SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 148
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ १३९ सव्वेहिं तओ मंतीहिं पभणियं तुज्झ चेव परमेयं । सिज्झइ जं किर सुरराय-दसणं पुत्तलाहो य ।।१५१०॥ उद्यइ अत्थाणाओ विसज्जियासेसमंति-सामंतो । कयभोयणाइकिरिओ गमइ दिणं बुहविणोएहिं ।।१५११।। तो अत्थमिए सूरे अत्थाणे हाइ उचियवेलाए । पट्ठवइ सेवयजणं पच्छा सेज्जाहरे जाइ ।।१५१२॥ सिंगारवईसहिओ सेज्जाए तहिं नु वज्जए राया । तद्दिय(व)सं व्हायाए संभोयं कुणइ सह तीए ||१५१३।। . तो इंददत्तदेवो च्चविऊणं अच्चुयाउ कप्पाओ । पुत्तत्तेणुप्पन्नो सिंगारवईए कुच्छिम्मि ॥१५१४।। निसिपच्छिमम्मि जामे सुहसुत्ता सुविणयं नियइ देवी । सेविज्जंतं पेच्छइ नियगब्भं वीरपुरिसेहिं ।।१५१५।। तं पासिऊण देवी जहाविहं कहइ निययदइयस्स । राया वि तमासासइ सुयजम्मब्भुदयकहणेण ।।१५१६।। पइदियहपवड्दिरगरुय-गब्भपब्भारनीसहसरीरा । तग्गुणभारकं (क्कं)तव्व उच्छहइ नो पयं दाउं ॥१५१७।। गब्भारंभपवुढे थणभार सामचुच्चुयं वहइ । वीरस्स व पाणत्थं जउमुद्दामुद्दियं देवी ॥१५१८॥ अंतोगब्भसमुब्भव-उज्जलतेयप्फुरंतपरिवेसा । सक्केण व रक्खिज्जइ कुंडलियसचावचक्केण ।।१५१९।। सुरलोयअमयपाणोवतित्तगब्भाणुहावओ देवी । नो वंछा आहारं कहमवि परिणामबीभच्छं ।।१५२०।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001382
Book TitleSiribhuyansundarikaha
Original Sutra AuthorSinhsuri
AuthorShilchandrasuri
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year2000
Total Pages838
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy