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सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥
तक्खणमेत्तेणं चिय तं नयरं मणहरं पि मह जायं । निज्जीवमिव कडेवर-मसरिससंतावसोयकरं ||१२२४ ॥ हा ! किं दिट्ठो सि महाणुभाव ! दिट्ठो सि जइ कहं नट्टो ? | ता नूणं संतावाय मज्झ इह तुज्झ आगमणं ।। १२२५ ।। जइ हरियं मह हिययं तुमए ता हरसु किंपि न भणामि । कहसु कह तन्निवासा पडिया मह दुक्खरिंच्छोली ? ।।१२२६ ।। वच्चसु इच्छियदेसं पुज्जंतु मणोरहा तुह ममा वि । इह जम्मे च्चिय न परं सरणं जम्मंतरे वि तुमं ||१२२७॥ कोहंडि ! देवि चक्किणि ! जालिणि ! महक्कालि ! कालि ! पन्नत्ति ! | मह पत्थणाइ कुसलं तस्स सरीरम्मि कायव्वं ॥। १२२८ ॥
दुक्खं न मए दिट्ठ निसुयाइं न दुक्खियाण वयणाई । तहवि सहि ! निग्गया मे के वि अउव्व च्चिय विलावा ||१२२९।। अह जणपरंपराए ताएण वि एस वइयरो निसुओ । अन्नेसणत्थमुवरिम-पासायतलम्मि तो चडिओ ||१२३०|| सुइसुंढ(?) पलोइरपरियण- परिवारिएण ताएण | अवलोइओ न दिट्ठो रायसुओ गयणमग्गम्मि ॥१२३१ ॥ मा कहवि देवजोया निवडइ धरणीयलं [[म] इय मइए । दस जोयणाई चउदिसि निरिक्खिओ आसवारेहिं ॥१२३२।। तो मज्झण्हे ताओ समहियमत्तंडकिरिणसंतत्तो । अलं (ल) हंतो तस्सुद्धिं जणोवरोहेण उत्तरिओ ||१२३३ || अह भवणमज्झभाए ताओ सिंघासणम्मि उवविट्ठो । नीसेसमंतिवग्गं तो वोत्तुं एवमादत्तो ||१२३४||
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