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सेरिभुयणसुंदरीकहा ॥
एत्थंतरम्मि एगा पढमुब्भिज्जंतजोवणारंभा । बाला वीणावायणविणिउत्तकरंगुली दिट्ठा ॥६५२॥ बीयं पुण वरनारिं गब्भहरजिणच्चणेक्ककयचित्तं । नीसेसभुवणसमहियरूवाइसयं पुलोएइ ॥६५३।। थणकलसोवरि गंधुदय-भरियखणधरियकलसउत्रिविडी (?) । ण्हवइ जिणं ण्हवणुट्ठिय-जलकणकब्बुरियअलयग्गा ॥६५४।। पिहियकरंसुयवयणा मुहगंधघडंतभमरभीयव्व । परिफुसइ कोमलंचलकरेण जिणणाहतणुसलिलं ॥६५५।। पडिबिंबिया विरायइ अइविमले वीयरायवच्छयले । जोग्गत्ति कयपसाए जिणेण हियए निहित्ति व्व ॥६५६।। मयणाहिमसिणघणसार-सुरहिसिरिखंडकयसमालहणा । पंचप्पयारसुकुसुम-दामेहिं करेइ जिणपूयं ॥६५७।। आपायतलविलंबिर-सिरमालंतरतिरिच्छमालाहिं । सोहइ ससिप्पहजिणो खीरसमुद्दो व्व लहरीहिं ॥६५८।। सुसुयंधकुसुमपरिमल-मिलंतबहुभसलवारणुज्जुत्ता । निब्भच्छा व्व बहुभव-समज्जियं कसिणमलपडलं ॥६५९।। बहुकालायरुदलगंधगब्भिणं उक्खिवेइ वरधूयं । आरत्तियाइ सव्वं करेइ जिणमंगलीयं सा ॥६६०।। पयडियहिययविसुद्धिं जहत्थजिणनाहगुणमहग्घवियं । काऊण थुई पुरओ जिणस्स वाएइ अह वीणं ।।६६१।। पढमं तारसरक्कमसंचलणसमुल्लसंतधीरसरं ।। तंतीवसवलियंगुलि-थरहरियसुथूलथणवढे ॥६६२॥
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