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सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥
हंतूण जाव तं जाइ नियरहं ताव डमरसीहेण । धरिओ पायंमि पसारिउद्धभुयडंडजुयलेण ॥१६४२।। धरिओ धरिओ त्ति नहम्मि तक्खणच्चेय कलयलो जाओ । दुज्जणराएहिं पुणो सहत्थतालेहिं व उवहसियं ।।१६४३।। एत्थंतरम्मि सूरो अमूढलक्खो तमियरपाएण । हंतूणं वत्थयले, पाडइ उव्वमिररुहिरोहं ॥१६४४।। उम्मुक्कवामपाओ वच्चइ नियरहं पुणो सूरो । जा कुणइ करे चावं ता सहसा उट्ठिओ डमरो ।।१६४५।। उत्तरइ रोसरज्जंतनयणजुयलो प्फुरंतअहरोहो । उक्खिवइ रहं सहयं ससूरसेणं ससूयं च ।।१६४६।। उच्चल्लिऊण गयणे भामइ जा ताव सूरसेणो वि । दाऊ ण महाफालं ससारही जाइ तस्स रहं ।।१६४७।।
ओसारिय चिरसारहिट्ठाणे अह सूरसारही ट्ठाइ । उद्धं भमाडिऊ णं अप्फालइ रहवरं डमरो ॥१६४८।। जा जाइ सकीयरहं ता नियइ ससारहिं रहे सूरं । चिंतइ मए न एसो निवाडिओ किं सह रहेण ? ।।१६४९।। मुट्ठीपहयं गयणं अलियं तुसखंडणं मए विहियं । कट्ठाई चिय संचुन्नियाई न उणो महासत्तू ।।१६५०।। अहवा किमेत्थ नटुं ? इय भमिउं रोसतंबिरनिडालो । निहणंतस्स वि सूरस्स चडइ सरहं महासुहडो ॥१६५१।। उद्दालिऊ ण सिरिसूरसेण-हत्थाओ सव्वसत्थाई । बलिचंडाए(?) नरिंदं धरइ भुयादंडजुयलेसु ॥१६५२।।
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