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सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ अइसुस्सरगीयरसाणुरत्तसंगलियहरिणविंद्रहिं । संमीलियच्छिवत्तं सुब्बइ एगिदिएहिं व ॥६६३।। इय नाणाविहसरकरण-जाइ-लय-गाम-मुच्छणाणुगयं । काऊण सरसगीयं अह गायइ पुण इमं दुययं ॥६६४।। "अतिसुकुमारसोणसरलांगुलिपंचकवक्त्रभीषणो नखमणिकिरणजालघनकेसरविसरविशेषभासुरः । भवगुरुवनविहारिदुरितोद्भटकरटिविपाटनक्षमो दिस(श)तु स वांछितानि चन्द्रप्रभचरणमृगाधिपः सताम्" ||६६५।। इय गाइऊण दुयई पुणो पुणो कयमणप्पणीहाणो(णा) । चरणकमलेसु निवडइ चंदप्पहपरमदेवस्स ।।६६६।। जिणण्हाण-पूयणाइसु विणिवेसियतग्गएक्कमण-करणा । मोत्तुं जिणवावारं अन्नत्थ अचेयणव्व फुडं ।।६६७।। बहुभत्तिब्भरपरवसहियया ग्रहाणाइगीयपज्जंतं । काऊण जा पलोयइ ता पेच्छइ पिट्टओ रायं ॥६६८।। दठूण सा नरिंदं तह पहरिसपूरभरियसव्वंगा । जाया जह सेयमिसा नीहरिओ सो अमायंतो ॥६६९।। अह भमरभरोणयपउमपत्तसंपत्तसयलसोहेहिं । पेच्छइ तिरिच्छवलियद्धकंदरद्धंतनयणेहिं ॥६७०।। जो कत्थवि नब्भसिओ अण(णु)हूओ वि हु कहंपि जो नेय । सो तीए तया जाओ कोवि अउव्वो मणवियारो ॥६७१।। सविलासपेच्छियच्छं पडिनयणनिवायपडिहयप्पसरं । हरिविकुमस्स दुसहं तिस्सा अवलोइयं जायं ॥६७२।।
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