________________
७०४
सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ अणुरत्त त्ति कहं सा सेविज्जइ निब्भराणुरत्तेहिं । जा इह परलोएसुं कारणमिह होइ दुक्खाण ।।७७१५।। परनारिं सेवंतं को मं मुणिहि त्ति धरसु मा हियए । अप्पाण च्चिय होही अकम्मनिरयस्स तुह सत्तू ।।७७१६।। खणलवसुहस्स कज्जे बहुसागरदुत्ता(त्त)राइ दुक्खाइं । मा अज्जिण बहु छेयं निल्लाहं कुणइ को कज्जं ?' ||७७१७।। इयएवमाइ भणियं चंदसिरिं खेयरो पुणो भणइ । हियउल्लसंतअइभीमरोसरज्जंतनयणजुओ ।।७७१८॥ 'जइ तुह न अम्ह उवरिं अणुराओ ता कयाइ मा होउ । अस्सोयव्वाइं कहं भाससि अइदुट्ठवयणाई ? ||७७१९।। ता दुव्वयणपहासणफलमेयं उवणयंतु तुहमेण्हि । चइऊण अणुणयमहं हढेण तुममज्ज भुंजिस्सं' ||७७२०।। तो चंदसिरी तव्वयणसवणचारित्तभंगभयभीया । मलयसिहराओ घेल्लइ अप्पाणं छिन्नटंकमि ॥७७२१॥ इह सीलजीवियाणं सीलं चिय वल्लहं कुलवहूण । लब्भइ पुणो वि जीयं सीलं पुण खंडियं कत्तो ? ||७७२२।। सीलं भुयणदुलंभं रक्खंतीए पवुड्डपुलयाए । देवीए जीवियं तिणतुलाए तुलियं तहिं समए ।।७७२३।। एत्थंतरे पडती चंदसिरी तक्खणे गिरियडाओ । मलयाहिवेण दिट्ठा जक्खेणं मलयमेहेण ||७७२४।। साहम्मिवच्छलेणं चंदसिरीसत्तहरियहियएण । जक्खेण अकयबाहं पडिच्छिया कोमलकरहिं ।।७७२५।।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org