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सिरिभुयणसुंदरीकहा ॥
पुढवाईसु असंखा ओसप्पिणि-सप्पिणीओ चउसु पि । ताओ चेव अणंता वणसइकाए वसइ जीवो ॥२५६६।। तत्तो वि जंगमत्तं किमि-कीड-पयंगमाइ अइदुलहं । पंचिंदियत्तजम्मो तत्तो वि हु दुल्लहो होइ ॥२५६७।। खर-सरभ-वसह-महिसुट्ट-मेस-पसु-ससय-सूयराईसु । पंचिंदियतिरिएसुं धम्मअजोगेसु संभवइ ।।२५६८।। .... तत्थ वि य सबर-बब्बर-तुरुकू-भिल्लाइबहुपयारेसु । पावइ पाववसेणं अणज्जखेत्तेसु मणुयत्तं ॥२५६९।। अह कह वि मणुयजम्मं आरियक्खेत्तेसु पावए जीवो । चंडाल-डोंब-धीवर-पारद्धियजाइओ होइ ॥२५७०।। अह पावइ जाइ-कुलं तत्थ वि बहिरंध-पंगु-कुज्जतणू । वियलंग-कांण-कुंटो रूवविहूणो नरो होइ ॥२५७१।। सव्वंगसुंदरो वि हु जायइ बहुवाहिवेयणाभिहओ । जर-खास-सास-हरिसा-गुलुम्म-खयरोगविद्दविओ ।।२५७२।। आरोग्गे वि हु लद्धे तत्थ वि अप्पाउओ नरो होइ । सूलाहि-विस-विसूइए(अ-) सत्थाभिहओ खणे मरइ ।।२५७४३।। दीहाउए वि लद्धे तत्थ वि बहुकोह-माण-मायाओ । अइलोह-राग-दोसा कस्स वि पयईए जायंति ।।२५७४।। पयइविसुद्धमणु(ण)स्स वि न होइ धम्मंमि कह णु उल्लासो । अह होइ सो वि तत्थ वि भाविज्जइ बहुकुधम्मेहिं ।।२५७५।। अह पुव्वपुन्नपरिणइवसेण जिणधम्मवासणा होइ । तत्थ वि धम्मुवएसं जो देइ स दुल्लहो सूरी ।।२५७६।।
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