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________________ २४ इह दुब्बलाण जायइ बलं नरिंदो असेसवसुहाग इय एत्थ अजियविक्कम-बलेण वि तओ परिभमः || २४७ ।। सोउं वयणं राया सोल्लुंठं तस्स चिंतइ मणम्मि अहह अखोब्भो हियए वयणाइ वि ललियवक्काई ॥ २४८ ॥ ता कोवयामि इहि साहिक्खेवं तओ भणइ राया । किं भन्नइ जाणिज्जसि तुमं पहाणो नरिंदगिहे ॥ २४९ ॥ निल्लज्ज ! किन्न लज्जसि निययाणं चेव पंचभूयाणं । जंपतो मह पुरओ नरनाहबलं असद्धेयं ॥२५०|| हरिविकुमेण भणियं न मए अप्पा पहाणभावेण । भणिओ किं तु महायस ! पयासिओ दुब्बलत्तेण ॥२५१ ।। किं जेत्तियाओ राया पयाओ पालेइ एत्थ वसुहाए । जाणेइ तत्तियाओ पच्चेयं नाम - थामेहिं ? ॥२५२ ॥ जा जस्स होइ सत्ती सो तं सव्वायरेण पयडेइ । दुव्वयणभासणे च्चिय तुह सत्ती न उण अन्नस्स ॥ २५३॥ राया चिंतइ पेच्छह अइगरुयपरक्कमे वि खंतिगुणो । निब्भच्छिओ वि एसो तहावि कोवं न उंव्व ॥ २५४ ॥ ता तह भणामि संपइ नीसंदिद्धं करेइ जह कोवं । इय भाविऊण राया सन्निट्ठूरं (सनिठुरं ) भणिउमादत्तो ॥ २५५ ॥ रे रे ! किं मह पुरओ कावुरिस ! पयंपसे असंबद्धं ? | धरिओसि मए रक्खउ जइ बलिओ तुज्झ नरनाही || २५६ ॥ कुमरो भणइ धरिज्जसु सुदिढं मा कहवि तुह विच्छु ( छु ) ट्टेही । राया भणइ लहिस्सं तुह उवहासाण पज्जंतं ॥ २५७ ॥ Jain Education International सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ For Private & Personal Use Only ! 1 www.jainelibrary.org
SR No.001382
Book TitleSiribhuyansundarikaha
Original Sutra AuthorSinhsuri
AuthorShilchandrasuri
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year2000
Total Pages838
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size10 MB
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