SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 149
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १४० सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ संजाया डोहलया अच्चब्भुयभावसूयगा तीए । एक्कीकयचउसायर-जलेण ण्हाय(ण) करेमि त्ति ।।१५२१।। संनिहियदप्पणे उज्झिऊण तिक्खग्गखग्गपट्टेसु । अवलोयइ मुहकमलं विसिठ्ठगब्भाणुहारे(वे)ण ।।१५२२।। परिहरियमहुरगीयाए तीए सोक्खं जणंति सवणेसु । कढिणारोवियकोयंड-कढ(ड)णुप्पत्तटंकारा ||१५२३।। सुहडनराण वि पायं निसुया वि हु जे जणंति उत्तासं । सीहेहिं तेहिं सह पंजरगएहिं सा कीलिउं महइ ।।१५२४।। वढ्तम्मि पवड्डय-भुवणाणंदम्मि वीरगब्भम्मि । पडिवक्खमंदिरेसु उप्पाया दीसिउं लग्गा ॥१५२५।। अनिमित्ताई अयंडे चलंति सीहासणाई वेरीण । दिढबद्धा वि सिराओ पडंति वियडा महामउडा ॥१५२६।। रायगिहोवरि बंधइ आवासं कोसिओ विवक्खाण । अइविरसमारसंती वैरिपुरं विसइ भल्लुंकी ॥१५२७।। इयमाइ बहुप्पाए द→णं ताण वैरिरायाण । सासंकाण पयट्टा मंता सह मंतिलोयम्मि ॥१५२८।। एत्थंतरम्मि देवी सिंगारवई पवुड्डगुरुगब्भा । सव्वंगनीसहंगी जाया वावारअसमत्था ।।१५२९॥ दाऊण उभयहत्थे जाणुसु आसंदियाओ उठेइ । मणिभित्तिपडिप्फलिए अप्पम्मि वि महइ आलंबं ।।१५३०।। अणवरयं जणकीरंत-विविहकल्लाणसयसमिद्धाए । सिरदुव्वक्खयक्खेवो वि दुव्वहो कह न आभरणा ||१५३१।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001382
Book TitleSiribhuyansundarikaha
Original Sutra AuthorSinhsuri
AuthorShilchandrasuri
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year2000
Total Pages838
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy