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सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥
पयईए(इ) भयसरूवा ओयरइ नहाओ चामुंडा ॥५७२९।। तो तं तहासरूवं जोइंदो पासिऊण पुलयंगो । . पाएसु पडइ तिस्सा धरणीयललुलियसव्वंगो ।।५७३०।। तो पणमंतं जोई सा जंपइ ‘भणसु रे ! किमाहूया ?' । सो भणइ देवि ! दासो तुज्झ च्चिय सव्वकालमहं ।।५७३१।। न कयाइ मए धरिया तुमं विणा अन्नदेवया हियए । अहवा किं भणिएणं ? पमाणमिह भयवई चेव ।।५७३२।। तो देवि ! दुत्थिएणं कयवेरिपराहवेण भीएण । भयवइ ! भुयणसरन्ने ! आहूया सरणबुद्धीए ।।५७३३।। दुत्तरआवइसायरपडियस्स न देवि ! होइ उत्तारो । जाव न लद्धाऽसि तुमं सुनिच्छियं सुदिढदोणिव्व' ।।५७३४।। जोइवयणावसाणे जंपइ 'तुह भयं कुओ कहसु । जेणाऽहं जोईसर ! मुणियथा(त्था) तुह जइस्सामि' ।।५७३५।। तो जोइएण भणियं ‘एसो च्चिय देवि ! तुज्झ पच्चक्खो । नामेण वीरसेणो मह अवयारी महासत्तू ।।५७३६।। जं देवि ! तए तइया पसन्नचित्ताए दिन्नमसिरयणं । मह तं पि हढेण हियं अणेण अडवीए मज्झमि ।।५७३७।। ता देवि ! कुण पसायं मारेसु इमं कयावयारं मे । मह देसु खग्गरयणं इमस्स रायस्स थिररज्ज' ।।५७३८।। कच्चायणी पयंपइ ‘होऊण थिरो अणेण सह जुज्झ । छिदं लभ्रूण तओ अहं पि उचियं करिस्सामि' ||५७३९।। तो जोइंदो हिट्ठो चामुंडावयणहुयअवटुंभो । नरसीहकयसहाओ जुज्झइ सह वीरसेणेण ।।५७४०।।
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