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सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥ जह उप्पन्ना जह वड्डिया य जह गाहिया कलानिवहा । तह सव्वं तुह कहियं कुलवय(इ)णा अज्ज रयणीए ॥७९५८।। जह जह वड्डइ एसा तह तह झिज्जंति तिन्नि वत्थूणि । एयाए मज्झदेसो मज्झ मणं सुरजुयाणा य ।।७९५९।। धूया हि नाम जायइ जणयस्स अदोसजो महादंडो । परिपुन्नधणाणं पि हु धूया अत्थित्तमावहइ ।।७९६०।। सुसमत्थो वि हु विसहइ दुव्वयणसयाइं धूयदाणत्थी । गरुओ वि लहुं पि वरं धूयत्थे ठवइ गरुयत्ते ।।७९६१ ।। सगुणा वि सुजाई विय विविहाहरिया वि विविहविन्नाणा । धूया परस्स होही माला इव मालकारस्स ॥७९६२।। बहुविहवपूरिया वि हु अणेयकम्मयर-दाससंजुत्ता । नाव व्व कुमर ! धूया सुचिरेण वि परउलं जाइ ।।७९६३।। निययं पयपुन्ना वि हु खंधपवुड्डा वि अइसुपत्ता वि । सहयारस्स व साहा फलकाले होइ परकीया ।।७९६४।। इय केत्तियं व भन्नउ जस्स सुया तस्स सव्वदुक्खाइं । जेण न दिटुं दुक्खं सो धूयं जणइ कुड्डेण ||७९६५।। तो एयत्थं नरवर ! पुणो पुणो महियलं निरवसेसं । भमियं रायकुमारा निरिक्खिया बहुविहा तत्थ ॥७९६६।। आगंतूण इमीए कहेमि सव्वाण ताण कुल-विहवे । चित्ते पडिलिहिऊणं रूवाइयं तस्स दंसेमि ।।७९६७।। एद(द)हमेत्ते वि जए नाणाविहकुमरकोडिकलियंमि । सो कोइ नत्थि जो किर इमीए आणंदए हिययं ।।७९६८।।
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