________________
सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ अइगहिरखाइयाजलपडिबिंबियतुंगसालकव(वि)सीसा । दसणपायालागयभवणवइविमाणपंति व्व ।।७२१३।। उत्तुंगट्टालयसिहरमारुयंदोलमाणधवलधया । जा तज्जइ व्व उढे सुरनयरं दीहबाहूहिं ।।७२१४।। पडिमंदिरमणिसिहरुच्छलंतकिरिणोहबद्धसुरचावा । चंपाहिरायआगमनिबद्धबहुतोरणसय व्व ।।७२१५।। जुयइ व्व बहुसहावो नाणाविहकुडिलमग्गकयमोहो । पयडपयावइसाल व्य भुयणदीसंतजणनिवहा ॥७२१६।। दठूण पुरि राया मित्तं पइ भणइ विम्हयरसेण । 'उप्पायइ अच्छरियं एसा नयरी पदीसंती ।।७२१७।। पायं न एत्थ पहवइ पुरीए सव्वंकसो हयकयंतो । तेण अमरो व्व लोओ अणिट्ठिओ एत्थ अइबहुओ' ।।७२१८॥ इय एवमाइ बहुविहनयरागयगुणसहस्सअक्खित्तो । पेच्छइ लोयं वीरो वच्चंतं बाहिरुज्जाणे ॥७२१९।। तो भणइ बंधुयत्तो ‘एसो उण कत्थ वच्चए लोओ ? | एसा वि रायपत्ती का वि परी[वारपरि]यरिया ? ||७२२०।। किं वीरसेण ! एसा उव्वेवाहिट्ठिय व्व रायवहू ? । पायं इमीए होही अइगरुओ दुक्खपब्भारो ।।७२२१।। तेण नियच्छसु नरनाह! खीणसव्वंगजायदोब्बल्ला । बहुओववासवयमिव अभणंती कहइ देहेण ||७२२२।। परिचत्तभूसणा वि य पविरलदीसंतमंगलाहरणा । अभणंत च्चिय साहइ अविहवभावं अइसुदीहं ।।७२२३॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org