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________________ तप्परिवालणमाहप्प-गलियनीसेसकम्मनिलयाण । पुबपुरिसाण चरियं जणइ विवेयं कहिज्जंतं ॥२७॥ परियप्पियचरियगयं दुविहं पि हु उवसमेइ जह जीवे । ता अविकलकज्जपसाहणेण इह दोवि गरुयाइं ॥२८॥ तं नत्थि संविहाणं संसारे एत्थ जं न संभवइ । इय वयणाओ सव्वं चरियं चिय कप्पियं नत्थि ॥२९॥ यह निवेदन बडा मार्मिक-गूढार्थक मालूम होता है । इस भुवनसुन्दरी कथा को आधार बना कर, आगमिक श्रीचारित्रप्रभसूरिशिष्य श्रीजयतिलकसूरिने ‘हरिविक्रमचरित्र' नामक, संस्कृत श्लोकबद्ध व द्वादश सर्गात्मक ग्रन्थ की रचना की प्रतीत होती है । यद्यपि कर्ताने कहीं भी विजयसिंहाचार्य का या उनकी भुवनसुन्दरी कथा का उल्लेख नहि किया, फिर भी उस ग्रंथ का विषयानुक्रम देखते ही पता चलता है कि यह प्राकृत कथा का ही संक्षिप्त व सरल संस्कृत रूपांतर है । इसमें ४७५२ पद्य है । यह प्रकाशित भी है। प्रस्तुत सम्पादन मुख्यतया खम्भात-स्थित श्रीशान्तिनाथ ताडपत्रीय जैन ज्ञानभंडारसत्क ताडपत्रीय प्रति के आधार पर तैयार किया गया है । उक्त प्रति के २७१ पत्र है, व सम्भवत: बारहवें शतक में लिखी गई है, मुनि पुण्यविजयजीने इस प्रति को तेरहवें शतक के पूर्वार्ध में लिखे जाने की संभावना व्यक्त की है। प्रति के अन्तिम पृष्ठ में इस प्रति की संवत् १३६५ में साधु नयपाल की पत्नी रयणादेवी द्वारा खरीद किया जानेका स्पष्ट उल्लेख मिलता है । अत: १३६५ से पूर्व तो यह प्रति लिखी ही गई है। दूसरी कागद की प्रति अमदावाद के श्रीलालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्यामन्दिर के संग्रह की मिली है । जो अनुमानत: सोलहवें शतक की लगती है। उसके प्रान्त भाग में लेखक, समय, स्थल वगैरह का कोई निर्देश नहीं है । फिर वह अशुद्धि प्रचुर भी है । बराबर जांच करने से लगा कि यह प्रति, उक्त ताडपत्र-पोथी की ही नकल है । तथापि ताडपत्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001382
Book TitleSiribhuyansundarikaha
Original Sutra AuthorSinhsuri
AuthorShilchandrasuri
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year2000
Total Pages838
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size10 MB
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