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________________ ६६ सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ नयणनईसु य जिस्सा वाहो इव पविसिऊण पंचसरो । मज्जइ मोत्तूण तडे भूजुवलमिसा वणलयं व ॥७०६।। वयणस्स अलंकारव्व तीए दीसंति सुंदरा दसणा । सुसिलिट्ठकंतिसमया सुसमाहियतेयगुणकलिया ॥७०७।। जीसे सहावसुंदर-मुहम्मि अहरो निसग्गसोणपहो । कमलट्ठिओव्व सोहइ रत्तुप्पलपत्तसंघाओ ।।७०८।। सोहंति जीए सवणा नयणनइपवहपडिहयप्पसरा । भूडंडग्गठियां इव मयणमहावाहपासव्व ॥७०९।। इय जं जं चिय दीसइ सरीरगयमेत्थ अवयवसरूवं । कप्पलयाए व सव्वं तं तं मणनिव्वुइं कुणइ ।।७१०।। सव्वंगेसु वि अइमहुर-सरस-रमणीयगुणमहग्घविया । उवभोगसुहासायण-मणोहरा इक्खुलट्ठिव्व ॥७११।। उत्तमकुलप्पसूई तत्थवि रूवं च तं पि गुणकलियं । आमरणंतो नेहो जुवईण सुदुल्लहं मिलियं ।।७१२।। ता जुवइरयणमेयं संभवइ न जत्थ तत्थ इय रूवं । कहमिव वणम्मि निवसइ सपच्चवायम्मि, अच्छरियं ।।७१३।। एत्थंतरम्मि एगा समागया तत्थ मज्झिमवयत्था । तावसवेसा जुवई परिवियडकमंडलुकरग्गा ।।७१४।। अइमसिणवकुलंसुय-नियंसणा वक्कलंगपंगुरणा । विविहतवसुसियदेहा पच्चक्खा तावससिरिव्व ॥७१५।। पयपयनिविठ्ठदिट्ठी बहुतावसनिवहसिक्खणसयोहा । अहिधावमाणवणयर-पयडियपडिवालणपसाया ।।७१६।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001382
Book TitleSiribhuyansundarikaha
Original Sutra AuthorSinhsuri
AuthorShilchandrasuri
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year2000
Total Pages838
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size10 MB
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