________________
७०५
सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥
पेच्छइ सहावमणहररूवनिवेसुल्लसंतसोहग्गं । सो जक्खो चंदसिरिं तरलच्छो तियसनारिं व्व ।।७७२६।। दठूण मणे चिंतइ ‘पसत्थबहुलक्खणंकियसरीरा । एयाए आगियइ(गिई)ए एसा अच्चुत्तमा नारी ॥७७२७।। आपंडुरगंडत्थलखामकवोलत्तणेण कहइ व्व । आवनसत्तभावं पयईए मणोहरच्छायं ॥७७२८॥ अच्चुज्जलकंतिकलावधवलियासेसवोमवित्थारा । कोमुइनिसि व्व एसा सरयब्भंतरियससिबिंबा' ॥७७२९।। इय चिंतिऊण जक्खो मलयद्दिगहीरकंदरदरीए । विवरदुवारेणं तो पविसइ सह तीए नियभवणं ।।७७३०॥ नेऊण तत्थ मणहरमणिमयपल्लंककोमलु(ल)त्थुरणे । मोत्तुं देविं जंपइ जक्खो दूरासणनिविट्ठो ॥७७३१।। 'मा भाहि मलयसिहराओ निवडमाणी मए तुमं धरिया । मलयमेहाहिहाणेण एत्थ वत्थव्वजक्खेण ॥७७३२।। कस्स न जायइ हिययं सपक्खवायं गुणीसु सगुणाण । इय आणि(णी)या इहई तुमं मए निययभवणंमि ।।७७३३।। ता तुह इमं(एयं?) गेहं अहं पिया तुज्झ अच्छ वीसत्था । सन्निहिओ तुह वट्टइ पसूइसमओ वि पसयच्छि! ।।७७३४।। पच्छा नीसल्लाए जं जह समयोचियं तयं काहं' । इय भणिया चंदसिरी सत्थमणा भणिउमाढत्ता ।।७७३५।। 'तुह गेहे अच्छंतीए मज्झ न हु अत्थि कोइ मणखेओ । जीए गुणपक्खवाई जणओ सि तुमं समीवत्थो ||७७३६।।
XG
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org