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सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ 'नरनाह ! अकुसलाणं संबंधो कह णु होइ भद्देण । भदाणुहावओ च्चिय जायइ गुणरयणसेहरओ' ।।२४०२।। इय कीरेणं भणिए भणइ नरिंदो 'न एस इयरोव्व । होइ अवण्णाठाणं ता अप्पह मज्झ दइयाए' ॥२४०३।। भद्दो वि पूइऊणं विसज्जिओ राइणा सपरिओसं । निययावासंमि गओ सुयविरहविसेसदुक्खत्तो ।।२४०४।। अणवरयं रयणवई तं रायसुयं सुहासियसयाइं । पाढइ सुयसविसेसं पालइ अइपरमजत्तेण ।।२४०५।। अह तस्स रयणसेहर-रयणवइपाणिपंजरगयस्स । कीरस्स अइक्वंतो सुहेण संवच्छरो एक्को ।।२४०६।। अह अन्नया कमेणं विहरंतो भव्वकमलभाणु व्व । करुणानिज्झरणगिरी पसमामयपुन्नकलसो व्व ।।२४०७।। संसारकेरवरवी विसयमहाविसहराण गरुडो व्व । मोहंधयारमिहिरो कसायसंताववारिहरो ।।२४०८।। बहुसीससंपरिवुडो विसेसगुणरयणरोहणगिरि व्व । नामेण मोहमल्लो आयरिओ तत्थ संपत्तो ।।२४०९।। आवासिओ ससीसो लद्धाणुमई य बाहिरज्जाणे । सज्झायज्झाणनिरओ जा अच्छइ तत्थ सो सूरी ।।२४१०।। ता तस्स विमलवाणीसवणसमुल्लसियहरिसरोमंचा । नायरया अन्नोन्नं तग्गुणगहणं पइ पयट्टा।।२४११।। अह रयणउरनिवासी लोओ सव्वो वि तग्गुणक्खित्तो । वच्चइ सबाल-वुड्डो वंदणवडियाए सूरिस्स ।।२४१२।।
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