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सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ रंजिज्जइ मुद्धजणो पियसहि ! इयराणुकूलिमगुणेण । हिययाणुकूलिमं चिय च्छइल्लपुरिसा पसंसंति' ।।२१३५।। एत्थंतरम्मि सहसा पुरोहिओ उढिओ ससंभंतो । 'आओत्ति वीरसेणो' जंपतो तरलतारच्छो ॥२१३६।। 'आओ'त्ति इय पलत्ते हियउकुलियाहिं बहुवियप्पाहिं । तह नडिया चंदसिरी विम्हरिया सा जहप्पाणं ॥२१३७।। अइवल्लहपढमसमागमम्मि तरलत्तणं गुरूणं पि । अंतरइ मणस्स फुडं उचियाणुचियत्तणविवेयं ।।२३८।। तो चंदसिरी काऊण कारिमं माणसे अवटुंभं । अन्नववएसवावारवावडं कुणइ अप्पाणं ॥२१३९। सिरीवीरसेणदंसणसमुच्छुयं कड्डियं हडे(ढे)णेव । दाहिणकरयललीलाकमले च्चिय ढुवइ नयणजुयं ॥२१४०॥ भरखित्तनीसहंगी बिउणीकयबाहुनिहियगंडयला । मणिमत्तवारणगया तलगयदासीण संदिसइ ॥२१४१।। एत्थंतरे कुमारो सबंधुयत्तो समागओ तत्थ । मोत्तूण दूरओ च्चिय परिवारमुवद्दवभएण ।।२१४२॥ सो उज्जुयं नियंतो देवीमुहकमलमेव गब्भहरं । पविसइ अणन्नदिट्ठी अमुणियचंदसिरिआगमणो ॥२१४३।। तस्साणुमग्गओ च्चिय जा पविसइ पियवयंस[ओ?] पुरओ । तो पेच्छइ चंदसिरिं विलासलच्छीए परियरियं ॥२१४४।। दठूण बंधुयत्तो रायसुयं मत्तवारणनिसिन्नं । 'चकेसरिदेवीए एस पसाओ'त्ति चिंतेइ ॥२१४५।।
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