मा मुयसु नियाभिमाणं च || २०४६ ॥ १८७ Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ૨૮૮ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ जइ हं कोवि मणुस्सो जइ जाओ सूरसेणराएण । ता अज्ज चेव इह तुह पुरम्मि उव्वेढयं काहं" ।।२०४७।। अट्टालयपुरिसेहिं रायाणुमओ पवेसिओ मित्तो । एत्तो य वीरसेणो संपत्तो कडयमज्झम्मि ॥२०४८॥ हरिधम्मनामधेयस्स जाइ सेणाहिवस्स पासम्मि । गंतूणं तं बंधइ पच्छाहुत्तेहिं बाहूहिं ।।२०४९।। तं पुरओ काऊणं वच्चइ सव्वेसु रायगेहेसु । ते वि तहच्चिय बद्धा रायाणं बारससहस्सा ॥२०५०।। पेच्छंतस्स य लोयस्स सयलसेन्नाण चाउरंगाण । कुमरेण कयंतेण व अप्पडियारेण ते धरिया ॥२०५१।। धरिऊण य तव्वेलं विचित्तजसराइणो समप्पेइ । सव्वाइं य सेन्नाई अनायगाइं पणट्ठाइं ।।२०५२।। तो जाओ उव्वेढो संजाओ सुत्थिओ जणो सव्वो । पविसंति सव्वओ च्चिय जवसिंधण-धन्नमाईण ॥२०५३।। तो बंधुयत्तकहियं सोउं सिरिसूरसेणवुत्तंतं । तदुक्खदुक्खियप्पा मणागमासासिओ राया ॥२०५४।। वणदेवीपरिवालियकुमारवुत्तंतसवणपुलयंगो । समहियसंपत्तसुहो संजाओ हरिसपडहच्छो ।।२०५५।। सोउं नरसीहस्स य माणब्भंसं कयं कुमारेण । अउरुव्वविम्हउप्फुल्ललोयणो वहइ आणंदं ॥२०५६।। एत्थागओत्ति निसुए तिहुयणरज्जाहिसेयतुट्ठो व्व । अंगम्मि अमायंतो हरिसरोमंचमुव्वहइ ॥२०५७।। Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ १८९ नयरुव्वेढपइन्ना-निसुणणसंजायपहरिस-विसाओ । मा कहवि होज्ज कुमरस्स पच्चवाओ रिऊहिंतो ॥२०५८।। इय जावच्छइ समहिय-सच्चरियायन्नणुच्चरोमंचो । वीरेण पेसियं ता नियई राया नरिंदोहं ।।२०५९।। तो वीरसेणपेसिय-पहाणपुरिसेहिं रक्खियं दिटुं । नरवइणा अच्चब्भुय-विम्हयरसधुयसिरत्तेण ॥२०६०।। कहियं पहाणपुरिसेण 'देव ! एए असेसनरवइणो । हरिधम्मरायपमुहा तुह रिउणो ! आणिया एत्थ ।।२०६१।। एकंगेण वि सिरिवीरसेणकुमरेण नियभुयबलेण । चोरव्व बंधिऊणं तुज्झ सयासम्मि पट्टविया ॥२०६२।। ता एयाण सयं चिय जं जोग्गं होइ तं तुमं कुणसु । इय मज्झ मुहेण इमं विन्नत्तं तुज्झ कुमरेण' ।।२०६३।। तो भणइ विचित्तजसो 'अच्छंतु इहेव ताव नरनाहा ।' आइस्सइ पहिट्ठमणो पडिहारभडाण कायव्वं ॥२०६४।। 'रे ! वीरसेणकुमरागमम्मि कारेह उच्छवं नयरे । विहिउज्जलनेवच्छो चलउ जणो कुमरपच्चोणिं ॥२०६५।। अहयं पि एस चलिओ सपरियणो वीरसेणपासम्मि ।' पडिहारेहिं असेसं अणुट्ठियं रायवयणं पि ॥२०६६।। महया सम्मद्देणं नियपरियण-पौरजणवयसमेओ । राया कुमारपासं सह पत्तो बंधुयत्तेण ।।२०६७।। उत्तरइ करिंदाओ कुमारमुहकमलखित्तथिरनयणे(णो)। दूरपसारियबाहू आलिंगइ परमनेहेण ॥२०६८।। Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९० सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ चुंबइ सिरम्मि कुमरं कुमरो पिउनिव्विसेसबुद्धीए । पणमइ रायं सिरसा सिरविरइयपंजलीबंधो ।।२०६९।। भणइ नरिंदो 'तुह कुसलवट्टमाणि(णिं?) कहन्नु पुच्छामि ? । जो भुयणस्स वि कुसलं करेइ कह अकुसलयं तस्स ? ।।२०७०।। नणु संठियो सुहेणं ? वयणमिणं वीर ! पडइ ववहारे । दुक्खासंका कह तस्स जस्स आणाकरा देवा ? ||२०७१।। पुन्नेहिं तुज्झ दंसणमिमंपि उवयारतप्परं वयणं । पयडाइं चिय अरिबंधणेण मह जेण पुन्नाई ।।२०७२॥ जोग्गो सि गरुयरिउनिग्गहेत्ति वयणस्स नत्थि अवयासो । नरसीहनिग्गहेण वि सजोग(ग्ग)या पयडिया तुमए ॥२०७३।। जमहं किर पुच्छिस्सं चरियाई चिय कहंति तं तुज्झ । इय निरवयासवयणस्स मज्झ न फुरंति वयणाइं ॥२०७४।। वयणेहिं कहिज्जंतो केत्तियदूरं गुणा सुणिज्जंति । ते च्चिय सच्चरिएहिं पयडिज्जंता पवढंति ।।२०७५।। सामन्नगुणाणं चिय सामन्नमई गुणा पसंसंति । नीसामन्नाण पुणो नीसामन्ना जइ मुणंति ॥२०७६।। नियमइसरिसं चिय फुरइ माणसं वरकईण विसएसु । ताणं पि हु निव्विसयाई चित्तचरियाई वीराण' ।।२०७७।। इय निब्भरगरुयगुणाणुरायवियडुल्लसंतवयणस्स । रायस्स वयणमक्खिविय भणइ पुण वीरसेणो वि ॥२०७८॥ “गरुयाण नियगुरुत्तण-सरिसा संभावणा मणे फुरइ । अमयमयस्स व ससिणो किरिणा अमयं चिय मुयंति" ॥२०७९।। Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ तो भइ विचित्तजसो 'आरुह जयवारुणम्मि बच्चामो ।' रायवयणावसाणो वीरो आरुहइ हत्थिम्मि ॥२०८०|| तो गरुयरिद्धिसमुदय- संपाइयलोयलोयणाणंदो । पविसइ नासिक्कपुरं वीरो नरनाहपरियरिओ ॥२०८१॥ अइगरुयलोयसम्मद्दभरियपुर-पह - चउक्क-तिय-रच्छो । वित्थरइ थिमियपसरतवियडसेन्नो महीनाहो ॥२०८२ ॥ पिहुलीकओ व्व वित्थारिओ व्व दीहीकओ व्व तणुओ वि । चच्चर - चउक्क-तिय-रायमग्ग-रच्छासु पुरलोओ ।। २०८३ || तरलायंति अदिट्ठे मुणियपएसम्म ईसि तरलाई । दिट्ठे थिराई जायंति नवर कुमारे जणच्छीणि ॥२०८४|| कत्थागओ म्हि ? कह संठिओ म्हि ? कोहं ? च एत्थ किंकज्जो ? | कुमरालोयणविवसो न मुणइ अप्पं पि पुरलोओ || २०८५ | अवहीरइ अवमन्नइ परिनिंदइ तह दुगुंछए जणोहो । अन्नं दंसिज्जंतं कुमरनिहित्तेक्कमण - नयणो ॥ २०८६॥ सिरिवीरसेणदंसण- असरिसपसरतविम्हयरसाण । लोयाणं बहुपयारा अन्नोन्नं आसि आलावा ॥२०८७ ।। “सो एस जेण सुपयंडनिय भुयदंडखंडियपयावो । एकंगेण वि बद्धो नरसीहनरिंदसंदोहो || २०८८ ।। नंदउ एसो सुचिरं कुमरो संसारसारयाभूओ । मोयावियाई जेणं गब्भदुहाओ व्व रोहाओ ।।२०८९।। रूवे वि न लावन्नं तम्मि य न वियद्दृमणहरो वेसो । तत्थ वि न विक्कमो उवसमो य एयम्मि पुर्ण सव्वं ॥ २०९० ॥ १९१ Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९२ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ नयणाइ दंसणेणं तग्गुणगहणेण वयणकमलाई । चित्ताई चिंतणेणं जणस्स जायाइं सफलाइं ॥२०९१।। नरलोयअसंभवरूवदंसणुप्पन्नविम्हयरसाण ।। लोयाण मच्चलोयंमि आसि सारत्तपडिवत्ती" ॥२०९२।। इय एवमाइबहुविहवियप्पमयगोयरं नरवरिंदो । पइसावइ नियभवणे कुमरं अइगरुयरिद्धीए ।।२०९३।। पढमं परियप्पियमणिमयम्मि सीहासणम्मि उवविसइ । उवविट्ठम्मि नरिंदे कुमरो बहुगोरवमहग्धं ॥२०९४।। कयसमुचियपडिवत्ती विचित्तजसराइणा इमं भणिओ । 'इह कुमर ! तुमं राया अम्हे उण सेवया तुज्झ ॥२०९५॥ जं जह काले उचियं तं तह अम्हाण देज्ज आएसं । मा वच्छ ! सकीयम्मिं परबुद्धिं इह करेज्जासु ।।२०९६।। तो नियमंदिरसरिसं पासायं देइ वीरसेणस्स । तयणु विसज्जइ राया सावासं उचियकयकज्जो ॥२०९७॥ अच्छइ निए व गेहे कुमरो संतुट्ठमाणसो एत्थ । मणचिंतियसंपज्जंतसयलवत्थू सपरिवारो ।।२०९८।। इय तुम्ह मए कहियं चरियं संखेवओ कुमारस्स । निसुएण जेण जायइ विम्हयरसपरवसं हिययं ।।२०९९।। तो भणइ विलाससिरी ‘सहि ! अज्ज वि इह जयम्मि दीसंति । उप्पाइयअच्छरिया सुकप्पतरुणोव्व सप्पुरिसा' ॥२१००।। तो चंदसिरी पभणइ ‘गोवद्धण ! को तुम कुमारगिहे ? ।' सो भणइ 'तस्स पिउणो पुरोहिओ आसि मज्झ पिया' ।।२१०१।। Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९३ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ पुण भणइ विलाससिरी 'पुरओ साहर कुमारवुत्तंतं ।' चंदसिरीए भणियं 'गोवद्धण ! कहसु मह पुरओ ॥२१०२।। निसुएण वि तस्स महाणुभावचरियस्स वीरसेणस्स । नामेण वि पल्हायइ मह अंगं पुलयमुव्वहइ' ॥२१०३।। तो बंभणेण भणियं 'विचित्तजसरायवल्लहा धूया । इह कावि अत्थि नयरे चंदसिरी विजियरइरूवा ।।२१०४।। विन्नाणगुणनिहाणं नीसेसकलाकलावपरिकलिया । सा दिट्ठा अन्नदिणे ससिणेहं वीरसेणेण ॥२१०५।। तदंसणदियसाओ पभिई सो तारिसो महासुहडो । मयणसरजज्जरंगो कायरपुरिओ व्व संजाओ ।।२१०६।। चिंतावसपरियप्पियदइयापरिरंभजायरोमंचो । सच्चवियनियवियारो पुणरवि[स] विलक्खिमं वहइ ।।२१०७।। दइयानिमित्तबहुविहवियप्पजालाणुरूवकयचेट्टो । तब्भावरसो वियरइ नडोव्व नाणाविहवियारो ॥२१०८।। विरयनिमेसुम्मेसो निच्चलपम्हउडदीहप(पि)हुलच्छो । सो जणइ सुरकुमारभमेण लोयाण आसंकं ॥२१०९।। जे हियए वि न सम्मति जे न वोत्तुं पि जंति वयणेहिं । ते तारिसा वियारा तयलाहे तस्स संजाया ॥२११०।। दठूण बंधुयत्तो चंदसिरिअलाहदुत्थियं कुमरं । संकंततढुहो इव ससंकचित्तो विचिंतेइ ॥२१११॥ 'अहह ! अइविसममेयं समुवट्ठियमविसयं मह मईए । कज्जं गरुयत्तणदुग्गहं व हियए न संठाइ ।।२११२।। Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९४ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ एयरस संपयं चिय संजाया एरिसी महावत्था । चंदसिरी पुण अज्ज वि इमस्स नामं पि न मुणेइ || २११३॥ को जाणइ नियधूयं कस्स वि दाही विचित्तजसराओ ? । अमुणियतयभिप्पाओ तं कह पत्थेमि कुमरत्थे ? || २०१४ | जत्थ न पसरइ बुद्धी न विकमो तं दुसज्झमिह कज्जं । सिज्झइ जइ पर तुरियं चक्केसरिपयपसाएण ।। २११५ ।। ता एसच्चिय देवी अइदुत्थियलोयकप्पवल्लिव्व । चक्केसरी करेही करुणाए इमस्स स ( सं ) नेज्झं ' ॥२११६॥ काऊण निच्छयमिणं अहमिह चक्केसरीए पूयत्थं । पइदियहं विणिउत्तो बंधुयत्तेण मित्तेण ।।२११७।। पढमं आगंतूणं देवं पूएमि सव्वविहिपुव्वं । पच्छा एइ कुमारो सबंधुयत्तो पणामत्थं ॥२११८।। पइदियहं जाव न चक्किणीए परमेसरीए पयकमलं । पणमइ न ताव भुंजइ सो वीरवई महासुहडो' ।।२११९।। तो तव्वयणं सोउं चंदसिरी हरिसवियसियकवोला । आणंदबाहनीसंदसुंदरं वहइ मुहकमलं ॥ २१२० ।। मन्नइ स (सु) कयत्थं चिय अप्पाणं पिययमाणुराएण । तेलोक्काहिवइत्तण- लाभेण व वहइ आनंदं ॥ २१२१।। 'जायंम्हि अज्ज संजीवियंम्हि अज्जेव जम्मसाफल्लं । अज्जं चिय फलियं मह गुरूण आसीपयाणेहिं ।।२१२२॥ एत्तियमेत्तेणं चिय सलहिज्जइ इह असारसंसारो । अवरोप्परपेम्मपरव्वसाण जं होइ रमणीओ ।।२१२३ ।। Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९५ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ अइविसमो पेम्मरसो जम्हा जं वीरसेणवेयल्लं । बंधुयणसोयणिज्जं तं चिय मह पहरिसनिमित्तं' ||२१२४।। इय एवमाइ चित्ते चिंतंती जायतग्गयवियप्पा । चंदसिरी नियएसु वि अंगेसु न माइ हरिसेण ॥२१२५।। सिरिवीरसेणअणुराय-सवणसंजायपहरिसुकुरिसा । सीयलपवणमिसेणं पुलयं निण्हवइ रायसुया ॥२१२६।। तो भणइ विलाससिरी 'निहुयं समओ वि तस्स आगमणे । आसण-तंबोलाइ कीरइ सव्वंपि सन्निहियं ।।२१२७।। पुव्वागयाओ अम्हे सागयमम्हेहिं तस्स कायव्वं । काऊण अवटुंभं हियए परिहरह मुद्धत्तं' ॥२१२८।। चंदसिरीए भणियं 'पियसहि ! जं किंपि होइ तं होउ । मह नत्थि वसे हिययं कुणसु तुमं सव्वमुचियत्थं' ॥२१२९।। तो भणइ विलाससिरी 'सव्वं जं भणसि तं करिस्सामि । परमेगं पत्थिस्सं तं तुमए अवस्स कायव्वं' ।।२१३०।। 'भणसुत्ति रायधूयाए जंपिए भणइ पुण विलाससिरी । 'अणुकूलिमाए पियसहि ! आराहसु पिययमं अज्ज ॥२१३१।। 'अणुकूलत्तणदिढगुणसंजमियं चंचलं पि पयईए । न चलइ मणं जणस्स वि विसेसओ हिययदइयस्स ॥२१३२॥ एयं चिय वसियरणं एयं चिय दुव्वियप्पसंवरणं । एयं चिय चउरत्तं पियम्मि जं आणुकूलत्तं' ।।२१३३।। तो भणइ रायधूया ‘सहि ! मह हिययाणुकूलिमाए वि । रंजिस्सइ सो सुहओ जइ सच्चं सो च्चिय कुमारो ॥२१३४।। Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ रंजिज्जइ मुद्धजणो पियसहि ! इयराणुकूलिमगुणेण । हिययाणुकूलिमं चिय च्छइल्लपुरिसा पसंसंति' ।।२१३५।। एत्थंतरम्मि सहसा पुरोहिओ उढिओ ससंभंतो । 'आओत्ति वीरसेणो' जंपतो तरलतारच्छो ॥२१३६।। 'आओ'त्ति इय पलत्ते हियउकुलियाहिं बहुवियप्पाहिं । तह नडिया चंदसिरी विम्हरिया सा जहप्पाणं ॥२१३७।। अइवल्लहपढमसमागमम्मि तरलत्तणं गुरूणं पि । अंतरइ मणस्स फुडं उचियाणुचियत्तणविवेयं ।।२३८।। तो चंदसिरी काऊण कारिमं माणसे अवटुंभं । अन्नववएसवावारवावडं कुणइ अप्पाणं ॥२१३९। सिरीवीरसेणदंसणसमुच्छुयं कड्डियं हडे(ढे)णेव । दाहिणकरयललीलाकमले च्चिय ढुवइ नयणजुयं ॥२१४०॥ भरखित्तनीसहंगी बिउणीकयबाहुनिहियगंडयला । मणिमत्तवारणगया तलगयदासीण संदिसइ ॥२१४१।। एत्थंतरे कुमारो सबंधुयत्तो समागओ तत्थ । मोत्तूण दूरओ च्चिय परिवारमुवद्दवभएण ।।२१४२॥ सो उज्जुयं नियंतो देवीमुहकमलमेव गब्भहरं । पविसइ अणन्नदिट्ठी अमुणियचंदसिरिआगमणो ॥२१४३।। तस्साणुमग्गओ च्चिय जा पविसइ पियवयंस[ओ?] पुरओ । तो पेच्छइ चंदसिरिं विलासलच्छीए परियरियं ॥२१४४।। दठूण बंधुयत्तो रायसुयं मत्तवारणनिसिन्नं । 'चकेसरिदेवीए एस पसाओ'त्ति चिंतेइ ॥२१४५।। Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ 'कहमन्नह प्पडु( डू ? ) या इह चिट्ठइ निप्पओयणा एसा । जा खणमवि दासीजणसहीसहस्सेहिं अविरहिया ?' ॥२१४६॥ ता पहरिसवसपसरियगयवेयविसंठुलंसुयनिवेसो । विसिऊण गब्भहरयं अक्खिवइ कुमारउत्तरियं ॥२१४७॥ 'किं बंधुयत्त ! एयं ?' इय भणिए वीरसेणकुमरेण । 'मह देसु पारिओसिय' मिय भणियं बंधुयत्तेण ॥ २१४८ || कुमरो भाइ 'किमिहरं चंदसिरी आगया परमइट्ठा ? । मं पारिओसियं जेण मग्गसे जायसंतोसो' ।। २१४९ ।। ' एवं ' ति भणइ मित्तो कुमरो पुण भणइ दीहमूससिउं । 'कहमम्ह एत्तियाई पुन्नाई वयंस ! होहिंति ?” ।।२१५० ।। तो भइ बंधुयत्तो 'असज्झमिह नत्थि तुज्झ पुन्नाणं । सिरिचक्केसरिदेवीपसायसंपत्तिगरुयाण ।। २१५१ ॥ सा वीरसेण ! इहई समागया निच्छियं तुह सवामि । चिट्ठइ पच्चक्खं चिय पेच्छसु बाहिं महावीर !' ।। २१५२ ।। 'चिट्ठइ जाणामि अहं लिहिया भित्तिम्मि जा मए पुव्विं ।' इय भणइ वीरसेणो अपत्तियंतो वयंसस्स ।। २१५३ || पुण भइ बंधुयत्तो निव्वत्तसु चक्किणीए पयपूयं । पच्छा तुह दाविस्सं इह चैव विचित्तजसधूयं ॥ २१५४ ॥ ' एवं होउत्ति तओ कुमरो निव्वत्तिऊण देवीए । पूयाविहिं महंतं संथुणइ तओ पहिट्ठमणो ॥ २१५५ ।। “पणमह अप्पडिचकं करालकरचक्ककंतिकब्बुरियं । अरितिमिरपहायकालुग्गमंतबहुसूरसंज्झव्व ॥ २१५६ ॥ १९७ Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९८ बहुकरसहस्सपरिवियडचक्कधारासु सहसि संकंता । पडिपाणिरक्खणङ्कं विउरुव्वियबहुसरीरव्व । हिययम्मि पईवसिहव्व जाण निवससि निरंतरं देवि ! । ताण पयासइ सयलं तिलोयमवि पयडपरमत्थं ||२१५८ ॥ दुद्धरिसतेयभरभासुरा वि विज्जुव्व देवि ! खदिट्ठा । संमोहकारणं चिय रिऊण तं कालरत्तिव्व" ॥२१५९॥ इय देवीए गुणत्थू (थु)ई-महत्थपरिभावणापुलइयंगो । आणंदबाहपच्चा ( क्खा ? ) लियाणणो पणवइ पुणो वि || २१६०॥ तो भाइ वीरसेणो 'दावसु मह बंधुयत्त ! चंदसिरिं । अइदुक्खिओ त्ति काउं मुहाए किं मित्त ! वेलवसि ?' || २१६१।। एत्थंतरम्मि सहसा विलासलच्छी पसन्नमुहकमला । चंदसिरीआइट्ठा समागया कुमरपासम्मि || २१६२ || आंगंतूणं करयलरइयंजलिसपुडाए सप्पणयं । भणियं 'कुणसु पसायं उवविस वरमत्तवारणए ।।२१६३ ।। एसा असेसनरवालमउलिसंचलियपायकमलस्स । चंदसिरी इह चिट्ठs विचित्तजसराइणो धूया ||२१६४ || कीरइ तिस्सा एसो महापसाओ त्ति वियसियकवोलो । दरहसियदसणकिरिणोहनिहयगब्भहरघणतिमिरो || २१६५ || सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ 'सच्चं चिय मित्त ! तए भणियं' इय जंपिऊण तस्स भुए । आसंघियनियपाणी उवविट्ठो मत्तवारणए ।।२१६६ ।। तो भाइ विलाससिरी ' कुमार ! मा सामिणीए अवराहं । गेहेज्जसु उज्जाणे कीलाए दढं परिस्संता ||२१६७ ।। Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९९ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ तुज्झोवरिपरिवड्डिय-गरुयसिणेहाणुरायविवसाए । एयाए कुमार ! अहं विणिउत्ता उचियकज्जेसु ।।२१६८।। गरुयाणुरायरसियं हिययं कुलबालियाण लज्जाए । कयअप्पगब्भभावं खललोओ अन्नहा मुणइ' ।।२१६९।। घेत्तूण कणयतलियं विलासलच्छीए बीडयसणाहं । घणसारहरिणनाहीसुयंधसिरिखंडकच्चोलं ॥२१७०।। अइसुरहिकुसुमसंभवसहत्थघणगुच्छमालियं पुरओ । काऊण सव्वमेयं समप्पियं वीरसेणस्स ॥२१७१॥ तेण वि नरिंदधूया-बहुमाणगुणेण अप्पणा गहियं । जहजोग्गयाए सव्वं विणिउत्तं अप्पणच्चेय ।।२१७२।। तो भणइ वीरसेणो “विलाससिरि ! तुम्ह सामिणी एसा । किं किं कमलब्भंतरनिविट्ठदिट्ठी पलोएइ ?" ॥२१७३।। सा भणइ “कुमारी एत्थ वंच्छए रायहंससंबंधं । माणसकमलनिवासो किमस्स इट्ठो अणिट्ठो वा ? ||२१७४।। इय वासणाए एसा पुणो पुणो कमलगब्भमिक्खेइ ।' तो भणइ वीरसेणो “सच्चमिणं पभणियं तुमए ।।२१७५।। जइ सुद्धोभयपक्खो जइ विमलमई य गुणविभागन्नू । ता जम्मपभिइ एसो वस(सि)ही एत्थेवमणुलग्गो ॥२१७६।। मोत्तूण सिरि-सरस्सइनिवासमेयं समुज्जलगुणटुं । अहिणववियासमेसो किं वसही लिंबकुसुमम्मि ?" ॥२१७७।। पभणइ विलासलच्छी ‘एएणं चिय कुमार ! कज्जेणं । वररायहंसवासं अहिलसइ निरंतरं एसा' ।।२१७८।। Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०० सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ एत्थंतरम्मि सोउं चंदसिरी वीरसेणवयणमिणं । पच्छायइ रोमंचं वरिल्लवत्थेण अंगम्मि ॥२१७९।। जोयइ तिरिच्छचलियच्छियतारयं विसमवलियभूभंगं । कुमरच्छिनिवायभया संकुइयं कहवि चंदसिरी ॥२१८०॥ एथा(त्था)वसरे जणणीए पेसिया तत्थ निययपडिहारी । नमिऊण भणइ कुमरिं 'देवी वारहइ(वाहरइ?) संचलह' ।।२१८१।। पियविप्पओगजणणं तव्वयणं वज्जवडणदुव्विसहं । सा रायसुया सोउं परियप्पइ किंपि हिययम्मि ॥२१८२।। अप्पत्थावम्मि कओ आएसो वि हु गुरूण दुल्लंघो । उव्वेवयरो जायइ पियविरहविसेसदुक्खेण ॥२१८३।। भूसन्नाए निउत्ता कुमरीए तओ विलासलच्छी वि । पुच्छइ ‘कुमार ! देविं अणुमन्नसु जणणिपासम्मि' ॥२१८४।। ‘एवं करेह' भणिए कुमरेण तओ सरीरमेत्तेण । झणझणिरनेउररवा सहीए जंती इमं भणिया ॥२१८५।। 'तेण तुह देवि ! अप्पा समप्पिओ जम्मपभिइ चउरेण । तुमए उण तं न कयं तस्स मणो जेण पत्तियइ' ॥२१८६।। तो भणइ रायधूया जइ सच्चं सो वियक्खणो चउरो । ता मज्झ मणं मुणिही अहवा कालंतरेणावि' ॥२१८७।। एसो य असोएण विज्जाबलच्छन्ननियसरूवेण । चंदसिरि-वीरसेणाण लक्खिओ नेहसंबंधो ।।२१८८।। तो ताण तेण दोहिं वि परोप्परं परमनेहनिबिडाण । विहडावणत्थमेवं वियप्पियं निययहिययम्मि ।।२१८९।। Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ २०१ 'किं एत्थेव समप्पउ संग्गामो सह इमेण कुमरेण ? । अहवा न होइ एवं सुदुज्जओ एस जं समरे ।।२१९०।। किं वा पत्थेमि इमं विचित्तजसरायमप्पकज्जम्मि ? | नेवं सो वि न सक्कइ पडिकूलं भणिउमेयाए ॥२१९१॥ अहवा वि पुव्वपक्खा सप्पडिवक्खा न होति कज्जखमा । ता एसो च्चिय पक्खो विणिच्छिओ जो मए पुट्विं ॥२१९२।। पढमं च पीढबंधो इमस्स कज्जस्स चिंतिओ एस । जं सामपुव्वयं चिय विमाणदाणं कयमिमीए ।।२१९३।। जइ ता विमाणदाणोवरुद्धतज्जणणि-जणयवयणेण । एसा मं परिणेही ता सिद्धं मज्झ जं सज्झं ॥२१९४।। अह अन्नहा करेही एसा एएण ता विमाणेण । गच्छंती गयणयले सुनिच्छियं अवहरिस्सामि ॥२१९५।। ता एसो च्चिय मंतो हरियव्वा संपयं' इय असोओ । तिस्सा विमाणमज्झे पच्छन्नो था(ठा?-जा?)इ कवडेण ॥२१९६।। अह चंदसिरी वि गया जणणिसयासं सहीहिं परियरिया । गंतूण नमइ जणणिं उवविसइ तओ समीवम्मि ॥२१९७।। जणणीए पुच्छिया सा 'पुत्ति ! कहिं एत्तिया ठिया वेलं ? ।' सा भणइ ‘चकिणीए भवणम्मि गया पणमत्थं' ।।२१९८।। 'साहु कयंति सतोसं भणियं 'जणणीए ‘पुत्ति ! किं एहि । कायव्वमत्थि अन्नं ? ता वच्चामो नियं गेहं' ॥२१९९।। एत्थंतरम्मि वज्जिरअणवज्जाओज्जसद्दगंभीरं । अप्फालियं सहेलं पत्थाणसमुब्भवं तूरं ॥२२००।। Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ आयन्निऊण सदं तूरस्स तुरंतहिययवावारो । उज्जाणाओ सव्वो संचलिओ तक्खणे लोओ ॥२२०१।। पुट्विं परिकप्पियअप्पमाणकरि-तुरय-संदणाईसु । अइगउरविओ लोओ सव्वो वि जहारुहं चलिओ ।।२२०२।। तो जणणीए भणिया चंदसिरी 'पुत्त(त्ति) ! नियविमाणम्मि । आरुहसु जेणम्हे(जेण अम्हे) वच्चामो निययजाणेण' ।।२२०३।। आएसाणंतरमेव जाव आरुहइ सा विमाणम्मि । ता तीए अहिमुहं चिय च्छीयं केणावि तव्वेलं ॥२२०४।। सोउं तं विजयवई ‘पडिवालसु ता खणंतरं पुत्ति ! । सउणो माणिज्जंतो सुहावहो होइ' इय भणइ ॥२२०५।। पडिवालिऊण य खणं रणंतमणिमेहला समारुहइ । जा चंदसिरी एगा ता सहसा तं समुप्पइयं ।।२२०६।। तो पभणइ विजयवई विलासलच्छिं च चमरधारीओ । तंबोलवाहिणी विय ‘पुत्तय ! घेत्तूण वच्चाहि' ।।२२०७।। तो भणइ रायधूया 'किं मज्झ वसेण एयमुप्पइयं ? । नो जाणामि भविस्सइ किमेत्थ ? संकइ व मे हिययं' ॥२२०८।। तो भणइ तीए जणणी 'न पुत्ति ! एयाइं दिव्वजाणाई । भूगोयरपयफंसं सहति ता गच्छ नीसंका' ॥२२०९।। अह विजयवई नियजाणमुत्तमं आरुहेइ सवियप्पा । 'एगागिणी विमाणे धूय'त्ति ससंकमुच्चलिया ।।२२१०।। नाणाविहगीय-विणोय-नट्ट-पेच्छणयसयसमिद्धम्मि । नयरम्मि सा पविट्ठा उर्दू अवलोयए जाव ||२२११।। Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ २०३ ता पेच्छइ उच्चयरं वच्चंतं तं विमाणमइवेगं । सहस त्ति भूमिगोयर-जणसंगभएण नटुं व ॥२२१२।। दिलै नयरजणेणं वेयवसा कमतिरोहियसरूवं । गयणे दिव्वविमाणं भयतरलियनयणपसरेण ॥२२१३॥ तो ताण समुच्छलिओ नयरे उत्ताणियाणणच्छीण । 'कत्थ गयं कत्थ गयं विमाणमेयं हहा !' सद्दो ॥२२१४।। विलयाहि निरंतरतरलनयणवसविसमवयणे(णा)हिं । उभयंसेसु लुलंतो उवेक्खिओ च्छुट्टधम्मेल्लो ।।२२१५।। 'अवहरिया केणइ पावकम्मनिरएण एस पिहुलच्छी । विज्जाहराहमेणं चंदसिरी पुन्नचंदमुही ।।२२१६।। परिभावियं न एयं नियचित्ते तेण जं नियसुहत्थी । कह भुयणं पि असेसं ठ्वामि दुक्खे अहं एक्को ? ॥२२१७।। हा जणणि-जणयभत्ते ! हा देव-गुरूण पूयणक्खणिए ! । हा विविहविणोयविलासवल्लहे ! कत्थ दीसिहसि ? ||२२१८॥ तुह रहियं एयं पि य सुन्नं नयरं न केवलं जायं । दिट्ठ-निसुया सि जेहिं वि हिययाई वि ताण लोयाण' ।।२२१९।। इय हाहारवबहिरियदियंतराभोयभीसणं नयरं । तक्खणमेत्तेणं चिय संजायं पिउवणसरिच्छं ।।२२२०।। तो विजयवई धूया असणभयपकंपियसरीरा । ‘परितायह'त्ति भणिरी नरवालसमीवमल्लीणा ।।२२२१।। तो भणइ महाराओ ‘कहसु पिए ! वइयरं मह असेसं ।' तो जहवित्तं कहियं नीसेसं रायपत्तीए ॥२२२२।। तो नरवइणा भणियं ‘पन्नायर ! कारणं वियप्पेसु । Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०४ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ मह बुद्धीए न खयरो तहाविहो कोवि मह सत्तू ।। २२२३ ।। अणुमाणवसेण इमं पन्नायर ! मह मणम्मि विप्फुरइ । च्छीयं विमाणआरोहणम्मि जं तत्थ तं एयं ||२२२४।। तमसोयस्स विमाणं विज्जादेवीपहावदुप्पेच्छं । सामन्नेहिं न तीरइ अवहरिडं इयरखयरेहिं ॥२२२५ ॥ ता निच्छियमेयं तेण माइणा कूडकवडबहुलेण । मह धूया अवहरिया असोयखयरेण पावेण || २२२६ || छलिओ म्हि कहं पेच्छसु विमाणदाणब्भमेण अइसरलो । इय तस्स मई नूणं सुहसज्झा मह विमाणगया' ।। २२२७।। पन्नायरेण भणियं 'देव ! जहा निच्छ( च्छि ) यं तए एयं । कज्जं तहेव जायं मए वि परिसंकियं पुव्विं ॥२२२८|| पन्नायरवयणाओ संजायविणिच्छओ महाराओ । सह विजयवईय (ए) तओ मुच्छाए महीयले पडिओ || २२२९ ॥ संमीलियनयणदलो मिलाणसव्वंगसंगयावयवो । चंदसिरिविरहिओ सो संकुइओ कुमुयसंडोव्व ॥ २२३०|| हिययनिवेसियनियपाणिपल्लवो सहइ कह महाराओ । 'हिययट्ठियं पिधूयं मा हरिही' इय भएणं व ।।२२३१।। दूरपसारियबाहू देसंतरसंठियं नियधूयं । वाहरइ 'एहि पुत्तय ! आलिंगसु' इय मईए व्व ।।२२३२।। तो सीयलचंदण - सेयतालियंटानिलेण आससिओ । पच्चागयचेयन्नो पलावमह काउमाढत्तो ॥२२३३॥ 'हा ! निक्कारणसत्तोवयारजयकप्पवल्लि ! कत्थ पुणो । दीसिहसि सरससिंगारसंगया मज्झ नयणेहिं ? ||२२३४॥ Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ ॥२२३७॥ ।।२२३८।। ।।२२३९।। नीसेसकलानिलया भूसियभुयणा य अमयनिम्माया । चंदसिरी अंतरिया विडप्परूवेण सा केण ? परदेसे कं दठ्ठे अप्पाणं धीरिही निरेकल्ला ? | कल्लाणभाइणी सा हा हा ! कह दुत्थिया जाया ? को एहि तीए विणा विलाससिरिपमुहनिद्धसहियाहिं । कीलिइ सम्मं मणहरविणोयकीलाहिं अणवरयं ? परिमुसियरयणसारो व्व अज्ज जाओअम्हि ( ऽम्हि ) उक्खयच्छिय (च्छिव्व ) व्व । चंदसिरि ! तुह विओए हाहा हं भट्ठरज्जोव्व कं दठ्ठे संतोसो मह होही विरहियस्स नणु तुमए ? । को निच्छयं करेही तए विणा सव्वसत्थेसु ? कन्नेहिं परं निसुयं बहुदुक्खो जमिह होइ संसारो । तुह दुक्खेणं संपइ सो च्चिय पच्चक्खयं नीओ' एवं चिय विजयवई कवोलतललंबमाणघणकेसा | कुररिव्व करुणसद्दा सविलावं रुयइ दुक्खत्ता हाहा ! हयं म्हि निहि (ह) यं म्हि मंदपुन्ना अपुन्नपच्चासा । छारं दाऊण मुहे अवहरिया जेण मह धूया हा वच्छे ! पेच्छिस्सं पुणोवि कइया इहेव नियगेहे । सुय-सारियासमूहं पाढंती दढमविस्संता ? इह जाओ आसि पुव्विं सुगीयझंकारमुहलमज्झाओ । सालाओ ताओ संपइ अक्कुंदरवो सुणेयव्वो हा पुत्ति ! तुज्झ जम्मेण मज्झ भुयणम्मि पसरिया कित्ती । सच्चिय 'अपुत्तकलियत्ति लोयवाएण पम्हुसिया ।।२२४१।। ।।२२४२॥ ।।२२४४।। ।।२२४५॥ २०५ ।।२२३५॥ ॥२२३६॥ ।।२२४० ।। ॥२२४३॥ Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०६ दट्ठूण तुमं नयणाई मज्झ आणंदबाहभरियाई । ताइं चि तुह विरहे गलंति सोयंसुबिंदूणि ।।२२४६॥ ।।२२४८।। हा हा निरास ! रे रे हयास ! बहु सोयभायण ! असोय ! । किं अवयरियं अम्हेहिं तुज्झ ? जं मह सुया हरिया ! ।।२२४७।। कं पेच्छिस्सं संपइ ? निसुणिस्सं कस्स समयवयणाई ? । आलिंगिस्सं किं वा ? तुमं विणा पुत्त- चंदसिरि ! तं हसियं तं रमियं तं भमियं तं पयंपियं तुज्झ । संभरिऊण न फुट्टइ जं हिययं तं महच्छरियं !” इय एवमाइबहुविहतग्गयगुणसुमरणापबंधेण । मुच्छानिमीलियच्छी पुणो पुणो निवडइ महीए एत्थंतरम्मि अइधीरहियय- पन्नायरेण सकलत्तो । नरनाहो जुत्तिविसेससंगयं भणिउमाढत्तो सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ सव्वन्नुवयणपरिभावणाए तुह देव ! एयमवसाणं । अच्चुज्जलपयइविवेयपरिणई किंतु तुह एसा ते च्चिय मुज्झंति परं आवइकाले न जाण हिययम्मि । विफुरइ गुरुवएसो सुविसुद्धविवेयउज्जोओ गंभीरगुरुगुणाणं फुरंति कह पुत्त - भंडदुक्खाई । संसारसरूवं चिय जाण फुडं कुणइ पडिबोहं ? ।।२२४९॥ 'किं देव ! तुमं कायरनरो व्व अवलंबिऊण दीणत्तं । रुयसि विमुक्कुक्कुंद एत्तियमेत्तं च विलवेसि ? ।।२२५२।। किर को न जाणइ इमं ? सगुणमवच्चं न होइ कस्स पियं ? | धीरेहिं तहवि अविरुद्धसोयनिरएहिं होयव्वं ।।२२५३॥ ।।२२५०॥ ।।२२५१।। ।।२२५४।। ।।२२५५॥ ।।२२५६॥ Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ अइविविहजत्तपरिवालियासु संपुन्नगुणसहस्सासु । वेसासु व धूयासु परोवयारासु को नेहो ? भवियव्वयावसेणं जं जह भव्वं तहेव तं होइ । एएण विलविएणं जइ वलइ सुया न किं वलिया ? || २२५८ ।। जं न निव ! सु ( सू ) वउत्तं हासद्वाणं च जं बुहाणं पि । कह तं कज्जं गंभीर-धीरहियया अणुवंति ? अवहरिया सा तुह दुक्खकारणं खेयरस्स तु सुहत्थं । परियप्पणा दोह वि सुह-दुक्खे न उण तत्तेण जइ ताव वियप्पकयं होइ सुहं अह दुहं च लोयम्मि । अप्पायत्तम्मि सुहे ता किं दुहवियप्पेहिं ? इय देव ! तुज्झ पच्चक्खसव्वसुहुमयरभवसरूवस्स । अम्हारिसोवएसो पयडइ धित्तणं नवरं इय देव ! विसमसंसारपंजरे विविहदुहसलायम्मि । जा निवसिज्जइ ता दुक्खमेव सव्वं न किं पि सुहं' इय एवमाइ पन्नायरेण बहुयं नराहिवो भणिओ । तहवि न धूयाअवहरणसोओ हिययाओ उत्तरिओ लोउवरोह- लज्जाइएहिं कयभोयणाइववहारो । उब्बिग्गमाणसो चिय अणुदियहं अच्छए राया अह सव्वं परिकहियं विलासलच्छीए अवसरावडियं । चंदसिरि-वीरसेणाण वइयरं रायपत्तीए तो चंदसिरीपियविप्पओयदुक्खेण पीडिया देवी । 'विलवइ अणिट्ठसंगमदुहम्मि कह निवडिया धूया ?" २०७ ।।२२५७॥ ॥२२५९॥ ।।२२६०।। ।।२२६१।। ।।२२६२ ।। ।।२२६३ ।। ।।२२६४।। ।।२२६५।। ।।२२६६॥ ।।२२६७।। Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०८ सिरिभुयणसुंदरीकहा॥ मरणं पि हु सलहिज्जइ पविसिज्जइ हुयवहम्मि पज्जलिए । सहिउं न तीरइ च्चिय अणिठ्ठजणसंगमो एक्को ॥२२६८।। इय एवमाइ सव्वं हियए बहु सोइऊण विजयवई । पभणइ विलासलच्छि सगग्गयं वयणविन्नासं ।।२२६९।। 'वच्छे ! न केवलं चिय मह आसि तहेव अज्जउत्तस्स । दायव्वा चंदसिरी कुमरस्स मणोरहो एवं । ॥२२७०।। ता पुत्त ! तुच्छपुन्नाण होइ कहं वंच्छियत्थसंसिद्धी ? ।' इय भणिऊणं देवी सदुक्खमह रोयए बहुयं ॥२२७१।। तो सा विलासलच्छीए कहवि पडिबोहिया महादेवी ।। हिययट्ठियचंदसिरीविसूरियव्वेहिं परिसुसइ ॥२२७२॥ अह जणपरंपराए मुणियं सिरिवीरसेणकुमरेण । जं हरिया चंदसिरी अणिच्छमाणा असोएण ॥२२७३॥ तो विरहदुक्खसंतावनीसहंगो वि पयइगंभीरो । अणुसयवसेण बहुविहवियप्पसयसंकुलो जाओ ॥२२७४॥ 'मह अणुरत्त'त्ति वियाणिऊण विज्जाबलेण अबलाए । अवहरणे तुह सत्ती न उणो मह मूलच्छेयम्मि ॥२२७५॥ अन्नासत्तम्मि पसत्तपाव ! का तुह विवेयसामग्गी ? । नामेण परमसोओ चरिएण य सोयणिज्जो सि ॥२२७६।। जइ जीवइ चंदसिरी जंबुद्दीवम्मि वसइ जइ कहवि । ता गंतूण दुमज्ज(ग्गं?) हाणं आणेमि नियमेण ॥२२७७॥ को इह जुत्ताजुत्तम्मि वियारए मयणपरवसो पुरिसो ? । वल्लहजणाण लग्गाण किं पि जं होइ तं होउ ।।२२७८॥ Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०९ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ ता हं जइ एत्थ निएहिं जणि-जणएहिं कोइ उप्पन्नो । ता जेऊण असोयं हढेण आणेमि चंदसिरिं ॥२२७९॥ जाणामि तीए हिययस्स निच्छयं मरणसमयगयावि । नाहिलसइ तमसोयं महासई जं कुलुप्पन्ना ॥२२८०॥ इय चिंतिऊण हियए काऊण विणिच्छयं सयं चेव । सो वीरसेणकुमरो काउं गुरु-देवपयपूयं ॥२२८१॥ तो अकहंतो मित्तस्स परियणस्स वि य ‘पत्थू(त्थु)यविघायं । मा काही' एक्कंगो विणिग्गओ सो महावीरो ॥२२८२।। तो चउसुं वि दिसासुं सउणं अवलोइऊण उवउत्तो । अणुकूलसउणसूइयदाहिणदिसिसंमुहो चलिओ ।।२२८३।। तो वियडपयक्खेववकृमियधरावीढ-वड्डिउच्छाहो । अगणियमग्गपरिस्समपमुहदुहो वच्चइ तुरंतो ॥२२८४।। 'गोपयमेत्तं वसुहा सारणिमित्तो य सायरो होइ । लहुगंडसेलमेत्ता धरणिहरा वीरपुरिसाण ॥२२८५।। तणमेत्तं पि हु कज्जं मेरुसमं होइ हीणहिययस्स । मेरुगरुयं पि तणमिव अज्झवसइ साहससहाओ ॥२२८६॥ स(सु)कुमारसरीरा वि हु हियए जे वज्जसारघडियव्व । न हु ताण सरीरकयं दुक्खं हिययम्मि बाहेइ' ॥२२८७।। इय एवमाइ कुमरो गरुयावटुंभसंगयं हियए । चिंतंतो संपत्तो कमेण एगं महा[अडविं ॥२२८८।। जा सरलताल-हिंताल-सल्लई-सायसाहिसंकिन्ना । वल्लीवियाण-दढगुच्छ-रुक्खहयपहियसंचारा ॥२२८९॥ 15 Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१० सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ दुमखडियपत्तसंच्छन्नमेइणीमुणियजणअसंचरणा । गयणग्गलग्गघणपत्तसाहिसंच्छन्नरविकिरिणा ॥२२९०।। जा होइ वसंतसिरिव्व विविहतरुकुसुमपरिमलसमिद्धा । अंतेउरवसुहा इव निरुद्धजणनिग्गम-पवेसा ॥२२९१।। पासंडियधम्मकह व्व निहयअन्नोन्नसत्तसंघाया । कौरवसेणव्व निरंतरद्धणुल्लसियघणबाणा ।।२२९२।। धणवालमहाकइभारइ व्व कयतिलयमंजरिविलासा । वेसव्व विडविलोला कइबाणकहव्व हरिसहिया(?) ।।२२९३।। इय सो तत्थेक्कंगो वियडपयक्खेवदलियमहिवीढो । वामेयरदिसितरुगणकोऊहलखित्ततरलच्छो ।।२२९४।। कत्थइ दरियमहाकरिकुंभत्थलकलियकेसरिझडप्पो । अह उठ्ठिऊण तत्तो हरिणा सह कुणइ रणकीलं ॥२२९५।। कत्थइ सुदीहनंगूलधरियकेसरिकिसोरमक्खिवइ । उद्धं भमाडिऊणं मुच्छाविहलंघलं (?) कुणइ ।।२२९६।। कत्थइ अउंव्वसरहावलोयणणु(ण्णु)नकोऊहल्लेण । कीलिज्जइ तेण समं विचित्तकीलाहिं कुमरेण ॥२२९७।। एवं सो अणुदियहं लंघतो तं महाडविं भीमं । तण्हापरिसुसिओट्ठो उदयं अनि(नि)सिउमाढत्तो ।।२२९८॥ सच्चवियं सारस-रायहंसका(भा?)रंड-चक्कवायाण । सद्देहिं सुहसरूवं सरोवरं वीरसेणेण ॥२२९९॥ दूराओ च्चिय दिलै वियडमहापालिवेढियदियंत । भुयवल्लिमंडलेण व वसुहाए व गाढमवगूढं ।।२३००।। Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ नीलतरुसंडमंडलपरिकलियविसालपालिपेरंतं । घणपम्हभूलयावज्जियं च नयणं वसुमईए ॥२३०१॥ जं पलयकालसूसंतसयलजलहीण पूरणत्थं च । अव्वयभंडारं पिव सलिलमयं ठवियमवणीए ॥२३०२।। अंतोफुरंततारं निसासु पडिबिंबएंदुबिंब व । जोण्हाधवलियसलिलं अमहियमिव खीरवारिनिहिं ।।२३०३॥ तस्स परिसंदमाणंबुपूरवसपूरियव्व जलनिहिणो । वेलामिसेण तेणं भरिओ हरियं व्व दावंति ॥२३०४॥ .. दिद्रुण जेण जायइ निरंतरं जलमओ नहमओव्व । जियलोओ विबुहाणं मणम्मि एवंविहा बुद्धी ॥२३०५।। वियसियसयवत्तसुदीहपत्तनयणेहिं बहुप्पयारेहिं । नियतीरं व नियंतं न पेच्छए कहवि अज्जवि य ॥२३०६।। मयरंदसुरहिसीयलसुहारसब्भहियसलिलतण्हाए । . . अप्पाणमप्पणच्चिय कुलीरविवरेहिं पियइ व्व ।।२३०७।। तडतरुणो जललंबिर-विणिंतसाहग्गपत्तजीहाहिं । . अणवच्छिन्नपिवासा जस्स जलोहं लिहंति व्व ॥२३०८॥ जं मंदपवणतरलियतणुसलिलतरंगसंगयावयवं। नं वीरसेणदेसणहरिसवसा कप्पमुव्वहइ ॥२३०९।। जं वियडतडफालणवसपसरियजलकणच्छलेणं व । कुमरस्स कमलदलउडविमीसियं. अग्घमुक्खिवइ ।।२३१०।। इय दठूण कुमारो सरोवरं पढममच्छिवत्तेहिं । पियइ व्व पिपासायास-पहपरिस्समदुहत्तो ।।२३११।। Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१२ अह तत्थ पविसिऊणं मज्जइ संतावतावियसरीरो । कोमलमुणालियाविहियपाणवित्ती जलं पियइ ||२३१२।। तत्तो निग्गंतूणं घणनीलतमालकोमलदलेहिं । अत्थू (त्थु ) रणं काऊणं उल्लरइ खणं परिस्संतो ॥२३१३॥ जावच्छइ सरसोहं पेच्छंतो ताव तक्खण च्चेय । निसुणइ वीणारववेणुमीसियं गीयज्झंकारं ॥२३१४।। सोऊण तं कुमारो गीयरवं उट्ठिऊण कत्थ इमं ? | जा जोयइ ता पेच्छइ सरमज्झे वित्थयं (डं ? ) दीवं ||२३१५॥ चउसुं पि दिसासु अलंघगहिरसरसलिलवेढियं सहइ । जंबुद्दीवं व सुमेरुसरिसपासायकयसोहं ।। २३१६॥ कोऊहले पत्थू (त्थु ) यगमणं पि उवेक्खिऊण रायसुओ । कहमेयं दव्वं गीयं व्व कह सुणेयव्वं ? ।।२३१७ ।। को वा देवविसेसो इह च परिट्ठिओ ? इमे के वा । गायंति तस्स पुरओ पराए भत्तीए कयपुन्ना ? ।।२३१८ || इय चिंतिऊण हियए गमणोवायं अपेच्छमाणो सो । अच्छा उच्छुकमणो कोऊहलपरवसो कुमरो ||२३१९ ।। एत्थंतरम्मि एगो समागओ तत्थ उदयपाणत्थं । वणवारणो महंतो गंडत्थलभमिरभमरउलो ||२३२०॥ तं दट्ठूण कुमारो चिंतइ एयं समारुहेऊण । वच्चामि थेवदूरं तत्तो करणेण गच्छिस्सं ।।२३२१।। तो दूरमुड्डिऊणं आरूढो तस्स खंधदेसम्मि । तो तज्जिओ तुरंतो सरमज्झे गंतुमारो ।।२३२३॥ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ जा जाइ थेवदूरं रायसुओ ताव विविहआवत्ते । पेच्छइ पायालंतरनिहित्तसलिले व सो कूवे ॥२३२४।। दठूण महावत्ते तत्तो अणू(णु)संधिऊण गुरुकरणं । गंतूण दीवमज्झे पडिओ देवंगणपएसे ॥२३२५॥ अणुसंधियकरणवसा पयथामपहावपेल्लिओ दूरं । पत्तो दुवारदेसं सतोरणं देवभवणस्स ||२३२७।। पेच्छइ पुरओ अणवज्जविविहविज्जाहरीण सम्म । पडिसिद्धेयरकज्जं अणुलग्गं देवकज्जेसु ॥२३२८।। कावि करकलियकुंकुमरसच्छडापूरपिहियरबपसरा । संमज्जणेण पुन्नं आवज्जइ बालहरिणच्छी ।।२३२९।। तवे(ब्वे?)लुकंटिय-नट्ठवेंट-सुसुयंधकुसुमपब्भारं । विक्खिरइ कावि भवणे भमंतभमंर(भमरी?)गणाइन्नं ।।२३३०।। इह कावि मज्जणुज्जुय-हल्लफलगइपरिस्समदुहत्ता । निंदइ सथूलथणहर-नियंबभरमप्पणच्चेव ॥२३३१।। पल्हत्थियमज्जणकलससलिलउच्छलियत्थूलबिंदूहिं । हारब्भमं पयासइ पओहरे कावि खयरवहू ॥२३३२।। तह कावि सुरहिसिरिखंडभरियकच्चोलयाओ उच्चिणइ । कुंकुमसंकाए सयं दरारुणे नियनहमऊहे ||२३३३।। वरसुरहिकुसुमपरिमलमिलंतमहुमत्तमहुयरसमूहं । परमेसरपूयत्थं उच्छल्लइ कावि सियमालं ॥२३३४।। डझंतागरु-घणसारसुरहिघणधूमधूवमुक्खिवइ । जय जय सदसणाहं विज्जाहरदारिया कावि ॥२३३५।। समचालियचामरवसरणंतकरकंकणावली अन्ना । - Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ वामकरेण निबंधइ पल्हत्थं केसपब्भारं ।।२३३६।। अन्नाउ पुणो परमेसरस्स करधरियविविहआउज्जा । पुरओ पेच्छणयविहिं कुणंति परमाए भत्तीए ॥२३३७।। इय विज्जाहरिविंदं नाणाविहदेवकज्जउज्जुत्तं । . ठूण वीरसेणो पासायब्भंतरं विसइ ।।२३३८॥ अह ताहिं सो वि दिट्ठो वलंतकंठद्ध-चलियनयणाहिं ।. नलिणीहिं व पवणवसा तरलियकमलंतरदलाहिं ।।२३३९॥ 'को एस ?' त्ति कहं वा एत्तियभूमिं समागओ इहइं ?' । 'अइगहिरसायरायारसरवरं कह णु उत्तिन्नो ?' ||२३४०॥ 'तो सामन्नमणुस्सो न हवइ विज्जाहरो भवे को वि । विज्जाहरामराणं गोयरमेयं जओ दीवं ।।२३४१।। देवो न ताव एसो नयणनिमेसाइएहिं विनाओ । विज्जाहरो वि न हवइ वियाणिमो जेण नियवग्गं' ।।२३४२।। इय एवमाइ तग्गयवियप्पसयसंकुलाण सो ताण । पेच्छंतीण कुमारो पडिओ पाएसु देवस्स ।।२३४३।। पेच्छइ सव्वंगपसंतभावसंभाविउत्तमगुणोहं । अइजच्चकंचणमयं पडिमं सिरिसंतिनाहस्स ।।२३४४।। दठूण बहलरोमंचकंचुयब्भहियमुणियआणंदो । संथुणइ थूलनिवडियनयणंसुकणो जिणं संतिं ।।२३४५।। “लब्धं जन्म यदि प्रकाशिनि कुले लब्धो यदि प्रौढिमा सम्यक् शास्त्रविचारवर्त्मनि यदि स्थूराश्च लब्धा श्रियः ।। लब्धं सर्वमिदं तथापि विबुधैः किञ्चिन्न लब्धं यदि स्फूजन्मांसलमोहकन्दभिदुरा भक्तिर्न लब्धा त्वयि" ॥२३४६।। Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१५ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ इय थोऊण सहरिसं काऊण पुणो पुणो पणामं च । भवणेक्कदेसभाए उवविसइ य सोअसंभंतो ॥२३४७।। तो ताहिं साणुरायं सव्वाहिं समं निहित्तयणाहिं ।। विरइयवियारचेटुं पुलोइओ सो महावीरो ॥२३४८।। आयट्टिऊण पहिरइ पुणो वि कन्नेसु कुंडलं कावि । बंधइ दिढं पि अन्ना धम्मेल्लं पयडियघणंता ।।२३४९।। थरहरियथूलथणवट्ठमंडला का वि कन्नकंडुयणं । काऊण तिरिच्छद्धच्छि-पेच्छिरी नियइ रायसुयं ।।२३५०॥ जहठाणठियं अन्ना वरिल्लवत्थं पुणो वि संवरइ । पयडइ नाहिपएसं अइमयणपरव्वसा का वि ॥२३५१।। इय दद्रूण कुमारं मयणवियाराउराण नारीण । नाणाविहा विलासा उल्लसिया ताण तव्वेलं ||२३५२।। अह ताण पहाणयरा एगा विज्जाहरी अइसुरूवा । संपुन्नमियंकमुही विसालनीलुप्पलदलच्छी ॥२३५३।। अइपीणपओहरभारनामिया गुरुनियंबतणुमज्झा । रंभोरू सुहजंघा कुसु(म्मु)नयचारुचरणजुया ॥२३५४।। नामेण अणंगसिरी सा दऔं वीरसेणमइविवसा । मयणसरसल्लियंगी संजाया तक्खणच्चेय ॥२३५५।। परिहरियसयलकज्जा कुमरेक्कनिहित्तनयणमणपसरा । लेप्पमइयव्व जाया निरुद्धनीसेसतणुचेट्ठा ॥२३५६॥ इय तं तहासरूवं कुमरो दठूण निव्वियारमणो । चिंतइ परजुयईओ एयाओ हवंति हेयाओ ।।२३५७।। ". Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१६ तो झत्ति उट्ठिऊणं विणिग्गओ पणमिऊण जिणनाहं । देवभवणाओ बाहिं सकोउओ नियइ पासायं ।। २३५८।। पडिहयरविरहमग्गो बहुसिहरनिहित्तसियपडायाहिं । पेल्लइ व अमायंतो दिसियक्कं बहुभुएहिं व ॥ २३५९।। पडिबिंबिओ व्व मन्त्रे सुरसेलो एत्थ सरवरजलंमि । एयपमाणो पायं पासाओ जं न वसुहाए || २३६० || इय जाव सो विहावइ विसालपासायरम्मयं परमं । ता चारणमुणिजुयलं अवयरियं तत्थ गयणाओ ।।२३६१।। नमिऊण वीयरायं संतिजिणं कयपयाहिणं पच्छा । बहुफासुए पएसे उवविसइ असोयतरुमूले || २३६२ ।। परिहरियपावपंका अइदुल्ल (ल) हा पावसंगयमईण । अणुवमसुहसंपन्ना दुवे वि सग्गापवग्ग व्व ।।२३६३।। दुद्धरिसमहातवतेयरासिपसरंतपिहुपहावलया । सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ पयडियभुयणपयत्था सपारिवा (वे ) सा ससि रविव्व ॥ २३६४|| तो ते महामुणिंदे दट्ठूणं परमभत्तिसंजुत्तो । पणमइ वसुहातलसंघडंतभालत्थलो कुमरो ||२३६५ || तेहिं पि विसमसंसारसायरुत्तरणदिढतरंडसमो । दिन्नो सायरवयणेहिं धम्मलाहो कुमारस्स ||२३६६।। 'उवविससु 'त्ति पलत्ते उवविट्ठो ताण पायमूलंमि । अणुसासिओ य तेहिं वि समओचियधम्मकहणेण ॥ २३६७ ॥ लद्धावसरो कुमरो पभणइ 'भयवं ! कहेह मह एयं । केण कयं आययणं नाणामणि - कणयरयणमयं ? ||२३६८॥ Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१७ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ एसो य महामोहंधयारविद्धंसणे दिणमणि व्व । अइजच्चकंचणमओ पइडिओ केण जिणनाहो ? ।।२३६९।। एयंपि परमरम्मं अदिट्ठपारं सरोवरं एत्थ । केण खणावियपुव्वं ? सव्वं मह कहह संखेवा' ॥२३७०॥ इय एवं ते पुट्ठा मुणिणो कुमरस्स कहिउमाढत्ता । मणपज्जवनिम्मलनाणनयणविन्नायपरमत्था ।।२३७१।। 'आयन्नसु एक्कमणो सावय ! संखेवओ कहिज्जंतं । जिणभवणसमुप्पत्तिं जणमणआणंदयं परमं' ।।२३७२।। इह अत्थि भुयणपयडा अडई विंझाडइत्ति नामेणं । 'बहुसावयसंकिन्ना चेइयवसहि व्व जा सहइ ।।२३७३।। गुणिणो व्व जत्थ तरुणो विसहियसीयायवा सुपत्ता य । सच्छा य सुहसरूवा परिणइसुहफलभरसमिद्धा ॥२३७४।। वड्ढियपओहराए अइलंघियगुरुमहीहरसयाए । उच्छंगियाए खिज्जइ सुयाए जणणि व्व रेवाए ।।२३७५।। अइदीहरसालभुओ विसालवच्छो सुवित्थयनियंबो । अणुरत्तो व्व न मेल्लइ विंझगिरी जीए सन्नेझं ।।२३७६।। एवंविहाडवीए नग्गोहदुमो विसालघणसाहो । अत्थि नियवित्थरेणं अंतरियदियंतराभोओ ।।२३७७। निवसंति तत्थ बहुविहकोडरविवरेसु सुयसमुग्घाया । नियभज्जाहिं समेया पुत्त-पपुत्तेहिं परियरिया ।।२३७८।। भमिऊण अडविमझे चुणंति जं किंचि वंछियाहारं । पुणरवि संझासमए तहेव रुक्खं अणुसरंति ।।२३७९।। १. बहुश्रावकसंकीर्णा चैत्यवसतिरथ च बहुश्वापदसंकीर्णाऽटवी खंता. टि. ।। Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१८ अह ताण सुयकुलाणं पहाणभूओ विसेसगुणकलिओ । जरजज्जरियसरीरो रायसुओ वसइ तत्थेगो ॥२३८०।। अह तस्स दोन पुत्ता रायसुया संति कोमलसरीरा । कोमलचंचुनिवेसा अइकोमलनीलपक्खउडा ।। २३८१ ।। जणणि जणपाण दूरंगयाण ते उड्डिऊण अन्नदिणे । थेवंतरेण पडिया पुलिंदघणसालिछेत्तंमि ॥२३८२ ।। तो पुव्विं परियप्पिय पासयबंधंमि निवडिए कहवि । दठूण ते पुलिंदो तुरियगई तत्थ संपत्तो ॥ २३८३ ॥ तो छोड़िऊण पासं धरिया ते तेण दोवि बालसुया । दट्ठूण हरिसिएणं पंजरयब्भंतरं छूढा || २३८४।। अह तत्थ सत्थवाहो बहुसत्थसमन्निओ विविहभंडो । नामेण भद्दसेणो समागओ तेण मग्गेण ॥२३८५ ॥ तो घेत्तूण पुलिंदो रायसुए भद्दसत्थवाहस्स । ढोयइ भद्देण तओ निरक्खिया दो वि ते पक्खी ||२३८६ ॥ नाऊण सत्थवाहो विसेसगुणसंगए य ते दो वि । संगहइ तस्स य पुणो देइ पुलिंदस्स उचियत्थं ॥२३८७ ॥ सो भद्दो रायसुए पाढइ कोऊहलेण जं किंपि । तं ताण एकवाराए पुव्वपढियं व संठाइ ॥२३८८॥ एवं ते रायसुया सुय व्व भद्दस्स वल्लहा जाया । पालइ परमसिणेहा संपाइयसयलतक्कुज्जो ||२३८९ ।। अह सो वि भद्दसेणो अणवरयपयाणएहिं संपत्तो । नामेणं रयणउरं नयरं नीसेसगुणकलियं ॥२३९०।। सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ . . Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ तत्थ वि गुरुप्पयावो राया सिरिरयणसेहरो नाम । भज्जा से रयणवई गुणरयणविहूसियसरीरा ।। २३९१ ।। अह रायदंसणत्थं नाणामणि- रयण-वत्थसंजुत्तं । ढोयणियं घेत्तूणं रायगिहं आगओ भो ॥२३९२ ॥ दिट्ठो तेण नरिंदो परमपसाएण तस्स नरवइणा । परिहरियं नीसेसं सत्थस्स वि सुंकमाईयं ।। २३९३ ।। अन्नदिणे नरवइणा भद्दस्स गिहे पओयणवसेण । संपेसिएण दिवं सुयजुयलं रायपुरिसेण ॥२३९४।। सुव्वत्त (न्त ?) वन्नकमफुडपाढं दट्ठूण तमुभयं सो वि । नरवइणो नीसेसं कीरसरूवं परिकहेइ || २३९५|| तो रायिणा वि तुरियं भदं सद्दाविऊण सप्पणयं । मग्गियमुभयं तेण वि भणियं बाहोल्लनयणेण ॥२३९६ ।। 'तुज्झ अलंघं वयणं सुयजुयलं पि हुं अईव मह इट्ठ । सो अज्ज महं जाओ इह केसरि-दोत्तडीनाओ !' | २३९७ ।। तो नाउं अणुबंधं नरवइणो तेण भइसेणेण । आणाविऊण लहुओ दिन्नो कीरो नरिंदस्स ।। २३९८।। आगयमेत्तेणं चिय सुएण जयकारिओ महाराओ । पच्छा फुडवियडक्खरचाडुसरूवं पढइ गाहं ।। २३९९ ।। 'अणवरयं चिय निसुणसु नरिंद ! बंदीकयाण अत्थाणे । अम्हाण चाडुयसए रायसुयाणं अभद्दाण' ॥२४०० ॥ तं सोऊण नरिंदो हरिसवसुप्फुल्ललोयणो सहसा । कोऊहलेण पुच्छइ 'कुसलं तुह कीर ! सव्वदिणं ?' || २४०१ ॥ · २१९ Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२० सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ 'नरनाह ! अकुसलाणं संबंधो कह णु होइ भद्देण । भदाणुहावओ च्चिय जायइ गुणरयणसेहरओ' ।।२४०२।। इय कीरेणं भणिए भणइ नरिंदो 'न एस इयरोव्व । होइ अवण्णाठाणं ता अप्पह मज्झ दइयाए' ॥२४०३।। भद्दो वि पूइऊणं विसज्जिओ राइणा सपरिओसं । निययावासंमि गओ सुयविरहविसेसदुक्खत्तो ।।२४०४।। अणवरयं रयणवई तं रायसुयं सुहासियसयाइं । पाढइ सुयसविसेसं पालइ अइपरमजत्तेण ।।२४०५।। अह तस्स रयणसेहर-रयणवइपाणिपंजरगयस्स । कीरस्स अइक्वंतो सुहेण संवच्छरो एक्को ।।२४०६।। अह अन्नया कमेणं विहरंतो भव्वकमलभाणु व्व । करुणानिज्झरणगिरी पसमामयपुन्नकलसो व्व ।।२४०७।। संसारकेरवरवी विसयमहाविसहराण गरुडो व्व । मोहंधयारमिहिरो कसायसंताववारिहरो ।।२४०८।। बहुसीससंपरिवुडो विसेसगुणरयणरोहणगिरि व्व । नामेण मोहमल्लो आयरिओ तत्थ संपत्तो ।।२४०९।। आवासिओ ससीसो लद्धाणुमई य बाहिरज्जाणे । सज्झायज्झाणनिरओ जा अच्छइ तत्थ सो सूरी ।।२४१०।। ता तस्स विमलवाणीसवणसमुल्लसियहरिसरोमंचा । नायरया अन्नोन्नं तग्गुणगहणं पइ पयट्टा।।२४११।। अह रयणउरनिवासी लोओ सव्वो वि तग्गुणक्खित्तो । वच्चइ सबाल-वुड्डो वंदणवडियाए सूरिस्स ।।२४१२।। Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२१ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ तो सो वि रयणसेहरनरनाहो परियणाओ सोऊण । कोऊहल-भत्तिरसेण पत्थिओ गुरुसमीवंमि ||२४१३।। तो भणइ रायकीरो 'तुब्भेहिं समं अहं पि गच्छामि । दट्ठव्वदंसणेणं पावेमि फलं नियच्छीणं ॥२४१४।। दसणमेत्तेण वि जाण देव ! विहडइ भवंतरकओ वि । पावमलो दट्ठव्वा कहन्न ते होंति मुणिचंदा ? ॥२४१५।। तव्वयणामयसवणेण देव ! जं होइ तं पि पेच्छिहिसि । अणुहवसिद्धं सोक्खं कह तं वायाए तुह कहिमो' ।।२४१६।। तो भणियं नरवइणा 'गच्छामो एहि आरुह करिंमि' । आरूढो सो चलिया समयं ते गुरुसमीवंमि ॥२४१७।। तो नरवइणा भणिओ रायसुओ 'तुज्झ तिरियजायस्स । जो निम्मलो विवेओ अम्हाण न सो मणुस्साण' ।।२४१८।। तो भणइ रायकीरो 'विप्फुरियं तुज्झ पयपसायस्स । जं तिरिओ वि हु तुमए विवेइगणणाए गहिओ म्हि' ।।२४१९।। पुण भणियं नरवइणा ‘जम्मंतरसुकयकम्मअब्भासा । तुह एरिसो विवेओ न उणो अम्हारिसनिमित्तो' ।।२४२०॥ इय राया जपंतो पत्तो उज्जाणदारदेसंमि । उत्तरिऊण गयाओ चलिओ पायप्पयारेण ॥२४२१॥ पेच्छइ राया सूरिं भासुरतवतेयवलयमज्झगयं । पेरंतलुलियपुच्छं भववारणविजयसीहं व ।।२४२२।। जो धम्मदेसणादसणसेयकिरि(र)णोहवारिधाराहिं । थलजलहरो व्वं पसमइ जणाण भवदुक्खसंतावं १२४२३।। Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२२ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ ठूण मोहमल्लं हरिसवसुब्भिन्नपुलयपडहत्थो । वंदइ वसुहाविलुलियकिरीडकोडी महीनाहो ॥२४२४।। अवसेसे य मुणिवरे नमिऊण जहारिहं गुणसमिद्धे । संपत्तधम्मलाभो उवविसइ विसुद्धवसुहाए ॥२४२५।। आणाविओ सहरिसं नरवइणा सो सुओ जणसमक्खं । पणमइ भूनिहियसिरो सूरिस्स इमं च जंपेइ ।।२४२६।। 'तुह दंसणेण मुणिवइ ! जं पुन्नं पावियं मए अज्ज । तेण मह होउ मोक्खो इमामो भवपंजरदुहाओ' ।।२४२७।। इय भणिऊणं विरए कीरे नीसेसजणसमूहेण । कोऊहलेणक्खित्ता तंमि समं नयणनिक्खेवा ।।२४२८॥ तो भणइ सुओ ‘भयवं ! तिरियत्तं जमिह मज्झ संपत्तं । जाणेमि तं उवट्ठियफलमेयं दुकयकम्मस्स ॥२४२९।। एयस्स अवगमो जेण होइ धम्मेण तं महं कहसु । निम्विन्नो म्हि इमाओ सुयत्तजम्माओ मुणिनाह !' ||२४३०।। तो कहइ सजलजलधरगंभीरसरो सुयस्स परिसाए । सूरी अपारसंसारजलहिपोयं व जिणधम्मं ।।२४३१।। संसारनयरमज्झे चउगइचउहट्टमज्झयारंमि ।। नियकम्मवसेण जिओ अणंतवारा परिब्भमिओ ।।२४३२।। नाणाजोणीबहुदुमनिरंतरे एत्थ भीमभवरन्ने । चंचलपयई जीवो परियत्तइ इह यवंगो (पयंगो?) व्व ॥२४३३।। एगिदिएसु जायइ पुढवी-जल-जलण-अनिलभेएसु ।' वणसइ-तसेसु तत्तो किमि-कीड-पयंगमाईसु ।।२४३४।। Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२३ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ पंचिंदिएसु तत्तो जल-थल-गयणयलचारिसु बहूसु । उप्पज्जइ कम्मवसो जीवो सद्धम्मपरिहीणो ॥२४३५॥ ता पंचिंदियजाई तिरिओ सि तुमं भवंतरकयाण । कम्माण अणुहवंतो चिट्ठसि अइदूसहविवागं ||२४३६।। एत्तो तुज्झ विमोक्खो न केवलं कीर ! तिरियभावाओ । जिणधम्मनिच्छयवओ होही संसारमोक्खो वि ।।२४३७।। जिणधम्मो कीर! दुरंतदुक्खसंसारजलहिपडियाण । जीवाण मोक्खपरतडगमणमि तरंडमिव होइ ।।२४३८।। तं नत्थि जं न सिज्झइ जीवाण जिणिंदधम्मनिरयाण । हीणुवमा कप्पद्रुम-चिंतामणिमाइणो तस्स ।।२४३९।। कह ते पडंति अइविसमघोरनरयंधकूवमझमि । संपडइ जाण एसो हत्थालंबोव्व जिणधम्मो ॥२४४०॥ तो तत्थ तएऽवस्सं निव्विन्नेणं सुयत्तभावाओ । परमायरो विहेओ जिणिंदधम्मंमि सुयराय ! ॥२४४१।। सो उण धम्मो दुविहो जइ-सावयभेयओ समक्खाओ । पढमो दसप्पयारो इयरो उण बारसवियप्पो ॥२४४२।। खंती य मद्दवज्जव-मुत्ती-तव-संजमे य बोधव्वे । सच्चं सोयं आकिंचणं च बंभं च जइधम्मो ॥२४४३।। पंच य अणुव्वयाइं गुणव्वयाइं च होति तिन्नेव । सिक्खावयाइं(इ) चउरो गिहिधम्मो बारसविभेओ ।।२४४४।। एयस्स दुभेयस्स उ सम्मत्तं परमकारणं होइ । संकाइदोसरहियं सुहायपरिणामरूवं च ।।२४४५।। Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२४ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ इय एवमाइ गुरुणा वित्थरओ जइ-गिहत्थभेएण । पयडियसुहुमपयत्थो कहिओ जिणदेसिओ धम्मो ।।२४४६।। आयन्निऊण एयं नरवइपमुहाण नयरलोयाण । कीरस्स वि संजाओ तइया जिणधम्मपरिणामो ।।२४४७।। 'इच्छामो'त्ति भणित्ता सव्वेहिं वि मनिओ गुरुवएसो । वयदाणेण वि गुरुणा अणुग्गिहीया जहाजोग्गं ।।२४४८।। एत्थंतरंमि पुरओ ठाऊण सुओ गुरुस्स नमिऊण । बाहोल्लनयणजुयलो विनवइ भवन्नवुवि(व्वि)ग्गो ।।२४४९।। 'भयवं ! परव्वसाणं उव्विग्गाणं पि भवनिवासाओ । चित्ताबाहाए सुहं नित्थरइ न एस जिणधम्मो' ।।२४५०॥ तो गुरुणा भणिएणं नरवइणा सायरं अणुन्नाओ । कीरो गुरूवइ8 गेण्हइ नवकारमिह पढमं ॥२४५१।। तत्तो य जहाभिहियं सावयधम्मं च भवभउव्विग्गो । स कयत्थं मन्नतो अप्पाणं गेण्हइ कीरो ।।२४५२।। तो भणइ सो च्चिय पुणो ‘भयवं ! तुह दंसणेण जाणेमि । जह पंजराओ मुक्को मुच्चिस्सं तह भवाओ वि' ॥२४५३।। नमिऊण मोहमलं नरनाहं पुच्छिऊण रायसुओ । पेच्छंताणं ताणं उड्डीणो गयणमग्गंमि ॥२४५४।। तो वीरसेण ! कीरो सो इहइं आगओ पएसंमि । चिट्ठइ जिणोवइढें पालंतो अविकलं धम्मं ।।२४५५।। अह जो वि भद्दपासे आसि सुओ सो अपुन्नजोएण । पंजरगओ वि खद्धो कहमवि मज्जारपोएण ।।२४५६।। · Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ २२५ . मरिऊण एत्थ रन्ने संजाओ विहिवसेण ओलावो । वुड्डिं पत्तो वियरइ बहुपक्खिगणे विणासंतो ॥२४५७।। अह अन्नया अरन्ने कहवि भमंतेण तेण सेणेण । अइसयबुभुक्खिएणं सच्चविओ सो महाकीरो ।।२४५८।। तो धाविऊण तुरियं झडप्पिओ तेण निरवराहो वि । तेण वि 'नमो जिणाणं' ति भणिय भणिओ य ओलावो ॥२४५९।। 'पडिवालसु सेण ! खणं जाव अहं नियमणे नियमपुव्वं । काऊण अणसणविहिं खामेवि असेससत्ताणं' ।।२४६०॥ तो तेण तस्स तइया वयणं सोऊण सेणविहगेण । ओसरियं सहसच्चिय विम्हयरसपरवसमणेण ॥२४६१॥ तो भणइ कीरराया 'हा ! हा ! मह भाउणा न जिटेण । लद्धो जिणिंदधम्मो एयं चिय बाहए मज्झ ॥२४६२।। पेच्छह विंझाडइवडदुमाओ कह सालिछेत्तमज्झंमि । लद्धा पुलिंदगेणं दिन्ना पुण भइसेणस्स ॥२४६३॥ भद्देण पुणो अहयं दिन्नो सिरिरयणसेहरनिवस्स । सो वि न जाणामि अहं भद्देण कहं पि उवणीओ ॥२४६४॥ एक्कोयरजायाण वि पायं पाणीण होइ हुं विभिन्नो । सुह-असुहकम्मबंधो जह मझं तस्स य सुयस्स ॥२४६५।। तह किंपि मए पुट्विं समज्जियं सुहयरं महापुनं । ... जह मोहमल्लओ च्चिय संजाया जिणमए बोही ॥२४६६॥ तस्स य न तहा जाया जाणामि अओ न तस्स सुहपुन्नं । आसि समज्जियपुव्वं न पाविओ तेण जिणधम्मो' ॥२४६७॥ 16 Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ इय एवमाइ सव्वं अणुसोयंतस्स तस्स ओलावो । तव्वयणं सोऊणं मुच्छाए महियले पडिओ ।।२४६८।। तं दठूण सुएणं करुणारसपरवसेण निच्चेटुं । किं किं ति तेण एवं पयंपियं चिंतियमिमं च ।।२४६९।। 'हा ! नूण बुभुक्खाए जाओ विहलंघलो तओ पडिओ । 'मिच्छामि दुक्कुडं' जं कयत्थिओ एत्तियं वेलं' ।।२४७०।। एत्थंतरे सुएणं सीयलपक्खानिलेण सो सेणो । आसासिओ य सत्थो संजाओ लद्धचेयन्नो ॥२४७१।। एत्थंतरंमि सेणं विसिउं वणदेवयाए परिकहिओ । जाइसरणेण सव्वो वियाणिओ सेणपुव्वभवो ।।२४७२।। 'सोहं जो पुव्वभवे आसि सुओ तुज्झ जेट्टओ भाया । मज्जारेणं निहओ संजाओ सेणओ एण्हि' ।।२४७३।। तो कीरेण वि तइया तस्स कया धम्मदेसणा विमला । एक्कुग्गमणो निसुणइ सेणो वि हु कीरवयणाई ॥२४७४।। हंतूण पाणिनिवहं जो भक्खइ तस्स मंसमइलुद्धो । सो तिलमेत्तसुहत्थी मेरुसमं दुक्खमज्जिणइ ।।२४७५॥ . एक्कस्स खणं तित्ती अन्नस्स य तिहुयणं पि अत्थमइ । एवं कह मारिज्जइ खणसोक्खकएण पाणिगणो ? ॥२४७६।। ते वंचिया वराया परलोयसुहस्स, ताण जम्मो वि । विहलो च्चिय संपन्नो, जाण मई मंसअसणंमि ॥२४७७।। एक्कसरीरस्स कए सभयस्स असासयस्स तुच्छस्स । जे मारयति जीवे ताणं किं सासओ अप्पा? ॥२४७८॥ Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ : २२७ . . गणहा । सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ तो भणइ पुणो सेणो 'विवज्जियं भाय ! मंसमज्जदिणा । अन्नं पि कहसु मज्झं धम्मविसेसक्खरं किं पि ॥२४७९।। तो जह गुरुणा कहिओ धम्मो सम्मत्तभूसिओ अणहो । तेण वि तहेव कहिओ सुएण सेणोवयारत्थं ॥२४८०।। सोऊण तओ सेणो धम्मं सव्वन्नुभासियं तइया । पडिवज्जइ भावेण विसुद्धहियओ तयं सेणो ॥२४८१।। परिवालिऊण धम्मं सुय-सेणा अणसणाइविहिणा य । कयपंचनमोक्कारा मरिउं वेमाणिया जाया ॥२४८२।। सोहम्मे उववन्ना दो वि समं सागराउसो देवा । सुहसागरावगाढा ससिसेहरवरविमाणमि ॥२४८३।। दठूण सुरसमूहं 'जय जय नंद'त्ति जंपिरं, एयं ।। 'मायंदजालमहवा पच्चक्खं वा ?' वियप्पंति ॥२४८४।। नाऊण ओहिणा ते देवत्तं 'किं कयं पुरा पुन्नं । जेणेसा संपत्ता सुररिद्धी' इय विचिंतंति ॥२४८५।। नाउं सुय-सेणभवंतरंमि जिणधम्मरयणसंजोगं । आणंदनिब्भरेहिं कयमणहं देवकरणिज्जं ।।२४८६।। 'नमिमों जिणेसराणं विजियकसायाण निहयदोसाण । भवजलहिपोयभूओ पयासिओ जेहिं वरधम्मो ॥२४८७।। पेच्छ अउव्वा सत्ती तिरिया वि हु फासिऊण जं धमं । पाति देवलोए अइदुल्लहसुरसमिद्धीओ' ।।२४८८।। इय थोऊणं सरहससिरमिलियकरंजली दुवे धम्मं । निययविमाणारूढा चलिया नियपरियणसमेया ॥२४८९।। Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२८ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ गच्छामो तत्थ जहिं सुय-सेणकडेवराई चिट्ठति । जाण पा(प)साएण इमो संपत्तो दुल्लहो धम्मो ।।२४९०।। 'किमणंतभवंतरमित्थ मूढसुर-णरसरीरलाहेहिं ? । एसो च्चिय सलहिज्जइ तिरियभवो धम्मजोएण !' ।।२४९१।। इय जंपंता पत्ता एत्थ पएसंमि सेण-सुयपासे । विहिणा य पूइऊणं कराविओ तेहिं संक्कारो ॥२४९२॥ अह तेहिं पुणो भणियं 'संसारगयाण दुल्लहो एस । जिणधम्मो जीवाणं कम्मपरायत्तचेट्ठाणं ।।२४९३॥ सुरलोयचुयाण जहा जायइ जिणधम्मतत्तविन्नाणं । तह चिंतिमो उवायं जाइस्सरणाइहेउगयं ॥२४९४।। जेण कएणं जायइ कम्मखओ जाइसरणमम्हाण । अन्नेसि पि बहूणं उवयारो कुसलमग्गंमि ।।२४९५॥ तो कुणिमो जिणभवणं नीसेसदुरंतदुक्खनिद्दलणं ।' सपरोवयारहेउं बोहिफलं अन्नजम्मंमि' ॥२४९६।। इय चिंतिऊण एयं तेहिं कयं कणय-रयण-मणिघडियं । सिरिसंतिनाहभवणं भुवणोयरभूसणं रम्मं ।।२४९७।। एसो असारसंसारसायरुत्तरणजाणवत्त व्व । तेहिं चेव जिणिंदो पइट्टिओ परमभत्तीए ॥२४९८।। कहमेयं उव्वरिही पहीणलोयाण दुसमकालंमि. ? । इय पेरंते गहिरं करावियं सरवरं एयं ।।२४९९।। अइवित्थरेण विसुहं गं(ग)भीरभावेण दूरपायालं । कल्लोलेहि य गयणं तिलोयमवि जेण अकृमियं ॥२५००। Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२९ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ तेहिं चिय विणिउत्तो सम्मदि(द्दि)ट्ठी महाबलो जक्खो । सो पडिणीयविघायं अणवरयं कुणइ जिणभवणे ।।२५०१।। अणवरयं कल्लाणय-चाउम्मासाइ पव्वदिव्व(व)सेसु । अन्नेवि सुरा असुरा खयरा इह एंति जत्ताए ॥२५०२।। इय काउं चेइयहरं आसंसारं च तस्स निव्वाहं । कयसंतिपायपूया पुणो गया देवलोयंमि ॥२५०३।। तत्थ वि पयइमणोहरविसयसुहासत्तमाणसा दो वि । भुंजता पुव्वकयं पुन्नफलं तत्थ अच्छंति ॥२५०४।। तत्तो कालक्क(क)मेणं चविया वेयड्डपव्वयवरंमि । सिद्धत्थपुरे राया अमियबलो खेयरो अत्थि ॥२५०५।। भज्जा से सीलवई सीलनिहाणं च तीय गब्भंमि । उप्पन्ना दो वि समं जुवलगभावेण पुत्त त्ति ॥२५०६॥ उचियसमएण जाया कयाइ नामाई ताण जणएण । अकलंक-निम्मल त्ति य कुमारभावं दुवे पत्ता ॥२५०७।। कयदारसंगहा ते भुंजंति जहासुहं विसयसोखं । संसिद्धविविहविज्जा समहियलावन्न-रूवगुणा ॥२५०८।। आबालओ य तेहिं सुधम्मसामिस्स पायमूलंमि । लद्धो संसारमहासमुद्दजाणं व जिणधम्मो ॥२५०९।। भावियजिणवयणत्था अप्पकसाया प्प(प)मायपरिहीणा । पुव्वभवजायनेहा दो वि सुहं तत्थ चे(चि)टुंति ॥२५१०।। अह अन्नया गया ते अट्ठावयसिहरजिणहरहि(ठि)याण । चउवीसाण जिणाणं वंदणवडियाए पव्वंमि ।।२५११।। Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३० सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ दिट्ठो तत्थ गएहिं सोहम्मसुराहिवो विमाणेहिं । झंपंतो इव वियडं नहंगणं पंचवन्नेहिं ।।२५१२।। तो पुव्वगया पूएंति जाव विज्जाहरा जिणवरिंदे । बहुभत्तिनिब्भरुल्लसियपुलयपडला समं दो वि ।।१३।। ता सकेणं दिट्ठा जिणेकगयनयण-हिययवावारा । समकालखित्तदससयपसारियच्छेण परिओसा ॥१४॥ . तो भणिया इंदाणी सुरवइणा 'दो वि लक्खिया एए । जे परमभत्तिजुत्ता तुह पुरओ देवमच्चंति ? ।।२५१५।। एए सोहम्मविमाणवासिणो आसि जे सुओलावा । ते संपइ विज्जाहरजुयलत्तेणं समुप्पन्ना' ॥२५१६।। देवीए तओ भणियं 'जाणामि विसेसओ दुवे जेहिं । वसुहाए परिववियं जिणभवणं सरपरिक्खित्तं' ।।२५१७।। तो सुरवइणा अभिवाइऊण संभासिया दुवे जुगवं । 'किं परमजोइ-महाजोइ ! तुम्ह कुसलं ?' ति ते पुट्ठा ।।२५१८।। तेहिं पि अलक्खियदेवजम्मनामेहिं पभणियं ‘देव ! । तुम्ह पसाएण सया कुसलं चिय अम्ह सुरनाह ! ।।२५१९।। कह नाह ! परमनाणी वि अन्ननामेहिं अम्ह वाहरसि? । अन्नाई चिय सुरवइ ! नामाइं न अम्ह एयाई' ।।२५२०॥ तो सव्वं सुरवइणा विंझाडइ-वडनिवास-सुयमाई(इ) । अट्ठावयपज्जंतं चरियं परिकहियमेएसिं ॥२५२१।। सोऊण पुव्वजम्मं सविम्हयं ताण तक्खण च्चेय । जाइस्सरणं जायं अणुहूयभवेसु पच्चक्खं ॥२५२२।। Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ तो दोहिं वि खयरेहिं भणियं 'सुरनाह ! सुरभवपसिद्धं । नामजुयलं तह च्चिय जह पुट्विं वन्नियं तुमए' ॥२५२३॥ तो सुरवइणा सव्वं चउवीसजिणेसराण पूयाइं । निव्वत्तिऊण भणियं 'जामो अकलंक ! तुह भवणं' ॥२५२४॥ .. ‘एवं' ति तेण भणिए चलिओ इंदो समं सुरगणेहिं । अकलंक-निम्मला वि य चलिया नियपरियणसमेया ।।२५२५।। पत्ता खणंतरेणं सुरवइपमुहा सुरासुरा एत्थ । अकलंक-निम्मलजुया ओयरिया भवणपंगणए ॥२५२६।। आगयमेत्तेहिं तओ पारद्धा संतिनाहसामिस्स । नियभत्ति-विहवसरिसा पुरंदराईहिं वरपूया ।।२५२७।। पक्खुहियखोणिवीढं संचल्लियसयलतुंगकुलसेलं । ज्झलज्झलियजलहिसलिलं पणच्चियं तत्थ सुरवइणा ॥२५२८॥ इय काउं पेच्छणयं पुरओ परमेसरस्स सुरराया । अकलंक-निम्मलाणं कुणइ पसंसं सुरसमक्खं ॥२५२९।। 'धन्ना तुम्हे सहलं सुरत्तणं तुम्ह चेव संपत्तं । जेहिं तं पाविऊणं करावियं एरिसं भवणं ॥२५३०॥ ते चेव बुद्धिमंता जे रिद्धिं पाविऊण अइचवलं । एवंविहोवओगेहिं अक्खयं पुन्नमज्जंति ॥२५३१।। को ताण मुणइ संखं नराण लच्छीए जे च्छलिज्जति । संता वि जेहिं छलिया लच्छी ती एत्थ दोनित्तिन्नि . (ते एत्थ दो तिन्नि) ॥२५३२।। परिणामभंगुराए खणसंगमदिन्नतुच्छसोक्खाए । वेसाए संपयाए व बुहाण न हु जायइ थिरासा ॥२५३३।। Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३२ इय एवं नाऊणं नियसत्तिसमं समुज्जमो जेहिं । न कओ धम्मगुणेसुं सव्वं पि हु निफ (प्फ) लं ताण' ॥२५३४॥ तो सुरवइणा भणियं 'तुम्हेहिं वि भव्वमेव कयमित्थ । जिणभवण- सराणं पुण अहं करिस्सामि नामाई || २५३५ ।। तो पुणरवि जिणपूयापुव्वं नीसेससुरयणसमक्खं । अइहरिसिएण हरिणा जहत्थनामाई रइयाई ।। २५३६ ।। अकलंकं जिणभवणं सरोवरं निम्मलं ति दोहं पि । नामेण ताण कमसो कयाई नामाई सक्केण ॥२५३७।। इय एवं बहुमाणं काऊणं ताण खयरकुमराण । नीसेससुरसमेओ निययावासं गओ सको ।।२५३८|| अकलंक - निम्मला वि य सिद्धत्यपुरं गया सुहं तत्थ । अच्छंति धम्मनिरया विसयसुहेसुं निरहिलासा ||२५३९|| अह अन्नदिणे दिट्ठ जालगवक्खट्टिएहिं दोहिं पि । सेडियरेहासरिसं नहंमि ईसीसि सरयब्भं ।। २५४० ।। पुव्विं सूलसमो कमेण य ठिओ गंगातरंगोवमो । पच्छा तुंगतुसारसेलसरिसो च्छन्नंबरो वित्थओ | पेच्छंताण खणं स एव जलओ दुव्वारवाओक्खओ । दोखंडो तिदलो बहूकयदलो नट्ठो गओ कत्थ वि ।। २५४१ ।। तं दट्ठूणं पभणइ अकलंको 'पेच्छ निम्मल ! खणेण । कह पच्छाइयगयणो खणेण कह विहडिओ मोहों ।।२५४२ ।। एसो च्चिय पच्चक्खो दिट्टंतो हणइ मोहतिमिरोहं । पयडंतो विबुहाणं खणभंगुरयं पयत्थाण ।। २५४३ ॥ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ २३३ कह कीरउ संसारे उवरिट्ठियकालदंडभीमंमि । सिरि-सयण-विसयमाइसु वामोहफलेसु पच्चासो ॥२५४४।। कह लच्छीए (च्छिए) स्थिरासा कीरइ जा विज्जुलव्व खणदिट्ठा । उज्जोओ वि य जिस्सा होइ निमित्तं पमोहस्स ॥२५४५।। नेहक्खयं कुणंती पज्जलइ य सगुणवट्टिसंगेण । दीवयसिहव्व लच्छी अत्थि(थि)र च्चिय बहुअवाएहिं ॥२५४६।। संता वि घरे लच्छी वाहि-जरा-पियविओय-मरणाइं । न हरइ न य अणुयत्तइ एसा जम्मंतरगयं पि ॥२५४७।। को पडिबंधो सयणाइएसु परमत्थओ परजणेसु । धम्मंतरायहेउसु संसारनिवायबंधूसु ॥२५४८।। जइ ता रोगाभिहयं नाणाविहवेयणाअभिद्दवियं । मरमाणं पि न रक्खइ ता किं सयणस्स सयणत्तं ॥२५४९।। रच्चिज्जइ तुच्छसुहे बहुदुक्खफले वि विसयसोक्खंमि । जइ न हवंति सुदुस्सहपियविरहदुहाई कइया वि ॥२५५०।। अणुहूयं सुरलोए विसयसुहं तेण नागया तित्ती । ता कह संपइ होही रंकसुहेणं व एएण ।।२५५१॥ ता सव्वहा विणिज्जियसुरासुरो जाव पसरइ न मच्चू । ता वयगहणेणम्हे पावेमो जम्मसाफल्लं ॥२५५२॥ तो निम्मलेण भणियं ‘एवं एयं न अन्नहा भाय ! । गुरुयणलद्धाएसा तुरियं कज्जे पयट्टम्ह' ।।२५५३।। आपुच्छिऊण जणणिं जणयं च सुधम्मसामिपासंमि । अकलंकजिणाययणे इहेव ते दो वि निक्खंता ॥२५५४।। Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३४ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ ता सावय ! अम्हे ते अहं सुओ एस भायरो सेणो । इय कहियं संखेवा तुमए पुढे असेसं पि' ।।२५५५।। सोऊण वीरसेणो भणइ पुणो ‘विम्हयावहं तुम्ह । चरियं न कस्स निसुयं जणेइ गरुयं चमक्कारं ! ।।२५५६।। अच्छरियमिणं जं किर कीरो पडिबोहिऊण ओलावं । धम्मपहावेण गओ सुरलोयं सेणयसमेओ' ।।२५५७।। तो भणइ पुणो साहू 'सावय ! एयं न किंपि अच्छरियं । नत्थि असझं भुयणे धम्मस्स जओऽणुचिन्नस्स ॥२५५८।। मेहो व्व अरुहधम्मो असेससत्ताण हणइ संतावं । नर-तिरियाइ अकारणमिह वत्थुसरूवमेवेहं(दं?) ।।२५५९।। एसो जिणिंदधम्मो निप्फन्नरसोव्व सव्वलाहाण । जीवाण परिणमंतो पयडइ परमत्थविन्नाणं ॥२५६०।। एसो कालंतरसंचियं पि संजणियविविहदोसं पि । तणुसुद्धिओसहं पिव विरेयए सव्वपावमलं ।।२५६१।। चिट्ठउ ता दूरे च्चिय एयस्स विसेसओ अणुढाणं । सद्दहमाणो वि इमं पावविसुद्धिं नरो लहइ ॥२५६२ ।। चिंतामणी पयासइ चिंतियमेत्तं न समहियं अत्थं । जत्थ न पसरइ चिंता सिवसोक्खं देइ तंमि इमो ॥२५६३।। एसो न होइ सुलहो जीवाणं पावपडलपिहियाण । जेणेह कारणेणं समासओ तं पि निसुणेसु ॥२५६४।। इह चउरासीदुहजोणिलक्खविसमंमि भवसमुदंमि । थावर-जंगमभेयाऽढविहा जीवा समक्खाया ।।२५६५।। Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ पुढवाईसु असंखा ओसप्पिणि-सप्पिणीओ चउसु पि । ताओ चेव अणंता वणसइकाए वसइ जीवो ॥२५६६।। तत्तो वि जंगमत्तं किमि-कीड-पयंगमाइ अइदुलहं । पंचिंदियत्तजम्मो तत्तो वि हु दुल्लहो होइ ॥२५६७।। खर-सरभ-वसह-महिसुट्ट-मेस-पसु-ससय-सूयराईसु । पंचिंदियतिरिएसुं धम्मअजोगेसु संभवइ ।।२५६८।। .... तत्थ वि य सबर-बब्बर-तुरुकू-भिल्लाइबहुपयारेसु । पावइ पाववसेणं अणज्जखेत्तेसु मणुयत्तं ॥२५६९।। अह कह वि मणुयजम्मं आरियक्खेत्तेसु पावए जीवो । चंडाल-डोंब-धीवर-पारद्धियजाइओ होइ ॥२५७०।। अह पावइ जाइ-कुलं तत्थ वि बहिरंध-पंगु-कुज्जतणू । वियलंग-कांण-कुंटो रूवविहूणो नरो होइ ॥२५७१।। सव्वंगसुंदरो वि हु जायइ बहुवाहिवेयणाभिहओ । जर-खास-सास-हरिसा-गुलुम्म-खयरोगविद्दविओ ।।२५७२।। आरोग्गे वि हु लद्धे तत्थ वि अप्पाउओ नरो होइ । सूलाहि-विस-विसूइए(अ-) सत्थाभिहओ खणे मरइ ।।२५७४३।। दीहाउए वि लद्धे तत्थ वि बहुकोह-माण-मायाओ । अइलोह-राग-दोसा कस्स वि पयईए जायंति ।।२५७४।। पयइविसुद्धमणु(ण)स्स वि न होइ धम्मंमि कह णु उल्लासो । अह होइ सो वि तत्थ वि भाविज्जइ बहुकुधम्मेहिं ।।२५७५।। अह पुव्वपुन्नपरिणइवसेण जिणधम्मवासणा होइ । तत्थ वि धम्मुवएसं जो देइ स दुल्लहो सूरी ।।२५७६।। Page #245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३६ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ अह लहइ धम्मसूरिं सुणइ य तस्संतिए परमधम्मं । तत्थ वि न कुणइ सद्धं मुज्झइ पत्ते वि तत्तंमि ॥२५७७ || इय सावय ! जिणधम्मो अवायसयसंकुलंमि संसारे । भणियपयारेण इमो अइदुल्ल (ल) हो होइ जीवाण ।। २५७८ ।। ता लद्धे मणुयत्ते असेसगुणसंजुए महाभाय ! | तत्थेव अणन्नमणो जिणधम्मे आयरं कुणसु' ।। २५७९ ।। इय भणिए मुणिवइणा पडिहयगुरुनिबिडमोहपिहुपडलो । निम्महियमिच्छभावो समुइयसम्मत्तपरिणामो ।। २५८० ।। संकाइदोसरहिओ अब्भुवगयसावओइयवओ य । सिरधरियपाणिकमलो भणइ इमं वीरसेणो वि ।। २५८१ ।। 'भयवं ! न मज्झ सत्ती अज्ज वि संपss साहुधम्मंमि । [ तो ] कुसु मह प ( प ) सायं संपइ गिहिधम्मदाणेण ॥२५८२॥ तो ' एवं 'ति भणित्ता अकलंकमुणीसरेण कुमरस्स । पंचनमोक्कारकमा गिहिधम्मवयाई दिन्नाई ॥ २५८३ ॥ अणुसासिओ य मुणिणा विसेसवयणेहिं बहुविहं कुमरो । धम्मुज्जमत्थमेवं कयंजली सो वि पडिभाइ ।। २५८४ | 'भयवं ! अणुगि (ग्गि) हीओ गिहिधम्मपयाणओ विसेसेण । एयस्स पालणेणं तुम्हाएसं करिस्सामि ॥। २५८५ ।। भयवं ! वच्चामि अहं विसेसकज्जेण दाहिणदिसाए । उच्छू (च्छु)क्कस्स न विसहइ कालविलंबो खणं काउं' ।। २५८६ ।। तो भणिओ मुणिवय (इ) णा रायसुओ 'सरवरं कह गंभीरं । उत्तरिहिसि निरुवाओ जेण इमं भणसि 'गच्छामि' ? ॥२५८७॥ Page #246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ ता एत्थं नवकारं विहिणा एएण झायसु ममि । थंभियसरजलहिजलो वच्चसु जहइच्छयं ठाणं ।। २५८८ ।। पाविह (हि)सि वंछियत्थं सावय ! अविसाय (इ)णा य होयव्वं । जं अविसाइयपुरिसो तं नत्थि न जं पसाहेइ' ।। २५८९ ।। भणिउं 'महापसाओ'त्ति ताण नमिऊण वीरसेणो वि । जवियनमोक्कारपओ सरस्स पत्तो परं तीरं ॥ २५९० ।। ता वच्चइ चिंतंतो पहंमि लद्धं जमेत्थ अइदुलहं । जिणवयणं रन्नमि वि पाविज्जइ जं पुरा विहियं ।। २५९१ । कहमेत्थ ममागमणं ? जिणिंदभवणं व कह णु रन्नंमि ? । अकलंक - निम्मलाणं च दंसणं कह व अइदुलहं ? ।। २५९२ ॥ ता जह एयं मह पुव्वपुन्नपरिणइवसेण संजायं । चंदसिरिदंसणं चिय तहेव होही न संदेहो ।। २५९३ ।। वच्चइ विसमपयाणयनिहयबुभुक्खा - तिसो महावीरो । हिययट्ठियजायामुहमियंकपीऊसतित्तो व्व ॥२५९४।। दंसणपलाणहरिणीदरवलियविसाललोयणविलासे । दट्ठूण सरइ सरसे चंदसिरीनयणनिक्खेवे ।।२५९५।। तो तुरियपयं परंपरपरिवाडी - लंघियाडविपएसो । पत्तो कमेण कुमरो वणपेरंत (ते ? ) पुरं एगं ।। २५९६ ।। अत्थंगयमि सूरे पुरस्स जा जाइ नियडभूभागे । अभिमुहमागच्छंतं ता पुरलोयं पुरो नियइ ।। २५९७ ।। भयतरलतारयच्छं पच्छाहुत्तं पलोयमाणं च । कडि-खंध- पुट्ठिसंठियरुयंतबहुबालयसमूहं ॥। २५९८ ।। २३७ Page #247 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३८ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ भयवेविरोरुयाओ थरहरियथणंतरालहाराओ । विसमपयक्खेवविहडियमंथरगइगमणलीलाओ ॥२५९९।। परिच्छु(छु)डियकेसपासाओ पडियसियकुसुमसुरहिदामाओ । तरलच्छितारयाओ पेच्छइ सो वारनारीओ ॥२६००। चत्ताओ(उ) पलंबिरभुयजुयलं मुक्वविक्कमुक्करिसं । अवलंबिय दीणत्तं नियइ पलंतं सुहडसेन्नं ॥२६०१।। अइतिक्खखुरुक्खयखोणिवीढरयपसरपूरियदियंतो । अगणियखत्तायारो ससाहणो पलइ नरवालो ॥२६०२।। 'परित्ता(ता)यहि'त्ति भणिरिं पियभज्जं पिठ्ठओ परिच(च्च)यइ । नियपाणरक्खणटुं पलइ नरो को वि गयलज्जो ॥२६०३।। चइऊण पियं पुत्तं रिक्खंतं पिट्टओ भउब्भंतं । आसंघियवयणीया पलाइ कुलबालिया का वि ।।२६०४।। चइऊण अवयणिज्जं अइसयजरजज्जरंगबहिरंधे । जणणि-जणए वि सभए पलायि पुत्तो तुरियतुरियं ।।२६०५।। अनो(नो)न्नावीडणसंघडंतजणरुद्धवियडमग्गंमि । ओयारमलहमाणो पलायए उप्पहं लोओ ॥२६०६।। इय पुरओ पुरलोओ पलायमाणो वि पेक्खिय कुमारं । निब्भयसरूवदंसणसविम्हओ तक्खणे जाओ ॥२६०७॥ अवलोइओ भडेहिं पडिहयसुहडत्तदीणवयणेहिं । . नियविक्कमओहावियतेलोक्कभडो महावीरो ।।२६०८॥ ईसि ईसि(ईसीसि) विहसिऊणं दरदक्खिणबाहुक्खि(खि)त्तनयणेण । पुट्ठो पलायमाणो ‘किंकि'न्ति जणो कुमारेण ॥२६०९।। Page #248 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ तदंसणेण पसरियबहुमाणं पुरजणेण सो भणिओ । ' मा वच्च पुरो सुंदर ! मग्गाहुत्तं अवक्कमसु ॥२६१० ॥ तो भइ वीरसेणो ' मग्गाहुत्तं न किंपि मह कज्जं । पुरओ च्चिय वच्चिस्सं विसेसकज्जेण उच्छुक्को' ॥२६११॥ तो लोएणं भणिओ 'इहइं गमिऊण रत्तिमडवीए । गोसे गच्छेज्ज पुणो' इय भणिए भणइ कुमरो वि || २६१२॥ ' मा भाह कहह मज्झं उभा ठाऊण किं भयं तुम्ह ? | मोक्कलकेसा एवं गयलज्जा जेण नासेह ? ।।२६१३।। अवहेरिऊण बाले जुवइयणं छडि ( ड्डि ) ऊण विलवंतं । नियपाणरक्खणपरा पलाह को तुम्ह पुरिसगुणो ? ।। २६१४ ।। इहरा वि हु मरियव्वं कइवयदियहेहिं मरणधम्मीहिं । तं जइ परोवयारंमि होइ ता किन्न पज्जत्तं ? || २६१५॥ भीयपरित्ताणक मरणं पि महूसवो सुवीराण । अकयपरित्ताणाणं जीयं पि हु ताण मरणसमं' ||२६१६ ।। इय सोउमसुयपुव्वं सावट्ठभं कुमारवयणमिणं । आससिएण व सो च्चिय जणेहि बहुएहि परियरिओ || २६१७ ॥ अह बाल- तरुण - परिणयवयसेहिं नर (रि) त्थि - पौरलोएहिं । ' हा रक्ख रक्ख सामिय !' इय भणिओ दीणवयणेहिं ॥ २६१८।। ' मा बीहह ! जाव अहं पाणे धारेमि ताव को तुम्ह । जोयइ मुहं पि ?' भणिओ कुमरेणं सव्वपुरलोओ ॥२६१९ ॥ एत्यंतरंमि दठ्ठे नाणाविहलोयवेढियं कुमरं । तं नयरनरवई चिय तुरयारूढो तहिं पत्तो ॥ २६२० ॥ २३९ Page #249 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४० सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ दिट्ठो सो भयवेविरजणेहिं परिवेढिओ नरिंदेण । पवणपहल्लिरवणराई(इ)परिग(ग्ग)ओ सेलराओ व्व ॥२६२१॥ दछृणं नरनाहो उदारसत्तं अखुद्धहिययं च । संधीरंतं पेसलकरुणवयणेहिं पुरलोयं ।।२६२२।। उत्तरइ तरलतुरयाओ तुरयपयक्खेवमुणियबहुमाणो । संभासइ रायसुयं सिणेहसारेहिं वयणेहिं ।।२६२३।। 'कुसलं तुह वीर ! कुओ भवं ?' ति पुट्ठो भणेइ ‘अज्जेव । तुह दंसणेण कुसलं नासिकपुराओ(उ) पहिओ म्हि' ।।२६२४।। पुणो(ण) भणइ वीरसेणो ‘इहेव नग्गोहरुक्खमूलंमि । उवविसिय कहह मज्झं नरिंद ! भयवइयरमसेसं' ॥२६२५।। 'एवं'ति पभणिऊणं राय-कुमारा य पौरलोओ य । उवविसइ तओ राया कहेइ कुमरस्स भयहेउं ॥२६२६।। 'वीराहिराय ! निसुणसु जं वित्तमिहासि पुव्वकालंमि । अच्चब्भुयवुत्तंतं वन्निज्जंतं समासेण ॥२६२७।। एत्थेव वीर ! नयरे आसि पुरा पयडविक्कमपयावो । नामेण समरसीहो राया विद्दवियपडिवक्खो ॥२६२८।। तस्स सुवंसुप्पन्ना वच्छत्थलकंठघोलिरा अत्थि । नामेण विजयसेणा पियभज्जा हारलट्ठि व्व ॥२६२९।। ताणमहं धन्नाणं पुत्तो नामेण विस्ससेणो त्ति । नियवंसविणासयरो फलं व वंसस्स संपत्तो ॥२६३०।। पत्तो कुमारभावं कलाकलावं च गाहिओ तेहिं । एवं तत्थ ठियाणं वच्चंति दिणा सुहं अम्ह ॥२६३१॥ • Page #250 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४१ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ अह तत्थ वीरनयरे पुज्जो तायस्स अत्थि परमगुरू । वेउत्तधम्मनिरओ भट्टो महसूयणो नाम ॥२६३२ ।। अहिगयचउवेयत्थो वेयत्थेणं च कुणइ जन्नाई(इं) । पसुमेहमाइयाइं अणवरयं सम्गगमणत्थं ॥२६३३।। बलि-वैसदेव-संज्झा-गोपूया-विप्प-पियरपूयाओ । सो कुणइ अविस्संतो तिकालण्हायी असुन्नी ॥२६३४।। तो तेण अम्ह जणणी-जणओ सपरिग्गहो पुरजणो य । नियवेयविहाणेणं पवत्तिओ निययदिक्खाए ॥२६३५॥ नारायणचरणच्चण-निरयाण निरंतरं जणवयाण । समइक्वंता बहुया दिवसा तद्धम्मनिरयाण ॥२६३६।। अत्थि य सुकुलुप्पन्ना सोमा नामेण बंभणी तस्स । तिस्सा उयरुप्पन्नो अत्थि सुओ नाम अनिरुद्धो ॥२६३७।। सो सयलकलानिलओ अहीयनियधम्मसत्थसारो य । चउवेई पिउभत्तो लोईववहारकुसलो य ॥२६३८।। जोग्गो त्ति जाणिऊणं नियाहियारंमि ठाविओ तेण । महसूयणेण नरवइनयरसमक्खं पिओ पुत्तो ||२६३९।। महसूयणो य जाओ वेउत्तविहीए भगववयधारी । परिहरियसव्वसंगो जइधम्मविसेसकम्मरओ ॥२६४०॥ चइऊण नयरमेयं विणिग्गओ तित्थदंसणनिमित्तं । भमिऊण सयलवसुहं पत्तो वाणारसिं नयरिं ॥२६४१॥ गंगातीरे कोमलपुलिणत्थगंमि(त्थोऽगम्म?)ज्झाणमारूढो । 'अवहूय-भिक्खमोई अच्छइ सो तत्थ बहुदियहे ॥२६४२॥ 3. अवधूत, खंता. टि. ।। Page #251 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४२ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ अह तस्स कम्मपरिणइवसेण जाओ अईव दुव्विसहो । निहयसुहज्झवसाओ खयवाही अकयपडियारो ॥२६४३।। तो तेण महापीडा विहलंघलमाणसेण नियचित्ते । चिंतियमिणं जहा मे सिद्धं सव्वं पि जं सज्झं ।।२६४४।। उत्तमंबंभणजाई अहीयवेओ य विविहकयजत्तो । नीसेसबम्हकिरियापरिपालणपत्तब(प)हुधम्मो ॥२६४५।। नियधम्माणुट्ठाणे लोओ वि मए पयट्टिओ बहुओ । न कयाइ मए भुत्तं सुद्दन्नं पूइओ विण्हू ॥२६४६।। जणिओ य अप्पसरिसो पुत्तो जो किर मयं पि मं पच्छा । नेही उड्डगईए पिंडपयाणाइकिरियाहिं ।।२६४७॥ तित्थेसु अहं पहाओ लद्धचउत्थासमो जई जाओ । वाणारसी वि पत्ता गंगातीरं च अइदुलहं ।।२६४८।। एक्कक्केण वि कम्मेण मज्झ सग्गो करट्ठिओ होइ । किं पुण सग्गनिमित्तेहिं तेहिं बहुएहिं वि न होही ॥२६४९।। ता संपइ गंगाए सग्गारोहाहिरोहणिसमाए । पक्खिविऊणं देहं वच्चामि सुहेण सग्गमहं ॥२६५०।। इय चिंतिऊण तेणं तहेव संपाडियं सुरसरिम्मि । उब्बुड-निबुड्डणए काऊणं सो मओ बहुए ॥२६५१॥ एवं सो मरिऊणं गंगासलिलंमि नियइवसवत्ती । . एत्थेव वीरनयरे संजाओ रक्खसो रोद्दो ॥२६५२।। आलोइओ य सव्वो विहंगनाणेण तेण पुव्वभवो । नियजाइपच्चएणं अईव कूरत्तणं पत्तो ॥२६५३॥ Page #252 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ २४३ कीलाविणोयहेउं घायइ सो विविहपाणिसंघायं । बहुमज्ज-मस-रुहिरा कीला वि मणोहरा तस्स ॥२६५४।। अह अन्नया ठिओ सो गयणयले भणइ क(क)कससरेण । ‘रे समरसीह ! निसुणसु सोऽहं जो आसि तुज्झ गुरू ॥२६५५।। महसूयणोत्ति नाम(मो) संजाओ बम्हरक्खसो एण्हि । मह नरबलिं पयच्छसु निच्चं चिय पुरपरिब्भमणं' ।।२६५६।। तव्वयणं सोऊणं जाओ पुर-जणवओ य भयभीओ । किंकायव्यविमूढो चिंताजलहिंमि व निमग्गो ॥२६५७।। हा ! हा ! सो बहुजन्नी पालियकिरिओ अहीयचउवेओ । भगवजई वाणारसि-गंगाए मओ समाहीए ।।२६५८।। कयउद्धदेहकिरिओ अनिरुद्धणं न किं गओ सग्गं । गयणंमि बंभरक्खसभावं जं पयडए एस ? ॥२६५९।। जइ नाम रक्खसो च्चिय संजाओ पुव्वकम्मदोसेण । ता कह अवयाररओ संजाओ निययसीसाण ? ॥२६६०।। सा भत्ती सो पणओ सो बहुमाणो य तं महादाणं । अम्हेहि जं कयं किर वीसरियं तं पि एयस्स ? ॥२६६१॥ इय जा चिंतइ राया ता सो पुण भणइ कढिणवयणेहिं । 'रे! रे! किं न पयच्छह पडिवयणं मह भणंतस्स?' ॥२६६२।। तो ताएणं आलोच्चिऊण पुण रक्खसो इमं भणिओ । 'पुव्वावत्थाओ तुमं अहिययरं संपयं पुज्जो ।।२६६३।। भणसु किं तुज्झ कीरउ ?' इय भणिए रक्खसो पुणो भणइ । 'निच्चं नरबलिदाणं निसि नयरविहारमवि देह' ॥२६६४॥ Page #253 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४४ तो ताएणं भणिओ 'मा एवं भणसु पुरिसबलिनामं । अन्नं चिय मग्ग तुमं बलि- बकुल-पोलियाईयं || २६६५ ।। नयरविहारे बीहइ घोरं तुह दंसणं निएऊण । बाल (लि) त्थिभीरुलोओ ता चयसु इमं पि कुग्गाहं' ||२६६६ ।। पुण भइ रक्खसो सो नाहं बलि- बकुलेहिं तूसामि । सीहस्स व आहारो मंसं चिय रक्खसजणस्स ॥२६६७ ॥ आबालभावओ च्चिय एयं मह राय ! वल्लहं नयरं । मग्गेमि तेण नरवर ! नयरविहारं पयत्तेणं' ||२६६८ ॥ पुण ताएणं भणिओ 'मा एवं अम्ह देहि आएसं । नाऽहं तुह दाऊणं लोयं रक्खेमि अप्पाणं ।। २६६९ ।। अजहत्थमेव जायइ नामं मह खत्तिय त्ति जं रूढं । जं खत्तिओ स भन्नइ “खयाओ जो तायए लोयं” || २६७० ॥ एत्यंतरंमि सोउं वयणं तायस्स रक्खसो भणइ । 'जइ एवं ता रक्खसु नियलोयं को निवारेइ ? || २६७१ ॥ रयणीए पुरपवेसं न पयच्छसि मा पयच्छ को दोसो ? | अम्हे रक्खसजायी च्छलेण कज्जाई साहेमो' || २६७२ ॥ सोऊणं साणुसयं वयणं ताओ भणेइ मंतियणं । 'जं इह समए जुत्तं कहेह तं मज्झ कायव्वं' ||२६७३ ॥ तो भणइ मंतिवग्गो 'न देवकज्जेसु अम्ह मंतगई । पुरिसायत्ते कज्जे अम्हं पसरंति बुद्धीओ || २६७४ || पुण ताणं भणिया ते मंती निच्छिओ मए मंतो । नियदेहपयाणेणं रक्खामि जणं पिसायाओ || २६७५ ।। सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ Page #254 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ कन्ने ठइऊण तओ मंतियणो भणइ देव ! न हु एयं । . अप्पपरिरक्खणेणं जं होइ तयं पसाहेह ।२६७६॥ देसेण परियणेण य पुरेण लोएण अत्थनिवहेण । अप्पेव रक्खियव्वो नरवइणा सव्वजत्तेण ।।२६७७।। परिरक्खियनियदेहो कालं लहिऊण लहइ सव्वंपि । इय देव ! अम्ह मंतो अओ परं मुणसि तुममेव' ।।२६७८॥ पुण ताएणं भणियं 'किं न सुयं पुव्वमेव मह वयणं । 'परपाणपयाणेणं नाऽहं रक्खामि अप्पाणं' ? ॥२६७९॥ किं बहुणा भणिएणं ? सधिया मह दोहयाए जइ कुणह(?) । परउवयारत्थं मे पयट्टमाणस्स उवघायं' ॥२६८०।। एत्थंतरंमि भणिओ ताएणं रक्खसो इमं वयणं । 'नीसेसलोयठाणे रक्खस ! मं चेव भक्खेसु' ॥२६८१।। तो रक्खसेण भणियं ‘एको वि न सो नरिंद ! तुह अत्थि । पुरिसो जं पइदियहं मह देसि जमप्पणा ढुक्को ?' ||२६८२॥ तो भणइ पुणो ताओ ‘असेसपुरिसाहिवो अहं एत्थ । अप्पंमि मए दिन्ने सव्वंपि हु जाण तुह दिन्नं' ||२६८३॥ ‘एवं होउत्ति तओ भणियं रक्खेण 'होसु सुइभूओ । उच्चल्लिऊण जेणं भक्खेमि बुभुक्खिओ अहयं' ।।२६८४।। तो अहिसित्तो पुट्विं अहयं नियनयणबाहसलिलेहिं । रज्जाहिसेयसमए पच्छा ताएण कलसेहिं ।।२६८५।। तो ताएणं भणिओ मंतियणो परियणो पुरजणो य । 'नियजोग्गयाणुरूवं ववहरियव्वं च तुम्हेहिं' ।।२६८६।। Page #255 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४६ मंतिपमुहेहिं तइया दिन्नं पडिउत्तरं न वयणेण । मुत्ताथूलंसु फुडक्खरेहिं नयणेहि पुण भणियं ।। २६८७ ।। तो हाओ← 'सव्वंगं रत्तंदणकयविलेवणो राया । कणवीरमुंडमालो रत्तंसुयनिवसणो वीरो ॥२६८८ || जोइज्जतो हाह त्ति भणिरपुरजणवएण भीएण । निन्नाहं वीरउरं संपइ इयमाइ भणिरेण ॥२६८९ ॥ 'नियनयररक्खण अप्पाणं तिणतुलाए जो तुलइ । एवंविहो नरिंदो पुणो वि हा ! कत्थ दीसिहही ? || २६९०॥ इय विलवइ पुरलोओ सबाल - वुड्डो महापलावेहिं । पुण रायसुहडवग्गो बहुदुक्खो भणिउमाढत्तो ।। २६९१ ।। किं कुणउ पौरुसं भो ! देवो व्व उवट्ठिओ महापावो । अप्पडिविहेह (य ?) सत्ती एसो इह रक्खसो अम्ह ? || २६९२ ।। जे दप्पुद्धररिवुगंधसिंधुराणं रणंमि सीहव्व । अवमो मयमिहइं ते अम्हे कोल्हुया जाया ।। २६९३ ।। अंतेउरं पि सयलं विलाससिरिपमुहमागयं तत्थ । अणुचियवसुहासंचरणरणिरमणिनेउरारावं ॥२६९४।। दट्ठूण समरसीहं अप्पाणं रक्खसस्स अप्पंतं । 'अम्हे भक्खसु रक्खस ! रक्खसु रायं' इय भणतं ।। २६९५ ।। विलुलंतविसंठुलदीहकेसपब्भारपिहियसव्वंगं । अप्पडियारनिरंतरदुक्खमहाजालनद्धं व ।। २६९६ ।। संताडतं हिययं अइनिद्दयविसमकरपहारेहिं । सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ अंतट्ठियनिवभक्खयरक्खसरोसेण व सदुक्खं ।। २६९७ ।। १. एतदन्तर्गतः पाठः ताडपत्रे त्रुटितः ला प्रतौ मिलति ॥ २. रक्तचन्दनकृतविलेपनः ।। › Page #256 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ २४७ पगलंति उरत्थलताडणेण सियकिरणसोहियसरीरा । तुटुंति हारमुत्तामिसेण चिरपुन्नबंध व्व ॥२६९८॥ इय तेसिं सव्वेसिं विलवंताणं जमो व्व निक्करुणो । ओयरिऊणं रक्खो उक्खिवइ अदीणनरनाहं ॥२६९९॥ रक्खसकढोरकरफंसजायरोमंचकंचुओ राया । विहसियमुहतामरसो न याणिओ कत्थ सो नीओ ॥२७००॥ .. आमुक्कक्कंदरवं निप्फंदपडंतमंति-सामंतं । मुच्छानिमीलियच्छं वीरउरं तक्खणे जायं ॥२७०१।। तद्दियहाओ निच्चं नयरंमि परिब्भमेइ सो रक्खो । रयणीए घोररक्खससहस्सपरिवेढिओ पावो ।।२७०२।। पइदियहं नयराओ नीहरइ जणो भएण संझाए । गोसंमि पुणो पविसइ ता अच्छइ जाव संझत्ति ॥२७०३।। इय एवं अणवरयं नीणंत-विसंतयाण अम्हाण । .. वोलीणा कइदियहा तायमहादुक्खदड्डाण ॥२७०४॥ अह अन्नदिणे पुणरवि समागओ संठिओ गयणमग्गे । मग्गइ पइदियहं चिय नरमेगं चित्तमज्जाओ ॥२७०५।। तो दीणमाणसेहिं चंडालविचेट्ठिएहिं अम्हेहिं । पइदियह एक्केको पडिवन्नो तस्स पुरपुरिसो ॥२७०६।। इय वीरराय ! एवं अणवरयं तस्स पावकम्मस्स । समइक्तो वरिसो जणसंहारं कुणंतस्स ॥२७०७॥ संझासमयंमि पुणो अज्ज जहा वीर ! तुज्झ पच्चक्खं । तह पइदियहं लोओ भयसंभंतो पलइ एवं ॥२७०८।। * Page #257 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४८ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ जइ कहवि कोइ थक्कइ पमायओ लुकिऊण नयरंमि । रयणीए कड्डिऊणं दिन्नेण नरेण सह असइ ॥२७०९।। इय चत्तपुरिसयारा अपरित्ताणा अईवदीणमणा । किंकायव्वविमूढा चिट्ठामो वीर ! एवं ति ।।२७१०।। इय वुत्तंतं सोउं भणइ कुमारो. 'हहा ! महाकट्ठे । संपज्जइ संसारे अन्नाणंधाण जीवाण ॥२७११।। करुणागुणपरिहीणो किरियासहिओ वि निप्फलो धम्मो । सुसुयंधाइगुणड्ढो नरिंद ! इह चंदणदुमो व्व' ॥२७१२।। एत्थंतरंमि एगा कडिसंठियबालया परुयमाणी । अणुकड्डियंधथेरी समागया कुलवहू तत्थ ।।२७१३।। 'हा ! रक्ख रक्खसाओ अणन्नसरणाए अइदरिद्दाए । नित्थारयं नरेसर ! थेरिसुयं मज्झ भत्तारं' ।।२७१४।। तो कुमरेणं पुट्ठो राया 'किं किं ति विलवए एसा ?' । भणइ नरिंदो ‘होही अज्जं नणु वारओ तस्स' ।।२७१५।। तो भणइ वीरसेणो थेरं कुलबालियं च दद्रूण । तदु(९)क्खदूमियप्पा ओ(उ)वयारमईए नरनाहं ।।२७१६।। 'गरुओ धम्मवियारो अच्छउ ता राय ! जामि पुरमज्झे । पच्छा जहाणुरूवं जं होही तं करिस्सामि' ।।२७१७॥ 'हा ! पुरिसरयणमेयं धारेह रक्खेह ही ! निरंभेह' । निसुणंतो तरुणीयणकोलाहलमकयतच्चितो ॥२७१८॥ वारिज्जंतो वि दड्ढ(द) कुमरो पुर-जणवएण राएण । अकयपडिवयणदाणो तुरियगई नयरमुच्चलिओ ॥२७१९।। Page #258 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४९ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ पत्तो अणेयरक्खससहस्सपहरुद्धनिग्गम-पवेसं । पेयाहिवइपुरं पिव पुरं कुमारो महाघोरं ।।२७२०॥ पविसइ सहावदुद्धरिसतेयपुंज्जो(जो) व्व रक्खसभडेहिं । जोइज्जंतो सभयं पुरं कुमारो सुवीसत्थो ।।२७२१।। विप्फुरियफाररक्खसफेक्कारफुरंतपडिरवरउदं । पेच्छइ पिसायसेन्नं रत्थामुह-चच्चर-तिएसु ।।२७२२।। नीसेसनयरगुणसंगयं पि अणुहरइ जं सुरपुरस्स । तं तेहिं समक्वंतं संजायं पिउवणसरिच्छं ।।२७२३।। अस्सच्चरवविगंधे(?) वस-मंसाहारभीसणायारे । सबिंदियअमणोन्ने कढिणट्ठी रक्खसे नियइ ।।२७२४।। भीसणपसारियमुहे ललंतजीहाकरालदुप्पेच्छे । कत्तियकवालहत्थे इओ तओ धावमाणा(णे)य ॥२७२५।। पेच्छइ पिसायमेगं कुओ वि लद्धामिसं पिसाएहिं । परिवेढियं रुयंतं अक्खिवणभया पलंतं च ॥२७२६।। उव्वेल्लइ कोवि दुहं परिउंचियरक्खसीमुहा समुहं । अइपविरलदसणंतरपविट्ठदसणो पिसायभडो ॥२७२७।। आलिंगइ अवरोप्परतणुपीडणकडयडंतपासुलियं । कत्थ वि रक्खसमिहुणं उयरंतरझुल्लिरथणग्गं ॥२७२८।। रुहिरासवभरियकरालघोरसंकंतनियमुहभएण । का वि निसायरनारी अवरुंडइ पिययमं भीया ।।२७२९।। इय नाणाविहरक्खसजणवइयरसंकुलं महानयरं । पेच्छंतो संपत्तो एगं पुरचच्चरं कुमरो ॥२७३०॥ Page #259 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५० सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ जा जाइ तत्थ वीरो ता पेच्छइ रक्खसाहिवं पुरओ । नाणापिसायपरिसापरियरियं भीसणायारं ॥२७३१॥ उव्वत्तणेण रेहइ अतित्तमिव माणुसामिसरसेण । उड़े च विवढंतं तारायणभक्खणासाए ॥२७३२।। चम्मट्ठिसेसमेत्तं मुक्त वस-देह-मंसनिवहेहिं । अइमंसलंपडत्तणभीएहिं व सव्वगत्तेसु ॥२७३३।। अइगहिरजढरखाणीसंढियकिण्हाहिभीसणसरूवं । परिसडियसयलसाहं सकोडरं सुक्करुक्खं व ।।२७३४।। सठूलचम्मनिवसणमइघोरभुयंगभीसणाभरणं । परिवत्तियन्नरूवं जम्मं(मं) व भुवणस्स भयजणयं ।।२७३५।। नरवइदिन्नं पुरिसं घेत्तुं केसेसु वेविरसरीरं । भयतरलदीणवयणं खिवंतमवणीए रोसेण ।।२७३६।। तं दद्रूण कुमारो पिसायरायं दयाए तुरियगई । वेगेण समणुपन्नो तस्स समीवं इमं भणइ ।।२७३७।। 'हा!रक्ख रक्खसाहिव ! मा मारसु तुह भएण मयमेयं । भीयपरित्ताणेणं गरुयत्तं होइ गरुयाण ॥२७३८।। जं दिज्जए एत्थ भवे परलोए तं लहेइ सविसेसं । दुक्खं देंतो दुक्खी सुहं च देंतो सुही होइ ।।२७३९।। अइदुब्बलंमि भीए सरणविहीणमि निरवराहमि । . करुणाठाणे जायइ न निग्घिणत्तं विसिट्ठाण ॥२७४०।। एत्थंतरंमि सोउं अक्खुहियकुमारथिर-पसन्नगिरं । 'को एस'त्ति सकोवं कुमारसमुहं पलोवेइ ।।२७४१।। Page #260 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ पेच्छइ दुद्धरिसपहापहावविहडंतरक्खसतमोहं ।। निसियरनाहो पुरओ कुमरं पच्चूससूरं व्व ।।२७४२।। तो भणइ रक्खसो सो ‘कोऽसि तुमं ? केण वाऽवि कज्जेण । घोरपिसायनिरंतरपुरं पविट्ठोऽसि रयणीए ? ॥२७४३।। ता पलसु, जाहि तुरियं, जाव न भक्खिज्जसे पिसाएहिं । अप्पुव्वोऽसि सरूवं न जाणसे अम्ह नयरस्स' १२७४४।। तो भणइ रायपुत्तो तस्सास्स(स)यजाणणत्थि(त्थ)मिय वयणं । 'सच्चमउव्वो एण्हि अन्नायपुरवइयरो पत्तो ॥२७४५।। तो कहसु नियसरूवं नयरसरूवं च' पभणिए एवं । भणइ निसायरराया वयणमिणं जायदररोसो ।।२७४६।। 'चइऊण निययकालं अइदुलहं रयणिपुरपरिब्भणं । निप्फलपयासमेत्तं को तुह पडिउत्तरं देउ' ? ॥२७४७।। तो भणइ वीरसेणो ‘जइ एवं कत्थ जामि रयणीए ? । अन्नत्थ गओ नियमा उवद्दविस्सं पिसाएहिं ।।२७४८।। जह मं दटुं करुणा तुह जाया रक्खसिंद ! तह नन्ने । अणुकंपिस्संति ममं निसायरा निग्घिणसहावा' ।।२७४९।। पुण भणइ पिसायवई ‘ता अच्छसु पहिय ! जा अहं एयं । नरवइदिन्नं पुरिसं सपरियणो खामि हंतूण ।।२७५०।। तो भणइ पुणो कुमरो ‘किमणेणं भक्खिएण तुह होही ? ।' भणइ निसायरराया ‘तित्ती' कुमरो तओ भणइ ॥२७५१।। 'किं सव्वकालिया तुह होही तित्ती इमस्स मंसेण ? । तक्केमि तेण इह ते महग्गहो एयअसणंमि' ॥२७५२।। Page #261 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५२ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ भणइ पिसायाहिवई 'नेवं जायइ खणंतरं एगं । तित्ती तओ पवड्डइ पलयानलसन्निहबुभुक्खा' ॥२७५३।। तो भणइ वीरसेणो ‘हा हा ! तुम्हारिसा वि जत्थेवं । खणतित्तिनिमित्तमहो ! कुणंति असमंजससयाइं ॥२७५४।। को तत्थ नरवर ! (नखर!?) दोसो अन्नाणंधाण मूढजीवाण । जाणं नत्थि विवेओ हेओवाएयकज्जेसु ? ॥२७५५।। तुममेत्थ देवजाई जहत्थनाणेण नायपरमत्थो । कह होसि सिक्खणीओ नाणविहीणाण अम्हाण ? ॥२७५६।। जाणामि एत्तियं पुण पत्तो जेणेव तं कुदेवत्तं । तेणेव पुणो लहिहसि 'नरत्तं अ(त्तम)नाणदोसेण' ॥२७५७।। तो वीरसेणवयणं सोउं पुण रक्खसो इमं भणइ । 'किं कीरउ देवत्तं संजायं एरिसं अम्ह ? ॥२७५८।। भक्खिज्जइ नरमंसं पिज्जइ रुहिरं च पिउवणे वासो । जं बीभत्सं भुवणे सो च्चिय अम्हाण सिंगारो ॥२७५९।। नियजाइपच्चएणं ववहरणं होइ सव्वलोयस्स ।। तम्हा न अम्ह दोसो नियजाइठियं(इं) कुणंताण' ।।२७६०।। तो भणइ वीरसेणो 'जं भणसि न तं सुसंगयं वयणं । जं जायइ पच्चएणं किर होइ जणस्स ववहरणं ।।२७६१।। अप्पा पयइविसुद्धो अच्चुज्जलफलिहनिम्मलसरूवो । जायइ उवाहिभेया नाणाविहभेयसब्भावं ।।२७६२।। कम्मं होइ उवाही तं पुण दुविहं सुहासुहं नेयं । जीवो सुहो सुहेणं असुहेणं होइ असुहमई ॥२७६३।। टि. १. 'नरयत्तमनाणदोसेण' इति स्यात् ।। Page #262 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५३ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ एएण कारणेणं भणामि मा उवचिणेहि अइघोरं । जीववह-मंसभक्खण-परावयारेहिं दुक्कम(म्म) ॥२७६४।। एएण रक्खसेसर ! असंगयं बहुविहाई(इ) दुक्खाइं । पाविह(हि)सि महानरए अइनिंदियकूरकम्मेण ।।२७६५।। पुण भणइ रक्खसिंदो सकोवमिव विसमफुरियदसणोट्ठो । 'जइ धम्मिट्ठोसि तुमं ता पंथिय ! चयसु पावाइं ।।२७६६।। तुह वयणेण न अम्हे पच्चक्खं हिययनिव्वुइकरं वि । एयं नियमायारं परोक्खधम्मत्थमुज्झामो' ।।२७६७।। एयं भणिऊण तओ ‘रक्खसु मं वीर! इय पयंपंतो । खित्तो ‘दड'त्ति पुरिसो वसुहाए पिसायराएण ॥२७६८।। तो कड्डिऊण तुरियं निसायरो निसइ हड्डखंडम्मि । नियकत्तियं नरामिसविसेसभुक्खाए व जलंतं ॥२७६९।। एत्थंतरंमि कुमरो करुणारसपरवसो निएउणं । तं निग्घिणं पवित्तिं पभणइ ‘मा मारसु इमं ताव(ता) ||२७७०।। जइ तुज्झ पिसायाहिव ! अणुबंधो पुरिसमंस-रुहिरेसु । ता नरमेयं रक्खसु मं भक्खसु कुणसु मह वणं' ।।२७७१।। तो भणइ रक्खसिंदो 'न तुमं मह राइणा वि दिनो सि । ता कह पहियमउव्वं जायालावं च भक्खामि ?' ||२७७२।। पुण भणइ वीरसेणो ‘किं मह जीएण जस्स पच्चक्खं ।। करुणं विलवंतो च्चिय एसो मारिज्जए पुरिसो ? ॥२७७३॥ अन्नाय-पत्थणाभंगदुसहदुक्खो म्हि पत्थिओ सि मए । एयं रक्खसु पुरिसं मं भक्खसु, एस ते पणओ' ॥२७७४।। Page #263 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५४ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ तो रक्खसेण भणियं 'जइ एवं ता इमो मए मुको । आगच्छ तुमं तुरियं भक्खामि अहं बुभुक्खत्तो' || २७७५ ॥ मुक्को त्ति पढमनिसुए आणंदुव्वूढबहलरोमंचो । संपत्तसयलतिहुयणरज्जो इंव तक्खणे जाओ ।।२७७६ || ओसारिऊण पुरिसं अल्लि पिसायमप्पणा कुमरो । पुण भणइ 'भक्खसु बहुं कयत्थिओ एत्तियं कालं' || २७७७।। तो रक्खसेण भणियं 'नाहं पहरेमि ते, तुमं देसु । अप्पाणमप्पण च्चिय विखंडिउं मंसखंडाई' ।। २७७८ ।। 'उचिओ तुज्झ विवेओ सज्जणचरिओ सि किं परं भणिमो ?' । इय भणिऊण कुमारो कड्डइ नियमेव करवालं ।।२७७९ ।। उक्कत्तिऊण मंसं रक्खसनाहस्स देइ ता कुमारो । तो तेण सखग्गो च्चिय भुयदंडो थंभिओ सहसा ||२७८० || तो भइ रक्खसिंदो 'किं न तुमं देसि मंसखंडाई ? । भक्खामि बुभुक्खत्तो सपरियणो किं नु भीओ सि ?' || २७८१ ।। तो भइ वीरसेणो 'जं भणसि तमेव मज्झ संघडइ । अहवा तुमं पमाणं मह विसए किमिह भणिएण ?' || २७८२ ।। तो सुमरिऊण कुमरो नवक्का (का) रं नियमणंमि महसत्तिं । उत्थंभियभुयदंडो जा वाहइ खग्गमंगंमि ॥२७८३॥ ता धाविऊण तुरियं संभंतो रक्खसो करे धरइ । कुमरं पुण भणइ 'इमं परिहासो मे कओ एस ।। २७८५४ ॥ ता रक्खसु अप्पाणं अणेयकल्लाणभायणं वीर ! । तुह पुव्वभणियवयणामएण तित्तो म्हि आजम्मं ॥२७८५ ।। Page #264 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ नट्ठा मज्झ बुभुक्खा उवसंता सत्तसंहरणबुद्धी ।। रविणो व्व तए सुंदर ! पणासियं मोहतिमिरं पि ॥२७८६।। ता उवरम मरणाओ संपइ जं भणसि तं करिस्सामि । तुह असरिसचरिएणं रंजियचित्तो अहं तुट्ठो' ॥२७८७।। तो भणइ वीरसेणो ‘अभयं ता देसु संपइ इमस्स । पच्छा जं कालोचियमिह होही तं भणिस्सामि' ॥२७८८॥ पुण भणइ रक्खसिंदो ‘उज्जुय ! न परं इमस्स पुरिसस्स । अज्जपभिई जयस्स वि अभयदाणं मए दिन्नं' ।।२७८९।। एत्थंतरंमि कुमरो चिंतइ हिययंमि ‘एरिसे समए । अकलंक-निम्मला जइ एंति तया सुंदरं होई ॥२७९०।। इय जा कुमार-निसयरनाहाण हवंति एरिसालावा । ता सहसा वोलीणा नयरस्स महावय(इ)व्व निसा ।।२७९१।। पडिहयदंसणपसरो अन्नायजहत्थवत्थुवित्थारो । नट्ठो निवायहेऊ रक्खसमोहो व्व तिमिरोहो ॥२७९२।। उवसंतो गयणयले तारानिवहो फुलिंगनिवहो व्व । मित्तागमे पसामियरक्खसमणकोवजलणस्स ॥२७९३॥ उइयं तिलोयनेत्तं अतारयं अण(णि)मिसं पयडियत्थं । रविमंडलं निसायर-विवेयरयणं व लोयहियं ॥२७९४।। तो भणइ रक्खसिंदो 'समं(म्म) पडिबोहिओ तए अहयं । जं मोहमहानिद्दापरव्वसो हं पुरा हुँतो ॥२७९५॥ उद्धरिओऽहं तुमए पावमहापंकखुत्तसव्वंगो । हत्थालंबोऽसि तुमं नरयमहाकूवपडियस्स' ॥२७९६।। - Page #265 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५६ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ सोऊण तस्स वयणं संवेगोवसमसंगयं कुमरो । भणइ 'धन्नो निसायर ! तुमं ति जस्सेरिसा बुद्धी' ॥२७९७।। इय जाव ते परोप्परमालावं संगयं कुणंति इमं । ता पेच्छंति सविम्हयचारणमुणिजुयलयं गयणे ॥२७९८॥ थुवं(व्वं)तं नाणाविहविज्जाहर-असुर-सुरसमूहेहिं । गयणाओ ओयरंतं ससि-सूरजुयं व दिप्पंतं ॥२७९९।। नियतेयतिरोहियतरणितरुणकिरि(र)णोहपूरियदियंतं । परिवियडभवमहाडविदवग्गिजालाकरालं च ॥२८००।। तं निसयर-कुमराणं पेच्छंताणं पुरस्स बाहिमि । आणंदुज्जाणवणे ओयरियं खयर-सुरमहियं ।।२८०१।। तो भणइ वीरसेणो ‘एहि महासत्त ! वंदिमो एयं । मुणिजुयलं कयबहुभवपावमहापंकसलिलं व ॥२८०२।। एयाण दंसणेणं विहडइ मोहं(हो) पणासए पावं । होइ विवेउज्जोओ विसेसगुणपयरिसनिमित्तं' ।।२८०३।। तो भणइ रक्खसिंदो 'जइ एवं ता किमज्ज वि विलंबो ? ।' इय भणिउं ते तिन्नि वि साहुसमीवं गया तुरियं ॥२८०४।। कुमरेण पेसिओ सो पुरिसो पुर-जणवयस्स नरवइणो । आहवणत्थं तुरिओ सयं च पत्तो मुणिसमीवं ।।२८०५।। जा जाइ तत्थ पुरओ ता तुरियं नियइ सयलदेवेहिं । तण-सकराइ सव्वं अवणीयं तप्पएसाओ ।।२८०६।। गंधोदयवरिसेणं अवणीओ तत्थ धरणिरयपसरो । तव्वेलुकंटियसुरहिकुसुमपयरो वि विक्खिरिओ ॥२८०७।। Page #266 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५७ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ ठवियं च जच्चकंचणनिम्मवियं कमलजुयलमकलंको । निम्मलमुणी जहकममुवविठ्ठा तेसु ते दो वि ॥२८०८॥ देवेहिं ताण उवरिं कंचणदंडं सियायवत्तदुगं । धरियं निम्मलमोत्तिय-मणि-रयणपलंबिरोऊलं ॥२८०९।। इय एवं नीसेसं सुरनिम्मवियं विसेससक्कारं । दठूण वीरसेणो परियप्पइ नियमणे एवं ॥२८१०॥ अकलंक-निम्मलमुणी एए ते चिंतिया य पत्ता य । उप्पन्नं एएसिं केवलनाणं ति मन्नामि ॥२८११।। कहमनहा सुरासुर-विज्जाहरनियरचलणकयसेवा । केवलनाणपहावा कंचणकमलंमि चिट्ठति ? ॥२८१२।। ता कयपुन्ना एए सकयत्थं कयमिमेहिं मणुयत्तं । सुविसुद्धचरणलाहो एएसिं चेव संजाओ ॥२८१३॥ उम्मूलियं असेसं कम्मवणं नित्थओ भवसमुद्दो । तीयाणागयविसयं उप्पन्नं केवलं जेसिं ॥२८१४।। इय चिंतंतो कुमरो संपत्तो ताण पायमूलंमि । रक्खससंपाडियपुफ(प्फ)माईओ कुणइ वरपूयं ॥२८१५।। संपूइऊण य तओ काऊण पयाहिणं च तिक्खुत्तो । रक्खससहिओ पणमइ संथुणइ य परमभत्तीए ॥२८१६।। 'नमिमो पयडियतिहुयणकेवलवरनाणलद्धरयणाण । उव्वरियभुयणमंदिरधारणखंभाण व तिकालं' ॥२८१७॥ इय थोऊण कुमारो सरक्खसो परमभत्तिसंजुत्तो । पुणरुत्तवराविलुलियसिरमउली(?) पणमइ मुणीण ॥२८१८॥ .. टि. १. 'पुणरुवराविलुलियसिर० ॥ ला. प्रतौ ॥ 118 Page #267 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५८ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ पयईए सुह-पवित्ते उवविठ्ठो ताण पायमूलंमि । समणुनाओ पुट्विं मुणीहिं संभासिओ तयणु ।।२८१९।। एत्थंतरंमि सयलो समागओ पुरजणो नरवई वि । उवसामियरक्खसनिसुणणेण आणंदपुलियंगो ।।२८२०।। 'अहह ! महच्छरियमिणं आणंदाओ विऽम्ह(अम्ह)संजाओ । परमाणंदो एसो जं दिट्ठा साहुणो एए ॥२८२१।। एयाए कारणं किर कल्लाणपरंपराए रायसुओ । कहमन्नहा निसायरउवसामो परममुणिलाहो ?' ||२८२२।। इह एवं चिंतंता संपत्ता साहुसंनिहाणंमि । पहरिसपुलिइयगत्ता कुणंति तिपयाहिणपणामं ।।२८२३॥ नमिऊण केवलीणं पयकमलं नरवई जणवओ य । उवविसइ रुद्धवसुहा-वित्थारो थिरपसन्नमणो ॥२८२४।। तो कहइ मुणी धर्म जलहरगंभीर-धीरसदेण । रक्खस-कुमर-नरवइ-पुरजण-देवासुराईण ॥२८२५।। आयन्नह एक्कमणा हियए आयन्निऊण धारेह । तह चिंतह अप्पाणं जह सुहिया होह सयकालं ॥२८२६।। इह होइ महाकहें अन्नाणं नरयपडणफलमेयं । अन्नाणहया जीवा जुत्ताजुत्तं न याणंति ॥२८२७।। अइसंकिलिट्ठकम्माण कारणं संकिलिट्ठकम्मकयं । कयसंकिलिट्टचेटुं अन्नाणं होइ जीवाण ॥२८२८।। अन्नाणमेय(व) जायइ अवयारपरो जणस्स इह सत्तू । तं नत्थि जं न दुक्खं अन्नाणं कुणइ जीवाण ।।२८२९॥ . Page #268 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ उइयससि-सूरलक्खं अन्नाणंधाण जायइ जयं पि । पयडपयत्थं पि सया तमं व दूरं निरालोयं ।।२८३०॥ लद्धेसु वि धम्मदिवायरेसु पयडियविसेसतत्तेसु । कोसियपक्खि व्व जिओ उज्जोओ जस्स तिमिरं व्व ।।२८३१।। जं किंपि एत्थ दुक्खं सारीरं माणसं च संभवइ । नर-तिरिय-नारएसुं तं जीवो लहइ अन्नाणी ॥२८३२॥ अन्नाणं मिच्छत्तं पावमधम्मो नियाणमेगट्ठा । एएण होइ जीवो दुही, सुही होइ नाणेण ।।२८३३।। अन्नाणमोहमूढो जीवो सव्वं पि मुणइ विवरीयं । धम्मे वि अधम्मत्तं देवे वि अदेवपडिवत्ती ॥२८३४।। पावाणुट्ठाणं पि हु धम्माणुट्ठाणमेव मन्नेइ । पेयमपेयं च तहा भक्खमभक्खं च जाणेइ ।।२८३५।। इय विविहभवब्भासियदुरंतअन्नाणमोहिओ जीवो । कम्माणुहावओ सो निवडइ पासंडिधम्मेसु ।।२८३६।। अन्नाणमोहियच्छा कुधम्मसत्थोवएसमूढमणा । चइऊ ण मोक्खमग्गं पडंति संसारमग्गंमि ॥२८३७।। वेया परमो देवो वेया परमागमो य सिद्धंतो । वेया चेव पमाणं इह-परलोएसु कज्जेसु ।।२८३८।। वेयाण फलं जन्नो जन्नाण फलं वयंति सग्गो त्ति । अज-तुरयमेहपमुहा जन्ना विनिवेइया वेए ।।२८३९।। अइअन्नाणविमूढो अहिलसमाणो मणमि सग्गसुहं । पसुमारणपावेणं निवडइ घोरंधनरएसु ।।२८४०।। टि. १. "०सत्थोवएसमूढाण" ला. ।। Page #269 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६० सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ पंच पवित्ताणि इहं सव्वेसिं चेव धम्मकामीण । दय-सच्च-मचोरिक्वं बंभं च परिग्गहचा(च्चा)यं ॥२८४१।। अभु(ब्भु)वगयं च पढमं एवं पच्छा य जन्नकिरियाओ । उवइसमाणो वेओ कहं न सो होइ अन्नाणं ? ।।२८४२।। जइ हिंस च्चिय धम्मो ता मन्ने वाह-धीवराईण । होही सग्गनिवासो सुनिच्छियं वेयवयणेण ।।२८४३॥ जं काऊण पमाणं तदुत्तकिरियाहि साहिमो सग्गं । सो च्चेय पुव्व-पच्छिमविरोहओ विहडए वेओ ॥२८४४॥ जइ ताव दयाधम्मो वेउत्तो ता कहं पुणो एत्थ । काऊण जन्नकिरियं जीववहो अणुमओ तेण ? ॥२८४५॥ ता जन्नाइविहाणं अन्नाणं तयणुमाणओ अवरं । जं किं पि वेयभणियं तं सव्वं होइ मोहफलं ॥२८४६।। अवभिझं ण्हाणाणि तहिं वेए भणियाणि होति अनाणं । न हि बाहिरण्हाणेणं कम्ममलो जाइ जीवस्स ॥२८४७।। खणमेत्तबाहिरमलं जं नासइ तं कहं मणनिबद्धं । गंगाइतित्थण्हाणं पावमलं हणइ जीवस्स ? ॥२८४८।। जइ ताव पावजोगो होइ सरीरस्स ता इमं उचियं । अह जीवस्स स जायइ ता. कह पहाणेण तस्सुद्धी ? ||२८४९॥ इय तित्थण्हाणधम्मो वेए भणिओ य होइ अन्नाणं । मोहपयासणमेत्तं जीवाणं वहफलं नेयं ॥२८५०॥ जम्हा एए जीवा भू-वाऊ सलिल-वण्हिणो समए । , वणसइकायसमेया निट्ठिा परमनाणीहिं ॥२८५१।। Page #270 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६१ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ भूमिं(मी?)आऊ तेऊ वाऊ य वणस्सई य वेयंमि । देवत्ति संपणीया देवा उण कह णु निज्जीवा ? ॥२८५२।। ता तव्वयणपमाणा सिद्धं भूमाइयाणं जीवत्तं । जिणवयणमएण पुणो पच्चक्खमिमेसि जीवत्तं ।।२८५३।। तम्हा भूमीदाणं गोदाणं तुरय-गय-रहाईणं । सावज्जदाणभावा विवज्जियं परमनाणीहिं ॥२८५४॥ जइ ताव देवय च्चिय भूमी गावी य ता कहं ताओ । दिज्जति बंभणाणं दासीउ व धम्मसद्धाए? ॥२८५५।। लभ्रूण भूमिदाणं आरंभं कुणइ गरुयकयपावं । गाहगसहिओ दाया जेण दुवे जंति नरएसु ॥२८५६।। अणवज्जमेव दिज्जइ अणवज्जविसेसधम्मकामेहिं । अणवज्जारंभाणं मुणीण कम्मक्खयनिमित्तं ॥२८५७।। रयणत्तओववी(वे?)या विसुद्धवरबंभचारिणो मुणिणो । दंतिंदिया पसन्ना खंतिपरा बंभणा जइणो ॥२८५८।। सावज्जजोग्ग(ग)विरया निरया अणवज्जसयलकज्जेसु । ते होंति दाणजोगा(ग्गा) गिहीण मुणिणो महाजइणो ॥२८५९।। गिहिणो पावारंभा कुडुंबिणो विसयलंपडा खुद्दा । दायगसमाणदोसा न दाणपत्तं दिया होति ॥२८६०।। इय एवमाइ सव्वं समं(म्म)नाऊण आगमबलेण । देयादेयविभागो पत्तापत्तं च नायव्वं ॥२८६१॥ अन्नं च तत्थ वेए भणिया किर अग्गियारिया सम(म्म) । गहसंति-संपयाणं वुड्डिनिमित्तं दियाईहिं ।।२८६२।। Page #271 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६२ तिल - वीहि समिहमाइं वणस्सईदेवयाओ डहिऊण । जा तुम्ह होइ संती तेणं वेयागमविरोहो ||२८६३ ॥ हिऊण अप्पमाणे जीवे एगिदिए तडयडंते । पावंइ बहुपाणिवहा पावं, पावेण कहं संती ? ||२८६४ ॥ कह काऊण असंतिं बहूण जीवाण अप्पणी संतिं । अहिलसइ? परस्स जओ संतिकरो पावए संति ॥ २८६५ ॥ तम्हा अन्नाणं चिय भणिया इह अग्गियारिया समए । पावाणुट्ठाणं पिव पडिसिद्धा परमनाणीहिं ||२८६६।। तो जे भांति एवं मुहमग्गी होइ सव्वदेवाण । तेणेव पूइएणं सव्वसुरा पूइया होंति ॥ २८६७।। ता चइऊणं हरि-हर - विरिंचिमाई सुरा अदिट्ठफला । तं सव्वदेवमइयं पूयह निच्चं चिय हुयासं ॥२८६८।। इय सम्मनाणरहिया अन्नाणंधा अदिट्ठपरमत्था । • एगिंदियग्गिकायं पि देवबुद्धीए पूयंति ।।२८६९।। देवो स एव भन्नइ जो रहिओ राग-दोस- मोहेहिं । सुर-असुरपूयणिज्जो पयडियपरमत्थविन्नाणो ॥ २८७० ॥ अच्वंतं भुयणहिओ अचिंतमाहप्प-सत्तिसंजुत्तो । कयकिच्चो य महप्पा रहिओ जर-जम्म-मरणेहिं ॥ २८७१ ॥ जो निम्मूलुम्मूलियछुहाइ अट्ठारदोसदुमगहणो । सो होइ सयलतिहुयणजीवाण विलक्खणो देवो ॥ २८७२ ।। जो उण जियसाहारणजीवसरूवेहिं संजुओ होइ । सो कह नीसाहारणदेवसरूवत्तणं लहइ ? ।।२८७३॥ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ Page #272 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६३ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ अहिलसइ जहा पुरिसो विसए तह चेव तिरियजीवो वि । ता नायं पसुधम्मा विसया कह सेवए देवो ? ॥२८७४॥ जुझंति कोहवसगा आउहहत्था नरा तहा तिरिया । इय पसुधम्मो कोहो कह सो देवस्स संभवइ ? ||२८७५॥ अह होंति राग-दोसा देवस्स वि ता न याणिमो अम्हे । देवाणं पसूणं पि य सुहुमं पि तयंतरं एत्थ ॥२८७६।। तम्हा गय-चक्क-तिसूल-धणुहहत्थाण कह णु देवत्तं ? | आउहचिण्हपयासियकोहाण भवाभिनंदीण ? ॥२८७७।। ता सव्वन्नू देवो पसत्तकिरिओ पसंतरूवो य । आराहिज्जइ सययं असेसकम्मक्खयनिमित्तं ॥२८७८॥ आराहणाउवाओ तस्स ससत्तीए वनिओ समए । अच्चंतभावसारं तस्साणासेवणं जमिह ॥२८७९॥ तं नत्थि भुयणमज्झे पूयाकम्मं न जं कयं तस्स । जेणेह परम आणा न खंडिया परमदेवस्स ।।२८८०॥ आणाखंडणकारी जइ वि तिकालं महाविभूईए । तं पूयइ गयरायं सव्वं पि निरत्थयं तस्स ॥२८८१।। जह कीरंती आणा होइ सुवेज्जस्स वाहिखयहेऊ ।। आरोग(ग्ग)सुहफलो तह जिणाण आणा वि एमेव ।।२८८२।। गुरुकम्मवाहिनासं अच्चंताबाहसुहमहारोग्गं । तित्थयराणं आणा कीरंती कुणइ भवियाणं ॥२८८३।। आणा जिणाण एसा जम्म(म)णुट्ठाणं विसुद्धधम्मस्स । सो वि जिणेहिं भणिओ चउप्पयारो जहाकमसो ॥२८८४॥ Page #273 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६४ पढमो दाणसरूवो बीओ उण विमलसीलनिम्माओ । तइओ (य) तवोमइओ भावणमइओ चउत्थो य ||२८८५ || एसो असेससुहमयविसेससुहुमत्थसंगओ धम्मो । तित्थयराणं आणा विसेसओ पालणीया यं ॥ २८८६ ॥ तस्साणापरिवालणफलमेयं तेहिं चेव परिकहियं । वरदेवलोयगमणं तत्थ य नाणाविहा भोया ||२८८७ || दिव्वच्छरपरिवारो दिव्वविमाणाइं दिव्वरिद्धीओ । सुहसागरावगाढो अच्छइ बहुसागराऊसो ॥२८८८॥ चइऊण देवलोया उप्पज्जइ जाइ - रूव कुलकलिओ । दीहाऊ रिद्धिजुओ सुपुन्नफलभायणं पुरिसो ॥ २८८९ ।। उवभुंजइ वरभोए वियक्खणो लद्धपरमधम्मो य । चारित्तधम्मजुत्तो अइरा सिद्धिं पि पावेइ ॥ २८९० ।। इय तस्स समाराहाण - फलमिह भणियं मए समासेण । अणुसेविऊण एयं पावह तुम्हे वि परमपयं' ||२८९१ ॥ आयन्निऊण एयं रक्खस - नरनाह - नयरलोएहिं । तक्खणमेत्तविहाडियदुरंतगुरुमोहपडलेहिं ॥२८९२ ॥ निहयअकज्जासेवण-अन्नाणमहंधयारनिवहेहिं । सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ आविब्भूयनिरंतरविसुद्धसमत्त (सम्मत्त) भावेहिं ॥ २८९३ ।। सिरिधरियकरयलंजलि-वुड हें नमिऊण परमभत्तीए । सव्वेहिं मुणी भणिओ 'इच्छामो तुम्ह अणुसट्ठि' ||२८९४|| तो रक्खसेण भणिओ अकलंको केवली इमं वयणं । 'भयवं ! नाणदिवायर ! संदेहं मज्झ अवणेसु ||२८९५ ॥ Page #274 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६५ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ तं किन्न जन्न याणसि असेससत्ताणचेट्ठियं देव ! ।। परिकलियकेवलालोयतिहुयणो तह वि साहिस्सं ।।२८९६।। अहमासि दिओ पुट्विं अन्नाणवसेण जन्नकिरियासु । विणिवाइयपसुनिवहो पयट्टियानाणधम्मो य ॥२८९७।। तं मज्झ पुव्वदुकयं संपइ अहियं खुडुक्कए हियए । सोऊण तुम्ह वयणं अंतोगयनट्ठसल्लं व ॥२८९८।। मुणिनाह ! तेत्तियस्स वि दाणस्स तवस्स जन(न)धम्मस्स । सग्गो किर जत्थ फलं संदेहो तत्थ मणुयत्ते ॥२८९९।। ता नाह ! तुज्झ वयणं न अन्नहा सव्वमेव अन्नाणं । पुव्वुद्दिवो धम्मो अणुहवसिद्धो जओ मज्झ ।।२९००। पुण रक्खसेण व मए मुणिंद ! नरयावहाई कूराई । पावाई सेवियाई नाणाविहदुक्खहेऊणि ।।२९०१।। सो समरसीहराया भुयणुवयारी मए गुणनिहाणं । विम्हरियपुव्वसुकएण मारिओ पावकम्मेण ॥२९०२॥ भयमेगस्स वि दिंतो लहइ भयं नरयमाइसु अणंतं । अन्नाणहएण मए तं दिन्नमणंतलोयाण ।।२९०३।। पइदियहं चिय एसो पुरलोओ मह भएण संझासु । परिचत्तपुत्तमाई पलाइ असमंजसायारो ॥२९०४।। हीणो हीणायारो हीणमई हीणदेवजाइत्ति । . निवदिन्नपुरिसमारणकम्मेण कहं गओ रूढिं ? ||२९०५।। अज्ज पुणो परमेसर ! कुओ वि मह पुव्वपुन्नघडिएण | एएण कुमारेणं विबोहिओ विचिहवयणेहिं ॥२९०६।। Page #275 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ संपइ पुण परिचत्तो पुरिसवहो निसि पुरे परिभ(ब्भ)व(म)णं । परपीडाइ असेसं कल्लाणसुमित्तवयणेण ।।२९०७।। तुह दंसणेण मुणिवइ ! एन्हिं पुण जायनिच्छओ धम्मे । इह पुव्वभवसमज्जियगुरुपावभएण भीओ म्हि ।।२९०८।। ता एयाण निरंतर-नरयमहादुक्खकारणगुरूण ।। कह णु करिस्सामि अहं पज्जंतं पावकम्माण' ।।२९०९।। तो तव्वयणविरामे भणइ मुणी सयलकेवलालोओ । 'निसियरनरिंद ! निसुणसु सुसावहाणो तुह कहेमि ।।२९१०।। . चइऊण तमन्नाणं अन्नाणनिबंधणं च मिच्छत्तं । सम्मन्नाणाहिगयं सेवसु जिणदेसियं धम्मं ॥२९११।। गरहसु सम्मं मणसा इह-परलोएसु जायिं विहियाई । पुव्वबहुदुक्कडाइं नरयनिवासेकहेऊणि ।।२९१२।। सुविसुद्धभावमारुयपसरियअणुतावजलणजालाहिं । पज्जालिज्जइ सयलो बहुभवपाविंधणसमूहो ।।२९१३।। एसो पच्छायावो दुक्कडकम्माण बहुभवकयाण । ओच्छायणं हि परमं अणवरयं तेण कायव्वो' ।।२९१४।। तो भणइ रक्खसिंदो ‘भयवं ! जं नरयकारणं पावं । तं कह निज्जरइ महं पच्छायावेण एक्केण ॥२९१५।। जाव न तं अणुहूयं नरएसु गयागएहिं बहुएहिं । कह तस्स ताव अंतो होही मह दुकयकम्मस्स ?' ||२९१६।। पुण भणइ मुणिवरिंदो ‘एवं न पिसायराय ! निसुणेसु । कम्माण जं विचित्तो परिणामो जिणमए भणिओ ॥२९१७।। Page #276 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६७ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ जं निम्मवियं कम्मं कूरज्झवसायसंगयमणेण । अणवच्छिन्नदुरज्झवसाएणं पोसियं निविडं ।।२९१८।। तं जाव नाणुभूयं नरए बहुदिन्नदुक्खसंघायं । कह तस्स ताव अंतो उवायलक्खेहिं वि हविज्ज ? ||२९१९।। जं पुण अन्नाणवसा असुहज्झवसायविरहियं होइ । तं पावं न तहाविहदुक्खाणं कारणं होइ ।।२९२०॥ तं सुगुरुसंगयोगा ववगयमोहंधयारभावेण । पावमिइ जाणिऊणं पच्छायावाइसज्झंति ॥२९२१।। पच्छायावो एक्को न होइ दुक्कम्मनिज्जराहेऊ । जाव न नाणसमेया संजाया चरणपडिवत्ती ।।२९२२।। जिणधम्मतत्तनाणं दुक्कडगरहा य सुक्क(क)डसेवा य । गुणबहुमाणो सुहभावणाओ निहणंति दुकम्मं ॥२९२३।। ता रक्खसिंद ! एसो जिणधम्मो सयलसुहनिहाणं व । कम्मविसपरममंतो भवविडविच्छेयणकुढारो ।।२९२४।। सग्गापवग्गउन्नयभवणारोहाहिरोहिणीदंडो । केवलरविउदयगिरी तं किं जं नेस संभवइ ? ।।२९२५।। ता एत्थ चेव तुमए जिणधम्मे सव्वहा थिरमणेण । समहियगुणजोगेणं महायरो होइ कायव्वो' ।।२९२६।। तो रक्खसेण भणियं 'भयवं ! अम्हारिसो अविरयप्पा । भवउव्विग्गमणो वि य किं पालउ परमधम्मत्थं ?' ।।२९२७।। पुण भणइ मुणी 'निसियर! मा एवं भणसु अविरओ जमहं । न चएमि चरित्तमयं धम्मं किर सेविउं सुद्धं ॥२९२८।। Page #277 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६८ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ पढमं पालसु सम्म सम्मत्तं मोक्खविडविवरियं(?) व्व । करुणापहाणधम्मं पुण मन्नसु साहवो सुगुरू ।।२९२९।। परिहर तिविहेण तुमं पासंडिपयासिए कुधम्मपहे । अन्नाणफला एए तुह अणुहवओ वि पच्चक्खा ॥२९३०।। जे कूरज्झवसाया कम्माइं य जाइं तुज्झ कूराई । वयणाई कढोराइं परिहरसु तुमं असेसाइं ॥२९३१॥ होऊण पसंतप्पा कुणसु दयं सव्वभूयगामेसु । नियरिद्धि-सत्तिसरिसं पवयणउब्भावणं कुणसु ।।२९३२।। इह साहु-साहुणीणं पुण सावय-सावियाण सत्तीए । कुरु पडणीयविघायं एसो संघो जओ पुज्जो ॥२९३३।। कुणसु जिणाणं महिमं गरुयगुणमुणीण पक्खवायं च । . एएण उवाएणं नित्थरिह(हि)सि भवसमुद्दमिणं' ।।२९३४।। इय केवलिभणियमिणं वयणं सोऊण रक्खसो भणइ । 'जं भणसि मुणिंद ! तुमं तह त्ति तमहं करिस्सामि ।।२९३५।। तुह वयणं निसुयं चिय चउगइभवजलहितारयं होइ । किं पुणमजहत्थभणियाणुट्ठाणकयं न तुं होइ ?' ।।२९३६।। इय भणिउ(ऊ)णं विरए निसायरे भणइ नरवई एवं । 'भयवं ! इह संसारे अम्हं उवयारिणो दोन्नि ॥२९३७॥ पढमं तुममुवयारी संसारमहाडवीनिवडियाण । पयडियसुधम्ममग्गो जाओ परलोयपक्खंमि ॥२९३८॥ इहलोइयंमि पक्खे संबोहियरक्खसो महासत्तो । भुयणस्स भयंतकरो पच्छा एसो महावीरो ॥२९३९॥ . Page #278 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६९ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ एयस्स दंसणेणं एयं सव्वं पि अम्ह संजायं । पुर-जणवयाण संती मुणिंद ! तुह दंसणं परमं ॥२९४०।। परमत्थेणं भयवं ! एसेस असेसगुणगणनिहाणं । इह-परलोए अम्हं कुमरो कल्लाणमित्तो त्ति ॥२९४१।। ता सुत्थिओ म्हि जाओ इहलोए कुमरदसणेणेव । परलोयसुत्थिओ उण तुम्ह पसाएण होइस्सं ।।२९४२।। पढमं चिय आइटुं नीसेसं भयवया जहाकिच्चं । ता देहि मे मुणीसर ! गिहि(ह)त्थधम्मोच्चियवयाइं ॥२९४३।। तो गुरुणा सविसेसं पुणो वि आचि(च)क्खिऊण वित्थरओ । निव-परियण-पउराणं गिहिधम्मवयाई(इं) दिन्नाई ।।२९४४।। सकयत्थं अप्पाणं मन्नतेहिं व्व तेहिं सव्वेहिं । पंचनमोक्कारसमं गहियाणि अणुव्वयाईणि ॥२९४५।। अणुसासिया य गुरुणा नरिंदमाई बहुप्पयारं च । एत्थंतरंमि भणिओ निसायरो पुण कुमारेण ॥२९४६।। 'तुह अणुमईए संपइ पविसउ राया सपरियणो नयरं ।। पुरलोओ वि निसायरकयत्थिओ निसि पवासेण' ।।२९४७।। तो रक्खसेण भणियं 'अज्जपभिई गुरूण पच्चक्खं । निरुवद्दवं नरिंदो निवसउ नयरे पयासहिओ ॥२९४८।। परिहरिया अन्नेसु वि भूएसु मए कुमार ! परपीडा । साहम्मिएसु. किं पुण नरिंदमाईसु न चइस्सं ?' ||२९४९।। तो राइणा कुमारो परमायरपत्थणाए उव(रु)द्धो । दक्खिन्नभंगभीरू चलिओ सह तेण निवभवणं ।।२९५०।। Page #279 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७० सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ तो वंदिऊण भयवं राया पुर-जणवओ कुमारो य । कयभवणहट्टसोहं निबद्धबहुतोरणसमूहं ।।२९५१।। ऊसियधयासहस्सं गंधोदयसमियमग्गरयपसरं । रंगावलीविराइय-सुंदरभवणंगणदुवारं ॥२९५२।। आणंदियसयलजणं पारंभियतिय-चउक्कुपेच्छणयं । पयपयलोयवियप्पियकुमारसुव्वंतआसीसं ॥२९५३।। एवंविहं निरंतरपहरिसवसजायपुलयलोयघणं । पविसइ पुरं सुणंतो विलयाण परोप्परालावे ।।२९५४।। 'एसो सो रायसुओ जो दिट्ठो तत्थ रनमज्झमि । खग्गसहाओ धीरो' इय एगा भणइ मुद्धमुही ।।२९५५।। दठूण कुमरमेगा उड़े आमीलियंगुलि-करग्गा । आमोडिऊण अंगं पयडइ कुमरंमि अणुरायं ॥२९५६।। पच्चंगपलोइयवीरसेणअणुरायपरवसा एगा । 'हत्थी हत्थि'त्ति सहीए का वि पडिबोहिया तरुणी ॥२९५७।। 'एसेस वीरसेणो'त्ति का वि सुणिऊण तरलमण-नयणा । कज्जल-सलाय-दप्पणहत्था धावेइ पहहुत्तं ।।२९५८।। 'जो चिंतिओ मणेण वि रक्खो धीराण कुणइ संतासं । अच्छरियमिणं कह सो वि बोहिओ किर कुमारेण ॥२९५९।। अच्चब्भुवो पहावो इमस्स सहि ! पेच्छ जेण लोयाण । रक्खसभयमेव न तं संसारभयं पि निम्महियं' ।।२९६०।। इय नाणाविहवइयरनिरंतरं तं पुरं विलोयंतो । पत्तो कमेण कुमरो सनरवई रायभवणंमि ।।२९६१।। • Page #280 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ सयमेव विस्ससेणो पाययपुरिसो य संभमाइसया । लुहुदुक्खुडं (?) पयासइ सिणेहसारं कुमारंमि ।। २९६२ ।। तो ण्हाण - देवयच्चण - भोयणमाईणि सव्वकम्माणि । काऊणं अवरहे गया दुवे गुरुसमीवंमि ।। २९६३ ।। अकलंकमुणिवरेण वि समओच्चि ( चि) यधम्मदेसणापुव्वं । अणुसासिया पविट्ठा पुणो वि ते नयरमज्झमि ॥२९६४ ।। इय एवं अणवरयं पहाय - अवरण्हसमयमासज्झ । सेवंताण मुणिदं कई वि दियहा अइकुंता ॥। २९६५ ।। थिरियरणं संजायं जिणिदधम्मंमि वीरसेणस्स । सम्मं नाणाहिगमो जहत्थसंसारविन्नाणं ||२९६६॥ तो नाऊण कुमारो परिणयधम्मं नरिंदमुच्छुको । अकहंतो अन्नदिणे विणिग्गओ विस्ससेणस्स ||२९६७ || नाणाविहनयरविसेस-गाम-पुर- दोण दुग्ग-गहणेसु । चंदसिरिमन्निसंतो परियडइ धरायलं वीरो || २९६८ ॥ अणवरयपयाणयसयल-लंघियासेसपुहइवित्थारो । पत्तों समुद्दतीरं वणराइविराइयं कुमरो ।। २९६९।। पेच्छइ पसारियच्छो अगोयरं जमिह लोयण-मणाण । परमपयं व्व जलनिहिं निच्चानिच्चं अगम्मं च ||२९७० ॥ खेयरहियचंदसिरी दिन्नवयासत्तणेण लज्जाए । उयहिमिसेण अणंतं मन्ने गयणं पिव विलीणं ।। २९७१ ॥ गुरुकल्लोलदुगंतर-दूरसमुच्छलियमीणसंघाओ । अहरोनंतरनिग्गयजीहानिव्व(व) हो व्व लिहइ नहं ।। २९७२ ॥ २७१ Page #281 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७२ जाओ न निच्छओ मे वित्थरियनहंतराल - जलहीण । गयणं व जलहिणा किं गसिओ जलहि व्व गयणेण ? ।।२९७३॥ एयाहिंतो वि परं तिहुयणमवि दुत्थियं ति मह बुद्धी । रयणाभिलासओ जं दरिद्दतियसेहिं निम्महिओ || २९७४ ॥ किं तस्स अवहडं किर सुरेहिं विफु (प्फु) रइ जस्स भुयणंमि । अज्ज वि ससहरजोण्हामिसेण सयकित्तिवित्थारो ||२९७५ ॥ सायर-निसायराणं सलहिज्जइ सव्वहा पिइ-सुयत्तं । एक्को जोण्हाए जयं भरेइ अन्नो जलोहेण ॥ २९७६ ॥ जो च्चिय नीयपएसो सो च्चेय खणेण उन्नओ होइ । संसारे व्व इमंमि वि अथिरो निन्नुन्नयविभागो ॥ २९७७ ॥ कह नाम वियारिज्जइ माहप्पं तस्स जं असामन्नं । जस्सत्थेहिं घणेहि वि होइ जयं सुत्थियमसेसं ।। २९७८ ।। भीरुपरित्ताणगुणो अणेण आरोविओ निओ दूरं । सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ दलियकुलसेलकुलिसा मेणायं रक्खयंतेण ॥२९७९ ।। अन्नगरुयाण एसो उवमाठाणं जए गुरुत्तेण । एयस्स पुणो भुयणे उवमा एसो च्चिय, न अन्ने ! ।।२९८० ॥ सकुलीर मीण-मयरे तारायण - रयणपूरिए एसो । नीलमणिदप्पण हे संकतं निअइ अप्पाणं ।। २९८१ ।। एयस्स पुव्व दाहिण अवरु-त्तरदिसिविभायभमियस्स । मेरुगिरिकुवखंभा ( भो ) पुहई नाव व्व पडिहाइ ।। २९८२ ।। इय दट्ठूण समुद्दं चिंतइ 'जह मज्झ तह इमस्सावि । अंतो कल्लोलाणं हियचंदसिरिस्स नो अत्थि ।। २९८३ ।। Page #282 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ર૭રૂ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ किं संपइ कायव् ? एत्तियमेत्तं समागओ मग्गं । नो दिट्ठा चंदसिरी समीहियं मह न संपन्नं ।।२९८४॥ हा ! निप्फलो पयासो कइया वि न जं मए सुयमउव्वं । दइयाअदंसणेणं तमागयं मज्झ हलुयत्तं ।।२९८५।। पुट्विं सउणबलेणं पच्छा अकलंककेवलिबलेणं । एत्थागओ न सिद्धं समीहियं, अवितहा ते वि ॥२९८६।। विहडंति कह वि सउणा देसाइविवज्जएण दुल्लक्खा । पाहाणरेहसरिसं केवलिवयणं न विहडेइ' ।।२९८७॥ इय एवं जा कुमरो जा चिंतइ रयणायरस्स तीरंमि । ता तत्थ चेव समए जं जायं तं निसामेह ||२९८८॥ नासिकपुरे पुट्विं गयणे विज्जाहरो कमलकेऊ । कुमरेण मारिओ तो तस्सत्थि सहोयरो भाया ।।२९८९।। नामेण पवणकेऊ बहुविहविज्जासमिद्धिसंपन्नो । मायावी नाणाविहमायासंगामविन्नाया ||२९९०।। सोऊण सो असेसं वइयरमह भाउमारणाईयं । पलयानलोव्व सहसा कुविओ सिरिवीरसेणस्स ।।२९९१।। 'जइ कह वि तुडिवसेणं लहेमि तं बंधुघायगं सत्तुं । ता विज्झमि एयं कोहग्गि तस्स रुहिरेण' ।।२९९२।। इय चिंतिऊण चलिओ गवेसिउं खेयरो पवणकेऊ । सिरिवीरसेणकुमरं कमेण नासिकमणुपत्तो ।।२९९३॥ नाऊण तत्थ सुद्धिं चंदसिरी-वीरसेणपडिबद्धं । दिवो न तत्थ पावो मज्झ भएणं व्व सो नट्ठो ॥२९९४।। 19 Page #283 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७४ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ ता तं कह पेच्छिस्सं विसालवसुहायले परिभमंतं ? । इय चिंतावसवत्ती अहियं सो दुक्खिओ जाओ ।।२९९५।। मुणिऊण तक्खणं च्चिय विज्जासामत्थओ पवणकेऊ । पत्तो समुद्दतीरं कोवारुणलोयणो रोद्दो ।।२९९६।। तो तेण तत्थ दिट्ठो दुद्धरिसो पवणकेउणा कुमरो । असरिसपहावहुयवहसहस्सजालाहिं व जलंतो ।।२९९७।। एगो वि अणेगेहिं व सुहडसहस्सेहिं परिगओ सहइ । दुद्धरिसतेयभासुरसरीरबंधो महावीरो ॥२९९८।। पेच्छइ विम्हयवियसंतनयणभालाहिरूढभूजुयलो । सो कुमरं रणसंकाघडियायसपट्टबंधो व्व ।।२९९९।। दठूण गिम्हदूसहमज्झण्हजलंततेयभाणु व्व । सो खेयरो सखेयं तं दटुं इय विचिंतेइ ।।३०००।। 'लहइ च्चिय माहप्पं लहुओ वि रिऊ गुरूहिं सह भिडिओ । असरिससत्तिनिहाणं वज्जो व्व महामहिहरेहिं ॥३००१॥ निज्जीवो वि हु पज्जलइ तेयंसिपयावसंकमवसेण । तरणिकिरणाणुसंगी सुनिच्छियं सूरकंतो व्य ।।३००२।। भुयणाहियवीरियकमलकेउविणिवायलद्धमाहप्पो । अज्ज वि तक्कोवानलसंगजलंतो व्व पडिहाइ ।।३००३।। पोढंगणापसंगे सत्तुविणासे य भिन्नसंधाणे । विसमट्ठिए य कज्जे हवंति गरुया थिरारंभा ।।३००४॥ ता संपइ सत्तुवहो कायव्वो सो य अप्परक्खाए । कीरंतो विबुहाणं पसंसणीओ जओ होइ ।।३००५।। Page #284 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ इहरा अप्पविणासो अप्पविणासे य सत्तुजयसिद्धी । ता अणुवायपयट्टो पुरिसो नासेइ अप्पाणं ||३००६ || अप्पजओ रिउनासो एत्तियमेत्ता जयंमि किर नीई । एयस्सु (स्स उ ) भयकरणे नीई (इ) सत्थाई पसरंति ॥३००७॥ एसो वि महासत्तू दिट्ठाणत्थो य बंधुनासे य । ता हकिओ दुवेही संदेहतुलाए मह जीयं ||३००८ || जो भूमिगोयरो वि य विज्जुखित्तेण तेत्तियं दूरं । उट्ठइ मारइ सत्तुं सो किं वसुहाए असमत्थो ? ||३००९ ॥ ता एत्थ चिंतियव्वो सो उ उवाओ य जेण नियरक्खा । एयस्स वहो जायइ न अन्नहा एस परमत्थो ||३०१० ॥ अप्पा न दंसियव्वो इमस्स जं होइ एस सासंको । संकियचित्तो जम्हा काओ वि हु दुव्वहो होइ ||३०११॥ सासंको न छलिज्जइ अवायरक्खानिरूविओवाओ । नीसंको निरुवाओ रिऊ सुवज्झो जिगीसूण || ३०१२ | कालो अवस्सं माया माया व कुणइ उवयारं । वैरिवहविरहिया उण न घडइ एसा वि अन्नत्थ ||३०१३ || पयडइ लाह (हं) धम्मे सा माया सुहडाणं व सुपउत्ता । अहिएसु जइ न कीरइ ता एसा हंति न्नि (नि) व्विसया || ३०१४॥ ता जाव निव्विसंको एसो रयणायरेक्कमण- नयणो । ता विज्जासत्तीए करेमि एयस्स अवयारं ||३०१५|| एसो वि मह करेही पज्जंतो सायरो वि सन्नेज्झं ।' इय चिंतिउं अलक्खो खेयरो अवयरइ कुमरंमि ||३०१६ || २७५ Page #285 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७६ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ कुमरो वि जाव पेच्छइ रयणायरमायरेण नीसंको । ता झत्ति समुच्छलिओ पयंडपवणो दुरहियासो ॥३०१७।। उम्मूलंतो दूरं वेलावणसंडमंडलिं गयणे । उद्धं समुक्खणंतो खोणीहरसिहरसंघायं ॥३०१८॥ घणरेणुपिहियगयणो मन्नइ उवरिट्ठियं वि दुमनिवहो? । कुमरो रयपिहियच्छो पायालगयं व अप्पाणं(?) ॥३०१९।। नियइ व्व धरावलयं गयणग्गविलग्गवीइवित्थारो । उव्वत्तमीणनयणो पलयभएणं व मयरहरो ॥३०२०।। एत्थंतरंमि कुमरो चिंतइ हियए अजायरिउसंक्को(को) । 'अउरूवं व सरूवं पेच्छामि किमेयमच्छरियं? ||३०२१।। अहवा किं चिंताए ? सायरतीरं समासयं होइ । नीसेसभयंतकरं झाएमि अहं नमोकारं' ॥३०२२ ।। जा चिंतइ परमत्थं परमक्खरसंगयं परममंतं । ता झत्ति नियसमीवे निवडते नियइ तरु-सेले ॥३०२३।। पवणुच्छालियघणसाहिकुसुमवरिसो नहाउ कुमरंमि । निवडइ विहलीकयवैरिविजयसंसी सुरधओ व्व ।।३०२४।। निव्व(व)डंति निरंतरपूरियंबरा गुरुरएण जे गिरिणो । ते पाविऊण कुमरं कुलिसं व खणेण विहडंति ॥३०२५।। इय पवणकेउणा विरइयंमि विज्जाबलेण अवयारे । अक्खुहियहिययधीरो चिंतइ कुमरो वि अविसाई ॥३०२६।। 'एए गिरिणो गयणे तरुणो य निरंतरं न पयइत्था । खयकालसंसिणो वा मह दुक्कयकम्मजणिया वा ॥३०२७।। Page #286 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ২৩৩ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ खयकालसंभवो न हि दूसमदुसमाए जेण सो कहिओ । नियकम्मपरिणई उण संसारत्थाण संभवइ ॥३०२८।। इह पुव्वभवसमज्जियअइनिविडदुकम्मजालवडियाण । न हि कम्मविवररहिओ मोक्खो मीणाण व जियाण ॥३०२९।। इहलोए दुक(क)म्मं तमेव मह जं हओ कमलकेऊ । नरसीहस्स उ एवं सामत्थो कह णु संभविही (?) ||३०३०।। 'मं रक्खसुत्ति भयविहलपरवहूसीलपाणरक्खट्टा । तत्थासि निमित्तमहं सो उण निहओ दुकम्मेण ।।३०३१।। केत्तियमेत्तं च इमं परनारिपसंगओ बहुं होइ । नरयंमि जलंतायसनारीआलिंगणाइ दुहं ।।३०३२।। ता इहलोए पावं तमेव मह केवलं न उण अन्नं । परलोइयपावाइं सव्वन्नू जइ परं मुणइ ॥३०३३।। ता एवमहं जाणे बंधू तस्सेव कमलकेउस्स । को वि भविस्सइ नूणं तव्वेरमणुसरंतो मे ॥३०३४।। कुणइ विणिवायणत्थं गुरुगिरि-तरुनियरपाडणं अहवा । अवियाणियपरमत्थो नाहमिणं चिंतइस्सामि ॥३०३५।। अविणिच्छियं न कज्जं चित्ते वि धरंति उत्तमा पुरिसा । निच्छइए वि हु कज्जे पसरंति न ताण वाणीओ' ॥३०३६।। इय जाव वीरसेणो चिंतइ ता गिरिवरं महाकायं । नीसेसपिहियमहियलमेक्कं आलोवए उवरिं ॥३०३७॥ सिहरंतज्झरंतोज्झरनिविडयरपडंतवारिधाराहिं । उच्छाइयगयणयलं खयकालघणं व्व अइघोरं ॥३०३८।। Page #287 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ૨૦૮ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ तलनिग्गयविवरदरीपडंतदीसंतसत्तसंघायं । रयवडण-विसममारुयनिवाडिओ'वंततरुगहणं ।।३०३९।। दठूण तं गिरिंदं निरुद्धनीसेसतरणकिरि(र)णोहं । वेएण निवडमाणं किमेयमिइ चिंतइ अखुद्धो ।।३०४०।। निवडंतो चिय दीसइ एसो मह उवरि पव्वओ गरुओ । ता को एत्थ उवाओ हणेमि किं मुट्ठिपहरेण? ||३०४१।। नो मुट्ठिपहारेणं एद्दहमेत्तो धराहरो अहवा । पुहइदियंत-[वि]निग्गयसिहरसओ ज्झंपियनहतो ।।३०४२।। ता एस भुयणसाहारणो व्व मच्चूऽ(च्चू अ)सक्कपडियारो । मज्झ विणिवायणत्थं उवढिओ निच्छियं सेलो' ।।३०४३।। इय चिंतिऊण कुमरो उद्धच्छो जाव पेच्छइ गिरिंदं । ता तस्स सिराओ तलंतनिग्गयं नियइ दरिविवरं ॥३०४४।। भवियव्वयावसेणं दीहाउत्तेण वीरसेणस्स । अविचिंतणीयकम्माणुहावओ पुन्नजोएण ||३०४५।। तह संठिओ कुमारो उज्जुयमारोहिऊण दरिविवरं । जह मणयं पि न च्छित्तो निवडतेणावि सेलेण ।।३०४६।। गुरुसेलवडणवसुहानिहायनिग्घोसभयसभुब्भंता । पलयंतविरसरसिया संजाया जलहिजलजीवा ॥३०४७॥ तेद्दहमेत्तो वि गिरी मडहो व्व महीयलंमि तलखुत्तो । कुमरावयारसंभवलज्जाए व लाहवं पत्तो ।।३०४८॥ तत्थंतरे कुमारो अक्खयदेहो दरीमुहेणेव ।। उड़े गंतूण ठि(ठि)ओ गिरिंदसिहरग्गचूलाए ॥३०४९।। १. उपांतर, खंता. टि. । Page #288 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७९ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ अह चिंतइ पुण हियए कुमरो 'जम्मंतरं व मह जायं । अहह ! महामाहप्पं पंचनमोकारमंतस्स ! ।।३०५०।। किं चोज्जं जं परमेट्ठिमंतसुमरणअचिंतमाहप्पा । विहडंति आवयाओ गिरिंदगरुयाओ वि नराण! ।।३०५१।। तं जयइ भुयणगरुयं सासणमणहं जिणिंदचंदाण । लव्रण जस्स सत्तामेत्तं पि नरा न सीयंति ॥३०५२।। ता गाढमभिनिविठ्ठो कोइ रिऊ गरुयसत्तिमंतो य । छलमारणंमि सत्ती अहवा भण केरिसी तस्स ? ||३०५३।। साणो वि पेट्ठओ धाविऊण भक्खेइ तस्स का सत्ती ? ता नायं नेस रिऊ निक्कारिमविक्कमो सुहडो ॥३०५४।। जाणामि सत्तिमंतो जइ पयडं देइ दंसणं मज्झ ।' इय चिंतिऊण कुमरो गंभीरसरं समुल्लवइ ।।३०५५।। 'भो! भो! तुमं भणिस्सं जो वा सो वा भवेसु अप्पाणं । जयपयडसत्तिणा पयडियं पि कह तं तिरोहेसि ॥३०५६।। एयाए असमसत्तीए तुज्झ एयं असंगयं एकं ।। जं नासि रणे समुहो ता किं नु तुमं अदट्ठव्वो? ||३०५७।। ता ठाहि सवडहुत्तो पयडसु अप्पं खणंतरं एत्थ । । एण्हि चेव पयट्टओ(उ), तुह मह वा जयजसपयारो ॥३०५८।। मंतीण परं मंतो अदिट्ठसमराण होइ बहुमाओ । आयटुंति हढेणं लच्छि पुण संगरे सुहडा' ॥३०५९।। इय जा कुमरो सायरपडिसद्दनिहेण भणइ सर्वेण । ता पवणकेउणा वि य नियचित्ते संकियं सभयं ॥३०६०॥ Page #289 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८० दीवोव्व पयंगेणं गरुडो व्व भुयंगमेण सीहो व्व । हरिणेण खयरेणं भयतरलच्छेण सो दिट्ठो ||३०६१|| 'हा ! हा! कहं विवन्नो न एस एवंविहेहिं वि बहूहिं । तियसासुर - सिद्धाणं भयहेउमहोवसग्गेहिं ? ||३०६२ ॥ नो भूमिगोयराणं नराण एवंविहाओ सत्तीओ । अच्चुं (च्च) बभुयप्पहावो अइसयसत्ती इमो को वि ।।३०६३।। ता जुत्तमेव मायाजुज्झं अणुचिट्ठियं मए पुव्विं । इहरा इमस्स समूहो होंतो म्हि तणं व जलणंमि ||३०६४ ॥ तो बुद्धिमं च्छलिज्जइ बुद्धी पुरिसस्स आउहमखीणं । वज्जं पि नणु विलिज्जइ सुबुद्धिसन्नाहसहियस्स || ३०६५ ॥ ता एस पेच्छइ न मं मएणुमाणेण निच्छियं एयं । इहरा वाहरइ कहं 'ड़्ढुक्केइ न सम्मुहो मज्झ' ? ||३०६६ || इय तुडिगए वि कज्जे विसेसओ पोरुसं न मोत्तव्वं । जं मंदसाहिया किर किच्चा सवडमु ( म्मु ? ) ही होई ||३०६७।। ता पक्खिवामि एयं घणतिमि - सुसुमार-मयरपउरंमि । रयणायरंमि पावं अप्पडियारे रउद्दमि ||३०६८। तत्थाऽवस्सं मरिही खंडाखंडीकओ जलयरेहिं । अहयं पुण वेयहूं वच्चामि इओ पएसाओ' ||३०६९ ।। इय जाव पवणकेऊ चिंतइ ता वीरसेणकुमरो वि । असुयपडिउत्तरवसा विलक्खचित्तो विचिंतेइ ||३०७० || 'किं कुणउ पोरुसं मह अदिट्ठसत्तुंमि अवयरंतंमि । एवं भणिओ विन जो निल्लज्जो पयडए अप्पा ? ||३०७१ || सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ Page #290 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ २८१ - चिंतत्तो(न्तो) च्चिय एवं पयंडपवणुच्छलंतगुंजाहिं । उक्खित्तो खग्गकरो कुमरो खयरो व्व गयणंमि ।।३०७२।। 'एए दीसंति तरू एण्हि वणराइमेत्तमच्छरियं । तीरं च्चिय सव्वत्तो अपाररयणायरो नवरं ॥३०७३।। ता अवहरिओ संपइ तेणेव दुरासएण रिउणाऽहं । नूणं महासमुद्दे खिविही' इय चिंतइ कुमारो ।।३०७४।। 'को नाम तस्स दोसो निययच्चिय कम्मपरिणई एसा । अविवेय(यि)णो हि पुरिसा, परस्स रूसंति मूढप्पा ।।३०७५।। अन्नो न एत्थ सत्तू न य मित्तो होइ किंतु अप्पेव । तब्भावभाविओ खलु अप्पंमि रिऊ य मित्तो य ॥३०७६।। तेलोक्कमेव सत्तुत्तणेण परिणवइ दुट्ठहिययस्स । तं चेव सुद्धहिययस्स होइ नियबंधवसरिच्छं ।।३०७७।। एयंमि मएऽवस्सं अवयरियं तेण अम्ह एसो वि । अवयरइ जेण सत्तू न होइ निक्कारणो कोइ ॥३०७८।। ता सहियव्वं संपइ सव्वं अविसाइणा जहोवणयं । नाऊणं च गुरूहिं(हि)वि 'अविसाई होज्ज' इय भणिओ ॥३०७९॥ अलमन्नचिंतिएणं चिंतामि तमेव जं असामन्नं ।। भवजलहिपोयभूयं तिलोयबंधुं नमोकारं' ।।३०८०।। इय एवं चिंतंतो अदीणहियओ समुक्खओ दूरं । अविभावियवसुहा-जलहिवित्थारो खयरविज्जाए ॥३०८१।। पेच्छइ अप्परिफुडजीवलोयधूमधयारियं गयणं । पणत्ती(ती)सजोयणुच्चं अक्खुहियमणो महासत्तो ॥३०८२।। Page #291 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८२ अच्छोडिऊण मुक्को कयवहुत्थामाए खयरविज्जाए । जह खणमेत्तेणं चिय रएण पडिओ समुद्दमि ||३०८३ || रयवडण- समुच्छालिय-गयणग्गविलग्गउड्डवारिमिसा । दुट्ठविज्जाए तुरिओ जलहि व्वऽणुमग्गओ लग्गो || ३०८४|| अइवेगवसेण गओ कुमरो रयणायरस्स दूरतले । अकोसपमाणे अणाउलो जलहिहेमि ||३०८५|| अह कम्म- धम्मजोगा अचिंतसामत्थकम्ममाहप्पा | कुमरो नियइवसेणं अफंसिओ जलहिसलिलेण ॥ ३०८६|| पेच्छइ अछिकुमुयएण जलहिणो फलिहनिम्मयं तत्थ । सव्वंगसुंदरं भवणमेगमसुरिंदभवणं व ||३०८७ ।। रम्मत्त-सुयंधत्तणं-सिसिरत्तगुणेहिं जं कहेइ व्व । सिरि-पारियाय-ससहरविलासवसहित्तणं निययं ||३०८८ ॥ तं पेच्छिऊण कुमरो विम्यवियसंतलोयणो चित्ते । चिंतइ 'किं किं नु इमं अच्छरियमइट्ठपुव्वं मे ? ।। ३०८९ ।। रयणायरस गभे भवणमच्छिकं च जलहिसलिलेण । किं संभवइ असंभवमहवा गच्छामि ता पुरओ' ||३०९० | जा जाइ तत्थ पुरओ ता पेच्छइ दारसंठियं एगं । जरजज्जरंगजुवई वरखेडय - खग्गकयपाणि ।। ३०९१ ।। दट्ठूण तं कुमारो हिट्ठो हियएण चिंतए एवं । 'एयं चि पुच्छिस्सं वइयरमेयस्स भवणस्स' ||३०९२ ॥ तो फुरियदाहिणच्छो अनिमित्ताणंदपुलइयसरीरो । अणुकूलसउणपेरियहियओ तन्नियडमणुपत्तो ॥ ३०९३ ।। सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ Page #292 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ २८३ गंतूण तेण भणियं 'नमामि ते अम्ब ! कुसलणी तं सि?। को एस तुज्झ कालो खग्गगहणस्स वुड्डत्ते ? ||३०९४।। निहणसु दुक्कम्मरिऊ गहिऊणंगे सुधम्मसन्नाहं । खमखग्गपहारेणं संवरफरएण पिहियतणू' ।।३०९५।। सोऊण इमं वयणं कुमरस्सासीसदाणपुव्वं च । सा भणइ ‘पुत्त ! एवं न अन्नहा जं तए भणियं ।।३०९६।। काउं तीरइ धम्मो न पराहीणेहिं(हि) मारिसजणेहेिं ।' तो भणइ पुणो कुमरो ‘कहेहि मह कस्स भवणमिणं?' ||३०९७।। किं वा समुद्दमझे को निवसइ एत्थ ? किं तुमं दारे । कस्स व भएण चिट्ठसि खग्गकरा सावहाणा य ?' ||३०९८।। तो भणइ बंधुजीवा 'किं तुज्झ कहेमि पुत्त!? न हु अंतो । विहिविलसियाण बहुविहघडंत-विहडंतरूवाण' ॥३०९९।। नयणंतपघोलिरवाहसलिलपिसुणियविसेसदुक्खाए । भणियं सग्ग(ग)ग्गयक्खरमिमीए दीहयरमूससिउं ।।३१००।। 'पुच्छसि तुमं ति भणिउं साहिप्पइ अकहणिज्जमवि कज्जं । जम्हा कल्लाणागिई(इ)निवेसओ दिव्यपुरिसो सि' ।।३१०१।। तो भणइ वीरसेणो ‘अंब ! मए ठाविया सि गुरुदुक्खे । पुच्छंतेण असेसं भवणाई-निउणवुत्तंतं' ।।३१०२।। तो भणइ पुणो वुड्डा ‘पुत्तय ! तुह दंसणेण मह जाओ । नीसेसबंधुसंगमउइओ व्व विसेसपरिओसो ॥३१०३।। ता निसुणसु वेयड्ढे उत्तरसेढीए गयणसेहरए । नयरे खेयरराया चित्तगई नाम त्तभज्जा(तब्भज्जा) ॥३१०४।। Page #293 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८४ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ भाणुमई नामेणं ताण असोउ त्ति अस्थि पियपुत्तो । नीसेसकलाकुसलो चाई सूरो गुणन्नू य ॥३१०५॥ सो अन्नया भमंतो नासिकपुरं गओ विवाएण । दिट्ठा य तत्थ तेणं विचित्तजसराइणो धूया ||३१०६।। चंदसिरी नामेणं तिस्सा अणुरायपरवसमणेण । अन्नासत्ता तेणं उज्जाणवणाओ अवहरिया ॥३१०७।। गच्छंतेण य गयणे पुट्ठो विज्जाहरो मुणी तेण । 'भयवं ! कि(किं) मह एसा पाविही(हिइ) थिरत्तणं नारी?'।।३१०८।। मुणिणा पडिभणिओ सो ‘असोय ! समरंमि वीरसेणेण । गहियव्वा वरतरुणी तुज्झ सयासाओ अचिरेण' ॥३१०९।। तो सो भयसंभंतो 'नत्थि असज्झं ति वीरसेणस्स' । चिंतंतो परिभमिओ असेसवसुहं विमाणगओ ॥३११०॥ 'नत्थि अइगूढथाणं एद्दहमेत्ताए हंत वसुहाए ।। जत्थ किर गोविऊणं चंदसिरिं तस्स रक्खेमि' ॥३१११।। इय चिंतिऊण तेणं विज्जासामत्थओ इह समुद्दे । एयं अलक्खभवणं विणिम्मियं सलिलमज्झमि ॥३११२।। अच्चुच्चसत्तभूमियमच्चुज्जलफलिहनिम्मियं विमलं । जमगम्मं देवाण वि किम्मंग(किमंग)पुण मणुयमेत्ताण?।।३११३।। सा चंदसिरी इहई चिट्ठइ तं वीरसेणमेव पियं । ज्झायंती एगमणा परिचत्तअसेसवावारा ॥३११४।। दुक्खं च मज्झ एयं सो कुमरों वीरसेणो नामो जो । सो मज्झ पुत्तमित्तो अहवा सुय-सामिसालो य ।।३११५।। Page #294 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ मह संति दोन पुत्ता पुत्तय ! सिरिचंदसेहर - सुवेगा । ते कमलकेउखयरवहंमि मित्त त्ति संजाया ||३११६ ॥ चित्तगइमहाराओ अम्हं पुण होइ सामिसालोत्ति । तस्स सुओ य असोओ विसेसओ होइ अम्ह पहू ||३११७|| दोहं मज्झे एगस्स कह वि जइ होइ पच्चवाओ ता । न सुयाण अत्थि कुसलं अहमेवं दुक्खिया पुत्त ! ||३११८|| बहुविहअवायगब्भं मज्झं रयणायरस्स चिंतंती | चेट्ठामि खग्ग-खेडयपउणकरा सावहाणा य ।।३११९।। 'विस्सासठाणमेस 'त्ति तेण कलिऊण किर असोएण । दारंमि अहं ठविया नाणाविहपत्थणापुव्वं ।।३१२०।। ता पुत्त ! दुक्खकारणमेयं मह वीरसेणकुमरो जं । सुयमित्तो सामी वा होइ असोओ य सामिसुओ ।।३१२१।। दो वि समाणसरूवा दो वि पिया मज्झ दो वि पियता | पेच्छ कह देवजोगा ताणं पि उवट्ठियं वेरं ? ।। ३१२२ ।। इय एसो नीसेसो कहिओ भवणाइवइयरो तुज्झ । नियसोयकारणं पिय कहियं जं गुविलमच्चत्थं' ||३१२३॥ सोऊण इमं कुमरो अपारखारोयहं (हिं)मि जो पडिओ । इह चंदसिरित्ति सुए अमयसमुद्दे वि सो खित्तो ||३१२४|| चंदसिरिदंसणूसुयहियउक्कुलियाहिं बहुवियप्पाहिं । रयणायरपवेसासंकंताहिं व्व सो गहिओ ।।३१२५।। 'मह आवया वि एसा संजाया संपय व्व देववसा । मणवल्लहचंदसिरीपउत्तिसवणेण अच्चत्थं ॥ ३१२६॥ २८५ Page #295 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८६ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ जं जह लिहियं विहिणा तं तह परिणमइ किं वियप्पेण ? । इय भाविऊण वीरा विहुरे वि न कायरा होति' ॥३१२७।। दठूण परमपहरिसपुलइयसव्वंगसंगयावयव्वं(वं) । सिसिरोवहिसंगेण व पुण कुमरं भणइ सा नारी ।।३१२८॥ 'पुत्त! तुम पि कुओ इह? को सि तुमं ? किं सुरोव्व(व)असुरोव्व(व)। विज्जाहरो? कहं वा वियाणियं भवणमिह तुमए?'||३१२९।। तो भणइ वीरसेणो ‘मणुओ हं सायरस्स तीराओ । भवियव्वयाए इहइं पवेसिओ देवजोएण' ॥३१३०॥ पुण भणइ बंधुजीवा 'न पुत्त ! मणुयाण एरिसा सत्ती । पोयाईएहिं जओ न खमा रयणायरं तरिउं ।।३१३१॥ तुमए पुण पुत्त ! इमो पोयविहीणेण लंघियो जलही । अह कह वि होइ एयं इह प्पवेसो न संभवइ ।।३१३२। ता पुत्त ! न होसि तुमं मणुओ अणुमाणओवगच्छामि । कहसु मह नियसरूवं जइ कहणिज्जं महावीर !' ||३१३३।। इय भणिए पुण कुमरो चिंतइ 'किं मज्झ बहुवियप्पेहिं ? । विसमदसावडिओ हं खेयरलोओ य मायावी ||३१३४।। ता न जहत्थावेयणमिह कायव्वं जओ मणूसेण । परिभाविऊण देसं कालं पत्तं च जइयव्वं' ॥३१३५।। कुमरो भणइ ‘असेसं निययसरूवं तुहं पसाहिस्सं । समयंतरंमि संपइ मह साहसु कत्थ सो असोओ (सोऽसोओ)?'||३१३६।। पुण भणइ बंधुजीवा ‘एवं होउत्ति जं तुम भणसि । निसुणसु असोयवइयरमिह संपइ जं तए पुढें ॥३१३७।। Page #296 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ सिरिवीरसेणविणिउत्तखयराओ सुयमसोएण । जह पवणकेउणा सो वियारिओ बंधुवेरेण || ३१३८ || आयन्त्रिऊण एवं वयणं पणिहिस्स जायपरिओसो । सयमेव गओ असोओ तस्स पउत्तिं गवेसंतो' ।।३१३९॥ पुण भणइ वीरसेणो 'परिणीया किं न सा असोएण ?' | वुड्ढा भणइ 'न मन्नइ अन्नं पयिं वीरसेणाओ ||३१४०|| सो को वि इह तिलोए नत्थि उवाओ न जो असोएण । तिस्साराहणहेऊ विचिंतिओ तयणुरत्तेण ॥३१४१॥ सा उण एकग्गमणा पिय- माई-बंधु सहियणं चइय । 'मह वीरसेण ! सरणं हवेज्ज जम्मंतरे वि तुमं' ||३१४२ ॥ इय भणमाणी चिट्ठइ आससइ खणं ममं समासज्ज । पुच्छइ कहं सुएहिं तुह कहिओ कमलकेउवहो ? || ३१४३॥ ह ह ण सारुतं ( सा पुणरुत्तं ?) पुच्छेइ तहा तहा कहेम अहं । मह विरहिया सदुक्खं रोयइ तं चेव सुमरंती' || ३१४४ ॥ पुण भणइ वीरसेणो 'न बलामोड़ेण परिणइ असोओ । कन्ना खु सा अवस्सं सयदिन्ना होइ एगस्स' ||३१४५ || सा भइ 'पुत्तमेवं नासोओ भुंजए अणिच्छंती (तिं) । परनारिं आजम्माओ निच्छओ तस्स किर एसो ||३१४६ ॥ अविवेई सो पुत्तय ! एत्तियमेत्तं पि जो न जाणेइ । अप्पा परं विगुप्पइ अनेहनेहाणुबंधेण ||३१४७ ।। सो चंदसिरिविओए खिज्जइ सा वीरसेणविरहेण । ता पुत्त ! लज्जणिज्जो बुहाण एसो खु वृत्तंतो ||३१४८|| २८७ Page #297 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८८ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ बहुयं पि हु सिख(क्ख)विओ सो भणइ 'न अम्ब ! मह इमाहितो । अन्ना निवसइ हियए सुरूवतियसंगणा जइ वि ॥३१४९।। जं होइ किं पि तं होउ अम्ब ! मरणंपि जाव मह इटुं । चंदसिरिरायरसियस्स नवर(रं) जइ कह वि संपडइ' ।।३१५०।। इय पुत्त ! तस्स एसो महग्गहो तारिसो पुण इमीए । ता पज्जंतो इह केरिसो व होही न जाणेमि' ॥३१५१॥ इय सोऊणं कुमरो चिंतइ 'कह पेच्छ कामिहिययाई । होंति अज्ज(ज)हत्थपेच्छीणि? न उण पेच्छंति परमत्थं ।।३१५२।। ता कह होही संपइ चंदसिरीदंसणं?' ति चिंतंतो । निसुणइ बहुदुक्खसरं रुइयरवं अफुडवन्नकमं ॥३१५३।। तो सो पयडियकारुन्नभावतढुक्खदुक्खियमणो व्व । पुच्छइ का अम्ब ! इहं रोवइ बहुदुक्खजुयइ व्व ?' ||३१५४।। तो भणइ बंधुजीवा 'पुत्तय ! सच्चेव रुयइ चंदसिरी । बहुदुक्खा सोऊणं मरणं सिरिवीरसेणस्स ॥३१५५।। केत्तियमेत्तं एयं ? पढमं सोउं असोयपच्चक्खं । मुच्छं गया तहा सा जह चत्ता जीवियासा वि ।।३१५६॥ पुत्त ! न कीय वि दिट्ठो नारीए एरिसो मए नेहो । सिरिवीरसेणउवरिं जारिसओ नवर एयाए ।।३१५७।। ता पुत्त! चिट्ठसु तुम इहई मणिमत्तवारणे विमले । अहयं पुण गंतूणं रुयमाणिं संठवेमि तयं' ॥३१५८।। तो भणइ वीरसेणो ‘एवं कुणसु'त्ति सा गया उवरि । कुमरो वि अलक्खपओ अन्नदुवारेण आरूढो ।।३१५९।। Page #298 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ पत्तो सत्तमभूमिं ठिओ विचित्ते अलक्खनिज्जूहे । पेच्छंतो चंदसिरिं विसमावयनिवडियं दीणं ||३१६० ॥ तं दट्ठूण कुमारो चिंतइ 'हा ! पेच्छ मह विओएण । पावेण असोएणं कह एसा ठाविया दुक्खे' ? ||३१६१ ।। सोएण व अवऊढा दुक्खेहिं व संद्धि ( धि ) या बहुविहेहिं । मरणेण व अहिलसिया मोहगहेणं व संगहिया || ३१६२॥ पसरतेहिं व अंतो सासेहिं पणोलिओ सुहलवो से । तेण खणं पि न पावइ मणंमि बाला सुहलवं पि || ३१६३॥ नूणं एस समुद्दो इमीए विरहानलेण सुसइ व्व । पूरिज्जइ सोयभरं सुसलिलपूरेहिं पुणरुत्तं ॥ ३१६४॥ अणवरयथूलमोत्तियगलंतबाहंबुबिंदुदंतुरियं आणणमिमी रेहइ तुसारकणकलियकमलं व ।।३१६५।। सव्वंगेसु विकलिया किसत्तणेणं विसाल-धवलच्छी । अंगीकयधरभारं हियए कुमरं पिव वहंती ||३१६६ ।। चिंतावससंकुइया अंतोपसरंतलद्धवित्थारा । 1 मुच्चंति तीए सासा थरहरियथणं समूहेण || ३१६७ || बिउणीकयनियभुयवल्लिवामकरकमलकलियगंडयला । विकिरंती पुणरुत्तं नयणंसुकणे नहग्गेहिं ॥३१६८।। ' हा सामि ! हिययवल्लह ! हा जीवियनाह ! हा महासत्त ! | हा मज्झ अवन्नाए कएण कह पाविओ दुक्खं ? ।। ३१६९ ।। तुह विरहासंघियमच्चुमेयमासासियं मुणिदेण । तं सोउमावयं तुह मह जीयं महइ मरिउं पि ।। ३१७० ।। 20 २८९ Page #299 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २९० ते तुह मणोरहा वीरसेण ! परमाणुरायसंपन्ना । हा पवणकेउणा किं नि (नी) या विहलत्तणं एपिंह' ? ।।३१७१।। सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ इय एवमाइबहुविहपलावसयदुक्खिया य जा रुयइ । ता तीए थेरिनारीए ज्झत्ति च्छीयं समीवंमि ।। ३१७२ ।। 'जीवसु तुमं'ति भणिउं सा भणइ 'मणोरहा कुमारस्स । होहिंति न ते विहला इय कहियं मज्झ च्छी (छी) एण' ||३१७३।। सोऊणं चंदसिरी दुव्वयणविघायकारयं छीयं । ईसीसि आससंती थेरिं पइ भणइ वयणमिणं ||३१७४ | 'अंब ! न छीयं अलियं लोओ पुण भणइ जं असोयव्वं । ता कीइसो भविस्सइ परिणामो एत्थ नो जाणे ||३१७५ || कोहंड करेज्ज सया कुसलं चिय अज्जउत्तदेहंमि । जइ पूइया सि भयवइ अम्बाए मए वि भत्तीए' ।।३१७६।। इय एवं जा चिट्ठइ चंदसिरी सबंधुजीवाए ( ? ) | सह जंपती सहसा समागओ तो असोओ वि ।। ३१७७ || वियसियमुहतामरसो तुरियपयक्खेवदलियभवतो । दिन्नासणोवविट्ठो वुड्डाए समीवदेसंमि ||३१७८ ॥ एत्थंतरंमि कुमरो समागयं जाणिऊण खयररिंउं । खग्गंमि खिवइ दिद्धिं रणरसरोमंचियसरीरो ।। ३१७९ ।। 'निसुणेमि ताव एसो किं जंप किं करेइ खयरिंदो । लद्धूण तओऽवसरं जं उचियं तं करिस्सामि' ||३१८० ।। इय सो अलक्खरूवो निगूढनिज्जूहएण अंतरिओ । तव्वयणसवणविणिहियमणपसरो अच्छा कुमारो ||३१८१ || Page #300 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ तो भाइ खेयरिंदो वुढं उद्दिसिय 'अम्ब ! सो सत्तू । निहओ निच्छियमेयं सुयं मए पवणनामेण || ३१८२ ।। ओसहरहिओ वाही तवोकिलेसं विणा य दुकम्मं । एमेव कह णु पेच्छह रणं विणा पडिहओ सत्तू || ३१८३ || पावोदएण पावो नियएण विणासमेइ न हु चोज्जं । ता अम्ब ! सुत्थिओ हं संजाओ एत्तियदिणेहिं ॥ ३१८४ ॥ तेणं चिय एक्केणं हिययंततिरिच्छसल्लतुल्लेण । संसयतुलाए ठवियं मह जीयं वीरसेणेण ॥३१८५॥ जेण जियंतेण इमं सयलं भुयणं पि मज्झ अत्थमियं । विणिवाइएण तं चिय संपइ पयडीहुयं रिऊ ( उ ) णा ||३१८६ ॥ ता हं निरंकुसो इव एहि विहरामि विणिहयासंको । वसुहायलं विसालं को संपइ मज्झ पडिवक्खो ? ।।३१८७।। ता किं कज्जं संपइ जलनिहिसलिलंमि जलयराणं व । अम्हं इह वसिएण ? ता जामो अम्ब ! वेयड्डुं ||३१८८ || ता भणइ बंधुजीवा 'पुत्त ! तुमं जाणसि त्ति' तो तेण । पुण भणिया चंदसिरी परंमुही वियसियच्छेण || ३१८९ ।। 'चंदसिरि ! चयसु संपइ अणुबंधं वीरसेणकुमरंमि । जइवि तुहाणिट्ठोहं तहावि मं मन्त्रसु पयिं ति ।। ३१९० ।। अणुरते रचि (च्चि ) ज्जइ अणिट्ठदइए वि कारणवसेण । पुन्नेहिं होइ जोगो अन्नोन्नणुरतहिययाण ||३१९२॥ ता अंब ! भणसु एयं जामो वेयड्डपव्वयवरंमि । तत्थ गयस्स भविस्सइ चंदसिरी मज्झ सुपसन्ना' ||३१९२ ।। २९१ Page #301 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २९२ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ तो भणइ बंधुजीवा 'पुत्त! तुमं चेव भणसु सव्वं पि । नाऽहं एरिसकज्जे वियक्खणा जेण वुड्ड म्हि' ॥३१९३।। भणइ असोओ 'निसुणसु अम्ब ! तुमं मह इमीए कइया वि । उत्तरमवि नो दिन्नं दूरे मह वयणकरणं तु ।।३१९४।। जइ तुह पच्चक्खं चिय भणिया एसा न मे जया करिही । वयणं तया भविस्सइ मह हिययं कोवपज्जलियं' ॥३१९५॥ इय भणिऊण असोओ चंदसिरि भणइ ‘वच्च उठेहि । पाविही तुह न संपइ विणिच्छओ अज्ज निव्वाहं ॥३१९६।। एत्तियकालं भणिया अणुणयवयणेहिं बहुवियप्पेहिं । संपइ पुण पडिकूलं भणामि जं होइ तं होउ ।।३१९७।। ता चलसु ठासु पुरओ, न चलसि ता संपयं पि विह(हि)सि । मह मणकोवहुयासणजलंतजालासु सलहत्तं ॥३१९८।। को पडियारं काही कुटुंमि मए असेसभुयणंमि ? । सो वि हओ तुह इट्ठो जस्स कुणंती तुमं आसं ॥३१९९।। ता एस निच्छओ मे जं तुह इह्र तमेव आयरसु ।। जइ इच्छसि मं, जीवसि, अह निच्छसि, तो धुवं मरसि ॥३२००।। इय एवं भणिया वि हु खयरस्स न देइ उत्तरं जाम्व(जाव)। ता सो विलक्खिमाए कोवारुणलोयणो भणइ ॥३२०१।। 'पेच्छ इह मह वयणेसुं अहो ! अवन्ना इमीए पावाए । एवं पि बहुं भणिया तहा वि नो उत्तरं देइ ॥३२०२।। अवहेरी वि विरायइ लज्जा-संभम-भयाइरेगेहिं । 'नारीण न उण निठुर-हिययावन्नाए गरुएसु ॥३२०३।। Page #302 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ तुझ अवन्ना विसहसि एत्थ हिययंमि मह तुमाहिंतो । संकंता धिट्टत्तण- निल्लज्जिम - निग्घिणत्तगुणा || ३२०४ || अइविरसं चिय भुंजसु फलं अवन्नावहेरिविसतरुणो' । इय भणिऊण असोओ खग्गकरो उट्ठओ सहसा || ३२०५ || एत्थंतरंमि सहसा ' मा मा साहसमसोय ! कुणसु तुमं । जुवई होइ अवज्झा' भणियमिणं बंधुजीवाए || ३२०६ || पसरता अमरिस (तामरिस) महं-धयारविणिहयविवेयउज्जोओ । अविगणियथेरिवयणो पहाविओ चंदसिरिहुत्तं || ३२०७ || आयन्त्रिऊण एयं कुमरो अइविसमकोवफुरिओट्ठो । दिढवीरगंठिनिवसणबंधुरबंधुद्धसिरजूडो || ३२०८॥ पडिवन्नविसमभासुरभावो भूभंगभीमभालयलो । पुणरुत्तपरामरिसिय-निसियासि पयडीकयामरिसो || ३२०९॥ अंतग्गयरोसहुयाससोणजालाकयप्पवेसेहिं । 1 ses व्व दीरेहिं रोसारुणलोयणेहि रिउं ॥ ३२१०॥ रणरसरहससमुब्भवरोमंचविसेसपुलइयसरीरो । रिउविसयरोसपसरियवियप्पसयसंकुलो हियए ।। ३२११ || इय एवं संजत्तियसरीरसंठाणसंगयावयवो । संनद्धपरियरायारबंधुरो होइ जा कुमरो || ३२१२ ।। ता तेण असोएणं खग्गं आयड्डिऊण चंदसिरी । भणिया 'न होसि संपइ संभरसु तमिट्ठदेवं पि ॥३२१३ ॥ तो दट्ठूण असोयं करालकरवाल- भासुरं नियडे । भयवेविरंगजट्ठी चंदसिरी भणइ सावन्नं ।। ३२१४ ।। २९३ Page #303 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २९४ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ 'किं जंपसि ? मह जम्मंतरे वि चंदप्पहो जिणो सरणं । बीओ य वीरसेणो सरणागयवच्छलो वीरो' ॥३२१५।। इय कुविओ सोऊणं सो खयरो जाव खग्गमुग्गिरइ । ता हळूतो पत्तो तस्संते वीरसेणो वि ।।३२१६।। 'रे पावकम्म! निग्घिण! अलज्ज! विज्जाहराहम! कहनु । पसरइ भयवेविरनारिमारणे माणसं तुज्झ? ||३२१७॥ एए वि तुज्झ हत्था अपसत्था अखंडसीलसाराए । सयखंडा किन्न गया पहरंता बालनारीए ? ||३२१८।। वरमसिलया तुहेसा न तुमं जा तेयमसहमाणिव्व । विप्फुरियनीलकिरि(र)णच्छलेण धाराहिं व विलीणा ॥३२१९।। करुणाठाणेसु ण जाण होइ करुणा सुनिधि(ग्घि)णमणाण । पावाण ताण तुम्हारिसाण नामं पि हु अगेझं ॥३२२०।। एसा नीई जं निग्गुणेसु अवहीरि(र)णा विहेयव्वा । मूढस्स तुज्झ तत्थ वि तोसठाणे कहं रोसो ? ॥३२२१।। अहवा पावमईणं पावाणुट्ठाणतग्गयमणेण । परिणमइ दोसभावत्तणेण गुणिणो गुणसमूहो' ।।३२२२।। इय एवमुदारासयवसगरुयालावपयडियपहावं । दठूण वीरसेणं खयरो इय चिंतइ मणमि ।।३२२३।। 'तं अलियं चिय जायं जं किर पवणेण मारिओ एसो । एत्थ वि कहं पविट्ठो गंभीरसमुद्दभवणंमि? ॥३२२४।। को एत्थ विम्हओ किर अहवा एयारिसस्स वीरस्स? । गम्मागम्मविभागो वज्जस्स व कह णु संभवइ ? ||३२२५।। Page #304 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २९५ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ इहरा वि हु मरियव्वं केत्तियदियहेहिं ता वरं एण्हि । अमलियमाणस्स रणे अणेण सह मज्झ तं होउ' ॥३२२६।। इय जा चिंतइ खयरो ता भणिओ वीरसेणकुमरेण । किं चिंतसि? मा बीहसु न हणेमि असोय ! वच्चेसु ।।३२२७॥ मुक्काउहाण लज्जावसाण भीरूण मुच्छियाणं च । पहरइ न मज्झ हत्थो समरे पहरंतनारीण ||३२२८।। ता जइ वि मज्झ तुमए अवयरियं पिययमावहारेण । मुक्को सि तह वि वच्चसु न होसि निक्कारिमो सुहडो' ।।३२२९।। ईसीसि विहसिऊण भणइ असोओ ‘कुमार ! एवमिणं । पेच्छामि तुह वि सत्ती तुहोचियं तयणु काहिस्सं ॥३२३०।। विज्जाहरो म्हि बहुविहविज्जासामत्थ-सत्तिसंजुत्तो । जइ तुज्झ वि असमत्थो ता सव्वं निप्फलं मज्झ ।।३२३१।। तुह कमलकेउविणिवायणेण दप्पो सुदूरमारूढो ।। निहए तुमंमि संपइ निरासओ सो कहिं जाही? ।।३२३२।। अज्जेसा चंदसिरी कित्ति व्व जए पयट्टउ रणमि । मह तुज्झ वाऽणुबद्धा आजम्मं किन्नरुग्गीया ॥३२३३।। जेण तुमं भूगोयर ! कयत्थिओ पवणकेउणा तइया । सो किं ते वीसरिओ एण्हि खयराण सामत्थो ? ।।३२३४।। अमुणियविक्कमसारो सबुद्धिपरियप्पियप्पगव्वो य । कह भणसि मज्झ समुहं न होसि निकारिमो सुहडो? |३२३५।। पसरंति जे वि संखलगज्जिरवा एत्थ जुवइपासंमि । जइ निव्वहंति ते च्चिय रणमि ता किं न पज्जत्तं? ||३२३६।। Page #305 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २९६ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ ता ठाहि सवडहुत्तो किं बहुणा जंपिएण? समरंमि । धीराण कायराणं च अंतरं लब्भए पयडं' ॥३२३७।। तो भणइ वीरसेणो ‘सच्चमिणं खेयरिंद ! जं भणसि । निव्वाहो च्चिय दुलहो नराण नियभणियवयणेसु ।।३२३८।। ता मा बहुं पयंपसु संभालसु आउहं थिरो होहि । तुह पुव्वजंपियाणं मह खग्गं उत्तरं दाही' ।।३२३९।। एत्थंतरंभि दोन्नि वि अन्नोन्नाभिमुहसन्निवेसेण । दट्ठोडभिउडिभीमा पहारसज्जाविया कुमरा ।।३२४०।। अह खेयरेण सहसा खग्गं मोत्तूण मोग्गरो ग्गहिओ । उद्धं भमाडिऊणं पक्खित्तो वीरसेणस्स ॥३२४१।। कुमरेण वि नियखग्गं मोत्तु तेणेव मोग्गरेण सयं । तह निहओ खयरिंदो जह मुच्छापरवसो जाओ ।।३२४२।। पहरानिलसंधुक्कियकोवेण वि तेण तक्खणे च्चेय । दो रूवे निम्मविए अट्ठभुए खेयरिंदेण ॥३२४३।। दठूण दोन्नि रूवे विविहाउहभीसणे पडिहणंते । करमोग्गरेण कुमरो ते जुगवं निप्फुरे कुणइ ॥३२४४।। निठुरपहारमोग्गरमोडियलंबंतबहुभुयनिवेसे । ते रूवे संजाए आखंडियसाहतरुतुल्ले ॥३२४५।। इय चउर-ट्ठय-सोलस-बत्तीसगुणे य जाव चउसट्ठी । सव्वे वि तेण निहया कारिमपुरिस व्व कुमरेण ||३२४६।। इय जेत्तियाइं विरइय(विरयइ) मायारूवाइं खेयरो समरे । कुमरो वि तेत्तियाई मोग्गरपहरेण पाडेइ ।।३२४७।। Page #306 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ एवमसोओ असरिसकुमारसामत्थदंसणुत (त्त ) त्थो । सव्वप्पणा ससत्तिं पउंजिउं अह समाढत्तो || ३२४८ || अइविसमकोवनिद्दयनिद्दट्ठाहरकरालमुहभीमो । कुमरभयनीहरंतं जीयं व नियं निरुंभेइ || ३२४९ ॥ चउभारसहस्साय सजलंतजालाकरालदुपे ( प्पे ) च्छं । उक्खिवइ खेयरिंदो कुमरवहत्थं महासत्तिं ॥३२५०|| तो अमर-सिद्ध- किन्नरहाहारवबहिरियंबर-समुद्दो । सहसत्ति पेच्छयाणं हा कट्टरवो समुच्छलिओ ।। ३२५१ ।। 'हा ! पुरिसरयणमेयं असेससंसारसारमेएण । मायाविखेयरेणं कह निहणं नीयए वीरं ?' ।।३२५२ ॥ इय सोयवसवियंभियपेच्छयसुरनारिसकरुणालावं । निसुणतो संधीरइ चंदसिरिं वीरसेणो वि ॥३२५३ ॥ भइ असोयं कुद्धो 'कायर ! रे खयर ! मुंचसु ससत्तिं । किं चिंतसि ? पेच्छामो सामत्थं ता इमीए वि' || ३२५४ ॥ तो तव्वयणारोसियहियओ पक्खिवइ खेयरो सत्तिं । कुमराणुहावसिसिरं तमेव कुमरो समारुहइ ।।३२५५।। सिरिवीरसेणनिठुरचरणपहाराहया खडडंती । पडिया धराए सत्ती असोयसत्ति व्व निफु (प्फु) रणो (णा) || ३२५६।। तो सहसा उच्छलिओ जयसद्दुम्मीसिओ सुरवहूणं । गयणंमि साहुवाओ कुमारगुणरंजियमणेण ॥३२५७।। इय जं जं च्चिय पेसेइ खयरो कुमरस्स आउहं घोरं । तं तं कुमरो निहणड़ तणं व जलणो समीवगयं ।। ३२५८ ।। २९७ Page #307 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २९८ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ तो भणइ खेयरिंदो 'गिण्हसु खग्गं न होसि रे दुट्ठ !। पेच्छसु पाव ! अयंडे जमनयरं मज्झ हत्थेण' ॥३२५९।। अह तेण वीरसेणो सावटुंभेण खयरवयणेण । आणंदिओ व्व समुहो संपत्तो पाणिकयखग्गो ॥३२६०।। अन्नोन्नं पुलइज्जइ पुलओ सुहडेहिं दोहिं वि सदेहे । मणवंच्छियजयलच्छीपरिरंभवसेण व पयट्टो ॥३२६१।। तो भणइ वीरसेणो 'पहरसु खग्गेण खयर! अखु(क्खु)द्धो । इय भणिएणं मुक्को निद्दयपहरो असोएण ॥३२६२।। तेण वि दक्खत्तेणं अणोसरंतेण वंचिऊण सयं । खित्तो खग्गपहारो सो वि असोएण तह दिट्ठो ॥३२६३।। इय अन्नोन्नं ताणं दक्खत्तणवंचियासिघायाण । पयडियविन्नाणगुणं जायं जुझं महाघोरं ॥३२६४।। अब्भिर्टेति खणेणं, खणेण विहडंति, संघडंति खणं । खणमुटुंति सुदूरं, कयनिग्घाया पडंति खणं ।।३२६५।। खणमुवहसंति घायं खणं च निहसंति निठुरं निहया । उब्भडभिउडीभंगा खणमन्नोन्नं व हक्कंति ।।३२६६।। खणमप्पंति सरीरं पहरस्स परोप्परं खणं निहया । मुच्छानिमीलियच्छा पडंति वसुहाए निच्चेट्ठा ॥३२६७।। खणमुट्ठिऊण एक्को आसासइ सीयलोवयारेण ।। खणमागयचेयन्नो जुझंति पुणो तह च्चेय ।।३२६८।। इय ताण परोप्परमच्छेरण समरे अभग्गपसराण । जुज्झंताणं भग्गो असिधारंगो असोयस्स ॥३२६९।। Page #308 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २९९ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ तो दठूण य कुमरो खयरं गलियाउहं असंभंतो । परिहरइ नियं पि असिं पयडंतो खत्तधम्मगुणं ।।३२७०।। तयणंतरं च दोन्नि वि वीरा मुक्काउहा समच्छरिया । जुझंति निजुज्झेणं नाणाविहकरणबंधेहिं ।।३२७१।। पढमभुयप्फालणगहिरसहवित्तत्थजलयरसमूहा । अभिट्टा अन्नोन्नं जुज्झविऊ बाहुजुज्झेण ।।३२७२।। तलहत्थबंध-कत्तरि-ढोक्कर-करघायविविहविन्नाणा । पडिविन्नाणनियत्तियबंधुवबंधाइणो वीरा ॥३२७३।। ते दोन्नि वि दुद्धरिसा दोन्नि वि दप्पुद्धरा निजुज्झविऊ । दोन्नि वि सुदुन्निवारा परोप्परं दोन्नि वि सकोवा ॥३२७४।। दोन्नि वि उड्डंति समं दोन्नि वि निवडंति, दोन्नि विघडंति । दोन्नि वि बंधनिबद्धा दोन्नि वि अप्पं विमोयंति ।।३२७५।। इय एवं जुझंता विसमाहिनिवेसमुक्कहुंकारा । जाव खणमेत्तमच्छंति ताव कुमरो असोएण ॥३२७६।। उप्पाडिऊण उढे प्पक्खित्तो तक्खणे निवडमाणो । परिवियडउरयडेणं परिरद्धो निद्धबंधु व्व ।।३२७७।। 'नियभुयदंडावीडणविसमट्ठिनिवेसकडयडरवेण । मोडेमि वीरसेणं'ति जाव अज्झवसइ असोओ ॥३२७८।। ता तुरियं कुमरेणं हेट्ठाहुत्तं कहं वि हसिऊण । चरणेसुं गहिऊणं भमाडिओ खेयरो उ8 ।।३२७९।। विलुलंतथूलमोत्तियहारुज्जलकिरिणसेयघणकेसो । जयसंसी तणुदंडो चमरो इव रेहइ असोओ ||३२८०।। Page #309 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०० भमिरेण । दइयाहरणाजसधूलिमलियभुयणं व तस्स घणछुट्टकेसवोहारएण उ ( ओ ) सारइ कुमारो || ३२८१।। मुह-सवण-नासियानीहरंतरुहिरोहथूलधाराहिं । सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ रेहइ नहे भमंतो पयलमहावारिवाहा व्व ॥३२८२॥ जा भामिऊण कुमरो अच्छोडइ महियलंमि तो तेण । मरणंतो त्ति मुणेउं ‘नमो जिणाणं' च उल्लवियं ॥३२८३ || तं सुणिऊण कुमारो 'हा ! हा! निहओ म्हि पावकम्मई । साहम्मिओ असोओ कह णु मए वहिउमादत्तो ?' || ३२८४ ॥ तो कुमरेणं मुक्को सणियं वसुहाए सायरमसोओ । आसासिओ य सीयलहरियंदण-वत्थपवणेहिं ॥३२८५॥ पच्चागयचेयन्नो खयरो जा नियइ ता पुरो कुमरं । पेच्छइ कम्मयरं पिव तव्वावारंमि उज्जुत्तं ॥३२८६ ॥ दठ्ठे भाइ असोओ 'कुमार ! किं रक्खिओ त अहयं । कुद्धो पडिपहरंतो अभणियदीणक्खरो सत्तू ?' ।। ३२८७ ।। तो भइ वीरसेणो 'न होसि सत्तू तुमेव मह मित्तो । मरणंते जस्स न ते 'नमो जिणाणं' ति पम्हुसियं || ३२८८ ॥ दूरे हिययब्भंतरपसरंतविसेसभत्तिसंजुत्तं । एवं चिय जिणनामं समुच्चरंतो वि मे मित्तो || ३२८९ ॥ नो मारिसाण सत्ती मरणंमि उवट्ठियंमि रक्खेउं । रक्ख बहुभवमरणं जिणाण नामक्खरं एयं ॥ ३२९० ॥ जं किं पि मए तुह कोहमूढहियएण खयर ! अवयरियं । तं सव्वं खमियव्वं अविवेओ एत्थ अवराही || ३२९१॥ Page #310 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०१ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ अइनिम(म्म)ला वि मलिणीहवंति पुरिसा उवाहिदोसेण । फालिहमणि व्व तम्हा हेउ च्चिय सकलुसोवाही' ||३२९२।। इय सोऊण असोओ वयणं कुमरस्स जायबहुलज्जो । अनिरिक्खंतो समुहं अहोमुहो चिंतई एवं ॥३२९३॥ 'पच्चक्खं च्चिय दीसइ अंतरमहमुत्तिमाण पुरिसाण । जह अहयं पि य अहमो जह एसो उत्तमो कुमरो ॥३२९४।। जं जं परिभाविज्जइ तं तं चिय अहममेव मह कम्मं । अहमाणुट्ठाणेणं अहमत्तं होइ पुरिसस्स ॥३२९५।। एयस्स पुणो सव्वं अच्चुत्तममेव सुहसमायरणं । एएण उत्तमो च्चिय कुमरो पडिहाइ मह हियए ।।३२९६।। उत्तमकुल-जाई वि य अहमायरणेण होति जं अहमा । उत्तमकम्मायरणा इयरे वि य उत्तमा होति ।।३२९७।। परमरिऊ अवयारी रणंगणे मारण(णु)ज्जुओ बलवं । विणिवाइओ वि इमिणा अहमेवं रक्खिओ तह वि ||३२९८।। कुंभुब्भवचुलुयपमाणजलहिणो पयडमेव गहिरत्तं । सुयणाण पुणो हिययं अलद्धथाहाण अपमाणं ॥३२९९।। ता सव्वहा निएणं चरिएणं लज्जिओ न पारेमि । दिढि इमस्स धरिउं दूरे पच्चुत्तरपयाणं ।।३३००।। अहिमाणमेव जीयं तं पि कुमारेण अवहडं मज्झ । ता निज्जीवो म्हि सवो सवो वि कह उत्तरं देइ ?' ॥३३०१।। इय चिंतिउं असोओ अदिन्नपडिउत्तरो य सहस त्ति । जाओ अदिस्सरूवो सुविणयपुरिसो व्व खणमेत्तो ॥३३०२।। Page #311 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०२ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ कुमरो वि अपेच्छंतो तमसोयं तत्थ भवणमझमि । उद्दिसिय बंधुजीवं सविसायं भणिउमाढत्तो ॥३३०३।। 'अम्हारिसाण वच्चओ(उ) खयमम्ब ! परिक्कमो पहावो य । जो एरिसाण जायइ सुसावयाणं पि खेयो य' ॥३३०४।। तो भणइ बंधुजीवा 'कुमार ! खेओ न कोइ तस्सत्थि । तुह चरियविम्हएणं ससरूवे लज्जिओ एसों ॥३३०५।। ते सुयणा जेसिं दुज्जणा वि हिययट्टिएहिं व गुणेहिं । हयदोसा लज्जाए सुयणत्तं अब्भसंति व्व ॥३३०६।। तेसिं चेव गुणाणं समुज्जलत्तं मणमि तिमिरं व । अवणेइ दुज्जणाणं दोजनं जं परूढं पि ।।३३०७॥ ता तुह असरिससोजन्नभावसंभावियाणुरायस्स । अणुमीइज्जइ लज्जा निययसरूवे असोयस्स ॥३३०८।। एण्हि मह संतोसो कुमार ! जं तुज्झ रायधूयाए । सह जाओ संजोगो जं च अविग्धं असोयस्स ॥३३०९।। नाओ सि पुत्त ! तं चेव वीरसेणो सि विक्कमाईहिं । अण्णस्स कस्स भुयणे मणुयस्स हवेज्ज इय सत्ती ? ||३३१०।। जे तुज्झ गुणा कहिया सुएहिं मह ते तुमंमि दिटुंमि । कह सव्वे वि तुहुत्तरचरिएहिं व सयगुणा जाया ॥३३११।। ता पुत्त ! चिरं जीवसु होसु पई चउसमुद्दवसुहाए । अणुरूवपणइणीसंगमेण उवभुंजसु सुहाई' ॥३३१२।। तो कुमरो सोऊणं वयणं वुड्डाए भणइ तुह पुत्ता । अम्ब ! उवयारिणो मे वेरिवहाणंतरं जाया ॥३३१३।। Page #312 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०३ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ जइ ते तत्थ न हुंता ता हं सह पउमएविभइणीए । निरवटुंभो सयसिक्करो व्व गयणाओ निवडतो' ॥३३१४।। इय एवमाइ बहुयं तग्गयगुणगहणपयडियप्पणयं । जंपइ वुड्ढाए समं सोवसमं सविणयं कुमरो ॥३३१५।। तो चंदसिरीसमुहं गओ कुमारो अणुब्भडसरूवो । पयडियबहुमाणाए तीअ वि अब्भुट्टिओ सहसा ॥३३१६।। जे तीए पुरा कुमरे जुझंते भयविमिस्सकुवियप्पा । पियदंसणेण ते च्चिय सिंगारमयव्व संजाया ।।३३१७।। तिस्सा मुहं विरायइ आवंडुरगंडकंतिकमणीयं । तव्वेलुग्गयससहरकरकलियं फुल्लकुमुयं व ॥३३१८।। दठूण वीरसेणो चंदसिरिं विरहदुब्बलं भणइ । 'अद्दिट्ठबंधुविरहा बहुदुक्खं पाविया देवि ! ||३३१९।। जह उवणमंति तव्विहकम्मपहावेण देवि ! सोक्खाई । दुक्खाइं तहा तत्थ वि हरस-विसाया विमूढाण ॥३३२०।। जइ विसमदसावडणे न होइ वीरत्तणस्स उवओगो । ता तं निव्विसयं च्चिय उवजुज्जइ कंमि समयंमि ॥३३२१।। ता मा मयच्छि ! नारीसुलहं खेयं मणमि उव्वहसु । जइ अणुकूलो देव्यो ता बंधुयणस्स मेलेमि' ॥३३२२॥ सोऊणं चंदसिरी वयणमिणं हरिसवियसियकवोला । हिययभंतरपसरंतपणयगब्भं पियं भणइ ॥३३२३।। मा अज्जउत्त ! संकसु जमहं किर बंधुविरहदुक्खत्ता । तुह विप्पओयगुरुदुक्खभारपिहियं पिव गयं तं ॥३३२४।। Page #313 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०४ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ बालत्तणं मि पिय-माई-बंधुसहियायणो पिओ होइ । आरूढजोव्वणाणं जुवईण पिओ पिओ एक्को ||३३२५॥ पियसंगमाओ न परं सुहमिह विरसंमि जीवलोयंमि । तव्विरहाओ न दुक्खं पि किं पि अन्नं जए गरुयं ॥३३२६।। ता अलमत्तेण पयंपिएण चिंतेसु पिययम ! तुरंतो । संसारघोरसायरनिवासदुक्खाओ उत्तारं' ।।३३२७।। एवं जाव परोप्परमालावपराई ताई चिट्ठति । ता भवणस्सुवरितले संजाओ गरुयनिग्घाओ ।।३३२८।। 'मा बीहसु'त्ति आसासिऊण पियपणयणिं कुमारो सो। उवरिमतलमारूढो तक्कारणजाणणत्थं च ।।३३२९।। जा जाइ असंभंतो ता पेच्छइ नंगरं गुरुपमाणं । अइदीहररज्जुनिबद्धमायसं जाणवत्तस्स ॥३३३०।। तस्साणुलग्गबब्बरजुवाणजुयलं[य] पेच्छइ कुमारो । खारोयहिजलसंगमदड्डसरीरं च अइकसिणं ॥३३३१।। अइथूल-कालकायत्तणेण पिहुलोहपिंडघडियं व । तेण अहोरत्तं चिय गुरुभरकज्जेसु अकिलंतं ॥३३३२।। तो चिंतइ रायसुओ ‘जाण गुरुजाणवत्तमिह देसे । नंगरियमागयं पुण कुओ पएसा न जाणामि ।।३३३३॥ ता पुच्छामि इमे च्चिय बब्बरए' चिंतिऊण कुमरेण । ते पुच्छिया अभासा-भएण उ8 चिय पलाणा ॥३३३४॥ गंतूण बब्बरेहिं कहिओ नियजाणवत्तसामिस्स । फालिहभवणकुमाराइवइयरो जो जहा दिट्ठो ॥३३३५।। Page #314 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ सोऊण सत्थवाहो तं वृत्तंतं असद्दहंतो य । पेसइ थिरपच्चइए पुरिसे निज्जामयप्पमुहे ||३३३६ ॥ दिट्ठो तेहिं कुमरो देवकुमारो व्व खग्गकयपाणी । पणिवइओ सव्वेहिं वि सविम्हउडभंतनयणेहिं ॥ ३३३७|| पढमाभासणपुव्वं कुमरेणं जाणवत्तवृत्तंतं । ते पुच्छिया समाणा कहंति तव्वइयरमसेसं ||३३३८।। 'चंदउरपुरनिवासी पज्जुन्नो नाम जाणवत्तपई । दव्वज्जणबुद्धीए महाकडाहं गओ दीवं ॥ ३३३९॥ आवज्जियं च तत्थ य मणवंच्छियमत्थमप्पमाणं च । एहि च पडिनियत्तो चंदउरिं (रं) पत्थिओ नयरं ||३३४०|| अज्ज म्ह दोहि मासा एत्थ वहंताण जलहिमज्झमि । अइमंदमारुयवसा न पयट्टइ पव्वहणं ( पवहणं ) तुरियं । ३३४१ ।। अज्ज उण पहाए च्चिय उच्छलियं वद्दलं असामन्नं । तेणेत्थ जाणवत्तं पडिखलियं नंगरो खित्तो ||३३४२ ॥ नगरनिग्घायरवं इह सोउं बब्बरा तओ पहिया । तेहिं पि तुम्ह दंसणवुत्तंतो साहिओ सव्वो ||३३४३ || सोउं पज्जुन्नेणं अप्पत्तियंतेण पेसिया अम्हे । निज्जामउ (ओ) म्हि एए सव्वे वि य तस्स कम्मयरा' ||३३४४ ।। आयन्निऊण कुमरो वइयरमेयं च जाणवत्तस्स । 21 चिंतइ सुंदरमेयं पोयं परतीरगमणंमि ||३३४५॥ तो भाइ वीरसेणो 'मणुओऽहं कह वि देवजोएण । एत्थागमो अप्प (गओऽप्प) दुइओ गंतुमणो उत्तरं तीरं' ||३३४६ ॥ ३०५ Page #315 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०६ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ निज्जामएण भणियं 'वच्चह तुरियं किमेत्थ भणियव्वं ? । पावेमि परं तीरं जइ अणुयत्तंति विहि-पवणा' ॥३३४७॥ तो ते सह कुमरेणं गया समीवंमि रायधूयाए । कुमरेणं सा भणिया 'सुंदरि ! गच्छम्ह पोएण' ॥३३४८।। 'तुह वयणं चिय पिययम ! मज्झ पमाणं'ति उठ्ठिया भणिउं । चंदसिरी, तो पभणइ कुमरं निज्जामओ एयं ॥३३४९।। ‘एएणं जह नयणे नासा-सवणाई ज्झंपह इमेण । पच्छा दुवे वि तुब्भे नीसंका जाह जलहिंमि' ।।३३५०॥ तव्वयणमणुढेउं बंधुजीवाए कयपणामाई । तीए अहिणंदियाइं दोन्नि वि पोयं पहुत्ताई ॥३३५१।। तो नियइ सत्थवाहो तं मिहुणं जाणवत्तपडिलग्गं । महणविणिग्गयमंदर-तडसंगयससहरसिरिं व्व ॥३३५२।। पीणुत्तुंगपओहरवित्थारपणोल्लिओयहितरंगा । कंचणकुंभजुएणं तरइ व्व सकोउयं बाला ।।३३५३।। तव्वेलुवे(व्वे)ल्लिरतुंगलहरिसिहरग्गसंठिओ कुमरो । ससिरि व्व हरी रेहइ वासुइसयणे समुइंमि ॥३३५४।। 'पेच्छह अउव्वरूवं पुरिसं नारिं च विजियतैलोक्कं । कह जलहिँमि पवेसो इमाण ? कहमेत्थमच्छरियं ? ||३३५५।। किं उयहिकुमारो एस होज्ज नियपणइणीए परियरिओ ? । नारायणो व्व किं वा लच्छिजुओ वसइ जलहिँमि ? ॥३३५६॥ किं वा गयणपरिस्समसंतावायासिओ समुइंमि । विज्जाहरो सदइओ जलकेलीसोक्खमणुहवइ?' ||३३५७।। Page #316 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०७ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ इय तहंसणपसरिय-वियप्पसयसंकुलो जणसमूहो । अविणिच्छियसब्भावो संजाओ जाणवत्तस्स ॥३३५८॥ तहसणरसधावियलोयसमोणमियबीयपासुं व्व । कुमरारोहणविणयोणमियं पिव सहइ बोहित्थं ॥३३५९।। तो नियपुरिसायन्नियसरूवपच्चक्खदिट्टकुमरो य । अब्भुट्टइ पज्जुन्नो संभमसंजत्तियवरिल्लो ॥३३६०॥ तो कुमरसमुक्खित्तं पडिच्छियं सत्थवाहपुत्तेण । आरोवइ चंदसिरिं पोयं कुमरो तओ चडइ ॥३३६१।। तो पज्जुन्नो सहरिससंपाइयआसणाइउवयारो । । परियप्पइ सप्पणयं कुमार-कुमरीण आवासं ॥३३६२ ।। सुहसेज्जापरिसंठियकुमारसेवाहिलाससुहियप्पा । पुच्छइ पज्जुन्नो तं समुद्दपरिपडणवुत्तंतं ॥३३६३॥ तह साहइ सोवसमं अप्पपसंसाविवज्जियं वीरो । आरोविओ सुदूरं जह गुणगव्वो निओ तेण ॥३३६४।। अमुणियगव्वसरूवा वि गुरुगुणा ववहरंति तह कह वि । जह गुरुगुणगव्वाणं गव्वो दूरं समोसरइ ॥३३६५।।. सोऊण सत्थवाहो वुत्तंतं तस्स चिंतइ मणंमि । ‘एवंविहाण नूणं नत्थि असझं जए किं पि' ॥३३६६।। इय एवमाइ सव्वं पज्जुन्नो कुमरगुणगयं जाव । चिंतइ ता अणुकूलो वहणस्स पवाइओ पवणो ॥३३६७।। तो उट्ठिऊण पभणइ पज्जुन्नो सव्वकम्मयरलोयं । • 'उक्खिवह नंगरं रे ! उच्चल(लोह कूयखंभंमि ॥३३६८। Page #317 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०८ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ पूरह य असंभंता सियवडमक्खिवह तणियसंघायं । निययावल्लयठाणेसु बब्बरे ठावह समत्थे ॥३३६९।। निज्जामय ! उवउत्तो उत्तरहुत्तं चरेसु रे ! पोयं । एकदरे मा थक्कह इयरदरं तुरियमक्कमह ॥३३७०।। दुग्गिलय ! जाणवत्तं पूयसु वरपुफ(प्फ)-गंध-धूवेहिं । मंजरय! पंजरोवरि आरुहसु नियच्छसु दिसाओ ||३३७१॥ कच्छवय! पेच्छ पुरओ सुदीहवंसेण सलिलपरिमाणं । मुखविल्ल! वच्चसु तले केत्तियवांमं जलं हेढे ॥३३७२ ।। छड्डयय! जलं छड्डुसु गंमत्तपएससंचियं तुरियं (?) । अफा(प्फा)लह रे ! तूरं वच्चइ पुरओ महामच्छो' ॥३३७३।। इय एवमाइ सव्वं पज्जुन्नो जाव परियणं भणइ । ता विजियपवणवेयं संचलियं जाणवत्तं पि ॥३३७४।। . जं चिंतियं मणेणं पट्टिमि परिट्ठियं तयं वेगा । कह संघडइ खणं पि हु मणोवमाणं पवहणस्स ॥३३७५।। जं पडुपवणवसुग्गयवेयवियंभमाणगइपसरं । खे खेयरेहि(हि) तुरियं वाउविमाणं व सच्चवियं ॥३३७६॥ दोपासंतनिरंतरनिवडत्तारित्तबहुकरेहिं व । गहिरत्तणकुवियं पिव उल्लिंचइ जलहिणो सलिलं ॥३३७७।। निविडावल्लयपिहुपक्खवायसंखोहिओयहिजलोहं । पसरइ अभग्गपसरं तं पोयं गरुडपोयं व्व ॥३३७८।। गुरुकल्लोलारोहणदूरसमुल्लासियग्गिमपएसं । जेउं व नियरएणं सुरजाणे गयणमुप्पयइ ॥३३७९।। १. आवल्लक, खंता. टि. ।। Page #318 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०० सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ इय एवं बहुवेए पयट्टमाणे वि जाणवत्तंमि । न चलइ ठाणाओ पयं इय अणभिन्नाणपडिवत्ती ॥३३८०।। लोएहिं वेयपसरंतपोयवसजायसंभवे(मे)हिं नहे । दीसइ तारानिवहो पच्छाहुत्तं (व) धावंतो ॥३३८१॥ इय तं पोयं पडुपवणपेल्लिरुद्दामवेयपसरंतं । पत्तं पंचदिणेहिं समुद्दमझंमि गिरिमेगं ॥३३८२।। जलहिमहणावसाणे सुरेहिं जो महणसमकिलंतेहिं । असमत्थेहिं व वोढुं मंदरसेलो व्व परिचत्तो ॥३३८३।। उव्विग्गो इव बाढं खारोयहिगब्भवासवसहीओ । उवसंतकुलिसतासो मेणायगिरि व्व नीहरिओ ॥३३८४।। जो महणबंध-मुणिचुलयपाण-सिरिहरणमाइदुक्खाण | सहणसमत्थो गरुओ हिययपएसो व्व जलहिस्स ॥३३८५।। दठूण गिरिवरं तं पज्जुनो भणइ कुमरमुद्दिसिउं । 'पेच्छसि देव ! गिरिंदं पुरओ गयणग्गपडिलग्गं ? ॥३३८६।। एयाओ गिरिवराओ उत्तरतीरं दुजोयणसएहिं । जइ एसो च्चिय पवणो ता जाणसु देव ! संपत्ता ॥३३८७॥ एयस्स देव! नामं विसालसिंगो त्ति गिरिवरिंदस्स । बहुपुफ(प्फ)फलभरोणयविविहुज्जाणेहिं जुत्तस्स ॥३३८८।। पक्खीणिंधण-जल-जवससंगहं देव ! बहुयदियहेहिं । इहइं च पडिखलिज्जइ पोयं उत्तरह तुब्भे वि ॥३३८९।। वीसमह सह पियाए इहयिं नरनाह ! तयणु संपुन्नं । काऊण पवहणमिओ उत्तरतीरंमि वच्चामि' ॥३३९०॥ Page #319 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१० सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ ‘एवं'ति कुमारेणं भणिए पोयं खणेण तं पत्तं । उत्तरिओ पज्जुन्नो कुमरो तह रायधूया य ॥३३९१।। तं नियइ वीरसेणो सेलं गयणंतराललग्गेहिं ।। जो फलियदुभग्गेहिं हणइ बुभुक्खं नहयराण ॥३३९२ ।। जो दीहनिरंतरनालिएर-खज्जूरतरुवरेहिं व । गयणंमि अमायंतो उढे व नहं समुक्खिवइ ॥३३९३।। जो महुरसिसिरनिज्झरजलपूरियरुंदकंदरनिवेसो । तियसभएण तिरोहियअमयस्स अलंघदुग्गं व ॥३३९४ ।। जो वेलावसचउदिसिपसरियजलभरियगहिरकुहुरंतो । चिरकुलिसतावतत्तो जलकेलिसुहं व अणुहवइ ।।३३९५॥ मडहाययतुंगो वि हु जो वेलाजलनिरुद्धपेरंतो । ओहरियजलसमूहो सो च्चिय तुंगत्तणं लहइ ।।३३९६।। जो पवणुद्धयडिंडीरपिंडपरिपंडुरोरुतडभाओ । रेहइ दूरसा(समा?)गय-परिरुद्धतुसारसेलो व्व ॥३३९७।। अणुमीय(इ)ज्जति जहिं पज्जलियमहोयहीउ दियहेहिं । पइदियहं पेरंते निसि निवडियसलहनिवहेहिं ॥३३९८।। रविकरफंसपयट्टो जत्थ दिणे रवि-मणीण जो जलणो । सो निसिकरचंदाहयचंदुवलजलेहिं उण्हाइ ॥३३९९।। इय तत्थ वीरसेणो विज्जाहरमिहुणसेवियदरिंमि । परियडइ अप्पिऊणं चंदसिरिं सत्थवाहस्स ॥३४००।। निज्झरणेसु गुहासु य कुमरो सिरिखंडदुमवणेसुं च । गिरितुंगसिंगसिहरे सीहो व्व अणाउलो भमइ ॥३४०१।। १. मडहा पयइतुंगो० ला. ।। २. दूरमागय० ला. ॥ Page #320 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ अन्नोन्नं पेक्खंतो रमणीययरं पएसमद्दिस्स । . कुमरो गओ दुजोयणववहाणपहं पवहणस्स ॥३४०२।। जा जाइ थोवदूरं पुरओ ता नियइ निबिडतरुगहणं । वसुहालुलंतसाहासहस्सहयदिणयरालोयं ।।३४०३।। कोऊहलेण कुमरो अंतोनिक्खित्तनयणवावारो । जा जोयइ ता निसुणइ बहुजणकोलाहलं तत्थ. ।।३४०४।। पविसइ पुरओ सनियं पेच्छइ सिरिखंडपायवंतरिओ । बहुविज्जाहरसेन्नं पारंभियसमरवावारं ॥३४०५।। पसरंति रणरसुब्भडब्भ(भ)डाण पहुलद्धतक्खणाएसा । नाणाकिरियाणुगया तव्वेलं रणसमारंभा ॥३४०६॥ इह को वि महासुहडो सिरि निबिडनिबद्धजूडओ रहसा । पहुकज्जमहाभारं व वहइ सीसंमि सीसक्कं ।।३४०७।। वच्छत्थलघोलिरहारवल्लिमिह बंभसुत्तए अन्नो । समरे चलंति बंधइ को वि भडो निययहिययं व ॥३४०८॥ अंसत्थलेसु घोलिरमुत्तारइ कन्नकुंडलं को वि । झणझणिरकंकणावलिमालोयइ को वि करवालं ॥३४०९।। इय सन्निहियमहारणवावारं जे कहंति अभयंता ।. खयराण तेण दिवा तव्वेलं ते समारंभा ॥३४१०॥ तं खयरबलं दटुं कुमरो सन्नद्धपरियराय(या)रं । चिंतइ ‘एए कत्थ वि संगामत्थं व संचलिया ॥३४११॥ ता होउ ताव एए पेच्छिस्सं एत्थ पायवंतरिओ । कत्थ पयट्टति ? कुणंति कह व विज्जाहरा समरं?' ॥३४१२॥ Page #321 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१२ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ एवं जा पेच्छंतो सो अच्छइ. ताव तत्थ संजमियं । पेच्छइ मित्तं खेयरपडिरुद्धं बंधुयत्तं पि. ॥३४१३।। ओलक्खिऊण मित्तं चिंतइ चित्तंमि वीरसेणो वि । 'हा एस मज्झ मित्तो कह पत्तो एरिसावत्थं ? ||३४१४।। अहवा न सा अवत्था इह अत्थि नरस्स जा न संभवइ । विगुणविहिविलसिएणं विसमदसाकूवपडियस्स ॥३४१५।। ता पेच्छामि किमेए कुणंति एयस्स खेयरा कुद्धा ? । पच्छा जमेत्थ उचियं तमहं सयमेव काहिस्सं'।।३४१६॥ तो तेहिं बंधुयत्तो नीओ नियसामिसन्निहाणंमि ।। जोक्कारिऊण भणिओ खयरेहिं पहू इमं वयणं ॥३४१७॥ 'तुम्हेहिं देव ! पुट्विं बहुमाया(?य?) असोयसुद्धिलहणत्थं । वेयड्डाओ तुरियं नासिकं पेसिया अम्हे ॥३४१८।। तत्थागएहिं नायं हरिय असोएणं देव ! चंदसिरी । दाहिणदिसाए नीया उज्जाणाओ विमाणेण ॥३४१९॥ इह को वि वीरसेणो सुव्वइ सो तीए मग्गओ लग्गो । सो देव! महासुहडो नियविक्कमविजियतेलोको ॥३४२०।। रूवेण निरुवमाणो संपुण्णकलाहि हसियसियकिरणो । केत्तियमेत्तं व धणं? विमग्गिओ देइ जीयं पि ॥३४२१।। एवंविह गुणजुत्ते तंमि कुमरंमि तयणुरत्तंमि । सा चंदसिरी निब्भरघणपिम्मपरव्वसा रत्ता ।।३४२२।। तिस्सा सरीरमेत्तं विज्जासत्तीए हरउ सोऽसोओ । सा उण न तस्स सत्ती तिस्सा हिययं जहा हरइ ॥३४२३।। . Page #322 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ एसा देव ! पउत्ती निसुया नासिकपुरजणाहिंतो । इह कहणत्थं तुरिओ पट्ठविओ तुह सुदाढो वि ||३४२४|| दाहिणदिसा वि निउणं अम्हेहिं गवेसिया असेसा वि । न देव ! तहा वि जाया मूलसुद्धी असोयस्स ||३४२५ || अह अण्णया अरण्णे परिब्भमंतेहिं देव ! अम्हेहिं । दिट्टं लोहियकरयलपरिमंडियचंडियाभवणं ॥ २४२६|| अइरोद्दरण्णवासं अइभीसणपरियणेण संकिण्णं । अइभीमसमायारं अइभासुरभैरवीगब्भं ॥ ३४२७॥ कच्चायणिआकरिसियजीवेहिं व सुक्कुरुक्खनिवहेहिं । जं भेसइ व्व कोडरपडिसंठियकक्कडेहिं जणं ॥ ३४२८॥ जालासहस्सभीसणजालामुहनिवहवेढियसवंतं । सहइ व्व जं निसासुं चियाहिं भीमं मसाणं व ।। ३४२९ ।। विससियपसुमहिसामिसनहलुद्धभमंतगिद्धसंघायं । अणवरयजीववहकयपावमहापडलपिहियं व ॥३४३०॥ उवहारत्थं खंडियकर-नासा-सवणजोइणीकलियं । विकंतनियामिसवीरवग्गबहुहट्टसंघट्टं ||३४३१ ॥ दीसंतभूय- रक्खस-पिसायपरिसानिबद्धआवाणं । डमडमिरपाणिडमरुयवसन्न(न) च्चिरजोइणिसहस्सं ||३४३२ || मारिज्जमाणपूयानरमुकुकुंदभीसणपएसं । हयमहिसबहललोहियपंगणपहदिन्नघणछडयं ||३४३३ || विससिज्जमाणबहुविहजल-थल - नहजंतुनिवहसंकिन्नं । जं भीसणं विरायइ जमस्स कर्म (मं) तगेहं व ।।३४३४।। १. शृगाली, खंता. टि. ।। २. विनाश्यमान खंता. टि. ॥ ३१३ Page #323 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१४ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ बहलारुणलोहियभित्तिलोहियघणसूलसयसमाइण्णं । वस-मंसवल्लहत्तणपसारियासंखजीहं व ॥३४३५।। दारदुवासपरिट्ठियवेयालुक्खित्तमडयतोरणयं । वज्जिरहुडुक्क-ड(ढ)क्का-डमरुअरवगहिरगब्भहरं ॥३४३६।। चक्कासि-सूल-खेडयकरालकरभासुराए चंडीए । नररुंडमुंडमंडियमुंडाए अहिट्ठियं गब्भे ॥३४३७।। नरयस्स व पडिच्छंदं खेत्तं पिव जं दुकम्मबीयस्स । भवरक्खसहासं पिव बीभत्सरसस्स कुंडं व ॥३४३८।। इय देव ! तमेवंविहसरूवमम्हेहिं दूरओ गयणे ।। परिसंठिएहिं दिटुं भैरविभवणं पओसंमि ॥३४३९॥ तं पेच्छिऊण भवणं अवइन्ना तत्थ कोऊ(उ)हल्लेण । आढत्ता परिभमिउं अलक्खरूवा महाराय ! ॥३४४०।। अह तत्थ भमंतेहिं दक्खायणिभवणसन्निहाणंमि । नामेण अघोरगणो दिट्ठो जोईसरो एगो ।।३४४१॥ दठूण विविहजोइणि-जोईसरविंदवेढियं जोयिं । अदि(द्द)स्सतणू अम्हे उवविट्ठा तस्स पासंमि ॥३४४२॥ एत्थंतरंमि एसो कुओ वि खयरिंद ! आगओ पुरिसो । आगंतूण अणेणं कओ पणामो अघोरस्स ॥३४४३॥ तेण वि सायरमेसो दाऊणासीसमेत्य उवविससु । इायाभणिओ उवविट्ठो भणिऊण 'महापसायं'ति ।।३४४४।। तो तेण पसंतसरूवदंसणुप(प्प)न्नपक्खवाएण । जोईसरेण पुट्ठो 'कुओ भवं ? किमिह आगमणं?'||३४४५॥ - Page #324 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१५ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ एएण वि पडिभणियं 'भयवंत ! जहाकहिंचि कहियव्वं । अइगुविलं गरुययरं एगंतुवओगि कज्जमिणं' ॥३४४६।। तो तेण तक्खण च्चिय पच्चासन्नो विसज्जिओ लोओ । एगते उवविट्ठा दोन्नि वि अम्हे वि तस्संते ।।३४४७॥ तो देव ! निरवसेसं अट्ठावयसेलदेवजत्ताए । जह तुम्ह असोयस्स य गीयविवाउ(ओ) समुप्पण्णो ॥३४४८।। देवोवएसओ जह नासिकूपुरं समागया तुब्भे । तत्थागएहिं दिट्ठा चंदसिरी तिहुयणअब्भ(णब्भ)हिया ।।३४४९।। जह तुम्ह असोयास्स वि जुगवं अणुरायनिब्भरमणाण । चंदसिरिहरणविसया संज(जा)या विविहकुवियप्पा ।।३४५०।। जह वंचिओ सि भाउय ! नहसेहरनिवडिउत्तमंगेण । दिन्नं निययविमाणं जह चंदसिरीए कवडेण ॥३४५१।। जह उज्जाणपरिट्ठियचक्केसरिभवणमज्झयारंमि ।। अन्नोन्त्रणुरायभरे दोहिं वि हिययाइं मिलियाइं ॥३४५२।। जह सा उज्जाणाओ अवहरिया तेण हय-असोएण । तिस्साणुमग्गओ जह पडिलग्गो वीरसेणो वि ।।३४५३।। सिरिवीरसेणविरहग्गिदुसहजालासएहिं(हि) डझंतो । तप्पडिवहे प्पयट्टो अहमवि किर दंसणासाए ॥३४५४।। इय एवमाइ सव्वं वित्थरओ तस्स जोइणो जमिह । एएण देव ! कहियं तं निसुयं सव्वमम्हेहिं ॥३४५५।। पुण देव ! जोइएणं एस नरो पुच्छिओ विसेसेण । किं निब्भराणुरत्ता चंदसिरी वीरसेणंमि ॥३४५६।। Page #325 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ एएण तओ भणियं 'भयवं ! सो सेहरओ असोओ वि । चित्तलिहियंगणाए व तीए मुहा परिकिलिस्संति ॥३४५७।। 'हा ! हा ! नरा वराया अन्नासत्ते वि कह णु रज्जति?' । इय करुणाए पयट्टइ नरंतरे तीए जइ चित्तं ॥३४५८॥ सिरिवीरसेणबाहुगुणसंदाणियमिव न वच्चए तिस्सा । पुरिसंतरंमि हिययं जोईसर ! निच्छओ एसो ॥३४५९॥ भयवं! सो मह मित्तो न सेहरासोयसमविवेयगुणो । वत्थुसु पडिबद्धमणो विरुद्धकज्जायरणभीरू ॥३४६०॥ ता भयवं ! नाऽसझं तुह किं पि असेसभुयणमज्झंमि । तह कुणसु जहा मित्तं तुज्झ पसाएण पेच्छामि ।।३४६१।। परदुक्खदुक्खिओ च्चिय जइलोओ होइ एत्थ किं चोज्जं ? । ता दुक्खियाण जोगं करेसु दुण्हं पि अम्हाण' ॥३४६२।। इय भणिउणं(ऊणं)एसो पडिओ पाएसु तस्स जोइस्स । तेणावि एस भणिओ 'आयण्णसु भद्द ! मह वयणं ॥३४६३।। सुरवइउच्छंगाउ(ओ) इंदाणिं जइ न तस्स आणेमि । ता मह सामत्थं चिय मामं न तुमं महासत्त ! ॥३४६४।। अहवा कह पत्तिज्जउ कज्जगुरूणं पि वयणमेत्ताण । . जाव न पेच्छइ लोओ पच्चक्खं ताण विप्फुरणं ? ||३४६५।। ता केत्तियं ममेयं तुह वयणुवरोहपीडियमणस्स? । नणु सव्वहा घडिस्सं तुह मित्तं चंदसिरिसहियं ।।३४६६।। जाणामि तुज्झ मित्तं अहं पि जयपायडं महासुहडं । सिरिकामरु(क)यदेसे निसुयं गुणकित्तणं जस्स ॥३४६७।। Page #326 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१७ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ हंतूण कमलकेउं सीलं जीयं च रक्खियं जीए । सा चेव पउमएवी जसढक्का जस्स भुयणमि ॥३४६८॥ ता अत्थि मह विसेसाणुढाणं अज्ज अट्ठमिनिसाए । तं कायव्वमविग्धं अज्जेव य मंतसंसिद्धी ॥३४६९।। ता साहेज्जमवस्सं तुमए मह सव्वहा वि कायव्वं । मह पुन्नेहिं अरन्ने घडिओ सि तुमं न संदेहो ॥३४७०।। तयणंतरं च पुण तुह सकलत्तं संघडेमि वरमित्तं' । इय जोइएण भणिए भणियं पुणो देव ! एएण ॥३४७१।। 'भयवं ! महापसाओ संपज्जउ तुज्झ कज्जसंसिद्धी । मह उण सुमित्तजोगो तुहाणुभावेण संभविही' ॥३४७२।। तो जोइएण भणियं 'वच्चामो वच्छ ! कज्जसिद्धीए । जाव न रयणी वच्चइ दुजाममेत्ता महासत्त !' ||३४७३।। कयचंडीचलणच्चण-वावारा दो वि गहियउवगरणा । संपत्ता अइभीसणमसाणभूमि(मि) असंभंता ।।३४७४।। तत्थागंतूण तओ मंडलपूयाविहिं च काऊण । उवविठ्ठो तस्सुवरि सो जोई भणिउमाढत्तो ।।३४७५।। 'भो ! बंधुयत्त ! एयं जोइणिखेत्तं सपच्चवायं च । वेयाल-भूय-रक्खस-पिसायसयसंकुलं घोरं ॥३४७६॥ ता सावहाणहियओ चउसुं पि दिसासु खित्तचक्खू य । जह कस्स वि अवयासो न होइ तह तं करेज्जासु' ||३४७७।। एएण तओ भणियं 'भयवं ! मा किं पि कुणसु आसंकं । जाव अहमेत्थ ता तुह को किर वंकं पलोएंइ ? ॥३४७८।। Page #327 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१८ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ तम्हा एक्कग्गमणो उज्झियसंको समाहिसंपन्नो । . साहस-सत्तसमेओ जोईसर ! साहसु सकज्ज' ॥३४७९।। तो सो सधी-निब्भयवयणेहिं इमस्स विणिहयासंको । जोईसरो पसाहियनियकम्मो झाणमासीणो ॥३४८०॥ एसो वि देव ! पुरिसो खग्गकरो तस्स जोइणो वीरो । पासेसु परिभमंतो चिट्ठइ रक्ख(क्खु)ज्जुओ दक्खो ॥३४८१।। एयस्स पहावेणं पुरिसस्स न खुद्ददेवयानिवहो । पहवइ निरंतरायं झाणज्जोओ वि नित्थरइ ॥३४८२।। इय जाव परमपयरिससमरसभावंमि वट्टए झाणं । 'बहुविहविहीसियाहि विं(हिं वि)न खुब्भए जाव जोइंदो ॥३४८३॥ ता दाहिणदिसिहुत्तं उच्छलिओ मेहडंबरविहीणो । गिरिसिहरसेलनिवडणरवोवमो क्खडखडासद्दो ॥३४८४।। तो देव ! एस पुरिसो सदं सोऊण धाविओ सहसा । 'मा बीहसु जोईसर !' इय भणिरो दाहिणाहिमुहं ॥३४८५।। जा जाइ ताव पुरओ नह-वसुहंतरपमाणदंडो व्व । नियकायकालिमाए व व(म?)इलित्तो(?)नहयलाहोयं ॥३४८६।। पजलंतनयणजुयलो मुहु(ह)कुहरंतरविणितसियदसणो । लोयण-वयणेहिं नहे गहोडुनिवहं पिव गिलंतो ॥३४८७॥ घणकसिणकेसभासुरसरीसिवावेढचच्चरिकरालो । दलृद्धवल्लिबंधणघणतणपूलं पिव वहंतो ॥३४८८।। दूरपसारियमुहविवरदीहनीहरियजीहविकरालो । १, गहिरगुहंतरनिग्गयपारिंदो विज्झसेलो व्व ॥३४८९।। १. बहुविधविभीषिकाभिः ।। २. अजगर खंता. टि. ॥ Page #328 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ सिरिकन्न-कंठ-बाहु-सुपउट्ठ- कडि चरणमाइअंगेसु । अहिसंगओ विरायइ चिरदड्डो चंदणदुमोव्व ।। ३४९० ।। जो दाहिणेण रेहइ निसियायसकत्तियाकरालेण । जोइंदरुहिरत हानिग्गयजीहेण व करेण ||३४९१।। सोणियपरिपुन्नेयरकरकलियकवालघडियपडिविंबो । इयरामिसमलहंतो अप्पाणं असिउकामो व्व ॥ ३४९२|| फुक्कारफारमारुयमिसेण किर जस्स भूसणभुयंगा । जोइयविसयपयट्टं कोहगिंग दीवयंति व्व ॥ ३४९३ ॥ इय सघणचरणघग्घरिरवबहिरियसयलदिसिवहाहोओ । दारुणदाढो नामं दिट्ठो एएण खेत्तवइ (ई) ||३४९४ ॥ 'रे ! रे ! दुट्ठ ! दुसिक्खिय ! पावदुक्क ( क ) म्मेक्ककरणलच्छ । अवमन्निऊण में कह अहिलससि विसेससिद्धीओ ?' || ३४९५ ।। इय पयइकक्कुसेण सरेण बहुकोवमुक्कमुहजालो । निब्भच्छंतो पत्तो इमस्स पासंमि खेत्तवई ॥ ३४९६ ॥ तो देव ! असंभंतो एस नरो तस्स खेत्तवालस्स । गंभीरधीरवयणं पुरओ ठाऊण उल्लवइ ||३४९७॥ 'उवसंहर कोवमिणं खेत्ताहिव ! भव पसंतवावारो । देवाण कहं रोसो पसवइ आराहयजणेसु ? ।। ३४९८ || जइ एस दुव्विणीओ ता तस्स फलं इमो सयं लहिही । पक्खिवसि कह तुमं पुण अप्पाणं अजसपंकंमि ? || ३४९९ ॥ नियदोसेहि विनिहयं हणंति कह निग्गुणं जणं गरुया ? उवभुत्तविसे पुरिसे नणु विहला आउहारंभा || ३५०० ॥ 1 | ३१९ Page #329 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२० मणभत्तिमेत्तसज्झा, हवंति देवा करेमि तं तुज्झ । माकुणसु किंपि विग्घं खेत्ताहिव ! जोइणो एहि' || ३५०१ ॥ तो देव ! खेत्तवालो सविणयमेयस्स वयणविन्नाणं । सोऊण दरपसंतो सोवसमं भणिउमाढत्तो || ३५०२ ॥ 'जो जारिसं अणुट्ठइ सो पावइ तारिसं फलं एत्थ । नियदुव्विणएण इमो अजाइयं सक्खमावन्नो || ३५०३ ॥ अप्पिट्ठियाप्पहीणा अम्हे नणु खुद्ददेवया तुच्छा । छलमेव गवेसामो नो उवउत्तेसु पहवामो || ३५०४ || ता एस मए जोई लद्धो नणु सव्वहा च्छले पडिओ । दुव्विणएणं दिनो मंडलथालट्ठियनिवेज्जो ||३५०५ ।। जइ ताव दुव्विणीओ तुमए वि हु लक्खिओ इमो जोई । ता कहमिमस्स उज्जुय ! पडिवण्णं विसमसाहेज्जं ?' || ३५०६ ॥ तो तव्वयणविरामे भणियं एएण देव ! पुरिसेण । जं होइ किं पि संपइ तं होउ तहा वि न चएमि || ३५०७।। सगुणंमि निग्गुणंमि य पडिवन्ने जाण होइ निव्वाहो । ताणं चिय सोजन्नं मन्नामि अहं मणुस्साण ||३५०८|| गुणिणो नियगुणगरुयत्तणेण संपत्तभुयणसाहेज्जा । सव्वस्स वेक्खणीया इयरे पुण कत्थ वचं (च्चं ) तु ? || ३५०९ ॥ आवइवडिए नणु निग्गुणे वि विवरंमुहा जे हवंति । निक्करुणयाए ताणं न होंति इहलोय-परलोया' ।।३५१०।। तो भइ खेत्तवालो 'जइ तुह नणु निगु (ग्गु ) णे वि साहेज्जं । ता कुणसु, चोरमिलिओ साहू वि हु पावए मरणं || ३५११ || सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ Page #330 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ ३२१ ता लट्ठयं च जायं किं मह एएण होइ एक्केण ? । दोहिं वि जणेहिं होही मज्झ बुभुक्खाए उवसामो' ।।३५१२।। तो देव ! खेत्तवइणो वयणं सोऊण तक्खणेणेसो । कोवानलपज्जलिओ करवालकरो समुल्लवइ ।।३५१३।। 'जह जह सुरो त्ति सविणयवयणेहिं भणामि पत्थणापुव्वं । तह तह अहिययरं चिय किं कज्जं कोवमुव्वहसि? ॥३५१४।। जे होंति खुद्दजाई सुर व्व पुरिस व्व वामसब्भावा । एए न सामसज्झा दंडेण परं उवसमंति' ॥३५१५।। इय भणिऊणं एसो उक्खयकरवालभासुरो पुरिसो । सहस त्ति खेत्तवालस्स अभिमुहं धाविओ देव ! ॥३५१६।। तो सो दारुणदाढो एयं दठूण संगरसयण्हं । उक्खिवइ उभयकरयलकयसंपुडसंठियं भणइ ।।३५१७।। 'किं तुह असिणा सिद्धं ? किं वा वयणेहिं पुव्वभणिएहिं? । को एण्हि तुह काही रक्खं करसंपुडगयस्स ? ।।३५१८॥ तो कह वि पाणिसंपुडपरिट्ठिएणेव देव ! एएण । छिदंतरेण छिन्ना दारुणदाढस्स मुहजीहा ॥३५१९।। जा देव ! खेत्तवालो पीसइ कोवेण कणिसमिव एयं । ता कहमवि नीहरिओ आरुहइ सिरंमि तस्सेसो ॥३५२०॥ जाव पसारइ पाणिं उड़े ता देव ! जाइ खंधमि । खंधाओ सिरं वच्चइ पहणंतो खग्गपहरेहिं ॥३५२१।। जा समयं च्चिय दोम्हि(हि) वि करेहिं किर धरइ खेत्तवालो वि । ता एस पुण पविट्ठो पिहुलयरे सवणविवरंमि ।।३५२२।। 22 Page #331 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२२ . सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ तो खरखग्गपरिक्खयमुहसवणविणीहरंतु(त)रुहिरोहो । कुणइ ब्व खेत्तवालो संजायविसूइओ छडिं ॥३५२३॥ तो देव ! एस पुरिसो किमिव्व विवरंतरेसु पसरतो । धुणिऊण सिरं कहमवि विणिवडिओ धरणिवलृमि ॥३५२४।। एत्थंतरंमि सहसा सो जोई सिद्धसयलमंतत्थो । समयमुट्ठिऊण धावइ बहुकोवो खेत्तवालस्स ।।३५२५।। दठूण सिद्धमंतं जोइंदं तस्स तेयमसहंतो । दारुणदाढो सहसा न जाणिओ कत्थ वि पणट्ठो ।।३५२६।। तो तं अपेच्छमाणो सो जोई भणइ 'सुयण ! न हु भंती । तुज्झ पसाएण महं संजाया मंतसंसिद्धी ।।३५२७।। जइ इह तुमं न हुंतो ताऽहं एयस्स करकवालंमि। अत्ति(ति)हित्तं वच्चंतो अपरित्ताणो महासत्त ! ॥३५२८॥ ता किं बहु पलविज्जइ ? बाहिरवत्थूसु का किर थिरासा ? । नियजीविएण कीयं मह जीयं तुज्झ आयत्तं' ।।३५२९।। एएण तओ भणियं 'भयवं ! भुयणोवयारिणो तुज्झ । वड्डउ जीयं मह वुण मित्तेण समं हवउ जोगो' ॥३५३०॥ तो देव ! भणइ जोई 'तुह अज्ज वि बंधुयत्त ! संदेहो ? । पज्जालसु इह जलणं तो हुणिमो सेहरासोए ॥३५३१॥ . हुणिएहिं तेहिं दोहि वि अपच्चवायं करेमि तुह कज्जं । जम्हा ते वि समत्था बहुविज्जा सिद्ध-मंता य ॥३५३२।। ता आणसु समिहाओ अहं पि आणेमि पुण चियाजलणं' । ____एवं भणिऊण दुवे नियकज्जं काउमाढत्ता ॥३५३३।। Page #332 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ तो देव ! अम्ह जायं महाभयं जोइवयणसवणेण । पच्चक्खदिट्ठफुरणा जोइस्स इमं विचिंतेमो || ३५३४ || 'जइ केवलो हुणिज्जइ एत्थासोओ हवेज्ज ता लट्ठे । जं अम्ह सामिसालो पहुणिज्जइ तं परमभद्दं' ।। ३५३५ ।। तो अम्हेहिं वि तुरियं चियग्गिणो पाणिएण विज्झविया । पवणंजएण जोई पक्खित्तो जलनिहिजलंमि ||३५३६ || एसो वि देव ! पुरिसो जा भमइ अरन्नमज्झयारंमि । समिहाओ गवेसंतो ता दिट्ठो तत्थ अम्हेहिं ।।३५३७।। सो अम्ह नत्थि खयरो इमस्स सवड ( डं) मुहो[य] जो हवइ । तो एएण सखग्गं रुक्खे ओलंबियं सहसा ||३५३८|| तो अवसरं मुणेउं मिलिऊणं देव ! एस सव्वेहिं । अम्हेहिं सुदिढदोरयसंदाणियविग्गहो बद्धो ||३५३९ ॥ दट्ठूण देव ! एसो अम्हे इसीसि वियसियकवोलो । कयपच्छामुह-बाहू उवट्ठिओ अम्ह पासंमि ।। ३५४०।। इय देव ! एस पुरिसो तुहावयारि त्ति आणिओ एत्थ । संपइ तुमं पमाणं भणिउं तुन्हिक ( क ) या जाया ।। ३५४१ ।। इय एवं सोऊणं वृत्तंतं बंधुयत्तसंबद्धं । हिययंमि वीरसेणो विसूरिउं अह समाढत्तो ॥ ३५४२ ॥ 'हा हा ! मज्झ विओए एगागी कह सपच्चवायंमि । नियजीवियनिरवेक्खो मह मित्तो भमइ रन्नंमि ? || ३५४३ || एयारिसाण पायं भुवणुवयारीण परिसरयणाण । चिंतामणीण व जए उप्पत्ती होइ पुन्नेहिं | | ३५४४|| ३२३ Page #333 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२४ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ ता सव्वहा मए कयमसुंदरं जं इमस्स अकहंतो । नीहरिओ हं पुट्विं चंदिसिरिगवेसणासाए ।।३५४५।। किं चिंतिएण ? अहवा जं जह भव्वं तहेव तं होइ । निसुणेमि ताव संपइ पडिवयणं सेहरस्सावि' ||३५४६।। तो कुविउब्भडसुहडेहि रोसिओ सेहरो अइथिरो वि । संजाओ 'बहुरविवसदुसहो(?) खयकालदिवसो व्व ॥३५४७।। अच्चुब्भडभिउडीभंगभीसणं सहइ तस्स भालयलं । बद्धपराभवसेयंबुचडणसोवाणपंतिव्व ॥३५४८।। अमरिसवसदट्ठाहरभासुरमुहमंडलो निरंभेइ । दुव्वयणुच्चरणपरं परंमि नियव[य]णकमलं व्व ॥३५४९।। कोववसारुणलोयणदुपे(प्पे)च्छो नयणपसइनिवहेहिं । चंदसिरीअणुरायं हिययठियं खिवइ बाहिं व ॥३५५०।। इय सो खयराहिवई सेहरो ताण वयणपवणेण । पज्जलियकोवहुयवहदुदंसणो भणिउमाढत्तो ॥३५५१।। 'रे पावकम्म ! संपइ जो रक्खं कुणइ तं न पेच्छामि । नियदुसहकोवहुयवहजालासु तुम चिय हुणेमि ।।३५५२।। जायंति मरणकाले मणुयाण सुनिच्छियं कुबुद्धीओ । को तुज्झ दुट्ठ ! दोसो पक्खाओ पिपीलियाणं व ?'|३५५३।। इय सेहरदुव्वयणं सोउं तो भणइ बंधुयत्तो वि । 'रक्खाखमो सुमित्तो अहवा मह दो वि भुयदंडा' ||३५५४।। तो सेहरेण भणियं 'ता किं न भुएहिं रक्खिओ पुट्वि । __जं बंधिऊण इहई आणीओ चोरपुरिसो व्व ?' ||३५५५।। १. बहुरंविवस० ला. ।। Page #334 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२५ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ तो भणइ बंधुयत्तो 'नरेण कज्जत्थिणा सहेयव्वं । वह-बंधणाइ सव्वं निसुणसु कप्पडियनाएण' ॥३५५६॥ इह अत्थि दक्खिणावहदेसे पच्चंतभूमिभायंमि । सालिग्गामो नामं गामो धण-धन्नसंपुन्नो ॥३५५७।। तत्थेगो वाणियओ निवसइ बहुविहव-संपयसमेओ । धणवालनामधेओ तस्स सुओ कत्तिओ नाम ।।३५५८।। ते दोन्नि वि पिय-पुत्ता चिट्ठति सुहं सकम्मकरणपरा । घय-लवण-तेल्ल-तंदुल-वत्थाई विक्किणंता य ॥३५५९।।' अह अन्नया समीवो गामो उल्लूडिऊण भिल्लेहिं । धण-धन्न-वत्थ-परियण-बहुगोहणसंजुओ नीओ ॥३५६०।। तो तं संनिहिगाम दलृ भिल्लेहिं लूडियं सहसा । सालिग्गामजणो वि य सासंको आसि भिल्लभया ।।३५६१।। तो सेट्टिणा पभणिओ नियपुत्तो ‘पुत्त ! कत्थ गोवेमो । एयं पभूयदव्वं ? ता गुविलं ठणमन्निससु ॥३५६२।। - इय लूडियंमि गामे दूरनिहित्तो वि गेहमज्झंमि । खणिऊण सयं नीओ अत्थो भिल्लेहिं पल्लीए ॥३५६३॥ ता पुत्त ! नियोगहाओ कत्थ वि अण्णत्थ गोविमो अत्थं' । इय भणिए जणएणं पडिवयणं भणइ पुत्तो वि ॥३५६४।। 'ताय ! इह गामबाहिं सुन्नं देवउलमत्थि वित्थिण्णं । तत्थत्थं ठवेमो रयणीए अलक्खिया दौवि' ॥३५६५।। ‘एवं'ति मन्निऊणं अत्थं घेत्तूण दो वि पिय-पुत्ता । रयणीए गया तुरियं अलक्खिया सुन्नदेवउलं ॥३५६६।। Page #335 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२६ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ गंतूण तेहिं(हि) खणियं गब्भहरं तत्थ पविओ अत्थो । काउमलक्खपएसं विणिग्गया गब्भवणाओ ।।३५६७।। तो जणएणं भणिओ पुत्तो 'जोएसु देउलं सयलं । मा को वि इत्थ होही कप्पडिओ इत्थ पहिओ वा' ॥३५६८।। तो पुत्तेण य सयलं गवेसमाणेण देउलं दिट्ठो । एगो कोणे पडिओ कप्पडिओ मडयनिच्चेट्टो ।।३५६९।। हक्कारिऊण पियरं तं दंसइ तो पिया पुणो भणइ । ‘उट्टवसु' कत्तिएणं उट्ठविओ जाव निच्चेट्ठो ॥३५७०।। जोयइ सासूसासे न लक्खए ते वि कत्तिओ तस्स । 'मडयमिणं वच्चामो निज्जीवं ताय !' इय भणइ ॥३५७१।। सो भणिओ जणएणं 'पुत्तय ! जइ मडयमेव ता किं न । ओसूणं गंधो वा होइ न एयस्स अइदुस्स(स)हो ॥३५७२।। ता कुणसु मज्झ बुद्धिं छिन्नसु एयस्स नासियं ताव' । पुत्तेण निव्वियप्पं निच्छिन्ना नासिया तस्स ।।३५७३।। तह विन जंपइ न चलइ पुणो वि पिउणा सुओ इमं भणिओ । 'एण्हि छिन्नसु कन्ने' सुएण ते दो वि तह च्छिन्ना(छिन्ना) ।।३५७४।। तो जायपच्चएहिं मडयमिणं निच्छियं कहं इहरा । नासा-कन्नच्छेए थोवं पि तणुं न चालेइ ? ॥३५७५।। इय दो वि निव्वियप्पा पिय-पुत्ता सगिहमागया सुत्ता । सो देवउलपसुत्तो कप्पडिओ उट्ठिओ सहसा ।।३५७६॥ अह उट्ठिऊण खणियं गब्भहरं कड्डियं च तं दव्वं । थोवं कयं सहत्थे सेसं अण्णत्थ निक्खणियं ॥३५७७।। Page #336 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२७ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ तो सो पहायसमए कप्पडिओ तस्स चेव सेट्ठिस्स । कय-विक्कयत्थमप्पइ दसटंके कंचणुकि(क्कि)न्ने ।।३५७८।। तो दठूणं सेट्ठी ते टंके मुणइ मह इमे निययं । तो निम्वियारचित्तो कप्पडियं भणइ दढहियओ ॥३५७९।। 'कप्पडिय ! तए सरिसो साहसिओ नत्थि एत्थ पुहईए । कह सहियमविचलेणं नियनासा-कन्नकप्परणं ?' ||३५८०।।.. कप्पडिएणं भणियं 'सच्चमिणं सेट्टि ! दूसहं एयं । किं तु नरो कज्जत्थी तं नत्थिन जं इह सहेइ' ।।३५८१।। 'ता निब्भगि(ग्गि)यसेहर ! रे सेहर ! मा. इमं वियप्पेहि । कज्जत्थिणा मए च्चिय अप्पा बंधाविओ एवं' ॥३५८२।। एत्थंतरंमि सोउं पहुदिनं तेण दुसहदुव्वयणं । सविलक्खमिव असेसं पक्खुहियं सेहरत्थाणं ।।३५८३।। सव्वेहिं (हि)वि समकालं सेहरसुहडेहिं बंधुयत्तंमि । कोवानलजालाओ व पक्खित्ता सोणदिट्ठीओ ॥३५८४।। जालामुहेण पजलियकोवमहाजलणभीसणमुहेण । सहस त्ति करो खत्तो सखग्गमुट्ठीए तव्वेलं ॥३५८५।। पुण दुद्धरेण संगरदुद्धरधुरभारधरणधवलेण । दुव्वयणदूसिएणं सहसा संभालिया च्छुरिया ॥३५८६।। विसमत्थेण वि उड़े जा रोसपरव्वसेण उक्खित्ता । सा पहुभएण पुणरवि संवरिया नियकरचवेडा ॥३५८७।। रणहरिसभडेण पुणो पडिसदु(९)त्तत्थखयरनिवहेण । गुंजिरगिरिकुहरंतो मुक्का कुविएण हुंकारा ॥३५८८।। Page #337 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२८ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ अरिकेसरी वि सहसा रोसावेसेण परव्वसो मुयइ । निययासणं सहेलं संमुहमरिणो सरइ सणियं ॥३५८९।। अफा(प्फा)लइ धरणियलं करेण कोवुब्भडो सुभीमो वि । पहुणा पडिसिद्धो वि हढेण निसढो समुद्धाइ ॥३५९०॥ पुण रोसनिब्भरंगो भणइ महाभैरवो फुरंतोट्ठो । । ‘रे बंधुयत्त ! एवं किर कस्स बलेण पलवेसि ? ॥३५९१।। एत्तियमेत्तेणं चिय मत्तो सि न चेयसे अरे ! किंपि । जं कह वि देवजोगा छुट्टो तं खेत्तवालस्स ॥३५९२।। जइ कर-कन्न-चवेडानिबिडनिवायाण कह वि उव्वरिओ । ता किन्न मसयमारणसत्ती नणु नारणिंदस्स ?' ||३५९३।। भैरववयणं सोउं सावट्ठभं च सावलेवं च । उवहसिऊणं सुहडे भणइ पुणो बंधुयत्तो वि ।।३५९४।। 'रे जालामुहपमुहा ! सुहडा ! सव्वे वि सुणह मह वयणं । किं फरडवरीए ममं(म) बीहावह रणमहाविटुं ? |॥३५९५।। इह खग्ग-खग्गधेणूमुट्ठिगहेण करचवेडाहिं । हुंकारमेत्तकेणं बाला बीहंति न य सुहडा ॥३५९६।। जाव न तिक्खसमुक्खयक्ख(ख)ग्गपहारा उरेण घेप्पंति । ताव न बहुरणविद्धा हवंति विवरंमुहा रिउणो ॥३५९७॥ 'कस्स बलेणं पलवसि ?' इय भणियमिहासि भैरव ! तए जं । तं निसुणसु तुह कहिमो जंपामि बलेण जस्साऽहं ।।३५९८।। इय अत्थि जयपसिद्धो दुत्थियजणकप्पपायवो वीरो । मेइणिकन्नवयंसो लच्छिलयामूलकंदो य ।।३५९९।। Page #338 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ अरिकरडिघडाविहडणकंठीरो वीरचकुवट्टी य । जो कमलकेउकंतावेहव्वपयाणविक्खाओ || ३६००|| नामेण वीरसेणो जंपामि बलेण तस्स चेवाहं । जं खेत्तवालवणं भणियं तं सुणसु रे मूढ ! || ३६०१ || सूराण परपओयणतिणसमपरिगणियनिययजीयाण । ते खेत्तवालमाई मरणुवगरणाणि व हवंति || ३६०२ ।। एस रिऊ बलवंतो अवलोयंताण होंति न वियप्पा । सत्तगुणट्ठियनियतणुतुलाए तोलंति नियजीयं' ॥३६०३|| तो सेहरेण भणियं 'जालामुह ! सव्वमेव नद्धं । एएण पाविएणं चंदसिरी वीरसेणो वि || ३६०४|| पेच्छ महाधिट्ठत्तणमिमस्स नीसंकमेव मह पुरओ । जं चुल्लभाउणो वेरियस्स नामं समुच्चरइ || ३६०५ || आघट्टइ व्व हिययं नामं पि हु तस्स वीरसेणस्स । जं पुण तग्गुणसवणं तं मन्ने मरणमिव मज्झ || २६०६ ।। अन्नं च न होंति इमे सामन्नमणुस्सजाइणो रिउणो । आलावेहिं वि न मुणह इमस्स गरुयत्तणं हियए' || ३६०७ | एत्थंतरंमि सहसा पच्छायंतो नहंतरालोयं । नियसेन्नसमुदएणं संपत्तो पवणकेऊ वि || ३६०८।। तो चरपुरिसायन्नियससेन्नभरचुल्लभाउआगमणं । सहरिसमूससिओ इव सेहरओ हिययमज्झमि ।। ३६०९ ।। तो पवणकेउ - सेहरबलाई बहुंमच्छराई सहसत्ति । खयकाले पुव्वावरजलहिजलाई व मिलियाई || ३६१० || ३२९ Page #339 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३० सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ अन्नोन्नसणुल्लसियहरिसवसजायबहलपुलयंगा । जहजेट्ठकयपणामा उवविट्ठा पवण-सेहरया ॥३६११।। एत्थंतरंमि चिंतइ विज्जाहरबलभरं निएऊण । घणचंदणदुमपल्लवतिरोहिओ वीरसेणो वि ॥३६१२।। ‘एएहिं किर बहूहिं वि किं सिज्झइ निफु(प्फु)रेहिं खयरेहिं ? । हरिणेहिं सुरुडेहिं वि किं किज्जइ हरिणरायस्स ? ॥३६१३।। ता एत्थ संट्टिओ च्चिय निएमि किं कीरए बहूहि पि । एएहिं पवण-सेहरभडेहिं किर बंधुयत्तस्स ?' ।।३६१४।। इव जाव वीरसेणो चिंतइ ता तत्थ गयणमग्गाओ । हंसिं व बंधुजीवा(वं) पेच्छइ दूरा अवयरंतिं ।।३६१५।। दतॄण बंधुजीवं ससंभमो सविणयं नमोक्करइ । कुमरो 'कुओ' त्ति पुच्छइ कुसलाई सयलवुत्तंतं ॥३६१६।। तो सा पभणइ ‘पुत्तय ! वेयड्ढं पत्थिया समुद्दाओ । जा जामि ताव दिटुं गयणं विज्जाहराइन्नं ॥३६१७॥ जाणेहिं विमाणेहिं य विसरिसचिंधेहिं तूरसद्देहिं । पच्चभिनायमिणं जह सेन्नमिणं पवणकेउस्स ।।३६१८॥ मुणिउं च समाढत्तं विज्जासामत्थओ अलक्खाए । कत्थेयं संचलियं कस्सुवरिं रणरसुकं (क्कं)ठं ।।३६१९।। तो अन्नोन्नाभासणपरखेयरनिसुयकज्जगब्भाए । परिनिच्छियं मए जह चलियमिणं वीरसेणुवरि ॥३६२०।। ता पुत्त ! पवणकेऊ भाउयवरेण वैरिओ होइ । एक्कंगणाहिलासेण सेहरो सो वि तुह वेरी ॥३६२१।। Page #340 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ इय दो वि तुज्झ उवरिं सव्वारंभेण आगया एए । वहिऊण वीरसेणं हढेण बालं गहिस्सामि ॥३६२२॥ गागिणो (णा) वि जेणं जलहिनिहित्ता वि वीरचरिएण । हंतुमसोयं गहिया चंदसिरी वीरसेणेण || ३६२३ || सो एक्केण न जिप्पइ सेहरकुमरेण अहव पवणेण । एएण कारणेणं मिलिया ते दो वि एक्कत्थ || ३६२४|| एवं मुणिऊण अहं गवेसमाणा तुमं इहूं पत्ता । ता पुत्त ! सावहाणों संपइ कज्जाई चिंतेसु || ३६२५ || अन्नं च मए पुत्तय ! नियपुत्ताणं पि सुद्धिकथं । वज्जगइनामधेओ वेयङ्कं पेसिओ खयरो' ॥३६२६॥ तो भणइ वीरसेणो 'पयईए हवंति जणणिहिययाई । नेहाउराई तम्हा साहु कयं आगया जमिह ।। ३६२७|| एय (यं)मणागमणुच्चि (चि ) यमायरियं चंदसेहर - सुवेगा । जमिहागमणेण इमे मह मणपीडं करिस्संति || ३६२८|| किं अम्ब ! पलविएणं ? तुह पुत्तो वि हु न होमि, किं बहुणा ? | जेऊणं दो वि बले जयसद्दं जइ न गेहामि ।। ३६२९|| जह न च्छ (छ) लिज्जसि केण वि तहा तुमं अंब ! जलहितीरंमि । गंतूण रक्ख देविं जिणामि जा खेयरे सव्वे' ।।३६३०|| तो भइ बंधुजीवा 'मा मुणसु असारथेरिमेत्तं मं । मह भुयणे वि असज्झं न किं पि चके (क्के) सरिबलेण ।।३६३१ || ता पुत्त ! तुमं दूरे अहमेव इमाण खेयरबलाण । जलणसिह व्व तणाणं सुबहूण वि किं न पवहामि ( पहवामि ) ? || ३६३२।। ३३१ Page #341 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३२ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ ता पुत्त ! मह बलेणं नीसंको जिणसु सत्तुसंघायं । को संमुहं पि जोयइ विचित्तजसरायधूयाए ?' ।।३६३३।। इय एवं सावटुंभवयणे संजायपच्चयं कुमरं । काऊण बंधुजीवा संपत्ता चंदसिरिपासं ॥३६३४।। अइ तइया वीरउरे कुमरेणं जो पबोहिओ पुट्विं । सो अवसरो त्ति मुणिउं संपत्तो रक्खसो तुरियं ॥३६३५।। तो तेण सबहुमाणं सविणयमहिणंदिऊण सप्पणयं । कुमरो सहावपेसलसललियवायाए इय भणिओ ॥३६३६।। 'उप्पन्नो सि जयस्स वि कओवयारो न केवलं मज्झ । अप्पडिहयपयावो रवि व्व हयवेरितिमिरोहो ॥३६३७।। कह तुज्झ पडिहणिज्जइ तेओ तेयंसिएहिं इयरेहिं ? । जाव न विफु(प्फु)रइ रवी ताव च्चिय तारयापसरो ॥३६३८।। इह तिहुयणे तुम चिय साहेज्जं कुणसि नीसहायाण । सो उण हुओ न होही जो तुह साहेज्जयं काही ॥३६३९।। अम्हारिसा नरेसर ! तुह तिव्वपयावजलणधूमं व्व । घणवेरिंधणनिवहं निद्दहिउं होति न समत्था ॥३६४०॥ तो तुज्झ अहं दासो तुमए करुणाधणेण परिकिणिओ । मह विज्जाहरपुंजयअवहरणे देहिं आएसं' ॥३६४१।। तो तव्वयणं सोउं सप्पणयं भणइ वीरसेणो वि । गरुयत्तणस्स उचियं जं किर तं जंपियं तुमए ॥३६४२।। ताव च्चिय गुणनिवहो दूरं विफु(प्फु)रइ निम्मलगुणाण । जाव न अप्पपसंसापंकेणं सकलुसिओ होइ ॥३६४३।। . Page #342 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३३ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ जह जह गुरुयगुणा वि हु अप्पाणं निग्गुणं व पयडंति । जायाहिनिवेसा इव तह तह गरुया गुणा होति ॥३६४४।। ता किं भन्नइ तुह किर सोजन्नं तमिह जं असामन्नं । तुह जायअवटुंभो धूलिं व गणेमि खयरबलं' |३६४५।। कुमरस्स रक्खसस्स य इय एवं जाव होति आलावा । ता पवणकेउणा वि य सेहरओ पुच्छिओ एवं ॥३६४६।। 'को एस नरो बद्धो ? केण व कज्जेण ? कस्स संबंधो?।' तो सेहरेण कहिओ वुत्तंतो बंधुयत्तस्स ॥३६४७।। तो भणइ पवणकेऊ ‘जइ ता एयस्स एरिसो गव्यो । ता किं न संपयं चिय पयडइ सुहडत्तणं एसो ?' ||३६४८।। एत्थंतरंमि सहसा रणरसपसरंतबहलपुलयंगो । सो बंधुयत्तसुहडो तोडइ भुयबंधणं झत्ति ।।३६४९।। अह विहडावियभुयदंडबंधणो खयरकयचमक्कारो । अफा(प्फा)लइ भुयदंडं रवबहिर(रि)यगिरिदरीविवरं ॥३६५०।। अह निबिडभुयप्फालणपडिसद्दुम्मीससद्दरणतूरो । वड्डियसमरुच्छाहो आवडिओ पवणकेउस्स ।।३६५१।। गंतूण पवेगेण व पडिपेल्लियमग्गभडसहस्सेण । तस्स सिरग्गनिबद्धो निद्दलिओ विमलमणिमउडो ॥३६५२।। तो भणइ बंधुयत्तो ‘रे रे हयपवणकेउ ! तुह पढमो । नियगव्वतरुसमुग्गयनवंकुरो दंसिओ एस ॥३६५३।। तुह भुयसाहा-सिरकुसुमच्छेयरुहिरोहदिन्नडोहलओ । पच्छा मज्झा समीहियफलेहिं दप्पडुमो फलिही' ॥३६५४।। १. पवंगेण ला. ॥ Page #343 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३४ तो दप्प (पु) दुरबहुविहविज्जाहरकोडिनिबिडकयवेढो । कुमरेण पेसिऊणं रक्खसमाणाविओ मित्तो || ३६५५ || दट्ठूण बंधुयत्तो कुमरं हरिसुल्लसंतरोमंचो । बाहपवाहकणारियकमकमलं नमइ संतुट्टो || ३६५६॥ दूरपसारियबाहू कुमरो वच्छयलपीडियं धरई । अइनेहेण सहियए पवेसयंतो व्व वरमित्तं ॥ ३६५७ ॥ तो भइ बंधुयत्तो 'दिट्ठा देवी कहिं पि ?' सो कहइ । संखेवेण असेसं चंदसिरीलाहवुत्तंतं ॥ ३६५८।। संजायपरमसंतोससुहियहिययस्स बंधुयत्तस्स । संपत्तभुयणरज्जाहिसेयसोक्खं व संजायं ॥३६५९ ।। तो भइ वीरसेणो 'निवसंतो तुज्झ हिययमज्झमि । किं दिनो म्हि न जेणं गवेसमाणो ममं भमसि ? || ३६६० ॥ एवं जा किर कुमरो जंपइ ता बंधुयत्तमनियंता । विज्जाहरा सकोवा गवेसिउं तं समाढत्ता ॥३६६१ ॥ 'काउ व्व कह पणट्टो ज्झडप्पिऊणं सिरे महारायं । तह वेढिओ वि नूणं बहुविज्जालद्धिसंपन्नो || ३६६२ ॥ ता जइ तं पावेमो संपइ पावं पदंसियवियारं । ता तस्स चेव जोग्गं काहामो किं वियप्पेण ? || ३६६३ ॥ इय जंपते सोउं खयरे तो भणइ बंधुयत्तो वि । 'देव ! इह चेव चिट्ठह तुब्भे जुज्झामि ताव अहं' || ३६६४।। तो कुमरेण भणिओ रक्खसराया 'करेहि साहेज्जं । मित्तस्स जाहि समयं संगरभूमीए तुरंतो' || ३६६५ ।। सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ Page #344 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ तो रक्खसेण भणियं 'करालजंघो त्ति रक्खसो अत्थि । मह रक्खसबलसेणाणाहो बलविरियसंपन्नो ॥३६६६।। सो जाउ अणेण समं अहं पि न चएमि देव ! तुह पासं । जेणेस खयरलोओ बहुमाओ होइ बहुसत्ती' ।।३६६७॥ तो रक्खससंपाडियमणचिंतियविविहपहरणसमेओ । रणभूमि संपत्तो हक्तो बंधुयत्तो वि ॥३६६८॥ 'अरे अरे अरे'त्ति सरहसहकारवबहिरियंबरो होउं । पडियाहुयिव्व जलणो पज्जलिओ बंधुयत्तभडो ॥३६६९।। 'रे विज्जाहरसुहडा! निसुणह मा भणह जं न किर कहियं । सव्वे वि य समकालं पहरह मह एकदेहस्स' ।।३६७०।। एक्(क्वं)गेण वि सिरिबंधुयत्तसुहडेण खेयरबलाई । आसंघियाई हियए दवग्गिणा काणणाई व ॥३६७१।। अह खेयरबलं बहलुल्लसंतरणरहसपुलयपब्भारं । चलियं चलंतभडथडवियडयरनिबद्धपहदेसं ॥३६७२।। आकन्नंतायड्डियविसालकोयंडदीहनयणेहिं । 'कत्थ रिउ'त्ति सकोवं दूराओ(उ) नियंति व बलाई ॥३६७३।। कोसायड्डियसुनिसियकरालकरवालकयकरग्गाई । दीसंति भीसणाई निग्गयजीहाई व बलाई ॥३६७४।। धणु-कणय-कुंत-तोमर-नारायद्धिंद-खर-खुरुप्पेहिं । धावल्ल-सेल्ल-सव्वलब्भ(?)-समोग्गर-खग्गमूलेहिं ॥३६७५।। इय एयमाइ बहुविहपहरणसयभीसणेहिं सेन्नेहिं । घणवंद्रेहिं व विज्झो संछन्नो बंधुयत्तभडो ॥३६७६।। : Page #345 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३६ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ थिरहियएण असेसं पडिच्छियं तं बलं सुवीरेण । समकालमुक्कबहुविहपहरणमणकिरणदुप्पेच्छं ॥३६७७।। तह तेहिं चउदिसासुवि समंतओ वेढिऊण सो निहओ । आपायसिराओ जहा(ह) पहरणपुंजेण संछन्नो ॥३६७८।। तो मुहनिहित्तकरयल-कयकलयलराववड्डियाणंदं । विज्जाहराण सेन्नं उच्छलियं तक्खणं च्चेय ॥३६७९।। तो निसुयखयरकलयलविवड्डियामरिसवसफुरंतोट्ठो । सीहो व्व धुणियदेहो विणिग्गओ सत्थपुंजाओ ॥३६८०॥ तं निसियविविहपहरणअदिट्ठवण-रुहिरनिग्गमं वीरं । दठूण खयरसेन्नं समुट्ठियं सभयमिव जायं ॥३६८१।। तो सो धणुहनिवेसियनारायनिवायनिहयखयरोहो । सिसिरो व्व पाडयंतो उत्थरिओ खयरसिरकमले ॥३६८२।। एक्केण वि तेण रणे असंखसरनियरमेक्कमुट्ठीए । मेल्लंतेण ससल्लो सो नत्थि न जो कओ सुहडो ॥३६८३॥ दोखंडियधणुदंडो धाणुको कोइ च्छु(छु)रियमुक्खणइ । छिन्नोभयभुयसिहरो वियरइ दंडो व्व रणमज्झे ।।३६८४।। अन्नेको(क्को)पुण सुहडो निरंतरं सरसमूहभिन्नंगो । संगहियपुंखपवणो गिद्धेहिं समं नहे भमइ ॥३६८५।। अणवरयमुक्कघणसरछिन्नभुयापडियपहरणगणेहिं । नियएहिं चिय खयरा जंति खयं नं अपुन्नेहिं ।।३६८६।। Page #346 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ अन्नेक्को पुण अद्धिंदबाणच्छि(छि)नेण निययसीसेण । नियठणठिएणं चिय जुज्झइ रोसुब्भडो सुहडो ॥३६८७।। इय तेण सरनिरंतरसंछाइयनहि(ह)यलेण वीरेण । खयराण चउत्थंसो निवाडिओ बंधुयत्तेण ॥३६८८।। अह तस्स विसमसरघायजज्जरं खेयराण तं सेन्नं । ओहट्ट चलिओयहिसलिलं पिव चत्तमज्जायं ॥३६८९।। दठूण तं बलं तं विमुक्कनियविक्कमं भउब्भंतं । अह थक्कइ तथे(त्थे)को सेणवई पवणकेउस्स ॥३६९०।। नामेण वज्जबाहू बहुविज्जो वज्जनिठुरसरीरो । सो बंधुयत्तवीरं सक्क(क)क्कसं भणिउमाढत्तो ।।३६९१।। 'रे ! थिरचित्तो होउं मह पुरओ ठहि ठहि खणमेत्तं । एण्हि चिय नीसेसं तुह दप्पं जेण अवणेमि' ॥३६९२।। एवं भणिउं चउरो कनंतायड्डिएण दढधणुणा । मुक्का सेणावइणा निसियसरा बंधुयत्तस्स ॥३६९३।। तेणावि विहसिऊणं अट्ठ सरा पेसिया तयद्धेहिं । कप्परिया तस्स सरा इयरेहिं हओ उरे वज्जो ॥३६९४॥ वजेण तेओ सोलस सिलीमुहा पेसिया सकोवेणं । बिउणेहिं बंधुयत्तो दोखंडइ तस्स धणुदंडं ॥३६९५।। तो खंडियं निएउं नियकोदंडं पयंडकयकोवो । गेण्हइ गयं सरोसो पुण मेल्लइ बंधुयत्तस्स ||३६९६।। Page #347 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३८ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ तो निठुरमुक्कगयापहारदिढमुडियधणुहरो वीरो । तह उरयडंमि निहओ जह जाओ मीलियच्छिउडो ।।३६९७।। पुण लद्धचेयणेणं कयरोसं रक्खसाणुहावेण । संचरइ करे गरुओ मोग्गरओ बंधुयत्तस्स ॥३६९८।। तो उभयभुयापर(रि)मुक्कगरुयमोग्गरपहारनिद्दलिओ । सहस त्ति अडधडतो पंडिओ धरणीए सेणवई ।।३६९९।। पडियंमि तंमि सुहडे खयरसेन्नाण जायदुक्खाण । समकालमोत्थरंतो ‘हा हा' सद्दो समुच्छलिओ ॥३७००।। एत्थंतरंमि निहए सेणाहिववज्जबाहुवीरंमि । ‘गरुओ रिउ'त्ति ताणं जाओ चित्ते चमक्कारो ॥३७०१।। एत्थावसरो सेहरनरवइसंपत्तगरुयआएसो । जालामुहो त्ति बीओ सेणानाहो समुच्छलिओ ॥३७०२।। पजलंतजलणजालाभासुरसव्वाउहाण तेएण । दलृ पि बंधुयत्तो तं न खमो जुज्झिउं दूरे ॥३७०३।। तो भणइ बंधुयत्तो करालजंघं 'किमेयमच्छरियं ? । पलयानलो व्व एसो पसरइ सवडंमुहो मज्झ?' ।।३७०४।। तो रक्खसेण भणियं ‘होहि थिरो वीर ! किं पि मा भाहि । तुह तेए च्चिय पडिही सलहो ब्व इमो न संदेहो' ।।३७०५॥ एत्थंतरंमि पत्तो कोवं व मुहेण उव्वमंतो सो । तुटुंतविविहजालानिवहं वयणेण मेल्लंतो ॥३७०६।। Page #348 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ ३३९ तो तेण तक्खण च्चिय तुरियपयं धाविऊण खयरेण । अवरुंडिऊण धरिओ सकोवमिव बंधुयत्तभडो ॥३७०७।। धरियंमि बंधुयत्ते सहसा तालं खलेहिं दाऊण । बद्धो त्ति वासणाए हसियं नीसेसखयरेहिं ॥३७०८।। बहुधवणिधवियहुयवहतत्तायसनरकयंगदेहो व्व । जालामुहो पमेल्लइ धरियं पि हु बंधुयत्तभडं ॥३७०९।। मुक्कंमि बंधुयत्ते रक्खसनाहाणुहावजा(जो)एण । जालामुहो वि गहिओ पलयमहाहुयवहेणं व ॥३७१०।। तो पजलंतहुयासणजालासयमज्झसंठिओ सुहडो ।। नियसामि(?)लज्जिओ इव पुंजो च्छारस्स संजाओ ॥३७११।। छारावसेसमेत्ते जाए जालामुहमि खयरबले । . सहस त्ति खेयराणं अक्वंदरवो समुच्छलिओ ॥३७१२।। इय पवणकेउ-सेहरपरिवाडिनिवाडिउब्भडभडोहो । जाओ खयरभडाणं भयावहो बंधुयत्तभडो ।।३७१३।। तो विच्छायभडोहं खयरबलं पेच्छिऊण आरुट्ठो । उठुइ पहिट्ठवयणो जमदाढो नाम नरवालो ।।३७१४।। जो देव-दाणवाणं दिनभयो सयलसत्तखयकालो । हरि-हर-पियामहाणं जमो व्व परिखंडियपहावो ।।३७१५।। सो नियविक्कमगरुयावलेवतिणगणियतिहुयणभडोहो । विविहाउहो सरोसं अभिभट्टो बंधुयत्तस्स ॥३७१६।। जमदाढेण सरोसं भणिओ सिरिबंधुयत्तनरनाहो(मंतिवरो?) । 'जइ भूगोयर ! सहिओ मह घाओ ता तुमं सुहडो' ॥३७१७।। Page #349 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४० एवं मणिऊण तओ पहओ दंडेण सिरपएसंमि । सहस त्ति मीलियच्छो सरक्खसो निवडिओ भिच्चो ||३७१८।। पुण लद्धचेयणेणं भिच्चेण सरक्खसेण सहसति । नियदंडेणं पहओ जमदाढो तह वि निमिलाणो ||३७१९॥ उद्दालिऊण दंड हढेण पुण खेयरेण दोखंडे । काऊण तस्स दंडो पक्खित्तो गयणमग्गंमि ॥ ३७२० || तो धाविऊण धरिओ जमदाढमहाभडेण रोसेण । पारसु बंधुयत्तो भमाडिओ पुण नहर्द्धमि ।। ३७२१ ।। उद्धं भमाडिऊणं अच्छोडइ जाव महियले भिच्चं । ता हक्किओ सरोसं जमदाढो वीरसेणेण || ३७२२।। तो वीरसेणदंसणसविब्भमुब्भंतनेत्तपत्तेहिं । जमदाढजीवियासा प (पा) मुक्का खयरलोएहिं ।। ३७२३ ॥ तो सो दूराओ च्चिय भिच्चं मोत्तूण वीरसेणस्स । अहिधावंतो समुहं भिन्नो तिक्खग्गकुंतेण ।। ३७२४।। नियकायबलेण तओ कुंतं दोखंडिऊण ओसुरिओ । कयखग्ग-खेडयकरो उप्पइओ गयणमग्गंमि ||३७२५|| उप्पयमाणस्स तओ तुरियं आरोविऊण कोदंडं । संधियअर्द्धदुसरो जमस्स सीसं नीवाडेइ ||३७२६ ।। तो वीरसेणपाडियजमदाढभडंमि जायकोवाई । सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ खेrरबलाई अहिणवरोसाइं व तस्स धावति ।। ३७२७ ।। दिट्ठमि वीरसेणे दोहिं वि नियकज्जबद्धचित्तेहिं । सेहर-पवणेहिं समं गहिओ अंगंमि सन्नाहो ||३७२८|| Page #350 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४१ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ 'नियबंधुलहुसहोयरवहवैरिरिणं अवस्स अवणेमि । हंतूण वीरसेणं करंमि गेण्हामि जयवत्तं' ॥३७२९।। इय पवणकेउराया काऊण विणिच्छियं मणे एयं । तुरियं पधावमाणो धरिउ(ओ) नियसेन्नसुहडेहिं ॥३७३०।। सेहरनरेसरो वि य चंदसिरीलाहजायपच्चासो । चिंतइ ‘हणेमि एयं पच्छा परिणेमि चंदसिरि' ।।३७३१।। इय जाव ते परोप्परनियबुद्धिवियप्पिएहिं चिट्ठति । ता कुमरेणं भणिओ रक्खसराया इमं वयणं ॥३७३२।। 'किं बहुएहिं वि निसयर ! खेयरपुरिसेहिं मारिएहिं पि? । मह पवण-सेहराणं अत्थि विवाओ न खयराणं ||३७३३।। ता कहसु महं तुरियं को पवणो? सेहरो व्व को एत्थ? | एण्हि च्चिय निज्जोडं करेमि किं बहुवियप्पेहिं?' ॥३७३४।। तो भणइ रक्खसिंदो ‘वच्छत्थलघोलमाणहारलओ । जो धरियधवलछत्तो उभयंसचलंतसियचमरो ॥३७३५।। पारद्धखेयरवहूरणरंगपवेसमंगलायारो । बहुबंदिविंदकलयलसंमदुग्घुट्ठजयसद्दो ॥३७३६॥ सो देव ! पवणकेऊ एसो उण दाहिणाण सेहरओ । हरियंदणंगराओ मणिमउडविहूसियसिरग्गो ॥३७३७।। घोलंतकन्नकुंडल-गंडत्थलसंघडंतपडिबिंबो । बिउणीकयभुयदंडो ओटुंघो वारनारीए ॥३७३८।। सिद्धत्थय-दोव्वंकुर-गोरोयणभूसिओत्तिमंगो य । गंधव्वगेयरसवसदरमउलियलोयणद्धंतो' ।।३७३९।। Page #351 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४२ इय पच्चेयं कहिए खयरिंदे पवण- सेहरे दो वि । दट्ठूण वीरसेणो रणरसपुलयंकुरं वहइ || ३७४०।। परिवियडपहामंडलसरीरदुद्धरिसतेयदिप्पंतो । सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ चंदो व्व वीरसेणो सपारिवासो परिफु (प्फु) रइ ||३७४१ || ते खेरा तहाविहविभूइसंभारविहियफरडमरा । रेहंति न तस्स पुरो तारा इव पुन्नचंदस्स || ३७४२ || तो रहसवसप्फालियघणरवगंभीरतूरसद्देण । संजायरणुच्छाहं विज्जाहरसेन्नमुल्लसइ || ३७४३ ॥ सो हेमपीढविणिहियनाणामणिकिरिणजालकब्बुरियं । सोहइ पुरंदरे इव समुव्वहंतो करे धणुहं | | ३७४४ || तो भुयदंडारोवियहढकड्डियकढिणचंडकोयंडो । पट्ठवइ वीरसेणो सरद्दयं खयररायाण ||३७४५।। तो कणयरसनिवेसियवियडसरपंतिपिंजरद्धंतं । सेहर-पवणा दठ्ठे नारायं अह निरूवेंति ॥ ३७४६॥ 'हे पवणकेउ - सेहरन रेसरा ! किं इमेहिं निहएहिं ? । मह तुम्हाण व वेरं ता एह मए समं भिडह' ||३७४७ | इह गाहत्थं लिहियं सम्मं अवस ( सा ? ) रिऊण हिययंमि । अन्नोन्नसमुहमेए पलोइउं अह समादत्ता ||३७४८|| तो सेहरेण भणियं किं चिंतसि ? सोहणं भणइ सत्तू । खयरेहिं मारिएहिं वि बहुएहिं न कज्जसंसिद्धी' ॥३७४९|| तो भइ पवणकेऊ ' सेहर ! एयं न रायनीईए । जं बंधिऊण अप्पा अपि (प्पि ) ज्जइ सत्तुलोयस्स ||३७५० || १. परीर ला ० ॥ Page #352 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ नियदेहरक्खणटुं परिग्गहो विहवसंगहो देसो । नटुंमि निए देहे विहडइ सव्वं खणद्धेण ॥३७५१।। ता एस रिऊ गरुओ सुबुद्धिमंतो य विक्कमी धीरो । जुज्ज(ज्झ)न्नू रणदक्खो समहियसंपत्तपुन्नबलो' ॥३७५२।। तो सेहरेण भणियं 'सव्वं अज्ज(ज)हत्थमेव तुह वयणं । जइ एवं तुह बुद्धी ता किं संगामपारंभो? ॥३७५३।। अह मन्नति नियबंधववैरं उक्खालयामि ता तुज्झ । समुवट्ठियंमि समरे को कालो मंतियव्वस्स ?' ||३७५४।। इय जाव ते परोप्परमेवं मंतंति ताव कुमरो वि । अदि(द्दि)ट्ठो च्चिय सहसा संपत्तो ताण पासंमि ॥३७५५।। तो सेहरेण भणियं किं काहिसि संपयं पवणराय ! ? | चइऊण सव्वसुहडे उवट्ठिओ अम्ह चेवेसो' ।।३७५६।। तो भणइ पवणकेऊ ‘किं सेहर ! अहमिमस्स वि न सक्को? । तो पेच्छ संपयं चिय जं विच्चइ वीरसेणस्स' ।।३७५७।। तो सेहरेण भणियं 'अच्छ तुमं ताव होहि वीसत्थो । अहमेव अणेण समं जुज्झिस्सं वीरसेणेण' ।।३७५८॥ तो पवण-सेहराणं सोउं अन्नोन्नजंपियं कुमरो । भणइ ‘किमेवं मंतह समकालं दो वि ढुक्केह' ॥३७५९।। तो पवणकेउणा विय भणिओ कुमरो सगव्ववयणेण । 'भो वीरसेण ! सुव्बउ मह वयणं एकचित्तेण ॥३७६०।। सव्वं चिय वयणमिणं गुणेसु को मच्छरं किर वहेइ । वज्जइ तुह चेव परं भड ! ढक्का न उण अन्नस्स ॥३७६१।। Page #353 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४४ अन्ने लज्जति भडा तुह पुरओ सुहडसद्दमुव्वहिउं । ता कुणसु मह परिक्खं खणमेत्तं समरमज्झमि ||३७६२|| अहियाहिणिवेसुब्भवपसरियघणरोसतंबिरनिडाला । दट्ठोट्ठभिउडिभीमा दुपे ( प्पे )च्छा तं कयंतं व्व ।। ३७६३ ।। ‘हण-हण-हण’त्ति भणिरा दप्पुभ (ब्भ) डदिढपयंडभुयदंडा । बहुविज्जाबलजुत्ता विज्जाहरिगव्भसंभूया ||३७६४|| ते पवणकेउ-सेहरनरेसरा दो वि वड्ढियामरिसा । अह वरिसिउं पयत्ता सरवरिसं वीरसेणंमि || ३७६५ ।। एत्थंतरे सुरासुर - किन्नर - सिद्धेहिं पभणियं गयणे । 'खयरिंद - कुमाराणं जाणिज्जइ अंतरं एहि ||३७६६ || तो खयरेहिं समं चिय जुगवं विद्दवियवैरिनिवहेहिं । संधेवि सरसहस्सं पच्चेयं पेसियं कुमरे ||३७६७।। ते खेयरिंदबाणा समोत्थरंता नहंतरालंमि । सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ विफु (प्फु) रियसिहिफुलिंगा भयावहा तिहुयणस्सावि || ३७६८ ।। कुमरेण सरसहस्सा ते दोन्नि वि एक्कनिययबाणेण । दोखंडिय (या) खणेणं अलद्धलक्खा गया धरणि ।।३७६९।। अह एकुण सरेणं दोन्नि सहस्से सराण सो कुमरो । दोखंडिऊण पूरइ धरायलं बाणखंडेहिं ॥ ३७७० ॥ तो पवण- सेहरेहिं रोसुब्भडभिउडिभीमभालेहिं । उच (च्च) लिउ (ओ) महंतो दसजोयणवित्थरो सेलो || ३७७१ || विज्जाबलनिम्मविओ ओसारियगयणसिद्ध-सुर- जक्खो । बहुसिहर-गुहा- कंदर - निज्झरणसहस्सरमणीओ || ३७७२ || Page #354 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ 'रे पवणकेउ ! छड्डुसु चिरंतणो सेलसंगरारंभो । कि (किं) मज्झ कयं तइया बहुएहिं वि तुज्झ सेलेहिं ?' ॥ ३७७३॥ तो सेलो दट्ठूणं गयणे हाहारवो समुच्छलिओ । तियसाण, तओ खित्तो खयरेहिं गिरी कुमारस्स || ३७७४ || कुमरेण वि सो सेलो मुट्ठिपहारेण ताडिओ एंतो । वलिऊण पडिवणं पुण विज्जाचोइओ पत्तो || ३७७५ || तो हढकड्डियधणुगुणविमुक्कसरनियरपहरनिद्दलिओ । तह ताडिओ गिरिंदो जह जाओ धूलिपुंज्जो (जो ) व्व ॥ ३७७६|| विहडावियंमि सेले विलक्खवयणेहिं तेहिं पुण गहियं । सिहिगलकज्जलसामं तामसनामं महासत्थं ।। ३७७७ ।। अह तामसपहरणगुरुपहावविफु (प्फु) रियतिमिरदुल्लक्खं । गिलियं व्व तेण भुयणं जायं अपरिप्फुडपयत्थं ||३७७८।। तो तक्खणेण रक्खसविउब्वियं धगधगंतसूरत्थं । मोत्तूण वीरसेणो तं तामसपहरणं हणइ ।।३७७९।। पुण पवण- सेहरेणं विसहरसत्थं पु ( प ) गोलि ( ल्लि ) यं कुमरे । कुमरेण तं पि निहयं गारुडनारायघाएण ।।३७८०॥ इय जं जं खयरिंदा दिव्वाउहमाहवे पणोल्लंति । पडिपहरणेण कुमरो तं तं चिय हणइ वीसत्थो || ३७८१ ॥ तो पवणकेउणा पुण सविलक्खमणेण तक्खण (i) च्चेय । गरुयामरिसवसेण विउव्विया वीस भुयदंडा || ३७८२ ॥ दस वि दस धणुदंडा तेसु वि दस ठाविया महाबाणा । पंडिवक्खपक्खदलणा ते विज्जापहरणा विसमा ||३७८३ ॥ ३४५ Page #355 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४६ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ मंतपहावसमिद्धा असेसजगजगडणे वि हु समत्था । आलीढं रइऊणं विसंधिया पवणराएण ।।३७८४।।. नामाइं इंति ताणं नग्गोह-गिरिंद-सलिल-जण(ल)णो(णा) य । हरि-विसहर-मायंगा रक्खस-तम-सायरा दस वि ।।३७८५।। दठूण रक्खसिंदो विज्जाहररायसंधिए सहसा । दिव्वाउहे ससंको कुमरं अह भणिउमाढत्तो ||३७८६।। 'देव ! नियच्छसु पुरओ अच्छरियं पवणकेउणा जेण । दोबाहू वि हयासो वीसभुओ संपयं जाओ ॥३७८७।। एयाई पुण नरेसर ! अच्चब्भुयपहरणाई दिव्वाइं । भुयणस्स मोहणाई किमंग पुण तुज्झ एकस्स ? ||३७८८।। एयाण पहारेणं न तुमं नाऽहं न बंधुयत्तो वि । संपइ जमेत्थ उचियं तं देवो कुणसु सयमेव' ॥३७८९।। तो भणइ वीरसेणो ‘मा बीहसु रक्खसिंद ! एयाण । दिव्वाउहाण जम्हा पहीणसत्तेण धरियाण ।।३७९०।। जायइ तयं पि वज्जं सत्ताहियपुरिसकरयले चडियं । वज्ज पि अकिंचिकरं करट्टियं हीणसत्तस्स ॥३७९१।। तो पेच्छ संपयं चिय पवणो सह आउहेहिं एएहिं । नीसंधिबंधणो च्चिय अवस्सनिहणं नइस्सामि' ॥३७९२।। एत्थंतरंमि तुरियं ठाणं चइऊण दस वि पवणेण । दिव्वाउहाई कुमरे मुक्काई समं सकोवेण ॥३७९३।। एक्केवं पि हु दुसहं पुरंदरेणावि किं पुण नरेण ? । ते दस वि समं खित्ता सहेज्ज को एत्थ भुयणंमि?।।३७९४।। Page #356 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४७ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ ज्झंपिय नहंतरालं समोत्थरंतं महाउहसमूहं । दठूण रक्खसिंदो भएण विहलंघलो जाओ ।।३७९५।। मं भीसिऊण रक्खं अक्खुहियहियएण वीरसेणेण । पडिवक्खपहरणेहिं दस वि समं दसहिं निहयाइं ॥३७९६।। अग्गेयसरेण हओ नग्गोहो पव्वओउ कुलिसेण । पवणेण जलं निहयं जलणो उण वारुणत्थेण ॥३७९७।। सीहो सरहेण हओ गरुडेण अही करी मइंदेण । रक्खो धम्मत्थेणं तामसबाणं रविसरेण ॥३७९८।। वडवानलेण जलही निवारिओ तक्खणं कुमारेण । सरधोरणी पणट्ठा हरिचंदसे(सि?)रिव्व खणदिट्ठा ॥३७९९।। तो वीरसेणविणिहयदिव्वाउहजायमच्छरुच्छाहो । सुमरइ विज्जं पवणो आंगतूणं च सा भणइ ॥३८००।। ‘किं पुत्त ! सुमरियाऽहं ? कज्जं मह कहसु जं तुह असझं ।' भणियंमि भणइ पवणो ‘मारसु एयं महासत्तुं' ।।३८०१।। तो तव्वयणायन्नणफुरंतकोवारुणाए दिट्ठीए । कुमरं विज्जा दटुं रक्खसिरूवं विउव्वेइ ।।३८०२।। जा नियइ वीरसेणो ता पेच्छइ नहयले अमंतिव्व । पिहुलत्तणेण दूरं च्छायंती दिसिवहाहोयं ।।३८०३।। कह सम्माइयसेसं संकडजढरे जयंति वुड्डीए(?) । दीहत्त-पिहुत्तेणं वित्थरियं तीए गयणंमि ||३८०४।। 'हा अज्जउत्त ! रक्खसु' इय विलवंतिं हढेण कहुंती । चंदसिरी(रिं) भालत्थललुलंतकेसेसु घेत्तूण ।।३८०५।। टि. १. बुद्धीए ला. ।। Page #357 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ तं दठूण कुमारो ससंकमिव धणुहरं पमोत्तूण । असि-वसु-णंदयहत्थो उप्पइओ तीए(इ) हणणत्थं ॥३८०६।। उप्पयमाणो तीए अइदूरपसारिएण वयणेण । गिलिओ सपहरणो च्चिय वंजणसहिओ व्व गुरुकवलो ।।३८०७।। गिलियंमि वीरसेणे गयणे सुर-सिद्ध-जक्खपमुहाणं । पक्खुहियमाणसाणं 'हा कट्ठ'रवो समुच्छलिओ ||३८०८।। किलिगिलियं तव्वेलं खयरबले खेयरेहिं सव्वेहिं । अफा(प्फा)लियं व्व सहसा आणंदसमुब्भवं तूरं ॥३८०९।। रक्खसिनिसाए गिलिए कुमरे सूरेव्व पयडियतमोहो । उद्धाइ बंधुयत्तो ‘हा हा ! पाव' त्ति भणमाणो ॥३८१०॥ तो नासियाए कुमरो निगच्छइ नासियं पि छेत्तूण । आसार्सेतो गयणे किन्नर-सुर-सिद्धसंघायं ॥३८११।। पुण दीहरजीहावेल्लिवेढियं गिलइ रक्खसी कुमरं । गिलिएण तेण अंतो वियंभिउं अह समाढत्तं ॥३८१२॥ छिन्नइ अंतसमूहं असिणा तह लुलणइ(लुलइ) मंसखंडाइं । हड्डसमूहं अंतो दोखंडइ मंडलग्गेण ।।३८१३।। इय सो सरीरमज्झे पसरिंतो तीए कयमहापीडो । लूयावाहि व्व निरंतरुब्भवो साडइ सरीरं ||३८१४।। अह विहडावियनिविडट्ठिबंधकरवालघायमसहंती । दिवा वि तक्खणं सा पुणो वि असणीहूया ॥३८१५।। तो भणइ पलायंती सा विज्जा पवणकेउमिह नाऽहं । पहवामि महासत्ते बहुपुन्नपहावदुल्लंघे' ।।३८१६॥ - Page #358 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४९ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ एत्थंतरंमि कुमरो तं पुरओ रक्खसिं अपेच्छंतो । कयखग्ग-खेडयकरो अभिट्टो पवणकेउस्स ।।३८१७।। पच्चारिओ सरोसं 'रे रे ! निल्लज्ज ! भाउओ तुज्झ । निहओ मए इयाणिं जं सकसि तं मह करेसु' ॥३८१८।। इय भणिए कुमरेणं रोसानलदीहधूमदंडसमं । ' आयड्डियं करालं करवालं पवणराएण ॥३८१९।। तो तेण धाविऊणं कुमारसीसंमि वाहियं खग्गं । कुमरेण सदक्खेणं असिघाओ वंचिओ तस्स ॥३८२०।। ओसरिऊण सवेगं कुमरो आयड्डिऊण नियखग्गं । च्छिन्नइ ‘च्छ(छ)ण'त्ति सहसा सीसं सिरिपवणकेउस्स ।।३८२१॥ पुण सेहरो सरोसं पडिए पवर्णमि तक्खणं चेव । असि-वसु-णंदयहत्थो पधाविओ वीरसेणस्स ।।३८२२।। तो सोवहासवयणं भणिओ कुमरेण सेहरणरिंदो । 'मा धावसु एसु त्थि(थि)रं अक्खुलिय कहं पि निवडिह(हि)सि ॥३८२३।। जा मुट्ठिगेज्झमज्झा सुपओहरसालिणी य सामंगी । तुह उरयडमि निवडइ मह खग्गलया न चंदसिरी' ॥३८२४॥ तो तव्वयणवियंभियसमहियकोहग्गिवसफुरंतोट्ठो । पक्खिवइ खग्गघायं सेहरराया कुमारस्स ॥३८२५।। जा वंचिऊण कुमरो असिणा किर सेहरं सिरे हणइ । ता सो उप्पइऊणं परिट्ठिओ कुमरखग्गग्गे ॥३८२६।। खणमेत्तं खग्गंते खणंतरं खग्गउभयधारासु । वियरइ सेहरराया रओ व्व पवणाभिओगेण ॥३८२७।। Page #359 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५० सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ तो जाव खग्गविसयं न जाइ सो ताव वीरसेणेण । भिच्चो व्व अकिंचिकरो परिहरिओ तक्खणे खग्गो ॥३८२८॥ तो सेहरो वि तुरियं खग्गं मोत्तूण धरइ चरणेसु । कुमरं भमाडयंतो उप्पइओ गयणमग्गंमि ||३८२९।। तो निसुणंतो कुमरो ‘हा हा' सदं समक्खममराण । तस्स भुयंते पविसइ निच्छुट्टइ धरइ तं चरणे ।।३८३०॥ धरिऊण एगचरणे बीयकरेणं च जा किर कुमारो । च्छुरियाए हणइ ता सो 'नमो जिणाणं' ति उच्चरइ ।।३८३१।। तो तं अदीणहिययं सेहरयं सरियजिणनमोक्कारं । साहम्मियं ति नाउं सो ‘मिच्छा दुक्कुडं' भणइ ॥३८३२।। तो समयं धरणियले अवयरिओ सेहरेण सह कुमरो । आसासेंतो सदयं खयरगणं बंधुयत्तं च ॥३८३३।। तो तक्खणेण गयणे सुरकिंकरताडिओ समुच्छलिओ । 'जय जय'सर्दुमी(म्मी)सो अइगहिरो दुंदुहीसद्दो ॥३८३४।। नवपारियायमंजरिसुयंधरयपडलपूरियदियंता । तियसेहिं कुसुमवुट्ठी पामुक्का वीरसेणंमि ।।३८३५।। अह निक्कारिमपोरुसगुणरंजियमाणसेहिं तियसेहिं । सव्वेहिं वीरसेणो पसंसिओ पुलइअंगेहिं ।।३८३६।। एत्थंतरे निरंतरतिरोहियासेसनहयलुद्देसं । तव्वेलमेव पत्तं सयलं पि बलं असोयस्स ॥३८३७।। दठूण वीरसेणो सेन्नं विज्जाहराण गयणंमि । वैरिबलं ति मुणंतो कोदंडं करयले कुणइ ।।३८३८।। Page #360 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ ३५१ तो तव्वेलारोवियहड्ड(ढ)कड्डियधणुविमुक्कसरनियरो । थलजलहरो व्व कुमरो उद्धं धाराहिं वरिसेइ ।।३८३९॥ अह एक्कमुट्ठिपेसियसहस्स-दुसहस्स-अजुय-लक्खसरो । तम्घायज्जरंगं ओहट्टइ अग्गिबाणबलं ।।३८४०।। अह सभयमसोओ विय नियसेन्नं पेच्छिऊण नासंतं । पुच्छइ ‘किं तुम्ह भयं? जेणेवं पलह भयभीया?' ||३८४१।। तो तेहिं भणियमेवं ‘देव ! पुरो भूमिगोयरो को वि । करधरियचावदंडो पहरइ अत्थक्कबाणेहिं' ।।३८४२।। तो भणियमसोएणं 'न अन्नपुरिसस्स एरिसी सत्ती । सो चेव वीरसेणो संभविही निच्छियं एत्थ ।।३८४३।। ता जाहि चंदसेहर ! सुवेय ! गंतूण कहह कुमरस्स । तुह पडिबले असोओ आगच्छइ न उण कोइ रिऊ' ॥३८४४।। खयरिंदपेसिया ते दो वि समं चंदसेहर-सुवेया । पत्ता कुमारपासं दूराओ(उ) नमंति सप्पणयं ॥३८४५।। दूराओ च्चिय कुमरो पच्चभिनाऊण भणइ ससिणेहं । ए एहिं(हि) चंदसेहर ! सुवेय ! आलिंगसु मम'ति ।।३८४६।। तो तहसणपसरियहरिसंसुपवाहपयडियसेणाहो(सिणेहो) । आलिंगिऊण कुमरो खयरे तत्थेव उवविसइ ॥३८४७।। अह चंदसेहरो वि य सिरिधरियकरंजली भणइ । “देव ! असोएण अहं तुम्ह सयासंमि पट्टविओ ।।३८४८।। भणइ असोओ ‘भुयणे वि तुह पयावानलस्स किमसज्झं ? बहुविहअच्चभु(ब्भु)यपुन्नपवणपरिपोसियस्सेह?' ॥३८४९।। Page #361 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५२ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ अन्नं किं पि सरूवं तुज्झ पयावानलस्स जं देव !!. निद्दहमाणो वि रिऊ अम्हं पुण हिमकणसरिच्छो ॥३८५०।। तुज्झ अणंता वि रिऊ संमुहमवलोइउं पि न तरंति । करकरवालपरिट्ठियजमरायमहाभएणं व ॥३८५१॥ तुह तेयमसहमाणा पडंति तत्थेव ते पयंग व्व वल्लहगुणेण तं चिय मच्छरतिमिरं पणासेइ ॥३८५२।। पावंति पसंसं इह जयंमि ते च्चिय गुणा गुरुगुणाण । रिउणो वि भिच्चभावं गुणन्नया जेहिं निज्जंति ।।३८५३।। नणु मच्छरो वि अग्घइ सरिसगुणे न उण समहियगुणंमि । पहसिज्जइ खज्जोओ पयर्डतो मच्छरं रविणा ।।३८५४।। मन्नामि निग्गुणं पि हु अप्पाणं एत्तिएण सगुणं च । जं इच्छामि तए सह गुणगुरुणा नेहसंबंधं ॥३८५५।। जाणामि देव ! दोसा न ठंति मह संतिया तुह मणे वि। ता कुणसु मह पसायं करेमि सह दंसणं तुमए ॥३८५६॥ ता सो नमंतखयरिंदमउडमणिकोडिमसिणपयवीढो । बहुविज्जाहरसेणासंभारनिरुद्धगयणवहो ॥३८५७।। जो निज्जिओ वि तुमए पुट्विं रयणायरंतभवणंमि । सो तुह गुणाणुराई विन्नवइ इमं असोओ'त्ति ॥३८५८।। इय खयरचंदसेहरवयणं सोऊण वीरसेणो वि । भणइ 'किमेयं सेन्नं पडिबद्धमसोयरायस्स ?' ||३८५९॥ ‘एवं' ति चंदसेहरभणिए पुण भणइ वीरसेणो वि । 'हा हा ! अन्नाणहओ मन्नामि इमं पि सत्तुबलं ॥३८६०।। Page #362 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ नियरज्ज-देस-परियण-जीविय-विहवाइकयपरिच्चाओ । आवइवडियं मं किर सव्वारंभेण उद्धरिही ॥३८६१।। तस्स वि पावेण मए दुज्जणरूवेण कहमसोयस्स । हा अग्गिबाणसेन्ने अवयरियं कयपहारेण ? |॥३८६२।। न हु हुंति दुज्जणाणं खाणीउ जओ परोवयारंमि । पुरिसंमि अवयरंतो सव्वो वि हु लहइ दुज्जन्नं ॥३८६३।। ता चंदसेहर ! तए कालक्खेवो न होइ कायव्यो । जं मह जहा सरूवं तं साहसु खयररायस्स ॥३८६४।। मा कह वि उवाहिवसा अन्नह संभावणी(णं) मणे काही । तस्स परिग्गहलोओ विचित्तरूवो जणो जेण' ॥३८६५।। तो वीरसेणवयणं सोउं पुण चंदसेहरो भणइ । 'मा भणसु देव ! एयं अमयं न विसत्तणमुवेइ ।।३८६६।। अमयसरूवो सि तुमं न संति कुवियप्पविसवियारा ते । न य देव ! असोओ वि हु तुह विसए अन्नहाचित्तो ॥३८६७।। जइ वेवं तहवि कुमार ! तुज्झ वयणं पमाण मिइं(इ) भणिउं । ससिसेहरो सवेगं असोयपासं समणुपत्तो ।।३८६८।। गंतूण तेण सव्वो कहिओऽसोयस्स कुमरवुत्तंतो । भणियमसोएण 'अहो ! सोजनं वीरसेणस्म ॥३८६९।। किं भन्नइ तस्स असेससुयणचूडामणिस्स कुमरस्स । जस्सेक्केक्को वि गुणो वित्थरिओऽणंतरूवेण' ॥३८७०।। इय वीरसेणबहुविहगुणकित्तणजायहरिसरोमंचो । सह बलभरेण पत्तो कुमरसमीवं खयरनाहो ॥३८७१।। 24 Page #363 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ सममोयरंतखेयरगणेहिं गयणंगणं मुयंतेहिं । पूरिज्जइ नीसेसं निरंतरं पि हु धरावलयं ॥३८७२ ।। तो वीरसेणदसणलज्जावसमउलियाणणच्छिजुओ । अहिधाविऊण कुमरं आलिंगइ खेयराहिवई ।।३८७३। नियगरुयत्तणसरिसं कुमरेण वि समुचिएण मग्गेण । संभासिओ असोओ ससंभमुभंतनयणेण ॥३८७४।। तह कह वि तेण तइया ववहरियं सुद्धभावहियएण । कुमरेण जहाऽसोओ बंधुव्व सहोयरो जाओ ॥३८७५।। तो भणइ वीरसेणो ‘असोय ! परमत्थकयवियाराण । कहमवि न ठंति हियए अविवेयसमुब्भवालावा ।।३८७६।। अविवेय एव जायइ नरस्स परिणामदारुणो सत्तू । सत्ताण न उण अन्नो अवयारी एरिसो अत्थि ॥३८७७॥ अजहत्थवत्थुनाणं अविवेओ एत्थ होइ नायव्वो । अहिए वि हियत्तमइ हिए वि अहियत्तपडिवत्ती ।।३८७८।। मह होसि तुमं सत्तू अहं पि तुह इय परोप्परवियप्पा । अजहत्थवत्थुविसया कुवियप्पा एस अविवेओ ।।३८७९।। तम्हा अविवेयवसुल्लसंतपसरंतहिययकुवियप्पो । जावच्छसि ताव न तुह विवेयजणिया सुहा भावा ॥३८८०॥ पुव्वकयदुकयकम्मक्खएण अविवेयकारणाभावो । परमत्थभावणाओ विवेयरयणस्स उप्पत्ती ॥३८८१।। परमत्थभावणाए न को वि अन्नो रिऊ जए अत्थेि । अहमेव अप्पण च्चिय सत्तुत्तं जानि अप्पाणा(णं) ॥३८८२।। Page #364 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ जं जह जीवो वियरइ सुहमसुहं वा परंमि तब्भावो । तं तह पावेइ फलं तव्विहनियकम्मनिम्मवियं ||३८८३ || ता जइ होइ पमाणं सुहासुहं पुव्वनिम्मियं कम्मं । तं चेय मित्त- सत्तू को रोसो इयरपुरिसेसु ? ।। ३८८४ ॥ ता एयं नियचित्ते मह वयणं भाविऊण उभए वि । उचियाणुट्टाणेणं जह सफलं होइ तह कुणह' || ३८८५ ।। इय वीरसेणवयणं सोउमसोओ वि सेहरो दो वि । ओसरियमोहपडला जहत्थपरिपेच्छिरा जाया ||३८८६|| इह ताव च्चिय पसरइ संसारसहावसंगओ मोहो । जाव न विवेयलोयणउम्मेसो होइ हिययंमि ||३८८७ || कुमरोदयसेलुब्भवविवेयरविनिहयमोहतिमिरा ते । अन्नोन्नमच्छरुब्भव-कुवियप्पविवज्जिया जाया ||३८८८ ।। पसरइ पच्छायावो दुरणुट्ठाणेसु पुव्वविहिएसु । ताण विवेयसमुब्भवउवसमपरिणामसंभूओ || ३८८९ ॥ चिंतंति मणे दोन्नि वि कुमरुवएसेण नायपरमत्था । अणवच्छिन्ननिरंतरसुद्धज्झवसायसंपत्ता ||३८९० ।। 'मुज्झति मारिसा वि हु जइ किर जिणधम्मनायपरमत्था । को दोसो इयराणं ता मन्ने मिच्छदिट्ठीण ? ।। ३८९१ ।। जई जिणमए वि लद्धे राग-द्दोसा फुरंति हिययंमि । ता तं जाण अलद्धं पईवचक्कं व अंधस्स ॥ ३८९२॥ ता किरइ रवी तिमिरं जलणफुलिंगे वि ससहरो मुयइ । जिणपवयणे वि पत्ते रागद्दोसा जइ हवंति ।। ३८९३ ।। ३५५ Page #365 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ खणदिन्नसुहलवेहिं वि गुणिणो झिज्झति रागदोसेहिं । किं पुण न निफ (प्फ) लेहिं इमेहिं दुक्खेकहेऊहिं ?' || ३८९४ || इय ते समकालं चिय चिंतंता दो वि सेहराऽसोया । अवरोप्परं पसंता खामंति पुराणदुच्चरियं ॥ ३८९५ ।। तो सेहरेण भणियं 'कुमार ! मोहंधयारमूढेण । तिहुयणबंधू वि तुमं कलिओ सि मए उण रिउ ति ।। ३८९६।। ता वीरसेण ! तुह मणविसुद्धववहरणनिहयकुवियप्पो । अव्वभिचारी जाओ भिच्चोऽहं बंधुयत्तो व्व' ||३८९७ ।। तो जुगवं चिय दोहि वि असोय - सेहरयखयरराएहिं । आयर - विणयमहग्घं गुरु व्व कुमरो इमं भणिओ || ३८९८ ।। 'अम्हेहिं पुरा घणराग-दोसविसपरवसंतकरणेहिं । जं किं पि तुज्झ वितहं आयरियं तं खमेज्जासु || ३८९९ ।। अज्ज दिणे अम्हेहिं वि परिहरिओ परपुरंधिसंभोगो । तुह वयणसवणसंभवविवेयकयतव्विराएहिं' ||३९००॥ तो भणइ वीरसेणो 'समुचियमणुचिट्ठियं तुमेहिं इमं । जम्हा कुलुब्भवाणं एयं चिय होइ ववहरणं' ||३९०१॥ अह कुमरो चिंतंतो वणकम्मं रणपडिद्धपुरिसाण । जा रणभूमिं गच्छइ ता पेच्छइ खेयरं एगं ।। ३९०२ ।। नाणापहारपहरणपहारजज्जरियभीसणसरीरं । ३५६ रणलच्छिसमालिंगणमीलियनयणं व निचे (च्चे) दूं ||३९०३॥ जस्संगेसु वणा अवि विणितघणरुहिरघोसनिग्घोसा । हुंकारंति सरोसं अभिद्दवंता कुमारं व्व ॥ ३९०४॥ Page #366 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ तिख (क्ख) ग्गखुत्तचंचू जस्स य चलपुंखपक्खसंघाया । गिद्ध व्व मंसलुद्धा सोहंति सरा सरीरंमि ।। ३९०५ ।। तं पेच्छिऊण कुमरो वीररसुच्छूढबहलरोमंचो | 'को एस' त्ति सहरिसं पुच्छइ खयरिंदसेहरयं ।। ३९०६ || तो सेहरेण भणियं 'एसो क्खु कुमार ! पवणकेउस्स । तह कमलकेउणो वि य सव्वलहू भायरो होइ ।। ३९०७ || नामेण चंडकेऊ पर्यडभुयदंडखंडियविवक्खो । रणरंगसुत्तहारो वैरिवहूबंदिकारो य || ३९०८ ।। जो पवणकेउपुरओ जुज्झतो छड्डिओ सकरुणेण । तुम तुरियपणं पवणो पच्चारिओ जइया ||३९०९ ।। सो एस महासुहडो तुज्झाउहपहरजज्जरसरीरो । रणभूमी महायस ! पडिओ पयडंगघणपुलओ ||३९१०|| इय सोऊण कुमारो हरिचंदण - वारिविहियतणुराओ । कारावर वणकम्मं नीसेसं तस्स खयरस्स ।। ३९११।। पच्चागयचेयन्नो पुरओ दट्ठूण कुमरमइरोसो । भइ 'न घुणेहिं खज्जइ बंधववइरं महावीर ! ।। ३९१२ । सल्लति तह न देहे सव्वलवावल्लसेल्लभल्लीओ । जह पवण - कमलकेऊमारणमसमं तए विहियं' ||३९१३।। इय भणिउं सो गयणे उप्पइओ सह निएण सेन्त्रेण । कुमरो वि जायकरुणो तस्स कहं जाव उच्चरइ ।।३९१४।। ता चंदसेहरेणं अक्खिविऊणं अपत्थुयालावं । सपणामं विन्नतो (त्तो) कुमरो करपंजलिउडे ।। ३९१५ ।। ३५७ Page #367 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५८ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ 'इह देव ! तुह समुज्जलपुण्णपहावेण सुहयरं जायं । इण्हि पत्थुयकज्जे दिज्जउ नरनाह ! अवहाणं' ॥३९१६।। ‘एवं होउत्ति तओ कुमरो संपेसिऊण नियमित्तं । आणावइ चंदसिरिं पज्जुन्नं बंधुजीवं च ॥३९१७।। दछृणं चंदसिरी कुमरं खयरिंदसेन्नपरियरियं । कयकरसंपुडसेहर-असोयराएहिं कयसेवं ।।३९१८।। धगधगधगेंतदूसहसाहावियतेयपसरदुद्धरिसं । कंचणगिरिं व्व बहुविहधरणीहरकलियपायंतं ॥३९१९।। चिंतइ मणंमि ‘पेच्छह अच्चब्भुयपुन्नपयरिसफलाई । जं वैरिणो वि मित्ता संजाया अज्जउत्तस्स ॥३९२०।। जायइ विसमं पि समं गहिरं पि सथाहमेव धन्नाण । इयराण पुणो तं चिय पए पए होइ विवरीयं ।।३९२१।। एयंविहाण पायं कप्पतरूणं व परुवयारीण । जायंति साणुबंधा समंतओ पुन्नपारोहा' ||३९२२।। इय एवमाइ पिययमदंसणवसजायतग्गयवियप्पा । चंदसिरी बहुपरियणकयकलयलमागया तत्थ ॥३९२३।। दूराओ च्चिय सरहसनमंतसिरकुसुमदामनिवहेहिं । पणमिज्जइ चंदसिरी सेणा-विज्जाहरभडेहिं ।।३९२४।। सा वीरसेणदंसणपयट्टपुलयं वरिल्लवत्थेण । पच्छायंती सविणयमुवविसइ कुमारपिटुंमि ।।३९२५।। तो बंधुयत्तपयडियनामा खयरिंदसेहरासोया । पणमंति निव्वियारा चंदसिरीपायपंकरुहं ॥३९२६।। Page #368 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५९ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ दूराओ सत्थवाहो पसरियभुयवित्थरेण कुमरेण । आलिंगिओ सपणयं निवेसिओ नियसमीवंमि ॥३९२७।। तो भणइ बंधुयत्तो 'कुमार ! न तहा विचित्तजसराया । खिज्जइ धूयाविरहे जह तुज्झ वियोगदुक्खेण ||३९२८।। तो तस्स देवजोगा मा कह वि अणत्थसंभवो होही । इय अविलंबं कीरउ नासिकपुरंमि पत्थाणं' ॥३९२९।। आयन्निऊण एयं पभणइ कुमरो 'किमेत्थ अच्छरियं? । मह उवरि एरिसो च्चिय पडिबंधो रायरायस्स' ।।३९३०॥ तो सरलधवलपम्हलविसालरत्तंतकसिणघणतारं । कुमरो खयरिंदेसुं दोसु वि दिढेि परिठ्ठवइ ||३९३१।। तो ते सरहससंघडियनिविडकरसंपुडा खयरनाहा । पभणंति एवमेवं जाइज्जइ रायपासंमि' ।।३९३२।। अह भाविऊण हियए खणंतरं दीहमुक्कनीसासा । पभणइ असोयराया कुमराभिमुहं इमं वयणं ॥३९३३।। मह सेहरस्स वि तए विहिया जह एगचित्तया देव ! तह कुणसु तं पि संपइ विचित्तजसराइणा समयं' ॥३९३४।। तो भणइ वीरसेणो 'न हुंति गरुयाण चित्तकाणीओ । पच्छायावो सारियचिरावराहेसु पणईसु ॥३९३५।।। सुयणस्स सायरस्स य देवेहिं वि हरियसव्वसारस्स । पिसुणइ जुगंतपलयं मज्जायाइक्कमो चेव ।।३९३६।। अइपीडिओ वि सुयणो न धरइ मलिणत्तणं मणे कह वि । अह धरइ न पयंपइ अह जंपइ नेय अवयरइ ।।३९३७॥ Page #369 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६० सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ इय तस्स सयलसज्जणचूडामणिसन्निहस्स नरवइणो । न फुरंति खणं पि मणे परंमि अवयारबुद्धीओ ||३९३८।। तो तुह असोय ! हियए परिणयमिव जिणमयं ति मन्नामि । कह संभवंति इहरा पसमाणुगया सुहा भावा' ।।३९३९।। इय भणिऊणं विरए कुमरंमि तओ असोयराएण । पउणीकयं असेसं नियसेन्नं विविहविच्छडं(डु) ॥३९४०।। पुण सेहरेण वि तहा विज्जाबलकयविमाणनिवहेहिं । उच्छाइयं असेसं गयणयलमणेगरूवेहिं ।।३९४१।। अवहरिया जेण पुरा चंदसिरी मणिविमाणरयणेण । तं चेय कुमरपुरओ उवट्ठियं फुरयघणकिरणं ।।३९४२।। बहलिंदनीलसामलमऊहमासलियमज्झिमपएसं । चंदसिरिहरणजायं अंतोपावं व उव्वहइ ।।३९४३।। विदुमरयणनिवेसियमहल्लज्झुल्लंतमोत्तिउऊलं(?) । कयपच्छायावं पिव थूलंसुकणेहिं जं रुयइ ।।३९४४।। पेरंतेसु परिट्ठियरविमणिजालासहस्ससंवलियं । दुच्चरियसोहणत्थं कयप्पवेसं व्व जलणंमि ॥३९४५।। इय पारियायपल्लवकयतोरणमुब्भिउब्भडपडायं । आरुहइ सह पियाए विमाणरयणं महावीरो ॥३९४६।। उभयंसपाससंठियविज्जाहरसुंदरीकरथे(त्थे)हिं । वीइज्जंतो ससहरकरपंडुरचारुचमरेहिं ।।३९४७।। पज्जुन्न-बंधुयत्ता बंधुजीवा य कुमरजाणंमि । सिररइयकरयलंजलिबंधा पुरओ समारूढा ॥३९४८।। . Page #370 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ तस्स कुमारविमाणस्स वाम - दक्खिणविमाणमारूढा । समयं चिय संचलिया ससंभमं सेहरा - सोया ।। ३९४९ । जहजोग्गयाणुरूवं विमाण-नाणापयारजाणेसु । सव्वो वि समारूढो चलिओ विज्जाहरसमूहो ।। ३९५० ।। अफा (प्फा) लिज्जइ बहुविहआओज्जसहस्ससद्दसंवलिया । सभयदिसागयनिसुया पत्थाणसमुब्भवा भेरी ।। ३९५१ ।। उप्पयइ बलं बहुविहपत्थाणावसरवइयरवसेण । कयकलयलरवबहिरियनहंतरं उत्तराभिमुखं ।। ३९५२ ।। उड्डुं समुप्पयंता रएण खयरा अहो महीवेढं । सगिरि-पुर-काणणं पिव पेच्छंति रसायलपडतं ॥३९५३।। पढमं परिभावियसेलसंकडं थउडियं समतलं च । पेच्छंति कमेण धरं खयरा तम्मेव अह गयणं ।। ३९५४ | न निरिक्खिज्जइ गयणं तिरोहियं घणविमाणनिवहेहिं । तलसंठिएहिं उडुं न तलं उद्घट्ठिएहिं पि ।। ३९५५ ।। नाणाविमाणभवणं विज्जाहरजणसमूहसंकिन्नं । नहमग्गसंचरंतं हरिचंदपुरं व खयरबलं ।। ३९५६ ।। अवरोप्परं महामणिभित्तिसु पडिबिंबिए मणि- विमाणे । अन्नववएसभावं पावंति सहावविवरीयं ।। ३९५७।। अणुकूलपवणचंचलविमाणसिहरग्गधयवडायाओ । विणएण कुमारस्स व दावंति पुरोगमं मग्गं ।। ३९५८ ।। अइवेयवसपधावियविमाणपवणाणुगामिणो तुरियं । संजायकुमरसेवारस व्व धावंति वारिहरा ।। ३९५९ ।। स्थपुटितं - निम्नोन्नतं, खंता. टि. । १. ३६१ Page #371 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६२ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ संनिहियसूरमंडलवसपसरियवीरसेणसंतावं । घणमंडलप्पवेसो पसमइ सिसिरंबुसंगेण ।।३९६०।। मेहंबुकणकणारियचंदसिरीसरलनयणपम्हाइं । दठूण वीरसेणो सासंको खुहइ खणमेत्तं ॥३९६१।। घणरविकिरणकरालियविमाणरविकंतजलणजालासु । दीसंति धूममंडलभमेण खयरेहि घणनिवहा ॥३९६२।। सहइ बहुवन्नमणिमयविमाणपसरंतकिरणकब्बुरियं । कुमरागमे व्व नहसिरिरंगावलिसोहियं गयणं ॥३९६३।। गयणं ति अइजवेणं निम्मलफलिहुज्जले विमाणंमि । अब्भिट्टो पहसिज्जइ को वि नरो खयरनारीहिं ।।३९६४ ।। संकिन्नपहत्तेणं अग्गेसरपिहुविमाणभित्तीए । ज्झंपियविमाणदारे परिरंभइ को वि नियदइयं ।।३९६५।। 'किं पुरओ न निरिक्खसि ? निययविमाणेण पेल्लसे जमिह । मज्झ विमाणं वच्चसु थिरचित्तो पिययमापासे' ॥३९६६।। नियडविमाणगवक्खयनिविट्ठविज्जाहरीओ अन्नोन्नं ।। अंगयकोडिविलग्गं दुहेण मोयंति हारलयं ।।३९६७।। 'तुह वीरसेणआणा जइ पेल्लसि अंतरे नियविमाणं । अइसकडंमि मग्गे जाइज्जइ खेयर ! थिरेहिं ॥३९६८।। रे विज्जाहर ! पुरओ कलयलसदं निवारसु खणद्धं । निसुणसु गाइज्जतं परक्कमं वीरसेणस्स ॥३९६९।। कोलाहले पसंते एसो कह समइ वीरसेणस्स । विज्जाहरिचलचामरकरकंकणझणझणासहो ? ॥३९७०।। Page #372 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ छड्डुसु चिरववहरणं एहि अन्नारिसो समायारो । परनारी (रिं) मा जोयसु न सहइ एयं महावीरो ।। ३९७१ ।। एयंमि पिए! कुमरो वच्चइ रयणुज्जले विमामि । जं वेढियं निरंतरविज्जाहर भडसहस्सेहिं' ।। ३९७२ ।। इय एवमाइवइयर अन्नोन्नालावरसपराहीणं । सिरिवीरसेणसेन्नं वच्चइ गयणंमि तुरंतं ।। ३९७३ ॥ एत्थंतरंमि दठ्ठे विज्जाहरघणविमाणसंघट्टं । अवलोइऊण कुमरं पुण हसियं बंधुयत्तेण ।। ३९७४ || अह निक्कारणहसिरं नियमे (मि) त्तं पेच्छिऊण कुमरो वि । सासंकमणो पुच्छइ 'किं हसियं मित्त ! ? मह कहसु' || ३९७५ ।। तो भणइ बंधुयत्तो न किं पि एमेव देव ! निक ( क ) ज्जं कुमरो भणइ 'न गुणिणो हसति निक्कारणं मित्त ! ||३९७६ ॥ एमेव पहसिराणं एमेव पयंपिराण भमिराण । । पुरिसाण पिसायाण व न जाणिमो अंतरं किं पि' ।। ३९७७।। तो भइ बंधुयत्तो 'कुमार ! एवं तए जहाइट्ठ । किं तु न तरेमि भणिउं तुह पच्चक्खं गुणाइसयं' ||३९७८ ॥ तो भइ वीरसेणो 'सरूववायंमि मित्त ! न हु दोसो । ता भणसु निव्विसंको हेऊ हासस्स एयस्स ।। ३९७९ ।। नित्थरइ सुहं मग्गो चंदसिरीए वि जायइ विणोओ । हासत्थो वि मुणिज्जइ अविलंब कहसु ता मित्त ! || ३९८०॥ तो कुमरमहायरपुच्छिएण मित्तेण कहिउमादत्तं । 'जह देव! तुह निबंधो ता एकमणो निसामेसु ।। ३९८१ ।। ३६३ Page #373 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६४ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ हरियाए असोएणं चंदसिरीएऽणुमग्गलग्गंमि । तिस्सा तए नरेसर ! जं वित्तं तं तुह कहेमि ॥३९८२।। चंदसिरीविरहानलपुलट्ठदेहेण जारिसी चेट्ठा । जणणि-जणयाइयाणं सा नणु तुह देव ! पच्चक्खा ॥३९८३।। तयणंतरं च देवे विणिग्गए राइणो परियणस्स । देसस्स पुरस्स तहा दुक्खं अच्चब्भुयं जायं ।।३९८४।। परिचत्तण्हाण-भोयण-विलेवणाहरणमाइसक्कारो ।। तह झिज्झइ नरनाहो जह चंदो किण्हपक्खंमि ।।३९८५।। किं मह उवट्ठियमिणं अदिठ्ठपुव्वं अचिंतणीयं च । दुक्खं पच(च्च)क्खीकयनरयानलदाहदुव्विसहं ॥३९८६।। जेहिं तुह लंपडेहिं व आयन्नण-दसणामयं वीयं । ताण तुह विरहदुक्खे पीउव्वमियं च तं जायं ।।३९८७।। इय एवमाइबहुविहपलावपविलीणमणअवटुंभो । तुह विरहमि विसूरइ विचित्तजसनरवई जाव ॥३९८८।। ताव गुरुविरहहुयवहकरालिए परियणे वि तुह देव ! । संपेसिऊण मंतिं आहूओ राइणा अहयं ॥३९८९।। तोऽहं तुच्छपरिग्गहपरिवारो राउलं गओ तुरियं । जोकारिऊण रायं उवविठ्ठो पायमूलंमि ||३९९०।। तो देव ! तह न पुव्विं मह सोओ आसि हिययममंमि । जह तुह विओयदुत्थियविचित्तजसदसणा जाओ ॥३९९१।। तव्वेलं सव्वेहिं वि मह दंसणदीहमुक्सासमिसा । दूरमहं खित्तो इव हिययाओ कयग्घबुद्धीए ॥३९९२।। १. पीतम् ॥ Page #374 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ सोयंसुकणकणारियमच्छिजुयं धोइऊण सलिलेण । भूसन्नाए निउत्तो मंती 'कहसु' त्ति नरवइणो ॥३९९३।। तो भणइ महामंती 'आयन्नसु बंधुयत्त ! एक्कमणो । नरवइणा आइट्ठो जहत्थवयणं तुह कहेमि ॥३९९४।। इय बंधुयत्त ! राया चंदसिरि-कुमारविरहदुक्खेण । तह मूढो अइदूरं जह मन्ने होउ भणिएण ॥३९९५।। ते आगमोवएसा ताई चिय गुरुयणस्स वयणाई । कुमराणुराएणं पिव हियएण समं पवसियाइं ॥३९९६।। जे च्चिय कीरंति तहिं नरिंददुक्खस्स उवसमोवाया । तेहिं चिय अहियअरं तं वड्डइ अणुसएणं व्व ॥३९९७।। जे हिययहारिणो किर कीरंति तहाविहा रसविणोया । ता सो च्चेय रसन्नू तिरिच्छसल्लं व ठाइ मणे ॥३९९८।। इय एवमपेच्छंता दुक्खुवसामस्स कारणमिमस्स । अम्हे वियक्खणा विय परोवएसारिहा जाया ॥४९९९।। अह अण्णदिणे राया संज्झासमयंमि वंदियजिणिंदो । दाहोवसमनिमित्तं उवरिमवलहिं मए नीओ ॥४०००। जा तत्थ खणं चिट्ठइ सिसिरानलसंगलद्धतणुसोक्खो । खे संचरंतखेयरजणाण ता सुणइ संलावं ॥४००१।। तो वारिऊण परियणकलयलसदं तद्दे(दे)कगयचित्ता । निसुणामो जावऽम्हे ता भणियं उवरि खयरेण ॥४००२।। 'जह पवणकेउणा सो मारिज्जंतो न जलहिमझंमि । ता तब्भएण पवणो वाऊ वि न एत्थ वाएज्ज ॥४००३।। . Page #375 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६६ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ को कुणइ तस्स नामं मायाबहुलस्स पवणकेउस्स । सो वीरसेणसुहडो च्छलेण विणिवाइओ जेण?' ||४००४।। अन्नखयरेण भणियं अगेज्झनामो तिलोयमझंमि । न मए दिट्ठो निसुओ बंधववैरं अणुसरंतो ॥४००५।। सो पवणकेउणो किर कणिट्ठभाया इहेव णयरंमि । अत्थवइपियारत्तो निहओ नणु वीरसेणेण ॥४००६।। पुरिसे कयावराहे खमंति जइ ते परं खमासमणा । इयराण असामत्थं भयं च खंती पयासेइ ॥४००७।। सो चेव अदट्ठव्वो अगिज्झनामो य होइ सो चेव । अवयरमाणंमि न जो रिउंमि अवयरइ सत्तीए ॥४००८।। एएण कारणेणं निहओ सो पवणकेउणा सत्तू । च्छलबंधणं च वइरिसु कायव्वं न उण पणईसुं ।।४००९।। इय गयणंतरनिसिसंचरंतविज्जाहराण अन्नोन्नं । आलावं सोऊणं राया मं भणिमाढत्तो ॥४०१०।। 'हा ! किं निहओ कुमरो नियभाउयवेरमणुसरंतेण । पवणेण ? अन्नहा कह हवंति एवंविहालावा?' ।।४०११।। निहओ त्ति निसुयमेत्ते राया गुरुदुक्खभारओट्ठद्धो । मुच्छानिमीलियच्छो ‘धस'त्ति धरणीयले पडिओ ॥४०१२।। तो चंदणरससीयलसमीरसंगेण लद्धचेयन्नो । मणसंठियकज्जत्थो मोणेण ठिओ महाराओ ।।४०१३।। बोल्लाविओ[य] बहुयं अलंघवयणेहिं गुरुयणाईहिं । अवहीरणाए ताण वि एवं पि न उत्तरं देइ ।।४०१४॥ Page #376 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ ३६७ तो दट्टैण तहाविहसरूवपरिसंठियं नरवरिंदं । अम्हेहिं वि तो मुक्का नरिंद-नियजीयपच्चासा ॥४०१५॥ गरुयाण वि तं कज्जं संपज्जइ कह व देवजोएण । अत्थमियउवायाणं मरणं चिय ओसहं जस्स ।।४०१६॥ ‘सो किं न जणणिगब्भे पविलीणो बुद्धि-सत्तपरिहीणो । जस्स नियंत्त(त)स्स पुरा मरणावत्थं पहू लहइ?' ।।४०१७।। इय जा चिंतामि अहं ता राया ज्झत्ति उवरिमतलाओ । उत्तिन्नो सेज्जाहरस(से)ज्जं खणमेत्तमल्लीणो ॥४०१८।। भूसन्नाए सदुक्खं पासट्ठियपरियणं विसज्जेइ ।। आणालंघणभीरू ते वि सदुक्खं विणिक्खंता ।।४०१९।। तो नीहरिए सयले परिवारे संठिओ अहं एक्को । तो निहुयं चिय भणिओ ‘पन्नायर ! वच्च नियगेहं' ॥४०२०।। अह धिट्ठिमाए भणिओ मए नरिंदो 'न देव! तुह जुत्तं । अप्पडियारे कज्जे निक(क)ज्जं सोयमुव्वहिउं' ।।४०२१॥ ताऽहं पुणो वि भणिओ नरवइणा ‘किं पि जं तुमं भणसि । पच्चूसे पन्नायर ! तमहं सव्वं करिस्सामि' ||४०२२।। तोऽहं ससंकचितो विसज्जिओ राइणा अणिच्छंतो । बहुखेयखिन्नदेहो विपणिपहं पाविओ विमणो ।।४०२३।। ता चिंतिउं पयत्तो 'अहमेव इमंमि राउले मंती । संप्प(प)इ अदिट्ठमंतो हासट्ठाणं गमिस्सामि ।।४०२४।। विसमट्ठियंमि कज्जे न जाण मंतो मणमि विफु(प्फु)रइ । ते हंत मंतिसदं समुव्वहंता न लज्जंति ।।४०२५।। Page #377 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६८ पहवइ न बुद्धिविहवो अग्घंति न नीइसत्थउवएसा । न परिक्कमो य पसरइ संपइ मह पत्थुए कज्जे ||४०२६ ॥ पन्नायरो त्ति नामं गुणनिप्फन्नं जमासि मह पुव्विं । तमणेण वइयरेणं अजहत्थं संपयं होही ||४०२७|| ता पुरिसकारसज्झं न होइ एयंति वासणा मज्झ । जइ देवयाणुहावा नरिंदकुसलं परं होइ ||४०२८ || ता सव्वहा सुरासुरकिरीडमणिमसिणचरणतामरसं । उवरोहेमि नरेसरकज्जे चक्केसरिं देविं ॥ ४०२९॥ सा चेय दुत्थियजणं संधीरइ तिहुयणस्स जणणिव्व । भव्वंभोरुहनिवहं पहायसंझ व्व बोहेइ ||४०३०|| ता सव्वपयारेणं देविं आराहिऊण रायस्स । कुसलं चिंतामि अहं एयं मह संपयं किच्चं' ||४०३१॥ इय हिययनिच्छयमिणं मंती काऊण विपणिमग्गाओ । नियपरियणं च वंचिय घणतिमिरनिरंतरनिसाए ||४०३२ || एकुंगो च्चिय पत्तो पुरबाहिं तंमि सुंदरुज्जाणे । निहुयपयं च पविट्ठो चक्केसरिभवणमज्झमि ||४०३३॥ जा जामि तस्स मज्झे ता निसुओ अफुडवन्नविन्नासो । कस्स वि गब्भहरंतरपरिसंट्ठियमाणुसालावो ||४०३४ || कोऊहलेण तोऽहं अलक्खदेहो तदेक्ककोणंमि । को जंपइ त्ति नाउं थंभंतरिओ ठिओ तत्थ ||४०३५ || जोएमि जाव निउणं ताव पईवप्पहावपडियंगो (पयडियंगो) । दिट्ठो मए महायस! विचित्तजसनरवई पुरओ ||४०३६॥ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ Page #378 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६९ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ तो चिंतियं मए ‘कह नरनाहो एस एत्थ संपत्तो? । अहवा न एरिसाणं गम्मागम(म्म) जए अत्थि ॥४०३७॥ ता होउ ताव अहयं थंभंतरिओ निएमि किं कुणइ । राया देवीए तहा देवी वि पुणो नरिंदस्स ? ||४०३८।। तो कयविचित्तपूओ कालायरुधूवियंतगब्भहरो । कयअवितहगुणथोत्तो देविं विन्नवइ नरनाहो ॥४०३९।। 'जइ(ह) देवि ! वीरसेणो चंदसिरी दो वि अणहदेहाई । मज्झ मिलिस्संति न वा ता तह अविलंबमाइससु' ॥४०४०॥ इय विनविऊण तओ राया परमेसरिं अणुसरंतो । वरमंतक्खरजावं परिवत्तंतो ठिओ ज्जा(ज्झा)णे ।।४०४१।। अह खणमेत्तेणं चिय जहुत्तसुहज्झा(झा)णजोयउवरूढा । भणइ तिरोहियदेहा नरनाहं चकिणी देवी ॥४०४२॥ ‘ज्झा(झा)इज्जइ ज्झा(झा)णाणलपुलुट्ठकम्मिंधणेहिं जिणनाहो । अम्हे पुण तूसामो नरिंद ! वरगीयवाएहिं ।।४०४३॥ अम्हे सरागदेवा सरागपूयाहिं चेव तूसामो । वरगीयवायमाई एयाओ सरागपूयाओ ॥४०४४।। जह इच्छसि मज्झ पसायमज्ज ता कुणसु वल्लईमीसं । सवणं(0)दियकयसोक्खं वरगीयं दिव्वनाएण' ||४०४५।। तो देवयाणुभावा उवट्ठियं वल्लई महाराओ ।। जा घेत्तुं पडिसारइ तड त्ति तंती तओ तुट्टा ॥४०४६।। जा आरोवइ अन्नं तंतिं पडिसारिऊण वाएइ । ता सा वि तहा तुट्टा एवं दह जाव तुट्टाओ ॥४०४७॥ Page #379 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३७० सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ तो सहसा नरनाहो अनियंतो अन्नतंतिसामग्गि । निययसरीरावयवे दिष्टुिं पक्खिवइ हिट्ठमणो ।।४०४८।। तो कढिऊण छुरियं निययसरीराओ कड्डए प्रहारुं । आवलिऊणं बंधइ वीणादंडंमि वाएइ ।।४०४९।। सा वि तह च्चिय तुट्टा अन्नं ण्हारुं च जाव कड्ढेइ । ता वीणादंडो च्चिय सहसा दोखंडमावन्नो ।।४०५०।। तो भणइ नरवरिंदो ‘मा उच्चेवं करेसु खणमेत्तं । जा जणणि ! नियसरीरं वीणादंडं पगप्पेमि ।।४०५१।। तं चिय तंतिं काहं ताडिज्जंती वि जा न तुट्टेइ' । . इय जंपिऊण राया करेण छुरियं परिकलेइ ।।४०५२।। तो नियचरणंगुट्ठयमूला आरब्भ दीहपिहुचम्मं । उक(क)त्तिऊण बंधइ चलिऊणं निययसीसंमि ।।४०५३।। अगणियसरीरवियणो अचलियसत्तो सदेहकयवीणं । मुद्दियसरगामफुडं वायइ तह गायए हिट्ठो ॥४०५४॥ हिययभंतरपसरंतगीयस्सरवसचलंतकरजुयलो । तह गाइउं पयत्तो सासणदेवी जहाखित्ता ॥४०५५।। तो तस्म सत्त-पोरुस-गीयगुणायड्डियाए देवीए । पच्चक्खो च्चिय अप्पा पदंसिओ पुहइवालस्स ॥४०५६।। 'तुट्ठ म्हि पुत्त ! होही चंदसिरी-वीरसेणसंजोगो । तुह थोयदिणेहिं चिय निब्भंतो मज्झ वयणेण ॥४०५७।। जे च्चेय तस्स सत्तू असोय-सेहरयमाइणो खयरा । ते च्चिय भिच्चब्भावं तस्स कुमारस्स जाहिति ।।४०५८।। Page #380 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ जेणं चिय अवहरिया चंदसिरी दिव्वविमाणेण । तत्थेव समारूढो एही बहुखयरपरिवारो' ||४०५९।। इय भणिऊणं देवी पुण भणइ 'ममंगचंदणरसेण । आलिंपसु नियदेहं पुणन्नवो होसि जेण तुमं' ||४०६० || इय भणिऊणं देवी संकंता झत्ति मूलपडिमाए । राया वि परमहिट्ठो जहोवइट्ठ अणुट्ठेइ ॥ ४०६१ ॥ तो पुणरवि सविसेसं पूयं काऊण परमभत्तीए । थुणिऊण पुणो बाहिं निग्गच्छइ गब्भगेहाओ ||४०६२ || जा निव्वियप्पच्चि (चि) तो वच्चइ तो पेच्छए ममं पुरओ । जोकारिओ मए चिय नरनाहो परमविणएण ||४०६३ || तो भइ नरवरिंदो 'कत्थ तुमं ? एत्थ केण कज्जेण । संपत्ती पन्नायर ! भीसणरयणीए एक्कंगो ?” ||४०६४।। तो पुण मए पभणियं 'संपत्तो देविदंसणनिमित्तं । कज्जं पुण मह चित्ते जाणइ चक्केसरी देवी' ||४०६५।। अह भणइ पुणो राया 'सच्चमिणं किंतु कज्जसंसिद्धी । जइ जाया ता लट्ठे अह नो ता कहसु साहेमि ?' ||४०६६॥ अह पुण मए भणियं दरवियसियवयणपंकयच्छेण । भुयणोवयारदुत्थियदेवीए पसाहियं कज्जं ॥ ४०६७ || तो राया निक्कारणहासनिर (रि) क्खणवसेण सविलक्खो । चिंतइ 'न मज्झ कज्जं मोत्तुं कज्जंतरमिमस्स ||४०६८ || एयस्स परं कज्जं असेसकम्मक्खउज्जमो चेव । संसारियपक्खे पुण मह कज्जमिमस्स नियकज्जं ॥ ४०६९।। ३७१ Page #381 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३७२ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ जे नियकज्ज(ज्जु)ज्जुत्ता आवइवडियं पहुं उवेखंति । वेरीण अमच्चाण य न अंतरं किं पि किर ताणं ॥४०७०।। वेरी वरं समक्खं अवयरमाणो उवायमुवइसइ । पच्छन्नमवयरंतो जरो व्व मंती दुहावेइ ॥४०७१॥ ता अणुचियमिव पुढे दुव्वयणं पिव खु दुक्कइ इमस्स' । इय लज्जावसचित्तो नरनाहो भणिउमाढत्तो ॥४०७२।। 'पनायर ! पयडमिणं मह दुहदुहिओ तुमं परं एक्को । मह संतिनिमित्तं चिय देविं आराहिउँ पत्तो ।।४०७३।। ता कुमरविरहविहुरियहियएण मए जमणुच्चि(चि)यं भणियं । तं सव्वं खमियव्वं नट्ठमणो को न भुल्लेइ' ? ।।४०७४॥ तो बंधुयत्त ! अहयं अपसाहियपहुपओयणविलक्खो । अप्पाणं मन्नतो अकिंचिकरमेव जंपामि ।।४०७५।। किं मह नरिंद ! तुह दुहदुहियत्तं वयणमेत्तसारस्स? । जं विसमदसावडिया गरुया सयमुद्धरंति सयं' ॥४०७६।। इय एवं जंपंता राया अहयं अलक्खिया दो वि । संपत्ता रायगिहं सेज्जाए सुहं नुवंना य(?) ।।४०७७।। तो पच्चूसे अहयं नरव[इ]णा पेसिओ तुह समीवे । संधीरणत्थमसरिसकुमारविरहेण दुहियस्स ।।४०७८।। ता बंधुयत्त ! मुंचसु अवसेरिं सव्वहा कुमारस्स । चकेसरीपसाया मिलिही सो तुज्झ अचिरेण ॥४०७९॥ तस्सेय सयलपरियणलोयं संवग्गिऊण चिलुतो । सिरिवीरसेणदुहियं संधीरसु तस्स विवरोक्खे ।।४०८०॥ Page #382 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ ३७३ तुह एकस्स न दुक्खं दुक्खमिणं तिहुयणस्स सयलस्स । बहुएहि समं सुंदर ! विसहिज्जइ जं समावडइ' ।।४०८१।। इय एवमाइ बहुयं नरवइणा मंतिणा य सप्पणयं । अणुसासिओ म्हि गेहं कयपा(प्प)साओ य पट्टविओ ।।४०८२।। तो देव ! मए एण्हि दट्टेणं घणविमाणसंघट्ट । तुह रिद्धिवित्थरं चिय तं देवीवयणमणुसरियं ।।४०८३।। एएण कारणेणं हसियं नरनाह ! पहरिसवसेण । अन्नं पुण जंपतो तुह पच्चक्खं च लज्जामि' ॥४०८४।। इय बंधुयत्तवयणं नरिंदगुरुदुक्खसूयगं सोउं । कुमर-कुमारीण मणे संकंतं रायदुक्खं व्व ।।४०८५।। निसुयनरेसरदीहरदुहसारणिसरणिसंचरंतेण । बाहंबुपवाहेणं दोण्हं पि य पूरिए नयणे ।।४०८६।। तो पज्जुन्नपयंपियपक्खालियलोयणाई सलिलेण । जायाई दो वि खणलवविओयतणुदुक्खपसराई ।।४०८७।। पुण भणइ वीरसेणो 'मह गरुयं कोउयं मणे मे(मि)त्त! । किं कारणेण तुमए अप्पा बंधाविओ तइया ? ||४०८८।। जं तुमए किर भणियं नरेण कज्जत्थिणा सहेयव्वं । वह-बंधणाइ पुट्विं सेहररायस्स पच्चक्खं ।।४०८९।। कज्जं ताव तुहेयं मह दंसणमेव किं तु पुच्छामि । अतुलबलेण वि तुमए अप्पा संजामिओ किं तु(नु)?' ||४०९०।। तो भणइ बंधुयत्तो 'कुमार ! जह तुज्झ कोउयं एयं । ता निसुणसु साहिज्जइ इमं पि संखेवपयडत्थं ॥४०९१।। Page #383 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३७४ संबोहिओ वि तइया बहुविहवयणेहिं राय-मंतीहिं । तह वि न मणंमि जाओ मह संतोसो तुह विओए ||४०९२ ।। * सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ पडिभवणं पडिपुरिसं पडिजुवइं तुह विओयसंजायं । विरहानलपजलंतं नयरं मह कुंभिपाओ व्व ॥ ४०९३ ॥ किं अन्नं? विरहानलजलंतजणसंगतत्तसलिलोहा । गोलाई वि मन्ने तुह दुक्खे दुक्खिया जाया ||४०९४ ।। तोऽहं तहासरूवं नासिकं पेच्छिउं म (अ) पारंतो । अगणियनरिंदवयणो नीहरिओ अन्नदियहंमि ||४०९५ ।। अत्थंगयंमि सूरे घणकज्जलबहलतमदुसंचारे । पुरबाहिरंमि पत्तो करधरियकरालकरवालो || ४०९६ ।। तो नयरदाहिणावरदिसाए एगं मढं गओ अहयं । झंपियदारंमि तहिं काणं पि[य] निसुमिओ सद्दो ।।४०९७ ।। तो निहुयपयपयारं दारे ठाऊण जाव निसुणेमि । ताव जरजज्जरेण भणियं एक्केण सैवेण ॥ ४०९८ ॥ 'रे रे चेल्लय ! उट्ठसु मह वयणं सुणसु मुंच रे ! निद्दं' । कयकलयलेण गुरुणा पडिबोहिओ चेल्लओ भइ || ४०९९ ।। ' राउल ! देहाऽऽएस' भणइ गुरु (रू) 'त (तु) ह कहेमि अच्छरियं । चिट्ठइ मढस्स बाहिं मित्तविउत्तो नरो कोवि ||४१००|| सो जइ एत्थावसरे वीसमिऊणं दुजामनिसिमेत्तं । वच्चइ तइए जामे तो पावइ वंछियं अत्थं ||४१०१ ॥ जं निग्गओ गिहाओ कुमुहुत्तेणं च तस्स फलमेयं । खयरेहिं बंधिऊणं समुद्दसेलंमि निज्जिह (हि) इ ||४१०२ ।। Page #384 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३७५ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ जइ पुण खयरेहिं(हि) समं बंधिज्जंतो रणमि जुज्झिह(हिं)इ । तो सो जयं लहिस्सइ न उणो मित्तेण संजोयं ॥४१०३।। जइ पुण तत्थ न जुज्झइ तो ते तं बंधिउण जलहिंमि । सेले विसालसिंगे नेह(हिं)ति खणद्धमेत्तेण ॥४१०४॥ तत्थ य सुमित्तजोगो होही अइभीसणो महासमरो । जयलच्छिसमालिंगियमित्तजुओ इह पुरे एही' ॥४१०५।। इय एवं भणिऊणं विरए सैवे मए वि चिंतवियं । 'को एत्थ पच्चओ किर एयस्स परुक्खवयणेसु?' ॥४१०६।। जाव अहं नियचित्ते एवं चिंतेमि ताव सीसो वि । पुच्छइ गुरुं ‘क एसो पुरिसो? को तस्स वा मित्तो ?' ||४१०७।। तो देव ! मए चित्ते परिचिंतियमेत्थ पच्चओ होही । जइ मह नामं एसो साहिस्सइ अहव मित्तस्स' ॥४१०८।। तो सीसो सैवेणं मणिओ ‘सो एस बंधुयत्तो त्ति । मित्तो वि वीरसेणो इमस्स जो भुवणविक्खाओ ॥४१०९।। अच्चुत्तमखत्तियगोत्तसंभवा दो वि विक्कमरसड्ढा ।। अइनिम्मलजसधवलियदियंतराला महासत्ता' ॥४११०।। तो देव ! सरहसमणो सोउं तं तत्थ मढदुवारंमि । अत्थुरणं काऊणं खणमेत्तं संठिओ अहयं ।।४१११।। इय एवं आलावं काऊणं ते वि निब्भरं सुत्ता । एत्थावसरे नरवर ! दुजाममेत्ता गया रयणी ।।४११२।। तो. हं कयप्पणामो गुरु-देवाणं विणिग्गओ तम्हा । एत्तो उद्धं तुमए निसुयं विज्जाहराहिंतो'।।४११३।। Page #385 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३७६ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ तो भणइ वीरसेणो ‘साहु कयं मित्त ! जुज्झियं जं न । पुरिसा वीरेक्करसा पत्थुयकज्जाइं नासंति ॥४११४।। न परक्कमं हि गुणिणो बुद्धिविहीणं जहा पसंसंति । बुद्धिं पि तह न मन्ने सलहंति परक्कमविहीणं ।।४११५।। सो सुहडो न पयंगो आवट्टइ जो जडो पईवे व्व । अपसाहियपहुकज्जो निक(क)ज्जं वैरिखग्गंमि ॥४११६।। ता मित्त ! तए असमयपरिहरियपरि(र)क्कमेण बुद्धिमया । समयकयविकुमेणं सव्वं मह साहियं कज्जं' ॥४११७।। इय कुमर-बंधुयत्ता दो वि समं विहियबहुविहालावा । लंघियगयणद्धाणा चंदउरं तक्खणं पत्ता ॥४११८॥ ता सत्थवाहपुत्तं तंमि समुत्तारिऊण नियगेहे । अपमाणरयणकंचणभूसणपरिपूरिए ठवइ ।।४११९।। तो पुरओ संपेसियससिसेहरकहियकुमरवुत्तंतो । उव्वूढहरिसपुलओ विचित्तजसनरवई जाओ ॥४१२०॥ कुमरागमणमहारससंजीवणिजायजीयपच्चासो । पढमूसासमिसेण व नीणेइ जणो मणदुहाई ॥४१२१।। को ज़ाणिही गुणाणं ? ति सिढिलिया जेहिं किर गुणाबंधा । तस्सागमणे जाया ते च्चेय गुणप्पिया गुणिणो ॥४१२२।। जे च्चिय उव्वेययरा तस्विरहुव्वेवियाण लोयाण । ते च्चिय नयरपएसा संजाया पयइरमणीया ।।४१२३।। आउ त्ति पढमनिसुए चिरविरहविमद्दनीसहाओ वि । तरुणीओ तक्खण च्चिय सिंगारमयाओ जायाओ ।।४१२४।। Page #386 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ न तहा बहुविरहदुहं बाहइ दइयंमि निहयसंगामे । जह सन्निहियसमागमवसपसरियहिययतरलत्तं ॥ ४१२५ ॥ जाव य रायाएसो पसरइ लोयंमि ताव पढमयरं । कुमराणुरायओ च्चिय सव्वं पि पसाहियं नयरं ||४१२६ || जं तद्दुक्खदवानलदड्डरन्नं व तोरणमिसेण । नयरं घणागमे इव तस्सागमणंमि पल्लवियं ।॥४१२७।। जं भवणग्गपसारिय-चलदीहधयासहस्सबाहाहिं । आलिंगिउं व वंछइ बहुदिवसुकुंट्ठियं कुमरं ||४१२८ ।। जो कुमरस्स विओए वियंभिओ दुहभरो व्व रयपसरो । सो अवणिज्जइ एहि पुराओ हिययाओ व जणेहिं ||४१२९॥ पसरंतबहलकुंकुमरसच्छडासोणतिय - चउक्कपहं । पयडइ पयडं व नियं कुमारचरिएसु अणुरायं ||४१३०|| कयकमलकुसुमपयरा परिवियडा जे पुरस्स रायपहा । उड्डीकयाणणा इव नियंति ते कुमरमग्गं व ।।४१३१।। नूणमणेण पहेणं एही कुमरोत्ति जायहरिसेहिं । लोएहिं सव्वओ च्चिय विहूसिया पुरपहपएसा ||४१३२ ।। कयपट्टसूयतोरणकल्लोला विविहरयणरमणीया । खीरोयहि व्व जाया विपणिवहा सियसुहाधवला ||४१३३।। घणरयणभूसणाओ तरलत्तणकयगमागमसयाओ । पसरंति सायरंमि व वीईओ पुरे पुरंधीओ ||४१३४ ।। कुमरागमणमहूसव-सुहरसपरिभोयवट्टियाणंदो । अइरित्तकयविलासो पिसायगहिओ व्व पुरलोओ ||४१३५|| ३७७ Page #387 -------------------------------------------------------------------------- ________________ રૂ૦૮ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ इय वीरसेणसंगमसुहाभिलासेण जाव पुरलोओ । तरलायइ ता मंती भणिओ एवं महीवइणा ।।४१३६।। ‘पन्नायर ! चक्केसरिपायपसाएण अज्ज फलिओ व्व । मज्झ मणोरहरुक्खो मणवंछियवत्थुलाहेण ||४१३७।। ता कुमरजोग्गयाए जं उचियं मज्झ विहव-नेहस्स । तं सव्वहा तुरंतो संपाडसु पहरिसारंभं' ॥४१३८।। तो भणइ महामंती 'देव ! अभणिएण पौरलोएण । कुमराणुरायउचियं वद्धावणयं समाढत्तं ॥४१३९।। तुह परियणेण पेच्छसु संपाडियसयलनियनिओएण । हरि-करि-रह-नरमाई सव्वं पउणीकयं देव ! ।।४१४०।। तो देव ! जाव नज्जवि नहंतरे घणविमाणसंघट्ट । दीसइ ता तुरिययरं जाइज्जइ कुमरपच्चोणिं' ।।४१४१।। तो सयलपौरपरियणपरिवारो कयवियवसिंगारो । राया निउणविहूसियसिंधुररायं समारूढो ॥४१४२।। अन्नेसु जहाजोग्गं हरि-करिमाईसु विविहसामंता । मंडलिया रायाणो पहाणपुरिसा य आरूढा ॥४१४३।। तक्कालपहयड्ड(ढ)क्का-सहस्सरवजायपडिरवमिसेण । आणंदुक्कुलियाहिं व किलिगिलियमसेसभुयणेहिं ।।४१४४।। समकालचलंतबलभरभरंतनीसेसनयररायपहो । महया संमद्देणं नीहरइ पुराउ नरनाहो ॥४१४५।। एत्थंतरे सविज्जू ससक्कचावो घणो व्व उत्थरइ । गायंतखयरनारीघणकिरणविमाणसंघट्टो ।।४१४६।। Page #388 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३७९ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ रविकरफंसपवड्डिय-भासुररयणुच्छलंततेयड्ढे । पेच्छइ पसारियच्छो राया मणिनिम्मियविमाणे ॥४१४७।। दठूण ससंभंतो सविम्हओ ‘अहह ! पेच्छ अच्छरियं । राया पहिट्ठहियओ पन्नायरसम्मुहं भणइ ।।४१४८॥ चकेसरीए तइया जं भणियमिहासि तुह मह समक्खं । तं नूण संभविस्सइ ससिसेहरसाहियं कज्जं ॥४१४९।। जं न कहासु सुणिज्जइ चित्तेण वि जं न चिंतिउं जाइ । तं धन्नाण पहुप्पइ हेलाए सुपुन्नजोएण ।।४१५०॥ बहुसाहेज्जबलेणं कहमवि रामेण पाविया दइया । एकंगेण वि इमिणा तं विहियं जं न केणावि ।।४१५१॥ जे जयनीसामन्ना गुणेहिं एसो व्व ते क्खु दो तिन्नि । जे उण जणसामन्ना घरे घरे संति ते गुणिणो' ॥४१५२॥ पन्नायर-रायाणो इय एवं जा कुणंति आलावं । ता तुरयखुरुख(क्ख)णिओ रेणू लग्गो विमाणेसु ॥४१५३।। गयगज्जिररवुम्मीसिय-जलहरगंभीरतूरनिग्घोसो । विज्जाहराण सेन्ने वित्थरइ धराहिरायस्स ॥४१५४।। तो निसुयतूरसद्दो पच्चक्खनिरिक्खियंबररओहो । पुच्छइ मित्तं कुमरो 'किमेइ(य)'मिइ जायआसंको ॥४१५५।। तो भणइ बंधुयत्तो ‘संपत्ता देव ! नियसु नासिकू । एसो वि महाराओ तुह संमुहमागओ सबलो' ।।४१५६।। तं बंधुयत्तवयणं सोऊण विवेयविइयपरमत्थो ।। पफु(प्फुल्लवयणकमलो चंदसिरिं भणइ वीरवई ।।४१५७।। Page #389 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८० सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ 'तह कह वि देवि ! पसरइ पुव्वभवब्भासओ महामोहा ।। गरुया वि जहा मन्ने अणेण दूरं नडिज्जति ॥४१५८॥ नणु देवि ! अउव्वो च्चिय को वि पसाओ ममंमि देवस्स । जं पेच्छ अणुच्चि(चि)एणं समागओ अद्धपंथेण ॥४१५९॥ तो देवि ! अवयरिज्जइ धरणियले उन्नई इमा चेव । जं चरणतले वासो गुरूण पडणं खु विवरीयं ॥४१६०॥ विणयारिहेसु सुंदरि ! दुविणओ दुक्खकारणं होइ । विणओ हि ताण विहिओ कल्लाणपरंपराहेऊ' ।।४१६१।। 'सव्वेसु वि कज्जेसु तुमं पमाणं' ति चंदसिरिभणिए । वाहरइ वीरसेणो सप्पणयं सेहरासोए ॥४१६२।। तो संभमप्पधाविरवच्छत्थलघोलमाणहारलया । 'देहाएसं' भणिरा सिररइयकरंजली पत्ता ।।४१६३।। 'एसेस महाराओ सेणासंघट्टदलियमहिवीढो । संपत्तो ता तुरियं ओयरह समं'ति ते भणिया ॥४१६४।। तो ते कुमारआणं सीसेण पडिच्छिऊण सेसं व । तक्खणमेत्तेणं चिय अवयरिया धरणिवीढमि ।।४१६५।। जो खज्जोयगणो इव तारानियरो व्व भाणुभूओ व्व । कमसच्चवियावयवो जणेण ट्ठिो विमाणोहो ।।४१६६॥ जो उद्धच्छिनियच्छिर-पेच्छयजणजणियविम्हयाणंदो । सो खेयराण निविहो(डो) ओयरइ विमाणसंघट्टो ।।४१६७।। नीहरइ ललियकोमल-लडहुब्भडकयवियड्डसिंगारो । चंदसिरीए समओ कुमरो नियमणिविमाणाओ ॥४१६८।। Page #390 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ तो बहुविहविज्जाहर - जयसद्दनिबद्धदसदिसाभोओ । वीइज्जतो ससहर - करपंडुरचारुचमरेहिं ॥ ४१६९ ।। घोलंतकन्नकुंडल- मऊहमासलियमुहपहावलओ । उभयओ सपाससंठिय-सेहरयासोयकयसेवो ||४१७० ।। गयवेयवसविसंठुल-सिरिकुसुमामोयविहियसंजमणो । भुयसिहर ल्हसियसेहरकरधरियलुलंतवरवत्थो ||४१७१ ।। अइनिद्धमित्तपीवर-पओट्ठपरिसंठियग्गकरकमलो । सुपयंडदंडिहक्का-वारियबहुखयरसंघट्टो ||४१७२ ॥ गायं तवाम-दक्खिणकलकिंनरसावहाणमण- नयणो । चउदिसि खयरमहाभड - कोडिसहस्सेहिं परियरिओ ||४१७३॥ सिरधरियचंदसेहर-विसेसधवलायपत्तसोहिल्लो । बहुविज्जाहरनारीपरिवारियचंदसिरिसहिओ ।।४१७४।। संपत्तो पुरपरियण-नयणचउरेहिं सुचिरतिसिएहिं । पिज्जंतकंतिजोण्हापरिपुन्नो पुन्निमससि व्व ॥४१७५।। अंतोभुत्तवियंभियसिणेहरसपसरियच्छिवत्तेण । अप्पत्तपुव्वपावियविसेससुहजायहरिसेण ॥ ४१७६ ।। दिट्ठो रवि व्व परिचत्तहत्थिणा राइणा अभिभवंतो । तारायणं कुमारो निययपहावेण खयरबलं ॥ ४१७७ ॥ 'एसो. असेसतिहुयण - भूसणभूओ व्व को वि परमप्पा' । इय गरिमागुणसारं वियम्पिओ रायरायेण ॥। ४१७८।। दट्ठूण तस्स तव्विह- लहुईकयसुरसिरिं महारिद्धिं । कज्जपयडं च विक्रममभिभूयपुरंदरं राया ॥४१७९ ।। ... ३८१ + Page #391 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८२ मन्नइ मणमि 'संपइ नत्थि तिलोए वि एयपडिल्लो । ||४१८१ ।। जो उण इमाओ ( उ ) इय बहुविम्हयतग्गय - वियप्पसयपरवसस्स नरवइणो । अहिधाविऊण कुमरो संप्पणयं पडइ पाए तो पायवडणपयडिय लज्जासंजायमणविलक्खेण । 'उट्ठसु' इय भणिऊणं अवगूढो राइणा कुमारो ||४१८२ ।। एवमसोओ वि तहा सेहरराया वि निव्वियप्पेण । कुमरसंभावणाए य वियप्पिया रायराएण ||४१८३।। तो जस्स जारिसी किर नियपहुसंभावणा तयणुरुवं । सव्वो वि खयरलोओ गोरविओ रायराएण ।।४१८४ ।। तो भीमसुवेउब्भड भिउडीभयमुक्कवियडमग्गेहिं । खयरेहिं नमिज्जंती चंदसिरी चंदसमवयणा ||४१८५ ॥ 'जय जीव देवि ! दिज्जउ दिट्ठिपसाओ 'त्ति जंपमाणेण । लज्जाए खे ( ख ) यराणं अदिन्नपच्चुत्तरालावा ||४१८६ ॥ संनिहियबंधुजीवासिक्खावसविहियकिंचिपागब्भा । सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ गरुओ दूरे च्चिय सो न संभवइ' ||४१८०।। मणिभूणकिरि (र) गड्ढा पहायसंज्ज व्व हयदोसा ||४१८७ ।। एकत्तो विज्जाहरि - करदावियरयणदप्पणा सणियं । अन्नत्तो गुरुलज्जावीडयविवरंमुही होइ ||४१८८ ॥ गइवसमिलंतखेयरनारीकमठवियमणिमयाहरणा । पयपयवारविलासिणि उत्तारियचक्खुभयलवणा ।। ४१८९ ।। संकुअइ सरीरंचल - संवग्गणपयडियप्पविणएहिं । पणमिज्जंती सविणयमसोय-सेहरयराएहिं ॥। ४१९० ॥ Page #392 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ ૩૮રૂ बहुमाणभत्तिनिब्भर-सरीरनिरवेक्खपाए पणमंती । उव्वहइ नियनिडाले पवित्तपिउपायरयतिलयं ।।४१९१।। दूरपसारियभुयवित्थरेण आलिंगिऊण नरवइणा । पुण नेहनिब्भरेणं सिरिं(रं)मि परिचुंबिया धूया ।।४१९२।। चिरविरहदुक्खदुब्बल-देहं जणणिं च सा नमोक्करइ । जणणी वि समालिंगइ नियउच्छंगे निवेसेइ ॥४१९३।। तो रायाएसजहाणुरूवपरिकप्पियासणनिविट्ठा । संभासिया कमेणं नरवइणा वीरसेणाई ।।४१९४।। पुण सायरं च पुट्ठा सरीरकुसलाइ सव्ववुत्तंतं । पडिभणियमिमेहिं पि य 'तुह प्पसाएण कुसलं' ति ।।४१९५।। तो भणइ वीरसेणो घणो व्व पढमो विओयगिम्हेण । संतावियाण हिययं पल्हायंतो जणवयाण ॥४१९६।। 'इह पयइसज्जणाणं न होइ नरनाह ! हिययमालिन्नं । अह होइ कह वि देव्वा तहा वि न त्थि(थि)रत्तणं लहइ ॥४१९७।। जइ कहवि अंतरिज्जइ अमयमओ राहुणा व्व हरिणंको । दोज(ज्ज)न्नेणं सुयणो तं नणु कालस्स माहप्पं ।।४१९८।। जे उण कालगुणेणं मणोवियारा हवंति सुयणस्स । ते खणमेत्तं ससिणो संझारायव्व जइ होति ।।४१९९।। तो ते हयमोहतमे तिरोहियासेसमलिणभावंमि । अप्पाणमप्पण च्चिय नाणायरिसंमि पेच्छंति ।।४२००।। निम्मलविवेयलोयण-विलोइयासेसवत्थुसब्भावा । तो ते अविवेयंधं अन्नं पि जणं उवहसंति ।।४२०१॥ Page #393 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ૨૮૪ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ ता देव ! नमिरखेयर-किरीडसंघट्टमसिणकमपीढा । पुव्वुत्तगुणसरूवा सुयण च्चिय सेहरासोया ||४२०२।। न हु देव ! दुज्जणाणं हवंति एवंविहाओ पयईओ । अणवेखि(क्खि)[य]उवयारा जं परकज्जे पयट्टति ॥४२०३।। एएहिं दुज्जणो वि हु कयावयारो वि मारिसो देव! । तह उवयरिओ संपइ सज्जणगणणाए जह दिट्ठो ।।४२०४।। अइदुज्जणो वि पावइ सुयणपसंगेण देव ! सुयणत्तं । लिंबरसस्स व बिंदू महुरत्तं दुद्धजलहिंमि ।।४२०५।। ता देव ! मज्झ वयणं [वयणं] चिय केवलं न मंतव्वं । कज्जपयडत्तणेणं एसो च्चिय एत्थ परमत्थो' ।।४२०६।। इय एवमाइबहुविहतग्गयगुणसंकहं सुणेऊण । नियगरुयत्तणसरिसं नरनाहो भणिउमाढत्तो ।।४२०७।। 'इह वीरसेण ! भुयणे सुयणतं तह य दुज्जणत्तं च । उवयारवयारकयं पायं सव्वत्थ संभवइ ।।४२०८।। एक्कद्धो तैलोक्के अवयरिए जो न चयइ सोजन्नं । दो-तिन्नि उदासीणा होति अणंता उ अवयरिए ॥४२०९॥ उवयारमोल्लकीया दासा ते सज्जणा उण न होति । कह ते वि सुयणसदं समुव्वहंता न लज्जंति ? ।।४२१०।। इह कलिकाले संपइ एयं चिय सज्जणत्तणं रूढं । तं कयजुए वि दुल्लह(लहं) जं मज्झत्थावयारेसु ॥४२११॥ ता सच्चं तुह वयणं अवयरिए वि हु न जेहिं परिचत्तो । पयईए सुयणभावो ते धन्ना सेहरासोया' ॥४२१२।। Page #394 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ तो दुच्चरियासेवणसुमरणसंजायचित्तवेलक्खा । अभत च्चिय हियए कहंति खयरेसरा दुक्खं ||४२१३ || तो भइ महामंती 'पज्जंतो' नत्थि सज्जणगुणाण । ता पुरपवेससमओ संपत्तो देव ! उच्चलह' ||४२१४ || तो तव्वयणाणंतरमुट्टंताणंतखयरलोयकओ । तक्कालकज्जवावडपरियणकोलाहलो जाओ ||४२१५।। 'रे! ढोयसु करिरायं पल्लाणसु तुरयमाणसु रहं च । हक्कारसु च्छ (छ) त्तधरं कमेण ठावेसु पायालं ||४२१६ ॥ पुरओ ट्ठा (ठा ) णट्ठाणे विरयसु पेच्छणय-कमपरिट्ठवणं । वारविलासिणिसत्थं आरोवसु करिणिखंधंमि ||४२१७|| चायत्थं मणि-कंचणभूसण - देवगवत्थसंघायं । पउणीकरेसु तुरियं हक्कारसु तक्कुयसमूहं ॥४२१८॥ रे ! अज्ज हरिसदिवसो कुण बंधणमोयणाई सव्वत्थ । उग्घोस सव्वत्तो अभयपयाणं च पाणीण ||४२१९ ।। इय एवमाइबहुविहआएसनिउत्तपरियणो राया । आणावइ मत्तगयं आरोहत्थं कुमारस्स ॥४२२०॥ सिरिधरियधवलछत्तो सेहरराएण तह असोएण । सियचारुचमरचालण-तरलीकयकुडिलकेसग्गो ॥४२२१॥ तत्थेव मणिविमाणे आरूढा बहुविलासिणिसमेया । विजयवइ-बंधुजीवापरियरिया चंदसिरिदेवी ||४२२२॥ तो अणुरूवनिरूवियनाणाविहजाण-वाहणारूढो । अन्नो वि पहाणजणो चडिओ सह रायकुमरेहिं ॥ ४२२३ ॥ 26 ३८५ Page #395 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८६ लावन्न-रूव-निवसण-महग्घमाणिक्कभूसणधराण । पौराण खेयराण य उप्पयणकओ च्चिय विसेसो ||४२२४।। धवलब्भछत्त-चामर-मंजरिहत्थेहिं परिगओ कुमरो । सरय-महूहि व मयणो सेहरयासोयराएहिं ॥। ४२२५।। · सोहइ गयणंगणघोलमाणनाणाविमाणसंघट्टो । वद्धाविउं च (व) आओ सुरलोओ मच्चलोयस्स ||४२२६ ॥ कत्थ वि पसत्थमंगल-गीयगुणाणंदवड्डिउच्छाहो । अन्नत्थ बंदिमुहसुयनियगुणसामलियमुहच्छा ( छा) ओ ।।४२२८७ ॥ एक्कत्तो मणवंछिय-धणलाहपहिट्ठजणसुयासीसो । अन्नतो (त्तो) अंतेउरथेरीकयनट्टपरिहासो ||४२२८|| कत्थ वि पढंतबंभणअणुकंपाच्छिन्नजम्मदालिहो । अन्नत्थ मग्गसंट्ठियपेच्छणयनियच्छणसयण्हो || ४२२९ ।। कत्थ विनयरमहंतय-कयदिट्ठिपसायवसनमिज्जंतो । अन्नत्थ पयाताडणपडिहारनिवारणक्खणिओ ।।४२३०।। इय नाणाविहपुरसंपवेसवै (वइ) यरनिरिक्खणक्खित्तो । पत्तो नयरब्भंतररायपहं सोहियं कुमरो ।।४२३१।। 'नूणमणेणं एही कुमरो मग्गेण' इय वियप्पेण । नियनियभवणाणुवरिं आरुहइ नयरतरुणियणो ||४२३२ ।। जह जह एइ समीवं रायसुओ तह तहा सुविडोव । परिसंकडाइ मग्गो समोत्थरंतेण लोएण ॥४२३३ ॥ जत्तो च्चिय अवलोयइ कुमरो नयणुप्पलेहिं तरुणीण । ततो च्चिय अंचिज्जइ वलंतकंठद्धवलिएहिं ॥। ४२३४ || सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ Page #396 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ गोत्ति व्व गिहं चत्तं, गरलं व गुरू रिउ व्व भत्तारो । चिर वीरसेणदंसणरसलालसकुलवहुजणेहिं ॥ ४२३५॥ जह अग्गेसरपहजण - जणियाणंदो समीवमल्लियइ । तह पच्छिमाण सो च्चिय वोलीणपहो दुहं देइ ||४२३६|| कुमरो त्ति धावमाणा विसंखलुच्छलियणेउरारावा । चरणाणुधावमाणं अक्कोसइ को वि हंसउलं ।।४२३७।। जसंमद्दनिपीडण-मिसमउलियलोयणा पियं का वि । पयडं चिय परिरंभइ अलद्धपिसुणंतरा कुलडा ||४२३८|| का वि लिहंती कुमरं धाया कयचित्तपट्टियाहत्था । अणुसोइया जणेणं दुल्लहलंभाणुराण ||४२३९ ॥ ' तुह चेव हले ! कोडुं अन्नो मा को वि एत्थ पेच्छेओ । जं मह दंसणमग्गं निरुंभसे नियसरीरेण ||४२४० ॥ मा को वि होउ पियसहि ! दुब्बलदेहो पराभवद्वाणं । मं पेल्लिऊण एसा जमग्गओ कुमरमिक्खेइ' ।।४२४१।। 'किं जूरसि अप्पाणं अज्ज ? न ता इच्छसे पुरो कुमरं ? | इय जंपिरेण केण वि मडहंगी ठाविया खंधे ||४२४२ || 'किं न हले ! थणव अइधिट्ठे ! नवनहंकियं पिहसि ? । एक्केण नियंबेणं तुमए उ निरुंभिओ मग्गो ||४२४३ ॥ निवडह (हि) सि पुरो पावे ! भवणसिरग्गाओ कुमरकोड्डेण । चिरनिवडियं पि बालं एसा उण न मुणइ हयासा ||४२४४॥ सहि ! पेच्छ महच्छरियं कुमरेण महाबला वि जे रिउणो । ते अउरुव्वकमेण व दासत्तं अत्तणो नीया ||४२४५ ॥ ३८७ Page #397 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ૨૮૮ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ सहि ! एसा चंदसिरी विज्जाहरिविंदवेढिया एइ । जेणं चिय अवहरिया तेणं चिय मणिविमाणेण ||४२४६।। हलिमाए ! पेच्छ चोज्जं एसो च्चिय सो असोयखयरिंदो । उज्जाणाओ तइया अवहरिया जेण चंदसिरी ॥४२४७।। पियसहि. ! चंदसिरि च्चिय सलहिज्जइ सयलजुवइमज्झंमि । जा वीरसेणघरणीसदं पाविह(हि)इ अइदुलहं ॥४२४८।। सहि ! सरिसरूव-जोव्वण-लावन्न-कला-कुलाणुरायाण । केसिंचि तुडिवसेणं संजोगो होइ धन्नाण' ।।४२४९।। इय वीरसेणदंसणरसपरवसभावकयवियाराण । एमाइणो अणेया संजाया जुयइआलाया ।।४२५०।। पत्तो कमेण पयपय-पेच्छणयच्छरियबहुविणोयसयं । घणवइयरं व नयरं पेच्छंतो राउलदुवारं ॥४२५१।। पविसइ पविसंतमहा-करिंदघणदाणवारिधाराहिं । पिहियरह-तुरयखरक्खु(खु)र-समुक्खयाणंतरयपडलं ॥४२५२ ।। समयविसमाणबलभर-दुवारपडिरुद्धनिग्गम-पवेसं । तोरणनिबद्धदप्पणघडत-विहडंतजणपडिमं ॥४२५३।। कत्थ वि वंसविमीसिय-गायंताणंतगायणसमूहं । कत्थ वि सिरिकरणट्ठियसामंतविलद्धबहुदेसं ॥४२५४॥ कत्थ वि य सत्तसालादिज्जंताणंतलोयधण-कणयं । कत्थ वि पढंतबहुविहबंदिसमुग्घुट्टजयसदं ॥४२५५।। कत्थ वि वारविलासिणि-रसणामणिकिंकणीरवकरालं । कत्थ वि ड(ढ)क्का-मद्दल-कलकाहलसद्दगंभीरं ॥४२५६।। Page #398 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८९ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ कत्थ वि नयरंतेउर-नारीसंमद्दवड्ढियाणंदं । कत्थ वि पारद्धमहावद्धावणऊसवविसेसं ।।४२५७।। इय सयलभुयणलच्छी-निवासट्टा(ठा)णं व सव्वओभदं । पासायं नरनाहो सवीरसेणो पविट्ठो त्ति ॥४२५८।। तो नमियदेव-गुरुपय-कमले सि(सी)हासणंमि नरनाहो । उवविसइ पुणो बीए कुमरो सह खयरराएहिं ।।४२५९।। अन्नो वि जहाजोग्गं कयपडिवत्ती नरिंदचंदेण । दिन्नासणोवविठ्ठो सेहरयासोयपरिवारो ।।४२६०॥ देवी विजयवई वि य सह चंदसिरीए बंधुजीवाए । संपत्ता नियभवणं अंतेउरसंट्ठिया हेट्ठा ।।४२६१।। तत्थ य चंदसिरीए चिरविरहविमद्ददुब्बलसरीरो । मिलिओ विलासलच्छीपमुहो सहियायणो सव्वो ॥४२६२ ।। एत्थंतरंमि राया तं दटुं वीरसेणसामग्गि । ईसीसिखलंतक्खरवयणमिणं भणिउमाढत्तो ॥४२६३।। 'तुह वीरसेण ! असरिस-सुपुन्नपब्भारपिंडघडियस्स । असुहोदओ न होही जो खु अपुन्नेहिं संभवइ ।।४२६४।। अम्हे च्चिय इह भुयणे अपुन्नपरमाणुनिम्मिया किर जे । पच्छिमवए वि मूढा इट्टविओयाइ पेच्छामो ॥४२६५।। जं पुण पुनपसझं जायं तुह दंसणं न सो अम्ह । पयइगुणो किंतु गुणो सो चकिणिपयपसायस्स ।।४२६६।। पई वीरसेण ! दिढे संपइ पुण परिगणेमि अप्पाणं । बहुपुन्नभायणं पिव होही कज्जाणुमाणेण ।।४२६७।। Page #399 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३९० मुणियजिणपवयणत्थो वि एत्तियं जं विलंबिओ कालं । तं तुह विओयदुत्थियचंदसिरीसंगमासाए ॥ ४२६८ ।। पढमं धूयादुक्खं तं तुह दुक्खेण सयगुणं जायं । जह विजयवईए तहा विसेसओ सयललोयस्स ||४२६९ || ता तद्दुक्खपवड्ढियविवेयसंसारसुहविरत्तस्स । मह परिणयं जमेसो दुहहेऊ सयणसंबंधी ॥ ४२७० ॥ ते विरला जाण सया सोक्खसमिद्धाण जायइ विराओ । दुहपीड ( डि) याण काण वि दुहे वि न उणो जहन्नाणा ||४२७१ ।। इय जायविराएण वि पुणोवि परिभावियं मए हियए । एसो न होइ समओ मह पव्वज्जाविहामि ||४२७२ ।। चंदिसिरि-कुमरदुस्सह- दुक्खेण वि पीडिओ जणो सव्वो । जइ पुण मह पव्वज्जा ता जायइ जयमहापलओ ||४२७३ ॥ जइ अणुयत्तइ दे (द) इवो ता धूयं अप्पिऊण कुमरस्स । कयसयलरज्जकज्जो जहोच्चिय (यं ) पुण करिस्सामि ||४२७४|| तुह वीरसेण ! निम्मलपुन्नेहिं जहेत्तियं समावडियं । अन्नं पि तहा होही तुहाणुहावेण भद्दयरं ॥ ४२७५ || जा पुव्वकप्पिय च्चिय नियपाणपयाणओ तए कीया । सा पत्थणामहग्घं घेप्पउ नरनाह ! चंदसिरी ||४२७६ ॥ एत्तियकज्जनिमित्तं न तए वि सयं गहेण परिणीया । रत्तेण वि अणुरत्ता मए अदिन्नत्ति चंदसिरी ||४२७७ || कस्सेत्तिउ (ओ) विवेओ ! कस्स महासत्तया वि इयरूवा ! | कस्सिदियमणसंजमसत्ती ! जह तुज्झ संपत्ता' ||४२७८ ॥ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ . Page #400 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३९१ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ 'इय भणिए नरवइणा भणियं कुमरेण 'अणवयासो मे । पडिउत्तरस्स नरवर ! जहोचियं कुणसु सयमेव' ।।४२७९॥ एत्थावसरे पत्तो फल-पुप्फकरो सयं अणाहूओ । दटुं कुमारमासिव्वायपरो तत्थ जोइसिओ ।।४२८०।। तं दठूण नरिंदो पहिट्ठहियओ वियप्पए एवं । 'कह चिंतियमेत्तो वि य संपत्तो एस जोइसिओ ? ||४२८१।। ता अवस्समविग्घेणं होही मह वंच्छियत्थसंसिद्धी । कहमन्नहा अयंडे संपत्तो एस फलहत्थो?'।।४२८२।। तो पूइऊण विप्पं पुच्छइ चंदसिरि-वीरसेणाण । पाणिग्गहणनिमित्तं सुहलग्गदिणं महाराओ ।।४२८३।। .. तो सो हरिसवसुग्गय-पुलयंकुरकहियकज्जसंसिद्धी । गणिऊण थिरो साहइ लग्गदिणं पंचमे दियहे ।।४२८४।। तो भणियमसोएणं 'संनिहियं देव ! सुंदरं लग्गं' । पुण सेहरेण भणियं ‘अविलंबं कुणसु नरनाह !' ।।४२८५।। तो राइणा सहरिसं निययावासंमि पेसिओ कुमरो । सेहरयासोयजुओ तत्थच्छइ बुहविणोएहिं ॥४२८६।। राया वि य उवउत्तो जं जं पुच्छइ महंतए कज्जं । तं तं चिय संपन्नं मणि-कणयाहरण-वत्थाई ॥४२८७।।. तो आइसइ नरिंदो ‘हक्कारव(ह) दूरदेसरायाणो ।। पुण जणवयाण पयडह कुमारपाणिग्गहपमोयं ॥४२८८।। सविसेसहट्टमंदिरसोहं कारेह देह दाणाई । पालेह कुलायारं कारह तह वुड्डिसद्धं च ॥४२८९।। Page #401 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - ३९२ कुलवुड्ढाओ निरुवह सयलकुलायारकरणनिउणाओ । अट्ठाहियामहूसवमसमं चंदप्पहे कुणह || ४२९०॥ तह रायपंगणंतर - पमाणओ मंडवं सवारेह | तह माइनिमंतणयं भुंजावह माइबंभणए ।। ४२९१ ।। पूएह सयलदेवे कारह पुरदेवयाण पूयाओ । वारविलासिणिसत्थं संजत्तह लडहसिंगारं ।।४२२२॥ तह विविहखंड - खज्जय-भोज्जं अणिवारियं पयट्टेह । दीण - किविणंधयाणं करुणादाणं दवावेह ||४२९३ || कन्नादाणनिमित्तं लक्खं करडीण दह तुरंगाण । पंचदह संदणाणं ठवेह लक्खे सुसोहाण ।। ४२९४ ।। दहकोडिलक्खमाणं पउणं कारेह कणयभंडारं । पेसेह जहाजोग्गं वत्थाहरणाई लोयाण ।।४२९५।। बहुकेत्तियं व भन्नह (इ) ? जं जह जइया हवेज्ज उवउत्तं । तं तह तइया सव्वं कुणह सयं निययबुद्धीए' ।।४२९६ ।। इय सयलविवाहोइय - वावारनिरूवणं करेंतस्स । नरवइणो संपत्तो विवाहदियहो पमोएण ॥४२९७ ।। जो भग्गिओ मणोरहसएहिं उवजाइएहिं बहुएहिं । सो जणवयाण दियहो आणंदमओ व्व संपत्तो ||४२९८ ॥ दिव्वाहरण-विहूसण- दिव्वंसुयनिवसणो जणो नयरे । संचरइ विवाहसव - परिओसपवड्ढिउच्छाहो ||४२९९ ।। पसरंतहिययपहरिस-विसंखलुच्छलियवयणविन्नासो । उवहुत्तबहुमहूसवरसो व्व मत्तो जणो भमइ ||४३०० ॥ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ Page #402 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ कयकुंकुमंगराओ निबद्धवन्नद्धकुसुमपब्भारो । तरुणीयणो विवाहे न कस्स मणमोहणं कुणइ ? || ४३०१॥ उस्सखलपरिभमियं उस्सिखलजंपियं च हसियं च । जुवईण जुवाणाण य होइ विवाहूसवदिणेसु ॥ ४३०२ || गोत्तिनिवासविमोक्खो व्व होइ गिहनिग्गमो कुलवहूण । सैरविहारमहासुहविवाहदियहं सरंतीण ॥४३०३ ॥ अन्नोन्नो सिंगारो सरसं गीयं च लडहनट्टं च । तरुणीण कहं जायइ जइ न विवाहूसवो होइ ||४३०४ || दसदिसिविहायपसरिय- तूररवुप्पन्नपडिरवमिसेण । दिसिवालेहिं व हरिसा वद्धावणयं व पारद्धं ||४३०५ || इय हल्लफलपरियण-पिसुणियसन्निहियलग्गपत्थावो । जा पत्थवोऽणुपालइ ता तुरियं वीरसेणो वि || ४३०६ || वेयड्डाओ दुसेढीसमहियसंपत्तखयर खयरीहिं । कयपढमनियकुलोइयवरकज्जविसेसकरणीओ ॥४३०७॥ वज्जंतगहिरमणहर - तूररवुफु (प्फु)न्नदसदिसावलयं । गायंतधवलमंगलविज्जाहरिवड्डियाणंदं ॥ ४३०८ || नच्चिरवारविलासिणि-संमद्दखुहंतमणिमयाहरणं । दिज्जंतपारिओसिय-मागहउग्घुट्टजयस ॥। ४३०९ || कुमरस्स सयलतिहुयण - संजणियच्छेरयं महिड्डीए । अविहवकुलविज्जाहरिजणेहिं इय ण्हवणयं विहियं ॥ ४३१० || तो तद्दंसणपसरिय- अणुराय-परव्वसाहिं नारीहिं । ढोइयविविहाहरणो पारद्धो भूसिउं कुमरो ।। ४३११ ।। ३९३ Page #403 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३९४ पढमं चिय तस्स कओ तिलओ हरियंदणेण भालयले । तल्लिहियक्खरपरिणय-पुन्नपयारस्स पंथो व्व ॥ ४३१२ ।। उत्तत्तकणयदेहो सिरिखंडसियंगरायरुइरंगो । धवलब्भपडलपिहिओ रेहइ सो सारयरवि व्व ॥ ४३१३ ।। मुत्ताणुमयं परलोयसुहयरं बहुसुवन्न - मणिघडियं । जिणवयणं पिव सवणे कुंडलजुयलं सहइ तस्स || ४३१४|| आमलयथूलमोत्तिय-हारावलिकलियवियडवच्छयलो । सिरिभुयणसुंदरीकहा | उइयमणगयणनिम्मलविवेयससिपारिवासो व्व ॥ ४३१५ || निरुवद्दवं च निवसइ भुयदंडे जस्स जयसिरी निययं । कहमन्नहंगयमिसा दीसइ तिस्सा सिरकिरीडो ? ||४३१६ ।। मणिकंकणकिरि (र) णपहा-पिहुमंडलपरिगओ करो जस्स । रयणमय-वालुयामयकयालवालो व्वं कप्पतरू ।। ४३१७ | निवसियसियपट्टंसुय-तदुवरिपडिबद्धरयणकडिपट्टो । रयणायरपरिखित्तो रेहइ सो जंबूद्दी ( बुदी ) वो व्व ॥ ४३१८ || मणिकंकण-कडयावलि - कलियकमो एसु परिणसु ममं ति । मणिमुद्दगुलिकरजुयधरिओ व्व पियाए पाए ||४३१९ ।। साहावियतेयपहानिप्फुरतेयाइं तह न सोहंति । तणुभूसणाइं परिभवलज्जाए व जायसामाई || ४३२० || सो भूसणेहिं सोहइ जो न सयं रूवसंपयाजुत्तो । इयरस्स पुणो ताइं वि सहावसोहं तिरोहिंति ॥४३२१॥ विज्जाहरीहिं तह वि य सव्वंगेसु वि विहूसिओ कुमरो । जुयइयणपहाणत्तं पायं एवंविहत्थे ||४३२२।। Page #404 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ इय विहियसयलमंगल-कोउयसंपुन्नसयलकायव्यो । विन्नविओ सप्पणयं सेहरयासोयराएहिं ॥४३२३।। 'इह देव ! रायउत्तो चंदजसो आगओ सयं दारे । तुज्झाहवणनिमित्तं विचित्तजसरायवयणेण ।।४३२४।। आसन्नं सुमुहुत्तं किज्जउ विजओ कुमार ! नीसेसो । पडिवालइ तुह दंसणसमुज्जुओ जणवओ बाहिं' ॥४३२५।। ‘एवं' ति पभणिऊणं अक्खय-सिद्धत्थ-दहि-दुरुव्वाहिं । दंतुरियसिरो कुमारो आरूढो पट्टहत्थिमि ।।४३२६।। करिराओदयसिहरग्गओइयकुमरिंदुदंसणेणेव । विज्जाहरपुरलोओ पवियसिओ कुम(मु)यसंडो व्व ।।४३२७।। कुमरकरिणो दुपासेसु दो गया तेसु सेहरासोया । करधरियचमरचालण-कणंतकरकंकणा चडिया ।।४३२८।। सिरधरियधवलछत्तो पासनिविटेण बंधुयत्तेण । पवणपघोलिरधवलब्भतलगओ सारयससि व्व ॥४३२९।। अन्नेसु बहुविहेसुं करि-तुरय-महारहेसु नीसेसो । संचलइ समारूढो पहाणलोओ कुमारस्स ॥४३३०।। मंथरचलंतबहुविह-विज्जाहरघणविमाणनिवहेण । सयलं चिय छाइज्जइ गयणयलं ओत्थरंतेण ।।४३३१।। चउभद्दसालसुंदर-बहुवन्नविमाणनिवहसंछन्नं । कयकुंजरक्खरेहाबंधसुचित्तं व गयणयलं ।।४३३२।। नियनियविमाणताडिय-विज्जाहरगहिरतूरसद्दमिसा । जयकारइ व्व कुमरं पडिसद्दमिसेण गयणतहं ।।४३३३।। Page #405 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३९६ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ पडिघरदुवारनिग्गय-पुरनारीविहियमंगलसहस्सो । अणवरयं लायंजलिकयपूओ पुरपुरंधीहिं ।।४३३४।। पडिभवणोवरि बहुपुन्नकलसपल्लवविकिन्नबिंदूहिं । तरुणीहिं पाउसो इव पसरइ कयदुद्दिणारंभो ॥४३३५।। गयणट्ठियविज्जाहरि-करकमलविमुक्ककुसुमघणवरिसो । 'जय जीव नंद वड्डसु' वुड्डाजणदिन्नआसीसो ।।४३३६॥ इय जत्तो च्चिय जोयइ तत्तो च्चिय खयर-पुरजणं नियइ । तक्कल्लाणनिमित्तं कयकोउयमंगलारंभं ।।४३३७।। सो कयभुयणाणंदो आणंदमहासुहं अणुभवंतो । पत्तो विच्छडे(ड्डे)णं मंडवद्दा(दा)रं महावीरो ।।४३३८।। तो कुलवुड्डापयडिय-अणुट्ठियासेसनियकुलायारो । कयमंगलोवयारो जाइ वहु(हू)संनिहाणंमि ॥४३३९।। तो दिन्नपत्थियाहिय-धणविहडियपडविडप्पसंबंधं । पेच्छइ अप्पुव्वं पिव वहुयामुहपुन्निमायंदं ॥४३४०।। सुपसत्थदेहसोहा नियत्थसुपसत्थवत्थरुइरंगी । सुपसत्थवराहरणा पसत्थकयमंगलसहस्सा ।।४३४१।। नियजणणि-जणय-परियण-सोवासिणि-बंधुवग्गपरियरिया । दिट्ठा पहिढवयणा चंदसिरी वीरसेणेण ||४३४२।। पुट्विं लज्जावज्जिय-परोप्पराभिमुहदसणसुहाण । अणुकूलो च्चिअ जाओ तारामेलावओ ताण ।।४३४३।। उम्मेसपसरियाणं ताणं नयणाण पम्हघणपंती । अन्नोन्नसंकमसुहा सोहइ रोमंचराई व ॥४३४४।। Page #406 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३९७ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ तो सुपसत्थमुहुत्तावसरे ‘पुन्नाह' सद्दगंभीरं । गेण्हइ चंदसिरीए पाणिं नियपाणिणा कुमरो ॥४३४५।। तो अन्नोन्नकरग्गहमग्गेण व संचरंति दूय(र)व्व । दोहिं वि आजम्मावहि एकत्तणहिययवावारा ।।४३४६।। संपूइयपूयारिह-संमाणियमाणणीयजणनिवहं । कयसयलजहाकिच्चं वित्तं पाणिग्गहं ताण ॥४३४७।। तो सरहसं पुरस्सर-पुरोहियारद्धपूयसक्कारं । पूयंति समं दोन्नि वि वणिंह कयलायपूयाई ।।४३४८॥ पुण ध(ब)हलधूमकलुसियपगलंतच्छीहिं मंडलाइं पि । भमियाई समं दोहिं वि पुरोहिउत्तेण मग्गेण ॥४३४९।। दिज्जंति तत्थ समए निविडघडाघडियकरडिसंघाया । तह संचरंति(त?)चंचलतरलयरतुरंगमुग्घाया ॥४३५०।। पुस्सिंद-नील-मरगय-कक्केयण-वज्ज-पउमराओहा । जहजोग्गयाणुरूवं नरिंदमाईण दिज्जति ।।४३५१।। उत्तत्तकणयपुंजा उल्लूडियमेरुसिहरसंकासा । विविहाहरणसमूहा सामंताईण दिज्जति ॥४३५२।। सो नत्थि को वि तइया जो न कओ राइणा धणकयत्थो । तह कह वि तेण दिन्नं जह से मग्गंतया नत्थि ।।४३५३॥ तो धूयापाणिग्गहमहोच्छवे हरिसपरवसमणेण । दिसि दिसि चउक्क-चच्चर-तिएसु पुरनिग्गमपहेसु ॥४३५४।। एमेव सयंगाहं काऊणं कणयपुंजए विहियं । 'गेण्हउ जणो' त्ति नयरे आघोसणयं नरिंदेण ॥४३५५।। Page #407 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३९८ . सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ तह रिद्धिवित्थरेणं वीवाहमहूसवो कओ तेण । विज्जाहराहिवाणं जह जाओ मणचमक्कारो ॥४३५६।। निव्वत्तिऊण एवं महाविभूईए पहरिसमहग्धं । धूयाविवाहमसमं तो कुमरं भणइ नरनाहो ॥४३५७॥ 'इह विज्जाहरलोओ नियविज्जालद्धिसिद्धि(द्ध)सव्वत्थो । कयकिच्चो ताण कहं मारिसलोओ उवयरेइ? ||४३५८।। जइ न गुणजोग्गयाए गरुयाणं उवयरिज्जइ कुमार! । ता अप्पणो परस्स य गरुयत्तं पडिहयं होइ ।।४३५९।। अवयारो व्व पयासइ उवयारो अणुच्चिउच्चुणा(अणुचिउव्वुणा?) विहिओ। गरुएसु लहू गरुओ लहूसु असमंजसनिमित्तं' ।।४३६०।। इय जाव भणइ राया ता कुमरो तस्स वयणमक्खिविउं । सललियमुदारओच्चियवयणमिणं भणिउमाढत्तो ।।४३६१।। कह उवयारो(रा?)वेक्खी पावइ गरुयत्तणं महिंदो वि ? । रंको वि निरहिलासी नरिंद ! गरुओ सुमेरु व्व ।।४३६२।। नेच्छंति पयइगरुया दाणुवयारं परेहिं कीरंतं । किं तु समुज्जलमाणससिणेहरसमेव वंछंति ॥४३६३।। जाणं सिणेहरहिओ महोवयारो वि तिणलहू होइ । ताणं सिणेहसहिअं तिणं पि कणयद्दिगरुययरं ।।४३६४।। ता जह नरिंद ! संपइ तुह हिययमिमेसु पेमपरतंतं । तह ते उदारओच्चियमन्नं सव्वं पि संपडिही' ।।४३६५।। इय जा नरिंद-कुमरा वयणवियारं करेंति अन्नोन्नं । भंडारिएण राया विन्नतो(त्तो) ता इमं वयणं ।।४३६६।। Page #408 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३९९ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ 'जं जं नरिंद ! मग्गसि दाणनिमित्तं तयं तयं सव्वं । वड्डइ अणंतगुणियं न याणिमो केण कज्जेण? ।।४३६७।। संपइ पुण सेहररायासोयनरिंदाण उचियकरणत्थं । भणिओ तुब्भेहिं अहं भंडारगिहं गओ जाव ॥४३६८॥ ता देव ! थूलनिम्मल-महग्घमणि-रयणनिविडघडियाओ । दिट्ठाओ दोन्नि नरवर ! मज्झे वररयणमालाओ ।।४३६९।। दिट्ठाई देव ! बहुसो तुहप्पसाएण विविहरयणाई । पायं न मच्चलोइयरयणनिवेसो भवे ताण ।।४३७०।। तेओ वि अउव्वो च्चिय निज्जियससि-सूरकिरि(र)णवित्थारो । अणुसिणसिसिरो ताणं पल्हाइयलोयण-सरीरो ।।४३७१।। जइ देवयाणुभावा एवंविहभूसणाई जायंति । न उण इहरा संपइ नरिंद ! तुब्भे पमाणं ति' ||४३७२।। तो भणइ महाराओ ‘अच्छरियमिणं कुमार ! सव्वं पि । जह जह दिज्जइ तह तह भंडारो वद्धए अहियं ।।४३७३।। एयाओ(उ) रयणमालाओ कुमार ! मह विम्हयं पयासंति । अम्हे न एत्तियाणं भायणमिह भागधेयाण' ।।४३७४।। तो भणइ वीरसेणो ‘मा एवं देहि देव ! आएसं । नीसेसपुन्नपरिणइपयरिसभूओ तुमं चेव ।।४३७५।। ता देव ! रयणमालाओ ताओ खयरेसराण दिज्जंति । ‘एवं होउ' त्ति तओ विचित्तजसराइणा भणियं ॥४३७६।। हक्कारिया सपणयं कुमारसीहासणंमि(?) उवविठ्ठा । नियनियपरियणसहिआ सेहरयासोयरायाणो ।।४३७७।। For Private &Personal Use Only Page #409 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४०० सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ तो परियणो असेसो उभएसिं ताण पूइओ पढमं । दुलहत्त-महग्घत्तण-विम्हयकरविविहवत्थूहिं ॥४३७८॥ तह कुमरपुनपरिणइ-पणामियाउव्व विहवसारेण । उवयरिओ खयरजणो जह तग्गुणवावडो जाओ ॥४३७९॥ 'कह भूमिगोयराणं संपज्जइ रिद्धिवित्थरो एवं ? जो सुरलोयदुलंभो दूरे उण खयरलोयाण ॥४३८०।। ता एस वीरसेणो न होइ सामन्नमाणुसो को वि । जो रिद्धिवित्थरेण(णं) तणं व तियसाहिवं गणइ' ।।४३८१।। इय विज्जाहरलोओ दुल्लहबहुवत्थुलाहविम्हइओ । चिंतइ कयकुमरोचियपडिवत्तिपवड्ढियाणंदो ॥४३८२।। तयणंतरं असोओ सेहरराया य कुमर-राएहिं । पयडियपेम्मभरेहिं जहक्कम्म(म) पूइया दो वि ||४३८३।। तो चिंतियमेत्ताओ केण वि अप्पंसियाओ एंतीओ । सव्वेहिं वि दिट्ठाओ ताओ समं रयणमालाओ ।।४३८४।। अप्पडिहयप्पयावं पयइथिरं वीरसेणमिच्छंती । इय अथिरसूरविमुहा एइ व्व सहस्सकिरणाली ।।४३८५।। संपुन्नकलाकलियं अकलंकमदोसममयनिम्मायं । दटुं कुमारचंदं चंददाराओ एंति व्व ॥४३८६।। अहिणवकयपाणिग्गह-कुमारआसीसदाणबुद्धीए । अवयरइ नहयलाओ मन्ने सत्तरिसिमाल व्व ।।४३८७।। मन्ने अमाणुसोच्चिय-निम्मलगुणघडियपुन्नपंतीओ । अणवच्छिन्नाओ समं कुमारमणुसंघडंति व्व ।।४३८८।। Page #410 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४०१ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ इय कुमरसमाएसा सयमेव असोय-सेहराभिमुहं । गंतूण ताओ ताणं सहसा कंठे निबद्धाओ ॥४३८९।। अद्दिट्ठमणणुहूयं असु(स्सु)यमाहरणरयणमिक्खेउं । सेहरयासोयाणं जाओ चित्ते चमक्कारो ।।४३९०।। चिंतंति दो वि ‘पेच्छह अच्छरियमिमस्स वीरसेणस्स । एयस्स पुरो अम्हे रोरव्व सिरीए संजाया ।।४३९१।। जो जो परिभाविज्जइ सामन्नो वि हु गुणो कुमारस्स । सो सो अणन्नसरिसो न कस्स आणंदए हिययं ? ।।४३९२।। अम्हे न केवलं चिय नीया सपरि(र)क्कमेण दासत्तं । एएण संपयं पुण अणंतविहवेण किणियव्व' ।।४३९३।। तो भणियमसोएणं 'सुदिढं गुणबंधणेण बद्धाण । किं एस पुणो संपइ कुमार ! पडिबंधणारंभो ? ।।४३९४।। अहवा न देव ! बंधणमेयं अम्हाण किंतु अउरुव्वो । भुयणब्भहियविभूसणपयाणसरिसो च्चिय पसाओ' ॥४३९५।। तो भणइ वीरसेणो 'चिरप्पवासेण खेइया बहुयं । ता जाह नियावासं पुणो वि मं संभरेज्जाह' ।।४३९६।। तो ते भणंति दोन्नि वि ‘पमाणमाएस एव भिच्चाण । वच्चामो देहेणं हिययं पुण तुम्ह चरणंते' ॥४३९७।। तं चिय रयणविमाणं दाउं कुमरस्स खेयरसहस्सं । मोत्तूण सन्निहाणे रक्खटुं कुमरदेहस्स ॥४३९८।। तो ते खयरनरिंदा विसज्जिया रायवीरसेणेण । पणमियचंदसिरीया सपरियणा गयणमुप्पइया ॥४३९९।। 27 Page #411 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४०२ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ एत्थंतरंमि सूरो कुमरस्स पयावमसहमाणो व्व । बहुमच्छरेण निवडइ अत्थइरिसिराओ जलहिमि ॥४४००।। मुणिऊण तं तहाविह-मसमं कुमरेक्ककरपरिफु(प्फु)रणं । लज्जाए रवी मन्ने संकोइय (संकोयइ) करसहस्सं पि ॥४४०१।। पसरइ वारुणपुरघण-विलासिणीविविहभूसणमणीण । पच्छिमदिसाए संझामिसेण सोणंसुवित्थारो ॥४४०२।। वित्थरइ सव्वओ च्चिय कत्थूरीबहलसलिलपूरो व्व । डझंतागुरुघणधूवधूमपडलो व्व तिमिरोहो ॥४४०३।। अइदूरयरे पढमं पच्छा दरदूरसंट्ठियपयत्थे । अंतरइ तिमिरनिवहो कमेण नियडे सुनियडो वि ।।४४०४।। बुढि(ड्ढ)गएण दूरं कज्जलकसिणेण भयसरूवेण । गिलियं न दीसइ च्चिय भुयणं तमरक्खसेणं व्व ॥४४०५।। अपयडपयत्थसारं अणग्घपरनाणमसरिससरूवं । भुयणं निहयालोयं मज्जइ मोहे व्व तिमिरंमि ।।४४०६।। इय जाए कसिणभावं अंबरमिह कज्जलेण व तमेण । पक्खालंतो उइओ जोण्हादुरेण हरिणको ।।४४०७।। अक्वंतसयलभुयणं कयावयारं जणस्स तिमिरारिं । रोसारुणा हणंता पसरति व ससहरमयूहा ।।४४०८।। उदयद्दिदुमवणारुण-पल्लवसंकंतअरुणिमेहं व्व । नवकुंकुमरसरत्तं व होइ भुयणं ससिकरेहिं ।।४४०९।। अजरढजोण्हापढमं पयडइ पासायधवलसिहराई । कमलद्धजरढभावा स च्चिय भुयणं निरवसेसं ॥४४१०।। १. अस्तगिरेः ।। Page #412 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४०३ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ उदयइरिसिरग्गाओ लुढिएण व चंदखीरकलसेण । रेल्लिज्जइ भुयणयलं जोण्हादुरेण नीसेसं ।।४४११।। अच्चुन्नयाण उवरिं ठविऊण पयं कमेण नीएसु । पसरंति ससिमऊहा ज़ोहा इव वीरसेणस्स ।।४४१२।। करकुंचएण धवलइ निउणयरं सिप्पिओ व्व हरिणंको । जोण्हासुहारसेण व नीसेसं भुयणपासायं ॥४४१३॥ एवंविहे पओसे ससहरजोण्हाहिणंदियजयंमि । उद्दामकामिणीयणपवियंभियमयणकल्लोले ।।४४१४।। सयरंधि-पुरंधीणं विलासगेहेसु जत्थ वित्थरइ । कत्थूरीपरिवत्तणचलकंकणज्झ(झ)णज्झ(झ)णासद्दो ॥४४१५।। पसरंति पणयपकुविय-दइयापरिओसगहियसंदेसा । पुणरुत्तपियब्भत्थणउवरुद्धा दूयिसंघाया ।।४४१६।। दीसइ फुल्लप्पयरो पडिवासगिहेसु कुसुमबाणेण । मिहुणाण रइसमागमरणे व्व मुक्को सरसमूहो ॥४४१७।। मयघुम्मिरच्छिजुयला उद्दीवियकामिमयणरसभावा । निज्जंति रइगिहेसु सहीहिं पारावउग्घाया ॥४४१८॥ कयनिम्मलप्पईवा पउणीकयरइसुहोवगरणा य । ससहिपियालंकरिया संजाया रइगिहपएसा ।।४४१९॥ एवंविहे पओसे निव्वत्तियसयलसंझकरणीओ । आगच्छइ वासहरं दइयासमहिट्ठियं कुमरो ॥४४२०॥ परियणकहियागमणो अब्भुट्ठियपिययमाकउक्कंठो । परिमियजणपरिवारो विसइ कुमारो रइगिहमि ॥४४२१॥ १. उदयगिरि ।। २. सैरन्ध्री-पुरन्ध्रीणाम् ।। ३. दूतीसंघाताः । . Page #413 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४०४ मणहरमहरिहसेज्जा-पल्लंके सहरिसं च उवविसइ । सेज्जामूलासंदियमहिट्ठिया चंदसिरिदेवी ||४४२२।। कयविविहमंगलसओ सुविण्डालाववड्डियाणंदो । अइसरसगीय-वाइय-पेच्छणयविणोयकयचित्तो ||४४२३ || तो बहुरयणिवसेणं विन्नत्तो परियणेण 'नरनाह ! | वच्चउ देहाएसं परिग्गहो नियनियावासं ॥४४ तो अणुकंपापसरिय-उवरोहभरेण कयबहुपसाओ । उचियमेण सलं विसज्जए परियणं कुमरो ||४४२५ ।। जे मुणियपहुसहावा कामं विन्नायदेस - काला य । कज्जाकज्जविहन्नू ते दुलहा सेवया होंति ॥४४२६॥ तो वीरसेणकुमरो जहासुहं ठाइ महरिहुत्थरणे । बहु सज्झस - लज्जाभरपरव्वसाए सह पियाए ।।४४२७।। विवरंमुहं पसुत्तं अदिन्नपडिउत्तरं च आलवियं । अणुरत्तबालियाणं हरंति हिययं छल्लाणं ॥ ४४२८|| जं नेहनिब्भराउ वि पियंमि पडिकूलिमं पयासंति । बालाओ तेण अहियं रंजंति मणं वियड्डाण ||४४२९|| ते सहियणोवएसा ते च्चिय नियहिययकप्पियवियप्पा । . बालाण पिए दिट्ठे सव्वे वि निरत्थया होंति ।।४४३०|| सप्पणयं सायं सदक्खिणं साणुकूलमचितेण (कूलचित्तॆण) । अणुत्तिया तहा सा पगब्भभावं जहा पत्ता ||४४३१ || जं सलहिज्जइ लोए तियसाण वि दुल्लहं च जं होइ । तं त्ता (ता) नघणाणुरायविवसाण संपत्तं ॥ ४४३२ ॥ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ Page #414 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ सुरयपरिस्समघणसेय-बिंदुदंतुरियभालवट्ठाण । अन्नोन्नसमालिंगणसुहरससंपत्तनिद्दाण ||४४३३॥ सा सुहमय व्व रयणी अणुरायमय व्व अमयघडिय व्व । अन्नोन्नमतित्ताणं ताण खणद्धं व वोलीणा ॥ ४४३४ || चउदियहजामपियविप्पि ( प ) ओयपडहो व्व निठुरो निसुओ । 'कुक्कु कुक्कु' त्ति कक्कुसकुक्कुडसद्दो मिहुणएहिं ||४४३५|| विवरीओ संसारो होइ अनिट्ठा निसा रहंगाण । इ दियो ते चिय विवरीया हुंति मिहुणाण ||४४३६ ॥ पविसंति सवणविवरे रयणिविरामप्पयासया ताण । पाहाऊयमंगलथोत्तपाढया मागहसमूहा ( ? ) ||४४३७।। 'ज्झि ( झ ) ज्जइ कुमार ! रयणी ससहरसंभोयमणुसरंति व्व । अंबरनिगूढपयडियनक्खत्तनहव्वणा एसा ||४४३८|| एसो अत्थमइ ससी मणे वहंतो व्व लंछणमिसेण । मयणाहिसामलंगिं निरंतरं स्यणिवरतरुणिं ॥ ४४३९ ।। रविरहरहंगनिहसण-पवणुद्धयहेममहिहररएण । परिपिंजर व्व रेहइ पुव्वदिसा पेच्छ नरनाह ! ||४४४० ।। संपत्तसूरसंगा पडिहयतेयंसिमंडला देव ! वियसावियवरकमला पुव्वदिसा सहइ देवि व्व ।।४४४१।। नरनाह ! उइयमेत्तो तुमं व भुवणं करेइ पडत्थं । एस रवी खित्तकरो अणवरयं कमलकोसेसु ||४४४२ || देसंतरं गएणं समं च जं पवसियं हयालोयं । पच्चागए तुमंमि व रविंमि पच्चागयं भुयणं' ||४४४३ || ४०५ Page #415 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४०६ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ इय चाटुचउरचारणगणेहिं पडिबोहिओ महावीरो । पणमियगुरु-देवपओ पलंकं मुयइ गयनिदो ||४४४४।। कयसयलगोसकिच्चो समन्निओ बंधुयत्तमाईहिं । वच्चइ नरिंदपासं पुणो वि नियमंदिरं एइ ।।४४४५।। एवं च ताण पइदिण-पवड्डमाणाणुरायरसियाण । विसयसुहासत्ताणं वच्चंति जहासुहं दियहा ।।४४४६।। अन्नंमि दिणे राया पन्नायरमाइतुच्छपरिवारो । विजयवई(इ)सन्निहाणं वच्चइ उवविसइ य पहिट्ठो ।।४४४७।। जा जोयइ ता पेच्छइ चंदसिरिं तत्थ चेव संपत्तं । जणणिसयासे सविणयकयप्पणामं च पुच्छइ व्व ॥४४४८।। 'किं पुत्त ! तुज्झ भत्ता न दीसए ? अज्ज पंचमो दियहो । अपडुसरीरो अहवा कज्जंतरवावडो जाओ ?' ||४४४९।। भणियं चंदसिरीए ‘आरोग्गो ताय ! तुह पसाएण । किं तु न जाणे कत्थ वि गओ पिओ पंचमो दियहो' ।।४४५०।। तो भणइ महाराओ 'कहमेयं जं तुमं न जाणासि ?' । सा भणइ 'सच्चमेयं न ताय ! जाणामि तच्चरियं' ।।४४५१।। राया भणइ 'न इट्ठा तस्स तुमं तेण न कहइ तुहेसो । वल्लह-दइयाण जओ जीयपि परव्वसं होइ' ॥४४५२ ।। तो लज्जाए अहोमुहमवलोयइ कोड्डिमं करनहेहिं । विलिहंती चंदसिरी मोणेण ठिया खणं एवं ॥४४५३॥ तो भणइ महामंती 'न देव ! एवं जओ महापुरिसा । ' होंति न जुवईण वसे जिगीसिणो पुण विसेसेण ।।४४५४।। Page #416 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४०७ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ तं होइ किं पि कज्जं जं न कहिज्जइ गुरूण मित्ताण । तरलहिययाण दूरे भोगेक्कफलाण जुवइ(ई)ण'।।४४५५।। भणियं विजयवईए ‘नरिंद ! एएण कारणेणेसा । एत्थागया सखेया भत्तारसरूवकहणत्थं' ।।४४५६।। तो भणइ महाराओ 'पुत्त ! तुम एत्तियं पि न मुणेसि । केत्तियवेलाए गओ ? गच्छंतेणावि किं भणियं ? ||४४५७।। तो चंदसिरी जंपइ ‘ताय ! पसुत्ता [अ]हं परिच्चत्ता । जा चेयामि ससंका ता भत्तारं न पेच्छामि ।।४४५८।। एत्थंतरंमि निम्मल-मणिप्पईवप(प्प)हाकओज्जोयं । पेच्छामि केयइदलं कत्थूरीलिहियवरगाहं' ।।४४५९।। . एत्थंतरंमि पत्तं चंदसिरी अप्पए नरिंदस्स । राया वि ससंकमणो वायइ ललियक्खरं गाहं ।।४४६०॥ “अइगुरुकज्जेण गओ मा मणखेयं कुणंतु गुरुमाई । दसरत्ते कयकज्जो अप्पाणं तुम्ह पयडिस्सं" ।।४४६१।। मुणिऊण महाराओ गाहत्थं सत्थमाणसो जाओ । संधीरई(इ) चंदसिरिं सावट्ठभेहिं वयणेहिं ॥४४६२।। एवं जाव नरिंदो चंदसिरिं संठवेइ सप्पणयं । ता तत्थ नहयलाओ समागओ खेयरो एक्को ॥४४६३।। आगंतूण य तेणं नमिऊणं नरवई च चंदसिरिं । विहियासणसंभासणपडिवत्ती भणिउमाढत्तो ॥४४६४।। 'चंपाणयरीओ अहं पट्टविओ वीरसेणराएण । मा होउ तुम्ह हियए अवसेरी इय वियप्पेण ।।४४६५।। Page #417 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४०८ चंपाए गमणहेऊ एसो किर तस्स रायरायस्स । साहिज्जतो निसुणह समासओ तस्स वयणेण ||४४६६ || नरनाह ! सयलवसुहा-वसुहाहिवचेट्ठियाण मुत्थं । सव्वदिसासु वि पेस इह द्विओ खयरसंघाए || ४४६७ || तो पइदिणं नरेसर ! जं विच्चइ किं पि एत्थ भुमि । तं वीरस्स असेसं खयरा आगच्च साहंति ।। ४४६८।। एवं सो अणुदियहं इह ट्ठिओ नियइ सव्वरायाणं । सिरिवीरसेणराया ववहरणं चारचक्खहिं ॥। ४४६९ ।। अन्नंमि दिणे अहयं आइट्ठो वीरसेणराएण । 'रे वज्जबाहु ! गच्छसु अंगादेसं तुमं अज्ज || ४४७० || चंपापुरीए राया नरसीहो नाम अतुलमाहप्पो । अइगरुअं सत्तुत्तं सो पयडइ किर मए सद्धिं ।।४४७१ ।। नियविक्कमकयगव्वो अन्नेसिं विक्कमं पि न सहेइ । सम्मं परिक्खिऊणं तस्स सरूवं मह कहेसु' ||४४७२ || इय संपत्ताएसो विणिग्गओ पणमिऊण रायाणं । पत्तो नहेण तुरियं चंपानयरिं महाराय ! ।।४४७३।। तो तत्थ परमदेवं पढमं अभिवंदिऊण वसुपुज्जं । निद्धूयपावपंको पच्छा चंपं पविट्ठो हं ॥ ४४७४ ॥ तो देव ! नयणमोहणि-विज्जासामत्थओ अदीसंतो । नरसीहरायभवणं मणोहरं पुण पविट्ठो म्हि ।।४४७५।। सो नरसीहो समरंगणंमि सीहो व्व दुज्जओ देव ! । एगायवत्तवसुहो विकमदप्पुद्धरो वीरो ||४४७६ ॥ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ Page #418 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४०९ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ तस्स न देवा वि रणंगणंमि पहवंति किं पुण मणुस्सा ? । तुम्हाण वि पच्चक्खो पायं संभवइ सो देव !" ||४४७७।। तो भणइ महाराओ ‘एवमिणं न अन्नहा जओ सुणसु । एत्थ ठिया तस्सम्हे पइवरिसं पेसिमो कप्पं ॥४४७८।।। ता कहसु खयर ! पुरओ नरसीहं को न जाणए एत्थ ? । दप्पज्जरो पणासइ रिऊण जन्नाममंतेण' ।।४४७९।। तो भणइ पुणो खयरो 'कमेण कच्छंतरेसु नरसीहं । . अणुमग्गंतो पत्तो सेज्जाहरगब्भगेहंमि ।।४४८०।। जा जामि तत्थ पुरओ ता नरसीहं समं सभज्जाए । विमलमइमंतिणा वि य मंतंतं किं पि पेच्छामि ।।४४८१।। तो देव ! ससंको हं 'किमेस मंतेइ ?' इय वियप्पेण । ताण समीवपएसं गओ म्हि पहुकज्जकयचित्तो ।।४४८२।। अह नरसीहो जंपइ 'आयनह दो वि एगचित्ताई । विमलमइ-कणयरेहे मह वयणं नीइसंबं(ब)द्धं ।।४४८३।। इह देवि ! तुम जइया अवहरिया कमलकेउणा पुट्विं । तइया मएऽणुहूयं तुह विरहे दारुणं दुक्खं ।।४४८४।। ‘हा देवि ! कणयरेहे ! हा पाणपी(पि)ए ! असेसगुणखाणि ! इय बहुविहं रुयंतो विलवेमि विओयसंतत्तो ।।४४८५।। विमलमइमंतिणा हं तो तंमि दिणे पुरीए बाहिमि । मणविक्खेवनिमित्तं वसुपुज्जजिणालयं नीओ ॥४४८६।। तो नीसेसभवंतर-समज्जियाणंतदुक्खनिद्दलणं । .. दठूण वासुपुज्जं मह जाओ हिययपरिओसो ||४४८७।। १. कक्षान्तरेषु-अन्येषु भवनखण्डेषु ।। Page #419 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४१० ने तो सब्भूयसमुज्जल- जिणगुणपरमत्थभावणासत्तो । अभिवंदिऊण देवं विणिग्गओ भवणबाहिंमि ||४४८८ ॥ दिट्ठो विसालसीलोत्ति नाम निरवज्जभूपएसंमि । वसुपुज्जवंदणत्थं समागओ चारणमुणिंदो ||४४८९ ।। तो परमब्भ (भ) त्तिजुत्तो वंदामि मुणिंदपायपंकरुहं । संपत्तधम्मलाहो उवविट्ठो तस्स पासंमि ।।४४९० ।। तो तेण मुणिवरेणं गंभीरसरेण मज्झ परिकहियं । संसारंतगयाणं असारयं सव्ववत्थूण ॥। ४४९१ ।। तत्थावसरे सुंदरि ! चित्तंमि खुडुक्किया तुमं मज्झ । तो सविणयं मुणिंदो पुट्ठो तुह वइयरमसेसं ॥। ४४९२ ।। तेणावि मज्झ कहियं 'पावमई जुवइलंपडो खुद्दो । इह अत्थि कमलकेऊ नामेणं खेयसे एगो ।। ४४९३ ।। अवहरिया सा तेणं तुह जाया मयणमोहियमणेण । नया य विसमकूडं सेलं कुलसीलसंपन्ना ||४४९४ ।। मोत्तूण तेण गिरिवर- गहिरगुहामज्झसंठिया भणिया । 'इच्छसु ममं किसोयरि ! हरिया सि मए अ ( 5 ) णुरत्तेण' ||४४९५ ।। तो ती तक्खणुप्पन्नबुद्धिविहवाए खेरो भणिओ । 'अज्जेव अहं जाया पुप्फवई किं करोमि? त्तिं ॥ ४४९६ ॥ अभणतो च्चिय सुंदर ! हरेसि हिययाई इयरनारीण । पत्थंतो उण मन्ने अरुंधइं तं पि खोहेसि' ||४४९७|| तो तव्वयणायन्नणहरिसवसुव्वूढहिययउक्करिसो । 'इच्छइ ममं 'ति एसो मणंमि संजायपच्चासो ||४४९८ ।। सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ Page #420 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ तो अज्ज पओसे च्चिय आणेही सो अखंडियचरितं । पेच्छिह (हि) सि सव्वभ पासाए तं नियकलत्तं' ||४४९९ ।। तो भणइ मुणि राया 'जइ एवं ता पुणो वि सो एही । ता नत्थि किंपि कुसलं मुणिंद ! मह हिययदइयाए' ||४५००। तो भइ मुणिवरिंदो 'मा भाहि नरिंद ! कामरूमि । अत्थव - पियासत्तो सो खयरो जणयठाणंमि ||४५०१ ।। तत्थत्थि वीरसेणो नामेणं विमलवंससंभूओ । जो सयलसुहडचूडामणि त्ति भुयणंमि विक्खाओ ||४५०२ || गयणंगणंमि तेणं विजु ( ज्जु) क्खित्तेण दूरमुड्डेउं । मारिज्जिही संतो नरसीह ! न एत्थ संदेहो' ||४५०३ || तो मुणिविहियपसंसासवणसमुप्पन्नतप्पओसेण । भणियं मए ‘न एयं मुणिंद ! निसुणंति मह सवा ||४५०४ || नीसेससुहडचूडामणि त्ति अहमेव एत्थ विक्खाओ । दिट्ठो सुओ व्व न रणे जो मह सवड ( डं) मुहो होइ ||४५०५ || जइ कह वि देवजोया सो समरे मारिही कमलकेउं । ता एत्तियमेत्तेण वि माहप्पं तस्स आरूढं ।। ४५०६ ।। जइ एवंविहविक्रम - विसेससंपत्तनिम्मलजसोहो । ता किं न तेण तइया निहओ हं वैरिओ गरुओ ?” ||४५०७॥ तो मुणिवरेण भणियं 'होसु थिरो केत्तिएहिं वि दिहिं । जेऊण तुमं नरवर ! स एव वसुहाहिवो होही' ।।४५०८ ।। सोऊण साहुवयणं असद्दहंतो परकमं तस्स । नमिऊण जिण-मुणिंदे समागओ हं नियं गेहं ||४५०९ || ४११ Page #421 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४१२ दट्ठूण तुमं सुंदरि ! पओससमये सपच्चयं वयणं । मुणिणो मुणिऊण मए मणंमि परिभावियं एयं ॥। ४५१० ।। दइया दंसणेणं विसालसीलस्स सच्चयं वयणं । जइ वीरसेणविस वि तारिसं ता अहं नट्ठी ||४५११ || अहवा जं जह होही तइय च्चिय तं तहा करिस्सामि । किमहं भविस्सकज्जे अलियं ज्झूरेमि अप्पाणं ? ।।४५१२ ।। तो हं मुणिवयणाओ नाऊण तुमं व सीलगुणकलियं । अहियाणुरायरसिओ भोए भुंजामि सह तुमए ||४५१३ || दइयासुरयपसत्ता सुगीयज्झं (झं) कारमुहलियदियंतो । विविहविणोयक्खित्तो गयं पि कालं न यामि ||४५१४ || अह अन्नदिणे रयणीए कणयरेहाए सुरयपरिसुढि (हि ? )ओ । अइमंदमारुयसुहं उवरिमभूमिं समारूढो ॥। ४५१५ ।। तत्था हं नियदइया - कवोलतलसेयबिंदुसंदोहं । कोमलवत्थेण सयं फुसमाणो जाव चिट्ठामि ।।४५१६ ।। ता सहसा गयणाओ असमंजसल्हसियकेस वसणाओ । पगलंतभूसणाओ मुच्छावसमीलियच्छीओ ||४५१७ ।। पडियाउ 'ड' त्ति समं नहाओ ( उ ) विज्जाहरीओ ( उ ) मह पुरओ । निप्दावयववसा अट्ठ वि ताओ मुयाओ व्व ॥ ४५१८|| अणुमग्गेणं ताण व समागओ परियणो वि रुयमाणो । सीयलकिरियाहिं तओ पुणरवि सत्थाओ ( उ ) जायाओ || ४५१९॥ तो निठुरकरताडणवच्छत्थलतुट्टमाणहाराओ । सिरताडणसंतोडियसिणिद्धघणकेसपासाओ ।।४५२०।। सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ Page #422 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ रोयंति सकज्जलअंसु-सलिलसामलियवयणकमलाओ । नाणापयारपलवियनिठुरजणजणियकरुणाओ ।।४५२१।। 'हा नाह ! हिययवल्लह ! हा हा हा पवणकेउखयरिंद ! । हा वीर ! गुरुपरक्कम ! हओ सि कह वीरसेणेण ? ॥४५२२।। हा हा ! हयाओ अम्हे निहयाओ अपुन्नघडियदेहाओ । निहओ त्ति सुए फुट्टइ न जाण सयसक्करं हिययं ॥४५२३।। कह एयं पि न नायं जो गयणे हणइ कमलकेउं पि ? । हा सो वि वीरसेणो जमो व्व किं रोसिओ तुमए ? ।।४५२४।। तह नाह ! जलहितीरे गुरुसेलसिहासहस्स निहओ जो । न मओ किमेत्तिएणं न बुज्झसे जं रिऊ विसमो ? ||४५२५।। कह सो आरोडिज्जइ रणंगणे गुरुपरक्कमो सत्तू । अणुकूलं चिय जायं जस्स महाजलहिपक्खिवणं ? ||४५२६।। वेयड्डोभयसेढीसु जेण रुद्रुण होइ जयपलओ । तं पि असोयं जेउं चंदसिरी जेण आणीया ॥४५२७॥ एक्कंगेण वि जेणं भडकोडिसहस्ससंगया तुब्भे । दप्पुद्धरे वि तणमिव परितुलिया सेहरसमेया ॥४५२८।। एक्कक्केण वि चरिएण जस्सच्चब्भुयप्पहावेण । सामन्नो वि हु बुज्झइ कह न तुम जो असामन्नो ? ||४५२९।। अहवा को तुह दोसो ? दोसो अम्हाण एस सव्वो वि । जं जुयइलक्खणेणं सुहासुहं होइ पुरिसस्स' ।।४५३०॥ इय एवमाइबहुविह-पलावसयजायघग्घरसराओ । कह कह वि परियणेणं मए वि संबोहियाओ त्ति ॥४५३१॥ Page #423 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४१४ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ तो ताओ तक्खणे च्चिय नियपरियणसंजुयाओ गयणयले । रुयमाणीओ सकरुणं उप्पई (इ)य गयाओ ( उ ) रणभूमिं ||४५३२ ॥ तो ताण मज्झत्ती पुट्ठो एगो नरो मए सव्वं । 'एयाओ काओ ? कह वा पडियाओ इहं? कुओ वा वि?' ||४५३३॥ तो तेण मज्झ कहियं 'भज्जाओ इमाओ पवणकेउस्स । सो वेयढे (ड्डे) मोत्तुं इमाओ जलहिं गओ सययं ||४५३४ || सेहरयचुल्लभाउय-नियबलसंमद्दसंजुया दो वि । संगाममहिलसंता सद्धिं किर वीरसेणेण || ४५३५ || पवणो भाउयवइरं अणुस्सरंतो तहाय सेहरओ । चंदसिरीउद्दालणकज्जेण दुवे गया एवं ||४५३६ || जह चंदसिरी लद्धा जलहितले वीरसेणकुमरेण । पवणेण तं तह च्चिय विज्जास (सा) मत्थओ नायं ||४५३७ ॥ एवं न कोइ ताणं कहइ सरूवं गयाणमइदूरं । तो अवसेरिवसेणं एयाओ तहिं पि चलियाओ ||४५३८ ।। एत्थागयाण एहि निय (यु) त्तविज्जाहरेहिं परिकहियं । जह पवणकेउराया वियारिओ वीरसेणेण ।। ४५३९ ।। तो निसुयमित्तमुच्छासंछन्न असेसइंदिय-मणाओ । पडियाओ एत्थ नरवर ! इय कहियं तुज्झ संक्खित्तं ॥ ४५४०|| कहिऊण इमं खयरो तिरोहिओ तक्खणेण गयणयले । अम्हे वि समं दोन्नि वि सेज्जाहरयं पविट्ठाई ||४५४१ || एत्थंतरंमि सूरे समुग्गए विहियगोसकरणीओ । अथा (त्था ) णे उवविट्ठो निसिवइयरमणुसरंतो हं ||४५४२ || Page #424 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ तत्थ ठिओ खणमेत्तं वसुहाहिवसिरकिरीडकोणेहिं । सेवापणामसमए मसिणीकयपायवीढो हं ।।४५४३।। अत्थाणमंडवाओ तह संठियसयलजणसमूहाओ । घेत्तुं मंतिं हत्थे सेज्जाहरयं पविठ्ठो म्हि ॥४५४४।। तो एसा इह देवी एस तुमं मंतिमंडलपहाणो । मह कहह एत्थ काले किं जुत्तं होइ करणीयं ? ॥४५४५॥ ता जाव सो न सत्तू मह उवरिं एइ ता अहं तस्स । दप्पुद्धरस्स सीसे खग्गं भंजामि गंतूण ।।४५४६।। सो मह तहा न सत्तू होइ जहा निच्छियं विचित्तजसो । जो मह भिच्चो होउं एवंविहदुन्नए कुणइ ।।४५४७।। सत्तुंमि वि मित्तत्तं मित्ते सत्तुत्तणं च जो कुणइ । सो निच्छयएण(निच्छएण)नाओ पच्छन्नरिऊ निहंतव्यो ।।४५४८।। ता एस मज्झ मंतो संपइ तुब्भे वि भणह हिययगयं' । इय भणिए नरवइणा विमलव(म)ई भणिउमाढत्तो ।।४५४९।। 'तुह देव ! पयावानल-पलीवियाणंतमहिहरुग्घाया । दीसंति तणमसीहिं व सामलिया नियअकित्तीहिं ।।४५५०।। केसिं न नरिंद ! तए अहिमाणधणाण ठाविओ उवरिं । सत्तूण पणामावसरेसु सिरेसु नियचरणो ।।४५५१॥ तो देव ! तुह परक्कम-पयावसरिसो असेसभुयणे वि । जइ वि न सत्तू तह वि हु सुबुद्धिजुत्तेहिं होयव्वं ।।४५५२।। आवइसमुद्दपडिओ उत्तरइ नरो सुबुद्धिनावाए । बुद्धिविहीणस्स पुणो गोपयमवि सायरो होइ ।।४५५३।। Page #425 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४१६ तो देव ! वीरसेणो परक्कमी बुद्धि- दैवसंपन्नो । वेयोभयसेढीखयरिंदसहायसंजुत्तो ॥ ४५५४ ॥ वस्सिंदिओ अवसणी सुयणो चाई कयन्नुओ वीरो । माइगुणसमेओ विग्गहणिज्जो न सो सत्तू ||४५५५ || समविक्कम-सेन्नसहायसंजुए होइ विग्गहो जुत्तो । अहिए रिउंमि नरवर ! संधाणमवस्स कायव्वं' ||४५५६ | सोऊण मंतिवयणं नरसीहो रोसतंबिरनिडालो । साहिखेवं वयणं विमलमई भणिउमाढत्तो ॥ ४५५७ ।। 'नियजाइपच्चएणं पायं बुद्धीओ होंति पुरिसस्स । अहमुत्तिम-मज्झाणं तव्विहयियाणुसारेण ॥। ४५५८ ।। जे तंमि वीरसेणे नियमइपरिकप्पिया गुणा तुमए । मह असिकसवट्टो च्चिय ताण परिक्खं रणे काही ||४५५९॥ विमलमइ ! तुह मईए अम्हे सरिसा वि तेण न भवामो । अम्हाण व अहियगुणो वियप्पिओ सो तए - सत्तू ||४५६० ॥ तेणेव कारणेणं तेण समं समहियप्पहावेण । सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ सव्वारंभेण मए कायव्वो विग्गहो अवस्सं (विग्गहोऽवस्सं ) ||४५६१।। लज्जावहो जओ वि हु हीणे सरिसे व्व होइ सत्तुंमि । छज्जइ पराजयो विहु भुवणब्भहियंमि पुण तंमि' ||४५६२ || इय भणिऊणं राया समुट्ठिओ रोसवसफुरंतोट्टो | अत्थाणे ठाऊणं आइसइ असेससामंते ||४५६३॥ 'रे सामंता ! तुरियं पउणा होऊण अज्ज पुरिबाहिं । नियगुडुराई घेल्लह न विलंबो एत्थ कायव्वो ||४५६४।। Page #426 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४१७ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ रे रे ! अमच्च ! तुरियं मह सेन्नं तुरय-करि-रहाई य । जं संगामसमत्थं संजत्तसु तं खणद्धेण ।।४५६५।। गंतूण वि जो पुरओ दइयं गेहं सुयं च संभरिही । सो एत्थेव विलंबउ जो सुहडो सो समं जाओ(उ) ॥४५६६।। वेगेण दक्षिणावह-विसए नासिकसंमुहं चलह । सविचित्तजसं समरे निहणिस्सं वीरसेणरिउं ॥४५६७॥ तो आएसाणंतर-मणंतजणहिययखोहणो सहसा । पत्थाणाहयभेरवभेरिरवो अह समुच्छलिओ ॥४५६८।। नीहरइ तुरय-रह-करि-पाइक्ककंतसयलपुरिमग्गं । सेन्नं सन्नाहुब्भडबहुसुभडसहस्ससंकिन्नं ॥४५६९।। मंडलिया रायाणो सामंता मंतिणो अमच्चा य । नरवइलद्धाएसा तुरियं नयरीओ नीणंति ॥४५७०॥ एत्थंतरंमि अहयं नरसीहनरिंदगमणपारंभं । नाऊण खणद्धेणं संपत्तो एत्थ नरनाह ! ॥४५७१।। आगंतूण य सव्वं जं जह दिटुं सुयं च तं सव्वं । एगते नीसेसं परिकहियं वीरसेणस्स ॥४५७२।। परिभाविऊण हियए भणिओ हं राइणा 'अरे ! सुणसु । मह कारणेण सव्वो आढत्तो विग्गहो तेण ॥४५७३।। एत्थागएण तेणं उवद्दवो होइ अम्ह देसस्स । परचक्कभउब्भंतो लोओ वि हु दुत्थिओ होइ ॥४५७४।। होइ महारायस्स वि गरुयाहिणिवेसदुत्थियं हिययं । सेणासामग्गीए धणक्खओ होइ अइगरुओ ।।४५७५॥ Page #427 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४१८ . सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ मिलियंमि उभयसेन्ने संजायइ विविहसत्तसंहारो । तो मह सज्झे कज्जे किमित्तिएण प्पयासेण ? ॥४५७६।। अहमेव य एक्कंगो गंतूणं तस्स दुट्टनरवइणो । भुयदंडसमरकंडु अवणेमि किमेत्थ बहुएण ?' ||४५७७॥ इय मंतिऊण कुमरो मए समं जायविक्कमुक्चरिसो । सेज्जाए सुहनिसन्नं च्छ(छ)डेउं चंदसिरिदेविं ॥४५७८ ।। उप्पइओ खग्गकरो मह विज्जाबलपयट्टनहगमणो । वच्चई अवलोयंतो गयणयलं तारयाइन्नं ।।४५७९।। जा तत्थ देव ! अम्हे वच्चामो दो वि नहयले तुरियं । ता अच्छरियं जं किर रांजायं तं निसामेहि ।।४५८०॥ कुमरविणोयनिमित्तं पारद्धकहापरव्वसमणो हं । वीसरिऊण गओ किर अंगइयाजिणहरस्सुवरि ॥४५८१।। तो भट्टगयणगामिणिविज्जो सहस त्ति सह कुमरेण । पडिओ चेइयमंदिरदुवारदेसे विलक्खमणो ॥४५८२ ।। एत्थंतरंमि भणिओ कुमरेणाहं किमागया चंपं ? । जं विविहहट्टमंदिरनिरंतरं दीसए नयरं ?' ||४५८३॥ भणियं मए न चंपं अंगइयानगरमागया देव ! । जिणभवणलंघणेणं विज्जाभट्ठो अहं पडिओ ।।४५८४।। एयं नरिंद ! पुरओ जिणभवणं जत्थ रयणपडिमाओ । चिटुंति तिलोयस्स वि पुज्जाओ महप्पभावाओ ।।४५८५।। पढमं बंभेण तओ सकेण तओ दसाणणेणाऽवि । तम्हा पुण रामेणं इह देव ! पय(इ)ट्ठियाओ त्ति' ।।४५८६।। Page #428 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ तो भाइ वीरसेणो एवंविहजिणवरिंदपडिमाण । अभिवंदणेण होही विज्जाब्भंसो वि उवयारी ।।४५८७।। पुण जिणवरिंददंसण संपूयण - वंदनाहिहयपावा । आसाइयपुन्नुदया वच्चिस्सामो सुहं गयणे' ।।४५८८ ।। ' एवं ' ति पभणिऊणं दो वि पविट्ठा जिणिंदभवणंमि । कयकालोइयपूयाकम्मा य थुणंति जिणनाहं ॥। ४५८९ ।। “जय सयलभुयणभूसण ! जय जय परमत्थबंधव ! जिणिंद ! । जय सव्वसत्तकरुणानिज्झरणपवाहगिरिराय ! ||४५९० | जय निव्वाणपुरेसर ! जय जय दुक्कम्मवणमहादाव ! । जय भवपंजरभंजण ! जय वम्महवाहिवरवेज्ज ! ।।४५९१ । जय अंतरंगगुरुबल - जलहिमहामहणमंदरगिरिंद! | जय गुरुदुरियमहागिरिविदलणदंभोलि ! जिणनाह ! ।।४५९२ ।। जय नाणाविहकुसु ( स ) मयपयंगपरिपडणभासुरपईव ! । जय जय पवित्तदंसणजलखालियपावपंकोह ! | ||४५९३ ॥ इय जिणवंदणपसरिय- हरिसवसुव्वूढबहलरोमंचो । पणमइ भूमिनिवेसियसिर-जाणु-करो जिनिंदाण ।। ४५९४ ।। तो कुमरो मे सद्धिं बाहिं नीहरइ देवभवणस्स । पेच्छइ समीवसंठियमुज्जाणं विविहतरुगहणं ।। ४५९५ ।। अह देव ! दक्खिणावरभाए उज्जाणफासुयधराए । दिट्ठो झाणारूढो कुमरेण महामुणी एगो । ।। ४५९६ ।। दट्ठूण मुणिवरं तं दुक्करतवचरणसोसियसरीरं । सुविसुद्ध ज्झवसाओ संपत्तो तस्स पासंमि ।।४५९७ ।। ४१९ Page #429 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२० सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ तो परमब्भ(भ)त्तिनिब्भर-हिययब्भंतरफुरंतसंतोसो । पयडियगुणाणुराओ पणमइ वीरो मुणिवरिंद ।।४५९८।। मुणिणा वि ज्झा(झा)णजोगं मोत्तूणं सायरेण वयणेण । दिन्नो ब्भ(भ)वदुक्खहरो सुधम्मलाहो कुमारस्स ।।४५९९।। उवविसइ नाइदूरे विहियाणुमई मुणिंदचंदेण । मुणिचरणकमलफंसणमहग्धवसुहातले कुमरो ॥४६००।। तो भणइ वीरसेणो ‘भयवं ! वेरग्गकारणं गरुयं । किं पि तुह तेण नियतणुनिरवेक्खो चरसि तवचरणं ॥४६०१।। कारणरहियं कज्जं सिज्झइ न कयाइ एस जणवाओ । कज्ज नणु कम्मखओ तस्स य किर कारणं देहो' ॥४६०२॥ तो भणइ मुणी 'सावय ! सच्चमिणं किंतु पेच्छ अच्छरियं । एगं पि कारणमिणं कज्जाइं(इ) य दोन्नि साहेइ ॥४६०३।। एगो वि एस काओ होइ निमित्तं सुहस्स असुहस्स । सुहमेव संजयप्पा असंजयप्पा दुहं जणइ ॥४६०४।। एयसरीरेणं चिय एस(य) सरीरस्स कारणे मणुया । निच्चाई अणिच्चस्स वि पावाइं कुणंति पावमई ॥४६०५॥ बहुसागरोवमंतं खणलवमणसोक्खकंक्खुओ जीवो । अज्जिणइ पावपडलं देहस्स कए असारस्स ॥४६०६।। ससरीरपोसणत्थं पहरइ बहुयाण परसरीराण । हा हा ! खणसुहकज्जे अप्पाणं ठवइ दुक्खंमि ॥४६०७।। एक्वंमि हए जीवे मेरुसमो होइ पावपब्भारो । कह पुण अणंतजीवे हंतूणं तस्सं निव्वाहो ? ||४६०८॥ ' Page #430 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ ४२१ एवं असारनियकायकारणे जे कुणंति परपीडं । ते होंति महानरए नेरइयाऽणंतवाराओ ।।४६०९।। भासंति असच्चं पि हु परावयारं नराहमा वयणं । इह परलोयविरुद्धं एयस्य कए सरीरस्स ।।४६१०।। पुव्वमसेवियधम्मा दारिद्दोवद्दया इह भवम्मि । सद्दाइविसयलुद्धा हरंति परसंतियधणाइं ॥४६११॥ 'सुहसंतुट्ठमणो हं अच्छिस्सं परधणाइं घेत्तूण' । इय चिंतंतो चोरो घेप्पइ आरक्खियनरेहिं ॥४६१२।। पावइ इहलोए च्चिय चोरो नाणाविहाई दुक्खाइं । परलोये पुण नरओ करट्ठिओ तस्स न हु भंती ॥४६१३।। जे परजुयइपसंगं ससरीरसुहत्थिणोऽणुसेवंति । भखंति कालकूडं ते मंदा अमयबुद्धीए ।।४६१४।। दड्डसरीरस्स कए गेण्हंति परिग्गहंअपरिमाणं । कम्मगुरू उवला इव पडंति नरयंधकूवेसु ।।४६१५॥ इय एवमाइबहुविहपावट्ठाणेहिं पावमज्जिणइ । तेण सरीरं सावय ! हेऊ पावस्स इय भणियं ॥४६१६।। दड्डसरीरस्स कए जेत्तियमेत्तं नरा किलिस्संति । लक्खसेण वि धम्मे जयंति ता किन्न पज्जत्तं ? ॥४६१७।। इय चउगइसंसारे चउरासीजोणिलक्खविसमंमि । पत्ताई सरीराइं अणंतसो पावजणयाणि ॥४६१८।। लद्धेहिं अइबहूहिं वि पावसरीरेहिं को गुणो तेहिं ? १. ४६११ गाथाया द्वितीयचरणं ला. प्रतितः; आदर्श तत् खण्डितम् ।। २. ४६१५ गाथाया 'गेण्हंति' पर्यन्तः अंशः आदर्श खण्डितः, ला. प्रतौ च दृश्यते ।। Page #431 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२२ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ तं भवकोडिदुलंभं जं नवरं जिणमयाणुगयं ॥४६१९।। तं तुडिवसेण लद्धं सम्मना(ना)णेण नायभवभावं । कम्मक्खए समत्थं तवोविहाणे निउंजामि ।।४६२०।। सचराचरे वि भुयणे नत्थि असझं तवस्स चित्तस्स । नियदेहनिरावेक्खो तेण तवं काउमारद्धो ।।४६२१॥ जं पुण भणियं तुमए 'भयवं ! वेरग्गकारणं गरुयं' । तं सावहाणहियओ आयन्नसु सावय ! कहेमि ।।४६२२।। इह जं जं चिय दीसइ रागनिमित्तं सरागपुरिसाण । तं तं चिय नीसेसं वेरग्गकरं विवेईण ।।४६२३।। जह नरयगया भावा चिंतिज्जंता जणंति उव्वेयं । तह दुक्खरूवयाए जाणसु संसारभावा वि ।।४६२४।। तय-मूल-पत्त-पल्लव-पुप्फ-फलाईणि निंबरुक्खस्स । विरसाइं तहा जाणसु संसारसुहाइं परिणामे ।।४६२५।। वस-मस-रुहिर-फोफस-तयट्टि-विड-मुत्त-अंतबीभच्छं । जह य सरीरमसारं तह जाणसु भवसरूवं पि ॥४६२६।। नियचित्तवियप्पेणं मुणंति जह सुंदरं मह सरीरं । संसारे सारत्तं तह होइ वियप्पसंजणियं ।।४६२७।। परमत्थसुहविहीणे नियमइपरियप्पणाकयसुहंमि । परमत्थपंडियाणं संसारे होइ निव्वेओ ।।४६२८।। सो जइ वि विविहनिव्वेयकरणकारणसहस्ससंकिन्नो । तह वि न मूढमईणं निव्वेयं जणइ अनिमित्तो ॥४६२९।। ता सावय ! मह जायं निमित्तमेत्तं तयं पि निसुणेहि । . अइसयपसंतचित्तो सि तेण साहिज्जई तुज्झ ॥४६३०।। Page #432 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ इह अत्थि भरहवासे नयरी वाणारसि त्ति नामेण । नीसेसनयरगुणगणविहूसिया परमरम्मा य ॥४६३१॥ तत्थऽत्थि चंदगुत्तो त्ति नाम राया पवड्डियपयावो । नामेण चंदसेणा तस्सऽत्थि मणोहरा भज्जा ॥४६३२।। तस्सऽत्थि परमपुज्जो पुरोहिओ नाम चंडसम्मो त्ति । भज्जा से सोमसिरी ताण अहं संगमो पुत्तो ||४६३३।। परिचत्तबालभावो अणुवमसंपत्तजोव्वणो तत्थ । नीसेसकलाकुसलो जुवईण मणोहरो जाओ ।।४६३४।। परिणाविओ य पिउणा विमलमई नाम सुंदरं कन्नं । . तीए सह विसयसोक्खं भुंजतो तत्थ चिट्ठामि ।।४६३५।। नियकम्मपरिणईए किलिट्ठचित्तो अईव कूरप्पा । बहुपाणिघायणरओ संजाओ पयइनिकरुणो ॥४६३६॥ मारेमि अणंतेऽहं घरमूसय-मसय-मंकुणाईए । उंदुर-सप्पवहत्थं पोसेमि विराल-नउले वि ॥४६३७।। अह मज्झ पिया कालक्कमेण मरिऊण कम्मवसवत्ती । तत्थेव निए गेहे जाओ कोलुंदुरत्तेण ।।४६३८॥ भत्तारमणुसरंती पविसइ जलणंमि मज्झ जणणी वि । मरिउं नियगेहे च्चिय मज्जारित्तेण उववन्ना ।।४६३९॥ ताणं च उवरयाणं वेयविहाणेण विविहरूवाइं । उद्धदेहाइयाई मए वि विहियाई कम्माइं ॥४६४०।। तो उवरयंमि जएण(जणए) अहमेव पुरओहिओ(पुरोहिओ) परिद्वविओ। नरवइणा लोएण य पिउपडिवत्तीए(इ) दिट्ठो म्हि ॥४६४१॥ Page #433 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२४ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ जा विमलमई नामा मह भज्जा सा वि साविया जाया । सेज्झयसावयभज्जाजिणमइसंगेण दिढचित्ता ॥४६४२।। सा पाणिवहपयट्ट मं दटुं सकरुणा निवारेइ । 'पिय ! मा मारसु जीवे नरयफलो जेण पाणिवहो' ॥४६४३।। तोऽहं तिस्सा वयणं अवगन्नंतो हणेमि बहुजीवे । सा वि य अविसंतमणा मं वारइ कूरकम्माओ ॥४६४४॥ कोलुदुरो वि गेहे पाडइ विवराई खाइ वत्थाई । निब्भरपासुत्ताणं चरणतले करडइ अलक्खो ||४६४५।। अह अन्नया पहाए कयसंझावंदणो गमिस्सामि । किर राउलं पविट्ठो चोडयवत्थाई पहिरेउं ।।४६४६॥ जा कड्डिऊण वत्थं निएमि परिहेमि ता असेसं पि । कोलुंदुरेण खद्धं खंडाखंडीकरेऊण ॥४६४७॥ जह निवसणं तहेव य उवरिलं चोडओ वि तह चेव । तिलमित्तं पि न ठाणं तस्सऽत्थि न जत्थ तं खद्धं ॥४६४८।। जा जोएमि सरोसो ता हं नियचोडयस्स गुज्झंमि । पेच्छामि उंदुरं तं निब्भरनिदाए पासुत्तं ।४६४९।। तो तं तत्थ पसुत्तं पच्छिमचरणेहिं रज्जुपासेण । कड्डेमि बंधिऊणं दड त्ति धरणीए घेल्लेमि ।।४६५०॥ तो जणणीमज्जारिं रज्जुनिबद्धं च दाहिणकरेण । वामेण जणयकोलं घेत्तूणं जाव ढोएमि ॥४६५१॥ ता उंदुरो सरोसो वयणग्गविणिग्गयाहिं दाढाहिं । डसिऊणं मज्जारिं तिस्सा खंधं समारूढो ||४६५२।। Page #434 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ गहिया खंधपएसे अंतोपक्खित्तदंतनिवहेण । तो कड्डिऊण रज्जुं मए पुणो सो पुरो खित्तो ||४६५३ || मज्जारीए (इ) सकोवं करालदाढापसारियमुहीए । उंदुरमुहुं (हं) पि समुहे व ( प ) क्खित्तं कुल्लगल्लाए ||४६५४ || कोलुंदुरेण तेण वि मज्जारीमुहपविट्ठवयणेण । दोखंडिया खणेणं तीए जिब्भा सदाढाहिं ।।४६५५|| इय ताइं दो वि समयं अन्नोनं कोहपत्तमरणाई । मरिऊण पुणो सगिहे जाओ कोलुंदुरो नउलो ।।४६५६ ।। मज्जारी पुण सप्पो पुव्वज्जियदुकयकम्मवसगाई । परिपुठ्ठसरीराई जायाइं कमेण जुगवं पि ॥४६५७|| अह अन्नया स सप्पो परिब्भमंतो मए सगेहंमि । दिट्ठो ससंभ्रमेणं पुण तुरियं आणिओ नउलो ||४६५८ || तो जणणीसप्पुवरिं मए विमुको सजणयनउलो जा । ता धाविया तुरंती विमलमई सकरुणालावा ।। ४६५९ ।। नियजणयचंडसम्मं सोमसिरिं मायरं च मारेसि । जइ एयाणन्नोन्नं संघट्टं कुणसि तिरियाण ||४६६० || तो नउल-भुयंगाणं नियघरसुय - सुण्हदंसणवसेण । जायं जाईसरणं सनामसवणेण य फुडत्थं ॥ ४६६१ ॥ जाओ ताण वियप्पो 'एयं तं मह घरं, इमो पुत्तो । एसा सुहा संपइ अम्हं पुण एरिसावत्था' ||४६६२ || एत्यंतरंमि भणिओ विमलमईए अहं सखेयाए । 'को नाह ! तुज्झ दोसो ? दोसु क्खु पुराणकम्मस्स ||४६६३ ॥ ४२५ Page #435 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२६ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ जं निग्घिणाण कम्मं मेच्छाण तए तयं समाढत्तं । विप्पेण वि किं एसा गोत्तष्ठि(ठि)ई तुम्ह मण्णामि ? ॥४६६४।। जं ववहारविरुद्धं धम्मविरुद्धं च जणविरुद्धं च । तं मरणे वि न वीरा कुणंति जं अजसहेउं च ।।४६६५।। अप्पं बहुं च कज्जं आरंभंतेण एत्थ पुरिसेण । परिभावणीयमेवं किं फलमेयस्स परिणामे ? ||४६६६।। जं जणइ सया सोक्खं जं च न दुक्खं करेइ परिणामे । तं कज्जं कायव्वं विवेइणा उभयलोगहियं ॥४६६७।। जं पुण खणसोक्खकरं परिणामे होइ दुक्खसंजणयं । तं बुद्धिमया कज्जं परिहरियव्वं पयत्तेण ।।४६६८।। तुह पाणिवहो सुंदर ! कीलाहेउ त्ति दिन्नखणसोक्खो । परिणामो(मे) एसो च्चिय नरयफलो होही(होहिइ) अवस्सं ।।४६६९।। दुक्खतरुमूलमेसो पाणिवहो होइ सव्वसत्ताण । नरयपहसत्थवाहो सुर-सिवपुरज्झं(झं)पणकवाडो ।।४६७०।। वसणसयरायहाणी धम्ममहाकप्परुक्खपरसु व्व ।। सम्मन्नाणपईवुण्हावणपवणो व्व पाणिवहो ।।४६७१।। निहणइ मणपणिहाणं रोद्दज्झाणं च कुणइ हिययंमि । जणइ अमेत्तीभावं बहुभववैराई संचिणइ ।।४६७२।। जो निहणिज्जइ जीवो सो अन्नभवंमि घायगं हणइ । अवरोप्परं हणंता वेरं वटुंति इह जीवा ।।४६७३।। बहुवरिससहस्ससमज्जियं पि अइदुक्करं तवच्चरणं । एगंमि हए जीवे सव्वं पि निरत्थयं होइ ॥४६७४।। Page #436 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२७ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ जो भुयणं पि असेसं अत्थपयाणेण कुणइ अदरिदं । तस्स वि य दाणधम्मो अकयत्थो होइ हिंसाए ।।४६७५।। इह होइ न अत्थखओ सरीरपीडा वि कोइ इह नत्थि । किन्न मुहाए(इ) विढप्पइ दयाए(इ) बहुपुन्नपब्भारो ? ||४६७६॥ सव्वेसिं सत्ताणं सव्वभयाणं महाभयं मरणं । मह तुह अन्नेसि पि य पच्चक्खो एस दिटुंतो ॥४६७७।। कणयगिरिं दिज्जंतं रज्जं वा विविहमंडलाणुगयं । मारिज्जंतो सव्वं चइऊणं जीवियं महइ' ।।४६७८।। इय एवमाइ सव्वं विमलमईधम्मदेसणावयणं । ... सोऊण सप्प-नउला संविग्गा तक्खणच्चेय ।।४६७९।। निंदंति पुव्वजम्मं बहुं च मन्नंति विमलमई(इ)वयणं । परिहरियवेरभावा पसंतरूवा दुवे जाया ।।४६८०।। सुमरंति विप्पजम्मं उंदुर-मज्जारिजम्ममइनीयं । निंदंति भवसहावं कम्माण वि दारुणविवागं ।।४६८१।। 'हा हा ! अन्नाणंधा असमंजसचेट्ठियं ववहरंति । निवडंति जेण घोरे दुहावहे भवसमुदंमि ।।४६८२।। जो विप्पभवे विहिओ विविहकुसत्थोवएसओ धम्मो । तं मन्ने गरलं पि व पीयं पीऊसबुद्धीए' ॥४६८३॥ इय ते पसंतचित्ता परिवज्जियपयइवेरवावारा । नियमणसंकप्पेणं अणसणभावं पवज्जति ॥४६८४।। तो तं दइयावयणं अवहीरंतेण पावकम्मेण । मुक्को मए सरोसं नउलो उवरिं भुयंगस्स ।।४६८५।। Page #437 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२८ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ तो नउलो सप्पो वि य दो वि समं जायपरमपरिओसा । अन्नोन्नसमालिंगणसुहमउलियलोयणा जाया ।।४६८६।। जाव न ते अन्नोन्नं जुज्झंति पसन्नमाणसा दो वि । ता मुसलपहारेणं हया मए पावकम्मेण ॥४६८७।। तो 'वारंतीए मए निहया ते' इय पयट्टरोसाए । सव्वो गिहवावारो परिचत्तो विमलमइए वि ।।४६८८॥ गंतूण वासभवणं रोसारुणलोयणा फुरंतोट्ठी । सेज्जाए सुहनिसन्ना जा अच्छइ ता अहं पत्तो ।।४६८९।। सप्पणयं साणुणयं समहुरमुवसामिया मए दइया ।। सा भणइ 'तुज्झ पिययम ! हिओवएसो मए दिन्नो ॥४६९०।। जो जह बंधइ कम्मं सो तहरूवं फलं पि पावेइ । अन्नेण विसे भुत्ते न हु अन्नो मरइ कइया वि ।।४६९१।। जं तुह रोयइ तं कुणसु नाह ! परमेत्तियं वियाणेमि । वच्चिह(हि)सि फुडं नरए घोरे कंदुज्जयपहेण' ॥४६९२।। इय एवमाइ बहुयं जपंती तत्थ वासभवणंमि । तद्दियसमेव ण्हाया उवभुत्ता तक्खण च्चेय ।।४६९३।। तो तव्वेलुवभुत्ताए तीए कुच्छीए सप्प-नउला ते । जमलगसुयभावेणं उववन्ना दो वि समकालं ॥४६९४।। सुण्हाकहियअहिंसाधम्मं हिययंमि सद्दहता ते । विहियाणसणफलेण सुमाणुसत्तंमि उववन्ना ॥४६९५।। धी ! संसारसहावो पुत्तो जेसि पि जणणि-जणयाण । सो च्चेय ताण जणओ जणणी सुण्हा य संभवइ ।।४६९६।। : Page #438 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२९ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ तो विमलमई समहियनवमासाणंतरं सुहमुहुत्ते । संपुन्नदेहसोहा सुयाण जुयलं पसूया सा ॥४६९७।। जणएण सत्तिसरिसं वद्धावयणं कयं पहिडेण । बारसमेऽइक्वंते नामाई कयाई दोहिं(ग्रह)पि ॥४६९८।। सिरधरनामो पढमो बीओ गंगाधरो त्ति नामेण । वटुंताऽणुक्कमसो कुमारभावं च ते पत्ता ॥४६९९।। कयवयबंधा जाया पढमासमबंभचारिणो दो वि । पाढिजं(ज्ज)ति असेसं वेयागमसत्थसंघायं ।।४७००।। तो ताण सुकयकम्मोदएण दुकयकम्मक्खओवसमजोगा । जणणीसंसग्गेण य जिणधम्मरुई समुप्पन्ना ॥४७०१॥ वच्चंति जिणहरेसुं वंदति जिणे गुरू य सेवंति । निसुणंति एगचित्ता जिणधम्मं सिवसुहप्फलयं ।।४७०२।। अहिगयजीवाइपयत्थ-मुणियपरमत्थवित्थरा दो वि । दढसम्मत्ता जाया सुसावया निरइयारा य ।।४७०३॥ पूएंति वीयराए महरिहपूओवगरणदव्वेहिं । सब्भूय[सु]गुणकित्तणरूवाहिं थुईहि य थुणंति ।।४७०४।। सेवंति निप्पिवासे परमागमपंडिए मुणिवरिंदे । सुह(हु)मत्थवियारेसुं निउणा रंजंति गुरुहिययं ।।४७०५।। भावंति भवसरूवं सुमिणय-माइंदजालसमसरिसं । निंदंति महामोहं रागहोसे निसेहंति ॥४७०६।। सेवंति उचियकिच्चं तसंति संसाररक्खसभयाओ । कयदुक्करतवचरणा(णे) मुणिंदचंदे पसंसंति ॥४७०७॥ Page #439 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४३० सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ इय एवं अणवरयं दोन्नि वि ते बंभचारिणो बडुया । कयविविहधम्मकम्मा गीयत्था सावया जाया ॥४७०८।। तो हं तहासरूवे नियपुत्ते पेच्छिऊण मोहंधो । निंदियजहत्थधम्मो अजहत्थकुधम्मकयचित्तो ॥४७०९।। विमलमईए उवरिं सिरिधर-गंगाधराण उयरंमि(उवरिंमि) । मज्झ गुणमच्छरेणं पओसभावो समुप्पन्नो ॥४७१०।। अह अन्नदिणे दोन्नि वि निवारिया जिणहरंमि वच्चंता । भज्जा वि मए भणिया 'तुमए मह नासिया पुत्ता ॥४७११।। भत्तारसमणुचिन्नं मग्गं सेवंति कुलपसूयाओ । तुमए पुण विवरियं(विवरीयं) सव्वं पि हु काउमारद्धं ।।४७१२॥ जे मह पियराणं पि य पच्छा काह(हिं)ति सव्वकिरियाओ । ते मह पुत्ता इण्हि जाया नियधम्मनिरवेक्खा ॥४७१३।। जइ नाम तुमं भत्ता सेवडयाणं हवेसु न भणेमि । कह मज्झ संतई वि य पासंडीणं समप्पेसि ? ||४७१४।। किं जंपिएण बहुणा ? जइ जिणधम्मं चएसि ता चिट्ठ । अह न चयसि ता पावे ! नीहरसु गिहाओ मह तुरियं' ।।४७१५।। इय एवमाइ बहुविहनिब्भच्छणवयणदूमिया संती । निच्छयसारं वयणं विमलमई भणिउमाढत्ता ।।४७१६।। 'इह संसारसमुद्दे जाइ-जरा-मरणदुहसयावत्ते । बहुभवपरिचत्ताणं गिहाण को जाणइ पमाणं ? ॥४७१७।। जीयपरिच्चाएण वि जो चइयव्वो मए न जिणधम्मो । गिहवासमेत्तकज्जे चएमि कह तं अइदुलंभं ॥४७१८।। १. भक्ता ।। २. श्वेतपटानाम् ।। Page #440 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४३१ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ चिंतामणि व्व लद्धं पयडनिहाणं व कप्परुक्खं व । कह परिहरामि तुह तुच्छगेहकज्जेण जिणधम्मं ? ।।४७१९।। एसो न तुज्झ रोसो किं तु पसाओ व्व मह असामन्नो । जं कारायारनिबंधणाओ गेहाओ नीणेसि ।।४७२०।। जो बहुमणोरहेहिं परिहरिउं वंछिओ गिहारंभो । सो पुनपरिणईए अकिलेसेणेव परिचत्तो' ।।४७२१।। इय भणिउं विमलमई ममं च आपुच्छिऊण नीहरिया । बहुरोसेण मए वि य ‘जाहि' त्ति सनिठुरं भणिया ।।४७२२।। गंतूण साहुणीणं सयासमाचि(च)क्खियं नियसरूवं । 'मह देह अज्जियाओ ! पव्वज्जं पावनिम्महणं' ।।४७२३।। तो साहुणीहिं(हि) भणियं ‘भद्दे ! मा होसु किं पि उच्छुक्का । अज्ज वि नो जाणिज्जइ तुह पइणो केरिसं चित्तं ? ।।४७२४।। धम्मनिमित्तो एसो पारंभो तुज्झ साविए ! सो वि । सव्वसमाहाणेणं जह होइ तहा करेयव्वो' ।।४७२५।। तो ते वि मज्झ पुत्ता नियजणणीमग्गमणुसरंता य । मं चइऊण विसं पिव विमलवई(मइ)समीवमणुपत्ता ।।४७२६।। गंतूण तेहिं भणिया जणणी ‘मा अंब ! कुणसु मणखेयं । अणुकूला गलथल्ला अम्हं पुन्नेहिं(हि) संजाया ।।४७२७।। एण्हि जा तुज्झ गई अम्हं विय सा न एत्थ संदेहो । .." उठेहि किं विचिंतसि ? वच्चामो गुरुसमीवंमि ॥४७२८।। अंब ! विलंबो कीरइ पावट्ठाणे न धम्मकज्जंमि । निस्सेयसंकज्जाइं होंति सविग्घाई इह जेण ।।४७२९।। Page #441 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ तो ते जणणिसमेया कम्मखओवसमजायसुहभावा । 'लोयाणंदाई(य)रियं उज्जाणट्ठि(ठि)यं समणुपत्ता ।।४७३०॥ गंतूण भत्तिनिब्भरपणामविलुलंतचूलियग्गेहिं । आणंदपुलयकक्कसतणूहिं अभिवंदिओ सूरी ॥४७३१।। तो सूरिणा वि अणुवमसुहकारणदिन्नधम्मलाहेण । पणमियसाहुसमूहा उवविठ्ठा सुद्धवसुहाए ।।४७३२।। तो तेहिं मुणी भणिओ ‘भयवं ! भुयणोवयारिणो तुज्झ । किं भन्नइ जस्स सया परदुक्खे दुक्खिओ अप्पा ? ।।४७३३।। ता परमदुक्खियाणं करुणायर ! कुण पसायमम्हाणं । नीसेसदुक्खदलणोवायं साहेसु जिणधम्म' ।।४७३४॥ तो गुरुणा बालाणं गंभीरपगब्भभासियं सोउं । अब्भुवगमगहणत्थं जहत्थरूवं इमं भणियं ।।४७३५॥ इह संसारे सुंदर ! बहुदुक्खसहस्सदुत्थियाणं पि । होइ अमेज्झकिमीण व जीवाण न भवभउव्वेवो ।।४७३६।। इह इट्ठविओय-अणिठ्ठजोय-धणहरण-मरणमाईहिं ।। निवि(व्वि)ना वि हु जीवा 'कट्ठो त्ति भवो' इय भणंति ।।४७३७॥ न उणो तदुवसमविहीए विहियपरमायरा पयस॒ति । मक्कडवेरग्गेणं लद्धोवाया वि ज्झि(झि)झंति ।।४७३८।। हा हा ! विसं अणत्थो मरणनिमित्तं अणंतदुहहेउं । एत्तियमेत्तेण न तं सरीरर(?)मियं समुत्तरइ ।।४७३९।। जाव न विसावहारयसुसिद्धमंतोसहीओ दिज्जति । चत्तपमाएहिं न ता ओसरइ विसं सरीराओ ।।४७४०॥ Page #442 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ भवदुक्खविसं पि तहा एमेव न दारुणं ओ(उ)वणमेइ । जाव न दुक्करदिक्खा-तवाइणा ज्झो(झो)सियं कम्मं ।।४७४१॥ जाव न असेससावज्जजोगपरिवज्जणेण संसुद्धो । परिहरियपावपंको निल्लेवो होसि नीसल्लो ॥४७४२ ।। ताव कह बहुभवंतरसमज्जियं किट्ठकम्मसंघायं । भवसयनिबंधमूलं च्छि(छि)ज्जइ एमेव सुहियाए ॥४७४३॥ दुद्धरपंचमहव्वयविसुद्धपरिवालणेण नो जाव । अप्पा आयासिज्जइ न ताव मणवंछिया सिद्धी ॥४७४४।। जा देहनिरावेक्खं नो चिन्नं दुक्करं तवच्चरणं । एमेव लगसगाए न ताव तुह होइ कम्मखओ ॥४७४५।। उप्पायणेसणुग्गम-बाए(य)त्तालीसदोसपरिसुद्धो । जा गहिओ नाहारो ता कह अहिलसियसंसिद्धी ॥४७४६॥ नियविसयपयट्टते दुईते इंदिए न जा दमसि । ता एएहिं तुम चिय दमियदेवो चउगइभवंमि ॥४७४७।। जाव न रागद्दोसे दुनिग्गहे तुह मणमि पसरते । निग्गहसि न ता होही पसमामयसुत्थिओ अप्पा ॥४७४८।। जाव न अदीणचित्तो बावीसपरीसहे तुमं सहसि । अक्खुहियसत्तसज्झं निव्वुइनारिं न ता लहसि ॥४७४९॥ जा सीलंगट्ठारससहस्सभारं सया अविस्संतो । न वहसि पहिठ्ठहियओ ता कह भवपंजरविमोक्खो ? ॥४७५०।। गिरिकंदरकयवसही सुक्कज्झाणग्गिदड्डषणकम्मो ।। जाव न गमेसि कालं न होसि ता खीणमोहो त्ति ॥४७५१।। 29 Page #443 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४३४ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ इय एव मए कहिओ संसारदुहाण उवसमोवाओ । अणुचरसु इमं सुंदर ! जइ सच्चं दुक्खनिम्विन्नो ॥४७५२।। लभ्रूण माणुसत्तं विवेयओ भाविउं भवसहावं । एत्थेव परमजत्तो कायव्वो बुद्धिमंतेहिं ।।४७५३।। सो च्चिय सफलो जम्मो सरीरलाहो वि सो च्चिय कयत्थो । आरोग्गया वि स च्चिय पालिज्जइ जेण पव्वज्जा ।।४७५४।। बहुपावपोसिएण वि देहेण न का वि होइ तुह रक्खा । रक्खइ भीममहाभवनिवडतं नवर पव्वज्जा ॥४७५५।। पिय-माइयाइसयणा कारिमनेहा तहेक्कजम्मा य । एसा भवंतरेसु वि पालइ जणणि व्व पव्वज्जा ॥४७५६।। जह जह विसय-धणाइसु पिय-पुत्त-कलत्त-मित्तमाईसु । अणुरज्जसि एगमणो तह तह निरयंमि निवडेसि ॥४७५७।। जइ पुण निरवेक्खमणो एयाण असारयं विचिंतेउं । परिहरसि ता कमेणं पावसि अजरामरं ठाणं' ।।४७५८।। इय मुणिवयणं सोउं 'तह'त्ति परभाविऊण परमत्थं । दुक्खग्गिणा जलंतं संसारं ते नियच्छंता ।।४७५९।। पुव्वविरत्तमणा वि य समहियसंसारजायवेरग्गा । पाउब्भूव(य)निरंतरपव्वज्जासुद्धपरिणामा ।।४७६०।। खणमेत्तमपारंता विलंबिउं तत्थ ते मुणिवरिंदं । सिररइयकरयं(यलं)जलिबद्धा विन्नविउमारद्धा ||४७६१॥ 'भयवं ! महापसाओ इच्छामो नाह ! तुम्ह अणुसद्धिं । जइ अत्थि जोग्गया णे ता तुरियं देह पव्वज्जं' ॥४७६२।। Page #444 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ तो गुरुणा नाऊणं तहाविहिं(ह) ताण आसयविसुद्धिं । 'मा होउ विलंबेणं एएसिं पत्थुयविघाओ' ||४७६३।। एमाइ चिंतिऊणं भणइ गुरू ‘मा करेह पडिबंधं । उज्जमह सकज्जत्थं एस अहं तुम्ह अणुकूलो' ।।४७६४।। तो तव्वेलं जणणी नियदेहविभूसणोवगरणेण । जिणभवणेसु करावइ विसिट्ठपूयाइसक्कारं ॥४७६५।। तो ताई सुहमुहुत्ते पसत्थविहि-करण-वार-लग्गंमि । पव्वावियाइं गुरुणा विसुज्झमाणेण चित्तेण ||४७६६।। विमलमई अज्जियाए समप्पिया सीलदेविनामाए । इयरे वि मुणिकुमारा चिठ्ठति गुरूण पासंमि ॥४७६७।। अब्भसियसाहुकिरिया अहिगयनीसेससुत्तसारत्था । विविहतवसुसियदेहा अट्ठमयट्ठाणपरिहीणा ।४७६८।। ते थोयदिणेहिं चिय संजाया उत्तरोत्तरगुणड्डा । परलोयसुत्थियमणा विहरंति गुरूहिं(हि) सह वसुहं ।।४७६९।। तो ताण अहं सावय ! गुरुसन्निहिगमणमाई(इ)वुत्तंतं । पव्वज्जापज्जंतं जाणंतो लोयवयणेहिं ॥४७७०।। सिढिलियनेहाबंधो उवेक्खमाणो मणेण चिट्ठामि । पव्वइयाई ति तओ सोऊणं सुत्थिओ जाओ ।।४७७१।। तो हं नियसयणेहिं अन्नं परिणाविओ कुलपसूयं । वररूय-जोव्वणड्ढे कंतिमई नाम दियकन्नं ।।४७७२।। सह तीए परमहिठ्ठो पीणथणकलसकंठकयबाहू । . रइसायरे निबुड्डो गयं पि कालं न याणामि ॥४७७३।। Page #445 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४३६ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ अह चंदगुत्तराया अन्नदिणे आसवाहणिनिमित्तं । बहुबलसंमद्देणं निग्गच्छइ तुरयमारूढो ॥४७७४।। दोपासवरविलासिणिकरचालियचमरचारुउभयंसो । सिरधरियधवलछत्तो मणिकुंडलणिद्ध(?)गंडयलो ॥४७७५।। आमलयथूलमोत्तियमोत्तावलिकलियवियडवच्छयलो । रूवेण अणण्णसमो पच्चक्खो मयरकेउ व्व ।।४७७६।। अवइन्नो रायपहं पासायतलट्ठि(ठि)याए सो दिट्ठो । कंतिमईए नरिंदो रईए कामो व्व ससिणेहं ।।४७७७।। तो चंदउत्तदसणसेउल्लगलंतघुसिणसोणंगा । अणुरायसायरंमि व निबुडा(निब्बुड्डा) तक्खणं बाला ||४७७८।। तो मसिणमंदमउलियकन्नंतनिहित्तनयणबाणेहिं । पच्चक्खहिययचोरो त्ति तीए विद्धो महाराओ ।।४७७९।। नरनाहेण वि कहमवि थिरधरियतुरंगमेण सा दिट्ठा । सोहग्ग-रूव-जोव्वण-लावन्नक्खित्तहियएण ॥४७८०।। अन्नोन्नं पेसियदिट्ठिदूइवावारनायहियएहिं । जणपच्चक्खं दूरठ्ठिएहिं कज्जं विणिच्छइयं ॥४७८१।। पत्तो य वाहियालिं सरीरमेत्तेण नरवई तत्थ । परियणउवरोहेणं वाहइ सो जच्चवोल्लाहे ॥४७८२॥ उचियसमएण राया समागओ वाहियालिभूमीए । सयलविसज्जियलोओ वासगिहं अह पविट्ठो य ॥४७८३॥ तं चेय विचिंतंतो थक्कइ सयणंमि ‘कोमलसरीरं । कमलदलदीहरच्छि कंतिमईकमलमुहसोहं ॥४७८४।। Page #446 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४३७ . सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ कह वामकरायड्डियकेसकलावं च चिबुयमुन्नमियं । . दरमउलियच्छिवत्तं चुबिस्सं तीए मुहकमलं ? ।।४७८५।। उभयभुयापरिरंभणथूलथणरुद्धवियडवच्छयलो । आलिंगिस्सामि कहं तीए तणुं कुसुमसुकुमारं ? ||४७८६।। तीए सह सरससिंजियमणिरवुल्लसियबिउणरइपसरो । कह भोए भुंजिस्सं करघायविवड्डिउच्छाहो ?' ।।४७८७॥ इय कंतिमइसंभोगविसयसंकप्पपरव्वसो राया । दिट्ठो पहिट्ठमणसा विडेण रइकेलिणा भणिओ ॥४७८८।। 'किं देव ! मुहा खिज्जसि निकुज्जं एत्तिए व कज्जंमि ? । तुह दिट्ठिमुणियभावेण तं मए साहियं कज्जं' ॥४७८९॥ सिद्धं कज्जं ति सुए तिहुयणरज्जाहिसेयहिट्ठो व्व । आपुच्छइ रइकेलिं नीसेसं तीए वुत्तं ।।४७९०।। रइकेली भणइ 'नरिंद ! निसुणसु तुह आसवाहणिगयस्स । तव्वेलं चिय तिस्सा घरं गओऽहं कयपवंचो ।।४७९१।। दिट्ठा विनडिज्जंती तुह निब्भरनेहगुरुगहेणं व । सा सुन्हापरिसोसियअहरोठ्ठा किं पि चिंतंती ॥४७९२।। तो एगंते तिस्सा कहियं सव्वं नरिंद ! तीए वि । नीसेसं पडिवन्नं तुहाणुराएकचित्ताए' ।।४७९३।। तो नरवइणा भणियं 'निसुणसु रइकेलि ! अणुचिओ एसो । नरवालाण विसेसा परजुवइपसंगवावारो ||४७९४।। अइदीहपिहुललोयणतिक्खग्गकडक्खभल्लिजज्जरिए । परिगलियव्व असेसा मह हियए आगमरहस्सा ।।४७९५।। Page #447 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४३८ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ तो मज्झ एस पढमो भवतरुमूलो अकज्जपारंभो । भावियसुविवेयस्स वि ओसरइ खणंपि न मणाओ ।।४७९६।। रइकेलि ! जइ न कहमवि कंतिमईसुरयसंगमो होइ । तो मह होइ निययं अतकिओ पाणसंदेहो ॥४७९७।। ता जह को वि न याणइ तहा तए सव्वमेव कायव्वं । रयणीए वीरचरियागयस्स सव्वं पि य अलक्खं ।।४७९८।। ता जाहि तुमं तिस्सा संकेयं कहसु जेण सा तुरियं । नियनिग्गमणोवायं चिंतइ पइ-परियणअलक्खं' ॥४७९९।। तेण नरनाहवयणं 'तह'त्ति संपाडियं नरवई वि । वरिससहस्सपमाणं दिणसेसं नियइ च्छिकेण (?) ।।४८००। अह सूरो नरवइणो कुचेट्ठियारंभजायखेओ व्व । अत्थैरिसिरग्गाओ घेल्लइ झंपं समुइंमि ।।४८०१।। संझासमयजिणच्चणसुरहिसमुक्खित्तधूववेलासु । जिणमंदिरेसु पसरइ तारो घंट्टाठणक्कारो ।।४८०२।। अत्थैरिवासभवणं गयं पि(गयंमि) सूरे अदिन्नतमपसरा । पसरंति निसि पईवा पडिभवणं जामइल्ल व्व ॥४८०३।। दीसइ चउक्क-चच्चर-तिएसु संगहियसरससिंगारो । तुच्छधणासानडिओ वोडा(?)पन्नंगणानिवहो ।।४८०४।। एवंविहंमि समए राया कयसयलमंगलायारो । अत्थाणे उवविट्ठो अणेयनरनाहसंकिन्नो ॥४८०५।। तत्थ वियड्डमणोहरविणोयसयगमियरयणिपहरेक्को । उट्ठइ अत्थाणाओ विसज्जियासेससामंतो ।।४८०६।। १. अस्तगिरिशिरोऽग्रात् ॥ Page #448 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४३९ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ सेज्जाहरं पविट्ठो पट्ठवइ पसायपादुयाईए । सेज्जाए सुहनिसन्नो भणिओ रइकेलिणा एवं ।।४८०७।। ‘एसो देव ! पओसो ओसारंतो जणस्स संचारं । अणुरत्तसेवओ इव उवट्ठिओ तुज्झ समर.न्नू ।।४८०८।। एसा वि देव ! रयणी जणणि व्व कुचंहियाइं झंपंती । अंधारपडं व तमं वित्थारइ मोहियजणोहं ।।४८०९।। पहरस्सुवरि(रि) नरेसर ! चउनाडीसमयताडिया भेरी । मणवंछियत्थसिद्धिं निविग्धं तुज्झ साहेइ' ।।४८१०॥ इय रइकेलिसमुत्थ(त्थि)यवयणेहिं तुरंतमाणसो राया । दिढवीरगंठिनिवसणनियंबसुनिबद्धअसिधेणू ॥४८११।। सुनिबद्धकेसपासो करालकरवालकलियकरकमलो । हारकयबंभसुत्तो विणिग्गओ वासभवणाओ ।।४८१२।। अविगणियसेज्जवालो दूरं परिहरियदारपडिहारो । भुल्लवियजामइलो नीहरिओ रायभवणाओ ।।४८१३॥ मह भारिया वि धुत्ती भणइ ममं नाह ! अज्ज तइयाए । दठूण अहं गोरिं भुंजिस्सं ता विसज्जेहि ॥४८१४॥ तो सरलसहावेणं विसज्जिया सा मए सह सहीहिं । पूओवगरणसहिया पडिवालइ दारदेसंति ॥४८१५।। तो तत्थ दारदेसे संपत्तो नरवई सरइकेली । . घेत्तूणं कंतिमई नीहरिओ हट्टमग्गेणं ।।४८१६।। अह तुरियपओ राया तीए समं जाइ बाहिरुज्जाणे । रइकेलिणा पयप्पिय-कुसुमत्थरणंमि उवविसइ ।।४८१७।। Page #449 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४० सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ रइकेली वि सखग्गो बहुभत्तिपरो असेसमुज्जाणं । 'मा होही इह दुट्ठो' एवं बुद्धीए परियडइ ।।४८१८।। तह राया कंतिमईवियड्डसंभोयसुहरसासत्तो । संजाओ जह दूरं विम्हरिया इयरनारीओ ॥४८१९।। पहरद्धमच्छिऊणं तीए समं सुरयसुहपगब्भाए । उज्जाणाओ नरिंदो नीहरइ विसइ नयरीए ।।४८२०।। तो तं पवेसिऊणं नियगेहं नरवई सरइकेली । सेज्जाहरंमि पविसइ ओल्लरइ य महरिहत्थुरणे ।।४८२१।। एवं कंतिमईए दढमणुरत्तस्स चंदउत्तस्स । वच्चंति सुहं दियहा निसिद्धसकलत्तवग्गस्स ।।४८२२।। अह कंतिमई पइदिणं अन्नोन्नमिसेहिं तत्थ वच्चंती । नायं मए जहेसा विणट्ठसील व्व पडिहाइ ।।४८२३।। अहवा- अविणिच्छियं न कज्जं हियए वि धरंति धीधणा पुरिसा। तंमि कयनिच्छए वि य पसरंति न ताण वाणीओ ।।४८२४।। ता सव्वहा सयं पि य निउणं नियभारियं परिक्खेमि | तो अन्नया निसाए अहमवि सह तीए(इ) नीहरिओ ||४८२५।। दारुद्देसठिओ हं जाव निरिक्खामि ताव नरनाहो । कंतिमईए सरोसं सो धरिओ अग्गकेसेसु ।।४८२६।। भणियं च एत्तियाए वेलाए समागओ सि किं अज्ज । अन्ननारीए पायं धरिओ सि? विलंबिओ तेण ? ।।४८२७।। समहुर-सललिय-ससिणेह-साणुकूलुत्तरेहिं नरवइणा । आणंदिऊण नीया पुणो वि तं बाहिरुज्जाणं ॥४८२८॥ Page #450 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४१ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ तो नरवइ त्ति एयं न सम्ममुवलक्खियं मए तत्थ । 'परपुरिसंमि पसत्ता' एसो पुण निच्छओ जाओ ||४८२९।। तो जायनिच्छओ हं वलिओ नियमंदिरं पविट्ठो मि(म्हि) । नाणाविहे वियप्पे चिंतंतो तत्थ चे(चि)छामि ||४८३०।। ‘एसा मह पाणपिया सफलो जम्मो इमीए लाहेण । मन्नामि अप्पणो हं चइउं न तरेमि ता एयं ॥४८३१।। सामोवक्कमवयणेहिं किं पि जं होइ तं भणिस्सामि । दंडेणं पुण एसा लज्जं च भयं च परिहरिही ॥४८३२।। सव्वो वि सलज्जो च्चिय परिहरइ जणो न लोयववहारं । पच्चारिओ उ सो च्चिय निल(ल्ल)ज्जो होइ निप्पसरो'।।४८३३।। इय सेज्जाए निसन्नो चिंतंतो जाव तत्थ चिट्ठामि । ता सा वि अद्धरत्ते समागया मज्झ पल्लंके ।।४८३४।। सासंका य नुवन्ना मए वि पासुत्तचेट्टयं काउं । आमोडिऊण अंगं परिरद्धा पभणिया एयं ॥४८३५॥ 'धम्ममहागहगहिया किं हिंडसि एत्तियाए रयणीए ? । किं न घरसंठिएहिं किज्जइ धम्मो जहुवइट्ठो ? ||४८३६।। बहलतमाओ निसाओ चोराहि-पिसाय-रक्खसघणाओ । निकारणेण सुंदरि ! मा अप्पा खिव अणत्थंमि ॥४८३७।। तुज्झायत्तं मे जीवियं ति पभणामि तेण पुणरुत्तं । फुट्टे घडमि नासइ तग्गयसलिलं न संदेहो' ।।४८३८।। तो मज्झ साणुकूलं वयणं सोऊण जायउवरोहा । सा भणइ 'जं भणिस्स[सि] तमेव नीसंसयं काहं' ॥४८३९।। १. सुप्ता ॥ - Page #451 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४२ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ तो सा मए पभणिया 'जइ एवं ता न उवरिमतलाओ । उत्तरियव्वं तुमए निसाए मह देहि वरमेयं' ।।४८४०।। सा भणइ तुम्ह वयणं न कयावि विलंघियं मए जेण । एवं जंपसि जम्हा सासो वि हु मह तुहायत्तो' ।।४८४१।। तो महुर-सललियक्खर-वयणेहिं पसाइया मए धुत्ती । अइनेहमोहिएणं उवभुत्ता पुव्वनीइए ।।४८४२।। तो सा पहायसमए पच्चइयसहीमुहेण रायस्स । मह वइयरं असेसं जाणावइ कवडकयचित्ता ।।४८४३।। तेण वि सा संदिट्ठा ‘पउणा चिटेज्ज गिहगवक्खंमि । तत्थागंतूण अहं तुज्झ मिलिस्सामि रयणीए ।।४८४४।। तो अइगयंमि दिवसे दद्दरदाराइं झंपए धुत्ती । चिट्ठइ गवक्खदारे नरिंदमग्गं पलोएंती ।।४८४५।। नियसमएणं राया समागओ विज्जुखित्तकरणेण । आरूढो उवरितलिं(लं) तंमि दिणे तत्थ भुत्ता सा ।।४८४६।। भणिओ तीए नरिंदो 'न गिहे मह जायए हिययतोसो । अभिरमइ तत्थ चित्तं रमणीए बाहिरुज्जाणे' ।।४८४७।। तो नरवइणा भणियं 'होउ इमं तत्थ चेव वच्चिस्सं । अन्नदियसेसु सुंदरि ! गोहारज्जुप्पओगेण' ।।४८४८।। तो तं निसाए राया पइदियहं नेइ गिहगवक्खाओ । गोहारज्जुपहेणं उत्तरइ तहेव आरुहइ ।।४८४९।। अह अन्नदिणे अहयं उवरिमभूमीए जाव वच्चामि । ता दद्दरे असेसे पेच्छामि निरंतरं पिहिए ।।४८५०।। Page #452 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ ४४३ तो हं ससंकचित्तो सेज्झइमग्गेण नियघरस्सुवरि । आरूढो वासहरं कंतिमई नो निरिक्खेमि ॥४८५१।। अह अड्डरत्तसमए दिट्ठा गोहा गवक्खमारूढा । तिस्साणुमग्गओ सा धुत्ती पच्छा समारूढा ।।४८५२।। वलिऊण गया गोहा सा मह पासं समागया धिट्ठा । सेज्जाए मह निसन्ना पहिठ्ठवयणा इमं भणइ ।।४८५३।। 'पिययम ! दिलो तुमए गोरिदेवीए जो कओ मज्झ । अच्चभु(ब्भु)ओ पसाओ मह भत्तिवरोवरुद्धाए ।।४८५४।। तुह वयणेण ठियाहं भवणस्सुवरिं न जामि जा देविं । पच्चक्खमागयाए ता तीए अहं इमं भणिया ॥४८५५॥ 'किं न हले ! मह पासं समागया अज्ज ?' ता मए भणियं । 'नियभत्तुणा निसिद्धा चोराइभएण रयणीए' ||४८५६॥ गोरी भणइ ‘किमेवं बीहसि ? मह दिव्ववाहणारूढा | एज्जसु पइदियसं चिय नीसेसभयाइं चइऊण' ।।४८५७।। 'तो अज्जउत्त ! एयं गोहं नियवाहणं पसाएण । संपेसिऊण नीया तह चेय पुणो इहाणीया' ।।४८५८।। तो तव्वयणं सोउं साहस-धिद्वत्त-अलियवयणेहिं । ईसीसि कलुसियमणो सिढिलियनेहो अहं जाओ ॥४८५९।। ‘एवंविहाई जिस्सा अइविसमभयावहाई चरियाई । सा कह वि कुवियचित्ता मारइ मं नत्थि संदेहो' ।।४८६०।। एमाइ चिंतिऊणं हिययट्ठियरोसदूसियमणेण । हसिऊण केयवेणं मए अलक्खं व सा भणिया ।।४८६१ ।। Page #453 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४४ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ 'कंतिमइ ! महच्छरियं जं तुह पासं समागया गोरी । नीसेसनारिमज्झे तं चिय सोहग्गमंजूसा ||४८६२ ॥ ता भणसु तुमं देविं 'किं मह गोहाए सरढसरिसाए ? । जइ मह तुमं पसन्ना ता सीहं वाहणं देसु' ||४८६३ || अह सा भणइ 'न सीहो मह वाहणमत्थि' ता तुमं भणसु । 'तं नत्थि जं न सिज्झइ देवाण असेसभुयणे वि' ||४८६४ ॥ इय सिक्खिया मए सा 'तह 'त्ति पडिवज्जइ महाधुत्ती । मह वयणं जाणावइ नरवइणो किर पहायंमि ||४८६५ || अह सा कयसंकेया घरसीहं पेसिऊण नरवइणा । तह चेव पुणो नीया अहं पि अणुमग्गओ लग्गो ||४८६६ ।। रइकेलिणा समेओ सो पत्तो तंमि बाहिरुज्जाणे । अहमवि तेहिं अदिट्ठो विसामि तरुनिविडगहणंमि ||४८६७ ॥ तो सा मह पच्चक्खं निवेण सह सुरयसोक्खमणुहविउं । आयमणत्थं पत्ता पुक्खरणिं विमलजलभरियं ॥ ४८६८ ।। जा किर आयमिऊणं पुक्खरणि-तडंमि ठाइ ता तीए । दिट्ठो चोरजुवाणो बब्बरझंटीकसिणकाओ ।।४८६९ ।। वामकरकलियचावो दक्खिणकरपंचभल्लिभासुरिओ । उज्जाणदंसणत्थं समागओ पंचबाणो व्व ।।४८७० ।। तो सा तं दट्ठूणं चोरजुवाणं महाणुराएण । वच्चइ तस्स समीवं सो सभओ गुम्ममल्लिया ||४८७१ || सा भइ को तुमं रे ! इह भमसि निसाए ? " तक्कुरो भइ । 'चोरो म्हि तुज्झ रूवं दट्ठूणं थंभिओ एत्थ' ||४८७२ ।। Page #454 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ सा भइ 'इच्छसु ममं अहं पि तुह रूवरंजिया आया' । चोरो भगइ 'न सुद्दा बंभणिनारीओ भुंजंति ||४८७३ || सा भाइ 'किं पयपसि रे चोर ! न जइ करेसि मह वयणं । ता मारयामि निययं कलयलसद्दं करेऊण' ||४८७४ || भणिया य तक्करेणं 'जइ एवं ता तुमं पमाणं मे' । आलिंगिऊण चोरं मह पुरओ रयइ अत्थुरणं ॥ ४८७५ ।। मह पेच्छंतस्स पुरो अणज्जचेट्ठाहिं विविहरूवाहिं । चोरेण कामिणी सा उवभुत्ता रइवियड्डेण ॥४८७६॥ तो तंमि चोरपुरिसे अणुरत्ता सा तहा जहा सव्वे । ते नरवइमाइ (ई) या वीसरिया उत्तमा पुरिसा ||४८७७ ।। 'पइदियसं चिय एज्जसु इहेव उज्जाणे निविडगुम्मंमि' । चोरेण समं काउं संकेयं नरवई पत्ता ||४८७८ ॥ रइकेलिणा वि चोरो परिब्भमंतेण कह वि सच्चविओ । दूराओ हक्किऊणं सो बद्धो पच्छिमभुएहिं ॥४८७९ ।। तो नरवइणो पासं आणीओ तं च सा निएऊण । मोयावइ मणइट्ठे करुणाभावं पयासंती ॥४८८० ॥ तो उज्जाणवणाओ नियनियगेहं गयाई सव्वाइं । अहमवि पणट्ठचित्तो मित्तस्स गिहंमि पासुत्तो ||४८८१ ॥ अइनिब्भरनेहेणं सिंगारमय व्व जा मए दिट्ठा । सच्चिय भयभीएणं रक्खसिरूव व्व सच्चविया ||४८८२ ॥ चिंतामि अहं चित्ते 'पेच्छय मयरद्धयस्स माहमं । जं गरुए वि हयासो कारइ असमंजससयाई ||४८८३ || ४४५ . Page #455 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ अच्चुत्तमक्ख(ख)त्तियगोत्तसंभवो सव्वक्ख(ख)त्तियपहाणो । नीसेससत्थनिउणो अइनिम्मलगुणगणावासो ।।४८८४।। जहठाणपरिट्ठावियअसेसवन्नासमो पयापालो । सो वि हयउभयलोओ अंगीकयअजसपब्भारो ॥४८८५।। जं चंदउत्तराया वि कुणइ एयारिसाइं नीयाइं । कम्माइं तीए ता किर को दोसो हयविवेयाए ? ।।४८८६॥ रूवविणिज्जियसुरसुंदरीसु अणुरायसीलवंतासु । विविहंतेरउरनारीसु रइवियड्ढासु संतीसु ।।४८८७॥ कह तेण वियड्डेण वि अणेयविडघायजज्झरंगीए । बद्धो नेहाबंधो दुट्ठसीलाए पावाए ? ।।४८८८।। अहवा तस्स न दोसो काण वि पयईओ होंति पुरिसाण । साहीणं चइऊणं होइ रई जं पराहीणे ।।४८८९।। एवं पि होइ ता होउ किंतु सा चेव निंदिया पावा । जं तारिसं नरिंदं चइऊणं चोरमहिरमइ ।।४८९०।। ता सव्वहा पहाए किं विच्चइ ताण चोर-रायाण । कोऊहलेण पुणरवि वच्चिस्सं बाहिरुज्जाणे' ।।४८९१।। इय एवमाइ सव्वं चिंतंतस्स य सहस्सवरिस व्व । मह रयणी वोलीणा अरइसमद्धासियमणस्स ।।४८९२।। तो विहियगोसकिच्चो पजलंतंमि व निएमि तं नयरिं । तब्भयचत्तघरो हं अलद्धसोक्खो परियडामि ।।४८९३।। 'सा चेय पुव्वभज्जा विमलमई मह खुडुक्कए हियए । गुण-सील-विणयसारा जं दुलहा तारिसा नारी' ।।४८९४।। Page #456 -------------------------------------------------------------------------- ________________ __ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ इय एव माइबहुविहअट्टज्झाणाइं चिंतमाणस्स । कह कह वि अइक्वंतो दियहो मह नट्ठहिययस्स ॥४८९५॥ तो हं तत्थुज्जाणे पढमं गंतूण रुक्खगहणंमि । परिसंठिओ अलक्खो निसाए पहरंमि वोलीणे ॥४८९६।। अह खणमेत्तेणं चिय समागओ तकरो घरं मुसिउं । रयण-मणि-कणयरित्थं सागरदत्तस्स सेट्ठिस्स ॥४८९७।। आगंतूण पविट्ठो जत्थाहं तत्थ तरुगणनिकुंजे । संगोविऊण दव्वं कंतिमईसंगमासाए ॥४८९८।। अह राया रइकेली कंतिमई वि य समं पविट्ठाई । माहविलयाए मंडवतलंमि वच्चंति हिट्ठाई ।।१८९९।। तो पुव्वकमेणं चिय राया सह तीए कुसुमसयणमि । थक्कइ रइकेली पुण उज्जाणवणंमि परियडइ ।।४९००।। तो सा अहिरमिऊणं रायाणं पुव्ववन्नियकमेण । चोरसमीवं पत्ता तेण वि आलिंगिया निविडं ॥४९०१।। तं कणय-रयणरित्थं बाढं अवहरियमाणसो तीए । सव्वं चेव समप्पइ सिणेहसारं च सो भणइ ॥४९०२।। 'किं बाहिरेण इमिणा तुच्छसरूवेण दव्वनिवहेण ? । साहस-नेहविढत्तं जीयं पि हु मह तुहायत्तं' ||४९०३।। तो सा पहिट्टिहियया समहियसंजायनेहसब्भावा । तेण समं अह अच्छइ वीसत्था तत्थ गहणंमि ।।४९०४।। अन्नोन्नपवड्डियगरुयनेहसब्भावपरवसमणाण । मच्चू विव सन्निहिओ वीसरिओ नरवई ताण ||४९०५।। Page #457 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४८ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ अह कहवि परियडंतो रइकेली तं समागओ गहणं । निसुणइ ताणन्नोन्नं संचल्लं कीलमाणाण ॥४९०६।। अन्नायपयपयारो पासं गंतूण ताण जा नियइ । ता सो पेच्छइ चोरं कंतिमईरइसुहक्खणियं ।।४९०७।। तो जायनिच्छओ सो तुरियं गंतूण कहइ रायस्स । राया असद्दहतो ताण समीवं सयं एइ ॥४९०८।। तं तह चेय नियच्छइ चोरं सह तीए दुटुनारीए । सो भणइ ‘सच्चमेयं रइकेलि ! पयंपियं तुमए ॥४९०९।। 'ता निहुयं निसुणामो अन्नोन्नमिमेसि पत्थुयालावे । पच्छा जं कालोचियमिह होही तं करिस्सामि' ॥४९१०॥ अह निव्वत्तियसंभोयसोक्खवीसंभजायपणयाए । ' पुट्ठो कंतिमईए चोरो 'कह एत्तियं दव्वं ?' ||४९११॥ तो तेण वि कहियमिणं ‘सागरदत्तस्स संतियं गहियं' । सा भणइ ‘साहु विहियं जं मुट्ठो दुट्ठवणिओ सो' ||४९१२।। 'किं किं ति?' भणइ चोरो कंतिमई भणइ सावओ सो खु । अच्चतरूव-लावन्नसंगओ सयलगुणजुत्तो ।।४९१३॥ तो तेण परमनेहाणुरायरत्ता वि इच्छिया नाऽहं । सेवडयवयणपरनारिसोक्खउवभोगभीएण ॥४९१४।। अवमाणिय म्हि जेणं पडिसेहंतेण मज्झ अहिलसियं । तस्स अवहरंतेण धणं उवयारो मह कओ तुमए' ||४९१५।। चोरो भणइ ‘किराडो केत्तियमेत्तो व्व सो मह वराओ । अन्नो वि हु जो गरुओ तुह सत्तू तं पि मह कहसु ॥४९१६।। Page #458 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ सा भणइ कन्नमूले निहुयं ठाऊण 'तुज्झ जइ सत्ती । ता मह दइयं मारसु एवं चिय नरवई बीयं ॥४९१७।। तो हं तुह नीसंका जावज्जीवं भवामि पियभज्जा । एए दुवे वि सल्ले जइ कह वि तुमं समुद्धरसि ॥४९१८।। सेसाण पुणो सुंदर ! बीहामि न वणिय-बंभणाईण । परदारियाण तम्हा जइ सकसि ता इमं कुणसु' ।।४९१९।। चोरो भणइ 'नरिंदं उट्ठसु, दावेसु मज्झ, मारेमि । अन्नदिणे पुण तं चिय मारिस्सं बंभणं तुज्झ' ॥४९२०॥ सोऊण ताण वयणं रोसारुणलोयणो महाराओ । आभासइ रइकेलिं किं अज्ज वि इह विलंबेमि ? ||४९२१।। तो कड्ढिऊण राया करवालं धाइ तस्स चोरस्स । दूराओ हक्कंतो कक्कसवयणेहिं तज्जइ य ॥४९२२॥ 'रे पाव ! मओ एण्हि न होसि मारेमि निच्छियं अज्ज । जइ अत्थि का वि सत्ती ता तुरियं संमुहो ठासु ।।४९२३॥ परदव्वहरणदोसेण किं च परजुवइसंगदोसेण । रायविरुद्धासेवी वज्झो सि तुमं न संदेहो' ||४९२४।। चोरो भणइ 'निसामसु सम्म मह वयणमेग नरइंद ! । पच्छा तुह भुयदंडे रणकंडु फेडइस्सामि ।।४९२५।। सयलजयनिंदणीया दोसा दो च्चे(व) इह जयपसिद्धा । .. जं परधणावहारो जं च परत्थीण परिभोगो ॥४९२६।। सच्चमिणं चोरो हं निंदियकम्मेण मारणिजो(ज्जो) म्हि । परदारिओ उ नरवर ! तुह रज्जे होइ किं पुज्जो ? ||४९२७॥ Page #459 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४५० एत्तियमेत्तेणं च्चिय अहवा सामित्तणं सुहावेइ । जं चिय पडिहाइ मणे तं कीरइ भन्नए तं च ।।४९२८।। नरनाह ! सरिसदोसत्तणेण समभूमिया दुवे अम्हे । को केण निग्गहिज्जइ अन्नोन्नं दोसदुट्ठाणं ? ।। ४९२९ ।। जहठाणपरिट्ठावियअसेसवन्नासमो भवे राया । जणओ व्व जणवयाणं निसिद्धपरदार-चोराई ||४९३०|| वीसासमुवगयाणं सरणपवन्नाण दुब्बलाणं च । दुज्जणपरिभूयाणं परिताणं नरवई कुणइ ||४९३१।। जइ पुण स एव जायइ अम्हारिसलोयसरिसआयरणो । ही निरासयाओ पयाओ ता कत्थ वच्वंतु ॥ ४९३२ ।। सो चेय तुमं हुंतो खयदिणयरतेयरासिदुद्धरिसो । दुक्कुज्जायरणेणं अम्हाण वि गोयरो एहि ||४९३३|| इय एवमाइ विविहं चोरो जा नरवई उवालहइ । ता धाविऊण पुरओ खित्तो रइकेलिणा घाओ ।। ४९३४ || रइकेलिणो पहारं चोरो दक्खत्तणेण वंचेउं । भमिऊण पुणो चोरो रइकेलिं हणइ छुरियाए ||४९३५ ।। दिढचोरपहारहओ रइकेली पडइ जाव निवपुरओ । ता दंडवासिएहिं उज्जाणं वेढियं सहसा ||४९३६॥ एत्थंतरंमि चोरो रइकेलिं मारिऊण नरवइणो । पच्चारंतो ढुको असिधेणुकरो महासुहडो ॥ ४९३७ ।। एत्यंतरंमि तुरियं पधावमाणेहिं दंडवासीहिं । चोरो निवाडिऊणं पच्छा बाहूहिं सो बधो (दो) ||४९३८ || सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ Page #460 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ तो राया मं दटुं मह समुहं इक्खिउं अपारंतो । लज्जावणयमुहेणं विलक्खवयणं इमं भणइ ।।४९३९।।.. 'नीसामन्नसरूवा दुवे वि अम्हे असेसभुयणे वि । सुयणत्तणेण य तुमं अहं पुणो दुज्जणत्तेण ।।४९४०।। ता संगमयपुरोहिय ! तक्करवयणेहिं चेव विलिओ हं । तुज्ज पुण दंसणेणं छारस्स व पुंजओ जाओ' ।।४९४१।। अह चोरो वि हु नीओ नियगेहं दंडवासिपुरिसेहिं । उदालियं च सयलं तीए सयासाओ सेट्टिधणं ॥४९४२।। सा वि नियदोसभीया पयडीहुयसयलदुट्ठववहरणा । धिकृत्तणेण पत्ता पुणो वि तं चेव मह गेहं ।।४९४३।। रइकेलिस्स करावइ नरनाहो तत्थ अग्गिसक्कारं । घेत्तूण ममं पच्छा निययावासं च संपत्तो ।।४९४४।। तत्थ वि कंतिमईगयसकीयदुच्चरियसेवणाविसयं । राया बहुप्पयारं कहेइ चिरवइयरं मज्झ ।।४९४५॥ अहमवि जं जह दिटुं जं जह निसुयं जहाणुहूयं च । तं तह कहेमि सच्चं नरवइणो हिययसब्भावं ॥४९४६॥ तो कंतिमईदुच्चरियदंसणुप्पन्नपरमनिव्वेया ।। पच्छायावाणुगया दुवे नयामो य निसिसेसं ॥४९४७।। तो पच्चूसे राया हक्कारिय दंडवासियं भणइ । 'रे वावायह तुरियं तं चोरं दुट्ठववहरणं' ||४९४८।। तो आएसाणंतरमणंतजणपयडमेव सो चोरो । कणवीरमुंडमालो तणमसिपविलित्तसव्वंगो ॥४९४९।। Page #461 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४५२ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ छित्तरयधरियछत्तो विरसपव्व(व)ज्जंतडिंडिमो पुरओ । कयडिंभकलयलरवो आरूढो रासहस्सुवरि ॥४९५०।। नीसेसं चिय नयरिं चउक्क-तिय-चच्चरेसु रत्थासु । . संझाए भामिऊणं नि(नी)ओ सो वज्झट्ठा(ठा)णंमि ||४९५१॥ तो तस्स कंठदेसे निविडं दिढरज्जुपासयं दाउं । ओलंबिऊण बद्धो चिंचासाहाए पुरिसेहिं ।।४९५२॥ तो पण्हियाए उयरिं सयलसिलाजालवेढियद्धंते । छिंदंति उभयपाएसु टंकए तस्स चोरस्स ॥४९५३॥ तो ते पुरिसा भीसणमसाणभयतरललोयणा तुरियं । ओलंबिऊण चोरं सव्वे वि पुरिं अणुपविठ्ठा ॥४९५४॥ एत्थंतरंमि राया अहं च कोऊहलेण मह गेहं । कंतिमइचरियदंसणरसेण तत्थेव संपत्ता ॥४९५५॥ तो परियणेण कहियं 'एण्हि चिय निग्गया नियगिहाओ' । तिस्साणुमग्गलग्गा अम्हे वि विणिग्गया बाहिं ॥४९५६।। दिट्ठा य बाहिरेणं मग्गेण मसाणमेव वच्चंती । पत्ता य सा खणेणं तं चिंचापायवं धिट्ठा ||४९५७।। दिट्ठो य तीए चोरो निविडीकयपासरुद्धगलसरणी । 'हा पिययम ! हा वल्लह ! हा नाह !' इमं भणंतीए ॥४९५८।। 'जो मह कोमलभुयवल्लिवेढसंदाणिओ पुरा कंठो । सो दुट्ठराइणा कह निठुररज्जूए तुह बद्धो ? ।।४९५९।। जइ सो न बंभणो मह अणिट्ठभत्ता तुमं पडिखलंतो । ता तंमि हए राए न को वि तुह एरिसं काही' ॥४९६०॥ Jain. Education International Page #462 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ : ४५३ इय एवमाइ विविहं विलवंती राइणा मए वि सुया । अच्छामो पेक्खंता ववहरणं तीए(इ) निहुयंगा ।।४९६१।। तो सा बहुमडयाणं कूडं काऊण तत्थ आरूढा । तं कंठगयप्पाणं दरमउलियलोयणदंतं ॥४९६२।। लंबंतपाणि-पायं वियणावसचडफुडंतसव्वंगं । आलिंगिऊण गाढं चुंबइ वयणमि कंतिमई ।।४९६३।। तो कड्डिऊण निसियं लोहमईकत्तियं महाधिट्ठा । छिंदइ छणत्ति रज्जूं आलिंगइ तं च निवडतं ॥४९६४।। मेल्लइ महीए चोरं सीयलजलपवणसुत्थियं कुणइ । पच्चागयचेयन्नो पुरओ सो पेच्छए नारिं ॥४९६५।। सा भणिया चोरेणं 'तुमए हं रक्खिओ इह मरंतो । ओलंबिओ अणाहो जइ न तुमं ता कह जियंतो ?' ||४९६६।। तो सा तं घेत्तूणं चोरं अंतमि सुंदरुज्जाणे । पविसइ निविडलयाहरगेहं उवभोगबुद्धीए ॥४९६७॥ तो नरवइणा सहिओ अहमवि तत्थेव सुंदरुज्जाणो । संपत्तो कोड्डेणं उज्जाणं दट्ठमारद्धो ।।४९६८।। अह तत्थ अयंडे च्चिय निक्कारणमेव पविसमाणेण । जाओ महापमोओ वियंभिओ धम्मववसाओ ||४९६९।। 'किं किं ति महच्छरियं' मणभावं जाव तं वियप्पेमो । ता झत्ति मए दिट्ठो असोयतलसंठिओ साहू ।।४९७०।। सो चेय मज्झ पुत्तो सिरधरपुत्तो त्ति आसि जो जेट्ठो । सो देवगुत्तनामा आयरिओ समणसंघजुओ ॥४९७१॥ Page #463 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४५४ सज्झाय-झाणनिरओ विवज्जियासेसदोससंसग्गो । परमोहिनाणलोयणविन्नायतिलोयसब्भावो ॥४९७२।। नीसेसभुयणदव्ववत्थुसीम व्व सो महासूरी । सललियलायण्णुज्जलजोण्हापव्वा (क्खा) लियदियंतो ।। ४९७३ ॥ सयलकलागमकुसलो वि निकलागमरओ महासत्तो । जो पढमजोव्वणो वि हु मयणवियारेहिं परिचत्तो ||४९७४ || जो परिहरियपरिग्गहसंगो वि हु तवसिरीए परियरिओ । चम्मट्ठिमेत्तदेहो मोहमहामल्लपडिमल्लो ।।४९७५ ।। जो पलक्खणो वि हु रामासंगेण वज्जिओ निच्चं । पंचसमिओ वि रक्खियसुहुमेयरसत्तसंघाओ ।। ४९७६ ।। जो दंसणमित्तेण वि भव्वाणं जणंइ धम्मववसायं । आवहs सुहं भावं विहडावइ कुमइवामोहं ॥। ४९७७ ।। पयडइ विवेयदीवं हणइ कसाए पसंतयं कुणइ । निव्वावइ भव्वाणं ससि व्व संसारसंतावं ।। ४९७८ ।। तो राइणा मया विय तं दठ्ठे मुणिवरं महावीरं । तक्खणमेत्तेणं चिय परिगलिओ पावपब्भारो ।। ४९७९ ।। एयं च पुणो सावय ! अणुहवसिद्धं न तीरए कहिउं । आणंद-बाह-पहरिस-पुलयाइगुणेहिं बोधव्वं ॥ ४९८० ।। कज्जाणुमाणओ च्चिय पयडमिणं रायपुत्त ! मह जायं । जो हं तहासरूवो मिच्छदि (हि) ठ्ठी पुरा हुंतो ।। ४९८१ ।। नियजाइमउम्मत्तो बहुमन्नियवेयधम्मववहारो । गुणदेसी मच्छरिओ उवहसियजिणिदधम्मो य ।। ४९८२ ।। सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ Page #464 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ सो तस्स दंसणेणं उवसंतमणो तहा [अ]हं जाओ । जह मज्झ तक्खणे च्चिय उल्लसिओ धम्मववसाओ ||४९८३।। जं आगमंमि सुव्वइ पयडफलं साहुदंसणं होइ । तं तइया मह सावय ! पच्चक्खं चेव संजायं ।।४९८४।। एएण कारणेणं अणवरयं साहुदंसणं गुणिणो(णा)। कायव्वमेव जम्हा सफलो च्चिय साहुसंजोगो ॥४९८५।। जे निहयपावपसरा धम्मसम्म(म)द्धासिउत्तमसरीरा । ते दंसणेण मुणिणो हणंति पावं किमच्छरियं ? ||४९८६।। अम्हारिसा वि अविरइ-पमायवसवत्तिणो वि कूरप्पा । जं लद्धसाहुसंगा खवंति पावं निरवसेसं ॥४९८७।। उल्लसइ सुहो भावो पयलं वच्चंति अट्ट-रोद्दाइं । भवनिव्वेओ जायइ विसिट्ठमुणिदंसणगुणेण ॥४९८८।। जइ पुण अनन्नचित्तो विसुद्धपरिणामसंजुओ असढो । ताण सयासे निसुणइ जिणवयणं किन्न ता सिद्धं ? ||४९८९।। तो सावय ! अन्नोन्नं आणंदपवाह-पुलयमंगेसु । दतॄण परमहिट्ठा संपत्ता सूरिपासंमि ॥४९९०॥ तो परमभत्तिनिब्भरगलंतनयणंसुसित्तगत्तेहिं । पंचंगपणामेणं पणिवइओ दोहि वि मुणिंदो ।।४९९१।। तेण वि अणेयभवसयवणगहणदवानलो व्व मुणिवइणा । मोत्तूण झाणजोग्गं दिन्नो णे धम्मलाभो य ॥४९९२।। तो तस्स चरणफंसणपवित्तवसुहायलंमि उवविठ्ठा । अणुवमसरीरसोहं निरिक्खिमो जाव तस्सेव ।।४९९३।। Page #465 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४५६ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ तो मुणिवरेण भणियं 'कुसलं तुह चंदउत्तनरनाह! । मा किंपि मणे झूरसु तुमं पि संगमय ! भज्जत्थे ॥४९९४।। जीवाण भवावत्ते नियकम्मवसेण परियडंताणं । तं कज्जं संपज्जइ लज्जिज्जइ जं कहतेहिं ।।४९९५।। अन्नह चिंतइ जीवो कज्जं पुण अन्नहा समावडइ । जं चिंतंताण मणे जायइ गरुओ चमक्कारो ॥४९९६।। सव्वन्नू(न्नु) मोत्तूणं को भवपरमत्थवित्थरं मुणइ ? । वैधम्मिणो य अन्ने तमन्नहा संपवज्जंति ।।४९९७।। कुसमयमोहियचित्ता अनायपरमत्थधम्मसब्भावा । अजहत्थं पि हु धम्मं जहत्थमिव ते पवज्जति ॥४९९८।। तो ताण सो कुधम्मो अणुचिन्नो वि हु अणेगभेएहिं । परलोए सो विहडइ कुसहाओ समरकाले व्व ॥४९९९।। अपरिक्खगपहिएणं हिरण्णबुद्धीए रीरिया गहिया । जह विहडइ पज्जंते तह जाणसु ते कुधम्मा वि ॥५०००। इह जे पवाहपडिया अपरिक्खियधम्मगाहगा होति । पावंति न तस्स फलं तुम्हे च्चिय एत्थ दिटुंतो' ॥५००१॥ तो नरवइणा भणियं 'कहमम्हे दो वि एत्थ दिद्रुतो । काऊण करुणभावं तं साहह अम्ह नीसेसं' ।।५००२।। तो भणइ देवगुत्तो ‘नरिंद ! जइ तुम्ह कोउयं अत्थि । तो सावहाणचित्ता आयन्नह एस साहेमि ।।५००३।। इह वाराणसिनयरीए आसी राया महिंदसीहो त्ति । तस्स पहाणा भज्जा नामेणं आसि मयणसिरी ।।५००४।। १. पित्तल ॥ - Page #466 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४५७ - सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ सो राया तीए समं भुजंतो अणुवमे परमभोए । देवो व देवलोए गयं पि कालं न याणेइ ॥५००५।। तस्सासि परमपुज्जो पुरोहिओ नाम विण्हुमित्तो त्ति । सयलेसु वि कज्जेसुं पमाणभूओ नरिंदस्स ।।५००६।। तस्स कणिट्ठो भाया नामेणं अस्थि अग्गिमित्तो त्ति । लावन्न-रूव-जोव्वण-सोहग्गगुणाण आवासो ।।५००७।। जयदेवी-नामेणं परिणीया तेण विण्हुमित्तेण । बीएण वसंतसिरी परिणीया अग्गिमित्तेण ॥५००८।। ते दो वि वेयवन्नियधम्माणुट्ठाणसेवणानिरया । अच्छंति जहासोक्खं महिंदसीहस्स गुरवो व्व ॥५००९।। भणिओ य विण्हुमित्तो नरवइणा अन्नया दिणे एवं । 'मह पासं न खणं पि हु मोत्तव्वं एस तुह नियमो ॥५०१०॥ मेहाण व उट्ठाणं अतक्कियं होइ रज्जकज्जाण । ता इय तुह विवरोक्खे केण समं संपहारेम्हि ? ॥५०११।। एसो च्चिय तुह भाया मह गेहे कुणसु संतियम्माई । अंतउरे वि एसो निव्वत्तउ सव्वकज्जाई' ॥५०१२।। तो ‘एवं' ति पणिउं निरूविओ तेण अग्गिमित्तो सो । निययपुरोहियठाणे मंतिपए अप्पणा जाओ ॥५०१३।। एवं च विण्हुमित्तो मंती नीसेसमंतिवग्गस्स । नियबुद्धिपहावेणं विहिओ सो राइणा जेट्ठो ॥५०१४।। इयरो वि अग्गिमित्तो पुरोहियाणं च जाइं कज्जाइं । ताई कुणंतो अच्छइ नरिंदअंतेउरगिहेसु ।।५०१५।। Page #467 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४५८ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ अणवरयं चिय दंसण-संभासण -हास- गोट्ठिमाईहिं । अभिगमणीएहिं तहा जोव्वण - लावन्नरूवेहिं ।।५०१६।। समुइन्नतहाविहकम्मपरिणईए य अग्गिमित्तंमि । अणुरत्ता मयणसिरी तेण समं भुंजए भोए ।।५०१७ ।। अह अन्नदिणे दिट्ठो नरिंदसेज्जाए मयणसिरिसहिओ । दासीए अग्गिमित्तो जालगवक्खेण निहुयाए ।। ५०१८ || तो कहियं नरवइणो तीए गंतूण तन्निउत्ताए । गंभीरमणो सो विय अवहीरइ तीए (इ) तं वयणं ||५०१९ ॥ इय एवं अणवरयं सा दासी ताण चेट्ठियं कहइ । लज्जाए विण्डुमित्तस्स नरवई किं पि न भणेइ ||५०२०।। तो कंचुइणा भणिओ राया 'किं देव ! वंभणस्स तुमं । जाणतो वि सरूवं उवेक्खसे अइसयविरुद्धं ?' ||५०२१॥ तो तव्वयणं राया सोउं संजायपच्चओ भाइ । ' सो एइ जत्थ समए तं समयं मज्झ साहेसु' ।। ५०२२ ।। अह अन्नदिणे राया गोसे कयसयलगोसकरणीओ । जालगवक्खस्सुवरिं उवविट्ठो तुच्छपरिवारो ||५०२३॥ अह विण्डुमित्तमंती समागओ अग्गिमित्तपरियरिओ । मंतुच्चारपुरस्सरमासीसं देइ रायस्स || ५०२४।। कयसमुचिओवयारा उवविट्ठा दो वि रायपासंमि । तक्कालसमुचिएणं चिट्ठति विणोयकम्मेण ॥। ५०२५ ।। एत्थंतरंमि दिट्ठा गवक्खपरिसंठिएण नरवइणा । चत्तारो मुणिवसहा परिसक्कणिए य वच्चंता ||५०२६ ॥ Page #468 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ ते राया दट्ठूणं तवसुसिए मलखरंटिए साहू । निप्पडिकम्मसरीरे पसंतचित्ते जियकसाए ||५०२७|| परिसडियमलिणचीवर- कंबलपच्छाइए भवविरत्ते । जुगमित्तखित्तदिट्ठी पसंसए परमसंविग्गो ||५०२८|| 'धन्ना एए साहू संसारविरत्तमाणसा निच्चं । मोक्खत्थमुज्जमंता चरंति जं घोरतवचरणं' ।। ५०२९।। तं नरवरिंदवणं अणुकूलंतेण विण्हुमित्तेणं । सेवाधम्मठिएणं ' एवं ' ति पसंसिया तेण ॥ ५०३० ॥ तो तेण साणुबंधं उवज्जियं तक्खणेण सुहकम्मं । एत्तियमेत्तेणं चिय मुणीण अणुमोयणफलेण ||५०३१ || न परं ( नवरं ? ) पसंसमाणो अणुमन्नंतो य साहुगुणनिवहं । पावइ पावविणासं परलोए बोहिलाभं च ।।५०३२।। तो भइ अग्गिमित्तो 'देव ! एयाण सुद्दजाईण । दंसणमवि पच्चूसे उचियं (सेऽणुचियं ?) दूरे उण पसंसं ( सा ? ) ' ।।५०३३॥ तो मुणिवरिंददूसणनिव्वत्तिय असुहकम्मबंधेण । तेणावि दुक्खमसमं उवज्जियं अग्गिमित्तेण ||५०३४ || गुणमच्छरेण पावा जहुत्तगुणभूसिए महासाहू । जे निंदंति सगव्वा पडंति ते दुक्खजोणीसु ॥ ५०३५ || जम्मंतरे वि ते च्चिय सजाइगव्वेण नीयजाईसु । जायंति जहन्नगुणा भवंतरे दुक्खहेऊ य ||५०३६।। तो राया सोऊणं वयणमिणं विण्हु-अग्गिमित्ताणं । अर्कोसिउं कणिट्टं पसंसए विहुमित्तं पि ॥ ५०३७।। ४५९ Page #469 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ___ ४६० सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ तो राया उवविठ्ठो अत्थाणे मिलियमंति-सामंते । इयरो वि अग्गिमित्तो मयणसिरीसन्निहिं पत्तो ।।५०३८।। परिणीयमिव कलत्तं हत्थे घेत्तूण जाइ वासहरं । रायसेज्जाए गंतुं अभिरमइ जहासुहं देविं ॥५०३९।। एत्थंतरंमि दटुं तहाविहं कंचुई निवविरुद्धं । गंतूण तक्खण च्चिय साहइ रायाहिरायस्स ॥५०४०।। मोत्तूण तं तह च्चिय अत्थाणं नरवई परमकुद्धो । संपत्तो वासहरं पेच्छइ सव्वं गवक्खेण ।।५०४१॥ तो मुणिदूसणकम्मं तक्खणमेत्तेण समुइयं तस्स । इहलोए वि मुणीणं फलइ दुगुंछा . न संदेहो ।।५०४२।। तो दिढपायपहारपहयकवाडेण राइणा तुरियं । विसिऊण अग्गिमित्तो भणिओ सोल्लुट्ठवयणेहिं ।।५०४३।। 'रे अग्गिमित्त ! सुद्दा महामुणी जइ अदंसणीया ते । ता किं परनारिरया दियाइणो होति दट्ठव्वा ? ।।५०४४।। जइ ताण नो पसंसा कायव्वा परमबंभचारीण । तुम्हारिसाण ता किं एयसरूवाण कायव्वा ?' ।।५०४५।। इय एवमाइ बहुयं निब्भच्छिय कक्कसेहिं वयणेहिं । केसेसु तओ घेत्तुं नीओ अत्थाणमझंमि ।।५०४६।। तो नरवइणा सव्वं आमूलं सव्वलोयपच्चक्खं । कहियं तस्स सरूवं पुण भणिओ विण्हुमित्तो वि ॥५०४७।। 'जाणतो दुच्चरियं कणिट्ठनियभाउणो जणविरुद्धं । जं न निवारसि पायं तं मन्ने सम्मयं तुज्झ' ।।५०४८।। , Page #470 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६१ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ तो विण्हुमित्तवरमंतिचित्तरक्खं मणे धरतेण । आणत्तो निव्विसओ अग्गिमित्तो नरिंदेण ।।५०४९।। मयणसिरिं पि नरिंदो संपेसइ माउगेहमइकुद्धो । तेणेव निमित्तेणं विसएसु परंमुहो जाओ ।।५०५०।। ताणं चेव मुणीणं पासं गंतूण मुणइ जिणधम्मं । रणसीहनामधेयं नियपुत्तं ठवेइ रज्जंमि ।।५०५१॥ गेण्हइ विसुद्धचित्तो पव्वज्जं पालए निरइयारं । कयसलेहणकम्मो मरिउं वेमाणिओ जाओ ।।५०५२।। इयरो वि अग्गिमित्तो सकम्मपरिणामओ मरेऊणं । मुणिनिंदापावेणं असुइंमि किमी समुप्पन्नो ।।५०५३।। ततो वि सुणयजोणिं तओ सपागो पुणो अमेज्झकिमी । गड्डासूयरओ पुण पुणो वि चंडालजम्मंमि ।।५०५४।। पुण सुणयभवे कम्मं खविऊणं एत्थ चेव नयरीए । गणियाए कुच्छिसिं उववन्नो चोरबीएण ॥५०५५।। संवड्डिओ कमेणं संपत्तो जोव्वणं परमरम्मं । एसो नरिंद ! चोरो जेण तुमं वहिउमाढत्तो ॥५०५६।। इयरो वि विण्हुमित्तो नरिंदसंगेण भद्दओ जाओ । नामेण चंडसम्मं जणइ सुयं विजयदेवीए ॥५०५७।। आउक्खएण सो च्चिय मरिऊणं सुकयकम्मजोएण । तुममेव समुप्पन्नो महिंदसीहस्स सुयपुत्तो ॥५०५८।। नामेण चंदउत्तो जो पुण तुह आसि भारिया पुट्वि । नामेणं जयदेवी सा कंतिमई समुप्पन्ना ॥५०५९।। Page #471 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६२ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ पुव्वभवब्भासेणं तुहाणुरत्ता नरिंद ! एसा वि । - पुव्वभवदेवरे च्चिय तहेव चोरे वि अणुलग्गा ||५०६०॥ जुवईउ नाम सावय ! निरुवायाओ विसस्स गंठीओं । मयणानलुब्भवाओ जालाओ व दडलोयाओ ।।५०६१।। नरयदुवारुग्घाडणकुंचियकुडिलाओ सग्गनयरंमि । पविसंताण निरंभणभुयग्गलाओ व्व जीवाणं ॥५०६२।। संपुन्नधम्मससहरकिण्हतिहीओ व्व खयनिमित्ताओ । विविहवसणंकुराणं पादुब्भवकंदलीओ व्व ॥५०६३।। जणनयणमोहणीओ भुयणस्स वि जणियतिव्वतण्हाओ । परमत्थदुहफलाओ इमाओ माइण्हियाउ व्व ।।५०६४।। अणुरत्ताओ दूरं दीसंति नराण जणियहरिसाओ । जा सुयणमालियाओ व दरवलियाओ विरज्जंति ।।५०६५।। बहुकूडकवड-माया-पवंच-परवंचणाइदोसाण । एयाओ चिय पायं निवासभूमीओ जुवइ(ई)ओ ॥५०६६।। एयासु जे अणुलग्गा नावासु व च्छिन्नसव्वबंधासु । बुडंति ते अणाहा संसारमहासमुदंमि ॥५०६७।। वीसमह वरं भीसणभुयंगप्फारप्फणाण छायासु । न उणो दवग्गिदीवयस(सा?)हासु व दुट्ठजुयईसु ।।५०६८॥ कह ताण जीवियासा नराण नारीपसत्तचित्ताण । जा जणणि-जणयदिन्नं परिणीयपई पि मारेइ ? ।।५०६९।। तं किं पि महासाहसमचिंतणीयं कुणंति एयाओ । जं गरुयसाहसा वि हु भएण कंपति चिंतंता ॥५०७०।। Page #472 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ पर(रि)णीयपइं अणुरत्तमाणसं दिन्नविहववित्थारं । परिहरइ विरत्तमणा अन्नस्स कए महिड्डिस्स ॥५०७१।। तं पि महारिद्धिल्लं परिचयइ अणाहरंकरेसंमि । तह वि एवंविहाण मूढा रज्जंति नारीण ॥५०७२।। भावंति न परमत्थं खणसुहकज्जेण नवर मुझंति । रागंधा कावुरिसा पेच्छंति न आयइं मूढा ॥५०७३।। न गणंति गुरुवएसं जहत्थमवि पवयणं पसंति । एमेव गयनिमीलं काऊण तहेव सीयंति ।।५०७४।। तो ते असमत्था इव सत्ताऽवटुंभवज्जिया दीणा । सीह व्व मोहपंजरमज्झगया तह विसूरंति ।।५०७५।। दुक्कज्जायरणसमज्जिएण तो ते सयंकएणेव । पावेण महानरए निवडंति अणंतदुक्खंमि ।।५०७६।। कह तुच्छसोक्खकंखाए जाणमाणेहिं इममकज्जं ति । अप्पा दुहमि खिप्पइ बहुसागरसंखदुत्तारे' ॥५०७७।। इय मुणिवयणं सोउं समहियसंसारजायवेरग्गा । जा चिंतेमो तत्तं ता सहसा आगओ चोरो ॥५०७८।। मुणिणो पयाहिणतिगं काऊणं भवविरत्तचित्तो य । पाएसु पडइ निब्भरभत्तिवसुव्बूढरोमंचो ॥५०७९।। 'जय अन्नाणदिवायर ! जय जय निम्महियमोहतिमिरोह ! । जय सव्वसत्तपयडियसंसारसरूववित्थार !' ॥५०८०।। इय थुणिऊण मुणिंदं उवविठ्ठो अम्ह नाइदूरम्मि । सिरविरइयंजलिवुडो सो चोरो भणिउमाढत्तो ॥५०८१।। Page #473 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६४ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ 'भयवं ! जं जह दिट्टं तुमए अइविमलनाणनयणेण । तं तह मए असेसं जाईसरणेण सच्चवियं ।।५०८२ ।। सो च्चेय अग्गिमित्तो सुसाहुजणनिंदि (द) ओ अहं पावो । एसो च्चिय मह भाया विण्हुमित्तो महाराओ ||५०८३ || एसा वि य जयदेवी कंतिमई इह भवे समुप्पन्ना । जिस्सा कए इमे च्चिय दो वि मए वहिउमादत्ता ||५०८४ ॥ ही जुयइनिमित्तं अयाणमाणेण पावकम्मेण । कह मारिउमादत्तो जेट्ठो भाया य नत्तू य ? ||५०८५ || कह नाम वंदणीयं जणणिं पिव जेट्टभायरकलत्तं । भुंजामि महापावो अन्नाणविमोहिओ मूढो ||५०८६ ॥ कह तेत्तियमेत्तस्स वि मुणिनिंदामेत्तदुकयकम्मस्स । जस्सेत्तिओ विवाओ पच्चक्खो मज्झ संजाओ ||५०८७ || किमि-सुणय-सपाग-किमी - सूयर - चंडाल - सुणय- चोरेसु । आइमबंभणजम्मे अइविसमं पावियं दुक्खं' ||५०८८ || तो नरवय (इ) णो य तहा कंतिमईए य तक्खणं जायं । पुणरुत्तचोरवन्नियवइयरओ जाइसरणं पि ||५०८९|| तो तिहं पि हु ताणं जाईसरणेण जायसंवाए । 'अवितहवाइ' त्ति ममं मुणिवयणे निच्छओ जाओ ।।५०९०|| 'जह एस मुणी नाणेण वइयरं जाणए इमाणं पि । मह जणणी - जणयाण वि वइयरमेसो तहा मुणिही' ।। ५०९१ || इय चिंतिऊण भणिओ मए मुणी 'जयपईव ! मुणिनाह ! । मह पुव्वमासि जणओ चंडसम्मो त्ति नामेण ।। ५०९२ ।। Page #474 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६५ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ जणणी य मज्झ भत्तारचरणभत्ता महासई आसि । सोमसिरी नामेणं निम्मलदियवंससंभूया ।।५०९३॥ दोन्नि वि समचित्ताई दोन्नि वि अन्नोन्नबद्धनेहाई । दोन्नि वि वेयपयासियधम्माणुट्ठाणनिरयाई ।।५०९४।। तो उवरयंमि ताए विलवंतं अगणिऊण मं माया । जम्मंतरे वि जोगो मह होउ पिएण इय बुद्धी ॥५०९५।। जस्सि चेय चियाए पक्खित्तो मह पिया तहिं चेवं । अप्पाणं खिविऊणं कयसंकप्पा मया तत्थ ॥५०९६।। ता कहसु मज्झ भयवं ! जणओ जणणी य कत्थ जायाइं ? । चिटुंति कहं ? किं वा परोप्परं ताई मिलियाई ?' ||५०९७।। तो भयवया असेसं दोण्हं पि हु ताण जणणि-जणयाण । कोलुदुर-मज्जारी-अहि-नउलाईसु जम्मेसु ।।५०९८।। जं जं वित्तं जं जं च पावियं तेहिं कम्मवसरोहिं । जं च कयं ताण मए नीसेसं वित्थरसमेयं ।।५०९९।। तं तेण ताव कहियं जा 'पुत्तो अहं तुह महाभाग ! । सिरधरनामा साहू बीओ गंगाधरो सो वि ॥५१००॥ इह चेव माहविलयामंडवतलफासुयाए भूमीए । झाणट्ठिओ महप्पा चिट्ठइ कम्मक्खउजु(ज्जु)त्तो' ।।५१०१।। तो तं मुर्णिदकहियं जणणी-जणयाण वइयरमसेसं । सोऊण मणे जालो अहिययरो मज्झ संवेओ ।।५१०२।। पजलंतो इव दिट्ठो संसारो तब्भयं च संजायं । 'कह वा नित्थरियव्वं बहुपाणिवहुब्भवं पावं ?' ||५१०३॥ 31 Page #475 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६६ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ इय भयतरलियहियओ सकीयदुच्चरियजायअणुतावो । नमिऊण सायरमहं मुणिनाहं भणिउमाढत्तो ॥५१०४।। 'भयवं ! जं जह वित्तं पच्चक्खं तं तहा असेसं पि । पयडतेण फुडत्थं छिनो मह संसओ सव्वो ||५१०५।। पढमं पियामहाणं सरूवमच्चुज्जलम्मि जिणधम्मे । दूसग-अदूसगाणं दोस-गुणुब्भावणं कहियं ॥५१०६।। तयणंतरं च नारीसरूवकहणेण अणुभवपसिद्धो । मह तिव्वयरो जणिओ विसयविराओ तए नाह ! ॥५१०७॥ संसारसुहाणं किर मूलं एयाओ होति जुयईओ । एयाण कए सयलं जयं पि इह दुत्थियं होइ ।।५१०८।। ताणं च पुण सरूवं चिंतिज्जंतं पि किर विवेईण । भीमं भयमुप्पायइ पच्चक्खं जं मए दिलृ ।।५१०९।। परजुयइपसत्ताणं तव्विरत्ताण होंति दोस-गुणा । ते तक्कर-सागरदत्तपयडदिटुंतओ भणिया ॥५११०॥ मिच्छत्तमोहियाओ मरंति नियभत्तुणा समं जाओ । तं ताण निप्फलं चिय मरणं पयडीकयं तुमए ॥५१११॥ सव्वे भिन्ना जीवा परोप्परं भिन्नकम्मसंजोया । कह ते समं मरंता वि संगम एत्थ पावंति ? ||५११२।। तह वेउत्तो धम्मो अणुट्ठिओ तेण मज्झ वयणेण । मरिऊण जहा जाओ सगिहे कोलुदुरत्तेण ।।५११३।। उवमाठाणं लोए मह माउ-पिऊण आसि जो नेहो । ताई चिय अन्नोन्नं तिरियत्तभवंमि भक्खंति ।।५११४।। Page #476 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६७ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ अच्चब्भुयो पहावो सुयमेत्तस्स वि जिणिंदधम्मस्स । जं पयइविरुद्धा वि अहि-नउला नवर संबुद्धा ।।५११५।। ता जिणधम्मं सोउं दयापहाणं पसंतचित्ता ते । अकयाणुट्ठाणा वि हु सुमाणुसत्तंमि संजाया ||५११६।। होंति नियकम्मवसगा पुत्ता पुत्तस्स जणणि-जणया वि । अहमेव एत्थ पयडो दिटुंतो नवर संजाओ ।।५११७।। पाणिवहमहापावं काऊण अहं सुदुत्थिओ जाओ । इह, परलोए[य] पुण(णो), वसियव्वं दूसहे नरए ।।५११८।। एयाइं पुणो तिन्नि वि सिरधर-गंगाधरा य विमलमई । जायाई सुत्थियाई धम्मपहावेण सव्वत्थ ॥५११९।। अहयं तु अकयधम्मो कुधम्मसत्थोवएससंमूढो । पावानलसंतत्तो भमामि वायाहयदलं व ॥५१२०।। ता नाह ! कहं होही बहुपाणिवहुब्भवस्स पावस्स । मह विच्छेओ संपइ घोरमहानरयहेउस्स ? ।।५१२१।। तह अवितहजिणसासण-दूसणजणियस्स दुकयकम्मस्स । मन्ने अणुभवियव्वं फलमसुहं नीयजोणीसु' ।।५१२२।। तो भणइ मुणी 'सुंदर ! बद्धं नरयाउयं तए घोरं । बहुजीववहेहि कयं जिणधम्मपओसजणियं च ॥५१२३।। 'मरसुत्ति भणियमेत्ते जीवो अज्जिणइ दारुणं नरयं । निहयंमि पुणो जीवे करडिओ तस्स सो निययं' ।।५१२४।। तो मुणिवयणं सोउं संभरिऊणं च पुव्वदुच्चरियं । बहुसज्झस-भयवेविरसव्वंगावयवनिवहेण ॥५१२५।। Page #477 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६८ भणिओ मए मुणिंदो खलियक्खरविरसवयणविन्नासं । ' हा रक्ख रक्ख सामिय ! एसो सरणागओ तुम्ह ||५१२६ । जइ तुह चरणसरोरुहसरणल्लीणा वि नाह ! सीयंति । तो ताण तिहुयणे वि हु को अन्नो कुणइ परिताणं ?” ||५१२७॥ मुणिणा भणियं 'सावय ! मा एवं भणसु सुणसु मह वयणं । जं जेण कयं कम्मं अणुहवियव्वं तयं तेण ।।५१२८ ।। चिट्ठउ अन्नो दूरे पहवंति पुरंदराइणो वि नो एत्थ । ताण वि कम्मवसाणं नत्थि परित्तावि (य) णो भुयणे ।।५१२९ ॥ चंदो वि रवी कहमवि परियत्तइ ससहरो रवित्तेण । कम्मं पुराकयं पुण को किर परियत्तिउं तरइ ? ||५१३० || केण वि सामत्थेणं परिवत्तिज्जइ तिलोयपरिवाडी । नियकम्मपरावत्तणकज्जे विहडंति सत्तीओ ।।५१३१ ।। तं नत्थि एत्थ भुयणे सिज्झइ जं किर न दुक्करतवेण । परकम्पनिराकरणे महातवस्सी वि असमत्थो ।।५१३२॥ तम्हा जं जेण कयं सुहासुहं तव्विहेहिं जोएहिं । सयमेव तेण तं चिय अणुहवियव्वं न संदेहो' ||५१३३|| तो पुण मए मुणिंदो भणिओ 'कह एरिसं महापावं । भयवं नित्थरियव्वं ? एत्थ उवायं समाइससु ॥५१३४॥ तो भणइ मुणिवरिंदो 'एयं पुण जुत्तिसंगयं वयणं । जं पुव्वदुक्कडाणं पुच्छसि किर उवसमोवायं ॥ ५१३५॥ ता सुणसु एगचित्तो कहेमि दुच्चरियउवसमोवायं । जमणंता काऊणं पत्ता अयरामरं ठाणं ॥ ५१३६॥ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ " Page #478 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६९ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ इह पुव्वदुक्कडेसुं अणुतावो जस्स अत्थि सो जोगो(ग्गो) । दिढबद्धं पि हु विहडइ पच्छायावेण दुकम्मं ||५१३७॥ एसो पुव्वभवंतरसमज्जियाणंतकिट्टकम्मोहं । अग्गिकणो व्व घर्णिधणपब्भार डहइ वडंतो ।।५१३८॥ एसो हत्थालंबो नरयमहाकूवनिवडमाणाण । एसो अजोग्गाणं पि हु उत्तरगुणजोग्गयं कुणइ ।।५१३९।। कुणइ अ कम्मदुगंछं मोहं निम्महइ जणइ मणसुद्धिं । वियरइ सम्मन्नाणं पयडइ संसारवेरग्गं ।५१४०।। जो भवविरत्तचित्तो सो च्चिय जोगो गुरूवएसाण । वेरग्गविरहियाणं हिओवएसो न लग्गति ॥५१४१॥ तुम्हारिसाण तम्हा पुट्विं मिच्छत्तमोहियमणाण । एसो पच्छायावो आसंघइ उज्जलगुणोहं ॥५१४२॥ ता भो ! भणामि सावय ! परमोवायं जिणेहि पण्णत्तं । एगंतसाहयं जं सत्तावटुंभसज्झं च ।।५१४३।। इह चयसु ताव पढम मिच्छत्तमसग्गहाण जं होउं । अंगीकरेसु सावय ! सम्मत्तं मोक्खतरुबीयं ॥५१४४।। जं एस परमधम्मो दुविहो वि हु जइ-गिहत्थमेएण । सम्मत्तसंजुओ च्चिय कम्मक्खयकारणं होइ ॥५१४५॥ मिच्छत्तमहामोहंधयारमूढाण एत्थ जीवाण । पुन्नेहि कह व जायइ दुलहो सम्मत्तपरिणामो ||५१४६।। रागद्दोसमलटुं सव्वपयत्तेण चित्तमाणिक्कं । सोहु(ह)सु संपइ निम्मलविवेयजलदव्वजोएहिं ॥५१४७।। Page #479 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४७० सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ अन्नाणपवणजणिया हिययसमुद्दे वियप्पकल्लोला । अणवरयं वटुंता निरंभणीया पयत्तेण ॥५१४८।। एए इंदियचोरा दुनिग्गहा ते वि निग्गहेयव्वा । अविणिग्गहिया जम्हा मुसंति परलोयंसपत्तिं ॥५१४९।। सव्वेसु वि सत्तेसु समभावं सव्वहा वि अब्भससु । इट्ठाणिट्ठवियप्पो न जईहिं कयाइ कायव्वो ||५१५०।। सावज्जजोगपरिवज्जणेण निरवज्जजोगकरणेण । अप्पा नणु कायव्वो निल्लेवो मोक्खकंखीहिं ॥५१५१।। दुद्धरपंचमहव्वयपरिपालणतग्गएक्कचित्तेण । नियजीवसंसए वि हु न ताण मालिन्नयं कुज्जा ॥५१५२।। इरियाइयाओ सम्मं समिइ(ई)ओ पंच पालियव्वाओ । गुत्तीहिं गोवियव्वो सब्भितर-बाहिरो अप्पा ॥५१५३।। हियए विचिंतिउं जो न जायइ दीणेहिं दुक्करत्तणओ । तेण तवेणं अप्पा तवियव्वो बारसविहेण ।।५१५४।। कायव्वाओ विहीए(इ) मासाईयाओ विविहपडिमाओ । अप्पा हु सोसियव्वो दव्वाइअभिग्गहेहिं पि ॥५१५५।। अण्हाणं भूसयणं निप्पडिकम्मत्तणं च देहस्स । सिरकुंचसमुल्लुंचणमणवरयं होइ कायव्वं ।।५१५६।। अइदुसहा सहियव्वा बावीस परीसहा महाघोरा । दिव्वायिणो य सम्म उवसग्गा एत्थ सोढव्वा ॥५१५७॥ लद्धाए नेय हरिसो न विसाओ तह अलद्धभिक्खाए । लद्धावलद्धवित्तीए पोसियव्यो निओ देहो ॥५१५८।। Page #480 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ किं बहुणा ? अट्ठारससीलंगसहस्सगुरुमहाभारो । वोढव्वो अणवरयं बाढमविसं(स्स)तचित्तेण ||५१५९॥ . इय एस मए कहिओ अणंतभवजणियपावकम्माण । निम्महणो किं पुण ते इह जम्मकयाण नो होही ? ॥५१६०।। ता जइ सच्चं सावय ! निम्विन्नो दुहफलाण पावाण । एएण उवाएणं ता चिंतसु अत्तणो मोक्खं ।।५१६१।। एएण उवाएणं जहुत्तविहिणा पउंजिएणेह । निहयनरयाउओ पुण पाविह(हि)सि कमेण निव्वाणं ।।५१६२।। एयस्स तिहुयणे वि हु पुव्व(ब्बु)त्तविसुद्धसाहुधम्मस्स । अउरुव्वो सामत्थो अवाय-मण-गोयरो जम्हा ।।५१६३।। जं चिंतिउं न तीरए मणोरहाणं अगोयरे जं च । तं एस साहुधम्मो साहइ जं जयअसझं पि ।।५१६४।। जइ नरयभउब्भंतो अहवा जइ सिद्धिसोक्खकंखी य । ता साहुधम्मुवाए बहुदुक्खहरे समुज्जमसु' ।।५१६५।। तो मुणिवयणाणंतरमसरिसहरिसुल्लसंतपुलएहिं । नमिऊण मुणी भणिओ ‘इच्छामो तुम्ह अणुसद्धिं ।।५१६६॥ भणिओ मए मुणिंदो एसो च्चिय भव-भवंतरकयाण । पावाण छेयकारी अणुचरियव्वो मए धम्मो' ॥५१६७।। तो नरवइणा भणियं 'भयवं ! भवसायरे निबुहृतं । मं उद्धरसु महायस ! सुसाहुदिक्खापयाणेण' ।।५१६८।। चोरेण वि मुणिनाहो पसंतचित्तेण पणिओ एवं । 'भयवं ! एयावत्थासमुचियमिच्छामि आएसं' ।।५१६९।। १. अवाङ्मनोगोचरः ।। Page #481 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४७२ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ तो भुणिवरेण भणियं 'देवाणुपियाइं ! चयह पडिबंधं । तुम्ह मणवंछियत्थे एस अहं सम्ममुजु(ज्जु)त्तो' ।।५१७०।। तो मुणिणा पुण भणिओ चोरो ‘मा कुणसु किं पि मणखेयं । निहयपयजुयलटंको एक्वदिणं आउयं तुज्झ ।।५१७१।। तो अणसणेण सम्मं पंचनमोक्कारमेव झायंतो । कयसव्वजंतुमेत्ती पंडियमरणेण मरसु तुमं' ॥५१७२।। तो सो मुणिंदवयणं 'तहत्ति पडिवज्जिऊण सुद्धप्पा । कयपाणपरिच्चाओ सोहम्मे सुरवरो जाओ ।।५१७३।। तो राया कयखेओ कारावइ तस्स अग्गिसक्कारं । पुण वंदिऊण साहुं दोहिं वि एवं मुणी भणिओ ।।५१७४।। 'भयवं ! कंतिमईए करुणं काऊण कुणह उवयारं । आइसह जिणुद्दिटुं धम्मं सिवसोक्खतरुबीयं' ।।५१७५।। तो मुणिवरेण भणियं 'नरिंद ! अम्हे अपत्थिया चेव । जिणधम्मुवएसेणं परोवयारंमि उज्जुत्ता ॥५१७६।। परमेसा कंतिमई दूरमजोग्गा हिओवएसाण । दुक्कम्मवसा एसा ममंमि कोवं समुव्वहइ ।।५१७७॥ तो ते कयमणखेया विसमत्तं भाविऊण कम्माण । कयसूरिपयपणामा पविसंति पुरिं सवेरग्गा ||५१७८।। तो नरवइणा पुत्तो ठविओ रज्जंमि चंदसेणाए । ' नामेण चंदकेऊ पसत्थतिहि-करण-लग्गंमि ॥५१७९॥ अह दोहिं वि सविसेसं चेइयभवणेसु विविहविच्छडु । अट्ठाहियामहोसवमसमं काऊण पत्तेयं ॥५१८०।। .. Page #482 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ ४७३ पुण पूइऊण विहिणा फासुयदाणेण समणसंघं च । सम्माणिऊण सव्वं पणइयणं सयणवग्गं च ।।५१८१॥ कयकायव्वविसेसा पसत्थतिहि-करण-वार-रिक्खंमि । महया विच्छड्डेणं समागया गुरुसमीवंमि ॥५१८२।। गुरुणा वि सुत्तवन्नियविहिणा संसुज्झमाणपरिणामा । पव्वाविया कमेणं नियनियपरिवारपरियरिया ॥५१८३।। अब्भसियसाहुकिरिया दुवालसंगाण नायपरमत्था । दुक्करतव-चरणरया चिट्ठामो गुरुसमीवंमि ।।५१८४।। तो जायपरमवेरग्गवासणा नियसरीरनिरवेक्खा । गुरुणा समणुनाया एग्ग(ग)ल्लविहारिणो जाया ।।५१८५।। ता एवं मह सावय ! जायं वेरग्गकारणं तेण । संजायभवविराओ चरेमि घोरं तवच्चरणं' ।।५१८६।। तो भणइ वीरसेणो ‘भयवं ! वेरग्गकारणं तुज्झ । अइसुंदरं महायस ! संजायं भवविरायकरं ।।५१८७।। निसुणंताण वि एयं नराण संवेयकारयं चरियं । किं पुण समयविहूयं न तुम्ह सुविसुद्धचित्ताण ? ||५१८८।। धन्नो सि जेण तुमए नेहासंगेण निच्चपजलंतो । अहकलुसकज्जलफलो चत्तो दीवो व्व घरवासो' ॥५१८९।। एत्थंतरंमि सहसा विन्नत्तो देव ! अह मए वीरो । 'तुरियं पत्थुयकज्जे सुसावहाणो हवउ देवो' ।।५१९०॥ तो भणइ वीरसेणो ‘पढमं जिणवंदणेण पुण तुम्ह । पयंकमलदसणेणं पहीणपाओ(वो) अहं जाओ ।।५१९१॥ Page #483 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४७४ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ तुह अच्चब्भुयसच्चरियसवणसंजायसुद्धपरिणामो । पयडविवेयपईवो तुह पयसेवाए(इ) जाओ हं ।।५१९२।। इय भणिऊण नरिंदो पंचंगं पणमिऊण मुणिचंदं । सहिओ मए सवेगं उज्जाणवणाओ नीहरिओ ।।५१९३॥ अह जिणपूया-वंदणपडिहयविज्जोवघाइपावंसा । सुविसुद्धसाहुसेवाविढत्तबहुपुन्नपब्भारा ||५१९४।। सिरिवीरसेणअसरिसपहावसंजायविज्जसामत्था । दो वि समं चिय गयणे उप्पइया सुरकुमार व्व ।।५१९५।। पत्ता खणेण चंपं ओयरिया वासपुज्जजिणभुयणे । कयजिणपूया सम्म थुणामु परमाइ भत्तीए ||५१९६।। एत्थंतरंमि सूरो संझारुणकिरणकंतिकब्बुरिओ । पुव्वदिसावहुकुंकुमरसरइओ भालतिलओ व्व ॥५१९७।। आलोयसुहं पढमं संजायं तयणु दरदुरालोयं । तं चेव भाणुबिंबं खणेण जायं सुदुव्विसहं ।।५१९८।। जह जह कमेण गयणं आरुहइ रवी तहा तहा अहियं । पावइ पयाववुढ़ि(ड्डि) असेसतेयंसिहयपसरं ।।५१९९।। एवंविहमि समए नरसीहो विहियगोसकरणीओ । सेवयसयसंकिन्नो अत्थाणे तयणु उवविसइ ॥५२००।। तो विमलमईपमुहा उज्जलयरवेससोहियसरीरा । पविसंति पसन्नमणा सुमंतिणो तह अमच्चा य ।।५२०१।। एत्थंतरंमि भणिओ पडिहारो राइणा 'अरे ! तुरियं । हक्कारसु जोइसियं पुच्छामि पयाणसुहलग्गं' ||५२०२।। Page #484 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ तो आएसाणंतरमइतुरियगई पधाविओ दंडी । पुरओकयजोइसिओ समागओ रायवासंमि ।।५२०३॥ जोइसिओ नरवइणा :सत्थि'काऊण उत्तराभिमुहो । उवविसइ पुव्वकप्पियसमीववरविट्ठरे हिट्ठो ।।५२०४।। तो भणइ नरवरिंदो 'नेमित्तिय ! चिंतिऊण मह कहसु । पत्थाणसुहं लग्गं तुह पुट् िकहियकज्जंमि' ॥५२०५।। नेमित्तिएण भणियं 'जइ जिणवयणं पमाणमिह भुयणे । तो तुह पण्हाए फुडं गमणं चिय नत्थि चंपाओ' ।।५२०६।। तो नरवइणा भणियं 'जइ जो जरकंबलिं निवसिऊण । नियकंठकयकुठारो मह सेवालंपडो एइ ।।५२०७।। इह चेव वीरसेणो ता गमणं मज्झ खलइ निब्भंतं । इहरा नत्थि विलंबो ता सम्मं चिंतिउं भणसु' ॥५२०८।। नेमित्तिएण भणियं 'सच्चमिणं देव ! आगओ एत्थ । किं तु न सेवाकंखी तुज्झ अणत्थाय संपत्तो' ॥५२०९।। तो भणइ सकोवमणो नरसीहो रोसतंबिरनिडालो । . नेमित्तियस्स वयणं असद्दहंतो सगव्वो य ।।५२१०।। 'रे जोइसिय! अयाणय! तेण वि मह कह णु कीरइ अणत्थो? । बलिओ वि हु खज्जोओ कह तेओ हणइ सूरस्स ? ।।५२११।। संभवइ न आगमणं गणमाणो सव्वहा तुमं भुल्लो । कहमेत्थ सो पहुत्तो भूचारी जं न सो खयरो ॥५२१२।। भूमी वि मज्झ पय-पय-पच्चइयअसंखपणिहिसंकिन्ना । नीसेसदिसिपयट्ठियठाणंतरपुरिसदुल्लंघा' ॥५२१३।। Page #485 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४७६ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ जोईसिएण भणियं 'सच्चं सो भूमिगोयरो देव ! । केणावि उवाएणं समागओ तह वि तुह नयरिं' ||५२१४ ॥ राया भणइ 'विसत्थो होऊण निरिक्ख मा भयं कुणसु । जम्हा तुह वयणमिणं असंगयं अघडमाणं च' ।। ५२१५ ।। नेमित्तिएण भणियं 'नरिंद ! जइ सो न आगओ होज्ज । ता मज्झ सिरच्छेएण देव ! दंडं करेज्जाहि ।।५२१६।। राया भाइ 'निवेयसु कंमि पएसंमि संपदं वसइ । नेमित्तिएण भणियं 'चिट्ठइ सो वासपुज्जमि' ।।५२१७।। तो नरवइणा भणियं जइ एवं ता सुनिच्छियं भणसु । मा भणसु जं न कहियं असहामि अहं असच्चस्स ||५२१८ | नेमित्तिएण भणियं 'अन्नंपि कहेमि देव ! सो वीरो । एकंगो इह पत्तो वावायसु जइ समत्थो सि' ।।५२१९॥ तो जंपइ नरसीहो 'जइ तं पेच्छामि आगयं एत्थ । तो तुज्झ देमि रज्जं विचित्तजसमंडलाणुगयं ॥ ५२२० ।। ता उच्चलह तुरंता सामंता ! मउडबद्धमंडलिया । चिरगज्जियस्स संपइ निव्वाहं तुम्ह पेच्छामि ।।५२२१ ।। रे ! रे ! तरलतुरंगमखुरुक्खउच्छलियरेणुपूरेण । तं पिहिऊण ममारिं मारह हरिसाहणनिउत्ता ! ||५२२२ ॥ रे गयवइणो ! तुरियं तुम्हे वि करिंदघणघडाबंधं । काऊण तमेक्कुंगं चमढह पुरओ मह रसंतं ॥ ५२२३।।' रे रहवइणो ! रणरसविसारयं वीरसेणगुरुसत्तुं । नियरहमारोहंतं रक्खेज्जह परमजत्तेण ॥५२२४॥ Page #486 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ रे तंतपाल ! पुरओ निरंतरं नियनराओ(उ)होहेहिं । . कयसण्हखंडखंडं देह बलिं तं दसदिसासुं ॥५२२५।। अन्नो वि को वि जो मह संतिं अहिलसइ तस्स य असंतिं । सो सव्वपयारेणं तंमि वहत्थं समुज्जमउ' ।।५२२६॥ इय दाऊणाएसं असेसनियपरियणस्स नरसीहो । आपुच्छिउं गओ सो आवासं कणयरेहाए ।।५२२७।। 'वद्धाविज्जसि दइए ! तस्सागमणेण वीरसेणस्स' । इय पभंणतो राया विहसिरवयणो गओ पासं ॥५२२८॥ तो नेमित्तियवयणं सव्वं साहेइ कणयरेहाए । तीए वि पुणो भणियं 'कहं कहं आगओ सत्तू ?' ||५२२९॥ तो नरवइणा भणियं 'न याणिमो देवि ! कह इहं पत्तो ?' । भणियं तीए 'न एयं परिणामसुहावहं कज्जं ॥५२३०॥ जो भूमिगोयरो वि हु एकंगो जिणइ खयरसंघट्ट । मा रुस नरिंद ! तुमं का गणणा तस्स तुम्हेहिं ? ||५२३१।। सो वीसरिओ किं तुह सामत्थो देव ! वीरसेणस्स ? । एक्कंगेण वि जेणं धरिओ सि करेणुयारूढो' ॥५२३२।। जावेयं आलावा अन्नोन्नं ताण एत्थ वटुंति । ओयरमाणो सहसो ता दिट्ठो खेयरिसमूहो ॥५२३३।। तो नरवइणा भणियं 'दइए ! सो एस पवणकेउस्स । अंतेउरविज्जाहरिसंमद्दो आगओ एत्थ' ॥५२३४॥ तो समुचियपडिवत्तिं काऊण नरेसरेण भणियाओ । 'निव्वत्तियं असेसं मयकज्जं पवणकेउस्स ?' ||५२३५।। Page #487 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४७८ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ तो ताण पहाणयरा परमपिया तस्स पाव (पवण) केउस्स । नामेण मयणसेणा सखेयमिव भणिउमाढत्ता ||५२३६ ।। ' कह कीरइ मयकम्मं तंमि जियंतंमि दुद्ध ( ट्ठ) सत्तुंमि | जा तस्स न वच्छत्थलरुहिरनिवायंजलिं देमि ?' ।।५२३७।। तो चिंतइ नरसीहो 'एसा अणुक्कू (कू ) लभासिणी मज्झ । विज्जाबलसाहेज्जं करेइ ता सुंदरं होइ' ।। ५२३८ ।। पुण खेयहि भणियं 'मुच्छावडियाओ दुक्खदट्ठा (द्धा ? ) ओ । आसासियाओ तुमए सप्पणयं बंधवेणं च (व) ||५२३९|| तं तुह परमुवयारं हियए धरिऊण एत्थ आयाओ । सारमिणं जियलोए उवयरियं जं न वीसरइ' ||५२४०|| तो भाइ नरवरिंदो 'भइणि ! कहं तस्स रुहिरसलिलेण । नियत्तुणो किसोयरि! काहिसि मयकज्जमइविसमं ?' ||५२४१॥ तो भइ 'मयणसेणा जइ तं पेच्छामि अज्ज अच्छीहिं । ता तुज्झ संपयं चिय नियसामत्थं पयासेमि ।।५२४२ ।। जुयइत्ति अहव रंड त्तिदुक्खदड त्ति मा अवधीरे । भाय ! धरित्ती एसा बहुरयणा किं तए न सुयं ? || ५२४३ ॥ एयाओ अट्ठ अम्हे भज्जाउ तस्स पवणकेउस्स । जइ हुंतीओ समीवे रणमि ता सो न हारंतो' ।। ५२४४ ॥ भणियं नरसीहेणं 'जइ एवं ता करेह साहेज्जं । मह भाउणो अवस्सं तुह सत्तुं जेण मारेमि ॥ ५२४५ ॥ जो तुम्ह वेरिओ सो मज्झ विसेसेण नत्थि संदेहो । मह तुम्हाण वि पुन्नेहिं वासपुज्जमि संपत्तो ||५२४६ || Page #488 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ सो तुम्हाणं सुंदरि ! महासईणं पहावरज्जूए । मीणो व्व गलेण इहं वहाय आकरिसिओ याओ ||५२४७।। आओ त्ति निसुयमेत्ते फुरंतकोवारुणच्छिवत्ताहिं । निद्दयडसिउट्ठउडं 'हुं हुं' ति पयंपियं ताहिं ॥५२४८।। तो तक्खणेण अट्ठ वि विज्जाबलविहियघोररूवाओ । दिट्ठाओ नरिंदेण वि महाभउब्भंतनयणेण ॥५२४९।। 'हा रक्ख रक्ख सामिय ! किमेयमच्चब्भुयं तयं जायं । इय जंपिरीए राया परिरद्धो कणयरेहाए ।।५२५०।। आपिंगवट्टलोयणकरालदाढुद्धकविलकेसाओ । निच्छोल्लियमंससरीरमुक्कचम्मट्टिमेत्ताओ ।।५२५१।। मणसंभवंतरक्खसिभावेण व जाण भखि(क्खि)यमसेसं । लावन्न-रूव-जोव्वणमंतो-व्वस-मंस-महिराई ॥५२५२।। तो ताहिं तक्खण च्चिय भणिओ राया ‘किमज्ज वि विलंबो?। जावज्ज वि न करेमो नीसेसजयस्स खयकालं ॥५२५३।। तो तंमि चेव निवडउ समकालं रोसजलणजालोली । जम्हा विहत्तदेहो वसइ जमो अट्ठसु इमासु' ॥५२५४।। तो भणइ कणयरेहा 'न याणिमो देव ! कज्जपरिणामं । भमइ व्व मज्झ हिययं कुलालचक्के व आरूढं' ।।५२५५।। 'मा बीह पिए ! संपइ सिद्धं कज्जं न एत्थ संदेहो । जं सो वि एत्थ पत्तो एयाओ वि एत्थ पत्ताओ' ॥५२५६।। एमाइ कणयरेहं धीरविऊणं विणिग्गओ राया । ताहि समं पुरिलोयं भयतरलच्छं निरिक्खंतो ॥५२५७।। Page #489 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८० सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ एत्तो वि वीरसेणो वसुपुज्जाराहणं करेमाणो । जावच्छइ ताव तहिं विलासिणी आगया एगा ।।५२५८।। अप्पसमाहिं समेया चेडीहिं समाणभूसणधराहिं । नियलावन्नमहोयहिपडिबिंबियनियसरीर व्व ।।५२५९।। वरवेसरिमारूढा बहुविहपूओवगरणहत्थेण ।। नियपरियणेण जुत्ता ताराणुगया ससिकल व्व ॥५२६०।। नियदेहपहापोसियभूसणमणिकिरणजायपरिवेसा । गुरुसोहग्गायड्डियरविणेव्व सयं समवऊढा ॥५२६१।। पुरहुत्तसहीदावियदप्पणसंकंतवयणपडिबिंबा । हिययनिहित्तवराणणअतित्तससिणो नियंति व्व ॥५२६२॥ वामकरकलियवग्गा इयरकरासत्तसरलकसलट्ठी । जा मयणरायबंधणताडणबहुल व्व गुरुगोत्ती ॥५२६३॥ जा सव्वंगविहूसणमणीसु संकंतपेच्छयजणच्छी । रूवाणुरत्तवासवनिहित्तनीसेसनयणे व्व ॥५२६४।। सहिवत्थंचलवारियसुयंधमुहगंधघडियभमरोली । मसिनिमि(म्मि)यथूलक्खरवैसियसत्थं व विरयंती ॥५२६५।। उभयंसपासगायणगीयरसावेसमउलियच्छिउडा । कारिममुद्धवियारणसंमोहणमब्भसंति व्व ॥५२६५।। इय कामजयपडाया जयप्पडाइ त्ति नाम सुपसिद्धा । संपत्ता तित्थेसरदुवारदेसंमि सा बाला ॥५२६६।। उत्तरइ वेसरीओ पुंजियबहुदास-दासिपरियरिया । कयचलणसोयकम्मा पविसइ वसुपुज्जभवणंमि ॥५२६७।। Page #490 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ वरगंध-वास-कुसुमक्खएहिं नेविज्ज-धूव-दीवेहिं । परिपूइऊण देवं पुण वंदइ परमभत्तीए ॥५२६८॥ अहिवंदिऊण देवं पयाहिणं जाव देइ उवउत्ता । दिवो ताव भवंतिय-गवक्खपंतीए वीरवई ।।५२६९॥ भुवणच्चब्भुयनरनाहरूवदंसणसविम्हओभंता ।। न तरइ पुरओ गंतुं न य लज्जापरवसा ठाउं ॥५२७०॥ अइकुसलस्स वि दुल्लहनेहविमूढस्स किं पि तं होइ । न गुणा न बुद्धिपसरो न धीरिमा जत्थ उवयरइ ॥५२७१।। जह तीए जयं पि पुरा सनेहराएण पाडियं दुत्थे । . दिन्नपडिहो गओ तह निवाडिया सावि कुमरेण ॥५२७२।। मा कुणउ को वि गव्वं जोव्वण-सोहग्ग-रूव-दव्वेहिं । किं कीरइ जयमेयं गरुयाणं संति गरुययरा ॥५२७३॥ हिययभंतरपसरंतगरुयपेम्माणुरायविवसाए । जायं वियक्खणाए वि मुद्धत्तं जयवडायाए ।।५२७४।। दिट्ठो सुहेण पुरओ तिरिच्छवलियच्छमऽहतिरिच्छच्छो । दइओ वलंतकंठच्छिमणहरंतीए पिटुंमि ॥५२७५।। नवकन्नपूरमंजरिविलग्गभमडंत(?)ताररम्मेहिं । तरलायइ न कुमारो विद्धो वि हु तीए नयणेहिं ॥५२७६।। तो विणयपणयसारं निकारिमनेहनिब्भरं तिस्सा । दटुं तहासरूवं सदयं वीरो मए भणिओ ॥५२७७॥ 'वच्चउ खयं नराहिव ! जम्मो वेसाण पयइकुडिलाण । सब्भावो वि हु जाणं नज्जइ मायापवंचो व्व ॥५२७८॥ 32 . Page #491 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८२ एवं न देव ! जइ ता सब्भावसिणेहसंगया तहवि । अवहीरिया लए कह एसा 'धुत्ति'त्ति काऊण ? ।।५२७९ ॥ निक्कारिमनेहाए इमीए जो तुज्झ 'कारिम'त्ति मई । सो तुज्झ पंडियस्स वि अयाणुयत्तं पयासेइ' ।। ५२८० ॥ तो भइ वीरसेणो 'सुजाण ! कह जाणियं तए एयं ? | जं किर ममंमि एसा सब्भावसिणेहरत्त त्ति ?' ।। ५२८१ ॥ तो पुण मए पभणियं 'रोमंच - पकंपमाइणो देव ! । एए सत्तियभावा न कारिमा होंति नियमेण ॥५२८२॥ संगोस्सिइ पुलयं पिहुलपडतेण कहवि अंगेसु । जिणवंदणत्थविरइयकरंजली न य पउट्ठेसु ।।५२८३ ।। संगोवइ मयणवियारचेट्ठियं विहियहिययपागब्भा । थरहरियथूलथणहरपयडं कह पिहउ तणुकंपं ? ।। ५२८४ ।। कूडुत्तरबहुलाए वि होही अन्नत्थ उत्तरमिमी । आणंदबाहसंदिरनयणेसु किमुत्तरं दाही ? ।।५२८५ ।। तो देव ! इमे भावा न हवंति कया वि कारिमसरूवा । तेण विनिच्छइऊणं भणामि निक्कारिमा एसा' ||५२८६ ॥ एत्यंतरंमि बाला सव्वं जिणवंदणाइवावारं । काऊण सहीहिं तओ सहासमिव पुच्छिया एवं ॥ ५२८७ ॥ 'सहि ! अज्ज महच्छरियं असंभवं जायमणणुहूयं च । किं अम्ह चेव एयं अह तुज्झ वि फुरइ चित्तंमि ? ||५२८८ ॥ जं जिणपुयच्चण-वंदणाइ सव्वं तदेकचित्ताए । अणुचेट्ठियं पयाहिणकम्मं तु परव्वसाए व्व ॥५२८९ ॥ पृथुलवस्त्रांतरितत्वेन, खंता. टि० ॥ पिहुलपडतेण १. सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ { Page #492 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ ४८३ किं ते अपडुसरीरं ? किं वा कज्जंतरेण केणावि । अवहरियं ते चित्तं? अन्नं वा किं पि? तं कहसु' ॥५२९०॥ निउणसहीयणविनायवीरसेणाणुरायमेसा वि । मुणिऊण कज्जकुसला जहत्थपडिउत्तरं देइ ॥५२९१।। 'सहि ! पंडियाण पुरओ जो जंपइ जडमई अपरमत्थं । सो कुणइ सिणेहखयं पत्थुयकज्जं च नासेइ ।।५२९२।। ता सुटठु लक्खिओ मह सहीओ ! तुम्हेहिं माणसवियारो । जइ सच्चं निउणाओ ता जाणह साहणोवायं ॥५२९३।। जइ मज्झ न संपज्जइ तुब्भेहिं वि एस निउणबुद्धीहिं । ताऽकिंचिकरत्तेणं तुम्हं सलिलंजलिं दाउं(दाहं?) ||५२९४॥ तुब्भे वि मह पमाणं एवंविहकज्जसाहणोवाए । जइ कइया वि सहीओ मए निउत्ताओ ता कहह ।।५२९५।। को को न सहीउ मए दोसो काऊण वाहिओ पुरिसो । दासित्तणं पि मन्ने एयंमि पुणो मह दुर्लभं' ।।५२९६॥ तो सा सहीहिं(हि) भणिया ‘मा झूरसु करिसिओ तुह गुणेहिं । सयमेव वसे होही एस जुवा नत्थि संदेहो ।।५२९७।। दिढे तुज्झ सरूवे केत्तियमेत्तं व रागिणो पुरिसा ? । वस्सिदिया वि मुणिणो गयरागा ते वि खुब्भंति ॥५२९८।। तुह चेव रूव-जोव्वण-सोहग्ग-विलास-हासमाईया । दूया हवंति सुंदरि ! अवयासो कत्थ अम्हाण ? ||५२९९।। जो होइ अप्पणा किर हीणगुणो तस्स पाडुयवसेण । संपडइ कज्जसिद्धी न उणो तुम्हारिसजणस्स' ॥५३००॥ Page #493 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८४ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ तो भणइ जयवडाया 'तुब्भे मुद्धाओ जाणह न किंपि । वस्सिदिओ महप्पा अन्नो च्चिय को वि एस जुवा ॥५३०१॥ मह दंसणमेत्तेण वि चलंति बुद्धीओ इयरपुरिसाण । एएण स च्चिय अहं सच्चविया रोरनारि व्व ॥५३०२॥ तो मुणह महापुरिसं गरुयं अइगरुयवंससंभूयं । जयपयडविक्कमगुणं अखुहियरयणायरगहीरं' ।।५३०३।। तो सा सहीहिं भणिया 'सहि ! सच्चमिणं जहा तए नायं । अम्हेहिं पि न नाओ तस्स मणागपि मणभावो ॥५३०४।। ता सहि ! पत्तावसरं एयं चिय ताव कीरउ रसहूं । जिणनाहपुरो संपइ पेच्छणयं परमभत्तीए ॥५३०५।। जम्हा अणंतपुन्नं सगीय-वाइत्त-नट्टमाईहिं ।। कहियं जिणागमे किर अणंतवरनाणसीहिं ॥५३०६।। जिणनाहचरणसेवा फलइ अकालंमि कप्पवल्लि व्व । सामन्ना वि हु किं पुण विसेसओ गीय-वायकया ।।५३०७।। पारद्धे पेच्छणए कोऊहलतरलिओ जइ न एही । दटटुं तुह पेच्छणयं ता अम्हे वाहरिस्सामो ॥५३०८।। पेच्छणयदंसणत्थं समागए तंमि वरजुवाणमि । सावेक्ख-निरावेक्खं सरूवमवलो(य)इस्सामो' ॥५३०९।। ‘एवं होउत्ति तओ भणिउ सिरिवासुपुज्जनाहस्स । पारद्धं पेच्छणयं पेच्छयजणजणियसंतोसं ॥५३१०॥ दिज्जइ पढमं आओज्जिएहिं बिहिरियनरंतराभोओ । भयपरिरंभियखेयरिपियसत्थो गहिरसवहत्थो ॥५३११॥ Page #494 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ पसरंति महुरमणहर-मंसलवरवेणु-सललिउल्लावा । आकुंचियदिढतंती-विचिसंचारिया धुवया ॥५३१२।। वजंति पडह-झल्लरि-मुयिंग-डक्का-हुडुक्क-घणपाडं । सरसत्तणं खणेणं समागयं तत्थ पेच्छणयं ।।५३१३॥ एत्थंतरंमि भणियं कन्नोसारेण जयवडायाए । पेच्छह सहीउ ! सुहओ दलृ पि समागओ नेह' ||५३१४।। तो सव्वसहीणं पि हु पहाणभूया पगब्भभावा य । नामेण नागदमणी सा भणिया जयपडायाए ॥५३१५॥ 'सहि ! जाहि सिक्खविज्जसि किं किर?आणेहि तं सुहयं । तिप्पंतु लोयणाइं तदसणअमयपूरेण' ॥५३१६॥ तो सा तव्वयणेणं गंतूण भवंतिया-गवक्खंमि । कयवीरपयपणामा पत्थुयकज्जं पजंपेइ ॥५३१७॥ 'धिट्ट त्ति निठुरत्ति य सुदुव्वियड्ड त्ति अणुचिउन्न त्ति । मा देव ! मं वियप्पसु पयइ च्चिय एरिसी अम्ह ||५३१८।। ता एस सयलतिहुयणपरमुवयारित्तणेण जिणनाहो ।। जयबंधवो महप्पा न कस्स किर पूयणिज्जो त्ति ? ॥५३१९।। ता कह एवंविहपरमदेवयं पइ अणायरो तुम्ह ? । जेण इह संठिया वि हु पेच्छह न महोच्छवं तस्स?' ||५३२०॥ तोऽहं भणामि एवं भूसन्नापेरिओ कुमारेण । सच्चं तुमए भणियं भुयणस्स वि बंधवो भयवं ॥५३२१।। पाइयलोओ वि न एत्थ अन्नहा कुणइ किर विसंवायं । जो परमसम्मदिट्ठी सो मह सामी कहं कुणइ ? ||५३२२।। Page #495 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८६ जिणदंसणपूयण-वंदणेहिं जायंति उच्छवा सव्वे । ते पुण अम्हं जाया कयकिच्चा तेण चिट्ठामो ||५३२३ ॥ नियभत्ति - विहवसरिसं जिणिदलुहुदुक्खुडं करतंमि । अणुमोयणं कुणंतो तत्तुल्लफलो नरो होइ ॥ ५३२४।। लोयववहारमेत्तं पि जो न जाणइ नरो व्व नारिव्व । सो कह अणुमाइज्जइ उचियपवित्तिं अयाणंतो ।।५३२५ ।। अभागया हु अम्हे तुम्हे पुण एत्थ चेव वत्थव्वा । अब्भागओ खु पुज्जो गुरु व्व वत्थव्वलोएण || ५३२६ || ता तुम्ह सामिणी सा नियजोव्वण-रूव्व (व) - विहवगव्वेण । उम्मत्ताए व न कयं संभासणमेत्तमवि अम्ह || ५३२७ ।। सव्वस्स वि विणओ च्चिय आवहइ जणे अईवसोहग्गं । वेसाण पुणो सो च्चिय भुयणवसीकरणमंतो व्व' ||५३२८|| तो भणइ नागदमणी ' मा रूसह मह सहीए मणयं पि । तुह चेव सामिसालो सव्वाणत्थाण इह मूलं ।।५३२९ ।। सव्वो च्चिय अवराहो इमस्स असमंजसेकहेउस्स । जा विणयनिदरिसणमवि दुव्विणयं जेण सिक्खविया' ॥५३३०॥ तो सा वि मए भणिया 'असच्चभासिणि ! असंगयं भणियं । कह दंसणमेत्तेण वि दुव्विणओ तीए संकेतो ?' ।।५३३१॥ नागदमणीए भणियं 'ससिदंसणमेत्तमुक्कनियपयई । कयकल्लोलविलासो उल्लसइ महोयही कह णु ? ||५३३२ || एक्कस्स दंसणेण वि सूरस्स अणंतकमलसंडाई । विहडंतसरसदलसंपुडाई कह नाह ! वियसंति ?” ।।५३३३ ।। सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ Page #496 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८७ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ तो भणइ वीरसेणो ‘किं बहुणा पलविएण ? वच्चामो । रे वज्जबाहु ! उट्ठसु संतोसो होउ एयाण' ।।५३३४।। तो गंतूण कुमारो पंचंगपणामपणमियजिणिंदो । चइऊण दिन्नमासणमुवविसइ धराए जिणपुरओ ॥५३३५।। तो कुमरदसणत्थं परिवत्तियवयण-दरनिहित्तच्छी । पवण]णुवत्तियकमला तरलदला सहइ नलिणि व्व ॥५३३६।। ते च्चिय नयणनिवेसा ते च्चिय सव्वंगसंठियावयवा । दिलृमि पिए परिवत्तिय व्व अन्नारिसा होति ।।५३३७।। अजरो सरीरकंपो अगहियपिसायं व होइ विवसत्तं । निम्मइरमओ दइओ एक्को वि अणेगहा होइ ।।५३३८।। तो बहुनच्चिरनच्चणिकमेण भरमागयंमि पेच्छणए । लद्धावसरा उट्ठइ पणच्चिउं जयवडाया वि ।।५३३९।। बहुसावहाणगायण-मणन्नमणजायवायणसमूहं । अन्नोन्नुवरिघणाघणपेच्छयजणजणियसम्मइं ॥५३४०॥ विरयनिमेसुम्मेसं जहठाणपरिट्ठियंगविन्नासं । संपत्तमूयभावं पेच्छणयं चित्तलिहियं व ॥५३४१॥ गाइज्जइ जिणनाहो नच्चिज्जइ भरहसंगओ भावो । वाइज्जइ तालगयं तिण्ह समत्तं लओ भणिओ ॥५३४२।। नच्चंती सा पढमं घणकुंकुमपंकपिंजरपयग्गा । पक्खिवइ रंगमज्झे रत्तुप्पलपुप्फपयरं व्व ॥५३४३॥ झणझणिरचरणनेउररयपयडियपायवाडववएसा । नट्टावय व्व चरणा नट्टविहिं जीए स(सा?)हिंति ॥५३४४।। " Page #497 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८८ उव्विल्लिरकरपल्लवघणयरपल्लवियगणयपेरंता । नीलुप्पलमालाहिं व दिसाओ ( उ ) अच्चेइ तरलच्छी ।। ५३४५ ।। सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ अंगुव्वत्तणपसरियपंडुरकिरणोहतारहारलया । जिणसेवाए समज्जियनिम्मलयरपुन्नकलिय व्व ॥ ५३४६ ॥ करचालणवसचंचलकणंतमणिकंकणावलिपओट्ठा । न मुहेण ल्ल (ल) ज्जमाणा कहइ व्व करेहिं करवाडं || ५३४७ || इय वियडनियंबत्थलरणंतमणिदामकिंकिणिकरालं । दट्ठूण तीए (इ) नट्टं चिंतइ वीराहिवो तुट्ठो ।।५३४८।। ' हत्थंमि जत्थ दिट्ठी, दिट्ठीए रसो, रसंमि फुडभावो । उप्पायइ अच्छरियं न कस्स नट्टं ससिमुहीए ?" || ५३४९ ॥ तो निरुवमपुन्नपहावपत्तमणवंछियत्थसंपत्ती । गयणाओ ( उ ) तीए कुमरो देइ सुदेवंगवत्थाई ॥ ५३५० ॥ तो लोयदुल्लहाइं मणिकुंडल-हार-कंचि-दामाई । उभयकरकंकणाली- चरणाहरणाई दिन्नाई ।।५३५१ ।। लोके (क्के) वि असज्झं न किंपि पुन्नाणुबंधिपुन्नाण । कहमन्ना कुमारो दुहइ नहं कामधेणु व्व ? ।। ५३५२ ।। तो वित्तं पेच्छणयं पेच्छयलोओ गओ नियं ठाणं । कुमरो वि पुव्ववन्नियठाणंमि गओ गवक्खंमि ||५३५३ || तो सहसा उच्छलिओ अकुंदरवो सहीसमूहस्स । निसुएण जेण कुमरो करुणाए परव्व (व) सो जाओ || ५३५४ ॥ तो भइ सदुक्खमणो 'तुरियं रे वज्जबाहु ! अन्निसिउं । मह कहसु किंनिमित्तो नारीण इमो महकुंदो ?' ।।५३५५ ।। 1 Page #498 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८९ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ तो जामि अहं तुरियं तत्थ खणं अच्छिऊण विणियत्तो । तव्वइयरमुणियत्थो कहेमि सव्वं कुमारस्स ॥५३५६।। ‘सा देव ! जयवडाया पयाहिणावसरमुणियमणभावा । तुह पढमं चिय कहिया तए वि 'वेस'त्ति परिभूया ।।५३५७।। तो देव ! संपयं सा सहीहिं अब्भत्थिया बहुपयारं । इच्छइ न गेहगमणं तुज्झ विओयं अणिच्छंती ।।५३५८।। तो सा सरोसनिठुरसहिवयणायन्नणेण अहिअयरं । तुज्झ अलाभुद्दीवियसंतावं वहइ अंगम्मि ॥५३५९।। पुण सा सहीहिं भणिया 'जाउ क्खयं तुज्झ एरिसविवेओ । गांधारि ब्व अकज्जे अप्पाणं जं विडंबेसि ॥५३६०।। नियजीयसंसए वि हु न होइ तुम्हारिसीण नारीण । एवंविहं सरूवं जणंमि उवहाससंजणयं ।।५३६१।। को मच्छरो गुणेसुं ? सोहग्गनिहि क्खु सो महापुरिसो । भग्गो जेण अभग्गो सोहग्गमडप्फरो तुज्झ ।।५३६२।। अइसुहएण वि गुणवंतएण किं तेण सहि ! सुरूवेण ? । जो मुणियतुहसरूवो करुणामेत्तं पि नो कुणइ ? ।।५३६३।। साहीणे च्चिय रज्जसु न पराहीणंमि सुठु वि गुणड्डे । नणु चक्कवट्टियरिणीराओ रंकस्स दुहहेऊ ।।५३६४।। तो सो अन्नासत्तो तस्स पुरो चयसि जइ वि नियपाणे । तो वि तुह उत्तरं सो वरिससहस्सेहिं वि न दाही' ।।५३६५।। तो देव ! इमं वयणं सहीण सोऊण निहयपच्चासा । तलछिन्नवणलया इव मुच्छाए महीयले पडिया ॥५३६६।। Page #499 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४९० सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ सा देव ! तक्खणे च्चिय मिलाणसव्वंगसुंदरावयवा । दुल्लहजणाणुरत्ता पत्ता जणसोयणीयत्तं ।।५३६७।। तो देव ! समुच्छलिओ करताडणतुट्टहारवच्छयलो । उप्पाइयकरुणरसो अक्कंदो सयलनारीण ॥५३६८।। एयं तुज्झ सरूवं फुडवियडत्थं मए समक्खायं । जं एत्थ होइ उचियं तं देवो कुणसु सयमेव' ||५३६९।। तो भणइ वीरसेणो ‘सच्चमिणं उचियमेव कायव्वं । पन्नंगणाय(इ) संगो, गरुयाणं अणुचिओ होइ ॥५३७०।। अणुरत्ताउ वि सुंदर ! गुणगंधविवज्जियाओ वेसाओ । जा सुयणमालियाओ व न होंति परिभोगजोगाओ ॥५३७१।। एयाओ गुणड्ढाओ वि भुयंगसंगोवियाओ भीमाओ । सज्जणविवज्जियाओ दूरं चंदणलयाओ व्व ।।५३७२ ।। वग्घीसु व वेसासु पयईए भयावहासु को नेहो ? । कूरत्तणेण जाणं दंसणमवि हणइ विस्सासं ॥५३७३।। देहसरूवेणं चिय सरलाओ गईए होति कुडिलाओ । परभक्खणनिरयाओ वेसाओ भुयंगियाओ व्व ॥५३७४।। एयाहि सह पसंगो सुंदर ! सुकुलुग्गयाण पुरिसाण । लज्जावहो खु पढमं पुण मइलइ निम्मलगुणोहं ।।५३७५।। ताव च्चिय गरुयत्तं ताव च्चिय फुरइ निम्मला कित्ती । ताव च्चिय सुगुणित्तं जाव न वेसाहि सह संगो' ॥५३७६।। तो पुण मए वि भणियं ‘अवितहमेयं न अन्नहा देव ! । पुव्वुत्तसरूवाओ वेसाओ होति नियमेण ॥५३७७॥ Page #500 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ किंतु नरो कज्जत्थी परिभावियदेस - कालउचियत्थो । आयरइ अणुचियं पि हु इह-परलोयाविरोहेण ॥ ५३७८ ॥ कज्जं तुह सत्तुजओ सो वि उवायंतरेण कायव्वो । को मुणइ केत्तिएहिं दिणेहिं पुण लब्भइ उवाओ ? ||५३७९ ॥ तो अम्ह एत्थ देसे सव्वो च्चिय अहियचिंतओ लोओ । मोत्तूण जयवडायं निक्कारिमपेम्मपरतंतं ॥५३८० ।। तो तीए घरे नरवर ! काऊण अवट्ठि विसत्थमणो । नरसीहनिग्गहे पुण नरिंद ! परिभावसु उवायं । । ५३८१ ।। एसा वि देव ! वेसा एएण कमेण मन्निया होइ । तंवं (तव्यं) छियकरणेणं निद्दक्खिन्नं पि परिहरियं ॥५३८२॥ तो देव ! मह पसायं काऊण इमीए परमकारुन्नं । कायव्वमणुचियं पि हु' पडिओ पाएसु इय भणिउं ।।५३८३ ।। तो मज्झ गरुयउवरोहपीडिओ कज्जसिद्धिकयचित्तो । तक्करुणागयहियओ पडिवज्जइ सयलमवि वीरो || ५३८४ ॥ तो पुण मए पभणियं 'जामि अहं ताण तुह पसायमिणं । साहेमि जेण जायइ अइगरुओ चित्तसंतोसो' ||५३८५ ॥ तो भाइ वीरसेणो 'एवं कुणसु' त्ति पभणिओ अहयं । गंतूण जयवडायं तोसेमि कुमारवयणेहिं ॥५३८६ ।। अणुकूलदइयवयणं सोउं हरिसुल्लसंतरोमंचा । मन्न तिहुयणरज्जाहिसेयलाभो व्व परिओसं ||५३८७ || पुणरवि मए भणियं कन्ने ठाऊण जयवडायाएं । 'एयं खु गुत्तकज्जं नाऊण जहोच्चियं कुणसु' ||५३८८ || ४९१ Page #501 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४९२ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ तो भणइ जयवडाया ‘एवं काहामि जं तुम भणसि । पहुणो हिएक्कनिरया अवस्समणुजीविणो होति ।।५३८९।। तो भणिया सा वि मए ‘जाह तुमे पुण खणंतरेणेव । कुमरो वि आगमिस्सइ' इय भणिए निग्गया बाला ॥५३९०॥ कुमरो वि खणद्धेणं जिणिंदपयपंकयं पणमिऊण । सद्धिं मए तुरंतो उप्पइओ गयणमग्गंमि ||५३९१।। तो देव ! मए विरइय-अदिट्ठविज्जापहावओ वीरो । लोएहिं अदीसंतो संपत्तो तीए गेहमि ।।५३९२।। कयमंगलोवयारो पविसइ एगंतवासभवणंमि । देवो व्व देवलोए चिट्ठइ सह जयवडायाए ॥५३९३।। एत्तो य सयलबलभर-भरंतधरणीयलो य नरसीहो । नीहरइ सनगरीओ नहमि खयरीओ(उ) पेच्छंतो ॥५३९४।। नेमित्तिएण सहिओ रोसारुणनयणजुयलदुप्पेच्छो । संपत्तो जिणभवणं परिवेढइ तं पि सेन्नेहिं ।।५३९५।। तो निउणयरनिरिक्खिय कुमारमंतो बहिं च अनियंतो । पुण पुच्छइ जोइसियं 'कहमेवं विनडिया तुमए ?' ||५३९६।। नेमित्तिएण भणियं जंमि मुहुत्तंमि पुच्छियं तुमए । तंमि इह च्चिय हुतो नरिंद ! न हु एत्थ संदेहो' ||५३९७॥ तो जंपइ नरनाहो ‘किं बहुणा बंभणित्थ भणिएण ? । संदेहतुलारूढं रक्खेज्ज ममाओ(उ) अप्पाणं' ॥५३९८।। अह ताओ रक्खसीओ अट्ठ वि गयणाओ ओयरंतीओ । दिट्ठाओ नरिंदेणं भयविहडियबलसमूहेण ॥५३९९।। Page #502 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ ओयरिऊण पसारिय- करालमुहखित्तमंसखंडाओ । परिवेढिऊण रायं कत्तियहत्थाउ थक्काओ || ५४०० । तो भइ मयणसेणा ' रक्खसिवे (वि) ज्जाए एरिसी पयई । अप्पाणप्प-हियाहिय-भक्खाभक्खक्कमो नत्थि ||५४०१॥ ता वेगेण नरेसर ! तं सत्तुं सव्वहा समप्पेहि । मा भणसु जं न कहियं कूरमणा रक्खसा जेण ||५४०२ || जइ कह वि न पावेमो तं पावं ता जलंतजढराण । अम्ह बुभुक्खोवसमं जो काही तं पि आइक्ख' ||५४०३|| तो भइ नरवरिंदो 'अज्ज वि जोइसिय ! किंपि जंपेसु । जाव न नासइ कज्जं इहरा तुह आगओ मच्चू' ||५४०४ || नेमित्तिएण भणियं 'जं जाणसि तं नरिंद ! मह कुणसु । जाणतो वि हु संपइ कुमरं न कहेमि, किं भणसि ?' ||५४०५।। तो राइणा सरोसं जोइसियं दंडवासिपुरिसाण । तुरियं समप्पिऊणं विसइ सयं जिणवरगिहंमि ||५४०६ || तो तत्थ देवदंसण- समागयं जणवयं पि पुच्छेइ । घरपीडमणिच्छंतो सावयलोओ वि न कहेइ ||५४०७ || देसंतरागएणं एगेण दियाइणा तओ कहियं । जं जहवित्तं सयलं वीराहिव - जयवडायाण ||५४०८|| दट्ठोट्ठभिउडिभासुर-विमुक्कछणघोरघग्घररवेण । नरसीहनरिंदेणं सरोसमिव भणिउमाढत्तं ॥ ५४०९ ॥ 'पेच्छ मह तेत्तियस्स वि विविहपसायस्स तस्स पणयस्स । कह लज्जियं न तीए जं सत्तू नियघरे छूढो ? || ५४१० || अहवा किमेत्थ चोज्जं नीयजणो होइ एरिसो चेव । ४९३ Page #503 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ ता जाह तीए(इ) गेहं तं दुरिउं वि निग्गहह' ||५४११॥ तो रक्खसीहिं(हि) भणियं 'केत्तियठाणेसु वच्चिमो अम्हे ?' । राया भणइ 'न जइ तं पावह ता खाह तं वेसं' ।।५४१२।। तो ताओ तक्खणेणं गेहं पत्ताओ जयवडायाए । मुंचंतीओ मुहेणं कोवमहाजलणजालाओ ॥५४१३।। कुमरो वि रयणिजागर-निद्दापरिघुम्मिरच्छिसयवत्तो । एगंतवासगेहे निदाए सुहेण पासुत्तो ॥५४१४।। तो पुण मए सप्पणयं असेससहिसंजुया जयवडाया । भणिया 'नीहरह तुमे सुयओ(उ) कुमारो खणं एकं ॥५४१५।। अहमवि बाहिदुवारे देसे ठाऊण एयदेहमि । काहामि परमजत्तं सपच्चवाया हि परभूमी' ॥५४१६।। तो भणइ जयवडाया ‘एवं होउ'त्ति निग्गया बाहिं । अहमवि य खग्गपाणी दारं दाऊण उवविठ्ठो ।।५४१७॥ तो ताहि वासगेहं पविसउकामाहिं अग्गए दिह्रो । सकिवाणो हं पुरओ दळूणं पच्चभिन्नाओ ।।५४१८॥ सासंकमाणसाओ वलियाओ पुणो य पच्छिमगवखे । पविसंति सुहपसुत्तं पेच्छंति पुरो महावीरं ॥५४१९॥ अह देव ! मए तइया अयंडसच्चवियघोररूवेण । सासंकमणेण तओ सहसा आयड्डियं खग्गं ।।५४२०।। एत्थंतरंमि निब्भरनिद्दावसपरवसं सुहपसुत्तं । दठूण वीरसेणं नियंति जा निद्धदिट्ठीहिं ॥५४२१।। ता तस्स विज़ियतिहुयणअच्चब्भुयरूवदंसणजलेण । सहस त्ति ताण हियए विज्झाणो विसमकोवग्गी ।।५४२२।। Page #504 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ तो समकालं सव्वाहिं चेव विज्जाहरीहिं चइऊण । रक्खसिभावं विहियं नियपयइमणोहरं रूवं ।।५४२३।। निब्भरनिदासुत्तस्स तस्स जह जह नियंति वररूयं । तह तह अहिययरं चिय ताण मणे फुरइ मयणग्गी ।।५४२४।। तो भणइ मयणसेणा 'न एस सामन्नमाणुसायारो । आयारसमुचिओ च्चिय एयस्स परक्कमो होही ||५४२५।। अहवा को संदेहो जयपयडपरक्कमो क्खु एस जुवा । हंतूण जेण पवणं रंडत्तं अम्ह आणीयं' ||५४२६।। थु थु त्ति पभणिऊणं सिंगारवईए जंपियं एयं । दीहाऊ(उ)ए जियंते इमंमि कहमम्ह रंडत्तं ?' ||५४२७।। तो भणइ चंदलेहा 'सहीओ किं तुम्ह जीविएणेह ? | जं एस रूवनिज्जियमयणंगो कीरइ न भत्ता ?' ||५४२८।। तो कामसिरी जंपइ ‘इमा पसिद्धी न अन्नहा होइ । जं बहुरयणा पियसहि ! वसुंधरा भयवई एसा ।।५४२९।। अह भणइ पुष्फदंती 'जाव न पीणत्थणोवरिं धरिउं । आलिंगिज्जइ पियसहि ! ता कह सियलाइ मह अंगं?' ||५४३०।। तो भणइ वसंतसिरी ओसरह सहीउ ! तुम्ह चक्खुभया । उत्तारिस्सामि अहं इमस्स लोणं सहत्थेण ॥५४३१॥ तो भाणुमई पभणइ ‘सहि ! सच्चमिणं पयंपियं तुमए । एवंविहंमि पुरिसे अवस्स चक्खूणि लग्गति' ॥५४३२।। भणियं पहावईए 'किं पलवह ? कुणह जमिह कायव्वं । सुविनिच्छियबुद्धीणं कज्जपहाणा समारंभा' ।।५४३३।। Page #505 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४९६ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ तो भइ मयणसेणा 'सहीओ ! आबालभावाउ ( भावओ) अम्ह | समसुह- दुक्खसरूवो निव्वूढो पेम्मपब्भारो ||५४३४ || ता जइ संपइ एवं एगग्गमणाओ ता तहा भणह । जाव न जग्गइ एसो ता तुरियं अवहरामो त्ति' ||५४३५ || तो सव्वाहिं (हि) वि भणियं 'ताउ च्चिय पियसहीओ एयाओ । सच्चेय तुमं सुंदरि ! को किर इह वढणावसरो' ||५४३६|| ओमित्ति पभणिऊणं सव्वाहिं वि विहियबहुपयत्ताहिं । अवहरिओ वीरवई ओसायणिविज्जजोएण ||५४३७|| चंपापुरीओ (उ) नीओ सो ताहिं अमाणुसाए अडवीए । जोयणसयपिहुलाए बहुसावय - साहिसुघणाए । । ५४३८ || तो ताहिं तत्थ रइओ विज्जासत्तीए तहविहसरूवो । पासाओ अइरम्मो जह दिट्ठो जयवडायाए । ५४३९॥ तह चेव वासभवणे कोमलतूलीसणाहसेज्जाए । मुको वीराहिवई जह न मणागपि हल्लेइ ||५४४०|| तो ताहिं परोप्पर एगचित्त-हिययाहिं मंतियं एवं । कमविहियजयवडायारूवाओ (ड) इमं अणुसा ( स ) रेह' ।।५४४१ ।। तो भणइ चंदलेहा 'जइ कह वि न देवजोगओ एस । तुब्भे इच्छइ ता किं कायव्वमिमस्स पुरिसस्स ?” ||५४४२ ॥ तो भणियं सव्वाहिं वि जइ कहवि न एस मन्निही सुरयं । ता मिलिऊणमवस्सं वहियव्वो एस दुट्टप्पा ||५४४३ || अभिगमणीओ ति वियाणिऊण भत्तारवहकओ दोसो । एयस्स सरूवदंसणपयडियमयणाहिं सो खमिओ || ५४४४ | Page #506 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ 33 तो सव्वपाणयरा सव्वाणुमईए पढममणुसरिया । नामेण मयणसेणा मयणपरायत्तसव्वंगा ।।५४४५ ।। एत्यंतरे कुमारो निब्भरनिद्दापरव्वसो सुत्तो । सुमिणंतरंमि पेच्छइ सासणदेविं समवइन्नं ॥। ५४४६ ।। विविहकरग्गपरिट्ठिय-चक्काउहनीहरंतजालोलिं । परिवियडगरुडवाहण-परिठियं चक्किणि देविं ॥ ५४४७ || तो परमेसरिदंसण- ससंभमुब्भंतनयणतामरसो । पणमइ पणामविलुलियवसुहायलकुंतलकलावो || ५४४८ ।। तो सुप्पसन्नदेवी - मुहकमलविदिन्न अवितहासीसो । चक्केसरीए (इ) भणिओ वीराहिवई इमं वयणं ॥ ५४४९॥ 'एयाओ पुत्त ! अट्ठ वि भज्जाओ होंति पवणकेउस्स' । इयमान असेसो च्चिय जहक्कुमं वइयरो कहिओ ।। ५४५० ।। ' एवंविहम्मि कज्जे जं उचियं होइ तं करेज्जासु' । इय जंपिऊण देवी खणेण अद्दंसणीहूया || ५४५१ ।। ओसारियओसायणि- निद्दाभंगेण जग्गिओ वीरो । तो नियइ जयवडायारूवंतरियं मयणसेणं ।। ५४५२ ।। सो सहसा चइऊणं सेज्जं उवविसइ धरणिवट्ठमि । तो भइ ससंभंता ललियपयं मयणसेणा वि || ५४५३ || 'किं नाह ! कायरो इव हियए धरिऊण किं पि कुवियप्पं । ओयरिओ सेज्जाओ ? करुणं काऊण मह कहसु' ' ॥५४५४।। तो भइ वीरसेणो विभावियासेससुविणपरमत्थो । 'सुण बहिणि ! कायरो हं परजुयइपसंगभयभीओ' ||५४५५|| ४९७ Page #507 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४९८ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ 'बहिणि'त्ति निरावेक्खं निठुरवयणं निसामिउं खयरी । अद्दिट्ठवज्ज़निवडण-पहारनिहय व्व सा भणइ ॥५४५६।। 'किं नाह ! तुमं एवं निदाभरपरव्वसो व्व झंखेसि ? । स च्चेय जयवडाया तुह दासी नउण परजुयई ॥५४५७।। वेसाओ कत्थ देसे जणवयसामन्नजोव्वणंगाओ । परजुयईओ नरेसर ! मह साहसु इह भणिज्जंति ?' ||५४५८।। वीराहिवेण भणियं 'झंखेमि न पत्थुयं चिय भणामि । अट्ठ खयरीओ(उ) तुब्भे भज्जाओ पवणकेउस्स ।।५४५९॥ ता मा मइलह सव्वाओ चेव अइतुच्छसोक्खकज्जंमि । अच्चुज्जलमुभयकुलं पिउपक्खं ससुरपक्खं च' ।।५४६०।। तो वीरसेणवयणं सोउं निरवेक्खमियरखयरीओ । सहसा समागयाओ सविम्हमु(उ)भंतनयणाओ ।।५४६१।। तो ताण(उ?) तक्खण च्चिय विलक्खवयणाओ चत्तलज्जाओ । कुमराणुराइणीओ करेंति अह पत्थणं विविहं ।।५४६२ ।। 'हा सोहग्गमहानिहि ! कारुन्नमहासमुद्द ! एयाओ । तुम्हाणुराइणीओ अवहीरसु माऽणुकूलाओ ।।५४६३।। अब्भत्थियाऽइवंका गुणहीणा खणमुहुत्तरंगिल्ला । सुरधणुसरिसा पुरिसा विहडंति पुणो न तुह सरिसा' ||५४६४।। तो भणइ वीरसेणो परनारिविवज्जणं कुणंतस्स । वंकत्त-निग्गुणत्तण-खणिगत्तं तं पि मह इटुं' ॥५४६५॥ तो भणइ मयणसेणा 'भूगोयर ! केत्तियं व पलवेसि ? । जइ इच्छसि ता जीवसि अह निच्छसि ता धुवं मरसि ॥५४६६।। Page #508 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ एयाओ(उ) कूडबुद्धिय ! अट्ठ वि करसंट्ठियाओ व दिसाओ । एयाण पसाएणं भुंजसु निक्कंटयं रज्ज' ॥५४६७।। तो भणइ वीरसेणो ‘सीलविहीणाण जीवियं मरणं । मरणं पि हु सलहिज्जइ नियसीलं रक्खमाणस्स ।।५४६८।। स च्चेय कूडबुद्धी जा परनारीपसत्तचित्तस्स । एवं जपंतीओ अट्ठ वि मह आवयाओ व्व' ॥५४६९।। तो सव्वाहि वि भणियं 'सच्चमिणं आवयाओ तुह अम्हे' । इय भणिऊण ठियाओ रक्खसिभावेण सव्वाओ ।।५४७०।। तो भणइ वीरसेणो ‘किं इमिणा बालभेसणपरेण ? । धिट्ठो मि रक्खसाणं सुपसिद्धो भेक्खसो[हयं ॥५४७१।। ता जाह मा विगोयह अप्पाणं एरिसेहिं रूवेहिं । पावंति परिभवपयं हवंति जे निफ(प्फ)लारंभा' ।।५४७२ ।। तो ताओ वीरसेणं भणंति करकलियनिसियकत्तीओ । ‘रे पवणकेउवैरिय ! जइ सकसि गिण्ह ता खग्गं ।।५४७३।। इण्हि न सव्वह च्चिय जीवसि रे पावकम्म ! निल्लज्ज !' । ता सरसु इट्टदेवं' इय भणिउं वंति(ठंति?) कुद्धाओ ॥५४७४॥ तो भणइ वीरनाहो ‘आयासिज्जइ किमेत्तियं अप्पा ? । जुयइवहत्थं सुंदरि ! गेण्हामि कयाइ नो सत्थं' ।।५४७५।। एवं जंपतो च्चिय कुमरो सत्याहि ताहि पावाहिं । कयकत्तियापहारं समकालं हणिउमाढत्तो ।।५४७६।। कुमरेण वि समकालं अउव्वकरणुप्पयंतदेहेण । ताण करकत्तियाओ समरवियड्डेण गहियाओ ।।५४७७।। Page #509 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५०० सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ तो ताहिं तक्खण च्चिय कुमरो कयखग्ग-खेडयकराहिं । पारदो निम्महिउं समयं चिय ओत्थरंतीहिं ॥५४७८।। पुण तह चेव कुमारो उद्दालइ खग्ग-खेडयाई पि । ताहिं पि करे कलिया सुतिक्खधारा महापरसू ॥५४७९।। ते वि तह च्चिय गहिया कुमरेण अजायदेहखेएण । एवं निराउहाओ. अणेगहा ताओ(उ) विहियाओ ।।५४८०।। पुण ताहिं तक्खण च्चिय विउव्वियदिढसरीरबंधाहिं । सव्वाहिं सिलाओ(उ) करे गहियाओ अईव गरुयाओ ।।५४८१॥ पिहियंबराओ दटुं तिरोहियासेसतरणिकिरणाओ । अइगरुयसिलाओ(उ) तओ उप्पयइ नहे महावीरो ॥५४८२।। दिढवज्जघायनिठुर-करमुट्ठिपहारताडणेणट्ठ । धरणीए पाडियाओ(उ) धूलीसेसाउ काऊण ।।५४८३।। तो रोसवसविसंखल-दुव्वयणपराहिं ताहिं सव्वाहिं । विज्जासत्तीए करे जहक्कम पव्वया गहिया ।।५४८४।। तो भणइ वीरसेणो ‘चिरपरिचियमम्ह पव्वयं जुझं । अनेण अउव्वेण रणेण केणाऽवि जुज्झेह' ||५४८५।। तो अन्नोन्नं ताओ समु(म्मु)हमवलोइऊण जंपंति । जो अम्ह सव्वथामो सो च्चिय एयस्स उवहासो' ॥५४८६।। तो ताहिं सरोसत्थं ते च्चिय सेला विसालसिंगग्गा । हत्थेहिं तोलिऊणं पक्खित्ता वीरसेणस्स ।।५४८७।। कुमरो दक्खत्तेणं निवडणवसजायनियडभावाण । उप्पइऊण सिरग्गं आरुहइ गिरीण गरुयाण ।।५४८८।। Page #510 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ तो ताओ गिरिसिरत्थं सव्वंगावयव्व (व) देहसंपन्नं । दट्ठूण वीरसेणं भएण चित्तंमि खुहियाओ ।।५४८९ ॥ जंपंति य अन्नोन्नं 'एस च्चिय अम्ह जीवियव्वासा । नारीओ त्ति सकरुणं जं न कुणइ खंडखंडेहिं ॥५४९० ॥ अपहुप्पंतीओ तओ तडत्ति तडिदंडतडयडरवेण । बीहाविऊण वीरं गयाओ दुक्खं गहेऊण ||५४९१ ।। तो एक्कंगो कुमरो चिंतइ चित्तेण 'पेच्छ. अच्छरियं । एयाओ कत्थ ? चक्किणिदेवी वि य कत्थ सुविणंमि ? ।। ५४९२ ॥ संपय-विवयाओ जओ समयं चिय संचरंति पुरिसाण । लद्धूण देसकालं पच्छा पयडाओ जायंति ॥५४९३॥ हा ! पेच्छ भवसभावं न ताओ नारीओ नेयं तं भवणं । गिरिणो वि न ते सव्वं नट्टं मायंदजालं व्व ।।५४९४।। जाहिं चिय अवहरिओ अणुरायपरव्वसाहि नाहिं । ताओ चेय सरोसं पहरंति ममंमि नीसंसं ||५४९५ || वीसरिओ नियभत्ता चिरपरिचियपेम्मबंधसंबंधो । ५०१ हा हा ! निल (ल) ज्जाओ तव्वहगे कह णु रत्ताओ ? ।।५४९६ ।। अहवा न किंपि कज्जं अणिट्ठचित्ताए मज्झ एयाए । अइकुडिलसहावाओ नारीओ होंति पयईए ।। ५४९७ ।। ता कह होही संपइ चंपागमणं पहो व्व को एत्थ ?' । इय चिंतिऊण कुमरो उत्तरदिसिसमु ( म्मु ) हं चलिओ ||५४९८ ॥ पेच्छइ निरंतरं चिय धव-धम्मण - धाइनद्धधाहोडं । भल्लायंकोल्ल-महल्लसल्लई साहिसंकिन्नं ।।५४९९ । Page #511 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५०२ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ सरसरलसाल-वंजुल-तमाल-तहताल-बउलपरिकलियं । सज्ज-करंज-महज्जुण-वड-पिप्पल-बहुप्पलासं च ।।५५००।। जंबीर-जंबु-लिंबुय-लिंब-बय-घणकयंबसंबद्धं । एला-लवंग-लवली-कक्कोललयाउलं अडविं ।।५५०१।। जा कुमरदसणेण व फुरंतघणमयणविसमदावग्गी । पसरंतविविह'विब्भमनिरंतरा झिज्झइ खणेण ।।५५०२।। अंतो परिघोलिरसरलनेत्ततारंजणविडविलाला । निक्कुट्टणि व्व वेसा जा सोहइ बहुभुयंगपिया (?) ।।५५०३।। हरिनिठुरनहदारिय-हरिण-क्खसजढरविलुलमाणंता । नवपल्लवारुणाभा जा रेहइ कालसंज्झ व्व ।।५५०४।। हरिनिन्भिन्नमहाकरि-निम्मलघणथूलमोत्तिया सहइ । मायण्हियामहोयहिवेल व्व भमंतबहुवाहा ।।५५०५।। एवंविहअडवीए परिब्भमंतो भमंतसरहाए । पत्तो घणतरुयरसंडमंडियं जुन्नदेवउलं ॥५५०६।। दूराओ च्चिय दिढलोह-खप्परीपडणताडण(णु)ब्भूओ । निसुओ झणकाररवो अंधियजूए वराडीण ॥५५०७।। चिंतइ ‘इह जूययरा के वि भविस्संति अन्नहा कह णु । सुम्मइ निवडंतकवडियाण तारो झणक्कारो ?' ||५५०८।। तो कोऊहलतरलियचित्तो सो जाइ ताण उवरिमि । पेच्छइ पुरओ गरुयं नाणाजूयारसंघढें ।।५५०९।। तो सव्वेहिं वि समयं तिरिच्छवलियच्छि-कंठ-वयणेहिं । भाणु व्व भासुरंगो सो दिट्ठो जूयगारेहिं ॥५५१०।। १. वीनां पक्षिणां भ्रमो विभ्रमो विलासश्च ।। २. नेत्रस्तरुविशेषः ।। ३. अंजनतरवः ।। ४. हिरण्यकशिपुः, पक्षे हरिणाः खसा वनेचराः ।। ५. व्याधाः प्रवाहाश्च ।। खंता० प्रतौ टिप्पण्यः ।। Page #512 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ ५०३ ‘ए एहिं(हि), कुण पइटुं, उवविससु खणंति पभणिउं तेहिं । सव्वेहिं वि अवयासो दिन्नो सिरिवीरसेणस्स ।।५५११।। उवविलृमि कुमारे सहसा घणघंटियारवकरालं । ओयरमाणं दिटुं नहाओ दिव्वं वरविमाणं ॥५५१२।। तो नीहरइ तुरंतो वच्छत्थलघोलमाणहारलओ । दिव्वंबरो किरीडी विज्जाहरदारओ तम्हा ॥५५१३।। सो भणइ ‘सारियमिणं विमाणरयणं अचिंतमाहप्पं । जइ को वि तुम्ह वीरो ता सारउ मज्झ संगाम' ।।५५१४।। तो सव्वे जूयारा तुन्हिक्का ठंति तस्स वयणेण । मोत्तूण महासत्तं जएक्कसुहडं महावीरं ।।५५१५।। ईसीसि विहसिऊणं भणइ कुमारो 'किमेरिसं तुज्झ । संगाममहावसणं जेण विमाणेण कीणासि ?' ।।५५१६।। विज्जाहरेण भणियं 'जइ सत्ती अत्थि तुज्झ ता रमसु । पुव्वभणियाए सुंदर ! चलियव्वं नो ववत्थाए' ||५५१७॥ तो भणइ वीरसेणो 'भणियववत्थाए एत्थ जो चलइ । . निग्गहणिज्जोऽवस्सं अन्नोन्नं सो सयं चेव' ।।५५१८।। तो रोसतंबिरच्छो खयरो हिययंतपयडियामरिसो । 'सच्चं खु को न मन्नइ ?' इय भणिउं रमिउमाढत्तो ॥५५१९॥ तो तक्खणेण लद्धा लीहा कुमरेण जायहरिसेण । विज्जाहराओ गहियं 'विमाणरयणं पहिडेण ।।५५२०।। एत्थंतरम्मि] अन्नो पयघग्घरिघोसबहिरियदियंतो । वामकरकलियखग्गो दक्खिणडमडमियडमरुकरो ॥५५२१।। आगुंफंतपलंबिरकुलघोसो पिहियटोप्पियसिरग्गो । १. [ ] एतदन्तर्गतः अंशः ताडपत्रे न दृश्यते । ला. प्रतावेव ।। Page #513 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५०४ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ जोगिंग (गिं) दो सच्चविओ समोयरंतो नहयलाओ ।।५५२२ ।। ओयरिऊण सवेयं उवविट्ठो सो वि तह कडित्तं ते । '[दण वीरसेणं विम्हयवसविहि] यसिरकंप्पो (पो ) ।।५५२३ ।। सो कुमरं पइ जंपइ 'खग्गं मह सव्वकामियं एयं । जं चिंतिज्जइ चित्ते तं सव्वं होइ एयाओ ।। ५५२४ ।। आसीविसे व दिट्टे इमंमि सहस त्ति मुक्कुमज्जायं । परसेनं (न्नं) पि पलायइ विहडंतमडफ ( प्फ) रफडोहं ।। ५५२५ ।। - चिंतियमेत्ताइं चिय एत्तो नणु नीहरंति सेन्नाई । करि-तुरय-नर- महारह- दिव्वत्थाई असंखाई ॥५५२६ ।। जेत्तूण सत्तुनिवहं पुणो वि इह चेव ताई लीयंति । एमाइणो असंखा सत्तीओ इमस्स खग्गस्स ।। ५५२७ ।। थंभइ जलं च जलणं नहगमणं कुणइ हाइ वाहीओ । विदेसण - वसियरणं थंभइ मोहाइयं जणइ ||५५२८ ॥ जइ सच्चं चिय वीरो ता खग्गमिणं अचिंतसामत्थं । नियमंसकयपणेणं [अदीणमणसो परिकिणीहि ||५५२९ || एयं[च]] मज्झं खग्गं सिद्धं सिरिवीरसेनमित्तस्स । साहिज्जेणं दक्खिणजलहितडे बंधुयत्तस्स ।। ५५३०|| इह कौलसासणा किर हवंति विविहाओ खुद्दविज्जाओ । सिज्झति ताओ सुंदर ! विविहाहिं य खुद्दकिरियाहिं ॥५५३१॥ महु-मज्ज- मंस - वस - रुहिरमाइविविहेहिं भक्ख-पाणेहिं । खुद्दपयईण [णं एवं चिय जायए तित्ती ।।५५३२।। १.२. एतच्चिह्नस्थोंऽशः ला प्रतावेव न ता. प्रतौ ॥ ३. एतच्चिह्नस्थोंऽशः ला प्रतावेव न ता. प्रतौ ॥ Page #514 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ ५०५ ता तिहुयाणवसियरणित्ति नाम मह अत्थि वीर ! वरविज्जा । तिस्सा पसाहणत्थं होमं मंसेण काहिस्सं ॥५५३३।। मंसं पि न जं तं च्चिय गहियव्वं किंतु सयलभुयणमि । एको च्चिय जो वीरो न जस्स अन्नो समो भुयणे ॥५५३४।। तं चिय नियविक्कमेणं अहवा जूएण सव्वहा जेउं । इय दोहिं उवाएहिं गहियव्वं तस्स मंसं ति' ||५५३५।। तो भणइ वीरसेणो 'किं इमिणा पोसिएण मंसेण ? | तं चिय सफलं मंसं जं तुह कज्जंमि उवयरइ ।।५५३६।। ता किमिह जुज्झिएणं जूएण वि किमिह संसयपरेण । एमेव देमि मंसं' इय भणिउं कड्डए छुरिउं(यं) ।।५५३७।। तो जोइंदो जंपइ 'कहियं नणु पुव्वमेव तुह वीर ! । जं समरंगण-जूएहिं चेव मंसं गहेयव्वं' ॥५५३८।। तो भणइ वीरसेणो 'तुह वयणं मह पमाणमिह कज्जे । समरस्स व जूयस्स व तुह दोहिं(हि) वि दायगो अहयं' ||५५३९।। तो जोइंदो पभणइ ‘किं वीर ! रणेण ? पत्थुयं जूयं । तं चेव मए सद्धिं कहियववत्थाए खेल्लेसु' ।।५५४०॥ तो भणइ वीरनाहो ‘एवं होउत्ति खेलिउं लग्गा । खेल्लंताणं ताणं सव्वदियहो अइक्तो ।।५५४१।। चिंतइ कुमरो ‘एसो जोइंदो मंतसिद्धिसंपत्तो । जेउं न जाइ अहवा सुमरामि जिणिंद-नवकारं ॥५५४२।। पंचनमोकारो खलु दुविज्जा-मंत-तंतसामत्थं । हियए सुमरियमेत्तो विहडावइ नत्थि संदेहो' ॥५५४३।। : Page #515 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५०६ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ तो सावहाणचित्तो कुमरो सुमरेइ जिणनमोक्कारं । हयमंत-तंतसत्ति जोइंदं जिणइ सहस्स ( स ) त्ति ।। ५५४४ || तो जित्तं नाऊणं अप्पाणं तक्खणेण जोइंदो । कयखग्गकरो सहसा उप्पइओ गगणमग्गंमि ||५५४५ ॥ तो जूयजित्तखेयरविमाणमारुहइ तक्खणे कुमरो । उप्पइऊणं लग्गो अणुमग्गे जो नाहस्स || ५५४६ || तो कुमरो वि सवेगं पुरओ ठाऊण तस्स जोइस्स । जंपइ 'न जोइ ! वीरा छलेण छलिउं तरिज्जति ।। ५५४७ ॥ जित्तं पि हु खग्गमिणं देतो हं तुज्झ जइ सि पत्थंतो । तुम्हारिसाण भिक्खु ! विहूसणं पत्थणा चेव ||५५४८ || संपइ पुण उभयं चिय तुमए निन्नासियं महामुक्ख ! । चिरपरिच (चि) यसोजनं कमागयं भिक्खुगत्तं च ।। ५५४९ ।। असुरो सुरो व्व खयरो जइ एवं सो ममं इह छलंतो । ता जाणंतो सच्चं तुमं सि पुण पयडगोज्झ व्व ।। ५५५० ।। ता जइ किवाणमेयं जह तुमए वन्नियं तहसरूवं । तुहभणियववत्थाए जइ जित्तं ता करे चडउ' ।। ५५५१।। तो कुमरजंपियाणंतरेण तं विप्फुरंतघणकिरणं । खग्गं विहियपयाहिणकुमारहत्थंमि संकमइ ।।५५५२ ।। विहियपराहववसजायकुमरबहुरोसजलणदुद्धरिसं । दठ्ठे पि अपारंतो तस्स तणुं पलइ जोइंदो ।। ५५५३ ।। तो तक्खणेण कुमरो तेण विमाणेण तेण खग्गेण । जाओ असमपहावो विज्जाहरचकुवट्टि व्व ।। ५५५४ || Page #516 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५०७ एह सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ विज्जाहराण जायइ सविग्यविज्जापसाहणकएहिं । दुक्खेहिं खेयरत्तं धन्नाण पुणो अ(5)किलेसेण ।।५५५५।। सिद्धत्तं पि हु जायइ गुलियासिद्धाइयाण किच्छेण । एयस्स पुणो जायं अकयदुहं खग्गसिद्धत्तं ।।५५५६।। सव्वेसिं सिद्धाणं गरुययराणं पि हुंति अइगरुया । जे सव्वसिद्धजयसिरिवसियरणा पुनसंसिद्धा ।।५५५७॥ तो चिंतइ वीरवरो 'एण्हि वच्चामि चंपनयरीए । पत्थुयकज्जपसाहणवावारे उज्जमिस्सामि' ।।५५५८।। तो मणचिंतियपसरंतवेयमणिमयविमाणमारूढो । कय चंपा-संकप्पो संचलिओ उत्तराभिमुहं ॥५५५९।। गयणंगणपरिसकिरकिन्नर-गंधव्व-सिद्ध-जक्खेहिं । भयतरलमाणसेहिं दूरं परिहरियपंथाणं ।।५५६०।। अणुकूलपव्व(व)णचंचलविउरुविधयसहस्सबाहूहिं । गंभीरगयणसायरमदिट्ठपारं तरंतं च ॥५५६१।। उभयंतपासपसरियविमाणमुत्तामयूहनिवहेहिं । सेवाणुसारिसुरसरिसंकं व नहे पयासंतं ।।५५६२।। बहलिंदनील-मरगय-मयूहसामलियचउदिसाभोयं । वीराहिवकीलत्थं चलमुज्जाणं वहंतं व ॥५५६३।। वीरविणोयत्थं पिव पिहुफलिहसिलानिबद्धरयणसिलं । हिमवंतरोहणेणं पयडतं मल्लजुझं च(व) ।।५५६४।। निम्मलमणिभित्तित्थलपडिबिंबियघणकिवाणकरकुमरं । परिकलियअंगरक्खणपरिवारदुलंघवेढं च ।।५५६५।। Page #517 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५०८ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ थंभसिरग्गनिवेसियपुत्तलियाकलियवंसवीणघणं । कमसंविभत्तमारुयकयमहुरसरं व गायतं ||५५६६।। एवंविहं विमाणं अवलोयंतस्स वीरसेणस्स । अच्छरियरसविमीसो आसि वियप्पो मणे एवं ।।५५६७।। । 'थूलयरमणिसिलासयगरुयस्स वि कह णु एरिसो वेओ ? | जं चुलुयपमाणं पिव तिलोयमवि होइ एयस्स ? ।।५५६८।। भण केत्तियं व पसरइ पयइजडं माणसं मणुस्साण ? । मन्ने लोयालोओ विसओ नाणस्स व इमस्स ।।५५६९।। एगहुँ पि हु एयं सव्वपएसट्ठियं व्व पडिहाइ । संकप्पाओ पढमं जं दीसइ वंछिए ठाणे ॥५५७०।। दूरयरपसारियरयणकिरिणरज्जूहिं करसियाई व । मन्ने लीयंति इमंमि चेव सयलाई ठाणाई' ।।५५७१।। . इय एवमाइ कुमरो विमाणविसयं वियप्पए जाव । ता तलनिविट्ठदिट्ठी पेच्छइ चंपापुरी(रिं) रम्मं ॥५५७२।। नीसेसघरनिरंतरनिबद्धसुसिणिद्धतोरणसमूहं । कयहट्टभवणसोहं वज्जिरबहुतूरसम्मदं ॥५५७३।। परितुट्ठसयललोयं उज्जलनेवत्थपरियणाइन्नं । रायउलं पि य दिटुं गयणग्गठिएण वीरेण ।।५५७४।। तो तं तहासरूवं वइयरमवलोइऊण वीरवई । कोऊहलतरलच्छो अह चिंतिउमेवमाढत्तो ।।५५७५।। 'किं एत्थ कोइ पायं संभविही नूण उच्छवविसेसो ? । अहवा इह रायउले संजाओ को वि आणंदो ? ||५५७६।। Page #518 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५०९ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ अहवा वि एत्थ कस्स वि जत्ता वा देवयाविसेसस्स ? । पेच्छामि जेण एवं निरंतरं पमुइयं नयरिं' ॥५५७७॥ इयमाइ चिंतिऊणं 'को होही एत्थ कज्जपरमत्थो ?' । अवबुज्झिउं विमाणं सहसा नियडीकयं तेण ॥५५७८॥ मंदरमहणसमुब्भवअइगरुयसमुद्दघोसगंभीरं । जणसम्मडुल्लसियं आइन्नइ नरवईघोसं ॥५५७९।। कमलट्ठियहंसनिवेससुहयपयउज्जलावहासाओ । आलोयइ चंपाए सीमाओ सरस्सईओ व्व ।।५५८०।। चउप्पेरंतनिरंतरवियडसरन्नोन्नलग्गघणपालिं । सायर(संतर?)दीवमहोयहिकयवेढं जंबुदीवं व ।।५५८१।। पेच्छइ पायारनियंबलुलियपरिहंबुअंबराभोयं । . घणपासायपओहरमरविंदमुहिं व वरतरुणिं ।।५५८२।। सुविसालदीहरच्छं सुविभत्ततियं च सुरयणचउक्कं । बहुजणवयपरिमलियं वेसाविलयं व रमणीयं ।।५५८३।। इय निउणयरनिरिक्खियनयरीसोहावहरियमण-नयणो । पन्नंगणाए गेहे वीरो दिढेि परिठ्ठवइ ।।५५८४।। पेच्छइ सच्छंद-नरिंदलोयलूडिज्जमाणभंडारं । सुपयंडसुहडहक्का वित्तत्थअसेसदासिगणं ।।५५८५।। करवालकरनिरंतरनरसीहनरेहिं निबिडकयवेढं । अक्कंदमाणपरियणघणसदनिरुद्धगयणयलं ।।५५८६।। १. चत्वारो ये नगरीपर्यन्तास्तेषु निरन्तराणि यानि विकटसरांसि तेषामन्योन्यलग्नाः पालयो यत्र सा पुरी कीदृशी ? सह अन्तरद्वीपैर्वर्तते सान्तरद्वीपो यो महोदधिस्तेन कृतवेष्टो जम्बूद्वीप इव सा पुरी, खंता. टि.। Page #519 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५१० कत्थवि नरिंदपुरिसो सव्वालंकारभूसियं चेडिं । एगंते छोढूणं गेहइ सव्वं पि आहरणं ॥ ५५८७ ।। अन्नत्तो पुण एगा भएण मुहखित्तअंगुलीदसगा । भंडारिणित्ति काउं सेहिज्जइ रायपुरिसेहिं ।।५५८८ || अन्ने दुट्टभुयंगा जे पुव्विं वंचिया वणे घेत्तुं । ते अवसरो त्ति मुणिउं ससत्ति सरिसं अवयरंति ।। ५५८९ । अन्ने वि मित्त-सेणा-नरवइहढदिन्नदुआएसा । चिरपरिचयलज्जाए एमेव कुणंति हलबोलं ।। ५५९० ॥ गरुयाणुरायरत्तो तिस्सा अमणोरमो नरो कोइ । पयडंतो नियदुक्खं तचि (च्चि) ताराहणं कुणइ ।। ५५९१ ।। अणुसोयइ पुरिलोओ 'हा ! नरवइणा अकज्जमायरियं । जं वीरसेणरोसा अवयरियं जयवडाया ।। ५५९२ ॥ चोरस्स विसिट्ठस्स य रिउस्स देसंतरागयस्साऽवि । वेसाओ च्चिय जम्हा आवासो सव्वलोयस्स' ||५५९३ ॥ तो तं खणेण सव्वं अवहरियासेसविहववित्थारं । जायं रोरगिहं पिव अइदुल्लहखप्परद्धं पि ।। ५५९४ ।। एत्यंतरे कुमारो नहट्ठिओ पेच्छिऊण चिंते । 'हरिस-विसायविमीसं पुरीए पेच्छामि ववहरणं ॥ ५५९५ ।। एत्तो पुरी असेसा आणंदरसे व्व निब्भरनिमग्गा । सच्चेय पुणो एत्तो गुरुसोयावत्तखित्त व्व ॥ ५५९६ ॥ अहवा किमेत्थ चोज्जं ? संसारो च्चिय पुरी न परमेगा । हरिस-विसायाणुगओ तकुम्मनिमित्तजोएण ।। ५५९७ ।। सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ Page #520 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ नणु केण कारणेणं सुसियमिमं मंदिरं वराईए । मन्ने मज्झ निमित्तो इमीए एसो महाणत्थो ॥५५९८।। तं परिवड्डइ ठाणं सप्पुरिसो जत्थ निवसइ खणंपि । मह संगेण उ इस्सा विवरीयं एत्थ संजायं ।।५५९९।। किमणिचिंतिएणं ? परमत्थं ताव इह गवेसामि । पुण देसकालमुचियं कज्जारंभे जइस्सामि' ५६००॥ एत्थंतरे कुमारो नियडीकयनियविमाणभावेण । पेच्छइ जहासरूवं नीसंदिद्धं च निसुणेइ ।।५६०१।। अह करुणमारसंती घेत्तूणं घणसिरग्गकेसेसु । आयड्डिया गिहाओ भडेहिं तुरियं जयवडाया ॥५६०२।। अक्कंदमाणपरियणपरियरिया पुरिजणेहिं दीसंती । निब्भच्छिज्जंती घणकक्कसवयणेहिं पुरिसेहिं ॥५६०३।। 'आ पावे ! निल्लज्जे ! कयग्घचूडामणी तुमं जीए । नरसीहपसायाणं जं उचियं तं तए विहियं ।।५६०४।। सो दुट्ठप्पा धिट्ठो अदिट्ठपुव्वो कओ तए इ8ो । न उणो महानरिंदो गुणेसु आरोविया जेण ॥५६०५।। जइ सच्चं सो वीरो आगंतुणं च ता सयं एत्थ । इह किन्न तुमं रक्खइ मारिज्जंतिं नरिंदेण ?' ।।५६०६।। इय एवमाइ उच्छिखलाई वयणाई ताण सोऊण । चिंतइ वीराहिवई गरुयाहिणिवेसफुरिओट्टो ॥५६०७।। 'निच्छइयमिमं पुट्विं' मएऽणुमाणेण जं महनिमित्तो । एसोऽणत्थो सव्वो संजाओ जयवडायाए ।।५६०८॥ Page #521 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५१२ 1 ता किमिह पडिविहेयं एसो च्चिय दुट्ठसुहसंघट्टो । मह खग्गवासिणो च्चिय जमस्स अतिहित्तणं जाओ ( उ ) ||५६०९॥ अहवा नेवं जुज्जइ अविसिट्ठाएसकारिणो एए । जुयईसु परकमिणो न मारणीया मह हवंति ॥ ५६१० ।। ता किंतु एस राया सरायगिह- परियणो सन्नो य । उच्चलिऊण उडुं खिवामि पायालकुच्छीए ||५६११ ।। एयं पि अजुत्तं चिय निग्गहणिज्जे इमंमि नरसीहे । रायगिह- सेन्न- परियणमाईणं नत्थि अवराहो ||५६१२ ।। ता होउ इमे संपइ किमिमीए कुणंति ताव पेच्छामि । इय चिंतंते वीरे सा नीया रायपासंमि ॥५६१३॥ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ ठविऊण रायपुरओ विन्नत्तं तेहिं 'देव ! जं किं पि । अत्थि इमी असेसं तं तुह भंडारमाणीयं ॥ ५६१४ ।। एसा वि देव ! संपइ आणीया तुह समीवमिह जुत्तं । जं होउ तं सयं चिय नरनाहो कुणउ एयाए' ।। ५६१५।। तो राइणा सरोसं निद्दयदट्ठोट्ठभिउडिभीमेण । आणत्तं 'रे ! आणह तुरियं नेमित्तियं तं पि' ।। ५६१६ ।। तो आएसाणंतरमाणीओ सो वि रायपुरिसेहिं । पच्छा बाहुनिबद्धो हम्मंतो लउडपहारेहिं ॥५६१७।। सो वि तह चेव पुरओ ठविओ पासंमि जयवडायाए । दिट्ठो नरसीहेणं सकक्कसं भणिउमाढत्तो ॥ ५६१८।। कुमरो वि नहयलत्थो अदीसमाणो असिप्पहावेण । रोसफुरियाहरोट्टो नरेंदचेट्टं पलोएइ || ५६१९॥ Page #522 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ भणियं नरसीहेणं ‘रे ! रे ! जोइसिय ! संपयं कहसु । सो कत्थ तुज्झ वीरो उप्पन्नो पाव ! मरिऊण ?' ||५६२०।। नेमित्तिएण भणियं 'न जुज्जए तुह नरिंद ! इय भणिउं । कह तुह मणोरहेहि य वयणेहिं य मरइ सो कुमरो ? ||५६२१।। सो देव ! जायमेत्तो आइट्ठो नणु विसिट्ठलोएहिं । निरुवकुमाउओ जं वरिससहस्सा(उ)ओ तह य' ॥५६२२॥ पुण भणियं नरवइणा ‘गओ सि एयाए कूडविज्जाए । नणु पवणकेउणो भारियाहिं सो मारिओ कल्ले' ॥५६२३।। पुण जंपइ जोइसिओ ‘किं पलवसि थु त्थु थु त्ति तुह वयणं । किं न नियच्छसि उढे विमाणपरिसंठियं देवं ?' ||५६२४॥ तो राइणा सरोसं दुव्वयणुत्तेजिएण पुण भणियं । 'आयन्नह रे लोया ! पच्चक्खमिमस्स अलियत्तं ॥५६२५॥ कल्लदिणे सव्वेहिं वि निसुयं किर पवणकेउभज्जाहिं । नेऊण अडविमज्झे निहओ जं ताहिं मह कहियं ॥५६२६।। अट्ठहि ताहि सरोसं उक्कत्तिय कत्तियाहिं तस्स पलं । खद्धो जह तह ताणं कोवबुभुक्खाइणो संता ॥५६२७॥ वलियाहि ताहि कहियं एकाक्कास्स न मज्झ किंतु चंपाए । मिलियस्स असेस[स्स] वि लोयस्स पट्टिवयणाहिं ।।५६२८॥ एयनिमित्तेषं चिय मए पहिढेण उच्छवो विहिओ । फोडावियं च जम्हा बिल्लं बिल्लेण बुद्धीए ॥५६२९॥ ता असमंजसजंपिर ! रे ! रे ! जोइसिय ! अच्छउ इमं ता । मह एयं चिय साहसु तुह मरणं कस्स हत्थेण ? ||५६३०॥ 34 Page #523 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ एयाए वि दासीए(इ) अच्चत्थं वीरसेणरत्ताए । मारिज्जंतीए मए सो काही इह परित्ताणं' ॥५६३१।। एवं भणिऊण तओ नरसीहो रोसतंबिरनिडालो । धरइ परियारसहियं वामकरग्गंमि करवालं ॥५६३२।। दिढमुट्ठिनिविटेणं दाहिणहत्थेण कड्डइ सरोसं । दिठे(टे)ण जेण सव्वो भयरतरलच्छो जणो जाओ ।।५६३३।। पुण पुच्छिएण भणियं जोइसिएणं 'नरिंद ! मह मरणं । एयाइ वि वेसाए दोवाससए वि न उ अज्ज |५६३४।। वयपरिणामे अहयं दिक्खं घेत्तूण कयतवच्चरणो । कयअणसणाइकिरिओ सुद्धमणोऽहं मरिस्सामि ।।५६३५।। एसा वि जयवडाया जहासुहं वीरसेणदिन्नाई । भोत्तूण बहुसुहाई पज्जंते विहियजिणधम्मा ।।५६३६।। झायंती नवकारं अणसणविहिणा य वासुपुज्जस्स । पुरओ मरिऊण तओ सोहम्मे सुरवरी होही' ॥५६३७।। इय एवं जोइसियं जंपंतं तं च जयवडायं पि । राया अहिद्दवंतो इय एवं भणिउमाढत्तो ॥५६३८॥ दोन्नि वि समकालं चिय कयावराहाई वेरिपक्खाई । मारिस्सं न खमिस्सं जो रक्खइ जाह तं सरणं ॥५६३९।। तो जंपइ जोइसिओ जयवडाया य वीरसेणो अम्ह(ऽम्ह) । सरणं भुयणसरन्नो पज्जंते वासुपुज्जो य' ।।५६४०॥ तो कुमरनामकित्तणसमहियसंजायरोसफुरिओहो । उग्गिरइ खग्गरयणं नरसीहो हणणबुद्धीए ॥५६४१।। Page #524 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ तो परियणेण भणियं मंतियणेणं च कणयरेहाए । " एयं देव ! अकज्जं इह-परलोए विरुद्धं च ॥५६४२ ।। जो जिणनामुच्चारणमेत्तं नरो वियाणइ न अन्नं । सो होइ पूयणीओ न उण अवन्नारिहो होइ ||५६४३ ॥ जो नामसावए वि हु कुणइ अमेत्तिं अनायतत्ते व । सो खलु न सम्मदिट्ठी मिच्छदि (हि)ठी नरो नेओ || ५६४४ || जो पुण जीवाइपयत्थजाणओ मुणियजिणमयरहस्सो । तंमि वहज्झवसाओ नरयफलो अनंतभवहेऊ' ||५६४५ ॥ तो कोवपरवसेणं भणियं नरसीहराइणा एवं । वच्चह सुगइं तुब्भे साह - म्मियपक्खवाएण || ५६४६ || अहयं पुण एयाई मज्झ अणिट्टे पयट्टमाणाई । मारंतो जइ नरयं जाइस्सं होउ एयं पि ॥ ५६४७ ।। किर सिट्ठपालणं चिय अविसिडविणिग्गहो य निवधम्मो । नियधम्ममणुतस्स मज्झ जं होइ तं होउ' ।। ५६४८ ।। तो तेसिं सव्वेसिं वयणं अवमन्निऊण नरसीहो । सीहासणाओ उदुइ पजलंतो कोवजलणेण || ५६४९ ।। तो नियनियंबवेढियवरिल्लवत्थो फुरंत अहट्ठो । उच्चल्लिऊण हारं पट्ठिमि परिट्ठवंतो य ॥५६५० ।। उभयंसपासघोलिरबहुतरलियचारुचमरनारिजुओ । रेहइ रायसिरीहिं व सावन्नं उवहसिज्जंतो ।।५६५१ ।। निविडयरनियंबत्थलनिबद्धवरखग्गधेणुनिहियच्छो । कुवहावलोयलज्जियनयणेहिं च वालियग्गीवो ||५६५२ || ५१५ Page #525 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५१६ रोसवसेणुच्चल्लियचलणंतचलंतसियनहमऊहो । पायतलेण व कित्तिं चिरकालसमज्जियं मलइ || ५६५३ ।। अंतोहुत्तनिवेसियविवाहरवहिनिखित्तदसणंसू ( ? ) । पियइ व्व उव्वमेइ व रोसगिंग मणविवेयं च ।। ५६५४ || इय जाव सो नरिंदो अहिधावइ ताण मारणनिमित्तं । ताव विमाणारूढो सहसा पयडीहुओ वीरो ||५६५५ || पलयमहाकालुग्गयरविसयदुद्धरिसतेयदुप्पेच्छो । तक्कोहग्गिभएण व अल्लीणासेसजयतेयो ||५६५६॥ निम्मलयरगंडत्थलपडिबिंबियकन्नकुंडलाहरणो । सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ छोढूण मुहे रोसा ससि - सूरजुयं व भक्खेइ ।।५६५७।। आकन्नंतपरिट्ठियरोसारुणदीहनयणदुव्विसहो । मणपरिकप्पियरणबहुभडसोणियसरियमिव वहइ || ५६५८ ।। सव्वंगियमणिभूसणघणसोणपहाहिं रंजियनहंतो । अंगंमि अमायंतं किरइ व्व नहंमि नियरोसं ॥ ५६५९॥ करसंठियभासुरखग्गरयणकिरणेहिं सामसव्वंगो । वेरिपरिभूयदइयादंसण अहिमाणकलुसो व्व ॥ ५६६०|| पंचप्पयारमणिमयछरुफुरियपयंडकिरणदंडेहिं । ass व्व जस्स खग्गं थंभणमोहाइसत्थाइं ॥ ५६६१ ।। इय वीरनराहिवई दिट्ठो सव्वेहिं तरलतारच्छं । अउरुव्वसरूवंतरदंसणहुयमणचमक्कारं ॥ ५६६२ ॥ मूढेहिं मुच्छिएहिं व विवसेहिं व थंभिएहिं व मुएहिं । १. खङ्गमुष्टितल्लिका, खंता. टि. ॥ २. स्तम्भन - मोहन - विद्वेषणादीनि पच्च तन्त्राणीति मन्त्रनये, खंता. टि. ॥ Page #526 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ दिवो वीराहिवई नरिंदमाईहिं सव्वेहिं ॥५६६३॥ ते हिययावटुंभा ते च्चिय सुहडाण विक्कमक्करिसा । दिलृमि वीरसेणे सव्वे वि निरत्थया जाया ॥५६६४।। न कयाइ जम्मणेसुं लद्धपएसं भयं वरभडाण । तं वीरदसणेणं सव्वंगं ताण वित्थरियं ।।५६६५।। तो तस्स विम्हयकरं भुयणस्स वि जणियगुरुचमक्कारं । दऔं तहा सरूवं पुरिलोओ चिंतए एवं ।।५६६।। ‘एसो को वि अउव्वो परमप्पा परमदेवयारूवो । न सुरा-सुर-खयराणं मज्झे एवंविहो अत्थि ।।५६६७।। एयस्स तेयपसरं नयणाई जणस्स असहमाणाई । मउलणलद्धसुहाई वंछंति न कह वि उम्मेसं' ॥५६६८।। तो जंपइ जोइसिओ ‘रे मूढा ! किं वियप्पजालेण ? । सो एस वीरसेणो तुम्ह मए जो पुरा कहिओ' ॥५६६९।। ‘सो एस वीरसेणो'त्ति जंपिए जायविसमरोसेण । नरसीहनरिंदेणं अह एवं भणिउमाढत्तं ॥५६७०॥ 'जइ एस वीरसेणो एसो च्चिय ता मए निहंतव्यो । चिटुंतु ता इमाई करमुट्ठिपरिट्ठियाइं मे ॥५६७१।। भो वीरसेण ! संपइ धर सुदिढं नियकरंमि करवालं । मह दंसणेण जम्हा गलंति वेरीण सत्थाई ॥५६७२।। जइ नाम कह वि गयणे वियरसि ता वियर मह भउब्भंतो । एत्थ ठिओ वि न छुट्टसि किं बहुणामिह] जमस्सेव ॥५६७३।। जइ स च्चिय तुह सत्ती मए सुया जा नरिंदलोयाओ । ता होहिसि मज्झ खणं रणरसतण्हाविणोयखमो ॥५६७४।। Page #527 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५१८ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ सो को वि न भूवलए जाओ जणणीए तारिसी पुत्तो । जो मज्झ रणझडप्पं अक्खुद्धो सहइ दुव्विसहं' ||५६७५ ॥ तो अप्पपसंसावयणसवणसंजायसिढिलहियएन । लीलावहासगब्भं सो भणिओ वीरसेणेण ॥५६७६ ॥ 'नरसीह ! तुज्झ विसए सव्वं संभवइ जं असंभवियं । किं तु न छज्जंति जणे किरियाहीणा मुहुल्लावा' ||५६७७ ।। 'किं तु न छज्जंति जणे'त्ति निसुयमेत्तेण वीरवयणेण । उत्तेजिओ नरिंदो विज्जुक्खित्तेण उप्पइओ ।। ५६७८ ।। तो निकारिमनरसीहविक्कमुक्करिसरंजिओ वीरो । परियप्पइ नियचित्ते रणरसरोमंचियसरीरो ।। ५६७९ ।। 'इह होंति विचित्ताओ पयईओ जयंमि वीरपुरिसाण । एक्के कज्जपहाणा बहुवयणा तदुभया अन्ने ॥५६८०।। ता एसो नरसीहो वयणपहाणो य कज्जसारो य । ता एएण सहाऽहं खत्तायारेण जुज्झिस्सं' ॥ ५६८१ ॥ एवं धरिऊण मणे वीरो ओयरइ वरविमाणाओ । तं पि नियखग्गरयणं ठवइ विमाणेकदेसंमि || ५६८२ ।। तो सो उप्पयमाणो अहो पडतेण वीरनाहेण । वच्छत्थलंमि पहओ नियएण वियडयरवच्छेण ||५६८३ ॥ तो अन्नोन्नोरत्थलसंघट्टुच्छलियपडिरवरउद्दं । वित (त्त ) त्थसयललोयं सहसा फुडियं व बंभंड || ५६८४ ॥ अह कुमरमहोरत्थलपहारवियणापरव्वसो पडिओ । मुच्छानिमीलियच्छो 'धस' त्ति धरणीयले राया ॥ ५६८५ ।। Page #528 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५१९ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ कुमरो वि असंभंतो असिधेणुम्मेत्तपहरणसहावो । ओयरिऊण नहाओ नियडे परिसंठिओ तस्स ॥५६८६।। तो वीरदसणेणं तेयं रविणो व्व असहमाणं तं । नरसीहमहत्थाणं तमं व नटुं निरवसेसं ॥५६८७॥ अह तं परियणलोयं संधीरइ कोमलेहिं वयणेहिं । 'मा भाह न तुम्ह भयं नाऽहं भीयाण पहरेमि' ॥५६८८।। पुण कुणइ वीरसेणो नरसीहनिवस्स सीयकिरियाओ । आसासिओ य ताहिं उट्ठइ सो रोसफुरिओट्टो ।।५६८९।। पुण भणइ वीरसेणो ‘होऊण थिरो मए समं जुज्झ' । इय भणिओ नरसीहो अभि(ब्भि)ट्टो वीरसेणस्स ॥५६९०॥ एत्थंतरंमि गयणे दूरडमडमिरडमरुयकरग्गो । सहस त्ति अघोरगणो जोइंदो आगओ तत्थ ।।५६९१ ।। आसीसदाणपुव्वं जोइंदो भणइ रायनरसीहं । 'तुह पुन्नरज्जुसंदाणिओ व्व अहमागओ एत्थ ।।५६९२।। ता भणसु किं पि जं किर नरिंद ! तुह तिहुयणे वि हु असझं । एसेव वीरसेणो जाणइ मह जारिसा सत्ती ॥५६९३।। दियहं पि करेमि निसं निसिं पि दियहं अहं खणद्धेण । चंदाइच्चा नरवर ! मह आणावत्तिणो निययं ॥५६९४।। निच्चसरूवं पि सया सट्ठाणपरिट्ठियं पि अचलं पि । तं पि परिब्भमइ हढा कुलालचक्कं व दिसिचक्कं ।।५६९५।। अहवा किं बहुणा जंपिएण ? तं तिहुअणे वि न हु अत्थि । जं मह मंतअसझं ता कहसु विसेसकायव्वं ॥५६९६॥ Page #529 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२० सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ अहवा अच्छउ अन्नं एयं चिय भुयणदुज्जयं वीरं । नियमंतपहावेणं करेमि भूईए उक्कुरुडं ॥५६९७।। एएण अहं छलिओ अरन्नमज्झम्मि कूडजूएण । गहियं मम असिरयणं इय अवयारी इमो मज्झ ॥५६९८।। असहायाण न सिद्धी सुठ्ठ वि बल-विरिय-सत्तिमंताण । ता होहामो अम्हे अन्नोन्नं राय ! सुसहाया' ।।५६९९।। तो पभणइ नरसीहो ‘मा जंपसु जोइनाह ! गुरुगव्वं । छलिओऽहं खयरीहिं सिरिपवणनरिंदभज्जाहिं ।।५७००। तम्हा नियभुयबल-विक्कमेण जं होइ तं करिस्सामि । किमहं कुंटो मढो(मूढो?) संगामजडोव्व भीरु व्व ?' ॥५७०१।। तो भणइ वीरसेणो नरिंद नरसीह ! मा इमं भणसु । इच्छंति भोयणे वि हु सुसहायं किं पुण न समरे ? ||५७०२।। ता मा चयसु सहायं सयमेव समागयं समरकाले । पणईण पणयभंगं न कयाइ कुणंति सप्पुरिसा ॥५७०३।। संबोहिऊण एवं नरसीहं तयणु वीरनाहेण । आहूओ महुरगिरा जोइंदो जुज्झरसिएण ॥५७०४।। 'ए एहि समरसज्जण ! जोईसर ! मा करेहि विक्खेवं । तुह नत्थि दोसलेसो पउंज नियमंतसामत्थं' ॥५७०५।। तो तक्खणेण कुमरो हिययपरिठ्ठवियपंचनवकारो । अहिधाविऊण उर्ल्ड आइट्ठइ जोइयं रोसा ।।५७०६।। ते दो वि समं धरिया भणिया वीरेण राय-जोइंदा । 'गरुओऽहं तुम्ह रिऊ ता जुज्झह सव्वसत्तीए ॥५७०७।। Page #530 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२१ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ मा भणह जं न कहियं संतंमि मए न राय ! तुह रज्जं । जोइंद ! सविग्घ च्चिय होही नणु मंतसंसिद्धी' ।।५७०८।। इय भणिऊणं वीरो बिउणीकयवामनियभुयावंडो । खडहडियभुवणसिहरं करेइ भीमं करप्फोडं ।।५७०९।। अह दो वि ते सरोसा असहायं पाविऊण वीरवई(इं) । जुझंति जुज्झदक्खा नाणाविहबंधकरणेहिं ।।५७१०॥ तिन्नि वि गुरुसामत्था तिन्नि वि नियकज्जसाहणुज्जुत्ता । तिन्नि वि पहारदक्खा तिन्नि वि वंचंति परघाया ॥५७११॥ खणमेक्कपहारेणं अहिहूया दो वि वीरसेणेण । मुच्छंति अडवडंता पडंति धरणीए निच्चेट्ठा ।५७१२॥ पुण लद्धचेयणा ते हणंति जुगवं कुमारमइरोसा । वियसियमुहसयवत्तो पुणो वि ते दो वि पाडेइ ॥५७१३।। तो निठुरकुमरपहारजज्जरंगाण ताण दोण्हं पि । संदेहतुलारूढं जायं जीयं च विहवं च ।।५७१४।। एत्थंतरंमि जोई खणमेगं ठाइ झाणजोगंमि । सुमरियमेत्ता तेणं समागया तत्थ चामुंडा ॥५७१५।। निम्मंसककसतणू पयंडनरमुंडमंडियसिरग्गा । अइभुक्खा खीणंगी जयभक्खणकयबहुमुह व्व ।।५७१६।। सिकंतरपण्ह(ल्ह?)त्थियवामकरंतंगुलीकयनिवेसा । पयडियभेरविमुद्दा छुहाए असइ व्व अप्पाणं ।।५७१७।। दूरं पसरियमुहकुहरकुडिलदाढाहिं भीसणा काली । सहचंदकलाकवलियबहुबहुलनिस व्व पलयनिसा ॥५७१८।। Page #531 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२२ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ दूरपवित्थरियमुहंतरालनीहरियजीहविकराला । गिलियसवासुइपायालगहिरविवर व्व दुप्पेच्छा ॥५७१९।। रेहइ जिस्सा बीभत्स-रोद्द-भयरसमयं व सव्वंगं । आसयवसपरियत्तियसत्ताइगुणेहिं कलियं व ॥५७२०।। रहसुच्चलियकसिणोभयंसअट्ठभीमभयदंडा । उव्वेव(य)णिज्जरूवा दवदड्डा वंसजालि व्व ॥५७२१।। आजढरकूवलंबिरथणजुयला मंसरुहिरलुद्धेण । नीहरियदुजीहेणं हियएण व गसियउयरंता ॥५७२२॥ चलवलिरकविलविच्चुयसहस्ससंचलियजढरपायाला । संधुक्कियग्गिकुंड व्व भुयणसंहारहोमंमि ।।५७२३।। कयवग्घकत्तिवसणा भुयंगकडिपट्टियानिबद्धकडी । खज्जूरीदुमदीहरविकरालतयट्ठिउरुदंडा ।।५७२४॥ हेट्ठियवाहणसवपिट्ठनिविद्रुट्टिमेत्तपयजुयला । दिद्धिं परिट्ठवंती कमेण नियसोलसभुएसु ।।५७२५।। डमरुय-तिसूल-कत्तिय-कत्तरि-वज्जासि-चक्क-बाणाणि । समयं संभालती अट्ठसु नियदाहिणकरेसु ।।५७२६।। वामेसु संठवंती खटुंग-कवाल-भेरवीमुदं । नरसिर-पास-सुखेडय-अंकुस-चावाई अढेसु ॥५७२७॥ सममोत्थरंतभीसणरक्खस-वेयालपरियणाइन्नं । करनरसिरपच्चासा उग्गीवसिवाए परियरिया ।।५७२८॥ .. इय सा पयइरउद्दा पयइपयंडा य पयइबीभत्सा । १. बीभत्स-रौद्र-भयरसमयं तस्याः शरीरं कीदृक् ? । क्रूराशयवंशेनैव परावर्तिता ये सत्त्वादयो गुणास्तैः कलितमिव, खंता. टि. ।। Page #532 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ पयईए(इ) भयसरूवा ओयरइ नहाओ चामुंडा ॥५७२९।। तो तं तहासरूवं जोइंदो पासिऊण पुलयंगो । . पाएसु पडइ तिस्सा धरणीयललुलियसव्वंगो ।।५७३०।। तो पणमंतं जोई सा जंपइ ‘भणसु रे ! किमाहूया ?' । सो भणइ देवि ! दासो तुज्झ च्चिय सव्वकालमहं ।।५७३१।। न कयाइ मए धरिया तुमं विणा अन्नदेवया हियए । अहवा किं भणिएणं ? पमाणमिह भयवई चेव ।।५७३२।। तो देवि ! दुत्थिएणं कयवेरिपराहवेण भीएण । भयवइ ! भुयणसरन्ने ! आहूया सरणबुद्धीए ।।५७३३।। दुत्तरआवइसायरपडियस्स न देवि ! होइ उत्तारो । जाव न लद्धाऽसि तुमं सुनिच्छियं सुदिढदोणिव्व' ।।५७३४।। जोइवयणावसाणे जंपइ 'तुह भयं कुओ कहसु । जेणाऽहं जोईसर ! मुणियथा(त्था) तुह जइस्सामि' ।।५७३५।। तो जोइएण भणियं ‘एसो च्चिय देवि ! तुज्झ पच्चक्खो । नामेण वीरसेणो मह अवयारी महासत्तू ।।५७३६।। जं देवि ! तए तइया पसन्नचित्ताए दिन्नमसिरयणं । मह तं पि हढेण हियं अणेण अडवीए मज्झमि ।।५७३७।। ता देवि ! कुण पसायं मारेसु इमं कयावयारं मे । मह देसु खग्गरयणं इमस्स रायस्स थिररज्ज' ।।५७३८।। कच्चायणी पयंपइ ‘होऊण थिरो अणेण सह जुज्झ । छिदं लभ्रूण तओ अहं पि उचियं करिस्सामि' ||५७३९।। तो जोइंदो हिट्ठो चामुंडावयणहुयअवटुंभो । नरसीहकयसहाओ जुज्झइ सह वीरसेणेण ।।५७४०।। Page #533 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२४ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ तो तीए नियकरत्थं समपि(प्पि)यं तस्स जोइणो खग्गं । फरयं च महाफारं सुदुज्जओ तेहिं सो जाओ ।।५७४१।। तो सो दूरुप्पइउं जोइंदो खग्ग-खेडयविहत्थो । जा हणइ वीरसेणं ता वीरो गयणमुप्पइओ ।।५७४२॥ तो निवडतं वीरं निहणिस्सामो त्ति विहियसंकप्पा । ते राय-जोइणो जा चिटुंति पहारकयचित्ता ।।५७४३।। ता कुमरेण सरोसं जुगवं दट्ठोट्टभिउडिभीमेण । दिढपायपहारेणं दो वि हया पट्टिदेसंमि ।।५७४४।। तो पायतलेण हया दो वि समं उव्वमंतमुहरुहिरा । पडिया अहोमुहेहिं तुलंतकर-पहरणा वसुहं ।।५७४५।। मुच्छानिमीलियच्छा मयव्व दिट्ठा नरिंद-जोइंदा । 'हा ह'त्ति पलविरेहिं नरिंदपरिवारलोएहिं ।।५७४६।। एत्थंतरे सरोसा चामुंडा कडयडतदसणोहा । संजंतंती तुरियं सोलसकरपहरणसमूहं ॥५७४७।। जंपइ 'न वीर ! एए सहति तुह संगरे दिढपहारं । ता एहि मज्झ समुहं जेण परिक्खामि तुह विरियं' ॥५७४८।। तो भणइ वीरसेणो ‘भयवइ ! न तए समं मह विरोहो । . होइ न विरोहरहिओ संगामो कस्स व कहिं पि ॥५७४९।। न तए सह धणवेरं भूवेरं मज्झ देसवेरं वा । बंधुवेरं च भयवइ ! जेणाहं [होमि] तुह समुहो ।।५७५०।। ता तुज्झ पुष्फ-बलि-गंध-धूवेहिं सम्मुहीहोउं । जुज्जइ न उणो समरे पहरणहत्थेण जुज्झेउं' ।।५७५१।। Page #534 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२५ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ तो वंतरीए(इ) भणियं 'कह न विरोहो तए समं मज्झ । जो मज्झ परमभत्तं मारसि जोईसरं पुरओ ।।५७५२।। मह सरणमुवगओ सो अहवा पुत्तो व्व मज्झ अणुगेज्झो । ता बंधुवहनिमित्तं तुमए सह बंधुवेर मे' ।।५७५३।। वीराहिवेण भणियं 'एसो तुह बंधवो अहं तु रिऊ ? । पायं न जाणसि च्चिय - सरूवमिह बंधु-वेरीण ॥५७५४।। उवयारवयारकया होति जए बंधु-वैरिया निययं । कहमेसो उवयारी ? अहं पि कह तुज्झ अवयारी ? ॥५७५५।। तुमए च्चिय उवयरियं इमस्स खग्गाइदाणभावेण । एयस्स न उण सत्ती जो तुह उवयरइ गरुययरं' ।।५७५६।। कच्चायणीए(इ) भणियं 'तूसामि न समहिओवयारेहिं । किंतु निक्कारिमाए तूसामि नरिंद ! भत्तीए' ||५७५७।। तो भणइ वीरनाहो ‘सच्चविया का तए मह अभत्ती ? । जेण अभत्तित्तणओ मए समं भिडिउमुज्जुत्ता ?' ॥५७५८।। कच्चायणीए(इ) भणियं 'सक्केमि न दाउमुत्तरं तुज्झ । जइ सच्चं मह भीओ ता मुक्को जाहि नियठाणं' ॥५७५९॥ तो भणियं वीरेणं न केवलं उत्तरंमि असमत्था । वस-मंस-मज्जभक्खिरि ! तक्केमि रणे वि असमत्था' ||५७६०॥ 'असमत्थ'त्ति सरोसं वयणं सोऊण वीरसेणस्स । सा भेरवी सुभीमं करेण परितोलइ तिसूलं ॥५७६१ ।। तो चिंतइ वीरवई 'एयाओ खुद्दरुद्ददेवीओ । मायाबहुलाओ(उ) न ता इमासु सरलेहिं होयव्वं ।।५७६२।। Page #535 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२६ ते मूढमई पुरिसा पावंति पराहवं पराहिंतो । जे होंति न समयन्नू मायाविसु माइणो अवस्सं ||५७६३ || तो सावहाणचित्तो गुरूवइद्वेण विहिविहाणेण । सुमरामि परममंतं परमं परमेट्ठिनवका (का) रं ॥ ५७६४ || तं नत्थि तिहुयणे वि हु संपज्जइ जं न परममंताओ । विसमं पि समं जायइ समं पि विसमं इमाहिंतो' ||५७६५ ॥ एत्यंतरे कुमारो सुमरियमेत्तेण तेण मंतेण । अच्चंतदुराधरिसो संजाओ वंतरिसुरीए ॥ ५७६६ ॥ तो तीए (इ) ससंकाए नवकारपहावहयपहावाए । धरिऊण करजुएणं सूलेण समाहओ वीरो || ५७६७ || 'जुवइ त्ति देवयत्ति य दुब्बलदेह त्ति परकलत्तं ति । कह तुह पहरेम अहं ?' इय भणिया वीरसेणेण ||५७६८॥ सा भइ कुवियचित्ता 'इमीए किं अलियवीरिमत्ताए ? | जइ सकसि ता जुज्झसु न दोसलेसो वि तुह अस्थि' ||५७६९ ॥ तो कुमरो रणदक्खो तिसूलसूलंतरेण नीहरिओ । उद्दालिऊण तिस्सा सूलं चक्कुं च ओसरिओ ।।५७७० ॥ वीरो तिसूल - वरचक्कवावडो पुरिजणेहिं कह दिट्ठो ? | भयसंपेसियहरि-हरनियनियसत्थो व्व समरंमि ॥५७७१ ॥ विवरीएण तहा सा तिसूलदंडेण आहया तेण । सोलस एसु तिस्सा पडियाइं जह पहरणाई ।। ५७७२ ।। तो अन्नोन्नामोडियसोलसकरपयडियंतरामरिसा । अप्पाणमप्पण च्चिय सा खायइ तिव्वरोसेण ||५७७३ || सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ . Page #536 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२७ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ ... तो तक्खणेण तीए पलयानलजायविसमरोसाए । दूरं निग्गयजीहं पसारियं पिहुलमुहकुहरं ॥५७७४।। दठूण वीरसेणो पसारियं तीए दारुणं वयणं । पक्खिवइ सकक्खासं (?) दुवे वि ते राय-जोगिंदे ।।५७७५।। उप्पइऊणं गयणे जा विसइ मुहं पयंडचंडीए । ता संवेल्लियजीहं वयणं संकोइयं तीए ॥५७७६॥ पुण दो वि वीरसेणो मेल्लइ धरणीए देइ सत्थाई । जंपइ ‘जुज्झह निउणं तुब्भे वि नरिंद-जोइंदा !' ||५७७७।। पुण नरसीहो जोई चामुंडा तिन्नि समरदक्खाई । एक्कस्स वि न पहुप्पंति तस्स रणरंगवीरस्स ॥५७७८।। एत्थंतरंमि रुट्ठो नरसीहो चयइ पहरणसमूहं । दिढयरकच्छियचलणो निविडनिबद्धद्धसिरजूडो ||५७७९।। तो वियडभुयप्फालणदूरसमुच्छलियपडिरवमिसेण । अवंदंति दिसाओ असहंतीओ व्वं तं सदं ॥५७८०।। जा अभिट्टइ राया वीरस्स असंभमं निजुद्धन्नू । ता जंपइ वीरवई समहियसंजायउव्वेव्वो ॥५७८१॥ 'किं अज्ज वि संजत्तसि नरसीहनरिंद ! मल्लजुज्झत्थं ? । सुमरसि न मज्झ घाया वीसरिया तुज्झ एण्हि पि ? ||५७८२।। लीलादिन्नेहिं वि जेहिं जासि मुच्छं खणे खणे राय ! । कह एण्हि पुण सहिहसि मह भुयदंडाण आमोडं ?' ||५७८३।। तो नरसीहो जंपइ ‘सच्चमिणं वीर ! तुह पहारेहिं । वच्चामि अहं मुच्छं तहा वि एक्कं खणं जुज्झ' ||५७८४।। Page #537 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२८ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ वीरो जंपइ ‘जइ एवं पुज्जउ तुह कोउयं महाराय ! | पयडसु नियविन्नाणं अब्भसियं जं पुरा किं पि' ||५७८५।। तो अन्नोन्नं दोन्नि वि अभिट्टा वीरसेण-नरसीहा ।। बहुरोसरत्तनयणा पयभरनिद्दलियमहिवीढा ॥५७८६।। बहुबंधकरणकत्तरि-ढोक्कर-तलहत्थमाइकिरियाहिं । तह जुझंति सरोसा तसंति जह नहयरा गयणे ।।५७८७।। जइ बंधइ वीरवई दक्खसरूवो हढेण नरसीहं । ता सो वि तहा छोडइ जह रंजइ वीरसेणो वि ।।५७८८।। एवं ताणन्नोन्नं नियनियविन्नाणपयडणपराण । वीरेण खणद्धेणं पत्तो सीसंमि नरसीहो ।।५७८९।। धरिऊण कंठदेसे एक्केण करेण रायनरसीहं । पुण लेइ धडफडतं बीएण य जोइनाहं पि ॥५७९०॥ एकत्थ मेलिऊणं दोहिं वि हत्थेहिं वीरसेणेण । गयणे भमाडिया ते चामुंडं तज्जयंतेण ।।५७९१।। 'एए मारिज्जंते चामुंडे ! किं न रक्खसि असरणे ?' | पच्चारिऊण एवं पक्खित्ता राय-जोइंदा ॥५७९२॥ कयपरियणहाहारवअसमंजसिहूयसयलपुरिलोयं । तह कत्थ वि ते खित्ता विन्नाया जह न केणाऽवि ||५७९३।। ते घेल्लिऊण दूरं ढुक्को कच्चायणीए जा वीरो । भयमुक्ककिलिगिलिरवा ता सा नट्ठा नहपहेण ॥५७९४॥ तो नटुं दठूणं चामुंडं वलइ वीरसेणो वि । आसासइ नीसेसं नरसीहनरिंदपरिवारं ॥५७९५।। Page #538 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२९ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ दरविहसियमुहकमलो वीरो जोइसिय-जयवडायाण । काउं महापसायं ससिणेहं भणिउमाढत्तो ।।५७९६।। 'अइमहया गंभीरा जलनिहिणो ते वि पलयकालंमि । खुब्भंति किमच्छरियं ? न उण तुम्हारिसा सुयणा ॥५७९७।। किं भन्नइ सुयणाणं ? अलद्धथाहमि जाण हिययंमि । मज्जंति महोयहिणो वि जम्मि जे पयइगंभीरा ॥५७९८।। पच्चक्खसज्जण च्चिय कलिकाले संभवंति सावेक्खा । ते कयजुए वि दुलहा निरवेक्खा जे परोक्खंमि ॥५७९९।। किं जंपिएण बहुणा ? का गणणा देस-विसय-विहवेहिं ? | एयं पि मह सरीरं आयत्तं तुम्ह दोहिं(ण्हं?)पि' ||५८००।। तो जंपइ जोइसिओ ‘जं उचियं होइ नियपहुत्तस्स । तं वीरसेण ! तुमए पयंपियं अब्भुवगयं च ।।५८०१।। तुह देव ! भुयणभारो वसइ सरीरंमि जंमि अकिलेसं । कह तं भुयणायत्तं पि कुणसि अम्हाण आयत्तं ? ||५८०२।। तुम्हारिसाण नरवर ! पयईए परोवयारनिरयाण । हिययाई सुगेज्झाई तुच्छेण वि मणकिलेसेण ॥५८०३।। ता देव ! देसकालोच्चि(चि)याइं कज्जाइं कुणसु सयमेव । तुह गुणगणबद्धाइं व विहडंति न अम्ह हिययाई' ॥५८०४।। इय जाव वीरसेणो जोइसिएणं च जयवडायाए । सह जंपइ ता सहसा जं जायं तं निसामेह ।।५८०५॥ सहसोत्थरंतबहुविहविज्जाहरवरविमाणनिवहेहिं । छाइज्जइ गयणयलं अकालमेहेहिं व सहेलं ॥५८०६॥ . 38 Page #539 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५३० सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ निमिसद्धेण य जायं तिरोहियासेसतरणिकिरणोहं । निबिडविमाणनिरंतरछायाच्छन्नं धरणिवटुं ॥५८०७।। एत्थंतरे नहाओ समागओऽहं नरिंद ! सहस त्ति । जोकारिऊण वीरं विनविउं अह समाढत्तो ||५८०८।। 'वीराहिव ! तइयाऽहं तुमंमि खयरीहिं अवहडे नाह ! । दीणो व्व अणाहोऽहं सरणविहीणो व्व संजाओ ॥५८०९।। तो वासुपुज्जभवणे गवेसिओ तिय-चउक्क-रत्थासु । आसम-विहारेसु उज्जाण-मढेसु य न दिट्ठो ॥५८१०।। सो नत्थि इह पएसो तिलतुसमेत्तो वि चंपनयरीए । जत्थ न भयतरलच्छं गवेसिओ वीरसेण ! मए ।।५८११।। तो पुणरवि वलिऊणं समागओ जयवडायगेहमि । सा वि तुह विरहतविया अक्कंदइ परियणसमेया ॥५८१२।। सव्वंगकसिणकुंतलकलावपच्छाइया रुयइ निहुयं । विरहानलदज्झंती सिमसिमइ व धूमछन्नग्गी ।।५८१३।। तो देव ! मए एसा संठविया वि हु न ठाइ रोवंती । तह विलवइ दुक्खत्ता जह हिययं अम्ह दलइ व्व ।।५८१४।। तो देव ! अहं भणिओ इमीए 'भो वज्जबाहु ! अनिससु । विज्जासत्तीए सई वीरवई सयलवसुहाए' ||५८१५।। किंकायव्वविमूढो एगागी तुह पउत्तिमलहंतो । निरुवाओऽहं पत्तो वेयड्ढे उभयसेढीसु ।।५८१६।। सेहरयासोयाणं एगासणवीढसमुवविट्ठाण । तुह चरियगयं गीयं निमीलियच्छं सुणंताण ।।५८१७॥ Page #540 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ तुह चरियकहासत्ताण तुज्झ गुणभावणापुलइयाण । तुह चेव दंसणुकंट्ठियाण कहियं मए ताण ॥५८१८। जह मज्झिमभुयणयलं विजिगीसंतेण वीरणाहेण । संपेसिओ म्हि पणिही नरसीहनरिंदनयरीए ।।५८१९।। जह तस्स दुस्सरूवं निक्कारणमच्छरिस्स नरवइणो । नासिके गंतूणं कहियं किर तुह मए सव्वं ॥५८२०॥ जह तुमए वि पइन्ना विहिया दसरत्तमज्झयारंमि । एक्कंगेण असेसं भूवलयं साहियव्वं ति ||५८२१।। जह निग्गओ सि नरवर ! अंगइयानयरमागया जह य । संगमयमुणी दिट्ठो जह निसुयं तस्स चरियं पि ॥५८२२।। जह आगया य चंपं जह य जिणो वंदिओ य वसुपुज्जो । जह तत्थ संठियाणं समागया जयवडाया वि ॥५८२३।। जह तीए गया गेहं तिस्सा जह वासभवणसिज्जाए । सुत्तो वीराहिवई खग्गकरोऽहं ठिओ दारे ।।५८२४।। जह ताओ मए अट्ठ वि रक्खसिरूवाओ तत्थ दिट्ठाओ । दलृण ससंकोऽहं जाओ पुण कड्डियं खग्गं ।।५८२५।। जह ताओ मं दद्रु इयरगवक्खेण किर पविट्ठाओ । जह चिंतियं मए किर किमेत्थमेयाण आगमणं ? ।।५८२६।। चिंतंतस्स मणे मह 'एयाओ न सुंदराओ' इइ फुरियं । 'ता उट्ठवेमि वीरं करेमि तस्संगरक्खं पि ॥५८२७।। जह उठ्ठिओ तुरंतो गंतूणं जाव पच्छिमगवखे । जोएमि तुमं नरवर ! न ताव पेच्छामि सेज्जाए ।।५८२८।। Page #541 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ तो निच्छइयं एयं 'ताहिं चिय पवणकेउभज्जाहिं । अवहरिओ वीरवई निब्भरनिहाए पासुत्तो' ।।५८२९।। एयं नीसेसं चिय सवित्थरं ताण खयररायाण । वेयड्डागमणं तं परिकहियं वीर ! तुह विसयं ॥५८३०॥ 'ता मा कुणह विलंबं उट्ठह वेगेण परियणसमेया । विज्जाहरे वि तुरियं नीसेसदिसासु पेसेह' ||५८३१॥ इय एवमाइ सयलं सोऊणं ते असोय-सेहरया । विहडंतासणबंधा सट्ठाणचलंतलंकारा ॥५८३२॥ संभमचलंतभूसणसंघट्टझणज्झणारवकरालं । उटुंति दो वि समयं खयरिंदा आसणवराओ ॥५८३३॥ कयपाणि-पायसोया विसंति देवहरगब्भगेहमि । कयजिणपूयाकम्मा झाणजोगेण चिट्ठति ।।५८३४।। नियनियविज्जादेवीओ तेहिं पुट्ठाओ कुमरवुत्तंतं । ताहि वि ताण असेसं जहवित्तं तं तहा कहियं ॥५८३५।। तो ते पहिट्ठवयणा नीहरिया देवगब्भगेहाओ । भणियं 'निसुणह लोया ! अच्छरियं वीरसेणस्स ॥५८३६॥ ओसायणि-विवसमणो नीओ खयरीहिं अडविमझंमि । अइसयसुरूवदंसणअणुरायपरव्वसमणाहिं ।।५८३७।। आढत्तो अभिरमिउं छलेण कयजयवडाहि(य)रूवाहिं । सुमिणमि चकिणीए परिकहिओ ताण वुत्तंतो ।।५८३८॥ पुण जग्गिएण तेणं सव्वाओ वि ताओ किर निसिद्धाओ । संगामे जित्ताओ पुण रन्ने खेल्लियं जूयं' ॥५८३९॥ Page #542 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ .. ५३३ इय एवमाइ सव्वं दिव्वविमाणासिरयणलाहं च । चामुंडाविजयंतं कहियं खयराण दोहिं(ण्ह)पि ।।५८४०।। 'ता किं तयस्स भन्नओ(उ) लोगुत्तरचरियगुणनिहाणस्स । जस्सेक्को(क्के)क्को वि गुणो अणंतगुणसंगओ होइ ? ।।५८४१।। जस्स विरायइ कित्ती भुयणायरगब्भसंठियमयंका । अणवच्छिन्नपहावा 'कित्तंतरगभिण(णि)व्व जए ॥५८४२।। ता संजत्तह सव्वं विमाण-जाणाइ तत्थ वच्चामो । जत्थऽच्छइ जयवंतो जयगरुओ वीरसेणपहू' ॥५८४३।। तो तव्वयणाणंतरमणंतभडखोहजायसंखोहं । संचलइ खयरसेन्नं तुह सणकयमणुकं(क)ठं ।।५८४४।। कयमंगलोवयारा नियनियपरिवारपरिगया देव ! । एत्थागया नहेणं सेहरयासोयरायाणो ॥५८४५।। ता देव ! एस दीसइ जो गयणे जाण-वाहणसमूहो । सो एयाण असेसो संबद्धो खयररायाण' ॥५८४६।। तो तव्वयणविरामे धी(वी)रो वी(वि)यरंतदसणकिरिणोहो । ईसि हसिऊण जंपइ 'किं भन्नइ तुज्झ भत्तीए ? ||५८४७।। नाऽहं ताव समत्थो तुह नेहकयाण पडिकयं काउं । किं तु मणागमणुच्चियमणुट्टियं वज्जबाहु ! तए ।।५८४८।। जं एए खयरिंदा मह दुक्खावेयणेण दुक्खविया । जं इह निप्पल्लाए खडप्फडाए य खेयविया ॥५८४९।। सुहडाण पुरो सुंदर ! लज्जिज्जइ जुयइजयकहाए वि । किं पुण पासुत्ताणं अवहरणकहाए नो ताण ? ॥५८५०।। १. कीर्तिः कीर्यंतरगर्भिणीव, खंता. टि. ।। Page #543 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ रे वज्जबाहु ! तुह किं एत्तियमेत्तो वि भरवसो नत्थि ? | तासिं भत्तारेण विजो न जिओ कह णु पुण ताहिं ?' ||५८५१॥ तो राय ! मए भणियं 'वीर ! अहं तुह पउत्तिमलहंतो । मूढो व्व मणेण तओ गओ म्हि एआण पासंमि' ॥५८५२।। तो भणइ वीरसेणो 'सच्चमिणं नेहमोहियमणाण | पुरिसाण मच्छियाण व चेयन्नविवज्जओ होइ ।।५८५३।। ता वच्चामो समुहं खेयररायाण नियविमाणेण' । इय भणिऊणं कुमरो आरूढो वरविमाणंमि ॥५८५४।। तो देव ! मए सहिओ जोइसिएणं च जयवडायाए । सकिवाणेण (स)सत्थत्तेण तह य सियचमरहत्थाए ॥५८५५।। उप्पइओ गयणयलं भासुरकिरणोहपूरियदियंतो । भाणु व्व पबोहंतो विज्जाहरकमलसंडाइं ।।५८५६।। पणमिज्जंतो पुरओ ससंभमं अग्गिबाणसुहडेहिं । परमप्पओ व्व दिट्ठो असोय-सेहरयराएहिं ॥५८५७।। तो दंसणमेत्तेण वि परिचत्तविमाण-आसण-विलासा । सेवयकरसंवेल्लियवरिल्लवत्थंचला दो वि ॥५८५८।। गरुयाण(णु)रायनिब्भरनिहित्तदिट्ठी कुमारमुहकमले । आणंदवियसिउज्जलनीलुप्पलदीहरच्छिजुया ||५८५९।। गइवसचलंतकुंडलवच्छत्थलघोलमाणहारलया । वियसंतकवोलत्थलपिसुणियअभितरपमोया ।।५८६०।। असरिसपहरिसरोमंचकंचुइज्जंतपयडसव्वंगा । पणमंति वीरसेणं सगौरु(र)वुच्चरियजयसद्दा ॥५८६१।। Page #544 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ ५३५ दूराओ च्चिय कुमरो वि दीहपसरंतउभयभुयदंडो । आलिंगइ सप्पणयं जहक्कमं खेयरनरिंदे ।।५८६२।। पुच्छइ कुसलोदंतं वीरो साहति ते वि सप्पणयं । 'तुज्झ पसाएण सया कुसलं चिय अम्ह नरनाह !' ।।५८६३।। तो ते समयं दोन्नि वि सिरग्गविणिवेसियंजलीबंधा । आढत्ता विनविउं वीरं विज्जाहरनरिंदा ॥५८६४।। 'किं देव ! एत्तियंमि वि कज्जे सयमागओ सि चंपाए ? । दिन्नो किन्न नरेसर ! आएसो एस अम्हाण ? ।।५८६५।। अइगुरुपरक्कमाण वि सोहइ भिच्चत्तणं न भिच्चाण । संतेहिं जेहि पहुणो सयं किलिस्संति कज्जेसु ॥५८६६।। जइ अवसरे वि पत्ते न पत्तिणो उवयरंति सामीण । ता ताण निप्फलं च्चिय अन्नोनं भिच्च-सामित्तं ।।५८६७।। जं विणिओयविहीणं कुणइ पसायं पहू स भिच्चस्स । तं तस्स निच्छएणं दूरीकरणं अदुव्वयणं' ।।५८६८।। तो सहसा नियकरयलझंपियसवणेण वीरसेणेण । भणियं 'न तुम्ह एयं हियए वि वियप्पिउं जुत्तं ।।५८६९।। को कस्स एत्थ भिच्चो ? अहवा को कस्स साम्वि(मि)ओ होइ ? । अलियाभिमाणमेयं एसो भिच्चो अहं सामी ॥५८७०।। नियसामित्तमएणं हढेण वावरयंति जे अन्नं । ते आभिओगियं खलु कम्मं बंधंति अइविरसं ॥५८७१॥ जइ पयइनम(म्म)याए गरुया सुयणा सुनम्मयं जंति । तो ताण एत्तिएण वि किं भिच्चत्तं समावडियं ? ||५८७२।। Page #545 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५३६ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ जह सामिणो वि तुब्भे अप्पा ( प्पं ?) भिच्चत्तणेण मन्नेह | अहमवि तहेव जम्हा गरुयाणं एरिसो मग्गो || ५८७३ || ता मा किं पि वियप्पह चित्ते अन्नारिसं खयरराया ! । तुभेहि वि नियकज्जे अहमेव निओयणीओ त्ति' ||५८७४ ॥ इय जा ते अन्नोन्नं सुयणालावेहिं तत्थ चिट्ठति । ता वासुपुज्जभवणे दिट्ठी सव्वाण ओवडिया ।। ५८७५ ।। पेच्छंति तत्थ गरुयं जणस ( सं ) मदं पसारियच्छिउडा । पुच्छंति कोउएणं किं एसो लोयसंघट्टो ?' ||५८७६ || तो राय ! मए भणियं 'अहमवि सम्मं न देव ! जाणामि । किं तु तए निक्खित्तो नरसीहो निवडिओ एत्थ ||५८७७ || तो भाइ वीरसेणो 'जइ एवं चलह तत्थ बच्चामो । जिणनाहदंसणेणं तुम्ह वि कम्मक्खओ होउ || ५८७८ || एपि य नरसीहं सत्थं काऊण निययरज्जमि । पुणरवि संठावेमो इय भणिउं तत्थ ओइन्ना ||५८७९ || कयबहुपूयाकम्मा जिणनाहं वंदिऊण सव्वे वि । पुच्छंति 'किं किमेसो संमद्दो सव्वलोयाण ?' ||५८८० ॥ तो जंपियमेगेणं 'देव ! इमे वीरसेणराएण । उल्लालिऊण इहइं पक्खित्ता राय-जोइंदा || ५८८१ ।। ते मुच्छावसपरवससव्वंगा चेयणं न पावंति । ताणेसो परिवारो सीयलकिरियाहिं उज्जमइ' ।। ५८८२ ॥ तो भणइ वीरसेणो 'हा ! कट्ठे एत्तिएण वि खणेण । चेयन्नं नरसीहो न लहइ ता एह वच्चामो' ||५८८३॥ " Page #546 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ तो सो दूराओ च्चिय जोइज्जतो जणेहि सवियप्पं । सूरो ब्व गुरुपयावो एगागी एस इह दिह्रो ।।५८८४।। 'कह संपइ नहवसुहंतरालभाए अलद्धठाणेहिं । विज्जाहरसेन्नेहिं एक्कखणेणेव परियरिओ ।।५८८५।। बहुपुन्न-मंदपुन्नाण एत्थ अइगरुयमंतरं होइ । रविणेव्व उडुसमूहो अंतरिओ जेण खयरोहो ।।५८८६।। मन्ने एसो च्चिय सयलभूमिवलयस्स अहिवई होही । जं एरिसो पयावो वभिचरइ न सव्वभोमत्तं' ।।५८८७।। इय एवमाइ विविहं कुमारविसयं वियप्पमाणाण । लोयाण कयाणंदो पत्तो नरसीहपासंमि ॥५८८८।। सहसोसरंतपरियणजणेण दूराओ दिन्नओवासो । पत्तो वीराहिवई विज्जाहरविंदपरियरिओ ।।५८८९।। जा नियइ तत्थ पुरओ तो पेच्छइ तिव्वतेयदिप्पंतं । बहुसीससंपरिवुडं अणेयगुणभासुरसरीरं ॥५८९०।। तईसणहरिसियलोयपरिसाए मज्झमुवविटुं । पप्फ(प्फु)ल्लकमलसरवरसंकंतं भाणुबिंबं व ॥५८९१।। फासुयलद्धसमुज्जलकयवत्थद्धतउत्तरासंगं । सरयब्भनिरुद्धद्धं चित्ततवं सूरबिंब व ।।५८९२।। उन्नयकरग्गसंठियसुदीहमुहवत्तियाविरायंतं । . संपत्तजयवडायं व सयलचारित्तिसंघेसु ।।५८९३।। सद्धम्मदेसणासेयदसणकिरिणोहपूरियदियंतं । वित्थारंतं व जणे पावमलक्खालणजलाई ।।५८९४।। Page #547 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५३८ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ पिहियमुहवत्तियमुहं पसारयंतं व चक्खुरक्खट्ठा । मुहसूईहरपसवियसरस्सईकंडवडयद्धं ॥५८९५।। पंचविहायाररयं पंचमहव्वयपवित्तियसरीरं । पंचसमियं पसंतं पंचिंदियचोरदंडधरं ।।५८९६।। निम्मलखत्तियकुलवंससंभवं भवसमुद्दबोहित्थं । नामेण बंभगुत्तं विसुद्धतव-बंभगुत्तं च ॥५८९७।। सूरिं भुयणसरन्नं चलणंतलुलंतरायनरसीहे । दिष्टुिं परिवंतं करुणारसमउलियद्धंतं ॥५८९८।। इय बंभगुत्तसूरिं वीरो दठूण बहलरोमंचो । आणंदतरलियच्छो वंदइ परमाए(इ) भत्तीए ।।५८९९।। सव्वे वि खेयरिंदा असोय-सेहरयमाइणो तस्स । सूरिस्स चरणकमलं वंदंति विसुद्धभावेण ||५९००।। गुरुणा वि सायरेणं अणेयभवदुक्खदलणदंभोली । दिन्नो सुधम्मलाभो वीराहिव-खेयरिंदाण ॥५९०१।। आयरियमईए(इ) भुवं पमज्जिऊणं वरिल्लवत्थेण । पयइपवित्ते सुद्धे उवविट्ठा पायमूलंमि ।।५९०२।। पुच्छियकुसलोदंता कहंति सव्वं गुरूण सुहकुसलं । पुच्छंति विणीयप्पा 'किं भयवं एत्थ नरसीहो ?' ||५९०३॥ तो भणइ गुरू ‘सावय ! अम्हे वि विसेसओ न याणामो । किं तु इह संठियाणं दडत्ति इह निवडिया एए' ||५९०४।। तो भणइ वीरसेणो ‘असेसभूवलयसांविओ(सामिओ) एस । नरसीहो नामेणं एसो पुण जोइओ बीओ ||५९०५।। Page #548 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ मुच्छानिम्मी(मी)लियच्छा दोन्नि वि कह चेयणं न पावंति ?' | इय भणिऊणं वीरो सिंचइ हरिचंदणजलेण ॥५९०६।। तो तक्खणेण दोन्नि वि हरियंदणसिसिरवारिणा सित्ता । आमोडिऊण अंगं उटुंति दिसीओ(उ) जोयंता ॥५९०७॥ तो अन्नपएसंतरदसणसंजायमणपरामरिसा । पेच्छंति मुणिवरिंदं सखेयरं वीरसेणं च ॥५९०८।। एत्थंतरंमि सहसा विमुक्ककेसं कउब्भडपलावं । ताडियसिरवत्थयलं रुयमाणं दीहधाहाहिं (बाहाहिं ?) ॥५९०९।। सिरिकणयरेहपमुहं असेसमंतेउरं गरुयदुक्खं । संपत्तं तत्थ जहिं अच्छइ नरसीहनरनाहो ॥५९१०।। विमलमइपमुहपरियणपरियरियं तं महापलावेहिं । पलवइ जहा रिऊण वि दोखंडइ कढिणहिययाई ॥५९११।। 'हा ! नरसीहनरेसर ! असेसवसुहापयंडमाहप्प ! । । को को न एत्थ भुयणे जो न तए गंजिओ राय ! ? |५९१२।। हा ! तुज्झ पायकमले नमंतसामंतमौलिमालाण । रयपिंजरिए पुट्विं कह संपइ धूलिधूसरिए ? ||५९१३॥ हा ! पुट्विं नरवइणो तुह उच्छंगठियाओ जंघाओ । संबाहंति कहेण्हि लुलंति भूमीए ता चेव ? ॥५९१४।। हा ! उच्चरयणसीहासणंमि जो आसि पणइपरियरिओ । सो च्चिय भूमिनिविट्ठो दीससि वैरीहिं परिकिन्नो ? ॥५९१५॥ निवडंतचामरानिलविलुलंतो तुज्झ कुंतलकलावो । सो च्चिय संपइ वसुहातलनिवडणदुत्थिओ दिट्ठो ||५९१६॥ Page #549 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५४० सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ जो च्चिय तुमं नरेसर! भयतरलच्छं रिऊहिं सच्चविओ । सो च्चिय संपइ दीससि तेहिं चिय जायकरुणेहिं ॥५९१७।। जह वारिओ सि पुट्विं सुमंतिणा तह मए सयं चेव । 'मा कुणसु विग्गहं किर अणेण सह वीरसेणेण' ॥५९१८।। तं अम्ह तए तइया न कयं वयणं सयं भयंताण । विरसविवायं भुंजसु एण्हि नियकूडमंताण ॥५९१९।। एएण तुमं नरवर ! वीरेण भमाडिओ सयं गयणे । अच्छोडिऊण खित्तो किमित्थ[तं] निवडिओ एण्हि ? ॥५९२०।। तो वीर ! उट्ठ तुरियं उद्धरसु धरं च धीरिमं कुणसु । नणु संगामो एसो पडंति उटुंति इह सुहडा ||५९२१।। संभालसु नियरज्जं संठवसु विसंठुलं च परिवारं । किमुवेक्खसि अप्पाणं रिऊहिं परिवारिओ नाह ! ? ||५९२२॥ अज्ज वि न किं पि नटुं तुह भुयदंडेसु जयसिरी वसइ । ते उण तुह आयत्ता ता कुणसु मणे अवटुंभं' ॥५९२३॥ इय एवमाइ बहुयं भणिओ सिरिकणयरेहमाईहिं । किं पि मणे झायंतो पुण भणिओ वीरसेणेण ॥५९२४॥ मूढो व्व किं विचिंतसि ? नरसीह नरिंद ! वंदसु मुणिंदं । चइऊण असग्गाहं पणमसु जोईसर ! तुम पि ॥५९२५।। जो भुयणवंदणिज्जाण कुणइ मूढो गुरूण वि अवन्नं । सो गुणदेसित्तणओ पडइ नरो घोरनरएसु ।।५९२६।। जो कुणइ अपुज्जे वि पूयमपूयं च भुयणपुज्जंमि । सो अविवेयत्तणओ अज्जिणइ किलिट्ठकम्माई' ॥५९२७।। Page #550 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ ५४१ सोऊण वीरसेणं ‘एवं ति य पणिऊण नरसीहो । पाएसु पडइ गुरुणो गुरुतरसंजायसंवेगो ॥५९२८।। गुरुणा वि सायरेणं उन्नामियदाहिणग्गहत्थेण । दिन्नो दुहसयदलणो सुधम्मलाहो नरिंदस्स ॥५९२९।। पुणरवि सुहासणत्थं नरसीहं भणइ बंभदत्तगुरू । 'मा मणयंपि नरेसर ! मणखेयं कुणसु हिययंमि ।।५९३०।। विहिए वि हु मणखेए न किंपि परमत्थओ परित्ताणं । लच्छीए चंचलत्तं जयपयर्ड को न जाणेइ ? ||५९३१।। वच्चइ खणेण अन्नं चइऊण कुलक्कमागयं पुरिसं । पंसुलिनारि व्व सिरिं दिविलीयं परिच्चयसु ॥५९३२॥ पयडियजयाणुराया पूइज्जंती वि सयलभुयणेहिं । विहडंति च्चिय दावइ पओससंज्झ व्व तिमिरभरं ॥५९३३।। संके संकंता इव अणवरयं कमलवाससंगेण । दीसंति जं सिरीए वि खणिया संकोय-वित्थारा ॥५९३४।। एसा नरिंद ! लच्छी जेट्ठा भइणी विसस्स जं एसा । दाऊण दुहसयाई मारइ गरलं तु अकयदुहं ।।५९३५।। चइऊण सुरसमूहं मंदरमहणंमि जो सयं वरिओ । सो वि हरी परिच्चत्तो जीए न किं चयइ सा तुब्भे? ॥५९३६।। सा नयरी बारवई सा य सिरी सुरवईण वि दुलभा । पेच्छंतस्स य नट्ठा हरियंदपुरि व्व कण्हस्स ॥५९३७।। को सुविणे वि वियप्पइ विणस्सिही दससिरस्स जं लच्छी । तैलोयकंटयस्स वि जाव सिरी तस्स वि पणट्ठा ॥५९३८॥ Page #551 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५४२ परिवट्टिया सुदूरं आसग्गीवेण अत्तणो कज्जे । तं पि चइऊण लच्छी वेस व्व तिविठुमल्लीणा ।।५९३९ ।। निवनघुस -नल-महाबल-दिलीव - दसभद्द-दसरहाईण । सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ जाया थिरा न लच्छी सा तुह नरसीह ! कह होही ? ।। ५९४०।। लंघंती रायसए तुहागया अद्धंगि व्व जइ लच्छी । ता किं न चिंतसि इमं पुव्वनरिंदे व्व मं चइही ? ||५९४१॥ जइ एसा वि नरेसर ! होइ थिरा पयइचंचला लच्छी । भरहाइणो नरिंदा ता किं छडं ( डुं ) ति मोक्खमणा ? ।। ५९४२ ।। ता मा कुण पडिबंधं सिरीए सयणेसु सुय- कलत्तेसु । सव्वं पि अपरमत्थं परमत्थो जिणमओ धम्मो' ||५९४३॥ तो नरसीहो गुरुवयणजायसंवेगरसविसुद्धप्पा | विन्नवइ गुरुं 'भयवं ! सच्चमिणं जं तए भणियं । । ५९४४ ।। अविवेयसमुब्भूया पसरंति नराण अ ( 5 ) कुसलबुद्धीओ । जा पयडियपरमत्थं मुणंति न मुणिंद ! तुह वयणं ।। ५९४५ ।। जह चेव तए कहियं चंचलरूवं सिरीए मह नाह ! । तह चेव अपरमत्थं ति मज्झ हियए वि संकंतं ।। ५९४६ ॥ किं तु परमत्थभूओ जिणधम्मो जो तए पुरा भणिओ । तं मज्झ जोइणो विय काऊण पसायमाचिक्ख' ।। ५९४७ ।। तो भइ गुरू गंभीर - महुरसद्देण सव्वजयसुहयं । धम्मं जिणोवइट्ठ असेसकम्मक्खयसमत्थं ।।५९४८ ।। 'धम्मो धम्मो त्ति जए सुव्वई (इ) सव्वेसु दरिसणपहेसु । सो च्चिय परिक्खियव्वो विवेइणा नियविवेएण ।। ५९४९ ॥ Page #552 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ जह काऊण तिसुद्धं कणयं गिन्हति अद्धगा के वि । कालंतरेण पुण तं न विहडए अन्नदेसे वि ।।५९५०॥ सुपरिक्खिऊण धम्मं तहेव धम्मत्थिणो वि गिन्हति । जेण न भवंतरेसु वि सो विहडए वंछियफलेसु ।।५९५१।। जे पुण पवाहपडिया अपरिक्खियधम्मगाहगा होति । ते धम्मवासणाए कुणंति पावाइं बहुयाइं ॥५९५२ ।। जह सो परिक्खियव्वो धम्मो धम्मत्थिणा इह नरेण । तह तं एगग्गमणा आयन्नह राय-जोइंदा ! ।।५९५३।। एयं पि भावियव्वं नियचित्ते सव्वदरिसणाणं पि । को परमत्थो भणिओ निययागमवेस(य?)सत्थेसु ।।५९५४।। पंच पवित्ताणि सया सव्वेसिं होंति धम्मचारीण । दय-सच्च-मचोरिक्कं बंभं च परिग्गहच्चाओ ।।५९५५।। एयाइं जत्थ पंच वि निव्वाहं जंति अकयबाहाई । आइ-मज्झा-वसाणे सो धम्मो फलइ परलोए ||५९५६।। जत्थ य पुण एयाइं मूलं धम्मस्स' जंति वभिचारं । आइ-मज्झा-वसाणे विरोहओ चयह तं धम्मं ॥५९५७।। पासंडियधम्मेसुं पढमं पडिवज्जिऊण एयाइं । सव्वेहिं तओ पच्छा हिंसाईया अणुनाया ।।५९५८॥ जिणधम्मे पुण सावय ! मूलगुणे चेव होंति एयाइं । किं जंपिएण ? अहवा परिभावह सुहमबुद्धीए' ॥५९५९।। तो राया जोइंदो दो वि समं विन्नवंति आयरियं । 'भयवं ! को संदेहो ? एवमिणं जंतए भणियं' ||५९६०।। १. मूलधम्मस्स इति स्यात् ।। Page #553 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५४४ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ भणियं जोइंदेणं 'मुणिंद ! मह अणुहवेण पच्चक्खं । कोलागमेसु विसुयं मूलं धम्मस्स जीवदया ॥५९६१॥ जेणेव कोलधम्मो पयट्टिओ भेरवेण भुयणंमि । सो च्चिय भक्खइ मंसं पियइ सुरं वहइ जीवे वि ॥५९६२।। तथा च- “रंडा चंडा दिक्खिदा धम्मदारा मज्जं मंसं पिज्जए खज्जए य । भिक्खाभोज्जं चम्मखंडं च सेज्जा कौलो धम्मो कस्स नो ठाइ रम्मो'? ||५९६३।। तो भयवं ! जिणधम्मं परमत्थवियारणाखमं सोउं । जा सुव्वइ कुलधम्मो ता मुणह विडंबणं सव्वं ।।५९६४।। किं तु अजाणतो च्चिय पुच्छामि इमं कहेह मह भयवं ! । जइ एस अधम्मो च्चिय ता कह अणिमाइसिद्धीओ ?' ||५९६५।। तो भणइ गुरू 'जोइय ! एयाओ होति खुद्दसिद्धीओ । साहंति न कज्जाई परलोयसुहाई इह जेण ॥५९६६।। एयत्थं कौला वि य सिवसोक्खं चइय पुण किलिस्संति । उड्डीसमाइयाइं य सत्थाई वि एयरूवाइं ॥५९६७।। जिणधम्मो पुण जोइय ! मोक्खफलो जिणवरेहिं पन्नत्तो । अणिमाई सिद्धीओ किसिकम्मपलालकप्पाओ ।।५९६८।। सो च्चिय धम्मो सावय ! चउव्विहो होइ जिणवरमयंमि । इह दाण-सील-तव-भावणे(णा)हिं भिन्नो जहाकम्म(म)सो ॥५९६९॥ दाणमई(इ)ओ उ पढमो भण्णइ संखेवओ महाराय ! । दाणं तिविहं भणियं जिणागमे तंपि निसुणेह ।।५९७०।। Page #554 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सेरिभुयणसुंदरीकहा ॥ पढमं खु नाणदाणं बीयं पुण होइ अभयदाणं च । धम्मोवग्गहदाणं तइयं पुण होइ नरनाह ! ॥५९७१।। नाणं पि होइ दुविहं मिच्छानाणं च सम्मनाणं च । जं राग-दोसजणगं मिच्छानाणं तयं भणियं ।।५९७२ ।। जं इहलोयनिबद्धं उवजुज्जइ राय ! न उण परलोए । तं मूढरिसीहिं कयं मिच्छानाणं भवे सव्वं ॥५९७३।। रायनीईओ(उ) नरवर ! धणुवेओ होइ जुज्झसत्थं च । करि-तुरयाणं सिक्खा सूयाराहेडगगयं च ।।५९७४।। तह य चिगिच्छासत्थं जोईसत्थं विवायसत्थं च । रसधाउवायसत्थं जाणह वसियरणसत्थं च ।।५९७५।। एमाइ बहुप्पयारं नाडयसत्थं च भरहमाईयं । मिच्छानाणं सव्वं रागाइविवडणं जम्हा ।।५९७६।। सव्वन्नुणा जिणेणं जो भणिओ अवितहागमो राय ! । तं होइ सम्मन्ना(ना)णं परलोयपसाहणं जम्हा ।।५९७७।। जीवाजीवा पुन्नं पावासव्व(व)संवरो य निज्जरणं । बंधो मोखो(क्खो) य तहा जाणिज्जइ सम्मनाणेण ।।५९७८ ।। एमाइणो अणंता विसया इह होंति सम्मनाणस्स । नाएण जेण सम्मं पलयं वच्चंति रागाइं ।।५९७९।। तं नाणं पि न भण्णइ रागाई जेण उकडा होति । सो कह भन्नइ सूरो विहडावए जो न तिमिरोहं ।।५९८०।। तं राय ! सम्मनाणं ससत्तिसरिसं नरेण दायव्वं । दिन्नेण जेण जीवा मुणंति जीवं अजीवं ति ।।५९८१।। 35 Page #555 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५४६ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ नाणपयाणेण विणा जीवमजीवं च जाणइ न सम्मं । अमुणियजीवाजीवो कह रक्खं कुणइ जीवाण ? ।। ५९८२ । नाणेण राय ! जीवा मुणंति पुन्नं तहेव पावं च । तक्कारणाणि य तहा सम्मन्नाणेण नज्जंति ॥ ५९८३।। एयं नाणपयाणं संसारदुम्म (म) स्स होइ परसु व्व । तह देत गाहगाणं दोहिं (ह) वि मोक्खं पसाहेइ ।। ५९८४ | बारस अंगाई तहा चोद्दस पुव्वाई तह य नरनाह ! | एयं सम्मन्नाणं जाणंतो सिवसुहं लहइ ॥। ५९८५ ।। सम्मानाणी हुंतो जीवाणं देइ अभयदाणं च । जीवा वि होंति दुविहा ते थावर-जंगमकमेण ।। ५९८६ ।। तरु-गुम्म-लया वल्ली गुच्छा हरिया य होंति तणमाई । थावरजीवा विविहा पोर - खंध-ग्गबीया य ।। ५९८७ ।। तह होंति जंगमा वि य बेइंदियमाइणो असंखेया । पंचिंदियपज्जंता जिणिंदवयणेण बोधव्वा ||५९८८ || दुप्पय- चउप्पय- अपया बहुपय-पयसंकुला य नायव्वा । अंडय - जरया पोयज- रसजा तह सेयजाईया || ५९८९ ।। एमाइयाण सावय ! जो अभयं देइ सव्वजीवाण । सो जीवाभयदाया वसइ सुहं सग्ग- मोक्खेसु ।। ५९९० ।। आरोग(ग्ग) भोग- धण-सयण-संपया दीहमाउ- सोहग्गं । पंडिच्चमाइया खलु होंति गुणा अभयदाणेण ।। ५९९१ ।। तस्स य सफलं नाणं तस्स य सफलाओ सव्वनीईओ । मयत्तं पि हु तस्स य सफलं अभयप्पयाणेण ।। ५९९२।। Page #556 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ ५४७ जस्स दया तस्स तवो जस्स दया तस्स सीलसंपत्ती । जस्स दया तस्स गुणा जस्स दया तस्स सिवसोक्खं ।।५९९३।। जो सयलजीवलोयं अत्थपयाणेण कुणइ अदरिदं । मारइ एगं जीवं सव्वं पि निरत्थयं तस्स ।।५९९४ ।। नीसेसधम्ममूलं असेससुहकारणं पवित्तं च । अभयप्पयाणदाणं सेसाइं उवप्पयाणाइं ।।५९९५।। धम्मोवग्गहदाणं भन्नइ नरनाह ! तं पि संखेवा । जे सव्वगुणसमिद्धा मुणिणो तं दिज्जए ताण ॥५९९६।। जेण अवटुंभेणं सेज्जासण-वत्थ-पत्तभत्तेण । सावटुंभसरीरा कुणंति मुणिणो परमधम्मं ।।५९९७।। तं पि उवग्गहदाणं चउप्पयारं नरिंद ! विन्नेयं । दायग-गाहगसुद्धं सुद्धं तह कालरूवेहिं ।।५९९८।। दायगसुद्धं भन्नइ जो दाया देइ नाणसंपन्नो । असढो य निरभिलासो सद्धारोमंचियसरीरो ।।५९९९।। गाहगसुद्धं भन्नइ जो किर तं गिण्हइ त्ति सो साहू । पंचमहव्वयजुत्तो छज्जीवनिकायकयरक्खो ।।६०००।। गुरुसुस्सूसानिरओ सुम्णो दंतिंदियो अलोभो य । खममाइधम्मनिरओ सुसाहुकिरियासमुज्जुत्तो ॥६००१।। पत्तविसुद्धिविहीणं जं दाणं होइ बहुप्पयारं पि । तं परलोए नरवर ! दिन्नं पि न बहुफलं होइ ।।६००२।। साहुस्स जहा देंतो लहइ पसंसं असेसभुयणे वि । चोरस्स पुणो देंतो पावइ दंडं नरिंदाओ ।।६००३।। Page #557 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५४८ एगं पि मेहसलिलं पत्तविसेसेण बहुरसं होइ । उच्छुमि महुरसायं लिंबंमि कडुयसायं च ||६००४ || इय एवमाइ सव्वं सम्मं परिभाविऊण हिययंमि । काऊण पत्तसुद्धिं दायव्वं सव्वहा दाणं ||६००५ || तं जाण कालसुद्धं जं जइदेहोवयारकालंमि । दिज्जइ जओ अकाले दिन्नं न करेइ उवयारं ||६००६ || कालंमि कीरमाणं किसिकम्मं बहुफलं जहा होइ । इय दाणं पि हु काले दिज्जंतं बहुफलं होइ ||६००७ || सो चेव एत्थ कालो उवयारो जत्थ चेव दिन्न । होइ जईणं नरवर ! न उणो इह निच्छिओ कालो ||६००८|| भन्नइ संखेवेणं भावविसुद्धं च राय ! जं दाणं । जो सद्धासुद्धमणो अट्टमयट्ठाणपरिहीणो ||६००९ || कयकिच्चं मन्नतो अप्पाणं जं मए सुपत्ताण । दिनं दाणं संपइ पत्तं धण - जम्मसाफलं ॥ ६०१०|| दिंतस्स जस्स गिहिणो भावा एवंविहा मणे होंति । तं होइ भावसुद्धं दाणं कम्मक्खयनिमित्तं ॥ ६०११॥ नरनाह ! सीलमइयं धम्मं निसुणेसु एगभावेण । जो चेय संजमो इह सो च्चिय सीलं ति विन्नेयं ||६०१२॥ पंचासवा विरमणं पंचिंदियनिग्गहो कसायजओ । दंडत्तयस्स विरई सीलमिणं सतरसविभेयं ||६०१३ || पाणिवह-अलियभासण - अदत्त - अब्बंभ- बहुपरिग्गहया । पंचासवा इमे खलु पन्नत्ता वीयराएहिं ॥ ६०१४।। सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ Page #558 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ पढमं खलु सीलंगं जा जीवदया असे[स]जीवाण । एगिदिय-बेइंदिय-तिय-चउ-पंचिंदियाणं च ॥६०१५।। जो चयइ अलियवयणं परपीडपयासयं च पेसुन्नं । सो अलियभासणकयं दोसं परिहरइ सच्चेण ॥६०१६।। जो दंतसोहणत्थं तणमेत्तं पि हु न गिण्हइ अदिन्नं । सो अ(5)दत्तादाणकयं पावं न कयाइ बंधेइ ॥६०१७।। नवबंभगुत्तिजुत्तो मण-वइ-काएहिं चयइ जुयईओ । तिरि-मणु-सुरीओ सो खलु अबंभविहियं हणइ पावं ।।६०१८।। जो निहयलोहदोसो परिहरइ परिग्गहं बहुकिलेसं । सो न परिग्गहविहियं किलिट्ठकम्मं समज्जिणइ ॥६०१९॥ पंचासवपरिहीणो पंचिंदियनिग्गहं तओ कुणइ । फरिसण-रसणं घाणं चक्टुं सवणं च एयाई ॥६०२०।। जो फरिसणस्स विसओ कोमलसयणासणाइओ भणिओ । तं वज्जंतो नरवर ! तज्जणियं बंधइ न कम्मं ।।६०२१।। जेण निरुद्धं एयं नरिंद ! रसणिंदियं पयत्तेण । सो जिभिदियलंपडभावकयं बंधइ न पावं ॥६०२२॥ जो न सुयंधे रायं न विरायं जायि(इ) तह य दुग्गंधे । भावइ वत्थुसरूवं तस्स विसुद्धं हवइ सीलं ॥६०२३।। ठूण सुंदराई रूवाइं न जाइ तेसु अणुरायं । इयरेसु य न विरायं तस्स विसुद्धं हवइ सीलं ॥६०२४।। जो सुस्सरे नरेसर ! न पसंसइ दूसरे न दूसेइ । दसमंगं तस्स फुडं सीलस्स सुनिम्मलं होइ ॥६०२५॥ Page #559 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ इय पंचिंदियनिग्गहरूवं सीलं मए समक्खायं । संपइ कसायविजयं सीलंग संपवक्खामि ॥६०२६॥ पजलंतो. कोहग्गी विज्झविओ खंतिवारिणा जेण । तस्स न तदुब्भवकयं पावइ पावं अवट्ठाणं ॥६०२७।। भंजंतो विणयवणं अट्ठमयट्ठाणमाणमत्तगओ । जो मद्दवंकुसेणं कुणइ वसे तस्स सीलंगं ॥६०२८।। माया महाभुयंगी सहावकुडिलं अजायविस्संभं । जो अज्जवमंतेणं निसेहए तस्स सीलंगं ॥६०२९।। इच्छावसवढ्तो लोभमहापव्वओ अदिटुंतो । आकिंचन्नसुनिठुरवज्जप्पहारेण हणियव्वो ॥६०३०।। भणिओ कसायविजओ सीलंगं संपयं पुण नरिंद ! । आयन्नसु एगमणो तिदंडविरयं महासीलं ॥६०३१।। मणदंडो झायंतो अट्टवसट्टाइं अट्ट-रोहाइं । सम्मं निलंभियव्यो नरिंद ! सुहधम्मझाणेण ॥६०३२।। वायादंडो दुव्वयण-फरुस-पेसुन्नमाइ जंपतो । निग्गहणिज्जो नरवर ! विसुद्धनियसीलबुद्धीए ॥६०३३।। कायदंडो य सम्म संजमियव्वो असंजमाहितो । सीलमओ वि य धम्मो भणिओ सत्तरसविहो वि ॥६०३४।। दाऊण तिविहदाणं सीलं धरिऊण सतरसविभेयं । धीरा चरंति सुतवं बारसभेयं तयं सुणह ॥६०३५॥ सो होइ तवो दुविहो बाहिर-अभितरो य जहक्क(क)मसो । एकेको पत्तेयं नरिंद ! जाणेज्ज च्छभेओ (छन्भेओ) ॥६०३६।। Page #560 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५५१ सरिभुयणसुंदरीकहा ॥ “अणसणमूणोयरिया वित्तीसंखेवओ रसच्चाओ । कायकिलेसो संलीणया य बज्झो तवो होइ ॥६०३७॥ पायच्छित्तं विणओ वेयावच्चं तहेव सज्झाओ । झाणं उस(स्स)ग्गो वि य अभितरओ तवो होइ" ।।६०३८।। जावइयं चिय कालं नियमपरो होइ अणसणं ताव । ताई च नियमभेया हवंति बहुभेयभिन्नाई ॥६०३९।। मुट्ठी-गंट्ठिनिमित्तं नवकारो पहर-सड्ड-पुरिमटुं । राईभोयणचाओ उववासाइं भवे अ(5)णसणं ।।६०४०।। अन्नं च जावजीवं मरणंते अणसणं भवे राय ! । वज्जियचउआहारं पायववडणाइबहुभेयं ॥६०४१।। नियसत्तिसरिसमेयं जो जहरूवं करेइ सुद्धप्पा । सो तयणुरूवफलमवि पावइ न हु एत्थ संदेहो ॥६०४२।। वित्तस्स य नियमस्स य कलंतरं तह फलं च दोहिं पि । लब्भइ वियारियं चिय न होइ अवियारियं किं पि ॥६०४३।। जो नियमवज्जियनरो पसु व्व सो चरइ अचरमाणो वि । जं अचरंतो दीसइ अलाभओ अहव असमत्थो ।।६०४४।। भणिओ अणसणमइओ बज्झतवो संपयं पुण भणामि । ऊणोयरियं बीयं आयन्नसु एगचित्तेण ।।६०४५।। स च्चिय ऊणोयरिया ऊणाहारत्तणं खु जं राय ! । ऊणयरभोयणस्स हि संभवइ न इंदियक्खोहो ।।६०४६।। पंचिंदियखोभविवज्जियस्स न मणमि फुरइ मयणग्गी । निक्कामस्स य जइणो सव्वे सफला समारंभा ।।६०४७।। Page #561 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५५२ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ वित्तीसंखेवतवो सो भन्नइ जत्थ भिक्खुवित्तीए । संखेवणं नरेसर ! तं पुण एवं करेयव्वं ॥६०४८।। भिक्खागएण मुणिणा वियप्पियव्वं जहा मए अज्ज । एयावंति घराई भमियव्वाइं न अहियाइं ।।६०४९।। निच्चं निरग्गिसरणा करणहिया निप्परिग्गहा मुणिणो । तेसिं नरिंद ! भिक्खा भणिया सेसाण नित्थारो ॥६०५०।। वित्तीसंखेवेणं भिक्खालाहो निसेहिओ होइ । लाभे य नेय हरिसो न विसाओ तह अलाभे य ।।६०५१।। एपिंह भणामि नरवर ! रसचाओ नाम जो चउत्थतवो । कडु-तित्त-कसायंबा महुरा लवणा य छच्च रसा ।।६०५२।। विगईओ होंति दसहा महु-मज्जं मंस-लोणियं दुद्धं । दहिय-घयं गुल-तेल्लं पक्कन्नं दस इमा भणिया ।।६०५३।। इह साहु-सावयाणं आइल्लाओ नरिंद ! चत्तारि । विगईओ(उ) विरुद्धाओ जावज्जीवं निसिद्धाओ ॥६०५४।। खीरमाईओ(उ) जा किर विगईओ(उ) नरिंद ! एत्थ भणियाओ ।। तासु एगं च दोन्नि व लेइ मुणी न उण सव्वाओ ॥६०५५।। विविहरसं आकंठं भुत्तं पीणेइ इंदियग्गामं । पीणिंदिओ हु साहू संजमजोगाओ संचलइ ।।६०५६।। · भन्नइ कायकिलेसो अम्हाणं भूमिसयण-सिरलोओ । सीउ-ग्रह-खुप्पिवासा सहियव्वा दंस-मसगाई ॥६०५७।। नाणाविहतुलणाओ कप्प-भिक्खाओ विविहभेयाओ । जायण-अवमाणकओ कायकिलेसो सहेयव्यो ।।६०५८।। Page #562 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ भणिओ कायकिलेसो एम्हि संलीणयं पवक्खामि । संलीणा कायव्वा सुहज्झा(झा)णा इंदियग्गामा ॥६०५९।। जस्स पयसृति सया नाणे झाणे तवे य नियमेसु । इंदियजोगा मुणिणो इंदियसंलीणया तस्स ॥६०६०।। जेण निबद्धा मुणिणा मण-वइ-काया तवेसु नियमेसु । उम्मग्गाओ निसिद्धा स जोगसंलीणया तस्स ॥६०६१॥ भणिओ संखेवेणं छब्भेओ बाहिरो तवो राय ! । अभितरं पि नरवर ! छब्भेयं सुणसु तवमिहि ।।६०६२।। अभितरतवधम्मे पायच्छित्तं नरिंद ! इह पढमं । तं पुण बहुप्पयारं भणामि संखेवओ तह वि ॥६०६३॥ नाणस्स हीलणेणं दंसण-चारित्तखंडणेणं च । . गुरुवयणेण जहागममेगमणो कुणइ पच्छित्तं ॥६०६४।। पंचमहव्वयभंगे उमग्गगमणे य इंदियाणं च । जाए कसायपसरे उप्पहगमणे तिदंडाण ॥६०६५।। न कयं आगमवयणं आयरियं जं च नागमे भणियं । इयमाइसु पच्छित्तं कायव्वं अप्पसुद्धीए ॥६०६६॥ अप्पा जाणइ सव्वं अप्पा अप्पेण वंचिओ होइ । अप्पं सोहइ अप्पा अप्पा अप्पं बहुं मुणइ ।।६०६७।। जणरंजणेण माया धम्मो पुण अप्पसक्खिओ भणिओ । जं अप्पा पावफलं करेइ तं धुयइ पच्छित्तं ॥६०६८।। गरहण-निंदणजुत्तो पच्छायावेण जं कयं दुकयं । तं हणइ पायछित्तं तह मिच्छादुक्कडं तं च ॥६०६९।। Page #563 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ भण्णइ विणओ एण्हि दंसण-नाणे य तह य पच्छित्ते । अरहंते य पवयणे थेर-गिलाणे तवस्सीसु ॥६०७०।। बाले गुणगरुएसु एमाइसु साहुणा पयत्तेण । विणओ खलु कायव्वो विणओ खु महातवो जेण ।।६०७१।। विणयफलं सुस्सूसा गुरुसुस्सूसाफलं सुयन्नाणं । नाणस्स फलं विरई विरइफलं आसवनिरोहो ॥६०७२।। संवरफलं च सुतवो तवस्स पुण निज्जरा फलं तीए । होइ फलं कम्मखओ तस्स फलं केवलं नाणं ॥६०७३।। केवलनाणस्स फलं अव्वाबाहो निरामओ मोक्खो । तम्हा कम्मखयाणं सव्वेसिं भायणं विणओ ।।६०७४।। विणयंजणे(णं) पणासइ अट्ठमयट्ठाणतिमिरपडलाइं । पेच्छइ तओ असेसं जयं पि जहवट्ठियं साहू ॥६०७५।। वेयावच्चं भन्नइ तइयं अभितरं तवं राय । अनिगूहियबल-विरिया करंति जं साहवो हिट्ठा ॥६०७६।। अब्भागयाण निच्चं गुरूण बालाण तह गिलाणाण । एमाइयाण सावय ! वेयावच्चं करेयव्वं ॥६०७७।। अंगस्स मद्दणाइं नाणावीसामणाओ साहूण । अन्न-भेसज्जमाई दायव्वं जं जहाजोगं ॥६०७८।। एण्हि सुण सज्झायं तवं चउत्थं नरिंद ! अइगरुयं । तं होइ पंचभेयं आयन्नसु सावहाणमणो ॥६०७९॥ सज्झायतवो भण्णइ सो च्चिय सुयवायणाण(ए) पुच्छाए । तच्चितण-गुणणेण वक्खाणकमेण नायव्वो ॥६०८०।। Page #564 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ ५५५ "बारसविहंमि वि तवे अभितर-बाहिरे जिणुद्दिढे । नवि अत्थि नवि य होही सज्झायसमं तवोकम्म" ||६०८१।। जावइयं चिय कालं सज्झायं कुणइ सुद्धपरिणामो । तावइयं चिय कालं असेसकम्मक्खयं कुणइ ।।६०८२।। पयपरिभावण-अत्थावबोह-पहरिस-विवेय-वेरग्गं । मोहदुगुंछा सज्झायवावडाणं गुणा होति ।।६०८३।। एण्हि भण्णइ झाणं चउप्पयारं नरिंद ! तं होइ । रोइं अर्द्ध धम्मं सुकं ति कमेण नायव्वं ।।६०८४।। जत्थ वह-बंधणाई मारण-परपीडणाई रोद्दाइं । झाइज्जंति नियमणे तं रोदं भण्णए झाणं ।।६०८५।। जं पुण पुत्त-कलत्ते पियमित्ते अत्थ-सयण-गेहेसु । जायइ नरिंद ! झाणं तं अट्ठे होइ नायव्वं ।।६०८६।। तं जाण धम्मझाणं जं जायइ धम्मविसयमेगंता । सव्वं मुणइ अणिच्चं संसारसरूववित्थारं ॥६०८७।। होइ चउत्थं झाणं सुक्कज्झाणं नरिंद ! निक्कंपं । निव्वायपईवो इव जत्थ भवे निच्चलं चित्तं ।।६०८८।। सव्वे वि इंदियत्था मण-वइ-काया निलंभिया जत्थ । तं सिवसुहेक्कलीणं झाणं निद्दहइ कम्माइं ॥६०८९।। अग्गिफुलिंगो व्व इमं बहुतिणनिवहं किलिट्ठकम्माइं । डहिऊण तक्खणेणं केवलनाणं समज्जिणइ ।।६०९०।। तं राय ! न सव्वस्स वि संभवइ नरस्स कालदोसेण । उत्तिमपुरिसावेक्खं उत्तमसंघयणसज्झं च ।।६०९१।। Page #565 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ कहियं सुक्कज्झाणं उस्सग्गं पि हु कहेमि संखित्तं । जं आलोयण-निंदण-गरहणकज्जेसु कायव्वं ॥६०९२।। दुस्सुमिण-दुन्निमित्ते महोवसग्गे य देव-माणुसिए । पायच्छित्ते आराहणे य इह होइ उस्सग्गो ||६०९३।। संखेवेण नरेसर ! बारसभेओ तवो समक्खाओ । जं चरिऊण सुविहिया अणंतपावाइं सोसंति ॥६०९४।। बहुदिवससंचियं पि हु तणरासिमसंसयं डहइ अग्गी । तह बहुभवेसु बद्धं घोरतवो डहइ घणकम्मं ।।६०९५।। जह विसमदुग्गभूमि अहिट्ठिओ कवचपहरणसमिद्धो । रिउनिवहं नेइ खयं विसमतवत्थो तह दुकम्मं ।।६०९६।। जह कढिणं पि हु मयणं विलाइ पज्जलियजलणसंगेण । तह य विलाइ असेसं दित्ततवेणाऽवि दिढकम्मं ॥६०९७।। जह जलणतावतवियं मुयइ मलं कंचणं बहुमलं पि । तह य तवग्गिनिदर्ल्ड कम्ममलं गलइ जीवस्स ॥६०९८॥ तं नत्थि किं पि भुयणे न सिज्झए जं तवप्पहावेण । एएणेव तवेणं अणंतजीवा गया मोखं ॥६०९९।। जोइंद ! तए पुट्विं पुट्ठोऽहं अणिममाइसिद्धीओ । सिझंति इमाओ च्चिय तवाओ न हु एत्थ संदेहो ।।६१००।। आमोसहिमाईओ लद्धीओ होंति तवपहावेण । विण्हुकुमाराईया आगमसिद्धा य दिटुंता ॥६१०१।। कहिओ तुह तवधम्मो संपइ नरनाह ! भावणामइयं । धम्म संखेवेणं साहिप्पंतं निसामेह ।।६१०२।। Page #566 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ इह राय ! भावणाओ बारसभेयाओ होंति ताणं च । नामाई कित्तइस्सं अन्नत्थ इमाओ नेयाओ ॥६१०३॥ पढममणिच्च-मसरणयं संसारो वे(ए)गया य अन्नत्तं । असुइत्तं आसव-संवरो य तह निज्जरा नवमा ॥६१०४।। लोगसहावो बोही य दुल्लहं(हो) धम्मसाहओ अरहा । एयाओ राय ! बारस जहक्कम भावणीयाओ ॥६१०५।। इय भावणाहिं नरवर ! परिभावंतो सुहं च असुहं च । सव्वं वत्थुसरूवं होइ मुणी सुद्धपरिणामो ॥६१०६।। सुद्धपरिणामजुत्तो निड्डहइ तओ खणेण कम्माइं । कम्मक्खयत्थमेसो चउव्विहो साहिओ धम्मो ॥६१०७।। एयं समुणुता धम्मं नरनाह ! जिणवरुद्दिटुं । पत्ता अणंतजीवा सासयसोक्खं परं मोक्खं ।।६१०८।। लभ्रूण इमं धम्मं दुत्तरभवजलहिजाणवत्तं व । एयाणुट्ठाणेणं नियमणुयत्तं कुणह सफलं ॥६१०९॥ ता नरवरिंद ! एसो जिणिंदभणिओ चउव्विहो धम्मो । कहिओ संखेवेणं तुम्हाण अणुग्गहट्ठाए' ।।६११०॥ एत्थंतरंमि राया जोइंदो सयलछिन्नकुग्गाहा । पादुभूयनिरंतर-विसुद्धचारित्तपरिणामा ।।६१११।। पेच्छंति जलंतं पि व संसारघरं तओ वि नीहरिउं । इच्छंता निम्विन्ना विसयमहापासबंधाओ ॥६११२।। अंतोहुत्तवियंभियविसुद्धपरिणामनिहयमणखेया । गोत्तिं पिव मनंता गिहत्थभावं विरत्तमणा ॥६११३।। Page #567 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५५८ तो दो वि कयपणामा आणंदुव्वूढबहलरोमंचा । हरिसंसुपवाहेणं पच्चालियनयणतामरसा ||६११४॥ पति गुरुं 'सामिय ! सम्मं पडिबोहिया तए धीर ! । अइनिविडमोहनिद्दानिब्भरनिच्चेट्ठसुते व्व ॥ ६११५ ।। जइ अत्थि जोग्गया णे उचिया वा एयधम्ममग्गस्स । ता देह मज्झ भयवं ! पव्वज्जं जिणवरुद्दिट्टं' ||६११६ ॥ तो भइ बंभगुत्तो 'जोगा (ग्गा) उचिया य अरुहधम्मस्स । तुटभे च्चिय जाण इमो विवेयपसरो समुब्भूओ ||६११७|| ता मा कुण पडिबंधं देवाणुपिया ! इमंमि कज्जंमि । उज्जमह तुरियतुरियं बहुविग्घा जेण पव्वज्जा' ॥६११८॥ अह भणइ वीरसेणो " नरसीहनरिंद ! सुणसु मह वयणं । उचिओ तुह ववसाओ पारद्धं उत्तमं कज्जं ||६११९|| किं तु मह चित्तखेओ मणे मणागं न फिट्टए राय ! । जं तुमए विहिओ हं असमत्तमणोरहो एहि ||६१२०|| तुह चेव वेरिमद्दणसुहडत्तमडफ ( प्फ) रो परं सहइ । अन्नस्स नणु न छज्जइ तुह पुरओ बंकिमा भणिउं ।। ६१२१॥ अउरुव्वं तुह विरियं न होइ जं इयरनरवइसरिच्छं । सामन्नकुलगिरीणं कह तुल्लो होइ कणयद्दी ? ||६१२२ ॥ संपइ खत्तियसो अलहंतो च्चिय जहत्थयं राय ! । निवसइ तुमंमि निययं गुणनिफ ( प्फ) न्नो नरवरिंद ! ||६१२३॥ ता इत्थ जेण तेण व कारणजोगेण तुज्झ पासंमि । आओ म्हि अहं संपइ दिट्ठो तुह विकमो राय ! ||६१२४ ।। सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ Page #568 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ न जओ पराजओ वि य हरिस-विसायाण कारणं होति । राय ! गरुयाण जम्हा अन्नं चिय कारणं किंपि ॥६१२५।। नियजीयसंसए वि हु जो न चयइ विक्कमं च माणं च । सो जिणइ निज्जिओ वि हु ते हु चयंतो य हारेइ ।।६१२६।। जइ कह वि पहे पडिओ अक्खुलिऊणं नरिंद ! गंडुवले । ता तस्स एत्तिएण वि नरिंद ! अवमाणणा जाया ।।६१२७।। ता मह मणोरहो किर आसि इमो जं 'नियंमि रज्जंमि । ठविऊण इमं नरवर ! कयकिच्चो हं भविस्सामि' " ||६१२८।। तो जंपइ नरसीहो ‘असंभवं नत्थि किंपि तुह हिययए(हियए) । जलहिगरुयत्तणेणं सरिसा उटुंति कल्लोला ।।६१२९।। पेच्छह निस्सीमाणो गरुयाण गुणा फुरंति भुयणमि । बहुमच्छराण वि मणे हणंति जे मच्छरुच्छाहं ।।६१३०।। तुमए सह समसीसिं वहंतु कह मारिसा सुगुरुया वि ? । पहरंति जस्स पुरओ वेरीण गुण च्चिय मणेसु ।।६१३१।। किं तु भणिम्से एगं न रूसियव्वं तए महावीर ! । निव्वाहियं तए च्चिय सत्तुत्तं आइमंतेसु ॥६१३२।। जं तुच्छरज्जदाणोवलोहणं दाविऊण मह राय ! । तं गुरुसंजमरज्जे दिज्जंतं मह निवारेसि ॥६१३३।। ते हुंति य मुहसुयणा परिणामरिउव्व एत्थ भुवणंमि । एवंविहाओ पायं जे देति कुरज्जबुद्धीए(ओ) ॥६१३४।। ता सव्वहा विरत्तं मह चित्तं वीर ! रज्जमोहाओ । सासयसुहंमि रज्जे अहिलासो वट्टए एण्हि' ।।६१३५॥ Page #569 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६० पुण भणइ वीरसेणो 'जइ एवं ता समप्पसु सुयं मे । अहवा कणिट्टभाउं जस्स पयच्छामि तुह रज्जं' ||६१३६॥ तो जंपइ नरसीहो 'मा सोजन्त्रेण कुणसु मह पीडं । मह को विनत्थि भाया न य पुत्तो तारिसो जोगो (ग्गो) ||६१३७॥ इह वीर ! रणकडित्ते काऊण पणं सजीवियं तुम । जित्तमिणं, तुह रज्जे अहिगारी कह अहं जाओ ? ||६१३८।। सिरिवीरसेण ! रज्जं पडग्गलग्गं तणं व मन्नामि । तस्स परिच्चाए खलु न मणागं अत्थि मह पीडा ||६१३९॥ तुममेव मज्झ बंधू जित्तं पि तए सविक्कमबलेण । दिन्नं मए वि संपइ ता भुंज तुमं नियं रज्जं' ||६१४० ॥ तो नरसीहो काउं अंजलिबंधं पुरा कुमारस्स । जंपइ 'महंतरायं करेसु मा वीर ! दिक्खाए' ||६१४१ ।। तो भाइ वीरसेणो 'धन्नो सि तुमं नरिंद ! सकयत्थो । सिज्झउ तुह निवि (व्वि) ग्घं नरसीह ! मणिच्छियं कज्जं ॥ ६१४२ ।। कारावर सविसेसं वसुपुज्जजिणिदमाइसु पहिट्ठो । अट्टाहियामहोत्सवमसेसजिणनाहभवणेसु ||६१४३ ।। मणवंछियत्थसमहियदाणेण करेइ भुवणउवयारं । वीरो चउक्क- चच्चर-रत्था - सिंघाडय - पहेसु ||६१४४।। तो सो पसत्थतिहि - करण-वार- लग्गंमि सुहमुहुत्तंमि । विमलमइपमुहपरियणपरियरिओ सहसभज्जाहिं ||६१४५ ।। सिरिबंभगुत्तगुरुणो पासे सह तेण जोइनाहेण । पव्वई (इ) ओ नरसीहो विसुज्झमाणेण चित्तेण ||६१४६ || सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ Page #570 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ अब्भसियसाहुकिरिया सम्मं विनायसयलसिक्खंगा । कयबहुतवोवहाणा समहिज्जियबारसंगा य ॥६१४७।। तह दो वि परमवेरग्गवासणाविहियघोरतवचरणा । जह नियतणुनिरवेक्खा जाया चम्मट्ठिसेस व्व ॥६१४८॥ चिट्ठति गुरुसमीवे असेसकम्मक्खयंमि उज्जुत्ता । विहरंति दो वि सुहिया सह गुरुणा बंभगुत्तेण ॥६१४९॥ पव्वइए नरसीहे असोय-सेहरयरायपरियरिओ । पविसइ चंपं वीरो सुरवइलीलं विडंबंतो ॥६१५०॥ तो तत्थ तुंगभद्दे पासाए सयलरम्मयानिलए । सीहासणोवविट्ठो आसासइ सयलपुरलोयं ॥६१५१॥ संठवइ सयलसेन्नं हरि-करि-रह-पुरिसतप्पहाणाण । काऊण गुरुपसायं जहठाणं ते निरूवेइ ॥६१५२॥ भंडाराइसु ठाणेसु तह य काऊण सव्वसुत्थाई । सव्वेसु जहट्ठाणं निओइवग्गं निरूवेइ ।।६१५३॥ गामागर-पुरपट्टण-दुग्गाहिट्ठाण-देस-विसयाण । हक्कारिऊण वुड्ढे जहजोग्गं कुणइ सुपसायं ॥६१५४।। सिक्खवइ 'कुणह धम्मं पावं परिहरह वट्टह नएण । पालह नियमज्जायं जहसत्ति परेसु उवयरह ॥६१५५।। नियवन्नववत्थाए वट्टह पालह उचियमायारं । जीवेसु कुणह करुणं परिहरह असच्चवयणं च ॥६१५६॥ मा गिण्हह परकीयं तणमेत्तं पि हु चएह परनारिं । वज्जह लोयविरुद्धं मज्जं मंसं च परिचयह' ॥६१५७।। Page #571 -------------------------------------------------------------------------- ________________ કદર सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ इह(य) एवमाइ बहुयं लोयं अणुसासिऊण सप्पणयं । जाव विसज्जइ वीरो ता भणिओ सव्वलोएहिं ।।६१५८॥ 'धन्नाओ ताओ नरवर ! पयाओ असि दिट्ठिगोयरे जाण । जणओ व्व जाण एवं कयसिक्खो ताण किं भणिमो ? ॥६१५९॥ इह संपइ नरवइणो निरंकुसा देव ! मत्तहत्थि व्व । पुरओ तूररवेण व खुद्धा सेवंति परपीडं ॥६१६०॥ देव ! देव ! त्ति भणिया तूसंति मणे वहंति उकुरिसं । सेवंति पुणो कम्मं जं नारय-तिरियगइजोग्गं ॥६१६१॥ वारंति तरणितावं अड्डतिरिच्छेहिं छत्तनिवहेहिं । नरयग्गिमहातावोवसमे उ निरुज्जमा होति ॥६१६२।। धारंति न दिन्नं पि हु उवएसं नरिंद ! सवणेसु । तं वोढुमसक्केसु व मणिकुंडलहारखेएण ।।६१६३।। कह उल्लासं पावइ ताण विवेओ नरिंद ! हिययंमि । जो कंचणभूसणसंकलाहिं बद्धो व्व अणवरयं ॥६१६४॥ जइ कह वि ताण गुणिसंगसंभवो घडइ पुन्नपरमाणू । ता चलिरचामरानिलपहओ व्व खणेण ओसरइ ।।६१६५।। तुम्हारिसाण जा पुण कलिकाले वीर ! होइ उप्पत्ती । सो मरुदेसे पउमिणिसरोवमो जणइ अच्छरियं ॥६१६६॥ गुरुगिम्हदुसहसंतावतत्तदेहाण सव्वलोयाण । आसासंतो भुयणं घणो व्व अब्भुन्नओ तमिह ॥६१६७।। ता देव ! तए इण्हि मओ व्व संजीविओ जणो सव्वो । चिरदुक्खताविओ इव नरिंद ! निव्वाविओ निययं' ॥६१६८।। Page #572 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६३ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ इय एवमाइ विविहं भणिउं रोमंचकंचुइज्जंतो(ता) । पुणरवि कयप्पसाया नियनियठाणं गया लोया ॥६१६९।। एत्थंतरंमि पविसइ पलंबसियचोडएण छन्नंगो । अच्चुज्जलपट्टसुयसिरवेढुव्वेढणक्खणिओ ।।६१७०॥ वसुहानिहित्तजाणू पणामपुव्वं असंभमुभंतो । करवत्थंचलझंपियमुहकमलो मूलपडिहारो ॥६१७१॥ विन्नवइ पगब्भगिरो ‘देव ! दुवारंमि तुज्झ पडिक्ख(ख)लिया । अट्ठ व्व दिसावइणो चिटुंति सहस्सपरिगुणिया ॥६१७२।। सव्वे वि मउडबद्धा अट्ठदिसाभायसंठिया देव ! । अवरोप्परपरक्कममसहंता गंधकरिणो व्व ॥६१७३।। तुह चंडप्पयावानलसंतत्ता नाह ! भूमिवलयंमि । वीसाममलहमाणा तुम व्व कप्पदुमं ल्ली(ली)णा ॥६१७४॥ जाणं पयाणसमये बलभरसम्मद्दपीडिया पुहई । धाहाविउं व वच्चइ रयच्छला इंदलोयंमि ॥६१७५।। जाणमणंतनराहिव-सियछत्तच्छाइयाइं सेन्नाई । दीसंति व सेवाआगयाइं बहुसेयदीवाइं ॥६१७६।। चलधयधवलच्छिजुया करिंदकुंभत्थलोरुथणवठ्ठा । वेस व्व जाण सेणा निरत्थयं कुणइ भूमिवई ।।६१७७।। ते अट्ठसहस्ससंखा असंखसेणाभरेण संजुत्ता । सेवाहिलासिणो तुह दसणसोक्खं अहिलसंति' ॥६१७८॥ तो भणइ वीरसेणो ‘तुरियं पडिहार ! ते पवेसेसु' । 'आएसो' त्ति भणित्ता दुवारदेसं गओ दंडी ॥६१७९।। Page #573 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६४ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ तो ते परिगणिऊणं तंबोलपदायगेकपरिवारा । पडिसिद्धसेसलोया पवेसिया दारपालेण ॥६१८०॥ दिठ्ठो य तेहिं वीरो खयरिंद-नरिंदविंदपरियरिओ । सासंकमाणसेहिं 'हवेज्ज' किं सुरवई एसो' ॥६१८१॥ अइउच्चरयणसीहासणट्ठिओ उवरिधरियसियछत्तो । सरयब्भतलनिविठ्ठो रवि व्व उदयगिरिसिहरंमि ॥६१८२॥ परिवियडपहावलएण नियपयावेण साहियजएण । आणियधराहिवइणा सहइ व्व पयक्खिणिज्जंता. ॥६१८३॥ रेहइ फुरंतभूसणमणिप्पहाजालबद्धसुरचावो । चउदिसिदुलंघआणापवेसकयतोरणो व्व नहे ॥६१८४॥ सेवोवविठ्ठखेयर-नरिंदसिरमउडमणिसु संकेतो । . सव्वसिरसेहरेण वि लज्जंतो नियलहुत्तेण ॥६१८५॥ विफु(प्फु)रियचरणनहमणिसियकिरणपसाहियावणिपएसो । गयवसुहाहिवकलुसियपुहइं पक्खालयंतो व्व ॥६१८६॥ दठूण ते नरिंदा दंसणसंजायचित्तसंखोहा । 'किं किं किमेयमसुयं अदिट्ठपुव्वं'ति चिंतंति ॥६१८७॥ 'तं किं पि इमस्स महंतमुज्जलं खत्तवीरियप्पहवं । अच्चंतदुरालोयं तेयं तेयंसिहयपसरं ॥६१८८।। सव्वन्नुणो वि विसयं न होइ गुरुणो वि गोयर जं न । जं भुयणअसामन्नं तमिमस्स सरूवमिक्खामो ||६१८९॥ सच्चं सो नरसीहो जो होइ इमस्स संमुहो समरे । हक्कंपि सहइ पहरइ वीरो नरसीहसरहस्स ॥६१९०॥ Page #574 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ *. मन्ने भरह - भगीरह- भग्ग ( ग ) दत्ताईण भूमिपालाण । समयं मिलिऊणं पिव एस पयावेहिं परियरिओ ||६१९१ | ता संपइ पुव्वभवंतरेसु विहिएहिं अम्ह सुकएहिं । फलियं जाओ जाणं महापहू एरिसो भुयणे ' ॥६१९२॥ एवं ते चिंतंता पुरओ धरिऊण वीरसेणस्स । पडिहारेण नमंता पयासिया. नाम-त्था (था) मेहिं ॥६१९३॥ 'पणमइ नरिंद ! एसो महेंदसीहो त्ति नाम महिवालो | जो पुव्वदिसापालो सहस्सनरनाहपणिवइओ ||६१९४ || एसो य अग्गिमित्तो अग्गेयदिसाहिवो गुरुपयावो । तुह नमइ चलणजुयलं तावइयनरिंदपरिवारो ||६१९५ ॥ एसो वि देव ! पणमइ सुदक्खिणो नाम दक्खिणाहिवई । परमेसरपयकमलं पुव्युत्तनरिंदपरिवारो ||६१९६॥ एसो पणमइ भीमो अइभीमपरकुमो महीनाहो । नेरइयदिसिनिवासो तावंतनरिंदकयसेवो ॥ ६१९७॥ मयरद्धओ त्ति नामं तुह पणमइ परमभत्तिसंजुत्तो । पच्छिमदिसाहिनाहो सहस्सनरनाहकयसेवो ॥६१९८॥ अरिबलपहंजणो जो पहंजणो नाम नमइ तुह नाह ! । वायव्वदिसाहिवई पुव्युत्तनरिंदपरिवारो ||६१९९॥ एसो उत्तरसेणो उत्तरदिसिसासओ महाराय ! । तुह नमइ चरणकमलं सहस्सनरनाहकयसेवो ॥६२००॥ एसो वि उग्गसेणो ईसाणदिसाहिवो नमइ तुम्ह । पयकमलममलचित्तो तावंतनरिंदपरिवारो ||६२०१ ॥ ५६५ Page #575 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६६ एमाइणो नरिंदा सिरधरियकिरीडसोणमणिकिरणा । तुह विसयं व वहंता सिरेण अणुरायमिह पत्ता ||६२०२ ॥ तो भणइ वीरसेणो 'कमेण पडिहार ! जस्स जं जोग्गं । तं तस्स देहि तुरियं वरासणं सव्वरायाण' ||६२०३ ॥ दिन्नासणो विट्ठा महिंदसीहाइणो कयपसाया । परिहियवत्थाहरणा वीरेण इमं तओ भणिया ||६२०४ || 'भो रायाणो ! तुम्हं महिंदसीहाइणो सया कुसलं ? । रज्जुंगाइ य सत्त वि सीयंति न सामिपमुहाई ?” || ६२०५ ॥ तो ते भांति सव्वे सिरग्गसंघडियउभयकरकोसा । 'अज्जेव देव ! कुसलं जं दिट्ठे तुम्ह पयकमलं ||६२०६ || पइ सामियंमि संपइ सत्तंगाई पि कह णु सीयंति ! । जीयं पि जाण अम्हं सामिय ! तुह चेव आयत्तं' ||६२०७॥ तो भणइ वीरसेणो 'सच्चमिणं जं च मज्झ आयत्तं । तं सीयइ न कहं चिय अहं तु तुम्हाण आयत्तो' ||६२०८ ॥ इयमाइकहालावेहिं ताण सव्वाण भूमिपालाण । काऊण गुरुपसायं पच्चेयं देइ आवासे ||६२०९ ।। तो सिद्धसेणनेमित्तिएण गणिए पसत्थदियहंमि । सेहरयासोएहिं महिंदसीहाइराएहिं ॥ ६२१०॥ विन्नविऊण सहरिसं वीराहिवमायरेण पणएहिं । मेल्लियमहोवयरणो पारो रज्जअहिसेओ || ६२११॥ एत्थंतरंमि अहयं तुरियं वीराहिवेण आहूओ । भणिओ य सप्पसायं असोय- सेहरयराएहिं ॥६२१२ ॥ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ Page #576 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ 'रे वज्जबाहु ! तुरियं नासिकं वच्च कहसु वीरस्स । रज्जाहिसेयदिवसं विचित्तजसराइणो तह य ।।६२१३।। चंदसिरीदेवीए तह पहुमित्तस्स बंधुक्त्तस्स । तह कुणसु जहा तुरियं एत्थ पहुप्पंति सव्वाइं' ।।६२१४।। इय राय ! वीरसेणेण तुम्ह पासंमि पेसिओ अहयं । सोऊण इमं देवो जं जुत्तं तं समायरउ' ।।६२१५।। इय भणिऊणं विरए खयरिंदे वज्जबाहुनामंमि ।। आणंदपुलइयंगो विचित्तजसनरवई भणइ ।।६२१६।। 'धन्नाण निययपुन्नाणुहावविहडंतघोरदुरियाण । ताणं चिय सुकएहिं कल्लाणपरंपरा होइ ।।६२१७।। ता वज्जबाहु ! मह पुव्वमेव हियए परिट्ठियं एयं । तं नत्थि भूमिवलए न सिज्जए जं कुमारस्स' ॥६२१८।। एत्थंतरंमि देवी चंदसिरी हरिसवियसियकवोला । । दइयाणुरायविवसा गणइ पउटुंमि वलयाई ॥६२१९।। विजयवई पहरिसवसपसरियरोमंचकंचुइज्जंता । संठवइ करग्गेणं अलयालिं निययधूयाए ॥६२२०।। पिययमपउत्तिगरुओ अव्वभिचारि त्ति गुणमहग्घविओ । देवीए वज्जबाहू पलोइओ कयपसायाए ।।६२२१।। पन्नायरेण भणियं ‘देव ! कुमारस्स पेच्छ अच्छरियं । आजलहिमहीवलयं पसाहियं सत्तहिं दिणेहिं ॥६२२२।। ‘गलगज्जिऊण सलिलं देति न देंति व्व जलहरा गयणे । गरुयाण सिद्धकज्जाई सयलभुयणाई साहति ॥६२२३।। Page #577 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ जे वयणगव्वगरुया कज्जंमि न निव्वडंति ते पुरिसा । जयगरुयकज्जकारीण देव ! गव्वो उण न होइ ॥६२२४।। तो देव ! तए रज्जाहिसेयपरमुच्छवंमि गंतव्वं । चंदसिरीए वि दिज्जउ गमणत्थं तुरियमाएसो' ।।६२२५।। तो राइणा सहरिसं आणंदजलाविलच्छिंवत्तेण । सुचिरमवलोइऊणं चंदसिरी पभणिया एवं ॥६२२६।। "तुह चेव परं सोहइ असेसभुवणाहिवत्तणं पुत्त ! । जीए सिरिवीरसेणो तिखंडभरहेसरो दइओ ॥६२२७।। ता वच्च नियं गेहं तुमं पि हे बंधुयत्त ! उच्चलसु । सह खेरय(खेयर)सेन्नेणं परिवारियनियबहुकलत्तो' ।।६२२८।। एत्यंतरंमि सहसा आणंदपयाणसंभवा भेरी । आ(अ)फा(प्फा)लिया सहेलं बहिरियनह-दसदिसाभोया ॥६२२९।। सुयगहिरहरिसभेरीझंकारससंभमुल्लसंतेहिं । आणंदमुककिलिगिलिरवेहिं चलियं बलोहेहिं ॥६२३०।। करि-तुरय-नर-महारहसमहिट्ठियसंदणोहसंमदं । सायरजलं व सेन्नं रेल्लंतं महियलुद्दोसं ||६२३१।। तो राया सुहलग्गे पुरोहियारद्धसयलकल्लाणे । अणुकूलसउणहिट्ठो आरूढो पट्टहथिमि ॥६२३२।। तह पन्नायरपमुहा पहाणपुरिसा य तत्थ संचलिया । विजयवई वि य देवी कंचणजपाणमारूढा ॥६२३३ ।। एत्तो वि चलइ चंचलचारणपारद्धचाडुया गयणे । . दिव्वविमाणारूढा चंदसिरी परियणसमेया ॥६२३४॥ Page #578 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६९ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ तो राया पेच्छंतो गयणे धूयाए रिद्धिवित्थारं । वच्चइ सुहेण मग्गे आणंदुव्बूढरोमंचो ॥६२३५॥ कत्थ वि नियदेसपयाहिं विहियनाणापयारपडिवत्ती । वच्चइ समिद्धजणवयदंसणपरिवड्डिउच्छाहो ॥६२३६॥ कत्थ वि दुलंघअडवीसंकडपहत्थिरपयट्टकडओहो । पुच्छंतो पल्लिवई नाणादुमजाइनामाइं ॥६२३७॥ कत्थ वि सदेसएकग्गलग्गअरिरायविहियभयसेवो । जामाउयसंकाए वच्चइ परिओससंपत्तो ॥६२३८॥ इय अणवरयपयाणयविलंघियासेसपुहइवित्थारो । पत्तो कमेण चंपं विचित्तजसनरवई सबलो ॥६२३९॥ तो वज्जबाहुणा वि य पुरओ गंतूण वीरसेणो वि । वद्धाविओ सहरिसं ससुरसमागमणवत्ताए ॥६२४०।। एत्थंतरंमि सहसा पडिहारपवेसिओ महामंती । पन्नायरो पविट्ठो नरिंदसंपेसिओ तत्थ ॥६२४१।। तो दठूण सुमंतिं वीरो आणंदनिब्भरुक्कंठो । परिओसइ सप्पणयं समुच्चि(चि)यपडिवत्तिकरणेण ॥६२४२॥ दिन्नासणोवविठ्ठो पहिट्ठ-वीराहिवेण पुण पुट्ठो । 'कुसलं तुह पन्नायर ! ?, पत्तो कुसली महाराओ ?' ॥६२४३॥ तो भणइ महामंती "तुम्ह पसाएण देव ! मह कुसलं । तुज्झाणुहावओ च्चिय कुसलेण समागओ राया - ।।६२४४।। संपेसिओ म्हि वीराहिराय ! राएण तुम्ह पासंमि । कज्जेण तं पि सुव्वउ अणुट्ठियव्वं च तं तुमए ॥६२४५।। Page #579 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५७० सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ तह लघुण वि तुमए ववहरियं वीर ! विणयनम्मेण । जह गरुयाण वि जाओ नरिंद ! सिरसेहरो एहि ||६२४६ || अप्पायत्ते सुयणे नरिंद ! गरुयत्तणं लहुत्तं च । तह वि न पावंति नरा तमब्भसंता वि सुचिरेण ||६२४७॥ ता देव ! इमं भणियं विचित्तजसराइणा मह मुहेण । ' जइ मं मन्नसि हियए जइ वा मह गोरवं महसि ।। ६२४८ ॥ ता सव्वा न संमुहमागंतव्वं तए महावीर ! | 73 अह एहिसि ता अहयं एत्तो च्चिय पडिनियत्तिस्सं ||६२४९ ॥ जइ कह वि तए मह वीरसेण ! धूया विवाहिया ता किं एत्तियमेत्तेणं चिय लहुयत्तं तुम्ह संजायं ? ||६२५० ॥ उवहसियसुरपरक्कम ! अयाणमाणेण तुज्झ गरुयत्तं । जं अणुचियमायरियं खमियव्यं तं तए पुव्विं ॥ ६२५१ ॥ मह परिओसनिमित्तं पारंभसि जं उवक्कमं वीर ! । सो च्चिय जइ मणखेयं उप्पायइ निफ ( प्फ) लो ता सो' तो भाइ वीरसेणो 'पन्नायर ! संगयं तए भणियं । पडिहाइ ताण जं चिय मए वि तं चैव कायव्वं ॥ ६२५३॥ जा मह लच्छी अरिनिग्गहाइणो जे गुणा य तो तेहिं । मह विक्कमो त्ति नायं न उणो नियचरणमाहप्पं ॥६२५४॥ अहवा किं मह कज्जं तव्वयणं अन्ना वियप्पेउं ? | जुत्तं व अजुत्तं वा गरुय च्चिंय ते वियाणंति' ||६२५५॥ इय भणिऊणं वीरो पडिहारं आणवेइ उच्छुको । कारेह नयरसोहं महापमोयं च चंपाए ॥ ६२५६ ॥ ॥६२५२॥ Page #580 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ सव्वो सबाल - वुड्डो पुरलोओ जाउ रायपच्चोणि । सव्वाइं साहणाइं परिग्गहो · सव्वसेन्नं च ||६२५७।। तो आएसाणंतरमणंतनरतुरियदिन्न आएसो । कारावइ पडिहारो जं भणियं वीरसेणेण ॥ ६२५८॥ अह चडयरेण महया नीहरिओ राय-पोरपरिवारो । पत्तो संमद्देणं विचित्तजसराइणो पासे ||६२५९ ।। तो चंदसिरीदंसणसविम्हउब्धंतनयणतामरसो । बहुकोऊ हलतरलियमण-नयणो पिच्छए लोओ ||६२६० ॥ तो तेहिं महाराओ पढमं जोका (क्का) रिओ नरिंदेहिं । पुर- पौर-परियणेण य पणिवइओ विणयनम्मेहिं ॥ ६२६१॥ दिव्यविमाणारूढं निज्जियसुरसुंदरीयणं देवीं (विं) । लोओ चंदसिरी (रिं) पि हु पणमइ विज्जाहराइन्नं ।। ६२६२ ।। नरवइणा वि जहोच्चि ( चि) य पडिवत्तिपुरस्सरं असेसो वि । लोओ कयसम्माणो नियनियजाणेसु आरूढो ।। ६२६३ ।। पहयपडुपडह-मद्दल-मउंद - ढक्का - हुडुक्कसंघायं । वज्जिरगहीरभेरी-काहलकोलाहलाइन्नं ॥ ६२६४|| पूरियअसंखघणसंखसद्द दोहनहयलाभोयं । घणघंटारवबहिरियदियंतरं आहयं तूरं ||६२६५।। देवी चंदसिरी वि य मणिरयणविणिमि (म्मि) ये विमामि । सीहासणोवविट्टा उभयंसपडंतचमरोहा ||६२६६ ॥ अइदूरदिसागयबंदिविंदउग्घुट्ट- जयजयासद्दा । कव्वयबंधनिबद्धं नियपइणो सुणई सच्चरियं ॥६२६७ ॥ +' ५७१ Page #581 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५७२ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ निसुणियदइयपरक्कमपहरिसरोमंचकंचुयच्छइया । गयणट्ठिया य वरिसइ वसुहारं बंदिलोयस्स ।।६२६८॥ मंसलवंसविमीसियसुगीयसवणद्धमीलियच्छिउडा । ते वि कुणइ अदरिदे पइनामायन्नणपहिट्ठा ॥६२६९॥ पत्तो कमेण राया रायपहं विविहजणवयाइन्नं । सलहिज्जंतो सहरिसनीसेसपुराणपुरिसेहिं ॥६२७०॥ . 'एयस्स नत्थि सरिसो असेसभुयणे वि रायरायस्स । जो वहइ ससुरसदं जयदुल्लहं वीरसेणस्स' ||६२७१।। अह नियइ सव्वलोओ उन्नामियकंधरो महादेविं । घुसिणारुणंगसोहं पहायसंझं व जयपुज्जं ॥६२७२।। उभयंसपासघोलिरकवोलसंकंतचारुसियचमरा । अंतोसंवेल्लियवयणचंदकिरिण व्व दियससिरी ॥६२७३।। घणसामलनीलमहिंदनीलथंभंतरंमि संकंता । जलभरियजलहरंतरपरिफु(प्फुरंती तडिलय व्व ॥६२७४।। सुसिणिद्धचरणकोमलतलंगुलीसोणकिरिणवित्थारा । नीसेसपुरिसपेसियमणुरायं ताडयंति व्व ॥६२७५।। जा वहइ चरणनहनिवहमुज्जलं नहमुहेण समसीसिं । कुणइ त्ति खंडखंडीकयं व धारेइ हरिणकं ॥६२७६।। गुफा(प्फा)वलंबिनेउरमणिकंचणवलयमंडलीकलिया । हढबंधसमाकिट्ठा पविसंती भुयणलच्छि व्व ।।६२७७।। अंतोकयवीरपइट्टहिययपासायधारणत्थं व ।। जा वहइ थंभजुयलं अप्पमाणोरुवित्थारं ॥६२७८।। Page #582 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५७३ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ जा धरइ नियंबतडं मणिमेहलमंडियं धरित्ति व्व । जलफेणधवलनिवसणरयणायरविहियपरिवेढा ॥६२७९॥ जा तिवलिवलयपरिगयतणुमज्झा सहइ लोयरमणीया । मज्झ परिट्ठियतिवहयपवित्तिया तिहुयणसिरि व्व ॥६२८०॥ अइदूरुन्नयथणवट्ठमंडला सहइ दक्खिणदिसि व्व । फुडदिस्समाणदिसिगयकुंभयडा आगय व्व सयं ॥६२८१॥ थणवट्ठोवरि तारं मुत्ताहारं उरेण धारंती ।। वीरस्स करडिकरसीयरोहकलिय व्व जयलच्छी ॥६२८२॥ सहइ निसग्गारुणपाणिपल्लवा भुयणकप्पवल्लि ब्व । अणवस्यवीरपयकमलमलणसंकंतघणराया ॥६२८३।। जा वहई मुहकमलं व वियसियं दीहरच्छिदलललियं । नासग्गकन्नियं वीरसेणमुहमाणसावासं ॥६२८४।। निम्मलमणिमयकुंडलपडिबिंबियगंडमंडला सहइ । मुहदोखंडियससहरसरणागयउभयखंड व्व ॥६२८५॥ सवणट्ठियमणहरकन्नपूरमणिकिरणनिवहमुव्वहइ । जा पिययमाणुरायं पियइ व्व जणाउ सवणेहिं' ॥६२८६॥ इय चंदसिरीमणहरसरीरसोहावहरियमण-नयणो । लोओ विम्हयरसपसरमूढचित्तो व्व संजाओ ॥६२८७।। जंपइ अन्नोन्नमिणं 'संजायं लोयणाण साफल्लं । भुयणच्छेरयभूयं जमिमीए पलोइयं रूवं ॥६२८८।। पेच्छ पयावइणो वि य असरिससंजोयसंभवो अजसो । अणुसरिसमिहुणसंजोयणेण निन्नासिओ एण्हि' ॥६२८९।। १. त्रिपथगा खंता. टि ।। Page #583 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५७४ सिरिभुयणसुंदरीकहा | कहमुच्चविमाणठियं जयदुल्लहदंसणं पलोएमो ? ! पुरओ आरुहइ जणो पासायमहातरुगिहेसु ॥ ६२९० ॥ आइन्नइ चंदसिरी समुच्चपासायसाहिसिहरेसु । जुईण समुल्लावे नियविसेसविसेसवित्थरिए ||६२९१ ॥ ' कह तस्स हरइ हिययं सहिओ ! तुम्हारिसो तरुणिसत्थो । रूवोहामियसुरसुंदरी इमा भारिया जस्स ?' ||६२९२ ।। अन्ना जंपइ 'गिरिकंदरंमि एयाए पूइया गोरी । लावंत्र - रूव-सोहग्ग- रज्जमाई गुणा तेण' ||६२९३ ॥ अन्ना पुण भणियं 'मिच्छादिट्ठिणि ! असंगयं भणियं । जम्मंतरविहियजिणिदधम्मकुसुमाई एयाई' ||६२९४॥ अन्नाए (इ) पुच्छिया सा 'पुप्फाई इमाई ता फलं किं नु ?' | सा भइ 'फलं मोक्खो जिणिदधम्मस्स विहियस्स' ||६२९५॥ अक्काए भणियं ' सहिओ ! जइ एरिसो भवे धम्मो । ता सव्वाओ समयं तमेव धम्मं अणुट्टेमो' ||६२९६ ॥ अन्नाए भणिय 'मिस्सा दासित्तं पि हुन पुन्नहीणाओ । पावंति किं पुण भवे एयसरूवस्स संपत्ती ?' ||६२९७ || अन्ना य भाइ 'पियसहि ! एसा खु महासई जए पयडा । जी. कुमारी विहु न अन्नपुरिसो मणे धरिओ' ||६२९८ || अन्नाए पुण भणियं 'सा एसा जा असोयखयरेण । अणुरत्तमाणसेणं हरिऊणं सायरे छूढा ||६२९९ ।। एएण पुण सिरिवीरसेणराएण कड्डिया तत्तो । सेहरयासोयाणं पच्चक्खं चैव परिणीया' ॥६३०० ॥ Page #584 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ अन्नक्काए भणियं 'पियसहि ! को एस वीरसेणो त्ति ?' । सा भणइ 'जेण गयणे कमलकेऊ हओ खयरो' ॥६३०१॥ अन्नाए पुणो भणियं ‘को सो सहि ! खेयरो कमलकेऊ ?' । सा भणइ 'जेण हरिया नरसीहपिया कणयरेहा' ।६३०२।। इय अन्नोन्नालावे निसुणइ सा जाव तरुणिसत्थाण । पत्तो रायदुवारं विचित्तजसनरवई ताव ॥६३०३।। उत्तरइ तओ राया सीहदुवारंमि हत्थिखंधाओ । . वारिज्जंतो वि सयं वीराहियरायपुरिसेहिं ॥६३०४।। उयरुयरिपरिपेसियपडिहारपरंपराकहियमग्गो । वच्चइ अवलोयंतो रायउल विविहववहारं ॥६३०५।। जं सेवागयनरवालतुरयखुरुखा(क्खा)यखोणिरयपडलं । पविसंतमत्तमयगलमयजलधाराहि उवसमइ ॥६३०६।। केहिं पि जुद्धकीलत्थमाणिएहिं च दीयमाणेहिं । पढममयदसणत्थं आहूएहिं च केहिं पि ॥६३०७।। अन्नेहिं पट्टबंधाप(य?) ट्ठाविएहिं नवनिबद्धेहिं । घणवारणेहिं वियर्ड पि संकडं नियइ रायउलं ॥६३०८।। अणवरयचलियखुरपुडधरामद्दलेहिं तुरएहिं । नट्ठवेएहिं व थिरं रायसिरिं नट्टयंतेहिं ।।६३०९।। पहरिसहेसारवबहिरियंबरेहिं व संकडाभोयं । रायाजिरं नियंतो वच्चइ राया विचित्तजसो ॥६३१०॥ दूरं पेसिज्जंतेहिं दूरसंपेसियागएहिं च । करहेहिं संकडं रायपंगणं जाइ पेच्छंतो ।।६३११॥ १. राजाजिरं राजप्राङ्गणम् खंता. टि. ।। Page #585 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५७६ अंतोपविट्ठनरवालछतनिवहेहिं सेयवन्नेहिं । सरयब्भजलहरेहिं व वायाहयनिवडिएहिं च ||६३१२ ॥ पेच्छइ पुरओ राया अलग्गुयविविहरायसंघायं । जे न कयाइ वि पावंति दंसणं वीरसेणस्स ||६३१३|| सीहदुवारोवरि तइया भूमियापहयभेरिसद्देण । वित्तत्थं पेच्छंतो घडियाहरयस्स जणनिवहं ॥६३१४ || पेच्छइ कत्थूरीहरिणजूहमुत्तरदिसानरिंदेहिं । संपेसियं विचित्तं नाणाविहदव्वजायं च ।।६३१५।। कत्थ. विहिरन्नकूडेहिं संकडं वीरसेणभीएहिं । नरवालपेसिएहिं कंचणगिरिकूडसरिसेहिं ॥६३१६॥ अन्नत्थ विविहमणि-रयणरासिपुंजेहिं मंडियं नियइ । रोहणगिरिसिहरेहिं व उङ्कं बद्धिदधणुहेहिं ॥६३१७|| अन्नत्थ पुणो हिमसेलसिंहरसंकासरुप्परासीहिं । भयपेसियाहिं दीसइ निरंतरं दूरराएहिं ॥६३१८॥ अन्नत्तो पुण हिमगिरिनरिंदसंपेसियाई कोडेण । पेच्छइ तुरयमुहाणं मिहुणाई विचित्तजसराया ||६३१९ ॥ कत्थ वि पुण कोऊहलतरलमणो गरुयलोहकुंडजले । जलमाणुसाइं पेच्छइ दीवंतररायपहियाई || ६३२०॥ एकत्तो पुण करि तुरय-वेसरी- हेमडोलजाणे ( णा ) उ । उत्तरमाणाहि विलासिणीहिं अपहुत्तवित्थारं ।। ६३२१ ।। चलचारुचरणनेउरमणिमेहलकणिरकिंकिणिरवेहिं । बहिरियदियंतरालं नियइ निवो वारविन्नवाण ।।६३२२ ॥ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ Page #586 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ ३८ गामागर-पुर-पट्टण- दुग्गाहिट्ठाण - देस-विसयाण । पव्वयपमाणरासीओ नियइ हेमस्स सिरिकरणे ||६३२३ ॥ लेखयदा निमित्तं बहुदेसनिउत्तघणनिओईहिं । सेविज्जंतं पेच्छइ नरनाहो मूलसिरिकरणं ॥ ६३२४ ॥ अन्नत्थ पुणो नीसेसभुयणदारिद्दुवद्दुयजणाण । । राया पेच्छइ विविहं दिज्जंतं कणयवित्थारं ||६३२५ || अन्नत्थ पुणो धम्माहिगरणम्मि (मि) क्खेइ देस - काला समुचियनएण लोयं सासंतं नयववत्थाहिं ॥६३२६|| इय एवमाइबहुविहवइयरसयसंकुलं महाराओ । रायउलं पेच्छंतो संपत्तो तुंगभद्दते ||६३२७॥ नीत-विसंताणं संघट्टपडंतभूसणमणीहिं । अन्नोन्नं रायाणं संचलियं नियइ रायउलं ।।६३२८|| पज्जलियजलणकणभासुराई दट्ठूण भूमिरयणाई । चयइ फुलिंगासंकी उडुंतो पामरो को वि ॥६३२९॥ अंतोपविसंतविलासिणीण बहिनीहरंतपुरिसेहिं । पीणपओहरफंसो पाविज्जइ जत्थ निम्मोल्लं ॥६३३० ॥ पडिहारेण सरोस पडिसिद्धा तह वि पवे (वि) समाणा जे । गलथल्लिऊण दूरं खिप्पंति महामहीनाहा ॥६३३१॥ दूराओ च्चिय पडिहारपुरिसपंडिसिद्धसयललोयंमि । सिरितुंगभद्ददारे पविसइ पुहईसरो तत्थ ||६३३२ ।। सर- ऊसर - सत्ति-सम्बल - पट्टिस-कोद्दं (दं) ड - कुंत-खग्ग-धणुं । वावल्लभल्लभल्ली -तिसूल - कण चक्क - मोग्गरए ||६३३३॥ ५७७ Page #587 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५७८ सिरिभुयणसुंदरीकहा। एमाइ आउहाइं धारंता उद्धजाणुणो पुरिसा । दसलक्खसंखमाणा पलोइया पहरयपइट्ठा ॥६३३४।। आरुहइ उयरिभूमिं राया तं नियइ सव्वओ निउणं । पेच्छइ असंखनरवइनिरंतरं तं पि चिंतइ य ॥६३३५।। 'अच्छरियजणयमेयं रज्जं सिरिवीरसेणरायस्स ।। जं हियए वि न तीरइ विचिंतिउं किं नु वोतुं(त्तुं) जं ॥६३३६।। मन्ने अड्डाइयदीवसंभवो एत्थ पुंज्जिओ लोओ । जम्हा निएमि जत्तो तत्तो अहियं च पेच्छामि' ॥६३३७।। तं पि परकृमिऊणं आरूढो तइयभूमियं राया । तं पि तह च्चिय पेच्छइ निरंतरं सव्वलोएहिं ॥६३३८।। दीसंति जत्थ विविहा दियाइणो विविहलिंगि-पासंडी । नाणाविहा य कइणो पामाणिय-पंडियसहस्सा ॥६३३९।। अह के वि तत्थ कज्जत्थमागया मंडलिं करेऊण । कारेंति बंभघोसं चउवेयविसेसाढेण ॥६३४०।। अन्ने वि लिंगिणो पुण समुच्चरंता सधम्मववहारं । अन्नोन्नदूसणपरा दंसणऽवसरं नियच्छंति ।।६३४१ ।। अन्ने वि तत्थ कइणो अन्नोन्नं कव्वपाढरसविवसा । पहरिसपुलइज्जंता चिरकइकव्वाइं वन्नति ।।६३४२ ।। पामाणिया य केइ वि विहियपमाण-प्पमेयपविभागा । आदसणसमयावहि विवदंता तत्थ चिटुंति ॥६३४३।। तं पि परिचइऊणं चउत्थभूमीए चडइ नरनाहो । पेच्छइ वीराहिवई अइगरुयत्थाणमज्झगयं ।।६३४४|| १. पाठेन ।। Page #588 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ ट्ठिो अइगरुयमहीवईण मज्झट्ठिओ महावीरो । नीसेसचराचरचक्कपरिरओ कंचणगिरि व्व ॥६३४५।। अपरिट्ठिए ट्वंतो अन्ने उ पइट्ठिए अ धणयंतो । कम्माणुरूवफलओ जयकत्ता जो सयंभु व्व ॥६३४६।। पुर-पिट्ठ-ओभयपासेसु विन्नवंताण दिट्ठिसन्नाए । सयमाएसं देंतो दिसिवालाणं व कज्जेसु ॥६३४७।। भयभीयमहारायाण कयप्पणामाण जायकारुन्नो । 'मा भाह'त्ति भणंतो नियपाणिं ठवइ पट्टीसु ॥६३४८।। पसरियसियकिरिणकलावहारमज्झिममणीसु संकेतो । हियए व्व परिवसंतो सेवागयरायरायाण ॥६३४९॥ घोलंतकन्नकुंडलमिसेण साहति सोम-सूर ब्व । ससि-सूरवंसजेसुं तुह सरिसो पत्थिवो नत्थि ॥६३५०।। आमलयथूलमोत्तियहारावलिकलियवियडवच्छयलो । गुणगुंफियाहिं रेहइ सुपुन्नबंधावलीहि व्व ॥६३५१।। सव्वंगभूसणारुणमणिप्पहावलयपूरियत्थाणो ।। हयतेयस्सिपहावं पहायसंकं व वहइ रवी ॥६३५२।। चालियवारविलासिणिसियचमरसहस्सधवलियनहंतो । जेउं सुरिंदकित्तिं नियकित्तिं पेसयंतो व्व ।।६३५३।। पुरओवविठ्ठएक्कग्गचित्तनयणाए जयवडायाए । उच्छंगिएकचरणो हरि व्व लच्छीए हिट्ठाए ॥६३५४॥ जणचक्खुनिवायभया अणवरयं विविहवारविलयाहिं । कयकल्लाणसहस्सो लोणं उत्तारयंतीहिं ॥६३५५।। १. जगत्कर्ता स्वयम्भूरिव ।। Page #589 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५८० सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ इय निज्जियसयलतिलोयगरुयमाहप्पपयरिसो वीरो । वडंतो नरवइणा दिट्ठो परमप्पयमईए ॥६३५६।। तो पडिहारसमुब्भडहक्कासासंकभूमिवालेहिं । दिन्नपिहुगमणमग्गो ओइन्नो वीरदिट्ठीए ॥६३५७।। दठूण विचित्तजसं वीरो हरिसुल्लसंतरोमंचो । सीहासणाओ उट्ठइ संखुहियत्थाणवित्थारो ॥६३५८।। सहसंचलंतमहिवइचाडुसमुच्चरियजयजयव(ध?)मालो । पियरं व महारायं पणमइ सह सव्वराएहिं ।।६३५९॥ तो नरवई दिसागयकरसरिसपसारिओभयभुएहिं । आलिंगिऊण वीरं पुण चुंबइ उत्तिमंगंमि ॥६३६०।। ता तत्थ चेव पेच्छइ वीरो वरमित्तबंधुयत्तं पि । आलिंगइ सप्पणयं सो वि सविणयं च पणमेइ ।।६३६१ ।। ता पुट्विं परिकप्पियसिंहासणसंठिए महाराए । उवविसइ वीरसेणो सकीयसीहासणे पच्छा ।।६३६२ ।। पुच्छियकुसलोदंता परोप्परं जायसमुचियालावा । अच्छंति खणं पच्छा विचित्तजसराइणा भणियं ॥६३६३॥ 'सकयत्थोऽहं दिलोसि जेण रयणायरो व्व इह जंमि । संभंततिलोयाओ विसंति रिउकित्तिगंगाओ ॥६३६४।। तुह वसइ वीर ! केऊररयणमणिसघणकिरिणसरियंमि । भुयपंजरंमि लच्छी जहासुहं रायहंसि व्व ॥६३६५।। जे वीर ! अमच्छरिणो तुह गुणनिवहं वहति हिययंमि । चिंतामणि व्व ताणं चिंतियफलदायगो होसि ॥६३६६।। Page #590 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५८१ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ पंचंगुलिघणसाहं नहकुसुमं किरणरयणओऊलं । पयकप्पतरुच्छायं आ(अ)ल्लीणा तुह न सीयंति ॥६३६७॥ अन्ने साहिति महिं चउरंगाडंबरेहिं सेन्नेहिं । एक्कंगेण वि तुमए तहा कयं जह न केणावि' ॥६३६८॥ इय एवमाइ विविहं आणंदुव्बूढहिययउक्करिसो । जंपतो पडिभणिओ वीरेण विचित्तजसराया ॥६३६९॥ 'सिज्झइ न सिज्झइ च्चिय एवं पुन्नाण देव ! आयत्तं । नियजोगयाणुरूवं उज्जमियव्वं तु पुरिसेण' ॥६३७०॥ इय एवमाइ बहुविहगोट्ठीसंतुट्ठमाणसा जाव । चिट्ठति ताव भणियं असोयराएण वयणमिणं ॥६३७१।। 'वीरस्स राय ! रज्जाहिसेयकज्जेण आगया अम्हे । ता सो निव्वत्तिज्जइ पसत्थतिहि-वार-लग्गमि ॥६३७२॥ एएणं चिय कज्जेण राय ! तुब्भे वि एत्थ आहूया । तह बंधुयत्तमित्तो चंदसिरी परियणसमेया' ॥६३७३।। तो भणइ विचित्तजसो ‘उचियमिणं खेयरिंद ! तुह वयणं । वत्थुमि वत्थुघडणा न कस्स किर रंजए हिययं ? ॥६३७४।। अच्चुन्नयमहिहरमंडलाई चइऊण पयइविणयंमि । रयणायरे व्व वीरे सिरि(री)ओ सरियाओ उववेंतु ॥६३७५।। एयस्स पुन्नपरिणइपणामियासेसभुयणरज्जस्स । नियचित्तसुद्धिपयडणमेत्तो च्चिय तुम्ह वावारो ॥६३७६।। ता उज्जमह तुरंता जं जह समओचियं हवइ कज्जं । तं तह कारेह सयं असोय-सेहरयरायाणो !' ॥६३७७।। Page #591 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५८२ ' एवं ' ति पभणिऊणं नियनियविज्जाहरेहिं आणीए । उवगरणे खयरिंदा पेच्छंति तहा नरिंदा य ||६३७८ ॥ अठुत्तरं सहस्सं कलसाण नियंति रयणघडियाण । चउद्दह - महानईणं पवित्तपयपूरियंगाण ||६३७९ ।। तह सव्वकुलगिरीणं सिहरठियमट्टियाओ सुरगिरिणो । पंडुसिलासलिलाणि य कप्पदुम्म डुम) पल्लवा चेव ||६३८० || ताणं चेव कसाया कुसुमाणि य पंचदेवरुक्खाण | मंदार पारियायय- नमेरु- संताणयाईण ||६३८१ ॥ मणि - रयणनिम्मियाइं विचित्तसिंहासणाई तुंगाई । चउसायरसलिलाणि य सियचामर छत्तसंघाया ||६३८२ ॥ पंचरयणाइतुरया उत्तमदेसुब्भवा करिंदा य । सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ तह सत्तन्नयाई जवंकुरा दहियकलसा य ||६३८३ ॥ गयदंतमट्टियाओ इत्थीरयणं च चंदसिरिदेवी । तह मच्छयाण जुयलं सत्थिय-चकुं च वज्जं च ||६३८४|| तक्कालवियसियाई कमलाई महाधओ य सिरिवच्छो । कयदक्खिणआवत्ता संखा तह अंकुसाई च ।।६३८५।। सुरसेलसंठियाणं विविहफलाई च नंदणवणाण | तह खग्गमहारयणं मणि- - भूसण-वत्थसंघाया ।। ६३८६ ।। इय एवमाइबहुविहरज्जुवओगोवगरणदव्वाणि । दठूण परमहिट्ठा विचित्तजसराइणो जाया || ६३८७ || एत्यंतरंमि पूयं सक्कारं गोरवं च काऊण । पुट्ठो खयरिंदेहिं सुहदिवसं सिद्धसेणो वि ॥ ६३८८ ॥ Page #592 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ तेणावि निउणमइणा सम्मं परिभाविऊण चित्तंमि । कहियं 'नरिंद ! सुज्झइ कल्ले च्चिय वीरसेणस्स || ६३८९ ॥ देव ! पयावइनामो पंचमसंवच्छरो अइपसत्थो । वेसाहो वि य मासो अक्खयतइया तिही देव ! ||६३९० ॥ मिगसिरसुहनक्खत्तं वारो सूरस्स सिद्धिजोगो य । वीरो वि वसहरासी जम्मत्थो ससहरो तस्स ||६३९१।। अन्ने विगहा सव्वे गोयरसुद्धीए तस्स फलदा य । नरनाह ! वसहलग्गस्स सूरमाई गहा सत्था ।। ६३९२ ।। छव्वग्गो वि नरेसर ! सुहफलदो तह पसत्थहोरा य । इय एरिसं सुलग्गं वरिससहस्सेहिं वि न होइ ||६३९३ ॥ एयंमि परमलग्गे विहियं कज्जं कयाइ न चलेइ । ता उज्जमह तुरंता निच्छियमेयं मए लग्गं' ।। ६३९४ ।। 'न चलेइ' त्ति पभणिए समाहयं मंगलं महातूरं । तो सव्वनरिंदेहिं बद्धाओ सउणगंठीओ ||६३९५ ।। घोसावियं च तुरियं चंपानयरीए कल्लदियहंमि । सिरिवीरसेणरज्जाहिसेयपरमुच्छवो होही || ६३९६।। सव्वेसिं रायाणं सामंताणं च मंडलीयाण । जाणावियं असेसं पहिट्ठहिययाण लोयाण ।। ६३९७ ।। एत्थंतरंमि सहसा दिणावसाणाहयाए भेरीए । सव्वेहिं सुओ सद्दो बाहिरियभुयणंतरालाए ||६३९८ || सलिलस्स व जाइ रवी संझासोवासिणीए परियरिओ । पच्छिम समुद्दमज्झं अहिसेउं वीरसेणं व ॥६३९९॥ ५८३ Page #593 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५८४ संझावसरे संझावहूय उवरिं भमाडिऊण रवी । खिप्पइ आरत्तियदीव्वओ व्व सिरिवीरसेणस्स ||६४०० || पसरइ सव्वत्तो च्चिय संझाराओ जयस्सं वीरंमि । सोरज्जरंजियस्स व सव्वाणुगओ व्व अणुराओ ||६४०१ || वित्थरइ दिसाभित्तिसु कत्थूरीकद्दमोवलेवो व्व । पढमं पसाहयंतो जयपासायं व तिमिरोहो ||६४०२ || अंतोफुरंततारं नीलृप्पलदलविनीलघणकंतिं । दूरं पसारियच्छं नियइ व्व धरायलं गयणं ||६४०३ || उट्टिय (?) पईवनिवहाओ वित्थरंतेहिं । सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ तिमिरेहिं कज्जलेहिं व सामायइ नहयलाभोयं ||६४०४ || एवंविहे पओसे नरनाहो विहियसयलकल्लाणो । ठाऊण किंचिवेलं विसज्जए सव्वनरवाले ||६४०५ || दाऊण महावासं विचित्तजसमायरेण पेसेइ । सयलविसज्जियखेयरलोओ अह उट्ठइ सयं पि ||६४०६ || उट्ठिय (?)चंदसिरीभवणमेव वीरवई । बहुदिवसदंसणेणं समहियसंजायकुंठ ||६४०७ ।। अन्नोन्नदंसणोल्लसियहरिसपरवसमणाण दोहिं ( हं) पि । नयणाई भुक्खियाइं व तिप्पंति न दंसणरसस्स ||६४०८ || भुयणेसराण ताणं परोप्परं विरहदुक्खसंजायं । आणंदइ दोब्बल्लं पयडियअवरो..... ( ? ) ||६४०९॥ पुव्वपरिट्ठाविय-महरिहसीहासणे समुवविट्ठो । संभासइ चंदसिरिं वीरो गरुयाणुराएण ||६४१०॥ Page #594 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ 'किं तुह सरीरकारणमासि तओ दुब्बला सरीरेण ? । अहवा मह अवसेरीवसेण खीणा तुमं देवि ?' ||६४११।। भणियं चंदसिरीए 'न खलु सरीरस्स कारणविहीणं । संजायइ दोब(ब्ब)ल्लं सव्वमिणं ...... (?) ॥६४१२॥ अवरो तुमं ति (?) नरवर ! खीणत्तं होइ अरिवसेणेव(?) । अम्हेहिं अरिवसेहिं (?) खीणो सि तुमं तमच्छरियं' ॥६४१३॥ ईसीसि विहसिऊणं पुण वीरो भणइ ‘देवि ! तुज्झ वसे । मह जीय-सरीराई वि का गणणा रज्जमाईसु ? ॥६४१४॥ जं पुण अकहतेण य गमणं पि अणुट्ठियं मए देवि ! । तं तुह भुवणब्भंतरभूवालवहूण सेवत्थं' ॥६४१५।। इय एवमाइबहुविहवयणविणोएण अच्छिऊण खणं । विन्नत्तो मित्तेणं समीवठियबंधुयत्तेण ।।६४१६।। 'उट्ठह नरिंद ! तुब्भे उववासवएण पीडिया बहुयं । नियमाणुट्ठाणाई कज्जाइं संति बहुयाइं' ॥६४१७।। तो तव्वयणाणंतरमुटुंताणंतभडसहस्सेहिं । विहियंगरक्खकम्मो संपत्तो तुंगभईमि ॥६४१८|| • तत्थ वि जिणपूयापुव्वमेव निव्वत्तिऊण नियमविहिं । सो बंभचेरधारी पासुत्तो भूमिसयणंमि ।।६४१९।। एत्थंतरंमि रयणी सूरस्स पयावमसहमाणि व्व । ता भिज्जिउं पयत्ता बंदीकयरायनारि व्व ॥६४२०।। पविसंति तओ बहुचाडुचउरचारणसहस्ससंघाया । पारद्धपहाओच्चियबहुविहमंगलथुइपाढा ॥६४२१॥ Page #595 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५८६ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ 'अंतोसंमीलियतारजायनीलुप्पलच्छिसंकोया । . वीरेंदुविओएण कयमुच्छा भिज्जए रयणी ॥६४२२।। वियसियकमलदलच्छी अन्नोन्नघडंतचक्कथणकलसा । वीरुच्छवंमि पत्ता दिणलच्छी संझनवरंगा ॥६४२३।। दठूण तुज्झ उदयं पुव्वावरक्खिणुत्तरदिसासु । तह मच्छरेण नरवर ! पेच्छ रवी रायमुव्वहइ' ।।६४२४।। इय एवं सोऊणं 'नमो जिणाणं' ति पभणिरो वीरो । उठुइ सयणीयाओ पुलिणाओ रायहंसो व्व ||६४२५।। कयपाहाउयकिच्चो जिणनाहं पूइऊण भत्तीए । अभिवंदिऊण य तहा निग्गच्छइ वासभवणाओ ॥६४२६।। पविसइ महंतमत्थाणमंडवं विविहरयणमणिखचियं । देवंगवत्थविरइयवियाणरमणीयवित्थारं ।।६४२७।। सियसुरहिकुसुममालाकयफुल्लहरंतरेसु रमणीयं । घणमुत्ताहलमणिरयणलंबिओऊलनिवहेहिं ।।६४२८।। ओलंबियनाणाविहपसत्थफल-पुप्फ-रयणमालाहिं । कप्पडुमवासं पिव सुवेसबहुमिहुणसंकिन्नं ॥६४२९।। पेरंते सुपरिट्ठियबहुपहरणपाणिपत्तिसंघायं । उचियट्ठाणनिवेसियअसेससेवागयनरिंदं ||६४३०।। मणि-रयण-कणयनिम्मियचउरंसविचित्तवेइयाबंधं । तदुवरिनिविट्ठमणिमयसीहासणलद्धउस्सेहं ।।६४३१ ।। बहुरज्जमज्जणोचियउवगरणनिवेसरुद्धवित्थारं । बहुविहविलासिणीयणसंघट्टपडतहारलयं ।।६४३२।। Page #596 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५८७ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ बहुविज्जाहरविलयापारंभिज्जतविविहमंगल्लं । तक्कज्जवावडुब्भडभमंतविज्जाहरसहस्सं ॥६४३३।। इय एवमाइबहुविहकालोच्चियसयलवइयराइन्नं । पेच्छंतो सीहासणमुवविट्ठो वीरवरनाहो ॥६४३४।। तो पारद्धपुरोहियअसेससुहसंतिकम्मकल्लाणे । सिरिसिद्धसेणठावियसंकुच्छायामुहुत्तंमि ॥६४३५॥ पूइज्जमाणजोइणिसहस्सअंचिज्जमाणसुरनिवहे । वसुपुज्जमाइजिणहरपारद्धट्ठाहियामहिमे ।।६४३६॥ दिज्जंतदीणदुत्थियजणवयबहुकणय-रयण-मणिनिवहे । पूइज्जमाणपुज्जे संमाणिज्जंतसगुणमि ॥६४३७।। एत्थंतरंमि सणियं नियडीहुंतंमि लग्गपत्थावे । सेहरयासोएहिं वि कंचण-मणिकलसहत्थेहिं ॥६४३८।। सयमेव धरियछत्ते विचित्तजसनरवइंमि इयरेहिं । राएहिं उज्जएहिं कलसट्टसहस्सहत्थेहिं ॥६४३९।। जहजोग्गयाणुरूवं अन्नेसु वि गहियरायचिंधेसु । वीरे निहित्तदिट्ठिसु सुसावहाणीकयमणेसु ॥६४४०।। पडिहारसद्दवित्तत्थसयलभूवालविहियमाणेसु ।। नियनियआउज्जुज्जयएक्कग्गाउज्जिलोएसु ॥६४४१ ।। इय निच्चलनिप्फंदे अमुणियसुहुमयरसद्दमेत्ते वि । जाए य मंडवंतरपरिवारे चित्तलिहिय व्व ॥६४४२।। एत्थंतरंमि सहसा इट्ठसेसमुइए सुहु(ह)मुहुत्ते । 'पुन्नाह'सद्दघोसणपुव्वं समाहया भेरी ॥६४४३॥ Page #597 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५८८ तो घंटारवनिसुणणहरिसवसुल्लसियबहलपुलएहिं । कलसट्टसहस्सेहिं सव्वेहिं वि पहाविओ वीरो || ६४४४ || निज्जियजलहररवगहिरतूरफुट्टंतवियडबंभंडं । आणंदमत्तखेयरपारकुकुट्ठिसीहरवं ||६४४५ ।। सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ करपल्लवियनहंतं वियडथण अन्नोन्न(थणऽन्नोन्न) पेल्लणसयहं । वियडयरनियंबत्थलसंघट्टपडंतरसणो (णा ? ) हं | | ६४४६ || नच्चणवसचंचलचरणकलियथलकमलपयरसंमोहं । कस्स न हरेइ हिययं पणच्चियं वारविलयाणं ? ||६४४७॥ तो वित्ते अहिसेए असोय-सेहरय-रायमहिसीहिं । जयमाला - रयणावलिमाईहिं समागयं तत्थ ||६४४८ || आगंतूण ससंभम - ससंक-सतिरिच्छनयणपंतीहिं । निव्वत्तियबहुमंगलकोउयकल्लाणवित्थारो ||६४४९॥ सेहरयासोएहिं उब्भडपडिबद्धरयणमणिमउडो । नीसेसकन्नकुंडलमाईहिं विभूसिओ वीरो ||६४५०|| हरियंदणंगराओ पसत्थदेवंगवत्थपरिहाणो । गोरोयण - सिद्धत्थय-दहि-दुव्वाचच्चियसिरग्गो ।। ६४५१ ।। परिमलमिलंतमहुयरमाल मालाए विहियसेहरओ । सुमुहुत्तसमयठावियअचलमहारायो य || ६४५२ ।। तो समयं सव्वेहिं सेहरयासोयमाइराएहिं । जोकारिओ सहरिसं महिंदसीहाइएहिं च ॥ ६४५३ ॥ एत्थंतरंमि दोहिं वि सेहरयासोयखयरराएहिं । सियचमरकरेहि सयं परिट्ठियं रायपासेसु ||६४५४ || Page #598 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ ५८९ जो पुण महिंदसीहो तेण सयं कणयदंडहत्थेण । पुरओ परिट्ठिएणं पडिहारत्तं च पडिवन्नं ॥६४५५॥ अन्नेहिं सयं परिकलियखग्ग-खेडयकरेहिं देवस्स । संठियमोलग्गाए गरुएहिं वि रायराएहिं ।।६४५६।। एवं च तस्स नीसेसभुयणसंपत्तरायसहस्स । एगच्छत्तधरायलपयडपयावप्पयंडस्स ।।६४५७।। वच्चंति सुहं दियसा तिखंडभरहाहिवस्स रायस्स । अणुवमरज्जमहासुहमुव जंतस्स अणुदियसं ।।६४५८।। संमाणिऊण समहियपसायदाणेण वीरसेणेण । पढममसोओ पच्छा सेहरओ पेसिया दो वि ॥६४५९।। इयरे वि जे नरिंदा महिंदसीहाइणो पसाएहिं । विविहेहिं पूइऊणं सदेसमणुपेसिया सव्वे ॥६४६०॥ निक्कंटयकयवसुहो नियपुन्नबलप्पसाहियदियंतो । पीसियजवचुन्नेसुं निसुणइ नियसत्तुसंलावं ॥६४६१॥ सिरिचंदसिरीए समं अणुवमपंचप्पयारविसयसुहं । अच्छइ उव जंतो सईए सह तियसन्ना(ना)हो व्व ॥६४६२।। गच्छंतेसु य दियसेसु ताण बहुएहिं नवर वरिसेहिं । चंदसिरीए जाओ पुत्तो सुपसत्थसव्गो ॥६४६३ ।। नामेण अमरसेणो असेससुहलक्खणोवचियदेहो । जणणि-जणयाण इट्ठो अइगयसिसुभाववावारो ॥६४६४।। अहिगयकलाकलावो पादुब्भुयसरसजोव्वणारंभो । सुललियलायन्ननिही उज्जलसिंगारलडहंगो ॥६४६५।। Page #599 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५९० सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ तो नाऊण समत्थं पुत्तं सव्वेसु चेव कज्जेसु । सिरिवीरसेणराया अहिसिंचइ जोवरज्जंमि ।।६४६६।। एवं वच्चइ कालो संसारो सरइ जंति दियहा वि । भुंजइ अखलियरज्जं वीराहिवई महाराओ ।।६४६७।। अह अन्नया कयाई दोन्नि वि अकलंक-निम्मला मुणिणो । गयणंगणेण पत्ता चंपाए बाहिरुज्जाणे ।।६४६८।। तो नाऊण नरिंदो आगमणं ताण धम्मसूरीण ।। आणंदनिटभरो कहइ चंदसिरी-बंधुयत्ताण ।।६४६९।। 'जे तुम्ह मए कहिया पुट्विं मह धम्मदायगा गुरवो । अकलंक-निम्मला इह ते पत्ता मज्झ पुन्नेहिं' ।।६४७०।। तो ताई गुरुसमागमहरिसवसुल्लसियबहलपुलयाई । चइयासणाई समुहं सत्तट्ठ पयाइं गंतूण ॥६४७१ ।। परिछुट्टियकेसपासग्गपढमसुपमज्जियावणितलाई । वंदति गुरुं वसुहानिहित्तसिर-जाणु-हत्थाइं ॥६४७२।। तो पहाओ सुइभूओ हरियंदणकयविलेवणो राया । परिहियसव्वाहरणो पसत्थजयवारणारूढो ॥६४७३ ।। महया संमद्देणं असंखनरनाहसेन्नपरियरिओ । चंदसिरीसंजुत्तो असेसपुरिलोयपरिकिन्नो ॥६४७४।। सविचित्तजसो राया सबंधुयत्तो समंतिपरिवारो । चंपाए नीहरिओ अइगरुयमहापमोएण ।।६४७५ ।। संपत्तो य कमेणं महापमोयाभिहाणमुज्जाणं । ओयरइ करिंदाओ पत्तो गुरुपायमूलंमि ।।६४७६।। Page #600 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५९१ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ दूराओ च्चिय दिट्ठा पहिढवयणेण रायराएण । देवा-सुर-नरपरिसामज्झगया दिव्ववरनाणी ॥६४७७॥ कमलोयरे निविट्ठा पयासियासेसभुयणपरमत्था । कोमलकमलग्गकराहयमोहतमा दिणयर व्व ॥६४७८ ।। सिरधरियधवलछत्ता सिद्धिवहूए व्व सणनिमित्तं । पच्चागयाए उवरिं सोहंति समुच्छ्यमणाए ॥६४७९।। अच्चुज्जलनाणपहा धवलियनीसेसपरिसवित्थारा । संविभयंत व्व जणे नाणं उवयारबुद्धीए ||६४८०।। उज्जलकवोलभित्तिसु चरणनहेसुं व बिंबियजणोहा । आसिर-चरणंगेसु वि संकंतासेसभुयण व्व ।।६४८१ ।। सुहधम्मदेसणानीहरंतसियदसणकिरिणवित्थारा । अंतोभरिउव्वरियं पयासयंता उवसमं व ।।६४८२ ।। इय ते पसंतरूवे दंसणनिट्ट्यपावपदभारे । भुयणत्तयस्स पुज्जे अणंतवरनाणसंपन्ने ||६४८३ ।। दठूण महाराओ हरिसवसुल्लसियबहलरोमंचो । सपरिग्गहोऽभिवंदइ संथुणई परमभत्तीए ॥६४८४।। 'नमह नमिरामरेसरकिरीडमणिकिरिणजालकब्बुरिए । दोसत्थमणपयासियसंझे व्व मुणिंदपयकमले ॥६४८५।। जेहिं पणामावसरे नहमणिसंकेतनियसरीरेहिं । अवलोइज्जइ अप्पा दुगे(ग्गे)ज्झा ते भवदुहाण ।।६४८६।। दसणमेत्तेण वि तुम्ह नाह ! विहडंति पावपडलाइं । कह संभवंति तिमिराइ देव ! दूरुग्गए सूरे ? ॥६४८७।। Page #601 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५९२ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ तुह पुव्वदंसणाओ समुवज्जियविमलपुन्नबंधेहिं । संपाडियं दुलभं पुणो वि मह दंसणं एण्हि' ॥६४८८॥ इय परमभत्तिवसनीहरंतसब्भूयगुणसमूहेहिं । थोऊण महाराओ पुणो पुणो पडइ पाएसु ॥६४८९॥ सुपमज्जिऊण वसुहं वरिल्लवत्थंचलेण उवविसइ ।। पुण केवलिणा उचियं नरनाहो भणिउमाढत्तो ।।६४९०।। 'नरनाह ! जत्थ तुम्हारिसा वि निम्मलविवेयरयणा वि । हीरंति दुरासाहिं को दोसो तत्थ इयराण ? ॥६४९१॥ जइ कह वि पुनपरिणइवसेण अणुकूलदेव्वजोएण । रज्जसिरी संपत्ता रंकेण व पोलियाखंडं ॥६४९२॥ ता किं तत्थेव तए विहियथिरासेण लंपडत्तणओ । अप्पा उवेक्खियव्वो भण अज्ज वि केत्तियं कालं ? ॥६४९३।। सुवियड्ढो वि हु परमत्थपंडिओ विइयभवसहावो वि । कह धुत्तकुट्टणीए व छलिज्जसे रायलच्छीए ॥६४९४।। नरनाह ! देवलोए बहुसागरदीहकालमाणेहिं । तित्तो न सुरसुहेहिं सो कह एएहिं तिप्पिहसि ? ॥६४९५॥ दारिद्दपरिहवकयं दुक्खं दठूण परभवे राय । जिणधम्मपहावेणं सुर-नररिद्धीओ लद्धाओ ॥६४९६।। जइ दिट्ठफलो तं चिय नरिंद ! धम्मं करेसि पडिपुन्नं । सासयसोक्खमणंतं एण्हि मोक्खं पि पावेसि’ ||६४९७।। तो भणइ वीरसेणो ‘भयवं ! दारिद्द-परिभवाईयं । कह मे दुक्खं जायं ? कह वा जिणधम्मसंपत्ती ? ॥६४९८।। Page #602 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ को वा जिणिंदभणिओ धम्मो परिवालिओ मए भयवं ? 1 कह वा संपत्तीओ सुरनररिद्धीओ मुणिनाह !? || ६४९९ || काऊण मह पसायं कहेह एवं असेसपरिसाए । मज्झ वि जेणुप्पज्जइ भवनिव्वेओ विसेसेण' ||६५०० || तो कहइ गुरू गंभीर - धीरवयणेहिं वीरसेणस्स । बहुपुन्न (व्व) भवनिबद्धं चरियं संवेगसंजणणं ।। ६५०१ ।। 'इह चेव भरहवासे मगहादेसंमि अत्थि वरग्गा (गा ) मो । नामेण मल्ल गामो धण- धन्न समाउलो रम्मी ||६५०२ || तत्थत्थि नागदत्तो नामेण कुटुंबिओ धणसमिद्धो । नामेण नागदत्ता मणइट्ठा भारिया तस्स ||६५०३ || ताण तुमं एकसुओ गुणराओ नाम पयइनिल्लवणो । फुडियकर-चरण-केसो निदरिसणं अइकुरूवाण ॥ ६५०४ || अविवेई य मुरुक्खो विन्नाणविवज्जिओ कलारहिओ । सव्वजणनिंदणीओ असेसदोहग्गभंडारो ||६५०५ || पत्तो जोव्वणभावं अमणोन्नं सयलजुवइवग्गस्स । नामं पि तुज्झ निसुयं चिरं दुगुंछंति नारीओ ||६५०६ ॥ ता तुज्झ जणणि-जणया मग्गंता वि हु कहिं पि न लहिंति । बहुव्व - सुवन्नेहिं वि परिणयणत्थं वहुं राय ! ||६५०७ || ' को बाही नियधूयं तस्स कुरूवस्स परममुक्खस्स । विन्नाणविरहियस्स य?' इय लोओ उत्तरं देइ ||६५०८ || तो महया कट्टेणं बहुविहधण-कणय-दव्वनिवहेहिं । अब्भत्थणामहग्घं वरिया तुह चंगुला नाम ।।६५०९ ।। ५९३ Page #603 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५९४ तो सुप्पसत्थदियहे पारो तुह विवाहसंबंध तारामेलावसरे कन्ना दठं तुमं भीया ॥६५१०॥ आरसइ रुयइ विलवइ लोटइ धरणीए जंपइ अणिट्टं । 'हे माइ ! मह न कज्जं किंपि विवाहेण एएण ! ||६५११ ॥ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ देह वरं भूयाणं वेयाल - पिसाय- रक्खसाईण । जे भक्खंति तुरंता न उणो एयस्स पावस्स ।। ६५१२।। तो सा पडिसेहंती तेहिं बलामोडिया परोयंती । परिणाविया हढेणं उवहसमाणेण लोएण || ६५१३ || वित्तं पाणिग्गहणं जीयं पिव तुज्झ चंगुला इट्ठा । तिस्सा उण अमणोन्नं नामं पि हु तुज्झ किं अवरं ? ||६५१४।। तो सासुयाए एसा पवड्डिया ण्हाण - भोयणाईहिं । जह अचिरेण पत्ता तारुन्नं सयलजणइट्ठे ||६५१५ ॥ तो तीए समं भुंजसि विडंबणारूवविसयसोक्खाई । अणुरत्त-विरत्ताणं परोप्परं केरिसं सोक्खं ? ||६५१६ || तो तुज्झ जणणि-जणया नियआउपरिक्खएण पाणीण । मरणसहावत्तणओ समयं चिय उवरया दो वि ||६५१७॥ तो उवरयंमि सोए मंदीभूए य माय-पिउमोहे | परिवालइ तं गेहं स च्चिय तुह चंगुला भज्जा || ६५१८|| सच्चिय गिहे पहाणा संकाट्ठाणं पि किं पि से नत्थि । जाया निरंकुसा सा सच्छंदपयारिणी कुडला (लडा ) ||६५१९॥ बाढमणिठ्ठो दइओ निरंकुसत्तं च लडहतारुन्नं । अणुरत्ता. य जुयाणा कह असई होउमावरई ||६५२०|| Page #604 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ तो तुज्झ अत्थजायं जं पिउणा संचियं पुरा किं पि । पुन्नक्खएण तं तुह नीसेसं झिज्जिउं लग्गं ॥६५२१।। जं किं पि अत्थि सेसं तं जुयइपरव्वसेण सव्वं पि । तुमए पियाए कहियं परपुरिसवसत्तचित्ताए ॥६५२२।। तो तुह कालकमेणं खीणे दव्वंमि पविरलीहूए । कम्मारयाण वग्गे परिकलिए घरपरिप्फंदे ॥६५२३।। गुणराय-चंगुले च्चिय दोन्नि वि थक्काइं तत्थ गेहमि । अन्नं पुण नीसेसं पप्फुट्ट बोरघडओ व्व ॥६५२४।। तो जासि सयं छेत्ते एगागी लंगलं च वाहेसि । सा चंगुला वि भत्तं घेत्तूणं जाइ तुह छेत्ते ॥६५२५।। छेत्तंतरालमग्गे सुन्नं देवउलमत्थि अइगरुयं । कयसंकेयनरेहिं सह भुंजइ तत्थ सा भोए ॥६५२६।। अह अन्नदिणे धुत्ती भत्तं घेत्तूण सा गया पइणो । भुंजाविऊण दइयं समागया तत्थ देवउले ॥६५२७॥ तो कम्मधम्मजोगा कयसंकेओं न आगओ पुरिसो । अच्छइ पडिवालंती तस्सागमणं खणं जाव ॥६५२८॥ ता तत्थ पहपरिस्समपयंडरविकिरणतावसंतत्तो । तण्हा-छुहाकिलंतो पढमवयत्थो सुरूवो य ॥६५२९।। देसंतराओ एगो पहिओ तत्थेव सुन्नदेवउले । आजाणुधूलिधूसरचरणंतो आगओ तुरिओ ||६५३०।। सो तीए साणुरायं तिरिच्छवलियच्छिभल्लिनिभि(ब्भि)न्नो । हयहियओ तह विहिओ जह तीए संगओ वरओ ॥६५३१।। For Private & Personal use only Page #605 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५९६ तो तत्थ अइविवित्ते परोप्परुप्पन्नपरमनेहाण । ताण असे जायं विसिट्ठजणनिंदियं जमिह ||६५३२ || अहिगमणीयत्तणओ तंमि जुयाणंमि सा तहा रत्ता । जह पामरा जुयाणा वीसरिया तीए नीसेसा ||६५३३ ॥ तो ती घरं नीओ एसो मे माइगेहओ आओ । इय काऊण पवंचं ण्हाविओ ( अ ? ) भुंजाविओ सरसं ||६५३४ | समइकुंते दियहे गुणराओ आगओ पओसंमि । कयसयल गेहकज्जो भुत्तो राईए सुत्तो य ||६५३५|| तो पच्छिमंमि पहरे गो-महिस - बलद्दमाइयं घेत्तुं । नीहरिओ गुणराओ तीए उण झंपियं दारं ||६५३६ || तो सा विवित्तगेहे तेण समं परमनेहबुद्धीए । सुरयवियङ्केण तहिं भुंजइ भोए बहुवियारा ||६५३७ || चिरसुरयपरिस्समजायनिद्दनिच्चेट्ठसव्वगत्ताणि । अन्नोन्नसमालिंगणउभयभुयावल्लिनाण || ६५३८ ।। ताण पहाया रयणी आरूढो दिणयरो नहे दूरं । निद्दापरव्वसाइं तहा वि चेयंति नो ताई ।।६५३९।। तो गामतलवरेणं तग्घरसन्नेज्झघरनिवासेण । सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ तह संठियाई दोन्नि वि दिट्ठाई कवाडविवरेहिं ||६५४०|| तो तेण तुरियतुरियं गंतूणं गामठक्करस्स पुरो । नीसेस परिकहियं तेण वि पुण पेसिया पुरिसा ||६५४१ ॥ तेहिं वि तहट्टियाइं निद्दानिच्चेट्ठसव्वगत्ताई | दिट्ठाई अह सरोसं पाएहिं समाहयं दारं ।। ६५४२ ।। Page #606 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ 'हण निहण छिंद भिंदह मारह कड्डेह' कलयलं एयं । सोऊण ताइं सहसा उट्टंति पवेविरतपूणि ।।६५४३ || तो तेहिं पविसिऊणं दोन्नि वि बद्धाई पच्छबाहाहिं । जं किं पि घरे दिट्ठ तं सव्वं लूडियं तेहिं ॥६५४४|| छेत्तठिओ गुणराओ गो-महिसी - वसहमाइपरियरिओ । बंधेऊणं तुरियं आणीओ भज्जदोसेण ||६५४५।। पुण सेहियाइं दोन्नि वि तो कहियं चंगुलाए नीसेसं । जं किं पि दव्वजायं तं गहिषं ठकु (कुकु) रनरेहिं ||६५४६ ॥ लूडियदुपय- चउप्पय- धण-कण-उवगरण- दव्वसव्वस्सो । दाऊण य कच्छोट्टं मुको दुक्खेहिं गुणराओ ।। ६५४७ || सा चंगुला वि विविहं पहिएण समं विडंबिया घेत्तुं । पहियस्स सम्बलाई समयं निव्वासियाइं च ||६५४८|| तो गुणराओ तव्विहघरभंगदुहेण दुक्खिओ संतो । लज्जाए अकहंतो नीहरिओ सयणवग्गस्स ।। ६५४९।। मग्गे गच्छंतेणं दिट्ठ मुणिजुयलयं भवविरत्तं । उग्गतवसुसियदेहं सिद्धिबहूबद्धरायं च ॥ ६५५० ।। तं सो तहासरूवं दट्ट्ण विरायवासणाजुत्तं । वंदइ दुहसंतत्तो मुणिजुयलं परमभत्तीए ||६५५१ ।। तो तेहिं तस्स दिन्नो बहुतरदुहरुक्खकड्डूणकुढारो । संसारजलहिपोओ सुधम्मलाहो मुणिदेहिं ||६५५२ ।। तो तेण मुणी भणिया 'कथ (त्थ) तुमे पथि ( त्थि ) या महामुणिणो ? | तुम्ह सयासंमि अहं तुम्हा सेण चिट्ठामि ॥६५५३ ॥ ५९७ · Page #607 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५९८ सिरिभुयणसुंदरीकहा बहुदुक्खसमाहूओ एहि इच्छामि तुम्ह पासंमि । ताणुवसामनिमित्तं पव्वज्जं परमसुहहेऊ (उं)' ||६५५४ || तो मुणिवरेहिं भणियं 'अम्हे नीसेसतित्थभूमीसु । । 'वंदामो जिण - पडिमे अप्पडिबद्धा य विहरामो ||६५५५ ।। जायइ परोवयारो धम्मुवएसेण जत्थ ठाणंमि । निव्वहइ संजम तवो तत्थऽच्छामो तहिं जामो ||६५५६ || ता गच्छामो पुरओ गामे ठाऊण तुज्झ साहेमो । धम्मसरूवं पच्छा जं उचियं तं करेज्जासु' ।। ६५५७ || तं संपत्ता गामं धम्मं साहंति तस्स दसभेयं । खम-मद्दव-ज्जवाइं असेसकम्मक्खयसमत्थं ||६५५८ ।। तो गुणराओ जंपइ 'भयवं ! भवचारगाओ निव्विन्नो । मह देह धम्ममेयं पव्वज्जं तह य दुहदलणं' ||६५५९ ॥ तो सावहाणचित्ता जाव नियच्छंति दिव्वसुयनाणी । ता भोगफलं उइयं कम्मं पेच्छंति नाणेण ||६५६० || तो जंपंति मुणिंदा न ताव निव्वहइ तुज्झ पव्वज्जा । एहि सावयधम्मं अणुचिट्ठसु परमसद्धाए' ।। ६५६१ ।। तो तेण मुणी भणिया 'भयवं ! कह मज्झ भोगसंपत्ती ? एवंविहागिईए सुविणे वि न संभवो ताण ।।६५६२ ।। जाई पि मज्झ पिउणा हढेण संपाडियाइं सोक्खाइं । ताण परोक्खे ताइं वि मज्झ भएणं व नट्ठाई' ||६५६३॥ तो जंपंति मुणिंदा ' मा वयणमिणं वियप्प विवरीयं । इह चेव तुज्झ जम्मे सावयधम्मो धुवं फलिही' || ६५६४ ॥ Page #608 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५९९ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ ‘एवं होउ'त्ति तओ भणिए साहूहिं तस्स हिडेहिं । सम्मत्तमूलबंधो जीवाइपयत्थदढखंधो ||६५६५।। पंचाणुव्वयसाहो तिगुणव्वयपत्तपल्लवाइन्नो । चउसिक्खावयकुसुमो सुर-नरसिवसोक्खबद्धफलो ॥६५६६।। सो कप्पपायवो इव पच्चक्खविइन्नकप्पियफलोहो । गुणरायस्स विइन्नो गिहिधम्मो बारसवियप्पो ॥६५६७।। तेण वि पमुइयमणसा परमत्थमईए परमसद्धाए । गहिओ दुहसयदलणो धम्मो कम्मक्खयनिमित्तं ॥६५६८।। तो तं जहोवइटें गिहिधम्मं परमतत्तबुद्धीए । अणुपालंतो चिट्ठइ साहुसमीवे भवविरत्तो ।।६५६९।। अह अन्नया मुणिंदा विहरंता जंति महुरनयरीए । 'जिणथूहवंदणत्थं सो वि य तत्थेव संपत्तो ।।६५७०।। तो मुणिवरिंदसहिओ जिणथूहं वंदिऊण भत्तीए । उज्जाणसुहपएसट्ठिएहिं अ(स?)ह अच्छइ मुणीहिं ॥६५७१।। अह महुरानयरीए राया जसवद्धणो त्ति सुपसिद्धो । अत्थि धरायलतिलओ असेसगुणरायहाणि व्व ॥६५७२ ।। अह तस्स अत्थि दोसो एगो च्चिय सयलगुणगणमयस्स । ईसालुत्तणनडिओ मन्नइ अंतेउरं दु ।।६५७३।। अह तस्स परमइट्ठा भज्जा नामेण गुणसिरी तिस्सा । एक्का जाया धूया नामं जयसुंदरी तीए ॥६५७४।। अह अन्नया नरिंदो विणिग्गओ वाहियालिकीलाए । वाहइ विचित्ततुरए सुजच्च-वोल्लाह-कंबोए ॥६५७५।। Page #609 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६०० . सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ तो तुरयवाहणुब्भवपरिस्समुप्पन्नदेहसंतावो । वच्चइ सिसिरुज्जाणं वीसाममईए नरनाहो ॥६५७६॥ जा जाइ तत्थ पुरओ ता पेच्छइ साहुजुवलमुवसंतं । अभिवंदइ भत्तीए सद्धारोमंचियसरीरो ॥६५७७।। आयन्नइ धम्मकहं लद्धावसरो य भणइ दठूण । 'को एस अइकुरूवो भयवं ! तुम्हंतिए पुरिसो ?' ||६५७८।। कहियं साहूहिं तओ धम्मत्थी विविहदुक्खसंतत्तो । गिहिधम्ममणुटुंतो अच्छइ संसारनिव्विन्नो' ।।६५७९।। तो चिंतइ नरनाहो ‘एस कुरूवाण पढमदि₹तो । मह अंतेउररक्खापुरिसो अइसुंदरो होइ ॥६५८०।। अइसयकुरूवदेहो अमणोन्नो सावओ य धम्मरुई । परलोयपरमभीरू कुकम्मविरओ य सासंको' ॥६५८१।। एमाइ चिंतिऊणं काऊण मुणीण पुण पुण पणामं । भणियं(ओ) राएण इमं गुणराओ जणियबहुमाणं ॥६५८२।। 'साहम्मिओ सि सावय ! जाव न तुह सव्वविरइपरिणामो । ता अम्ह सन्निहाणे अच्छसु अंतेउरमहल्लो' ||६५८३।। तो नरवइपरमग्गहउवरुद्धमणेण तेण पडिवन्नं । अच्छइ रायंतेउरकुलनारीरक्षणक्खणिओ ।।६६८४।। तो परमसावयत्तणगुणाणुराएण रंजियमणाओ । जायाओ सपक्खाओ गुणराए रायपत्तीओ ॥६५८५॥ तो सो नरिंदगोरवउवरुद्धमणो तदेक्कमण-नयणो । अविलोयइ पविसंतं अप्पमणप्पं च परिवारं ॥६५८६।। Page #610 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६०१ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ पडिरुंभइ नरवग्गं अपरिचियं खलइ जुयइवग्गं पि । जोग्गिणि-पब्वइयाओ पविसंतीओ निसेहेइ ।।६५८७।। वारइ विचित्तदेसं नरिंदपत्तीण उभयघणनेहं । मंगलकुडीए छोढुं रक्खइ दारंमि ठाऊण ॥६५८८॥ वारइ विकहालावं तित्थयराईण कहइ चरियाई । जोयइ नयणवियारं उवविसिउं देइ न गवक्खे ॥६५८९।। इय एवमाइबहुविहपयत्तसयधुत्तलोयदुल्लंघे ।। अंतेउरंमि निवसइ भयजणणो रायपत्तीण ।।६५९०।। तत्थेव पहाण-भोयण-विलेवणा-हरण-वत्थ-मल्लेहिं । नरवरआएसेणं दासीओ करंति सुस्सूसं ॥६५९१।। अंतेउरम्मि बहुए संति अणेगाओ रायपत्तीओ । अच्चंतमणिट्ठाओ इट्ठयराओ वि रायस्स ॥६५९२॥ तो ताओ अणिट्ठाओ वरिससएहिं पि कह वि न लहंति । नरवइणा संजोयं मयणग्गिपरव्वसमणाओ ॥६५९३॥ इय तत्थ पुरिसदुहियाण तिव्वकामग्गिडज्झमाणाण । नत्थि कुरूव-सुरूवो त्ति ताण पुरिसं पइ विवेओ ॥६५९४॥ तो ताण तारिसीणं एगा अइलडहा जोव्वणुम्मत्ता । गुणराए अणुरत्ता नरिंदपत्ती विजयनामा ॥६५९५॥ सविसेसण्हाण-भोयणमाईहिं य तस्स कुणइ उवयारं । गुणराओ वि असंको पसायबुद्धीए मन्नेइ ॥६५९६।। तो तीए अन्नदियहे अपडुसरीरं ति मन्नमाणीए । गुणरायं पइ भणियं सगिहे निदं करिस्सामि ॥६५९७।। Page #611 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६०२ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ पडिवन्नं तेण तहिं इयराओ तत्थ मंगलकुडीए । रयणीए छोढूणं दारंमि परिट्ठिओ सययं ॥६५९८।। जसवद्धणो वि राया विसज्जियत्थाणपरियणो होउं । विहरइ पच्छन्नंगो अंतेउरमज्झयारंमि ॥६५९९।। जोयइ जुत्ताजुत्तं नियभज्जाणं च चेट्ठियं मुणइ । गुणरायं पि परिक्खइ गुण-दोसविभागमुणणत्थं ॥६६००।। तो सो कमेण राया समागओ विजयमंदिरं गुत्तो । पेच्छइ सेज्जाए ठियं मयणवियाराउलं विजयं ।।६६०१।। तो तत्थ चेव निहुओ थक्को जसवद्धणो अलक्खंगो । 'किं एसा इह सुत्ता न गया किं मंगलकुडीए' ॥६६०२।। एत्थंतरंमि तीए मयणपराहीणमणवियप्पाए । संपेसिऊण दासिं गुणराओ सद्दिओ सगिहे ॥६६०३।। तो सो नीसंकमणो अपडुसरीर त्ति मन्नमाणो य । काऊण दाररक्खं संपत्तो तीए गेहमि ॥६६०४।। जोक्कारिऊण दूरं उवविठ्ठो कयकरंजलीबंधो । पभणइ ‘देहाएसं आहूओ केण कज्जेण ?' ॥६६०५।। तो तीए तक्खणुप्पन्नमयणवियाराए दीहमूससिउं । आमोडिऊण अंगं पयंपियं कामविवसाए ॥६६०६॥ जं सुविणे वि न पेच्छइ गुणराओ जं मणे न चिंतेइ । तं तीए तया भणियं विसिठ्ठजणलज्जणीयं जं ॥६६०७।। तो तं तिस्सा वयणं अयंडगुरुवज्जवडणदुव्विसहं । सोऊण विसुद्धप्पा गुणराओ भणिउमाढत्तो ॥६६०८।। Page #612 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६०३ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ 'तुह देवि ! अत्थि विसमं किं पि सरीरस्स कारणं गरुयं । जेण पराहीणमणा झंखसि एवंविहाई पि ॥६६०९।। अंतोवियंभिउद्दामगरुयजरभरपरव्वसंगीए । तुह देवि ! अपयइत्थं उवट्ठियं किंपि दुसरूवं' ॥६६१०।। तो तीए पुण भणियं 'न किं पि झंखेमि किंतु पयइत्था । तुज्झाणुरायरत्ता संभोयमईए पत्थेमि' ।।६६११॥ भणियं गुणराएणं ‘हा ! हा ! मह देवि ! तुज्झ वयणेण । निसुएण वि गुरुदुक्खं अच्छउ दूरे अणुट्ठाणं ।।६६१२।। नियजीयसंसए वि हु न कुलीणो कुणइ दो अकज्जाइं । एक्कं परधणहरणं वीयं परनारिपरिभोयं ॥६६१३।। निम्मलविवेयनयणो जहत्थउवलद्धपुन्नपावंगो । कह तुच्छसुहनिमित्तं पडामि घोरंधनरएसु ? ||६६१४।। जह देवि ! दुगुंछणीए ममंमि तुह रायवासणा जाया । तह एयं पि दुकम्मं दुगुंछणीयं विसिट्ठाण ||६६१५।। दिन्नो गुरूहिं जो मह अणुव्वएसुं अभिग्गहो गरुओ । ताण कह देवि ! भंग करेमि सम्मं वियाणंतो ? ||६६१६।। कह वंचामि नरिंदं साहम्मियवच्छलंधवीससियं ? । कह जणणीओ भणिउं पच्छा भुंजामि तुब्भे वि ? ॥६६१७॥ कह देवि ! तुज्झ सुकुलुब्भवाए सुकुलीणरायपत्तीए । एवं जंपंतीए हा हा ! जीहा वि नो खलिया ?' ॥६६१८॥ इय एवमाइ सव्वं सोऊणं तस्स निठुरं वयणं । सा मलियमुहमयंका भणइ इमं जायवेलक्खा ॥६६१९।। Page #613 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६०४ सिरिभुयणसुंदरीकहा | 'रे ! धिट्ठ ! निठुर ! जह जह पत्थेमि तह तहा वंको । मह पडिकूलं जंपसि निव्विन्नो किं सजीएण ? ||६६२० || जइ नेच्छसि मह वयणं ता एहि कलयलं करेऊण । माराविस्सामि तुमं अकज्जकारि त्ति काऊण' ||६६२१|| भणइ पुणो गुणराओ मयस्स मारिज्जए किमिह देवि ! ? | पाणपरिच्चाएण वि अवस्स रक्खेमि नियसीलं' ॥ तो तीए (इ) पुणो भणियं न तुज्झ चुक्केमि दोन्नि दियहाई । आलोच्चिऊण चित्ते जं उचियं तं मह कहेसु' ||६६२२ ॥ तो गुणराओ तुरियं निग्गंतूणं च विजयगेहाओ । मंगलकुडीए पत्तो अच्छइ सोव्वेवचित्तो य ||६६२३ ।। एत्थंतरंमि राया तहाविहं वइयरं निएऊण । आरुट्ठो विजयाए गुणराए तह य परितुट्ठो ||६६२४ || तो नीहरिओ राया विजयगिहाओ समागओ तुरियं । जत्थऽच्छइ गुणराओ चिंतासंतत्तसव्वंगो ॥६६२५॥ उवविट्ठो तस्संते राया पुण जंपिउं समादत्तो । 'गुणराय ! किंनिमित्तं उव्विग्गो दीससे अज्ज ?” ॥६६२६।। काऊण पयपणामं भणइ 'न मे को वि देव ! उव्वेवो । संभवइ अप्पविसए सव्वत्थनिराकुलमणस्स ||६६२७|| तुह विसए पुण नरवर ! गरुयं उव्वेवकारणं अथ । एगासत्तो होउं अवहीरसि इयरदेवीओ ||६६२८|| पुरिसवसेणं नरवर ! सईओ असईओ हुंति नारीओ । पयईए पुण न कत्थ वि गुण-दोसा हुति एयाण ||६६२९ ॥ Page #614 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ ६०५ अलहंताओ पियसुहं अन्नं पुरिसंतरं अहिलसंति । एसो देव ! अणत्थो पुरिहरियव्वो पयत्तेण ॥६६३०।। निहणंति उभयलोगं दूसंति य ससुर-पिउकुलाइं च । कलुसंति तुम्ह चित्तं होति अणत्था इमे ताण ॥६६३१।। अब्भत्थिओ सि नरवर ! चरणंतलुलंतमत्थएण मए । अज्ज दिणे सव्वासु वि वारं देवीसु देज्जाहि' ।।६६३२।। तो भणइ नरवरिंदो 'किमयंडे चेव अज्ज उव्विग्गो ? | न कयाइ सिक्खवंतो अज्ज पुण कह णु सिक्खेसि ? ||६६३३ ।। ता किं दिटुं कीय वि वेगुन्नं अज्ज रायपत्तीए ? । मह कहसु कज्जगब्भं परमत्थं एत्थ गुणराय ! ||६६३४।। किं पुछिएण ? अहवा पच्चक्खं चेव अज्ज मह जायं । विजयाए किर तुहोवरि जं भणियं साम-दंडेहिं ।।६६३५।। . गुणराय ! तुज्झ सरिसो पुरिसो इह नत्थि सयलभुयणे वि । धम्मपरो पहुभत्तो अकज्जभीरू कुलीणो य' ।।६६३६।। तो गुणराओ पभणइ 'तुह पयसेवापहावओ देव ! । सव्वो मह गुणनिवहो किं न हुओ एस मह पुट्विं ? ।।६६३७।। जइ देव ! तए सव्वो विन्नाओ विजयवइयरो अज्ज । किं कायव्वं तिस्सा ? एण्हि मह कहसु परमत्थं ॥६६३८।। तो राइणा पभणियं ‘पायालंतरगहीरगत्ताए । नरयस्स अद्धमग्गे पयिद्रोहिं पेसइस्सामि' ॥६६३९।। तो जंपइ गुणराओ कन्ने पिहिऊण दोवि (दोहिं) हत्थेहिं । 'हा हा नरिंद ! एवं वोत्तुं पि न जुज्जए तुज्झ ॥६६४०।। १. पतिद्रोहिणी ।। Page #615 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६०६ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ निग्गहणिज्जे अप्पंमि देव ! कह तीए निग्गहं कुणसि ? । तुमए परिचत्ताए तिस्सा दोसो समुप्पण्णो ॥६६४१॥ ता इह परमत्थेणं दोसो तुह राय ! न उण विजयाए । मयणग्गिपलित्ताणं गरुयाण वि जंति बुद्धीओ ॥६६४२।। किं देव ! तए न सुयं पुराणसत्येसु बंभराएण । नियधूया उवभुत्ता मयणपरायत्तचित्तेण ॥६६४३।। अच्छंतु ताव अन्ने गोयमरिसिभारियाए सक्केण । जं विहियमहल्लाए लज्जिज्जइ तं भयंतेहिं ।।६६४४।। इय तत्थ देव ! एवंविहा वि नीसेसभुयणगरुया वि । होंति अणंगस्स वसे को दोसो तत्थ नारीसु ? ॥६६४५।। जह देव ! मिठ्ठभोई अलहंतो मिठ्ठभोयणं को वि । किं कुणइ बुभुक्खत्तो ? कुभोयणे कुणइ अहिलासं ॥६६४६।। तह देव ! रूव-लायन्न-लडह-सोहग्गसंगयं देवं । अलहंताओ न इच्छंति ताओ अम्हारिसं अहमं ? ||६६४७।। ता मह पसायबुद्धिं काऊण मणे अ(s)वलंबिय पहुत्तं । विजयाए एकदोसो खमियव्वो मज्झ वयणेण' ॥६६४८।। इय भणिऊणं पडिओ गुणराओ नरवरिंदपाएसु । तेणाऽवि कज्जसारं वियप्पियं तस्स तं वयणं ॥६६४९।। 'गुणराय ! तुज्झ वयणं पडिवन्नं तं तहा मए सव्वं । परमत्थपंडिएण व पयंपियं अवितहं तुमए' ॥६६५०॥ जसवद्धणो नरिंदो विजओवरि गलिअमच्छरामरिसो । परिभावियपरमत्थो दइओवरि जायकारुन्नो ॥६६५१॥ Page #616 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ गुणराएणं भणिओ विजयागेहं च तक्खणे पत्तो । अमुणियपुव्वसवो व्व तीए सह भुंजए भोए ।।६६५२ ॥ इय एवं पडिदियहं अन्नाओ वि जा अणिट्ठपत्तीओ । जसवणो कमेणं ताण वि निसिवासयं देइ ||६६५३ || एवं सो गुणराओ जिणधम्मपहावओ य पुन्नभरो । नरनाहमंतिपरियण- पोराणं वल्लहो जाओ ||६६५४ || अह अन्नदिणे राया अत्थाणे वहलगुंदलुद्दामे । जा अच्छइ उवविट्ठो नाडय-पेच्छणयआसत्तो ||६६५५ ।। ता नरवरिंदधूया गुणसिरिसुहगब्भसंभवा तत्थ । जयसुंदरी सुरूवा समागया तियसनारि व्व ||६६५६ || संपुन्नमियंकमुही नीलुप्पलप्प(प) त्तदीहतरलच्छी । चक्कुलियथूलथणहरपडिरुद्धउरत्थलाभोया ||६६५७॥ गंभीरनाहिदेसा वलित्तयालंकिया य तणुमज्झा | परिवियडनियंबयडा रंभोरू कुम्मचरणा य ||६६५८ || इय एवंविहमणहरसव्वंगावयवसुंदरं धूयं । दट्ठूण नरवरिंदो अह चिंतासायरे पडिओ || ६६५९|| 'कस्सेसा दायव्वा ? दाऊणं कह व सुत्थिओ होउं ? । दिन्ना वि कह णु होही नियगेहे सुत्थिया एसा ?' ||६६६० ॥ इय एवमाइ तग्गयचिंतासंतावदुहियहिययस्स । काऊण पयपणामं उवविट्ठा रायपासंमि ||६६६१ || तो तत्थ विविहवइयरविणोयस्य-नट्ट- गीयमाईहिं । खणमच्छिऊण राया उट्ठइ अत्थाणभूमीओ ||६६६२ ।। ६०७ Page #617 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६०८ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ जयसुंदरीए(इ) सहिओ वच्चइ तम्माउ-गुणसिरीगेहं । सेज्जाए सुहनिसन्नो नियधूयं भणिउमाढत्तो ॥६६६३।। 'कस्स पयच्छामि तुमं ? को वा तुह चित्तसंगओ राया ? । परिभाविऊण चित्ते मह साहसु पुत्ति ! वेगेण' ॥६६६४।। तो सा पिउवयणेणं लज्जावसअवणउत्तिमंगेणं ।। परिकड्डइ रेहाओ धरणीए सयं कररुहेहिं ॥६६६५॥ तो तं तहासरूवं लज्जाभरमंथरं निएऊण । नरनाहो पडिभणिओ धूयाकज्जे गुणसिरीए ॥६६६६।। 'अंतोहुत्तवियंभियविमलविवेयाओ जइ वि नरनाह ! । लज्जंति गुरूण पुरो तहा वि वोत्तुं कुलवहूओ ॥६६६७।। ता काऊण पसायं इमीए सव्वंगसुंदरीए (?) । किज्जउ सयंवरेण महापसाओ महाराय ! ॥६६६८।। तो नियपडिहासेणं सकीयमणवासणाणुसारेण । अप्परुईए सयत्थं सयंवरे वरउ वरमेसा' ॥६६६९।। तो नरवइणा सव्वं गुणसिरिवयणं 'तह'त्ति पडिवन्नं । कारावइ बहुनरवइसंमद्दसयंवरं राया ।।६६७०।। मिलिएसु रूव-जोव्वण-लावन्न-कलानिवासराएसु । सो कोइ नत्थि जो किर तिस्सा हिययं अवहरेइ ॥६६७१।। तो ते रायकुमारा जयसुंदरिमणपवेसमलहंता । नियनियठाणेसु गया जसवद्धणजणियआमरिसा ॥६६७२ ।। तो नरवइणा भणिया नियदइया गुणसिरी इमं वयणं । 'पेच्छ जयसुंदरीए विगोविओ रायमझंमि ॥६६७३।। Page #618 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ ४० लावन्न-रूव-जोव्वण-विलास - विन्नाण-गुणसमिद्धाण | कुमराण न सो जाओ जस्सेसा खिवइ वरमालं' ||६६७४॥ तो नरवइणा पुण पुण धूयानेहेण विविहकुमरेहिं । काराविया असंखा सयंवरा गुणसमिद्धेहिं ॥ ६६७५ ।। तह वि जयसुंदरीए न को वि चित्ते परिट्ठिओ कुमरो । कयबहुमणवेलक्खा नियनियठाणं गया ते वि ।।६६७६ ।। एत्थंतरंमि राया सिढिलियधूयासिणेहसब्भावो । मणजायरोसपसरं नियचित्ते चिंतिउं लग्गो ||६६७७ ।। 'जे के वि एत्थ महिमंडलंमि गरुया वि संति नरवइणो । ते सव्वे आणीया सयंवरे पावधूयत्थे || ६६७८|| एहि को किर होही जस्सेसा दिज्जिही महापावा ? | चिट्ठेति परं दासा पिंडारा तह य गोवाला || ६६७९ ।। तो नूण कुधूयाए इमीए मन्नामि मज्झ सीसंमि । घल्लेयव्वो छारो दुच्चरियाचरणकरणेण || ६६८०।। अहवा जं कायव्वं नियपुरिसायार- सत्त धर्णसज्यं । तं सव्वं पि हु विहियं धूयाचित्ताणुसारेण । । ६६८१ ।। एहि पुण जावऽज्ज वि जुवइवियारं पयासइ न एसा । ताव इमं पइ जत्तं अविलंबमहं करिस्सामि ||६६८२ ।। एयाए विविदुक्खं आणाभंगेहिं परिहवेहिं च । जह मज्झ कयं अहमवि इमीए तह तं करिस्सामि ||६६८३॥ धूयामिसेण एसा उवट्ठिया मज्झ का वि किच्च व् । सा वि पडिकूलिमाए हंतव्वा नाणुकूलेहिं' ||६६८४|| ६०९ Page #619 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६१० सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ तो अनदिणे एगंतवासभवणट्टिएण राएण । जणणिसमेया धूया वाहरिया अत्तणो पासे ।।६६८५।। भणिया बहुप्पयारं 'आचिक्खसु पुत्ति ! अम्ह नियचित्तं । कह तावंतनरिंदाण को वि तुह वल्लहो न हुओ ?' ||६६८६।। तो जणणि-जणयबहुविहपत्थणवयणोवरुद्धचित्ताए । जयसुंदरीए भावो जणणिमुहेणं तओ कहिओ ।।६६८७।। 'सो चेव मज्झ भत्ता रंको रोडो व्व होउ जो सो वि । जो अहिलसइ न अन्नं जुयई चित्ते वि जइ लिहियं ॥६६८८।। ते सव्वे वि सयंवरनरनाहा एत्थ आगया जे उ । विविहंतेउरकलिया बहुविहनारीपसत्ता य' ।।६६९९।। तो नरवइणा भणियं 'जइ एवं ता न कोइ इह भुयणे । होही हुओ व्व जो किर एकग्गमणो नियकलत्ते ॥६६९०।। एवंविहगुणजुत्तो गुणराओ चेव पुत्ति ! संभवइ । तस्स तुमं दायव्वा सुनिच्छियं एगचित्तस्स' ||६६९१।। तो रोसवसविसंठुलवयणपरिक्खलणगग्गयगिरेण । 'जा जाहि' त्ति सरोसं राएण विसज्जिया धूया ॥६६९२ ।। तो नरवइणा तुरियं गुणराओ सदिओ सकोवेण । ‘रे गुणराय ! पडिच्छसु परिणयणत्थं सुयं मज्झ ।।६६९३।। जइ किं पि भणसि अन्नं ता सविओ मह सरीरसवहेण । तुह चेव पुन्नपरिणइ पणामिया आगया एसा' ।।६६९४।। तो तं रायाएसं सरीरसवहं च तं अलंघतो । मोणव्वयं विहेउं उट्टइ नरनाहपासाओ !।६६९५।। Page #620 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ नरवइणा वि असेसं पउणं कारावियं विवाहत्थे । तो सुपसत्थे दियहे पसत्थतिहि-वार- लग्गंमि ||६६९६ || जाकिर हवणयकज्जे गुणरायं अन्निसंति ता सो वि । अकहंतो च्चिय नट्ठो पुव्वाभिमुहो य निहुयंगो ||६६९७ || तो नरवइणा तुरियं तुरयत्थे पेसिऊण नियपुरिसे । आणावइ परिणावइ सिरिं व जयसुंदरं देवं ।। ६६९८ ।। जयसुंदरीए भणियं 'पलासि किं ? किं व वहसि मणखेयं ? । ६११ तुह मज्झ वि संजोयं पत्ति य भवियव्वया कुणइ ||६६९९ ।। जं जह लिहियं विहिणा तं तह परिणव (म ) इ किं वियप्पेण ? इय भाविऊण धीरा विहुरे वि न कायरा हुति ||६७०० || चिंतामि अहं अन्नं तुमं पि अन्नं पि (वि) चिंसि मम । कज्जं पुण तं होही जं विहिणा चिंतियं एत्थ ||६७०१ | एहि निच्चिताई दोन्नि वि चिरसंच्चियस्स फलमतुलं । संपइ उवभुंजामो जहट्ठियं पुव्वकम्मस्स' ||६७०२ || इय एवमाइ विविहं गुणराओ सिक्खिओ तहा ताए । जह एगचित्तहियओ आएस्परायणो जाओ ||६७०३ || परमत्थवत्थुरूवं आलावं तीए भावगरुयं च । राया सोऊण तओ गयमच्छरमाणसो जाओ ||६७०४ ॥ तो भावइ परमत्थं 'धूयाए विहियपुव्वकम्मेण । मह वुद्धी संजणिया गुणरायपयाणकज्जंमि' ||६७०५|| तो पच्चागयचित्तो धूयानेहेण देइ गुणराए । अद्धं नियरज्जस्स य असेसनियमंडलस्स वि य ||६७०६ ।। Page #621 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६१२ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ तो तीए समं अणुवमभोए भुंजेइ तत्थ गुणराओ । संजाओ पुहईए सुपसिद्धो मंडलाहिवई ||६७०७ || एवं च तए तइया जयसुंदरिविसयसोक्खरत्तेण । पन्नासं वरिसाई गमियाई पहट्ठचित्तेण ||६७०८ || अह अन्नदिणे दोन्नि वि पासायगवक्खए बट्ठाण । जयसुंदरी वि देवी तुह केसे विवरए जाव ||६७०९ || ता कम्म- धम्मजोया तव्विहभव्वि (वि) यव्वयानिओएण । नियआउसमत्तीए दोहिं वि विज्जू सिरे पडिया ||६७१०|| तो मरिऊणं दोन्नि वि सीयानइउत्तरंमि कुलंमि । जंबूतरुपुव्वेणं मिहुणगभावेण जायाई ॥ ६७११ ।। तत्थ वि संपत्ताइं तारुन्नं सुरकुमारसारिच्छं । दसविहकप्पमहातरुसमुब्भवं भुंजह सुहं पि ।। ६७१२ ।। जायाइं ताइं दोन्नि वि तिगाउउच्चाइं देहमाणेण । पलिओ माई तिन्नि य आउपमाणं हवे ताण ||६७१३ | दसविहकप्पमहातरुअजत्तसंपज्जमाणसोक्खाण । वच्चति ताण दिया सुपुन्नपरिणामजोए ।। ६७१४ ।। मत्तंगकप्पतरुणो परिकप्पणमेत्तजायउवरोहा | विविहरसमज्जनिवहं ताण पयच्छंति पाणत्थं ||६७१५॥ तह भिर्गकप्पतरुणो मणचिंतियमेव ताण विरयति । अइकोमलसयणासणमाईयं सुकयपुन्नाण ||६७१६ ।। तुडियंगनामधेया सुहतरुणो दिंति ताण धन्ना । विविहाओज्जसमूहं नियहिययवियप्पमेत्तेण ||६७१७|| Page #622 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ दीवैसिहनामधेया जोईसनामा य दुविहकप्पदुमा । विरयं(वियरं?)ताणं ताणं उज्जोयं ते पयासंति ॥६७१८॥ चित्तंगा कप्पदुमा मणचिंतियमेव ते पयच्छंति । नाणाविहकुसुमुज्जलगुंफियमल्लोवयारोहं ॥६७१९॥ चित्तरसा उण वरकप्पसाहिणो भोयणाइं सुरसाइं । मणचिंतियमेत्ताई ताण विचित्ताई ढोयंति ॥६७२०।। मणियंगा उण तरुणो ताणं मणि-रयण-कणयघडियाइं । विविहाई भूसणाइं चिंतियमेत्ताइं पयडंति ।।६७२१।। जे भवर्णरुक्खनामा सुहतरुणो ते वि ताण विरयंति । विविहाई मंदिराई देवाण व वरविमाणाइं ॥६७२२ ।। आकिन्नकप्पतरुणो ताण पयच्छंति कप्पियं चेव । देवंगदूसस(सु)कुमारवत्थनिवहं मिहुणयाण ॥६७२३।। इय दसविहकप्पडेमसंपाइयहिययवंछियत्थाण । वच्चइ सुहेण ताणं कालो अन्नोन्नरत्ताण ।।६७२४।। ईसा-विसाय-मय-कोह-माण-मायाहिं तह य लोहेण । परपरिभव-परपेसण-पेसुन्नपरव्वसत्तेण ॥६७२५।। अन्नोन्नसिरिविरोहत्तणेण एमाइ दूसिओ सग्गो । जियसुरलोयं सोक्खं जुयलाहम्मे मिहुणयाण ॥६७२६।। निययाउयक्खएणं मरिऊणं ताइं दो वि जुगवं पि । सोहम्मदेवलोए चंदाणणवरविमाणंमि ।।६७२७।। तिन्नि-पल्लाउयाइं उप्पन्नाई खणेण तत्थ चिय । अणुवमसुरलोयसुहं भुंजंति पहिट्ठहिययाइं ।।६७२८।। Page #623 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ अन्नोन्नपरमनेहाणुरायरसियाण ताण सुरलोए । निमिसद्धं व गयाइं तिन्नि वि पलियाई दोहिं पि ।।६७२९।। चविऊण तुमं सिरिवीरसेण ! एत्थेव जंबुद्दीवंमि । दाहिणभरहे मज्झिमखंडे उज्जेणिनयरीए ।।६७३०।। आसि जसदेवनामो नियधणसिरिविजियधणयधणनिवहो । नीसेसनयरपमुहो सेट्ठी सुविसिट्ठकुल जाई ।।६७३१।। तस्साऽऽसी पियभज्जा जसदेवी नाम विमलकुलजाया । पंचप्पयारविसए सह भुंजइ तीए सो सेट्ठी ।।६७३२।। गुणरायजीवदेवो चविऊणं तत्थ सेट्ठिभज्जाए । उव[व]न्नो कुच्छीए बहुपुन्नालंकियसरीरो ।।६७३३ ।। सा पच्छिमंमि जामे पेच्छइ सुविणयं सुहपसुत्ता । किरि पुन्निमामयंकं संकंतं तीए उयरंमि ।।६७३४।। तो सा सुविणयदसणसंभमसंजायतरलतारच्छी । जसदेवसिट्ठिणो कहइ सो वि आणंदइ सुएण ।।६७३५।। एवं तीए अणुदियहअतुलवडंतपुनगदभाए । इय जाओ डोहलओ अभयपयाणं पयच्छामि ।।६७३६।। जसदेवसिट्टिणा वि य सविसेसुप्पन्नपरमहरिसेण । गुणचंदं रायाणं विन्नविय करावियं सव्वं ।।६७३७।। तो तिस्सा पडिपुन्नेसु नवमासेसु सुहमुहुत्तंमि । परमसुहेण पसूया सलक्खणं उत्तमं पुत्तं ।।६७३८।। तो सिट्ठिणा सहरिसं कारावियमसमदिन्नधणनिवहं । नच्चंतलडहविलयं वद्धावणयं मणभिरामं ।।६७३९।। Page #624 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६१५ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ तो अभयदाणदोहल-सुविणयससिदसणेण य जहत्थं । अभयचंदो त्ति नामं पइट्ठियं अइगए मासे ॥६७४०।। वड्ढइ वढंतुज्जलपुन्नेहिं समं व सुहसरीरेण । पत्तो कुमारभावं विमलकलागहणसुसमत्थं ।।६७४१।। पइदियहन्नोन्नकलागहणपवढ्तकंतिवित्थारो । सियपक्खससहरो इव जाओ संपुन्नसव्वंगो ॥६७४२।। पत्तो जोव्वणभावं नीसेसकलाकलावनिम्माओ । मेहा-पन्ना-धी-धारणाजुओ अभयचंदजुवा ।।६७४३ ।। चाओ पसंसरहिओ परक्कमो खंतिसंजुओ जस्स । नाणे मोणं परनारिवज्जियं जस्स सोहग्गं ।।६७४४।। एवं असारसंसारसायरो तेण अभयचंदेण । सारत्तणं पवत्तो अहिलसणीउत्तमगुणेण ॥६७४५।। इय तस्स सयलतिहुयणअच्छेरयभूयरूवविहवस्स । वच्चंति सुहं दियहा असेसजणपेच्छणीयस्स ।।६७४६।। अह अन्नदिणे मित्तेहिं परिगओ जाइ बाहिरुज्जाणे । कीलत्थमभयचंदो कीलइ य विचित्तकीलाहिं ।।६७४७।। अह तत्थ चेव पुट्विं समागया कीलिउं सहिसमेया । गुणचंदरायधूया उज्जाणे जयसिरीकन्ना ।।६७४८।। सो तीए कह वि बहुवल्लिगहणअंतरियविग्गहो दिट्ठो । मयणो व्व मयणविवसाए साणुरायं अभयचंदो ।।६७४९।। तो तं तदेक्कहिययं तदेक्कनयणं च जयसिरिं दटुं । किं कि त्ति सहियणो वि हु अवलोयइ कोउहल्लेण ॥६७५०।। Page #625 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ जह जह पेच्छइ तस्संगचंगिमं जह वियड्डसिंगारं । अइमणहरं च कीलं वियक्खणं वयणविन्नासं ॥६७५१।। सा जयसिरी वि तह तह दूरयरपवड्डमाणअणुराया । मूढ व्व थंभिया इव संजाया खीलियंगि व्व ॥६७५२।। तो सा सहीहिं भणिया 'किं देवो कोइ सावपभ(ब्भ)ट्ठो ? । विज्जाहरो व्व एसो विज्जाभट्ठो इहं पडिओ ?' ॥६७५३।। तं रायसुया सोउं ‘मा कह वि वियक्खणाओ एयाओ । मुणिह(हिं)ति ममं' ति तओ करेइ आयारसंवरणं ॥६७५४।। 'कुसुमरयदूसियाई पेच्छ हले ! मह गलंति अच्छीणि । सिसिरानिलेण पेच्छइ सरीरमुव्वहइ उद्धोसं' ।।६७५५ ।। इय जा सहीण पुरओ सा एवं भणइ अभयचंदेण । ता सा वि कह वि दिट्ठा दुमंतरालेण सप्पणयं ।।६७५६।। अह सो वि तह च्चिय साणुरायचित्तो असेसमित्तेहिं । सच्चविओ सभएहिं सगिहं च छलेण आणीओ ॥६७५७।। तो ताण वयंसाणं मज्झे केणाऽवि चवलचित्तेण । जयसिरि-सेट्ठिसुयाणं सरूवमावेइयं पिउणो ।।६७५८।। तेणाऽवि अभयचंदो एगते सदिऊण सिक्खविओ । सप्पणयं साणुणयं सगौरवं सबहुमाणं च ।।६७५९।। 'पुरिसेण सया पुत्तय ! सजाइसमचेट्टिएण होयव्वं । सकुलट्टिइं चयंतो इहपरलोए य होइ दुही ॥६७६०।। वणियाण पुण विसेसेण पुत्त ! एवंविहो समायारो । इह जाण जोव्वणे वि हु वुड्डाण व होइ आयरणं ॥६७६१।। Page #626 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६१७ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ विहवे वि दरिदत्तं दासत्तं तिजयपहुत्ते वि । रूवं पि सिक्खवंति व अप्पकुरूवत्तबुद्धीए ॥६७६२।। सकलत्तेण वि जोगो जाण अकज्जं व होइ रयणीए । वेसो वि जाण पिसुणइ पसंतयं सव्वभावेसु ।।६७६३।। अन्नं च पुत्त ! वणिओ गम्मो सव्वस्स होइ पयईए । गुडपिंडओ व्व दिट्ठो सद्धं उप्पायइ जणस्स ।।६७६४।। जइ पुण रायविरुद्धं करेज्ज सो पुत्त ! केण वि नएण । छिदेण तेण पुत्तय ! होइ पवेसो खलयणस्स ।।६७६५।। एगं रायविरुद्धं कुल-जाइविलक्खणं भवे बीयं । तइयं च परकलत्तं इयमाई होंति इह दोसा ||६७६६।। निद्दोसे वि हु दोसं ठवंति जे पुत्त ! दुज्जणा होति । दोसंमि पुणो लद्धे ताण घरे उच्छवो होइ ॥६७६७।। अत्थखओ खलतोसो अजसो परपरिभवो अधम्मो य । सुयणाण अत्तणो वि य मणदुक्खं दुकयकम्मेहिं' ।।६७६८।। तो भणइ अभयचंदो ‘आयासिज्जइ किमेत्तियं अप्पा ? । नाऽहं ताय ! तहाविहकम्माणं कारओ होमि ।।६७६९।। जेण जणे लज्जिज्जइ तुम्हाण वि अजससंभवो होइ । तं पाणसंसए वि हु नाऽहमकज्जं करिस्सामि' ।।६७७०।। तो ‘साहु साहु पुत्तय !' एवं भणिऊण चुंबिओ सीसे । 'किं तुज्झ पुत्त ! भन्नइ पयइविणीयस्स सोमस्स ?' ॥६७७१॥ तो जाइ अभयचंदो सेज्जाहरयं विसज्जियवयंसो । तत्थुव्वेविरच्चि(चि)त्तो अट्टदुहट्टाइं चिंतेइ ॥६७७२।। Page #627 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६१८ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ ' कह मह विसए जाया अलीयसंभवाणा (संभावणा) मह गुरुण ? | ता अज्ज वि अच्छिज्जइ जाव निओ सुव्वए अजसो ||६७७३॥ संभाविउज्जलगुणो जा पुरिसो होइ ताव सुहमतुलं । संभावियदोसस्स य विएसगमणं व मरणं व ||६७७४ || ता सव्वा वि एयं संतमसंतं च अजसपब्भारं । सोउं असमत्थेणं न अच्छियव्वं मए एत्थ' ।। ६७७५ ।। इय रयणिचरिमजामे अकहंतो चेव मित्तमाईण । दोखंडवत्थनिवसणपावरणो निग्गओ तुरियं ।।६७७६।। जाए पहायसमए जा तं न नियंति जणणि-जणयाई । ता तव्विओयहुअवहपुलुदेहा विलवंति ||६७७७ ।। 'हा ! कत्थ गओ सिरिअभयचंद ! चंदो व्व कुसुमसंडाई | संमीलिऊण अम्हे सोयमहातमनिमग्गाई || ६७७८ || देहेण परं पुत्तय ! सिरीसकुसुमं व होसि सुकुमारो । मुणिओ ववहरणेण उ हियएणं वज्जकढिणो सि' ||६७७९ ।। इय एवमाइबहुविहपलाव - मुच्छासहस्सदुहियाइं । उज्जेणि पि हु दुहियं कुणंति नीसेसजणसहियं ||६७८० || तो जणपरंपराए मुणियं गुणचंदराइणा सव्वं । सो वि हु तदुक्ख ( तद्दुह ? ) दुहिओ नाओ अंतेउरेणाऽवि ||६७८१ ।। अंतेउरंमि सोउं तग्गमणं जयसिरी ससंभंता । मुच्छानिम्मी (मी) लियच्छी 'धस' त्ति धरणीयले पडिया || ६७८२ ।। कह कह वि महाकट्टेण सीयलसिरिखंडसिसिरपवणेण । आसासिया सहीहिं खणंतरे मुच्छइ पुणो वि ||६७८३ || Page #628 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ तो सा सहीहिं कहमवि अणेयदिटुंत-हेउ-जुत्तीहिं । साहारिया ‘पउत्तिं तस्स कहिस्सामि तुह अइरा' ।।६७८४।। इय ताहिं जयसिरीए चित्तथिरीकरणकारणत्तेण । जं किं पि जंपिऊणं सकोमलं सिक्खिया बहुयं ।।६७८५।। तो जयसिरीए भणियं 'सिक्खवह किमेवमेव निक(क)ज्जं ? । सो वा मह पियदइओ अग्गी वा संगमहिलसइ' ।।६७८६।। एसो विनिच्छओ से निसुओ गुणचंदराइणा कह वि । धूयादुहेण दुहिओ सव्वत्तो तं गवेसेइ ।।६७८७।। एवं च ताव एयं इओ य सो निग्गओ अभयचंदो । तुरियगई संपत्तो उत्तरकूलं समुदस्स ।।६७८८।। तीरंमि नीरनिहिणो नयरं सिरिवद्धणं ति सुपसिद्धं । संजत्तियवणियाणं कुणइ जहत्थं नियं नामं ।।६७८९ ।। सो नियसुरूवदसणसुहेण नीसेसनयरलोयाण । अच्छरियं जणयंतो पविसइ तो विपणिमग्गेसु ।।६७९०।। अइगुरुच्छु(छु)हा-पिवासाकिलंतदेहो य कुल्लुरीयाण । हट्टे गंतूण तओ कारावइ भोयणं विविहं ॥६७९१।। कयदेव-गुरुपणामो भोत्तुं उवविसइ गेहमज्झमि । ता तत्थ विहरमाणो समागओ मुणिवरो एगो ।।६७९२।। विविहतवसुसियदेहो परिचत्तो राग-दोस-मोहेहिं । पसमामयमयरहरो पंचेंदियमल्लनिद्दलणो ।।६७९३।। मासोपवासपारणयकारणा भिक्खमन्निसंतो सो । उग्गम तह उप्पायण एसणदोसेहिं परिसुद्धं ॥६७९४।। १. कंदोई ।। Page #629 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६२० सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ गोमुत्तियाकमेणं समागओ कुल्लुरीयगेहमि । खत्तियगोत्तुप्पन्नो अरिदमणो नाम रायरिसी ॥६७९५।। तो तं महामुणिंदं अदीणचित्तं अणंतगुणगरुयं । दठूण अभयचंदो सहसा रोमंचिओ जाओ ।।६७९६।। चिंतइ 'असारसंसारसायरे विविहदुक्खपउरंमि । सकयत्थं अप्पाणं मन्नामि सुपत्तलाहेण ॥६७९७।। नवकोडीपरिसुद्धं दायव्वं तं पि मज्झ संपन्नं । चित्तं पि मज्झ संपइ दाणाभिमुहं पवढंतं' ॥६७९८।। इय नाणाविहसुपसत्थभावणाजायसुद्धपरिणामो । उच्चल्लिऊण थालं देइ मुणिंदस्स नीसेसं ॥६७९९।। परिभाविऊण मुणिणा 'सुज्झइ एयं' ति जायचित्तेण । 'मा होउ दायगस्स वि विसुद्धपुन्नंतरायं'ति ॥६८००।। गहियं पडिग्गहे तं पणमइ दाऊण अभयचंदो वि । मुणिचरणकमलधूलि(ली)धूसरियसिरो सुभत्तीए ॥६८०१।। सकयत्थं मन्नंतो अप्पाणं वहइ चित्तपरितोसं । साहू वि पडिनियत्तो अह जायं तत्थ अच्छरियं ॥६८०२।। गयणे पवज्जियाओ गहिरं सुरदुंदुहीओ सहस त्ति । पडिया दसद्धवन्नाण सुरकुसुमाण वुट्ठी वि ॥६८०३।। तयणंतरं च निवडइ मणीण रयणाण कंचणस्सावि । बुट्ठी पहिट्ठसुरवरकरमुक्का पत्तदाणेण ।।६८०४।। . त सो हिरन्न-मणि-रयणवरिसमसमं च संवरेऊण । दारिद्ददुहियदुत्थियजणाण साहारणं कुणइ ।।६८०५।। Page #630 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६२१ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ तो सो नियपुन्नेहिं व परियरिओ विविहपरियणजणेण । - ववहरइ गरुयववहारविजियसंजत्तियसमूहो ।।६८०६।। बहुदियहेहिं नरिंदो गुणचंदो जाणिऊण तस्सुद्धिं । अभयचंदस्स पेसइ पहाणपुरिसं विवाहत्थं ।।६८०७।। भणिओ बहुप्पयारं नरिंदपुरिसेण सेट्ठिपुरिसेण । तह वि न वंछइ गमणं अहिमाणपरो अभयचंदो ॥६८०८।। दाऊण उत्तरं किं पि ताण पेसेइ राय-सेट्टिनरे । तेसु परिपेसिएसुं करावए जाणवत्ताई ।।६८०९।। संगहियविविहभंडो संजत्तियसयलउवगरणजाओ । बहुपरियणपरियरिओ पसत्थतिहि-वार-लग्गमि ।।६८१०।। आरुहइ जाणवत्ते पूर्य काऊण पूयणिज्जाण । कयकायव्वो चलिओ कडाहदीवं पहिट्ठमणो ||६८११।। अणुकूलपवणपेल्लियपवहणदुल्लंघलंघियसमुद्दो । पत्तो कडाहदीवं उत्तरिओ परियणाइन्नो ।।६८१२।। उत्तारइ नीसेसं भंडुवगरणाइवत्थुवित्थारं । नरवइदंसणपुव्वं तयट्ठिओ कुणइ ववहारं ||६८१३।। तो सो कडाहदीवे अपत्तमणवंछियत्थसंपत्ती । अच्छइ सोव्वेवमणो चिंताजलहिमि निवु(ब्बु)ड्डो ।।६८१४।। तो तं तहासरूवं चिंतावसवत्तिणं निएऊण । घरचिंतएण भणिओ वयणमिणं सोमएवेण ।।६८१५।। 'किं नाह ! कायरो इव चिंतसि एमेव विहियमणखेओ । ववसाओ च्चिय वीराण होइ एगो नियसहावो ।।६८१६।। Page #631 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६२२ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ दारिद्दमहोयहिणो पारं पावंति नाह! सप्पुरिसा । ववसायपवहणेणं सुदेवनिज्जामयजुएण ||६८१७ || ता तह तह काहामो ववसायं धीरबुद्धिसंजुत्ता । दासि व्व सिरी जह जह तुरियं वसवत्तिणी होही ||६८१८ ॥ इह अज्ज चेव पत्तं पवहणमेगं अणंतरयणोहं । रयणसिहाओ महायस ! दीवाओ आगयं गरुयं' ||६८१९|| तो भइ अभयचंदो 'जइ एवं एह तत्थ वच्चा तव्वइयरं असेसं पुच्छामो नोरियाईया' ।।६८२०।। दिट्टं च तेहिं वहणं बहुकिरणनिबद्धसुरयणु (ण ? ) सहस्सं । तेयंसिणो व्व जेउं पारद्धरणं व ससि-सूरे ।।६८२१ ।। दिट्ठा य तेण वणिया पुट्ठा रयणसिहवइयरमसेसं । 'उवलद्धधरणिपडिया दीवे लब्भंति रयणाई ||६८२२ | तं उव्वसं च दीवं जणरहियं विविहकुरसत्तं च । रयणीए पच्छिमद्धे तहियं घेप्पंति रयणाई ||६८२३ || पाविज्जइ तं दीवं बारहमासेहिं दक्खिणदिसाओ । गम्मइ पुव्वसमुद्दस्स जेण तं परतरं तीरं' ||६८२४|| तो भइ अभयचंदो ' संजत्तह पवहणाई बहुयाई । रयणसिहमहादीवं गंतव्वमवस्स वेगेण ||६८२५|| अह पउणीकयपवहणजलमाइ असेसउवगरणजाओ । सप्परिवारो चडिओ पयट्टिए पवहणे तुरियं ||६८२६ || संवत्सरेण पत्तो खड्डादारंमि तस्स दीवस्स । उत्तारइ नीसेसं परिवारं अग्गओ ताव || ६८२७ ।। Page #632 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ ६२३ पुण अप्पणा वि उत्तरइ जाव थोवंतरं च किर जाइ । ता रविकिरणकरालियरयणमऊहोहमसहंतं ।।६८२८।। अभिमुहमभिधावंतं पेच्छइ नियपरियणं अभयचंदो । पुच्छइ ‘किं किमेयं धावह रे ! ? किं भयं तुम्ह ?' ||६८२९।। तो ते भणंति ‘सांविय(सामिय)! नत्थि भयं किं पि किं तु रयणाण । रविकरकरालियाणं संतावं सोढुमसमत्था ।।६८३०।। नाह ! इह च्चिय चे(चि)ठ्ठह पुरओ मा जाह पलयकाले व्व । उइयबहुदिणयराण व रयणाणं दूसहो तेओ' ।।६८३१ ।। तो भणइ अभयचंदो ‘सच्चमिणं पुव्वमेव मह कहियं । रयणीए पच्छिमन्द्रे उच्चिणियव्वाइं रयणाई' ।।६८३२।। पुण भणइ अभयचंदो ‘अणुकूलो जइ विही मह हवेज्ज । तो मह गोत्ते वि फुडं दारिद्ददुहं न संभविही ।।६८३३।। अह ते सव्वे वि नरा झुलुकिया रयणकिरणजालाहिं । मज्जति जलहिसलिले पहुसहिया पवहणे ठंति ।।६८३४।। तो अइगयंमि दिवसे पढमढे जामिणीए वोलीणे । उत्तरइ अभयचंदो सपरियणो भमइ दीवंमि ।।६८३५।। पावाररयणकिरणोहनिहयतिमिरकयसुहालोए । दिवसे व्व पयडमुहुमयरकीडिया-कुंथुसंचारे ।।६८३६।। पफु(फु)डियकुमुयसंडे निम्मलमणिकिरणपयडियपयत्थे । जाणिज्जइ जत्थ निसा संमीलियकमलसंडेहिं ।।६८३७।। दीसंति जत्थ तरला दीवसिहासंकिणो पयंगोहा । पासेसु परिभमंता निवि(वि)ग्धं वियडरयणाण ।।६८३८।। Page #633 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६२४ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ परमजोइस्स जोणी अलंघदुग्गं च तेयरासिस्स । सुरपासायदलाणं एसा खाणि व्व वरदीवं ।।६८३९।। दट्ठूण अभयचंदो दीवसिहं विविहवइयराइन्नं । संजयविम्हयरसो करेइ नाणाविहवियप्पे ||६८४०|| 'दट्ठूण दीवमेयं केणाऽवि सुवियक्खणेण पुरिसेण । उप्पाइओ पवाओ बहुरयणा जं धरित्ति त्ति ||६८४१ ।। रयणोहपूरिएहिं वहणसहस्सेहिं जलहिफुट्टेहिं । रयणायत्ति नामं संजायं तेण जलहिस्स' ||६८४२॥ एवं सो अणुदियहं रयणपरिक्खाखमेहिं पुरिसेहिं । अच्चब्भुयरयणाई उच्चिणावेइ विविहाई || ६८४३ || भरियाई जाणवत्ताइं तेण रयणाण बहुप्पयाराण । कारावइ सामगिंग नियदेसाभिमुहगमणत्थं ||६८४४|| तो जत्थ किर निसाए पूरेयव्वाइं सव्ववहणाई । तत्थेव खेत्तदेवयपूयत्थं सो समुत्तर || ६८४५ ।। तत्थेसो किर कप्पो एगागी नायगो कउववासो । उत्तरइ न उण अन्नो पायं पि ठवेइ तीरंमि ||६८४६ || अह जाव अभयचंदो वच्चइ थोवंतरं पुरो ताव । संपूइयखेत्तवई आइन्न सकरुणयं स ||६८४७|| शेवंतीए की वि जुवईए परमदुक्खदुहियाए । करुणपलावेहिं मणं दूमंतीए व्व कुमरस्स ||६८४८।। ' हा नाह! हा गुणायर ! हा सूहव ! हा रसन्न ! हा वीर ! । सुविणंतरं व दाउ न याणिओं कत्थ वि गओ सि ||६८४९|| Page #634 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ अवहीरिया तएऽहं आणीया एत्थ दुज्जणजणेहिं । ता नाह! कुण पसायं दंससु दीणाए अप्पाणं ।।६८५०।। जइ वि तुमं निन्नेहो तह वि तुमं चेव मज्झ इह सरणं । दूरंतरिए सूरे अवस्स संमीलए नलिणी' ॥६८५१।। इय एवमाइ विविहं कीय वि नारीए विलवियं सोउं । तेणाऽऽकरिसियहियओ परदुहदुहिओ गओ पुरओ ।।६८५२।। जा जाइ ताव पेच्छइ धवलहरं सत्तभूमियं धवलं । तिस्सा करुणपलावेहिं कलुसियप्पा पुरो चडिओ ॥६८५३।। तो सत्तमभूमीठियसेज्जाहररइयवियडपल्लंके । दिट्ठा सा वत्थंचलपच्छाइयवयणतामरसा ॥६८५४।। तो भणइ अभयचंदो ‘काऽसि तुमं ? कत्थ संतिया एत्थ ? । एगागिणी केणत्थं रोवसि ? मह कहसु सव्वं पि' ।।६८५५।। सा वि मणे इय चिंतइ ‘कहेत्थ मणुयाण संभवो होही ? | ता को एसो रक्खो ? भूओ वा अह पिसाओ वा ? ||६८५६।। ता होइ सुंदरं चिय जइ एसो खाइ मं महापावं' ।। इय चिंतिऊण जंपइ ‘रे रक्खस! भक्ख वेएण' ।।६८५७।। तो भणइ अभयचंदो ‘नाऽहं भूओ न रक्खस-पिसाओ । मणुओ म्हि वणिइजाई उज्जेणीकयनिवासो य ।।६८५८।। सिरिवद्धणाओ पढम कडाहदीवं समागओ तत्तो । इह रयणसिहे बहुवहणसंजुओ आगओ एण्हि' ।।६८५९।। उज्जेणिकयनिवासो त्ति वयणामयं सुहारसमयं व । सोऊण सा वि फेडइ मुहाओ वत्थंचलं सहसा ॥६८६०॥ ૪૧ Page #635 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६२६ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ पेच्छइ अच्छेरयभूयरूव-लावन्न-जोव्वणारंभं ।। सहस त्ति अभयचंद विहसंतमुही कुमुइणि व्व ॥६८६१।। तेण वि सा सच्चविया निज्जियसुरलोयरूवरमणीया । आणंदबाहजलभरियनयणसंजायपुलएण ॥६८६२।। ‘स च्चिय एसा गुणचंदराइणो जयसिरि त्ति जा धूया । इह कह वि देव्यपरिणामजोगओ आगया होही ॥६८६३।। अहवा-वि न तीए सजीवियाओ अइवल्लहाए रायस्स । होही कहेत्थ आगमणसंभवो दूरदीवंमि ।।६८६४।। अहवा किं बहुएहिं वि निच्छयरहिएहिं मणवियप्पेहिं ? । एसा पुच्छिज्जंती संदेहं मज्झ अवणेही' ।।६८६५।। तो भणइ अभयचंदो ‘मा भाहि जहत्थमेव मह कहसु' । तो जयसिरीए भणियं 'अहं पि उज्जेणिवत्थव्वा' ।।६८६६।। 'सो चेय इमो अन्नो व्व कोइ तस्साणुसरिससुसरीरो' । इय हरिस-विसायसमाउलाए मोणं पुणो विहियं ।।६८६७।। 'लज्जिज्जइ तस्स पुरो अवलंबियधिट्टिमेहिं भणिउं पि । पुरिसंतरेण उ समं जंपति न कुलपसूयाओ' ॥६८६८।। इयमाइबहुयमणउल्लसंतसंदिट्ठमणवियप्पाए । उभयपक्खेहिं तीए संवरिओ वयणविन्नासो ।।६८६९।। तो भणइ अभयचंदो 'अम्ह वहणाइं अज्ज रयणीए । वच्चिस्संति किसोयरि! ता चलसु नयामि उज्जेणिं' ।।६८७०।। पुण भणइ अभयचंदो ‘गुणचंदसुया न जयसिरी होसि ?' । सा भणइ ‘अत्थि एवं' पुण जंपइ अभयचंदो वि ।।६८७१।। Page #636 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६२७ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ ‘ता कह न जाणसि ममं पुत्तं जसदेवसेट्ठिणो देवि! । नामेण अभयचंदं इहागयं वणिजबुद्धीए ?' ||६८७२।। तो अन्नोन्नोलक्खणसंजायविणिच्छयाण दोहिं(ग्रह)पि । ना(आ)णंदविम्हयकया चित्तवियारा समप्पंति ।।६८७३।। तो भणइ अभयचंदो 'एत्थाऽऽगमणं कहं तुह कहेसु ?' | सा भणइ 'गिहसुत्ता केण वि खयरेण अवहरिया ।।६८७४।। इह आणिऊण मुक्का विज्जासामत्थरइयभवणेण । सो अप्पणा उण गओ विवाहसामग्गियं काउं ।।६८७५।। जइ कह वि सो इहेही पावो विज्जाहरो परमरोद्दो । ता मज्झ तुज्झ वि फुडं अवयरिही नत्थि संदेहो ॥६८७६।। मह नाह! पयापूरणमेत्ताए होउ किं पि जं होइ । तुह उण तिहुयणदुलहस्स होउ मा विग्घलेसो वि' ॥६८७७|| तो भणइ अभयचंदो 'जं जह होही तहेव तं काहं । एम्हि चेव पयाणं काहामो चलसु वेगेण' ॥६८७८।। घेत्तूण अभयचंदो जयसिरिदेवि सिरिं व पच्चक्खं । आरोहइ बोहित्थं तल्लाभुल्लसियआणंदो ॥६८७९।। अह एगं कम्मयरं निययाउपरिक्खएण तत्थ मयं । नेउं धवलहरंते गुरुकट्ठचियाए पक्खित्तं ।।६८८०।। मा कह वि कूरकम्मो विग्धं काहि त्ति खयरभीएण । अभयचंदेण एसो बुद्धिपवंचो कओ तस्स ॥६८८१।। तो पूरियाई जुगवं असेसवहणाई तेण तुरियाई । अणुकूलमारुएणं पत्ताई कडाहदीवंमि ||६८८२ ।। Page #637 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६२८ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ तत्तो वि पुण कमेणं सिरिवद्धणपट्टणं च संपत्तो । तत्थागएण दिवो जणओ नियपरियणसमेओ ॥६८८३।। उत्तरइ अभयचंदो कुणइ पणामं पिउस्स पणयसिरो । पिउणा वि समवऊढो हरिसगलंतंसुनयणेण ॥६८८४।। अन्नोन्नं कुसलोदंतपुच्छणेणं कुणंति आणंदं । अन्नोन्नदसणेणं परिओसो ताण संजाओ ॥६८८५।। तो भणइ अभयचंदो 'कुसलं गुणचंदराइणो ताय!' । सेट्ठी भणइ ‘नरिंदो जयसिरिदुक्खेण अइदुहिओ' ।।६८८६।। तो कहइ अभयचंदो नीसेसं जयसिरीए वुत्तंतं । संजायमहाणंदो सेट्ठी हिययंमि परितुट्ठो ||६८८७।। उत्तारिऊण तीरे करेइ रासीओ पव्वयसमाओ । रयणाण अभयचंदो पिउणो मणविम्हयकराओ ।।६८८८।। तं सव्वं घेत्तूणं जयसिरिदेविं च अभयचंदं च । जसदेवो नियनयरं उच्चलिओ गरुयसत्थेण ।।६८८९।। अणवरयपयाणयसयविलंघियासेसपुहइवित्थारो । पत्ता उज्जेणिपुरि सव्वे वि अविग्घखलियेण ।।६८९०।। तो विन्नायसरूवो गुणचंदो एइ अभयचंदस्स । पच्चोणिं पुरपरियणपरियरिओ सेन्नसंपन्नो ।।६८९१ ।। महया संमद्देणं परमविभूईए परमनेहेण । पइसारइ सेट्ठिसुयं सलहिज्जंतं पुरिजणेण ।।६८९२।। तो सेट्टि-अभयचंदे नियगेहं नेइ नरवई हिट्ठो । उचियपडिवत्तिपुव्वं समप्पए जयसिरिं धूयं ।।६८९३।। Page #638 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ ६२९ पुण भणइ अभयचंदं 'कुमार! मा अन्नहा वियप्पेहि । तुह पुन्नपरिणईए संघडिया न उण अम्हेहिं ।।६८९४।। नियपिउसिक्खविओ किर एयं चइऊण अइगओ दूरं । ता तत्थ चेव पत्ता जत्थं तुमं नियइ वसवत्ती ॥६८९५।। नासंतस्स वि दूरं नरस्स धावंति पिट्ठओ दोन्नि । अप्पडिहयपसराइं सुहासुहाई चिरकयाइं ॥६८९६।। तुम्हारिसाण का किर कुल-जाइवियारणा सुपुन्नाण । रासीसु संकमंतो मेसाइसु दिणयरो पुज्जो' ॥६८९७।। इय एवमाइ संबोहिऊण सुपसत्थदिवसलग्गमि । अइगरुयविभूईए कारावइ ताण वीवाहं ।।६८९८।। वित्ते पाणिग्गहणे नीसेसजणस्स जणियअच्छरिए । निव्वत्तिएसु समुचिय-आयारेसुं च सव्वेसु ॥६८९९।। तो तत्थ अभयचंदो जयसिरिदेवीए अणुवमे भोए । सह भुजंतो अच्छइ देवो इव देवलोयंमि ।।६९००।। एवं च जंति दियहा वच्चइ कालो सुहेण दोहिं(ण्ह) पि । उप्पन्नो कयपुन्नो जयसिरिदेवीए सुहपुत्तो ।।६९०१।। तो जाइ अभयचंदो अन्नदिणे बाहिरंमि उज्जाणे । तस्संतरालमग्गे मयजुयइकडेवरं नियइ ॥६९०२।। अवलोइऊण सो तं उव्वेवयरं सहावबीभच्छं । जुयइसवं संविग्गो सरूवपरिभावणं कुणइ ।।६९०३।। 'पेच्छह इमीए जे किर रागानलदीवणा पुरावयवा । ते च्चिय विरायमेहि जणंति मूढाण वि नराण ||६९०४।। Page #639 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६३० सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ ओसूणसरीरत्तणपरिपोसियअवयवा कहेइ व्व । एयसरूवस्स य जोव्वणस्स नणु वासणा भिन्ना ।।६९०५।। सभयं समोयडता इमीए सुणया वरं ससंकमणा । अवहीरियनरयभया नीसंका न उण कापुरिसा ॥६९०६।। जस्स कए एयाए वि कयाई देहस्स विविहपावाइं । सो एत्थ लुलइ सा उण अन्नत्थ सुहासुहगईए ।।६९०७।।। देहस्स कए जीवो करेइ नाणाविहाई पावाइं । सो पुण पयइअसारो परिणइविरसो व्व एसो व्व ।।६९०८।। न कुणंति सुया न कुणंति बंधवा न य कलत्त-मित्ताइं । विहडंतस्स खणेणं परिताणं हयसरीरस्स ॥६९०९।। एएण सरीरेणं विहवेण य पयइविहडणपरेण । धम्मविणिओयणेणं दोहिं(ण्ह)वि साफल्लयं कुज्जा' ।।६९१०।। इय एवमभयचंदो चिंतंतो जाइ बाहिरुज्जाणे । पेच्छइ फासुयवसुहापरिट्ठियं मुणिवरं एगं ॥६९११ ।। तस्संते सोऊणं धम्मं तित्थयरभासियं परमं । पव्वइओ चइऊणं पुत्त-कलत्ताइ नीसेसं ।।६९१२ ।। तो सो दुक्करतवचरणखीणदेहो विरायसंपत्तो । उप्पन्नो मरिऊणं ईसाणे सुरवरो पवरो ॥६९१३।। जयसिरिदेवी वि तओ दइयविओएण जायसंवेगा । संतागणणिसमीवे पव्वइया कुणइ तवचरणं ।।६९१४।। सा वि तहा मरिऊणं ईसाणे चेव तुह वरविमाणे । संजाया पुण भज्जा चिरभवनेहाणुबंधेण ।।६९१५।। Page #640 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ तो सुरलोए दोन्नि वि नियआउं भुंजिऊण अणुकमसो । चइऊण जंबुदीवे इहेव भरहे अओज्झाए ।।६९१६।। सीहरहो नामेणं राया तत्थासि विजियपडिवक्खो । तस्सासि पिया भज्जा तेलोकुसिरि त्ति नामेण ||६९१७।। ताण अन्नोन्नपवड्डियघणपेम्मपरव्वसाण दोहिं(दोण्ह)पि । विसयसुहासत्ताणं वच्चंति जहासुहं दियहा ।।६९१८।। तो अभयचंददेवो ईसाणाओ चुओ य उववन्नो । तेलोकूसिरीगब्भे सुहसुविणयसूइओ धन्नो ।।६९१९।। निसि पच्छिमंमि जामे पेच्छइ सा सुमिणयं जहा इंदो । नियहत्थेण . समप्पइ तेलोकूसिरीए फलमेगं ।।६९२०।। सा तक्खणे पवुद्धा साहइ दइयस्स सो वि वज्जरइ । 'सक्केण देवि! दिन्नो को वि सुरो तुह सुओ होही' ।।६९२१।। तो सा पसत्थदियहे पसत्थसुहलक्खणेहिं संजुत्तं । पुन्निमनिसि व्व चंदं संपुन्नं पसविया पुत्तं ।।६९२२।। तो सीहरहो राया वद्धावणयं करावइ पहिट्ठो । बहुदास-दासि-पुरजण-परियणपरिवड्डियाणंदं ।।६९२३ ।। तो अइगयंमि मासे सीहरहो विहियदेव-गुरुपूओ । पुत्तस्स कुणइ नामं पयडत्थं इंददत्तो त्ति ।।६९२४।। पइदिणपयपाणपरंपराहिं तह कह वि वड्डिओ जह सो । कप्पडुमो व्व जाओ जणस्स मणवंछियप्फलओ ।।६९२५।। अहिगयकलाकलावो विन्नायासेससत्थपरिवारो । विन्नाणगुणनिहाणं पत्तो सो जोव्वणारंभं ॥६९२६।। Page #641 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६३२ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ रूवेण लोयनयणे सुपरिट्ठियभासिएण सवणे वि । सो हरइ वियड्डाण वि हिययाइं गुणेहिं गरुएहिं ॥६९२७।। तं किं पि तस्स जायं माहप्पं सयलतिहुयणब्भहियं । जं वाल-मुक्ख-पंडिय-जुयइजणाणं पि मणहरणं ।।६९२८।। इय जम्मंतरकयसुकयपुनसंपाइयाइं भुंजंतो । सोक्खाइं इंददत्तो गयं पि कालं न याणेइ ।।६९२९।। सो सव्वत्थ पसिद्धो सवक्ख-पडिवक्खरायभूमीसु । सल्लइ पडिवक्खाणं तिरिच्छसल्लं व हियएसु ।।६९३०।। तह मित्तमंडलस्स य पडिहयरिउमेहडंवरावरणो । सरओ व्व इंददत्तो गरुयं परिवड्डइ पयावं ।।६९३१ ।। अह अन्नदिणे अत्थाणमंडवत्थस्स सीहरायस्स । उवविट्ठमि य पुरओ इंददत्तंमि पियपुत्ते ।६९३२ ।। अन्नसु वि मंतिमहंतएसु सामंत-मंडलीएसु । कयसवंजलिबंधेसु रायपासोवविढेसु ।।६९३३।। एत्थंतरंमि दूओ समागओ गौडदेसरायस्स । नीससमहीवइणो महिंदपालस्स दारंमि ।।६९३४।। पडिहारसमाइट्ठो रायाणुमईए तत्थ संपत्तो । कयरायपयपणामो उवविठ्ठो भणिउमाढत्तो ||६९३५।। 'तुह देव! पयावइणो व्व जायवहुगुणपयाहिरावस्स । मन्त्र हुयं न होही कुमारसरिसं पयारयणं ।।६९३६।। गयणं व तुमं पि नरिंद! होसि तेयंसियाण आवासो । किं तु न सूरसमाणो हयन्नतेओ त्थि तेयस्सी ।।६९३७।। Page #642 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ ६३३ किं वन्निज्जइ रयणायरस्स इह ? किं तु तस्स वि न जायं । पुरिसोत्तिमहिययत्थं व कोत्थुहाओ परं रयणं ।। ६९३८ || ता देव ! पलविएणं किं बहुणा एत्थ कज्जरहिएण ? | एएण सुएण तुमं सकयत्थो रिउअसज्झो य ।।६९३९ ।। ता देव! तुह सयासे महिंदपालेण पेसिओ अहयं । कज्जेण जेण तं पि य साहिज्जंतं निसामेहि ।।६९४०।। सयलंतेउरपमुहा विणयवई नाम भारिया तस्स । जीयं व परमइट्ठा महिंदपालस्स सुकुलीणा ||६९४१|| तीसे उयरुप्पन्ना महिंदलच्छित्ति कन्नया सगुणा । जिस्सा रूवं जायं उवमाणं देवलोयंमि ।।६९४२ ।। तीए कयाइ नरेसर ! इंददत्तस्स निम्मलगुणोहं । तद्देसागयबहुबंदिलोयवयणाउ किर निसुयं ।। ६९४३ || तो तद्दियहाओ च्चिय तग्गुणसवणेक्कबद्धचित्ता । मोत्तूण इंददत्तं न अन्नपुरिसो मणे ठाइ ।।६९४४ ।। चित्तंमि चित्तकम्मे कव्वपबंधंमि गुणिजणकहा अन्नेसु वि वावारेसु नायगो तीए तुह पुत्तो ॥ ६९४५ ॥ तो धूयामणभावं नाऊण सहीमुहेहिं विणयवई । । विन्नवइ महाराय इंददत्तस्स दाणत्थे ||६९४६ || नरवइणा वि य भणियं 'ठाणे च्चिय देवि ! तीए अणुराओ । आरुहउ कप्पलइया भुवण ( णु) वयारंमि कप्पदुमे' ||६९४७।। तो देव! अहं आलोच्चिऊण सहमंति- बुद्धिमंतेहिं । धूयादाणनिमित्तं नरवइणा पेसिओ एत्थ ।।६९४८।। Page #643 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६३४ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ संपइ तुमं पमाणं' भणिउं तुण्हिक्कओ ठिओ दूओ । सीहरहो वि य राया पुण एवं भणिउमाढत्तो ।।६९४९।। ‘इह दूय! सयं चिय संघडंति पुव्वज्जिएहिं सुकएहिं ।। भज्जा विज्जा अत्थो नेहो तह दोक्ख-सोक्खाइं ।।६९५०।। तो को न मन्नइ इमं महिंदपालेण जोणिसंबंघं ? । किं तु न पेसेमि सुयं स च्चेय सयंवरा एउ' ।।६९५१ ।। तो भणइ पुणो दूओ ‘मा धरसु मणमि पुव्ववयराइं । तुहपुत्तभउब्भंतं भुयणं निदा(द्दा)इ न सुहेण ।।६९५२।। जाव न उएइ सूरो जयंमि ता चेव पसरइ तमहो । न तमो न य तेयस्सी उम्मीलइ संभवे तस्स' ॥६९५३।। इय एवमाइ बहुविहनाणादिद्वंत-हेउ-जुत्तीहिं । संबोहिऊण रायं मन्नावइ सव्वकज्जाइं ॥६९५४।। तो सोहणंमि दिवसे बहुसेन्नसमूहपरिगयं काउं । पट्ठवइ इंददत्तं वीवाहत्थंमि रायगिहे ।।६९५५।। अणवरयपयाणेहिं रायगिहं पुरिवरं च संपत्तो । नीसेसं नियसेन्नं मोत्तूण सदेससीमाए ॥६९५६।। तो कइवयतुरियतुरंगमेहिं गुरुवेयविंदनिवहेहिं । सुहडेहिं रहवरेहिं य परियरिओ विसइ रायगिहं ।।६९५७।। सोऊण तयागमणं महिंदपालो वि सव्वरिद्धीए । कयनयरगुरुपमोओ पवेसइ परमसोहाए ।।६९५८।। सीहरहो उण राया सुयविरहविसेसदुब्बलसरीरो । तं चेव मणे झायइ तव्विसयकहाहिं य रमेइ ।।६९५९।। Page #644 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६३५ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ न य कोइ एइ तत्तो जो कुसलं कहइ इंददत्तस्स । सासंकमणो चिट्ठइ चिरवैरविहावणुत(त्त)त्थो ॥६९६०।। एवं जा सीहरहो अवसेरिं कुणइ इंददत्तस्स । ता अत्थाणे पत्तो सहसा लेहारिओ एगो ।।६९६१।। धूलीधूसरियंगो सीयायवदड्वथाणुसमदेहो । अइमलिणवसणधारी कक्खाकयलेहपोत्तो य ।।६९६२।। नामेण वाउमित्तो काऊण पणाममवणिनाहस्स । उवविसइ सायरेणं नरवइणा पुच्छिओं वत्तं ।।६९६३ ।। ‘रे वाउमित्त! साहसु कुसलं पुत्तस्स सपरिवारस्स । किं कज्जमाउरो विय(व) दीससि ? मह कहसु वेगेण' ।।६९६४।। तो भणइ वाउमित्तो 'कुसलं कुमरस्स सपरिवारस्स किं तु गौडाहिवेणं न सम्ममणुचिट्ठियं कुमरे ।।६९६५।। कुमरेण देव! पढमं सदेससीमाए ठावियं सेन्नं । परिमियपरिग्गहेणं रायगिह तयणु संपत्तो ।।६९६६।। तो तेण गौडराएण देव! जं किं पि होइ कायव्वं । तं नीसेसं विहियं उचियं सिरिइंददत्तस्स ।।६९६७।। तो सोहणंमि दियहे पसत्थतिहि-करण-वार-लग्गमि । वीवाहो वि य विहिओ महिंदसिरि-इंददत्ताण ||६९६८।। कयमुचियं कायव्वं अणुट्ठिया जाइ-कुलसमायारा । वीवाहत्थं आया सामंताई य पट्टविया ।।६९६९।। अह अन्नदिणे राया एगते सयलमंतिवग्गेहिं । विन्नतो(त्तो) 'देवेसो इंददत्तो महासत्तू ।।६९७०॥ Page #645 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६३६ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ भूवलयपरक्कमजुओ ववसाई गरुयनिग्गयपयावो । एगसीमो य नरवर! उवेक्षणीओ न सो होइ ।।६९७१।। ता देव! एत्थ एसो तुम्ह सुसज्झो न अन्नदेसंमि । इय भाविऊण चित्ते जं उचियं तं समायरह ।।६९७२।। एएण पुण अवस्सं तुम्हे उम्मूलिऊण अचिरेण । एगच्छत्ता धरणी भोत्तव्वा विक्कमड्डेण' ।।६९७३।। जंपइ महिंदपालो 'न एयमुचियं कुलप्पसूयाण । अन्नो वि वइरिओ नणु होइ अवज्झो घरे आओ ॥६९७४।। एसो पुण आहूओ दूअं संपेसिऊण जामाऊ । वीससिओ गुणगरुओ अदिट्ठवंकत्तणो सुयणो ।।६९७५ ।। ता नणु अदिट्ठदोसो अप्पयडियदुट्ठमणवियारंमि । कह कीरइ अवयारो इमंमि रे मंतिणो ! एण्हि ?' ।।६९७६।। तो भणइ सुमइनामो मंती 'नरनाह! सुणसु मह वयणं । रज्जं हि नाम विसमं दुप्परियण्णं कुबुद्धीण ।।६९७७॥ वेसाण जोव्वणं पिव अहिलसणीयं न कस्स किर रज्जं । बहुसप्पमंदिरं पिव सभयावासं भवे एयं ।।६९७८।। सकलत्तं पिव एवं अइविविहपयत्तरक्खणीयं च । होइ अविस्ससणीयं वेरीयणसंगयं च इमं ।।६९७९।। वस्सिदिएहिं एयं भुंजेयव्वं सओवउत्तेहिं । मारइ अप्पाणं चिय रज्जं अजिन्नं व विवरीयं ।।६९८०।। इह अप्प-परविभागो जईण राईण होइ न कयाइ । कज्जावेक्खाए जओ अप्प-परत्तं नरिंदाण ।।६९८१।। Page #646 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ कायव्वं दोजन्नं अप्पंमि वि जाव किं न परलोए ? । छिंदतो जियइ चिरं अहिदटुं चिय सरीरं पि ॥६९८२।। सोजन्नं पि हु मारइ नरिंद! विहियं अदेसकालंमि । संभाविज्जइ निययं अप्पा वि हु सन्निवायहओ ॥६९८३।। मारिही पमुहमहुरं परिणामविवायदारुणसहावं । दूरे परिहरियव्वं किंपागफलं रिउकुलं च' ||६९८४।। इय एवमाइदिटुंत-हेउ-नय-जुत्ति-नीइसारेहिं । वयणेहिं नरवरिंदो पबोहिओ सुमइनामेण ।६९८५।। एवं च तेहिं कुमरस्स घायणत्थं निगूढभावेहिं । परिचिंतिया विचित्ता कूरोवाया किलिटेहिं ।।६९८६।। तो देव! महिंदसिरीए अत्थि नामेण मयणमंजूसा । बीयं व जीवियं सा पसायठाणं पिया दासी ।।६९८७।। सो तीए सुमइनामो मंती भविष्याव्वयानिओएण । दढमासन्नो(त्तो) अणुरायनिब्भरो कहइ नीसेसं ।।६९८८।। जं जह जइया होही जं जत्थ दिगंमि होइ कायव्वं । तं तह सुमई साहइ मयणसंजूसनामाए ।।६९८९।। सा वि असेसं नरवर ! महिंदलच्छीए कहइ तकहियं । सा वि पइचलणभत्ता साहइ सिरिइंददत्तस्स ।।६९९०।। कुमरो वि इंददत्तो विन्नायासेसदुट्ठववहरणो । पयईए दक्खचित्तो न छलिज्जइ कह वि वेरीही(हिं) ॥६९९१ ।। तो कहइ महिंदसिरी ‘अज्ज तुमं देव! वाहरिज्जिहसि । बहिरुज्जाणपरिट्ठियगुरुमंडवमज्झयारंमि ॥६९९२।। Page #647 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६३८ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ तायस्स वामभागे तुज्झ निमित्तं च आसणं ठवियं । तस्स अहो उण रइया जलंतखइरानला खाई' ||६९९३ ॥ तं सोऊण कुमारो अलक्खािय]ओ य सहिओ बाहिं । उज्जाणे संपत्तो पुव्व (बु) वविट्ठे नरिंदंमि ॥६९९४॥ तो आगयंमि कुमरे महिंदपालो भणेइ 'उवविसह' । तो छीयं सोऊणं परिहरइ तमासणं कुमरो ||६९९५ ।। सो दियहो वोलीणो अन्नदिणे विरइयं पुणो कवडं । दस घायगा निउत्ता ते वि निसिद्धा कुमारेण ।।६९९६ ।। अह अन्नदिणे भीया कुमरस्स निवेयए महिंदसिरी । 'अन्नो कओ उवाओ तुह घायत्थं अपडियारं ।।६९९७ ॥ पिय! पंचमंमि दिवहे ताओ वच्चिहइ बाहियालीए । विवरीयसिक्खतुरयं दासी तुह वाहणनिमित्तं ।। ६९९८ ।। तेण तुमं अवहरिओ खिप्पिहसि अरन्नमज्झयारंमि । तत्थ वि नीसेसं चिय नियसेनं राइणा ठवियं ।।६९९९॥ पडिओ सि ताण मज्झे तेहिं समं तुज्झ उत्थरेऊण । तं कायव्वं जं किर ताणं चिय मत्थए पडिही ||७०००|| ता एयं नाऊणं जं उचियं होइ तं सयं कुणसु' । तो भइ इंददत्तो 'उवट्ठिओ सुंदरी मंतो' ||७००१ || तो तक्खणेण कुमरो सीमासंधीए निययदेसस्स । पच्चइयआसवारे किंचि कहेऊण पेसेइ ॥ ७००२॥ तो तंमि दिणे कुमरो आहूओ आसवाहणिनिमित्तं । हियययिनियमंतो बाहियालिं गओ तुरियं ॥ ७००३ || Page #648 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा | नियपरियणं निरूवइ 'देविं घेत्तूण जाह तुब्भे वि । जत्थच्छइ रिउसेन्नं सवियक्का सावहाणा य' ॥७००४|| वाह महिंदपालो तुरए नाणाविहे कुमारो वि । तह देव ! जच्च वोल्लाह- तुरग कंबोय-बल्हीए || ७००५ || तो विवरीयं तुरयं कुमारचडणाय आणियं तत्थ । तं दट्ठूण कुमारो आरुहइ गरुयवेएण ||७००६ ।। सो तेण विविहभांवरिकमेण तुरओ पवाहिओ बहुयं । दाउ कसप्पहारं पुण मुको वेयबुद्धीए ॥७००७ || तुरण हीरमाणो पेच्छइ कुमरो वि उभयपासेसु । पच्छाहुत्तं वसुहं पधावमाणं च वेयवसा ॥ ७००८ || तो जा दिणस्स पच्छिमपहरद्धे जाइ रन्नमज्झमि । ता कुमरबलेण हयं महिंदपालस्स गुरुसेन्नं ॥ ७००९ || उद्दालियमत्तगयं निल्लूडियतुरय-रहसमुग्धायं । दोखंडियसुहडजणं अणंतरोयंतनारिजणं ॥७०१०।। तो तं तहासरूवं पेच्छंतो रिउबलं हयपयावं । नियसेन्नसमूहेणं कुमरो पडिगाहिओ तुरियं ॥ ७०११ || इयरो वि य परिवारो महिंदसिरिसंजुओ असेसो वि । निवि (व्वि) ग्घं संपत्तो इंददत्तस्स पासंमि ॥७०१२ | तो असमत्थं लोयं पेसइ नियदेससम्मुहं कुमरो । विग्गहबुद्धीए सयं रायगिहं वेढइ बलेहिं ॥७०१३ || हयविप्पहयं काउं दुग्गं सो भंजिऊण ससुरं पि । घेत्तूण करे पच्छा मं पेसइ तुम्ह पासंमि ॥७०१४ ॥ ६३९ Page #649 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६४० सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ तो तव्वयणायन्नण-दूरसमुल्लसियपहरिसो राया । अहिणंदइ नियपुत्तं परोक्खगुणवायगहणेण ।।७०१५।। तो राया पडिपेसइ तुरियं आलोचिऊण मंतीहिं । 'तुह दंसणउक्ट्ठाए पुत्त! पज्जाउलो अहयं' ॥७०१६।। इयमाइ जंपिऊणं वाउमित्तं पुणो वि पट्ठ)वइ । अणवरयपयाणेहिं सो वि गओ कुमरपासंमि ॥७०१७।। तो पिउणो आएसं सोऊणं अकयचित्तसंकप्पो । ठविऊण गौडदेसे नियसेणानायगं भीमं ।।७०१८।। अणुसंद्धिऊण देसं पडिकूलजणं च तत्थ फेडेइ । हंतूण कुल्लवग्गं समागओ जणयपासंमि ॥७०१९।। तो नरवइणा पुत्तागमंमि संजायगुरुपमोएण । काराविओ महंतो महोच्छवोऽओज्झनयरीए ॥७०२०।। पणमइ पणमंतमहिंदलच्छिसहिओ पिउस्स पयकमलं । पिउणा वि सुहासीसाहिं दो वि अभिणंदियाइं च ।।७०२१।। कयसयलोच्चियकज्जो परिओसियपउरपरियणजणो य । संपूइयगुरु-देवो निकं(कं)टियमहियलाभोओ ।।७०२२।। पसरंतन्नोन्नघणाणुरायसंघडियनिबिडनेहाण । लोयाण सलहणिज्जं विसयसुहं ताई भुंजंति ॥७०२३।। अदिट्ठविप्पियदुहं अनायईसा-विसायदोसं च । अकयपडिकूलभावं निव्वूढं ताण थिरपिम्मं ।।७०२४।। समजाइ-कुलं समगुणगणं च समनेह-समसुह-दुहं च । समरूव-जोव(व्व)णं पि य मिहुणं पुन्नेहिं संघडइ ॥७०२५।। १. असमर्थजनवर्ग, खंता. टि. (?) ।। Page #650 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६४१ परिभुयणसुंदरीकहा ॥ ते सुहमय व्व अहवा अणुरायमय व्व अमयघडिय व्व । वनंति ताण दियहा महिंदसिरि-इंददत्ताण ।।७०२६।। अह अन्नदिणे कुमरो गवक्खए जाव अच्छइ निसन्नो । ता भिक्खाए पविट्ठ पेच्छइ मुणिजुगलयं एयं ॥७०२७।। पुरओ निविद्वदिहिँ पयपयएक्कग्गखित्तमण-नयणं । मलमलिणसव्वगत्तं किडिकिडिजंतट्ठिसंघायं ।।७०२८।। अइनिव्वियारदसणपयडमुणिज्जंतउवसमसरूवं । उवसमसरूवपिसुणियनिव्विसयकसायभावं च ॥७०२९।। अकसायभावसाहियखम-मद्दव-अज्जवाइसब्भावं । सब्भावणापयासियअणिच्चयामाइभवभावं ।।७०३०।। भवभावणाविहावियसंसारसरूवपरमवेरग्गं । वेर विसवियंभियसमहियसंवेगसुविसुद्धं ॥७०३१।। सुविसुद्धनाण-दसणचारित्तपवित्तसंतसुहमुत्तिं । सुहमुत्तिदंसणेण वि असेसजणनिहयपावोहं ।।७०३२।। तं दद्रूण कुमारो अंतोपवियंभमाणसुहभावो । उल्लसियहरिसपसरो मुणिजुयलं सलहइ मणमि ।।७०३३।। 'धन्ना एए मुणिणो असारसंसारसुहविरत्ता जे । मोक्खेकबद्धचित्ता तवेण तोलंति अप्पाणं ।।७०३४।। एयाण कयत्थाणं कम्मक्खयकयसहावभावेण । देहमि जीवियांमे य धलमिज्जम्मंम्मि(?) बहुमाणो ।।७०३५।। गुणवुड्डिपयट्टाणं दूरं परिहरियदोसहेऊण । ठाहेंति केचि किर दोसा एयाण गरुया वि ।।७०३६।। Page #651 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६४२ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ खीणत्तं पि हु सोहइ अंतोनिक्कलुसयाए साहुस्स । न उण पयासियकलुसं संपुन्नंगं ससिस्सेव' ।।७०३७।। इय एवमाइ मुणिगयगरुयगुणभावणाए सुद्धप्पा । जा अच्छइ ता सहसा पेच्छइ लोयं समुच्चलियं ।।७०३८।। सविसेसकयविभूसं बहुविहपूओवगरणहत्थं च । तग्गुणकहाणुलग्गं पमोयसंजायपुलयं च ।।७०३९।। दठूण इंददत्तो लोयं नयरीओ बाहिरुच्चलियं । पुच्छइ नियपडिहारं 'कत्थेसो चल्लिओ लोओ ?' ||७०४०।। भणियं पडिहारेणं ‘देवेसो पत्थिओ जणो बाहिं । रविचंदसूरिपासे वंदणभत्तीए तस्सेय' ।।७०४१।। तो भणइ इंददत्तो ‘जइ एवं ता पयट्टह तुरंता । अम्हे वि तत्थ जामो मुणिंदपयवंदणं काउं' ।।७०४२।। तो सो कलत्त-पिउ-माय-बंधुपरिवारसंजुओ चलिओ । रविचंदचरणवंदणबुद्धीए विसुद्धपरिणामो ||७०४३॥ पत्तो गुरुस्स पासं पणमइ भत्तीए जायरोमंचो । गुरुणा वि धम्मलाहं दाऊण अणुसासिओ विहिणा ||७०४४।। तो पारन्द्रा गुरुणा जलहरगंभीरधीरसद्देण । सोउं सम्मुज्जयाए असेसपरिसाए धम्मकहा ।।७०४५।। 'जीवाण भवसमुद्दे परिभमंताण कम्मवसगाण । नीसेसं चिय दुक्खं सोक्खं पुण वासणाजणियं ।।७०४६।। सो वि य चउप्पयारो संसारो होइ गइविभेएण । नरय तिरियं च नर-सुरगईओ पुण होति चत्तारि ||७०४७।। Page #652 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६४३ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ महु-मज्ज-मंसनिरया करमणा बहुपरिग्गहारंभा । पाणिवहमि पसत्ता परधण-परनारिलुद्धा य ।।७०४८॥ इयमाइ दोसकलिया जीवा कंदुज्जएण मग्गेण । वच्चंति महानरए भीसणबहुपउरदुक्खंमि ।।७०४९।। जं जेण पुव्वजम्मे नीसंकमणेण सेवियं पावं । तं सो बहुप्पयारं नेरइओ सहइ नरयंमि ।।७०५०॥ तत्थ य छिंदण-भिंदण-उक्त्तण-कुंभिपाय-करवत्ते । असिपत्तवणपवेसं वेयरणीतरणमाईयं ॥७०५१।। 'तुह इट्ठयरं मंसं' इय भणिउं तस्स नरयवालेहिं । तम्मंसमेव छुब्भइ मुहंमि विरसं रसंतस्स ।।७०५२।। 'रे पाव! तुज्झ पुट्विं मज्जरसो वल्लहो तओ एम्हि । तव्वण्णं पिय सुबहु उक्कढियं तत्ततंबरसं' ।।७०५३।। 'पाणिवहफलं भुंजसु' इय भणिउं तेहिं असुरपुरिसेहिं । दससु वि दिसासु खिप्पइ खंडाखंडीकरेऊण ।।७०५४।। 'पेसुन्नं जंपतो तस्सेयं फलमुवट्ठियं पाव !' । इय कड्डिज्जइ, असुरेहिं तस्स जीहा रसंतस्स ।।७०५५।। 'परदव्वमवहरंतो' त्ति गरुयबहुढिंककंककाएहिं । तस्स दिढचंचुसंपुडघाएहिं विलुप्पए अंग ।।७०५६।। 'परनारिमहिलसंतो' त्ति तेहिं असुरेहिं लोहमयनारिं । पजलंतजलणभीमं अवगृहाविज्जइ रुयंतो ॥७०५७।। इयमाइ पावजीवा निसुयं चिय जणइ जं मणुव्वेवं । तं बहुसागरदीहं नरयगईए सहति दुहं ॥७०५८।। Page #653 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६४४ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ उम्मग्गदेसणरया गूढमणो(णा) माइणो ससल्ला य । इयमाइनिमित्तेहिं जीवा पाविंति तिरियगयिं ॥७०५९।। आरोवियबहुभारो न तरइ गंतुं पयं पि खरगोणो । कुट्टिज्जंतो उट्टो विरडइ अइनिग्घिणनरेहिं ॥७०६०।। ओसूणखंधवणनीहरंतरुहिरो सहेइ बलिवद्दो । जुत्तो सगडे दुक्खं आरपहारेहिं हम्मंतो ।।७०६१।। तण्हा-छुहाकिलंता दुब्बलदेहा य रोगिणो तिरिया । सीउण्हझडिकिलंता सहति विविहाइं दुक्खाई ।।७०६२।। पयईए तणुकसाया दाणपरा सील-संजमविहीणा । मज्झत्थगुणा जीवा मणुयगयिं भद्दया जंति ।।७०६३।। वस-मंस-रुहिर-फोफस-अमेज्झ-बहुमुत्तगब्भवसहिमि । वसिऊण नरयतुल्ले मंसपिंड व्व जायंति ।।७०६४।। बहुमुत्तासुइमज्झे रमंति धूलीए धूसरसरीरा । पत्ता जोव्वणभावं कामुम(म्म)त्ता परियडंति ॥७०६५।। ईसा-विसाय-मच्छर-पेसुन्न-पराहवाइं दुक्खाइं । दारिद्दिट्टविओया अणिठ्ठजोगा य रोगा य ।।७०६६।। पावेंति विद्धभावे मणुया दुक्खं जराए जज्जरिया । वलिपलियदंतवडणं अंधत्तं बहिरभावं च ।।७०६७।। नियपरियणपरिभूया कलत्त-पुत्तायएहिं अवगणिया । अज्जंति अट्टरोद्देहिं बहुविहं पावपब्भारं ।।७०६८।। इयमाइ बहुप्पयारं जीवा मणुयत्तणे वि अइभीमं । पावंति महादुक्खं पुवज्जियपावसंभूयं ।।७०६९।। Page #654 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६४५ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ सम्मसणजुत्ता बालतवा अ(5)णुव्वयाइगुणकलिया । वच्चंति सुरगयिं ते अकामनिज्जरियकम्मा य ॥७०७०।। ईसा-विसाय-मच्छर-सुरपरिभव-पेसणापरायत्ता । देवत्तणे वि जीवा पावंति दुहाई विविहाइं ॥७०७१।। इट्ठविओयमहादुहहुयवहसंतावतावियसरीरा । कम्मायत्ता जीवा अणिट्ठजोवं पि पावंति ।।७०७२।। जं पुण चवणावसरे दुक्खं देवाण जायइ महंतं । तं नरयाओ वि अहियं सुरलोयविओयसंभूयं ।।७०७३॥ इय चउगइसंसारे न किं पि परमत्थओ सुहं अत्थि । नियवासणाए ताणं दुक्खं पि सुहं व पडिहाइ ।।७०७४।। जह जायनयणतिमिरा ससिबिंबदुगं नियंति एगं पि । तह मोहतिमिरमूढा संसारसुहं पवज्जंति ॥७०७५।। धुत्तीरयरसमूढा हेमं पिव पत्थरं पि मन्नंति । तह मोहमूढमइणो संसारसुहं सुहं बैंति ॥७०७६।। इह के वि मुणंता वि य असारसंसारविरसववहारं । काऊण गयनिमीलं विसयसुहे चेव रज्जंति ॥७०७७।। ते हरिणग व्व दीणा मच्चुं वाहं व अकयपडियारा । पेच्छंता वि समीवं निरुज्जमा पुण विणस्संति ॥७०७८।। ता लभ्रूण दुर्लभं मणुयत्तं धम्मकज्जकरणखमं । संसारुच्छेयकरे जिणधम्मे आया(य)रं कुणह' ||७०७९।। इय भगवया पभणियं सोउं पुण भणइ इंददत्तो वि । 'इच्छामो अणुसद्धिं सच्चमिणं भगवया भणियं ।।७०८०।। १. धत्तुर ।। Page #655 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६४६ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ भयवं ! तुह परमत्थं वयणं सोऊण अवितहसरूवं । एम्हि मज्झ वि जाओ असारसंसारनिव्वेओ ।।७०८१।। भवभावविरत्ताण वि न होइ मणवंछियत्थसंपत्ती । जाव न लब्भंति जए सुहगुरुणो तुम्ह सारिच्छा ।।७०८२ ।। ता मह भयवं ! जइ अत्थि जोग्गया अह पसायबुद्धी वि । दुक्खत्तयरं(?) ता देह मज्झ मुणिनाह! पव्वज्जं' ।।७०८३।। तो भणियं पुण गुरुणा 'जहासुहं मा करेह पडिबंधं । भुयणोवयारकरणे अम्हाण वि एस वावारो ।।७०८४।। तो इंददत्तकुमरो महिंदलच्छी य दो वि विहिपुव्वं । आपुच्छिऊण जणयं कयजिणहरपूयकम्माइं ।।७०८५।। तो सुपसत्थदियसे अज्झवसाएण सुज्झमाणेण । रविचंदगुरुसगासे पव(व्व)ज्जं अह पवजंति ।।७०८६॥ अब्भसियसाहुकिरिओ अहिगयनीसेससुत्तसारत्थो । विविहतवसुसियदेहो रागद्दोसेहिं प(पा)मुक्को ।।७०८७।। पंचमहव्वयधारी इरियासमियाइपंचसमिइजुओ । छव्विहजीवाण हिओ सत्तभयट्ठाणप(पा)मुक्को ॥७०८८।। अट्ठमयनिग्गहपरो अविकलनव-बंभगुत्तिसंजुत्तो । दसविहधम्मुज्ज(ज्जु)त्तो गुरुसहिओ विहरइ महीए ।।७०८९।। विविहतवसुसियदेहो नाणाभिग्गहविसेसतुलियप्पा । सुहभावणसुद्धप्पा अवसेसियदुद्रुकम्मंसो ।।७०९०।। काऊण सुचिरकालं अइदुक्करदुद्धरं तवच्चरणं । नाऊण आउसेसं सम्मं संलेहए अप्पं ।।७०९१।। Page #656 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६४७ सिारेभुयणसुंदरीकहा ॥ नियआउयक्खएणं अणसणविहिणा य सुद्धपरिणामो । पाओवगमणपुव्वं पाणच्चायं च सो कुणइ ।।७०९२।। कयपाणपरिच्चाओ मरिऊणं अच्चुयंमि सुरलोए । बावीससागराऊ महिंदलच्छीए सह जाओ ॥७०९३।। तत्थ वि भोत्तूण सुहं निरंतरं सागराई बावीसं । पज्जंते पुण जायाइं ताण किर चवणलिंगाइं ।।७०९४।। चइऊण अच्चुयाओ उप(प्प)नो एत्थ चंपनयरीए । सिरिसूरसेणपुत्तो सिंगारवईए गब्भंमि ।।७०९५।। एसा वि य चंदसिरी नासिकूपुरे विचित्तजसधूया । चंदप्पहपयपूयापसायओ विजयवईए वि ।।७०९६।। कोहंडिपसाएणं उप(प्प)न्ना राय ! तुम्ह कुलपंती । एत्तो उद्धं सयलं पच्चक्खं राय! तुह चरियं ॥७०९७॥ ता किर एयं भणिमो सत्तट्ठभवेसु जाइं भुत्ताइ । सोक्खाई देव-मणुयत्तणेसु अविओयसाराइं ।।७०९८।। एसा तुह चंदसिरी गुणरायभवाओ वीर! आरंभ(आरब्भ) । सत्तसु भवेसु भज्जा अच्चुयकप्पंमि मित्तो य ॥७०९९ ।। अन्नोन्नभवपवड्डियअहियाहियगुरुसिणेहसुहियाण । अहिययरो च्चिय वड्डइ मयणो वढंतनेहेण ॥७१००।। जह वीरसेण ! जलणो अहिययरं जलइ इंधणेहितो । इंधणहीणो सो च्चिय विज्झायइ कारणविहीणो ।।७१०१।। गयणाओ घणविमुक्कं अणेयसरियामुहाओ वसुहाए । जलहिमि जलं पविसइ न तिप्पए तह वि सो तेण ।।७१०२।। Page #657 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६४८ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ तह राय! एस मयणो सेविज्जंतो नरेहिं अणुसमयं । अहिययरो च्चिय वड्डइ अविवेयपवड्डिओच्छाहो ॥७१०३॥ धम्माणुट्ठाणं च्चिय होइ फलं वीर! वरविवेयस्स । जिणधम्मपहावेणं सव्वं चिय तुज्झ संपडिही ।।७१०४।। अच्छउ ता अन्नभवं तरेसु इह चेव तुज्झ जम्मंमि । गुणरायभावफलिओ जिणधम्मो सोक्खलाहेण ।।७१०५।। गुणरायपभिइबहुभवपरंपराउत्तरोत्तर-सुहाई । नर-सुरलोएसु तए भुत्ताई तहा वि न हु तित्ती ।।७१०६॥ । नेरइयाणं तिरिया सुहिया इह होंति ताण पुण मणुया । मणुयाहिंतो देवा तत्तो वि अणुत्तरसुरा वि ।।७१०७।। एएसिं सव्वाणं सिद्धी अच्चंतसोक्खसंपन्ना । जाण सुहस्स न उवमा संभवइ तिलोयमझे वि ।।७१०८।। ता तत्थ चेव सिरिवीरसेण! सव्वुत्तमंमि सिवसोक्खे । कायव्वो बुद्धिमया महायरो परमजत्तेण' ॥७१०९। तो भणइ वीरसेणो ‘एवमिणं न उण अन्नहा होइ । सव्वसुहाण पहाणं अणुट्ठियं मोक्खसुहमेव ॥७११०॥ इहरा वि मज्झ भुयणेक्कनाह! हियये इमं सया वसइ । तुम्होवएसओ पुण कायव्वमईए परिगहियं ।।७१११।। किं तु मणागं मुणिवर! विनवणीयं महऽत्थि तुह पुरओ । तत्थ वि उचियाणुचियं भगवंतो चेव जाणंति ।।७११२॥ किर पवयणे वि सुव्वइ दुप्पडियाराई माउ-पियराइं । एयाहिंतो वि पुणो दुप्पडियारो गुरू होइ ॥७११३।। Page #658 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ ६४९ ता भयवं! मह सरिसो पुत्तो मा होज्ज को वि संसारे । जो दुक्खकारणं चिय उप्पन्नो जणणि-जणयाण ||७११४।। सूरसुओ वि हु मंदो तं पीडइ जत्थ निवसइ खणं पि । कहिओ च्चिय जाणिज्जइ सणिच्छरो वीरसेणो य ।।७११५।। ताव च्चिय वड्डइ वंससंतई महिहराण निरवाया । जाव न मज्झ समाई जायंति जए दुबीयाई ||७११६।। जायंमि जेहिं जायइ नियकुलवुड्डी जयंमि जसकित्ती । जणणि-जणयाण तोसो ते पुत्ता न उण मह सरिसा ||७११७।। सल्लइ न तहा भयवं! मह पिउणो नट्ठसमरसल्लोहो । जह वैरिपरिभवो मह दुपुत्तविरहो य अच्चत्थं ।।७११८।। अहिमाणमहोयहिणो मह पिउणो चक्कवट्टिरज्जं पि । न सुहायइ माणब्भंसजायबहुदुक्खभारस्स ।।७११९।। तो ताई कह वि जइ एत्थ एंति ता ताण मज्झ वि पमोओ । जायइ एवं चिय मज्झ अत्थि आलंबणं भयवं ॥७१२०।। न उणो मह तुम्ह पसायपत्तसुविवेयमुणियतत्तस्स । रज्जसिरी-विसयपसंगसंभवे अत्थि वामोहो' ||७१२१।। तो भयवया वि भणियं ‘अहासुहं मा करेह पडिबंधं । एसो वि परमधम्मो जं माइ-पिऊण हियकरणं ।।७१२२।। एवं चिय कीरंतं ताण वि परिणामसुंदरं होही । सव्वत्थ तुह अविग्घं संपज्जउ धम्मकज्जेसु' ॥७१२३।। इय पभणंता अकलंक-निम्मला पभणिया नरिंदेण । 'नियदसणेण भयवं! कायव्वो पुणरवि पसाओ' ||७१२४।। Page #659 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६५० सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ पेच्छंताणं ताणं खणेण असणीहुया मुणिणो । राया वि सपरिवारो समागओ राउलं निययं ।।७१२५।। तो सोहणंमि दिवसे पसत्थतिहि-करण-वार-लग्गमि । सिरिवीरसेणराया सबंधुयत्तो विमाणेण ||७१२६।। करकलियखग्गरयणो संमाणियराय-मंति-सामंतो । लद्धाणुमई सव्वाहिणंदिओ सुहमणुच्छाहो ।।७१२७।। अणुकूलपवणसउणो उप्पइओ नहयलंमि नरनाहो । आणयणत्थं चलिओ नियमाऊ-पिऊण वेगेण ||७१२८।। पवणपहल्लिरचलचलिरकिंकिणीजालमुहलियदियंतं । जयजयरवं व उच्चरइ रायपत्थाणसमयंमि ।।७१२९।। पवणुधु(छु)यधवलधयाभुयाहिं नच्चइ व जायसंतोसं । पुरओ भविस्सपिउ-माइदंसणुच्छवगुरुरसेण ॥७१३०॥ घरपंगणं व वसुहा जलनिहिणो सारणि व्व गंभीरा । जत्थ ठिएहिं दीसंति गिरिवरा गंडसेल व्व ।।७१३१।। जं विविहमहामणिकिरणजालसुरचावबंधरमणीयं । सुरवइविमाणसंकाए चयइ दूरं खयरलोओ ।।७१३२।। दक्खिणदिसि धावंतं जं दीसइ रक्खसेहिं सभएहिं । पुफ(प्फ)यविमाणगइरामभद्दआगमणसंकाए ।।७१३३।। तो भणइ बंधुयत्तो 'तुह पच्चासाए इह मए भमियं । हरिणेण व मायातण्हियाए नडिएण रनंमि ।।७१३४।। सो देव! एस जलही तुह दसणजायहरिसपडहत्थो । दूरुल्लासियकल्लोलवीइहत्थेहिं नच्चइ व ।।७१३५।। Page #660 -------------------------------------------------------------------------- ________________ __ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ दीसइ विलाससिंगो सग्गो व मणोहरो महाराय! । अंतरियनहदियंतो जसो व्व तुह विविहसिहरेहिं ।।७१३६।। एसा सा रणभूमी जत्थ हओ पवणकेउखयरिंदो । दीसंति भडक्खंभा खयराणं जत्थ सयणकया ।।७१३७।। तं देव! इमं होही मज्झं जलहिस्स दुरवगाहस्स । जंमि हरिणेव तुमए सिरि व्व आयढि(ड्डि)या देवी ॥७१३८।। एसो देव! सुवेलो महागिरी जत्थ निवसए लंका । अज्ज वि नरिंद! दीसंति जत्थ रामस्स जयखंभा ।।७१३९।। लवणोयहिस्स मज्झे अंतरदीवाई देव! दीसंति । एयं च दक्खिणं वेजयंतनामं पुरो दारं ।।७१४०।। एसेस जिणमएण व भवो विमाणेण लंघिओ जलही । दीसइ जेण नरेसर! पुरओ परतीरवणराई' ।।७१४१।। इय ताण अन्नोन्नपएसकहणवावडमणाण दोहिं(ण्ह) पि । पत्तं झत्ति विमाणं धाईसंडं महादीवं ।।७१४२ ।। एत्थंतरंमि सहसा निययविमाणट्ठिएहिं दोहिं पि । दिट्ठो नहे पडतो छिन्नो सकिवाणभुयदंडो ।।७१४३॥ केऊरकोडिपडिलग्गरयण-मणिकिरणवद्धपरिवेसो । सफरो व्व सचक्को इव सहइ सपासो व्व सवणु व्व ।।७१४४।। तं दद्रूण पडतं सविम्हउत्ताणियच्छिवत्तेहिं । 'किं किं'ति ससंभंतेहिं तेहिं अवलोइओ बाहू ||७१४५।। गुरुवेयनियडनिवडंतवियडभुयदंडअग्गहत्थाओ । गहियं नराहिवइणा खग्गं नियवामहत्थेण ।।७१४६।। Page #661 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६५२ दट्ठूण खग्गरयणं अयंडसंपत्तपरमपरिओसो । चिंतइ राया हियए 'महंत - अच्छरियमिव एयं || ७१४७ || करकलियमेत्तकरवालगरुयअणुहास (व ?) संभवंतेहिं । असरिसविक्कम-उच्छाह (विक्कमुच्छाह) - सत्तिमाईहिं मह फुरियं' ||७१४८ || इय जाव मणे राया करवालगुणे विचिंतइ पट्टि । ता निवडतो दिट्ठो नहाउ एगो महापुरिसो ॥७१४९ ॥ वामकरधरियसीसो दक्खिणकरधरियनिसियअसिधेणू । निद्दयनिद्दट्टोट्टो भिउडीसंकडियभालो य ||७१५० ।। लक्खिज्जइ निरवट्ठेभपडणअजहत्थलुलियसव्वंगो । भूगोयरो त्ति पयडं विकिन्नसिरकुंतलकलावो ॥७१५१ ।। सो गयणाओ पडतो दड त्ति पडिओ विमाणवलभीए । सहस त्ति धाविऊणं आससिओ वीरसेणेण ||७१५२ ॥ संजायसत्थचित्तो उम्मीलियदीहनेत्तस्यवत्तो । सिरिभुयणसुंदरीकहा जोयइ वीराहिववयणपंकयं रोसरत्तच्छो ।।७१५३।। तो भाइ वीरसेणो 'को सि तुमं ? कह नहाओ इह पडिओ ? | किं वा सकोवहियओ लक्खिज्जसि अम्ह विसयंमि ?' ।।७१५४।। तो उडिऊण सहसा सीसं अच्छोडिऊण छडे (ड्डे ) इ । सो भइ 'अप्प खग्गं अहव रणे संमुहो ठासु' ||७१५५ ॥ तो भाइ वीरसेणो 'नाऽहं जुज्झामि कारणविहीणं' । तो भइ नरो 'अज्ज वि पच (च्च) क्खे निण्हवं कुणसि ?' ||७१५६ ।। तो भाइ वीरसेणो 'किं निण्हवियं ? किमेत्थ पच्चक्खं ?' | भइ नरो 'मह खग्गं पच्चक्खं तं पि निण्हवसि ?' || ७१५७।। Page #662 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६५३ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ तो भणइ वीरसेणो 'एयं नरकरयला हढेणज्ज । उद्दालियं किवाणं कह णु तुहेयं सकीयं ति ?' |७१५८।। तो भणइ नरो 'नाऽहं बहुयं जाणामि बोल्लिउमसच्चं । तुज्झ सयासे दिलृ संपइ खग्गं गहिस्सामि ।।७१५९।। जइ सुसमत्थो ता जुज्झ अह न ता अप्प मज्झ करवालं । न हु वयणचावलेणं छुट्टिज्जइ अम्ह पासंमि' ।।७१६०।। तो भणइ वीरसेणो ‘कह णु तए संपयं पबोहेमि ? । जो एकग्गाहेणं जुत्तिं पि वियारइ न मूढो ? ||७१६१।। नीइबलेणं सपरक्कमेण नेहेण अहव गरुएण । पाविज्जइ खग्गमिणं न उण तए लगसगतेण' ।।७१६२ ।। पुण भणइ नरो ‘रे दुब्बियड्ड ! जाणामि तुह विणाएयं (वि णो एयं ?) । तेण मए पढमं च्चिय जुझं अंगीकयं तुमए' ॥७१६३।। तो भणइ वीरसेणो ‘करेमि नीइं बुहाण मज्झमि । रणलंपडस्स वि ममं हिययं नोच्छहइ समरंमि' ।।७१६४।। तो भणइ खग्गपुरिसो ‘कत्थेत्थ बुहाण संभवो होही ? । एमेव मज्झ खग्गं रणभीरुय! घेत्तुमहिलससि ।।७१६५।। जइ कह वि नीइपक्खे वि जिणसि मज्झत्थपुरिसपरिसाए । गिण्हिस्सं तह वि य(ह)ढेण वीरभोज्जा जओ वसुहा' ।।७१६६।। तो भणइ वीरसेणो 'नीइनिसिद्धस्स तुज्झ जं उचियं । होही तं तइय च्चिय भणियव्वं न उण अज्जेव ।।७१६७।। नयमग्गमणुसरंतस्स विक्कमो वीर! पावइ पसंसं । लंघियनयस्स सो च्चिय अप्पविणासाय अजसाय' ।।७१६८।। Page #663 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६५४ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ जावेवं तत्थ नहंगणंमि वच्चंति दोवि कयरोला । ता गयणे वच्चंतो दिट्ठो विज्जाहरसमूहो ॥७१६९।। तो भणइ वीरसेणो ‘एए विज्जाहरा पुरो ज्जं(जं)ति । मज्झत्थाण इमाणं पासे नीइं इह करेमो' ।।७१७०।। तो भणइ खग्गपुरिसो 'जं रुच्चइ तुज्झ तं चिय करेहि । अम्हेहिं पुणो खग्गं सव्वऽवसव्वेहिं घेत(त्त)व्वं' ।।७१७१।। तो जंति खेयराणं पासे कयविणयउत्तरासंगा । . असिसंवाए दोन्नि वि अहिट्ठिया अहिनिविट्ठमणा ।।७१७२।। तो भणइ वीरसेणो ‘आयण्णह सावहाणकयचित्ता । नरकरयलाओ खग्गं मए गिहीयं न एयाओ' ।।७१७३।। खग्गपुरिसेणं भणियं 'मह भासं सुणह मज्झ सुत्तस्स । अवहरिऊणं खग्गं उप्पइओ एस गयणमि ।।७१७४।। उप्पयमाणो एसो धरिओ परिवियडकडिपएसंमि । एएण समं अहमवि समागओ एत्तियं दूरं ।।७१७५।। एत्थागएण य मए मायावी एस विविहकयरूवो । छिन्नो छुरियाए भुओ सीसं पि य खंडियमिमस्स ।।७१७६।। विज्जाहरो खु एसो अहयं पुण भूमिगोयरो पडिओ । विज्जा-बलविउरुव्वियविमाणरयणे पुणो दिट्ठो ॥७१७७।। दिटुं च खग्गरयणं सम्मं नाऊण पच्चभिन्नायं । मग्गामि एस नोऽप्पइ इय भासा अम्ह खयरिंदा!' ।।७१७८।। परिभाविऊण सम्मं भणिओ विज्जाहरेहिं वीरवई । 'एयस्स इमं खग्गं नरस्स तुह न उणो नरिंद! |७१७९।। Page #664 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ एसो वि नरो जंपइ तस्स मए पाडिओ रणे बाहू । जंपसि तुमं पि एवं लद्धं नरकरयलाओ मए ।।७१८०।। ता निच्छइयं एयं खग्गं एयस्स नत्थि संदेहो । चिंतेयव्वं तु इमं को चोरो खग्गरयणस्स ?' |७१८१।। तो विज्जाबलउवलद्धतत्तनाणेहिं सव्वखयरेहिं । निच्छइयमिणं 'एसो न तकरो को वि परमप्पा ।।७१८२।। हुं ! जाणिओ सि सम्मं जंबुद्दीवंमि भारहे वासे । चंपाहिराय! नरवर ! खेमं तुह सव्वकालं पि' ॥७१८३।। तो भणइ वीरसेणो 'नाऽहं चंपाहिवो अवि य रंको । मज्झत्था होऊणं जं होई तं समाइसह ।।७१८४॥ जइ कुणह मज्झ पक्खं खयरा! मज्झत्थयं पमोत्तूण | ता तुम्ह देव-गुरुदोहयाए सवहो मए दिन्नो' ।।७१८५।। विज्जाहरेहिं भणियं ‘होसि न चोरो तए निवडमाणं । नरकरयलाओ गहियं न उणोऽसितक्करो होसि ॥७१८६।। असितकरो खु खयरो निहओ एएण सो वि सयमेव । खयरभमेण तुहेसो लग्गो दठूण करवालं ॥७१८७।। गयणमि महीयलंमि पडियं सव्वो वि गिण्हइ गिहत्थो । जइणो चेय अदत्तं गेहंति न पवयणविरुद्धं ।।७१८८॥ . अन्नं च देस-बल-काल-पत्त-भावाणुगाओ नीईओ । दट्ठव्वाओ नरेसर! न उणो एगंतपक्खेण ।।७१८९।। राया सि तुमं गिण्हसि संतमसंतं च पयइसंबद्धं । पयईए ववत्थालंधणंमि नीईओ दिट्ठाओ ।।७१९०।। Page #665 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६५६ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ किं व कुणइ अवराह करी मयंदस्स जो तयं हंतुं । कुंभत्थलाओ कड्डइ मोत्तानियरं सहत्थेहिं ।।७१९१।। ता सव्वहा वि एयाओ हुंति नीईओ इयरलोयाण । तुम्हारिसाण चंपाहिराय ! एवं न नीईओ ।।७१९२।। ता खग्गपुरिस ! मग्गसु विणएण असिं इमाओ रायाओ । गरुया जायंति वसे विणएण न विक्कमाईहिं' ।।७१९३।। एवं ते भणिऊण खयरा सट्ठाणमुवगया सव्वे । खग्गनरेण य भणिओ नरनाहो रोसविवसेण ।।७१९४।। 'रे रे दुट्ठ ! दुरायार ! धिट्ठ ! निल्लज्ज ! चत्तमज्जाय ! । सव्वपयारेहिं मए मारेयव्वो तुमं अज्ज ।।७१९५।। चोरावराहदुट्ठा वीयं च चंपाहिवत्तकयदासो । तइयं अकज्जनिरओ दोसेहिं इमेहिं दुट्टा सि ।।७१९६।। ता किं च मणे चिंतसि? पाव! करे कुण करालकरवालं । नत्थि तुह अज्ज मोक्खो सयं मए हढनिरुद्धस्स' ।।७१९७।। चंपाहिवेण भणियं 'न तए सह जुज्झिउं मई मज्झ । एएण कारणेणं नीइविलंबो मए विहिओ ।।७१९८।। कहमन्नहा महायस ! नीईओ करंति इयरपुरिस व्व । नियजीवियमोलणं जे भुयणं घेत्तुमीहंति ।।७१९९।। नीइनिसिद्रा वि न वुज्झसे जया वि समजायमइमोहा । ता जुज्झिस्सं एहि अन्नमुवायं अपेच्छंता' ।।७२००।। तो भणइ खग्गपुरिसो ‘उत्तरसु महीए तत्थ जुज्झामो' । उत्तरइ वीरसेणो जुज्झरसुल्लसियरोमंचो ।।७२०१।। Page #666 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ समतलकोमलतणमणभिरामवसुहायलंमि ते दो वि । अह जुज्झिउं पयत्ता निबद्धदढपरियरायारा ॥७२०२।। उब्भडबाहुप्फालणपडिरववित(त्त)त्थवणयरसमूहा । अइभीमभिउडिभाला जुझंति निजुज्झजुज्झेण ॥७२०३।। तो बंध-विबंधुब्भडढो(ठो?)क्कर-करघाय-कत्तरिसएहिं । पयडियबहुविन्नाणा जुझंति दुवे अहिनिविट्ठा ।७२०४॥ दीसंति निविडमुट्टिप्पहारदिढवज्जघायघुम्मंता । अन्नोन्ननिबिडदिढबंधपीडणुव्वमिररुहिरोहा ॥७२०५।। घोराभिघायजज्जरियदीहनीहरियरुहिररत्तंगा । पलयंतकालसंझारुणदेहा चंद-सूर व्व ।।७२०६।। एवं च ताण जुझंतयाण दुत्ताररन्नमज्झंमि । रणपरवसाण दी(दि)यहा वोलीणा सोलस कमेण ।।७२०७।। तो सोलसमे दियहे विन्नत्तो बंधुयत्तमित्तेण । वीरो 'केत्तियकालं इहच्छियव्वं रणरसेण ||७२०८।। इह कालविलंबेणं कज्जाइं पुरो नरिंद! सीयंति । ता संवर संगामं देव ! उवायंतरेणेह' ।।७२०९।। तो भणइ वीरसेणो ‘मित्त! महंतं जणेइ मह कोडुं । जुझंतो एस भडो विसेसजुझंमि अइकुसलो' ||७२१०।। एवं पभणंतेण य बद्धो सो गारुडेण बंधेण । सुदिढं च बंधिऊणं पक्खित्तो नियविमाणंमि ।।७२११।। आरूढो य विमाणं विहियअओज्झापुरीमणवियप्पो । पेच्छइ खणेण वीरो पुरि अओझं परमरम्मं ।।७२१२।। 13 Page #667 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ अइगहिरखाइयाजलपडिबिंबियतुंगसालकव(वि)सीसा । दसणपायालागयभवणवइविमाणपंति व्व ।।७२१३।। उत्तुंगट्टालयसिहरमारुयंदोलमाणधवलधया । जा तज्जइ व्व उढे सुरनयरं दीहबाहूहिं ।।७२१४।। पडिमंदिरमणिसिहरुच्छलंतकिरिणोहबद्धसुरचावा । चंपाहिरायआगमनिबद्धबहुतोरणसय व्व ।।७२१५।। जुयइ व्व बहुसहावो नाणाविहकुडिलमग्गकयमोहो । पयडपयावइसाल व्य भुयणदीसंतजणनिवहा ॥७२१६।। दठूण पुरि राया मित्तं पइ भणइ विम्हयरसेण । 'उप्पायइ अच्छरियं एसा नयरी पदीसंती ।।७२१७।। पायं न एत्थ पहवइ पुरीए सव्वंकसो हयकयंतो । तेण अमरो व्व लोओ अणिट्ठिओ एत्थ अइबहुओ' ।।७२१८॥ इय एवमाइ बहुविहनयरागयगुणसहस्सअक्खित्तो । पेच्छइ लोयं वीरो वच्चंतं बाहिरुज्जाणे ॥७२१९।। तो भणइ बंधुयत्तो ‘एसो उण कत्थ वच्चए लोओ ? | एसा वि रायपत्ती का वि परी[वारपरि]यरिया ? ||७२२०।। किं वीरसेण ! एसा उव्वेवाहिट्ठिय व्व रायवहू ? । पायं इमीए होही अइगरुओ दुक्खपब्भारो ।।७२२१।। तेण नियच्छसु नरनाह! खीणसव्वंगजायदोब्बल्ला । बहुओववासवयमिव अभणंती कहइ देहेण ||७२२२।। परिचत्तभूसणा वि य पविरलदीसंतमंगलाहरणा । अभणंत च्चिय साहइ अविहवभावं अइसुदीहं ।।७२२३॥ Page #668 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ पेच्छसु उवणिज्जंतं हारं दासीहिं पेल्लइ करेण । दाविज्जंतं मणिदप्पणं पि अवहीरइ सदुक्खा ||७२२४|| जाणारूढाए पुरो पयडिज्जंतं विलेवणं नियसु । निन्नामियअंगुलीए वंदइ पडिसेहए सेसं ।।७२२५।। घेत्तूण कुसुममेगं सिरंमि धारेइ मंगलनिमित्तं । अवरं च कुसुमदामं पासत्थसहीण ओप्पेइ ||७२२६|| तंबोलकरंडयवाहिणीए पुणरुत्तदिज्जमाणं पि । तंबोलबीडयं नियडरायपुत्ताण सा देइ ||७२२७|| इय देव! का वि एसा महानरिंदस्स कुलवहू होही । सामंत-मंति-मंडलियरायवंद्रेहिं परिकिन्ना ।।७२२८।। ता देव! जत्थ एसा वच्चइ अम्हे वि तत्थ वच्चामो' | इय भणिऊणं दोन्नि वि पत्ता उज्जाणमज्झमि ॥७२२९॥ उत्तरइ विमाणाओ वीरो सह बंधुयत्तमित्तेण । तस्स विमाणं पि नहे थकुं सह बद्धपुरिसेण ॥७२३० ॥ तो राय-बंधुयत्ता जा जंति पुरो नियंति ता सूरिं । पुरओ अनंतगुणरयणभूसियं पडिहयवियारं ।।७२३१॥ दिप्पंतविसमतवतेयभासुरं दूरबद्धपरिवेसं । निंदियचिरभववसियं जलणंमि व सोहए अप्पं ||७२३२ || परिमियखेत्तपयासं दूरं हसइ व्व नियपयावेण । पयडियलोयालोयं केवलवरनाणकिरणेहिं ॥७२३३॥ खेत्तं व महाखंती मंदिरं मद्दवस्स व अलंघं । जोणि व्व अज्जवस्स व अपरिग्गहयाए परिपागं ॥७२३४॥ ६५९ Page #669 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६० सव्वेण अंचणीयं सुपवित्तियतिहुयणं व सोएण । निहय असमंजसं पिव निम्मलनियसंजमगुणेण ॥७२३५ ॥ तवदड्डुकम्मकिट्टं समतण-मणि-लेट्ठकंचणवियप्पं । सुविसुद्धबंभधारिं एमाइअनंतगुणकलियं ॥ ७२३६ ॥ नामेण मयणसीहं दठूण य दो वि हरिसपुलयंगा । वंदति इलातललुलियभालवट्ठा महासूरिं ॥ ७२३७।। तो उवविसंति गुरुणो पयइपवित्तंमि नियडभूभाए । एत्यंतरंमि सा वि य समागया रायवरपत्ती ||७२३८ ॥ तीए वि तहच्चिय परमभत्तिविवसाए वंदिओ सूरी । नीसेसमंति- सामंतमाइपरिवारसहियाए ॥७२३९ ।। उवविट्ठा सा वि तयंतियंमि वीरे निहित्तमण-नयणा । अणुकूलसउणसूइयभविस्सपरिओसपुलयंगी ||७२४०|| एत्थंतरंमि सूरी साहइ धम्मं जिणिदपन्नत्तं । पयडइ भवसब्भावं अइविरसं सव्वपरिसाए ।।७२४१।। लद्धावसरा देवी विन्नवइ गुरुं विमुक्कनीसासा । 'भयवं ! सोलस दिवसा अज्ज पउत्थस्स रायस्स ॥।७२४२।। ता कत्थ अज्जउत्तो ? जीवइ व नव ? त्ति साह मह भयवं ! | बहुदुक्खदुक्खियाए तुह वयणे मज्झ जीयासा ||७२४३ ॥ नियबंधुविप्पओगो तह वि य सुयरयणविप्पओगो य । एहि एसो जाओ नियपिययमविप्पओगो मे ||७२४४ || तां नाह! दुक्खभरभारभारियंगी चएमि नो धरियं । संपइ प (पु) णो बहुदुक्ख भाइ (य) णा मरिउमिच्छामि' ||७२४५॥ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ Page #670 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ एत्थंतरंमि छीयं केण वि तत्थेव परिसमज्झमि । तो भणइ गुरू ‘वच्छे! मा खेयं कुणसु चित्तंमि ||७२४६।। दुहरूवो च्चिय एसो संसारो एत्थ नत्थि सुहलेसो । इह लिंबकीडयस्स व ज्जि(जि)यस्स परियप्पियं सोक्खं ।।७२४७।। कमलमुही बिंबोट्टी कुवलयनयणा य कुंददसणा य । परियप्पणा जहेसा तह जाण भवे वि सोक्खाइं ॥७२४८।। अच्छउ वच्छे! एयं पयर्ड चिय पेच्छ अन्नमच्छरियं । रिउवासणाए बद्धो पुत्तेण पिया हहो! कहूँ!' ||७२४९।। तो भणइ गुरू ‘आणेहि नियविमाणाओ तं महारायं । चंपाहिराय! तुरियं सत्तुवियप्पेण जं बद्धं' ।।७२५०।। तो गुरुवयणायन्नण-ससंभमुभंतनयणतामरसो । उट्ठइ सासंकमणो आणेई तं विमाणाओ ।।७२५१।। तो पविसंतं दटुं सूरनरिंदं मुणिंदपरिसाए । देवीमाइअसेसो परितुट्ठो परियणो सहसा ।।७२५२॥ जे पुट्विं रायविओयदुक्खहुयवहपुलुट्ठसव्वंगा । ते सूरदसणामयपण्हाइयमाणसा जाया ।।७२५३।। तो सूरसेणराया संभमविलुलंतकुंतलकलावो । पाएसु पडइ सिरिमयणसीहसूरिस्स पुलयंगो ॥७२५४।। उवविसइ पुरो सूरिस्स सिरपणामिओभयग्गो(भयंगो ?) । परमत्थवयणविन्नासमणहरं पभणिओ गुरुणा ।।७२५५।। 'किं सूर ! सूरकुलसंभवस्स तुह होइ एरिसं उचियं ? जं सोलस दियसाइं जुज्झसि सह निययपुत्तेण ॥७२५६।। Page #671 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६२ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ सुविवेइणो महत्था जइ किर तुम्हारिसा वि मुज्झति । बालस्स तस्स मन्ने को दोसो ता तुह सुयस्स ? ||७२५७॥ हा ! कट्ठे अन्नाणं अच्छउ ता परभवे इह भवे वि । पियपुत्तो वि हु रिउवासणाए पहरिज्जए पिउणा ।।७२५८ ।। जस्स किर रक्खणत्थं चंपाए कओ तए महासमरो । कह सो पुत्तो नियकरयलेहिं घाइज्जइ नरिंद ! ? || ७२५९॥ जीए सिणेहपराए वूढो उयरेण अहियनवमासे । सा जणणी तं पुत्तं मन्नइ परपुत्तबुद्धी ||७२६०।। पुत्तो वि एस अन्नाणमोहिओ खग्गखंडरेसंमि' । पहरइ पिउस्स जेणं उवयरियं अप्पडि (डी) यारं ॥ ७२६१ ॥ परमत्थभावणाए को कस्स पिओ ? रिउ व्व को कस्स ? । अन्नाणमोहियाणं मित्तो वि रिऊ रिऊ मित्तो ||७२६२ ।। जह तुम्ह ताव एवं पच्चक्खं नरवरिंद! संजायं । तह जाण परभवेसु वि अववत्था सव्वजीवाण ।।७२६३ ।। ता संसारे नरवर! अणवट्ठियपिउ-सुयाइसंबंधे । पडिबंधं मोत्तूणं जिणधम्मे आयरं कुणसु' ||७२६४॥ तो भइ सूरसेणो 'भयवं ! सो एस मह सुओ सच्चं ? सिंगारवईनियगब्भसंभवो वीरसेणो जो ?' ||७२६५ ।। ' एवं ' ति पभणिए मुणिवरंमि उट्ठेति दो वि पिउ-पुत्ता । आणंदबाहपच्चालियाणणा हरिसपुलयंगा ||७२६६ ।। दूरपसारियभुयदंडपीडणन्नोन्ननिबिडियसरीरा । अइनेहनिब्भरेसुं परोप ( प्प ) रंगेसु व विसंति ।।७२६७।। १. खड्गखण्डहेतोः || Page #672 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६३ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ तो वीरो निस्सहोरक्खित्तमणिमउडकिरिणकब्बुरिए । जणयस्स नमइ चलणे पहावंतो अंसुधाराहिं ॥७२६८।। उम्मुकदीहधाहो पिउदंसणुल्लसंतवामोहो । इयरपुरिसो व्व वीरो उन्नमइ सिरं न चरणाओ ||७२६९।। तो तेण रुयंतेणं असंखसामंत-मंति-मंडलिया । सव्वे वि य रायाणो विमुक्कथोरंसुयं रुन्ना ।।७२७०।। तो महया कटेणं पिउणा पिउवच्छलो महावीरो । उभयकरुक्खित्तसिरो पुणो पुणो चुंबिओ सीसे ।।७२७१।। 'किं पुत्तय! रुन्नेणं ? इहरच्चिय पयडिओ पिउसणेहो । जंबुदीवाओ इहं एंतेणं धाइसंडंमि' ||७२७२ ।। तो वीरसेणसाहियवइयरकयबंधुयत्तपडिवत्ती । नियपुत्तनिव्विसेसं गोरवबुद्धीए पेच्छेइ ॥७२७३।। पुण भणइ सूरसेणो ‘आसाससु मायरं बहुदुहत्तं । नियदसणेण सुहियं करेसु पीऊसह(व)रिसेण' ॥७२७४।। एवं पिउणा भणिओ सिंगारवईए पडइ पाएसु । सा वि परिरंभिऊणं चुंबइ सीसे बहुसिणेहा ।।७२७५।। अंतोहुत्तवियंभियसिणेहथरहरियथूलथणवठ्ठा । नीहरियथन्नधारा हिययविसुद्धिं व दावंती ।।७२७६।। तो राय-रायपत्ती-सामंताईण सयललोयाण । नयणाई वीरसेणे खुत्ताइं व नो नियत्तंति ।।७२७७।। अउरुव्वरूव-सिंगार-लडह-लायन्न-गारवघ(ग्घ)विओ । ओसरइ खणं पि न सज्जणाण हिययाओ सूरसुओ ।।७२७८।। Page #673 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६४ एत्थंतरंमि राया सुयसहिओ नट्ठसोयतिमिरोहो । जाओ गयणाभोओ व्व हाणुणा पयडियपयावो ॥७२७९ ।। तो भइ सूरसेणो 'भयवं ! नियजणणिहत्थवडियस्स । जं जायं मज्झ सुयस्स कहह तं दिव्वनाणेण' ||७२८० ॥ तो भयवया वि सव्वं केवलनाणोवलद्धतत्तेण । कहिओ नीसेसो च्चिय वृत्तंतो वीरसेणस्स ।। ७२८१ ।। तो सूरसेणराया अणुवमनियपुत्तचरियसवणेण । सकयत्थं मन्त्रंतो अप्पाणं भणिउमादत्तो ||७२८२ ।। 'जायंति जए पुत्ता पिउणो हीण व्व अहव सरिस व्व । पिउणो वि जेहिं जिप्पंति तिहुयणे सो परं एसो ||७२८३ | पुत्तेहिं गुण - परि (र) क्कममाईहिं जियस्स नवर जणयस्स । अहिययरं चिय वित्थरइ तस्स जयपायडा कित्ती' ॥७२८४।। तो पणमिऊण भयवं पवड्ढियाणंदनंदियजणोहं । दिसि दिसि पयट्टवरजुयइनट्टतुट्टंतहारलयं ॥ ७२८५ ॥ वज्जंतगहिरमणहरबहुतूरदियंतबद्धपरिमद्दं । आणंदनिब्भरुग्गीयमाणनारीयणादिनं ।।७२८६।। घरघरनिबद्धतोरण अणंतजणजणियकलयरगहीरं । घरदारमुक्कसियकमलपिहियबहुपुन्नकलसोहं ॥ ७२८७।। उन्नामियग्गकरबंदिविंदउग्घुट्टजयजयासदं । पुरनारीविरइज्जंतघरघरुद्दाममंगल्लं ।।७२८८।। एवं गुणाभिरामं पासट्ठियपुत्तपत्तसोहग्गो । पविसइ पुरिं नरिंदो पहाणजयवारणारूढो । ७२८९ ॥ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ Page #674 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६५ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ पत्तो नियरायउलं समुच्चसीहासणंमि उवविठ्ठो । एक्कासणठियपुत्ते कारावइ मंगलसयाइं ॥७२९०।। एवं वच्चंति दिणा अन्नोन्नपवड्डमाणहरिसाण । ताण तिणीकयतियसिंदपरमसोक्खाण मिलियाण ।।७२९१।। एगवरिसावसाणे विन्नत्तं वीरसेणराएण । ‘ताय! पयट्टह गम्मइ जंबुद्दीवंमि चंपाए' ।।७२९२॥ तो नरवइणा तत्थन्नरायधूयाए गब्भसंभूओ । नामेण रायसेणो पुत्तो अहिसिंचिओ रज्जे ॥७२९३।। तस्स समप्पइ सयलं परिवार विसयमंडलसयाइं । आपुच्छियसयलजणो सिंगारवईए सह राया ।।७२९४।। जा किर गमणाभिमुहो अच्छइ सुमुहुत्तदिवसमीहंतो । ता सेहरयासोया समागया नियनियबलेहिं ।।७२९५।। खेयरनिरुद्धपरिवियडनहपहंतरियदिणयरमऊहो । जाओ अयंडघणडंबरो व्व गयणंगणाभोओ ।।७२९६।। पडिबिंबिज्जइ मणिमयविमाणभित्तित्थलीसु वरनयरी । अब्भुट्ठिऊण आलिंगइ व्व पहुपक्खकयनेहा ।।७२९७।। अफा(प्फा)लियबहुविहतूरसद्दपडिसद्दरुंदरावेहिं । अकंदइ व्व गयणं खयरेहिं हडक्वमिज्जतं ।।७२९८।। पूरिज्जति पुरीए चउक्क-तिय-रायमग्ग-रत्थाओ । अन्नोन्नखयरसंघट्टखुडियतणुभूसणमणीहिं ।।७२९९।। इय परमरिद्धिवित्थरवित्थारियरायविम्हयाणंदं । दठूण भणइ सूरो 'पुत्त! किमेयं नहे सेन्नं ?' ||७३००।। Page #675 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६६ एत्थंतरंमि सहसा समागओ पवणहल्लिरवरिल्लो । नामेण वज्जबाहू खयरो वीरस्स पासंमि ||७३०१ || तो पणमिऊण पढमं सूरं सिरिवीरसेणरायं च । विन्नवइ सविणयं सिरनिहित्तकरपंजलीबंधो ||७३०२ ।। ' तुह मग्गमणुसरंता समागया देव! सेहरासोया । वेयड्ड-दक्खिणुत्तरसेढीपहुणो पहुसमीवं ॥ ७३०३ ॥ उच्चलह देव ! गम्मइ तुह विरहंधारियंमि भरद्धे । ससि - सूरेहिं व तुम्हेहिं देव! संपज्जउ पयासो' ||७३०४|| एत्थंतरंमि सूरो सपुत्त - दइओ सबंधुयत्तो य । आरुहइ वरविमाणं उप्पयई गयणमग्गंमि || ७३०५ || तो समुहागयविज्जाहरिंदसंघट्टघडियमणिमउडो । नमिओ पुन्न (त्त) पयासियतव्विकम-नामसद्भावो || ७३०६ || सुयसंपाडियसंसारदुल्लहभूसण - सुवत्थदाणेहिं । सूरो करेइ खयरेसराण सेन्नाण य पमोयं ॥ ७३०७ || संचलइ चलिरघणमणिविमाणबहुसिहरयनिरंतरियं । सेन्नं निबद्धगयणप्पमाणउल्लोयवत्थं च || ७३०८।। अणवरयं वच्चंतं सेन्नं खयराण उचियकालेण । संपत्तं चंपाए ऊसियधयचिंधमालाए ||७३०९॥ पढमं च पणमिऊणं परमेसरवासपुज्जपयकमलं । चिरकालदंसणुप्पन्नगरुयमणभत्तिराएण ॥७३१०॥ पविसइ पुरीए सूरो सणकुमारो व्व खयरबलसहिओ । हरिसपरव्वसचिरपौरलोयपरिवड्डियाणंदो ||७३११ ।। सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ Page #676 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ ६६७ तो वीरसेणराया पिउभत्तिसमुल्लसंतरोमंचो । नियभत्ति-सत्तिसरिसं वद्धावणयं करावेइ ।।७३१२।। वेयड्डोभयसेढीसु केइ जे खेयरेसरा संति । विज्जाहरीओ मणहरसरीरसिंगारलडहाओ ।।७३१३।। तह अद्धभारहमि य जे केइ महीहरा मउडबद्धा । मंडलिया सामंता रायाणो सव्वपरिवारा ॥७३१४।। आयन्नियसूरागमणजायहरिसुल्लसंतपुलयंगा । पत्ता चंपानयरिं अंतेउरपरिगया सव्वे ॥७३१५।। सव्वत्तो च्चिय सूरागमंमि उवसंतसोयसंतमसो । वियसंतवयणतामरससुंदरो सहइ जियलोओ ॥७३१६।। सुण्हा वि य चंदसिरी सहिया सिरिअमरसेणकुमरेण । पणमइ पणामविलुलंतकेसपासा सुसुरयस्स ।।७३१७।। पुत्तं पि अमरसेणं परिरंभइ चुंबई य सीसंमि । सकयत्थं मनंतो अप्पाणं पुत्तपुत्तेण ॥७३१८।। अहिणंदइ सप्पणयं विचित्तजसनरवई महाराओ । भणइ ‘भुयणे तुम चिय सुयणो पडिवन्नसूरो य' ||७३१९।। जह जह पेच्छइ पुत्तस्स विजियतियसिंदसुंदरं रिद्धिं । तह तह सूरो तप्पणइणी य हियए न मायति ।।७३२०।। अन्नोन्नसंगमुभवसुहरसपसरंतहरिसपसराण । वच्चंति ताण दियहा सुहेण आणंदघडिय व्व ।।७३२१।। अह अन्नया कमेणं आणंदियसयलभुयणवित्थारो । पत्तो वसंतसमओ वणप्फईपरमबंधु व्व ।।७३२२ ।। Page #677 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६८ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ सव्वत्तो च्चिय पसरंतसरसतरुकिसलयारुणच्छायं । जायं महीयलं महुसमागमुल्लसियरायं व ॥७३२३।। दूरे मणुस्सलोओ वणस्सईओ वि जत्थ सवियारा । दीसंति बद्धकुसुमा गायंता भमरविरुएहिं ।।७३२४।। “किंसुयकुडिलनहरकमदारियदप्पियसिसिरसिंधुरो ।। घणसहयारसरसतरुमंजरि-जालकडारकेसरो ।। परहुयदुसहसद्दगुंजियरव-भेसियविरहिहरिणओ । वियरइ कुसुमपंतिदादुब्भडबालवसंतसीहओ" ॥७३२५।। जे पुट्विं मलयद्दिचंदणलयागेहाओ(उ) संचल्लिया । एलापल्लवलासिणो य लवली-कक्कोलिहल्लावया ।। भद्रंगीसरियातरंगियजला पंपासरुल्लासया । ते वायंति विओइणीकयदुहा मंदं वसंतानिला ||७३२६।। हेलुल्लसंतवियइल्लपसूणलग्ग-भिंगावलीवलइणो दुमसन्निवेसा । दीसंति मोत्तियनिहित्तमहिंदनील-कंठावली पवहिणो व्व महुस्सिरीए ॥७३२७।। हेलानिज्जियदेव-दाणवगणो पूइज्जए वम्महो । ' मंदुच्चारियपंचमं व महुरं गीयं जहिं गिज्जए ।। गाढालिंगणनिब्भरं व सुरयं सेविज्जए संतयं । सो लोयाण न वल्लहो किर कहं मन्ने वसंतूसवो ।।७३२८।। इह तरुसु असोओ पंचमो गीयमज्झे । सयलसुरवरेसुं देवदेवो अणंगो ।। घणतिहुयणकीलाकीलियेसुं वसंते । १. सुरतं, खंता. टि. ।। Page #678 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ ६६९ जुयइकोइलाणं सिंजियं सिंजिएसुं(?) ।।७३२९।। एवंविहे वसंते सूरो सिरिवीरसेणराएण । सिरविरइयंजलिवुडं विनत्तो विणयनम्मेण ||७३३०। 'तुज्झागमणेण व देव ! हरिसियं महियलं वसंतेण । सीयज्जरमुक्कं पिव उच्छहइ विलासकीलासु ।।७३३१।। कस्स न हरंति हिययं दियहा नियसमयलद्धसोहग्गा । • जायनियउउसमागमतरुकुसुमवियासहासव्वा ।।७३३२ ।। गरुएहिं वि कायव्वं जणवयचित्ताणुवत्तणं देव ! | इहरा पयइविराओ जायइ निययं नरिंदस्स ।।७३३३।। ता देव ! एस लोओ उज्जलनेवत्थभूसणकलावो । तुह निग्गमणमहूसवदंसणउक्कंठिओ हारे' ।।७३३४।। तो भणइ सूरसेणो ‘करेम एवं' ति जायपरिओसो । सविसेसरिद्भिदंसणजणियच्छरियओ(रिओ) चलइ राया ||७३३५।। जयवारणमारूढा दुवे वि धुव्वंतचामराडोवा । सिरिधरियधवलछत्ता तलसं ठियविविहसामंता ।।७३३६।। . वहुपौरपरियणारन्दविविहचच्चरिनियच्छिरा नियडे । ठाणट्ठाणनिवेसियपेच्छणयनिहित्तनियदिट्ठी ।।७३३७।। पत्ता उज्जाणवणं विसालभवणं व माहवसिरीए । संकेयट्ठाणं पिव नीसेसरिऊसुकुसुमाण ।।७३३८।। जं होइ सरसमहुयावाणं व वहुभमरमत्तवालाण । महुभयनट्ठस्स जए अलंघदुग्गं व सिसिरस्स ।।७३३९।। जं गायइ व्व भसलुल्लसंतरुणिझुणिरवेण महुररवं । दक्खिणपवणवे(व्वं)लिरवलिभूयाहिं व्व नच्चइ ||७३४०।। . कूजितं, खंता. टि. ।। Page #679 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६७० सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ जयजयरवं व वियरइ सूरनरिंदप्पवेससमयंमि । अइबहलकोइलाकलयलेण संजायपरिओसं ॥७३४१॥ दक्खिणपवणपहल्लिरनवपल्लवपाणिक्खित्तकुसुमोहं । बहुदियसागयसिरिसूरसेणअग्धं व उक्खिवइ ।।७३४२।। एवं गुणाभिरामं घणकुसुमं नाम उववणं विसइ । राया पौरपरिग्गहपरियरिओ परमहरिसेण ||७३४३।। तो भणइ सूरराया पियपुत्तं वीरसेणनरनाहं । कीलह तुब्भे सव्वे अहमुज्जाणं निरिक्खिस्सं ॥७३४४।। ‘एवं' ति पभणिऊणं वीरो नीसेसमंडलवईहिं । नाणाविलासिणीहि य सहिओ अह कीलिउं लग्गो ||७३४५।। राया वि सूरसेणो सिंगारवईए परिगओ भमइ । अप्पसमाणनरेसरपरियरिओ मणहरुज्जाणे ।।७३४६।। अल्लवओ नामेणं वणवालो कहइ रायरायस्स । नाणाविहतरुनियरं विसेसडोहलयनामजुयं ।।७३४७।। 'देवदुलंघा विसया हरंति जं माणवा न तं चोज्जं । एगिदिया वि तरुणो तेहिं हरिज्जति तं चोज्जं ।।७३४८॥ इह केइ फरसणेणं रसणेण य के वि के वि घाणेणं । रूवेण के वि तरुणो फुल्लंति य के वि सद्देण ||७३४९।। सरहसपीणपओहरफंससमुप्पन्नतक्खणवियासं । एयं कुरुबयरुक्खं पेच्छसु घणकुसुमसंछन्नं ॥७३५०।। एसो वि असोयतरू तरुणीपयपहरफंसपरितुट्ठो । फुल्लइ पहल्लिरुवेल्लपल्लवो [तरुसु रमणीओ(?) ||७३५१।। Page #680 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ ६७१ पेच्छह केसरतरुणो तरुणीगंडूसियाए मइरीए । । फुल्लंति नरेसर! न उण अन्नहा पेच्छ अच्छरियं]' ||७३५२।। एए चंपयतरुणो वियसंति नरिंद! सुरहिगंधड्डा । सुसुयंधसलिलदोहलयबद्धफल्लोहरमणीया ||७३५३।। एसो सो तिलयतरू जो वियसइ कामिणीकडक्खेहिं । विसमा हु नयणबाणा हुंति अमोहा तरूणं पि ।।७३५४।। विरहितरुणो नरेसर! इमे भणिज्जंति गीयरसिया जे । फुल्लंति पंचमुग्गारगीयसद्देण रागंधा |७३५५।। एए उत्तमतरुणो पुव्बुद्दिट्ठा इमे उ मज्झत्था । जे मज्झिमगुणजुत्ता मज्झिमडोहलयमिच्छंति ॥७३५६।। एसा पियंगुलइया पयइसलज्जा नरिंद! जं एसा । ताव न वियसइ जाव न झंपिज्जइ रत्तवत्थेण ।।७३५७।। अहमगुणा उण अन्ने अहमसंजायडोहलत्तेण । इह केए(अ)इमाईया विनेया असुइडोहलया ।।७३५८॥ इय एवमाइ तरुणो नियनियविसयाहिलासमीहंता । हेलुल्लसंतकुसुमोहसुंदरा देव ! दीसंति ।।७३५९॥ दिट्ठीए कुण पसायं इओ सिणिद्धाए पेच्छ उज्जाणं । अंतरियपल्लवोहं निरंतरं जत्थ कुसुमोहं ॥७३६०॥ हसियं व महुसिरीए तारुन्नभरो व्व सुरहिमासस्स । कामस्स व जसपसरो दीसइ उज्जाणकुसुमभरो ||७३६१।। एयं सहयारवणं खुडंतनवमंजरीरयमिसेण । तुज्झागमणे नरनाह! किरइ रंगावलीओ व्व |७३६२।। . ला. प्रतौ । (ता.प्रतावयं पाठःखण्डितपृष्ठत्वान्न दृश्यते II) Page #681 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ रेहइ दरारुणदलं कुसुमं नवकंचणारविडवस्स । अहरदलं पिव माहवसिरीए पीयं वसंतेण ।।७३६३।। दरदलियदरंतरनीहरंतमयरंदवासियदियंतं । फुल्लं सोहइ वियइल्लसंभवं परिमलमहग्घं ॥७३६४।। एयं नरिंद! नोमालियाए आमोयमिल(लि)यभमरोलं । कुसुमं नवपिंडाउद्धसुद्धवन्नं मणभिरामं ॥७३६५।। एकविमीसियरुप्पयसुवन्नरससरिसवन्नदलसोहं । एयं च लकुचतरुणो फुल्लं भण कं न मोहेइ ? ||७३६६।। एयं च देव! मचकुंदसंभवं दीहकेसरसडालं । आपिंगपीवरदलं कुसुमं गंधुद्धरं सहइ ||७३६७।। मणहरवन्नं पि हु कन्नियारकुसुमं न एइ भसलाली । रूवेण किं व कीरइ गुणेहिं छेया हरिजंति ।।७३६८।। अंतो घणकेसरभरदलंतदलसंपुडंतरपिसंगं । फुल्लं पुन्नागदुमस्स जणइ इंदिदिराणंदं ।।७३६९।। एए उण फलतरुणो पुरओ दीसंति देव! बहुभेया । जे नियनियपरियणफलनिहित्तमिव देंति अमयरसं ॥७३७०।। एला-लवंग-लवली-कक्कोली-कयलि-नालिकेरी य । दक्खामंडव-पिंडी-खज्जूरी-फणसमाईया ||७३७१।। पेच्छ नरनाह! पुरओ कीलारसपरवसो व्व पुरलोओ । अणुरायमओ व्व विसेसविविहकीलाहिं अहिरमइ ।।७३७२ ।। एसो को वि जुवाणो केयइपत्तंमि कुंकुमरसेण । लिहिऊण चाडुगाहं समप्पए निययदइयाए ||७३७३।। Page #682 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६७३ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ एसो उण मयणुम्मायपरवसो विविहलोयमज्झे वि । छोढूण गोहिमज्झे चुंबइ दइयं विगयलज्जो ||७३७४।। कुसुमरयदूसियच्छि दइयाए पणामियं वियड्डेण । तस्सावणयमिसेणं सुचिरं चुंबिज्जइ पिएण ।।७३७५।। इह देव! को वि तरुणो बहुतरुणीरायपरवसप्पाणो । अवमन्निज्जइ नियपिययमाए कीलाविणोएसु ।।७३७६।। इह देव! मिहुणयाइं पुरओ गायंति तुज्झ पुत्तस्स । ते उण विवहाणुपत्तबहलपुलयाई सच्चरियं ॥७३७७।। पेच्छ पुरओ नरेसर! सुण्हा तुह खयरिसहियणसमेया । लीलंदोलयकीलं चंदसिरी एत्थ अणुहवइ ।।७३७८।। सहिकरयलपेलणवसनहंतरुच्छलियदोलयारूढा । विक्खिरइ चंदजोण्हं व सरलचवलाए दिट्टीए ॥७३७९ ।। दूरुच्छालणरहसुच्छलंतरणज्झणिरहारमंजीरं । झणझणिरकिंकिणीमुहलमेहलंदोलणं सहइ ।।७३८०।। अंदोलिरचंदसिरीसुंदेरनिहित्तखेयरच्छीणि । अंदोलंति व्व समं सेवारसपरव्वसाइं व ।।७३८१।। देव! नियच्छसु पुरओ मुणालदंडेण ताडिया देवी । भत्तारनामनिसुणणकयाणुरायाहिं खयरीहिं ।।७३८२ ।। जंपइ देवी ‘मा माउयाओ! ताडेह तिहुयणपसिद्धं । मह भत्तुणोऽभिहाणं पुच्छंती किं न लज्जेह ? ।।७३८३ ।। किं कहिओ जाणिज्जइ सूरो निम्महियवेरितिमिरोहो ? । भण तारयाण मज्झे चंदो साहिज्जए केण ?' ||७३८४।। ४४ Page #683 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६७४ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ मणहरसललियभासानिवेससरसं च दोलयारूढा । गायंती चंदसिरी हिययं भण कस्स न हरेइ ? || ७३८५ ।। उड्डुं पक्खिप्यमाणा गयणग्गविलग्गललियचरणग्गा । पाएहिं ताडिऊणं निब्भच्छइ तियसनारीओ ||७३८६ ।। उत्तरिया चंदसिरी लीलादोलाओ देव! चलिया य । वीराहिरायपासं जलकेलीकरणकज्जेण ॥७३८७ || ता एत्थ देव! कीलागिरिंमि अच्चुच्चसिहररमणीए । ठाऊण नियच्छामो जलकेलिं वीरसेणस्स' ||७३८८ || ' एवं ' ति पभणिऊणं जाव नियच्छंति ताव पेच्छंति । तेलोक्कसिरीमुहदप्पणं व लीलासरं एगं ।।७३८९।। नवनीलुप्पलघणकमलसंडसंछन्नसलिलसंघायं । फंसेण जत्थ उदयं मुणिज्जए मुद्धलोएहिं ॥७३९०॥ सुंदरअरविंदुब्भवअमंदमयरंदपिंजरजलोहं । पविलीणकणयरसपूरियं व वीराणुहावेण ।।७३९१ ।। ‘तडनियडनिबिडतरुसंडमंडलीसिहरदिन्नगुरुझंपो । झल्लज्झलंतजलकयकल्लोलं झिल्लइ नरिंदो || ७३९२ ।। सिरिवीरनरेसरदिन्नझंपसमकालनिवडमाणेहिं । खयरिंद-नरिंदेहिं पूरिज्जइ सरवरं सहसा ।।७३९३ ।। दूरुच्छलंतघणसलिलदीहधाराहिं गयणलग्गाहिं । उड्ढविमाणट्ठियखेयरे व्व सिंचेइ नरनाहो ।। ७३९४ ।। गहिरं अलद्धमज्झं सरोवरं देव! तह वि संखुहियं । तरुणी समागमे अहव कस्स नो जायए खोहो ? || ७३९५ ॥ Page #684 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ घणघुसिणविलेवणतरुणि-ण्हाणसंजायसोणसलिलोहे । दीसइ सरंमि लोओ राय ! महाजलहिबुड्डो व्व ||७३९६ ॥ अइगहिरमहानाही हेसु गंडूसियं व सरसलिलं । ओह पविभत्तं तरुणीकयसंपुडे व ।।७३९७।। विलयाओ नियंबथलथणहरगरुयाओ लाहवं एंति । अहवा गोरवहाणी न कस्स किर होइ जलमज्झे ? ||७३९८।। पल्लवियं पिव करपल्लवेहिं अह पुफि ( प्फि) यं व नयणेहिं । तरुणीथणमंडलेहिं सचक्कवायं व्व सरसलिलं ॥ ७३९९ ।। बुड्डत्ति कवडधाहावियंमि आलिंगिया सदइएण । पियफंसमउलियच्छी संमोहइ पिययमं का वि ॥ ७४०० || दइयक्खित्तवरिल्ला नलिणीपत्तेण पिहिउमसमत्था । अंतरइ थणहरं का वि गहिरजलबुडुकं ठद्धा || ७४०१ || नियमेव वेणिदंडं दट्ठूण तरंगभंगुरं सलिले । का विपियं परिरंभइ सभया जलसप्पबुद्धी ||७४०२ || अन्नोन्नमुहनिवेसियमुणालदंडेण नरवर! पियति । मिहुणाई पेच्छ पप्फारवयणगडूसियं सलिलं ॥ ७४०३ || पियपेसियनिठुरवारिधारतेरच्छियच्छिविच्छोहा । दीहसरभल्लिकरेणिं कामस्स व वहइ इह का वि ।।७४०४।। अल्लियइ भमरवंद्रं मुहकमलमिमीए कमलकलणाए । वारंतीए अहरो दट्ठो अन्नाए भमरेण ॥ ७४०५।। थूलथणोवरिपक्खित्तदेहभारा नरिंद! एसा वि । तरइ उरसंठिएहिं कलसजुएहिं व सरमज्झे ||७४०६ || १. तुल्यताम्, खंता. टि. ॥ ६७५ Page #685 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ कोऊहलबुड्डेणं एसा विनडिज्जए पियंयमेण । आणंदिज्जइ तक्खणमप्पाणं दंसयंतेण ||७४०७।। रायंधेण नियच्छइ कमलं घेत्तूण केण वि नरेण । ओयारणयं कीरइ नियदइयावयणकमलस्स ।।७४०८॥ एसा हम्मइ दइएण देव! करकयमुणालदंडेण । निब्बुड्डिऊण अंतो वंचंती पिययमपहारं' ॥७४०९।। एत्थंतरंमि राया पल्लवयं भणइ ‘वच्च रे ! तुरियं । हक्कारसु मह पुत्तं परिसंतं विविहकीलाहिं' ॥७४१०॥ ‘एवं' ति पभणिऊणं रायाएसं तहेव सो कुणइ । वीरो वि तुरियतुरियं उत्तरइ सराओ संभंतो ||७४११।। उत्तरिऊण य कयविविहलडहसिंगारमणहरो वीरो । पाएसु पडइ रायस्स सयलखयरिंदपरियरिओ ।।७४१२।। तो भणइ सूरराया 'तुह सीयलजलकयं सरीरंमि । मा होउ पुत्त ! जडं आहूओ तेण कज्जेण' ||७४१३॥ एत्थंतरंमि राया परियण-नरनाह-खयरपरियरिओ । आरुहइ जयकरिंदं सूरो सह वीरसेणेण ||७४१४।। अइगरुयरिद्धिवित्थरआणंदियसयललोयरमणीयं । पविसइ चंपं राया सलहिज्जंतो पुरजणेहिं ।।७४१५।। इय सूरसेणराया विणीयनियपुत्तवड्डियाणंदो । तियसाहिवं पि मन्नइ दुत्थियमिव निययसोक्खेण ।।७४१६।। एवं अवरोप्परपरमपीइपरिवड्डमाणसोक्खाण । वच्चंति ताण दिवसा देवाण व देवलोयंमि ।।७४१७।। Page #686 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ अह अन्नदिणे रयणीए चरिमजामंमि सूरनरनाहो । सेज्जाए सुहनिसन्नो पेच्छइ सुविणंतरं सहसा || ७४१८ || उब्भडपवणपहल्लिरकल्लोलसहस्ससंकडिल्लंमि । जलहिंमि निबुडुंतं अप्पाणं नियइ भयविवसं १७४१९॥ आरुहइ खणं भंगुरतरंगसिहरेसु लद्धऊसासो । पेच्छइ पक्खिप्पतं पुणो वि पायालतलमूले ||७४२०॥ तत्थ विकरि-मयर - रउद्दसत्तवित्तासिओ खणद्धेण । पावेइ महादुक्खं पज्जाउलमाणसो अहियं ॥ ७४२१ ।। पुणरवि गरुयावत्ते भमेइ चक्कुब्भमेण दुक्खत्तो । नियभज्जं पुत्तं चिय उवालभंतो य विलवेइ ||७४२२|| तो महया कट्टेणं परिभममाणं समुद्दमज्झमि । पेच्छइ पवहणमेगं लग्गो य समाउलो तत्थ ।।७४२३|| तं आरुहिओ दिट्ठो निज्जामयवयणमुक्कभयसंको । तेणेव पवहणेणं हरिसपुरं नाम संपत्तो ॥ ७४२४।। तस्स पुरस्स पहावाओ तत्थ जाओ महंतसंतोसो । सुविणयमेवं दटुं सहस च्चिय जग्गिओ राया ||७४२५ ।। जा जोएइ पबुद्धो ता न जलं जलि (ल) निही न यावत्ता । न कलत्तं न य पत्तो न य परियणो नेय ते गाहा ||७४२६॥ न य तं पि जाणवत्तं न कन्नधारा न तं पि हरिसपुरं । अप्पाणं च्चिय एक्कं पेच्छइ सेज्जासुहनिसन्नं ।।७४२७।। अह चिंतइ नरनाहो 'किं पच्चक्खं ? मइब्भमो वा वि ? | सुविणो व्व इंदजालं ? अहवा तत्तंतरं एयं ?' ||७४२८।। ६७७ Page #687 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६७८ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ अवधारिऊण सम्मं विहावियं 'सुविणओ मए दिट्ठो । एवं न कयाइ मए पुव्विं सुविणंतरं दिवं ।। ७४२९ ।। ता को इमस्स होही भावत्थो सुमिणयस्स दिट्ठस्स ? | अहवा परिभाविस्सं समयं सिरिवीरसेणेण' ||७४३०|| उट्ठइ सयणाओ तओ राया कयसयलगोसकरणीओ । साहइ सुयस्स सव्वं पणामकरणत्थमायस्स || ७४३१|| तो मुणियसयलगंथ[त्थ] वित्थरो भाइ वीरेसेणो वि । 'देव! पसत्थो सुमिणो परिणामसुहावहो तुम्ह ||७४३२|| पयडंतो जहवट्ठियसंसारअसारयं गुरु व्व इमो । कस्स न कुणेइ सुविणो पडिबोहं भव्वलोयस्स ? ||७४३३॥ एसो अणाइनिहणो संसारो चेव सायरो होइ । चउरासिजोणिलक्खा कल्लोला एत्थ विण्णेया || ७४३४ || नियकम्मपवणसंपाडिएसु गुरुविसमजोणिलक्खे । कल्लोलेसु य जीवो अन्नोन्नेसुं परिब्भमइ ||७४३५ || दट्ठूण लहरिसिहरग्गसन्निहं मणुयरज्जअब्भुदयं । मन्नइ मुहुत्तसोक्खं तत्तो पडणं तु नो मुणइ ||७४३६ || खणलवसोक्खनिमित्तं जीवो पावाई ताइं आयरइ । खिप्पs जेहिं रसंतो विरसे घोरंधनरए || ७४३७ || करि-मयरसन्निहा हुंति तत्थ नरनाह ! नरयपाला जे । तेहिं अहिदुयदेहो विसहइ गरुयाइं दुक्खाई ||७४३८ ।। करवत्तुक्कत्तण-कुंभिपाय- असिपत्त - जंतपीडाई । जा जायणाओ नरए आवत्ता ते विणिवि (द्दि) ट्ठा ||७४३९। Page #688 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ ६७९ अइगरुयजायणासयसमहियसंजायदुक्खपब्भारो । सुहडो वि सुधीरो वि हु अर्कदइ दुहभरक्वंतो ।।७४४०।। जाण निमित्तं पुट्विं पावाइं कयाइं निद्धबंधूण । ते च्चेय उवालंभइ अवहिविन्नायपुव्वभवो ॥७४४१।। 'हा पुत्त! पुत्त! दुक्खियसत्तपरित्ताणकरणतल्लिच्छ! । किं किं उवेक्खसे वीरसेण! तडसंठियं(ओ) एण्हि ? ||७४४२।। सिंगारवइ! तडत्था संजाया संपयं गयसिणेहा । आवइवडियस्स ममं साहेज्जं किं न नो कुणसि ? ||७४४३।। एए वि मउडबद्धा सामंता विविहसुहडसंघट्टा । मं रक्खिउमसमत्था पेच्छ उवेक्खंति तीरत्था ।।७४४४।। एयं पि चाउरंगं आवइसमयंमि जइ न उवयरिही । इमिणा निरत्थएणं बलेण ता किं करिस्सामि ?' ।।७४४५।। एवं च विलवमाणस्स तस्स न य कोइ करइ परित्ताणं । न य कस्स वि सा सत्ती जो तं नरयाओ उद्धरइ ।।७४४६।। तिरियाइयासु आहिंडिऊण नाणाविहासु जोणीसु । कह कह वि तुडिवसेणं पावइ मणुयत्तणं जीवो ॥७४४७।। संपत्तमाणुसत्तो अदूरभविओ खओवसमजोगा । भवियव्वयावसेणं दरविहडियमोहघणपडलो ॥७४४८।। सो पुनपरिणईए अणेयभवसयसहस्सदुल्लंभो । अधरीकयकप्पदुमो अचिंतचिंतामणिसरिच्छो ।।७४४९।। हत्थालंबो व भवावडंमि विवडंतयाण जो होइ । मोहंधयारमहणो रवि व्व परमत्थओब्भासी ।।७४५०।। Page #689 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६८० जो आगरो व्व पसमामयस्स करुणाए परमबंधु व्व । उप्पत्तिठाणमणहं अच्चुज्जलवरविवेयस्स ।।७४५१ ।। जो गरुयमंदरुद्दामविसमदुक्खोहदलणकुलिसो व्व । संजीवणोसहं पिव विसयविसोवद्दुयजियाण || ७४५२ ।। पज्जलियकसाउ भडदवानलोण्हवणवारिवाहो व्व । गुरुकम्मसेलवज्जो उदयगिरी केवलरविस्स ||७४५३ || अपवग्गमंदिरारोहणंमि निस्सेणिय व्व जो होइ । एवंगुणसंजुत्तो जिणधम्मो पवहणं भणिओ ।। ७४५४ ।। निज्जामओ उ जो पुण सो होइ गुरू तदत्थकरणपरो । जम्हा जिणंदधम्मो लब्भइ सुगुरुप्पसाएण ||७४५५ ।। तो कहइ गुरू निज्जामओ व्व जिणधम्मपवहणगुणोहं । जिणधम्मपवहणत्था पावंति अणुत्तरं ठाणं ।। ७४५६ ।। जं हरिसपुरं पत्तं तं निव्वाणं न एत्थ संदेहो । 1 तत्थ गएहिं य हरिसो पाविज्जइ अणोवमो राय ! ||७४५७॥ तत्थ न जरा न मच्चू न वाहिणो नेय सव्वदुक्खाई एएण कारणेणं संतोसो ताय! तुह जाओ ||७४५८ ।। ता देव! तुम्ह सुमिणाणुमाणओ तक्किओ मए होही । गुरुनिज्जामयजोगा सुधम्मवोहित्थजोगो य' ।। ७४५९ ।। आलिंगिऊण पुत्तं हरिसवसुव्वृढवहलपुलयंगो । तो भइ सूरसेणो 'सच्चो वक्खाणिओ सुविणो ||७४६० || एसो च्चिय सुविणत्थो एवं होही न अन्ना एत्थ । एहि तुह वयणेणं पुत्त पलाणं भयं मज्झ ||७४६१ || सिरिभुयणसुंदरीकहा 11 Page #690 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ ६८१ इहरा सुमिणंतरभयपवुड्डसंताणजणियवित्थारो । निब्भरभयप्पकंपो अउरुव्वो को वि मह आसि ||७४६२।। ता पुत्त! विसमसंसारसायरो विसमदुहसयावत्तो । इह चेव भवे जाओ पयडो मह तुह विओएण ।।७४६३।। परमत्थभावणाए न किं पि सुहमत्थि एत्थ संसारे । दुक्खं चिय नीसेसं सकम्मपरिणामसंजणियं ॥७४६४।। बंधुसुहं विसयसुहं धणसुहमाईणि विसयसोक्खाणि । दुक्खनिमित्तत्तणओ दुहाई परमत्थओ होंति ।।७४६५।। जे बंधुसंगजणियं सोक्खं मन्नंति केइ मइमूढा । दुक्खत्तणेण तं च्चिय तव्विरहहयाण परिणमइ ||७४६६।। परिणामदुहसरूवं विसयसुहं जे सुहं ति मन्नंति । पामावाही वि न ताण दुक्खभावेण परिणमइ ||७४६७।। मूलं अणत्थतरुणो अत्थो च्चिय होइ सव्वसत्ताण । मूढाण तह वि अत्थे अउरुव्वो को वि पडिबंधो ||७४६८।। जं पेरंते गुरुदुक्खकारणं तं न होइ इह सोक्खं । दुक्खं च्चिय तं अन्नह कारणकज्जोवयाराओ ।।७४६९।। जह कसविसुद्धरेहं दाह-च्छेदेहिं विहडियं हेमं । विबुहेहिं परिचइज्जइ दुक्खनिमित्तं तहा सोक्खं ।।७४७०।। जह मुहमहुरं परिणामदारुणं दुज्जणं जणो चयइ । तह परिणइजणियदुहं पमुहसुहं परिहरेयव्वं ।।७४७१।। कयअप्पसंकिलेसं बहुजणसंजणियसंकिलेसं च । पेरंतकिलेसफलं जइ तंपि सुहं दुहं किं नु ? ||७४७२ ।। Page #691 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६८२ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ तो वीरसेण! लोओ जाण निमित्तं किलेसइ सुहाण । तेसु असारेसु मणो फुरइ न मह दुहनिमित्तेसु ।।७४७३।। अन्नो बुज्झाविज्जइ संसारसरूववत्थ(त्थु)कहणेण । सव्वं चिय पच्चक्खं अणुअहवओ(अणुहवओ) मज्झ उणजायं ।।७४७४।। तेलोक्के वि दुर्लभं लद्रूण सुयं तुमं असामन्नं । संजायपरमहरिसो मन्नामि कयत्थमप्पाणं ॥७४७५।। सुकलत्तो य सुपुत्तो सुरज्जसंपत्तिसुत्थिओ अहयं । नियचित्तपमोएणं दुहियं मन्नामि सवं पि ॥७४७६।। तं एक्कपए सव्वं पुत्तो रज्जं च विसयसंभोया । छाहाखेड्डुसरीसं खणेण दिटुं चिय पणटुं ।।७४७७।। जइ न तुमं मह होतो ता कह तुह विरहजं भवे दुक्खं ? । तम्हा दुक्खेकफलो जीवाणं बंधुसंजोगो ||७४७८।। एएण कमेणं चिय विसय-धणाईणि मुणसु नरनाह! । घडियाई विहडणेणं जणंति बहुदुक्खपब्भारं ७४७९।। ता जह तुमए भणियं तह चेव इमं न एत्थ संदेहो । इह संसारसमुद्दे दुक्खं च्चिय न उण सुहमत्थि ।।७४८०।। धम्मो अत्थो कामो मोक्खो चत्तारि होति पुरिसत्था । सव्वुत्तमो इमेसिं मझे जो मोक्खपुरिसत्थो ।।७४८१।। आइमतिओवउत्ता पुरिसा नणु संभवंति सव्वत्थ । मोक्खत्थमुज्जमंता दुलहा ते एत्थ भुयणमि ।।७४८२।। मोखो हि नाम एसो कहिओ सव्वेहिं तित्थनाहेहिं । जत्थऽच्छइ धुयकम्मो सासयसुहसंगओ जीवो ।।७४८३।। Page #692 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६८३ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ कम्माणुभावजणियं दुक्खं संभवइ सव्वसत्ताण । तक्कारणपरिहीणे सुहमेव निरंतरं मोक्खे ॥७४८४।। पावइ कम्मेहिं जओ वाबाहाओ निरंतरं जीवो । अव्वाबाहसुहं च्चिय मोक्खे उण कम्मनासेण ।।७४८५।। गेवेज्ज-णुत्तरेसुं अंतो सोक्खस्स होइ कम्मवसा । मोक्खे उण गयकम्मो अणंतसोक्खं लहइ जीवो ॥७४८६।। दुद्धच्छु-खंड-महु-सक्कराण अहियाहिओ जहा साओ । तह सव्वसुहाहिंतो अइरित्तं होइ सिवसोक्खं ॥७४८७।। इय अजरममरमक्खयमणंतमच्चंतसुहमणाबाहं । मोक्खसुहं नायव्वं जिणपवयणभणियमग्गेण ।।७४८८।। तो विहियगिहत्थोच्चियकरणीओ संपयं अणुचरामि । तुम्हाणुमईए अहं पव्वज्जं मोक्खसुहहेऊ' ।।७४८९।। तो भणइ वीरसेणो ‘एवमिणं देव! जह तए सिटुं । अकलंक-निम्मलेहिं वि एवं चिय सिवसुहं कहियं ।।७४९०।। ता इह परमत्थवियारणाए सोक्खं न किं पि संसारे । दुक्खे वि सोक्खबुद्धी जीवाण अहो महामोहो ! ॥७४९१।। सव्वाण वि उचियमिणं नरिंद! तुम्हारिसाण उ विसेसा । ता मा कुणसु विलंबं तुह सिद्धउ वंछियं कज्जं ॥७४९२।। जो देव! जलहिबुटुं देववसा पत्तपवहणं पुरिसं । उच्चल्लिऊण घेल्लइ पुणो समुइंमि सो सत्तू ।।७४९३।। तह भवसमुद्दपडियं पव्वज्जापवहणुज्जमंतं जो । विणिवारइ सो पुरिसो परमत्थरिउ त्ति विन्नेओ ।।७४९४।। Page #693 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६८४ जह पजलंतगिहाओ वि णीहरंतं नरं नरो को वि । वारंतो सव्वेहि वि विसेससत्तु त्ति नायव्वो ।।७४९५ ।। तह नाणादुहहुयवहपजलंतं भवगिहं परिचयंतं । सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ दिक्खत्त (त्थ) मुज्जमंत जो वारइ वइरिओ सो वि ।।७४९६ ।। जह को वि रणे पुरिसो पराजिणंतो महंतमरिसेन्नं । तं बंधिऊण अप्पइ सत्तूणं सो महासत्तू ||७४९७।। तह रागाइरिउबलं पराहवंतो अउव्वविरिएण । जो कुणइ बंधि तं तव्वसगं सो महासत्तू ||७४९८ || जह को वि गोत्तिछूढो कहमवि नीहरइ तीए उव्विग्गो । ' मा नीहर इह चेट्ठसु' पभणंतो वेरिओ होइ ||७४९९ ।। तह संसारो गोत्ती नियलाई कलत्त - पुत्तमाईणि । ताइं परिच्च (च) यमाणो अरिं विणा को निवारेइ ? ।।७५००।। ता देव! अविग्घंतो अहासुहं मा करेह पडिबंधं । उत्तमपुरिसायरियं पडिवज्जसु उत्तमं दिक्खं' ॥७५०१ ॥ तो अणुकूलपभासिरकुमारवयणं नरेसरी सोउं । आणंदपुलइयंगो वयणमिणं भणिउमादत्तो ।।७५०२ ॥ ‘परमत्थकयवियारं सच्चमिणं वीरसेन ! तुह वयणं । जिणवयणभावियाणं पायं एवंविहालावा' ।।७५०३ ।। तो भाइ वीरसेणो 'आलावो च्चिय न एस नरनाह ! । तुज्झासा अहमवि दिक्खागहणं पइ जइस्से ||७५०४ || जं एत्तियं पि कालं विलंबिओ चोइओ वि गुरुणाऽहं । तं तुज्झ ताय ! दीवंतराओ आणयणकज्जेण' ||७५०५ || Page #694 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ ६८५ तो भणइ सूरसेणो सिणेहभरगलियनयणबाहोहो । पडिरुद्धकंठगग्गयगिराए पीईए पियपुत्तं ।।७५०६।। 'मा भणसु पुत्त! एवं दिक्खागहणंमि तुज्झ को कालो ? । कालोच्चियपारद्धं कज्जं सफलत्तणमुवेइ ।।७५०७।। तुममज्ज वि निज्जियसुरकुमाररमणीयरूव-सोहग्गो । पत्थिज्जसि मयणवियारिणीहिं सुरसुंदरीहिं पि ॥७५०८॥ अज्ज वि तुह तारुन्नं अमिलाणं सरयकालकमलं व । सिसिरसिरीए व छिप्पइ जराए थोयं पि न नरिंद! |७५०९।। अन्नं च एस पावो जोवणवणकाणणंमि अक्खलिओ । मणसीहो गरुयाण वि भंजइ सुहडत्तमाहप्पं ।।७५१०।। एसो इंदियनिवहो अथिरो पयईए चवलपवणो ब्व । कयगरुयपयत्तेहिं वि तीरइ न निलंभिउं वीर ! ।।७५११।। सुहडं पि सुवीरं पि सुजाइकुलसंभवं पि सगुणं पि । विनडेइ एस मयणो तिहुयणजयगव्विओ पुरिसं ॥७५१२।। अन्नं च तुमंमि इमा पुहई नवपणइणि व्व अणुरत्ता । फुडिण किन्न हिययं मरिही तुमए वि मुच्चंती ।।७५१३।। भुयणपईवंमि तए निन्नासियसयलवेरितिमिरंमि । पविसंतंमि नरेसर ! भुयणे अंधया(धा)रयं होही ।।७५१४।। एयाओ लालियाओ पयाओ पइपालियाओ तुह विरहे । पेच्छामि तं न पुरिसं जं दटुं निव्वविस्संति' ||७५१५।। इयमाइ बहुप्पयारं जंपतो सूरनरवई भणिओ । कयपुव्ववयणपरिहारसुंदरं वीरसेणेण ||७५१६।। Page #695 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६८६ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ 'जं देव ! तए भणियं दिक्खाकालो न एस इयमाई । तत्थ जहक्कममुचियं मह विन्नत्तिं निसामेहि ।।७५१७।। जइ नो दिक्खाकालो एसो ता राय! किं नु सो होही ? । जत्थ जरजज्जरंगो होहं विगलिंदिओ दीणो ? ||७५१८।। इह न विसहति दोन्नि वि कालाकालं नरिंद ! कइया वि । जयसामन्नो मच्चू भवदुक्खहरा य पव्वज्जा ।।७५१९।। पडिवालिज्जइ कालो वि राय! जइ मच्चुनिच्छओ होइ । तंमि अविणिच्छिए को करेज्ज धम्मे खणविलंबं ? ।।७५२०॥ रूवे वि कोऽणुबंधो सणंकुमारोवमाए नरनाह! । वेसकरस्स व वेसो खणिगो खलु . रूवसंजोगो ।।७५२१॥ जं तारुन्नं भणियं तं चिय दिक्खाए कारणं पढमं । थेरत्ते तव-संजमअणुट्ठा(ठाणं कह णु नित्थरइ ? ||७५२२।। मणसीहं पि खलिस्सं असमंजससेवणापरं राय! । तप्पडिवक्खमहाबलजिणपवयणसरहसरणेण ।।७५२३।। जं अविवेयक्वंतं तं खु मणं उप्पहे नरं नेइ । तं चिय विवेयसहियं पसंतयाकारणं होइ ।।७५२४।। अविवेयपवणसंखोहियंमि चित्तंमि जलनिहिजले व्व । होति वियारतरंगा तस्साभावे उवसमंति ।।७५२५।। चित्तायत्ताई नरिंद! हुंति तह इंदियाइं सव्वाइं । चित्ते वसीकए कह न ताई जायंति वसगाई ।।७५२६।। जह जोइणो चलं पि हु पवणं घणकुंभएण रुंभंति । परमप्पयंमि नसिउं डहति चिरसंचियं कम्मं ।।७५२७।। Page #696 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ तह देव! इंदियाई वि संजमजोगोवगरणभावेण । दुव्विसयनियत्ताइं कम्मक्खयकारणं होंति ॥ ७५२८ ॥ बुद्धिमया उवउत्तं विरुद्धमवि वत्थु होइ अविरुद्धं । मारणरूवं पि विसं मंतहयं होइ अमयं व्व ॥ ७५२९ ॥ कह देव! सो वि सुहडो वीरो वा विमलजाइ - कुलकलिओ । एएण अणंगेण विनडिज्जए जो हयासेण ।।७५३०|| बहिरंगसत्तुसंगरलद्धजया ते न हुंति इह सुहडा । जे अंतरंगरिउरणजयवंता ते परं वीरा ||७५३१ ॥ ६८७ दुक्करतवहुयवहपज्जलंतजालासहस्सदुप्पेच्छे । मज्झ सरीरे मयणो विलिज्जिही ताय! मयणं व्व ॥७५३२॥ जइ मत्तमयणमयगलविद्दारणपच्चलो भविस्सामि । ता वीरो हं इहरा वीर त्तिनिरत्थयं नामं ॥७५३३॥ दीहाउयंमि नरवर! अच्छंते अमरसेणकुमरंमि । कह पुहई निन्नाहा होही सुपयंडभुयदंडे ॥ ७५३४ ।। पविसंतंमि वि भुयणे न होइ अंधारयं मए नाह ! । दीवो व्व पईवाओ पयट्टिए अमरसेणंमि ॥७५३५ ।। अहिसित्ते तंमि नराहिवंमि अरिदुसहगुरुपयावंमि । ओल्हाइस्संति पयाओ ताय! लधुं परं कुमरं ||७५३६ || इय देव! तुज्झ परमत्थबुद्धिविन्नायसव्वभावस्स । कह नीहरंति परिणामनिठुरा वयणविन्नासा ? ।।७५३७ ।। किर देव! संपयं चिय अक्खाओ तुह हियाहियविसेसो । सो सव्वो वीसरिओ ? अहह महाकरुणया तुम्ह ! ।।७५३८॥ . Page #697 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६८८ ६८८ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ कह कह वि देवजोएण ताय! जोगो तए समं जाओ । कह संपइ पुण इच्छसि विओइउं नियपयजुयाओ ? ॥७५३९।। तह कह वि करिस्सं ताय! संपयं जेण मोक्खवासंमि । अविउत्ता चिरकालं भुंजामो सासयं सोक्खं' ।।७५४०॥ इय एवं पिय-पुत्ता परोप्परं जाव तत्थ जपंति । अकलंक-निम्मला वि य समागया तत्थ गयणेण ।।७५४१।। दिप्पंतविमलकेवलकिरणकलावुल्लसंतपरिवेसा । भवअंक-अंककार व्व दो वि खलयंमि सोहंति(?) ||७५४२।। हेट्ठागयनिम्मलचरणजुयलनहमणिमऊहसोहिल्ला । एंति व्व वीरपयलीणभत्तिगुणकरिसिया चंपं ।।७५४३।। पुर-पिट्ठ-उभयपासेसु सुरासुरुग्घुट्ठजयजयासद्दा । सुरधरियधवलछत्ता सब्भूयथुईहिं थुव्वंता ।।७५४४ ।। समुहावडियसुरासुरविमुक्कघणकुसुमवासकयपूया । पखुडंतकुसुमनिवहा ते जंगमकप्पतरुणो व्व ।।७५४५।। दठूण तहाविहसुरसमिद्धिसंभारमणहरे साहू । वीरो कहइ नरिंदस्स ‘ताय! एए गुरू मज्झ' ।।७५४६।। रहसब्भुट्ठियनरनाहसूर-वीरेहिं दोहिं तत्थेव । सत्तट्ठपए गंतुं केवलिणो दो वि पणिवइया ।।७५४७।। तो कारियजिणमंदिरअठ्ठाहियमाइपूयसक्कारा । नियरज्जपरिट्ठियअमरसेणपरिवड्डियाणंदा ।।७५४८।। आपुच्छियपुर-पौरा संमाणियराय-मंति-सामंता । मणवंछियसमहियदाणछिन्नजियलोयदारिद्दा ।।७५४९।। Page #698 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ ६८९ सेहरयासोयजुया सविचित्तजसा सबंधुयत्ता य । बहुविहविरत्तखेयर-खयरी-नर-नारिसंजुत्ता ॥७५५०।। कयमज्जणोवयारा हरियंदणकयविलेवणा सव्वे । दिव्याहरणसमेया निवसियदेवंगवत्था य ।।७५५१।। सिबियाए समारूढा अफा(प्फा)लियगहिरतूरसंघाया । अन्नसिबियासु चडिया विचित्तजस-सेहरासोया ॥७५५२।। सुर-नर-विज्जाहर-खेयरिंदउग्घुट्ठजयजयासद्दा । अइसघणलोयसंमद्दभरियनीसेसरायपहा ।।७५५३।। खयरिंद-नरिंदेहिं सिवियारयणे 'जय' त्ति भणिरेहिं । उक्खित्ते हेलाए पयट्टिए रायमग्गेण ।।७५५४।। बालाण बहुपलावे संसारअसायर(सार)यं च मज्झाण । निसुणंता विबुहाणं च जंति नाणापसंसाओ ।।७५५५।। रायपहे वच्चंते द→णं तत्थ पौरनारीओ ।। बहुविहविसूरियव्वेहिं कयपलावाओ विलवंति ।।७५५६।। अवरोप्परं पजपंति जायरणरणयसोयपसराओ । नयणंसुपूरखालियकवोलतलपत्तलेहाओ ||७५५७।। 'ससि-सूरविरहियं पिव हा हा! उप्पाडियच्छिजुयलं व । अंधं व अणाहं पिव एएहिं विणा जयं होही ।।७५५८।। को दट्ठव्वो नयणेहिं संपयं रूवरिद्धिजियसक्को ? । . कस्स अच्चभु(ब्भु)याइं सोयव्वाइं च चरियाई ? ||७५५९।। दूरे सहिओ! अच्छंतु ताव अन्नाइं देवियव्वाइं । कह दुक्करतवचरणं एस जुया संपयं काही ? ।।७५६०।। . Page #699 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६९० 9 सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ चंदसिरिसुकयग्गहजोग्गो कह कसिणकुंतलकलावो । असमंजसलुंचणदुक्खभाइ ( 2 ) णो संपयं होही ? ।।७५६१ ।। तंबोलदलारुणिया दसणा नवकुंदकलियसंकासा । कह णु धरिस्संति सहीओ ! संपयं औल्लिपब्भारं ? ।। ७५६२ ।। बहलहरियंदणुल्लसियगंधवासियदियंतरालंमि । कह एहि दट्ठव्वा तणुंमि वीरस्स मलपिंडा ? ।।७५६३ । महरिहसेज्जासुहसंगलालिओ पयइकोमलसरीरो । सक्करिल-कढिणखोणीयलंमि सयणं कह करेही ? ||७५६४ || जो निवसंतो देवंगपवरवत्थाई भुयणदुलहाई । मलसडियचीवराई एहि कह एस परिही ? ।।७५६५ ॥ भुयणं पि हयबुभुक्खं काउं भुजंतओ सयं जो उ । सो भुक्खासुसियंगो धराधरिं कह णु हिंडेही ।।७५६६।। हा हा ! हयाओ अम्हे किमेत्तियं जीवियाओ सहि! कालं । जं एयावत्थगयं नरनाहं पेच्छइस्सामो ? ||७५६७ ॥ अहवा सहि ! विन्नायं संसारअसारयं मए एहि । जइ सारो संसारो ता कह एएण परिचत्तो ? || ७५६८॥ को सहि ! परोक्खसुहकारणमि परिचयइ नंवर पच्चक्खं । जाव न संसारगयं वेगुन्नं किं पि विन्नायं ? ।।७५६९ ।। सहि! पेच्छ महासत्तो उद्या ( दा) रहियओ अदीणमणसो य । वीरो धूलिं व सिरिं मलसंगभएण जो चयइ ||७५७०|| अम्हारिसाओ पियसहि! खप्परखंडे वि जायलोहाओ । 'झंपणयमिमं होहि' त्ति तं पि चइउं न सक्लामो ॥७५७१ ॥ ऊल, खंता. टि. ।। : Page #700 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६९१ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ एएण जो चइज्जइ तिहुयणसारेण पुरिसरयणेण । मणचिंतियसंपज्जंतसयलसोक्खेण वीरेण ।।७५७२।। सो सहि! अवस्सविरसो संसारो होइ विरसअवसाणो । अम्हारिसाण वि मणे उप्पायइ परमनिव्वेयं' ।।७५७३॥ इय संसारासारयभावणजणजणियसुद्धपरिणामो । सलहिज्जंतो परमत्थपंडिएहिं च पुरिसेहिं ।।७५७४।। अन्नाण वि पुत्त-कलत्त-विसय-धण-धन्नमाइमूढाण । नियचिट्ठिएण तेण वि विहडावंतो महामोहं ।।७५७५।। भुयणे निदरिसणं पिव मग्गपयट्टावओ व्व लोयाण । पत्तो उज्जाणवणं वीरो सह जणणि-जणएहिं ।।७५७६।। नियनियसिवियाओ तओ सव्वे वि पवड्डमाणसुहभावा । अणुकूलसउणपसरियमणहरिसा तत्थ उत्तिन्ना ।।७५७७।। वच्चंति परमहरिसुल्लसंतरोमंचकंचुइज्जंता । अकलंक-निम्मलाणं पासंमि पक्खित्तकुसुमोहा ।।७५७८।। कयतिपयाहिणकिरिया धरणीविलुलंतकुंतलकलावा । पणमंति गुरुं भत्तीए तयणु पथुणंति य जहत्थं ॥७५७९।। 'जय अच्चुज्जलबहुविहमणग्घगुणरयणरोहणगिरिंद ! । जय भवसमुद्दनिवडंतदिन्नसद्धम्मबोहित्थ ! ॥७५८०।। जय निबिडमहामोहंधयारभुवणेक्कनिम्मलपईव ! । जय विसमकसायानलपलित्तजणसिसिरजलवाह ! ।।७५८१।। जय दंतचलिंदियतुरंगसंजमणसुदिट्ठघणरज्जु ! । जय मत्तमयणमयगलगलथल्लणकेसरिकिसोर ! ।।७५८२॥ Page #701 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६९२ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ जय संसारमहाडविभमंतजणकहियमोक्खसुहपंथ ! । जय परमत्थुब्भासणकेवलवरनाणसंपन्न ! ।।७५८३।। जय नियदसण-जलहरपक्खालियसयलपावमलपंक ! । जय सम्मइंसण-नाण-चरणकयमोक्खवरमग्ग ! ॥७५८४।। जय तिहुयणबंधव! जय मुणिंद! जय सांमि जयहि परमप्प ! । अब्भुद्धर अम्हे देव! विमलचारित्तदाणेण ॥७५८५।। तुह वयणामयसवणुल्लसंतनिम्मलविवेयतेयस्स । संसारो संजाओ उव्वेवयरो महच्चत्थं ।।७५८६।। नाणाविहसप्पसहस्ससंकुलं मंदिरं व अम्हेहिं । जह नाह! परिचइज्जइ अवायबहुलो भवो तह य ।।७५८७।। तो परमेसर! परमं काऊण पसायमम्ह कुणसु दयं । जइ अत्थि जोग्गया णे ता दिक्खं देसु भवमहणं' ।।७५८८।। इय वीरसेणवयणं सोउं अकलंककेवली भणइ । 'को अन्नो दिक्खाए जोग्गो नरनाह! तुम्ह विणा ? ||७५८९।। दुहरूवो संसारो कहियव्वो तुम्ह जो पबोहत्थं । सो मुणिओ तुम्हेहिं अओ परं किं पि जंपेमो ||७५९०।। तप्पडिघायनिमित्तं पव्वज्जा समुच्चिय त्ति भणिहामो । तत्थ पयट्टो सि सयं उवएसो निरवयासो मे ।।७५९१।। उवएससहस्सेहिं वि के वि न बुझंति कसिणघणकम्मा । अन्ने निमित्तमासज्ज किं पि बुझंति तुम्ह व्व ।।७५९२।। ता तुम्ह जहत्थाई सूरो वीरो त्ति दोन्नि नामाइं । एम्हि जायाइं भवारिनिग्गहे उज्जमंताण ||७५९३।। Page #702 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६९३ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ इय तिहुयणे वि सयले तुम्हे च्चिय राय! पुत्त(न्न)संपन्ना । तुम्हे च्चिय लद्धं माणुसस्स जम्मस्स फलमतुलं ।।७५९४।। ता मा कुणह विलंबं अहासुहं होउ कज्जसंसिद्धी' । इय भणिए सुहगुरुणा सव्वे वि अब्भुट्ठिया समयं ।।७५९५।। सुहपरिणामविसुझंतहिययनिद्दड्ढकम्मसंघाया । सुरगिरिगुरुदिक्खाभरहरिसोड्डियपीणखधंसा ॥७५९६।। आसन्नमहातवलच्छिसंगमुल्लसियपुलयपब्भारा । तव्वेलुग्गयपहरिसविसेसपफु(प्फुल्लमुहकमला ।।७५९७।। उत्तारंत्ति सहेलं हारंगय-कडय-कुंडलाईयं । पंचंगेसु य संसारपासबंधं वराहरणं ॥७५९८॥ कयपंचमुट्ठिलोया जहाविहं आगमाणुसारेण । पव्वाविया कमेणं गुरुणा अकलंककेवलिणा ॥७५९९।। तह सेहरयासोया विचित्तजसनरवई समंती य । मित्तो य बंधुयत्तो रायाणो मंति-सामंता ।।७६००।। सव्वेसिं मिलियाणं हंति सहस्सा दसद्धसीसाण । इय परिवारसमेया पव्वइया सूर-वीरमुणी ॥७६०१।। देवी सिंगारवई विजयवई तह य चंदसिरी देवी । सेहरयासोयाणं देवीओ सव्वपरिवारा ॥७६०२।। ढुक्काओ वयनिमित्तं गुरुणा पव्वावियाओ सव्वाओ । चंदसिरी पुण भणिया ‘वच्छे! मा कुणसु मणक्खे(खे)यं ।।७६०३।। एण्हि न होसि जोगा(ग्गा) वयस्स संजायगब्भभावेण । कालंतरेण होही पव्वज्जाजोग्गया तुज्झ' ||७६०४।। Page #703 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६९४ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ तो गुरुनिवारणुप्पन्नगरुयदुक्खोहहुयवहपुलट्ठा । अथक्कुनिव्वडणविवस व्व महीयले पडिया ||७६०५।। मुच्छावसअसमंजसलुलंतसव्वंगनीसहसरीरा ।। अवलोइया सकरुणं वीरेण न नेहभावेण ।।७६०६।। तो चंदणरससीयलजलहल्लिरपल्लवग्गपवणेण । आसासिओवविठ्ठा भणिया अकलंकदेवेण ॥७६०७।। 'जइ विन्नायजिणागमपरमत्थुप्पन्नसुहविवेयाए । तुज्झ वि एवं वट्टइ न अन्ननारीसु ता दोसो ॥७६०८।। सविवेइणो वि जइ निव्विवेइसरिसं करंतणुट्ठाणं । ता ताण कह विसेसो नज्जइ सामनभावेण ?' ||७६०९॥ तो चंदसिरी जंपइ ‘भयवं! अन्नो न अत्थि मह सोओ । पव्वइओ मह दइओ कह होहं संपइ इयाणिं ? ।।७६१०।। किंतु तुब्भेहिं (हि) कहियं पव्वज्जती अहं सह इमेण । पच्छिमभवंतरेसुं एत्थ भवे ता कह विउत्ता ? ||७६११।। एयं चिय मह दुक्खं अन्नं तु न किं पि देव! संभवइ । अहवा न मंदपुन्नाण मत्थए ठंति गुरुहत्था' ।।७६१२।। तो भणइ गुरू ‘मा किं पि कुणसु खेयं मणमि चंदसिरी(रि)! होही तुज्झ विलंबो पबोहहेऊ बहुजणाण ||७६१३।। अज्ज वि न तुज्झ चारित्तमोहकम्मखओवसमजोगो । संभवइ तेण संपइ कालविलंबो समुप्पण्णो ||७६१४।। इह चेव भवे सुंदरि! पव्वज्जं पालिऊण अकलंकं । वीरेण समं लहिहसि निव्वाणं नत्थि संदेहो' ।।७६१५।। Page #704 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ तो गुरुवयणायण्णणववगयनीसेसदुक्खपब्भारा । पणमइ कमेण अकलंक-सूर-वीराइसाहूण ||७६१६।। तो अमरसेणराया विणयावणएण उत्तमंगेण । वंदइ पियामहं पियरमाइसाहूण संघायं ।।७६१७।। संबोहिऊण जणणिं समयं घेत्तूण पविसइ पुरीए । पियरपयट्ठियमग्गेण कुणइ रज्जं गुरुपयावो ।।७६१८।। एत्तो य सूर-वीरा मुणिचंदा सयलसाहुपरियरिया । अब्भसियसाहुकिरिया अहीयनीसेससुत्तत्था ।।७६१९।। अंतोहुत्तवियंभियअहियाहियभवसहावनिव्वेया । पवयणभणियकमेणं चरंति घोरं तवच्चरणं ॥७६२०।। छट्टट्ठम-दसम-दुवालसेहिं मास-द्धमासखवणेहिं । परिसोसियंगलट्ठी चम्मट्ठी-प्रहारुमेत्ततणू ॥७६२१।। एगविहसंजमरया दुविहपरिचत्तबंधणा सम्मं । निच्छिन्नतिविहदंडा निग्गहियचउक्कसाया य ।।७६२२।। पंचमहव्वयदुद्धरभारधरा पंचसमियसंजुत्ता । रक्खियच्छविह(छव्विह)जीवा सत्तभयट्ठाणप(पा)मुक्का ।।७६२३।। निहयट्ठमयट्ठाणा विसुद्धनवबंभगुत्तिसंजुत्ता । दसविहधम्मसमेया इयमाइअणंतगुणजुत्ता ।।७६२४।। किं बहुणा ? अट्ठारससीलंगसहस्सभारधुरधवला । सव्वत्थ अपडिबद्धा समतण-मणि-कंचणसहावा ।।७६२५।। गिम्हमि दिणद्धे उद्धजाणुणो झलजलंतसव्वंगा । अणिमिसनयणनियच्छियसूरा आयावणं लेंति ।।७६२६।। Page #705 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६९६ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ रविवंकनालनिग्गयलूयानलजलियदेहअंगारा । नियजीवकंचणाओ कम्मकिट्ट विसोहंति ।।७६२७।। अइदूसहसूरमयूहतावपगलंतसेयसलिलोहा । अंतोसुहझाणानलविलीणनीणंतपाव व्व ॥७६२८।। आसारथूलधारानिवायपविरेल्लियावणितलंमि । वासारत्ते कंदरदरीसु चिट्ठति संल्लीणा ||७६२९।। कयचउमासचउव्विहपच्चक्खाणा चरंति तवचरणं । संजमभंगभएणं ठाणाओ पयं पि न चलंति ॥७६३०।। सिसिरसमयंमि हिमकणसंचलियपयंडमारुयप्पहया । हिमपिंडपंडुरंगा सहति सीयं महावीरा ।।७६३१।। हिमवायंतमहानिलपकंपियंगा फुरंतअहरदला । दुट्ठट्ठकम्मनिट्ठवणजायरोस व्व कंपंति ॥७६३२।। कत्थ वि मसाणभूमिसु कयकक्कुसरक्खसट्टहासासु । अब्भहियवीरहियया काउस्सग्गेण चिट्ठति ।।७६३३।। जे सुसियमंस-वस-रुहिरभाव-चम्मट्टि-प्रहारुमेत्ततणू । नियवग्गसंकिएहिं वेयालभडेहिं दीसंति ।।७६३४।। कत्थ वि रायपहेसु कयनिच्चलसव्वराइपडिमाण । थंभटभमेण वसहा अंगाई घसंति अंगेसु ।।७६३५।। इय नाणाविहदुक्करतवचरणरयाण सूर-वीराण । समइक्वंता बहुया दियसा अइसत्तवंताण ।।७६३६।। तो अकलंको जोग(ग्गं) नाउं सिरिवीरसेणमुणिचंदं । दससाहस्सियसंघस्स अहिवई ठवइ आयरियं ॥७६३७।। Page #706 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ ६९७ आयरियठावणे(ण)-समयेव(सममेव?) उप्पन्नओहिवरनाणो । दुक्करतवप्पहावाओ(उ) गयणगामी य संजाओ ।।७६३८।। इय वीरसेणसूरी विहरइ वसुहायलं भुयणसूरो । अवणंतो लोयाणं दुरंतगुरुमोहतिमिरोहं ।।७६३९।। राया वि अमरसेणो सेणासंमद्ददलियमहिवीढो । सम्मं पसाहियासेसविसमसामंतनरनाहो ॥७६४०॥ उग्गयगरुयपयावो पत्तमहारायनामधेयो य ।। पालइ वसुहं नय-विक्कमेहिं अक्तमहिवीढो ।।७६४१।। देवी वि य चंदसिरी पइदियहपवढमाणगुरुगब्भा । दइयं अविम्हरंती घरवासं मुणइ गोत्तिं व ।।७६४२।। दुसहपियविरहहुयवहपुलट्ठसव्वंगजायदाहाए । सो नत्थि उवाओ तीए को वि जह जायए सोक्खं ।।७६४३।। संधुक्कइ व(व्व) सिसिरानिलेण जलइ व्व चंदणाईहिं । उवसमहेऊहि वि अहियमेव विरहानलो तीए ।।७६४४ ।। सुविवेइणो वि मन्ने दुक्खं आवडइ किं पि तं गरुयं । छाइज्जइ सो वि हु जेण मेहपडलेण सूरो व्व ।।७६४५।। जइ छाइओ वि तह वि हु उवयारी आवयाए सुविवेओ । घणसंछन्नो वि रवी न देइ निसि-तिमिरअववा(या)सं ।।७६४६।। इय सा बहुदुक्खा वि हु गुरुवयणविसेसजायपच्चासा । संधीरइ अप्पाणं जिणवयणविभावणगुणेण ।।७६४७।। अह अन्नदिणे देवी पवड्डमाणाइरेगसंतावा । निसि महरिहसेज्जाए दंतवलभीए ओल्लरइ ॥७६४८।। Page #707 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६९८ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ दासीजणो य चिट्ठइ को वि नुवन्नो य को वि उवविठ्ठो । अन्नो य चरण-करयलसंबाहणकम्मअक्खणिओ ॥७६४९।। अवरो वि गरुयघणकसिणकेसपब्भारविवरणक्खणिओ । अन्नो उण सीयलतालियंटकयसजलघणपवणो ||७६५०।। अन्नो वि को वि चिरवीरसेणसच्चरियकहणतल्लिच्छो । अहिणंदिज्जइ देवीए दइयभत्तीए सप्पणयं ।।७६५१।। एत्थंतरंमि भणियं विलासलच्छीए ‘देवि! किं चोज्जं ? । तुह अज्ज वि देवोवरि न होइ अणुरायवोच्छित्ती ? ||७६५२।। जं जइय च्चिय हुतं वोलीणं देवि! तं तय च्चेय । किं अप्पा खेइज्जइ अज्ज वि वोलीणसुहकज्जे ? ||७६५३।। तो(ते?) संपइ गुरुवा(ठाणे पुज्जा तुह देवि! वंदणिज्जा य । कह पुज्ज-वंदणिज्जेसु कीरए तेसु अणुराओ ? ||७६५४।। गिहिभूमिमइक्ता पत्तो(त्ता) जइभूमियं भुयणपुज्जं । नियभूमियाविरुद्धो अणुराओ पावमावहइ ॥७६५५।। तो चंदसिरी जंपइ ‘सहि! एवं किं तु हयमणं मज्झ । धावइ सणेहट्ठा(ठाणं कीडियवंद्रं पि खलियं पि ।।७६५६।। एक्कभवंतरजाओ वि होइ दुत्थक्कओ सहि! सिणेहो । किं पुण सत्तट्ठभवंतरेसु वुटुंगओ जोगो ?' ||७६५७।। इयमाइएहिं ताओ सैरालावेहिं जाव चिट्ठति । ता झत्ति महासप्पो पडिओ गयणाओ कसिणंगो ।।७६५८।। चंदसिरिकसिणकम्मेहिं निम्मिओ पयइदूसहविवागो । मरणस्स व पज्जाओ अकालडंडो व्व जो पडिओ ।।७६५९।। . Page #708 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ अग्गुन्नयफारफणाकडप्पसंप्पा (पा) डिओब्भडवियासो । जमराएण व हत्था पसारिओ देविगहणत्थं ||७६६० || पसरतीए व निसिरक्खसीए कसिणंधयारघोराए । देवीए भक्खण जीहादंडो व नीहरिओ ।।७६६१ ।। पुरओ भविस्सदूसहगुरुतरदुक्खेहिं कडुविवाएहिं । हत्थालंबो व्व कओ उक्खिवणत्थं च देवीए || ७६६२ || बहुदुहसयगिलियाए देखावेक्खीए जायतण्हेण । गिलणत्थं गयणेण व जीह व्व पसारिया दूरं ||७६६३ || पुरओ उज्जोयंतो फुरंतफणरयणकिरिणदीवेहिं । रयणीतमपिहियं पिव देविं अवलोयइ भुयंगो ||७६६४ || पुरओ करालमुहनिग्गएण जीहाजुएण कहइ व्व । मरणं वा हरणं वा दो चेव गई तुहं अज्ज || ७६६५ ।। इय गरुयभीसणायारकालकायं सरीसिवं दठ्ठे । भयविवसवेविरंगो परिवारो तक्खणे नट्टो ||७६६६ || तो गरुयदिसागयदीहरकरसरिसकायविकरालं । दठ्ठे देवी भुयंगं अह सुंयरइ जिणनमोक्कारं ॥ ७६६७ || पंचनमोक्कारपहावपहयनीसेसभीसणाडोवो । तक्खणमेत्तेणं चिय सो भुयगो निफु ( प्फु) रो जाओ ||७६६८ || एत्यंतरंमि सहसा विज्जाबलपबलजणियघणपवणो । अंदोलंतो चंपापुरीए पासायसंघायं ॥ ७६६९॥ उच्छालियधरणीरयघणपडलनिरुद्धनहधरावलओ । अंतरियनयणपसरो वेयवसुप्पाडियदुम्मे ( मे ) हो ||७६७० || ६९९ Page #709 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७०० सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ इय गयणधरावलयं जंपंतो पंसुणा तहिं पत्तो । नामेण चंडकेऊ लहुभाया पवणकेउस्स ||७६७१।। सो पवणकेउवहकाल एव सेले विसालसिंगंमि । उग्घोसिउण वैरं उप्पइओ वीरपच्चक्खं ॥७६७२॥ पालते वीरनराहिवंमि पुहइअभग्गमाहप्पे । सगिहाओ न नीहरिओ एत्तियकालं भउब्भंतो ॥७६७३।। संपइ पुण नाऊणं गिहीयदिक्खं नराहिवं पावो । चिरवेरमणुसरंतो निराकुलो आगओ तत्थ ॥७६७४॥ आगंतूण य तेण अद्दी(दि)स्समाणेण बहलधूलीए । अह परिवारसमक्खं अवहरिया चंदसिरिदेवी ।।७६७५।। तक्करयलफंसेणं कोमलतूलीनिवेसवाएण । नायं अवहरिया हं गयणे केणाऽवि खयरेण ।।७६७६।। तो चिंतइ चंदसिरी खयरेणं तेण अवहरिज्जती । 'किं कारणमेएणं हरिया हं पावकम्मेण ? ॥७६७७।। अहवा थोवं एयं विवरोखे तस्स भुयणवीरस्स । अज्ज वि बहु दट्ठव्वं दुक्खं बहुदुक्खजोग्गाए ।।७६७८।। ता को एसो पावो ? हरिऊणं किं व एस मह काही ? | अहवा किं नायव्वं ? राग-दो(दो)सुकुडो को वि ।।७६७९॥ रागंधो वा अणुरायपरवसो अवहरेइ परनारिं । वेराणुबंधचित्तो बीओ उण जलियकोवग्गी ।।७६८०।। अन्नं न अत्थि अवहरणकारणं एत्थ सयलभुयणे वि । राग-दोसा च्चिय हुंति एत्थ मूलं अणत्थाण ||७६८१।। Page #710 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ ७०१ अवहरउ किं व काही ? मह सामन्नाण निच्छयमणाए । नियसीलरक्खणं वा मरणं वा जीए इट्ठाई ।।७६८२।। सोओ वि कहं कीरइ जुयइसहावत्तणेण जो सुलहो । नियकम्मउवणयाई सोएण न जंति दुक्खाइं ॥७६८३।। ता जं जं मह होही दुक्खं संपाडियं सकम्मेहिं । तं तं चिय सहियव्वं मणखेयं अकयमाणीए' ||७६८४।। इय एवं चिंतंती चंदसिरी चंडकेउणा तेण ।। अवहरिऊणं नीया सिहरोवरि मलयसेलस्स ||७६८५।। ठविऊण तत्थ खयरो जा जोयइ रूवसंपयं तीए । विम्हयपसारियच्छो सहसा ठगिओ व्व ता जाओ ||७६८६।। 'अहह महच्छरियमिणं तिहुअणअब्भहियरूवगारविया । जस्सेसा पियभज्जा सफलं खलु जीवियं तस्स ||७६८७।। एसा उन्नयभूधणुविमुक्कतिख(क्ख)ग्गमयणबाणेहिं । ससुरासुर-मणुयाइं निज्जिणइ जयाई न हु भंती ||७६८८।। सइ संपुन्नस्स अलंछणस्स एयाए दोसरहिआस्स । ओयारणयं कीरइ इयरससी मुहमयंकस्स ||७६८९।।।। एयाए अइविसालं अच्चुन्नयगुरुपओहरक्तं । विज्जाहरामराणं गम्मं गयणं व वत्थयलं ।।७६९०।। बलिणा अकंतो इव विवरोक्खे वीरसेणरायस्स । झीणो इमीए मज्झो अहिययरं मज्झदेसो व्व ।।७६९१ ।। परिवियडनियंबत्थलपरिट्ठिओ ऊरुजुयलखंभद्धे । मयणो मत्तगओ इव निरंतरं वसइ एयाए ।।७६९२।। Page #711 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७०२ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ इय नियनियदेहोच्चियविभायसुविभत्तरूवसोहाए । जं जं चिय पुलइज्जइ तं तं चिय जणइ अणुरायं ॥७६९३।। पयइए(ईइ) सीलकलिया विसेसओ सावयत्तभावेण । परपुरिससंगविमुहा कह एसा मज्झ संघडिही ।।७६९४।। पुट्विं असोयराएण रूव-विन्नाण-गुणमहग्घेण । अवहरिया तह वि न से अणुरत्ता सा कहं मज्झ ?' ||७६९५।। इय एवमाइबहुविहवियप्प-संकप्पसंकुलो चंडो । जावच्छइ चंदसिरी ता तं इय भणिउमाढत्तो(त्ता) ॥७६९६।। 'किं अवहरिया खेयर! अणुरत्तेणं अहव कुद्रेण ? ।। जइ रत्तेणं हरिया ता विफलो तुज्झ पारंभो ||७६९७।। अहवा परिकुविएणं ता मारसु किमिह किर विलंबेण ?' । इय पभणितिं देविं पुण पभणइ चंडकेऊ वि ॥७६९८।। 'हरिया सि मए सुंदरि! बंधववेराणुमग्गलग्गेण । तुह दंसणेण संपइ वेरं पि पणासियं देवि ! ७६९९।। तं चिय रूवं भन्नइ मारणववसायजायबुद्धीण । कुद्धाण वेरियाण वि जं दिटुं कुणइ अणुरायं ।।७७००। जाणामि तुज्झ सीलं गुणा वि तुह तिहुयणं पि रज्जंति । अम्हं गुणाणुरत्ताण किं पि जं कुणसि तं कुणसु' ॥७७०१।। भणियं चंदसिरीए ‘अलियं चिय च(ल)वसि जायमइमोहो । दोसाणुराइणं पि हु जं अप्पं भणसि गुणरत्तं ॥७७०२॥ अणुराओ परनारिसु दोसो च्चिय सो जयंमि सुपसिद्धो । दोसाणुराइणो तुज्झ खयर! जुत्ता नणु उवेक्खा ।।७७०३।। Page #712 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ सच्चं चिय रागंधो उचियाणुचियं न जाणसे मूढ ! । कह रायहंसदइयं धिट्ठो वि हु वंछए रिट्ठो ? ||७७०४।। जायइ दुहेक्कहेऊ अणुराओ हरिणयस्स नियमेण । सीहकलत्ते खेयर! मणोरहाणं पि हु अगम्मे ॥७७०५॥ खज्जोओ व्व न लज्जसि अहिलसमाणो रविस्स पियभज्जं । डज्झिहसि फुडं खेयर! नियफुरणबलेण परिहीणो ।।७७०६।। कायस्स व तुह जाया सत्ती जै(जइ) कहवि गयणगमणमि । ता एत्तिएण मन्नसि अप्पाणं वत्थुबुद्धीए ! ||७७०७।। अहवा को तुह दोसो ? गोत्तं चिय तुम्ह पावकम्मयरं । चंडालकुलं मोत्तुं नन्नो गोमंसमहिलसइ ।।७७०८।। पच्चक्खदिट्ठपरनारिरत्तनियभाउविरसपरिणामो । तह वि न अज्ज वि सिक्खसि अहह महामोहमूढो सि ! ॥७७०९।। वस-मंस-रुहिर-पूयंत-मुत्त-बहुकलिलअसुइरसभरियं । परनारिमिसेण नरा वेयरणिनई व गार्हति ॥७७१०॥ बिंबाहरकुसुमडुं समुच्चरोमंचकंटयाउलियं । . आलिंगंति हयासा सिंबलिरुक्खं व परनारिं ॥७७११।। दिटेहि वि तेहि नरेहि नवर अल्लियइ पावपब्भारो । जाण मणंमि वि जायइ परनारिपसेवणावंछा ॥७७१२।। ते सुणया न मणुस्सा जे जुयइसु अकयअप्प-परभावा । जम्हा न ताण परनारि-माउ-भइणीकयविवेओ ॥७७१३।। रायविरुद्धं जणनिंदियं च नरएक्कपडणहेउं च । कह जाणंता वि नरा मूढा सेवंति परनारिं ॥७७१४॥ Page #713 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७०४ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ अणुरत्त त्ति कहं सा सेविज्जइ निब्भराणुरत्तेहिं । जा इह परलोएसुं कारणमिह होइ दुक्खाण ।।७७१५।। परनारिं सेवंतं को मं मुणिहि त्ति धरसु मा हियए । अप्पाण च्चिय होही अकम्मनिरयस्स तुह सत्तू ।।७७१६।। खणलवसुहस्स कज्जे बहुसागरदुत्ता(त्त)राइ दुक्खाइं । मा अज्जिण बहु छेयं निल्लाहं कुणइ को कज्जं ?' ||७७१७।। इयएवमाइ भणियं चंदसिरिं खेयरो पुणो भणइ । हियउल्लसंतअइभीमरोसरज्जंतनयणजुओ ।।७७१८॥ 'जइ तुह न अम्ह उवरिं अणुराओ ता कयाइ मा होउ । अस्सोयव्वाइं कहं भाससि अइदुट्ठवयणाई ? ||७७१९।। ता दुव्वयणपहासणफलमेयं उवणयंतु तुहमेण्हि । चइऊण अणुणयमहं हढेण तुममज्ज भुंजिस्सं' ||७७२०।। तो चंदसिरी तव्वयणसवणचारित्तभंगभयभीया । मलयसिहराओ घेल्लइ अप्पाणं छिन्नटंकमि ॥७७२१॥ इह सीलजीवियाणं सीलं चिय वल्लहं कुलवहूण । लब्भइ पुणो वि जीयं सीलं पुण खंडियं कत्तो ? ||७७२२।। सीलं भुयणदुलंभं रक्खंतीए पवुड्डपुलयाए । देवीए जीवियं तिणतुलाए तुलियं तहिं समए ।।७७२३।। एत्थंतरे पडती चंदसिरी तक्खणे गिरियडाओ । मलयाहिवेण दिट्ठा जक्खेणं मलयमेहेण ||७७२४।। साहम्मिवच्छलेणं चंदसिरीसत्तहरियहियएण । जक्खेण अकयबाहं पडिच्छिया कोमलकरहिं ।।७७२५।। Page #714 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७०५ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ पेच्छइ सहावमणहररूवनिवेसुल्लसंतसोहग्गं । सो जक्खो चंदसिरिं तरलच्छो तियसनारिं व्व ।।७७२६।। दठूण मणे चिंतइ ‘पसत्थबहुलक्खणंकियसरीरा । एयाए आगियइ(गिई)ए एसा अच्चुत्तमा नारी ॥७७२७।। आपंडुरगंडत्थलखामकवोलत्तणेण कहइ व्व । आवनसत्तभावं पयईए मणोहरच्छायं ॥७७२८॥ अच्चुज्जलकंतिकलावधवलियासेसवोमवित्थारा । कोमुइनिसि व्व एसा सरयब्भंतरियससिबिंबा' ॥७७२९।। इय चिंतिऊण जक्खो मलयद्दिगहीरकंदरदरीए । विवरदुवारेणं तो पविसइ सह तीए नियभवणं ।।७७३०॥ नेऊण तत्थ मणहरमणिमयपल्लंककोमलु(ल)त्थुरणे । मोत्तुं देविं जंपइ जक्खो दूरासणनिविट्ठो ॥७७३१।। 'मा भाहि मलयसिहराओ निवडमाणी मए तुमं धरिया । मलयमेहाहिहाणेण एत्थ वत्थव्वजक्खेण ॥७७३२।। कस्स न जायइ हिययं सपक्खवायं गुणीसु सगुणाण । इय आणि(णी)या इहई तुमं मए निययभवणंमि ।।७७३३।। ता तुह इमं(एयं?) गेहं अहं पिया तुज्झ अच्छ वीसत्था । सन्निहिओ तुह वट्टइ पसूइसमओ वि पसयच्छि! ।।७७३४।। पच्छा नीसल्लाए जं जह समयोचियं तयं काहं' । इय भणिया चंदसिरी सत्थमणा भणिउमाढत्ता ।।७७३५।। 'तुह गेहे अच्छंतीए मज्झ न हु अत्थि कोइ मणखेओ । जीए गुणपक्खवाई जणओ सि तुमं समीवत्थो ||७७३६।। XG Page #715 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७०६ . सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ आवइवडियाए महं अपरित्ताणाए तह आ(अ)णाहाए । मोत्तूण तुमं पुन्नोदओ व्व को कुणइ कारुन्नं ? ॥७७३७॥ जइ न तुमं गेण्हंतो ता हं गिरिवियडकूवतडपडिया । होऊण मंसपिंडो जोग्गा हुंती सी(सि)यालाण' ॥७७३८॥ तो भणइ जक्खराया 'न पुत्त! एएण आगिइगुणेण । एएहि लक्खणेहिं य दुक्खं पेच्छंति नारीओ ॥७७३९।। अह कह व पुव्वकम्माणुभावसंपाडियं दुहं होइ । तह वि न तं होइ थिरं विहडइ तस्साणुहावेणं' ॥७७४०।। इय चंदसिरी जक्खाणुहावसंपज्जमाणमणतोसा । सव्वत्तो अवलोयइ तं भवणं जक्खरायस्स ॥७७४१।। नीसेसकणय-मणि-रयणनिम्मियं विविहभूसियातुंगं । उत्तुंगसिहरसंठियधयमालासहसरमणीयं ॥७७४२ ।। उव्वत्तणेण पिहुलत्तणेण संगहियगयणवित्थारं । • मणि-रयणकउज्जोयं सजोइसं भुयणवलयं व्व ॥७७४३।। पयइविसालं तुंगं अणेयमणि-रयण-भूसणुज्जोयं । पुन्नज्जणेहिं ठाणं हिययं पिव मलयसेलस्स ॥७७४४।। बहुखनवाइभीओ •भवणमिसेणं व रयणमणिसिहरो । रोहणगिरि व्व सरणं पडिवन्नो मलयसेलस्स ||७७४५।। विविहमणिरयणबंधं जं कंचणघडियपेढवित्थारं । सीहासणं व सोहइ तलट्ठियं सेलरायस्स ।।७७४६।। फालिहभित्तिसु संकंतनीलमणिथंभदंसंणुत्तसिओ । रक्खसभएण दइयं आलिंगइ जत्थं जुयइजणो ॥७७४७।। Page #716 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७०७ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ दठूण मिहुणयाई नियपडिबिंबाई व[फ]लिहभित्तीसु । जणसंमद्दभएण व सुरयसुहं नाणुसेवंति ॥७७४८॥ समुहट्ठियाण अन्नोन्नभित्तिसंकंतदिट्ठरूवाण । सुव्वइ परनर-नारीभमेण कलहो मिहुणयाण ||७७४९।। कत्थ वि घणविदुमसोणकिरिणवित्थारभरियदिसिचक्कं । संज्झासमयजिणच्चणसंमोहं जणइ जक्खाण ॥७७५०।। कसणिंदनील-मरगयमऊहमंसलियएकपेरंतं । निबिडंधयाररयणीवामोहं कुणइ जक्खाण ॥७७५१।। बहुकक्केयण-घणपुस्सरायकिरिणोहरंजियदियंतं । वहइ पओसे वि पहायसमयसंकं सुरवहूण ||७७५२।। इय तं मणोभिरामं भवणं सिरिमलयमेहजक्खस्स । पेच्छंती चंदसिरी सच्चविया जक्खविलयाहिं ॥७७५३।। अच्चभु(ब्भु)यचंदसिरीसरीरसोहग्गदंसणरसेण । अवरोप्परेण तासिं संजाया बहुविहवियप्पा ।।७७५४।। 'देवि व्व सावभट्ठा किं वा दणुसुंदरी(रि) व्व इह पत्ता । विज्जाहरि व्व एसा आणीया जक्खराएण ||७७५५।। का होज्ज? कस्स एसा? किं वा इह केण वा वि कज्जेण । संपत्ता? अच्चब्भुयनियरूवुप्पाइयाणंदा ।।७७५६।। अवलोइयं तिलोए रूवं नियरूवसन्निहमिमीए । न य दिटुं पुण इहई समागया कोउहल्लेण ।।७७५७।। नियरूवगव्वियाणं अहवा सुर-असुर-जक्खविलयाण । विहडावंती गव्वं एसा परियडइ भुयणंमि' ॥७७५८।। इय चंदसिरीवररूवदंसणुप्पन्नविम्हयरसाण । एमाइया वियप्पा संजाया जक्खविलयाण ||७७५९।। Page #717 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७०८ सिरिभुयणसुंदरीकहा। तो भणइ जक्खराया नियपरिवार विसुद्धनेहेण । विणओनमंतसिरधरियपाणिसंघडियकरकोसा(सं?) ७७६०।। 'देवि व्व सामिणी वा जणणि व्व गुरु व्व भुयणपुज्ज व्व । परमप्पयं व एसा दट्ठव्वा निव्वियप्पेहिं ॥७७६१।। एसा हि सयलपुहईसरस्स सिरिवीरसेणरायस्स । हियएकुपिया भज्जा महासई विमलसीलड्ढा ॥७७६२।। आणीया केण वि खेयरेण चिरवेरमणुसरंतेण । मलयसिहरंमि ठविउं हढेण भोत्तुं समाढत्ता ॥७७६३।। तो नियनिम्मलकुल-सील-कित्ति-परलोय-धम्मरक्खटुं । । मलयसिहराओ अप्पा पवाहिओ निव्विसंकाए ।।७७६४।। तो कम्मधम्मजोगा इमीए सुहपुन्नकरिसियेण मए । कोमलकरंजलीए पडिच्छिया इह य आणीया ॥७७६५।। ता धन्ना कयपुन्ना पवित्तदेहा य चित्तचरिया य । जत्थेसा वसइ सई तं पि पवित्तं भवे ठाणं ॥७७६६।। जो हु अखंडियसीलो जिणधम्मनिलीणमाणसो होई । अच्छउ ता इयरजणो देवा वि हु तस्स पणमंति ॥७७६७।। सीलं चिय चारित्तं सीलं च तवो गुणा य सीलं च । सीलपरिवज्जियाणं न तवो न गुणा न चारित्तं ।।७७६८।। अविरयमणाण जम्हा देवाण वि दुल्लहं भवे सीलं । कह तं परिवालंतो न वंदणीओ सुराणं पि ।।७७६९।। सुलहाइं रयण-मणिमयविविहाभरणाई एत्थ भुयणमि । एयं चिय जयदुलहं सीलाहरणं परं एक्कं ।।७७७०।। Page #718 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७०९ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ ववगयसीलाहरणा आहरणसहस्सभूसियंगी वि । गावि व्व असुइगिद्धा न सोहए लोयमझंमि ॥७७७१।। इय तुम्ह देवया इव वंदा पुज्जा य सव्वया एसा । जम्हा गुणबहुमाणो होइ निमित्तं गुरुगुणाण' ॥७७७२।। इयमाइ जंपिऊणं चंदसिरिं परियणस्स अप्पेउं । . भुंजइ जक्खो भोए बहुजक्खिणिविंदपरियरिओ ||७७७३।। देवी चंदसिरी वि य अजत्तसंपज्जमाणसयलत्था । चिट्ठइ परमसुहेणं निए व गेहे विगयसोया ॥७७७४।। जह जह वड्डइ गब्भो तह तह गब्भाणुभावरमणीया । आणंदनिम्मियं पिव मन्नइ सयलं पि तेलोयं ।।७७७५।। चंदसिरिगब्भमाहप्पसंभवा मलयमेहभवणंमि । संजाया सुहभावा निमित्तसउणा य सुपसत्था ।।७७७६।। अनिमित्तो च्चिय वड्डइ आणंदो जक्ख-जक्खिणिजणस्स । रिउणो वि हु पडिवन्ना भिच्चत्तणं (भिच्चत्तं) मलयमेहस्स ।।७७७७॥ जं किंचि य मणेण चिंतई असज्झमवि तं पि सिज्झए कज्जं । जाओ य अयंड च्चिय पुरंदरस्साऽवि सुपयंडो. ॥७७७८।। इय एवमाइ बहुविहसुहाणुहावत्तणेण रमणीया । संजाया सुहभावा चंदसिरीगब्भभावेण ॥७७७९॥ तो भणइ जक्खराया 'तुह पुत्त ! पसत्थगब्भमाहप्पा । एसो मह अब्भुदओ पुट्विं न कया वि जो जाओ ।।७७८०।। ता किं पि तुज्झ उयरे सुहाणुमाणेण पुत्त ! तक्केमि । अच्चब्भुयप्पहावं संभूयं किं पि गुरुसत्तं ।।७७८१ ।। Page #719 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७१० सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ नीसेसभुयणपिंडियएचट्ठियतेयगब्भभावेण । तुह तेओ सो देहो जो अम्हं नयणदुद्धरिसो ।।७७८२ ।। तेलोक्कसमग्गलगब्भरूवअणुहावओ व अउरुब्यो । तुह को वि सरूवाए वि रूवाइसओ समुप्पन्नो ।।७७८३ ।। जं वोत्तुं पि न तीरई न चिंतिउं जाइ जं च हिययंमि । तमणज्झवसेयं चिय माहप्पं तुज्झ अंगेसु' ।।७७८४।। इय चंदसिरी मलयाहिवेण अहिणंदिया बहुप्प(प)यारं । धारइ गभं संसारसारभूया पहिट्ठमणा ।।७७८५।। तो नियकालकमेणं संपत्ते अणहदसममासंमि । सुपसत्थलग्ग-तिहि-वार-जोय-नक्खत्त-दियहमि ।।७७८६।। देवी तमुत्तरोत्तरवुड्डिकरि ससिकलं व सिया(य)वीया । भुयणेक्कवंदणीयं धूयारयणं पसूया सा ।।७७८७।। तक्खणमेत्तेणं चिय किंकरकरताडणानिरावेक्खं । वज्जति दुंदुहीओ पडंति तह कुसुमकुंट्टीओ ||७७८८।। वित्थरइ सव्वओ च्चिय वरवीणा-वेणुमीसिओ गयणे । अल्लक्खकिंनरीयणपयट्टिओ महुरगेयरवो ।।७७८९।। पसरंति मंथरं मासलाओ(?) सुरसुंदरीण सव्वत्तो । जयजयसद्दज्झुणीओ मंगलपाढावलीओ य ।।७७९०।। तो सहसा उच्छलिआ जक्खिणिलोयस्स भरियभुवणंतो । आणंदकलयलो सूइयाहरे रायपत्तीए ।।७७९१।। वद्धाविओ सहरिसं परियणलोएण जक्खराया वि । कारावइ परितुट्ठो वद्धावणयं मणभिरामं ।।७७९२।। Page #720 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीक हा ॥ वज्जंतमहुरमद्दल-मउंदपडिसद्दबहिरियदियंतं । पडुपडहताडणुब्भडपडिरवसंघडियघणघोसं ॥७७९३॥ नाणाविहगहिराउज्जमणहरुल्लसियसद्दगंभीरं । नच्चंतविविहजक्खिणिजणवढियपरमपरितोसं ॥७७९४।। नच्चिरनारीसंमद्दखुडियभूसणकलावमणि-रयणं । अप्पायंतं घणरयणबुद्धिसंकं सुरवराण ॥७७९५॥ करणंगहारवसउच्छलंतसियहारकिरणवित्थारं । नीहारहारधवलं धूयाकित्ति व्व विक्खिरइ ।।७७९६।। कुंकुमरसपूरियकणयसिंगअन्नोन्नसिंचणमिसेण । रंजंति व विलयाओ भुवणं धूयाणुराएण ||७७९७।। धरियवरिल्लंचलएक्ककरयलुक्खेवलडहविणिवेसं । नच्चंति सुंदरीओ उच्चलियजयपडाय व्व ॥७७९८।। झणझणिरकर-चरणनेउर-रसणा-मणिकिंकिणीकलरवेण । उग्गिन्नताललयसुंदरं व न हरेइ कस्स मणं ? ||७७९९।। वियडथणत्थलसंघट्टतुट्टवरहारमोत्तियसमूहं । धूयाभविस्ससियजसतरुवरबीयं व वावंति ॥७८००॥ इय सयलजक्ख-जक्खिणिजणजणियाणंदनिब्भरं तत्थ । विविहं वद्धावणयं सपहरिसं मलयमेहेण ॥७८०१॥ कीरंतविविहरक्खं दारनिहिप्पंतपुन्नकुंभजुयं । मुच्चंतलोहरक्खं गहीरसुव्वंतघडसई ।।७८०२।। गिज्जतमंगलसयं पासविमुच्चंतओसहीवलयं । अन्नोन्नकज्जवावडसूइणिसयसंकडपवेसं ॥७८०३॥ Page #721 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७१२ बज्झतविविहकंडयरक्खासयनिहयदुट्ठजणपसरं । बहुजंतलिहियकिरिया वावडमणमंतवाइगणं ॥ ७८०४ || कीरंति संतियमं (म्मं) समीवजप्पंतपरमजिणमंतं । पूईज्जमाणसिरिवीरसेणकुलदेवयानिवहं ॥ ७८०५ ।। बिउण-चउगुणपरिवेट्ठिमुक्कुघणजक्ख अंगरक्खभडं । दूरनिवारियजणवयसूईहरनिग्गमपवेसं ॥ ७८०६ ।। नियडोवविट्ठनिमित्तिलोयगिज्जंतलग्गगुणनिवहं । एवंविहं पविट्ठो सूईहरयं मलयमेहो || ७८०७।। उवविसइ मणिमयासंदियाए वियसंतदीहरच्छिउडो । अवलोयइ धूयं जायगरुयमणविम्हओ जक्खो || ७८०८ || दुद्धरिससरीरुव्भवपहाभिभूओरुकिरिणमणिदीवा । परतेयमसहमाणि व्व समहियं तेयमुव्वहइ ।। ७८०९।। स(सु) कुमारपाणिपल्लवपसत्थरेहाहि सुव्वलिहयत्थं । नियसुकयहुंडियं पिव करेहिं जक्खस्स दरिसेइ ||७८१० || चिरमवि जं दीसतं वड्ढइ अहिरूवदंसणे तन्हं । सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ तं वहइ सुरभवाओ अणुमयमिव अणुवमं रूवं || ७८११ || इय चंदसिधूया दिट्ठा जक्खेण विम्हयरसङ्कं । नयणंजलीहि व सुहं लायन्नं घोट्टयंतेण ।। ७८१२।। आपायसिरग्गाओ पसत्थवरलक्खणंकियसरीरं । दट्ठूण रायधूयं अह जक्खो भणिउमादत्तो ||७८१३।। 'चंदसिरि ! तुज्झ एसा चिरसुचरियपरिणई व्व अवयरिया | धूयामिसेण इह पच्चक्खा नत्थि संदेहो || ७८१४।। Page #722 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ एयंगलक्खणेहिं नियनाणबलेण पुत्त ! जाणामि । एसा तिहुयणकल्लाणभायणं बालिया होही ।।७८१५।। सारं संसारस्स व भूसणमिव पुन्नभुवणवलयस्स । तिलयं व तिलोयस्स वि जायं तुह कन्नयारयणं ॥७८१६।। तुम्हारिसाण अहवा भवियव्वं एरिसेहिं रयणेहिं । रोहणतडिं विणा इयरमहिहरेसुं न रयणाई ||७८१७।। कारणसरिसं कज्जं निप्फज्जइ सयलजीवलोयंमि । न हि सहयारदुमाओ लिंवफलं होइ कइया वि ।।७८१८।। जो एयं परिणेही सोऽवस्सं चउसमुद्दवसुहाए । भूवालमौलिलालियकमवीढो भुंजिही रज्जं' ||७८१९।। इय भणिऊणं जक्खो रक्खं काऊण माउ-धूयाण । भुंजंतो वरभोए चिट्ठइ सह जक्खविलयाहिं ।।७८२०।। तो अइगयंमि मासे गरुयमहिड्डीए वड्डियाणंदो । कयसमुचियकायव्वो नामट्ठवणं परिठ्ठवइ ।।७८२१।। एयाहिंतो भुयणे वि नत्थि सुंदेरसंजुया का वि । ठावइ जक्खो सिरिभुयणसुंदरी नाम धूयाए ।।७८२२।। एवं सा पइदियहं परिवड्डइ जक्खरायभवणंमि । कप्पलय व्व सकोउयसुरनारीलालियसरीरा ।।७८२३।। अन्नन्नाहि करग्गे घेप्पंती जक्खिणीहिं सा वाला । संचरइ नलिणिकमलेसु सरहसं रायहंसि व्व ।।७८२४।। सा रायसीहधूया जह वड्डइ मलयकंदरदरीए । तह दुट्ठदुकम्माणं तमगम्मं कारणं जायं ।।७८२५।। Page #723 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ एवं मा मुणह मणे नारीण वि कह णु हुँति अणुहावा । वटुंती चंदकला निसि तिमिरं किं न नासेइ ? ||७८२६।। नासंति दूरओ च्चिय दुट्ठभुयंगा भएण अडवीए । जत्थच्छइ तणुया वि हु भुयंगदमणी गुरुपहावा ।।७८२७।। कीलइ विलाससरसीसु जक्ख-जक्खिणिजणेहिं परियरिया । भवणुज्जाणेसु तहा कीलासरियासु रम्मासु ॥७८२८।। कीलानईसु कोमलपुलिणत्थंगेसु वालुयकएहिं । कीलइ जिणभवणेहिं विसुद्धपरिणामसंपन्ना ।।७८२९।। नियभवणे वि तह च्चिय घरूलइंतो पइट्ठइ जिणिंदं । पूयइ विहीए उज्जलनेवत्था विविहपूयाहिं ।।७८३०।। मंडइ धिउल्लियाओ नाणामणि-रयणमंडियंगीओ । पाडइ पाएसु सयं ताओ वि जिणिंदचंदाण ॥७८३१।। तो पुच्छइ चंदसिरी ‘पुत्त ! किमेयाहिं तुह धिउल्लीहिं ?' । पुण देई उत्तरं सा ‘मा अंब ! इमं पयंपेसु ।।७८३२।। साहम्मिणीओ जेणं तेणं मह वल्लहाओ एयाओ । पणमंति जेण पेच्छसु पराए भत्तीए जिणनाहं ॥७८३३॥ साहम्मियाणुराओ कमेण किर मोक्खकारणं भणिओ । इय अम्ब ! मए निसुयं तायसमीवे कहिज्जंतं' ।।७८३४।। इय निरुवएसनियमइपरियप्पियधम्मज्झाणसुद्धमणा । कीलाहिं वि सा वियरइ गरुयाण वि धम्मववसायं ।।७८३५।। एवं च भोलिमारहियजरढमईजायकिंचिउम्मेसं । पत्ता कुमारभावं विन्नाण-कलागहणजोग्गं ।।७८३६।। १. पूतली-ढींगली ।। Page #724 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ तो सा अमाणुसोच्चि(चि)यसुहुमयरमई पडिच्छयविसेसं । जं किं वि भुयणमज्झे विन्नेयं तीए तं नायं ।।७८३७।। विज्जा-विन्नाणगयं दिटुं च सुयं पि किं पि जं तीए । उवएसनिरावेक्खं पि झत्ति तं तीए संकमइ ।।७८३८।। दंसणमेत्तेण वि दिणयरस्स वियसंति किं न कमलाइं ? । दिसिदरिसणमेत्तं चिय विमलमईणं उवज्झाया ।।७८३९।। इय सा तियसासुर-जक्खलोयआणंदकारयं बाला । संपत्ता तारुन्नं विलोहणीयं तिलोयस्स ।।७८४०।। वणराइ व्व वसंतं सरयं व सरोइणी समहिगम्म । नियसमयं ललिउज्जललायन्नं जोव्वणं पत्ता ।।७८४१॥ संमोहणं व भुवणत्तयस्स विहेसणं व धम्मस्स । वसियरणं व सुरासुर-विज्जाहर-नरसमूहाण ॥७८४२॥ उच्चाडणं मुणीण वि हियएसु विवेयसुद्धभावाण । थंभणमिव भुवणस्स वि तिस्सा तारुन्नयं जायं ।।७८४३।। परपुरिसो व्व न सम्माइ तीए वच्छत्थले विसाले वि । थणपन्भारो तब्भारभुग्गसरलंगलट्ठीए ॥७८४४।। अइवियडनियंबाण वि सुरंगणाणं पि कंचिदामाइं । तिस्सा अपमाणनियंबमंडले नो पहुप्पंति ॥७८४५।। कप्पूरपंसुणा इव सव्वत्तो ससहरस्स जोण्हस्स । अमयच्छडं व पसरंति तीए सरलच्छिविच्छोहा ।।७८४६।। मयणघडिय व्व सरसा वियाररइय व्व पडिहयप्पयई । विलसंति तीए अंगे अउरुव्वा के वि य विलासा ॥७८४७।। Page #725 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७१६ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ अह अन्नदिणे दटुं चंदसिरी पत्तजोव्वणं धूयं । विन्नवइ मलयमेहं धम्माणुट्ठाणबुद्धीए ॥७८४८॥ 'इह ताय ! भवसमुद्दे दुलहं मणुयत्तणं लहेऊण । अप्पहियं कायव्वं सव्वारंभेण बुद्धिमया ।।७८४९।। तं च न धम्मविहीणं जायइ परमत्थओ इह जयंमि । सव्वावत्थासु गयं धम्मो च्चिय जीवमुद्धरइ ।।७८५०।। दुहियस्स बंधवो इव दारिद्दहयस्स वरनिहाणं व । वेज्जो व्व वाहियस्स ओसुहियस्स य परमसुहहेऊ ||७८५१।। किं बहुणा ताय ! पयंपिएण ? तं किं न जं इहं धम्मो । परिणमइ उत्तरोत्तरकल्लाणपरंपराभावं ? ||७८५२।। जह उच्छुरसो पढमं कक्कुबरूवो पुणो गुडो होई । सो च्चिय जायइ खंडं तम्हा पुण सक्करत्तं च ।।७८५३।। एवं जिणधम्मो वि य अणंतकल्लाणकारणं होइ । नर-खयरासुर-सुरसुहकमेण मोक्खं पसाहेई ।।७८५४।। तो तुमए अणुनाया सिवसोक्खफलंमि परमधम्ममि । संसारदुहविग्गा(दुहुव्विग्गा) अणन्नहियया पयट्टामि ।।७८५५।। दोहित्तिया तहेसा अज्जं कल्लं व चिंतणीया ते । एत्तोच्चियस्स कस्स वि दायव्वा रायपुत्तस्स' ॥७८५६।। इय एवं पभणंती भणिया सा भुवणसुंदरीए(इ) इमं । 'किच्चं चिय तुह एयं अंब ! विलंप(ब) विणा कज्जं ।।७८५७।। तुह किं न चरणनहमणिमयूहमालाओ इह सवत्तीहिं । सेसाओ व्व सिरेहिं पणामसमएसु धरियाओ ? ||७८५८।। Page #726 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ तुह किं न वेरिविलयाहिं देवि ! एक्कग्गक्खि (खि) त्तनयणेहिं । पसरतदिट्ठिमग्गाणुसारओ अग्गओ भमियं । ७८५९ ।। परं किं न चलंतीए चलियाई चराचराइं भुयणाई । नियठाणसंठियाए ताइं चिय तुज्झ लीयंति ॥ ७८६० ।। इय तेत्तिस विहवस्स देवि ! सव्वं हुयं कहासेसं । एहि चिट्ठसि एगा विवरगया उंदुरि व्व तुमं || ७८६१ || माकुणसु मज्झ वामोहकारणं का अहं ? तुमं का वा ? । नडपेच्छणयसमाणो संसारो किं तुह अउव्वो ? ।। ७८६२ ।। तुह सव्वे वि अवाया वोलीणा जोव्वणेण सह देवि ! । सव्वभयविप्पमुक्का एहि आयरसु अप्पहियं' ||७८६३ ॥ इय जंपंती (ति) धूयं सिरिंमि परिचुंबिऊण सा भाइ । 'परिणामहियं पुत्तय ! धूयत्तं पयडियं तुमए ॥ ७८६४ || कस्सेरिसो विवेओ ? वयणाइं य कस्स इय पगब्भाई । कज्जेसु निच्छओ वि य तुमं विणा नत्थि अन्नस्स || ७८६५ ॥ ता सव्वा वि जाया निच्चिता पुत्ति ! तुज्झ विसयंमि । इह-परलोयसुहाणं होहिसि जोग्गा इय मईए ||७८६६ || तुह पुत्त ! धम्मियत्तं तइय च्चिय तुज्झ बालकीलाहिं । जं कहियं तं संपइ पयडं च्चिय अज्ज संजायं' ||७८६७।। तो भइ जक्खराया चंदसिरिं हिययगब्भियसिहो । 'उचियत्थं सेवंतिं कह पुत्त ! तुमं निवारेमि ? ।।७८६८ ।। मह भुयणसुंदरीए हिययनिहित्ताइं बहुप्पयाराई । आलंबणाई भग्गाई पुत्त ! परमत्थभणिरीए । ७८६९ ।। ७१७ Page #727 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७१८ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ ता पुत्त ! मज्झ वयणं नाणाविणिच्छइयभाविकल्लाणं । परिभाविऊण हियए अणुचिट्ठसु निव्वियप्पमणा ।।७८७०।। इह नाइदूरदेसे तवोवणं अत्थि तावसमुणीणं । तत्थत्थि बब्भुनामो मह मित्तो कुलवई पुत्त ! ॥७८७१।। तस्सासमंमि चिट्ठसु निययाणुट्ठाणपालणानिरया । तावसवेसा बहुविहतवसोसियकम्मसंघाया ।।७८७२।। इह संठियाए एही रायरिसी वीरसेणसूरी वि । होहिंति सुंदराई अन्नाइं वि एत्थ कज्जाइं ॥७८७३।। एत्थ समीवठियाणं अन्नोन्नं दसणाइं जायंति । एसा वि तुज्झ धूया दइयं पाविही जयदुलहं ।।७८७४।। तत्थेव अहं काहं भवणं मणि-रयण-फलिहनिम्मवियं । उज्जाणपरिक्खित्तं चंदप्पहपरमदेवस्स ।।७८७५।। तत्थच्छसु जिणपूयण-वंदण-संथुणणकम्मनिरयाओ । नीसेसकम्मनिट्ठवणकारणत्थं जयंतीओ' ||७८७६।। तो चंदसिरी सिरिवीरसेणसूरिस्स दंसणासाए । तं जक्खरायवयणं अकयवियप्पाणुमन्नेइ ॥७८७७।। तो सा पसत्थदियहे आपुच्छिय जक्ख-जक्खिणीलोयं । नीहरिया भवणाओ धूयाए समं च जक्खेण ||७८७८।। पत्ता तवोवणं सा पेच्छइ पुरओ जिणिंदवरभुयणं । उज्जाणवणं रम्मं वाविं पि विसट्टघणकमलं ॥७८७९।। तो परमभत्तिभरनिब्भरेहिं सव्वेहिं पूइओ देवो । अभिवंदिओ य विहिणा जहत्थथोत्तेहिं थुणिओ य ।।७८८०।। Page #728 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ पत्ताइं तावसासममसमं दिट्ठो [य] कुलवई तत्थ । जक्खेण सायरं सा समप्पिया बब्भुनामस्स ॥ ७८८१ ॥ कुलवइणा तेणाऽवि य पडिवन्ना पभणिया य 'अच्छे । नियधम्मकम्मनिरया मज्झ समीवत्थउडवंमि' ||७८८२|| एवं सा चंदसिरी तसथावरजीवघायणे विरया । अणवज्जायरणपरा झाणज्झयणेहिं संपन्ना ||७८८३ ॥ गंतूण वंदइ जिणं तिकालसंझासु परमभत्तीए । सिरिवीरसेणसूरिस्स दंसणं निच्चमहिलसइ ||७८८४ ।। जं ताण तावसाणं ण्हाणनिमित्तं कढिज्जए सलिलं । तं पियइ फासूयं पायखालणं तेण य करेइ ||७८८५ ।। अप्पनिमित्तं तावसजणेहिं नीवारनिम्मियाहारो । परिपायफासुयाई कयलफलाईणि भक्खेज्जा || ७८८६ ।। अकओ अकारिओ अणणुमोइओ सव्वदो परिसुद्धो । सो आहारो तिस्सा सरीरठिइसाहणो होइ ॥ ७८८७ || एवं सा पइदियहं नियतणुनिरवेक्खचित्ततवचरणा । सुविसुद्धज्झवसाया परिसाडइ कम्मपडलाई ॥ ७८८८ ।। सा भुयणसुंदरी वि य तिकालसंझासु जक्खभवणाओ । आगंतुं पइदियहं पूयइ चंदप्पहं देवं ॥ ७८८९ ॥ संपूइऊण देवं पुणो वि सा जाइ जक्खभवणंमि । एवं अच्छंताणं माया - धूयाण जंति दिणा ।।७८९०।। जक्खो वि मलयमेहो अणुरूववरं गवेसमाणो य । सिरिभुयणसुंदरी परियडइ धरायलं सव्वं ॥ ७८९१।। ७१९ Page #729 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७२० सिरिभुयणसुंदरीकहा ll तो ते एत्तिएहिं दिणेहिं दिट्ठो तुमं महासत्त ! | अवहरिओ तेणेव य आणीओ एत्थ रन्नमि ||७८९२ ।। तो जा किर चंदसिरी ससिप्पहं वंदिऊण गोसंमि । धूया अद्धवहेणं गच्छइ गिरिकंदरसमीवं ॥ ७८९३॥ ता मलयनिगुंजाओ नीहरमाणीओ दो वि गहियाओ । वणवारणेण सुंदर ! अओ परं तुम्ह पच्चक्खं ॥ ७८९४ ।। सा एसा चंदसिरी जा भज्जा वीरसेणरायस्स । एसा तीए धूया करिणो जा रक्खिया तुम ||७८९५ ।। एसो य अहं सुंदर ! बब्भू नामेण कुलवई एत्थ । सिरिचंदसिरीसंसग्गजायजिणधम्म अणुराओ ॥ ७८९६।। एयं परमपवित्तं कल्लाणकरं च दुरियनिम्महणं । सिरिवीरसेणचरियं कहियं तुह मंगलावासं ।। ७८९७ ।। परिभाविऊण एवं जं उचियं होइ तं सयं कुणसु ।” इय भणिऊणं जाओ तुहिको कुलवई सहसा ||६|| ||७८९८ ।। सिरिविजयसीहविरइयगाहामयभुयणसुंदरिकहाए । सिरिवीरसेणचरियं समत्तमिह पावनिम्महणं ॥ छ || || ७८९९ ।। इय सोऊणं अणुवममसरिसमच्चब्भुयं मणभिरामं । वीराहिवस्स चरियं कुमरो आणंदपुलयंगो । । ७९०० ।। अच्चभुयवीरचरित्तसवणसंजायविम्हउकरिसो । धुणिऊण सिरं सहसा जंपइ हरिविकुमकुमारो ॥७९०१॥ 'अज्ज कयत्थो जाओ मणुस्सगणणं व अज्ज संपत्तो । जं पावखालणजलं निसुयमिणं वीरसच्चरियं ॥ ७९०२ ।। Page #730 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ ७२१ जस्स सुयं पि हु चरियं निहणइ चिरसंचियाइं पावाइं । सो दिट्ठो किं काही वीरमुणी तं न जाणामि ॥७९०३।। इह भुयणे गरुयगुणा तं चिय गुणपयरिसं पयासंति । जंमि अणज्झवसाओ मणमि ताणं पि संभवइ ७९०४॥ जाण गुणावगमे खलु न संति गुणिणो त्ति वासणा होइ । ते च्चेय जए जोग्गा गुणिन्न(त्त?)सद्दस्स न हु अन्ने ।।७९०५।। अंतरियपरगुणा वि हु नियविसउव्वूढगुणगणुक्करिसा । न लहंति तह वि गुणिणो पिसुणत्तं सुद्धचरिएहिं ।।७९०६।। भुयणेक्कगुणित्तेणं दारिदे जेहिं ठावियं भुयणं । ते च्चेव नवर गुणिणो भुयणस्स विहूसणं होंति ।।७९०७।। दूरंतरपसरियनियगुणेहिं भुवणं पि जेहिं पडिबद्धं । कह तं अप्पायत्तं करंतु अन्नेसु गुणिणो वि' ||७९०८।। इय सब्भूयसमुज्जलअसरिसगुणभावणाहिं विम्हइओ । सिरिवीरसेणसूरिं पसंसए सहरिसं कुमरो ॥७९०९।। पुण पभणइ चंदसिरी(रिं) 'अज्ज पवित्तो म्हि अंब ! संजाओ । तुअ(ह) दंसणेण सिरिवीरसेणसच्चरियसवणेण ।।७९१०।। दट्ठव्वदंसणं च्चिय सोयव्वायन्नणं च इह दो वि । अपवित्तं पि हु पुरिसं पवित्तयंति नियमेण फुडं' ।।७९११।। इय वारंवारं च्चिय परिवत्तियवीरसेणगुणनिवहो । खणलद्धनिद्दसोक्खो नेइ निसं तग्गुणकहाहिं ।।७९१२।। अह जक्खकिंकराहयपाहाउयगहिरतूरसद्देण । चंदप्पहमि जयजयकलयलसद्देण पडिबुद्धो ॥७९१३।। Page #731 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७२२ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ सुव्वइ तवोवणे वेयपाढनिरयाण बडुयवंद्राणं । बहुविहसद्दविमीसो तारो गुरुबम्हनिग्घोसो ।।७९१४॥ इह तावससंगेणं पेच्छह तरुणो वि चत्तनिद्द व्व । दीसंति पढंता इव पबुद्धघणपक्खिविरुएहिं ।।७९१५।। उडवंतपंजरगया जत्थ सुया तावसाण अवणेति । सरिसक्खरजायपयब्भमाण पाढंमि संदेहं ।।७९१६।। वित्थरइ होमसालासु जत्थ सुव्वंततिलतडक्कारो । सुइसुहनिवडियहविगंधगब्भिणो धूमसंघाओ ।।७९१७।। खित्तमुणिरत्तचंदणरसग्घवारिच्छडाहिं सोणं व । संजाया पुव्वदिसा रत्तुप्पलकंतिकलिय व्व ।।७९१८॥ रविहुत्तनिवेसियसूरभत्तलोयाणुरत्तचित्तेहिं । समकालं व गएहिं रेहइ रत्त व्व पुव्वदिसा ।।७९१९।। उय पुव्वदिसिवहूए उदयैरिधराहरिंदसंगेण । तक्कालपसूयंतं बालं पिव सहइ रविबिंबं ॥७९२०।। बहुतिमिरगब्भछूढं अरुणकरुक्केरगलियकलिलाओ । बंभंडाओ व भुयणं नीहरियं भाणुबिंबाओ ॥७९२१॥ एवंविहंमि गोसे सुमरियजिणचरणपंकओ कुमरो । तदसणूसुयाणेयतावसाइन्नउडवतो ॥७९२२।। कयसयलगोसकिच्चो कुलवइपमुहेहि दिन्नआसीसो । तेहिं च्चिय संजुत्तो जिणभवणं जाइ नरनाहो ॥७९२३।। पढमं जिणवंदण-पूयणाइं काऊण परमभत्तीए । उवविसइ पुव्वकप्पियवरासणे मत्तवारणए ।।७९२४।। १. उदयगिरि ।। Page #732 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ तो विविहजक्खविलया समूहदुल्लभमंडवपवेसं । ण्हवणारंभसमुत्थयहल्लप्फलजक्खपरिवारं ॥ ७९२५ ।। सिरिबद्धकुसुममाला चंदणचच्चिक्किया कमलपिहिया । गंधुदयपुन्नकलसा जिणस्स पुरओ ठविज्जति ॥ ७९२६ ॥ दूरदियंतरपसरियपरिमल आहूयभमरवंद्राहिं । सुसुयंधकुसुममालाहिं पूरिया पडलया एंति ।।७९२७।। अइबहलजक्खकद्दम-हरिचंदणभरियकणयकच्चोला । आणिज्जंति जिणेसरविलेवणत्थं सुरगणेहिं ॥ ७९२८ ॥ मंडवगब्भहरंतर ठाणट्ठाणेसु परिनिहित्ताओ । दीसंति सुरहिधूवुग्गमाओ इह धूवहडियाओ ।।७९२९ ॥ अप्फालिज्जइ पडुपडह-झल्लरी- करड - ट्टट्टरि (?)सणाहो । गंभीरभेरि-दुंदुहि-घण-घंटा -टिविलिनिग्घोसो ||७९३०|| कलकणिरकाहलारवअसंखसंखुल्लसंतताररवो । कंसाल- मुरव-मद्दल-मउंद - बहुतूरसंमद्दो ॥ ७९३१ ॥ पारंभिज्जइ पुरओ जिणस्स सविलासलासमणहरणं । करचलणकणिरकंकणझणझणारावरमणीयं ॥ ७९३२ ॥ थरहरियनियंबत्थल-रणंतकंचीकलावकलसद्दं । चलचलणनेउरझुणिमिलंतलय-तालगंभीरं ।।७९३३ ।। पेच्छणयं पेच्छयजणजणियमहाणंदवड्डिउल्लासं । नच्चिरवारविलासिणिललिओब्भडनट्टमणहरणं ॥ ७९३४ || करकलियचडुलचमरा पासेसु परिट्टिया जिनिंदस्स । सिरिभुयणसुंदरी अइमहिड्डिबहुजक्खिणिसमेया ।।७९३५ ।। ७२३ Page #733 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७२४ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ अह ण्हाओ सुइभूओ निम्मलदेवंगवत्थपरिहाणो । सो मलयमेहजक्खो वत्थंचलपिहियमुहकमलो ॥७९३६।। बहुजक्खसयसमेओ अहिमंतियकलसकलियकरकमलो । खलहलरवेण ण्हावइ ससिप्पहं परमभत्तीए ।।७९३७।। कलसट्ठसएहिं तओ एहविऊण विलेवणं तओ कुणइ । भूसइ विभूसणेहिं पुण पूयइ पुफ(प्फ)मालाहिं ।।७९३८।। तो कालायरु-कप्पूरसुरहिधूयं च सो समुक्खिवइ । आरत्तियाइ सव्वं कायव्वं कुणइ देवस्स ।।७९३९।। तो. निव्वत्तियवित्थरपूयाकम्मो य वंदणापुव्वं । संथुणइ मलयमेहो पसन्नललिएहिं थोत्तेहिं ।।७९४०।। कयकिच्चो होऊणं संभासइ सायरेहिं वयणेहिं । कुमरं तस्स समीवे उवविट्ठो भणिउमाढत्तो ||७९४१ ।। 'तुह सागयं नरेसर ! जेण अबाहेण सयलभुयणमि । जायइ कुसलं तुह तंमि कुमर ! कुसलं सरीरंमि ? ||७९४२।। तुह परिणामसुहत्थं हरियस्सेगागिणो मए एत्थ । उव्वहइ न ते हिययं मालिन्नं अम्ह विसयंमि ? ||७९४३ ।। पीडइ न तुज्झ हिययं गरुयपहावेण रक्खियस्सेह । दूरविसंठुलसेन्नस्स संभवा का वि अवसेरी.?' ||७९४४।। इय एवमाइ भणिरं जक्खं कुमरो पसन्नमुहकमलो । पडिभणइ पगब्भगिरो सुसिलिटुं वयणविन्नासं ॥७९४५।। 'जिणनाहदसणेणं उत्तमपुरिसस्स चरियसवणेण । सुस्सावयसंगेण य हवंति कुसलाइं सव्वत्थ ॥७९४६।। Page #734 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७२५ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ पुव्वुत्तकारणेहिं चिररूढपणट्ठसयलमालिन्नं । कह मज्झ मणं वहिही मालिन्नं तुम्ह विसयंमि ? ||७९४७।। रक्खंति इहरहा वि हु रज्जं कोसं बलं सरीरं च । तुम्ह पहावा, सेन्ने कह अम्हं होउ अवसेरी ? ||७९४८।। पडिकूलमाणसकयं सोक्खं दोक्खं व होइ माणीण । अणुकूलिमाए विहियं दुहं पि सोक्खं व परिणमइ ॥७९४९।। हिययविसुद्धि च्चिय सज्जणाण संतं पि चित्तमालिन्नं । ओसारइ मलिणजले मलं निहित्तं व कतकफलं ||७९५०।। परिणामसुहं कज्जं पमुहदुहं ओसहं व बालाण । उप्पायइ मणदुक्खं न उणो परमत्थदंसीण' ।।७९५१।। तो भणइ जक्खराया 'हरिविकूम ! अवितहं तए भणियं । एयारिसो विवेओ कह होही इयरपुरिसाण ? ||७९५२।। पभणामि किंपि निसुणसु एगमणो रायपुत्त ! मह वयणं । परिभाविऊण पच्छा जहोचियं अणुचरेज्जासु ॥७९५३।। एसा असेसनरवइसिरिमोडनिधिचरणवीढस्स । एक्कंगपसाहियचउसमुद्दवसुहेक्कनाहस्स ।।७९५४।। पसरंतपयावानलपुलट्ठरिउकाणणस्स वीरस्स । सिरिचंदसिरीसुहगब्भसंभवा कन्नया जाया ॥७९५५।। नीसेसभुयणसुंदेरविजियतियसंगणा कहं अहवा । वन्निज्जइ तुह पुरओ जा जाया नवर पच्चक्खा ।।७९५६।। हरिविकम ! एयाए नामं सिरिभुवणसुंदरी एसा । धूया देहो हिययं अहवा मह जीवियव्वं वा ।।७९५७।। Page #735 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७२६ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ जह उप्पन्ना जह वड्डिया य जह गाहिया कलानिवहा । तह सव्वं तुह कहियं कुलवय(इ)णा अज्ज रयणीए ॥७९५८।। जह जह वड्डइ एसा तह तह झिज्जंति तिन्नि वत्थूणि । एयाए मज्झदेसो मज्झ मणं सुरजुयाणा य ।।७९५९।। धूया हि नाम जायइ जणयस्स अदोसजो महादंडो । परिपुन्नधणाणं पि हु धूया अत्थित्तमावहइ ।।७९६०।। सुसमत्थो वि हु विसहइ दुव्वयणसयाइं धूयदाणत्थी । गरुओ वि लहुं पि वरं धूयत्थे ठवइ गरुयत्ते ।।७९६१ ।। सगुणा वि सुजाई विय विविहाहरिया वि विविहविन्नाणा । धूया परस्स होही माला इव मालकारस्स ॥७९६२।। बहुविहवपूरिया वि हु अणेयकम्मयर-दाससंजुत्ता । नाव व्व कुमर ! धूया सुचिरेण वि परउलं जाइ ।।७९६३।। निययं पयपुन्ना वि हु खंधपवुड्डा वि अइसुपत्ता वि । सहयारस्स व साहा फलकाले होइ परकीया ।।७९६४।। इय केत्तियं व भन्नउ जस्स सुया तस्स सव्वदुक्खाइं । जेण न दिटुं दुक्खं सो धूयं जणइ कुड्डेण ||७९६५।। तो एयत्थं नरवर ! पुणो पुणो महियलं निरवसेसं । भमियं रायकुमारा निरिक्खिया बहुविहा तत्थ ॥७९६६।। आगंतूण इमीए कहेमि सव्वाण ताण कुल-विहवे । चित्ते पडिलिहिऊणं रूवाइयं तस्स दंसेमि ।।७९६७।। एद(द)हमेत्ते वि जए नाणाविहकुमरकोडिकलियंमि । सो कोइ नत्थि जो किर इमीए आणंदए हिययं ।।७९६८।। Page #736 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७२७ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ ता हमओज्झपुरीए परिभ(ब्भ)मंतो समागओ वीर ! । सकावयारमुसहं वंदणबुद्धीए जा जामि ॥७९६९ ।। ता तत्थ तुमं दिट्ठो देवकुमारो त्ति जायसंकेण । पच्छा नयणनिमेसाइएहिं उवलक्खिओ कह वि ॥७९७०॥ जिणदंसण-वंदण-थुणणदेवउववूहणं च उवविसणं । हारपयाणं च तहा अणंततेयप्पसायं च ॥७९७१।। दिटुं सव्वं विक्कमपरिक्खणत्थं तओ मए विहिओ । खंडकवालछलेणं संगामो तुज्झ जो पयडो ।।७९७२॥ तं तत्थ मए तइया रक्खसरूवं विउव्वियं राय ! । दिद्रुण जेण नृणं छलिज्जए इह कयंतो वि ॥७९७३।। तुह निठुरपाणिपहारताडणाविहडियंगसंधिस्स । कह कह वि सरीरे मह जायं सुदिढत्तणं वीर ! ।।७९७४।। सो तुह हरिविकुम ! गुरुपरक्कमो जेण समरमज्झंमि । सुरदप्पभंजणो वि हु अहमेव तुहाउहं जाओ ।।७९७५।। तुमए चलणग्गेणं धरिऊण भाडिओ तहा अहयं । जह अज्ज वि मह भुयणं कुमर ! भमंतं व पडिहाइ ।।७९७६।। इय तं तुज्झ सरूवं सव्वं पि जहट्ठियं मए एत्थ । सिरिभुयणसुंदरीए कहियं अणुरायसंजणयं ।।७९७७।। कह तुह सरिसं रूवं लिहिऊ (उं) नरनाह ! तीरइ पडंमि । जं अब्भासवसेणं विहिणा वि हु कह वि निम्मवियं ? ||७९७८।। जं तिहुयणे अउव्वं कह तं एकंसदिट्टमवि तुज्झ । सक्केमि मणे धरिउं ? धरियं वा कह णु विलिहेमि ? ७९७९।। Page #737 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७२८ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ तह वि नियसत्तिसरिसं संलिहियं आगारमेत्तमिह रूवं । चित्तपडे धूयाए समप्पियं विम्हयमणाए ।।७९८०।। तो तुहरूवनिरूवणविम्हयवियसंतनयणतामरसा । परियत्तिय व्व बाला वियारमइय व्व संजाया ।।७९८१।। हियए कव्वे चित्ते मणोरहे गुणिकहासु सुविणे वि । झाणे आलावे च्चिय सव्वत्थ तुमं मयच्छीए ।।७९८२।। तुज्झाणुरायरत्तं निरंतरं भुयणसुंदरीए सया । कुमरपडिबिंबएहिं व छिपिज्जइ तिहुयणं सयलं ।।७९८३।। हरिविकुमरूवोहामिएण बहुमच्छरेण व सरेहिं । तुह अणुरत्त त्ति समं पहरिज्जइ पंचबाणेहिं ।।७९८४।। पसरंति तीए कंठे उक्कंठावसविमुक्कहुंकारा । उद्दीवियमयणरसा समंथरं पंचमुग्गारा ॥७९८५।। हिययवियप्पियपिययमपसंगपसरंतपहरिसुक्करिसा । झिज्जइ विमुक्कसासा पुरओ दइयं अपेच्छंती ।।७९८६।। नियदइयविउत्ताए चक्काईये समं सदुक्खाए । परिक्खिवइ अंसुभरियं नियदिटुं नेहभावेण ।।७९८७।। अहिणंदइ अविउत्तं सारसजुयलं व निंदइ तहप्पं । नियदइयविउत्ताहिं देवीहिं सइ(हि)त्तणं कुणइ ।।७९८८।। लिहिऊण तुमं चित्ते सव्वंगावयवसुंदरसरूवं । अप्पाणं पि तओ तह पणमंतं लिहइ पाएसु ।।७९८९।। ओवाइ-स्संइ(ओवाइयाइं?) सूयइ देवाणं दाणवाण विविहाइं । तुह कुमर ! दुलहदंसणपच्चासाविनडिया संती ।।७९९०।। १. ओवाइ मांई सूयइ. ला.।। Page #738 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ ७२९ जह जह अहिलसियं पि हु न होइ तुह दसणं ससिमुहीए । तह तह अहिययरं चिय विरहदुहं वड्डइ मणंपि(मि) ||७९९१।। तुह दुसहविरहहुयवहपुलुट्ठदेह व्व जह य मच्छुलिया । नलिणीदलसत्थरए तल्लुवेल्लीओ विरएइ ॥७९९२।। तह तुहदंसणअइदुत्थियाए दुक्खं इमीए संजायं । जह मुणियजिणमयाए वि मरणंमि मणोरहा जाया ||७९९३।। तो तं मरणावत्थं धूयं दद्वैण तुम्ह अणुरत्तं । तदुक्खदुक्खियाए भणिओ हं निययदइयाए ||७९९४।। 'किं नाह ! भुयणसुंदरिमुवेक्खसे मरणगोयरे पडियं । जं नियडपरियणेणं मह गरुई आवया कहिया ॥७९९५।। जद्दिवहाओ दिटुं रूवं हरिविकूमस्स पडिलिहियं । तद्दियहाओ तिस्सा अल्लीणा दुक्खडंडोली ।।७९९६॥ सुहओ वि दुहं दइओ कयाहिलासो अलाहओ जणइ । अइसीयलं पि सलिलं तिसियाण जहा अलब्भंतं ।।७९९७।। ता सव्वहा पयट्टसु धूयादुक्खोवसामकज्जंमि ।। मा कह वि देवजोगा पिययम ! अच्चाहियं होही' ॥७९९८।। तो हं कुमार ! तव्वयणजायउव्वेववेविरसरीरो । किंकायव्वविमूढो चिंताजलहिंमि पडिओ व्व ।।७९९९।। 'ता किं करेमि ? को वा एत्थ उवाओ उ होज्ज ? दुग्गेझं । कज्जं मह आवडियं जं न मुयंतस्स लिंतस्स ॥८०००। एसा एत्थ अरन्ने अमाणुसे दूरववहिए मलए । हरिविकुमो वि दूरे अउज्झनयरीए परिवसइ ।।८००१।। १. पडखां बदलवां ।। २. अत्याहितं महाभीतिः ।। Page #739 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७३० सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ सो वि न इमीए नामं न य थामं नेय जाइ-कुल-रूवं । न गुणा न य मरणंतं अणुरायं एरिसं मुणइ ।।८००२॥ इह संबज्झइ मिहुणं सुहेण अन्नोन्नजायअणुरायं । लोहं पि उभयतत्तं संघडइ पुणो न विवरीयं ।।८००३।। ते दूरे वि अदूरे परोप्परं जाण नेहसंबंधो । नियडट्ठिया वि इयरे जोयणलक्खे वि नज्जति ।।८००४।। कह तं हरेमि कुमरं तेत्तियदूराओ ट्ठिसामत्थं ? मा कह वि हरिज्जंतो सव्वं पि हु संसए ठविही' ।।८००५।। इयमाइ चिंतयंतो हरिविकुम ! जाव एत्थ चिट्ठामि । ता तुह मलयागमणं परिकहियं पणिहिपुरिसेहिं ।।८००६।। तो हं तुज्झागमणं नाउं इह तावसासमं पत्तो । चंदसिरि-कुलवईणं कहियं धूयाए ववहरणं ।।८००७।। कहियं तुज्झागमणं तेहि तओ पभणिओ अहं एवं । 'आणेसु इह कुमारं जक्खेसर ! केण वि नएण' ||८००८।। एत्थंतरंमि अहयं तुज्झ भउब्भंतमाणसो पत्तो । तुह कडयं रयणीए हरिओ सि तुमं मए सुत्तो ।।८००९।। कोमलपल्लवसयणे मुक्को सि मए कुमार ! पासुत्तो । इह आसमस्स नियडे अहयं पुण तुह भया नट्ठो ।।८०१०।। जइ कह वि विगयनिद्दो पेच्छइ मं गुरुपरक्कमो एसो । ता मज्झ नत्थि मोक्खो इय चिंतेणं पलाणो हं ।।८०११।। संपत्तो नियभवणं पुण कहियं भुयणसुंदरीए मए । मलयागमणं हरणं एत्थागमणं च हे(हि)ट्ठाए ॥८०१२।। Page #740 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ ७३१ सा विरहानलदड्डा तुज्झागमणुल्लसंतरोमंचा । गिम्हहया वसुहा इव अंकुरिया मेहउदएण ।।८०१३॥ मुसियतणुनालदंडा बाढं कुम्माणवयणतामरसा । संजीविया कुमारी नल(लि)णि व्व जलोहसंगेण ॥८०१४।। सोउं तुज्झागमणं सा हरिसमयं व मन्नए भुयणं । जणणीए समाहूया जिणभवणं आगया बाला ||८०१५।। ता कुमर ! इमा सुपओहरा य बहुरयणसमिद्धा य । वसुहा व्व कामधेणु व्व कप्पलइय व्व तुह दिन्ना' ।।८०१६।। जक्खभणियावसाणे कुमरो हिययंतपसरियाणंदो । पयइवीरत्तणेणं निगोयए रायचिंधाइं ॥८०१७।। रत्ताण विरत्ताण य एगं रूवं सहावगरुयाण । को जाणइ जलनिहिणो थाहं अइनिउणबुद्धी वि ॥८०१८।। चिंतइ मणमि कुमरो ‘जं कज्जं दुग्गहं व मह आसि । तं देवगुरुपसाया सिद्धं पिव मज्झ पडिहाइ ।।८०१९।। न फुरइ मणोरहो वि हु तियसिंदाणं पि जीए लाहमि । सा भुयणसुंदरी मह पेच्छ अजत्तेण संपन्ना ||८०२०।। अत्थि अवस्सं मह पुव्वजम्मसमुवज्जिओ सुहविवागो । तेणेसा संघडिया न घडइ जा सुरवराणं पि ।।८०२१।। दीवंतरे वि देसंतरे वि रन्ने वि अहव वसिमे या(वा?) । संघडइ दुग्घडं पि हु अणुकूलविही न संदेहो ।।८०२२।। किं तु तायस्स पुरओ मंतिस्स वि जंपियं मए जमिह । तं जुयइरयणलाहेण पडइ कालंतरे कज्जं ॥८०२३।। Page #741 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७३२ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ जेयव्वो सो सत्तू अलंघदुग्गे महाबलो नाम । जो तस्स सुरस्स बलेण मज्झ सेन्नाइं परिभवइ ।।८०२४॥ ता किं करेमि संपइ ? कज्जाइं उवट्ठियाइं मह दो वि । दो वि गरुयाइं दोन्नि वि कायव्वमईए गहियाइं ॥८०२५।। जइ ता संपइ एयं कन्नं परिणेमि तिहुयणदुलंभं । ता विसयलंपडत्तणदोसकओ होइ मह अजसो ||८०२६।। अन्नं च तायआणाभंगसमुत्थो य होइ मह दोसो । रिउविजए असमत्थो त्ति होइ भुयणे अकित्ती वि ।।८०२७।। ता जइ सच्चं एसा पणामिया मज्झ पुव्वसुकएहिं । ता निच्छियं ममेसा सुचिरेण वि किं वियप्पेण ? ||८०२८।। ता तायसमाइढे संपइ कज्जे समुज्जमिस्सामि । सिद्धमि तंमि पच्छा जहोचियं चिंतइस्सामि' ।।८०२९।। इयमाइ चिंतिऊणं भणिओ हरिविकुमेण सो जक्खो । 'मह हिययकज्जजुत्ताण तुम्ह सव्वं पि ववहरणं ।।८०३०।। गरुयाण परपओयणनिरयाण न आयरो सकज्जेसु । चंदो धवलइ भुयणं न कलंकं अत्तणो फुसइ ।।८०३१।। किं तु मह जक्ख ! हिययं वट्टइ अन्नत्थ निब्भरासत्तं । अणुकूलियं पि बहुसो न पयट्टइ तुम्ह कज्जंमि' ॥८०३२।। तो भणइ जक्खराया ‘मा एवं भणसु निठुरं वयणं । निहयासा एएणं निसुएणं मरइ मह धूया' ।।८०३३।। कुमरेण तओ भणियं 'विसज्ज एयं परिग्गहं ताव । एगते तुह सव्वं हिययगयं जेण साहेमि' ॥८०३४।। Page #742 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७३३ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ तो तक्खणेण सव्वो परिग्गहो निग्गओ जिणहराओ । मलयमेहस्स भवणं पत्तो विदाणमुहसोहो ।।८०३५।। पढमागयाए सव्वो उवविट्ठो भुयणसुंदरिसमीवे । उम्मुकदीहसासो अभणंतो कहइ मणखेयं ॥८०३६।। तो तं तहासरूवं द→णं भुयणसुंदरी भणइ । 'किं कारणेण सव्वे तुब्भे उव्वहह संतावं ?' ॥८०३७।। तो परियणेण भणिया हरिविकुमवयणगोवणपरेण । पइं सामिणीए ‘अम्हं दूरं. जाहिति संतावा ॥८०३८।। न य किं पि भुयणसुंदरि ! तुह तायपसायसुत्थियाणम्ह । होही मणमि दुक्खं तदुब्भवो जेण संतावो' ।।८०३९॥ चेट्टाविरुद्धवयणं संथुइरूवं च ताण सा सोउं । सासंकमणा उढइ पच्चइयसहीहिं परियरिया ।।८०४०।। गंतूण वासभवणं अंतोसंकंतसंकुसल्लं व । परमत्थमजाणंती पुच्छइ सुसिणिद्धसहिवग्गं ।।८०४१।। 'मा पडउ इमा दुहसायरंमि' इय भाविऊण सव्वाहिं । अलिउत्तरदाणेणं ताहिं समासासिया कुमरी ।।८०४२।। तो सा कूडुत्तरसवणसमहिउप्पन्नमन्नुपब्भारा । परमत्थजाणणत्थं चिंतइ नाणाविहोवाए ॥८०४३।। चइऊण वासभवणं अन्नत्तो जाइ पुच्छए अन्नं । पुणमन्नमुदासीणं अपरिचियं तयणु पुच्छेइ ॥८०४४।। तो अमुणियवुत्तंतो एगो साहेइ तीए जक्खसुरो । हरिविकुमेण जं जह भणियं चिरकुमरवुत्तंतं ।।८०४५।। Page #743 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ तो तीए निच्छयत्थं पुणो वि अन्नो सुरो इमं पुट्ठो । सो भणइ ‘किं पयंपसि ? अन्नत्थ पसत्तचित्तो सो' ।।८०४६।। तो जायनिच्छयाए ‘हा ! किमिमं वज्जवडणदुव्विसहं ?' । मुच्छानिमीलियच्छी निच्चेट्ठा पडइ धरणीए ।।८०४७।। 'दुक्खोहमोत्थरंतं खणं खलेमि त्ति सामिणीए अहं' । सुहडो व्व पुरो थक्कइ मणब्भवो निहयचेयन्नो ||८०४८।। नीसहनिवडियदेहा असमंजसलुलियकुंतलकलावा । अजहट्ठियआहरणा सव्वंगावयवविच्चेट्ठा ।।८०४९।। कंठमि कुसुममाला कबरीबंधाउ कह वि आलग्गा । गाढीकयमयरद्धयपासेण कय व्व निचे(च्चे)ट्ठा ॥८०५०।। हिययनिहित्तेककरा दुसहपियविरहफुडणभयभीया । धरइ व्व चंपिऊणं नियहिययं कोमलकरेण ।।८०५१।। विलुलंतकेसपासंतसिरनिहित्तग्गललियकरकमला । हढकेसकड्डिराओ जमाओ छोडेइ अप्पं व ।।८०५२।। चंदविउत्ता सुतमा मिलाणमुहकमलकुवलयदलच्छी । कस्स न भयं पयासइ निस व्व सा खुद्दसंगकयं ? ||८०५३।। इय तं तहासरूवं दटुं मुच्छानिमीलियच्छिउडं । कयहाहारवसद्दो आओ सव्वो सहीवग्गो ।।८०५४।। का वि हरिचंदणेणं सिंचइ झणज्झणिरकंकणकरग्गा । नयणंसुबिंदुदंतुरउक्खेवेणं च विजेइ ।।८०५५।। अन्ना वि गुरुपयोहरल्हसियं संठवइ पवरदेवंगं । उच्चल्लिऊण कुमरिं उच्छंगे ठवइ अन्ना वि ।।८०५६।। Page #744 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ इह का वि भूमिलुलियं केसकलावं दिढं निबंधे । विहडंतभूसणाई जहंगठाणे ठवइ अन्ना ||८०५७ ॥ संबाहइ का वि सिरिं अन्ना हिययं च का वि बाहुलयं । अन्ना उण चरणतलं सही सहत्थेहिं संभंता ||८०५८ । अन्ना वि पुणो सीयलजलपूरियकणयकलसमुक्खिवइ । सहस त्ति तेण सिंचइ सव्वंगं चेयणनिमित्तं ||८०५९॥ तो कह वि महाकट्टेण विविहसिसिरोवयारकिरियाहिं । संपत्तचेयणा सा सहीहिं पुणं भणिउमाढत्ता ||८०६० ।। 'किं भुयणसुंदरि ! तुहं बाहइ ? साहेसु अम्ह भीयाण । एयं नियसहिवग्गं आसाससु वयणदाणेण' ||८०६१ ।। तो लद्धचेयणा सा ईसीसुमि (म्मि)ल्ललोयणविलासा । उच्छाइया खणेणं हरिविकुमविरहदुक्खेहिं ॥ ८०६२।। नियकरयलेण ताडइ निडालवट्टं विमुक्कुनीसासा । दैयं (वं) पि उवालंभइ पुण विलवइ सकरुणं बाला ||८०६३ ।। 'हा हा ! हयास ! रे देव्व ! कह णु अइविरसमेरिसं विहियं ? | छोढूण निहिं हत्थे पुणो वि उद्दालिया मज्झ ? ||८०६४ || हरिविकुम ! अच्छरियं जे पायं दुज्जणाण विन हुंति । ते कह तुह सुयणस्स वि विणिग्गया निठुरालावा ? ||८०६५ ॥ जाणे विहि ! तुह फुसिओ असरिससंजोयसंभवो अजसो । नवर पियविहडणेणं संपइ अहिओ व्व सो जाओ ||८०६६ ।। जइ नाम अहमणिट्ठा ता किं पिय ! रक्खिआ गइंदाओ ? । न मुयाए जओ हुतं तुम्ह अवन्नाकयं दुक्खं ॥८०६७।। ७३५ Page #745 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७३६ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ जइ वि अणिट्ठा आयरसु तह वि, को चयइ वीर ! अणुरत्तं ? । तुह सत्तामेत्तेण वि मन्नामि कयत्थमप्पाणं ।।८०६८।। अंतेउरंमि बहुए एक्का अह दोन्नि हुंति इट्ठाओ । को किर न मुणइ एयं विचेट्ठियं नरवरिंदाण ? ||८०६९।। आणंदनिमित्तं चिय जाओ नरनाह ! सयलभुयणस्स । मह पुण अणुरत्ताए वि कह दुक्खभरं समप्पेसि ?' ॥८०७०।। इय भुयणसुंदरी करुणसहरुइरी पवड्डियपलावा । रोयावइ नीसेसं परिवारं मलयमेहस्स ॥८०७१।। एत्थंतरंमि सहसा जिणिंदभवणाओ जक्खपियभज्जा । बहुविहसहीसमेया बहुदुक्खा आगया तत्थ ।।८०७२।। तो भुयणसुंदरिं पेच्छिऊण कयबहुपलावरोयंती(तिं) । जक्खपिया वि सदुक्खा समागया तीए पासंमि ।।८०७३।। 'किं पुत्त ! मुहा विलवसि? न केवलं सो गओ पिओ तुज्झ । जणओ वि तुह न जाणे तेण समं कत्थ वि पयट्टो ।।८०७४।। सो पुत्त ! नियपरक्कमतिणसमपरितुलियतियससामत्थो । आसंकइ मह हिययं नो जाणे एत्थ किं होही ? ||८०७५।। जं तस्स परिक्खटुं पुरा अउज्झाए जुज्झिओ जक्खो । तं अज्ज वि मह पुरओ सरिउं उत्तसइ हिययंमि' ।।८०७६।। तो तव्वयणं सोउं बहुदुहपब्भारमसहमाणि व्व । पडिया महीए कुमरी पुणो वि मुच्छाए संछन्ना ।।८०७७।। पुण विहियचेयणा सा सीयलकिरियाहिं जक्खलोएण । आमुक्कदीहधारा(हा) रोयइ कुररि व्व बहुदुक्खा ।।८०७८।। Page #746 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७३७ सिरिभुयणसुंदरीक हा ॥ हा ताय ! भुवणवच्छल ! भुवणुवयारेक्ककरणतलि(ल्लि)च्छ ! । परदुक्खपरमदुत्थिय ! कत्थ गओ परियणं मोत्तुं ? ||८०७९।। कह मज्झ कारणेणं ताय ! अधन्नाए पुन्नहीणाए । संसयतुलाए ठावसि अप्पाणं भुयणकप्पतरु ! ? ||८०८०।। इह हुंति विलिज्जंति य किमिसरिसा ताय! मारिसा जीवा । तेलुक्कुद्धरणखमा दुलहा उण तुम्ह सारिच्छा ।।८०८१।। को मं तुह विवरोक्खे दूराओ पसारियाहिं बाहाहिं । सीसंमि चुंबिऊणं ठविही उच्छंगभायंमि ? ||८०८२।। को मज्झ पियं काही ? को वा लड्डु व पालिही मज्झ ? । को मह दुक्खे दुहिओ तुमं विणा ताय ! मह होही ?' ||८०८३।। इयएवमाइबहुविहपलावसयदुत्थियाए कुमरीए । दुक्खमओ इव जाओ जियलोओ उभयदुक्खेहिं ।।८०८४।। अह जणपरंपराए सोउं धूयाए तारिसमवत्थं । करुणापवन्नहियया चंदसिरी आगया तत्थ ।।८०८५।। तो कयअब्भुट्ठाणा विहियासणमाइसयलउवयारा । सा भुवणसुंदरीए पणया पुण भणिउमाढत्ता ।।८०८६।। 'मा पुत्त ! कुणसु खेयं तायत्थे किं पि जेण ते देवा । नाऽकालमरणजणियं पराहवं पुत्त ! पावंति ।।८०८७।। जाणे अणुमाणो च्चिय(णा चिय) कुमरो वि न तंमि कुणइ सत्तुत्तं। जम्हा न कोइ विहिओ अवयारो तस्स ताएण ।।८०८८।। किं तु तुह दाणपुव्वं उवयरियं चेव तंमि ताएण । उवयारिंमि रिउत्तं न पयासइ सज्जणो लोओ ||८०८९।। १. लाङ-प्यार ।। .४८ Page #747 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७३८ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ ता कारणेण केणइ कुमरेण समं गओ पिया होही । मा किं पि तायविसए अणिट्ठसंकं करेज्जासु ||८०९०|| दइ[य]त्थे वि न सुंदरि ! अरिहसि सोयं विसेसओ काउं । सुह-दुहरूवो दइओ विसमीसियअमयपिंडो व्व ॥ ८०९१ ।। गुणवंतो अणुरत्तो अविउत्तो अमयसन्निहो दइओ । विवरीओ उण सो च्चिय होइ पिओ कालकूडं व ॥ ८०९२॥ विसयोवहोगऊ पियसंगो ते वि पुत्त ! विसया वि । पयईए दुक्खरूवा तेसु सुहं वासणाजणियं ॥ ८०९३ ।। विसया विसं व विरसा विसया परिणामदारुणा होंति । को नाम पुत्त ! दिट्ठो विसयासत्तो तए सुहिओ ? || ८०९४।। जइ एए अविरुद्धा परिणामसुहा य तत्तसुहरूवा । ता किं तुह जणएणं संता वि इमे परिच्चत्ता ? ||८०९५ ।। इह संसारे सुंदरि ! सम (म्म) न्नाणेण भावसु ममि । सव्वं पि दुहं दीसइ न किं पि परमत्थओ सोक्खं ||८०९६ ।। जइ सो तुमं इच्छइ ता किं तुह पुत्त ! तयणुबंधेण ? | महुरेण वि किं कीरइ असंपडतेण अमएण ? ||८०९७ ।। अणुरज्जसु साहीणे अणुरत्ते पुत्त ! वित्त व इंदे वि पराही विरत्तचित्तंमि मा रज्ज ।।८०९८।। ता पुत्त ! अनेहाओ हिययं हरिविकुमाओ वालेसु । अन्नं तहाविहं किं पि तुज्झ ताओ वरं वरिही' ||८०९९ ॥ तो चंदसिरीवयणं सुतिक्खकरवत्तच्छे(छे) यदुव्विसहं । सोऊण रायधूया सदुक्खमिव भणिउमादत्ता ||८१०० ॥ Page #748 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ ७३९ ‘जणणी सविवेया वि हु परमत्थवियारचउरबुद्धी वि । मह हिययरया तह वि हु इमं भणंती अणिट्ठा सि ।।८१०१।। अंधस्स य बाणस्स य सज्जणचित्तस्स कुलवहुमणस्स । एक च्चिय होइ गई जत्थ मणो नवर आसत्तं ॥८१०२।। मह हरिविकूमबीओ पवणो जलणो व्व अंगमहिलसइ । अंब ! पुरिसंतरे उण जावज्जीवं मह निवित्ती ||८१०३।। चित्ताहिलासपुव्वो होइ विवाहो कुलप्पसूयाण । जं तु(?पुण?) पाणिगहाई तं जणजाणावणनिमित्तं ।।८१०४।। सो य मह अंब ! जाओ अहिलासो अजियविकमसुयंमि । अन्नत्थ कीरमाणो सो च्चिय पावप्फलो होइ ||८१०५।। पुन्न-पावाण हेऊ सुहासुहो अंब ! चित्तपरिणामो । सो च्चिय एत्थ पमाणं न तम्विहीणं अणुट्ठाणं' ||८१०६।। तो चंदसिरी जंपइ 'अइविसमं पुत्त ! कज्जमावडियं । तुह एरिसो अणुबंधो(ऽणुबंधो) तस्स य अन्नारिसं हिययं ।।८१०७।। तुह पुत्त ! कहेमि फुडं दोन्नि गईओ विवेयवंताण । इहलोयसुहा लच्छी परलोयसुह व्व पव्वज्जा' ।।८१०८।। तो भणइ रायधूया 'सच्चमिणं अंब ! जंपियं तुमए । परिभाविऊण पुरओ जं होही तं करिस्सामि ॥८१०९।। ता एहि तत्थ जामो मज्झण्हजिणच्चणाइयं सव्वं । निव्वत्तिऊण तत्थ य तुह पासे अच्छइस्सामि' ।।८११०।। इय जणणी-धूयाओ चंदप्पहजिणहरं पहुत्ताओ । निव्वत्तियं च सयलं मज्झण्हविसेसकरणीयं ॥८१११॥ Page #749 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७४० सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ पत्ताओ तावसासममुडवंतठियाओ जाव चिट्ठति । ता कुलवई वि पत्तो ताण समीवं च सो भणइ ।।८११२।। 'मा पुत्त ! भुयणसुंदरि ! हरिविकुमकडुयवयणसवणेण । किं पि मणे संतप्पसु संसारो एरिसो जम्हा' ।।८११३।। संबोहिऊण एवं तावसथेरे य रक्खणे मोत्तुं । निययावासंमि गओ सासंको तावसाहिवई ।।८११४।। एवं सा तत्थऽच्चइ तावसथेरेहिं रक्खिया बाला । चित्तविणोयनिमित्तं तेण(तेहि?) समं भमइ रन्नंमि ।।८११५।। तह हरिविकुमदूसहविरहानलकवलिया दुहं पत्ता । जह तीए निरासाए मरणंमि मणोरहा जाया ।।८११६।। अह अन्नविणे गोसे चंदप्पहपूयमाइ काऊण । जिणभवणसमीवत्थं उज्जाणवणं अह पविठ्ठा ।।८११७।। भणिया तावसमुणिणो ‘जाव अहं जक्खमंदिरं गंतुं । आगच्छामि तुरंती ता तुब्भे एत्थ चिट्ठेह' ।।८११८।। इय भणिऊणं वाला उज्जाणवणंमि जाइ दुक्खत्ता । चिंतइ ‘किमेरिसेणं दुक्खोहघणेण जीएण ? ||८११९।। संपइ पुण जीयंती दोहग्गदुहं व विरहदुक्खं च । आजम्मावहि एयं सक्केमि न विसहिउं घोरं ।।८१२०।। अंबाए जं भणियं ‘दो चेव गईओ किर विवेईण । इहलोयसुहा लच्छी परलोयसुहा य पव्वज्जा' ।।८१२१।। ता न मह पुव्वपक्खो कुमारअवहीरियाए पावाए । पव्वज्जा वि हु विसमा सिरसेलुक्खिवणसारिच्छा ।।८१२२।। Page #750 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ ७४१ ता परमत्थसरूवं अंबावयणं न मज्झ एगं पि । संपन्नं पावाए किलिट्ठकम्मोदयवसेण ।।८१२३।। जइ वि निसिद्धो समए अप्पवहो तह वि दुहसउवि(वि)ग्गा । केण वि नएण एत्थं अरन्नमज्झे मरिस्सामि ।।८१२४।। दोहग्गदूसियाणं दुल्लहजणजायनिबिडनेहाण ।। खंडियअहिमाणाणं मरणं चिय. ओसहं ताण' ।।८१२५।। इय भुयणसुंदरी कुमरविरहपम्हुसियनिम्मलविवेया । उज्जाणाओ तुरियं नीहरिया मरणबुद्धीए ।।८१२६।। चिंतइ 'तत्थ गमिस्सं जत्थ करिंदाओ रक्खिया तेण । पायं तंमि पएसे सो होई(ही) वारणाहिवई ।।८१२७।। तस्स पुरो अप्पाणं खिविऊणं सरिय जिणनमोक्कारं । एयं दुक्खावासं परिचइस्सामि नियदेहं' ।।८१२८।। इय नीलुप्पलनयणा कमलमुही गुरुपओहरक्ता । पसरंतसुरहिसासा भमइ व्व वणं सरयलच्छी ।।८१२९।। तत्थागया भमंती अदिट्ठवणवारणा विचिंतेइ । 'बहुपावाए न दरिसइ अप्पाणं सो वि मह हत्थी ||८१३०।। हा हा ! अहं अधन्ना जं जं इच्छेमि दुल्लहं तं तं । सुलहं पि जओ मरणं तं पि य मह दुल्लहं जायं' ।।८१३१ ।। इय मरणज्झवसाय(या) ताव गया जाव जोयणा दोन्नि । पेच्छइ अगाहसलिलं अह पुरओ जलनिहिं बाला ।।८१३२।। जो फेणपडलपंडुरसमुच्चकल्लोलदीहबहुवलओ । कयफालिहबहुसालो रक्खइ रयणाई भीओ व्व ।।८१३३।। Page #751 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७४२ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ अंतोगहीरनिघो(ग्घो)ससद्दपरिपूरियंबरदियंतो । दूराओ व्व निसेहइ मरणा(ण)कज्जाओ रायसुयं ।।८१३४।। मलयतडप्फालणगुरुरवेण भणइ व्व पयइगंभीरा । सुरमहणं संतावं अवहं व सव्वं पि विसहति ॥८१३५।। सिसुमार-मच्छ-करि-मयर-तिमिसमूहेहिं भीमरूवं च । जो पयडइ अप्पाणं अवायबहुलं व बालाए ||८१३६।। इय एवंचिय(विह?)रूवं पुरओ दळूण सायरं घोरं । पियरं व बंधवं पिव अहिणंदइ मरणबुद्धीए ॥८१३७।। 'अहममयसंभवे सिरिघरंमि पुरिसोत्तिमेक्कसयणमि । बहुरयणरायहाणिमि नियतणुं इह पवाहेमि' ||८१३८॥ इय मरणज्झवसाया जा चिंतइ ताव लोहमंजूसं । जओ(उ)रसनिरुद्धसंबिं समुद्दतीरंमि सा नियइ ।।८१३९।। दठूण मणे चिंतइ ‘किं एसा एत्थ लोहमंजूसा ? । एयाए मज्झभाए किं होही ? कोउयं मज्झ' ।।८१४०।। गंतूण नियडभाए जा जोयइ ताव तीए मज्झंमि । निसुणइ अईवसण्हं रुइयरवं बालनारीए ।।८१४१ ।। तं रोयंती(ति) सोउं बाला हिययंमि जायकारुन्ना । पुच्छइ गुरुसद्देणं ‘का सि तुमं ? कह इमाऽवत्था ?' ।।८१४२।। तो भणइ मज्झनारी ‘सव्वं तुह वित्थरेण साहिस्सं । मोयावसु एयाओ ताव ममं वज्जकोट्ठाओ' ।।८१४३।। अवणेइ जउरसं सा अवलोयइ संधिसण्हविवरेहिं । पेच्छइ लावन्नपहादिप्पंतिं तत्थ वरनारिं ॥८१४४।। Page #752 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ ७४३ तो मज्झट्ठियनारीकहियउवाएण लोहमंजूसा । उग्घाडइ अह नारी नीहरिया तीए मज्झाओ ।।८१४५।। सा लोहनिम्मियाओ नीणइ बंदीकय व्व किविणाण । केणाऽवि अणुवहुत्ता सिरि व्व मंजूसमज्झाओ ।।८१४६।। स(सु)कुमारपाणिपाया सव्वंगावयवसुंदरसरीरा । पढमवयत्था दिट्ठा वरनारी वीरधूयाए ।८१४७।। तो भुवणसुंदरीए रूवं दद्रूण सा वि वरनारी । विम्हइयमाणसा पुण परिभावइ निययचित्तंमि ॥८१४८।। 'किं एसा सुरनारी कीलत्थं एत्थ आगया होही ? । इह उण न मच्चलोए संभविही एरिसं रूवं ।।८१४९।। जे सामन्ना विहिणो घडणा वि य ताण होइ सामन्ना । एसो उण अउरुव्वो जेणेसा निम्मिया नारी ।।८१५०॥ पेच्छह निस्सीमाई रूवाइं गुणा य होंति संसारे । सो अविवेई नूणं जो एत्थ वि गव्वमुव्वहइ' ।।८१५१।। इय चिंतंती भणिया सा नारी भुयणसुंदरीए वि । 'जइ न तुह चित्तपीडा ता साहसु निययवुत्तंत' ||८१५२।। तो सा जंपइ नारी 'जइ ते कोऊहलं ता कहेमि । इह तामलित्तिनयरी अत्थि पसिद्धा जलहितीरे ।।८१५३।। हेमरहो नामेणं राया तत्थऽत्थि पयडमाहप्पो । गुणसुंदरि त्ति नामं तस्स पिया भारिया अत्थि ॥८१५४।। ताण अहं उप्पन्ना धूया नणु धुंयरि व्व तमरूवा । अंतरियजीवलोया गुरुसोयतमंधयारेण ॥८१५५।। Page #753 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७४४ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ पत्ता जोव्वणभावं जुवाणजणमणहरं वसंतं व । सयलजुयाणमणाणं उप्पाइयमयणसिंगारं ।।८१५६।। देसंतराओ विविहा कयाहिलासा य एंति बहुवरया । पभणेइ मज्झ जणओ 'धूयाए सयंवरं काहं' ||८१५७ ।। अह अन्नदिणे अहयं कीलत्थं जाव जामि उज्जाणे । बहुविहसहीसमेया कीलामि विचित्तकीलाहिं ॥। ८१५८ ।। सव्वाओ भणियाओ मए सहीओ 'इमं असोयतरुं । वेगेण छिवह निबिडं वत्थंचलबद्धनयणाओ' ||८१५९ ॥ सव्वाहिं वि पडिवन्नं बद्धानं मए सहीण अच्छीणि । हिंडंति भमंतीओ उज्जाणे बद्धनयणाओ ||८१६० || एगागिणी तओ हं संजाया ताहिं विरहिया जाव । ताव मए सच्चविओ विज्जाहरदारओ एगो ।। ८१६१ ।। अवलोइऊण सो मं मयणपरायत्तमाणसो जाओ । सहसा अकयक्खेवं हरिया हं तेण खयरेण ।।८१६२ ।। हरिऊण एत्थ मलए आणीया कंदरंतरदरीए । मोत्तूण य भणिया हं 'इच्छसु मं तुज्झ अणुरतं ॥ ८१६३ ।। विज्जाहरो म्हि सुंदरि ! बहुविज्जा - सिद्धि-लद्धिसंपन्नो । नामेण चित्तवेगो तुह दंसणजायमणखोहो' ||८१६४ ।। तो हं भयसंभंता न जाव पडिउत्तरं पयच्छामि । ता पुण अणुणयसारं भणिया हं तेण खयरेण ।।८१६५।। नाणाविहअणुणयवयणलक्खपयडियनियाणुरायस्स । कह कह वि मए सुंदरि ! न तस्स पडिउत्तरं दिनं ॥ ८१६६॥ Page #754 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७४५ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ तो तस्स पंचरत्तं अणुणयवयणेहिं पत्थमाणस्स । मज्झ अवन्नाए कओ पज्जलिओ तस्स कोहग्गी ।।८१६७।। सो उण अणिच्छमाणी(णिं) कन्नं परिणेइ नेय परनारिं । भुंजइ सम्मदि(दि)ट्ठी सुसावओ देसविरओ य ।।८१६८।। तो हं बहुप्पयारं तहा तहा तेण भेसिया एत्थ । मुच्छामिसेण जह जह भएण जीयं पलाइ व्व ||८१६९।। तो भीसणभयदसणविहुरा वि हु जाव तन्न इच्छामि । ता तेण एत्थ छूढा आयसमंजूसमझमि ।।८१७०।। खित्ता समुद्दमज्झे पुणो वि उत्तारिया य पुट्ठा य । 'अज्ज वि न किं पि नटुं इच्छ ममं कन्नए ! दइयं' ।।८१७१।। इह संपइ आणीया समुद्दमज्झाओ एत्थ तीरंमि । मं पुच्छिऊण एण्हि कत्थ गओ तं न जाणेमि ।।८१७२ ।। एसो मह वुत्तंतो कहिओ संखेवओ मए तुम्ह । तुब्भे उण पुच्छंती काऽसि तुमं देवि!? लज्जामि ।।८१७३ ।। जाणामि एत्तियं पुण न होसि इह मच्चलोयवत्थव्वा । अच्चभुयरवेणं सुरि व्व असुरि व्व संभवसि' ||८१७४।। तो भुयणसुंदरीए मणंमि परिभावियं जहा 'एसा । मुद्धसहावा न मुणइ सुराण मणुयाण वि विसेसं ।।८१७५।। ता किं मह कहिएणं परमत्थेणेह सुलहविग्घेण । एयाए च्चिय वयणं मन्नामि तह त्ति बुद्धीए' ॥८१७६।। तो भुयणसुंदरीए सा भणिया ‘अवितहं तए नायं । इह सहि ! मलयाहिवई जक्खो मह सामिओ जणओ ॥८१७७।। Page #755 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ ता ओसरसु तुरंती पुंण सो विज्जाहरो तुमं नेही । अहयं मंजूसाए तुह ववएसेण अच्छिस्सं ।।८१७८।। किं तु अलक्खं काउं मंजूसं संविघोलिय जउं च । इह नाऽइदूरदेसे तवोवणं जासु वेगेण' ।।८१७९।। इय भणिऊणं बाला हरिविकुमवयणजायअहिमाणा । तणतुलियजीयदेहा पविसइ मंजूसमज्झमि ।।८१८०।। पुण भुयणसुंदरीए सा भणिया 'कुणसु मा भयं मज्झ । मंजूसगया वि अहं न मरामि सुराणुभावेण ।।८१८१॥ ता नीसंकं झंपसु मंजूसं देसु संधिठाणेसु । निबिडदवग्गिविलीणं जउरसमइतुरियहत्थेण' ।।८१८२।। तो सा मुद्धसहावा अमुणियतत्ता तहेव तं कुणइ । विज्जाहरभयभीया तवोवणं जाइ तरलच्छी ॥८१८३।। एत्थंतरंमि सहसा विज्जाहरदारओ तहिं आओ । कयककसघोररवो आढत्तो पभणिउं एवं ।।८१८४।। 'किं पावे ! निल्लज्जे ! निद(६)क्खिन्ने अजायउवरोहे । इच्छिहसि ममं नो वा भत्तारं ? कहसु वेगेण ।।८१८५।। नणु एसो पज्जंतो केत्तियदियहाइं तुज्झ रेसंमि । अच्छिस्सं वामूढो अनेहनेहाणुबंधेण ? ||८१८६।। खिविऊण तुमं घोरे तिमि-मयरसहस्ससंकुलसमुद्दे । जाइसं(स्स) वेयड्ढे मरणंतो एस तुह समओ' ।।८१८७।। तो वीरसेणघूया तं सोउं खयरककसं वयणं । कयमरणनिच्छयमणा रोमंचं वहइ अंगंमि ।।८१८८।। Page #756 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ 'मह पुत्र पहावेणं कुमारअवमन्नियाए अणुकूलो । सव्वो च्चिय संजाओ मरणविही जइ विही सरलो' ||८१८९ ॥ तो असुयउत्तरुप्पन्नगरुयअमरिसविसेसरत्तच्छो । उच्चल्लइ मंजूसं उप्पयइ नहंतरालंमि ॥ ८१९०॥ रयणायरस्स गब्भे अथाहगंभीरघोरसलिलंमि । अच्छोडिऊण घेल्लइ मंजूसं खेयरो कुद्धो ॥। ८१९१ ।। तो गुरुवेयविमुक्का नीसहनिब्भारवसनिमज्जंती । मंजूसा दूररसायलंमि पडिया समुमि ||८१९२ ।। विज्जाहरो वि तम्हा समागओ सयलपव्वयवणंमि । खणमेत्तमच्छिऊणं पुणो वि रयणायरं एइ ||८१९३ ।। संपेसियनियविज्जो समुद्दमज्झाओ जाव मंजूस । किर कड्डेउं इच्छइ संजायविसुद्धपरिणामो ||८१९४ || ता सयले विसमुद्दे विज्जाबलगाहिए वि नो दिट्ठा । मंजूसा खयरेणं न जाणिया कत्थ वि गय त्ति ।।८१९५ ।। तो तं अपेच्छमाणो मंजूसं सो मणंमि चिंतेइ । ७४७ 'कह नारीवहजणियं पावमहं नित्थरिस्सामि ? || ८१९६ ॥ हा ! पावमोहिएणं विसयासाविनडिएण किर एयं । बीहाविऊण य पुणो परिणयणत्थे पयट्टिस्सं ||८१९७ ।। पक्खित्ता वि हु बहुसो मंजूसा कड्डिया मए बहुसो । एहि तु कह न दीसइ निउणं पि निरूविया एत्थ ?' ||८१९८ ।। इय सोइऊण बहुसो बहुपच्छायावजायमणखेओ । पुणरवि गवेसिऊणं अपेच्छमाणो गओ मलयं ॥। ८१९९ ।। Page #757 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ एवं च ताव एवं; इओ य हरिविकुमो असेसंपि । जुत्ताजुत्तं साहइ अरिविजय-विवाहकज्जेण ।।८२००।। 'एयं चित्ते काउं तुम्ह पुरो जंपिउँ(यं) मए जक्ख ! । जं किर अन्नासत्तं हिययं नो जाय(इ) अन्नत्थ' ।।८२०१।। तो भणइ मलयमेहो ‘हरिविक्रम ! समुचिओ तुह विवेओ । गरुयं पि अन्नकज्जं छाइज्जइ जणयकज्जेण ।।८२०२।। दुप्पडियाराइं कुमार ! हुंति चत्तारि नवर एयाइं । जणणी जणओ सामी एएसि गुरू अपडियारो ।।८२०३।। ता एयं च्चिय पढमं कज्जं निव्वत्तिऊण रिउविसयं । पच्छा पाणिग्गहणं करेज्ज सह मज्झ धूयाए ॥८२०४।। एत्थेव तुमं चे(चि)सु अहमेव महाबलं रिउं तुज्झ । आणेमि बंधिऊणं चडफ(प्फ)डतं तुह समीवे' ।।८२०५।। हरिविकुमेण भणियं ‘अत्थि इमं किं तु तस्स अइगरुयं । देवस्स कस्स वि बलं तेण अजेओ खु सो जाओ' ||८२०६।। तो भणइ जक्खराया ‘सच्चमिणं अत्थि सुरबलं तस्स । सो उण वंतरदेवो दुनिग्गहो मारिसाणं पि ।।८२०७।। हरिविकुम ! किं तु तुहाणुहावसंजायगरुयसामत्थो । देवं पि निज्जिणिस्सं का गणणा तस्स वेरिस्स ?' ||८२०८।। हरिविकुमेण भणियं को न मुणइ जक्ख! तुज्झ सामत्थं ? । किं तु अहमेव सक्को ससुरस्स महाबलस्साऽवि' ।।८२०९।। तो भणइ जक्खराया ‘मा उवरोहं करेसु मह विसए । ता दो वि हु वच्चामो अलंघदुग्गं हरिकुमार !' ||८२१०।। Page #758 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७४९ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ ‘एवं होउ' त्ति तओ गरुयनिबंधेण मन्नए कुमरो । जक्खो सह उप्पइओ कुमरेणं तुब्भ(च्छ)परिवारो ।।८२११॥ हरिविकुमेण भणियं ‘वच्चामो ताव वंतरसुरस्स । पासे तं अणुकूलं काउं जामो अलंघउरं' ।।८२१२।। तो भणइ जक्खराया 'नेवं नरनाह ! रायनीईए । जेणेव सह विरोहो सो च्चिय साहिज्जए पढमं ॥८२१३।। तं साहंतस्स पुरो जो काही राय ! तुज्झ पडिबंधं । पच्छा तेण समाणं जं होही तं करिस्सामि' ॥८२१४।। ‘एवं' ति पभणिऊणं विउरुव्वियवरविमाणमारूढो । हरिविकूमो सखग्गो किरीडमणिकुंडलाहरणो ।।८२१५।। वच्छत्थलघोलिरहारभूसिओ सूरभासुरपयावो । उभयंसजक्खचालियसियचामरभूसियदियंतो ।।८२१६।। तो अत्थमिए सूरे समइक्वंतंमि रयणिपढमद्धे । सुत्तमि सयललोए मूईहूए व्व भुयणंमि ।।८२१७।। जोइज्जंतो कुमरो अयंडसंजायदिवससंकाए । सिरिवेरिसिंहसेणालोएहिं सुदूसहालोओ ।।८२१८।। विउरुव्वियजक्खपयंडतेयपयडीकयं नियं सेन्नं । कुमरो अवलोयंतो अलंघनयरंमि संपतो(त्तो) ।।८२१९।। तो नियतेयपयासियपासायसहस्ससोहियं नयरं । दिव्वविमाणारूढो पेच्छइ हरिविकुमकुमारो ||८२२०।। दूराओ च्चिय सिरिवैरिसीहसेन्नेण वेढियउवंतं । पडिसिद्धिंधण-धण-धन्न-जवस-जल-निग्गम-पवेसं ।।८२२१।। Page #759 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७५० सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ उत्तुंगमहट्टालयसिहरग्गनिबद्धतोरणपडायं । जग्गंतजामइल्लयसहस्सकोलाहलदुलंघं ।।८२२२।। अंतोगरुयनिवेसियजंतनिखिप्पंतओ(उ)वलसंघायं । मुक्कग्गितेल्लजालाजलंतगयणंगणाभोयं ॥८२२३।। अणवरयभमिरभामरिनरहक्कासावहाणकयसुहडं । ठाणट्ठाणुक्कुरुडियबहुपहरणपुंजसंकिन्नं ||८२२४।। परसेन्नभयसमुब्भडअंतोकयसावहाणचउरंगं । खंडीपडणभएणं पउणीकयदारुसिप्पिगणं ।।८२२५।। परसेन्नप्पडणत्थं खाणिनिहिप्पंतगुविलजलियगिंग । इयमाइ कयपयत्तं नियइ कुमारो अलंघपुरं ।।८२२६।। तो सहसा संपत्तो नवभूमियकणयतुंगपासायं । अट्ठावयं व सेलं महाबलस्सालयं कुमरो ।।८२२७।। ठाणट्ठाणपरिट्ठियठाणंतरवंठकलयलगहीरं । सइ सावहाणसेवयसहस्सपरिवेढियउवंतं ।।८२२८।। परिवियडगुडियबहुकरडिघडाघडियचउदिसावेढं । पक्खरियतुरयसाहणसहस्सपरिवेढियदियंतं ।।८२२९।। सारहिसंचारियसंदणोहसंघट्टरुद्धवित्थारं । पसरंतफारफारक्क-कुंत-धाणुक्कपरिखित्तं ।।८२३०।। इय तं पि कयपयत्तं कयजक्खपयत्तमणिविमाणत्थो । पेच्छइ कुमरो भवणं अणंतजणरुद्धपहदारं ।।८२३१।। तो भणइ जक्खराया 'जहत्थनामं कुमार ! दुग्गमिणं । वेरीहिं न लंघिज्जई वरिससहस्सोवउत्तेहिं ।।८२३२॥ Page #760 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ ७५१ दुविहं दुग्गं साहावियं च आहारियं च निदि(द्दि)टुं । पयइविसमस्स विजओ आहरियमिमस्स वेसम्मं ।।८२३३।। जं पज्जत्तवसायं पउरिंधण-जवस-सलिलसंघायं । अप्पंमि परस्स तहा दुलहत्तं पुव्ववत्थूण ।।८२३४॥ बहुवन्नरससमिद्धं पवेसअपसारवीरपुरिसढे । एए किर दुग्गगुणा ते सव्वे एत्थ दीसंति ॥८२३५।। इयमाइगुणविहीणं जं दुग्गं तं खु बंदिसालं व । दुग्गविहीणो राया पावइ अइपरिभवं गरुयं ।।८२३६।। दुग्गविहीणो राया जलनिहिबोहित्थसड्डपक्खि व्व । . आवइकाले वच्चउ निरासओ कस्स किर सरणं ? ।।८२३७॥ ता राय ! इमं दुग्गं एयं जेतुं महाबलं सत्तुं । कीरइ नियसत्ताए एरिसदुग्गं जओ नत्थि ।।८२३८।। ‘एवं' ति पभणिऊणं भणइ कुमारो ‘किमज्ज वि विलम्बो ? ।। जामो वेरिसमीवे करेमि अज्जेव निज्जोडं' ।।८२३९।। तो तक्खणेण जक्खो पुरओ गंतुं महाबलं भणइ । ‘किं सोवसि निच्चितो ? उट्ठसु नरनाह ! वेगेण ||८२४०॥ निरणुच्छाहो राया पावइ सयलाई राय ! वसणाई । तम्हा उच्छाहो च्चिय पढमगुणो होइ सामिस्स ॥८२४१।। चयइ न विक्कमभावं वेरिसु तह अमरिसं सया वहइ । तुरियत्तं मइपसरो उच्छाहगुणा इमे हुंति ॥८२४२।। तुह गुरुपरक्कमे वेरियंमि हरिविकुमंमि इह पत्ते । वाहि व्व दीहदीहा उवेक्खिया होहिही निद्दा ।।८२४३ ।। Page #761 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ ता राय ! अहं दूओ तुज्झ समीवंमि पेसिओ तेण । हरिविकुमेण एवं संदिटुं सुणसु एगमणो ।।८२४४।। ‘चयसु सुहडत्तगव्वं मन्नसु मह तायसंतियं सेवं ।। अच्छसु जहासुहेणं भुजंतो राय ! रायसिरिं ।।८२४५।। अहवा न तायसेवं मनसि ता होसु समु(म्मु)हो समरे । कहिया दोन्नि वि पक्खा जं रुच्चइ तं समायरसु" ।।८२४६।। इय जक्खरायभणिए निद्दारुणघुम्मिरच्छिसयवत्तो । आमोडियंगुवंगो उट्ठइ सयणाओ नरनाहो ।।८२४७।। पभणइ महाबलो ‘को तुमं सि ? हरिविकूमो वि को एत्थ ? | ताओ वि तस्स को वा ? सो सेवं जस्स कारवई ? ।।८२४८।। सेव च्चिय का भन्नइ ? सा दूय ! कहं च कीरइ नरेण ? । आजम्मो(म्मा)वहि तिस्सा सरूवमवि अम्ह अउरुव्वं ।।८२४९।। जइ सो च्चिय तुह कुमरो पढमं सेवासरूवमुवइसइ । ता हं तेण कमेणं सेवाभासं करिस्सामि' ।।८२५०।। तो भणइ जक्खराया 'को सि तुमं ? - मं भणेसि तं जुत्तं । हरिविकुमो त्ति को वा ? तमणुचियं जंपियं तुमए ।।८२५१।। संकोडियंगुवंगो छूढो गब्भे व जेण दुग्गंमि । कह तं अलंघसत्तिं कम्मविवायं व नो मुणसि ? ।।८२५२ ।। अहवा को तुह दोसो ? अनायपरमत्थवत्थुरूवस्स । अन्नाणकयं एवं सव्वं च्चिय तुज्झ ववहरणं ।।८२५३।। नियबुद्धिकप्पियं खलु जो गव्वं वहइ अप्पविसयंमि । सो पावइ उवहासं अप्पाणं संसए ठवइ ।।८२५४।। Page #762 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ ७५३ ता किं बहुणा ? नरवर ! सो च्चिय हरिविकुमो पयडसत्ती । नियतायं दंसिस्सइ सेवा किर जस्स कायव्वा ||८२५५ ।। सेवारूवं सो च्चिय पयडेही तुज्झ केण वि नएण । अज्जेव न उण दूरे किं राय ! अईव उच्छुको ||८२५६ ।। कह तं चवइ विसिट्ठी निव्वहइ न जो पुरो भणतस्स ? । अजहत्थवाइणो पुण पुरिसा पावंति हलुयत्तं ॥ ८२५७ ॥ दट्ठव्वो सि महाबल ! केत्तियदियहेहिं रायरायस्स । पुरओ तदेक्कचित्तो सेवंजलिवावडकरग्गो' ||८२५८।। तो जक्खवयणपसरियअमरिसवसफुरफुरंत अहरोट्टो । कयपरिभवमंतक्खरजाओ व्व समुट्ठिओ सहसा ||८२५९ ।। दिढबद्धकेसजूडो नियत्थ (च्छ ) वत्थो निबद्धछुरिओ य । करकलियनिसियखग्गो वच्छत्थललुलियहारलओ ||८२६० ।। संनद्धपरियरायारभासुरो जा महाबलो होइ । ता तत्थ दुराधरसो पत्तो हरिविकुमकुमारो ||८२६१ ।। हरिविक्कमभासुरतेयपुंजपज्जालिओ व्व सामंगो । जाओ महाबलो तक्खणेण अइनिप्फुरपयावो ||८२६२ ।। चिंतइ महाबलो 'कयपयत्तसुररक्खियंमि दुट्ठमई । वारसजोयणभाए कीडियमेत्तं पि नो विसइ ||८२६३ ॥ भूमितले गयणयले विज्जाहर - सुर-नराण वि अलंघं । एयं अलंघदुग्गं लोहग्गलसुरपहावेण ॥। ८२६४।। हरिविकुमो वि एसो सामन्नमणुस्सजाइओ एत्थ । कह णु पविट्ठो होही मह सेन्ननिरंतरे दुग्गे ? ।।८२६५ ।। Page #763 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ लोहग्गलदेवेणं अहवा मह साहियं पुरा चेव । अहमेक्कस्स असक्को जं किर हरिविकुमस्स परं' ॥८२६६।। इय चिंतंतो सहसा पलयघणघोसघोरसद्देण । हरिविकुमकुमरेण सकोवमिव हक्किओ वेरी ।।८२६७।। ‘रे रे ! नाम महाबल ! पयडसु एण्हि नियं बलं समरे । आयड्ढसु करवालं जइ अत्थि मणे अवटुंभो' ।।८२६८।। तो हरिविकूमहक्कासंखुद्धमणस्स तस्स नरवइणो । विहलंघलस्स सहसा गलियं हत्थाओ करवालं ॥८२६९।। ईसीसि विहसिऊणं भणियं कुमरेण 'तुह बलं दिटुं । मा भाहि तुज्झ अभयं पहरामि न गलियखग्गस्स ।।८२७०।। पेच्छामि कोउएणं सो वि कहिं वाणमंतरो तुज्झ ? । मन्ने जह तुज्झ बलं तस्स वि एयारिसं होही' ।।८२७१।। भणियं महाबलेणं 'जहत्थनामो तुमं चिय जयंमि । जस्स हरिणा समाणो जयपयडो विक्कमो अत्थि ||८२७२।। नामाई मारिसाणं अन्नत्थ जहा तहा पयट्टतु । तुह विसए वि नरेसर ! न लहंति जहत्थयं निययं ।।८२७३॥ अन्नत्थ रिउंमि पराजओ वि मह होइ दूसणं देव! । तुह विसएणं सो च्चिय संजाओ भूसणं मज्झ ।।८२७४॥ सकयत्थं चिय मन्ने अप्पाणं देव ! एत्तिएणेव । दुज्जेओ अन्नेसिं तुमए विजिओ सयं जमहं ॥८२७५॥ ता एसो हं भिच्चो एयं दुग्गं परिग्गहो एसो । कोसो विसय-कलत्ताइं च सव्वं पि गेण्हेसु ||८२७६।। Page #764 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीक हा ॥ लोहग्गलदेवेण वि पढमं चिय देव! अम्ह अक्खायं । ‘हरिविकमंमि पत्ते मह मग्गं मा पलोएज्ज'' ||८२७७।। 'साहु साहु' त्ति भणिउं सप्पणयं भणइ जक्खराया वि । ‘एस च्चिय पहुभत्ती सव्वंगसमप्पणं जमिह ||८२७८।। कस्सेरिसो विवेओ एयविहो कज्जनिच्छओ जस्स । जह तुज्झ कुमरविसए संजाओ एगचित्तस्स ?' |८२७९।। एत्थंतरंमि सूरो नियदंसणनिहि(ह)यवैरितिमिरोहो । हरिविकुमो व्व उइओ महिहरसिरठवियनियपाओ ।।८२८०।। संकोयदुहत्ताओ दूरयरनिगूढकोससाराओ । हरिउग्गमे पयाओ वियसंतिह पउमिणीओ व्व ||८२८१।। तो नीहरिओ बाहिं उदंतवलहीए संठिओ कुमरो । जक्खकयदेहरक्खो तप्परियणधरियसियछत्तो ।।८२८२ ।। चडुलमहाबलकरकलियचमरसाहिप्पमाणरिउविजओ । सव्वंगरयणभूसणसोणपहापुंजपरिकलिओ ।।८२८३।। तो हरिविकुमससहरदसणक्खु(खु)ब्भंतदूरवित्थारं । जलनिहिजलं व सहसा संचलइ महाबलबलोहं ॥८२८४।। तो उड्ढीकयकरयलनिसिद्धसामंतचित्तसंखोहो । वारइ महाबलो नियबलाइं पुण भणइ गुरुसदं ।।८२८५।। 'भो! भो! निसुणह सव्वे सामंता! मंडलीयरायाणो! । सो एस अतुलसत्ती अच्चु(च्च)ब्भुयविक्कमपयावो ।।८२८६।। हरिविकूमो त्ति नामं जो पुत्तो अजियविकूमपहुस्स । जस्स भएण पलाणो देवो लोहग्गलो दूरं ॥८२८७।। Page #765 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ तो मन्नह पहुमेयं चयह विरोहं अतुल्लसामत्थं । पणमह लच्छिनिवासं हरिविकुमदेवपयकमलं' ।।८२८८।। इय एवं ते भणिया सव्वे वि मणंमि कयचमक्कारा । पणमंति पलोयंता पयावमसमं कुमारस्स ॥८२८९।। एत्थंतरंमि नयरे घोसिज्जइ वियडरायमग्गेसु । रत्था-चउक्क-चच्चर-सिंगाडय-तियपयपहेसु ॥८२९०।। 'हरिविकुमस्स आणा जो कुणइ भयं व दुत्थ(?)संकं व । निच्चं पमुइयचित्ता अच्छह परमेण सोक्खेण ||८२९१।। कुणह पुरहट्टसोहं परिहह पंगुरह विलसह जहिच्छं । उग्घाडइ(ह) सव्वाइं पओलिदाराई वेगेण ॥८२९२ ।। हरिविकुमआगमणे नियनियगेहेसु उच्छवं कुणह । नच्चह वद्धावणयं आणंदं कुणह पाहिट्ठा' ॥८२९३।। हरिविकुमो वि तुरियं सेणाहिववैरिसीहमाणेइ । संथइ नयरपहाणा आवज्जइ लोयहिययाइं ।।८२९४।। आणावइ नियसेन्नं जं पुट्विं मलयसेलनियडंमि । आवासियं जओ किर अवहरिओ मलयमेहेण ||८२९५।। नियसेन्नस्स नरिंदं महाबलं अप्पिऊण सकलत्तं । सपरिग्गहं सकोसं सहत्थि-रह-तुरय-पाइक्वं ।।८२९६।। पट्ठवइ अजियविकुमरायस्स समीवमुचियकयरक्खो । भणइ य तं सप्पणयं राया नीइं अणुसरंतो ||८२९७।। ‘वच्चसु अकयवियप्पो तायसमीवं महाबलनरिंद ! । मह उण न अत्थि सत्ती गहण-पयाणे पीवसस्स' ।।८२९८ ।। Page #766 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ इय जाव अलंघउरे अच्छइ हरिविकुमो सदेसे व्व । रज्जसिरिं भुंजतो वीरसुयाविरहखीणंगो ।।८२९९॥ ता सहसा जक्खपरिग्गहमि एगो समागओ जक्खो । सो भुयणसुंदरीए साहइ सयलं फि वुत्तंतं ॥८३००।। तं सोऊण कुमारो ‘हा! ह' त्ति तिसूलघायभिन्नो व्व । जक्खस्स विरसवयणं अह मोहं जाइ निच्चेट्ठो ॥८३०१।। तो जक्खरायविरइयसीयलकिरियाहिं लद्धचेयन्नो । पाययनरो व्व विलवइ अजहत्थलुलंततणुकेसो ।।८३०२।। 'हा देवि! भुयणसुंदरि! सकीयसुंदेरि(र)विजियतेलोक्के! | कह निक्किवस्स मह कारणेण अप्पा तए वहिओ ? ||८३०३।। तुमए भुयणमसेसं विभूसियं जुयइरयणभूयाए । तं चिय तए विहीणं न सोहए छिन्नसीसं व्व ॥८३०४।। कह देवि! मह निमित्तं तुह मरणसमुब्भवं महापावं । वरिससहस्सकएहिं वि घोरतवेहिं वि मह समिही ? ||८३०५।। हा! भुयणसुंदरि! तए तहा कओऽहं जहा तिलोए वि । अद(द्द)ट्ठव्वो जाओ अगेज्झनामो य न हु भंती ।।८३०६।। जं पुट्विं मह भुयणं हुतं गुणसवणदिन्ननियकन्नं । तं मह नामे निसुए निबिडयरं झंपिही कन्ने ||८३०७।। विस्सासघाइणो जे गुरुपड(डि)णीया य जे कयग्घा य । नारी-बालवहा वि य हुंति असोयव्वनामा ते ।।८३०८।। तं अन्नभवे पावं मए कयं जस्स फलमिमं जायं । एएण उ जं होही पुरओ तमहं न जाणामि ।।८३०९।। Page #767 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७५८ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ तुह विरहजलणदड्ढो बीयं तुहमरणपावमलकसिणो । अपवित्तो हं जाओ मसाणजाओ व्व अंगारों' ।।८३१०।। इयएवमाइबहुविहपलावसयदुत्थियं मलयमेहो । संधीरइ रायसुयं निच्छयसारेहिं वयणेहिं ॥८३११।। 'किं हरिविकूम! विक्कमधणो वि एवंविहाइं पलवेसि ? । जुयईणं चिय सोहइ नरिंद! एवं अणुट्ठाणं ।।८३१२।। पयईए कोमलाई कुमार! हिययाइं साहसधणाण । ताई चियावयाए कुलिसकढोराइं जायंति ।।८३१३।। जाणामि ओहिनाणेण कुमर! सिरिभुयणसुंदरी देवी । अच्छइ जीवंत च्चिय अविणट्ठसरीर-चारित्ता ॥८३१४।। ता अच्छ तुम इहइं अहयं पुण सयलभुयणवलयंमि । धूयं गवेसिऊणं अवस्स तुमए घडिस्सामि' ।।८३१५।। इय भणिऊणं जक्खो कुमरं आपुच्छिऊण गयणेण । नीहरिओ वेगेणं पवणो व्व अदीसमाणगई ॥८३१६।। हरिविकूमो वि दूसहदइयाविरहग्गिदाहसंतत्तो । तत्तकडिल्ले व गओ तल्लुवेल्लीओ विरएइ ||८३१७।। अह अन्नदिणे गुरुतरदइयादुहदाहदज्झमाणतणू । सेणाहिवेण भणिओ सप्पणयं वैरसीहेण ।।८३१८।। 'तुह देव! सयलसत्थत्थवित्थरुप्पन्नपरमनाणस्स । अम्हारिसोवएसा न किं पि कज्जं पसाहति ।।८३१९।। तह वि न अरिहसि काउं खेयं नरनाह! निप्फलारंभं । तुम्हारिसाण एवं दूरविरुद्धं जओ कम्मं ।।८३२०।। Page #768 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा सोएण जणे हासो खिज्जइ देहो गलंति बुद्धीओ । संजायइ दीणत्तं पत्थुयकज्जस्स तह नासो ||८३२१ ।। कह ते कुणंति सोयं नामेण वि जाण कंपइ जयं पि? । आसु सविकमेणं हढेण देविं अरिसिरिं व १८३२२॥ जे करवालतुलाए नियजीयं तोलिऊण अप्पंति । वेण वीरचरिया ते च्चिय सायं (हं ) ति नियअत्थं ||८३२३| किं देव! इमं न मुणसि तए सदुक्खे जयं पि बहुदुक्खं ? | तुह देहे च्चिय निवसइ जम्हा भुयणं निरवसेसं ||८३२४|| तो देव ! चयसु सोयं पहीणजणसेवियं च अफलं च । कुणसु अवट्ठभं चिय पसाहियासेसकज्जत्थं' ||८३२५ ।। इय सेणाहिववयणं सोउं हरिविकुमो पयइवीरो । पच्चागयचेयन्नो परमत्थविभावओ जाओ ||८३२६ ।। 'अहह! पियावइयरवज्जवडणखणमेत्तजायपीडस्स । मह सव्वो पमु ( म्ह) ट्ठो उचियाणुचियत्तवावारो ||८३२७॥ जइ मारिसा वि एवं परोवएसारिहा भविस्संति । ता हंत! निराधारा संजाया धीरिमा भुयणे ||८३२८|| ता जुत्तं च्चिय भणिओ सेणावइणा अहं सयत्थं च । नियबलपरकुमेणं दइयत्थे हं पयट्टिस्सं ||८३२९|| जक्खेण वि मह कहियं जं जीवइ भुयणसुंदरी देवी । ता सव्वहा तयत्थं पुरिसायारं पयासेमि' ||८३३०|| इय चिंतिऊण कुमरो सेणानाहं पयंपई हिट्ठो । 'को अन्नो मज्झ हिओ तुमं विणा एत्थ भुयणंमि ? || ८३३१॥ ७५९ Page #769 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७६० सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ तुह वयणपवणपडिपेल्लिओ व्व दूरं रओ व्व ओसरिओ । खेओ मह मणरयणे सहावविमलंमि नरनाह !' ।।८३३२।। एत्थंतरंमि मित्तो हरिविकुमकज्जकरणबुद्धीए । देवीगवेसणत्थं पच्छिमजलहिंमि पविसेइ ।।८३३३।। वीरधूएक्करत्तं नाउं हरिविकुमं व वरुणदिसा । संझामिसेण मन्ने ईसारायं व्व उव्वहइ ॥८३३४।। सिरिभुयणसुंदरीगुरुदुहे व अंतरियसयलजियलोए । मज्जइ तिमिरे भुयणं संछन्नासेसउज्जोयं ।।८३३५।। उवसंतसव्वचेलू गुरुनिदंतरियलोयचेयन्नं ।। वीरसुयादुक्खेण व मुच्छामूढं व भुयणयलं ।।८३३६।। एवंविहंमि समए कयगुरु-जिणपायवंदणो कुमरो । अत्थाणे उवविठ्ठो सामंतसहस्ससंकिन्नो ।।८३३७।। तत्थऽच्छिऊण य खणं उचियावसरे विसज्जियत्थाणो । वच्चइ सेज्जाभवणं परिमियपरिवारपरियरिओ ।।८३३८।। तमि गओ परिवारं विसज्जए कयपसायसंमाणं । तो सेज्जाए उवन्नो कोमलतूलीसणाहाए ॥८३३९।। अह सो विचित्तसेज्जाहरंमि चिंतेइ बहुविहोवाए । 'केणेह उवाएणं मह दइयादसणं होही ? ||८३४०।। अहवा जाव न अप्पा परिखिप्पइ संसयंमि मरणंते । ताव न वंछियकज्जं साहसहियया पसाहति ||८३४१।। साहस-सत्तिधणाणं दो चेव गईओ होंति धीराणं । तिणतुलियसजीयाणं मरणं व सकज्जकरणं व ।।८३४२ ।। Page #770 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ ७६१ उववासिओ म्हि अज्ज य अज्ज य किण्हट्ठमी वि संजाया । ता बाहिं गंतूणं हढेण साहेमि कं पि सुरं' ||८३४३|| इय चिंतिऊण उट्ठइ कयपरियरबंधभासुरसरीरो । करकलियखग्गरयणो नियंबदिढबद्धछुरिओ य || ८३४४ || कयहारबंभसुत्तो पलंबपडपाउयंगपच्छन्नो । नीहरिओ भवणाओ अलक्खिओ जामइलेहिं ||८३४५|| अहिलंघियपायारो दूरं परिहरियखाइयावलओ । करणपरिहत्थदेहो पडिओ बाहिंमि दुग्गस्स ||८३४६ || तो वियडपयभरक्खेवदलिय थरहरियमहियलाभोओ । पत्तो मसाणभूमिं सहसा तिणतुलियतेलोक्को ||८३४७ || उप्पत्तिं व भयाणं सुणागारं जमस्स व दुरंतं । आगारं मरणस्स व लीलावासो व्व भूयाणं ||८३४८ || पजलंतचियाहिंतो दरदड्डुं कड्डिऊण मडयोहं । भक्खंति जत्थ भूया निबद्धघणमंडलीबद्धा ||८३४९।। दीसंति जत्थ विविहा विपणिपहा वीरमंस - वसपउरा । वेयाल-भूयरक्खसकोलाहलपयडपव्भारा || ८३५० ।। पजलंतबहुचियासयजालाकवलिज्जमाणगयणयलं । जं होइ पलयकालानलस्स उप्पत्तिबीयं व ||८३५१ ॥ जालामुहीओ जत्थ य समंसपामुक्कजलणजालाओ । चिरकवलियसपलचिया हव्ववहं उव्वमंति व्व ||८३५२ ।। जं घोरवूयघुक्काररावबहिरियनहंतराभोयं । छलियं व निब्भयजम्मं (मं ?) आमेलइ दीहहुंकारं ||८३५३|| Page #771 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७६२ १. सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ बहु साइणिजुयइजणं रक्खस-वेयाल - भूय-नरनिविडं । सव्वं (व्विं) दियअमणोन्नं जमस्स जं रायहाणि व्व ||८३५४ || एवंविहे मसाणे गरुयं तत्थऽत्थि भैरवाययणं । तंमि कावालियाणं अत्थि महंतो मढो एगो ||८३५५ ।। तत्थऽत्थि खुद्दविज्जासिद्धिसमुब्भूय असमसामत्थो । जल-त्थ (थ) लअक्खलियगई वोमविहारी महारोद्दो ||८३५६॥ नामेण सूलपाणी तस्स य सीसोऽत्थि तस्स अमहिओ । बहुसिज्झ (द्ध) विज्जमंतो कवालधयधारओ भीमो ||८३५७ || नरहड्डखंड बहुविहभूसणविणिवेसभासुरसरीरो । खट्टंग- डमरुहत्थो सव्वंगं भूइपंडुरिओ ॥। ८३५८।। नामेण चंडरोद्दो चंडो रोद्दो जहत्थनामो सो । ते तत्थ दो वि भीमा मढंमि निवसंति गुरु- सीसा ||८३५९॥ अह हरिविकुमकुमरो तंमि मसाणे सहावभीमंमि । परियडइ अखुद्धमणो पेच्छंतो वैयरे विविहे ||८३६०|| वेयालेहिं निरुद्धं कत्थ वि विलवंतमंतिसंघायं । ते हकिऊण वीरो मेल्लावइ तं सकारुन्नो || ८३६१ ।। कयवरमंडलपूए बहुविज्जासाहणुज्जए पुरिसे । दट्ठूण नीसहाए सहायभावं कुणइ ताण || ८३६२ ।। अन्नत्थ भूय- रक्खस- पिसाय-वेयाल - साइणीनिवहं । आमुघोरहको दुन्नयकज्जाउ वारेइ ||८३६३ ।। 'किं देह रक्खसाणं अप्पाणं छिंदिउं किलीवाण ?” । इय वारिऊण वीरे (रो ? ) मणोरहे ताण पूरेइ ||८३६४ || वइयरे || Page #772 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ इयएवमाइवइयरनिरंतरं पिउवणं नियच्छंतो । .. पत्तो कमेण कुमरो अइभीमं भइरवाययणं ।।८३६५।। जा जाइ तत्थ निहुयं ता पेच्छइ सूलपाणिमुवविटुं । . कयजोगपट्टपज्ज कबंधज्झा(झा)णासनासीनं ।।८३६६।। सन्निहिठवियतिसूलं परिचारयपुरिससंजुयं भीमं । तं दद्रूण कुमारो थंभंतरिओ ठिओ नियइ ।।८३६७।। जा तं एकग्गमणो कुमरो किर नियइ ताव पजलंतं । पुरओ तस्स अयंडे तिसूलमह कंपियमच्छि(छि)कं ।।८३६८।। तो भणइ सूलपाणी सन्निहियनरं 'नियच्छ रे पुत्त ! । पजलंतं कंपंतं मज्झ तिसूलं महाइसयं' ॥८३६९।। भणइ नरो ‘किं एयं कंपइ पज्जलइ ? कहसु मह भयवं !' । सो भणइ 'को वि चिट्ठइ सलक्खणो इत्थ वरपुरिसो ||८३७०।। गेण्हसु तस्स कवालं जेणं तुह हुंति सव्वसिद्धीओ । एयं मज्झ निवेयइ तिसूलमेवं पकंपंतं ।।८३७१।। एमेव भमइ भुयणं कवालकज्जमि चंडरोदो सो । ठाणठिएहि वि लब्भइ निडालवटुंमि जं लि[हि]यं' ||८३७२।। परिचारएण भणियं 'न को वि इह तव्विहो नरो अत्थि' । सो भणइ 'किं विकंथसि(विकत्थसि?) न अन्नहा भासियं मज्झ' ।।८३७३।। एत्थंतरंमि सहसा नहाओ डमडमियडमरुयकरग्गो । दिढबद्धजडाजूडो कयभूइविलेवणसरीरो ।।८३७४।। खंद्धट्ठियखटुंगो हठे(ढे)ण धरिउं सिरग्ग-केसेसु । वरतरुणिमुव्वहंतो ओयरिओ गुरुसमीवंमि ।।८३७५।। १. विकप्पसि(?), खं.ता. टि. ।। Page #773 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७६४ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ तो भणइ गुरू ‘किं चंडरुद्द! लद्धं तहाविहिं(हं) किं पि ? । बहुलक्खणसंपन्नं नरं व नारिं भमंतेण ?' ||८३७६।। सो भणइ ‘सुछ लद्धं संभवइ न जं तिलोयमज्झे वि । दिव्वं कन्नारयणं नियरूवविणिज्जियतिलोयं' ।।८३७७।। अह चिंतेइ कुमारो ‘अच्छरियमिमस्स वरतिसूलस्स । जं दठूण सलक्खणपुरिसं पज्जलइ कंपेइ ।।८३७८।। का एसा वरनारी होही घणकसिणकेसपब्भारा ? । निबिडे तमंधयारे पच्चभिजाणामि कह एयं ?'||८३७९।। तो भणइ सूलपाणी ‘नियच्छ रे चंडरुद्द! इह पुरिसं । सव्वंगलक्खणधरं निवेइयं मह तिसूलेण' ।।८३८०।। तो भणइ चंडरुहो ‘भयवं! नेयारिसो भवे मंतो । जं चिय अप्पायत्तं तं चिय पढमं वसे कुणह ।।८३८१।। सिद्धप्पाए कज्जे कालविलंबो करेइ विग्घायं । तम्हा सिद्धं मोत्तुं असिद्धकज्जं न कायव्वं' ।।८३८२।। तो भणइ गुरू ‘एवं, मारसु वेगेण कन्नयं एयं । मा को वि पुण इमीए काही परिपंथगो विग्घं' ।।८३८३।। तो केसे घेत्तूणं भैरवभवणंमि नेइ तं नारिं । करुणरवं विलवंति भएण कंपंतसव्वंगिं ।।८३८४।। दक्खत्तणेण कुमरो पढमं पविसेइ भैरवं भवणं । थंभंतरिओ चिट्ठइ निग्घिणचेझैं पलोयंतो ||८३८५।। तो तं स(सु)कुमारंगिं सललियलायन्नरूवविन्नासं । केसेसु कड्डिऊणं दड त्ति सो खिवइ धरणीए ।।८३८६।। Page #774 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ पच्छाकयबाहुवसा भग्गुन्नइपिहुलजायथणवढे । तं बंधइ वरनारिं नरकेसमयाए रज्जूए ।८३८७।। दिट्ठ(ढ)यररज्जुनिबंधणपीडावसरोइरिं अलक्खंगो । दटुं नारिं कुमरो छिन्नइ छुरियाए तब्बंधे ॥८३८८।। अह पुरिसवसापज्जलियदीवसंजायमंडवुज्जोओ । निव्वत्तइ नीसेसं भैरवपूयाविहिं पढमं ॥८३८९।। तो निव्वत्तियपूओ समागओ कन्नयासमीवंमि । पहावइ कन्नं तह रत्तचंदणेणं पि लिंपेइ ।।८३९०॥ रत्तकणवीरमालं बंधइ सीसंमि तीए बालाए । उग्गाहइ अच्चुग्गं गुग्गुलधूवं च कावाली ।।८३९१।। तो कड्डइ विकरालं हट्टच्छरुभीसणं(?) निसियकत्तिं । पुण भणइ चंडरुद्दो ‘बद्धा सि मए कहं छुट्टा ?' ||८३९२।। अह सो अदिन्नपडिउत्तरं च बालं भणेइ अइकुद्धो । _ 'सुमरसु तमिट्ठदेवं सरणं वा जासु कस्साऽवि' ||८३९३।। सा भणइ ‘मए सरिओ चंदप्पहजिणवरो परमदेवो । पंचनमोकारं पिव मरणंते तं पि सुमरामि ।।८३९४।। सो चेव मज्झ सरणं भवे भवे जिणवरो य नवकारो । बीओ भुयणसरन्नो सरणं हरिविकुमकुमारो' ॥८३९५।। तं तिस्सा सुहवयणं सोउं कावालिओ गुणद्देसी । रोसफुरियाअ(s)हरोहो अह बालं भणिउमाढत्तो ॥८३९६॥ 'आ वैधम्मिणि! पावे! चंदप्पहसुमरणेण एण्हि पि । नवकारमंतआकर(रि)सियं व तुह आगयं मरणं ||८३९७।। Page #775 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७६६ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ हरिविकुमो वि लोहग्गलस्स जो वेरिओ तयं सरणं । जं पडिवन्ना तेणेव तुज्झ मरणं समावडियं ।।८३९८।। जइ पुण भयवंतं भैरवं च लोहग्गलं च सुमरेसि । ता तुज्झ तेहिं विहियं अज्ज हुन्तं परित्ताणं ।।८३९९।। अज्ज वि न किं पि नटुं भैरवदेवं सरेसु परमप्पं । लोहग्गलं च जेणं तुह रक्खा होइ मरणंमि' ।।८४००।। तो भणइ कन्नया सा 'कावालिय! किं व पलवसि अज्जुत्तं ? । मरणंते वि [य] पत्ते न अन्नदेवो मणे मज्झ ।।८४०१।। मरणं वा जीवं वा नियकम्मवसेण होइ पाणीण । देवो न किं(कं) पि मारइ न मरंतं अहव रक्खेइ ।।८४०२।। ता सव्वहा पसंतो पसंतसंसारसयलवावारो । सो च्चिय ससिप्पहजिणो भवे भवे होउ मह सरणं ॥८४०३।। निहणइ सव्वभयाइं अवमच्चु हणइ समइ विग्घायं । सुमरिज्जंतो हियए नवका(का)रो नत्थि संदेहो ॥८४०४।। जं सोऊण कुमारं तणं व लोहग्गलाइणो हुंति । सो मह न परं इहइं सरणं अन्नेसु वि भवेसु' ।।८४०५॥ इय कुमरो सोऊणं जिण-नवकारेसु निच्छि(च्छ)यं तिस्सा । अब्भहियजायपक्खो मेरुसमं मुणइ तं कन्नं ॥८४०६।। 'करुणाट्ठाणं नारि त्ति जीए किर रक्खणे पयट्टो म्हि । नियजीयसंसए वि हु संपइ तं कह न रक्खिस्सं ? ।।८४०७।। मं सरणं पडिवन्ना एत्थ उ किं कारणं हवे ? जम्हा । परियाणेमि न एयं तुच्छप्पईवप्पहे भवणे ।।८४०८।। Page #776 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७६७ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ अहवा एसा होही मह सेन्ने रायदारिया का वि । तेण ममं पडिवज्जइ सरणं नियपक्खवाएण'. ।।८४०९।। एत्थंतरंमि हियए सल्लं व खुडुक्किया कुमारस्स । 'सिरिभुयणसुंदरी होज्ज किं नु इह आगया देवी ? ||८४१०।। अहवा कह मह होही एवंविहविमलपुन्नसंपत्ती ? । सा इह होही अहयं रक्खिस्सं निययजीयं व' ॥८४११।। इय जा चिंतइ कुमरो ता सो पयईए निग्घिणो पावो । दट्ठोठभिउडिभीमो विमुक्कगुरुघोरहुंकारो ॥८४१२।। केसेसु कड्डिऊणं जाव निवेसेइ कत्तियं कंठे । ता हक्किओ कवाली कुमरेण गहीरसद्देण ।।८४१३।। 'हा पाव ! पावचेट्ठिय ! अविसिट्ठ-विसिट्ठजणअद्द(द)ट्ठव्व! । किं तुमए पारद्धं चंडालाणं पि जमकिच्चं ? ॥८४१४।। कह न गओ सयखंडं ? अहव विलीणो सि किन्न एत्थेव ? । उत्तमजुयइवहज्झवसायपहावेण एण्हि पि ? ||८४१५।। एए वि किं न सडिया तुह हत्था पयइकक्कसा कूर! । जम(मि)मीए केसपासे हढकड्डणकज्जवावरिया ? ॥८४१६।। गोरिं स(सु)कुमारंगिं गुरुमहिहररायसंभवं देविं । हा पाव ! पव्वई पिव जयपुज्जं कह णु मारेसि ?' ||८४१७।। एत्थंतरंमि सहसा कुमरं अवलोइऊण सा बाला । संजीविय व्व सरणं पडिवन्ना भणिउमाढत्ता ॥८४१८।। 'हा निक्कारणवच्छल! रक्ख ममं रक्ख मरणभयभीयं । कावालियाओ निग्घिणकम्मरयाओ जम्मा(मा)ओ व्व ।।८४१९।। Page #777 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७६८ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ जिण-पंचनमोक्कारप्पहाव आकर (रि) सिओ व्व सुहरासी । समुवडिओ सि सुंदर! पच्चक्खो पुरिसरूवेण' ||८४२०|| हरिविकुमेण भणियं 'साहमि (म्मि) णि ! सव्वहा न भेतव्वं । दूरं गयाई एहि भयाइं तुह जिणपहावेण ॥ ८४२१ ॥ सच्चं तुमए भणियं जिण - नवक्का (का) ररप्पहावओ अहयं । आकिट्ठो इव पत्तो तुह पयडो पुन्नरासि व्व' ||८४२२ ॥ तो भणइ चंडरुद्दो मुहकुहरविमुक्कुजलणघणजालो । ' को एस पावकम्मो महंतराए पयट्टेइ ? ||८४२३ ॥ रे रे पुरिसाहम ! सप्पगिलियसालूरियं व मोएउं । मंडूओ इव आओ मह समुहं कुद्धहिययस्स' ||८४२४|| हरिविकुमेण भणियं 'रे रे पासंडि! चंड! चंडाल ! । अपवित्तं पिव मन्ने अप्पं तुह दंसणेणाऽवि ||८४२५ ॥ कह न तुह पाव ! हिययं तड त्ति फुट्ट मणे धरंतस्स । भुयणेक्कसारनारीवहसंकप्पं परमघोरं ?' ||८४२६।। अह कावालिय-कुमराणं तव्विहं सोउमसरिसालावं । सहस त्ति सूलपाणी तिसूलहत्थो तहिं पत्तो ||८४२७|| जस्स तिसूलं सोहइ जलंतसूलग्गतिविहजालाहिं । मंताकिट्ठेहिं व जं अहिद्वेयं तिविहजलणेहिं ॥८४२८|| मुहमुकतेउलेसो चउदिसिपसरतदीहजालोली । पलयानलं किरंतो हरो व्व संहारसमयंमि ||८४२९|| तो तं तहासरूवं बाला दठ्ठे भएण कंपंती । 'परितायह परितायह' इय भणिरी कुमरमल्लिया ||८४३०|| • Page #778 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७६९ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ नियपिढे घेल्लेउं कुमरो तं बालियं पयइवीरो । धरिउं जडासु पाडइ पच्छा बाहूहिं बंधेइ ।।८४३१।। तह चेव चंडरुद्दो बद्धो अह ताण दोहिं(ण्ह) वि सरोसं । लिंगी होइ अवज्झो त्ति नासियं झत्ति छिंदेइ ॥८४३२।। पसरंततिसूलानलजालाउज्जोइयंमि भवर्णमि । कुमर-कुमरीण जायं अन्नोन्नं पच्चभिन्नाणं ।।८४३३।। हरिविकुमो त्ति बाला कुमरो वि य भुयणसुंदरि त्ति इमा । अन्नोन्ननिच्छएणं हरिसेणंगे न मायंति ||८४३४।। जो आसि भयवसेणं पुरा पकंपो नरिंदधूयाए । सो कुमरदसणेणं तहट्ठिओ वासणाभिन्नो ||८४३५॥ दूरासंभवदंसणवसपसरियविम्हयाइं जुगवं पि । अहिणंदति सहरिसं नियनियपुन्नाइं अन्नोन्नं ।।८४३६।। लाभो अलंघपुरस्स वि जोऽणिट्ठो आसि तीए मरणेण । देवीए दंसणेणं तं चिय कुमरो पसंसेइ ॥८४३७।। किं बहुणा ? ताण अन्नोन्नदंसणुप्पन्नहरिसाण । तं किं पि सुहं जायं जस्सऽत्थि न तिहुयणे उवमा ।।८४३८।। अन्नोन्नविरहियाणं दुहनिम्माओ व्व जो भवो आसि । सो चेव संजुयाणं सुहनिम्माओ व्व संजाओ ।।८४३९।। अह भणइ रायपुत्तो ‘देवि! कहं पाविया सि एएण ?' । सविलक्खा य सलज्जा अहोमुही भणइ रायसुया ॥८४४०।। 'जाणामि एत्तियं चिय जमहं मंजूससंठिया हुंती । एएण तओ कहमवि कड्डीया एत्थ आणीया' ।।८४४१।। Page #779 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७७० हरिविकुमेण भणियं 'दूरमविन्नायमहसरूवाए । अप्पा न केवलं चिय भुयणं पि[य] संसए छूढं ||८४४२ || जं हियए वि न सम्मा (मा) इ जं च अवरोप्परेण कयपीडं । कह तं थणवट्टं पिव कज्जं हियए तए धरियं ? ||८४४३ ॥ बहुसत्थपंडियाए पयइवियड्ढाए चउरचित्ता । सविवेयाए न तए मह हिययं जाणियं देवि !' ||८४४४ || तो भइ रायधूया 'पुव्युत्तगुणे नरिंद! नारीण । पियपिम्ममोहियाणं खणेण सव्वे वि नासंति ||८४४५ ॥ अमयमया अब्भत्था विमला गुरुदुक्खपडणजज्जरिया । करओवल व्व सुगुणा निबिडा वि न किं विलिज्जति ? ||८४४६ || किं तु मह कोऊ ( उ ) हल्लं साहह किं एत्थ आगया तुभे ? | अमणुन्ने बीभच्छे सुलह अवाए मसाणंमि ?' ।।८४४७।। कुमरेण नियवियप्पियपयडणसंजायगरुयलज्जेण । भणियं 'एमेव इहागओ म्हि लीलाविहारेण' ||८४४८ || एत्यंतरे नहाओ 'जयइ कुमारो' त्ति परियणसमेओ । देतो विविहासीसाओ आगओ मलयमेो वि ||८४४९ ॥ 'जयहि नियवंसभूसण! जय जय नियसत्तितुलियतेलोक्क ! | जय हरिविकमनरनाह! नंद आचंदसूरं जा' ||८४५० ।। इय सो दिन्नासीसो समागओ कुमर-कुमरिपासंमि । पुच्छियकुसलोदता साणंदा एंति नियट्ठा (ठा ) णं ॥ ८४५१ ॥ तो भइ जक्खराया 'कुमार ! उववासपीडियसरीरो । संजायजागरो वि य खणमेत्तं ठासु सेज्जाए' ||८४५२ ॥ खंता ॥ १. करकोपला इव सिरिभुयणसुंदरीकहा Page #780 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ ७७१ ‘एवं' ति पभणिऊणं कोमलतूलीसणाहमत्थुरणं । अल्लियइ खणं कुमरो निद्दाभरमउलियच्छिजुओ ।।८४५३।। तो भुयणसुंदरीए पुट्ठो जक्खो ‘कहेसु मह ताय! । को अज्ज पव्वदियहो जेण उ(णु)ववासी हुओ कुमरो ? ।।८४५४।। किं वा अमणुन्नुब्भेवबहुलबहुविहअवायपेयवणे । कुमरो गओ ? असेसं साहसु, मह कोउयं गरुयं' ।।८४५५।। जक्खो भणइ 'तए च्चिय उववासा किं कया दुवेऽपव्वे ? । केण व पओयणेणं जलहिंमि पवाहिओ अप्पा ?' ।।८४५६।। बाला भणइ 'अवन्नं सोऊण इमस्स जायखेयाए । सव्वं पि मए विहियं पुव्बुत्तं नेहमूढाए' ||८४५७।। जक्खो भणइ ‘इमो वि हु निरवेक्खाए तए परिच्चत्तो । तुह नेहमोहियप्पा उववासी मरणमहिलसइ' ॥८४५८।। बाला जंपइ 'किं मह जहाणुबंधो इमंमि, किमिमस्स । मह विसए वि तह च्चिय अणुराओ ताय! संभविही ?' ||८४५९।। तो कहइ जक्खराया नीसेसं पुव्ववइयरं तीए । जह दुग्गगहणपुव्वं विवाहकज्जं करिस्सामि ॥८४६०।। जह एत्थ दोवि पत्ता अम्हे जह निज्जिओ य पडिवक्खो । जह तुहवइयरसवणेण मुच्छिओ विलविओ एसो ।।८४६१।। इयमाइ वित्थरेणं कहियं जक्खेण रायधूयाए । तं सोऊण पहिट्ठा पुलं(ल)यंगी चिंतइ कुमारी ।।८४६२।। 'धन्नं अहव अवन्नं अप्पं मन्नामि दोहिं हेऊहिं । कुमराणुकूलिमाए कुमरदुहुप्पायणेणं व ॥८४६३।। Page #781 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७७२ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ तं नत्थि जं न लब्भइ भुयण लब्धं पिकेण वि एण । अणुकूलत्तमिस्स ओ ( उ ) मन्त्रे देवाण वि दुर्लभं ||८४६४ || सव्वेसिं पुन्नाणं ताइं च्चिय हुंति गरुयपुन्नाई । जेहिं हरिविक्रममणं ममंमि एकग्गयं नीयं ॥ ८४६५।। लब्भइ सुकुलुप्पत्ती रूवं गुणपयरिसो विभूईओ । वल्लहजणाणुराओ अप्पंमि सुदुल्लाहो होइ' ||८४६६॥ इय जाव कुमरविसए सा चिंतइ भुयणसुंदरी विविहं । ताव पहाया रयणी अह पढियं मागहनरेहिं ||८४६७ || 'नट्ठा नरिंद ! रयणी मोहियभुयणा पसंतवावारा । मुच्छ व्व कालपरिणइ जणचेयन्ना पहाभिहाया ( हया ) ||८४६८ ।। मोत्तुं गिरिकंदरगुरुगुहासु लीणं नरिंद! तमपडलं । सूरपयावाभिहयं तुह रिउवंद्र पिव पणट्टं ॥ ८४६९|| तुह सूरस्स व अंतरियसयलतेयंसिमंडलस्सेह । उयए अरिरिक्खगणो विहडइ खज्जोयनिवहो व्व ||८४७० ॥ पढमुग्गमंतरेहामित्तं नवमित्तमंडलं सहइ । तव्वेलरविसमागयपुव्ववहूए नहपयं व्व ॥ ८४७१ ।। अदुग्गयं विराय रविबिंबं देव! अरुणसच्छायं । कयजावयनवरायं संज्झवहूए व अहरदलं ॥८४७२ ॥ तुह देव! सूरबिंबं करकिरणसहस्सदीवपजलंतं । उत्तारइ संझवहू आरत्तियकणयथालं व' ||८४७३॥ इय मंद- महुर - मंगलमागहजणविहियकलयलरवेण । सहस त्ति संपबुद्धी पल्लकं मुयइ नरनाहो ||८४७४ ।। Page #782 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभूयणसुंदरीकहा ॥ कयसयलगोसकिच्चो पढमागयवैरिसीहपणिवइओ । सामंतसयदुलंघे अत्थाणे तयणु उवविसइ ||८४७५।। . दट्ठूण वैरसीहो रूवं सिरिवीरसेणधूयाए । हुयचित्तचमक्कारो सविम्हओ धुणइ नियसीसं ||८४७६ || चिंतइ ' न मच्चलोए पायं एवंविहाई रुवाइं । सुरलोयपयावइणा मन्ने निम्माविया एसा' ।।८४७७।। तो भणइ वैरसीहो 'तुह विकमकप्पसाहिणो देव ! । विफु (प्फु) रियं जं देवी कप्पियमेत्तव्व आणीया' ।।८४७८ ।। तो कहइ जक्खराओ नीसेसं कुमररयणीवृत्तंतं ।" देवीलाहवसाणं सेणावइपमुहलोयाण ||८४७९ ॥ तो हरिसवसुग्गय-पुलयदेहाण सव्वलोयाण । आणंदमओ जाओ सो दियहो कुमरिलाहेण ॥ ८४८०॥ कारावियं च नयरे बद्धावणयं महापमोएण । दिन्नं च महादाणं पूयाउ जिगिंदचंदाण ||८४८१।। आणंदनिभरे तम्मि वासरे अइगयंमि विन्नत्तं । जक्खेण 'जामि अयं पुरओ धूयं गहेऊण ||८४८२ ॥ तुमए वि तत्थ तुरियं आगंतव्वं कुमार! जेणम्हे । धूयापाणिग्गहणं करेमि (मं) सव्वाए रिद्धीए' ||८४८३|| एवं ति कुमरभणिए जक्खो सह वीरसेणधूयाए । पत्तो निययावासं आनंदियजक्खसंघाओ || ८४८४|| एत्यंतरे पट्टि पडिहारनिवेइओ पवणनामो । कयकुमरपयपणामो लेहं अप्पेइ कुमरस्स || ८४८५ || १. अत्र गाथात्रिके किञ्चित्पाठः त्रुटित इवाभाति ॥ ७७३ Page #783 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७७४ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ ठविऊण सिरि(रे) हिट्ठो वायइ हरिविक्कमो सयं लेहं । 'सत्थि अउज्झपुरीओ रायाऽजियविकूमो कुसली ॥८४८६।। दुग्गंमि अलंघउरे सेणावइवैरसीहपरियरियं । हरिविकूमजुयरायं दिन्नासीसो समाइसइ ।।८४८७।। एत्थेव मलयसेले धूया सिरिवीरसेणरायस्स । केणाऽवि उवाएणं परिणेयव्वा तए तुरियं ।।८४८८।। तं परिणिऊण कन्नं दुग्गे मोत्तूण वैरसीहं च । तुमए सकलत्तेणं एत्थागमणं करेयव्वं' ।।८४८९।। अणुकूलं लेहत्थं कुमरो परिभाविऊण साणंदो । विवाहगमणकज्जे उ देइ लोयाण आएसं ।।८४९०।। संचलिओ नयराओ पसत्थदियहे अ(5)णुकूलमण-सउणो । बहुसेन्नसंपरिवुडो पत्तो मलयासमं कुमरो ||८४९१।। समवियडभूमिभाए आवासइ रुद्धवसुहवित्थारो । आणंदिओ सहरिसं कुलवइणा तावसेहिं च ।।८४९२।। एवं च ताव एयं इओ य चंपाए वीरसेणसुओ । सिरिअमरसेणराया चंदसिरीगब्भसंभूओ ।।८४९३।। सो निसि जणणिं हरियं नाउं संजायसोयसंतावो । चंदसिरिपेसिएणं आसासिओ मलयमेहेण ॥८४९४।। संजायसत्थचित्तो नियभय(इ)णि भुयणसुंदरिं दटुं । अच्छइ उच्छुक्कमणो चिंतंतो बहुविहोवाए ||८४९५।। अह अन्नदिणे नियजणणि-भइणिदंसणपवड्डिउक्कंठो । संचलइ अमरसेणो नियसेणारुद्धमहिवीढो ।।८४९६।। Page #784 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ ७७५ अणवरयपयाणेहिं पत्तो मलयासमं अमरसेणो । आवासिओ व्व(य) पेच्छइ नियजणणिं तह य नियभइणिं ।।८४९७।। कयजणणिपयणामो पयडियपेम्मुल्लसंतमनु(न्नु)भरो । जक्खराएण भणिओ ‘मा सोयं कुणसु नरनाह ! ॥८४९८॥ सोइज्जंति कहं ते जेहिं असामन्नपुनपब्भारा । देवा वि जाण मन्ने नरिंद! दासत्तणं जंति ॥८४९९।। ता राय! पत्थुयं च्चिय चिंतसु भइणीविवाहसंबंधं । जइ तुह पडिहाइ मणे करेमि ता साहुसंजोयं ।।८५००।। सिरिअज्जियविकमसुओ कुमरो हरिविकुमो त्ति जयपयडो । तस्स तुह लहुयभइणी दिज्जउ तुम्हाण(णु)वत्तीए' ।।८५०१।। तो भणइ अमरसेणो ‘किमेत्थ किर ताय! पुच्छियव्वेण ? । जं तुम्ह मणे रोयइ तं मह नणु सम(म्म)यं चेव' ।।८५०२।। एत्थंतरंमि जक्खो पारंभइ परमहरिसर(रे?)सेण । सिरिभुयणसुंदरीए अणुवमवीवाहसामगिंग ।।८५०३।। दोगाउयप्पमाणं भूमिं काऊण समतलं जक्खो । बंधइ रयणसिलाहिं कक्केयण-नीलमाईहिं ॥८५०४।। तो मणिनिबद्धसुंदरपेढोवरि विरइओ महारम्मो । वीवाहमंडवो विविहरयण-मणि-दारुनिवहेहिं ।।८५०५।। बहुकणयसिहररम्मो नाणामणि-रयणभित्तिचिंचइओ । गरुयत्तरुद्धवसुहो मेरु व्व सुराण कयतोसो ।।८५०६।। चउदारतनिवेसियमणितोरणबद्धधयवडसणाहो । देवंगवत्थविरइयवियाणसंछाइओ रम्मो ।।८५०७॥ Page #785 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७७६ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ झुल्लंतचडुलचमरो थंभंतरबद्धमोत्तिओलो(उल्लोओ?) । उत्तुंगवेइयातलसिंहासणसोहिओ रम्मो ।।८५०८।। पसरंतजक्खविलयाविलासपारद्धमंगलायारो । सुव्वंतवेणु-वीणाविमीसकलगीयझंकारो ॥८५०९।। बहुतरमिलंतसुर-नरअंतोसंचाररुद्धवित्थारो । बहुकज्जवावडुज्जयहल्लप्फलजक्खपरिवारो ॥८५१०॥ इय अमरसेणगुरुतरभवणदुवारंमि जक्खराएण । रमणीयत्तणसंजणियविम्हओ मंडवो विहिओ ॥८५११।। तो अमरसेण-हरिविकुमाण कडएसु जायआणंदो । सविसेसुज्जलभूसणनेवत्थो होइ परिवारो ।।८५१२।। एत्थंतरंमि जक्खो अवहिनाणेण मुणियसुहलग्गो । पुण भणइ अमरसेणं 'नरिंद! नियडीहुयं लग्गं' ।।८५१३।। तो भणइ अमरसेणो ‘तुरियं पेसह वरस्स पासंमि । कं पि पहाणं पुरिसं परिणयणावाहणनिमित्तं' ।।८५१४।। तो बंधुयत्तपुत्तो जयदंतो नाम पेसिओ सो वि । गंतूण भणइ पणओ 'कुमार! तुरियं पयट्टेह' ||८५१५।। एत्थंतरे कुमारो निव्वत्तियण्हवणयाइवावारो । उज्जलनिवसियवत्थो हरियंदणकयसमालहणो ||८५१६॥ . सिरिमउड-कन्नकुंडल-वच्छत्थलहार-कंकणाईहिं । आहरणसमूहेहिं विहूसियंगो पयइरुइरो ||८५१७।। कयवुड्डाजणबहुविहकोउयमंगल्लनियकुलायारो । गायंतविविहनारीगेयरवापूरियदियंतो ।।८५१८॥ Page #786 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ वज्र्ज्जततूरगंभीरसद्दपामुकपडिरवमिसेण । हरिसेण मलयसेलो जयजयरावं व वियरेइ ।।८५१९।। नाणाविहचारणगण-बंदिसमुग्घुट्ठजयजयासद्दो । जयवारणमारूढो समागओ मंडवदुवारं ॥८५२०॥ तत्थ च्चिय कओवारणसहस्सनारीहिं वेढिओ कुमरो । कयकणयमुसलभिउडीताडणकम्मो विसइ अंतो ।।८५२१ ।। आगच्छंतं दठ्ठे अब्भुइ अमरसेणनरनाहो । दूरपसारियबाहू आलिंग सायरं कुमरं ॥८५२२।। नियए च्चिय उववेसइ राया सीहासणे पणयसारं । पुच्छियकुसलोदतो जयदन्तो भणिउमाढत्तो ||८५२३ ।। 'हरिविक्कम ! एक्केण वि तुमए नणु भूसिया दुवे वंसा । नरमाणिक्कसमेणं नियवंसो वीरवंसो य ॥ ८५२४॥ नियदंसणमेत्तेण वि पयासियाणंतगुणगणग्घविओ । कोत्थुहमणि व्व जाओ एहि पुरिसोत्तिमममि ||८५२५ ।। अहवा थोवं एयं एहि अमरेसरेण वोढव्वो । उज्जोइयभुयणयलो ससि व्व नियउत्तिमंगेण' ||८५२६ ।। इ भणिरे जयदन्ते असेसजोइसियजायसंवाओ । जक्खो भइ सहरिसं 'आसन्नं देव! सुमुहुत्तं' ॥८५२७॥ नरवइणाऽणुन्नाओ पविसइ अब्भितरं हरिकुम (मा) रो । तरुणीहिं नयणकुवलयमालाहिं चच्चियसरीरो ।।८५२८ ।। अह कोउयघरदारे निवारियासेसपरियणपवेसो । कयसमुचियआयारो विसइ हरिसुद्धरोमंचो ।। ८५२९ ।। ७७७ *. Page #787 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७७८ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ अह पियसहिपरिवारा अविहवनियसयण - जुयइजणजुत्ता । पेरंतपहरणुब्भडबहुसुहडसहस्सकयरक्खा ॥८५३० ॥ अरुणपडनिबिडविरइयअवगुंडीपिहियसव्वतणुसोहा । हरिविक्कमस्स निब्भर अणुराएणं व संछन्ना ।। ८५३१।। सुपसत्थवराहरणा सुपसत्थनियच्छ-वत्थरुइरंगी । बहुविहपसत्थमंगलकोउयसयसमहियपहावा ||८५३२।। हिययनिहित्तकुमारा भूसणमणिकिरिणरंजियदियंता । अंतट्ठियससिबिंबा कोमुसंझ व्व रमणीया ||८५३३ || कह लज्जाविवसाए अनिमीलियलोयणं पलोयंतं । इय हिययवियप्पेहिं पागब्भं अब्भसंति व्व ।।८५३४।। इय भुयणसुंदरी सा दिट्ठा कुमरेण हरिसविवसेण । अब्भहियदिन्नकंचणविहडावियमुहससिवडेण ॥। ८५३५ ।। तो विहियविवाहोच्चि (चि) यवेसो जायंमि लग्गपत्थावे । गिण्हए (इ) वहुए पाणिं कुमरो नियपाणिकमले ||८५३६ || पफा (प्फा) रपिहुलदीहरनयणाण फलाई तेहिं दोहिं पि । पत्ताइं सुरूवन्नोन्नदंसणुप्पन्नतोसाण ॥ ८५३७।। तो भुयणसुंदरीए हत्थं हत्थेण गिहिउं कुमरो । चउरंतकयनिवेसं आरोह वेइयाभूमिं ॥ ८५३८।। जा सलिलसेयउग्गयजवंकुरुच्छन्नगुरुसरावेहिं । झंपियपंचमुहेहिं कलसेहिं विहूसिओवंता ।।८५३९।। अह सुहुहुयासणकयपक्खिणं मंडलाई य भमंति । तो अमरसेणराया कन्नादाणं पयच्छेइ ||८५४०|| Page #788 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ मयमत्तमयगलाणं अट्ठसहस्से हयाण दहलक्खे । पन्नासं च सहस्से देइ नरिंदो रहवराण ॥८५४१।। तह कामरूयदेसं कसमीरं तह वरिंदुविसयं च । देइ तहा रयणाणं दसद्धवन्नाण रासीओ ॥८५४२॥ आहरणाणं थूहा पुंजा देवंगवत्थनिवहाण । कणयगुरुक्कुरुडा वि य भइणीए अमरसेणो वि ॥८५४३।। तयणंतरं च हरिविकमस्स तप्परियणस्स य करेइ । नियचित्त-वित्तसरिसं उचियविहिं वीरसेणसुओ ।।८५४४।। एवं कयकायव्वो निव्वत्तियसयलउच्छवायारो । मन्नइ सकयत्थं चिय अप्पाणं भइणिदाणेण ||८५४५।। इय विहियदसाहियण्हाण-दाण-सम्माण-भोयणायारा । जा चिटुंति पहिट्ठा विणोयसयसुत्थिया तत्थ ।।८५४६।। ता सहस च्चिय गयणे उच्छलिओ गहिरदुंदुहीसद्दो । तं सोउं उत्ताणियवयणा उढे पलोयंति ।।८५४७॥ अह खणमेत्तेणं चिय गयणं बहुदेव-दाणवगणेहिं । संछन्नमसेसं चिय जयजयसद भणंतेहिं ।।८५४८।। सुव्वइ सवणिंदियसुंदरत्तअवहरियकडयजणमणसो । बहुकिन्नरगणविहिओ गयणे वरगेयज्झ(झ)[का]रो ।।८५४९।। सब्भूयगुण(णु)कित्तणविहावणुप्पन्नहरिसरोमंचो । सुव्वंति संथुणंता परमत्थथुईहिं सुरनिवहा ।।८५५०।। इय कोऊहलतरलियमणनयणा दिट्ठदेवसंघाया । 'किं किं' ति कयवियप्पा नरवइणो जाव अच्छंति ||८५५१।। Page #789 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७८० सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ ता सहसच्चिय दिट्ठो पहिट्ठमुणिनिवहसिरनमिज्जंतो । एक्कग्गखित्तलोयण-मण-सुरगणझायमाणो य ॥८५५२।। सिरधरियधवलछत्तो सुरचालियउभयपाससियचमरो । सुर-असुरसमुग्घोसियजयजयरवबहिरियदियंतो ।।८५५३।। समुहट्ठियसुरगणपारियायपमुक्ककुसुमवरवुट्ठी । संपविभज्जइ सेस त्ति जस्स सीसेसु देवेहिं ॥८५५४॥ दीसंति जस्स उज्जलचरणनहालीओ सुरसिरग्गेसु । वुझंति दुव्वहा इव जस्स गुणा सुरवरसिरेहिं ।।८५५५।। सव्वत्तो सुर-किन्नरपणामसिरबद्धअंजलीबंधो । भयसेवागयकैरवसंडो इव सहइ दिवसयरो ॥८५५६।। पुच्छंतसुरवरेसुं सरलवलंतद्धतारयं दिढेि । करुणाय(इ) पेसिऊणं भिंदंतों ताण संदेहं ।।८५५७।। परिहरियउच्चगमणो नियडत्तणविहियनिच्छयमणेहिं । जोइज्जतो सेणालोएहिं संभंतमच्छीहिं ।।८५५८।। बहुसुरवरपरियरिओ नाणामणि-रयणमणिविमाणोहो । सग्गो व्व ओयरंतो अधन्नजणदुल्लहो पत्तो ।।८५५९।। सिरिवीरसेणसूरी अणंतगुणमुणिवरिंदपरियरिओ । ओयरिओ गयणाओ विसुद्धवसुहातले वीरो ||८५६०।। देवेहिं तओ तुरियं समतलवसुहायलं करेऊण । गंधुदएणं च तओ सिंचंति करेंति कुसुमोहं ॥८५६१।। उत्तत्तकंचणमयं कमलं विरयंति परमभत्तीए । लंबंतथूलमोत्तियमहायवत्तं च धारेंति ॥८५६२।। Page #790 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७८१ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ दोपासेसु समुज्जलससहरकरपंडुरं च चमरजुयं । . घेत्तूण ठंति देवा परमेसरवीरसेणस्स ॥८५६३॥ तो काऊण पणामं तित्थस्स अणंतगुणसमिद्धस्स । उवविसइ कमलगब्भे रायरिसी सुरनमिज्जंतो ॥८५६४।। सिरिसूर-विचित्तजसा-असोय-सेहरय-बंधुयत्ता य । इयमाइमुणिवरिंदा उवविठ्ठा वीरपासंमि ।।८५६५।। इय विहियसुरविभूई जणयं दठूण अमरसेणो वि । भइणीपइणो साहइ ‘हरिविकुम ! एस मह ताओ ।।८५६६।। एसो पियामहो मे एसो मायामहो य मह होइ । एसो य बंधुयत्तो एए उण सेहरासोया ॥८५६७।। उप्पन्नं एएसिं पायं जाणामि केवलं नाणं । छउमत्थाण न जम्हा देवा एवं ववहरंति' ।।८५६८।। हरिविकुमेण भणियं ‘नरिंद ! धन्नो म्हि जेण गुणपयडो । दिट्ठो मए महप्पा महामुणी वीरवरनाहो ।।८५६९।। ते धना जाण मणे वि होंति एवंविहा महामुणिणो । संपडइ जाण किर दंसणं पि किं ताण इह भणिमो ।।८५७०॥ इय भणिउं संभंता हरिसवसुलसियबहलरोमंचा । काउं पुरओ देवि चंदसिरिं चारुचारित्तं ॥८५७१।। सिरिअमरसेणराया कुमरो हरिविकूमो य वच्चंति । चरणपयारेणं चिय दूरीकयरायफरडमरी ||८५७२।। गंतूण तत्थ पुरओ सुद्धज्झवसायझडियकम्मंसा । कयकेवलिपयपूया नीसहभूखित्तपंचंगा ।।८५७३।। Page #791 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७८२ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ पणमंति वीरसेणं सूरनरिंदाइणो य मुणिचंदे । नमिऊण विसुद्धाए धराए हिट्ठा ओ(उ)वविसंति ||८५७४।। एत्थंतरंमि जक्खो बहुजक्खिणि-जक्खपरियणसमेओ । सविसेसुज्जलनेवत्थभुवणसुंदरीए समं आओ ।।८५७५।। काऊण भत्तिसारं केवलिमहिमं च वीरकेवलिणो । कयभत्तिपयपणामो उवविठ्ठो सुद्धवसुहाए ||८५७६।। अह भुयणसुंदरी वि य पिउब्भ(भ)त्तिभरुल्लसंतरोमंचा । रूवालोयणविम्हियसुर-असुरगणेहिं दीसंती ।।८५७७।। काऊण पिउ-पियामह-मायामहबहुविभूइपयपूयं । पणमइ वसुहायललुलियकेसपासा य संथुणइ ॥८५७८।। 'जय सयलतिलोयएकल्लवीर! पणमामि तुम्ह पयकमलं । वीर त्ति नियं नामं जेण जहत्थत्तयं नीयं ।।८५७९।। मन्नामि कयत्थं चिय अप्पाणं तुम्ह दंसणे नाह! । एण्हि तदुत्तरोत्तरगुणा वि मह संभविस्संति ||८५८०।। संछाइयजियलोओ घणो व्व अंतरियगुरुबहुपयासो । सो देव! तए मोहो पयंडपवणेण व निसिद्धो ||८५८१॥ हरि-हर-विरिंचिणो वि हु जेहिं समत्थेहिं विनडिया नाह! । ते राग-दोसमल्ला सुदुज्जया निज्जिया तुमए ॥८५८२॥ देव ! कसाया विरसा फरज्झवसायरक्खसावासा । अक्खतरुणो व्व तुमए निच्छिन्ना परसुरूवेण ।।८५८३।। अइविसमजोव्वणवणे अवायबहुलंमि इंदियकुरंगा । संतोसवागुराए तुमए चिय नाह! संजमिया ।।८५८४॥ . Page #792 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७८३ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ पंचिंदियपंचमुहो विविहज्झवसायकेसरकरालो । मणसीहो सरहेण व तुमए निदारिओ दुट्ठो ॥८५८५।। इच्छादिढचावकरो पंचुब्भडविसयविसमसरपसरो । मयणमओ इव मयणो तुमंमि जलणो व्व पविलीणो ||८५८६॥ किं बहुणा ? संसारे जे किर संसारकारणं दोसा । ते जुगवं चिय तुमए निउणेण मुणिंद! निट्ठविया ।।८५८७।। गरुएहिं वल्लहेहिं तुमए आरोविएहिं अइदूरं । तव्विवरीया दोसा गुणेहिं निहया तुह मुणिंद!' ||८५८८।। इय हिययभंतरपसरतमाण-बहुमाण-भत्तिराएण । सब्भूयगुणुक्त्तिणथुईहिं थुणिओ महावीरो ।।८५८९।। तो सा जहत्थमुणिगुणसवणसमुल्लसियहरिसवडलेहिं । अहिणंदिया सुरेहिं पलोइया वियसियच्छे(च्छी)हिं ॥८५९०।। तयणु पियामह-मायामहाइसव्वाण मुणिवरिंदाण । पणमइ उवविसइ तओ चंदसिरीसन्निहाणंमि ।।८५९१॥ एत्थंतरंमि वीरो करट्ठियामलयसन्निहं सयलं । तैलोयं पेच्छंतो अह एयं भणिउमाढत्तो ॥८५९२।। 'जीवो अणाइनिहणो अणाइभववासदिट्ठबहुदुक्खो । तह वि न इमस्स जायइ निव्वेओ दुक्खहेऊसु ।।८५९३॥ जीवस्स दुक्खहेऊ कम्मं कम्मस्स हेउणो एए । मिच्छत्तमविरई तह पमाय-जोगा कसाया य ।।८५९४।। जह य सधूमे गेहे संकमइ कमेण कलुससब्भावं । धुंयसपडलं जीवे मिच्छत्ताईहिं तह कम्मं ।।८५९५॥ Page #793 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७८४ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ तेल्लभं(भं)गियदेहे संचरइ नरंमि जह य मलपडलं । मिच्छत्ताइनिरुद्धे जीवंमि तहेव घणकम्मं ॥८५९६।। मिच्छत्तमसग्गाहो अवत्थुवत्थुत्तकप्पणारूवो । जेण अदेवं देवं मन्नइ धम्मं पि हु अधम्मं ॥८५९७।। मिच्छत्तमोहमूढो जीवो असमंजसाई आयरइ । अज्जिणइ जेहिं कम्मं चउगइभवकारणं घोरं ॥८५९८।। जो होइ अविरयप्पा विरइं न करेइ कम्मि वि पयत्थे । सो अविरईए जणियं बंधइ कम्मं दुहनिमित्तं ।।८५९९।। इह पंचहा पमाओ बंधइ कम्मं सुचिक्कणं सो वि । मज्जं विसय-कसाया निद्दा विगहा य इय भणिओ ।।८६००।। कोहो माणो माया लोभो चत्तारि हुंति य कसाया । अज्जिणइ जेहिं कम्मं कसायकलुसीकओ जीवो ॥८६०१।। जोगो य होइ तिविहो मण-वइ-कायाण दुट्ठरूवाण । जो वावारो सो वि हु बंधइ घणचिक्कणं कम्मं ॥८६०२।। इय मिच्छत्तप्पमुहं कहियं कम्माण कारणं दुटुं । तेहिं निवत्तियं जं तं कम्मं अट्ठहा होइ ।।८६०३।। नाणावरणं पढमं बीयं पुण दंसणस्स आवरणं । तइयं च वेयणीयं होइ चउत्थं च मोहणीयं ।।८६०४।। पंचममाउयकम्मं छठें नामं च सत्तमं गोत्तं । सव्वन्नुणोवइ8 तहऽट्ठमं अंतराइं(यं) च ।।८६०५।। एयाणं कम्माणं जिणेहिं दुविहा हि(ठि)ई समक्खाया । उक्नोसिया जहन्ना तहविहपरिणामभेएण ।।८६०६।। Page #794 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७८५ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ आइल्लाणं तिण्हं चरिमस्स य तीस कोडकोडीओ । अयराण मोहणिज्जस्स सत्तरिं(री) होति विन्नेया ॥८६०७॥ नामस्स य गोत्तस्स य वीसं उक्कोसिया हि(ठि)ई भणिया । तेत्तीससागराइं परमा आउस्स बोधव्वा ।।८६०८।। वेयणियस्स जहन्ना बारस नामस्स अट्ठ ओ(उ) मुहुत्ता । सेसाण जहन्नट्टि(ठि)ई भिन्नमुहुत्तं विणिदि(दि)ट्ठा ॥८६०९।। पढमं नाणावरणं पंचवियप्पं जिणेहिं पन्नत्तं । मइ-सुअ-ओही-मण-केवलाण आवरणभेएण ॥८६१०।। दसणवरणं बीयं नवभेयं तत्थ निद्दपणगं च । चउदंसणआवरणं नवभेयं जिणवरुद्दिढें ॥८६११।। तइयं च वेयणीयं सायमसायं दुहा विणिद्दिटुं । अट्ठावीसइभेयं मोहणियं पुण चउत्थं [च] ।।८६१२।। नारय-तिरिय-नरामरभेएणं आउयं चउप्पयारं । बाएतालविभेयं नामं गोत्तं च दो(दु)विभेयं ।।८६१३।। पंचविहमंतरायं कम्मं संखेवओ समक्खायं । भेओवभेयभिन्नं कम्मपगडिंमि दट्ठव्वं ।।८६१४।। एयं अट्ठपयारं कम्मं जीवस्स पयइसुहियस्स । जणइ दुहाई नरामर-नारयतिरिओवओगाइं ॥८६१५।। कम्मं दुक्खसरूवं दुक्खाणुहवं च दुक्खहेउं च । कम्मायत्तो जीवो न सोक्खलेसं च पाउणइ ।।८६१६।। जह आरोग्गो देहो वाहीहिं अहिट्ठिओ दुहं लहइ । तह कम्मवाहिघत्थो जीवो वि भवे दुहं लहइ ||८६१७।। प Page #795 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७८६ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ जायंति अपत्थाओ वाहीउ जहा अपत्थनिरयस्स । संभवइ कम्मवुड्डी तह पावापत्थनिरयस्स ॥८६१८।। अइगरुओ कम्मरिऊ कयावयारो य नियसरीरत्थो । एस उवेक्खिज्जंतो वाहिव्व विणासए अप्पं ॥८६१९।। मा कुणह गयनिमीलं कम्मविघायंमि किं न उज्जमह ? । लभ्रूण मणुयजम्मं मा हारह अलियमोहहया ।।८६२०।। अच्वंतविवज्जासियमइणो परमत्थदुक्खरूवेसु । संसारसुहलवेसुं मा कुणह खणं पि पडिबंधं ॥८६२१।। किं सुमिणदिट्ठपरमत्थसुन्नवत्थुसु करेह पडिबंधं ? । सव्वं पि खणियमेयं विहडिस्सइ पेच्छमाणाण ॥८६२२।। संतंमि जिणुद्दिढे कम्मक्खयकारणे उवायंमि । अप्पायत्तंमि न किं तद्दिठ्ठभया समुज्जमह ? ||८६२३।। जह रोगी को वि नरो अइदूसहरोगवेयणादुहिओ । तदुहनिम्विन्नमणो रोगहरं वेज्जमन्निसइ ।।८६२४।। तो पडिवज्जइ किरियं सुवेज्जभणियं च वज्जइ अपत्थं । तुच्छन्नपत्थभोई ईसीसुपसंतवाहिदुहो ॥८६२५।। ववगयरोगातंको संपत्तारोग(ग्ग)सोग्ग(क्ख)संतुट्ठो । बहु मन्नइ सुवेज्जं अहिणंदइ वेज्जकिरियं च ॥८६२६।। तह कम्मवाहिगहिओ जम्मणमरणाई(इ) दिट्ठतदुक्खो । तत्तो निम्विन्नमणो परमगुरुं तयणु अनिसइ ।।८६२७॥ लद्धंमि गुरुंमि तओ तव्वयणविसेसकयअणुट्ठाणो । पडिवज्जइ पव(व्व)ज्जं पमायपरिवज्जणविसुद्धं ॥८६२८।। Page #796 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७८७ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ नाणाविहतवनिरओ सुविसुद्धासारभिक्खभोई य । सव्वत्थ अपडिबद्धो सयणाइयमुक्कवामोहो ।।८६२९।। एमाइ गुरुवइ8 अणुट्ठमाणो विसुद्धमुणिकिरियं । मुच्चइ नीसंदिद्धं चिरसंचियकम्मवाहीहिं ।।८६३०।। पलहूहुयकम्मंसो नियत्तमाणिट्ठविरहमाइदुहो । लद्धं चरणारोग्गं परिवड्डियसुद्धपरिणामो ।।८६३१।। तल्लाभनिव्वुईए कम्मुदयवसेण संपडतेसु । न खुहइ परीसहेसुं तत्तविऊ नोवसग्गेसु ॥८६३२।। एवं च कुसलसिद्धी थिरासइत्तेण धम्मउवओगो । पावइ तेउल्लेसं अणुहवओ मन्नइ गुरुं पि ॥८६३३।। ता भो! भणामि सव्वे! दुलहो खलु होइ सुगुरुसंजोगो । जम्हा न गुरूहि विणा कम्मवाहीओ खिज्जति' ||८६३४।। तो भणइ बंधुयत्तो ‘सोयारजणोवयारबुद्धीए । अवितहमाइट्टमिणं भयवं! संतोवयारपरं ।।८६३५॥ गुरुलाहविरहियाणं धम्मारंभा सुदुल्लहा होति । तयणो(णु)ट्ठाणेण विणा न कम्मवाहीओ नासंति ॥८६३६॥ परमारोग्गं पि न ताव होइ जा संति कम्मवाहीओ । तम्हा कल्लाणपरंपराए हेऊ गुरू हुंति ॥८६३७॥ किं तु मह कहह भयवं ! गुरुवयणाराहओ असढचित्तो । जो पालइ पव्वज्जं सुविसुद्धं किं फलं तस्स ?' ||८६३८॥ पुण भणइ केवली 'बंधुयत्त ! साहेमि सुणसु एगमणो । निम्मलपव्वज्जापालणफलं जं जिणुद्दिष्टुं ॥८६३९।। Page #797 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७८८ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ एवं सो पव्वइओ सुविसुद्धन्ना(ना)णघरणसंजुत्तो । अइयारभउब्भंतो विसुद्धपव्वज्जगुणजुत्तो ॥८६४०।। अज्जिणइ कम्मं न य सो संसारावत्तकारणं तत्तो । जम्म-जरा-मरणाणं कुणइ खयं जीवविरिएण ||८६४१।। दडंमि जहा बीए परोहइ अंकुरो पुण न जम्हा । तह कम्मबीयदाहे न जम्म-मरणंकुरा हुंति ||८६४२।। तो खीणासुहबंधो जीवो पाउणइ नियसरूवं पि । किरियारहिओ सुद्धो निययसहावडिओ होइ ।।८६४३।। तो सो अणंतवरनाणदंसणो तह अणंतविरिओ य । एसो च्चिय पुव्वोत्तो निययसहावो इमस्स भवे ।।८६४४।। तो सद्द-रूव-रस-गंध-फासहीणो अणंतगुणनिलओ । पयईए उड्डगामी पावइ अइरेण सिद्धिगई' ।।८६४५।। इय एवं परिकहिए केवलिणा परमधम्मसब्भावे । आणंदजायपुलया चंदसिरी भणिउमाढत्ता ॥८६४६।। 'जइ अत्थि मज्झ भयवं! पव्वज्जाजोग्गया तया देह । पुव्व(व्यु)त्तं पव्वज्जं संपडियं मह जओ सव्वं' ।।८६४७।। तो केवलिणा भणियं ‘इहरा वि विसुद्धचरणनिरयाए । तुह चेव धम्मसीले! पव्वज्जाजोग्गया अत्थि' ||८६४८।। एत्थंतरंमि सव्वे कुलवइपमुहा सबाल-वुड्डा य ।। सकलत्ता सावच्चा सपरियणा तावसा बहवे ।।८६४९।। बहुकंद-मूल-फल-पुफ(प्फ)-पत्तहत्था विणीयवेसधरा । वियडजडाजूडवहा कयभूइविलेवणसरीरा ।।८६५०।। Page #798 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ ७८९ मोत्तूण पायमूले 'सत्थि' भणिऊण कंद-फलमाई । संभासिया य गुरुणा उचियट्ठाणेसु उवविट्ठा ||८६५१।। तो भणइ वीरसेणो 'भो ! भो ! निरवज्जचरणनिरयाण । कप्पंति न साहूणं सावज्जफलाई एयाइं ॥८६५२।। जे च्चेय धम्महेऊ तुम्हाणं आगमंमि परिकहिया । ते च्चेय जिणिंदसमए पावनिमित्तं समुवइट्ठा' ॥८६५३॥ तो कुलवइणा भणियं 'कहमेयं अम्ह धम्महेऊ जे । ते जिणधम्मे भणिया पावनिमित्तं ? मह कह(हे)ह' ॥८६५४।। तो केवलिणा भणियं 'सम्म निसुणेह तुम्ह साहेमि । सम्मन्नाणसमेयं साहइ धम्मं अणुट्ठाणं ॥८६५५।। जं पुण नाणविहीणं तमरन्नभमंतअंधनरसरिसं । पेरंताणत्थफलं अफलकिलेसावहं नवरं ॥८६५६।। नज्जइ नाणबलेणं जीवाजीवाइतत्तपरमत्थं । जं जीवरक्खणपरं तमणुट्ठाणं फलं देइ ॥८६५७।। छव्विहजीवनिकाया जाव न नाया जिणागमबलेण । ता कह ताणं रक्खं जीवाणं कुणइ अन्नाणी ? ।।८६५८।। एसा पुढवी जीवो तं तुब्भे खणह सोयबुद्धीए । कह एगिदियजीवे होइ वहंतस्स किर धम्मो ? ||८६५९।। सलिलं च होइ जीवो तेण तिकालं च कुणह पहाणं पि । संझाअग्घुक्खिवणं सुरच्चणं धम्मबुद्धीए ॥८६६०।। अग्गी वि होइ जीवो तत्थ तिसंझासु हुणह सचि(च्चि)त्ते । तिल-जव-वीहियमाई परमत्थविवेयपरिहीणा ।।८६६१।। Page #799 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७९० सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ वाऊ वि होइ जीवो संघट्टह तं पि धम्मबुद्धीए । काऊण वीणएणं पवणं संधुक्कह हुयासं ॥८६६२॥ एए वि वणप्फइणो जीवा तरु-कंद-मूल-फलमाई । भक्खह अकयवियप्पा तुब्भे वि निरीहबुद्धीए ॥८६६३।। वहह जडापब्भारं बहुलिक्खा-जूयलक्खआवासं । ताणुच्छेयणहेऊ चिंतह नाणाविहोवाए ॥८६६४॥ एएण कारणेणं भणियं जं तुम्ह किर अणुट्ठाणं । धम्मनिमित्तं तं चिय जिणागमे पावसंजणणं' ॥८६६५।। तो केवलिणो वयणं सव्वे सोउं भणंति एवमिणं । अन्नाणचिट्ठियं खलु सव्वमिणं अम्ह अ(5)णुट्ठाणं ।।८६६६।। अंधाणुमग्गलग्गो अंधो जह भमइ उप्पहपयट्टो । तह मुणिवरिंद ! अम्हे अन्नाणगुरूवएसेण ।।८६६७।। जह पुव्वदेसगामी जाइ दिसामोहपुरिसवयणेण । दक्खिणदिसंमि जंतो न पावए इच्छियं छा(ठा)णं ।।८६६८।। अज्ज वि न किं पि नटुं उद्धरह भवन्नवंमि निवडतं । अन्नाणमोहिए मुणिवरिंद! नियधम्मदाणेण' ||८६६९।। तो भणइ वीरसेणो ‘अन्नाणहया पयट्टकुग्गाहा । मन्नति अधम्म पि हु मूढमई धम्मबुद्धीए ||८६७०।। जह केइ धाउवाई अत्थनिमित्तं मुहा किलिस्संति । निप्फलकिरियानिरया साहति न किं पि परमत्थं ॥८६७१।। तह धम्मगाहगा वि य साहति न किं पि एत्थ परमत्थं । अफलकिरियाणुलग्गा एमेव मुहा किलिस्संति ||८६७२।। व्यजनेन ।। १. Page #800 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७९१ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ अन्नं वाहिसरूवं अन्नं चिय ओसहं निजुज्जंति । न कुणइ वाहिछेयं तह य कुधम्मेहि कम्मखयं ।।८६७३।। ता तुम्ह अणुग्गहटुं परमोवायं च मोक्खसोखस्स । साहेमि परमधम्मं असेसकम्मक्खयसमत्थं' ।।८६७४।। तो कहइ समणधम्मं खंताईयं सवित्थरं वीरो । तं सोऊणं सव्वे संविग्गा तावसा जाया ।।८६७५।। तो चंदसिरीसहिया कुलवइपमुहा विसुद्धपरिणामा । सकलत्ता सावच्चा सव्वे दिक्खं पव्व(व)ज्जंति ||८६७६।। अन्ने वि तत्थ बहवे हरिविकूम-अमरसेणकडयंमि । पडिबुद्धा मुणिपासे पव्वज्जं अह पव्व(व)ज्जति ।।८६७७।। अउरुव्वदिक्खियाणं तावसमाईण पालणनिमित्तं । आयरियपए ठावइ बंधुयत्तं महावीरो ।।८६७८।। तो अमरसेण-हरिविकुमेहिं नमिऊण पत्थिओ भयवं । 'नियदंसणेण पुणरवि अम्ह पसायं करेज्जासु' ।।८६७९।। इय भणिओ च्चिय भयवं देवासुर-खयर-किन्नरसमेओ । उप्पइओ गयणेणं न याणिओ कत्थइ गओ त्ति ।।८६८०।। आपुच्छिऊण जक्खं अत्थपयाणेण पूरिया दो वि । रायाणो अणुन्नाया ससेन्नसहिया य संचलिया ।।८६८१।। तो भुयणसुंदरि च्चिय(री वि य) चिरपरिचियसहियणं च पुच्छेइ । संभासइ जक्खजणं पुणो पुणो सहियणं भणइ ।।८६८२।। 'मा वीसरह सहीओ! दूरीहूयाओ संपयं मज्झ । घणनेहनिब्भरमणा पुणो पुणो भरइ अच्छीणि ।।८६८३।। Page #801 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७९२ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ चंदप्पहं च पणमइ धरणिनिहित्तुत्तमंग-कर- जाणू । वाविं च खणं पेच्छइ उज्जाणवणं पलोएइ ||८६८४|| सुन्नं च तावसासममवलोयइ बाहभरियनयणजुया । चंदसिरिसुन्नउडवं दठ्ठे धाहं च मेल्लेइ ||८६८५।। अह नमइ जक्खरायं चरणनिहित्तुत्तमंग-करजुयला । सिंचंती नयणविणिग्गएहिं बाहंबुबिंदूहिं ॥ ८६८६।। तो भइ जक्खराओ 'मा खेयं कुणसु पुत्त ! चित्तंमि । दिन्ना सि वरे जोगे (ग्गे) असोयणीया जहा होसि ||८६८७ ।। पुणरवि तुह अणवरयं पडिजागरणं अहं करिस्सामि । तुमए चिंतियमेत्तो अहयं नणु आगमिस्सामि ||८६८८ || एयं जक्खाण सयं तुज्झ सयासमि पुत्त ! अच्छे । जं किं पि तुज्झ कज्जं संपाडिस्संति तं एए' ||८६८९ ।। इय एवं भणिया वि हु महया कट्टेण जक्खपडिभणिया । आरूढा जंपाणं चलिया बहुपरियणसमेया ||८६९० ।। बहुविहगामागरपुरनिरंतरं जणसहस्ससंकिन्नं । सोरज्जरंजियजणं वचं (च्चं ) ति महीं (हिं) पलोयंता ||८६९१॥ अणवरयपयाणयस्यविलंघियासेसदेस-पुर- विसया । पत्ता नासिक्कपुरं हरिविक्कम - अमरसेणा ते ॥ ८६९२ ।। सिरिअमरसेणरायस्स तह य सिरिभुयणसुंदरीए वि । माउलओ चंदजसो जत्थऽच्छइ चंदसिरिभाया ||८६९३ ॥ तत्थ अणुभुंजिऊणं पडिवत्तिं रायचंदजसविहियं । कइवयदिणेहिं य तओ अओज्झनयरीए संपत्ता ||८६९४ || Page #802 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७९३ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ पुरओ पेसियपुरिसेण साहिए अमरसेण-कुमराण । आगमणे नरनाहो महोच्छवं कुणइ नयरीए ।।८६९५।। सोहिज्जंति पुरीए रायपहा तिय-चउक्क-रत्थाओ । लिंपिज्जंति जणेहिं कुंकुमपंकोवलेवेण ॥८६९६।। रूढंतमहुरघडपंकेरुहविहियपुफ(प्फ)घणपयरा । गायंति बहुमुहेहिं व रायपहा कुमरआगमणे ।।८६९७।। घरघरनिबद्धतोरणपहल्लिरुव्वेल्लपल्लवाइन्नं । पल्लवियं पिव दीसइ गयणयलं उच्छवरसेण ।।८६९८।। मारुयधुव्वंतधयासहस्ससिहरग्गभवणरमणीया । कुमरागमणपहिट्ठा चेलुक्खेवं व कुणइ पुरी ।।८६९९।। उज्जलनेवत्थधरो नाणाभूसणविभूसियसरीरो । जायसुपव्वाणंदो संजाओ पौरपरिवारो ।।८७००।। कारावियपुरिसोहो रायाऽजियविकुमो पुरजणो य ।। नियरिद्धिसमुदएणं नीहरइ नरिंदपच्चोणिं ॥८७०१।। नियबलभरेण राया भरंतधरणीयलेण संजुत्तो । पत्तो रायसमीवं कयसमुचियसव्वपडिवत्ती ॥८७०२।। पावेसइ नयरीए बहुविहपेच्छणयसयसमिद्धाए । सिरिअमरसेणरायं वहू-वरं अजियनरनाहो ॥८७०३।। तो भुयणसुंदरीरूवदंसणुप्पन्नमणचमक्कारो । लोओ तक्कीलियलोयणेण व्व नऽन्नं पलोएइ ।।८७०४।। अन्नोन्नं च पयंपइ ‘तस्स नमो इह तिलोयगरु[यास्स । विहिणो जेणेसा किर विणिम्मिया लडहरूववई ।।८७०५।। १. सुपर्वाणो देवाः, पक्षे उत्सवः खंता.टि. ।। Page #803 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७९४ एयाए जम्मेणं पंच कयत्थाइं एत्थ जायाई । संसार-पयावइ-पेच्छयच्छि पिउ-ससुरगोत्ताइं || ८७०६ || सुरलालियाए अहवा सुरसंसग्गोवजायबुद्धीए । उचियमिमं एयाए रूवं लावन्न - सोहग्गं ॥ ८७०७ ।। जक्खंगणापसाहणसमहियसंपत्तरूवसोहाए । सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ । निययंगभूसणाई वि एयाए विहूसियाई व १८७०८ || उभयंसपासपरिसंट्ठियाहिं सुरसुंदरीहिं जा नियरा ( ? ) करकणिरकंकणेहिं विंजिज्जइ सेयचमरेहिं ॥। ८७०९ ।। पेच्छह जक्खविओवि (उव्वि) यमहंतमणि-रयणवरविमाणत्था । गयणयले वच्चंती कस्स न मणविम्हयं जणइ ? ||८७१०|| जा मणिविमाणभित्तिसु संकंतं पेच्छिऊण नियरूवं । उप्पन्नचमक्कारा पुणे पुण अवलोयइ सयण्हा ||८७११।। उत्तारंति नियच्छह जणचक्खुनिवायजायसंकाओ । सुरसुंदरीओ लोणं पुणरुत्तं हरिणनयणाए ||८७१२ ।। एयं च किन्नरिगणं वरवीणावेणुकलियकरकमलं । अहिणंदइ परितुट्ठा अच्चब्भुयवायपूरेण ॥। ८७१३ ।। एसो इमीए भाया पुत्तो सिरिवीरसेणरायस्स । नामेण अमरसेणो अमरो इव रूवसोहाए ||८७१४ || किं जंपिएण बहुणा ? जित्तं हरिविकुमेण तेलोक्कं । सिरिभुयणसुंदरीए पिययमसद्दं वहंतेण ॥ ८७१५ ।। इयएवमाइबहुजण आलावुल्लसियकलयलं राया । निसुतो मणपहरिसपुलयंगो विसयि (इ) रायउलं ||८७१६|| Page #804 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ कयसमुच्चि (चि) यकायव्वो महरिहसीहासणंमि उवविसइ । नियसरिसवरासणसंठिएण सह अमरसेणेण ||८७१७ || तो अमरसेणराया उववेसइ अप्पसन्निहं कुमरं । तो अजियविकुमेण भणिओ एवं अमरसेणो ॥ ८७१८ || ' एत्थागमणे तुह अमरसेण ! तह मज्झ वड्ढिओ हरिसो । जह लोए सुविभत्तो वि तह वि अंगे न संमाइ ||८७१९ ॥ मन्नामि कयत्थं चिय नियपुत्तं जेण तिहुयणदुर्लभो । सयलजणसलाहणीओ तुमए समं जाओ संजोओ ||८७२०|| सव्वं पि हु पाविज्जइ नरिंद ! नियभागधेयजोएण । सज्जणसंजोगो पुण कहिं पि कइया वि संपडइ' ।।८७२१ ।। इय भाइ जाव राया ताव वहू नियपरियणसमेया । ससुरपणामनिमित्तं समागया तत्थ अत्थाणे ।।८७२२ ।। पसरतदेहभूसणमऊ हजालेण करिसियाई व । मीणकुलाई व जणलोयण (णा ) इं देविं चिय सरंति || ८७२३ ॥ उभयंसपाससंठियचमरधारिणिधुव्वमाणसियचमरा । मुहविजियससहरेण व भयपेसियनिययजोण्ह व्व ॥ ८७२४ || अंतोनिगूढसुसुयंधकुसुमघणकसिणकेसपब्भारा । बहुभमरवंद्रसंछन्नकुसुमथवय व्व कप्पलया ||८७२५ ।। सोहइ सिरंमि जिस्सा कुसुमाभरणं विचित्तमणिरयणं । चउरयणायरसिरमुकुविविहमणिरयणवरिसं व ।।८७२६ ।। मणिकन्नपूरपसरियकिरणारुणवयणमंडलं वहइ । कयकुंकुमपंकविलेवण व्व लोएहिं सच्चविया ||८७२७ || ७९५ Page #805 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७९६ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ घोलंतकन्नकुंडलकवोलपडिबिंबभासुरा देवी । जंबुद्दीव्व(व)स्स सिरि व्व विमलदोसूर-ससिजुयला ॥८७२८।। आमलयथूलमोत्तियमहल्लभारंसुथूलथणवठ्ठा । पढ़ेसुयपिहियपओहर व्व जा ससुरलज्जाए ।।८७२९।। उज्जोइयभुवणयला संचरणरणंतकंचिमणिदामा । हरिविकूमस्स कित्ति व्व सद्दरूवा परिक्कमइ ।।८७३०।। पयपंकयरायमरालमहुरसंजायनेउरारावा । गंग व्व जयपवित्ता रयणायरपिययमाभिमुही ।।८७३१।। पणमिज्जंती पुरओ अब्भुट्ठियगरुयरायवंद्रेहिं । लज्जा-पसायरसमीसतन्निहित्तच्छिसयवत्ता ॥८७३२।। पडिहारघोरहक्काससंकसंखुद्धभूमिपालेहिं । दिन्नपरिवियडमग्गा पुणरुत्तनिहित्तपियनयणा ॥८७३३।। ‘जय देवि ! कुण पसायं दिट्ठीण इओ नियच्छ नियभिच्चे' । दूरोवविठ्ठराएहिं सायरं इय नमिज्जंती ॥८७३४॥ 'देवि ! पुरो अवहारसु सुसावहाणा ठवेसु पयकमलं' । इय कयकलयलसद्दा सन्निहियपरिग्गहजणेण ।।८७३५।। आणंदजलमएहिं नीलुप्पलपत्तलद्धसोहेहिं । अग्धं व देइ रायं वहूए नियनयणवत्तेहिं ।।८७३६॥ नीसहविमुक्कसव्वंगरणिरमणिभूसणारवकरालं । नमिओ ससंभमं नववहूए अज्जि(जि)यविकूमो राया ॥८७३७।। १. पदपङ्कजयो राजमरालवत् सञ्जातो नुपूरारावो यस्याः, गङ्गापक्षे पयसि राजहंसास्तेषा सातो नुपूरारावो यस्याम, खंता. || Page #806 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७९७ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ 'होसु अविहवा वच्छे ! मह कुलपासायधारणधरित्ति !' । इय ससुरकयासीसा कमलसिरीसन्निहिं जाइ ||८७३८।। तत्थ नियसासुयाए कयप्पणामाऽहिणंदिया तीए । . वच्चइ नियपासायं कुमारपासायसन्निहियं ॥८७३९।। कयखंड-खज्जबहुभक्खभोज्जतित्तंमि सयलजियलोए। दिज्जंतकणयभूसणनेवत्थजहिच्छजणदाणे ॥८७४०॥ पूइज्जमाणपुज्जे सम्माणिज्जंतरायसामंते । कयनियकुलकायव्वे चित्तंमि महोत्सवे रम्मे ॥८७४१।। तो अमरसेणराया कहमवि मोयाविऊण रायाओ । संपूइओ ससेन्नो चंपानयरिं च संपत्तो ॥८७४२।। हरिविकुमो वि कुमरो अन्नोन्नघणाणुरायरमणीयं । अद्दिढविओयदुहं परोप्परं विप्पियविहीणं ॥८७४३।। ईसा-विसायरहियं कसायहीणं परूढवीसंभं । अवरोप्परगुणकित्तणसमहियवलुतघणरायं ।।८७४४।। भुयणेक्कपेच्छणीयं विसिठ्ठजणसम्मयं मणभिरामं । सह भुयणसुंदरीए विसयसुहं सेवइ पहिट्ठो ।।८७४५।। एवं पइदियहपहि?माणगरुयाणुरायरत्ताण । अमयघडिय व्व सरसा वच्चंति दिणा सुहं ताण ।।८७४६।। अह अजियविकूमो वि य रज्जधुराधरणपच्चलं कुमरं । नाउं पसत्थदियहे अहिसिंचइ निययरजंमि ||८७४७।। अहिगयसंसारअसारयत्तसंजायगुरुतरविराओ । सव्वपयत्थनियत्तियवामोहो निहयममक्का(का)रो ॥८७४८।। Page #807 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७९८ हुयनिरुवलेवचित्तो सुविणयसंजोयसन्निहं सव्वं । खणनिरूवं मन्नतो नियविवेण ॥। ८७४९ ।। सुविसुद्धमणज्झवसायपयरिसुप्पन्नचरणपरिणामो । मोक्खेक्कबद्दलक्खो रयणायरसूरिपासंमि ||८७५० ।। पवयणभणियकमेणं हरिविक्कमविहियसव्वकायव्वो । पणइणि - महोयहिजुओ पव्वइओ बहुजणसमेओ ।। ८७५१ ।। अब्भसियसाहुकिरिओ अहिगयनीसेससुत्तसारत्थो । कम्मपरिसाडणपरो विहरइ सह महियलं गुरुणा ||८७५२ ॥ हरिविकुमो वि राया रिउदूसहपसरिउब्भडपयावो । सयलंमि महीवलए एगच्छत्तं कुणइ रज्जं ॥ ८७५३ ॥ पणमंतमहारायाहिरायमणिमौडमसिणपयवीढो । सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ पालइ वसुहं नय- विक्कुमेहिं हरिविकुमो राया ॥ ८७५४ ॥ अह भुयणसुंदरीए अंतेउरजायपट्टबंधाए । सुपसत्थलक्खणधरो उप्पन्नो मणहरो पुत्तो ||८७५५ ।। सुरविकुमो त्ति नामं वोलीणऽव्वत्तबालसभावो । पत्तो कुमारभावं विन्नाण - कलागहणजोगं ॥ ८७५६।। अल्लीणसयलविन्नाण-गुण- कला - रूव- लडह-लावन्नो । थोवदियहेहिं कुमरो संपत्तो जोव्वणं रम्मं ॥ ८७५७ ।। माया-पिउपयभत्तो गुणप्पिओ पयइविणयसंजुत्तो । चाई कलासु कुसलो परकमी सोवरोहो य || ८७५८ ।। किं बहुणा ? जलहिंमि व रयणाणं तारयाण व नहंमि । लब्भइ जहा न अंतो गुणाण कुमरे तहा तंमि ।।८७५९ ।। Page #808 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा | अह सो पसत्थादियहे जोगो त्ति वियाणिऊण राएण । सुरविकुमोऽहिसित्तो जुयरज्जपयंमि गरुयंमि ||८७६० ।। अह अन्नदिणे राया उवरिमतलमणिगवक्खउवविट्ठो । सह भुयणसुंदरीए जा अच्छइ वरविणोएहिं ॥ ८७६१ ॥ ता भुयणसुंदरीए उवसंतकसाय - विसयपसराए । वीसंभ- पणयगब्भं नरनाहो भणिउमाढत्तो ॥ ८७६२ || 'इह संसारे खणिगे लद्धं मणुयत्तणं किर नरेण । तह कायव्वं विउसा जह परलोए सुहं होइ ||८७६३ || इहलोयं चिय अहमा इह-परलोयं च मज्झिमा केइ । परलोयमेव वच्छंति राय ! जे उत्तमा पुरिसा ||८७६४ || इह अहम - मज्झिमुत्तमपुरिसाणं देव! उत्तमा दुलहा । दह-पंच मज्झिमनरा अहमेहिं निरंतरं भुयणं ||८७६५ ॥ चइऊण पढमपक्खे जइ लब्भइ उत्तमत्तमिह कह वि । ता भणह किं न लद्धं करिकन्नचलंमि जियलोए ? || ८७६६ ॥ संसारसरूवमिणं नरिंद! परमत्थवज्जियं सयलं । ७९९ तत्थ वि जो पडिबंधो सो परिणामे दुहनिमित्तं ॥ ८७६७ ॥ एसो अज्झवसाओ निरंतरं राय ! मह मणे फुरइ । देवस्स पुणो चित्तं सम्ममवगंतुमिच्छामि' ||८७६८|| ईसि (सी) सि विहसिऊणं भणियं हरिविकुमेण ससिणेहं । 'किं उज्जए ! न नायं मह हिययं एत्तियदिणेहिं ? ||८७६९ । संति कलत्ताणि बहूणि जाणि परलोयविग्घकारीणि । परलोयसाहयं पुण तुह सरिसं होइ पुन्नेहिं ॥ ८७७० || Page #809 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८०० सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ ता तुह भएण सुंदरि! न किं पि जंपेमि तुज्झ विसयंमि । तुह मुणियमणो संपइ तदत्थमहमुज्जमिस्सामि' ।।८७७१।। इय जा ताणन्नोन्नं आलावा हुंति भवविरत्ताण । ता सहस च्चिय गयणे उल्लसिओ दुंदुहीसहो ।।८७७२।। अह सुर-किन्नर-चारण-विज्जाहरथुव्वमाणपयकमलो । गयणमि वीरसेणो तेहिं पहिहिं सच्चविओ ।।८७७३।। दठूण वीरसेणं हरिसवसुल्लसियबहलपुलयाई । अब्भुट्ठिऊण दोन्नि वि पणमंति नहट्ठियं वीरं ।।८७७४।। तो ताण पुरजणाण वि उद्धमुहच्छीण पेच्छमाणाण । सकावयारनियडे उज्जाणे संठिओ वीरो ।।८७७५।। तो पौरजण-परिग्गह-अंतेउर-भुयणसुंदरिसमेओ । राया नियबलसहिओ वंदणवडियाए संचलिओ ।।८७७६।। पत्तो उज्जाणवणं उत्तिन्नो करिवराओ विणयपरो । परिचत्तरायचिंधो संपत्तो गुरुसमीवंमि ।।८७७७।। तो भुयणसुंदरी नरवई य लोओ य परमभत्तीए । पणमंति पायकमलं वीरस्स असेसदुहदलणं ॥८७७८।। तो सूरसेणमाइ-मुणिनिवहं पणमिऊण सव्वाइं । सुद्धवसुहायले उवविसंति नरनाहमाईणि ।।८७७९।। अह परिवारसमेओ अलंकरेंतो य गयणवित्थारं । सिरिमलयमेहजक्खो संपत्तो वीरपासंमि ।।८७८०।। तो पणमिऊण वीरं असेसमुणिसंघसेवियं जक्खो । संभासिऊण रायं देविं च तहिं च उवविट्ठो ।।८७८१ ।। Page #810 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ ૫૨ तो कहइ वीरसेणो केवलनाणोवलद्धपरमत्थो । गंभीर-धीरसण सव्वपरिसाए धम्मकहं |८७८२ ।। 'भो ! भो ! निसुणह भव्वा ! सोउं भावेह सुद्धबुद्धी । आयरह उवाएयं अणुवाएयं परिच्चयह ||८७८३ || धम्मस्स मूलहेऊ पयडियसंसारसयलसब्भावं । सम्मं नाणं तं च्चिय आयरणीयं पयत्तेण ||८७८४ ॥ सम्मन्नाणविहीणो संसारासारयं न लब्भेइ । अमुणियभवनिग्गुन्नो न विरव्व ( ज्ज) इ भवपवंचाओ ||८७८५ ।। संसारविरत्ताणं जम्हा जायंति धम्मपारंभा । अविरत्ता संसारं परमत्थमईए गेण्हति ॥ ८७८६ ॥ सम्मना (न्ना) णसमेओ दूरं निम्महियमोहमाहप्पो । सव्वमणिच्चमसारं मन्नइ संसारवित्थारं ॥ ८७८७ ॥ इय संसारे जं जं नराण वामोहकारणं होइ । तं तं सव्वमणिच्चं नायव्वं बुद्धिमंतेहिं ||८७८८|| हरिविकुम ! तुह एयं रज्जं सत्तंगसंभवमुयारं । सामि अमच्चो रट्टं दुग्गं कोसो बलं मित्तो ॥ ८७८९ ॥ एयस्स पवहणस्स व अपुन्नपवणाहयस्स रज्जस्स । विहडंतस्स न सक्खा कीरइ देवासुरेहिं पि ।।८७९० ।। एत्थ फुडो दिट्ठतो मज्झ पिया सूरनरवई तस्स । पुन्नक्खए न जाया रक्खा रज्जस्स केहिं पि ॥। ८७९१ | इह नत्थि भूमिवलए परक्कमी सूरसेणपडितुल्लो तेणाऽवि न विहडतं नियरज्जं रक्खियं समरे ||८७९२ ॥ ८०१ Page #811 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८०२ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ न बिहप्फइमइसरिसो मंती संभवइ एत्थ भुयणमि । तस्स वि न बुद्धिविहवो विफु(प्फु)रिओ रज्जभंसंमि ॥८७९३॥ र8 अइपुढे पि हु रक्खियमवि सव्वुवद्दवभयाओ । पुन्नक्खये नियं पि हु परकीयं तक्खणे होइ ॥८७९४।। दुग्गाई सुदुग्गाइं वि गम्माई हवंति वैरिलोयस्स । कोसो खलो व्व जाओ वैरिवसे पुन्नच्छि(छि)द्दम्मि ॥८७९५॥ सो करि-तुरय-महारह-पक्कलपाइक्कबलसमुग्घाओ । चित्तलिहिओ व्व न फुरइ नरस्स खीणेसु पुन्नेसु ॥८७९६।। जे आसि पुरा मित्ता अप्पवसा वेरियाण ते घडिया । नियआउहनिवहाइं व पहरंति दिदं नियस्सेव ॥८७९७।। इय नरवरिंद ! तइया सूरस्स सुरिंदसंथुयबलस्स । रज्जं छाहाखेड्डं व विहडियं पेच्छमाणस्स ॥८७९८।। जं चिय सूरवंतं रज्जं कालंतरेण तं चेव । नरसीहेणक्वंतं नहं व ससिणा सुविच्छिन्नं ॥८७९९।। नरसीहस्स वि अरिरायमउलिमणिमसिणपायवीढस्स । एक्कपए च्चिय नटुं सुमिणयदिटुं व तं रज्जं ॥८८००। इय भाविऊण हियए हरिविकुम ! मा करेसु अणुबंधं । रज्जे पुत्त-कलत्ते विहवे तह विसयसोक्खे य' ॥८८०१।। तो राय-रायपत्तीए परियणेणं च पौरलोएण । भणियं 'भयवं! एवं इच्छामो तुम्ह अणुसहि' ।।८८०२।। अह भुयणसुंदरीए लद्धावसराए पुच्छिओ वीरो । __ 'भयवं ! मह संदेहं अवणेह जहत्थकहणेण ॥८८०३।। Page #812 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ किं एस मलयमेहो जक्खो नियरिद्धीविहि (ह) वसंपन्नो । अम्ह मणुस्साणं पि य जणओ व्व पयासइ सिणेहं ? ||८८०४ ।। किं पयइकरुणयाए ? अहवा वि मुणिंद! पुव्वभवजणिओ । अत्थि एयस्स नेहो ? मह साहसु कोउयं गरुयं' ||८८०५ ॥ तो भाइ वीरसेणो 'वच्छे! इह अत्थि कारणं गरुयं । तं तुह संखेवेणं कहेमि निसुणेसु एगमणा ||८८०६ || इय (ह) अत्थि भरहवासे कोसलविसयंमि सयलगुणकलिया । विजया नामेण पुरी रिद्धिसमिद्धा बहुजणा य ||८८०७ || तत्थासि उसदत्तो त्ति नाम वणिओ अनंतधणविहवो । तस्सासि कुलकलत्तं अणंतलच्छित्ति पियभज्जा ||८८०८ || जिणवयणभावियाणं ताण कमेणं सुओ समुप्पन्नो । नामेण धम्मदत्तो पवित्तगुणभूसियसरीरो ॥८८०९ ॥ सो बालभावओ च्चिय कम्मखओवसमभावजोगेण । आसन्न भव्वया विसएसु परंमुहो जाओ ||८८१०|| संपत्तजोव्वणो वि हु अणुवमरूवो वि असमविहवो वि । नीसेसतरुणनारीअहिलसणीओ वि अच्चत्थं ॥ ८८११ ॥ उवसमसुहसंपत्तो निग्गहियक्साय - इंदियप्पसरो । संसारसुहविरत्तो सयणेसु य अपडिबद्धो य ||८८१२ ॥ आपुच्छियमाउ-पिओ पासे सिरिसीलसेहरगुरुस्स । पव्वइओ जिणपवयणभणियविहाणेण धम्ममुणी ||८८१३ || अब्भसियसाहुकिरिओ नाणाविहतवविसेससुसियंगो । एकल्लविहारितं पडिवन्नो गुरुअणुन्नाए ||८८१४ ॥ ८०३ Page #813 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८०४ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ गामंमि एगरायं नयरंमि य पंचरायमहिवसइ । एवं सो विहरंतो पत्तो अडविं महाभीमं ॥८८१५।। बहुकूरसत्तसंघायघोररन्नंमि तत्थ सो साहू । एकम्मि गिरिनिगुंजे अप्पडिबद्धो ठिओ पडिमं ।।८८१६।। तस्सोवसमपहावेण मुक्कवेरा वराह-हरि-हरिणा । करि-वग्घ-गंड-गवया सेवंति मुणिंदपयकमलं ॥८८१७॥ निसुणंति धम्मवयणं भद्दयभावंमि वट्टमाणा ते । रूसंति न अन्नोन्नं चयंति सावज्जमाहारं ।।८८१८।। अह गिरियडंमि विसमे अदूरववहाणभूमिभायंमि । जमनयरी नामेणं पल्ली तत्थऽत्थि जयपयडा ||८८१९।। तत्थाऽऽसि वग्घराओ त्ति नाम पल्लीवई महारोहो । बहुसीह-वग्घ-वारणमारणनिरओ महापावो ।।८८२०।। अह सो अन्नम्मि दिणे अच्छइ नियमंदिरम्मि उवविठ्ठो । ता सहसा पल्लीए उच्छलिओ कलयलो गरुओ ।।८८२१।। "किं किं ?' ति तेण पुढे साहइ लोओ ‘नरिंद! अइरोद्दो । सीहो अदिठ्ठपुव्वो ओइन्नो पल्लिबाहिमि' ॥८८२२।। तो भणइ वग्घराओ रे ! दावह मज्झ कत्थ सो सीहो ?' । इय भणिऊणं सधj(णू) ससरो य सकत्तिओ चलिओ ॥८८२३॥ जा जाइ पल्लिबाहिं ता पेच्छइ घोरदंसणं सीहं । आवलियदीहनंगूलभासुरं भुयणभयजणयं ।।८८२४।। हिमसेलसिहर-ससहरकरपंडुरगुरुसरीरसंठाणो । पासाओ य(व्व) वियरइ सव्वाहियसत्तविरियस्स ।।८८२५।। Page #814 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ ८०५ सोहइ कडारकेसरसडाकडप्पो इमस्स देहमि । करिसमरलंपडस्स व अंगे खित्तो व्व सन्नाहो ॥८८२६।। जस्सऽग्गकुडिलकढिणा नहरा दीसंति सभयसक्केण । एरावणरक्खटुं वज्जसलाय व्व से दिन्ना ॥८८२७॥ दाढुब्भडमुहकुहरो किं इमिणा मह महो परिग्गहिओ । इय कवलिओ मयंको दीसई दाढामिसेण मुहे ।।८८२८।। इय तं घोरसरूवं सीहं दठूण वग्घराएण ।। आरोविऊण धणुयं तंमि पुणो संधिया भल्ली ।।८८२९।। आयड्डिऊण मुक्का जा भल्ली ताव उड्डिओ सीहो । पच्छिमपाएहिं तओ सणियं ओसरिउमाढत्तो ।।८८३०।। तो धम्मदत्तमुणिणा दिट्ठा ते दो वि तस्विहसरूवा । उप्पन्नदओ भयवं काउस(स्स)ग्गं च संवरइ ॥८८३१।। पयपयनिहित्तदिट्ठी आगच्छइ ताण सन्निहाणंमि । दोहिं(ण्ह) पि अंतराले ठाऊणं अह इमं भणइ ||८८३२।। 'भो वग्घराय ! मयराय ! दो वि निसुणेह मज्झ वयणाई । मुक्कमणरोसभावा सम्मं परिणामसुहयाइं ॥८८३३।। किं वग्घराय ! हरिणा अवरद्धं तुज्झ जेण मारेसि ? । उवयारो च्चिय सोहइ अनिमित्तो न उण अवयारो ।।८८३४।। अवयारंमि पवित्ती सुकरा सव्वस्स न उण उवयारे । जं च्चेव दुक्करं स(सु)बुरिसेहिं तं अब्भसेयव्वं' ।।८८३५।। तो भणइ वग्घराओ 'भयवं ! एसो सहावनिक्करुणो । सव्वसत्तोवघाई एत्थ वि कह तुम्ह अणुकंपा ?' ||८८३६।। Page #815 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८०६ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ तो भणइ मुणी 'सच्चं उवेक्खणीओ हु निग्गुणो अ ( 5 ) वस्सं । सगुणं च उवेक्खंतो अनंतसंसारिओ होइ ||८८३७|| चउवीसजोयणाडविपुव्वावर - दक्खिणुत्तरमेण । सव्वो वि सावयगणो सगुण च्चिय मज्झ संगेण ||८८३८ || एएण कारणं भणामि काऊण भरवसमिमस्स । मा मारसु मयरायं अकारणं पल्लिवरनाह! ||८८३९ ।। जइ पल्लिनाह! सीहो होइ न सदओ तुहोवरिं ता किं । कमवडिओ कह छुट्टसि इमस्स पयईए धीरस्स ? || ८८४० ॥ तुह वग्घराय ! दिढभल्लिघायभीओ त्ति एस ओसरिओ । मा एवं कुणसु मणे किं तु दयापरवसो ल्हसिओ ||८८४१ | सीहम्मि तुमं ढुको कोहग्गपरव्वसो वहनिमित्तं । एसो उ हणंतंमि वि तुमंमि कारुन्नमुव्वहइ ||८८४२ || कोहो हि नाम नरवर ! निरं (रिं) धणो एस होइ हव्ववहो । अग्गह- भूय- पिसायं कोह च्चिय परवसत्तमिणं ||८८४३ || अंधत्तणं एस सलोयणं पि कोहो तमं ससूरंपि । कोहो चेव य कंपो सीयज्जरवज्जिओ होइ ||८८४४ || कोहो चेव पलावो अकारणो नरयसत्थवाहो य । तं किं न जं न कोहो अवयारपरंपराहेऊ ? ।। ८८४५ ।। गुणरयणभूसणाई कोहो चोरो व्व तक्खण च्चेव । निलू (ल्लू) डिऊण पुरिसं विडंबए लोयमज्झमि ||८८४६ || भंडो व्व होइ कोहो संगं जो कुणइ तेण सो वि तहा । परिचत्तलज्जवसणो असम्भवयणाई भासेइ ||८८४७ || Page #816 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८०७ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ मयि(इ)रारसो व्व कोहो संजणइ खणेण मणविवज्जासं । अणुसिक्खंतं पि जओ गुरुं पि पियरं पि दूसेइ ॥८८४८।। कोहो मयरहरो इव कूरज्झवसायगाहदुल्लंघो । जे उण पविसंति इमं निब्बोलं ते निमज्जंति ।।८८४९।। बहुवरिसपरूढं पि हु नेहं खणमेत्तसंभवो कोहो । विसलेसो इव दूसइ कूयजलं तक्खण च्चेय ॥८८५०॥ मन्नंति मूढमइणो कुद्रेण मए परं पि अवयरियं । एयं न मुणंति जहा सहियव्वं सयगुणं पुरओ ||८८५१।। जं जह पुरओ कीरइ सुहासुहं तस्स तं च्चेय । अप्पंमि दप्पणे इव तक्खणमेत्तेण संकमइ ॥८८५२।। पच्चक्खेण परिक्खह परलोयं तक्खणेण जं होइ । दुव्वयणे दुव्वयणं घाए घायं सुहं च सुहे ।।८८५३।। तो पल्लिनाह! कोहं परिणामदुहावहं परिच्चयसु । सीहमि न चेव परं कुण मेत्तिं सव्वसत्तेसु ।।८८५४।। आबालभावओ च्चिय पल्लीसर! विसतरु व्व उप्पन्नो । जयसंहारनिमित्तं अनायपरलोयपंथाणो ।।८८५५।। लद्धं पि अलद्धं च्चिय मणुयत्तं तुज्झ धम्म-गुणहीणं । अज्जिणसि पावकिरियाहिं बहुतरं पावपब्भारं ।।८८५६।। पाणिवह-मंसभक्खण-मइरापाणं च चोरियमसच्चं । परनारीपरिभोगो कुलव्वयं तुज्झ किर एयं ।।८८५७।। एयाइं पुण अवस्सं नेहिति दुरुत्तरं महानरयं । जम्हा विसमुवभुत्तं नियसामत्थं पयासेही ॥८८५८॥ Page #817 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८०८ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ अज्ज वि न किं पि नटुं संभालसु सव्वहा वि अप्पाणं । चइऊण पावकम्मं परलोयसुहं कुणसु धम्मं ॥८८५९॥ पल्लिवइ! वरं सीहो तिरिओ वि हु पावकम्मविरयप्पा । मणुसो सविवेई वि हु नेय तुमं जो महापावो' ||८८६०।। तो जंपइ पल्लिवई ‘एवं एयं न अन्नहा भयवं ! । वरमेसो गुणसीहो मा हं जो कोल्हुयसरिच्छो ॥८८६१॥ किं वयणमेत्तकेहिं किरियासुन्नेहिं इह पलावेहिं ? । जइ जोग्गो हं मुणिवर! ता धम्मं देसु परिसुद्धं' ।।८८६२ ।। एवं सो भणिऊणं धणुयं भल्लीओ भंज्ज(ज)इ विरत्तो । उवसंतमणो मुणिणा पबोहिओ धम्मकहणेण ॥८८६३।। कयपंचमुट्ठिलोओ विरओ सुहुमयरपावट्ठा(ठा)णाण । पडिगाहइ पव्वज्जं निरवज्जायरणतल्लिच्छो ।।८८६४।। तो धम्मदत्तसाहू लोएहिं पसंसिओ जहा ‘एसो । तिरिए वि कूरकम्मे भिल्ले वि पबोहए भयवं' ।।८८६५।। अह धम्मदत्तसाहुं भिल्लमुणी नो खणं परिच्चयइ । संजायगरुयनेहो तद्दे(दे)क्वचित्तो समं भमइ ।।८८६६।। भयवं पि धम्मदत्तो सीहोवरिजायपरमपेम्मभरो । सीहो वि धम्मदत्ते अच्चंतं नेहसंबधो(बद्धो) ।।८८६७।। सीहो कालकमेणं पइदियहविसुज्झमाणमणभावो । विहियाणसणो सम्मं झायंतो जिणनमोकारं ।।८८६८।। मरिउं सणंकुमारे उववन्नो सत्तसागराऊसो । देवो दिप्पंततणू महिड्डिओ सुप्पहविमाणे ॥८८६९।। Page #818 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८०९ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ साहू वि विहरमाणो विजयानयरीए आगओ तत्थ । बहिरुज्जाणंमि ठिओ भिल्लमुणिंदेण परियरिओ ॥८८७०॥ तो उसहदत्तसेट्ठी लोओ सव्वो वि नयरिवत्थव्यो । मुणिधम्मदत्तपासे गुणाणुराएण संपत्तो ।।८८७१।। अणुसासिया य सव्वे सुद्धजिणधम्मदेसणापुव्वं । समयं लभूण तओ भणियमिणं उसहदत्तेण ।।८८७२।। 'भयवं ! परंपराए निसुयं अम्हेहिं जह अरन्नंमि । कूरो वि सावयगणो पडिबुद्धो तुम्ह संगण' ॥८८७३॥ तो भणइ धम्मदत्तो ‘एवमिणं जह तए सुयं पुट्विं । एसो च्चिय पल्लिवई पच्चक्खो मुणिवरो जाओ ।।८८७४।। एसो ताव मणुस्सो पल्लिवई मुणइ भासियं सुमइ(ई) । विमलमण-वयण-करणा तिरिया वि पबोहिया बहुया ।।८८७५।। सा मह पबोहसत्ती जा पयडा भिल्लमुणिवरस्साऽवि. । अहवा एयं पुच्छह लज्जामि सयं कहंतो हं' ।।८८७६।। इय वत्तसरलयाए अप्पपसंसापराय(पराइ) वाणीए । मायापच्चयमसुहं कम्मं बद्धं मुणिंदेण ।।८८७७।। तो उसहदत्तमाई सव्वे वि गया सकीयट्ठा(ठाणेसु । तं वयणमगरहंतो मुणी वि अन्नत्थ विहरियओ ॥८८७८।। नियआऊ(उ)यक्खएणं संलेहणपुव्वयं कयाणसणो । कयपायवोवगमणो पंचत्तं उवगओ साहू ।।८८७९।। मरिऊणं उववन्नो तथे(त्थे)व सणंकुमारकप्पंमि । भिल्लमुणी वि य समणो मरिउं तत्थेव उववन्नो ।।८८८०॥ Page #819 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८१० सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ तो अवहिनाणजाणियपुव्वभवुप्पन्नपरमनेहभरा । चइऊणं उववन्ना एत्थेव य भारहे वासे ।।८८८१।। तो भुयणसुंदरि ! तुमं मायापच्चइयकम्मदोसेण । सिरिरायगिहे नयरे वेसाकुच्छीए उप्पन्ना ।।८८८२॥ अणंगसिरीनामाए महिंदपालस्स वारविलयाए । जायाऽऽसि तुमं धूया नामेणं मयणमंजूसा ।।८८८३।। जो उण महिंदपालो सो जीवो आसि सीहदेवस्स । जो उण सुमई मंती सो भिल्लमुणिस्स किर जीवो ||८८८४।। अह पुव्वभवंतरगुरुसिणेहभावेण सुमइवरमंती । अणुरत्तो तुह उवरिं मयणमंजूसजम्मंमि ।।८८८५।। चंदसिरीजीवो उण महिंदलच्छि त्ति आसि तंमि भवे । तस्स तुमं संपत्ता सहित्तणं जीवियब्भहियं ।।८८८६।। पुण तंमि भवे सुंदरि ! महिंदलच्छीए संगसंबुद्धा । पालियजिणिंदधम्मा मरिऊण गयाऽऽसि सुरलोयं ।।८८८७।। राया महिंदपालो सुमई वि य इंददत्तनिच्छूढा । संसारविरत्तमणा पेरंते मुणिवरा जाया ॥८८८८।। मरिऊणं बंभलोए उववन्नाइं च तत्थ समकालं । सुमई महिंदपालो तुमं च जा मयणमंजूसा ।।८८८९।। तत्तो कोसंबीए अणंतसेणस्स देवदत्ताए । दोन्नि वि जाया पुत्ता तुमं च भइणी समुप्पन्ना ।।८८९०।। वर-भरह-बालचंदा कमेण नामाइं तुम्ह जायाई । जिणधम्मपहावेणं गयाइं दो लंतयं कप्पं ।।८८९१।। Page #820 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ एसो वि य वरजीवो बंभलोयं गओ य तत्तो वि । उज्जेणीए वणिओ सुसावओ अह समुप्पन्नो ।।८८९२ ॥ तो सोहम्मे देवो तत्तो राया तओ वि मलयंमि । मलयमेहोत्ति जक्खो उप्पन्नो संपयं एसो ||८८९३ || लंतयकप्पाओ तओ सुरसोक्खं भुंजिऊण पढमयरं । भरहो वि य चविऊणं जाओ हरिविकुमो राया ॥ ८८९४ ।। कय (इ) वयदिणेहिं पच्छा तुमं पि इह भुयणसुंदरी जाया । एएण कारणं जक्खस्स तुहोवरि सिणेहो ।।८८९५ ।। हरि-धम्मदत्त - भिल्ला प्प ( प ) रोप्परं जायगुरुतरसिणेहा । पुण सुरलोए तिन्नि वि ठिया सुहं परमनेहेण ||८८९६ ।। वेसा - महिंद - सुमईभवंमि पुण तुम्ह वडिओ नेहो । पुण सुरलोए वि तहा पुण वर-भरह - भइणिभवे ।।८८९७ ।। “इयमाइभवनिरंतरपवड्ढियं भुयणसुंदरि ! सिणेहं । अणुवत्ततो जक्खो तेणेसो कुणइ तुह नेहं ॥ ८८९८ || नेहो हि नाम वच्छे! कारणमेसो अणत्थ-सत्थाण । तं किमिह जं नं दुक्खं सिणेहमूढा न पावंति' ।।८८९९ ।। तो देवीए भणियं भयवं ! कह एत्तियस्स वि ममेयं । अतुच्छदुक्कडस्स वि विबागविरसं फलं जायं ?' ||८९०० || तो भाइ वीरसेणो 'वच्छे ! अइदुक्करा हु पव्वज्जा । इह तुच्छं पि हु खलियं वज्जेयव्वं पयत्तेणं' ||८९०१ ।। तो पुव्वभवायन्त्रणसमहियसंजायभवविराएहिं । दिट्ठो पजलंतो इव संसारो दोहिं वि जणेहिं ||८९०२।। ८११ Page #821 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८१२ 'हा ! विरसो संसारो जणओ होऊण होइ भत्तारो । धूया. वि होइ भज्जा पुरिसो इत्थी दुकम्मेहिं' ||८९०३ || तो संसारसमुब्भवगरुयभउब्धंतखुहियहिययाइं । अह विन्नति वीरं पव्वज्जाकारणे दो वि ।।८९०४ ॥ 'भयवं ! कुणसु पसायं काऊण दयं भवन्नवगयाई । दिक्खादाणपयाणेण देव ! अम्हे समुद्धरसु' ||८९०५ || तो भइ वीरसेणो ' अहासुहं मा करेह पडिबंधं । संसारविरत्ताणं किच्चमिणं सव्वसत्ताणं' ||८९०६ ।। तो पणमिऊण वीरं राया तप्पणइणी य पुरलोओ । पविसइ पुरिं पसंतो संसारसुहेसु निव्विन्नो ॥८९०७ ॥ तो सुपसत्थे दियहे कुमारसुरविकुमं सरज्जमि । अहिसिंचइ नरनाहो पयंडभुयदंडसामत्थं ॥ ८९०८।। संमाणियसामंतो सुनिरूवियसयलपरियणं पुरओ । आपुच्छियपौरजणो निव्वत्तियरायकाव्वो ||८९०९॥ - सक्कावयारमाइसु चेइयभवणेसु सव्वरिद्धीए । अट्टाहियामहोत्सवमसमं कारावइ नरिंदो ||८९१०।। नीसेसं पि हु भुयणं अदरिदं कुणइ अत्थदाणेण । तह तेण तया दिन्नं जह से गिण्हंतया नत्थि || ८९११॥ तो सुपसत्थे दियहे सुइभूओ कयविलेवणो राया । सह भुयणसुंदरीए आहरणविहूसियसरीरो || ८९१२ ॥ देवंगवत्थनिवसण-कयमालइकुसुमसेहरो रुइरो । जयवारणमारूढो थुव्वंतो सयललोएहिं ॥ ८९१३ ।। सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ Page #822 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८१३ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ अह भुयणसुंदरी वि य आरूढा कणयघडियजंपाणं । सह जक्खपरियणेणं वज्जिरगंभीरतूरेहिं ।।८९१४॥ आपुच्छंताई जणं संभालंताई पउरवग्गं च । सुविसुद्धमाणसाइं उज्जाणवणं पहुत्ताई ।।८९१५।। सकावयारजिणहरपइट्ठियं वंदिऊण पढमजिणं । जंति गुरुसन्निहाणं काउं तिपयाहिणं दो वि ॥८९१६।। उत्तारंति सहरिसं निययसरीराओ भूसणाडोवं । तो पंचमुट्ठिलोयं कुणंति सयमेव हिट्ठाइं ॥८९१७।। तो केवलिणा सम्मं पवयणविहिणा विसुद्धचित्ताइ । पव्वावियाइं मुणिलिंगदाणपुव्वं अणुक्कमसो ॥८९१८।। अन्ने वि तेहिं सहिया सामंता मंडलीयरायाणो । मंती पौरजणा वि य पव्वइया भवविरत्तमणा ।।८९१९।। चंदसिरीगणिणीए समप्पिया भुयणसुंदरी अज्जा । हरिविकुममाइ(ई)या मुणिणो नियसन्निहिं धरिया ।८९२०।। तो वीरसेणसूरी अउज्झनयरीओ जाइ चंपपुरि । वसुपुज्जसन्निहाणे उज्जाणे ठाइ एगमि ॥८९२१।। तत्थ वि य अमरसेणं पडिबोहइ भवसरूवकहणेण । अह सो वि देवसेणं नियपुत्तं ठवइ रज्जंमि ||८९२२।। सयलंतेउरसहिओ सामंताईहिं परिगओ राया । बहुपौरजणसमेओ पव्वइओ वीरपासंमि ॥८९२३।। अब्भसियसाहुकिरिया अहिगयनीसेससुत्तसारत्था । कयघोरतवच्चरणा हरिविकम-अमरसेणमुणी ।।८९२४।। Page #823 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८१४ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ जोगो(ग) त्ति जाणिऊणं आयारयपयंमि ठाविया दो वि । नियनियसंघसमेया विहरंति महीयलं धन्ना ॥८९२५॥ एक्कारसंगसुत्तत्थधारिणी भुयणसुंदरी गणिणी । साहुणिसंघे जाया पवि(व)त्तिणी गुणगणग्घविया ॥८९२६।। एत्तो य वीरसेणो पडिबोहंतो महीयलं सयलं । पत्तो सेत्तुज्ज(त्तुंज)गिरि सिद्धालयभूसियं रम्मं ।।८९२७।। तत्थ वि असेससुर-सिद्ध-जक्ख-विज्जाहरिंदकयसेवो । मण-वयण-कायविरओ विसुद्धसेलेसिकरणेण ।।८९२८।। निहयभवोवग्गाहगकम्मो नीसेसबंधणविमुक्को । सिवमचलमक्खयसुहं मोक्खं पत्तो निराबाहं ।।८९२९।। अह सूर-विचित्तजसो(सा) असोय-सेहरय-बंधुयत्ता य । उप्पन्नविमलनाणा सेत्तुज्जे(त्तुंजे) निब्बुई पत्ता ॥८९३०॥ तो वीर-सूरविरहे देवासुर-जक्ख-किन्नर-नराण । जायं व निरालोयं भुयणं सोयंधयारेण ॥८९३१।। 'हा निम्मलनाणपईव! वीर! हा मोहतिमिरनिम्महण! । हा हा जएक्कबंधव! तए विणा तिहुयणं सुन्नं ||८९३२।। न परं परक्कमेणं तुमए भुयणाहिवत्तणं पत्तं । अणुवमसाहुगुणेहिं वि जाओ मुणिचक्कवट्टी वि' ॥८९३३।। इयमाइ सोइऊणं पुणो पुणो तग्गुणा अणुसरंता । सुर-असुर-खइ(य)रमाई सव्वे वि गया सभवणाई ।।८९३४॥ हरिविकुमसूरी वि हु भव्वंभोरुहपबोहसूरो व्व । तिहुयणनासियदोसो पयासियासेसभवभावो ॥८९३५॥ Page #824 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ विहरतो धरणियलं अहाविहारेण एइ चंपाए । सिरिअमरसूरिणा सह ठवंति सपएस आयरियं ॥ ८९३६ ॥ नामे धम्मघोसं अमरस्स पर्यमि मंजुघोसं च । निट्ठवियअट्ठकम्मा अंतगडा केवली जाया ॥८९३७।। दोसु वि गएसु मोक्खं हरिविक्कम - अमरसेणसूरीसु । सिरिभुयणसुंदरीए केवलनाणं समुप्पन्नं ॥ ८९३८ ॥ विहरती धरणी (णि) यलं निच्छिदंती जणस्स संदेहं । मोहं च निम्महंती भुवणुवयारं च जणयंती ||८९३९ ।। पत्ता तमेव सेलं मलयगिरिं गरुयकंदरगहीरं । तं चेव तावसासमसमीवचंदप्पहजिणिदं ॥ ८९४०।। चंदसिरी विजयवई सिंगारबईयमाइअज्जाहिं । उप्पन्नकेवलाहिं सह ट्ठिया फासुयपएसे ॥८९४१॥ सिरिमलयमेहजक्खेण पूइया परमरिद्धिविहवेण । ठावइ पवत्तिणिपए सीलवइं नाम वरअज्जं ||८९४२ ।। तो केवलिपरियायं पालेउं भुयणविहियउवयारं । विरयमण-वयण-काया विसुद्ध सेलेसिकरणेण ॥ ८९४३॥ खवियभवोवग्गाहगकम्मंसा सव्वबंधणविमुक्का । सिवमलय (मयल) मक्खयसुहं मोक्खं पत्ता निराबाहं ॥। ८९४४ ।। ८१५ एत्थ समप्पइ सिरिभुयणसुंदरी नाम वरकहा एसा । फुड - वियड-सलिल (ललि) यक्खर - गाहाहिं विणिम्मिया रम्मा ॥८९४५ ॥ [प्रशस्तिः ] इह आसि जयपसिद्धो निम्मलनाइल्लकुलसमुब्भूओ तव - सील-संजमरओ समुद्दसूरि त्ति आयरिओ ॥१॥ Page #825 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ नियहत्थदिक्खिएणं सीसेणं तस्स अणुवमगुणस्स । सिरिविजयसीहनामेण सूरिणा विरइया एसा ॥छ।। ।।२।। लक्खण-छंदविहीणं भट्ठालंकारमागमविरुद्धं । जं किं पि एत्थ रइयं सोहंतु विसारया तमिह ॥छ।।छ। ॥३॥ इह आसि मोढवंसे डाऊयसेट्टि त्ति सावओ गुणवं । तस्साऽऽसि नेढनामा पियभज्जा सीलगुणकलिया ॥४॥ पुन्नोदओ व्व ताणं पसंसणीओ सुओ समुप्पन्नो । गोवाइच्चो नामं सव्वगुणालंकियसरीरो ।।५।। जस्स पसंतं रु(रू)वं वेसो वि अणुब्भडो महुरवाणी । परउवयारे बुद्धी सुपत्तदाणे महावसणं ॥६॥ भत्ती जिणिंदचरणे अविचलसम(म्म)त्तभावियं चित्तं । विसएसु अलोलुत्तं विणिग्गहो राय-दोसेसु ॥७॥ इयमाइविविहगुणगणसंखं को मुणइ तस्स धन्नस्स । खीरोव(द)हिंमि उज्जलकल्लोलाणं च परिमाणं ।।८।। अह तस्स आसि पुट्विं माउपिया पासिलो त्ति सुपसिद्धो । सोमेसरनयरवत्थव्वो ।।९॥ तस्स नियकम्मपरिणइवसेण साहीणनियकलत्तस्स । तह विं न जाओ पुत्तो संताणं जो समुद्धरइ ।।१०।। तो तेण अपुत्तेणं दोहित्तियजायपक्खवाएण । पुत्तत्तणेण गहिओ गोवाइच्चो बहुगुणड्डो ।।११।। मायामहेण तेणं सोमेसरसंठियं सुहाधवलं । गोवाइच्चस्स तओ दिन्नं धवलहरमुत्तुंगं ।।१२।। Page #826 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ गोवाइच्चेण वि मुणियविरससंसारखणिगभावेण । सिरिउज्जयंततित्थे समप्पियं नेमिनाहस्स ॥१३।। भणिओ य तेण संघो गोवाइच्? पंजलिउडेण । मुणिसंघनिवासत्थं एस मढो अप्पिओ तुम्ह ||१४।। अह तंमि सुहाधवले तिभूमिए परमरम्मयानिलए । गोवाइच्चविदिन्ने संघमढे विरइया एसा ॥१५॥ तस्स उवट्ठभेणं वत्थासण-सयण-पत्तमाईहिं । निच्चितमाणसेणं रइया सिरिविजयसीहेण ॥१६॥ निप्फाई(इ)यया एसा लिहाविया तेण पोत्थयसएसु । गुणपक्खवायमणसा पयासिया सयलभुयणमि ॥छ।। ।।१७।। अणवच्छिन्नो पसरइ जा जिणधम्मो विदेहभूमीसु । ता भुवणसुंदरिकहा वित्थरउ जयंमि अक्खलिया ॥छ।। ।।१८।। श्रीमद्गूर्जरवंशप्रभवः सम्भवदनेकगुणविभवः । साधुहरिचन्द्रसूनुः पुण्यश्रीकुक्षिसम्भूतः ।।१९।। दुः]स्थार्थिसन्तापहरः प्रसिद्धः स्वच्छाशयश्चारुगुणान्वितश्च । मुक्तोपमानो वसुमान् सुवृत्तः समस्ति साधुर्नयपालनामा ।।२०॥ युग्मम्।। तस्याऽस्ति जाया रयणाभिधाना दानादिसद्धर्मरता प्रधाना । पुत्रास्त्वमी प्रौढविवेकवर्या ख्यातास्त्रयो निर्मितसङ्ककार्याः ।।२१।। आद्यो वदान्यः कृतिलोकमान्यः प्राज्ञः सुधन्योऽजनि कीतिसिंहः । दानोद्यतोऽन्यस्त्विह देवसिंहः साल्हाभिधः साधुवरस्तृतीयः ॥२२।। साधुनयपालपत्नी रयणादेवी विवेकधर्मज्ञा । पुस्तकमेनं श्रीभुवनसुंदरीसत्कथासत्कं ॥२३।। ५३ . Page #827 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८१८ आत्मश्रेयोर्थमथ व्याख्यापयितुं जनोपकाराय | जगृहे मूल्येन मुदा बाण - रस- शिखीन्दुमितवर्षे ||२४|| पुष्पदन्ताविमौ यावद्वर्तेते गगनाङ्गणे । बुधैर्व्याख्यायमानोऽयं तावन्नन्दतु पुस्तकः ॥ २५ ॥ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ ।। समाप्तः // ॥ भुवनसुन्दरीपुस्तकं सा. नयपालभार्यारयणादेव्याः || Page #828 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पत्र २ २ ४ ४ ४ ४ ५ ६ ६ ८ ९ १० १० १० ११ ११ १४ १५ १६ १७ १७ १७ गाथा In an on us १५ १९ ३१ ३६ ४० टि. di dig ४७ टि. ५४ ७० ७८ ९२ ९९ १०४ १०६ १०८ ११६ १४२ १५८ १६७ १७७ १७८ १८१ अशुद्धिः साहिउ सल्लं च ०प्पयार्ण ० जत्थ कमलो० २ प्रदोषः पाउसो शुद्धिपत्रम् ॥ पुलिणरंभाहिं हरिविक्कमस्य अहसा हरि० अन्नायवराहक्खडय० कायव्वा ० अगं एत्थंतरम्भि मंत० पिव ०कुमारमकय० ० सिरजाणु० भो भो उवओगं हरि० शुद्धिः साहिउ (ओ) सल्लं व ०प्पयाण० जत्थ कमला० अत्र प्रमादतः स्थापितेयं टिप्पणी । पड (ओ) सो १. प्रदोषः ॥ पुलिण-रंभाहिं हरिविक्कमस सहसा "हरि० अन्नायधराहरखडय० कायव्वा" ०ऊणं एत्थंतरम्मि गम्मत० पिव ० कुमारो व्व क० एवं स्यात् ॥ . ० सिर- जाणु० “भो भो उवओगं" "हरि० Page #829 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८२० पत्र १७ १९ १७ पुज्जो " गाथा १८१ १९३ १९५ २६२ २७७ २८१ सिरिभुयणसुंदरीकहा। अशुद्धिः शुद्धिः पुज्जो ०वसती सहंगवेक्खेव० ०वसनीसहंगवखेव० भववारिविनिपतित० ०भववारिधिनिपतित० रणज्जुइं (?) रणज्जुई संकेत० ०संकंत० सत्तं का सत्तं वा २५ २६ त का ३४० ३४ occ ३६४ ३६७ oc ३६७ ३५ ३८ ३९ ३६९ टि. ४२१ Po ४२९ ४३ ४५५ हियप० ०मालईद्दाम० खणभरहरहस्स० ०कहाओ० विसोहणो तत्र च] पुरं विसं ०णक्खिन्नेण एवंविहरपरि० देवत्ति ०लहम्मि देव जाणासणदुविहसंसया ०माण गुण० ०सनिविट्ठ० दीहरघोर महो० निरवइणा . संतोसमुव्बहइ(?) । पविसर हियय० ०मालईदाम० खण-भरह-रहस्स० कहाओ(उ) विसोहणो(णे?) तत्र च पुरं परं ?) विसं (विसय?) ०णक्खि(खि)न्नेण एवंविहपरि० देवन्ति लेहम्मि देव ! जाणा-सण-दुविह-संसया ०माणगुणे० ०स(सु)निविट्ठ० दीहरघोरमहो० नरवडणा संतो(ता)समुव्वहइ पविसई ४७६ ५०१ ४७ ४८ ५१० ५१ ५१ ५५ ५७ ६४ ५४३ ५४६ ५९६ ६१५ ६८८ ६७ Page #830 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८२१ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ पत्र गाथा अशुद्धिः ६७ ७२१ कयपंचगप(प्प)णामा ७४९ ०पट्टिया खेत्त० ७५६ गोसेयणाई० तेणा वि ७२ ७७१ लुहुडुक्खुडाहु (?) ७४ ८०० सित्तं त० ८०० वेहीओ ८०२ निव्वुड्डण० ७४ ८०२ ०कुसुद्ध ७५ ८०३ पक्खित्तकुसुम० ७५ ८१३ जाइज्जइ ७६ ८१७ नरवह ७९ ८५३ वणस्सइ० मलिणो ८९० जण वा(या?)ण(?) ९२२ तुज्झविहियसेवाए दक्ख० अविसंता ८८ ९५४ उड्डाहो वि० ८८ ९५५ चक्खू० ९३९ विहियउचिय० विसेसमुल० ९२ ९९७ संपत्तसुरिंद० १००३ (ड्डिय) गुण ९४ १०१४ थिर सुस्सरविसेस० शुद्धिः कयपंचंगपणामा पट्टियाखेत्त० गोसेयणाई(इ)० तेणावि लुहुदुक्खुडा सित्तंत० विहीओ निवुड्डण० ०कुसद्ध० पक्खित्तसुम० जाइज्जए नरवइ ! वणस्सई० मलीणो जिण-. वा(या)ण(जाण) तुज्झ विहियसेवाए दुक्ख० अविस्संता उड्डाहोवि० चक्नु० विहिय उचिय० विसेससमुल्ल० संपत्तसुरासुरिंद० (ड्डिय)-गुण थिरसुस्सरसरविसेस० ८५८ Page #831 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८२२ पत्र गाथा १०१ १०९१ १०३ १११४ १०३ ११२० १०६ ११५३ १०८ ११७२ १११ ११२ ११३ १२६ १२९ १३१ १३३ १३४ १४६२ १४१ १५३७ १४२ १५४४ १४२ १५५० १४३ १५५८ १४४ १५६९ १४५ १५८६ १४७ १६०५ १४९ १६२० १५० १६४१ १५० . १६४१ १५१ १६४७ १५१ १६४८ १५१ १६५२ १२०३ १२१५ १२२७ १३७५ १४०९ १४३० १४४७ शुद्धिः अशुद्धिः बार (? धीर?) तूरखो बारतूररवो ०कोट्टेण (?) ० कोण विसयं विहूसियं एयइ थणवढा (?) विरहरूयवह० मज्झन्नन्नत्थ पच्छावसरे ममा वि मन्नो बंभदत्त० मन्नाओ पयावसहमाणोव्व सोहम्मपुरा० ० पयडत्थहत्थ० परिहरियरज्ज० ० माणंदकारच्चं कम्मघम्म० रणमेरिं सेन्नसंवा संघेई छएहिं भणिऊ णं विज्ज० दाऊ ण भमाडिऊ णं उद्दालिऊण एयथणवट्ठा (?) विरहयवह सिरिभुयणसुंदरीकहा । मज्झ नन्नत्थ एत्थावसरे मावि मन्ने बंधुदत्तo मन्नाओ (मो?) पयावमसहमाणोव्व सोहम्मसुरा० ० पयडत्थ [म] हत्थ० परिहरिय रज्ज० ० माणंदकारयं कम्मधम्म० रणभेरिं सेनसंखा संधेई छहिं भणिऊणं विज्जु ० दाऊण भमाडिऊणं उद्दालिऊण Page #832 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ पत्र गाथा १५२ १६५९ १५३ १६६९ १५४ १६८३ १५४ १६८४ १६१ १७६२ .१६२ १७७३ १६९ १८४५ १६९ १८४७ १७१ १८६१ १७१ १८६८ १७२ १८७४ १७९ पं. २० १८३ १९९८ १८४ २००७ १८६ २०२८ १८६ २०३१ २०१ २१९८ २०३ २२२१ २०४ २२३२ २०५ २२३७ २०९ २२७९ २१५ २३४८ २१८ २३८२ २२० २४१० २४० २६२८ २५२ २७५५ अशुद्धिः भणिऊ णं पडिपेल्लिऊण अवहरिऊ ण चिंतिऊण सायरवयणहिं ०जणया पुण विसूरई करेयव्व सत्तरस० आकिंचिन्नं १९८ गुरुसीहसद्दवितत्थ० एत्थतरम्मि सूरुग्गमउदइ० ससप्पं तरंड पणमत्थं धूया अद्दंसण० नियधूयं सम्म जणि निहित्तयणाहिं ०जणपाण बाहिरज्जाणे वीर ! ऩयरे ( नरवर !?) शुद्धिः भणिऊणं पडिपेल्लिऊण अवहरिऊण चिंतिऊण सायरवयणेहिं ० जणयाय । पुणो विसूरइ करेयव्या सतरस० आकिंचन्नं १९५८ गुरुसी हसद्दवित्तत्थ० एत्यंतर म्मि सूरुग्गमउदयइ० ससप्पतरंड पणामत्थं धूयाअद्दंसण० नियं धूयं समं जणणि० निहित्तनयणाहिं ०जणयाण बाहिरुज्जाणे वीरनयरे ( नवर ? ) ८२३ Page #833 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८२४ पत्र गाथा २५८ २८२५ २५९ २८३७ २६३ २८७८ २६४ २८८५ २६४ २८९१ २६५ २८९६ २७६ ३०१९ २७७ ३०३० २७७ ३०३० २७९ ३०५४ २८२ ३०८७ २८४ ३११५ २९६ ३२४० २९८ ३२६९ ३०३ ३३२० ३०४ ३३२५ ३०८ ३३६९ ३०९ ३३८१ ३२६ ३५६७ ३२७ ३५८१ ३३१ ३६२६ ३३७ ३६८७ ३४० ३७२६ ३४१ ३७३० ३५४ ३८७८ ३६५ अशुद्धिः ० कुमर० चड़ऊ ण पसत्त० (य) समाराहाण० असेससत्ताणचेट्ठियं अप्पाणं (?) सामत्थो संभविही(?) पट्टओ फलिहनिम्मयं वीरसेणो नामो एत्यंतरंभि परोप्परमच्छेरण हरस० बालत्तणं मि निययावल्लय० (व) गब्भवणाओ नत्थिन अद्विद० नीवाडेड विणिच्छियं हियत्तमड़ ४९९९ शुद्धिः ०कुमार० चइऊण पसत्थ० [य] समाराहण० असेससत्ताण चेट्ठियं अप्पाणं सामत्थं संभविही पिट्ठओ फलिहनिम्मियं वीरसेणनामो एत्यंतरंमि परोप्परमच्छरेण सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ हरिस० बालत्तणंमि निययावल्लय० [व] गभभवणाओ नत्थि न सुद्धिकरणत्थं अहिंदु० निवाडेइ विणिच्छयं हियत्तमई ३९९९ Page #834 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ गाथा ४०४५ पत्र ३६९ ३७२ ४०७२ ३७२ ४०७७ ३८१ ४१७१ ३९० ४२७१ ३९२ ४२९६ ४०२ ४४०५ ४०५ ४४३७ ४१२ ४५१६ ४१३ ४५२५ ४१४ ४५३६ ४२१ ४६१५ ४२९ ४६९८ ४४७ ४८१५ ४४७ ४९०४ ४५३ ४९६८ ४६२ ५०६८ ४७२ ५१७० ४७८ ५२४३ ४८१ ५२७६ ४८३ ५२९३ ४८४ ५३०८ ४८४ ५३०९ ४८४ ५३१० ४८४ ५३११ ४९६ ५४४१ अशुद्धिः जह खुदुक्कइ य (?) भुयसिहर ल्हसिय० जहन्नाणा ? चुढि (ड्ढ) पाहाऊय० तत्था हं ० सहस्स निहओ तहाय परिग्गहंअपरिमाणं वद्धावयणं एव माइ पहिट्टि० सुंदरुज्जाणो ० भुयणप्फार० भुणिवरेण त्तिदुक्खदड० ०भमडंत (?) सुटठु दटतुं (य) भणिउ बिहिरिय० शुद्धिः जइ खुडुक्कइ य भुयसिहरल्हसिय० जहन्नाण (?) (?) वुढि (ड्ढि ) पाहाउय० तत्थाहं सहस्सनिहओ तहा य परिग्गहं अपरिणामं वद्धावणयं एवमाइ पहिट्ठ० सुंदरुज्जाणे ० भुयणफार० मुणिवरेण त्ति दुक्खदड्ड ०भमडत० सुट्ठ द [य] भणिए बहिरिय० (उ) ८२५ Page #835 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८२६ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ गाथा शुद्धिः पत्र ४९८ ५०२ ५०४ ५०४ ५०४ अशुद्धिः नउण पिया(?) मज्झं १.२. एत० ३. एत० वावरयंति ०सुत्ते व्व उवएसं न० गोयर ०लुद्दोसं ०सद्दसदोह० भणिय 'मिस्सा ५५०३ ५५३० टिप्पणी . टिप्पणी ५८७१ ६११५ ६१६३ ६१८९ ६२३१ ६२६५ ६२९७ ६३२२ ६४२४ ६४४३ ६४७४ ५६२ ५६४ ५६८ ५७१ ५७४ न उण पिया मज्झ १.२. [ ] एत० ३.[ ] एत० वावारयंति ०सुत्तं व्व उवएसं [ते] न० गोयरे लुद्दो(दे)सं ०सद्दसंदोह० भणिय'मिस्सा वारविलयाण पुव्वावरदक्खि० इटुंसे समु० ०संजुत्तो ०पडिमं अवलोयइ परिहरि० किं किं ति । दासत्तं [पुण?]ति० ५८६ ५८७ ५९८ पुव्वावरक्खि० इट्ठसेसमु० सजुत्तो ०पडिमे अविलोयइ पुरिहरि० किं कि त्ति दासत्तं ति० सकरुणयं जं वाल० ६०० ६५८६ ६०५ ६६३० ६१५ "६७५० ६१७ ६७६२ ६८४७ ६९२८ ६४१ ७०२६ ६४१ ६४६ ७०८६ ६२४ ६३२ करुणयं जं बाल० वच्चंति : वेरग्ग० सुप्पसत्थ० सुपसत्थ० Page #836 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ पत्र गाथा ६४८ ७१०६ ६५६ ७१९६ ६५६ ७२०० ६६९ ७३३७ ६६९ ७३३९ ६६९ ७३४० ६७८ ७४३२ ६८० ७४५९ ७०० ७६७५ ७०४ ७७१८ ७१३ ७८२४ ७१६ ७८५६ ७२८ ७९८३ ७४२ ८१३५ ७७१ ८४६३ ७७४ ८४९० ७७५ ८४९८ ७७८ ८५४० ७८१ ८५७१ ८०७ ८८५१ ८१४ ८९२५ अशुद्धिः तहा वीयं वुझसे वहु० वहुभमरमत्तवालाण ०पवणुव (व्व) ० वीरेसेण० ०वोहित्य० तेण भणियं वाला एत्तोच्चियस्स छिपिज्जइ अवहं अवन्नं विवाह० कयजणणिपयणामो ० कयपक्खिणं देवि परं पि आयारय० शुद्धिः तह बीयं बुझ बहु० बहुभमरमत्तबालाण ०पवणुवे (व्वे) ० वीरसेण० बोहित्थ० तेणं भणियं (रिं?) बाला एयोच्चियस्स छिप्पिज्जइ अवहं (वहं ?) अधन्नं वीवाह० कयजणणिपयपणामो ० कयपयक्खिणं देविं परम्मि आयरिय० ८२७ Page #837 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८२८ सिरिभुयणसुंदरीकहा। पृ. २१२ पर भूलसुधार तो दूरमुड्डिऊणं आरुढो तस्स खंधदेसम्मि । हंतूण मम्मदेसे वसीकओ तक्खण च्चेय ॥२३२२।। आणानिदेसवती संजाओ वारणो कुमारस्स । तो तज्जिओ तुरंतो सरमज्झे गंतुमारद्धो ॥२३२३॥ . पृ. २१३ पर भूलसुधार अणुसंधियकरणवसा पयथामपहावपेल्लिओ दूरं । पत्तो अकिलेसेणं करिराओ पच्छिमं तीरं ॥२३२६।। तो उट्ठिऊण कुमरो वियडगई पंगणाओ नीसंको । पत्तो दुवारदेसं सतोरणं देवभवणस्स ॥२३२७॥ Page #838 -------------------------------------------------------------------------- ________________ BERITA TERBARU