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________________ १०३ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ अन्नत्थ सहियणपुरो पेच्छ लयंतरियतरुणपुरिसेहिं । सुव्वइ नियनिसिकलहो पयडिज्जंतो पिययमाहिं ।।११११।। मोग्गर-पहार-मालइकुंडल-सयवत्तसेहराइकयं । पुप्फाहरणं कत्थइ कोइ नरो कुणइ दइयाए ।।१११२।। अन्नत्थ कोइ तरुणो परोप्परुन्नमियचिबुयघडियमुहं । दइयागंडूसकयं पियइ महुं पेच्छ रागंधो ॥१११३।। इह भणइ कावि दइयं पउट्ठपुलइएण लक्खिओ मुंच । किं नाह ! निप्फलेणं छलनयणपिहाणकोटेण(?) ।।१११४।। आयासइ सेयजलोल्लिएसु दइयाथणेसु अप्पाणं । इह कोइ पुण लिहंतो कत्थूरियपत्तभंगविहिं ।।१११५।। एवं तुज्झ महोच्छव-च्छलेण घणपत्तदुमलयंतरिओ । इह पेम्मपराहीणो कीलइ बहुमिहुणसंघाओ ।।१११६॥ इय जाव विविहवइयर-निरंतरं नियइ सा वरुज्जाणं । पत्तावसरं भणिया विलासलच्छीए ता एवं ॥१११७।। तुह सहि! साहावियबुद्धिपसरविन्नायवत्थुतत्ताए । अम्हारिसोवएसो परिहासो होइ ता होउ ।।१११८।। तुह चेव पुन्नपरिणइ-पणामियासेसगुणसमुग्घायं । मणुयत्तणं तिणीकय-सुरविलयं सहइ भुयणं पि ।।१११९।। संसारजुन्नरन्नं निप्फलमच्छायमासयविहीणं । कप्पलइया व तुमए विहूसयं भुयणसाराए ।।११२०।। न गुणेहिं विणा रूवं रेहइ हरिणच्छि! जइ वि सविसेसं । उभयं पि न सलहिज्जइ जं न जणइ जणचमक्कारं ।।११२१।। तुह पुण सव्वंगविसेस-चंगिमानिरुवमाणमिह रूवं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001382
Book TitleSiribhuyansundarikaha
Original Sutra AuthorSinhsuri
AuthorShilchandrasuri
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year2000
Total Pages838
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size10 MB
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